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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

Prime
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andyking302

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भाग:–44






"टेलीपोर्टेशन (teleportation) और टेलीपैथी (telepathy) एक ऐसी विधा है जो सभी कुंडलिनी चक्र जागृत होने के बाद भी उनपर सिद्धि प्राप्त करना असंभव सा होता है। आज के वक्त में टेलीपोर्टेशन विद्या तो विलुप्त हो गयि है, हां टेलीपैथी को हम संभाल कर रखने में कामयाब हुये। महाजनिका पूरे ब्रह्मांड में इकलौती ऐसी है, जो टेलीपोर्टेशन कर सकती है। जिस युग में सिद्ध पुरुष टेलीपोर्टेशन भी किया करते थे, तो भी कोई अंधकार की दुनिया में रास्ता नहीं खोल सकता था। महाजनिका ने वह सिद्धि हासिल की थी जिससे वो दोनो दुनिया में टेलीपोर्टेशन कर सकती थी।


निशांत:– माफ कीजिएगा, मेरा एक सवाल है। ये जो अभी पोर्टल खुला था, क्या वह टेलीपोर्टेशन नही हुआ...


संन्यासी शिवम:– हां ये भी आज के युग का टेलीपोर्टेशन है। इसे कुपोषित टेलीपोर्टेशन भी कह सकते हो। टेलीपोर्टेशन में कभी कोई द्वार नही खुलता, वहां किसी भी प्रकार के मार्ग को देखा नही जा सकता। हालांकि एक जगह से दूसरे जगह पहुंचने के लिए जो पोर्टल अर्थात द्वार खोलते है, वह होता तो काल्पनिक ही है, किंतु द्वार दिखता है। इसलिए सही मायने में यह टेलीपोर्टेशन नही। हालांकि पोर्टल बनाने की सिद्धि भी आसान नहीं होती। इसकी भी सिद्धि अब तक गिने चुने सिद्ध पुरुष के पास ही है। और हां तांत्रिक अध्यात के पास भी है। तांत्रिक के विषय में इतना ही कहूंगा की हो सकता है उनके पास टेलीपोर्टेशन की पूर्ण सिद्धि भी हो। क्योंकि उनके पीछे पूरा एक वंश वृक्ष था, जो पीढ़ी दर पीढ़ी अपनी सिद्धि गुप्त रूप से आगे बढाते रहे हैं। लेकिन इसपर भी संदेह मात्र है, क्योंकि आज से पहले इन तांत्रिकों के बारे में केवल सुना ही था। हम लोग भी पहली बार आमने–सामने होंगे...


आर्यमणि:– आपकी बात और रीछ स्त्री को जानने के बाद मन विचलित सा हो गया है। क्यों है ये ताकत की होड़? इतनी ताकत किस काम कि जिससे पूरे मानव संसार को ही खत्म कर दो? फिर तुम्हारी ये ताकत देखेगा कौन?... क्यों करते है लोग ऐसा? आराम से हंसी खुशी नही रह सकते क्या? जिसे देखो अपना प्रभुत्व स्थापित करने में लगा है। कैसे हो गये है हम?...


संन्यासी शिवम:– तुम ज्यादा विचलित न हो। जैसा मैंने कहा, खुद को थोड़ा वक्त दो। बस एक ही सत्य है, मृत्यु। जब तक मृत्यु नही आती, तब तक मुस्कुराते हुए अपने कर्म किये जाओ।


आर्यमणि:– आप यहां से जाने के बाद क्या करेंगे संन्यासी जी...


संन्यासी शिवम:– पुर्नस्थापित अंगूठी मिल चुकी है इसलिए यहां से सीधा पूर्वी हिमालय जाऊंगा, कमचनजंघा की गोद में। हमारे तात्कालिक गुरुजी अभी जोड़ने के काम में लगे हैं। इसी संदर्व में हम कंचनजंघा स्थित अपने शक्ति के केंद्र वाले गांव को लगभग पुनर्स्थापित कर चुके थे। तभी तो खोजी पारीयान के तिलिस्म के टूटते ही हम तुम्हारे पीछे आये। क्योंकि गांव बसाने की लिए हमे बस वो आखरी चीज, पुर्नस्थापित अंगूठी चाहिए थी।


निशांत:– यदि ये अंगूठी इतनी जरूरी थी, फिर आप लोग ने क्यों नही ढूंढा...


संन्यासी शिवम:– कुछ वर्ष पहले कोशिश हुयि थी, तब कोई और गुरुजी थे। किंतु किसी ने छिपकर ऐसा आघात किया कि हम वर्षो पीछे हो गये। हमारे तात्कालिक गुरुजी पहले सभी आश्रम और मठ को जोड़ते। तत्पश्चात अंगूठी ढूढने निकलते। उस से पहले ही तुम दोनो ने ढूंढ लिया। हमारी मेहनत और समय दोनो बचाने के लिये आभार व्यक्त करते है।


निशांत:– वैसे एक सवाल बार–बार दिमाग में आ रहा है?


संन्यासी शिवम:– क्या?


निशांत:– इतना तो समझ गया की ये झोलर प्रहरी को रीछ स्त्री के यहां होने की खबर कैसे लगी। लेकिन एक बात समझ में नही आयि की वो प्रहरी यहां तांत्रिक के साथ लड़ाई में क्यों नही सामिल थे? सतपुरा आने से पहले जब मीटिंग हुई थी, तब हमे बताया गया था कि 5 किलोमीटर का क्षेत्र बांध दिया गया है, इसका क्या मतलब निकलता है?


आर्यमणि:– "यहां का पूरा माहोल और संन्यासी शिवम जी को सुनने के बाद तो पूरी कहानी ही कनेक्ट हो चुकी है। इसका जवाब मैं दे देता हूं। हर अनुष्ठान की अपनी एक विधि और खास समय होता है। रीछ स्त्री महाजनिका कैद से छूट तो गयि, लेकिन ऐडियाना के मकबरे को खोलने के लिए उसे इंतजार करना पड़ा। कुछ प्रहरी को पूरी बात पहले से पता थी, लेकिन ना तो तांत्रिक और न ही प्रहरी को, साधुओं और संन्यासियों का जरा भी भनक था।"

"प्रहरी तो सही समय पर यहां पहुंचे थे। आज से 4 दिन पहले जब ऐडियाना का मकबरा खोला जाता और अंदर का समान बांटकर, रीछ स्त्री के हाथों मेरी और कुछ लोगों की बलि चढ़ाई जाती। हां तब ये क्षेत्र भी 5 किलोमीटर तक बांधा गया था, वो भी तांत्रिकों द्वारा। लेकिन प्रहरी और तांत्रिक तब मात खा गये, जब उन्हें यह क्षेत्र किसी और के द्वारा भी बंधा हुआ मिला। एडियाना का मकबरा खुलने की विधि में बाधा होने लगी और तब तांत्रिक और उसके चेलों ने पोर्टल की मदद ली।"

"यहां पर तांत्रिक और प्रहरी का सीधा शक मुझपर गया। इसलिए 4 रात पहले मुझे मारने की योजना बनाई गयि।उन्हे लगा सरदार खान मुझे मार देगा। खैर आज जबतक सिद्ध पुरुष और संन्यासी का सामना तांत्रिक से नही हुआ था, तबतक ये लोग भी यही समझते रहे कि मैं ही कोई सिद्ध पुरुष हूं, जिसने ये पूरा खेल रचा है। अब मैं सिद्ध पुरुष हूं इसलिए प्रहरी सामने से मुझे मारने नही आये क्योंकि उनका भेद खुल जाता। उन प्रहरी को यही लग रहा की आर्यमणि तो रीछ स्त्री के पीछे नागपुर आया है। प्रहरी को यह भी विश्वास था कि मैं सरदार खान से बच गया तो क्या हुआ, तांत्रिक और रीछ स्त्री से नही बच पाऊंगा"...

"प्रहरी की एक खतरनाक प्लानिंग का खुलासा तो तुमने ही कर दिया था निशांत। जब कहे थे कि बहुत से शिकारी की जान जाने वाली है। और वो सही भी था क्योंकि भूमि दीदी को भी प्रहरी समुदाय में अलग ही लेवल का शक है। गुटबाजी तो हर संस्था में होती है। किंतु प्रहरी में उस से भी ज्यादा कुछ हो रहा है, इसका अंदेशा था शायद उन्हें। इसलिए भूमि दीदी को कमजोर करने के लिये उनके सभी खास लोगों को यहां ले आया।"


निशांत:– ओह अब मैं समझा की तू उस वक्त क्या समझाना चाह रहा था...


आर्यमणि:– क्या?


निशांत:– तेजस और सुकेश २ टॉप क्लास के प्रहरी, और पलक जो सबको यहां लेकर आयि। बिजली का खंजर इन्ही ३ लोगों में से कोई एक ले जाता और जिस तरह का संग्रहालय तेरे मौसा (सुकेश) ने अपने घर में बना रखा है। जिस विश्वास से सुकेश के सहायक ने रीछ स्त्री का पता बताया और वह सबको यहां ले आया। सुकेश ही शायद तांत्रिक के साथ मिला हुआ प्रहरी होगा। अगर सुकेश नही तो फिर तेजस या पलक। या फिर तीनों ही, या तीनों में से कोई २… क्योंकि यहां आये प्रहरी में से ही कोई प्रहरी खंजर लेकर जाता।


आर्यमणि:– बस कर ज्यादा गहराई में मत जा, वरना मेरी तरह ही तेरा हाल होगा।


निशांत:– मूर्ख समझा है क्या? तू मुझसे ज्यादा जानता है, इसलिए ज्यादा कन्फ्यूज है। मुझे यहां ३ प्रहरी करप्ट दिखे। यदि मुझसे पूछो तो ये लोग ताकत के भूखे है। जो की एक बच्चा भी समझ सकता है। पर जैसे कुछ सवाल तेरे ऊपर है न, तू ताकतवर तो है, लेकिन है क्या? यहां आने के पीछे मकसद क्या है? ठीक वैसे ही उनके लिए तेरे मन में है... ये लोग है क्या? और ताकत पाने के पीछे का मकसद क्या है? क्या मात्र ताकतवर बनना है, या पीछे कोई बहुत बड़ी योजना है?


सन्यासी शिवम:– हाहाहा, दोनो ही प्रतिभा के धनी हो। तुम दोनो साथ हो तो हर उस बिन्दु को देख सकते हो, जो दूसरे को १००० बार देखने से ना मिले।


आर्यमणि:– वैसे एक झोल तो आप लोगों ने भी किया है।


संन्यासी शिवम:– क्या?


आर्यमणि:– ठीक उसी रात क्षेत्र को बांधे जब मैं यहां पहुंचा। न तो कोई अंदर आ सकता था न ही कोई बाहर। फिर सिर्फ मुझे और निशांत को ही बंधे हुए क्षेत्र के अंदर घुसने दिया होगा। बाकी मुझे विश्वास है कि बहुत से लोग बांधे हुए क्षेत्र की सीमा के पास होंगे, लेकिन अंदर नही आ पा रहे। रीछ स्त्री कुछ बताने आयेगी नही और तांत्रिक के पूरे समूह को ही गायब कर दिया। देखा जाय तो आप लोगों ने भी ये पूरा खेल परदे के पीछे रहकर ही खेल गये। उल्टा मुझे हाईलाइट कर दिया...


संन्यासी शिवम:– मुझे लगा इस ओर तुम्हारा ध्यान नहीं जायेगा। सबसे पहले तो माफी चाहूंगा जो तुम्हे फसाते हुये हम आगे बढ़े। विश्वास मानो हम अभी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे, जिसमे हमारे तात्कालिक गुरु जी और आचार्य जी, आश्रम के सभी इकाई को जोड़ने में लगे है। इस वक्त हम किसी के सामने अपने होने का भेद नहीं खोल सकते। वैसे अब चिंता मत करो, हमने दोनो ही शंका को दूर कर दिया।


आर्यमणि:– कौन सी..


संन्यासी शिवम:– पहली की तुम हमारे बंधे क्षेत्र में घुसे ही नही। लोगों ने यही देखा की तुम भी उन्ही की तरह जूझ रहे। क्योंकि हमने तुम्हारी होलोग्राफिक इमेज को अब भी सीमा के बाहर रखा है। अब चूंकि तुम भी उन लोगों की तरह बाहर घूम रहे, इसलिए तुम एक सिद्ध पुरुष कैसे हो सकते? प्रहरी को यकीन हो गया है कि रीछ स्त्री के बंधे क्षेत्र में कोई नही घुसा इसलिए दिमाग में एक ही बात होगी, "शायद तांत्रिक के मन में ही बईमानि आ गयि हो।"


निशांत:– होलोग्राफिक इमेज.. क्या ऐसा भी कोई सिद्ध किया हुआ मंत्र है?...


संन्यासी शिवम:– हां है न, विज्ञान। हमारे पास कमाल के प्रोग्राम डिजाइनर और सॉफ्टवेयर इंजीनियर है।


निशांत:– क्या सच में?....


संन्यासी शिवम:– हां बिलकुल। वैसे भी अब तो हमारे साथ हो, जल्द ही सबको जान जाओगे...


आर्यमणि:– चलो मेरा बोझ तो घटा। वैसे यहां से मैं एक बात सीखकर जा रहा...


निशांत:– क्या?


आर्यमणि:– हम जैसे लोगों के लिए भटकना ज्यादा प्रेरणादायक है। हम गंगटोक में भटके, क्या कुछ नही सीखा... मैं 3–4 साल घुमा क्या कुछ नही सीखा। जबकि उस दौड़ में तू नागपुर में ही रहा और क्या सीखा..


निशांत:– प्रहरी के लौड़ा–लहसुन सीखा। इस से ज्यादा कुछ नहीं...


आर्यमणि:– अब देख, सतपुरा के जंगल हम घूमने आये, फिर क्या हुआ...


निशांत:– पूरी सृष्टि ही हैरतंगेज चीजों से भरी है जिसका हमने बूंद ही देखा हो शायद...


फिर दोनो दोस्त एक साथ एक सुर में... "माफ करना संन्यासी जी जो हम कहने वाले है... इतना कहकर दोनो ने हाथ जोड़ लिये और चिल्लाकर कहने लगे... "मां चुदाये दुनिया, हम तो उम्र भर भटकते रहेंगे।"..


संन्यासी हंसते हुए... "तुम दोनो ऐसी भाषा का भी प्रयोग करते हो?"


आर्यमणि:– हां जब अकेले होते हैं... वैसे हमने 8 साल की उम्र से 16–17 साल तक ज्यादातर वक्त एक दूसरे के साथ अकेले ही बिताया है।


निशांत:– हां लेकिन ये भी है, ऐसी बातें किसी और के सामने निकलती भी नही... संन्यासी सर मुझे भी अब आपके साथ कुछ दिन भटकना है...


आर्यमणि:– क्यों तू मेरे साथ नही भटकेगा...


निशांत:– अभी बिलकुल नहीं... तू भटक कर अपना ज्ञान अर्जित कर और मैं भटक कर अपना ज्ञान अर्जित करूंगा... और जब दोनो भाई मिलेंगे तब पायेंगे की हमने दुगनी दुनिया देखी है...


आर्यमणि, निशांत के गले लगते... "ये हुई न असली खोजी वाली बात"…


संन्यासी शिवम:– अभी तुम्हे अपने साथ बहुत ज्यादा भटका तो नही सकता, लेकिन हां कुछ अच्छा सोचा है तुम्हारे बारे में...


निशांत:– क्या..


संन्यासी दोनो के हाथ में एक–एक पुस्तक देते... "जल्द ही पता चल जायेगा। अब मैं चलता हूं।"… सन्यासी अपनी बात कहकर वहां से निकल गये। आर्यमणि और निशांत भी बातें करते हुये कैंप की ओर चल दिये। पीछले कुछ घंटों की बातो को दिमाग से दूर करने के लिये इधर–उधर की बातें करते हुये पहुंचे।


दोनो कैंप के पास तो पहुंचे लेकिन वहां का नजारा देखते ही समझ चुके थे कि वहां क्या हो चुका था? वहां का माहोल देखकर आर्यमणि और निशांत को ज्यादा आश्चर्य नही हुआ, बस अफसोस हो रहा था। चारो ओर कई शिकारियों की लाश बिछी थी। जिसमे २ मुख्य नाम थे, पैट्रिक और रिचा। पैट्रिक और रिचा के साथ लगभग 30 शिकारी मारे गये थे। बचे हुये शिकारी फुफकार मारते अपने गुस्से का परिचय दे रहे थे। उन्ही के बीच से पलक भागती हुई पहुंची और आर्यमणि के गले लगती... "ऊपर वाले का शुक्र है कि तुम सुरक्षित हो"…


आर्यमणि:– पलक यहां हुआ क्या था?


पलक:– वह रीछ स्त्री महाजनिका अचानक ही यहां पहुंची और उसने हम पर हमला कर दिया।


निशांत, लाश के ऊपर लगे तीर और भला को देखते... "तीर और भला से हमला किया?"


रिचा के ही टीम का एक साथी तेनु.… "घटिया वेयरवोल्फ और उसका मालिक दोनो ही लड़ाई के वक्त नदारत थे। साले फट्टू तू आया ही क्यों था। चल भाग यहां से।


पलक:– तेनु जुबान संभाल कर..


तेनु पलक को आंखें दिखाते... "तेजस यहां मुझे सब संभालने के लिये कह कर गया है। अपनी जुबान मीटिंग में ही खोलना। और तू निष्कासित वर्धराज का पोते, अपने वुल्फ की तरह तू भी निकल फट्टू"…


निशांत तो २–२ हाथ करने में मूड में आ गया लेकिन आर्यमणि ने उसे शांत करवाया और अपने साथ लेकर निकल गया। कुछ घंटों के सफर के बाद रास्ते में अलबेली और रूही भी मिली, जिन्हे उठाते दोनो आगे बढ़ गये।..


आर्यमणि:– क्या खबर...


रूही:– शायद उसका नाम नित्या था।


आर्यमणि:– किसका..


रूही:– वो औरत...उसके पूरे बदन पर मैले कपड़े थे जो जगह–जगह से फटे थे। मानो बरसों से उसने अपने बदन पर कोई दूसरा कपड़ा न पहना हो। बदन का जो हिस्सा दिख रहा था सब धूल में डूबा। ऐसा लग रहा था धूल की चमरी जमी है। उसके होंटों पर भी धूल चढ़ा था, और जब वो बोलने के लिए होंठ खोली, उसके धूल जमी खुस्क होंठ पूरा फटकर लाल–लाल दिखने लगे। चेहरा ऐसा झुलसा था मानो भट्टी के पास उसके चेहरे को रखा गया था। हवा की भांति वो लहराती थी। किसी धूवें की प्रतिबिंब हो जैसे। तेजस उसे नित्या कहकर पुकार रहा था, इस से ज्यादा उसकी नई भाषा मुझे समझ में नही आयि। वह क्या थी पता नही, लेकिन इंसान तो बिलकुल भी नहीं थी। तेजस ने उससे कुछ कहा और वो सबसे पहले तुम दोनो पर ही हमला करने पहुंची।"

"बॉस वो तुम्हे मारने की कोशिश करती रही लेकिन तुम और निशांत तो धुवें के कोहरे में घुसकर बचते रहे। जब वह तुम दोनो को नही मार पायि, फिर सीधा कैंप पहुंची और वहां हमला कर दिया। वह अकेली थी और शिकारियों से घिरी। उसकी अट्टहास भरी हंसी और खुद का परिचय रीछ स्त्री महाजनिका के रूप में बताकर हमला शुरू कर दी। उसके बाद जो हुआ वह हैरतंगेज और दिल दहला देने वाला था। मानो वो औरत बंदूक की गोली से भी तेज लहराती हो। एक साथ 30–40 बुलेट चले होंगे और ऐसा भी नही था की वह एक जगह से भागकर दूसरे जगह पर गयि हो। अपनी जगह पर ही थी और १ फिट के दायरे में रहकर वह हर बुलेट को चकमा दे रही थी।"

हर एक शिकारी ने वेयरवोल्फ पकड़ने वाले सारे पैंतरे को अपना लिया। सुपर साउंड वेव वाली रॉड हो या फिर करेंट गन फायर। ऐसा लग रहा था १० मिनट तक खुद को मारने का एक मौका दे रही हो। फिर उसके बाद तो क्या ही वो कहर बनकर बरसी। वहां न तो धनुष–बाण थी, और ना ही भाला। लेकिन जब वह अपने दोनो हाथ फैलायी तब चारो ओर बवंडर सा उठा था। वह नित्या दिखना बंद हो गयि। बस चारो ओर गोल घूमता बवंडर। और फिर उसी बवंडर से बाण निकले। भाले निकले। सभी जाकर सीधा सीने में घुस गये और जब हवा शांत हुई तब वहां नित्या नही थी। बस चारो ओर लाश ही लाश।


निशांत:– वाउ!!! प्रहरियों का एक और मजबूत किरदार जो प्रहरी को मार रहा। और इसी के साथ ये भी पता चल गया की ३ में से एक कौन था जो खंजर लेने पहुंचा था।


रूही:– कौन सा खंजर...


आर्यमणि:– ऐडियाना के मकबरे का खंजर। पूरी घटना में सुकेश भारद्वाज और पलक कहां थे?


रूही:– माहोल शांत होने तक पलक वहीं थी लेकिन उसके बाद कुछ देर के लिये वह कहीं गयि थी। सुकेश और तेजस तो पहले से गायब थे, जिन्हे ढूंढने मैंने अलबेली को भेजा था।


आर्यमणि:– बकर–बकर करने वाली इतनी शांत क्यों है?..


अलबेली:– क्योंकि आज जान बच गयि वही बहुत है। सुकेश और तेजस कैंप से २ किलोमीटर दूर थे। दोनो में कोई बातचीत नहीं हो रही थी, केवल एक ही दिशा में देख रहे थे। थोड़ी देर बाद वह नित्या पहुंची। सुकेश के सीधे पाऊं में ही गिर गयि। तीनों की कुछ बातें हो रही थी तभी पलक भी वहां पहुंची... तीनों अजीब सी भाषा में बात कर रहे थे, समझ से परे। शायद मैं कच्ची हूं, इसलिए मैं उन तीनो में से किसी की भावना पढ़ नही पायि। बहुत कोशिश की, कि मैं उनकी भावना समझ सकूं, लेकिन कुछ पता न चला।"

"लेकिन तभी नित्या ने मेरी ओर देखा। मैं 500–600 मीटर दूर बैठी, उनकी बातें सुन रही थी। पेड़ों के पीछे जहां से न वो मुझे देख सकती थी और ना मैं उन्हे। लेकिन मुझे एहसास हुआ की मेरी ओर कुछ तो खतरा बढ़ रहा है। मै बिना वक्त गवाए एक जंगली सूअर के पीछे आ गयि और एक भला सीधा जंगली सूअर के सीने में। जैसे किसी ने उस भाले पर जादू किया हो। रास्ते में पड़ने वाले सभी पेड़ों के दाएं–बाएं से होते हुये सीधा एक जीव के सीने में घुस गया। मैं तो जान बचाकर भागी वहां से। बॉस अभी मेरी उम्र ही क्या है। जिंदगी तो कुछ वक्त पहले से ही शुरू हुई है लेकिन उसे भी वो डायन नित्या छीन लेना चाहती थी। बॉस बहुत खतरनाक थी वो।


अलबेली की बात सुनकर आर्यमणि निशांत को देखने लगा। निशांत अपने हाथ जोड़ते... "मुझे नहीं पता की खंजर लेने कौन प्रहरी पहुंचा था। तीनो ही साथ है, या केवल तेजस या फिर जो भी नए समीकरण हो। मुझे माफ करो।"


आर्यमणि हंसते हुये... "अब सब थोड़ा शांत हो जाओ और चलो सीधा वापस नागपुर।"..


अलबेली:– मुझे तो लगा अपने पैक की सबसे छोटी सदस्य के लिये अभी आप उस नित्या से लड़ने चल देंगे...


आर्यमणि:– लड़ाई छोड़ो और पहले ट्रेनिंग में ध्यान दो। पड़ी लकड़ी उठाने का शौक न रखो।


निशांत:– अनुभव बोलता है। एक पड़ी लकड़ी उठाने वाला ही समझ सकता है आगे का दर्द..


आर्यमणि:– और कौन सी पड़ी लकड़ी उठाई है मैंने..


निशांत:– कहां–कहां की नही उठाया, फिर वो मैत्री के चक्कर में... (तभी आर्य ने उसके मुंह पर हाथ रख दिया। निशांत किसी तरह अपना मुंह निकलते).. अबे बोलने तो दे...


आर्यमणि:– नही तू नही बोलेगा.."….


निशांत:– क्यों न बोलूं, इन्हे भी अपने बॉस के बारे में जानने का हक है। क्यों टीम, क्या कहती हो...


रूही और अलबेली चहकी ही थी कि बॉस की घूरती नजरों का सामना हो गया और दोनो शांत...


"साले डराता क्यों है। पैक का मुखिया हो गया तो क्या इन्हे डरायेगा।"…… "अच्छा !!! तो फिर खोल पड़ी लकड़ी के किस्से। मैं तो नफीसा से शुरू करूंगा।"… "आर्य तू नफीसा से शुरू करेगा तो मैं भी नफीसा से शुरू करूंगा।"…. "वो तो तेरे साथ थी न"….. "मैं कहता हूं तेरे साथ थी। बुला पंचायत देखते है उसकी शक्ल देखकर किसपर यकीन करते है।"…


रूही:– थी कौन ये नफीसा ..


दोनो के मुख से अनायास ही निकल गया... "शीमेल (shemale) कमिनी"…


अलबेली तो समझ ही नही पायि। लेकिन जब रूही ने उसे पूरा बताया तब वह भी खुलकर हंसने लगी। और रह–रह कर एक ही सवाल जो हर २ मिनट पर आ रहा था... "पता कब चला की वो एक..."


अगले २ दिनो तक चुहुलबाजी चलती रही। चारों सफर का पूरा आनंद उठाते नागपुर पहुंच गये। नागपुर में भूमि का पारा देखने लायक था। जबसे उसने सुना था कि रिचा और पैट्रिक नही रहे, तबसे वह सो नहीं पायि थी। दिल और दिमाग पर बस एक ही नाम छाया था, रीछ स्त्री। और भूमि को किसी भी कीमत पर अपने साथियों का बदला चाहिये था। आर्यमणि कोई भी बात बता नही सकता था और भूमि कोई भी दिल लुभावन बात से शांत नहीं हो रही थी। उसे तो बस बदला ही चाहिये था। जब बात नही बनी तब आर्यमणि ने भूमि को कुछ दिनों के लिये अकेले छोड़ना ही उचित समझा। इधर आर्यमणि ने भूमि को अकेले छोड़ना उचित समझा, उधर रूही और अलबेली को भी सबने छोड़ दिया। या यूं कहे कि सबने घर से धक्के देकर निकाल दिया।
जबरदस्त भाई लाजवाब update bhai jann superree duperrere
 

andyking302

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भाग:–45





आर्यमणि को लौटे २ दिन हो गये थे किंतु भूमि का शोक और क्रोध कम होने का नाम ही नही ले रहा था। पहले दिन आर्यमणि ने यथा संभव समझाने की कोशिश तो किया था, लेकिन शायद भूमि कुछ सुनने को तैयार नही थी। २ दिन बाद आर्यमणि से रहा नही गया। उसके मानसिक परिस्थिति का सीधा असर गर्भ में पल रहे बच्चे पर भी होता। कितनी ही मिन्नतें किया तब भूमि साथ आने को तैयार हुई। लेकिन इस बार आर्यमणि अकेले कोशिश नही करना चाहता था, इसलिए साथ में निशांत को ले लिया।


तीनों ही एक मंदिर में बैठे। भूमि कुछ देर तक शांत होकर मां दुर्गा की प्रतिमा को देखती रही, फिर अचानक ही उसके आंखों से आंसू निकल आये.… "रिचा और पैट्रिक ने क्या नही किया मेरे लिये और मैं यहां एक असहाय की तरह बैठी उसके मरने की खबर पर आंसू बहा रही"…


आर्यमणि, भूमि के आंखों से आंसू साफ करने लगा। इधर निशांत अपने शब्द तीर छोड़ते.… "रिचा भी तो कोई साफ प्रहरी नही थी। अपने ब्वॉयफ्रेंड मानस के साथ मिलकर वह भी तो साजिश ही कर रही थी दीदी"…


भूमि, लगभग चिल्लाती हुई... "जिसके बारे में पता नही हो, उसपर ऐसे तंज़ नही करते समझे।"…


आर्यमणि:– ऐसा क्या हो गया दीदी... निशांत पर क्यों भड़क रही हो...


भूमि खींचकर एक थप्पड़ मारती.… "तू बस अपने ही धुन में रह। सरदार खान को जाकर बस चुनौती दे, और मैं तेरे किये को अपना बताकर आज ये दिन देख रही। उन सबको यही लगता है कि तेरे पीछे से मैं ही सब कुछ करवा रही।


आर्यमणि:– आप किसके पीछे है? मेरे कुछ करने का असर आपकी टीम पर कैसे,... कभी कुछ बताया है आपने?


भूमि:– मुझे कुछ नहीं बताना केवल रीछ स्त्री चाहिये। सबको मारने के बाद कहां गयि वो?


निशांत:– यहीं नागपुर में आयि है।


भूमि आश्चर्य से.… "क्या?"


निशांत:– हां बिलकुल... रीछ स्त्री के नाम पर सरदार खान ने ही तो सबकी बलि ले ली थी। वहां जो भी बवंडर और जादुई खेला था, वह तो बस कंप्यूटराइज्ड था। जादुई हमला मंत्र से होता है। आपको आश्चर्य नही हुआ कि हवा के बवंडर से भाले और तीर निकल रहे थे....


भूमि अपना सर झुका कर निशांत की बातों पर सोच रही थी। ऊपर आर्यमणि अपनी आंखें बड़ी किये सवालिया नजरों से घूरने लगा, मानो कह रहा हो... "ये क्या गंध मचा रहा है।"…. निशांत भी उसे शांत रहने और आगे साथ देने का इशारा कर दिया। कुछ देर तक भूमि सोचती रही...


भूमि:– तुम्हारी बातों का क्या आधार है? क्या तुमने वहां सरदार खान को देखा था?


आर्यमणि:– तेनु वहां का मुखिया बना था। उसे पता है कि सरदार खान वहां था।


भूमि:– तुम दोनो को पक्का यकीन है...


दोनो एक साथ... "हां"..


भूमि, ने 2–3 कॉल किये। थोड़ा जोड़ देकर पूछी और बात सच निकली। सरदार खान को सतपुरा के जंगल में देखा गया था। भूमि गहरी श्वास लेती... "रिचा मेरी बुराई करती थी। वह हमारे परिवार के खिलाफ बोलती थी।हर जगह मुझे और भारद्वाज खानदान को कदमों में लाने की साजिश करती हुई पायि जाती थी। इसलिए वह दूसरे खेमे की चहीती हो गयि और वहां की सभी सूचना मुझ तक मिल जाती। पहले तो हम दोनो को मामला सीधा लगा, जिसमे पैसे और पावर के कारण करप्शन दिखता है। लेकिन यहां उस से भी बड़ी कुछ और बात थी।"..


आर्यमणि:– कौन सी बात दीदी...


भूमि:– मुझे बस अंदेशा है अभी। सरदार खान का नाम आ गया, मतलब इन सबके पीछे भी वही है...


आर्यमणि:– पहेलियां क्यों बुझा रही हो दीदी, पूरी बात बताओ?


भूमि:– जल्द ही बताऊंगी, तब तक अपनी जिंदगी एंजॉय कर.… वैसे भी तुझसे इस बारे में बात करती ही भले सतपुरा वाला कांड होता की नही होता।


आर्यमणि:– अधूरी बातें हां..


भूमि:– थप्पड़ खायेगा फिर से...


निशांत:– लगता है मैं यहां पर हूं इसलिए नही बता रही..


भूमि:– बेटा तुम दोनो को मैं डिलीवरी के वक्त से जानती हूं। तेरे रायते भी यहां कुछ कम नहीं है निशांत। बस एक ही बात कहूंगी अपनी जिंदगी जी, और प्रहरी से पूरा दूरी बना ले। वक्त अब बिल्कुल सही नही, आपसी मौत का खेल शुरू हो गया है। अब रीछ स्त्री के नाम से सबकी बलि ली जायेगी, जैसे रिचा और पैट्रिक के साथ हुआ। आर्य बेटा प्लीज मेरी बात मान ले। देख तुझे मैं जल्द ही पूरी बात बता दूंगी... तू मेरा प्यारा भाई है कि नही..


आर्यमणि:– ठीक है दीदी, जैसा आप कहो... आज से मैं प्रहरी से दूर ही रहूंगा...


निशांत:– दीदी आप चिंता मत करो। आज से इसे मैं अपने साथ रखूंगा..


भूमि:– हां ये ज्यादा सही है...


आर्यमणि:– क्या सही है। सबकी जान खतरे में है और शांत रहने कह रहे...


भूमि:– मैं तो पहले ही १० सालों के लिए प्रहरी से बाहर हो गयि। यदि उन्हें मुझे मारना होता तो मेरी टीम के साथ मुझे भी ले जाते। उन्हे मुझसे कोई खतरा नही। तू भी किनारे हो जा, तुम्हे भी कोई खतरा नही.. आसान है..


आर्यमणि:– जैसा आप ठीक समझो... चलो चलते हैं यहां से...


कुछ वक्त बिता। धीरे–धीरे सब कुछ सामान्य होने लगा। आर्यमणि की जिंदगी कॉलेज, दोस्त और पलक के संग प्यार से बीत रहा था। ख्यालों में भी कुछ ऐसा नहीं चल रहा था, जो प्रहरी के संग किसी तरह के तालमेल को दर्शाते हो। सबकुल जैसे पहले की तरह हो चुका था। कॉलेज के वक्त को छोड़ दिया जाय तो, निशांत के साथ 5–6 घंटे गुजर ही जाते थे। बचा समय पलक और परिवार का।


निशांत की ट्रेनिंग भी शुरू हो चुकी थी। चर्चाओं के दौरान वह अपनी ट्रेनिंग की बातें साझा किया करता था। संन्यासी शिवम, निशांत से टेलीपैथी के माध्यम से बात किया करता था। दोनो रात के २ घंटे और सुबह के २ घंटे योग और मंत्र अभ्यास करते थे। वहीं बातों के दौरान, संन्यासी शिवम द्वारा आर्यमणि को दी गयि किताब के बारे में निशांत ने पूछ लिया। किताब के विषय में चर्चा करते हुए आर्यमणि काफी खुश नजर आ रहा था। यहां तक कि उसने यह भी स्वीकार किया कि उस पुस्तक का जबसे वह अनुसरण किया है, फिर प्रहरी एक साइड लाइन स्टोरी हो गयि और वह किताब मुख्य धारा में चली आयि।


अब इतना रायता फैलाने के बाद कोई पुस्तक के कारण शांत बैठ जाए, फिर तो उस पुस्तक के बारे में जानने की जिज्ञासा बढ़ जाती है। निशांत ने भी जिज्ञासावश पूछ लिया और फिर तो उसके बाद जैसे आर्यमणि किसी ख्यालों की गहराई में खो गया हो...


"वह किताब नही है निशांत, जीवन जीने का तरीका है। हमारे पुरातन सभ्यता की सबसे बड़ी पूंजी। हमारे दुनिया में होने का अर्थ। बाजार में बहुत से योग और अध्यात्म की पुस्तक मिलती है लेकिन एक भी पुस्तक संन्यासी शिवम की दी हुई पुस्तक के समतुल्य नही।"


आर्यमणि की भावना सुनकर निशांत हंसते हुये कह भी दिया.… "मुझे संन्यासियों ने मंत्र शक्ति दिखाकर अपने ओर खींच लिया और तुझे उस पुस्तक के जरिए"… निशांत की बात सुनकर आर्यमणि हंसने लगा। रोज की तरह ही दोनो दोस्त बात करते हुये रूही और अलबेली से मिलने ट्रेनिंग पॉइंट तक जा रहे थे। आज दोनो को पहुंचने में शायद देर हो चुकी थी। वहां चित्रा, अलबेली के साथ बैठी थी और दोनो आपसी बातचीत के मध्य में थे... "अपने पैक के मुखिया को गर्व महसूस करवाना तो हमारा एकमात्र लक्ष्य होता है। उसमे भी जब एक अल्फा आर्य भईया जैसा हो। जिस दिन हम सतपुरा से यहां पहुंचे थे, उसी दिन हमे बस्ती से निकाल दिया गया था।".... अलबेली, चित्रा के किसी सवाल का जवाब दे रही थी शायद।


आर्यमणि:- क्या कही..


अलबेली:- हम परेशान नहीं करना चाहते थे आपको।


आर्यमणि:- मै जानता था ऐसा कुछ होने वाला है। चिंता मत करो तुम्हे तुम्हारे घर ले जाने आया हूं, लेकिन वादा करो वहां तुम कुछ गड़बड़ नहीं करोगी, वरना हम सबके लिये मुश्किलें में बढ़ जाएगी। रूही कहां है..


अलबेली:– अपनी टेंपररी ब्वॉयफ्रेंड के साथ घूमने... हिहिहिहि...


चित्रा:– अब मुझे ही चिढ़ाने लगी...


अलबेली, अपने दोनो कान पकड़कर, मासूम सा चेहरा बनाती... "सॉरी दीदी"..


निशांत:– तुम दोनो कब आयि चित्रा..


चित्रा:– आज सोची की हम चारो मिलकर कहीं धमाल करते है। इसलिए तुम दोनो को लेने यहीं चली आयि।


आर्यमणि:– ठीक है फिर जैसा तुम कहो। मैं जरा रूही और अलबेली के घर की समस्या का समाधान कर दूं, फिर वहीं से निकल चलेंगे.…


सहमति होते ही आर्यमणि ने एक धीमा संकेत दिया जिसे सुनकर रूही, माधव के साथ वापस आयी। …. "चित्रा, माधव को बहुत डारा कर रखी हो यार, एक किस्स कही देने तो लड़का 2 फिट दूर खड़ा हो गया।"….


चित्रा, माधव को आंख दिखती….. "क्या है, कहीं खुद को उसका सच का बॉयफ्रेंड तो नहीं समझ रहे थे माधव। दाल में जरूर कुछ काला है इसलिए रूही कह रही है। जरूर तुमने किस्स करने की कोशिश की होगी।


माधव:- इ तो हद हो गई। रूही ने सब साफ़ साफ़ कह दिया फिर भी तुम हमसे ही मज़े लेने पर तुल जाओ चित्रा। बेकार मे इतना सुनने से तो अच्छा था एक झन्नाटेदार चुम्मा ले ही लेते।


"तुमलोग एक मिनट जरा शांत रहो।"… कहते हुए आर्य ने कॉल उठाया… "हां दीदी"….. उधर से जो भी बात हुई हो… "ठीक है दीदी, आता हूं मै।"..


"चलो वापस। तुम दोनो (रूही और अलबेली) भी आओ मेरे साथ।"… सभी कार से निकल गये। रास्ते में आर्यमणि ने रूही और अलबेली को एक फ्लैट में ड्रॉप करते हुए कहने लगा… "फिलहाल तुम दोनो यहां एडजस्ट करो। कोई स्थाई पता ढूंढ़ता हूं। जरूरत का लगभग समान है। रूही, अलबेली का ख्याल रखना। अभी अनुभव कम है और यहां आसपास लोगो को कटने या चोट लगने से खून निकलते रहता है।"..


रूही:- अलबेली के साथ-साथ मुझे भी कंट्रोल करना होगा। फिलहाल तो हम लेथारिया वुलपिना से काम चला लेंगे।


आर्यमणि:- यहां शिकारियों का पूरा जाल बसता है रूही। एक छोटी सी गलती पूरे पैक को मुसीबत में डाल देगी, बस ये ख्याल रखना।


अलबेली:- भईया हमे ट्विन वोल्फ वाले जंगल का इलाका दे दो। वहीं कॉटेज बनाकर रह लेंगे।


आर्यमणि:- हम्मम ! मै देखता हूं क्या कर सकता हूं, फिलहाल यहां एडजस्ट करो। और ये कुछ पैसे रखो, काम आयेंगे।


आर्यमणि उन्हें समझाकर 20 हजार रूपए दिया और वहां से निकल गया। निशांत, माधव और चित्रा को लेकर अपनी मासी के घर चला आया। घर के अंदर कदम रखते ही, माणिक और मुक्ता से परिचय करवाते हुए सभी कहने लगे… "यही है आर्य।" माहोल थोड़ा तड़कता भड़कता था और यहां सरप्राइज इंजेगमेंट देखने को मिल रहा था। माणिक का रिश्ता पलक की बड़ी बहन नम्रता से और मुक्ता का रिश्ता पलक के बड़े भाई राजदीप से होने का रहा था।


आर्यमणि सबको नमस्ते करते हुए अपने साथ आये माधव का परिचय भी सबसे करवाने लगा। आर्यमणि पीछे जाकर आराम से बैठ गया। थोड़ी ही देर बाद नम्रता और राजदीप, अपने-अपने जीवन साथी को अंगूठी पहना रहे थे और 2 महीने बाद नाशिक से इन दोनो की शादी।


पूरे रिश्तेदारों का जमावड़ा था। वो लोग भी २ घंटे बाद शुरू होने वाले पार्टी का इंतजार कर रहे थे। आर्यमणि लगभग भिड़ से दूर था और अकेले बैठकर कुछ सोच रहा था।… "क्या बात है आर्यमणि, तेरे और पलक के बीच में कोई झगड़ा हुआ है क्या, तू तो इसे देख भी नहीं रहा।"… भूमि सबके बीच से आवाज़ लगाती हुई कहने लगी।


नम्रता:- मेरा लगन मेरे पूरे खानदान ने बैठकर तय किया है। मुश्किल से मै घंटा भर भी नहीं मिली होऊंगी, लेकिन जितना उसे जाना है, अब तो घरवाले ये लगन कैंसल भी कर दे तो भी मै आर्य से ही लगन करूंगी।..


प्रहरी मीटिंग में पलक द्वारा कही गई बात जो नम्रता ने तंज कसते कहा। जैसे ही नम्रता का डायलॉग खत्म हुआ पूरे घरवाले जोड़ से हंसने लगे। पलक सबसे नजरे चुराती अपनी मां अक्षरा के पास बैठ गई। अक्षरा उसके सर पर हाथ फेरती… "राजदीप फिर उस लड़के का क्या हुआ जिससे ये मिलने उस दिन सुबह निकली थी।"..


जया:- इन दोनों के बीच में कोई लड़का भी है?


मीनाक्षी:- लव ट्राइंगल।


वैदेही:- ट्राइंगल नहीं है लव स्क्वेयर है। एक शनिवार कि सुबह तो आर्य भी किसी के साथ डेट पर निकला था।


पलक:- हां समझ गयि की आप लोगो को भूमि दीदी या राजदीप दादा ने सब कुछ बता दिया है।


अक्षरा:- मतलब तुम्हारी अरेंज मैरेज नहीं हुई?


पलक:- कंप्लीट अरेंज मैरिज है। कुछ महीने पहले मुझे दादा (राजदीप) ने कहा था दोनो परिवार के रिश्ते मजबूत करने के लिए आर्य को मै इस घर का जमाई बनाऊंगा। जिस लड़के से लगन होना है, उसी से मिल रही थी। पहले तो यही कहते ना एक दूसरे से मिलकर एक दूसरे को जान लो, सो हमने जान लिया।


नम्रता:- बहुत स्यानी है ये दादा।


जया:- स्यानि नहीं समझदार है। जब पता है कि दोनो ओर से एक ही कोशिश हो रही है, तो किसी और से मिलने नहीं गयि, किसी और को देखने नहीं गयि, बल्कि उसी को जानने गयि, जिसके साथ लोग उसका लगन करवाना चाह रहे थे।


अक्षरा:- काही ही असो, दोन्ही कुटुंब एकत्र आले (जो भी हो दोनो परिवार को एक साथ ले आयी)


जहां लोग होंगे वहां महफिल भी होगी। लेकिन इस महफिल में 2 लोग बिल्कुल ही ख़ामोश थे। एक थी भूमि और दूसरा आर्यमणि। शायद दोनो के दिमाग में इस वक़्त कुछ बात चल रही थी और दोनो एक दूसरे से बात करना भी चाह रहे थे, लेकिन भिड़ की वजह से मौका नहीं मिल रहा था।


तभी भूमि कहने लगी… "आप लोग बातें करो मै डॉक्टर के पास से होकर आती हूं। चल आर्य।"..


जया:- वो क्या करेगा जाकर, मै चलती हूं।


भूमि:- माझी भोळी मासी, बस रूटीन चेकअप है। आप अपनी बहू के साथ बैठो, और दोनो बहने बस बहू की होकर रह जाना।


मीनाक्षी:- जा डॉक्टर को दिखा कर आ, अपना खून मत जला। वैसे भी हीमोग्लोबिन कम है तेरा।


भूमि:- हाव, फिक्र मत करो आपका ब्लड ग्रुप मैच नहीं करता मुझसे। अच्छा मै छाया (पर्सनल असिस्टेंट) से मिलती हुई आऊंगी, इसलिए थोड़ी देर हो जायेगी।


भूमि अपनी बात कहकर निकल गई। दोनो कार में बैठकर चलने लगे। घर से थोड़ी दूर जैसे ही कार आगे बढ़ी….. "मुसीबत आती नहीं है उसे हम खुद निमंत्रण देते है।"


आर्यमणि:- पलक की सारी गलती मेरी है और मै उसे ठीक करके दूंगा। (सतपुरा जंगल कांड जहां पलक, भूमि की पूरी टीम को लेकर गयि थी)


भूमि:- हाहाहाहा… हां मुझे तुमसे यही उम्मीद है आर्य। वैसे पलक की ग़लती तो तू नहीं ही सुधरेगा, हां लेकिन अपने लक्ष्य के ओर जरूर बढ़ेगा.…


आर्यमणि:- कैसे समझ लेती हो मेरे बारे मे इतना कुछ..


भूमि:- क्योंकि जब तू इस दुनिया मे पहली बार आया था, तब तुझे वहां घेरे बहुत से लोग खड़े थे। लेकिन पहली बार अपने नन्ही सी उंगलियों से तूने मेरी उंगली थामी थी। बच्चा है तू मेरा, और इसी मोह ने कभी ख्याल ही नहीं आने दिया कि मेरा अपना कोई बच्चा नहीं। तुझे ना समझूं...


आर्यमणि:- हम्मम !!! जानती हो दीदी जब मै यहां आने के बारे सोचता हूं तो खुद मे हंसी आ जाती है। मैं केवल एक सवाल का जवाब लेने आया था। ऐसा फंसा की वो सवाल ही याद नहीं रहता और दुनिया भर पंगे हजार...


भूमि:- हाहाहाहाहा.. छोड़ जाने दे। बस तुझे मैं बता दूं... तू जब अपना मकसद साध चुका होगा, तब मै नागपुर प्रहरी समुदाय को अलग कर लूंगी। इनके साथ रहकर बीच के लोगो का पता करना मुश्किल है, लेकिन अलग होकर बहुत कुछ किया जा सकता है। चल बाकी बहुत कुछ आराम से तुझे सामझा दूंगी, अभी पहले कुछ और काम किया जाए..


आर्यमणि:- लेकिन दीदी आप उनके पीछे हो, जिसने ३० शिकारी को तो यूं साफ कर दिया। आप प्लीज उनके पीछे मत जाओ... मुझे बहुत चिंता हो रही है।


भूमि:– मैं अकेली कहां हूं। हमे जान लेना भी आता है और खुद की जान बचाना भी। तुझे पता हो की न हो लेकिन हम जिनका पता लगा रहे वो कोई आम इंसान नही। वो कोई वेयरवोल्फ भी नहीं लेकिन जो सरदार खान जैसे बीस्ट को पालते हो, उसे मामूली इंसान समझने की भूल नही कर सकती। इसलिए पूरे सुरक्षित रहकर खेल खेलते हैं। वैसे तेरे आने का मुझे बहुत फायदा हुआ है, सबका ध्यान बस तेरी ओर है।


आर्यमणि:– २ तरह की बात आप खुद ही बोलती हो। उस दिन की मंदिर वाली बात और आज की बात में कोई मेल ही नही है।


भूमि:– उस दिन गुस्से में थी। मुझे अपने २ सागिर्द के जाने का अफसोस हो रहा था। गुस्से में निकल गया।
शानदार जबरदस्त भाई लाजवाब update bhai
 

11 ster fan

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Apasyu has fans too.. :ecs:

Serious kaahe ho rahe men, aapne to dekha hi hoga ki 11 ster fan ne Reload ke dauran kitni gaali baki thi Jivisha aur Apasyu ko. Jaise aapko Bhanvar se prem hua,waise hi unko Ishq Risk se hua, isliye chill karne ka. Baaki tha to wo mazak hi.. :D

Btw. Is se yaad aaya, jab apun Ishq - Risk Reload padh raha tha to usko padhne mein mujhe 2 mahine lage. Shayad teen baar padhna chhod dun kahani ko aisa socha, par saala sapne mein bhi Nischal aane laga tha.. :D Aur Apasyu – Jivisha ko itni gaali di hogi maine mann mein jiski koyi seema nahi.. :D Kya gajab ki story thi wo, yaadein taaza ho gayi. :bow:. nain11ster
Apsyu hai hi nich aur galich...ye baat Naina madam se lekar har chhote bade reader jante hi hai Bhai...koi kuchh bhi kah le, kuchh bhi excuse de de ...lekin reload me Jo hua wo galat tha...
 

Chinturocky

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Madhav Bahut hi rochak kirdar hai, Jo sabhi alaukik kirdaron ke beech samanya manushya hokar bhi asadharan hai.
Magar bechare ko Bahut hi Jyada pareshan karte hai.
Abhi to kewal aarya, pita, maa jaya, bhoomi, nishant chitra, madhav, ruhi aur bulbul itane log hi kewal sachcha rishta nibha rahe hai, Baki to upar se pyar ander se waar.
 

11 ster fan

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:approve: shukar hai Aashram waale kaand ke baad kuchh ulta – seedha na hua,warna Nichal ke gam mein humen bhi rona padta...
Wo to hai hi... apasyu frame se gayab ho gaya to dil ko shukun Mila tha...waise Mera manana hai apasyu ki jagah aarav ko lead character ka mauka mile bhavar 2 me...
 

Death Kiñg

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Wo to hai hi... apasyu frame se gayab ho gaya to dil ko shukun Mila tha...waise Mera manana hai apasyu ki jagah aarav ko lead character ka mauka mile bhavar 2 me...
Copy to nain11ster

Waise tum the kaha reload ke samay..kahi silent reader to na the
Pichhle saal June mein maloom hua tha XF ke baare mein, tab tak wo story complete ho chuki thi.
 

andyking302

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भाग:–46






भूमि:– उस दिन गुस्से में थी। मुझे अपने २ सागिर्द के जाने का अफसोस हो रहा था। गुस्से में निकल गया।


आर्यमणि:– ना ना, अभी क्यों नही कहती उन सबके मौत का जिम्मेदार मैं ही हूं... लेकिन सतपुरा के जंगल में मेरी जान चली जाती उसकी कोई फिक्र नहीं...


भूमि:– मुझे सतपुरा मात्र एक यात्रा लगी। रीछ स्त्री किसी को इतनी आसानी से कैसे मिलेगी.. वो भी पता किसने लगाया था तो शुकेश भारद्वाज ने... मुझे उसपर रत्ती भर भी यकीन नही था।


आर्यमणि, आश्चर्य से... "क्या आपको मौसा जी पर यकीन नही"…


भूमि:– जैसे तुझे बड़ा यकीन था... अपना ये झूठा एक्सप्रेशन किसी और को दिखाना।


आर्यमणि:– अच्छा ऐसी बात है तो एक बात का जवाब दो, जब पलक ने टीम अनाउंस किया और आप भी जाने को इच्छुक थी, तब तो मुझे कुछ और बात ही लग रही थी..


भूमि:– क्या लगा तुझे?


आर्यमणि:– यही की आपकी पूरी टीम को जान बूझकर ले जा रहे हैं। उन्हे मारने की साजिश खुद आपके पिताजी बना रहे...


भूमि:– हां तुमने बिलकुल सही अंदाजा लगाया था।


आर्यमणि:– इसका मतलब आप भी शहिद होना चाहती थी।


भूमि:– जिस वक्त मंदिर में तुम दोनो ने मुझे शांत किया ठीक उसी वक्त मैं सारी बातों को कनेक्ट कर चुकी थी। एक पुरानी पापी नाम है "नित्या".. उसी का किया है सब कुछ। तुम्हारे दादा वर्धराज को उस वक्त बहुत वाह–वाही मिली थी, जब उन्होंने नित्या को बेनकाब किया था। एक पूर्व की प्रहरी, जो खुद विचित्र प्रकार की सुपरनैचुरल थी। नित्या जिसके बारे में पता करना था की वो किस प्रकार की सुपरनेचुरल है, वह प्रहरी के अड्डे से भाग गयि। उसे वेयरवोल्फ घोषित कर दिया गया और सबसे हास्यप्रद तो आगे आने वाला था। उसे भगाने का इल्ज़ाम भी तुम्हारे दादा जी पर लगा था।


आर्यमणि:– एक वुल्फ को भगाना क्या इतनी बड़ी बात होती है...


भूमि:– प्रायः मौकों पर तो कभी नही लेकिन जब कोई तथाकथित वेयरवोल्फ नित्या, किसी प्रहरी के अड्डे से एक पूरी टीम को खत्म करके निकली हो, तब बहुत बड़ी बात होती है।


आर्यमणि:– अतीत की इतनी बातें मुझसे छिपाई गई..


भूमि:– 8 साल की उम्र से जो लड़का जंगल में रहे और घर के अभिभावक की एक न सुने, उसके मुंह से ये सब सुनना सोभा नही देता मेरे लाल... तुझे दुनिया एक्सप्लोर करना है, लेकिन परिवार को नही जानना। तुम्हे स्वार्थी कह दूं गलत होगा क्या, जिसे अपनी मां का इतिहास पता नही। जया कुलकर्णी जब प्रहरी में शिकारी हुआ करती थी तब क्या बला थी और कैसे एक द्वंद में उसने सामने से सरदार खान और उसके गुर्गों को अपनी जूती पर ले आयि थी।


आर्यमणि, छोटा सा मुंह बनाते.… "शौली (solly), माफ कर दो...


भूमि:– तेरा अभिनय मैं खूब जानती हूं। अभी भी दिमाग बस उसी सवाल पर अटका है, कि क्यों मैं सतपुरा के जंगल साथ जाना चाहती थी? ऊपर से बस ऐसे भोली सूरत बना रहे...


आर्यमणि:– गिल्ट फील मत करवाओ... मैं जानता हूं कि तुम भड़ास निकालने के लिए मुझे लेकर आयि हो, इसलिए सवाल के जवाब में सीधा इतिहास से शुरू कर दी...


भूमि:– मैं सतपुरा जाना चाहती थी क्योंकि किसी की शक्ति रावण के समतुल्य क्यों न हो, हम उनसे भी अपनी और अपनी टीम की जान बचा सकते हैं। मिल गया तेरा जवाब...


आर्यमणि:– क्या सच में ऐसा है?


भूमि:– यकीन करने के अलावा कोई विकल्प है क्या? यदि फिर भी तुझे इस सत्य को सत्यापित ही करना है तब जया मासी से पूछ लेना...


आर्यमणि:– अच्छा सुनो दीदी मुंह मत फुलाओ, मैं दिल से माफी मांगता हूं। दरअसल जब भी मैं दादा जी के बारे में सुनता हूं, और प्रहरी जिस प्रकार से आज भी उन्हें बेजजत करते हैं, मेरा खून खौल जाता है। इसलिए मैं किसी भी उस अतीत को नही जानना चाहता जिसकी कहानी में कहीं न कहीं वही जिक्र हो... "कैसे वर्धराज कुलकर्णी को बेज्जत किया गया।


भूमि:– शायद प्रेगनेंसी की वजह से मूड स्विंग ज्यादा हो रहा। जया मासी ने तेरे २१वे जन्मदिवस पर सब कुछ बताने के फैसला किया था, और मैं तुझे उस वक्त के लिए कोस रही थी, जब हम तुम्हे बताते भी नही...


आर्यमणि:– छोड़ो जाने दो... आप कुछ अतीत की बातें कर रही थी, वो पूरी करो..


भूमि:– तुम्हारे दादा जी जया मासी के पथप्रदर्शक रहे थे। उन्होंने ही जया मासी को एक भस्म बनाना सिखाया था। टारगेट को देखकर वह भस्म बस हवा में उड़ा दो। सामने वाला कुछ देर के लिए भ्रमित हो जाता है।…


आर्यमणि:– अच्छा एक सिद्ध किया हुआ ट्रिक। तुम्हे क्या लगता है, रावण जैसा ब्रह्म ज्ञानी इस भ्रम में फंस सकता है...


भूमि:– तो मैं कौन सा राम हुई जा रही। बस मुंह से निकल गया... दूसरे तो यकीन कर लिये इसपर..


आर्यमणि:– लोग इतने भी मूर्ख होते हैं आज पता चला। भगवान श्री राम इसलिए कहलाए क्योंकि उन्होंने रावण को मारा था। बस इस एक बात से रावण की शक्ति की व्याख्या की जा सकती है।


भूमि:– चल छोड़.. ये बता की इस ट्रिक से मैं नित्या से बच सकती थी या नही...


आर्यमणि:– मैंने उसे नही देखा इसलिए कह नही सकता.. इस ट्रिक से आप अपने दुश्मन को एक बार चौंका जरूर सकती हो, लेकिन इस से जान नही बचेगी। इसलिए कहता हूं दूर रहो प्रहरी से।


भूमि:– केवल एक भस्म ही थोड़े ना है...


आर्यमणि:– और क्या है?


भूमि:– दिमाग..


आर्यमणि:– हां वो भी देख लिया। भस्म से रावण को भरमाने का जो स्त्री दम रखे, उसके दिमाग पर तो मुझे बिल्कुल भी शक करना ही नही चाहिए...


भूमि:– मजाक मत बना... अच्छा तू बता सबसे अच्छी तकनीक क्या है?


आर्यमणि:– बिलकुल खामोश रहे। छिप कर रहे। खुद को कमजोर और डरा हुआ साबित करो। दुश्मनों की पहचान और उसकी पूरी ताकत का पता लगाती रहो। और मैं इतिहास के सबसे बड़े हथियार का वर्णन कर देता हूं। होलिका भी उस आग में जल गयि थी जिसे वह अपने काबू में समझती थी... क्या समझी...


भूमि:– क्या बात है, मेरे साथ रहकर तेरा दिमाग भी बिलकुल शार्प हो गया है।


आर्यमणि:– हां कुछ तो आपकी सोभत का असर है।


दोनो बात करते चले जा रहे थे। भूमि कार को एक छोटे से घर के पास रोकती… "आओ मेरे साथ।"..


भूमि अपने साथ उसे उस घर के अंदर ले आयी। चाभी से उस घर को खोलती अंदर घुसी। आर्यमणि जैसे ही वहां घुसा, आंख मूंदकर अपनी श्वांस अंदर खींचने लगा… भूमि उसे अपने साथ घर के नीचे बने तहखाने में ले आयी। जैसे ही नीचे पहुंचे… एक लड़का और एक लड़की भूमि के ओर दौड़कर आये, दोनो भूमि के गाल मुंह चूमते… "आई बहुत भूख लगी है कुछ खाने को दो ना।"..


भूमि, दोनो को ढेर सारे चिकन मटन देती हुई आर्य को ऊपर ले आयी… "हम्मम ! किस सोच में डूब गये आर्य।"..


आर्यमणि:- 2 टीन वुल्फ..


भूमि:- नहीं, 2 जुड़वा टीन वुल्फ..


आर्यमणि:- जो भी हो, ये आपको आई क्यों पुकार रहे है।


भूमि:- केवल दूध नहीं पिलाया है, बाकी जब ये 2 महीने के थे, तबसे पाल रही हूं। तू रूही और अलबेली को बुला ले यहां।


आर्यमणि ने रूही को सन्देश भेजने के बाद… "दीदी कुछ समझाओगी मुझे।"..


भूमि:- ये सुकेश भारद्वाज यानी के मेरा बाबा के बच्चे है।


कानो में तानपूरा जैसे बजने लगे हो। चारो ओर दिमाग झन्नाने वाली ऐसी ध्वनि जो दिमाग को पागल कर दे। आर्यमणि लड़खड़ाकर पास पड़े कुर्सी पर बैठ गया। आश्चर्य भरी घूरती नज़रों से भूमि को देखते हुए…. "मासी को इस बारे में पता है।"….


भूमि:- "शायद हां, और शायद उन्हे कोई आपत्ती भी नहीं। प्रहरी के बहुत से राज बहुत से लोगो को पता है, लेकिन किसी को भी प्रहरी के सीक्रेट ग्रुप के बारे में नही पता, जिसके मुखिया सुकेश भारद्वाज है। बड़ी सी महफिल में सुकेश, उज्जवल, अक्षरा और मीनाक्षी का नंगा नाच होता है। उसकी महफिल में और कौन–कौन होता है पता न लगा पायि। लेकिन हर महीने एक बड़ी महफिल सरदार खान महल में ही सजती है, और ये सभी बूढ़े तुझे 25–26 वर्ष से ज्यादा के नही दिखेंगे। इंसानों को जिंदा नोचकर खाना, सरदार खान के खून को अपने नब्ज में चढ़ाना इस महफिल का सबसे बड़ा आकर्षण होता है।"

"जिन-जिन को इस राज पता चला वो मारे गये और जिन्हे इनके राज के बारे में भनक लगी उन्हें प्रहरी से निकालकर कहीं दूर भेज दिया गया। सरदार खान को सह कोई और नहीं बल्कि भारद्वाज खानदान दे रहा है। फेहरीन, रूही की मां एक अल्फा हीलर थी। विश्व में अपनी जैसी इकलौती और वो २०० साल पुराने विशाल बरगद के पेड़ तक को हील कर सकती थी। उसके पास बहुत से राज थे। लेकिन मरने से कुछ समय पूर्व इन्हे। मेरे कदमों में फेंक कर इतना ही कही थी… "मै तो मरने ही वाली हूं, तुम चाहो तो अपने सौतेले भाई-बहन को मार सकती हो या बचा सकती हो।"… कुछ और बातें हो पाती उससे पहले ही वहां आहट होने लगी और मै इन दोनों को लेकर चली आयी।"


"तो ये है प्रहरी का घिनौना रूप"…. इससे पहले कि रूही आगे कुछ और बोल पाती, आर्यमणि ने अपना हाथ रूही के ओर किया और वो अपनी जगह रुक गई।…


भूमि:- उसे बोलने दो आर्यमणि। मै यहां के झूट की ज़िंदगी से थक गई हूं। मुझे सुकून दे दो।


आर्यमणि:- हमे यहां लाने का मतलब..


भूमि:- तुम्हारी, रूही और अलबेली की जान खतरे में है। रूही और अलबेली के बाहर होने के कारण ही किले कि इतनी इंफॉर्मेशन बाहर आयी है। उन्हें अब तुम खतरा लगने लगे हो और तुम्हे मारने का फरमान जारी हो चुका है।


आर्यमणि:- किसने किया ये फरमान जारी।


भूमि:- प्रहरी के सिक्रेट बॉडी ने। पलक ने मीटिंग आम कर दी है इसलिए प्रहरी की सिक्रेट बॉडी उन 22 लोगो का सजा तय कर चुकी है, साथ में सरदार खान को मारकर उसकी शक्ति उसका बेटा लेगा, फने खान। ये भी तय हो चुका है ताकि पलक को हीरो दिखाया जा सके। इन सब कांड के बीच तुम लोगो को मारकर एक दूसरे की दुश्मनी दिखा देंगे।


आर्यमणि:- हम्मम ! कितना वक़्त है हमारे पास।


भूमि:- ज्यादा वक़्त नहीं है आर्यमणि। यूं समझ लो 2 महीने है। क्योंकि जिस दिन शादी के लिए हम नाशिक जाएंगे, सारा खेल रचा जायेगा।


आर्यमणि:- आप इन दोनों ट्विन के खाने में लेथारिया वुलपिना देती आ रही हो ना।


भूमि:- नहीं, कभी-कभी देती हूं। इनका इंसान पक्ष काफी स्ट्रॉन्ग है और दोनो के पास अद्भुत कंट्रोल है। बहुत बचाकर इन्हे रखना पड़ता है।


आर्यमणि:- हम्मम ! ठीक है.. कोई नहीं आज से ये मेरी जिम्मेदारी है दीदी। लेकिन एक बात बताओ क्या आप यहां जिंदा हो।


भूमि:- जब तक मर नहीं जाती इनके राज का पता लगाती रहूंगी, वरना मुझे लगभग मरा ही समझो। बात यहां उतनी भी सीधी नहीं है आर्य जितनी दिखती है। तुम्हे एक बात जानकर हैरानी होगी कि प्रहरी में 12 ऐसे लोग है जिन्हें आज तक छींक भी नहीं आयी। यानी कि कभी किसी प्रकार की बीमार नहीं हुई। मुझे तो ऐसा लग रहा है मै किसी जाल में हूं, गुत्थी सुलझने के बदले और उलझ ही जाती है।


तभी वहां धड़ाम से दरवाजा खुला, जया और केशव अंदर पहुंच गए… "भूमि तुमने सब बता दिया इसे।"…


आर्यमणि:- मां मै तो यहां एक सवाल का जवाब ढूंढते हुए पहुंचा था अब तो ऐसा लग रहा है, ज़िन्दगी ही सवाल बन गई है।


केशव:- हाहाहाहा… ये तुम्हारे पैक है, रूही तो दिखने में काफी हॉट है।


जया, केशव को एक हाथ मारती…. "शर्म करो कुछ तो।"… "अरे बाबा माहौल तो थोड़ा हल्का कर लेने दो। बैठ जाओ तुम सब आराम से।"..


जया, आर्यमणि का हाथ थामती हुई…. "तुम्हे पता है तुम्हारी मीनाक्षी मासी ने और उस अक्षरा ने तुम्हारी शादी कब तय कि थी, जब तुमने मैत्री के भाई शूहोत्र लोपचे को मारा था। पलक को बचपन से इसलिए तैयार ही किया गया है। उन सबको लगता है तुम्हारे दादा यानी वर्धराज कुलकर्णी ने तुम्हारे अंदर कुछ अलोकिक शक्ति निहित कर दिया। और यही वजह थी कि तुम इन सब की नजर मे शुरू से हो...


रूही:- कमाल की बात है, मै यहां मौजूद हर किसी के इमोशन को परख सकती हूं, लेकिन पलक कई बार कॉलेज में मेरे पास से गुजरी थी और उसके इमोशंस मै नहीं समझ पायि। बॉस ने मुझे जब ये बताया तब मुझे लगा मजाक है लेकिन वाकई में बॉस की बात सच थी।


जया:- ऐसे बहुत से राज दफन है यहां, जो मै 30 सालो से समझ नहीं पायि।


भूमि:- और मै 20 सालों से।


जया:- तुझे तो तभी समझ जाना चाहिए था जब हमने तुम्हे मीनाक्षी के घर नहीं रहने दिया था। मै, भूमि और केशव तो बहुत खुश थे की तुम बिना कॉन्टैक्ट के गायब हो गये। हमे सुकून था कि कम से कम तुम इस खतरनाक माहौल का हिस्सा नहीं बने। सच तो ये है भूमि ने तुम्हे कभी ढूंढने की कोशिश ही नहीं की वरना भूमि को तुम नहीं मिलते, ऐसा हो सकता है क्या?


केशव:- फिर तुम एक दिन अचानक आ गये। हम मजबूर थे तुम्हे नागपुर भेजने के लिये, इसलिए तुम्हे यहां भेजना पड़ा।


आर्यमणि:- पापा गंगटोक मे मेरे जंगल जाने पर जो कहते थे नागपुर भेज दूंगा। नागपुर भेज दूंगा… उसका क्या...


भूमि:- मौसा और मौसी की मजबूरी थी। यदि मेरी आई–बाबा को भनक लग जाती की हमे इनके पूरे समुदाय पर शक है, तो वो तुम्हे बस जिंदा छोड़ देते और बाकी हम सब मारे जाते। ये सब ताकत के भूखे इंसान है और तुम अपने जंगल के कारनामे के कारण हीरो थे। तुम्हे नहीं लगता कि एक पुलिस ऑफिसर का बार-बार घूम फिर कर उसी जगह ट्रांसफर हो जाना, जहां तुम्हारे मम्मी पापा है, एक सोची समझी नीति होगी। जी हां राकेश नाईक मेरे आई-बाबा के आंख और कान है।


आर्यमणि:- और कितने लोगो को पता है ये बात।


भूमि:- हम तीनो के अलावा कुछ है करीबी जो इस बात की जानकारी रखते है और सीक्रेटली काम करते है।


जया, अपने बेटे के सर पर हाथ फेरती उसके माथे को चूमती…. "जनता है तुझमें सब कुछ बहुत अच्छा है बस एक ही कमी है। तुम एक काम में इतने फोकस हो जाते हो की तुम्हे उस काम के अलावा कुछ दिखता ही नहीं। मै ये नहीं कहती की ये गलत है, लेकिन तुम जिस जगह पर अपने सवाल के जवाब ढूंढ़ने आये वो एक व्यूह हैं। एक ऐसी रचना जहां राज पता करने आओगे तो अपने सवाल भूलकर यहां की चक्की में पीस जाओगे। चल मुझे तू ये मत बता की तू कौन सा सवाल का जवाब ढूंढ़ने आया था। बस ये बता दे कि तुम्हे उन सवाल के जवाब मिले कि नहीं। या ये बता दे कि कितने दिन में मिल जाएंगे


आर्यमणि:- ऐसा कोई तूफान वाले सवाल नही थे। मुझे बस मेरी जिज्ञासा ने खींचा था। मैं तो सवाल के बारे में ही भूल चुका हूं। रोज नई पहेली का पता चलता है और रोज नई कहानी सामने आती है। ऐसा लग रहा है मै पागल हो जाऊंगा।


केशव:- तुम जिस सवाल के जवाब के लिये आये और यहां आकर जो नये सवालों के उलझन में किया है, वैसे इन प्रहरी के इतिहास में पहले कभी नही हुआ। मै बता दू, तुमने कुछ महीने में यहां सबको अपना दुश्मन बना लिया। हां एक काम अच्छा किए जो हमे भूमि के पास पहुंचा दिया। हमे इससे ज्यादा चिंता किसी कि नहीं थी, और तुम्हारी तो बिल्कुल भी नहीं..


जया:- मेरी एक बात मानेगा..


आर्यमणि:- क्या मां?


जया:- यें तेरा पैक है ना..


आर्यमणि:- हां मां..


जया:- अपने पैक को लेकर नई जगह जा, कुछ साल सवालों को भुल जा। क्योंकि जब तू सवालों को भूलेगा तब जिंदगी तुझे उन सवालों के जवाब रोज मर्रा के अनुभव से हिंट करेगी। खुलकर जीना सीखा, जिंदगी को थोड़ा कैजुअली ले। फिर देख काम के साथ जीवन में भी आनंद आएगा।


आर्यमणि:- हम्मम ! शायद आप सही कहती हो मां।


जया:- और एक बात मेरे लाल, तेरे रायते को हम यहां साथ मिलकर संभाल लेंगे, तू हमारी चिंता तो बिल्कुल भी मत करना।


भूमि:- अब कुछ काम की बात। जाने से पहले तुम वो अनंत कीर्ति की पुस्तक अपने साथ लिए जाना। एक बार वो खोल लिए तो समझो यहां के बहुत सारे राज खुल जाएंगे। दूसरा यदि जाने से पहले तुम सरदार खान की शक्तियों को उसके शरीर से अलग करते चले गए तो नागपुर समझो साफ़ हो जाएगा। खैर इस पर तो तुम्हारा खुद भी फोकस है। एक बार सरदार साफ फिर हम यहां अपने कारनामे कर सकते है। तीसरी सबसे जरूरी बात, बीस्ट अल्फा मे सरदार खान सबसे बड़ा बीस्ट है। हो सकता है कि तुम उसे पहले भी मात दे चुके होगे लेकिन इस भूल से मत जाना कि इस बार भी मात दे दोगे। पहली बात उसके अंदर कुछ भी भोंक नही सकते और दूसरी सबसे जरूरी बात, उसके पीछे बहुत बड़ा दिमाग है। बस एक बात ख्याल रहे उसे मारने के चक्कर में तुम मरना मत और यदि कामयाब होते हो तो ये समझ लेना सीक्रेट प्रहरी समुदाय तुम्हारे पीछे पड़ गया, और वो तुम्हे जमीन के किसी भी कोने से ढूंढ निकालेंगे।


जया:- चल अब हंस दे और जिंदगी को जी। अपने पैक के साथ रह। रूही, तुम सब एक पैक हो, ख्याल रखना एक दूसरे का। और कहीं भी ये जाए, इसको बोलना कोई भी काम वक़्त लेकर करे, ऐसा ना हो वहां भी नागपुर जैसा हाल कर दे। 3-4 एक्शन में तो फिल्म का क्लाइमेक्स आ जाता है, और इसने तो कुछ महीने में केवल और केवल एक्शन करके रायता फैला दिया।


रूही:- आप सब जाओ… हम सब निकलने कि तैयारी करते है। आर्यमणि मै इन सबको लेकर ट्विंस के जंगल में मिलूंगी।


आर्यमणि, भूमि के साथ चला। पहले डॉक्टर, फिर छाया और वापस सीधा अपने घर। आर्यमणि को बड़ा आश्चर्य हुआ जब घर आकर उसने भूमि को देखा। अपनी माता पिता से बिल्कुल सामान्य रूप से मिल रही थी। वो साफ समझ पा रहा था कि क्या छलावा है और क्या हकीकत।


आर्यमणि अपने माता-पिता और अपनी मौसेरी बहन के अभिनय को देखकर अंदर ही अंदर नमन किया और वो भी सामान्य रूप से, बिना किसी बदलाव के सबसे बातें करता रहा। कुछ ही देर बाद पार्टी शुरू हो गई थी। उस पार्टी में आर्यमणि शिरकत करते एक ही बात नोटिस की, यहां बहुत से ऐसे लोग थे जिनकी भावना वो मेहसूस नहीं कर सकता था।
शानदार जबरदस्त लाजवाब update bhai jann
 

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भाग:–48






उसे ऐसा मेहसूस होता मानो किसी परिवार को मारकर उसके कुछ लोग को रोज मरने के लिए किसी कसाई की गली छोड़ आये हो। रूही और अलबेली मे आर्यमणि के गुजरे वक्त की कड़वी यादें दिखने लगती। हां लेकिन उन कड़वी यादों पर मरहम लगाने के लिए चित्रा, निशांत और माधव थे। उनके बीच पलक भी होती थी और कुछ तो लगाव आर्यमणि का पलक के साथ भी था।


माधव और पलक के जाने के बाद, चित्रा और निशांत, दोनो ही आर्यमणि के साथ घंटो बैठकर बातें करते। हां अब लेकिन दोनो भाई बहन मे उतनी ही लड़ाइयां भी होने लगी थी, जिसका नतीजा एक दिन देखने को भी मिल गया। चित्रा की मां निलांजना बैठकर निशांत को धुतकारती हुयि कहने लगी, "तेरे लक्षण ठीक होते तो प्रहरी से एकाध लड़की के रिश्ते तो आ ही गये होते"… चित्रा मजे लेती हुई कहने लगी… "मां, कल फिर कॉलेज मै सैंडिल खाया था। वो तो माधव ने बचा लिया वरना वीडियो वायरल होनी पक्का था।"


निशांत भी चिढ़ते हुए कह दिया... "बेटी ने क्या किया जो एक भी रिश्ता नहीं आया"…


आर्यमणि:- हो गया... चित्रा को इसकी क्यों फिकर हो, क्यों चित्रा। उसके लिए लड़कों कि कमी है क्या?


निलांजना:- बिल्कुल सही कहा आर्य... बस एक यही गधा है, ना लड़की पटी ना ही कोई रिश्ता आया...


निशांत:- मै तो हीरो हूं लड़कियां लाइन लगाये रहती है..


चित्रा:- साथ में ये भी कह दे चप्पल, जूते और थप्पड़ों के साथ...


निशांत:- चल चल चुड़ैल, इस हीरो के लिए कोई हेरोइन है, तेरी तरह किसी हड्डी को तो नहीं चुन सकता ना। सला अस्थिपंजार मेरा होने वाला जीजा है। सोचकर ही बदन कांप जाता है...


निशांत ने जैसे ही कहा, आर्यमणि के मुंह पर हाथ। किसी तरह हंसी रोकने की कोशिश। माधव को चित्रा के घर में कौन नहीं जानता था। चित्रा की मां अवाक.. तभी निशांत के गाल पर पहला जोरदार तमाचा... "कुत्ता तू भाई नहीं हो सकता"… और चित्रा गायब होकर सीधा अपने कमरे मे।


पहले थप्पड़ का असर खत्म भी ना हुआ हो शायद इसी बीच दूसरा और तीसरा थप्पड़ भी पड़ गया... "भाई ऐसे होते है क्या? कोई तुम्हारी बहन को लाइन मार रहा था और तू कुछ ना कर पाया। छी, दूर हो जा नज़रों से नालायक"… माता जी भी थप्पड़ लगाकर गायब हो गयि।


निशांत अपने दोनो गाल पर हाथ रखे... "बाप का थप्पड़ उधार रह गया, वो ऑफिस से आकर लगायेगा"…


आर्यमणि, उसके सर पर एक हाथ मारते... "तुझे अस्तिपंजर नहीं कहना चाहिए था। चित्रा लड़ लेगी अपने प्यार के लिए लेकिन जो दूसरे उसके बारे में विचार रखते है, वैसे विचार तेरे हुये तो वो टूट जायेगी। जा उसके पास, तू चित्रा को संभाल, मै आंटी को समझाता हूं।


आंटी तो एक बार मे समझी, जब आर्यमणि ने यह कह दिया कि निशांत पहले भी मजाक मे कई बार ऐसा कह चुका है। लेकिन चित्रा को मानाने मे वक्त लगा। बड़ी मुश्किल से वह समझ पायि की माधव उसका सब कुछ हो सकता है, लेकिन निशांत और उसके बीच दोस्ती का रिश्ता है और दोस्त के लिए ऐसे कॉमेंट आम है।


खैर, ये मामला तो उसी वक्त थम गया लेकिन अगले दिन कॉलेज में माधव, चित्रा और पूरे ग्रुप से से कटा-कटा सा था। सबने जब घेरकर पूछा तब बेचारा आंसू बहाते हुये कहने लगा... "अब चित्रा से वो उसी दिन मिलेगा जब उसके पास अच्छी नौकरी होगी।" काफी जिद किया गया। चित्रा ने कई इमोशनल ड्रामे किए, गुस्सा, प्यार हर तरह की तरकीब एक घंटे तक आजमाने के बाद वो मुंह खोला...


"बाबूजी भोरे-भोरे आये और कुत्ते कि तरह पीटकर घर लौट गये। कहते गए अगली बार किसी लड़की के गार्डियन का कॉल आया तो घर पर खेती करवाएंगे"…. उफ्फफफ बेचारे के छलकते आंसू और उसका बेरहम बाप की दास्तां सुनकर सब लोटपोट होकर हंसते रहे। चित्रा ऐसा सब पर भड़की की एक महीने तक अपने प्रेमी और खुद की शक्ल किसी को नहीं दिखाई। वो अलग बात थी कि सभी ढिट अपनी शक्ल लेकर उन्हे दिखाते ही रहते और चिढाना तो कभी बंद ही हुआ ही नहीं।


आर्यमणि के लिए खुशियों का मौसम चल रहा था। सुबह कि शुरवात अपने नये परिवार अपने पैक के साथ। दिन से लेकर शाम तक उन दोस्तों के बीच जिनकी गाली भी बिल्कुल मिश्री घोले। जिन्होंने आज तक कभी आर्यमणि को किसी अलौकिक या ताकतवर के रूप में देखा ही नहीं... अपनों के बीच भावना और देखने का नजरिया कैसे बदल सकता था। और दिन का आखरी प्रहर, यानी नींद आने तक, वो अपने मम्मी पापा और भूमि दीदी के साथ रहता। उन तीनो के साथ वो अपने भांजे से घंटों बात करता था...


एक-एक दिन करके 2 महीने कब नजदीक आये पता भी नहीं चला। इन 2 महीने मे पलक और आर्यमणि की भावनाएं भी काफी करीब आ चुकी थी। राजदीप और नम्रता की शादी के कुछ दिन रह गए थे। पलक शादी के लेकर काफी उत्साहित थी और चहक रही थी। आर्यमणि उसके गोद में सर डालकर लेटा था और पलक उसके बाल मे हाथ फेर रही थी...


पलक:- ये रानी तुमसे खफा है..


आर्यमणि:- क्या हो गया मेरी रानी को..


पलक:- हुंह !!! तुम तो पुस्तक को भूल ही गये... कब हमने तय किया था। उसके बाद तो उसपर एक छोटी सी चर्चा भी नहीं हुयि। तुम कहीं अपना वादा भूल तो नहीं गये...


आर्यमणि:- तुम घर जाओ..


पलक, आर्यमणि के होठ को अंगूठे ने दबाकर खींचती... "गुस्सा हां.. राजा को अपनी रानी पर गुस्सा।


आर्यमणि:- सब कुछ मंजूर लेकिन जिसे मुझ पर भरोसा नहीं वो मेरे साथ ही क्यूं है। और वो मेरी रानी तो बिल्कुल भी नहीं हो सकती...


पलक:- मतलब..


आर्यमणि:- मतलब मै सुकेश मौसा को पूरी विधि बताकर फुर्सत। बाहर निकलकर कोई रानी ढूंढू लूंगा जो अपने राजा पर भरोसा करे..


पलक जोड़ से आर्यमणि का गला दबाती... "दूसरी रानी... हां.. बोलते क्यों नहीं... दूसरी रानी... ।


आर्यमणि, पलक के गोद से उठकर... "तुम दूसरी हमारे बीच नहीं चाहती तो अपने राजा मे विश्वास रखो।


पलक आर्यमणि की आंखों मे देखती... "हां मुझे भरोसा है"…


आर्यमणि, पलक के आंखों में झांकते, उसके नरम मुलायम होंठ को अपने अपने होंठ तले दबाकर चूमने लगा। पलक अपनी मध्यम चलती श्वांस को गहराई तक खींचती, इस उन्मोदक चुम्बन के एहसास की अपने अंदर समाने लगी।…


"तुम्हे किसी बात की चिंता नहीं होनी चाहिए। कल राजदीप दादा और नम्रता दीदी की शादी से पहले का कोई फंक्शन होना है ना। सब लोग जब पार्टी मे होंगे तब हम वहां से निकलेंगे और अनंत कीर्ति कि उस पुस्तक को खोलने की मुहिम शुरू करेंगे। अब मेरी रानी खुश है।"…


आर्यमणि की बात सुनकर पलक चहकती हुई उस से लिपट गई। पलक, आर्यमणि के गाल पर अपने दांत के निशान बनाती... "बहुत खुश मेरे राजा.. इतनी खुश की बता नहीं सकती। इधर राजदीप दादा और नम्रता दीदी की शादी और उसी रात मैं पूरे मेहमानों के बीच ये खुशखबरी सबको दूंगी"…


पलक की उत्सुकता को देखकर आर्यमणि भी हंसने लगा। अगले दिन सुबह के ट्रेनिंग के बाद आर्यमणि ने पैक को आराम करने के लिए कह दिया। केवल आराम और कोई ट्रेनिंग नहीं। उनसे मिलने के बाद वो सीधा चित्रा और निशांत के पास चला आया। रोज के तरह आज भी किसी बात को लेकर दोनों भाई बहन मे जंग छिड़ी हुई थी।


खैर, ये तो कहानी रोज-रोज की ही थी। रिजल्ट को लेकर ही दोनो भाई बहन मे बहस छिड़ी हुई थी। बहस भी केवल इस बात की, आर्यमणि से कम सब्जेक्ट मे निशांत के बैक लगे है। इस वर्ष का भी टॉपर बिहार के लल्लन टॉप मेधावी छात्र माधव ही था और उस बेचारे को पार्टी के नाम पर निशांत और आर्यमणि ने लूट लिया।


ऐसा लूटा की बेचारे को बिल देते वक्त पैसे कमती पड़ गये। बिल काउंटर पर माधव खड़ा, हसरत भरी नजरों से सबके हंसते चेहरे को देख रहा था। हां लेकिन थोड़ा ईगो वाला लड़का था, अपनी लवर से कैसे पैसे मांग लेता, इसलिए बेचारा झिझकते हुये आर्यमणि के पास 4 बार मंडरा गया लेकिन पैसे मांगने की हिम्मत नहीं हुई...


चित्रा, माधव के हाथ खींचकर उसे अपने पास बैठायी... "कितना बिल हुआ है"…


माधव:- हम दे रहे है, तुम क्यों परेशान होती हो..


निशांत:- मत ले माधव, अपनी गर्लफ्रेंड से पैसे कभी मत ले.. वरना तुम्हे बाबूजी क्या कहेंगे.. नालायक, नकारा, निकम्मा, होने वाली बहू से पैसे कैसे ले लिये"..


माधव:- देखो निशांत..


चित्रा, माधव का कॉलर खींचती... "तुम देखो माधव इधर, उनकी बातों पर ध्यान मत दो। जाओ पैसे दो और इस बार जब बाबूजी कुछ बोले तो साफ कह देना... ई पैसा दहेज का है जो किस्तों में लिये है"


आर्यमणि:- बेचारा माधव उसके दहेज के 11000 रुपए तो तुम लोगों ने उड़ा दिये...


सभी थोड़े अजीब नज़रों से आर्यमणि को देखते... "दहेज के पैसे"


आर्यमणि:- हां माधव की माय और बाबूजी को एक ललकी बुलेट और 10 लाख दहेज चाहिए। बेचारा माधव अभी से अपने शादी मे लेने वाले दहेज के पैसे जोड़ रहा है.. सच्चा आशिक़..


बेचारा माधव... "हमको साला आना ही नहीं चाहिए था यहां। कोनो दूसरा होता ना ऐसा गाली उसको देते की क्या ही कह दू, लेडीज है इसलिए चुप हूं आर्य। चित्रा पैसे दे देना हम बाद में मिलते है।"… बेचारा झुंझलाकर अपनी फटी इज्जत बचाते भगा। हां वो अलग बात थी कि उसके जाते ही चित्रा भर पेट निशांत और आर्यमणि से झगड़े की।


शाम के वक्त, एक छोटे से पार्टी का माहौल चल रहा था। सभी लोग पार्टी का लुफ्त उठा रहे थे। आर्यमणि भूमि का हाथ पकड़े उस से बातें कर रहा था। उफ्फफफ क्या अदा से वहां पलक पहुंची, और सबके बीच से आर्यमणि का हाथ थामते… "कुछ देर मेरे पास भी रहने दीजिए, कई-कई दिन अपनी शक्ल नहीं दिखता।"…


मीनाक्षी:- जा ले जा मुझे क्या करना। ये तो आज कल हमे भी शक्ल नहीं दिखाता…


जया:- मेरा भी वही हाल है...


भूमि:- आपण सर्व वेडे आहात का? आर्यमणि, पलक तुम दोनो जाओ।…


भूमि सबको आंखें दिखाती दोनो को जाने के लिये बोल दी। दोनो कुछ देर तक उस पार्टी मे नजर आये, उसके बाद चुपके से बाहर निकल गये... "आर्य, कार तैयार है।"


आर्यमणि:- मेरे पास भी कार है.. और मै जानता हूं कि हम क्या करने जा रहे है। चले अब मेरी रानी...


पलक को लेकर आर्यमणि अपनी मासी के घर चला आया। जैसा कि पहले से अंदाज़ था। आर्यमणि ऐड़ा बना रहा और पलक दिखाने के लिए सारी सिक्योरिटी ब्रिज को तोड़ चुकी थी। जैसे ही पुस्तक उसके हाथ लगी, आर्यमणि उसे गेरुआ वस्त्र में लपेटकर अपने बैग में रख लिया। पलक उसके बैग को देखकर कहने लगी… "मेरी सौत है ये तुम्हारी बैग, हर पल तुम्हारे साथ रहती है।"..


आर्यमणि:- ठीक है आज रात तुम मेरे साथ रहना।


पलक, अपनी आखें चढाती… "और कहां"


आर्यमणि:- तुम्हारे कमरे में, और कहां?


पलक:- सच ही कहा था निशांत ने, तुम्हे यूएस की हवा लगी है। ये भारत है, शादी फिक्स होने पर नहीं शादी के बाद एक कमरे में रहने की अनुमति मिलती है।


आर्यमणि:- अच्छा, और यदि मै चोरी से पहुंच गया तो?


पलक:- अब मै अपने राजा को बाहर तो नहीं ही रख सकती..


आर्यमणि, कार स्टार्ट करते… "थैंक्स"..


पलक:- तुम ये पुस्तक किसी सेफ जगह नहीं रखोगे।


आर्यमणि:- मेरे बैग से ज्यादा सेफ कौन सी जगह होगी, जो हमेशा मेरे पास रहती है।


पलक:- और किसी ने कार ही चोरी कर ली तो।


आर्यमणि:- यहां का स्पेशल नंबर प्लेट देख रही हो, हर चोर को पता है कि ये भूमि देसाई की कार है। किसे अपनी चमरी उधेरवानी है। इसलिए कोई डर नहीं। वैसे भी कार में जीपीएस लगा है 2 मिनट में गाड़ी बंद और चोर हाथ में।


पलक:- जी सर समझ गयि। अनुष्ठान कब शुरू करोगे?


आर्यमणि:- कल चलेंगे किसी पंडित के पास एक ग्रह की स्तिथि जान लूं, बिल्कुल उसी समय में शुरू करूंगा और दूसरे ग्रह की स्तिथि पर कार्य संपन्न। भूमि दीदी का घर खाली है, वहीं करूंगा पुरा अनुष्ठान।


पलक, आर्यमणि के गाल चूमती… "तुम बेस्ट हो आर्य।"


आर्यमणि:- बिना तुम्हारे मेरे बेस्ट होने का कोई मतलब नहीं।


आर्यमणि वापस लौटकर पार्टी में आया। जैसे ही दोनो पार्टी में पहुंचे एक बड़ा सा अनाउंसमेंट हो रहा था। जहां स्टेज पर दोनो कपल, राजदीप-मुक्त, नम्रता-माणिक, पहले से थे वहीं आर्यमणि और पलक को भी बुलाया जा रहा था।


दोनो एक साथ पहुंचे। हर कोई देखकर बस यही कह रहा था, दोनो एक दूसरे के लिये ही बने है। वहीं उनके ऐसे कॉमेंट सुनकर माधव धीमे से चित्रा के कान में कहने लगा…. "हमको कोर्ट मैरिज ही करना पड़ेगा, वरना हमे देखकर लोग कहेंगे, ब्लैक एंड व्हाइट का जमाना लौट आया।"


चित्रा:- बोलने वालों का काम होता है बोलना माधव, तुम्हारे साथ मै खुश रहती हूं, वहीं बहुत है।


माधव:- वैसे देखा जाए तो टेक्निकली दोनो की जोड़ी गलत है।


चित्रा, माधव के ओर मुड़कर उसे घूरती हुई… "कैसे?"..


माधव:- दोनो एक जैसा स्वभाव रखते है, बिल्कुल शांत और गंभीर। इमोशन घंटा दिखाएंगे। आर्य कहेगा, मूड रोमांटिक है। और देख लेना इसी टोन में कहेगा। तब पलक कहेगी.. हम्मम। दोनो खुद से ही अपने कपड़े उतार लेंगे और सब कुछ होने के बाद कहेंगे.. आई लव यू।


चित्रा सुनकर ही हंस हंस कर पागल हो गयि। पास में निशांत खड़ा था वो भी हंसते हुये उसे एक चपेट लगा दिया… "पागल कहीं का।" उधर से आर्यमणि भी इन्हीं तीनों को देख रहा था, आर्यमणि चित्रा की हंसी सुनकर वहीं इशारे में पूछने लगा क्या हुआ? चित्रा उसका चेहरा देखकर और भी जोड़ से हंसती हुई इधर से "कुछ नहीं" का इशारा करने लगी।


आर्यमणि जैसे ही उस मंच से नीचे उतरा पलक के कान में रात को उसके कमरे में आने वाली बात फिर से दोहराते हुये, उसे तबतक लोगो से मिलने के लिये बोल दिया और खुद इन तीनों के टेबल पर बैठ गया…


चित्रा:- बड़े अच्छे लग रहे थे तुम दोनो..


आर्यमणि:- हम्मम ! थैंक्स..


चित्रा, निशांत और माधव तीनो कुछ ना कुछ खा रहे थे। आर्यमणि का "हम्मम ! थैंक्स" बोलना और तीनो की हंसी छूट गई। अचानक से हंसी के कारण मुंह का निवाला बाहर निकल आया। आर्यमणि उन्हें देखकर… "मैने ऐसा क्या जोक कर दिया।"..


तभी चित्रा ने उसे माधव की कहानी बता दी, उनकी बात सुनकर आर्यमणि भी हंसते हुए कहने लगा… "हड्डी ने आकलन तो सही किया है।"


निशांत:- डिस्को चलें।


आर्यमणि:- नाह डिस्को नही। कहीं बैठकर बातें करते है। आज अच्छी चिल बियर मरेंगे, और कहीं दूर पहाड़ पर बैठकर बातें करेंगे। लौटकर वापस आएंगे हम तीनो साथ में रुकेंगे और फिर देर रात तक बातें होंगी। मेरा अगले 2-4 दिन का तो यही शेड्यूल है।


माधव:- चलो तुम तीनों दोस्त रीयूनियन करो, मै चलता हूं।


आर्यमणि:- हड्डी चित्रा के घर लेट नाइट तुझे तो नहीं लें जा सकते, उसके लिए इससे शादी करनी होगी। लेकिन तुम भी हमारे साथ पहाड़ पर बियर पीने चल रहे।


चित्रा:- हां ये चलेगा। अच्छा सुन पलक को भी बोल देती हूं।


आर्यमणि:- नहीं, उसे रहने दो अभी। उसके भाई और बहन की शादी है। 2 हफ्ते बाद शादी है उसे वहां की प्लांनिंग करने दो, मै सबको बता कर आया, फिर चलते है।


7.30 बजे के करीब चारो निकल गए। पूरा एक आइस बॉक्स के साथ बियर की केन खरीद ली। माधव के डिमांड पर एक विस्की की बॉटल भी खरीदा गया, वो भी चित्रा के जानकारी के बगैर।


आर्यमणि सबको लेकर सीधा वुल्फ ट्रेनिंग एरिया के जंगलों में पहुंचा। चारो ढेर सारी बातें कर रहे थे। चित्रा और निशांत के लिए नई बात नहीं थी लेकिन माधव को कहना पड़ गया… "पहली बार आर्य तुम्हे इतने बातें करते सुन रहा हूं।"..


आर्यमणि:- कुछ ही लोग तो है जिनसे बातें कर लेता हूं, लेकिन अब ये आदत बिल्कुल बदलने वाली है, क्योंकि लाइफ को थोड़ा कैजुअली भी जीना चाहिए।"..


सब एक साथ हूटिंग करने लगे। रात के 11:00 बजे सभी वहां से निकल गये। माधव को उसके हॉस्टल ड्रॉप करने के बाद तीनों फिर निशांत के कमरे में इकट्ठा हो गये। निलांजना भी वहां आकर उनके बीच बैठती हुई पूछने लगी… "तीनों कितनी बीयर मार कर आये हो?"


आर्यमणि:- भूख लगी है आंटी आपके कंजूस पति सो गए हो तो छोले भटूरे खिलाओ ना।


निलांजना:- रात के 11:30 बजे छोलें भटूरे, चुप चाप सो जाओ सुबह खिलाती हूं। नाश्ता करके यहीं से कॉलेज निकल जाना। अभी सब्जी रोटी है वो लगवा देती हूं।


निलांजना वहां से चली गयि और उसके रूम में सब्जी रोटी लगवा दी। तीनों खाना खाने के बाद आराम से बिस्तर पर बैठ गए और मूवी का लुफ्त उठाने लगे। आधे घंटे बाद चित्रा दोनो को गुड नाईट बोलकर अपने कमरे में आ गयि। इधर निशांत और आर्यमणि आराम से बैठकर मूवी देखते रहे। तकरीबन 12:45 तक वहां का माहौल पुरा शांत हो चुका था।


आर्यमणि अपने ऊपर नकाब डाला और घूमकर पीछे से वो पलक के दरवाजे तक पहुंच गया। पलक जैसे ही पार्टी से लौटी आराम से बिस्तर पर जाकर गिर गई। 2 बार खिड़की पर नॉक करने के बाद भी जब पलक खिड़की पर नहीं आयी, आर्यमणि ने उसे कॉल लगाया।


6 बार पूरे रिंग जाने के बाद पलक की आंख खुली और आधी जागी आधी सोई सी हालत में… "हेल्लो कौन"


आर्यमणि:- खिड़की पर आओ, पूरी नींद खुल जायेगी।


पलक:- गुड नाईट, सो जाओ सुबह मिलती हूं।


आर्यमणि:- तुम अपनी खिड़की पर आओ मै तुम्हारे कमरे के पीछे हूं।


पलक हड़बड़ा कर अपनी आखें खोली और फोन रखकर खिड़की पर पहुंची… "मुझे लगा आज शाम मज़ाक कर रहे थे।"..


आर्यमणि:- हम्मम ! ठीक है सो जाओ।


पलक:- पहले अंदर आओ.. ऐसे रूठने की जरूरत नहीं है।


पलक पीछला दरवाजा खोली और आर्यमणि कमरे के अंदर। आते ही वो बिस्तर पर बैठ गया। … "अब ऐसे तो नहीं करो। पार्टी में बहुत थकी गयि थी, आंख लग गयि। आये हो तो कम से कम बात तो करो।"..
Iss pure update me bahut hi khalipan mahusoos hua...jaise bahut kuchh chhupakar bas mastiya dikahi ja rhi ho...
Maut sar par tandav karne wali hai aur ye haddi, jija, party Karne me lage hai...in 2 mahino me Kya hua ye janana hai mujhe , means inside story...ye Bahar ki bate to bas ullu banane ke liye tha...ab aisa to hai nhi ki 7 din me hone wale khoon kharabe ke liye ye jante hi nhi hai, aur ye apni chal chali na ho...waise agar sardar Khan ko kahi se suchana leak Kar de ki usse marakar uske bete fanne Khan ko takat di jayegi ,to Maja hi aa Jaye...news me aayega ki dekha aapne kaise yaha rev party chalati thi aur unka murder ho gaya ...tab to sardar vs prahari ho jayega😂😂..
I am sad for palak ,uss bechari ki acting aisi ki kahi movie banaye to 500 cr Kama le , lekin Jo sab janta ho uske liye to ye hai ki iske 150 rs Kat overacting ke...
Waise mujhe lag rha hai ki ye 7 din wale anushthan nhi hai ye 7 din shajish ke hone wale hai...waise Ghar bahut sahi chuna gaya hai bhumi Desai ka Ghar..
Mast jhol hoga ..bas problem ye hai ki palak and sukesh party ye nhi janti ki udhar se sabko sab pata hai ...agar palak and party bhi ye jaan Jaye ki aarya and party bhi sab janti hai to ek alag hi level ki bakchodi ho jayegi hai ....waise sawami bhi in 2 mahino me samane nhi aaya...kuchh to chhupaya ja rha daya.....
 
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