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Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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Shaandar update
 

Premkumar65

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अब आगे.................



उसने टोक दिया,

“तू झूठ बोलता है… कोई ससुर अपनी बहू के बारे में ऐसा ना सोचेगा ना बोलेगा।”

“भाभी तुम मानो या ना मानो…, मैं जो कह रहा हूं सब सच है…वो तो और भी बहुत कुछ कहते है कि लेकिन मैं क्यों बोलूं...तुम मान ही नहीं रही हो...और मैं कह भी नहीं सकता...'' परम चुप रहा।

लेकिन उसने उसके मन में उत्सुकता जगा दी है।

लीला जानती थी उसे कभी भी खूबसूरत नहीं माना गया... हाँ, वह एक बोल्ड और आकर्षक लड़की के रूप में मशहूर है। लेकिन, किसी ने कभी उसकी खूबसूरती की कद्र नहीं की और ना,शादी से पहले या शादी के बाद, किसी ने भी उससे सेक्स के लिए संपर्क नहीं किया, सिवाय उनके घर के ड्राइवर के, जो उसे ड्राइविंग सिखाने के बदले में चुदाई चाहता था। और उसी से फसी भी थी।

यहाँ तक कि उसके पति ने भी साफ़-साफ़ कहा था कि वह एक साधारण 'माल' है, लेकिन बाद में उसने कहा कि वह उसे पसंद करता है। वह जानती थी कि उसका पति कलकत्ता में वेश्याओं और कॉल गर्ल्स के पास जाता है। उसने कई बार विरोध किया, लेकिन उसके पति ने कहा कि वह कुछ नहीं कर सकता। उसे नियमित रूप से दूसरी औरतों के साथ सेक्स करना पड़ता है। अब वह यह सुनकर उत्साहित थी कि उसके ससुर सेठजी उसे पसंद करते हैं और उसकी खूबसूरती की सराहना करते हैं और एक बहुत छोटे लड़के, जो उससे भी छोटा है, से उसके बारे में बात करते हैं।

लीला यह सब सोच ही रही थी कि कुछ देर शांत रहने के बाद परम ने दूसरा कार्ड फेंक दिया।

“भाभी, प्लीज़ किसी को मत बोलना कि मैंने ये सब कहा है.. लेकिन जो भी कहा है.. सब सच है।”

"अच्छा! और क्या बोलते हैं तुम्हारे सेठजी जो तुम नहीं बोल सकते!" लीला धीरे से बोली।

“छोड़ो ना भाभी…जान कर क्या करोगी…तुम मानोगी नहीं”

“बोल.. ना… नख़रे मत कर..” लीला ने ज़ोर से कहा “मैं भी तू सुनु तुम्हारे सेठजी अपनी बहू के बारे में क्या ख्याल रखते हैं..!”

“किसिको बोलोगी तो नहीं…” परम ने विनती की..!

“नहीं बोलूंगी...वादा करती हु।” उसने उत्तर दिया।

अब तक सभी चीजें ठीक से रख दी गई थीं। परम उसके पास गया और उसके पैरों के पास फर्श पर बैठ गया।

“करीब 15 दिन पहले सेठजी ने मुझे अपने ऑफिस में बुला कर कहा कि मेरा एक काम कर दू.., मुझे बहुत रुपया दे देंगे... मुझे लालच हो गया। मैंने पूछा क्या काम सेठजी, तो उन्होंने कहा कि मैं अपनी मां सुंदरी को मनाऊ कि वो मेरे (सेठजी) के साथ चुदाई करे…।”

“हे!!!… सेठजी ने ऐसा कहा… सुंदरी के बारे में…!!! और तुम ने सुन भी लिया?”

लीला का पूरा बदन सिहर गया एक लड़के के मुँह से 'चुदाई' का शब्द सुन कर...


वह इस बात से नाराज नहीं थी कि परम ने 'चुदाई' शब्द बोला। यह बहुत आम शब्द था उनके घर और गाव सभी जगह। वह ये शब्द बचपन से सुनती आ रही थी जब उसके पिता और चाचा नौकरानियों और मजदूरों को डांटते थे। कुटी, यहीं पटक कर चोद दूंगा, साली अपने बाप से चुदाई करती है.. तेरी मां को चौराहे पर पटक कर चोदूंगा...आदि.. लेकिन यह सुनकर कि उसकी फिल्म ने परम से उसकी मां के बारे में यही बात कही है, वह उत्तेजित हो गई।

“हा भाभी… मुझे तो चुदाई के बाद में कुछ मालूम नहीं था, लेकिन ये जानता था कि ऐसा किसी की मां बहन के बारे में बोलना गाली होता है लेकिन सेठजी ने बहुत खुशामद किया और मुझे एक हजार रुपया दिया… फिर उन्हें कहा कि सुंदरी जो मांगेगी मैं दूंगा..!“

“तुमने सुंदरी से कहा..?” “लीला उत्सुक थी।

“हाँ भाभी, उसी दिन मैंने माँ से सब कहा तो वो शर्मा गई…!”

“तो सेठजी ने सुंदरी को चोदा नहीं…?”

“मुझे क्या मालूम भाभी.. वो थोड़े ही मेरे सामने चुदवाएगी…” परम ने लीला को घूरकर देखा और झिझकते हुए अपना हाथ उसके घुटने पर रख दिया। लीला ने कोई प्रतिवाद नहीं किया।

परम ने आगे कहा, ''उसी दिन सेठजी ने तुम्हारे बादे में भी कुछ ऐसा ही बोला।''

“क्या?” लीला परम की ओर झुक गयी।

“सेठजी ने कहा कि उन्हें सिर्फ दो (केवल दो) औरत ही पसंद है एक तो सुंदरी और दूसरी छोटी बहू, लीला।“

परम शांत हो गया।

“चुप क्यों हो गया.. और क्या बोला..?” उसने पूछा।

“सेठजी ने कहा, कि छोटी बहू बहुत जबरदस्त माल है.. जब भी उसको देखते हैं तो उनका ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है. मन करता है कि लीला को बाहों में लेकर कर मसल डालू, उसके उँगलियों को सहलाऊँ और उससे कूद कर... "परम चुप रहा।

वह जानती थी कि आखिरी शब्द क्या हो सकता है, फिर भी उसने पूछा, " कूद कर क्या...?"

परम लीला को घूरता रहा और उसे पता ही नहीं चला कि कब उसके हाथ उसकी ऊपरी जाँघों पर पहुँच गए और वह उसका हाथ अपने हाथों में थामे हुए थी और उसे अपनी दोनों जाँघों के बीच दबाए हुए थी। परम उसकी कसी हुई जाँघों की गर्मी महसूस कर रहा था। उसने उसकी आँखों में देखा और कहा,

" ... उसे जम कर चोदू… उसकी टाइट चूत में लंड पेलकर बहुत मजा आएगा…हो सके तो मेरे लंड के बिज से उसको माँ बना दू।”

इतना सुनना था कि बहू खड़ी हो गई.. “छि… ऐसा भी कोई अपनी बहू के बारे में बोलता है…?!”

परम ने साहसपूर्वक उसके हाथ पकड़ लिए और कहा, “भाभी सेठजी की कोई गलती नहीं है… तुम हो ही ईएसआई मस्त माल। इतनी मस्त कि कोई भी तुम्हें चोदना चाहेगा।“

“चलो अलग हटो… कोई आ रहा है…!”



दोनों अलग हो गए। तभी सुंदरी अंदर आई और उसने परम को बताया कि सेठजी उसे बुला रहे हैं।


आज के लिए बस यही तक


कल फिर देखेंगे आगे क्या क्या हुआ कहानीमे एक नए अपडेट के साथ




। जय भारत
Leela ko bhi fansa rahai Param.
 

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Update 10





जाने से पहले, परम ने लीला से विनती की कि वह किसी को कुछ न बताए। परम के जाने के बाद, सुंदरी ने पूछा; “परम क्या कह रहा था?”

लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया और दोनों बाहर आ गईं। बड़ीबहू ने देखा कि लीला शरमा रही है, उसने सोचा कि परम ने उसे भी वैसा ही मज़ा दिया है जैसा उसने पिछली शाम दिया था। वह संतुष्ट हो गई। लगता है की उसकी गिफ्ट परम को लुभा गई।

जब परम और लीला कमरे में बातें कर रहे थे, सेठजी दूसरे शहर से एक और सेठ के साथ घर आए। उन्होंने बड़ी बहू से उनके लिए कुछ नाश्ता और मीठा पेय भेजने को कहा। सुंदरी ने अपनी बेटी महक से नाश्ता अंदर ले जाने को कहा। वह स्कर्ट और ब्लाउज़ पहने हुए थी, कॉलेज ड्रेस पहने हुए थी क्योंकि वह सीधे कॉलेज से आई थी। उसने खाने का सामान मेज़ पर रखा और बिना कुछ बोले बाहर आ गई।

"क्या मस्त माल है!" दूसरे सेठ खुद को रोक नहीं पाए। "मैं तो इस लड़की के साथ एक बार सोने के लिए और थोडा चोदने के लिए कुछ भी देने को तैयार हूँ।"

“लड़की पसंद आई..?”
मैत्री और फनलवर की रचना

"हाँ दोस्त, देखते ही मेरा मूड और लंड गरम हो गया है..मुझे तो उसका माल बिना देखे ही अच्छा लगने लगा।" उसने लंड पर हाथ फेरा। और बोला, "इसे अभी चोदना है... साली कितना लेगी?" उसने पूछताछ की और सेठजी ने बताया कि महक उसके करीबी दोस्त की बेटी है।

सेठजी को सुंदरी की बात याद आई, जो उसने सुबह महक के बारे कहा था।

देखो, एक तो आप हमारे खास है,और ऊपर से आप को यह माल पसंद आया है। अब कुछ करना तो पड़ेगा।“ सेठजी ने मेहमान की झंगो पर हाथ रखते हुए कहा।

“अरे, कुछ करो वरना यह लंड मेरा ऐसे ही पागल कर देगा मुझे। मुझे जो चीज़ पसंद आती है वह मेरे लंड को देनी पड़ती है आप तो भली भांति जानते हो। आपके लिए क्या नया है!”

हाँ जानता तो हूँ पर यह घर है और ऊपर से यह वेश्या नहीं है, पूरा कच्चा माल है, मैंने मेरे लिए उसे बड़ा कर रखा है, पर आप कहते हो तो कुछ करता हूँ, मुझे उसके घरवालो से पता करना पड़ेगा।“ सेठजी चाहते थे की महक का शील के दाम ज्यादा से ज्यादा मिले।

सेठजी बात को लम्बाई देते हुए कहा: “वैसे तो माल काफी भरा हुआ है पर अभी तक उसे उसकी माँ ने कही इधर-उधर होने नहीं दिया।“

“अरे, ऐसे कच्चे माल की कोई कीमत नहीं होती दोस्त, बस वह जो मांगे देने के लिए तैयार हूँ।“

“हाँ, शेठ, सही कहा आपने। मैं खुद की बात करू तो अब तक जितनी बार इस माल को देखता हूँ तब या तो मुझे आपकी भाभी को चोदना पड़ता है या फिर मुठ मारनी पड़ती है।“ सेठजी ठह्काके हँसने लगे।

“चलो, मैं ही कुछ करता हूँ उसकी माँ से बात करता हूँ अगर वह मान जाती है इस माल की कीमत बोलती है तो मैं आपको बताता हूँ” उसने सेठ को वही बू=इतने का इशारा किया और अंदर की ओर चले गये।

थोड़ी देर अपने कमरे में इधर-उधर घूम के वापिस आये और दुसरे सेठ को कहा;

“सेठजी वैसे तो उसकी माँ ने बिलकुल मन कर दिया की वह अपनी बेटी को अनचुदी रखना चाहती है, पर पैसा क्या नहीं करवाता, मैंने उसे दिलासा दिया है की उसकी शील के अच्छे दाम दिलवा सकता हूँ तो वह ना ना करते हुए सहमत हुई है, अगर आप तीन लाख रुपये दे सके तो वह उस लड़की की चुदाई का इंतज़ाम कर सकता है।“

दूसरे सेठ ने अपना बैग खोला और नोटों के बंडल निकाले। उसने गिनकर तीन लाख रुपये सेठजी को दिए। उसने उन्हें दूसरे बैग में डालकर अलग रख दिया। दूसरे सेठ महक को घर में ही चोदना चाहते थे, लेकिन सेठजी ने कहा कि यह मुमकिन नहीं है क्योंकि यहाँ बहुत सारे लोग हैं। फिर उन्होंने परम को बुलाया और परम को सलाह दी कि वह कोई बहाना बनाकर महक को घर से बाहर ले जाए और उसे और दूसरे सेठ को अपने ऑफिस रूम में ले जाए जहाँ सुंदरी की चुदाई हुई थी।

परम अंदर गया और सुंदरी से बात कही की सेठजी ने महक का सौदा आर दिया है, उसकी चूत के लिए सेठजी ने लंड ढूँढ लिया है। सुंदरी ने महक को घर जाने को कहा, क्योंकि उसके पिता अकेले रहें। महक परम के साथ घर से बाहर निकली और कुछ दूर तक चली जहां दूसरा सेठ अपनी कार मे उनका इंतजार कर रहा था। परम ड्राइवर के पास बैठ गया और महक उस सेठ के साथ पिछली सीट पर बैठ गई।

महक समझ गई कि आज उसकी कुंवारी चूत फटने वाली है वो भी बाप के उमर के मोटे सेठ से...इसका मतलब साफ़ है की परम और सुंदरी ने उसका और उसकी चूत का सौदा कर दिया है, सेठजी ने काफी मदद की है और हो सकता है सुंदरी ने जो माँगा हो वही भाव में मेरी चूत का सौदा हो गया हो। फिर मन ही मन सोचा की जो भी हो मुझे क्या! मुझे तो लंड से मतलब है, फिर मैं भी किसी से भी चुदवा सकुंगी, शायद बाबूजी पहले हो सकते है क्यों की मैं और बाबूजी ही ज्यादत घर में अकेले होते है, सुंदरी और परम तो सेठ के आस-पास ही होते है। उसे पता था की बाबूजी घर क्यों जल्दी आ जाते थे, उठते बैठते उसकी चूत के दर्शन करते रहते थे।

“क्या ये मुझे परम और बाबूजी जैसा मस्ती दे देगा…?” महक ने खुद से सवाल किया।

“ठीक है….जैसा चाहेगा चुदवा लूंगी….फिर घर जाकर आज ही बाबूजी और भैया दोनों के साथ पूरा मजा लूंगी…” उसने खुद को जवाब दिया।

वह अपना वादा भूल गई थी कि परम ही उसका कौमार्य भंग करेगा।

वे ऑफिस कक्ष में पहुंचे। परम अंदर रह कर अपनी बहन की ज़िंदगी की पहली चुदाई देखना चाहता था। लेकिन सेठ और महक ने भी परम को बाहर जाने और एक घंटे के बाद वापस आने के लिए जोर दिया।

“बेटा….ऐसे मस्त माल के लिए एक घंटा बहुत है……और कभी किसी की चुदाई नहीं देखना चाहीये….मर्द, औरत दोनों खुल-कर मस्ती नहीं कर पाते हैं…।” सेठ ने कुछ नोट निकाले और परम को दिए...

"जाओ, बाज़ार में जाकर खाओ पीयो...तब तक मैं इस मस्त कडक माल को लड़की से औरत बनाता हूँ...चखता हूँ...और थोड़ी ढीली कर के वापिस दे दूंगा। तुम किसी भी प्रकार की चिंता मत करना, बेटे। आराम से उसकी चूत को फाड़ दूंगा।"

परम के कमरे से बाहर निकलते ही उन्होंने दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया। लाइट जला दी। महक आँखें नीचे करके बिस्तर पर बैठ गई। सेठ उसके पास आया और उसकी ठुड्डी ऊपर उठाई। उसने उसे देखा। वह एक हट्टा-कट्टा आदमी था, लगभग 85-90 किलो वज़न का, लंबा और हट्टा-कट्टा। वह पिछले 15 दिनों से परम के साथ सेक्स का आनंद ले रही थी और कल रात उसके पिता ने उसे लगभग चोद ही दिया। उसने सुधा और उसकी माँ से भी सेक्स के बारे में बात की थी, लेकिन वह किसी अजनबी के साथ सेक्स करने से डर रही थी।


प्लीज़ मुझे बाहर जाने दो। “वह उठी और विनती करने लगी। मैत्री और फनलवर की रचना

"रानी, तुमको देखते ही मेरा लंड काबू से बाहर हो गया था। अब तो बिना चोदे थोड़े ही जाने दूंगा। अब जरा प्यार से नंगी हो जाओ।"


वह उसके पास आया, उसे बांहों में ले लिया और उसके होंठों को चूम लिया, उनकी पकड़ बहुत मजबूत थी, महक ने उसके चंगुल से निकलने की कोशिश की लेकिन उसने उसे नहीं छोड़ा।

“बोल रानी, तू कुंवारी है कि तेरी चूत फट चुकी है!”

“मुझे छोड़ो ना,… प्लीज़ तुम्हारे पैर पड़ती हु…!”

उसने उसके कूल्हों को पकड़ कर दबाया। “माल बहुत टाइट है.. बोल अब तक कितना लंड ले चुकी है इस मनमोहक चूत में?" सेठ ने उसकी स्कर्ट उठाई और अपना हाथ उसकी पेट के ऊपर रख दिया। अब वह उसके लगभग नंगे कूल्हों को पकड़ रहा था।



*******


जाऐगा नहीं आगे अभी लिख रही हूँ .................... शायद रात को पोस्ट कर दूंगी



आप इसके बारे में कोमेंट लिखिए तब तक मैं आगे का अपडेट पोस्ट करती हु............






। जय भारत
Great update. Mehak ki seal tutne ka time aa gaya hai.
 

Premkumar65

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आप लोगो को याद होगा कि सुबह मुनीम ने पूनम से शाम को फिर से चुदाई के लिए आने को कहा था।

मुनीम को पूरा भरोसा था कि पूनम ज़रूर आएगी, वह जानता था की एक बार जिसने उसका लंड लिया वह दूसरी बार क्या बार-बार आती रहेगी और उसका लंड खली करती रहेगी, और जब दोपहर में उसने सेठजी और उसके सामने सुंदरी को एक आदमी के साथ संबंध बनाते देखा, तो वह पूनम को चोदने के लिए बहुत उत्साहित हो गया।

और उसने तय कर लिया कि आज रात चाहे कुछ भी हो जाए, वह उसकी अपनी बेटी महक को भी चोदेगा। इसलिए सेठजी के घर जाने के तुरंत बाद उसने ऑफिस भी बंद कर दिया और रिक्शा लेकर घर पहुँच गया। चाबी उसके पास थी क्योंकि सुबह ही तय हो गया था कि बाकी सब सेठजी के घर पर होंगे।

मुनीम अंदर आया और लुंगी पहन ली। जब वह नहा रहा था, तभी दरवाजे पर दस्तक हुई। मुनीम ने सोचा कि पूनम है। फिर भी उसने पूछा;

"कौन है..?"

"मैं हूँ काका, दरवाज़ा खोलो!" जवाब आया। एक महिला की आवाज़ आई।

यह सोचकर कि यह पूनम है, उसने उसका स्वागत करने की सोची। उसने लुंगी उतार दी। सिर्फ़ पूनम और सिर्फ़ उसके ख्याल से ही उसका सुपारा पूरा आकार ले चुका था। उसका सुपारा अपे सीथ से आधा बहार आ चुका था। वह नंगा ही दरवाज़ा खोलने आया। उसे हैरानी हुई कि वह 'पूनम' नहीं, बल्कि उसकी बेटी की एक और सहेली 'सुधा' थी। (जब पूनम ने कॉलेज में अपने पिता के बड़े सुपारे के बारे में बताया था, तो सुधा ने उसे चखने का फैसला किया था और जब महक ने कहा कि शाम को वह घर पर नहीं होगी, तो सुधा ने मुनीम के बड़े आलू के आकार के सुपारे के साथ मज़े करने का फैसला किया।)

मुनीम ने इधर-उधर देखा। कोई नज़र नहीं आ रहा था। सुधा मुनीम को पूरी तरह नंगा और पूरे आकार में तना हुआ लंड देखकर चौंक गई। यह उसके पिता के लंड से कहीं ज़्यादा बड़ा और मोटा था, जिसे उसने सुबह भी देखा था जब वह नौकरानी रिंकू को चोद रहे थे। इससे पहले, कि सुधा कुछ कहती मुनीम ने उसे अंदर खींच लिया और दरवाज़ा बंद कर दिया।

“बेटे अब तो तुमने देख ही लिया है.. तो फिर तुमसे छिपाना क्या…!”
मैत्री और नीता की रचना

मुनीम ने उसके कंधे पर हाथ रखा और उसे अपनी ओर खींच लिया। सुधा ने अपनी आँखें हाथों से ढँक ली थीं। उसने उसके हाथों को उसकी आँखों से हटा दिया और कहा

“शर्माती क्यों हो बेटी, तुम तो पूरी जवान हो.. लंड लेने के लायक हो गई हो… इसे छू कर बताओ कि मेरा लंड कैसा है…!” इतना कहकर मुनीम ने लंड सुधा के हाथ में रख दिया।

सुधा तो इसी लंड का मजा लेने आयी थी, पर जब वो यहाँ आई तब तक वह रस्ते में एक से दो बार मन ही मन में मुनीम का लंड अपनी चूत में ले चुकी थी।पर सामने जब मुनीम का लंड आया तो उसकी चूत में एक अजीब सी फड़क बैठ गई, और सोचने लगी की इतना बड़ा लंड, कैसे हो सकता है,सुपारा तो न जाने कहा से लेके आया है। लंड देखने के बाद वह थोड़ी डर गई थी उसकी चूत लंड को देखने के बाद जैसे सिकुड़ कर अपना दरवाजा बंद कर के बैठ गई हो। पूनम की बात बिलकुल सही थी यह लंड बहोत खतरनाक हो सकता है, उसकी चूत और गांड की धज्जिया उदा सकता है। लेकिन पूनम को मजा आया मतलब उसको भी आएगा। वो सोच रही थी कि कैसे मुनीम को चोदने के लिए लिया जाएगा लेकिन यहां तो मुनीम का लंड निकल कर उसके हाथ में डाल दिया है। सुधा इतना सोच ही रही थी कि मुनीम ने सुधा के फ्रॉक को सिर के ऊपर से बाहर निकाल दिया। सुधा ने एक ब्रा और पैंटी नहीं पहनी थी। मुनीम ने सुधा को अपनी ओर घुमाया और उसकी चुचियो को प्यार से मसलने लगा...

“काका क्या कर रहो हो!” कहते हुए सुधा ने लंड को मसल दिया…।

निपल दबाते-दबाते और खिंच के छोड़ते-छोड़ते, मुनीम का हाथ सुधा के पेट से होते हुए उसकी चूत के आसपास घुस गया और मुनीम ने सुधा की चिकनी चूत को मुट्ठी में लेकर मसल दिया।

“आआहह… काका…।”

थोड़ी देर तक चूत को मसलने के बाद मुनीम ने सुधा को अलग किया। अब सुधा नंगी थी, सुधा का शरीर भी महक की तरह टाइट और स्वस्थ था, लेकिन बोबले महक से छोटे थे। मुनीम ने सुधा को बिस्तर पर ढकेला तो सुधा ने पैर तो फैला कर उठा दिया।

मुनीम को अब कंट्रोल नहीं था। उसने सुधा के चूत की बाहरी पटलो को फैलाया और लंड को उसने सटाया ही था कि दरवाजे पर दस्तक हुई और आवाज आई,

“उसकी माँ को चोदे! कौन है?”

“मैं हूँ, मैं पूनम हूं, दरवाजा खोलो।”
मैत्री और नीता की सहयारी रचना

मुनीम सुधा को बिस्तर पर नंगा छोड़ कर खुद नंगा दी दरवाजे पर गया और पहले की तरह दरवाजा खोला और पूनम को अंदर खींच लिया। पूनम तो दरवाजे पर मुनीम को नंगा देखकर घबरा गई और अंदर आ कर जब सुधा को बिस्तर पर नंगी लेटे देखा तो बोल पडी,

“आज महक नहीं तो सुधा को ही बुला लिया! लगता है तुम लोगों ने अभी चुदाई की नहीं!” पूनम ने सुधा की चूत को चूमा और बोली,

“काका इस कुतीया की प्यास बुझा दो फिर मेरी चुदाई करना।

मुनीम बिस्तर पर चढ़ा और लंड को सुधा के चूत के एंट्री द्वार पर रख कर जोर से दबाया। सुधा की चूत गीली हो चुकी थी और 5-6 करारे धक्के में पूरा लंड घुस गया। मुनीम ने पहले से ही उसका एक हाथ सुधा के मुंह पर रख दिया था। वह जानता था की लंड जाएगा तो यह माल उस्छ्लेगा। उसके यह प्रेक्टिस में था। कोई भी चूत आसानी से मुनिमका लंड नहीं ले सकती थी चाहे कितनी बार ही चुदी हो और यहाँ तो एक कच्चा जैसा माल था।

सुधा ने कस-कर मुनीम को पकड़ कर रखा था और हर धक्के पर सिसकारी मार रही थी…पूनम ने भी काफी सहकार दिया सुधाको अपने बूब को उसन=के मुंह में दल कर धीरे से कह रही थी चिल्लाना मत बस मार खाती जा।

सुधा आब सांतवे आसमान में पहुँच गई थी, बहुत मजा आ रहा था...और आता भी क्यों नहीं...मस्त लंबा, मोटा टाइट लंड और कड़क जवान गरम चूत को खोद रहा था।

फिर कल रात की तरह मुनीम ने दोनो के साथ खुब मस्ती मारी, दोनों लडकियों की चूत को २-३ बार झाड दिया। दोनो से अपना लंड चुसवाया और उनकी चूत को चाटा और चोदा। दोनो लड़कियो ने भी एक दूसरे की चूत का मजा ली। और दोनो ने मुनीम से वादा लिया कि अगली बार उनके सामने पहले महक को चोदेगा और फिर उनकी चूत को।

करीब दो घंटे की मस्त चुदाई और चूत की रस-मलाई छोड़ ने के बाद दोनों लड़कियाँ अपनी एब्नोर्मल चाल से अपने-अपने घर चली गईं। मुनीम लंड को सहलाता रहा और इंतजार करता रहा कि कब महक घर आएगी और उसको जम कर चोदे।

लेकिन महक के बारे में सोचते-सोचते मुनीम को दोपहर का सीन याद आ गया जब वो ऑफिस के कमरे में पेपर साइन करने गया था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि सुंदरी, पूरी तरह से नंगी, कुत्ते की मुद्रा में, मुँह में एक बड़ा सा लंड और चूत पूरी दुनिया के सामने खुली हुई, कैसे रह सकती है। उसे पछतावा हुआ कि उसने उसे चोदने की इच्छा क्यों नहीं जताई। मुनीम ने तय किया कि अगली बार अगर ऐसा मौका आया तो वो सेठजी की की पत्नी को चोदेगा, चाहे वो सुंदरी हो, महक हो या सेठजी की बेटी या बहू...
हिसाब तो बराबर रहना चाहिए.......शायद मैं तो मेरे दो माल देके सेठजी के सभी मालो पर अपने लंड से वीर्य की धाराए बहता रहूँगा।

****


जाऐगा नहीं................


आपकी राय इस एपिसोड के बारे में देना ना भूले



।।जय भारत।।
Wah Munim ki kismat khul gai hai. Ek se badhkar ek nai nai chuten mil rahi hain.
 

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महक को एक अजनबी के साथ बंद कमरे में छोड़कर परम बहुत उदास हो गया। उसे पता था कि वह अजनबी का लंड उसकी बहन का कौमार्य भंग करेगा, वह उसकी बहन की चूत चोद-चोद के कितनी बड़ी कर देगा, जिसकी उसे पिछले दो हफ़्तों से चाहत थी। उसे अपनी बहन के साथ की सारी मस्ती याद आ गई। उसने कल्पना की कि वह उस सेठ से कैसे चुद रही होगी। वह उसकी मस्त जवानी का मज़ा ले रहा होगा। वह सचमुच बहुत दुखी था और अपनी सेक्सी माँ सुंदरी पर गुस्सा हो रहा था। उस मादरचोद माँ ने ही पैसों के लिए महक को अपनी चूत का कौमार्य भंग करवाने के लिए उकसाया था और वह भी दुसरे कोई धनपति के द्वारा। परम अपने आप पर भी उतना ही गुस्से में था उसका मन यह मानने को तैयार ही नहीं था की उसकी बहन किसी और के सामने अपना पैर फैलाए और वह अजनबी उसकी चूत को फाड़े। यह शायद उसके लिए असहनीय था। उसी समय सुंदरी भी अपने आप को कोस रही थी की यह उसके द्वारा लिया गया सब से गन्दा काम था। वह “अब” नहीं चाहती थी की कोई अजनबी उसकी बेटी की चूत और गांड से खेले। हाँ वह एक व्याभिचार (इन्सेस्ट) में मानती थी और वह चाहती थी की महक उसके पापा की बनी रहे और वह खुले आम अपने विचारो से अपने पैर मनपसंद आदमी के लिए खुले रखे। पर पैसा उसके लिए महत्त्व था और उसीका नतीजा यह था की आज उसकी बेटी उसकी मरजी से किसी और के लंड को अपने में समा रही थी। मैत्री और नीता की रचना

वह यही सब सोच रहा था कि तभी उसने पूनम के पिता और उसकी छोटी बहन को वहाँ से गुजरते देखा। उन्होंने भी उसे देखा और रुक गए। जैसे ही परम ने पूनम की छोटी बहन पूमा (असली नाम पूर्णिमा) को देखा, वह सब कुछ भूल गया। वह महक, छोटी बहू और सुंदरी को भी भूल गया। वह उसकी खूबसूरती पर मंत्रमुग्ध हो गया। हालाँकि उसने पूमा को पहले भी देखा था, लेकिन उसने कभी ध्यान नहीं दिया था। लेकिन अब, जब उसने उसे अच्छे कपड़े पहने और थोड़ा सा मेकअप किए देखा, तो वह उससे प्यार करने लगा और उसने उससे शादी करने का फैसला कर लिया।

वह कितनी मनमोहक सुंदरी थी। पुमा एक पतली लड़की थी, अपनी बहन पूनम वाह से दो साल छोटी थी, जिसे कल रात बाप (मुनीम) और बेटे दोनों ने चोदा था। जब परम उनसे बात कर रहा था तो वह सुधा के सामने मुनीम के मोटे और बड़े सुपारे से अपनी चूत भरवा रही थी। परम ने पुमा और उसके पिता के साथ खुशियों का आदान-प्रदान किया। वह खुद को रोक नहीं सका।

परम ने पुमा के गाल को सहलाते हुए पूछा कि वे लोग कह जा रहे हैं। परम ने बताया कि वो सेठजी के काम से बाजार आया था और करीब दो घंटे के बाद वापस सेठजी के घर जाएगा। बात करते करते परम पुमा के गालो को सहलाता रहा और पुमा की नजरें नीचे की हुई खड़ी रही। पुमा के पापा ने परम को डांटा कि वो उनके घर आता नहीं है और कहा कि वो भी एक दोस्त के घर 'पूजा' में जा रहे हैं और वहां से वापस आने के लिए 1.5 से 2 घंटे लग जाएंगे। परम उनकी बात सुनता रहा और पुमा को घूरता रहा।

पुमा अभी कच्ची कली थी। उसकी चुची टमाटर के आकार की है। फ्रॉक के ऊपर से छोटी चुचियों का कसाव साफ़ साफ़ दिख रहा था। परम का मन किया कि हाथ बढ़ा कर उन चुचियों को मसल डाले। परम ने पुमा को आंखो से ही चोदना चालू किया। पतली कमर और घुटनों के ऊपर टाइट निचली जांघ को देखकर परम का लंड पैंट के नीचे धमाल करने लगा था। उसके कपडे हलका और खुला था इस लिए पुमा के पापा को और पुमा को पैंट के नीचे से लंड का कसाव नहीं दिखाई दिया।

कल रात ही परम ने पुमा की बड़ी बहन पूनम को चोदा था और उसकी टाइट और मस्त चूत का मजा रात भर लिया था लेकिन अब परम का मन कर रहा था कि वही पुमा को नंगी कर पूरा का पूरा लंड उसकी टाइट चूत में घुसेड़ डाले। पुमा की अनदेखी और टाइट चूत के बारे मे सोचते-सोचते परम को लगा कि उसके लंड फाड़ कर बहार निकल आएगा। परम ने पुमा के गालो पर से हाथ हटा कर उसकी कंधे पर रख कर थोड़ा जोर से दबाया। पुमा ने आंखें उठाई कर परम को देखा और मुस्कुराइ। और अपने पापा की ओर देखा। पापा भी परम की हरकत देख ही रहे थे पर उनके मुंह पर ऐसा गुस्सेवाला कोई भाव नहीं था क्योकि वह इस हरकत को सामान्यरूप से ले रहा था। उसे क्या पता की परम के मन में क्या चल रहा है और वह इस हरकत क्यों कर रहा है। लेकिन कब तक!

परम तो पुमा की प्यारी प्यारी आँखों को देखता ही रहता अगर पुमा का पापा उसका हाथ पकड़ कर आगे नहीं बढ़ता। जाते समय उसने परम को बताया कि पुमा की माँ घर पर अकेली है और अगर परम के पास कोई काम नहीं है तो वह उनके लौटने तक उसके साथ समय बिता सकता है।

दोनों चले गए और परम अकेले रह गया। उसे सेठजी के घर वापस जाना था, सुंदरी को अपने साथ लेना था और महक को लेना था और उसके बाद ही उसे घर जाना था। वह सेठजी के घर वापस जा सकता था और बहू और रेखा दोनों के साथ कुछ मस्ती करने की कोशिश कर सकता था लेकिन उसने पुमा के घर जाने का फैसला किया। उसने पुमा की मां से अपने मन की बात कहने का फैसला किया कि वह पुमा से शादी करेगा।

उसके पैर अपने आप ही पुमा के घर की तरफ चल पड़े। परम ने उसे उसके पति और पुमा से हुई अपनी छोटी सी मुलाक़ात के बारे में बताया। पुष्पा कमरे में एक चारपाई पर बैठ गई और परम को बैठने को कहा। परम ने उसके पास कुर्सी खींच ली। वे बातें करने लगे और अचानक परम बोला,

"काकी, पुमा से मेरी शादी करा दो.."

काकी ज़ोर से हँस पड़ीं। “अरे बेटा, पुमा तो अभी बच्ची है, कच्ची कली है…लेकिन अब तक तू पूनम के पीछे पागल था…मुझे पता है।”

“काकी, तुम तो जानती हो, पूनम और रेखा दोनों ने मुझसे शादी करने से मना कर दिया है…साली कहती है कि मैं उनके लिए बहुत छोटा हूँ…” परम ने कहा और जोड़ा..

"पुमा तो मुझसे छोटी है...मैं उससे ही शादी करूंगा..."

परम कुर्सी से उतर गया और अपने घुटनों के बल उसके पैरों के पास फर्श पर बैठ गया। उसने दोनों हाथ उसकी जाँघों पर रखे और कहा,

“नहीं काकी, मुझे तो पूमा चाहिए…उससे ही शादी करूंगा…”
मैत्री और नता की रचना

काकी ने परम के बालों पर हाथ रखा और उसके बालों को सहलाया। बालो को सहलते सहलते काकी ने कहा,

“अरे बेटा, वो अभी कच्ची है, उसे पूरा जवान होने में 2-3 साल लगेंगे… तब बोलेगा तो मैं उससे तेरी शादी करवा दूंगी।”

काकी ने अपनी उंगलियों को परम के बालो में फंसाते हुए कहा “क्या पता तब तक पुमा किसी और को पसंद कर ले..।”

“कुछ भी हो… मैं इंतजार करूंगा और पुमा की जवानी का मजा मैं ही लूंगा… मैं ही उससे शादी करूंगा… वो बस मेरी ही है।”

परम को अब होश आया कि उसके हाथ काकी की मोटी और सख्त जाँघों पर हैं। वह कपड़ों, पेटीकोट और साड़ी के ऊपर से भी उसकी जाँघों की गर्मी महसूस कर सकता था.. पहले तो सामने नहीं थे, परम ने अभी काकी को ही चोदने का मन बनाया।

"जानती हो काकी, पुमा को देखते ही पता नहीं क्या हुआ, मेरा पूरा बॉडी टाइट हो गया है। लगता है पैंट फट जाएगा..।"

बोलते-बोलते परम ने अपने दोनों हाथों को काकी के जांघों के बीच डाल कर दबाया।
मैत्री और नीता की रचना

*******

रात का समय, घर में अकेली एक लड़का के साथ। पति-बेटियों के इतनी जल्दी आने और परम की इतनी सेक्सी बातों की उम्मीद नहीं थी। प्रतिक्रिया स्वरूप उसने अपनी जाँघें अलग कर दीं लेकिन साथ ही उसने अपनी जाँघों के अंदरूनी हिस्से को सहलाते हुए परम के हाथों को खींच लिया और उसे अपने घुटनों के ठीक ऊपर ही रहने दिया। परम की माँ, उसकी अच्छी सहेली थी और दोनों मौका मिलने पर खूब बातें करते थे।

पुष्पा (पुमा और पूनम की मां) को अच्छा लगा कि परम उसकी बेटी की तारीफ कर रहा है। और खास कर पुष्पा को परम के बात करने का तरीका अच्छा लगा। परम जिस तरह से उसकी जाँघो को मसल रहा था, पुष्पा को अच्छा लगा। पुमा के पापा तो दो-तीन बार चुची को दबाते थे, जांघों को सहलाते थे और चूत में लौड़ा घुसा कर खूब चुदाई करते थे। वो कभी मस्ती नहीं करते थे, जब पुष्प चाहते थे तो चुदाई के पहले कोई उसे घंटो सहलाए, मसले, चूमे, चाटे टब चुदाई करे..

लेकिन पुष्पा को अभी भी अपने पति से चुदवाने में वही मजा मिला था जो पहली बार की चुदाई में मिला था। चुदाई की बात सोचते ही पुष्पा की चूत पनिया गई और उसने परम के बालों को सहलाते हुए अपनी जांघों को झुका दिया। ऐसा करने में उसकी चुची परम के हेड से टकरा गई लेकिन तुरंत ही परम के हेड को ऊपर उठा दिया और कहा,

“अच्छा बता, पुमा मे क्या है जो तुम इतना गरम हो गए हो, जब की पूनम पूरी जवान और तैयार है, और अच्छा माल भी बन चुकी है।”

परम के हाथों को ऊपर पुष्पा ने अपना हाथ रखा हुआ था फिर भी परम ने अपने हाथों को पुष्पा की जांघों को ऊपर की तरफ बढ़ाया। पुष्पा का हाथ परम के हाथों को दबाया जा रहा है और परम को पुष्पा की टाइट और गुदाज़ जांघों का मज़ा मिल रहा है।

“मुझे पता नहीं, लेकिन उसको देखते ही मैं और मेरा नीचेवाला पूरा गर्म हो गया।”

परम हौले-हौले जांघो को मसल रहा था और पुष्पा को भी मजा आ रहा था। पुष्पा ने मन ही मन सोच लिया था कि वो परम को कपड़े के ऊपर से पूरा मजा लेने देगी, जहां भी हाथ लगाना चाहेगा, सहलाने देगी, उसने फैसला किया कि वो परम को अपनी नंगी चूची भी दिखाएगी लेकिन चूत नहीं.. परम ने सहलाते-सहलाते जांघो को बाहर की तरफ फैलाया और पहली बाद खुलकर कहा,

“काकी दोनो टैंगो को पूरा फैलाओ प्लीज़!”

पुष्पा ने एक पैर को उठाकर बिस्तर पर रख दिया और दूसरे पैर को नीचे ही लटका दिया।

“टांग को फैला कर क्या करेगा…?”
मैत्री और नीता की रचना

पुष्पा ने मुस्कुराते हुए पुछा,फिर पुछा,

“तू बोला नहीं! पूमा में तुम्हे क्या दिखाई दिया। जो इतना प्यार उमड़ पड़ा है तेरे दिल में और निचे भी!”

पुष्पा अब जैसे बैठी थी उसमें उसकी एक जांघें ऊर्ध्वाधर स्थिति में थीं और दूसरे जांघों के बिस्तर पर क्षैतिज (हॉरिजॉन्टल) स्थिति में थीं। परम ने अपने बाएं हाथ को क्षैतिज जांघों पर जांघों के केंद्र पर रखा और दाहिने हाथ से ऊर्ध्वाधर जांघों को ऊपर से नीचे तक सहलाने लगा।

"काकी तुम्हारी जाँघ (जाँघें) बहुत मस्त, भरी हुई और टाइट है और साथ में चिकनी भी। बिलकुल केला के अंगूठा (केले का तना) जैसा।"

और परम ने जोर से दोनों जांघों को मसल दिया।

"ISSSSSSSSSSSS। पुष्पा ने जोर से सिस्कारी मारी. "इतना जोर से मसला। बोल ना पुमा मे क्या देखा..जो भी तेरे मन में है वह सब बता, डर मत बेटे।"


“काकी, टमाटर के साइज़ की टाइट चुची, उसके गोरे और चिकनी गाल और उसकी चिकनी चिकनी जाँघें, मैंने उसकी चूत के बारे में सोचा है की वह मस्त माल होगी।“ उसने फिर से एक जांघों को बिल्कुल चूत के पास जोर से मसला कि पुष्पा की चूत भी खिंच गई।
आज के लिए बस इतना ही कल फिर से एक नए अपडेट के साथ आपके समक्ष हाजिर होंगी.............तब तक के लिए क्षमा................


शुभरात्री


।जय भारत
Woww Param ab Pishpa ki chudai ke sapne dekh raha hai.
 

Premkumar65

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Update 11



परम बोल रहा है, "आज अगर काका नहीं होते, तो मैं उसे चूम कर पुमा की धइले को मसल डालता।"

आम तौर पर, अगर कोई किसी लड़की का उसकी माँ से इस तरह ज़िक्र करता, तो वह उसे ज़ोरदार थप्पड़ मार देती। लेकिन यह गाव तो विचित्रता से भरपूर है। आप लोग अब तक तो जान ही गए होंगे। यहाँ सब कुछ नार्मल तरीके से लिया जाता है। लेकिन ऐसे अनटोल्ड नियमो की वजह से, पुष्पा ऐसा नहीं कर सकती थी। वैसे भी, शादी से पहले और बाद में, हर होली पर उसने कुछ ख़ास लोगों को ही अपने स्तन सहलाने की इजाज़त दी थी, लेकिन किसी भी बाहरी पुरुष ने (घर के अलावा), यहाँ तक कि उसके पति ने भी, कभी उससे इतनी कामुक बातें नहीं कीं। हालाँकि कभी-कभी उसने सुंदरी और दूसरी सहेलियों के साथ सेक्स के बारे में बात की थी, लेकिन वह दूसरी औरतों के साथ यौन संबंधों तक ही सीमित रही। और तो और, अपनी कामुक बातों के साथ-साथ परम उसे अपने हाथों से भी खुश कर रहा था।

“अरे बेटे,अभी वह कच्ची है मैंने कहा तो सही, अभी वह ब्रा और पेंटी में है, घाघरा में नही आई।“ (अब इसका मतलब तो वोही समजा सकती है। मैं यह समजती हु की वहा औरतो या बड़ी लडकिया जो घाघरा-चोली पाहती है वे लोग ब्रा-पेंटी नहीं पहनते है। उन जरुरी दिनों के अलावा और स्कुल-कोलेज के अलावा।)

और तब परम ने वो शब्द कहे जो पुष्पा सुनना चाहती थी।
फनलवर द्वारा रचित

“काकी सच बोलता हूं, अगर मुझे अकेले मिल जाए तो मैं उसकी जमकर चुदाई कर डालूंगा, भले ही उसकी नन्ही सी चूत क्यों न फट जाए। मैं उसकी चूत और कोंख में मेरा वारिस रखना चाहता हु। आपकी मेहरबानी होगी तो जल्द ही फूलेगी।”

इतना सुनते ही पुष्पा शर्मा गई लेकिन उसकी चूत फुदकने लगी।

“हे काकी, एक बार मुझे पुमा के साथ अकेले रहने दो…” कहते हुए परम ने जांघों पर से हाथ हटाया और पुष्पा की दोनों गालों को अपने हाथों में लेकर लिया..

“काकी, तुम्हारे गाल भी बिलकुल पुमा जैसे है।”

पुष्पा को अच्छा नहीं लगा कि परम ने चूत पर हाथ लगाया बिना, अपना हाथ हटा लिया। इधर परम भी समझ नहीं पाया कि उसने चूत को क्यों नहीं मसला। लेकिन परम अब पुष्पा की गालों को रगड़ रहा था।

“तुमने कभी किसी को….क्या किया है?” पुष्पा चुदाई कहना चाहती थी लेकिन उसके संस्कारों ने उसे रोक लिया।

परम समझ गया लेकिन उसने पूछा, "क्या...किया है? मतलब"

पुष्पा ने अपने गालों पर से परम का हाथ हटाया तो परम ने उसकी गालों को चूम लिया।

“छी, क्या करता है…!”
फनलवर की रचना

कहते हुए परम को थोड़ा पीछे ढकेल दिया। और खुद पीछे खिसक कर बेड-रेस्ट से सटकर बैठ गई। जैसा कि आम तौर पर महिलाएं दोनों घुटनों को ऊपर उठा कर और पैरों को अंदर की तरफ खींच कर बैठती हैं। परम भी पुष्पा के एक तरफ आकर बैठ गया और बिना हिचकिचाहट के अपने हाथ पुष्पा के कमर पर रख दिया। पुष्पा ने अपना एक हाथ उसकी हाथ में रखा और कहा,

“वही, जो तुम पुमा के साथ अकेले काम करना चाहते हो..!”

“ओह.. तो तुम जानना चाहती हो कि मैंने किसी को चोदा.. है कि नहीं…? काकी, आपकी यह भाषा ही आपको इस गाव से अलग रखे हुए है। आप खुल के बोले ताकि सब को समज आये।”

“हां, हां, अब ज्यादा उपदेश ना दे! मैं भी इसी गाव से हु, मुझे सब पता है और आता भी है। यह हम पहली बार बात कर रहे है इसलिए....समजा! मुझे इस गाव से बहार मत समज।“

परम का हाथ अब बिल्कुल पुष्पा के छूट के ऊपर था। पुष्पा की चूत फुदक रही थी। परम ने प्यूबिक एरिया को सहलाते हुए झूठ कहा,

“नहीं काकी, अभी तक तो किसी को चोदने का मौका नहीं मिला है… मन तो बहुत करता है।” कहते हुए परम ने हाथ नीचे किया और काकी के चूत पर रख दिया और हौले से दबाते हुए कहा..

“मुझे तो मालूम भी नहीं कि चुदाई होती क्या है…।”

परम ने पुष्पा की चूत की फाँको पर उंगलियों को रगड़ा... करीब 1 मिनट तो पुष्पा ने चूत पर उंगलियों को रगड़ने दिया लेकिन उसके बाद उसने परम का हाथ उठा कर अलग किया और एक तकिये को अपनी गोद में रख लिया।

“अरे… उस में, सिखाना क्या है… जब कोई नंगी लड़की को बिस्तर पर लिटोगे तो अपने आप पता चल जाएगा की.. क्या करना है.. ।”काकी भी जानती थी की परम झूठ बोल रहा है लेकिन वह भी इस मस्ती को बंद करना नहीं चाहती थी। यही मस्ती उसे अपने अंजाम तक ले जायेगी बिना कुछ आगे बढे।

काकी ने कहा और अपना हाथ बढ़ा कर परम के कंधे पर रख कर दबाया। परम बिल्कुल पुष्पा से चिपक गया..

"जब मेरी शादी हुई तो मैं छोटी थी, पुमा के उमर की, और तुम्हारे काका 18-19 साल के। शादी के तीन महीने टुक मैं नंगी नहीं हुई। तुम्हारे काका ने बहुत कोशिश की, मेरे घर बालों से शिकायत भी की, मुझे डांटा भी लेकिन मैंने अपना कपड़ा नहीं खोला, आख़िर एक रात काका के पिता ने कुछ समजाया और काका ने जबरदस्त मेरे सारे कपड़े फाड़ डाले और मुझे पूरा नंगा कर अपना 'डंडा' मेरे अंदर पेल दिया। पहले बार तो बहुत दर्द किया था लेकिन बाद में बहुत मज़ा आने लगा। तुम्हारे काका अभी भी बहोत मजा देते हैं…” पुष्पा ने कहा।

परम सुन भी रहा था, और अपना काम भी कर रहा था। उसने अपना एक गाल पुष्पा की मस्त चूची से सटा कर रखा था और एक हाथ से पैरों के पास से कपड़े ऊपर उठा रहा था।

पुष्पा ने मना नहीं किया,बस बिना विरोध बैठी रही और पूछा, “तूने किसी को नंगा देखा है?”
फनलवर की रचना है

परम ने कपड़ों को घुटनों तक उठा दिया था और पुष्पा की चिकनी पिंडलियों को सहलाता रहा।

“हा काकी, कई बार सुंदरी की नंगी चुचियों को देखा है और बस एक बार महक की चूत को देखा है।”

परम का हाथ कभी बछड़ों पर घूम रहा था तो कभी पुष्पा की मांसल जांघो का मजा ले रहा था। उसने बोलना जारी रखा,

“लेकिन कभी भी मेरा लौड़ा इतना टाइट नहीं हुआ था जितना आज पुमा को कपड़ो में देख कर हुआ। बहोत टाईट हो गया था काकी,मेरा लंड।”

परम के मुँह से 'लोडा' सुनकर पुष्पा थोड़ी शर्मा गई। पुष्पा ने गोदी में तकिया रखा था इसलिए परम सामने से चूत पर हाथ नहीं लग सकता था। तब परम ने पिंडलियों को मसलते, पीठ-जांघों पर हाथ डाला और फिर दोनों जांघों के बीच कपड़ो के ऊपर से चूत को मसलने लगा। चूत का होंठ परम के उंगलियों के बीच में था और परम ने जोरो से मसलते हुए पूछा,

“काकी तुम तो अभी भी इतनी सुंदर हो और मस्त भी, कई लोग तुम्हारी चूत का मजा ले चुके होंगे।”

चूत को मसलते मसलते परम को बहुत गर्मी लगने लगी तो उसने हाथ हटा कर अपना शर्ट निकाल दिया।

"बहुत गर्मी है। काकी तुम्हें भी बहुत गर्मी लग रही होगी। साड़ी क्यों नहीं उतार देती हो.. मेरे सिवा कोई देखने बाला नहीं है।"

इतना कह कर परम ने तकिया खींच कर अलग कर दिया। साड़ी की गांठ भी खोल दिया और पुष्पा बैठी रही और परम ने साड़ी को बॉडी से अलग कर नीचे फेंक दिया। इस खिंचा तनी मे पेटीकोट (घाघरा) ऊपर उठ गया था और आधी जांघ साफ चमक रही थी। पुष्पा ने पेटीकोट को नीचे खींचना चाहा लेकिन परम ने उसका हाथ पकड़ कर रोक लिया।

“काकी, रहने दो ना, और मुझे काम करने दो न, मैंने इतनी सुंदर और चिकनी जांघें नहीं देखी हैं।” परम ने नंगी जंघो को सहलाया और पूछा, “बोलो ना काकी कितने लोगों से चुदवाई हो?”

अब पुष्पा से भी नहीं रहा गया। पुष्पा ने परम को अपनी ओर खींच लिया और उसके मुंह को अपने चुचियो के बीच में रख दिया।


“अपनी बेटियों की कसम तुम्हारे काका के अलावा किसी ने अब तक मुझे नहीं चोदा है।” नहीं चाहते हुए भी पुष्पा 'चोदा' बोल पड़ी। पुष्पा ने फिर कहा “लेकिन तेरे काका के अलावा एक आदमी ने सिर्फ एक बार मेरी चूत को खूब मसला था।”

कही जायिगा नहीं अभी काफी आगे बहोत बाकी है...........



जब तक दूसरा अपडेट लिख लू तब तक आप इस अपडेट के बारे में अपनी राय दीजिये प्लीज़.................


जय भारत।
Pushpa khul rahi hai dhire dhire.
 

S M H R

TERE DAR PE SANAM CHALE AYE HUM
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Update 11



परम बोल रहा है, "आज अगर काका नहीं होते, तो मैं उसे चूम कर पुमा की धइले को मसल डालता।"

आम तौर पर, अगर कोई किसी लड़की का उसकी माँ से इस तरह ज़िक्र करता, तो वह उसे ज़ोरदार थप्पड़ मार देती। लेकिन यह गाव तो विचित्रता से भरपूर है। आप लोग अब तक तो जान ही गए होंगे। यहाँ सब कुछ नार्मल तरीके से लिया जाता है। लेकिन ऐसे अनटोल्ड नियमो की वजह से, पुष्पा ऐसा नहीं कर सकती थी। वैसे भी, शादी से पहले और बाद में, हर होली पर उसने कुछ ख़ास लोगों को ही अपने स्तन सहलाने की इजाज़त दी थी, लेकिन किसी भी बाहरी पुरुष ने (घर के अलावा), यहाँ तक कि उसके पति ने भी, कभी उससे इतनी कामुक बातें नहीं कीं। हालाँकि कभी-कभी उसने सुंदरी और दूसरी सहेलियों के साथ सेक्स के बारे में बात की थी, लेकिन वह दूसरी औरतों के साथ यौन संबंधों तक ही सीमित रही। और तो और, अपनी कामुक बातों के साथ-साथ परम उसे अपने हाथों से भी खुश कर रहा था।

“अरे बेटे,अभी वह कच्ची है मैंने कहा तो सही, अभी वह ब्रा और पेंटी में है, घाघरा में नही आई।“ (अब इसका मतलब तो वोही समजा सकती है। मैं यह समजती हु की वहा औरतो या बड़ी लडकिया जो घाघरा-चोली पाहती है वे लोग ब्रा-पेंटी नहीं पहनते है। उन जरुरी दिनों के अलावा और स्कुल-कोलेज के अलावा।)

और तब परम ने वो शब्द कहे जो पुष्पा सुनना चाहती थी।
फनलवर द्वारा रचित

“काकी सच बोलता हूं, अगर मुझे अकेले मिल जाए तो मैं उसकी जमकर चुदाई कर डालूंगा, भले ही उसकी नन्ही सी चूत क्यों न फट जाए। मैं उसकी चूत और कोंख में मेरा वारिस रखना चाहता हु। आपकी मेहरबानी होगी तो जल्द ही फूलेगी।”

इतना सुनते ही पुष्पा शर्मा गई लेकिन उसकी चूत फुदकने लगी।

“हे काकी, एक बार मुझे पुमा के साथ अकेले रहने दो…” कहते हुए परम ने जांघों पर से हाथ हटाया और पुष्पा की दोनों गालों को अपने हाथों में लेकर लिया..

“काकी, तुम्हारे गाल भी बिलकुल पुमा जैसे है।”

पुष्पा को अच्छा नहीं लगा कि परम ने चूत पर हाथ लगाया बिना, अपना हाथ हटा लिया। इधर परम भी समझ नहीं पाया कि उसने चूत को क्यों नहीं मसला। लेकिन परम अब पुष्पा की गालों को रगड़ रहा था।

“तुमने कभी किसी को….क्या किया है?” पुष्पा चुदाई कहना चाहती थी लेकिन उसके संस्कारों ने उसे रोक लिया।

परम समझ गया लेकिन उसने पूछा, "क्या...किया है? मतलब"

पुष्पा ने अपने गालों पर से परम का हाथ हटाया तो परम ने उसकी गालों को चूम लिया।

“छी, क्या करता है…!”
फनलवर की रचना

कहते हुए परम को थोड़ा पीछे ढकेल दिया। और खुद पीछे खिसक कर बेड-रेस्ट से सटकर बैठ गई। जैसा कि आम तौर पर महिलाएं दोनों घुटनों को ऊपर उठा कर और पैरों को अंदर की तरफ खींच कर बैठती हैं। परम भी पुष्पा के एक तरफ आकर बैठ गया और बिना हिचकिचाहट के अपने हाथ पुष्पा के कमर पर रख दिया। पुष्पा ने अपना एक हाथ उसकी हाथ में रखा और कहा,

“वही, जो तुम पुमा के साथ अकेले काम करना चाहते हो..!”

“ओह.. तो तुम जानना चाहती हो कि मैंने किसी को चोदा.. है कि नहीं…? काकी, आपकी यह भाषा ही आपको इस गाव से अलग रखे हुए है। आप खुल के बोले ताकि सब को समज आये।”

“हां, हां, अब ज्यादा उपदेश ना दे! मैं भी इसी गाव से हु, मुझे सब पता है और आता भी है। यह हम पहली बार बात कर रहे है इसलिए....समजा! मुझे इस गाव से बहार मत समज।“

परम का हाथ अब बिल्कुल पुष्पा के छूट के ऊपर था। पुष्पा की चूत फुदक रही थी। परम ने प्यूबिक एरिया को सहलाते हुए झूठ कहा,

“नहीं काकी, अभी तक तो किसी को चोदने का मौका नहीं मिला है… मन तो बहुत करता है।” कहते हुए परम ने हाथ नीचे किया और काकी के चूत पर रख दिया और हौले से दबाते हुए कहा..

“मुझे तो मालूम भी नहीं कि चुदाई होती क्या है…।”

परम ने पुष्पा की चूत की फाँको पर उंगलियों को रगड़ा... करीब 1 मिनट तो पुष्पा ने चूत पर उंगलियों को रगड़ने दिया लेकिन उसके बाद उसने परम का हाथ उठा कर अलग किया और एक तकिये को अपनी गोद में रख लिया।

“अरे… उस में, सिखाना क्या है… जब कोई नंगी लड़की को बिस्तर पर लिटोगे तो अपने आप पता चल जाएगा की.. क्या करना है.. ।”काकी भी जानती थी की परम झूठ बोल रहा है लेकिन वह भी इस मस्ती को बंद करना नहीं चाहती थी। यही मस्ती उसे अपने अंजाम तक ले जायेगी बिना कुछ आगे बढे।

काकी ने कहा और अपना हाथ बढ़ा कर परम के कंधे पर रख कर दबाया। परम बिल्कुल पुष्पा से चिपक गया..

"जब मेरी शादी हुई तो मैं छोटी थी, पुमा के उमर की, और तुम्हारे काका 18-19 साल के। शादी के तीन महीने टुक मैं नंगी नहीं हुई। तुम्हारे काका ने बहुत कोशिश की, मेरे घर बालों से शिकायत भी की, मुझे डांटा भी लेकिन मैंने अपना कपड़ा नहीं खोला, आख़िर एक रात काका के पिता ने कुछ समजाया और काका ने जबरदस्त मेरे सारे कपड़े फाड़ डाले और मुझे पूरा नंगा कर अपना 'डंडा' मेरे अंदर पेल दिया। पहले बार तो बहुत दर्द किया था लेकिन बाद में बहुत मज़ा आने लगा। तुम्हारे काका अभी भी बहोत मजा देते हैं…” पुष्पा ने कहा।

परम सुन भी रहा था, और अपना काम भी कर रहा था। उसने अपना एक गाल पुष्पा की मस्त चूची से सटा कर रखा था और एक हाथ से पैरों के पास से कपड़े ऊपर उठा रहा था।

पुष्पा ने मना नहीं किया,बस बिना विरोध बैठी रही और पूछा, “तूने किसी को नंगा देखा है?”
फनलवर की रचना है

परम ने कपड़ों को घुटनों तक उठा दिया था और पुष्पा की चिकनी पिंडलियों को सहलाता रहा।

“हा काकी, कई बार सुंदरी की नंगी चुचियों को देखा है और बस एक बार महक की चूत को देखा है।”

परम का हाथ कभी बछड़ों पर घूम रहा था तो कभी पुष्पा की मांसल जांघो का मजा ले रहा था। उसने बोलना जारी रखा,

“लेकिन कभी भी मेरा लौड़ा इतना टाइट नहीं हुआ था जितना आज पुमा को कपड़ो में देख कर हुआ। बहोत टाईट हो गया था काकी,मेरा लंड।”

परम के मुँह से 'लोडा' सुनकर पुष्पा थोड़ी शर्मा गई। पुष्पा ने गोदी में तकिया रखा था इसलिए परम सामने से चूत पर हाथ नहीं लग सकता था। तब परम ने पिंडलियों को मसलते, पीठ-जांघों पर हाथ डाला और फिर दोनों जांघों के बीच कपड़ो के ऊपर से चूत को मसलने लगा। चूत का होंठ परम के उंगलियों के बीच में था और परम ने जोरो से मसलते हुए पूछा,

“काकी तुम तो अभी भी इतनी सुंदर हो और मस्त भी, कई लोग तुम्हारी चूत का मजा ले चुके होंगे।”

चूत को मसलते मसलते परम को बहुत गर्मी लगने लगी तो उसने हाथ हटा कर अपना शर्ट निकाल दिया।

"बहुत गर्मी है। काकी तुम्हें भी बहुत गर्मी लग रही होगी। साड़ी क्यों नहीं उतार देती हो.. मेरे सिवा कोई देखने बाला नहीं है।"

इतना कह कर परम ने तकिया खींच कर अलग कर दिया। साड़ी की गांठ भी खोल दिया और पुष्पा बैठी रही और परम ने साड़ी को बॉडी से अलग कर नीचे फेंक दिया। इस खिंचा तनी मे पेटीकोट (घाघरा) ऊपर उठ गया था और आधी जांघ साफ चमक रही थी। पुष्पा ने पेटीकोट को नीचे खींचना चाहा लेकिन परम ने उसका हाथ पकड़ कर रोक लिया।

“काकी, रहने दो ना, और मुझे काम करने दो न, मैंने इतनी सुंदर और चिकनी जांघें नहीं देखी हैं।” परम ने नंगी जंघो को सहलाया और पूछा, “बोलो ना काकी कितने लोगों से चुदवाई हो?”

अब पुष्पा से भी नहीं रहा गया। पुष्पा ने परम को अपनी ओर खींच लिया और उसके मुंह को अपने चुचियो के बीच में रख दिया।


“अपनी बेटियों की कसम तुम्हारे काका के अलावा किसी ने अब तक मुझे नहीं चोदा है।” नहीं चाहते हुए भी पुष्पा 'चोदा' बोल पड़ी। पुष्पा ने फिर कहा “लेकिन तेरे काका के अलावा एक आदमी ने सिर्फ एक बार मेरी चूत को खूब मसला था।”

कही जायिगा नहीं अभी काफी आगे बहोत बाकी है...........



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जय भारत।
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“लेकिन तेरे काका के अलावा एक आदमी ने सिर्फ एक बार मेरी चूत को खूब मसला था।”


अब आगे............




“कौन, कब, कैसे?”


परम ने पुष्पा के सीने पर से अपना मुंह हटा लिया और जांघो को सहलाते पेटीकोट को थोड़ा और ऊपर उठा दिया। परम पेटीकोट को और ऊपर करता उस से पहले पुष्पा ने पेटीकोट को अपनी चूत के ऊपर दबा दिया और कहा,

“बस, बेटा, अब और ऊपर नहीं।”
फनलवर नीता की रचना

इतना कहकर पुष्पा ने पेटीकोट को पैंटी की तरह अपने कमर पर समेट लिया। अब सिर्फ चूत और जघन क्षेत्र को कवर किया गया था बाकी पूरा पैर कमर तक नंगा था।

"तुमको मेरी जांघें बहुत पसंद हैं ना, जितना मन करता है सहलाओ या मसलो। बस अंदर हाथ मत डालना।" और पुष्पा ने अपनी टांगो को पूरी तरह फैला दिया। फिर बोलती रही,

"मैं जब ससुराल, इस गांव में आई तो देखा एक लड़का बार-बार मेरे पास आता है। मौका मिलते ही मेरा हाथ पकड़ता है। कई बार तो उसने मेरा गाल भी सहला दिया। मुझे भी वो अच्छा लगने लगा था।"

परम अब पुष्पा के दोनों टैंगो के बीच घुटनो पर बैठ कर पुष्पा की मांसल जांघों को मसल रहा था लेकिन उसकी नज़र अब पुष्पा की मस्त चुची पर थी। परम को पुष्पा की छाती पर बने नोकीले निपल्स देख रही थी। (ब्रा का संदेह अब कभी ना रखे)

“काकी, तेरी जाँघ तो मस्त है हाय, तुम्हारी चूची भी बहुत मस्त है।”

“खाक मस्त है!”
फनलवर नीता की रचना

पुष्पा ने अपने हाथों को चुची के नीचे लगा कर थोड़ा उठाया।

"इतनी बड़ी-बड़ी कहीं बोबले होते है। कहीं आने-जाने में, किसी के सामने बैठने में भी शर्म आती है। बोबले भी तुम्हारी मां (सुंदरी) जैसे होनी चाहिए, ना छोते ना बहुत बडे। अपनी मां का बोबला तो तुमने देखा ही है...।" पुष्पा ने खुद ही अपने बोबले को मसल दिया।

"हां, तो मैं कह रही थी...शादी के बाद यहां ससुराल में मेरा पहला होली था। मैं नई नवेली दुल्हन...तुम्हारे काका के सारे दोस्त ने भाभी-भाभी कहते हुए मुझे रंग लगाया और सभी ने रंग लगाते हुए छातियो को भी मसला। मैंने मेरी सांस और पति से बात की और दोनों को बताया की यह सब दोस्त मुझे छेड़ रहे है, मेरे बोबले दबा रहे है, तब मेरी सांस ने कहा “अरे, यही तो मस्ती है, करने दो और तुम भी खूब जी भर के दबवाओ, यह सब यहाँ का रिवाज है और सब आम बात है।“ मेरे पति ने भी यही कहा की “मैं भी तो दूसरी भाभिओ के बोबले से खेल रहा हु तो उनका भी तो हक़ है की वह सब तुम्हारे बोबले को मसले। जो होता है वह होने दो।“ मेरी सांस ने यहाँ तक कह दिया की “अपने ससुरजी से भी थोडा मसलवा दो उनको भी थोड़ी रहत मिलेगी, कब से तेरे इस तीर को देख रहे है और अपना लंड पकड़ के बैठे है।“

मुझे भी अच्छा लगने लगा था'' …फिर मैं रूम में अकेली खड़ी थी। तभी वो लड़का आया और झपट कर उसने मुझे पीछे से दबा दिया। और दूसरा हाथ साड़ी के अंदर डाल कर चूत को मसलने लगा कोई आस-पास नहीं था। वो लड़का खूब आराम से मेरी चूत में उंगली कर रहा था। कुछ देर तो मैंने उसको अपनी चूत और छाती के साथ खेलने दिया। जब उसे लगा कि मैं मजा ले रही हूं, मैं झटका कर अलग हो गई। तो देखा कि उसका लौड़ा पैंट के बाहर निकला हुआ है। मस्त, मोटा और लम्बा लौड़ा था और खासर 'सुपारा' तो बहुत ही मोटा था। उस लड़के ने जबरदस्त लोडा मेरे हाथ में पकड़ा दीया। मैं मस्त लौड़ा देख कर पूरी गरम हो गई थी। मैने 3-4 बार जोर-जोर से लंड को दबाया तो लंड ने पानी चोड दिया। .. तभी आस-पास कुछ आवाज आने लगी तो मैं लोडा को छोड़ कर कमरे से बाहर भाग गई...।"

पुष्पा ने प्यार भरी आँखों से परम को देखा और टांगो को घुटने से मोड़कर बैठ गयी। परम आराम से पूरी की पूरी नंगी जांघों का मजा ले रहा था और बीच-बीच में पेटीकोट के ऊपर से ही चूत को मसल देता था। इस बार परम ने पुष्पा की आंखों के सामने चूत के ऊपर से पेटीकोट के कपड़ों की परत को हटा दिया। परम तो पूरा कपड़ा हटाना चाहता था लेकिन पुष्पा ने एक परत चूत के ऊपर रहने दिया और बाकी को अपनी चूत के नीचे दबा दिया। अब सिर्फ पुष्पा की चूत ढकी हुई थी, बाकी कमर के नीचे पूरी नंगी थी। इस बार जब परम ने चूत को सहलाया तो उसे लगा कि वो नंगी चूत को सहला रहा है। कुछ देर सहलते रहने के बाद परम ने पेटीकोट के कपड़ों के ऊपर से ही चूत में उंगली घुसा दी।

“काकी वो आदमी अभी भी इसी गाँव में है!” परम खूब मस्ती से चूत में फिंगरिंग कर रहा था।
नीता की रचना पढ़ रहे है

पुष्पा अपनी बोबले को मसलाने जा रही थी और सोच रही थी कि परम चूत के ऊपर से कपड़ा हटा कर उसे नंगा क्यों नहीं कर रहा है।

“हा रे, उस होली के थोड़े दिनों के बाद उसकी शादी एक बहुत सुंदर लड़की से हो गई और फिर वो कभी मेरे पास नहीं आया।” अचानक परम खड़ा हो गया और उसने अपना पैंट और बनियान उतार दिया “काकी बहुत गरमी है।”

कहते हुए वो फिर घुटनो के बल पुष्पा के पैरों के बीच बैठ गया और पुष्पा की दोनों टाँगों को खींच कर बिल्कुल अपनी जांघों के ऊपर रख दिया। परम के लंड और पुष्पा के चूत के बीच में 3-4 इंच का फासला था और बीच में कपड़े की परत थी। परम ने सामने से हाथ बढ़ा कर दोनों चुचियो को पकड़ लिया और जोर-जोर से मसलने लगा। परम सोच रहा था की बोबले दबा के पुष्पा को उकसाया जाए ताकि वह अपनी चूत खोल दे। वही पुष्पा सोच रही थी की यह लड़का इतनी देर क्यों कर रहा है जब की चूत अब उसके सामने है, अगर वह मेरे पैरो को थोडा सा भी फैलाने की कोशिश करता है तो मैं तुरंत मेरा माल उसके नज़र के सामने रख दूंगी।

अब कुछ कहने और सुनने को बाकी नहीं था, दोनों एक दूसरे से चिपक गए और जोर-जोर से चूमा-चाटी करने लगे। चूमा-चाटी करते करते पुष्पा बिस्तर पर फ्लैट हो गई और दोनों पैरों को ऊपर उठाकर फैला दिया। परम ने पेटीकोट को खींच कर अलग किया तो पुष्पा ने ब्लाउज का सारा बटन तोड़ डाला और ब्लाउज को बाहर निकाल कर नीचे फेंक दिया। अब पुष्प बिल्कुल नंगी थी। कुछ देर तक परम ने पुष्पा की चूत को मसला और रगड़ा। उसके बाद परम पुष्पा के पेट के दोनों ओर पैर रख कर खड़ा हो गया और अपना अंडरवियर निकाल दिया। परम का लंड प्योर फॉर्म में था, एकदम तंग, सुपारा एक्साइटमेंट से और भी बड़ा हो गया था, शायद चमड़ी को फाड़ डालेगा ऐसा लग रहा था।

पुष्पा ने हाथ बढ़ा कर परम को लंड को पकड़ा और नीचे खींचने लगी। परम भी निचे झुकने लगा और धीरे-धीरे लोडे को झूलती हुई चूचियो के बीच डाल कर दोनों माल को बगल से दबाया। परम चूची के बीच अपने लंड को अंदर बाहर कर रहा था और पुष्पा ने खुद को अब अपने हाथों से दोनो चूचियो को दबा कर रखा और परम अपने लंड को चूचियो के बीच चलाता रहा। परम कई को चोद चुका था, बड़ी बहू को भी जिसकी चुची पुष्पा की चुची से भी थोड़ी बड़ी थी.. लेकिन पहले कभी भी लंड को चुचियों के बीच नहीं रगड़ाया बोब्लो को नहीं चोदा। परम को तो मजा आ ही रहा था, पुष्पा भी मजा ले रही थी। अगर कोई नीचे की ओर देखता तो उसे पता चलता कि वो औरत कितनी पनिया गई थी। उसकी चूत अपना चुतरस ज्यादा मात्रा में बहा रही थी। शायद आगे भी वह झड गई थी। जब परम ने पुमा को चोदने की बात कही थी तभी उसकी चूत से फुवारा निकल चुका था।


बस आज के लिए यही तक.....................


दिवाली का समय है तो समय मिलने पर आगे लिखूंगी...........कोशिश करुँगी की यह पुष्पा और परम का चुदाई प्रकरण ख़तम कर के वेकेशन पर जाए.................


यह एपिसोड कैसा लगा इसके लिये तो आपकी कोमेंट ही मुझे बता पाएगी....................प्लीज़ अपनी राय कोमेंट कर के दीजिये ....................




।।जय भारत।।
 

Ek number

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“लेकिन तेरे काका के अलावा एक आदमी ने सिर्फ एक बार मेरी चूत को खूब मसला था।”


अब आगे............




“कौन, कब, कैसे?”


परम ने पुष्पा के सीने पर से अपना मुंह हटा लिया और जांघो को सहलाते पेटीकोट को थोड़ा और ऊपर उठा दिया। परम पेटीकोट को और ऊपर करता उस से पहले पुष्पा ने पेटीकोट को अपनी चूत के ऊपर दबा दिया और कहा,

“बस, बेटा, अब और ऊपर नहीं।”
फनलवर नीता की रचना

इतना कहकर पुष्पा ने पेटीकोट को पैंटी की तरह अपने कमर पर समेट लिया। अब सिर्फ चूत और जघन क्षेत्र को कवर किया गया था बाकी पूरा पैर कमर तक नंगा था।

"तुमको मेरी जांघें बहुत पसंद हैं ना, जितना मन करता है सहलाओ या मसलो। बस अंदर हाथ मत डालना।" और पुष्पा ने अपनी टांगो को पूरी तरह फैला दिया। फिर बोलती रही,

"मैं जब ससुराल, इस गांव में आई तो देखा एक लड़का बार-बार मेरे पास आता है। मौका मिलते ही मेरा हाथ पकड़ता है। कई बार तो उसने मेरा गाल भी सहला दिया। मुझे भी वो अच्छा लगने लगा था।"

परम अब पुष्पा के दोनों टैंगो के बीच घुटनो पर बैठ कर पुष्पा की मांसल जांघों को मसल रहा था लेकिन उसकी नज़र अब पुष्पा की मस्त चुची पर थी। परम को पुष्पा की छाती पर बने नोकीले निपल्स देख रही थी। (ब्रा का संदेह अब कभी ना रखे)

“काकी, तेरी जाँघ तो मस्त है हाय, तुम्हारी चूची भी बहुत मस्त है।”

“खाक मस्त है!”
फनलवर नीता की रचना

पुष्पा ने अपने हाथों को चुची के नीचे लगा कर थोड़ा उठाया।

"इतनी बड़ी-बड़ी कहीं बोबले होते है। कहीं आने-जाने में, किसी के सामने बैठने में भी शर्म आती है। बोबले भी तुम्हारी मां (सुंदरी) जैसे होनी चाहिए, ना छोते ना बहुत बडे। अपनी मां का बोबला तो तुमने देखा ही है...।" पुष्पा ने खुद ही अपने बोबले को मसल दिया।

"हां, तो मैं कह रही थी...शादी के बाद यहां ससुराल में मेरा पहला होली था। मैं नई नवेली दुल्हन...तुम्हारे काका के सारे दोस्त ने भाभी-भाभी कहते हुए मुझे रंग लगाया और सभी ने रंग लगाते हुए छातियो को भी मसला। मैंने मेरी सांस और पति से बात की और दोनों को बताया की यह सब दोस्त मुझे छेड़ रहे है, मेरे बोबले दबा रहे है, तब मेरी सांस ने कहा “अरे, यही तो मस्ती है, करने दो और तुम भी खूब जी भर के दबवाओ, यह सब यहाँ का रिवाज है और सब आम बात है।“ मेरे पति ने भी यही कहा की “मैं भी तो दूसरी भाभिओ के बोबले से खेल रहा हु तो उनका भी तो हक़ है की वह सब तुम्हारे बोबले को मसले। जो होता है वह होने दो।“ मेरी सांस ने यहाँ तक कह दिया की “अपने ससुरजी से भी थोडा मसलवा दो उनको भी थोड़ी रहत मिलेगी, कब से तेरे इस तीर को देख रहे है और अपना लंड पकड़ के बैठे है।“

मुझे भी अच्छा लगने लगा था'' …फिर मैं रूम में अकेली खड़ी थी। तभी वो लड़का आया और झपट कर उसने मुझे पीछे से दबा दिया। और दूसरा हाथ साड़ी के अंदर डाल कर चूत को मसलने लगा कोई आस-पास नहीं था। वो लड़का खूब आराम से मेरी चूत में उंगली कर रहा था। कुछ देर तो मैंने उसको अपनी चूत और छाती के साथ खेलने दिया। जब उसे लगा कि मैं मजा ले रही हूं, मैं झटका कर अलग हो गई। तो देखा कि उसका लौड़ा पैंट के बाहर निकला हुआ है। मस्त, मोटा और लम्बा लौड़ा था और खासर 'सुपारा' तो बहुत ही मोटा था। उस लड़के ने जबरदस्त लोडा मेरे हाथ में पकड़ा दीया। मैं मस्त लौड़ा देख कर पूरी गरम हो गई थी। मैने 3-4 बार जोर-जोर से लंड को दबाया तो लंड ने पानी चोड दिया। .. तभी आस-पास कुछ आवाज आने लगी तो मैं लोडा को छोड़ कर कमरे से बाहर भाग गई...।"

पुष्पा ने प्यार भरी आँखों से परम को देखा और टांगो को घुटने से मोड़कर बैठ गयी। परम आराम से पूरी की पूरी नंगी जांघों का मजा ले रहा था और बीच-बीच में पेटीकोट के ऊपर से ही चूत को मसल देता था। इस बार परम ने पुष्पा की आंखों के सामने चूत के ऊपर से पेटीकोट के कपड़ों की परत को हटा दिया। परम तो पूरा कपड़ा हटाना चाहता था लेकिन पुष्पा ने एक परत चूत के ऊपर रहने दिया और बाकी को अपनी चूत के नीचे दबा दिया। अब सिर्फ पुष्पा की चूत ढकी हुई थी, बाकी कमर के नीचे पूरी नंगी थी। इस बार जब परम ने चूत को सहलाया तो उसे लगा कि वो नंगी चूत को सहला रहा है। कुछ देर सहलते रहने के बाद परम ने पेटीकोट के कपड़ों के ऊपर से ही चूत में उंगली घुसा दी।

“काकी वो आदमी अभी भी इसी गाँव में है!” परम खूब मस्ती से चूत में फिंगरिंग कर रहा था।
नीता की रचना पढ़ रहे है

पुष्पा अपनी बोबले को मसलाने जा रही थी और सोच रही थी कि परम चूत के ऊपर से कपड़ा हटा कर उसे नंगा क्यों नहीं कर रहा है।

“हा रे, उस होली के थोड़े दिनों के बाद उसकी शादी एक बहुत सुंदर लड़की से हो गई और फिर वो कभी मेरे पास नहीं आया।” अचानक परम खड़ा हो गया और उसने अपना पैंट और बनियान उतार दिया “काकी बहुत गरमी है।”

कहते हुए वो फिर घुटनो के बल पुष्पा के पैरों के बीच बैठ गया और पुष्पा की दोनों टाँगों को खींच कर बिल्कुल अपनी जांघों के ऊपर रख दिया। परम के लंड और पुष्पा के चूत के बीच में 3-4 इंच का फासला था और बीच में कपड़े की परत थी। परम ने सामने से हाथ बढ़ा कर दोनों चुचियो को पकड़ लिया और जोर-जोर से मसलने लगा। परम सोच रहा था की बोबले दबा के पुष्पा को उकसाया जाए ताकि वह अपनी चूत खोल दे। वही पुष्पा सोच रही थी की यह लड़का इतनी देर क्यों कर रहा है जब की चूत अब उसके सामने है, अगर वह मेरे पैरो को थोडा सा भी फैलाने की कोशिश करता है तो मैं तुरंत मेरा माल उसके नज़र के सामने रख दूंगी।

अब कुछ कहने और सुनने को बाकी नहीं था, दोनों एक दूसरे से चिपक गए और जोर-जोर से चूमा-चाटी करने लगे। चूमा-चाटी करते करते पुष्पा बिस्तर पर फ्लैट हो गई और दोनों पैरों को ऊपर उठाकर फैला दिया। परम ने पेटीकोट को खींच कर अलग किया तो पुष्पा ने ब्लाउज का सारा बटन तोड़ डाला और ब्लाउज को बाहर निकाल कर नीचे फेंक दिया। अब पुष्प बिल्कुल नंगी थी। कुछ देर तक परम ने पुष्पा की चूत को मसला और रगड़ा। उसके बाद परम पुष्पा के पेट के दोनों ओर पैर रख कर खड़ा हो गया और अपना अंडरवियर निकाल दिया। परम का लंड प्योर फॉर्म में था, एकदम तंग, सुपारा एक्साइटमेंट से और भी बड़ा हो गया था, शायद चमड़ी को फाड़ डालेगा ऐसा लग रहा था।

पुष्पा ने हाथ बढ़ा कर परम को लंड को पकड़ा और नीचे खींचने लगी। परम भी निचे झुकने लगा और धीरे-धीरे लोडे को झूलती हुई चूचियो के बीच डाल कर दोनों माल को बगल से दबाया। परम चूची के बीच अपने लंड को अंदर बाहर कर रहा था और पुष्पा ने खुद को अब अपने हाथों से दोनो चूचियो को दबा कर रखा और परम अपने लंड को चूचियो के बीच चलाता रहा। परम कई को चोद चुका था, बड़ी बहू को भी जिसकी चुची पुष्पा की चुची से भी थोड़ी बड़ी थी.. लेकिन पहले कभी भी लंड को चुचियों के बीच नहीं रगड़ाया बोब्लो को नहीं चोदा। परम को तो मजा आ ही रहा था, पुष्पा भी मजा ले रही थी। अगर कोई नीचे की ओर देखता तो उसे पता चलता कि वो औरत कितनी पनिया गई थी। उसकी चूत अपना चुतरस ज्यादा मात्रा में बहा रही थी। शायद आगे भी वह झड गई थी। जब परम ने पुमा को चोदने की बात कही थी तभी उसकी चूत से फुवारा निकल चुका था।


बस आज के लिए यही तक.....................


दिवाली का समय है तो समय मिलने पर आगे लिखूंगी...........कोशिश करुँगी की यह पुष्पा और परम का चुदाई प्रकरण ख़तम कर के वेकेशन पर जाए.................


यह एपिसोड कैसा लगा इसके लिये तो आपकी कोमेंट ही मुझे बता पाएगी....................प्लीज़ अपनी राय कोमेंट कर के दीजिये ....................




।।जय भारत।।
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