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Incest कैसे कैसे परिवार

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prkin

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prkin

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bas abhi kuch der mein update karta hoon.
thoda bacha hai.
Likh raha hoon.
 

prkin

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अध्याय ४७


दृश्य ५: सुजाता:


“ये निश्चित है न कि तुम्हें कोई आपत्ति नहीं है?” अविरल ने सुजाता के सिर पर हाथ घुमाते हुए पूछा.

सुजाता जो इस समय सूजी डार्लिंग की भूमिका में थी उसने अपना सिर उठाया और अविरल ले पैरों के अंगूठे को अपने मुंह से निकालते हुए स्वीकृति में सिर हिलाया.

“सूजी डार्लिंग, देखो तुम्हें मिलने कौन आया है?” अविरल ने बोला।

सूजी डार्लिंग ने सिर उठाकर देखा और स्नेहा और विवेक को देखकर उसकी आँखों में चमक आ गई.

“सूजी डार्लिंग, मैंने तुम्हें ऐसा करने के लिए नहीं कहा. चलो, मेरे पैर साफ करो. और फिर लौटकर आना तो मेरे लंड पर भी कुछ गंदगी लगी है, उसे भी तुम्हें ही निकालना है.”

सूजी डार्लिंग की आँखों की चमक लौट आई और वो अपने कार्य में लग गई.

“सूजी डार्लिंग, यू आर बीइंग ए गुड गर्ल.”

सूजी डार्लिंग उसकी बात सुनकर विवेक के लंड को चाटने में जुट गई.

*************

अविरल ने सुजाता को ये समझाया था कि उसे अगर अपने इस व्यसन को पोषित करना है तो उसे परिवार से छुपाना ठीक नहीं होगा. अगर परिवारजन उसकी इस विकृति को स्वीकार कर लेंगे तो उसका जीवन बिना किसी संकोच के अपने दोनों व्यक्तित्वों में सामंजस्य बनाने में सफल हो सकेगा. अन्यथा उस पर एक तनाव सदा बना रहेगा. जब श्रेया उसके इस रूप को जान चुकी है तो विवेक और स्नेहा से छुपाना हानिकारक सिद्ध हो सकता है. सुजाता को अपने पति का तर्क उचित जान पड़ा और आज वो अपने बच्चों के आगे भी दासी की भूमिका निभा रही थी.

ये अवश्य अचरज का विषय था कि स्नेहा और विवेक ने इसे इतनी शीघ्रता और सरलता से स्वीकार कर लिया था. परन्तु अभी तो इस व्यक्तित्व को पूर्ण रूप से अनावृत भी नहीं किया गया था. इसीलिए आगे के कुछ मिनट निर्णायक होने वाले थे. अविरल ने निश्चित किया था कि वो सूजी के तिरस्कार सहन करने की सीमा को चुनौती देकर देखेगा कि वो किस स्तर तक जा सकती है. इन कुछ दिनों में ही सुजाता के रहन सहन और व्यवहार में आमूलचूल परिवर्तन आया था. पर अपने बच्चों के सामने वो स्वयं को कितना गिरा पायेगी ये देखना शेष था.

सूजी डार्लिंग पूरी तन्मयता से विवेक के तलवे और पैरों को चाट कर चमकाने के बाद स्नेहा की ओर मुड़ी और वही प्रक्रिया में जुट गई.

अविरल उसे देखकर सोच रहा था कि वो हमला कब करे?

“सूजी डार्लिंग, मेरी चूत और गाँड भी भीतर से गन्दे हैं. उन्हें भी तुम्हें ही साफ करना है. ठीक है न?” स्नेहा ने अपनी माँ को आज्ञा दी.

सूजी डार्लिंग ने सिर हिलाकर स्वीकृति दी और पैरों को चाटती रही. कुछ समय बाद जब उसे लगा कि कार्य सम्पन्न हो गया है तो घुटनों पर बैठकर स्नेहा के सामने झुक गई. स्नेहा समझ गई और उसने नीचे उतरकर घोड़ी लिया.

“ठीक से चाटना, सूजी डार्लिंग। मुझे मेरे पापा और भाई चोदने वाले हैं. उन्हें बिलकुल चिकने चिकने छेद मिलने चाहिए. अगर अच्छा काम करोगी तो उनका माल तुम्हें खाने दूँगी। समझीं?”

सूजी डार्लिंग ने फिर से सिर हिलाकर स्वीकृति दी और स्नेहा के पीछे आ गई. अविरल ने घड़ी देखी और निश्चय किया कि इस कृत्य के बाद वो अपना वार करेगा.

“सूजी डार्लिंग, आप समुदाय के लड़कों से उनकी ट्रेनिंग में यही करवाती थीं न? अपनी चूत और गाँड़ की चटाई? अब मेरी चाटो!” स्नेहा ने झिड़कते हुए कहा तो सुजाता को अपने पूर्व कर्मों पर पछतावा हुआ. सूजी डार्लिंग स्नेहा की चूत को चाटने के बाद उसकी गाँड़ में जीभ डाल डाल कर उसे गीला कर रही थी. चाहे जो भी हो स्नेहा थी तो उसकी बेटी ही. अब पिता या भाई उसकी गाँड मारने वाले थे तो माँ का कर्तव्य था कि उनकी राह सुगम करे जिससे बेटी को कष्ट न हो.

अभी वो अपने कार्य को सम्पन्न करके हटने ही वाली थी कि अविरल का कर्कश स्वर गूँज उठा.

“इतना बहुत है, सूजी. पर तुम्हें ये करने के पहले इसे पहनने के लिए आदेश दिया था न?” अविरल के हाथ में एक कुत्ते को बाँधने वाला पट्टा था जिसमें चेन भी लगी थी.

सूजी डार्लिंग ने झटके से अविरल को देखा. ऐसी कोई बात नहीं हुई थी. अविरल झूठ बोल रहा था. अविरल के हाथ में पट्टा और चेहरे पर एक मुस्कान थी. अचानक सूजी डार्लिंग को रहस्य समझ आ गया. उसका पति उसकी परीक्षा ले रहा था. क्या वो उसके झूठ पर प्रतिउत्तर देगी या चुपचाप अपने दासी स्वरूप में उसे स्वीकारेगी. उसके मन और मस्तिष्क में कुछ पलों के लिए एक द्वन्द चला. पर अंततः चुनाव कर लिया.

घुटनों पर रेंगते हुए वो अविरल के सामने गई और उसके पैरों के अँगूठे चाटे।

“क्षमा करें स्वामी. दासी आपकी आज्ञा भूल गई थी. इसके लिए आप जो भी दण्ड देना चाहें दीजिये.”

“हाँ दण्ड तो अवश्य मिलना चाहिए. पर उसके पहले मुझे बाथरूम जाना है. तुम समझती हो न सूजी डार्लिंग इसका क्या अर्थ है और इसमें तुम्हारी क्या भूमिका है?

सूजी डार्लिंग अब कुछ घबराई. वो अपने बच्चों को अपना अत्यंत घ्रणित और विकृत रूप नहीं दिखाना चाहती थी. मन मस्तिष्क फिर लड़ने लगे.

“जी स्वामी. मैं आपके पीछे आती हूँ.”

“स्नेहा और विवेक, आओ तुम भी. देखो अपनी सूजी डार्लिंग क्या करती है.”

अविरल ने पट्टा यही वहीँ छोड़ दिया. उसके पीछे सूजी डार्लिंग और स्नेहा और विवेक उन दोनों के पीछे हो लिए. बाथरूम में जाकर अविरल खड़ा हो गया. उसका लंड असामान्य रूप से तना हुआ था. सूजी डार्लिंग उसके सामने खड़ी हो गई. विरल ने लंड उसके मुंह में डाला.

“चूस!”

स्नेहा और विवेक नहीं आया कि लंड चुसवाने के लिए उसके पिता यहाँ क्यों आये. और इसका कारण उन्हें चार मिनट बाद स्पष्ट हो गया.

“ओह शिट!” स्नेहा और विवेक के मुंह से निकला. कारण स्पष्ट था. उनके पिता ने उनकी माँ के मुँह में मूत्र त्याग करना आरम्भ कर दिया. और अचम्भा ये था कि उनकी माँ भी उसे बड़े प्रेम से पिए जा रही थीं. थोड़ा मूत्रपान करने के बाद सूजी डार्लिंग ने मुँह थोड़ा बंद किया और अपने चेहरे को सामने कर दिया। अविरल ने उनके चेहरे को धोया और फिर उनके स्तनों पर अंतिम बौझार कर दी.

“सूजी डार्लिंग को मेरा मूत्र बहुत स्वादिष्ट और पौष्टिक लगता है. दिन में तीन बार तो पी ही लेती है. सूजी डार्लिंग अपना मुँह खोलकर इन दोनों को दिखाओ.”

सूजी डार्लिंग ने इतना तिरस्कार कभी नहीं झेला था. आज उनसे दो बच्चों के सामने उसके ही पति ने उसकी अपमान किया था. उसने अपना मुँह खोलकर दोनों को दिखाया.

“और कुछ भी करती हो न?” अविरल ने उलाहना दी.

सूजी डार्लिंग ने अपने चेहरे और वक्ष पर लगे मूत्र को मलना आरम्भ किया.

“ये केवल सूजी डार्लिंग और मेरे बीच का खेल है. इसमें किसी और के जुड़ने का कभी भी कोईभी अवसर नहीं आएगा. न मेरे कहने से सूजी डार्लिंग ऐसा करेगी, न सूजी डार्लिंग की इच्छा से ही ऐसा हो सकेगा. ये हमारे बीच का विशिष्ट खेल है. तुम्हें आज मात्र इसीलिए दिखाया है जिससे कि तुम अपनी माँ की इस कुंठा से अवगत हो जाओ.”

“जी, पापा.” दोनों बोले.

“सुजाता, अब उठो और स्नान करने के बाद कमरे में लौट आओ. कुछ ड्रिंक्स के बाद तुम फिर से सूजी डार्लिंग का रूप लोगी और हम तीनों की सेवा करोगी.”

“ओके. ओह! मेरे बच्चों. तुमको ये सब देखना पड़ा.”

स्नेहा: “इट्स ओके मॉम, वी लव यू.”

अविरल, स्नेहा और विवेक सुजाता को छोड़कर बाहर आये और ड्रिंक बनाने लगे. सुजाता अंदर स्नान करने लगी और दस मिनट के बाद बाहर आई तो उसके चेहरे की कान्ति ही भिन्न थी. अविरल के पास बैठते ही विवेक ने उसके हाथ में ग्लास थमा दिया. सुजाता दोनों बच्चों के भाव देखकर समझ गई कि वे सच जानने के लिए उत्सुक हैं. पर एक विकट समस्या थी. स्नेहा की अब तक मेहुल चुदाई नहीं कर सका था. इस सप्ताह का निर्धारित कार्यक्रम शेट्टी परिवार ने बिगाड़ दिया था. सुजाता ने एक गहरी श्वास भरी.

“मैं जानती हूँ कि तुम दोनों मेरे इस परिवर्तन के बारे में जानने के लिए उत्सुक हो. मैं भी तुम्हें इस विषय में बताऊँगी। परन्तु अभी मैं एक वचन से बँधी हूँ और उसे तोड़ नहीं सकती. पर जिस दिन वो वचन पूरा होगा, सम्भवतः अगले पाँच सात दिनों में, मैं तुम सबको इसका रहस्य बता दूँगी।”

विवेक और स्नेहा को निराशा हुई. फिर स्नेहा ने ही पूछा.

“पर मॉम, आप सूसू पी रहे हो, इस प्रकार से व्यवहार कर रहे हो, बहुत आश्चर्य हो रहा है.”

“मैं समझ सकती हूँ, पर मेरे मन में अवश्य ऐसी कोई ग्रंथि थी जिसके कारण मैं असंतुष्ट थी. जिस दिन से मेरा ये रूप मेरे सामने आया है, मेरा जीवन आनंद से भर गया है. तुम्हारे पापा का इसमें विशेष योगदान है.”

“विशेष योगदान? क्या कोई और भी है.”

तभी अविरल बोला, “सबका उत्तर देगी. उसे प्रताड़ित मत करो. विवेक, एक पेग और बनाओ. फिर आगे का कार्यक्रम करेंगे.”

सबके लिए पेग बने और पीने लगे. जैसे ही पेग समाप्त हुआ, अविरल ने कहा, “तो सूजी डार्लिंग, अब तुम्हें मेरी बेटी को चुदाई के लिए मेरे और मेरे बेटे के लिए......”

इससे पहले कि अविरल अपनी बात को पूरी करता सूजी डार्लिंग नीचे जा बैठी और अविरल के पैर चाटने लगी. उसके बाद उसने स्नेहा को देखा तो स्नेहा ने अपने पैरों को फैला लिया और सूजी डार्लिंग उसकी चूत चाटने में जुट गई. इस अवस्था में सूजी डार्लिंग की गाँड ऊपर उभरी हुई थी और विवेक का मन मचल गया. उसने अविरल को देखा तो अविरल ने उसे प्रतीक्षा करने का संकेत दिया. विवेक मन मसोस के रह गया.

उधर सूजी डार्लिंग ने अपनी जीभ को स्नेहा की गाँड खोलने के लिए उपयोग में लाया तो स्नेहा की सिसकारी निकल गई.

“बस इतना पर्याप्त है. सूजी डार्लिंग आओ मेरे लंड को चाटो।”

सूजी डार्लिंग लपक कर अविरल का लंड चाटने लगी. अविरल ने विवेक को अपने पास बुलाया.

“इसके लंड पर भी ध्यान दो. तुम्हारी बेटी की गाँड मारने वाला है.”

सूजी डार्लिंग विवेक के लंड की ओर मुड़ी तो विवेक का लंड स्नेहा की गाँड मारने की बात सुनकर कुछ अधिक ही कठोर हो गया. उसे भी इस खेल में आनंद मिल रहा था.

सूज़ी डार्लिंग ने लपककर अपने बेटे विवेक के लंड को मुँह में लिया और पूरे मन से चाटने लगी. वो उसे इतना कठोर और चिकना कर देना चाहती थी कि स्नेहा की गाँड में जाने के समय सरलता भी हो और भेदने में भाई बहन को आनंद भी मिले. स्नेहा को लेकर अविरल पलंग पर जा चुका था और लेट कर स्नेहा की प्रतीक्षा कर रहा था. स्नेहा उसके ऊपर चढ़ी और लंड को अपनी चूत पर रगड़ने लगी और फिर उसके ऊपर बैठ गई. धीमी गति से उसने अपने पिता के लंड को अपनी चूत की गहराइयों में समा लिया. दोनों के मुँह से एक संतोष की सिसकी निकली.

“मॉम बहुत चेंज हो गई न पापा? पर अब अधिक प्रसन्न रहती हैं. हमें भी व्यर्थ में सताना भी बंद कर चुकी हैं.”

“हाँ, अब देखना है समुदाय में उनका क्या स्थान बनता है. इस बार तो वो प्रबंधन समिति में भी चली ही जाएगी. स्मिता के हटने से इसका बनना तय है. इसके व्यवहार के कारण जो इससे द्वेष रखते थे उन्हें अपनी राय बदलने में समय लगेगा पर अब मुझे लगता है कि ये शीघ्र हो जायेगा.”

अब चूत में लंड हो और कोई इस प्रकार की बातों में व्यस्त हो ये तो अद्भुत ही है, पर ये स्थिति ही ऐसी थी.

“पर पापा, मॉम का ये सूसू पीना मुझे अच्छा नहीं लगा.”

“चिंता मत करो, इसीलिए मैंने उसे किसी भी और के साथ ये करने से बाधित किया है. मैं धीरे धीरे उसे इससे दूर करने का प्रयास करूँगा। अगर पूरा बंद नहीं भी किया तो उसे सीमित अवश्य कर दूँगा।”

“हम्म्म, पापा अब मेरी चूत खुजला रही है. आपका लंड फूलकर उसे तड़पा रहा है. अब चुदाई करें? विवेक जब आएगा तब देखेंगे.” ये कहकर वो लंड पर उछलने लगी और पिता पुत्री की चुदाई का आरम्भ हो गया.

अभी कुछ ही मिनट बीते होंगे कि स्नेहा की गाँड पर किसी का हाथ रुका. स्नेहा रुक गई और पीछे मुड़ी तो देखा कि विवेक अपना लंड लिए खड़ा था. फिर उसे अपनी गाँड में कुछ अंदर जाता हुआ अनुभव हुआ.

“ओह, सूज़ी डार्लिंग। चाटो मेरी गाँड।” उसने कहा तो सूज़ी डार्लिंग ने अपना परिश्रम और बढ़ा दिया. अपनी बेटी की गाँड को भलीभांति चिकना करके सूज़ी डार्लिंग हट गई और घुटनों पर बैठकर आगे होने वाली घटना की प्रतीक्षा करने लगी. इस समय उसकी चूत से भी झरना बह रहा था और गाँड में भयंकर खुजली हो रही थी. परन्तु वो किसी भी प्रकार से उन दोनों को छूने से भी बाधित थी.

विवेक ने अपने फनफनाते हुए लौड़े को स्नेहा की गाँड पर लगाया और धीरे से अंदर की ओर धकेलने लगा. स्नेहा ने अपनी श्वास रोकी हुई थी. नीचे से उसके पिता का लंड पहले ह उसकी चूत की शोभा बढ़ा चुका था. अब वो शान्ति से विवेक की प्रतीक्षा कर रहे थे. सूज़ी डार्लिंग घंटों पर बैठी थकने लगी थी. वो सामान्य आसन में बैठ गई और स्नेहा की गाँड में विवेक के लंड की यात्रा देखने लगी. ये दृश्य उसने पहले भी कई बार देखा था पर आज इसका आशय और प्रभाव भिन्न था. आज तक वो एक निर्देशक की भाँति गतिविधियों को चलाती थी, पर आज वो मात्र एक मूक दर्शक थी और अन्य सभी की आज्ञा पालन करने के लिए विवश. इस विचार ने उसके शरीर नई ऊर्जा और उत्तेजना भर दी थी. उसे आशा थी कि उसके पति उसके शरीर की आग को बुझाने आएँगे।

विवेक ने पूरे संयम का परिचय देते हुए अंततः स्नेहा की गाँड में अपना पूरा लंड स्थापित कर ही दिया. अचानक सूज़ी डार्लिंग को स्मिता और श्रेया की गाँड चुदाई का स्मरण हो आया, जब उसे बीच बीच में गाँड से निकले लंड को चाटने का आदेश थे. वो साहस करते हुए उन तीनों के पास आ गई. मात्र अपने मूक संकेत से ही उसने विवेक को अपनी इच्छा बताई. विवेक ने मुस्कुराते हुए अपनी स्वीकृति दे दी. अब सूज़ी डार्लिंग को प्रतीक्षा करनी थी.

जब पिता पुत्र ने दोनों छेदों में अपने खम्बे गाड़ दिए तो अगले चरण का आरम्भ किया गया. कुछ देर अविरल चूत में लंड चलाता फिर विवेक गाँड में. एक सधी गति से ये दुहरी चुदाई आगे चलने लगी. स्नेहा की सिसकारियों ने अब चीखों का रूप ले लिया था पर इसमें कष्ट नहीं आनंद का भाव अधिक था. कुछ धक्के मारने के बाद विवेक ने अविरल को बताया कि वो सूज़ी डार्लिंग से लंड साफ करवाना चाहता है. अविरल ने अपनी गति धीमी की और फिर विवेक ने अपना लंड स्नेहा की गाँड से निकाला. सूज़ी डार्लिंग तो मानो इसी पल के लिए जीवित थी. तीव्र गति से उसने विवेक के लंड को चाटना आरम्भ किया और कुछ ही पलों में उस पर लगे रस और अन्य अवशेषों को ग्रहण कर लिया. सूज़ी डार्लिंग यहाँ नहीं रुकी, उसने स्नेहा की खुली लपलपाती गाँड में मुंह लगाया और जीभ को अंदर डालकर उसे भी चाट लिया. फिर विवेक के लंड को अंदर प्रविष्ट करवा दिया.

“ओह! सूज़ी डार्लिंग, यू आर टू गुड!” स्नेहा ने कहा तो सूज़ी डार्लिंग का सीना फूल गया.

“यस, सूज़ी डार्लिंग, यू आर ए गुड स्लेव.” विवेक ने सूज़ी डार्लिंग के सर पर थपकी दी, “पर अब जाओ. कुछ देर में फिर आना.”

सूज़ी डार्लिंग गर्व से अपने स्थान पर लौट गई और चुदाई देखने लगी.

अब ये सिद्ध हो गया कि सूज़ी डार्लिंग इस कार्य के लिए चुदाई में विघ्न डाल सकती है तो उसकी अपनी उत्तेजना भी बढ़ गई. अब वो चुदना चाहती थी पर इसकी अभिव्यक्ति नहीं कर सकती थी. उसे अपने पति की दया पर ही निर्भर रहना था. सामने चुदाई का खेल चलता रहा. स्नेहा की चुदाई की गति अब तीव्र हो चली थी. सूज़ी डार्लिंग को लग रहा था कि इस समय व्यवधान डालना उचित है या नहीं.

तभी उसे स्नेहा की पुकार सुनाई दी, “सू ज़ी डा र्लिं ग, मेर्री गाँड!”

अब स्नेहा का इस कथन से क्या तात्पर्य था इसका चिंतन किये बिना ही सूज़ी डार्लिंग उसके पास जा पहुँची। विवेक ने देखा तो समझ गया और अविरल को बताया. चुदाई को विराम दिया गया और विवेक ने लंड को बाहर निकाला और अपनी माँ या कहें कि सूज़ी डार्लिंग के मुंह में दे दिया. सूज़ी डार्लिंग ने उसे पूरी श्रध्दा से चाटा और चमका दिया. फिर सूज़ी डार्लिंग ने अपनी बेटी की गाँड को फिर अंदर से अंदर तक चाटा। विवेक के लंड को मुँह में लेकर चूसने के बाद उसे स्नेहा की गाँड में डाला और इस बार वहीँ खड़ी रही.

सूज़ी डार्लिंग की आँखें अपने पति की ओर मुड़ीं तो अविरल उसे ही देख रहा था. अविरल ने अपना सिर हिलाकर उसे न का संकेत दिया. वो अब किसी प्रकार की रुकावट नहीं चाहता था. सूज़ी डार्लिंग ने भी उसके संकेत का प्रतिउत्तर दिया. और तभी स्नेहा की एक चीख निकली. ये अविरल का उसकी चूत में लंड को तेजी से पेल देने का परिणाम था. विवेक ने समझा कि स्नेहा ने पापा को कुछ बोला होगा तो उसने भी अपने लंड को उसी शक्ति से पेलना आरम्भ किया. अब पिता पुत्र दोनों तीव्र गति से स्नेहा की चूत और गाँड मारने में लग गए और स्नेहा की प्यासी माँ वहीं खड़ी उन्हें देखती रही.

सूज़ी डार्लिंग को ये बोध था कि उसे एक और कृत्य करना है जो अत्यंत घिनौना है. परिवार में उसका स्थान उसके बाद सदा के लिए परिवर्तित हो जायेगा. और जैसे जैसे चुदाई अपने चरम पर पहुंच रही थी वो समय निकटतर आ रहा था. सूज़ी डार्लिंग ने अपने गले में पड़े पट्टे को छुआ और अपने दासी होने की पुष्टि की. घ्रणित ही सही, वो इसके लिए अत्यंत उत्साहित थी. मानो उसकी कुंठा की अंतिम गाँठ खुलने के लिए लालायित थी.

अविरल और विवेक की साँसे फूल रही थीं तो वहीँ स्नेहा की चीखें मद्धम पड़ चुकी थीं. अविरल की जांघों पर बह रहे जल से स्नेहा की चूत की व्यथा कथा को समझा जा सकता था. वहीँ उसकी गाँड से निकलती फच फच की ध्वनि विवेक के लंड से निकलने वाले रस की कहानी सुना रही थी.

“ओह पापा, मैं गया. स्नेहा मैं गया! मॉम!” विवेक ने ये कहते हुए अपना पानी स्नेहा की गाँड में छोड़ा तो अविरल भी पीछे न रहा. एक शब्द कहे स्नेहा की कोख में पानी छोड़ दिया. तीनों गहरी सांसे लेते हुए शांत हो गए. सूज़ी डार्लिंग पुनः उत्तेजित हो गई. वो लालची दृष्टि से विवेक के स्नेहा की गाँड में समाये लंड को देख रही थी. जब तीनों की साँसे संभलीं तो विवेक ने अपना लंड बाहर निकाला. इससे पहले कि वो पूरा निकलता सूज़ी डार्लिंग की जीभ स्नेहा की गाँड के चारों और घूमने लगी. स्नेहा को गुदगुदी हुई और वो हंस पड़ी.

“सूज़ी डार्लिंग, गाँड से अब क्या भैया का पानी पियोगी?” ये कहने के समय उसे ये आभास नहीं था कि सूज़ी डार्लिंग के लिए यही आदेश था. सूज़ी डार्लिंग अपने आदेश का पालन करते हुए अपनी बेटी की गाँड से अपने बेटे के वीर्य को उसके साथ मिश्रित अन्य रसों के साथ पीने का भरसक प्रयास कर रही थी. समर्पण ही सफलता की सीढ़ी है, इसे सिद्ध करते हुए सूज़ी डार्लिंग ने स्नेहा की पूरी गाँड अच्छे से चाट चूस कर साफ कर दी. फिर विवेक के लंड को मुँह में लेकर चाटा। विवेक के हटने के बाद स्नेहा अपने पिता के ऊपर से हटी.

उसके हटने से सूज़ी डार्लिंग ने अविरल को देखा जिसने उसे सकारात्मक संकेत दिया. सूज़ी डार्लिंग के चेहरे पर मुस्कान आ गई. इस बार उसने अनगिनत बार किये हुए कार्य को फिर सम्पन्न किया और स्नेहा की चूत से अविरल का रस सोख लिया. अविरल के लंड पर वो अंत में आई और उसे लगभग पूजते हुए चाटकर साफ किया. अविरल ने उसके सिर पर प्रेम से हाथ घुमाया.

“सुजाता, जाओ. मुँह इत्यादि धोकर आ जाओ. आज के लिए सूज़ी डार्लिंग की भूमिका यहीं समाप्त होती है. विवेक अपनी माँ के गले से पट्टा निकाल दो.”

“पापा, मैं एक बार उन्हें इस पट्टे में घूमना चाहती हूँ.” स्नेहा ने हठ किया.

“नहीं, आज नहीं। इस प्रकार के खेल का एक महत्वपूर्ण नियम है. कब रुकना है ये निर्धारित होना ही चाहिए. जो तुम चाहती हो वो हम फिर किसी दिन कर सकते हैं. सूज़ी डार्लिंग कहीं जा नहीं रही थी. पर अब सुजाता का समय है.”

“ओके पापा. सॉरी मॉम.”

“मेरी बच्ची, कोई बात नहीं. तेरी इच्छा भी पूरी कर दूँगी.” सुजाता ने कहा और बाथरूम जाने लगी. फिर मुड़कर बोली, “आप दोनों देर मत करना मैं बहुत देर से चुदने के लिए तड़प रही हूँ.”

विवेक: “आप आओ तो मॉम. आपको कैसे मना करेंगे?”

सुजाता ये सुनकर प्रसन्नता से बाथरूम में चली गई. विवेक सबके लिए पेग बनाने लगा.

सुजाता जब बाथरूम से लौटी तो पिछली बार से अधिक प्रसन्न और खिली हुई लग रही थी. स्नेहा ने उसे अपने गले लगाया और अविरल के साथ बैठाया. विवेक ने उसे उसका ग्लास थमाया. ऐसा लग रहा था मानो सब उसकी सेवा करना चाह रहे थे.

“कैसा लग रहा है?” अविरल ने उसे अपनी ओर खींचते हुए पूछा.

“बहुत अच्छा. आप सही कह रहे थे. अब मेरे मन पर से एक बड़ा बोझ उतर गया. इन दोनों ने भी मेरी इस छाया को स्वीकार कर लिया है तो अब मुझे कोई डर नहीं रहा.” सुजाता ने कहा.

“हाँ, ये आवश्यक था. मैं देख रहा था कि तुम विचलित थीं और कुछ परामर्श के बाद यही निष्कर्ष निकला था कि कारण यही होगा कि तुम्हें इन दोनों की प्रतिक्रिया डर है. आज ये डर निराधार सिद्ध हो गया.”

“हाँ. अपने परामर्श किससे किया?”

“अपने मित्र और उसकी भाभी से.” अविरल ने कहा और आँख मारी. सुजाता समझ गई कि अविरल ने मेहुल और श्रेया से बात की थी. वो मेहुल के आभार तले दबी जा रही थी. और इस बात से उसे स्मरण हुआ कि श्रेया और उसका परिवार इस समय नायक परिवार के साथ उनके समुदाय के रिसोर्ट में हैं.

“श्रेया का कोई समाचार?” सुजाता ने पूछा.

“अधिक नहीं. स्थिति अनुकूल है. जो स्थान ठहरने के लिए दिया है, वो अतिश्रेष्ठ है. श्रेया चाहती है कि हम शीघ्र वहाँ पहुचें.” अविरल ने बताया.

“तो अपने क्या सोचा है?”

“कल शाम चल सकते हैं. कल कार्यालय जाना है, कुछ आवश्यक कार्य है और कुछ लोगों से मिलना भी है.”

“ठीक है, आप बता देना, मैं सब बैग लगा लूँगी।”

अविरल ने सुजाता के मम्मे दबाते हुए बोला, “वो कल देखेंगे. अब तुम्हें चोदने की बहुत इच्छा है. तो फटाफट एक और पेग मारो फिर आरम्भ करते हैं.”

“मैं तो कबसे तरस रही हूँ. पर आप जो मुझे सताने में लगे थे.” सुजाता ने इठलाते हुए कहा.

“अरे तुम मेरी गर्लफ्रेंड सूज़ी से मिलोगी तो तुम स्वयं समझ जाओगी कि क्यों तुम्हें सता रहा था.”

“छोड़िये, मुझे नहीं मिलना आपकी गर्लफ्रेंड से, मेरी सौत के लिए मुझे तरसा रहे हो. अब देखो मैं क्या करती हूँ.”

इस छेड़छाड़ के साथ ही सुजाता ने झुकते हुए अविरल के लंड को निगल लिया.

“अरे मेरा लंड कहाँ चला गया? स्नेहा देखो कहाँ गुम गया?”

“पापा, मैं ढूँढती हूँ.” स्नेहा ने कुछ स्वांग भरा फिर बोली, “पापा, आप बहुत बड़े संकट में हैं. आपका लंड मॉम ने खा लिया है. मैं बोलती हूँ उनसे आपको छोड़ने के लिए.” स्नेहा, “मॉम, प्लीज़ पापा का लंड छोड़ दो. चाहे तो विवेक का खा लो.”

“हाँ ये ठीक है, युवा लंड खाने में अधिक स्वादिष्ट होगा.” ये कहकर सुजाता ने अविरल के लंड को छोड़ा और विवेक को पास बुलाया और उसके लंड को चूसने लगी.”

“ऐसा करने के लिए आज तुम्हें मेरे प्रतिशोध का सामना करना होगा. गाँड मारकर हरी कर दूँगा।”

सुजाता: “बहुत आये मेरी गाँड हरी करने वाले और चले भी गए.”

अविरल: “लगता है तुम्हें पाठ पढ़ाना पड़ेगा. विवेक इधर आकर लेटो.”

विवेक लेट गया और उसका लंड ऊपर की ओर तना हुआ था. सुजाता के मुंह में पानी आ गया. िवेक का लंड उसके थूक से गीला था और चमचमा रहा था.

“आप रहो यहाँ, मैं चली अपने बेटे के पास.” सुजाता ने अपना आसन बदला और विवेक के लंड पर जा चढ़ी. उसकी पानी छोड़ती चूत ने सरलता से लंड अंदर ले लिया. उसने एक गहरी सांस भरी. कब से वो इस भावना और आनंद के लिए तरस रही थी. लौड़ा अंदर जाते ही उसकी आत्मा तृप्त हो गई. वो कुछ समय तक इसी प्रकार से बैठी रही. विवेक, स्नेहा और अविरल भी शांत ही रहे. फिर विवेक ने अपने हाथ उसके मम्मों पर रखे और उन्हें दबा दिया. सुजाता का तो मानो जैसे ज्वालामुखी ही फट पड़ा. उसकी चूत से इतना पानी छूटा कि विवेक की जांघें और नीचे बिस्तर सब लथपथ हो गए.

कुछ समय तक सुजाता यूँ ही कांपते हुए झड़ती रही. फिर जब सामान्य हुई तो उसके चेहरे पर असीम शांति थी. कुछ पलों के बाद उसने अपनी कमर उठाकर चढ़ाई आरम्भ कर दी. विवेक ने भी उसका साथ दिया और सुजाता के मम्मों को निचोड़ते हुए वो सशक्त धक्के लगाने लगा. माँ बेटे का ये आनंदमयी मिलन शीघ्र ही एक प्रतिस्पर्धा बन गया.

इसे रोकना आवश्यक था. स्नेहा ने अविरल के लंड को मुंह में लेकर दो मिनट चूसा और फिर उसे भी रणभूमि में भेज दिया. अविरल लंड को पकड़े हुए सुजाता के पीछे गया. स्नेहा ने सामने जाकर विवेक को रुकने के लिए कहा और अविरल ने सुजाता की कमर पर हाथ रखा और उसे आगे झुका दिया. विवेक ने कमर थाम ली और इससे पहले कि सुजाता के मुंह से कुछ निकलता उसके मुंह से अपना मुंह जोड़ लिया. अविरल ने उपयुक्त अवसर देखा और सुजाता की गांड पर थूक लगाया और अपने लंड को गाँड पर रखते हुए दो ही धक्कों में रणक्षेत्र में अपनी विजय पताका लहरा दी.

“ओह! क्या कर दिया आपने! मेरी गाँड में पूरा लौड़ा दे दिया?”

“जैसा तुम्हें अच्छा लगता है, प्रियतम. अब तक तुम तरस रही थीं अब चुदाई का भरपूर आनंद लो. विवेक, चलो अब चोदो अपनी माँ को. बहुत देर से प्यासी है. आज पूरी रात इसकी चुदाई करना है. और कल हमें रिसोर्ट जाना है जहाँ इसे और भी चुदाई का अवसर मिलेगा. पर आज इसके कसबल निकाल दो.”

बस अब क्या था पिता पुत्र ने अपनी पूरी शक्ति से सुजाता की चुदाई आरम्भ की. सुजाता की आनंद और पीड़ा से मिश्रित चीखों से कमरा हिल गया. स्नेहा ने अपने लिए एक पेग बनाया और अपनी माँ की चुदाई का दृश्य देखने लगी. उसे पता था कि आज उसकी चुदाई होने की संभावना कम ही है. आज उसकी माँ की ही माँ चोदी जानी है. पर तब तक उसे केवल देख कर ही आनंद लेना था.

रात अभी शेष थी.


क्रमशः
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जो पाठक पहली बार आये और अपने विचार दिए, उनका धन्यवाद.

जो नियमित रूप से उत्साह बढ़ाते हैं, उनको नमन.
 
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अध्याय ४६


दृश्य ५: सुजाता:


“ये निश्चित है न कि तुम्हें कोई आपत्ति नहीं है?” अविरल ने सुजाता के सिर पर हाथ घुमाते हुए पूछा.

सुजाता जो इस समय सूजी डार्लिंग की भूमिका में थी उसने अपना सिर उठाया और अविरल ले पैरों के अंगूठे को अपने मुंह से निकालते हुए स्वीकृति में सिर हिलाया.

“सूजी डार्लिंग, देखो तुम्हें मिलने कौन आया है?” अविरल ने बोला।

सूजी डार्लिंग ने सिर उठाकर देखा और स्नेहा और विवेक को देखकर उसकी आँखों में चमक आ गई.

“सूजी डार्लिंग, मैंने तुम्हें ऐसा करने के लिए नहीं कहा. चलो, मेरे पैर साफ करो. और फिर लौटकर आना तो मेरे लंड पर भी कुछ गंदगी लगी है, उसे भी तुम्हें ही निकालना है.”

सूजी डार्लिंग की आँखों की चमक लौट आई और वो अपने कार्य में लग गई.

“सूजी डार्लिंग, यू आर बीइंग ए गुड गर्ल.”

सूजी डार्लिंग उसकी बात सुनकर विवेक के लंड को चाटने में जुट गई.

*************

अविरल ने सुजाता को ये समझाया था कि उसे अगर अपने इस व्यसन को पोषित करना है तो उसे परिवार से छुपाना ठीक नहीं होगा. अगर परिवारजन उसकी इस विकृति को स्वीकार कर लेंगे तो उसका जीवन बिना किसी संकोच के अपने दोनों व्यक्तित्वों में सामंजस्य बनाने में सफल हो सकेगा. अन्यथा उस पर एक तनाव सदा बना रहेगा. जब श्रेया उसके इस रूप को जान चुकी है तो विवेक और स्नेहा से छुपाना हानिकारक सिद्ध हो सकता है. सुजाता को अपने पति का तर्क उचित जान पड़ा और आज वो अपने बच्चों के आगे भी दासी की भूमिका निभा रही थी.

ये अवश्य अचरज का विषय था कि स्नेहा और विवेक ने इसे इतनी शीघ्रता और सरलता से स्वीकार कर लिया था. परन्तु अभी तो इस व्यक्तित्व को पूर्ण रूप से अनावृत भी नहीं किया गया था. इसीलिए आगे के कुछ मिनट निर्णायक होने वाले थे. अविरल ने निश्चित किया था कि वो सूजी के तिरस्कार सहन करने की सीमा को चुनौती देकर देखेगा कि वो किस स्तर तक जा सकती है. इन कुछ दिनों में ही सुजाता के रहन सहन और व्यवहार में आमूलचूल परिवर्तन आया था. पर अपने बच्चों के सामने वो स्वयं को कितना गिरा पायेगी ये देखना शेष था.

सूजी डार्लिंग पूरी तन्मयता से विवेक के तलवे और पैरों को चाट कर चमकाने के बाद स्नेहा की ओर मुड़ी और वही प्रक्रिया में जुट गई.

अविरल उसे देखकर सोच रहा था कि वो हमला कब करे?

“सूजी डार्लिंग, मेरी चूत और गाँड भी भीतर से गन्दे हैं. उन्हें भी तुम्हें ही साफ करना है. ठीक है न?” स्नेहा ने अपनी माँ को आज्ञा दी.

सूजी डार्लिंग ने सिर हिलाकर स्वीकृति दी और पैरों को चाटती रही. कुछ समय बाद जब उसे लगा कि कार्य सम्पन्न हो गया है तो घुटनों पर बैठकर स्नेहा के सामने झुक गई. स्नेहा समझ गई और उसने नीचे उतरकर घोड़ी लिया.

“ठीक से चाटना, सूजी डार्लिंग। मुझे मेरे पापा और भाई चोदने वाले हैं. उन्हें बिलकुल चिकने चिकने छेद मिलने चाहिए. अगर अच्छा काम करोगी तो उनका माल तुम्हें खाने दूँगी। समझीं?”

सूजी डार्लिंग ने फिर से सिर हिलाकर स्वीकृति दी और स्नेहा के पीछे आ गई. अविरल ने घड़ी देखी और निश्चय किया कि इस कृत्य के बाद वो अपना वार करेगा.

“सूजी डार्लिंग, आप समुदाय के लड़कों से उनकी ट्रेनिंग में यही करवाती थीं न? अपनी चूत और गाँड़ की चटाई? अब मेरी चाटो!” स्नेहा ने झिड़कते हुए कहा तो सुजाता को अपने पूर्व कर्मों पर पछतावा हुआ. सूजी डार्लिंग स्नेहा की चूत को चाटने के बाद उसकी गाँड़ में जीभ डाल डाल कर उसे गीला कर रही थी. चाहे जो भी हो स्नेहा थी तो उसकी बेटी ही. अब पिता या भाई उसकी गाँड मारने वाले थे तो माँ का कर्तव्य था कि उनकी राह सुगम करे जिससे बेटी को कष्ट न हो.

अभी वो अपने कार्य को सम्पन्न करके हटने ही वाली थी कि अविरल का कर्कश स्वर गूँज उठा.

“इतना बहुत है, सूजी. पर तुम्हें ये करने के पहले इसे पहनने के लिए आदेश दिया था न?” अविरल के हाथ में एक कुत्ते को बाँधने वाला पट्टा था जिसमें चेन भी लगी थी.

सूजी डार्लिंग ने झटके से अविरल को देखा. ऐसी कोई बात नहीं हुई थी. अविरल झूठ बोल रहा था. अविरल के हाथ में पट्टा और चेहरे पर एक मुस्कान थी. अचानक सूजी डार्लिंग को रहस्य समझ आ गया. उसका पति उसकी परीक्षा ले रहा था. क्या वो उसके झूठ पर प्रतिउत्तर देगी या चुपचाप अपने दासी स्वरूप में उसे स्वीकारेगी. उसके मन और मस्तिष्क में कुछ पलों के लिए एक द्वन्द चला. पर अंततः चुनाव कर लिया.

घुटनों पर रेंगते हुए वो अविरल के सामने गई और उसके पैरों के अँगूठे चाटे।

“क्षमा करें स्वामी. दासी आपकी आज्ञा भूल गई थी. इसके लिए आप जो भी दण्ड देना चाहें दीजिये.”

“हाँ दण्ड तो अवश्य मिलना चाहिए. पर उसके पहले मुझे बाथरूम जाना है. तुम समझती हो न सूजी डार्लिंग इसका क्या अर्थ है और इसमें तुम्हारी क्या भूमिका है?

सूजी डार्लिंग अब कुछ घबराई. वो अपने बच्चों को अपना अत्यंत घ्रणित और विकृत रूप नहीं दिखाना चाहती थी. मन मस्तिष्क फिर लड़ने लगे.

“जी स्वामी. मैं आपके पीछे आती हूँ.”

“स्नेहा और विवेक, आओ तुम भी. देखो अपनी सूजी डार्लिंग क्या करती है.”

अविरल ने पट्टा यही वहीँ छोड़ दिया. उसके पीछे सूजी डार्लिंग और स्नेहा और विवेक उन दोनों के पीछे हो लिए. बाथरूम में जाकर अविरल खड़ा हो गया. उसका लंड असामान्य रूप से तना हुआ था. सूजी डार्लिंग उसके सामने खड़ी हो गई. विरल ने लंड उसके मुंह में डाला.

“चूस!”

स्नेहा और विवेक नहीं आया कि लंड चुसवाने के लिए उसके पिता यहाँ क्यों आये. और इसका कारण उन्हें चार मिनट बाद स्पष्ट हो गया.

“ओह शिट!” स्नेहा और विवेक के मुंह से निकला. कारण स्पष्ट था. उनके पिता ने उनकी माँ के मुँह में मूत्र त्याग करना आरम्भ कर दिया. और अचम्भा ये था कि उनकी माँ भी उसे बड़े प्रेम से पिए जा रही थीं. थोड़ा मूत्रपान करने के बाद सूजी डार्लिंग ने मुँह थोड़ा बंद किया और अपने चेहरे को सामने कर दिया। अविरल ने उनके चेहरे को धोया और फिर उनके स्तनों पर अंतिम बौझार कर दी.

“सूजी डार्लिंग को मेरा मूत्र बहुत स्वादिष्ट और पौष्टिक लगता है. दिन में तीन बार तो पी ही लेती है. सूजी डार्लिंग अपना मुँह खोलकर इन दोनों को दिखाओ.”

सूजी डार्लिंग ने इतना तिरस्कार कभी नहीं झेला था. आज उनसे दो बच्चों के सामने उसके ही पति ने उसकी अपमान किया था. उसने अपना मुँह खोलकर दोनों को दिखाया.

“और कुछ भी करती हो न?” अविरल ने उलाहना दी.

सूजी डार्लिंग ने अपने चेहरे और वक्ष पर लगे मूत्र को मलना आरम्भ किया.

“ये केवल सूजी डार्लिंग और मेरे बीच का खेल है. इसमें किसी और के जुड़ने का कभी भी कोईभी अवसर नहीं आएगा. न मेरे कहने से सूजी डार्लिंग ऐसा करेगी, न सूजी डार्लिंग की इच्छा से ही ऐसा हो सकेगा. ये हमारे बीच का विशिष्ट खेल है. तुम्हें आज मात्र इसीलिए दिखाया है जिससे कि तुम अपनी माँ की इस कुंठा से अवगत हो जाओ.”

“जी, पापा.” दोनों बोले.

“सुजाता, अब उठो और स्नान करने के बाद कमरे में लौट आओ. कुछ ड्रिंक्स के बाद तुम फिर से सूजी डार्लिंग का रूप लोगी और हम तीनों की सेवा करोगी.”

“ओके. ओह! मेरे बच्चों. तुमको ये सब देखना पड़ा.”

स्नेहा: “इट्स ओके मॉम, वी लव यू.”

अविरल, स्नेहा और विवेक सुजाता को छोड़कर बाहर आये और ड्रिंक बनाने लगे. सुजाता अंदर स्नान करने लगी और दस मिनट के बाद बाहर आई तो उसके चेहरे की कान्ति ही भिन्न थी. अविरल के पास बैठते ही विवेक ने उसके हाथ में ग्लास थमा दिया. सुजाता दोनों बच्चों के भाव देखकर समझ गई कि वे सच जानने के लिए उत्सुक हैं. पर एक विकट समस्या थी. स्नेहा की अब तक मेहुल चुदाई नहीं कर सका था. इस सप्ताह का निर्धारित कार्यक्रम शेट्टी परिवार ने बिगाड़ दिया था. सुजाता ने एक गहरी श्वास भरी.

“मैं जानती हूँ कि तुम दोनों मेरे इस परिवर्तन के बारे में जानने के लिए उत्सुक हो. मैं भी तुम्हें इस विषय में बताऊँगी। परन्तु अभी मैं एक वचन से बँधी हूँ और उसे तोड़ नहीं सकती. पर जिस दिन वो वचन पूरा होगा, सम्भवतः अगले पाँच सात दिनों में, मैं तुम सबको इसका रहस्य बता दूँगी।”

विवेक और स्नेहा को निराशा हुई. फिर स्नेहा ने ही पूछा.

“पर मॉम, आप सूसू पी रहे हो, इस प्रकार से व्यवहार कर रहे हो, बहुत आश्चर्य हो रहा है.”

“मैं समझ सकती हूँ, पर मेरे मन में अवश्य ऐसी कोई ग्रंथि थी जिसके कारण मैं असंतुष्ट थी. जिस दिन से मेरा ये रूप मेरे सामने आया है, मेरा जीवन आनंद से भर गया है. तुम्हारे पापा का इसमें विशेष योगदान है.”

“विशेष योगदान? क्या कोई और भी है.”

तभी अविरल बोला, “सबका उत्तर देगी. उसे प्रताड़ित मत करो. विवेक, एक पेग और बनाओ. फिर आगे का कार्यक्रम करेंगे.”

सबके लिए पेग बने और पीने लगे. जैसे ही पेग समाप्त हुआ, अविरल ने कहा, “तो सूजी डार्लिंग, अब तुम्हें मेरी बेटी को चुदाई के लिए मेरे और मेरे बेटे के लिए......”

इससे पहले कि अविरल अपनी बात को पूरी करता सूजी डार्लिंग नीचे जा बैठी और अविरल के पैर चाटने लगी. उसके बाद उसने स्नेहा को देखा तो स्नेहा ने अपने पैरों को फैला लिया और सूजी डार्लिंग उसकी चूत चाटने में जुट गई. इस अवस्था में सूजी डार्लिंग की गाँड ऊपर उभरी हुई थी और विवेक का मन मचल गया. उसने अविरल को देखा तो अविरल ने उसे प्रतीक्षा करने का संकेत दिया. विवेक मन मसोस के रह गया.

उधर सूजी डार्लिंग ने अपनी जीभ को स्नेहा की गाँड खोलने के लिए उपयोग में लाया तो स्नेहा की सिसकारी निकल गई.

“बस इतना पर्याप्त है. सूजी डार्लिंग आओ मेरे लंड को चाटो।”

सूजी डार्लिंग लपक कर अविरल का लंड चाटने लगी. अविरल ने विवेक को अपने पास बुलाया.

“इसके लंड पर भी ध्यान दो. तुम्हारी बेटी की गाँड मारने वाला है.”

सूजी डार्लिंग विवेक के लंड की ओर मुड़ी तो विवेक का लंड स्नेहा की गाँड मारने की बात सुनकर कुछ अधिक ही कठोर हो गया. उसे भी इस खेल में आनंद मिल रहा था.

सूज़ी डार्लिंग ने लपककर अपने बेटे विवेक के लंड को मुँह में लिया और पूरे मन से चाटने लगी. वो उसे इतना कठोर और चिकना कर देना चाहती थी कि स्नेहा की गाँड में जाने के समय सरलता भी हो और भेदने में भाई बहन को आनंद भी मिले. स्नेहा को लेकर अविरल पलंग पर जा चुका था और लेट कर स्नेहा की प्रतीक्षा कर रहा था. स्नेहा उसके ऊपर चढ़ी और लंड को अपनी चूत पर रगड़ने लगी और फिर उसके ऊपर बैठ गई. धीमी गति से उसने अपने पिता के लंड को अपनी चूत की गहराइयों में समा लिया. दोनों के मुँह से एक संतोष की सिसकी निकली.

“मॉम बहुत चेंज हो गई न पापा? पर अब अधिक प्रसन्न रहती हैं. हमें भी व्यर्थ में सताना भी बंद कर चुकी हैं.”

“हाँ, अब देखना है समुदाय में उनका क्या स्थान बनता है. इस बार तो वो प्रबंधन समिति में भी चली ही जाएगी. स्मिता के हटने से इसका बनना तय है. इसके व्यवहार के कारण जो इससे द्वेष रखते थे उन्हें अपनी राय बदलने में समय लगेगा पर अब मुझे लगता है कि ये शीघ्र हो जायेगा.”

अब चूत में लंड हो और कोई इस प्रकार की बातों में व्यस्त हो ये तो अद्भुत ही है, पर ये स्थिति ही ऐसी थी.

“पर पापा, मॉम का ये सूसू पीना मुझे अच्छा नहीं लगा.”

“चिंता मत करो, इसीलिए मैंने उसे किसी भी और के साथ ये करने से बाधित किया है. मैं धीरे धीरे उसे इससे दूर करने का प्रयास करूँगा। अगर पूरा बंद नहीं भी किया तो उसे सीमित अवश्य कर दूँगा।”

“हम्म्म, पापा अब मेरी चूत खुजला रही है. आपका लंड फूलकर उसे तड़पा रहा है. अब चुदाई करें? विवेक जब आएगा तब देखेंगे.” ये कहकर वो लंड पर उछलने लगी और पिता पुत्री की चुदाई का आरम्भ हो गया.

अभी कुछ ही मिनट बीते होंगे कि स्नेहा की गाँड पर किसी का हाथ रुका. स्नेहा रुक गई और पीछे मुड़ी तो देखा कि विवेक अपना लंड लिए खड़ा था. फिर उसे अपनी गाँड में कुछ अंदर जाता हुआ अनुभव हुआ.

“ओह, सूज़ी डार्लिंग। चाटो मेरी गाँड।” उसने कहा तो सूज़ी डार्लिंग ने अपना परिश्रम और बढ़ा दिया. अपनी बेटी की गाँड को भलीभांति चिकना करके सूज़ी डार्लिंग हट गई और घुटनों पर बैठकर आगे होने वाली घटना की प्रतीक्षा करने लगी. इस समय उसकी चूत से भी झरना बह रहा था और गाँड में भयंकर खुजली हो रही थी. परन्तु वो किसी भी प्रकार से उन दोनों को छूने से भी बाधित थी.

विवेक ने अपने फनफनाते हुए लौड़े को स्नेहा की गाँड पर लगाया और धीरे से अंदर की ओर धकेलने लगा. स्नेहा ने अपनी श्वास रोकी हुई थी. नीचे से उसके पिता का लंड पहले ह उसकी चूत की शोभा बढ़ा चुका था. अब वो शान्ति से विवेक की प्रतीक्षा कर रहे थे. सूज़ी डार्लिंग घंटों पर बैठी थकने लगी थी. वो सामान्य आसन में बैठ गई और स्नेहा की गाँड में विवेक के लंड की यात्रा देखने लगी. ये दृश्य उसने पहले भी कई बार देखा था पर आज इसका आशय और प्रभाव भिन्न था. आज तक वो एक निर्देशक की भाँति गतिविधियों को चलाती थी, पर आज वो मात्र एक मूक दर्शक थी और अन्य सभी की आज्ञा पालन करने के लिए विवश. इस विचार ने उसके शरीर नई ऊर्जा और उत्तेजना भर दी थी. उसे आशा थी कि उसके पति उसके शरीर की आग को बुझाने आएँगे।

विवेक ने पूरे संयम का परिचय देते हुए अंततः स्नेहा की गाँड में अपना पूरा लंड स्थापित कर ही दिया. अचानक सूज़ी डार्लिंग को स्मिता और श्रेया की गाँड चुदाई का स्मरण हो आया, जब उसे बीच बीच में गाँड से निकले लंड को चाटने का आदेश थे. वो साहस करते हुए उन तीनों के पास आ गई. मात्र अपने मूक संकेत से ही उसने विवेक को अपनी इच्छा बताई. विवेक ने मुस्कुराते हुए अपनी स्वीकृति दे दी. अब सूज़ी डार्लिंग को प्रतीक्षा करनी थी.

जब पिता पुत्र ने दोनों छेदों में अपने खम्बे गाड़ दिए तो अगले चरण का आरम्भ किया गया. कुछ देर अविरल चूत में लंड चलाता फिर विवेक गाँड में. एक सधी गति से ये दुहरी चुदाई आगे चलने लगी. स्नेहा की सिसकारियों ने अब चीखों का रूप ले लिया था पर इसमें कष्ट नहीं आनंद का भाव अधिक था. कुछ धक्के मारने के बाद विवेक ने अविरल को बताया कि वो सूज़ी डार्लिंग से लंड साफ करवाना चाहता है. अविरल ने अपनी गति धीमी की और फिर विवेक ने अपना लंड स्नेहा की गाँड से निकाला. सूज़ी डार्लिंग तो मानो इसी पल के लिए जीवित थी. तीव्र गति से उसने विवेक के लंड को चाटना आरम्भ किया और कुछ ही पलों में उस पर लगे रस और अन्य अवशेषों को ग्रहण कर लिया. सूज़ी डार्लिंग यहाँ नहीं रुकी, उसने स्नेहा की खुली लपलपाती गाँड में मुंह लगाया और जीभ को अंदर डालकर उसे भी चाट लिया. फिर विवेक के लंड को अंदर प्रविष्ट करवा दिया.

“ओह! सूज़ी डार्लिंग, यू आर टू गुड!” स्नेहा ने कहा तो सूज़ी डार्लिंग का सीना फूल गया.

“यस, सूज़ी डार्लिंग, यू आर ए गुड स्लेव.” विवेक ने सूज़ी डार्लिंग के सर पर थपकी दी, “पर अब जाओ. कुछ देर में फिर आना.”

सूज़ी डार्लिंग गर्व से अपने स्थान पर लौट गई और चुदाई देखने लगी.

अब ये सिद्ध हो गया कि सूज़ी डार्लिंग इस कार्य के लिए चुदाई में विघ्न डाल सकती है तो उसकी अपनी उत्तेजना भी बढ़ गई. अब वो चुदना चाहती थी पर इसकी अभिव्यक्ति नहीं कर सकती थी. उसे अपने पति की दया पर ही निर्भर रहना था. सामने चुदाई का खेल चलता रहा. स्नेहा की चुदाई की गति अब तीव्र हो चली थी. सूज़ी डार्लिंग को लग रहा था कि इस समय व्यवधान डालना उचित है या नहीं.

तभी उसे स्नेहा की पुकार सुनाई दी, “सू ज़ी डा र्लिं ग, मेर्री गाँड!”

अब स्नेहा का इस कथन से क्या तात्पर्य था इसका चिंतन किये बिना ही सूज़ी डार्लिंग उसके पास जा पहुँची। विवेक ने देखा तो समझ गया और अविरल को बताया. चुदाई को विराम दिया गया और विवेक ने लंड को बाहर निकाला और अपनी माँ या कहें कि सूज़ी डार्लिंग के मुंह में दे दिया. सूज़ी डार्लिंग ने उसे पूरी श्रध्दा से चाटा और चमका दिया. फिर सूज़ी डार्लिंग ने अपनी बेटी की गाँड को फिर अंदर से अंदर तक चाटा। विवेक के लंड को मुँह में लेकर चूसने के बाद उसे स्नेहा की गाँड में डाला और इस बार वहीँ खड़ी रही.

सूज़ी डार्लिंग की आँखें अपने पति की ओर मुड़ीं तो अविरल उसे ही देख रहा था. अविरल ने अपना सिर हिलाकर उसे न का संकेत दिया. वो अब किसी प्रकार की रुकावट नहीं चाहता था. सूज़ी डार्लिंग ने भी उसके संकेत का प्रतिउत्तर दिया. और तभी स्नेहा की एक चीख निकली. ये अविरल का उसकी चूत में लंड को तेजी से पेल देने का परिणाम था. विवेक ने समझा कि स्नेहा ने पापा को कुछ बोला होगा तो उसने भी अपने लंड को उसी शक्ति से पेलना आरम्भ किया. अब पिता पुत्र दोनों तीव्र गति से स्नेहा की चूत और गाँड मारने में लग गए और स्नेहा की प्यासी माँ वहीं खड़ी उन्हें देखती रही.

सूज़ी डार्लिंग को ये बोध था कि उसे एक और कृत्य करना है जो अत्यंत घिनौना है. परिवार में उसका स्थान उसके बाद सदा के लिए परिवर्तित हो जायेगा. और जैसे जैसे चुदाई अपने चरम पर पहुंच रही थी वो समय निकटतर आ रहा था. सूज़ी डार्लिंग ने अपने गले में पड़े पट्टे को छुआ और अपने दासी होने की पुष्टि की. घ्रणित ही सही, वो इसके लिए अत्यंत उत्साहित थी. मानो उसकी कुंठा की अंतिम गाँठ खुलने के लिए लालायित थी.

अविरल और विवेक की साँसे फूल रही थीं तो वहीँ स्नेहा की चीखें मद्धम पड़ चुकी थीं. अविरल की जांघों पर बह रहे जल से स्नेहा की चूत की व्यथा कथा को समझा जा सकता था. वहीँ उसकी गाँड से निकलती फच फच की ध्वनि विवेक के लंड से निकलने वाले रस की कहानी सुना रही थी.

“ओह पापा, मैं गया. स्नेहा मैं गया! मॉम!” विवेक ने ये कहते हुए अपना पानी स्नेहा की गाँड में छोड़ा तो अविरल भी पीछे न रहा. एक शब्द कहे स्नेहा की कोख में पानी छोड़ दिया. तीनों गहरी सांसे लेते हुए शांत हो गए. सूज़ी डार्लिंग पुनः उत्तेजित हो गई. वो लालची दृष्टि से विवेक के स्नेहा की गाँड में समाये लंड को देख रही थी. जब तीनों की साँसे संभलीं तो विवेक ने अपना लंड बाहर निकाला. इससे पहले कि वो पूरा निकलता सूज़ी डार्लिंग की जीभ स्नेहा की गाँड के चारों और घूमने लगी. स्नेहा को गुदगुदी हुई और वो हंस पड़ी.

“सूज़ी डार्लिंग, गाँड से अब क्या भैया का पानी पियोगी?” ये कहने के समय उसे ये आभास नहीं था कि सूज़ी डार्लिंग के लिए यही आदेश था. सूज़ी डार्लिंग अपने आदेश का पालन करते हुए अपनी बेटी की गाँड से अपने बेटे के वीर्य को उसके साथ मिश्रित अन्य रसों के साथ पीने का भरसक प्रयास कर रही थी. समर्पण ही सफलता की सीढ़ी है, इसे सिद्ध करते हुए सूज़ी डार्लिंग ने स्नेहा की पूरी गाँड अच्छे से चाट चूस कर साफ कर दी. फिर विवेक के लंड को मुँह में लेकर चाटा। विवेक के हटने के बाद स्नेहा अपने पिता के ऊपर से हटी.

उसके हटने से सूज़ी डार्लिंग ने अविरल को देखा जिसने उसे सकारात्मक संकेत दिया. सूज़ी डार्लिंग के चेहरे पर मुस्कान आ गई. इस बार उसने अनगिनत बार किये हुए कार्य को फिर सम्पन्न किया और स्नेहा की चूत से अविरल का रस सोख लिया. अविरल के लंड पर वो अंत में आई और उसे लगभग पूजते हुए चाटकर साफ किया. अविरल ने उसके सिर पर प्रेम से हाथ घुमाया.

“सुजाता, जाओ. मुँह इत्यादि धोकर आ जाओ. आज के लिए सूज़ी डार्लिंग की भूमिका यहीं समाप्त होती है. विवेक अपनी माँ के गले से पट्टा निकाल दो.”

“पापा, मैं एक बार उन्हें इस पट्टे में घूमना चाहती हूँ.” स्नेहा ने हठ किया.

“नहीं, आज नहीं। इस प्रकार के खेल का एक महत्वपूर्ण नियम है. कब रुकना है ये निर्धारित होना ही चाहिए. जो तुम चाहती हो वो हम फिर किसी दिन कर सकते हैं. सूज़ी डार्लिंग कहीं जा नहीं रही थी. पर अब सुजाता का समय है.”

“ओके पापा. सॉरी मॉम.”

“मेरी बच्ची, कोई बात नहीं. तेरी इच्छा भी पूरी कर दूँगी.” सुजाता ने कहा और बाथरूम जाने लगी. फिर मुड़कर बोली, “आप दोनों देर मत करना मैं बहुत देर से चुदने के लिए तड़प रही हूँ.”

विवेक: “आप आओ तो मॉम. आपको कैसे मना करेंगे?”

सुजाता ये सुनकर प्रसन्नता से बाथरूम में चली गई. विवेक सबके लिए पेग बनाने लगा.

सुजाता जब बाथरूम से लौटी तो पिछली बार से अधिक प्रसन्न और खिली हुई लग रही थी. स्नेहा ने उसे अपने गले लगाया और अविरल के साथ बैठाया. विवेक ने उसे उसका ग्लास थमाया. ऐसा लग रहा था मानो सब उसकी सेवा करना चाह रहे थे.

“कैसा लग रहा है?” अविरल ने उसे अपनी ओर खींचते हुए पूछा.

“बहुत अच्छा. आप सही कह रहे थे. अब मेरे मन पर से एक बड़ा बोझ उतर गया. इन दोनों ने भी मेरी इस छाया को स्वीकार कर लिया है तो अब मुझे कोई डर नहीं रहा.” सुजाता ने कहा.

“हाँ, ये आवश्यक था. मैं देख रहा था कि तुम विचलित थीं और कुछ परामर्श के बाद यही निष्कर्ष निकला था कि कारण यही होगा कि तुम्हें इन दोनों की प्रतिक्रिया डर है. आज ये डर निराधार सिद्ध हो गया.”

“हाँ. अपने परामर्श किससे किया?”

“अपने मित्र और उसकी भाभी से.” अविरल ने कहा और आँख मारी. सुजाता समझ गई कि अविरल ने मेहुल और श्रेया से बात की थी. वो मेहुल के आभार तले दबी जा रही थी. और इस बात से उसे स्मरण हुआ कि श्रेया और उसका परिवार इस समय नायक परिवार के साथ उनके समुदाय के रिसोर्ट में हैं.

“श्रेया का कोई समाचार?” सुजाता ने पूछा.

“अधिक नहीं. स्थिति अनुकूल है. जो स्थान ठहरने के लिए दिया है, वो अतिश्रेष्ठ है. श्रेया चाहती है कि हम शीघ्र वहाँ पहुचें.” अविरल ने बताया.

“तो अपने क्या सोचा है?”

“कल शाम चल सकते हैं. कल कार्यालय जाना है, कुछ आवश्यक कार्य है और कुछ लोगों से मिलना भी है.”

“ठीक है, आप बता देना, मैं सब बैग लगा लूँगी।”

अविरल ने सुजाता के मम्मे दबाते हुए बोला, “वो कल देखेंगे. अब तुम्हें चोदने की बहुत इच्छा है. तो फटाफट एक और पेग मारो फिर आरम्भ करते हैं.”

“मैं तो कबसे तरस रही हूँ. पर आप जो मुझे सताने में लगे थे.” सुजाता ने इठलाते हुए कहा.

“अरे तुम मेरी गर्लफ्रेंड सूज़ी से मिलोगी तो तुम स्वयं समझ जाओगी कि क्यों तुम्हें सता रहा था.”

“छोड़िये, मुझे नहीं मिलना आपकी गर्लफ्रेंड से, मेरी सौत के लिए मुझे तरसा रहे हो. अब देखो मैं क्या करती हूँ.”

इस छेड़छाड़ के साथ ही सुजाता ने झुकते हुए अविरल के लंड को निगल लिया.

“अरे मेरा लंड कहाँ चला गया? स्नेहा देखो कहाँ गुम गया?”

“पापा, मैं ढूँढती हूँ.” स्नेहा ने कुछ स्वांग भरा फिर बोली, “पापा, आप बहुत बड़े संकट में हैं. आपका लंड मॉम ने खा लिया है. मैं बोलती हूँ उनसे आपको छोड़ने के लिए.” स्नेहा, “मॉम, प्लीज़ पापा का लंड छोड़ दो. चाहे तो विवेक का खा लो.”

“हाँ ये ठीक है, युवा लंड खाने में अधिक स्वादिष्ट होगा.” ये कहकर सुजाता ने अविरल के लंड को छोड़ा और विवेक को पास बुलाया और उसके लंड को चूसने लगी.”

“ऐसा करने के लिए आज तुम्हें मेरे प्रतिशोध का सामना करना होगा. गाँड मारकर हरी कर दूँगा।”

सुजाता: “बहुत आये मेरी गाँड हरी करने वाले और चले भी गए.”

अविरल: “लगता है तुम्हें पाठ पढ़ाना पड़ेगा. विवेक इधर आकर लेटो.”

विवेक लेट गया और उसका लंड ऊपर की ओर तना हुआ था. सुजाता के मुंह में पानी आ गया. िवेक का लंड उसके थूक से गीला था और चमचमा रहा था.

“आप रहो यहाँ, मैं चली अपने बेटे के पास.” सुजाता ने अपना आसन बदला और विवेक के लंड पर जा चढ़ी. उसकी पानी छोड़ती चूत ने सरलता से लंड अंदर ले लिया. उसने एक गहरी सांस भरी. कब से वो इस भावना और आनंद के लिए तरस रही थी. लौड़ा अंदर जाते ही उसकी आत्मा तृप्त हो गई. वो कुछ समय तक इसी प्रकार से बैठी रही. विवेक, स्नेहा और अविरल भी शांत ही रहे. फिर विवेक ने अपने हाथ उसके मम्मों पर रखे और उन्हें दबा दिया. सुजाता का तो मानो जैसे ज्वालामुखी ही फट पड़ा. उसकी चूत से इतना पानी छूटा कि विवेक की जांघें और नीचे बिस्तर सब लथपथ हो गए.

कुछ समय तक सुजाता यूँ ही कांपते हुए झड़ती रही. फिर जब सामान्य हुई तो उसके चेहरे पर असीम शांति थी. कुछ पलों के बाद उसने अपनी कमर उठाकर चढ़ाई आरम्भ कर दी. विवेक ने भी उसका साथ दिया और सुजाता के मम्मों को निचोड़ते हुए वो सशक्त धक्के लगाने लगा. माँ बेटे का ये आनंदमयी मिलन शीघ्र ही एक प्रतिस्पर्धा बन गया.

इसे रोकना आवश्यक था. स्नेहा ने अविरल के लंड को मुंह में लेकर दो मिनट चूसा और फिर उसे भी रणभूमि में भेज दिया. अविरल लंड को पकड़े हुए सुजाता के पीछे गया. स्नेहा ने सामने जाकर विवेक को रुकने के लिए कहा और अविरल ने सुजाता की कमर पर हाथ रखा और उसे आगे झुका दिया. विवेक ने कमर थाम ली और इससे पहले कि सुजाता के मुंह से कुछ निकलता उसके मुंह से अपना मुंह जोड़ लिया. अविरल ने उपयुक्त अवसर देखा और सुजाता की गांड पर थूक लगाया और अपने लंड को गाँड पर रखते हुए दो ही धक्कों में रणक्षेत्र में अपनी विजय पताका लहरा दी.

“ओह! क्या कर दिया आपने! मेरी गाँड में पूरा लौड़ा दे दिया?”

“जैसा तुम्हें अच्छा लगता है, प्रियतम. अब तक तुम तरस रही थीं अब चुदाई का भरपूर आनंद लो. विवेक, चलो अब चोदो अपनी माँ को. बहुत देर से प्यासी है. आज पूरी रात इसकी चुदाई करना है. और कल हमें रिसोर्ट जाना है जहाँ इसे और भी चुदाई का अवसर मिलेगा. पर आज इसके कसबल निकाल दो.”

बस अब क्या था पिता पुत्र ने अपनी पूरी शक्ति से सुजाता की चुदाई आरम्भ की. सुजाता की आनंद और पीड़ा से मिश्रित चीखों से कमरा हिल गया. स्नेहा ने अपने लिए एक पेग बनाया और अपनी माँ की चुदाई का दृश्य देखने लगी. उसे पता था कि आज उसकी चुदाई होने की संभावना कम ही है. आज उसकी माँ की ही माँ चोदी जानी है. पर तब तक उसे केवल देख कर ही आनंद लेना था.

रात अभी शेष थी.


क्रमशः
1269100
Nice and superb update....
 

Nigarnoor79

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Bhut mst likhte h aap.....shandar update.....

Pr aapne suji darling ko vivak aur sneha ka mut kyu nahi pine deya...
Kitna maza aata jb ek beta aur ek beti apni maa k muh me mutta
 

Mass

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Kinky stuff bhai especially the early part.....but not my taste..but ok with it...some people here like it...so, its for them this one especially :)
prkin
 
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Rajizexy

❣️and let ❣️
Supreme
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Very nice update dear prkin
👌👌👌🔥🔥🔥💯💯
Congrats 🎉🎉🎉 for getting 3.75 lakh💐💐💐 words of the story completed.
Just btw u r a favourite writer of dear Mass aur mere bhi

Party to banti hai ❣️💋
 
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