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Funtastic update bro
Nice update
Shandar update
Baibhav ke chacha ke ladke kahi Rupa ya uske parivar se badla lene ki naa than le.
Thankschuckling update bro
Funtastic update bro
Nice update
Shandar update
Baibhav ke chacha ke ladke kahi Rupa ya uske parivar se badla lene ki naa than le.
Thankschuckling update bro
Bhai pahle hi bata chuka hu ki story se kaafi cheeze out kar di hain maine. Ab koi kisi ka mohra nahi banega....ab sirf kuch updates ke baad story end ho jayegiMahendra singh par sandeh gehra rha h
Or ye bhi lg rha h ki menka chachi syd sach me uska mohra ban skti hain
aage aap jano
Aage ab vaibhav ki baraat me chalne ke liye ready raho...Baki gaurishankar ka sujhav badhiya h isme unka nishchal prem dikhai deta hai
Khair jald hi teeno parivaro me khushiyon ki shehnaaiyan bajne ki aasha hai
Dekhte h kya hota h
Pratiksha agle bhag ki
Thanksबढ़िया खुशनुमा अपडेट।
Sahi kaha....दादा ठाकुर ने रागिनी से मिल कर एक बार फिर से अपना विशाल हृदय दिखाया, और उसी तरह सुगंधा देवी ने मेनका को न सिर्फ समझा कर, बल्कि वास्तविकता बता कर उसके मन की गांठ भी निकाल दी।
और अब वो शुभ घड़ी भी आने का ऐलान हो गया जिसकी प्रतीक्षा में सब लोग हस्तक्रिया कर रहे हैं इधर, और सबसे मजेदार बात ये है कि लोग रूपा की नही बल्कि रागिनी की सुहागरात का इंतजार ज्यादा कर रहे हैं![]()
Are main to sabke sath suhagrat karwa du lekin baaki log maane tab naखैर शालिनी तो रागिनी को थ्रीसम के ख्वाब दिखा रही है। मेरे खयाल से सुहागरात ही थ्रीसम करवा दो शुभम भाई।
Nice update
Dono saheliyon k bich nok jhok achi lagi
Nice update![]()
ThanksNice update![]()
अध्याय - 151
━━━━━━༻♥༺━━━━━━
रागिनी को ये सोच कर बड़ा अजीब सा लगने लगा कि जाने क्या सोचेंगे अब उसके माता पिता और भैया भाभी और साथ ही उसकी छोटी बहन भी। कहीं वो सब उसके बारे में कुछ ऊटपटांग तो नहीं सोच बैठेंगे? रागिनी का चेहरा इस एहसास के चलते ही लाज से सुर्ख पड़ता चला गया।
अब आगे....
वक्त कभी किसी के लिए नहीं रुकता और ना ही उसे रोक लेने की किसी में क्षमता होती है। शाम को जब मैं खेतों से वापस हवेली आया तो मां ने मुझे पास बुला कर धीमें से बताया कि पिता जी ने मुझे चंदनपुर जाने की अनुमति दे दी है।
मां की इस बात को सुन कर जहां एक तरफ मुझे बेहद खुशी हुई वहीं दूसरी तरफ अचानक ही ये सोच कर अब घबराहट सी होने लगी कि कैसे मैं चंदनपुर जा कर अपनी भाभी का सामना कर सकूंगा? मुझे देख कर वो कैसा बर्ताव करेंगी? क्या वो मुझ पर गुस्सा होंगी? क्या वो इस सबके के लिए मुझसे शिकायतें करेंगी? कहीं वो ये तो नहीं कहेंगी कि मैं अब क्या सोच के उनसे मिलने आया हूं? कहीं वो....कहीं वो चंदनपुर में मुझे आया देख मेरे बारे में ग़लत तो नहीं सोचने लगेंगी? ऐसे न जाने कितने ही ख़याल सवालों के रूप में मेरे ज़हन में उभरने लगे जिसके चलते मेरा मन एकदम से भारी सा हो गया।
बहरहाल, मां ने ही कहा कि मैं कल सुबह ही चंदनपुर जा कर अपनी भाभी से मिल आऊं। उसके बाद मैं गुसलखाने में जा कर हाथ मुंह धोया और अपने कमरे में चला आया। कुछ ही देर में कुसुम चाय ले कर आ गई।
"मैं आपसे बहुत नाराज़ हूं।" मैंने उसके हाथ में मौजूद ट्रे से जैसे ही चाय का प्याला उठाया तो उसने सीधा खड़े हो कर मुझसे कहा।
"अच्छा वो क्यों भला?" मैंने उसके चेहरे की तरफ देखा। उसने एकदम से मुंह फुला लिया था। ज़ाहिर है वो अपनी नाराज़गी दिखा रही थी मुझे।
"क्योंकि आपने मुझे....यानि अपनी गुड़िया को।" उसने अपनी एक अंगुली खुद की तरफ मोड़ कर कहा___"मेरी होने वाली भाभी से एक बार भी नहीं मिलाया। मेरी होने वाली भाभी का घर इतना पास है इसके बावजूद मैं उन्हें एक दिन भी देख नहीं सकी।"
"अरे! तो इसमें मुश्किल क्या है?" मैंने चाय की एक चुस्की ले कर कहा____"तुझे अगर उससे मिलना ही है तो जब चाहे उसके घर जा कर मिल सकती है।"
"वाह! बहुत अच्छे।" कुसुम ने मुझे घूरते हुए कहा____"कितनी अच्छी सलाह दी है आपने मुझे। ऐसी सलाह कैसे दे सकते हैं आप?"
"अरे! अब क्या हुआ?" मैं सच में इस बार चौंका____"क्या तुझे ये ग़लत सलाह लगती है?"
"और नहीं तो क्या?" उसने ट्रे को पलंग पर रख दिया और फिर अपने दोनों हाथों को अपनी कमर पर रख कर कहा____"मैंने तो सोचा था कि आप अपनी गुड़िया को बढ़िया जीप में बैठा कर भाभी से मिलवाने ले चलेंगे लेकिन नहीं, आपने तो गंदी वाली सलाह दे दी मुझे।"
"अब मुझे क्या पता था कि तुझे अपनी होने वाली भाभी से मिलने का कम बल्कि जीप में बैठ कर घूमने का ज़्यादा मन है।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"तुझे पहले ही साफ साफ बता देना था कि जीप में बैठ कर घूमने जाना है तेरा।"
"ऐसा कुछ नहीं है।" कुसुम ने बुरा सा मुंह बनाया____"जीप में बैठ कर घूमने जाना होगा तो वो मैं कभी भी घूम सकती हूं। मैं जब भी आपको कहूंगी तो आप मुझे घुमाने ले जाएंगे लेकिन मुझे सच में अपनी होने वाली भाभी से मिलना है।"
"मतलब तू सच में ही मिलना चाहती है उससे?" मैंने ग़ौर से देखा उसे।
"हे भगवान!" कुसुम ने अपने माथे पर हल्के से हथेली मारते हुए कहा____"क्या आपको अपनी लाडली बहन की बात पर बिल्कुल भरोसा नहीं है? सच में बहुत गंदे हो गए हैं आप। जाइए मुझे आपसे बात ही नहीं करना अब।"
कहने के साथ ही वो लपक कर पलंग के किनारे बैठ गई और फिर मेरी तरफ अपनी पीठ कर के मुंह फुला कर बैठ गई। मैं समझ गया कि वो रूठ जाने का नाटक कर रही है और चाहती है कि मैं उसे हमेशा की तरह प्यार से मनाऊं...और ऐसा होना ही था। मैं हमेशा की तरह उसको मनाने ही लगा। आख़िर मेरी लाडली जो थी, मेरी जान जो थी।
"अच्छा ठीक है।" मैं उसके पास आ कर बोला____"अब नाराज़ होने का नाटक मत कर। कल सुबह तुझे ले चलूंगा उससे मिलवाने।"
"ना, मैं अभी भी नाराज़ हूं।" उसने बिना मेरी तरफ पलटे ही कहा____"पहले अच्छे से मनाइए मुझे।"
"हम्म्म्म तो फिर तू ही बता कैसे मनाऊं तुझे?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा___"अगर तू नन्ही सी गुड़िया होती तो तुझे दोनों हाथों में ले कर हवा में उछालता, तुझे गोद में लेता। लेकिन तू तो अब थोड़ी बड़ी हो गई है और इतनी भारी भी हो गई है कि मैं तुझे दोनों हाथों में ले कर उछाल ही नहीं पाऊंगा।"
"हाय राम! कितना झूठ बोलते हैं आप?" कुसुम एकदम से पलट कर मेरी तरफ आश्चर्य से आंखें फैला कर बोली____"मैं कहां बड़ी हो गई हूं और जब बड़ी ही नहीं हुई हूं तो भारी कैसे हो सकती हूं? आप अपनी गुड़िया के बारे में ऐसा कैसे बोल सकते हैं?"
"चल मान लिया कि तू बड़ी नहीं हुई है।" मैंने कहा____"लेकिन तू नन्ही सी भी तो नहीं है ना। क्या तुझे खुद ये नहीं दिख रहा?"
"हां ये तो सही कह रहे हैं आप।" कुसुम एक नज़र खुद को देखने के बाद मासूमियत से बोली____"पर मैं तो आपकी गुड़िया ही हूं ना तो आप मुझे उठा ही सकते हैं। वैसे भी, मैं जानती हूं कि मेरे सबसे अच्छे वाले भैया बहुत शक्तिशाली हैं। वो किसी को भी उठा सकते हैं।"
"चल अब मुझे चने के झाड़ पर मत चढ़ा।" मैंने कहा____"मैं सच में तुझे गोद में उठाने वाला नहीं हूं लेकिन हां अपनी गुड़िया को प्यार से गले ज़रूर लगा सकता हूं, आ जा।"
मेरा इतना कहना था कि कुसुम लपक कर मेरे गले से लग गई। मेरे सामने छोटी सी बच्ची बन जाती थी वो और वैसा ही बर्ताव करती थी। कुछ देर गले लगाए रखने के बाद मैंने उसे खुद से अलग किया।
"चल अब जा।" फिर मैंने उसके चेहरे को प्यार से सहला कर कहा____"और कल सुबह तैयार रहना अपनी होने वाली भाभी से मिलने के लिए।"
"कल क्यों?" उसने हौले से मुस्कुराते हुए कहा____"मुझे तो आज और अभी मिलना है अपनी भाभी से।"
"अरे! पागल है क्या तू?" मैं बुरी तरह चौंकते हुए बोला____"देख नहीं रही शाम हो गई है। इस समय कैसे मैं तुझे उससे मिलवा सकता हूं?"
"क्यों नहीं मिलवा सकते?" कुसुम ने अपनी भौंहें ऊपर कर के कहा____"भाभी का घर कौन सा बहुत दूर है? क्या मेरी ख़ुशी के लिए इसी समय आप मुझे भाभी से मिलवाने नहीं ले जा सकते?"
कुसुम की इन बातों से मैं सकते की सी हालत में देखता रह गया उसे। अजीब दुविधा में डाल दिया था उसने। मैं सोच में पड़ गया कि अब क्या करूं? ऐसा नहीं था कि मैं इस समय उसे रूपा से मिलवा नहीं सकता था लेकिन मैं ये भी सोचने लगा था कि अगर मैंने ऐसा किया तो रूपा के घर वाले क्या सोचेंगे?
"अच्छा ठीक है।" फिर मैंने कुछ सोच कर कहा____"मैं तुझे इसी समय ले चलता हूं लेकिन मेरी भी एक शर्त है।"
"कैसी शर्त?" उसके माथे पर शिकन उभरी।
"यही कि मैं उसके घर के अंदर नहीं जाऊंगा।" मैंने कहा____"बल्कि तुझे उसके घर पहुंचा दूंगा, ताकि तू उससे मिल ले और मैं बाहर ही तेरे वापस आने का इंतज़ार करूंगा।"
"अब ये क्या बात हुई भला?" कुसुम ने हैरानी से कहा____"आप अकेले बाहर मेरे आने का इंतज़ार करेंगे? नहीं नहीं, ऐसे में मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगेगा। आप भी मेरे साथ अंदर चलेंगे।"
"समझने की कोशिश कर कुसुम।" मैंने कहा____"इस वक्त मेरा उन लोगों के घर जाना बिल्कुल भी उचित नहीं है। मैं रूपचंद्र को बाहर ही बुला लूंगा। वो तुझे अपनी बहन के पास छोड़ आएगा और मैं तेरे आने तक उसके साथ बाहर ही पेड़ के नीचे बने चबूतरे में बैठ कर उससे बातें करता रहूंगा। जब तू वापस आएगी तो तुझे ले कर वापस हवेली आ जाऊंगा।"
"और अगर भाभी के घर वालों को पता चला कि आप बाहर ही बैठे हैं तो क्या ये उन्हें अच्छा लगेगा?" कुसुम ने कहा____"क्या वो ये नहीं सोचेंगे कि आप क्यों अंदर नहीं आए?"
"उनके कुछ सोचने से मुझे फ़र्क नहीं पड़ता मेरी बहना।" मैंने कहा____"इस समय जो उचित है मैं वही करूंगा। ख़ैर तू ये सब छोड़ और जा कर तैयार हो जा। मैं कुछ ही देर में नीचे आता हूं।"
कुसुम खुशी खुशी चाय का खाली प्याला उठा कर कमरे से चली गई। उसके जाने के बाद मैं सोचने लगा कि मेरी बहन का भी हिसाब किताब अलग ही है। ख़ैर मुझे उसकी ख़ुशी के लिए अब ये करना ही था इस लिए मैं भी उठ कर कपड़ों के ऊपर गर्म सूटर पहनने लगा।
✮✮✮✮
कुछ ही देर में मैं कुसुम को जीप में बैठाए रूपचंद्र के घर के सामने सड़क पर पहुंच गया। इत्तेफ़ाक से रूपचंद्र सड़क के किनारे मोड़ पर ही मौजूद पेड़ के पास ही मिल गया। वो पेड़ के नीचे बने चबूतरे में गांव के किसी लड़के के साथ बैठा उससे बातें कर रहा था। मुझे जीप में इस वक्त कुसुम के साथ आया देख वो चौंका और जल्दी ही चबूतरे से उतर कर मेरे पास आ गया।
"अरे! अच्छा हुआ कि तुम यहीं मिल गए मुझे।" वो जैसे ही मेरे पास आया तो मैंने उससे कहा____"मैं तुम्हें ही बुलाने की सोच रहा था।"
"क्या बात है वैभव?" उसने एक नज़र कुसुम की तरफ देखने के बाद मुझसे पूछा____"तुम इस वक्त कहीं जा रहे हो क्या?"
"वो असल में मेरी ये बहन तुम्हारी बहन से मिलने की ज़िद कर रही थी।" मैंने थोड़े संकोच के साथ कहा____"इस लिए मैं इसको उससे मिलाने के लिए ही यहां लाया हूं। तुम एक काम करो, इसको अपने साथ ले जाओ और अपनी बहन के पास छोड़ आओ।"
"अरे! ये तो बहुत अच्छी बात है।" रूपचंद्र के चेहरे पर खुशी चमक उभर आई____"लेकिन तुम इन्हें छोड़ आने को क्यों कह रहे हो? क्या तुम नहीं चलोगे?"
"नहीं यार, मैं अंदर नहीं जाऊंगा।" मैंने बेचैन भाव से कहा____"मैंने इससे भी यही कहा था कि मैं बाहर ही रहूंगा और तुम इसको अपनी बहन के पास छोड़ आओगे।"
"ये सब तो ठीक है।" रूपचंद्र ने कहा____"लेकिन तुम्हें अंदर चलने में क्या समस्या है? अब जब यहां तक आ ही गए हो तो अंदर भी चलो। हम सबको अच्छा ही लगेगा।"
"समझने की कोशिश करो भाई।" मैंने कहा____"मुझे अंदर ले जाने की कोशिश मत करो। तुम मेरी गुड़िया को अपनी बहन के पास ले जाओ। मैं यहीं पर इसके वापस आने का इंतज़ार करूंगा।"
"ठीक है, अगर तुम नहीं चलना चाहते तो कोई बात नहीं।" रूपचंद्र ने कहा____"मैं इन्हें रूपा के पास छोड़ कर वापस आता हूं।"
मेरे इशारा करने पर कुसुम चुपचाप जीप से नीचे उतर गई। उसके बाद वो रूपचंद्र के साथ उसके घर के अंदर की तरफ बढ़ गई। इधर मैंने भी जीप को वापस मोड़ा और फिर उससे उतर कर पेड़ के चबूतरे पर जा कर बैठ गया। सच कहूं तो इस वक्त मुझे बड़ा ही अजीब महसूस हो रहा था लेकिन मजबूरी थी इस लिए बैठा रहा। रूपचन्द्र जिस लड़के से बातें कर रहा था वो पता नहीं कब चला गया था और अब मैं अकेला ही बैठा था। मन में ये ख़याल भी उभरने लगा कि अंदर मेरी गुड़िया अपनी होने वाली भाभी से जाने क्या बातें करेगी?
कुछ ही देर में रूपचंद्र आ गया और मेरे पास ही चबूतरे पर बैठ गया। आते ही उसने बताया कि उसके घर वाले कुसुम को देख बड़ा खुश हुए हैं लेकिन ये जान कर उन्हें अच्छा नहीं लगा कि उनका होने वाला दामाद गैरों की तरह बाहर सड़क के किनारे बैठा है।
"मैंने फिलहाल उन्हें समझा दिया है कि तुम अंदर नहीं आना चाहते।" रूपचंद्र ने कहा____"इस लिए तुम्हें अंदर बुलाने की वो भी ज़िद न करें। ख़ैर और बताओ, कुसुम का अचानक से मेरी बहन से मिलने का मन कैसे हो गया?"
"सब अचानक से ही हुआ भाई।" मैंने गहरी सांस ले कर कहा____"वो ऐसी ही है। कब उसके मन में क्या आ जाए इस बारे में उसे खुद भी पता नहीं होता। अभी कुछ देर पहले वो मेरे कमरे में मुझे चाय देने आई थी और फिर एकदम से कहने लगी कि उसे अपनी होने वाली भाभी से मिलना है। मैंने उससे कहा कि सुबह मिलवा दूंगा लेकिन नहीं मानी। कहने लगी कि उसे अभी मिलना है। बहुत समझाया लेकिन नहीं मानी, आख़िर मुझे उसे ले कर आना ही पड़ा।"
"हा हा हा।" रूपचंद्र ठहाका लगा कर हंस पड़ा____"सचमुच कमाल की हैं वो। ख़ैर, जब मैं उन्हें ले कर अंदर पहुंचा तो सबके सब पहले तो बड़ा हैरान हुए, फिर जब मैंने उन्हें बताया कि वो अपनी होने वाली भाभी से मिलने आई हैं तो सब मुस्कुरा उठे। थोड़ा हाल चाल पूछने के बाद मां ने रूपा को आवाज़ दी जो रसोई में थी। मां के कहने पर रूपा कुसुम के साथ अपने कमरे में चली गई थी।"
"और घर में कैसी चल रही हैं शादी की तैयारियां?" मैंने पूछा।
"सब के सब लगे हुए हैं।" रूपचंद्र ने कहा____"दीदी के ससुराल वाले तो जल्द ही शादी का मुहूर्त बनवाना चाहते थे लेकिन महीने के बाद से पहले कोई मुहूर्त ही नहीं था इस लिए मजबूरन उन्हें उसी मुहूर्त पर सब कुछ तय करना पड़ा।"
"हां विवाह जैसे संबंध शुभ मुहूर्त पर ही तो होते हैं।" मैंने सिर हिलाते हुए कहा____"ख़ैर सबसे अच्छी बात यही है कि लगन तय हो गया और अब तुम्हारी बहनों का ब्याह होने वाला है।"
"ये सब दादा ठाकुर की ही कृपा से संभव हो सका है वैभव।" रूपचंद्र ने कहा____"उनका हाथ न होता तो इस विवाह का होना संभव ही नहीं था। हम सब भी न जाने कैसी मानसिकता का शिकार थे जिसके चलते ये सब कर बैठे। अब भी जब वो सब याद आता है तो खुद से घृणा होने लगती है।"
"सच कहूं तो मेरा भी यही हाल है।" मैंने गहरी सांस ली____"इसके पहले मैंने जो कर्म किए थे उनकी वजह से मेरे साथ जो हुआ उसके लिए मैं भी ऐसा ही सोचता हूं। अपने कर्मों के लिए मुझे भी खुद से घृणा होती है और तकलीफ़ होती है। काश! ऐसा हुआ करे कि इस दुनिया का कोई भी व्यक्ति ग़लत कर्म करने का सोचे ही नहीं।"
"ये तो असंभव है।" रूपचंद्र ने कहा____"आज के युग में हर कोई अच्छा कर्म करे ऐसा संभव ही नहीं है। ख़ैर छोड़ो, ये बताओ रागिनी दीदी की कोई ख़बर आई?"
"नहीं।" रूपचंद्र के मुख से अचानक भाभी का नाम सुनते ही मेरे समूचे जिस्म में झुरझुरी सी दौड़ गई____"अभी तक तो नहीं आई लेकिन मैं कल उनसे मिलने चंदनपुर जा रहा हूं।"
"अच्छा।" रूपचंद्र ने हैरानी से कहा____"किसी विशेष काम से जा रहे हो क्या?"
"कुछ बातें हैं जिन्हें मैं उनसे कहना चाहता हूं यार।" मैंने सहसा गंभीर हो कर कहा____"तुम शायद यकीन न करो लेकिन सच ये है कि जब से मुझे ये पता चला है कि हम दोनों के घर वालों ने हमारा आपस में ब्याह कर देने का फ़ैसला किया है तब से मेरे मन में बड़े अजीब अजीब से ख़याल उभर रहे हैं। मैं खुद को अपराधी सा महसूस करता हूं। मुझे ये सोच कर पीड़ा होने लगती है कि इस रिश्ते के चलते कहीं भाभी मुझे ग़लत न समझने लगीं हों। बस इसी के चलते मैं उनसे एक बार मिलना चाहता हूं और उन्हें बताना चाहता हूं कि इस रिश्ते के बाद भी मेरे मन में उनके प्रति कोई ग़लत भावना नहीं है। मेरे अंदर उनके लिए वैसा ही आदर सम्मान है जैसे हमेशा से रहा है।"
"तुम्हारे मुख से ऐसी अद्भुत बातें सुन कर मुझे बहुत अच्छा लगा करता है वैभव।" रूपचंद्र ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा____"सच कहता हूं, यकीन तो अब भी नहीं होता कि तुम इतने अच्छे इंसान बन गए हो लेकिन यकीन इस लिए कर लेता हूं क्योंकि मैंने अपनी आंखों से देखा है और दिल से महसूस किया है। मैं खुद भी तो बदल गया हूं। इसके पहले तुमसे बहुत ज़्यादा ईर्ष्या और नफ़रत करता था लेकिन आज जितना अपनी बहन से प्यार और स्नेह करता हूं उतना ही तुमसे भी करने लगा हूं। हो सकता है कि ये कोई चमत्कार हो या कोई नियति का खेल लेकिन सच यही है। ख़ैर तुम अगर ऐसा सोचते हो तो यकीनन रागिनी दीदी से मिल लो और उनसे अपने दिल की बातें कह डालो। शायद इसके चलते तुम्हें भी हल्का महसूस हो और उधर रागिनी दीदी के मन से भी किसी तरह की अथवा आशंका दूर हो जाए। वैसे सच कहूं तो जैसे अनुराधा को मेरी बहन ने अपना लिया था और मैं खुद भी तुम्हारे साथ उसका ब्याह होने से खुश था उसी तरह रागिनी दीदी को भी मेरी बहन ने अपना लिया है और मैं भी चाहता हूं उनका तुम्हारे साथ ब्याह हो जाए।"
"वैसे अगर तुम बुरा न मानो तो क्या तुमसे एक बात पूछूं?" मैंने कहा।
"हां बिल्कुल पूछो।" रूपचंद्र ने कहा____"और बुरा मानने का तो सवाल ही नहीं है।"
"सच कहूं तो अभी अभी मेरे मन में एक ख़याल उभरा है।" मैंने धड़कते दिल से कहा____"और अगर भाभी से ब्याह होने वाली बात का ज़िक्र न हुआ होता तो शायद मेरे मन में ये ख़याल उभरता भी नहीं। मैं तुमसे ये पूछना चाहता हूं कि जिस तरह मेरे माता पिता ने अपनी विधवा बहू की खुशियों का ख़याल रखते हुए उनका ब्याह मुझसे कर देने का निर्णय लिया है तो क्या वैसे ही तुम भी अपनी किसी भाभी के साथ ब्याह करने का नहीं सोच सकते?"
"ये...ये क्या कह रहे हो तुम?" रूपचंद्र ने चकित भाव से मेरी तरफ देखा____"मैं भला क्यों ऐसा सोचूंगा यार?"
"मानता हूं कि तुम नहीं सोच सकते।" मैंने कहा____"लेकिन तुम्हारे घर वाले तो सोच ही सकते हैं?"
"नहीं।" रूपचंद्र ने कहा____"इस तरह की कोई बात मेरे घर में किसी के भी मन में नहीं है।"
"ये तुम कैसे कह सकते हो?" मैंने जैसे तर्क़ किया____"हो सकता है कि ये बात तुम्हारे घर में किसी न किसी के ज़हन में आई ही हो। मैं ऐसा इस लिए भी कह रहा हूं क्योंकि भाभी के साथ मेरा ब्याह होने की बात तुम्हारे घर वालों को भी पता है। ऐसे में कभी न कभी किसी न किसी के मन में ये ख़याल तो उभरा ही होगा कि जब दादा ठाकुर अपनी बहू के भले के लिए ऐसा सोच कर उनका ब्याह मेरे साथ करने का फ़ैसला कर सकते हैं तो उन्हें भी अपनी बहुओं के भले के लिए ऐसा ही कुछ करना चाहिए।"
रूपचंद्र मेरी बात सुन कर फ़ौरन कुछ बोल ना सका। उसके चेहरे पर हैरानी के भाव तो उभरे ही थे किंतु एकाएक वो सोच में भी पड़ गया नज़र आने लगा था। इधर मुझे लगा कहीं मैंने कुछ ज़्यादा ही तो नहीं बोल दिया?
"क्या हुआ?" वो जब सोच में ही पड़ा रहा तो मैंने पूछा____"क्या मैंने कुछ गलत कह दिया?"
"नहीं।" रूपचंद्र ने गहरी सांस ली____"तुम्हारा ऐसा सोचना और कहना एक तरह से जायज़ भी है लेकिन ये भी सच है कि मेरे घर में फिलहाल ऐसा कुछ कोई भी नहीं सोच रहा।"
"हो सकता है कि उन्होंने ऐसा सोचा हो लेकिन इस बारे में तुम्हें पता न लगने दिया हो।" मैंने जैसे संभावना ज़ाहिर की।
"हां ये हो सकता है।" रूपचन्द्र ने अनिश्चित भाव से कहा____"लेकिन मुझे यकीन है कि मेरे घर वाले ऐसा करने का नहीं सोच सकते।"
"चलो मान लिया कि नहीं सोच सकते।" मैंने उसकी तरफ गौर से देखते हुए कहा____"लेकिन अगर ऐसी कोई बात तुम्हारे सामने आ जाए तो तुम क्या करोगे? क्या तुम अपनी किसी भाभी से ब्याह करने के लिए राज़ी हो जाओगे?"
"यार ये बड़ा मुश्किल सवाल है।" रूपचंद्र ने बेचैन भाव से कहा____"सच तो ये है कि मैंने इस बारे में कभी सोचा ही नहीं है और ना ही कभी अपनी भाभियों के बारे में कुछ गलत सोचा है।"
"सोचा तो मैंने भी नहीं था कभी।" मैंने कहा____"लेकिन देख ही रहे हो कि हर किसी की उम्मीदों से परे आज ऐसे हालात बन चुके हैं कि मुझे अपनी भाभी का जीवन फिर से संवारने के लिए उनके साथ ब्याह करने को राज़ी होना पड़ा है। इसी तरह क्या तुम अपनी किसी भाभी की खुशियों का खयाल कर के ऐसा नहीं कर सकोगे? मान लो मेरी तरह तुम्हारे घर वालों ने भी तुम्हारे सामने भी ऐसा प्रस्ताव रख दिया तब तुम क्या करोगे? क्या अपनी किसी भाभी से ब्याह करने से इंकार कर दोगे तुम?"
"तुमने बिल्कुल ठीक कहा वैभव।" रूपचंद्र ने एक बार फिर बेचैनी से गहरी सांस ली____"वाकई में अगर ऐसा हुआ तो मुझे भी तुम्हारी तरह ऐसे रिश्ते के लिए राज़ी होना ही पड़ेगा। हालाकि ऐसा अगर कुछ महीने पहले होता तो शायद मैं ऐसे रिश्ते के लिए राज़ी न होता लेकिन अब यकीनन हो सकता हूं। ऐसा इस लिए क्योंकि तुम्हारी तरह मैं भी अब पहले जैसी मानसिकता वाला इंसान नहीं रहा। ख़ैर क्योंकि ऐसी कोई बात है ही नहीं इस लिए बेकार में इस बारे में क्या सोचना?"
मैं रूपचंद्र को बड़े ध्यान से देखे जा रहा था। ऐसी बातों के ज़िक्र से एकाएक ही उसके चेहरे पर कुछ अलग ही किस्म के भाव उभरे हुए दिखाई देने लगे थे।
"हां ये तो है।" मैंने कुछ सोचते हुए कहा____"वैसे तुम्हारी बड़ी भाभी को संतान के रूप में एक बेटी तो है जिसके सहारे वो अपना जीवन गुज़ार सकती हैं लेकिन छोटी भाभी का क्या? मेरा मतलब है कि उनकी शादी हुए भी तो अभी ज़्यादा समय नहीं हुआ है, उनको कोई औलाद भी नहीं है। ऐसे में क्या वो इसी तरह विधवा के रूप में अपना सारा जीवन गुज़ारेंगी?"
"इस बारे में क्या कह सकता हूं मैं?" रूपचंद्र ने कहा____"उनके नसीब में शायद ऐसे ही जीवन गुज़ारना लिखा है।"
"नसीब ऐसे ही नहीं लिखा होता भाई।" मैंने कहा____"इस दुनिया में कर्म प्रधान है। हमें हर चीज़ के लिए कर्म करना पड़ता है, फल मिले या न मिले वो अलग बात है। जैसे मेरे माता पिता ने अपनी बहू के जीवन को फिर से संवारने के लिए ये क़दम उठाया उसी तरह तुम्हारे घर वाले भी उठा सकते हैं। जब ऐसा होगा तो यकीनन तुम्हारी भाभी का नसीब भी दूसरी शक्ल में नज़र आने लगेगा। अब ये तुम पर और तुम्हारे घर वालों पर निर्भर करता है कि वो कैसा कर्म करते हैं या नहीं।"
"मैं तुम्हें अपनी राय और अपना फ़ैसला बता चुका हूं वैभव।" रूपचंद्र ने कहा____"बाकी मेरे घर वालों की मर्ज़ी है कि वो क्या करना चाहते हैं और क्या नहीं। मैं अपनी तरफ से इस बारे में किसी से कुछ भी नहीं कहूंगा।"
"ख़ैर जाने दो।" मैंने कहा____"जो होना होगा वो होगा ही।"
अभी मैंने ये कहा ही था कि तभी मेरे कानों में कुछ आवाज़ें पड़ीं। मैंने और रूपचंद्र ने पलट कर आवाज़ की दिशा में देखा। कुसुम दो तीन औरतों के साथ घर से बाहर आ गई थी। शाम पूरी तरह से हो चुकी थी और अंधेरा फैल गया था इस लिए उन औरतों में से एक ने अपने हाथ में लालटेन ले रखा था। कुछ ही देर में कुसुम उन औरतों के साथ बाहर सड़क पर आ गई। इधर मैं और रूपचंद्र भी चबूतरे से उतर आए थे।
"तुमने अपने होने वाले बहनोई को यहां ऐसे ही बैठा रखा था रूप।" फूलवती ने थोड़ी नाराज़गी से कहा____"ना पानी का पूछा और ना ही चाय का?"
"अरे! नहीं बड़ी मां।" मैं झट से रूपचन्द्र से पहले बोल पड़ा____"ऐसी बात नहीं है। रूपचंद्र ने मुझसे इस सबके लिए पूछा था लेकिन मैंने ही मना कर दिया था। आप बेवजह नाराज़ मत होइए।"
मेरे मुख से ये बात सुनते ही रूपचंद्र ने हल्के से चौंक कर मेरी तरफ देखा, फिर हौले से मुस्कुरा उठा। बहरहाल मैंने कुसुम को जीप में बैठने को कहा और खुद भी जीप की स्टेयरिंग शीट पर बैठ गया। कुसुम ने सबको हाथ जोड़ कर नमस्ते किया। उसके बाद मैंने जीप को हवेली की तरफ बढ़ा दिया। कुसुम बड़ा ही खुश नज़र आ रही थी।
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वैभव और रागिनी ने एक दूसरे से अपने दिल की बात कर ली जिससे दोनो के दिल में जो बोझ था वह हट गया है अब दोनो को इस रिश्ते को अपनाने में थोड़ी बहुत आसानी होगीअध्याय - 152
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अगली सुबह।
चाय नाश्ता कर के मैं हवेली से चंदनपुर जाने के लिए जीप से निकला। मां ने मुझे समझाया था कि मैं वहां किसी से भी बेवजह उलझने जैसा बर्ताव न करूं और ना ही अपनी भाभी से ऐसी कोई बात कहूं जिससे कि उन्हें कोई तकलीफ़ पहुंचे। हालाकि ऐसा मैं कर ही नहीं सकता था लेकिन मां तो मां ही थीं, शायद फिक्रमंदी के चलते उन्होंने मुझे ऐसी सलाह दी थी।
पूरे रास्ते मैं भाभी के बारे में ही जाने क्या क्या सोचता रहा। मन में तरह तरह की आशंकाएं उभर आतीं थी जिनके चलते मेरे अंदर एक घबराहट सी होने लगी थी। मैं अपने आपको इस बात के लिए तैयार करता जा रहा था कि जब भाभी से मेरा सामना होगा तब मैं उनके सामने बहुत ही सभ्य और शांत तरीके से अपने दिल की बातें रखूंगा। यूं तो मुझे पूरा भरोसा था कि भाभी मुझे समझेंगी लेकिन इसके बावजूद जाने क्यों मेरे मन में आशंकाएं उभर आतीं थी।
बहरहाल, दोपहर होने से पहले ही मैं चंदनपुर गांव यानि रागिनी भाभी के मायके पहुंच गया। अभी कुछ समय पहले ही मैं यहां आया था, इस लिए जैसे ही भैया के ससुराल वालों ने मुझे फिर से आया देखा तो सबके चेहरों पर हैरानी के भाव उभर आए। ये अलग बात है कि बाद में जल्दी ही उनके चेहरों पर खुशी के भाव भी उभर आए थे।
"अरे! क्या बात है।" भाभी का भाई वीरेंद्र सिंह लपक कर मेरे पास आते हुए बोला____"हमारे वैभव महाराज तो बड़ा जल्दी जल्दी हमें दर्शन दे रहे हैं।"
वीरेंद्र ने कहने के साथ ही झुक कर मेरे पैर छुए। उसकी बातों से जाने क्यों मैं थोड़ा असहज सा हो गया था। ये अलग बात है कि मैं जल्दी ही खुद को सामान्य रखने का प्रयास करते हुए हल्के से मुस्कुरा उठा था। ख़ैर वीरेंद्र मुझे ले कर अंदर बैठक में आया, जहां बाकी लोग पहले से ही मौजूद थे। सबने एक एक कर के मेरे पांव छुए। एक बार फिर से वही क्रिया दोहराई जाने लगी, यानि पीतल की थाल में मेरे पांव धोना वगैरह। थोड़ी देर औपचारिक तौर पर हाल चाल हुआ। इसी बीच अंदर से वीरेंद्र सिंह की पत्नी वंदना भाभी मेरे लिए जल पान के कर आ गईं।
घर में इस वक्त मर्दों के नाम पर सिर्फ वीरेंद्र सिंह ही था, बाकी मर्द खेत गए हुए थे। मेरे आने की ख़बर फ़ौरन ही भैया के चाचा ससुर के घर तक पहुंच गई थी इस लिए उनके घर की औरतें और बहू बेटियां भी आ गईं।
"और बताईए महाराज बड़ा जल्दी आपके दर्शन हो गए।" वीरेंद्र सिंह ने पूछा____"यहां किसी विशेष काम से आए हैं क्या?"
"हां कुछ ऐसा ही है।" मैंने थोड़ा झिझकते हुए कहा____"असल में उस समय जब मैं यहां आया था तो भाभी को लेने आया था। उस समय मुझे बाकी बातों का बिल्कुल भी पता नहीं था। उसके बाद जब यहां से गया तो मां से ऐसी बातें पता चलीं जिनके बारे में मैं कभी कल्पना भी नहीं कर सकता था।"
"हां मैं समझ सकता हूं महाराज।" वीरेंद्र ने गहरी सांस लेते हुए थोड़ा गंभीर हो कर कहा____"और कृपया मुझे भी माफ़ करें मैंने भी इसके पहले इस बारे में आपको कुछ नहीं बताया। सच कहूं तो मुझे समझ ही नहीं आया था कि आपसे कैसे कहूं? दूसरी बात ये थी कि हम चाहते थे कि ये सब बातें आपको अपने ही माता पिता से पता चलें तो ज़्यादा उचित होगा।"
अभी मैं कुछ कहने ही वाला था कि तभी अंदर से भाभी की मां सुलोचना देवी आ गईं। उन्हें देख कर मैं फिर से थोड़ा असहज सा महसूस करने लगा।
"कोई ख़ास काम था क्या महाराज?" सुलोचना देवी ने आते ही थोड़ी फिक्रमंदी से पूछा____"जिसके लिए आपको फिर से यहां आना पड़ा है?"
"वैभव महाराज को रिश्ते के बारे में पता चल चुका है मां।" मेरे कुछ बोलने से पहले ही वीरेंद्र ने अपनी मां की तरफ देखते हुए कहा____"और ये शायद उसी सिलसिले में यहां आए हैं।"
"ओह! सब ठीक तो है ना महाराज?" सुलोचना देवी एकदम से चिंतित सी नज़र आईं।
"हां मां जी सब ठीक ही है।" मैंने खुद को सामान्य रखने का प्रयास करते हुए कहा____"मैं यहां बस भाभी से मिलने आया हूं। उनसे कुछ ऐसी बातें कहने आया हूं जिन्हें कहे बिना मुझे चैन नहीं मिल सकता। आप कृपया मेरी इस बात को अन्यथा मत लें और कृपा कर के मुझे भाभी से अकेले में बात करने का अवसर दें।"
मेरी बात सुन कर सुलोचना देवी और वीरेंद्र सिंह एक दूसरे की तरफ देखने लगे। चेहरों पर उलझन के भाव उभर आए थे। फिर सुलोचना देवी ने जैसे खुद को सम्हाला और होठों पर मुस्कान सजा कर कहा____"ठीक है, अगर आप ऐसा ही चाहते हैं तो मैं रागिनी से अकेले में आपकी मुलाक़ात करवा देती हूं। आप थोड़ी देर रुकिए, मैं अभी आती हूं।"
कहने के साथ ही सुलोचना देवी पलट कर अंदर की तरफ चली गईं। इधर वीरेंद्र सिंह जाने किस सोच में गुम हो गया था। मुझे भी समझ नहीं आ रहा था कि उससे क्या कहूं। बस ख़ामोशी से वक्त के गुज़रने का इंतज़ार करने लगा।
क़रीब पांच मिनट बाद सुलोचना देवी बाहर आईं। उन्होंने मुझे अपने साथ अंदर चलने को कहा तो मैं एक नज़र वीरेंद्र सिंह पर डालने के बाद पलंग से उठा और सुलोचना देवी के साथ अंदर की तरफ बढ़ चला। एकाएक ही मेरी धड़कनें तीव्र गति से चलने लगीं थी और साथ ही ये सोच कर घबराहट भी होने लगी थी कि भाभी के सामने कैसे खुद को सामान्य रख पाऊंगा मैं? कैसे उनसे नज़रें मिला कर अपने दिल की बातें कह पाऊंगा? क्या वो मुझे समझेंगी?
सुलोचना देवी मुझे ले कर घर के पिछले हिस्से में आ गईं। घर के पीछे खाली जगह थी जहां पर एक तरफ कुआं था और बाकी कुछ हिस्सों में कई सारे पेड़ पौधे लगे हुए थे।
"महाराज।" सुलोचना देवी ने पलट कर मुझसे कहा____"आप यहीं रुकें, मैं रागिनी को भेजती हूं।"
"जी ठीक है।" मैंने कहा और कुएं की तरफ यूं ही बढ़ चला।
उधर सुलोचना देवी वापस अंदर चली गईं। मैं कुएं के पास आ कर उसमें झांकने लगा। कुएं में क़रीब पांच फीट की दूरी पर पानी नज़र आया। मैं झांकते हुए कुएं के पानी को ज़रूर देखने लगा था लेकिन मेरा मन इसी सोच में डूबा हुआ था कि भाभी के आने पर क्या होगा? क्या मेरी तरह उनका भी यही हाल होगा? क्या मेरी तरह वो भी घबराई हुई होंगी?
अभी मैं ये सब सोच ही रहा था कि तभी मुझे किसी के आने का आभास हुआ। किसी के आने के एहसास से एकाएक मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे दिल ने एकदम से धड़कना ही बंद कर दिया हो। सब कुछ थम गया सा महसूस हुआ। मैंने बड़ी मुश्किल से ख़ुद को सम्हाला और फिर धीरे से पलटा।
मेरी नज़र रागिनी भाभी पर पड़ी। गुलाबी कुर्ते सलवार में वो मेरी तरफ पीठ किए अमरूद के पेड़ के पास ठहर गईं थी। उनके बालों की चोटी उनकी पीठ से होते हुए नीचे उनके नितम्बों को भी पार गई थी। सहसा वो थोड़ा सा घूमीं जिसके चलते मुझे उनके चेहरे की थोड़ी सी झलक मिली। दोनों हाथों में पकड़े अपने दुपट्टे के छोर को हौले हौले उमेठने में लगीं हुईं थी वो।
कुछ देर तक ख़ामोशी से उनकी तरफ देखते रहने के बाद मैं हिम्मत जुटा कर उनकी तरफ बढ़ा। मेरी धड़कनें जो इसके पहले थम सी गई थी वो चलने तो लगीं थी लेकिन हर गुज़रते पल के साथ वो धाड़ धाड़ की शक्ल में बजते हुए मेरी पसलियों पर चोट करने लगीं थी। आख़िर कुछ ही पलों में मैं उनके थोड़ा पास पहुंच गया। शायद उन्हें भी एहसास हो गया था कि मैं उनके पास आ गया हूं इस लिए दुपट्टे को उमेठने वाली उनकी क्रिया एकदम से रुक गई थी।
"भ...भाभी।" मैंने धाड़ धाड़ बजते अपने दिल के साथ बड़ी मुश्किल से उन्हें पुकारा।
एकाएक ही मेरे अंदर बड़ी तेज़ हलचल सी मच गई थी जिसे मैं काबू में करने का प्रयास करने लगा था। उधर मेरे पुकारने पर भाभी पर प्रतिक्रिया हुई। वो बहुत धीमें से मेरी तरफ को पलटीं। अगले ही पल उनका खूबसूरत चेहरा पूरी तरह से मुझे नज़र आया। वो पलट तो गईं थी लेकिन मेरी तरफ देख नहीं रहीं थी। पलकें झुका रखीं थी उन्होंने। सुंदर से चेहरे पर हल्की सी सुर्खी छाई नज़र आई।
"अ...आप ठीक तो हैं ना?" मैंने खुद को सम्हालते हुए बड़ी मुश्किल से पूछा।
"हम्म्म्म।" उन्होंने धीमें से सिर हिलाया।
मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर किस तरह से उनसे वो बातें कहूं जो मैं उनसे कहने आया था। मेरे दिलो दिमाग़ में हलचल सी मची हुई थी। हल्की ठंड में भी मेरे चहरे पर घबराहट के चलते पसीना उभर आया था।
"व..वो मुझे समझ नहीं आ रहा कि कैसे मैं आपको अपने दिल की बात कहूं?" फिर मैंने किसी तरह उनकी तरफ देखते हुए कहा।
उनकी पलकें अभी भी झुकी हुईं थी किन्तु मेरी बात सुनते ही उन्होंने धीरे से पलकें उठा कर मेरी तरफ देखा। अगले ही पल हमारी नज़रें आपस में टकरा गईं। मुझे अपने अंदर एकदम से झुरझरी सी महसूस हुई। वो सवालिया भाव से मेरी तरफ देखने लगीं थी।
"कृपया आप मुझे ग़लत मत समझिएगा।" मैंने झिझकते हुए कहा____"मैं यहां आपसे ये कहने आया हूं कि मेरे दिल में आपके लिए ना पहले कभी कोई ग़लत ख़याल था और ना ही आगे कभी हो सकता है। मैं पहले भी आपका दिल की गहराइयों से आदर और सम्मान करता था और आगे भी करता रहूंगा।"
मेरी ये बातें सुनते ही भाभी के चेहरे पर राहत और खुशी जैसे भाव उभरे। उनकी आंखें जो विरान सी नज़र आ रहीं थी उनमें एकाएक नमी सी नज़र आने लगी। कुछ कहने के लिए उनके होठ कांपे किंतु शायद उनसे कुछ बोला नहीं गया।
"उस दिन जब मैं यहां आपको लेने आया था तो मुझे कुछ भी पता नहीं था।" मैंने धड़कते दिल से कहा____"यहां कामिनी ने जब मुझसे आपके ब्याह होने की बात बताई तो मुझे सच में धक्का लगा था क्योंकि आपका फिर से ब्याह होने की मैंने कल्पना ही नहीं की थी। फिर जब उन्होंने मुझे आपके जीवन को संवारने और आपकी खुशियों की बातें की तो मुझे भी एहसास हुआ कि वास्तव में आपके लिए यही उचित है। उसके बाद जब आपसे बातें हुईं और आपने ब्याह करने से मना कर दिया तो मुझे अच्छा तो लगा लेकिन फिर ये सोचा कि अगर आपका फिर से ब्याह नहीं हुआ तो भला कैसे आपका जीवन संवर सकता है और कैसे आपको सच्ची खुशियां मिल सकती हैं? इसी लिए मैंने आपसे कहा था कि आप हमारे लिए अपना जीवन बर्बाद मत कीजिए। ख़ैर उसके बाद मैं वापस चला गया था। वापस जाते समय मैं रास्ते में यही सोच रहा था कि आपके बारे में इतना बड़ा फ़ैसला ले लिया गया और किसी ने मुझे बताया तक नहीं। इतना तो मैं समझ गया था कि आपके ब्याह होने की बात मां और पिता जी को भी पहले से ही पता थी लेकिन मैं ये सोच कर नाराज़ सा हो गया था कि ये बात मुझसे क्यों छुपाई गई? जब हवेली पहुंचा तो मैंने मां से नाराज़गी दिखाते हुए यही सब पूछा, तब उन्होंने बताया, लेकिन पूरा सच तब भी नहीं बताया। वो तो रूपचंद्र की बातों से मुझे आभास हुआ कि अभी भी मुझसे कुछ छुपाया गया है। हवेली में जब दुबारा मां से पूछा तो उन्होंने बताया कि वास्तव में सच क्या है।"
इतना सब बोल कर मैं एकाएक चुप हो गया और भाभी को ध्यान से देखने लगा। वो पहले की ही तरह चुपचाप अपनी जगह पर खड़ीं थी। चेहरे पर अजीब से भाव उभर आए थे उनके। नज़रें फिर से झुका लीं थी उन्होंने।
"मां ने जब बताया कि आपका ब्याह असल में मेरे साथ करने का फ़ैसला किया गया है तो मैं आश्चर्यचकित रह गया था।" मैंने फिर से कहना शुरू किया____"मैंने तो ऐसा होने की कल्पना भी नहीं की थी लेकिन मां के अनुसार सच यही था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मेरे और आपके माता पिता हम दोनों का आपस में ब्याह करने का कैसे सोच सकते हैं? जब मैंने मां से ये सवाल किया तो उन्होंने पता नहीं कैसी कैसी बातों के द्वारा मुझे समझाना शुरू कर दिया। ये भी कहा कि क्या मैं अपनी भाभी के जीवन को फिर से संवारने के लिए और उनको सच्ची खुशियां देने के लिए इस रिश्ते को स्वीकार नहीं कर सकता? मां के इस सवाल पर मैं अवाक सा रह गया था और फिर आख़िर में मुझे स्वीकार करना ही पड़ा। सब लोग यही चाहते थे, सबको लगता है कि यही उचित है और इसी से आपका भला हो सकता है तो मैं भला कैसे इंकार कर देता? मैं भला ये कैसे चाह सकता था भाभी कि मेरी वजह से आपका जीवन खुशियों से महरूम हो जाए? मैं तो पहले से ही सच्चे दिल से यही चाहता था कि आप हमेशा खुश रहें, आपके जीवन में एक पल के लिए कभी दुख का साया न आए।"
भाभी अब भी नज़रें झुकाए ख़ामोश खड़ीं थी। उन्हें यूं ख़ामोश खड़ा देख मुझे घबराहट भी होने लगी थी लेकिन मैंने सोच लिया था कि उनसे जो कुछ कहने आया था वो कह कर ही जाऊंगा।
"उस दिन से अब तक मैं इसी रिश्ते के बारे में सोचता रहा हूं भाभी।" मैंने गहरी सांस ले कर कहा____"आपकी खुशी के लिए मैं दुनिया का कोई भी काम कर सकता हूं। आपके होठों पर मुस्कान लाने के लिए मैं खुशी खुशी ख़ुद को भी मिटा सकता हूं। मेरे इस बदले हुए जीवन में आपका बहुत बड़ा हाथ रहा है। आज मैं जो बन गया हूं उसमें आपका ही सहयोग था और आपका ही मार्गदर्शन रहा है। मुझे खुशी है कि मैं अपनी भाभी की बदौलत आज एक अच्छा इंसान बनने लगा हूं। मैं आपसे यही कहना चाहता हूं कि आप ये कभी मत समझना कि इस रिश्ते के चलते आपके प्रति मेरी भावनाओं में कोई बदलाव आ जाएगा। आप ये कभी मत सोचना कि मेरे दिल से आपके प्रति आदर और सम्मान मिट जाएगा। मेरे दिल में हमेशा आपके लिए मान सम्मान और श्रद्धा की भावना रहेगी।"
"तु...तुम्हें ये सब कहने की ज़रूरत नहीं है।" भाभी ने नज़रें उठा कर अधीरता से कहा____"मैं जानती हूं और समझती हूं कि तुम मेरी कितनी इज्ज़त करते हो।"
"आपको पता है।" मैंने सहसा अधीर हो कर कहा____"कुछ दिनों से मैं अपने आपको अपराधी सा महसूस करने लगा हूं।"
"ऐसा क्यों?" भाभी के चेहरे पर चौंकने वाले भाव उभरे और साथ ही फिक्रमंदी के भी।
"मेरे मन में बार बार यही ख़याल उभरता रहता है कि इस रिश्ते के चलते आप मेरे बारे में जाने क्या क्या सोचने लगी होंगी।" मैंने कहा____"इतना तो सबको पता रहा है कि मेरा चरित्र कैसा था। अब जब आपका ब्याह मुझसे करने का फ़ैसला किया गया तो मेरे मन में यही ख़याल उभरा कि आप भी अब मेरे चरित्र के आधार पर यही सोच रही होंगी कि मैं आपके बारे में पहले से ही ग़लत सोच रखता रहा होऊंगा, इसी लिए रिश्ते को झट से मंजूरी दे दी।"
"न...नहीं नहीं।" भाभी ने झट से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"ऐसा नहीं है। मैं तुम्हारे बारे में ऐसा सपने में भी नहीं सोच सकती। तुम ऐसा क्यों सोचते हो?"
"क्या करूं भाभी?" मेरी आंखें भर आईं____"मेरा चरित्र ही ऐसा रहा है कि अब अपने उस चरित्र से मुझे ख़ुद ही बहुत घृणा होती है। बार बार यही एहसास होता है कि इस रिश्ते का ज़िक्र होने के बाद अब हर कोई मेरे बारे में ग़लत ही सोच रहा होगा। मेरा यकीन कीजिए भाभी, भले ही मेरा चरित्र निम्न दर्ज़े का रहा है लेकिन मैंने कभी भी आपके बारे में ग़लत नहीं सोचा है। मैं इतना भी गिरा हुआ नहीं था कि अपने ही घर की औरतों और बहू बेटी पर नीयत ख़राब कर लेता। काश! हनुमान जी की तरह मुझमें भी शक्ति होती तो इस वक्त मैं अपना सीना चीर कर आपको दिखा देता। मैं दिखा देता और फिर कहता कि देख लीजिए....मेरे सीने में आपके लिए सिर्फ और सिर्फ आदर सम्मान और श्रद्धा की ही भावना मौजूद है।"
"ब..बस करो।" रागिनी भाभी की आंखें छलक पड़ीं, रुंधे हुए गले से बोलीं____"मैंने कहा ना कि तुम्हें ऐसा कुछ भी सोचने की ज़रूरत नहीं है और ना ही कुछ कहने की। मैं अच्छी तरह जानती हूं और हमेशा महसूस भी किया है कि तुमने कभी मेरे बारे में ग़लत नहीं सोचा है। सच कहती हूं, मुझे हमेशा से ही तुम्हारे जैसा देवर मिलने का गर्व रहा है।"
"आप सच कह रही हैं ना भाभी?" मैं अधीरता से बोल पड़ा____"क्या सचमुच आपको मुझ पर भरोसा है।"
"हां, ख़ुद से भी ज़्यादा।" भाभी ने लरजते स्वर में कहा____"वैसे सच कहूं तो मेरी भी दशा तुम्हारे जैसी ही है। इतने दिनों से मैं भी यही सोचते हुए ख़ुद को दुखी किए हूं कि इस रिश्ते के चलते तुम मेरे बारे में पता नहीं क्या सोचने लगे होगे। अपनी मां और भाभी से यही कहती थी कि अगर तुमने इस रिश्ते के चलते एक पल के लिए भी मेरे बारे में ग़लत सोच लिया तो मेरे लिए वो बहुत ही शर्म की बात हो जाएगी। उस सूरत में मुझे ऐसा लगने लगेगा कि ये धरती फटे और मैं उसमें समा जाऊं।"
"नहीं भाभी नहीं।" मैं तड़प कर बोल पड़ा____"मैं आपके बारे में कभी ग़लत नहीं सोच सकता। आप तो देवी हैं मेरे लिए जिनके प्रति हमेशा सिर्फ श्रद्धा ही रहेगी। दुनिया इधर से उधर हो जाए लेकिन मैं कभी आपके प्रति कुछ भी उल्टा सीधा नहीं सोच सकता। आप इस बात से बिलकुल निश्चिंत रहें भाभी। मैं नहीं जानता कि ऊपर बैठा विधाता मुझसे या आपसे क्या चाहता है लेकिन इतना यकीन कीजिए कि ये संबंध मेरे और आपके बीच मौजूद सच्ची भावनाओं को कभी मैला नहीं कर सकता।"
"तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद वैभव।" भाभी की आंखों से फिर से आंसू का एक कतरा छलक गया____"तुमने ये कह कर मेरे मन को बहुत बड़ी राहत दी है। तुम्हें अंदाज़ा भी नहीं है कि इतने दिनों से मैं ये सब सोच सोच कर कितना व्यथित थी।"
"आप खुद को दुखी मत रखिए भाभी।" मैंने कहा____"आप अच्छी तरह जानती हैं कि मैं आपको दुखी होते नहीं देख सकता। इसके पहले आपको खुश रखने के लिए मेरे बस में जो था वो कर रहा था लेकिन इस रिश्ते के बाद मेरी हमेशा यही कोशिश रहेगी कि मैं आपको कभी एक पल के लिए भी दुख में न रहने दूं।"
मेरी बात सुन कर रागिनी भाभी बड़े गौर से मेरी तरफ देखने लगीं थी। उनके चेहरे पर खुशी के भाव तो थे ही किंतु एकाएक लाज की सुर्खी भी उभर आई थी। उनकी आंखों में समंदर से भी ज़्यादा गहरा प्यार और स्नेह झलकता नज़र आया मुझे।
"क्या रूपा को पता है इस बारे में?" फिर उन्होंने खुद को सम्हालते हुए पूछा____"उस बेचारी के साथ फिर से एक ऐसी स्थिति आ गई है जहां पर उसे समझौता करना पड़ेगा। उसके बारे में जब भी सोचती हूं तो पता नहीं क्यों बहुत बुरा लगता है। तुम्हारे जीवन में सिर्फ उसी का हक़ है।"
"उसे मैंने ही इस बारे में बताया है।" मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा____"पहले तो उसे यकीन ही नहीं हुआ लेकिन जब मैंने सारी बातें बताई तो वो भी यही कहने लगी कि आपके लिए यही उचित है।"
"क्या उसे इस बारे में जान कर तकलीफ़ नहीं हुई?" भाभी ने हैरानी ज़ाहिर करते हुए पूछा।
"उसने क्या कहा जब आप ये सुनेंगी तो आपको बड़ा आश्चर्य होगा।" मैंने हौले से मुस्कुरा कर कहा।
"अच्छा, क्या कहा उसने?" भाभी ने उत्सुकता से पूछा।
मैंने संक्षेप में उन्हें रूपा से हुई अपनी बातें बता दी। सुन कर सचमुच भाभी के चेहरे पर आश्चर्य के भाव उभर आए। कुछ देर जाने क्या सोचती रहीं फिर एक गहरी सांस लीं।
"सचमुच बहुत अद्भुत लड़की है वो।" भाभी ने चकित भाव से कहा____"आज के युग में ऐसी लड़कियां विरले ही कहीं देखने को मिलती हैं। तुम बहुत किस्मत वाले हो जो ऐसी लड़की तुमसे इतना प्रेम करती है और तुम्हारी जीवन संगिनी बनने वाली है। मेरा तुमसे यही कहना है कि तुम कभी भी उसके प्रेम का निरादर मत करना और ना ही कभी उसको कोई दुख तकलीफ़ देना।"
"कभी नहीं दूंगा भाभी।" मैंने अधीरता से कहा____"उसे दुख तकलीफ़ देने का मतलब है हद दर्ज़े का गुनाह करना। कभी कभी सोचा करता हूं कि मैंने तो अपने अब तक के जीवन में हमेशा बुरे कर्म ही किए थे इसके बावजूद ऊपर वाले ने मेरी किस्मत में मुझे इतना प्रेम करने वाली लड़कियां कैसे लिखी थीं?"
"शायद इस लिए क्योंकि ऐसी अद्भुत लड़कियों के द्वारा वो तुम्हें मुकम्मल रूप से बदल देना चाहता था।" भाभी ने कहा____"काश! ईश्वर ने अनुराधा के साथ ऐसा न किया होता। उस मासूम का जब भी ख़याल आता है तो मन बहुत ज़्यादा व्यथित हो उठता है।"
अनुराधा का ज़िक्र होते ही मेरे दिलो दिमाग़ में बड़ी तेज़ी से एक तूफ़ान सा आया और फिर मुझे अंदर तक हिला कर चला गया। ख़ैर कुछ देर और मेरी भाभी से बातें हुईं उसके बाद वो चली गईं। उनके जाने के थोड़ी देर बाद मैं भी वापस बैठक में आ गया। वीरेंद्र सिंह खेतों की तरफ चला गया था इस लिए मैं चुपचाप पलंग पर लेट गया और फिर भाभी से बातों के बारे में सोचने लगा। भाभी से अपने दिल की बातें कह देने से और उनका जवाब सुन लेने से अब मैं बहुत हल्का महसूस कर रहा था।
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Haan sahi kaha...Single launde sabse zyada intzaar kar rahe hain...TheBlackBlood भाई, बहुत शानदार अपडेट्स... बाहर बहुत ही मन्द मन्द शीतल बसंती बयार चल रही है और सभी पात्रों और सभी पाठकों के मन में कुछ ही समय में शुरू होने वाले रती-काम महोत्सव कि अग्नि कि तपिश बढ़ती जा रही है।
Bilkul mitra...mahaul hi aisa ban gaya hai.प्रेम और प्रेम कि अगन ... अब रागिनी, रुपा और अब कुसुम के मन में न सिर्फ गमक रही है वरन् उनकी सखियों, भाभीयों के प्रयास से धधकने लगी है।
परन्तु अभी पुरुष पात्र अभी इससे अछूते हैं, TheBlackBlood भाई, वैभव ने रुपचंद को अपनी छोटी भाभी से पुनर्विवाह के लिए कहा है तो लगे हाथों उसका भी कल्याण हो ऐसा निवेदन है।
Waah! Bahut khoobमेरे एक परम मित्र iloveall की कलम से उद्धृत कुछ पंक्तियां इस अवसर पर उचित लगती हैं... आप सभी रसास्वादन करें:-
जीवन की भूलभुलैया में कुछ ऐसे लम्हे आते हैं, जिनको हम कितना ही चाहें फिर भी न कभी भूल पाते हैं।।
जब मानिनि का मन लाखों मिन्नत मन्नत नहीं मानता है, तब कभी कभी कोई बिरला रख जान हथेली ठानता है।।
कमसिन कातिल कामिनीयां भी होती कुर्बान कुर्बानी पर, न्यौछावर कर देती वह सब कुछ ऐसी विरल जवानी पर।
राहों में मिले चलते चलते हमराही हमारे आज हैं वह,
जिनको ना कभी देखा भी था देखो हम-बिस्तर आज हैं वह।।
Kya baat haiहोली के पूर्व ही होली का एक जोगीरा वैभव और रागिनी के पुनर्विवाह {प्रेम विवाह} के उपलक्ष्य में:-
बनवा बीच कोयलिया बोले, पपीहा नदी के तीर
अँगना में भोजइया डोले, जैसे झलके नीर
जोगीरा सा रा रा रा रा। जोगीरा सा रा रा रा रा...
Asal me Isme menka ki galti nahi hai. Insaani swabhaav hota hi aisa hai. Badi se badi galti karne ke baad bhi wo yahi expect karta hai samne wala uske sath pahle jaisa hi bartaav kare... jabki sach wo khud bhi jaan raha hota hai. Well apni galti ke bare me na batane ki vajah aap pahle hi uske dwara diye gaye bayaan me jana chuke hain...TheBlackBlood भाई,
मेनका ने फिर से गड़बड़ कर दी।
जिस तरह से सालों साल इन दोनों मियाँ-बीवी ने कलुषता और विष, अपने ही भाई-भाभी-भतीजों के लिए पाली हुई थी, और जिसके चलते इतने लोग खेत रहे... लेकिन ये चाहती हैं कि पल भर में वो सब भुला दिया जाए! क्यों? क्योंकि गलती से इनकी असलियत सभी के सामने आ गई!
(ध्यान रहे - इन्होने किसी को बताया नहीं। प्रायश्चित का प्रश्न ही नहीं है। गलती से, रंगी हाथों पकड़ीं गईं, तब जा कर सब कबूला)
ये तो बढ़िया बात हुई न? चित मैं जीता, पट तू हारा। कमाल का एंटाइटलमेंट है ये तो!
Insaan achha hi sochta hai baaki upar wala hi jane...ठाकुर महेंद्र सिंह ने भी सोचा होगा कि कहाँ रिश्ता जोड़ने चले हैं। ऐसे में कुसुम के भविष्य पर खतरा हो सकता है। वो तो महेंद्र ठाकुर सुलझे हुए व्यक्ति लगे, नहीं तो...
उधर रागिनी के मन में राग - रंग के तार छिड़ गए हैं (क्यों न हो? छेड़ने के लिए भाभी और सखी भी तो हैं ही)!
वैसे मुझको TheBlackBlood भाई से कोई उम्मीद नहीं है - अंतरंग दृश्यों का प्रदर्शन --- इनके बस की बात नहीं है!![]()
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Bilkul sahi laga aapko...और लगता है कहानी का अंत निकट है। इधर वर-मालाओं का आदान प्रदान हुआ, और उधर कहानी का द एन्ड!
Insaan ko jab realise ho jata hai ki ab yahi uski niyati hai aur ab yahi hona nishchit hai to fir wo usi hisaab se khud ko dhaalna shuru kar deta hai. Vaibhav aur ragini ke sath yahi ho raha hai...अंततः रागिनी अपने दुखो से पूर्णरूप से बाहर आ रही है, मनुष्य का एक निर्णय किस प्रकार जीवन में प्रभाव डालता है ये दादा ठाकुर के निर्णय से समझा जा सकता है। finally वैभव महाराज भी अपने भाभी के हसीन सपनों में डूब गए है।
Menka jis situation me hai uske base par uska aisa karna athwa sochna swabhavik hi hai lekin use bhi samajhna hoga ki usne jo kiya hai uska asar to padega hi. Wo is baat ko jaanti samajhti to hai lekin hajam nahi kar pa rahi...मेनका का यूं नाराज हो जाना समझा जा सकता है क्योंकि उसके मन में इस बात का डर बैठ गया है की उसके जेठ और जेठानी उसे पराया न कर दे, अपने पति के जाने के बाद वो उन्ही के आसरे है। पीछे जो उसके पति ने गलतियां की थी उसकी आत्मग्लानि भी है उसे।
लेकिन अच्छा था की वो समय रहते समझ गई की दादा ठाकुर का वो आशय नही था जो वो समझ बैठी थी।
Bilkul bhai...Pratyaksh roop se to yahi lagta hai ki unka character bedaagh hai. Dada thakur bhi jaante hain ki ab tak ke jeewan me unhone kabhi bhi unka bura karne ke bare me nahi socha hai. Yahi sab baate dekh kar aur soch kar insaan ye soch leta hai ki samne wala achha insan hi hai. Baaki bhavishya me wo kaisa ban jaye iske bare me kaun jaan sakta hai. Jagtap ka example hi dekh lo...महेंद्र सिंह ने रिश्ता के लिए पूछ ही लिया पर मुझे लगता है उनकी नियत साफ है। जैसा कि वैभव ने बताया की already वो काफी संपन्न है और बड़े लोगो के बीच उठना बैठना है। ऐसे में दादा ठाकुर से संबंधी बनने पर उनके इज्जत में बढ़ोत्तरी ही होगी, उनके साथ गलत कर अपने दामन पर दाग लगने से बचेंगे लेकिन दादा ठाकुर ने सही कहा की अंत में होगा वही जो सबकी किस्मत में लिखा है।
Sab apni apni koshisho me lage hain, ek tarah se sab apna farz hi nibha rahe hain lekin asal me kya hoga ye to tabhi pata chalega jab dono us situation me pahuch chuke honge...शालिनी ने तो शब्दों से ही रागिनी को निर्वस्त्र कर दिया जो की आमतौर पर महिलाओं के बीच common है पर रागिनी जैसी लड़की के लिए अजीब था। देखते है की शब्द क्रियाओं में बदलेंगे या भाईसाहब सुखा सुखा ही खत्म कर देंगे।
अपडेट के लिए धन्यवाद, अगले अपडेट की प्रतीक्षा में![]()
ThanksBahot pyaara update tha bhai ek shukhad anubhuti hui iye dekh kar ki ab vaibhab ki jindagi me kuchh acha hoga. Bahot romaanchak aur majedaar update tha bhai. Next update ka intajaar rahegaa bhai![]()