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Incest पहाडी मौसम

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Ajju Landwalia

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मुखिया की बीवी आम के बगीचे की रखवाली करने का बहाना देकर अपनी चाल चल चुकी थी,,, और इस बात से सूरज भी बहुत खुश नजर आ रहा था वैसे भी उसे मुखिया की बीवी के साथ वक्त गुजारना अच्छा लगता था और इसी बहाने वह रात भर मुखिया की बीवी के साथ आम की रखवाली तो कर सकता था इसी बात को लेकर उसके चेहरे पर प्रसन्नता के भाव नजर आ रहे थे।

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मुखिया को इसमें कोई एतराज नहीं था क्योंकि इससे पहले की उसकी बीवी आपके बगीचे की रखवाली करने के लिए बगीचे में कई राते रुक चुकी थी लेकिन मुखिया इस बात से अनजान था कि आम के बगीचे की रखवाली करने के बहाने उसकी बीवी रात रंगीन करतीथी। इसीलिए तो मुखिया एकदम सहज था अपनी बीवी के प्रति उसे बिल्कुल भी शंका नहीं था और वैसे भी जिस तरह से वह खेत खलिहान का काम संभालती थी,,, मजदूरों को संभालती थी और हिसाब किताब देखी थी इतना कुछ करने की क्षमता मुखिया में बिल्कुल भी नहीं थी इसीलिए तो वह अपनी बीवी से बहुत खुश था क्योंकि उसके चलते ही उसे आराम मिलता था।

एक तरफ मुखिया की बीवी पूरी तरह से उत्सुक थी सूरज से रात को मिलने के लिए और दूसरी तरफ सूरज का भी यही हाल था जिस तरह का नजारा मुखिया की बीवी ने उसे दिखाई थी वह नजारा आज तक उसके मन-मस्तिष्क में किसी चित्र की भांति छप गया था और उसे नजारे के बारे में जब भी उसे ख्याल आता था तब तब उसके बदन में सिहरन सी दौड़ने लगती थी,,, वह उसकी आंखों के सामने कपड़ा उतारना अपनी खूबसूरत बदन की नुमाइश करना और जिस तरह से वह पेटीकोट को खोलकर आगे की तरफ खींची थी उसकी दोनों टांगों के बीच घुंघराले बाल को देखकर आश्चर्यचकित हो जाना यह सब याद करके सूरज के तन बदन में आग लग जाती थी,,, इसलिए तो वह भी बेसब्री से शाम ढलने का इंतजार कर रहा था और यह बात उसने अपने घर पर भी बता दिया था पहले तो उसकी मां थोड़ा नाराज हुई लेकिन,, क्योंकि घर पर उसका पति भी नहीं था और अब सूरज भी कहीं आम की रखवाली करने के लिए जा रहा था वैसे उसने इस बात को नहीं बताया था कि वह मुखिया की बीवी के साथ आम की रखवाली करने के लिए जा रहा है वह सिर्फ इतना ही बताया था कि रात को आम के बगीचे की रखवाली करना है कुछ लोगों के साथ साथ में पैसे भी मिलेंगे और पके हुए आम भी मिलेंगे उसने मुखिया की बीवी के साथ वाली बात को छुपा ले गया था न जाने कहां से सूरज में इतना दिमाग आ गया था वरना अगर वह यह बात बता देता तो शायद सुनैना के मन में ढेर सारे शंका ने जन्म ले लिया होता। और आम के बगीचे की रखवाली के बदले में पैसे और पके हुए आम मिलने के लालच में सुनैना भी कुछ बोल नहीं पाई और जल्दी-जल्दी खाना बनाने लगी।

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शाम ढल चुकी थी बहुत जल्द ही उसे मुखिया के घर पर पहुंचना था वैसे तो उसे रात बिरात डर बिल्कुल भी नहीं लगता था लेकिन वह समय पर पहुंचना चाहता था,,, सूरज ठीक रसोई के सामने बैठकर भोजन का इंतजार कर रहा था और उसकी मां जल्दी-जल्दी तवे पर रोटियां पका रही थी लेकिन उसकी इस जल्दबाजी में वह यह भूल गई थी कि उसके कंधे पर से उसके साड़ी का पल्लू नीचे गिर चुका था और वह चूल्हे के सामने बिना साड़ी के पल्लू की बैठी हुई थी जिसकी वजह से उसकी दोनों चूचियां ब्लाउज में एकदम कसी हुई नजर आ रही थी लेकिन ऐसी अवस्था में ,, उसकी बड़ी-बड़ी दोनों चूचियां ब्लाउज फाड़कर बाहर आने के लिए एकदम आतुर नजर आ रहे थे इस पर नजर पडते ही सूरज की हालत खराब होने लगी,,,।

सूरज एकदम से भूल गया कि उसे मुखिया की बीवी के साथ जल्दी आम के बगीचे पर जाना है वह तो अपनी मां के दोनों खरगोश में खो गया था और चूल्हे के आगे बेटी होने की वजह से उसके बदन से पसीना टपक रहा था और उसके माथे से पसीना बुंद बनकर उसके गोरे-गोरे गाल से होते हुए उसके गर्दन का रास्ता नापते हुए सीधे-सीधे उसके ब्लाउज के बीच वाली घाटी से होते हुए ब्लाउज के अंदर की तरफ जा रहे थे यह सब देखकर सूरज के लंड में हरकत होना शुरू हो गया,,, सुनैना इस बात से बेखबर खाना बनाने में लगी हुई थी,,, सूरज यह जानते हुए भी की जो कुछ भी वह अपनी मां की तरफ देख कर सो रहा है वह गलत है लेकिन फिर भी वह अपने आप को रोक नहीं पा रहा था अपनी मां की तरफ देखने से,,,खास करके उसकी चूचियों की तरह और वह भी चूल्हे के सामने बैठी होने की वजह से चूल्हे में जल रही आग की पीली रोशनी में उसका खूबसूरत बदन और भी ज्यादा चमक रहा था।। यह सब सूरज के लिए बहुत ही ज्यादा असहनीय होता जा रहा था। जिस तरह से सुनैना रोटियां बेल रही थी उसके हाथों की हरकत की वजह से उसके ब्लाउज में भी उतार चढ़ाव एकदम साफ नजर आ रहा था यह सब देखकर सूरज के लंड की अकड़ बढ़ती जा रही थी। इस नजारे को देखकर अनायास ही उसके मन में यह ख्याल आ गया कि काश उसकी मां ब्लाउज नहीं पहनी होती तो उसकी नंगी चूचियों को देखने में कितना मजा आता है लेकिन अपने इसी ख्याल पर वह अपने आप पर ही गुस्सा दिखाने लगा,। क्योंकि वह सब जानता था कि जो कुछ भी वर्क कर रहा है अपने मन में सोच रहा है वह बहुत ही गलत है लेकिन वह इससे ज्यादा कुछ सोच पाता इससे पहले ही सुनैना बोली।

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बस ले अब तैयार हो गया है गरमा गरम खा ले,,,(इतना कहने के साथ ही एक थाली में थोड़ी सी सब्जी दाल चावल और रोटी निकालकर सूरज की तरफ आगे बढ़ा दी सूरज भी अपना हाथ आगे बढ़कर थाली को ले लिया और खाना शुरू कर दिया उसकी मां तुरंत अपनी जगह से उठकर खड़ी हुई और मटके से ठंडा ठंडा पानी गिलास भरकर लाई और उसके पास रख दी और उसे हिदायत देते हुए बोली,,)

देख रात का समय है और बगीचे का इसलिए ध्यान देना कहीं अकेले मत जाना जहां भी जाना अपने साथी लोग के साथ ही जाना,,, वैसे तो मुझे अच्छा नहीं लग रहा है लेकिन तू भी अब बड़ा हो गया है कामकाज देखेगा तभी तो जीवन की गाड़ी आगे बढ़ेगी।

तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो ना मैं सब संभाल लूंगा,,,(निवाला मुंह में डालते हुए बोला और थोड़ी ही देर में वह खाना खा लिया और जाने के लिए तैयार हो गया था लेकिन जाते-जाते वह अपनी मां को बोला)

मैं अब जा रहा हूं पिताजी भी घर पर नहीं है इसलिए दरवाजा बंद कर लेना और खोलना नहीं और तुम दोनों की जल्दी से खाना खाकर सो जाना।

ठीक है सूरज तू अपना ख्याल रखना,,

ठीक है मां,,,(और इतना कहते हुए वह मुखिया की बीवी के घर की तरफ निकल गया,,, लेकिन रास्ते में वह अपनी मां की चूचियों के बारे में सोचने लगा,,, और अपने आप से ही बातें करते हुए बोला

मां की चूचीया कितनी बड़ी-बड़ी है,,, ब्लाउज में इतनी जबरदस्त लगती है तो बिना ब्लाउज की जब एकदम नंगी होती होगी तो कितनी खूबसूरत लगती होगी एकदम गोल-गोल खरबूजे जैसी मैंने तो कभी देखा भी नहीं है लेकिन ब्लाउज में उसकी गोलाई देखकर अंदाजा लगा लेता हूं कि कैसी दिखती होगी ,,, कसम से अभी तो मेरी हालत खराब हो गई थी,, अच्छा हुआ कि मां ने नहीं देखी,,, यह साला मुझे क्या हो जाता है सब कुछ जानते हुए भी की जो कुछ भी मैं देख रहा हूं जो सोच रहा हूं सब गलत है फिर भी मैं अपने आप को रोक क्यों नहीं पाता,,,, लेकिन पहले तो मैं ऐसा बिल्कुल भी नहीं था तो अब ऐसा क्यों हो रहा है मां को देखते ही मेरे दिल की धड़कन क्यों बढ़ने लगती है क्यों मेरी नजर उनके अंगों पर चली जाती है वैसे भी जिस दिन से मा की चुदाई देखा हूं तब से तो न जाने मेरे मन में कैसे-कैसे विचार आने लगे हैं।

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उस दिन कमरे में मां और पिताजी पूरी तरह से नंगे थे लेकिन मुझे ज्यादा कुछ नहीं दिखाई दिया सिर्फ मां की बड़ी-बड़ी गांड और उसकी दोनों टांगों के बीच पिताजी का अंदर बाहर होता हुआ लंड मां की बुर भी मै अभी तक नहीं देख पाया,,, लेकिन वह नजारा देखकर मेरी तो हालत खराब हो गई थी मैं तो कभी सोच भी नहीं सकता था कि मेरी मां भी चुदवाती होगी लेकिन सब कुछ मैं अपनी आंखों से देखा था पिताजी कैसे जोर-जोर से धक्के लगा रहे थे और न जाने कैसे-कैसे आवाज मां के मुंह से निकल रही थी इसका मतलब मन को भी चुदवाने में मजा आता है।
(सूरज अपने मन में यही सब सोते हुए और अपने आप से ही बात करते हुए आगे की तरफ चले जा रहा था वह अपनी बात को अपने मन में ही आगे बढ़ाते हुए अपने आप से ही बोला)

कितना अच्छा मौका था उसे दिन पूरी तरह से मांगी थी पिताजी नंगे थे लेकिन फिर भी ज्यादा कुछ दिखाई नहीं दे रहा था पिताजी मां को नीचे लेट कर उसकी चुदाई करते तो मैं सब कुछ देख लेता उनके बुर भी देख लेता की कैसी उनके बुर हैं,,, नीलू की तो मैं अपनी आंखों से देख लिया था एकदम चिकनी कचोरी की तरह खुली हुई क्या इस तरह की मां की भी बुर होगी,,, पता नहीं मैं अभी तक नीलू की छोड़कर किसी और की बुर देखा ही नहीं,,, मुझे तो यह भी नहीं मालूम कि सब की एक जैसी होती है कि अलग-अलग होती है लेकिन जो नशा देखकर हुआ था वह नशा आज तक मेरी नस-नस में घुला हुआ है,,,

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पिताजी कितने कसकस के धक्के लगा रहे थे,,, पूरा दम लगाकर पता नहीं मा कैसे उनके धक्को को सहन कर पा रही थी,,,,,, कुछ पता ही नहीं चला था की मां को कैसा लग रहा है पता नहीं उन्हें दर्द कर रहा था कि मजा आ रहा था और वैसे भी दीवाल पकड़ कर झुकी हुई थी एकदम घोड़ी बनकर,,, जैसे की घोड़ी के ऊपर घोड़ा,,,, जो मां और पिताजी कर रहे थे उसे ही चुदाई कहते हैं और यह सब शादी के बाद ही होता है काश मेरी भी शादी हो गई होती तो मैं भी सब कुछ जान जाता,,,। और रोज मजे लेता,,,,।

(वह यही सब सोते हुए मुखिया के घर की तरफ चले जा रहा था कि तभी एक कुत्ता भोकता हुआ उसकी तरफ लपका तो उसका ध्यान एकदम से भंग हुआ और वह तुरंत नीचे से पत्थर उठा दिया और गाली देता हुआ उसकी तरफ चल दिया कुत्ता तुरंत वहां से भाग गया तब उसे इस बात का एहसास हुआ कि चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था उसे इस बात का डर था कि कहीं देर तो नहीं हो गई कहीं मुखिया की बीवी अकेले तो बगीचे पर नहीं चली गई यही सब सोता हुआ वह जल्दी-जल्दी मुखिया के घर की तरफ जाने लगा जो की दुर से ही मुखिया का घर नजर आ रहा था। ऊपर वाले मंजिले पर बाहर की तरफ लालटेन चल रही थी क्योंकि दूर से ही दिखाई दे रही थी।


सूरज जल्दी-जल्दी मुखिया के घर की तरफ जाने लगा और थोड़ी देर में पहुंच गया बाहर ही कुर्सी पर बैठकर मुखिया और मुखिया की बीवी सूरज का इंतजार कर रही थी सूरज को देखते ही मुखिया की बीवी बोली।

कहां रह गया था रे मैं कब से तेरा इंतजार कर रही हूं देख कितना समय हो गया या अंधेरा हो गया हमें और जल्दी जाना चाहिए था।

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मैं माफी चाहता हूं मालकिन घर पर खाना बनने में देर हो गया था इसलिए जल्दी से खाकर मैं जल्दी-जल्दी भागता हुआ यहां आया हूं मुझे तो लग रहा था कि कहीं आप अकेले ना निकल गई हो।

अकेले क्यों जाऊंगी तुझे लिए बिना कैसे जा सकती हूं,,, तूने खाना खा लिया है।

हां मालकिन,,,

चल कोई बात नहीं खाना खा लिया तो ठीक ही है लेकिन खाने का डब्बा भी ले ले कहीं रात को भूख लग गई तो ,,,,
(इतना सुनते ही पास में पड़ा हुआ खाने के डब्बे को सूरज उठा लिया और फिर मुखिया जो वही कुर्सी पर बैठा हुआ था वह बोला)

सूरज वह सामने कुल्हाड़ी पड़ी है उसे भी ले ले,,,

कुल्हाड़ी क्यों मालिक,,,(सूरज आश्चार्य जताते हुए बोला,,,)

अरे पागल रात का समय है चोर उचक्के का डर तो रहता ही है लेकिन जंगली जानवरों का भी डर रहता है हाथ में हथियार रहेगा तो डर तो नहीं रहेगा।
(मुखिया की बात सुनकर सूरज को थोड़ी घबराहट हुई लेकिन फिर भी वहां मुखिया के बताएं अनुसार कुल्हाड़ी को हाथ में ले लिया और फिर मुखिया खुद अपनी जगह से खड़ा होकर लालटेन अपने हाथ में लिया और उसे अपनी बीवी को थमा दिया.. लालटेन को अपने हाथ में लेते हुए वह मुस्कुरा कर बोली,,,)

इसकी तो ज्यादा जरूरत है,,,,(और फिर एक हाथ में लालटेन और एक बड़ा सा डंडा अपने हाथ में लेकर दोनों आम के बगीचे की तरफ निकल गए)

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Bahut hi shandar update he rohnny4545 Bhai,

Suraj ab jawani ke nazare dekhega.............mukhiya ki biwi ek pake huye aam ki tarah he............jiska ras suraj maje lekar chusega............

Keep posting Bhai
 

rohnny4545

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बहुत ही सुंदर लाजवाब और शानदार अपडेट है भाई मजा आ गया
लगता है की सुरज के लंड का आम के बाग में मुखिया की बिबी के साथ चुदाई करके उद्घाटन होने वाला है
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा

मुखियाकी बीवी और सूरज के बीच कुछ ऐसाहोने वाला है
GIF-240301-160257
 

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मुखिया की बीवी आम के बगीचे की रखवाली करने का बहाना देकर अपनी चाल चल चुकी थी,,, और इस बात से सूरज भी बहुत खुश नजर आ रहा था वैसे भी उसे मुखिया की बीवी के साथ वक्त गुजारना अच्छा लगता था और इसी बहाने वह रात भर मुखिया की बीवी के साथ आम की रखवाली तो कर सकता था इसी बात को लेकर उसके चेहरे पर प्रसन्नता के भाव नजर आ रहे थे।

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मुखिया को इसमें कोई एतराज नहीं था क्योंकि इससे पहले की उसकी बीवी आपके बगीचे की रखवाली करने के लिए बगीचे में कई राते रुक चुकी थी लेकिन मुखिया इस बात से अनजान था कि आम के बगीचे की रखवाली करने के बहाने उसकी बीवी रात रंगीन करतीथी। इसीलिए तो मुखिया एकदम सहज था अपनी बीवी के प्रति उसे बिल्कुल भी शंका नहीं था और वैसे भी जिस तरह से वह खेत खलिहान का काम संभालती थी,,, मजदूरों को संभालती थी और हिसाब किताब देखी थी इतना कुछ करने की क्षमता मुखिया में बिल्कुल भी नहीं थी इसीलिए तो वह अपनी बीवी से बहुत खुश था क्योंकि उसके चलते ही उसे आराम मिलता था।

एक तरफ मुखिया की बीवी पूरी तरह से उत्सुक थी सूरज से रात को मिलने के लिए और दूसरी तरफ सूरज का भी यही हाल था जिस तरह का नजारा मुखिया की बीवी ने उसे दिखाई थी वह नजारा आज तक उसके मन-मस्तिष्क में किसी चित्र की भांति छप गया था और उसे नजारे के बारे में जब भी उसे ख्याल आता था तब तब उसके बदन में सिहरन सी दौड़ने लगती थी,,, वह उसकी आंखों के सामने कपड़ा उतारना अपनी खूबसूरत बदन की नुमाइश करना और जिस तरह से वह पेटीकोट को खोलकर आगे की तरफ खींची थी उसकी दोनों टांगों के बीच घुंघराले बाल को देखकर आश्चर्यचकित हो जाना यह सब याद करके सूरज के तन बदन में आग लग जाती थी,,, इसलिए तो वह भी बेसब्री से शाम ढलने का इंतजार कर रहा था और यह बात उसने अपने घर पर भी बता दिया था पहले तो उसकी मां थोड़ा नाराज हुई लेकिन,, क्योंकि घर पर उसका पति भी नहीं था और अब सूरज भी कहीं आम की रखवाली करने के लिए जा रहा था वैसे उसने इस बात को नहीं बताया था कि वह मुखिया की बीवी के साथ आम की रखवाली करने के लिए जा रहा है वह सिर्फ इतना ही बताया था कि रात को आम के बगीचे की रखवाली करना है कुछ लोगों के साथ साथ में पैसे भी मिलेंगे और पके हुए आम भी मिलेंगे उसने मुखिया की बीवी के साथ वाली बात को छुपा ले गया था न जाने कहां से सूरज में इतना दिमाग आ गया था वरना अगर वह यह बात बता देता तो शायद सुनैना के मन में ढेर सारे शंका ने जन्म ले लिया होता। और आम के बगीचे की रखवाली के बदले में पैसे और पके हुए आम मिलने के लालच में सुनैना भी कुछ बोल नहीं पाई और जल्दी-जल्दी खाना बनाने लगी।

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शाम ढल चुकी थी बहुत जल्द ही उसे मुखिया के घर पर पहुंचना था वैसे तो उसे रात बिरात डर बिल्कुल भी नहीं लगता था लेकिन वह समय पर पहुंचना चाहता था,,, सूरज ठीक रसोई के सामने बैठकर भोजन का इंतजार कर रहा था और उसकी मां जल्दी-जल्दी तवे पर रोटियां पका रही थी लेकिन उसकी इस जल्दबाजी में वह यह भूल गई थी कि उसके कंधे पर से उसके साड़ी का पल्लू नीचे गिर चुका था और वह चूल्हे के सामने बिना साड़ी के पल्लू की बैठी हुई थी जिसकी वजह से उसकी दोनों चूचियां ब्लाउज में एकदम कसी हुई नजर आ रही थी लेकिन ऐसी अवस्था में ,, उसकी बड़ी-बड़ी दोनों चूचियां ब्लाउज फाड़कर बाहर आने के लिए एकदम आतुर नजर आ रहे थे इस पर नजर पडते ही सूरज की हालत खराब होने लगी,,,।

सूरज एकदम से भूल गया कि उसे मुखिया की बीवी के साथ जल्दी आम के बगीचे पर जाना है वह तो अपनी मां के दोनों खरगोश में खो गया था और चूल्हे के आगे बेटी होने की वजह से उसके बदन से पसीना टपक रहा था और उसके माथे से पसीना बुंद बनकर उसके गोरे-गोरे गाल से होते हुए उसके गर्दन का रास्ता नापते हुए सीधे-सीधे उसके ब्लाउज के बीच वाली घाटी से होते हुए ब्लाउज के अंदर की तरफ जा रहे थे यह सब देखकर सूरज के लंड में हरकत होना शुरू हो गया,,, सुनैना इस बात से बेखबर खाना बनाने में लगी हुई थी,,, सूरज यह जानते हुए भी की जो कुछ भी वह अपनी मां की तरफ देख कर सो रहा है वह गलत है लेकिन फिर भी वह अपने आप को रोक नहीं पा रहा था अपनी मां की तरफ देखने से,,,खास करके उसकी चूचियों की तरह और वह भी चूल्हे के सामने बैठी होने की वजह से चूल्हे में जल रही आग की पीली रोशनी में उसका खूबसूरत बदन और भी ज्यादा चमक रहा था।। यह सब सूरज के लिए बहुत ही ज्यादा असहनीय होता जा रहा था। जिस तरह से सुनैना रोटियां बेल रही थी उसके हाथों की हरकत की वजह से उसके ब्लाउज में भी उतार चढ़ाव एकदम साफ नजर आ रहा था यह सब देखकर सूरज के लंड की अकड़ बढ़ती जा रही थी। इस नजारे को देखकर अनायास ही उसके मन में यह ख्याल आ गया कि काश उसकी मां ब्लाउज नहीं पहनी होती तो उसकी नंगी चूचियों को देखने में कितना मजा आता है लेकिन अपने इसी ख्याल पर वह अपने आप पर ही गुस्सा दिखाने लगा,। क्योंकि वह सब जानता था कि जो कुछ भी वर्क कर रहा है अपने मन में सोच रहा है वह बहुत ही गलत है लेकिन वह इससे ज्यादा कुछ सोच पाता इससे पहले ही सुनैना बोली।

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बस ले अब तैयार हो गया है गरमा गरम खा ले,,,(इतना कहने के साथ ही एक थाली में थोड़ी सी सब्जी दाल चावल और रोटी निकालकर सूरज की तरफ आगे बढ़ा दी सूरज भी अपना हाथ आगे बढ़कर थाली को ले लिया और खाना शुरू कर दिया उसकी मां तुरंत अपनी जगह से उठकर खड़ी हुई और मटके से ठंडा ठंडा पानी गिलास भरकर लाई और उसके पास रख दी और उसे हिदायत देते हुए बोली,,)

देख रात का समय है और बगीचे का इसलिए ध्यान देना कहीं अकेले मत जाना जहां भी जाना अपने साथी लोग के साथ ही जाना,,, वैसे तो मुझे अच्छा नहीं लग रहा है लेकिन तू भी अब बड़ा हो गया है कामकाज देखेगा तभी तो जीवन की गाड़ी आगे बढ़ेगी।

तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो ना मैं सब संभाल लूंगा,,,(निवाला मुंह में डालते हुए बोला और थोड़ी ही देर में वह खाना खा लिया और जाने के लिए तैयार हो गया था लेकिन जाते-जाते वह अपनी मां को बोला)

मैं अब जा रहा हूं पिताजी भी घर पर नहीं है इसलिए दरवाजा बंद कर लेना और खोलना नहीं और तुम दोनों की जल्दी से खाना खाकर सो जाना।

ठीक है सूरज तू अपना ख्याल रखना,,

ठीक है मां,,,(और इतना कहते हुए वह मुखिया की बीवी के घर की तरफ निकल गया,,, लेकिन रास्ते में वह अपनी मां की चूचियों के बारे में सोचने लगा,,, और अपने आप से ही बातें करते हुए बोला

मां की चूचीया कितनी बड़ी-बड़ी है,,, ब्लाउज में इतनी जबरदस्त लगती है तो बिना ब्लाउज की जब एकदम नंगी होती होगी तो कितनी खूबसूरत लगती होगी एकदम गोल-गोल खरबूजे जैसी मैंने तो कभी देखा भी नहीं है लेकिन ब्लाउज में उसकी गोलाई देखकर अंदाजा लगा लेता हूं कि कैसी दिखती होगी ,,, कसम से अभी तो मेरी हालत खराब हो गई थी,, अच्छा हुआ कि मां ने नहीं देखी,,, यह साला मुझे क्या हो जाता है सब कुछ जानते हुए भी की जो कुछ भी मैं देख रहा हूं जो सोच रहा हूं सब गलत है फिर भी मैं अपने आप को रोक क्यों नहीं पाता,,,, लेकिन पहले तो मैं ऐसा बिल्कुल भी नहीं था तो अब ऐसा क्यों हो रहा है मां को देखते ही मेरे दिल की धड़कन क्यों बढ़ने लगती है क्यों मेरी नजर उनके अंगों पर चली जाती है वैसे भी जिस दिन से मा की चुदाई देखा हूं तब से तो न जाने मेरे मन में कैसे-कैसे विचार आने लगे हैं।

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उस दिन कमरे में मां और पिताजी पूरी तरह से नंगे थे लेकिन मुझे ज्यादा कुछ नहीं दिखाई दिया सिर्फ मां की बड़ी-बड़ी गांड और उसकी दोनों टांगों के बीच पिताजी का अंदर बाहर होता हुआ लंड मां की बुर भी मै अभी तक नहीं देख पाया,,, लेकिन वह नजारा देखकर मेरी तो हालत खराब हो गई थी मैं तो कभी सोच भी नहीं सकता था कि मेरी मां भी चुदवाती होगी लेकिन सब कुछ मैं अपनी आंखों से देखा था पिताजी कैसे जोर-जोर से धक्के लगा रहे थे और न जाने कैसे-कैसे आवाज मां के मुंह से निकल रही थी इसका मतलब मन को भी चुदवाने में मजा आता है।
(सूरज अपने मन में यही सब सोते हुए और अपने आप से ही बात करते हुए आगे की तरफ चले जा रहा था वह अपनी बात को अपने मन में ही आगे बढ़ाते हुए अपने आप से ही बोला)

कितना अच्छा मौका था उसे दिन पूरी तरह से मांगी थी पिताजी नंगे थे लेकिन फिर भी ज्यादा कुछ दिखाई नहीं दे रहा था पिताजी मां को नीचे लेट कर उसकी चुदाई करते तो मैं सब कुछ देख लेता उनके बुर भी देख लेता की कैसी उनके बुर हैं,,, नीलू की तो मैं अपनी आंखों से देख लिया था एकदम चिकनी कचोरी की तरह खुली हुई क्या इस तरह की मां की भी बुर होगी,,, पता नहीं मैं अभी तक नीलू की छोड़कर किसी और की बुर देखा ही नहीं,,, मुझे तो यह भी नहीं मालूम कि सब की एक जैसी होती है कि अलग-अलग होती है लेकिन जो नशा देखकर हुआ था वह नशा आज तक मेरी नस-नस में घुला हुआ है,,,

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पिताजी कितने कसकस के धक्के लगा रहे थे,,, पूरा दम लगाकर पता नहीं मा कैसे उनके धक्को को सहन कर पा रही थी,,,,,, कुछ पता ही नहीं चला था की मां को कैसा लग रहा है पता नहीं उन्हें दर्द कर रहा था कि मजा आ रहा था और वैसे भी दीवाल पकड़ कर झुकी हुई थी एकदम घोड़ी बनकर,,, जैसे की घोड़ी के ऊपर घोड़ा,,,, जो मां और पिताजी कर रहे थे उसे ही चुदाई कहते हैं और यह सब शादी के बाद ही होता है काश मेरी भी शादी हो गई होती तो मैं भी सब कुछ जान जाता,,,। और रोज मजे लेता,,,,।

(वह यही सब सोते हुए मुखिया के घर की तरफ चले जा रहा था कि तभी एक कुत्ता भोकता हुआ उसकी तरफ लपका तो उसका ध्यान एकदम से भंग हुआ और वह तुरंत नीचे से पत्थर उठा दिया और गाली देता हुआ उसकी तरफ चल दिया कुत्ता तुरंत वहां से भाग गया तब उसे इस बात का एहसास हुआ कि चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था उसे इस बात का डर था कि कहीं देर तो नहीं हो गई कहीं मुखिया की बीवी अकेले तो बगीचे पर नहीं चली गई यही सब सोता हुआ वह जल्दी-जल्दी मुखिया के घर की तरफ जाने लगा जो की दुर से ही मुखिया का घर नजर आ रहा था। ऊपर वाले मंजिले पर बाहर की तरफ लालटेन चल रही थी क्योंकि दूर से ही दिखाई दे रही थी।


सूरज जल्दी-जल्दी मुखिया के घर की तरफ जाने लगा और थोड़ी देर में पहुंच गया बाहर ही कुर्सी पर बैठकर मुखिया और मुखिया की बीवी सूरज का इंतजार कर रही थी सूरज को देखते ही मुखिया की बीवी बोली।

कहां रह गया था रे मैं कब से तेरा इंतजार कर रही हूं देख कितना समय हो गया या अंधेरा हो गया हमें और जल्दी जाना चाहिए था।

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मैं माफी चाहता हूं मालकिन घर पर खाना बनने में देर हो गया था इसलिए जल्दी से खाकर मैं जल्दी-जल्दी भागता हुआ यहां आया हूं मुझे तो लग रहा था कि कहीं आप अकेले ना निकल गई हो।

अकेले क्यों जाऊंगी तुझे लिए बिना कैसे जा सकती हूं,,, तूने खाना खा लिया है।

हां मालकिन,,,

चल कोई बात नहीं खाना खा लिया तो ठीक ही है लेकिन खाने का डब्बा भी ले ले कहीं रात को भूख लग गई तो ,,,,
(इतना सुनते ही पास में पड़ा हुआ खाने के डब्बे को सूरज उठा लिया और फिर मुखिया जो वही कुर्सी पर बैठा हुआ था वह बोला)

सूरज वह सामने कुल्हाड़ी पड़ी है उसे भी ले ले,,,

कुल्हाड़ी क्यों मालिक,,,(सूरज आश्चार्य जताते हुए बोला,,,)

अरे पागल रात का समय है चोर उचक्के का डर तो रहता ही है लेकिन जंगली जानवरों का भी डर रहता है हाथ में हथियार रहेगा तो डर तो नहीं रहेगा।
(मुखिया की बात सुनकर सूरज को थोड़ी घबराहट हुई लेकिन फिर भी वहां मुखिया के बताएं अनुसार कुल्हाड़ी को हाथ में ले लिया और फिर मुखिया खुद अपनी जगह से खड़ा होकर लालटेन अपने हाथ में लिया और उसे अपनी बीवी को थमा दिया.. लालटेन को अपने हाथ में लेते हुए वह मुस्कुरा कर बोली,,,)

इसकी तो ज्यादा जरूरत है,,,,(और फिर एक हाथ में लालटेन और एक बड़ा सा डंडा अपने हाथ में लेकर दोनों आम के बगीचे की तरफ निकल गए)

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बहुत ही सुंदर लाजवाब और शानदार अपडेट है भाई मजा आ गया
सुरज की जवानी बहुत ही हिलोरे मार रही हैं
खाना बनाते समय सुनैना की मदमस्त चुचिया देखकर उसके नीचे का बाबु बडा ही उछल कुद करने लगा है
नीलु के बुर के दर्शन करने के बाद वो सभी के बुर कैसे होती होगी उसकी कल्पना करने लगा
अब आम के बाग में मुखिया की बिबी और वो रात को क्या धमाल करते है देखते हैं आगे
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

sunoanuj

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Jabardast updates… 👏🏻👏🏻👏🏻
 

Sanju@

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मुखिया की बीवी आम के बगीचे की रखवाली करने का बहाना देकर अपनी चाल चल चुकी थी,,, और इस बात से सूरज भी बहुत खुश नजर आ रहा था वैसे भी उसे मुखिया की बीवी के साथ वक्त गुजारना अच्छा लगता था और इसी बहाने वह रात भर मुखिया की बीवी के साथ आम की रखवाली तो कर सकता था इसी बात को लेकर उसके चेहरे पर प्रसन्नता के भाव नजर आ रहे थे।

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मुखिया को इसमें कोई एतराज नहीं था क्योंकि इससे पहले की उसकी बीवी आपके बगीचे की रखवाली करने के लिए बगीचे में कई राते रुक चुकी थी लेकिन मुखिया इस बात से अनजान था कि आम के बगीचे की रखवाली करने के बहाने उसकी बीवी रात रंगीन करतीथी। इसीलिए तो मुखिया एकदम सहज था अपनी बीवी के प्रति उसे बिल्कुल भी शंका नहीं था और वैसे भी जिस तरह से वह खेत खलिहान का काम संभालती थी,,, मजदूरों को संभालती थी और हिसाब किताब देखी थी इतना कुछ करने की क्षमता मुखिया में बिल्कुल भी नहीं थी इसीलिए तो वह अपनी बीवी से बहुत खुश था क्योंकि उसके चलते ही उसे आराम मिलता था।

एक तरफ मुखिया की बीवी पूरी तरह से उत्सुक थी सूरज से रात को मिलने के लिए और दूसरी तरफ सूरज का भी यही हाल था जिस तरह का नजारा मुखिया की बीवी ने उसे दिखाई थी वह नजारा आज तक उसके मन-मस्तिष्क में किसी चित्र की भांति छप गया था और उसे नजारे के बारे में जब भी उसे ख्याल आता था तब तब उसके बदन में सिहरन सी दौड़ने लगती थी,,, वह उसकी आंखों के सामने कपड़ा उतारना अपनी खूबसूरत बदन की नुमाइश करना और जिस तरह से वह पेटीकोट को खोलकर आगे की तरफ खींची थी उसकी दोनों टांगों के बीच घुंघराले बाल को देखकर आश्चर्यचकित हो जाना यह सब याद करके सूरज के तन बदन में आग लग जाती थी,,, इसलिए तो वह भी बेसब्री से शाम ढलने का इंतजार कर रहा था और यह बात उसने अपने घर पर भी बता दिया था पहले तो उसकी मां थोड़ा नाराज हुई लेकिन,, क्योंकि घर पर उसका पति भी नहीं था और अब सूरज भी कहीं आम की रखवाली करने के लिए जा रहा था वैसे उसने इस बात को नहीं बताया था कि वह मुखिया की बीवी के साथ आम की रखवाली करने के लिए जा रहा है वह सिर्फ इतना ही बताया था कि रात को आम के बगीचे की रखवाली करना है कुछ लोगों के साथ साथ में पैसे भी मिलेंगे और पके हुए आम भी मिलेंगे उसने मुखिया की बीवी के साथ वाली बात को छुपा ले गया था न जाने कहां से सूरज में इतना दिमाग आ गया था वरना अगर वह यह बात बता देता तो शायद सुनैना के मन में ढेर सारे शंका ने जन्म ले लिया होता। और आम के बगीचे की रखवाली के बदले में पैसे और पके हुए आम मिलने के लालच में सुनैना भी कुछ बोल नहीं पाई और जल्दी-जल्दी खाना बनाने लगी।

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शाम ढल चुकी थी बहुत जल्द ही उसे मुखिया के घर पर पहुंचना था वैसे तो उसे रात बिरात डर बिल्कुल भी नहीं लगता था लेकिन वह समय पर पहुंचना चाहता था,,, सूरज ठीक रसोई के सामने बैठकर भोजन का इंतजार कर रहा था और उसकी मां जल्दी-जल्दी तवे पर रोटियां पका रही थी लेकिन उसकी इस जल्दबाजी में वह यह भूल गई थी कि उसके कंधे पर से उसके साड़ी का पल्लू नीचे गिर चुका था और वह चूल्हे के सामने बिना साड़ी के पल्लू की बैठी हुई थी जिसकी वजह से उसकी दोनों चूचियां ब्लाउज में एकदम कसी हुई नजर आ रही थी लेकिन ऐसी अवस्था में ,, उसकी बड़ी-बड़ी दोनों चूचियां ब्लाउज फाड़कर बाहर आने के लिए एकदम आतुर नजर आ रहे थे इस पर नजर पडते ही सूरज की हालत खराब होने लगी,,,।

सूरज एकदम से भूल गया कि उसे मुखिया की बीवी के साथ जल्दी आम के बगीचे पर जाना है वह तो अपनी मां के दोनों खरगोश में खो गया था और चूल्हे के आगे बेटी होने की वजह से उसके बदन से पसीना टपक रहा था और उसके माथे से पसीना बुंद बनकर उसके गोरे-गोरे गाल से होते हुए उसके गर्दन का रास्ता नापते हुए सीधे-सीधे उसके ब्लाउज के बीच वाली घाटी से होते हुए ब्लाउज के अंदर की तरफ जा रहे थे यह सब देखकर सूरज के लंड में हरकत होना शुरू हो गया,,, सुनैना इस बात से बेखबर खाना बनाने में लगी हुई थी,,, सूरज यह जानते हुए भी की जो कुछ भी वह अपनी मां की तरफ देख कर सो रहा है वह गलत है लेकिन फिर भी वह अपने आप को रोक नहीं पा रहा था अपनी मां की तरफ देखने से,,,खास करके उसकी चूचियों की तरह और वह भी चूल्हे के सामने बैठी होने की वजह से चूल्हे में जल रही आग की पीली रोशनी में उसका खूबसूरत बदन और भी ज्यादा चमक रहा था।। यह सब सूरज के लिए बहुत ही ज्यादा असहनीय होता जा रहा था। जिस तरह से सुनैना रोटियां बेल रही थी उसके हाथों की हरकत की वजह से उसके ब्लाउज में भी उतार चढ़ाव एकदम साफ नजर आ रहा था यह सब देखकर सूरज के लंड की अकड़ बढ़ती जा रही थी। इस नजारे को देखकर अनायास ही उसके मन में यह ख्याल आ गया कि काश उसकी मां ब्लाउज नहीं पहनी होती तो उसकी नंगी चूचियों को देखने में कितना मजा आता है लेकिन अपने इसी ख्याल पर वह अपने आप पर ही गुस्सा दिखाने लगा,। क्योंकि वह सब जानता था कि जो कुछ भी वर्क कर रहा है अपने मन में सोच रहा है वह बहुत ही गलत है लेकिन वह इससे ज्यादा कुछ सोच पाता इससे पहले ही सुनैना बोली।

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बस ले अब तैयार हो गया है गरमा गरम खा ले,,,(इतना कहने के साथ ही एक थाली में थोड़ी सी सब्जी दाल चावल और रोटी निकालकर सूरज की तरफ आगे बढ़ा दी सूरज भी अपना हाथ आगे बढ़कर थाली को ले लिया और खाना शुरू कर दिया उसकी मां तुरंत अपनी जगह से उठकर खड़ी हुई और मटके से ठंडा ठंडा पानी गिलास भरकर लाई और उसके पास रख दी और उसे हिदायत देते हुए बोली,,)

देख रात का समय है और बगीचे का इसलिए ध्यान देना कहीं अकेले मत जाना जहां भी जाना अपने साथी लोग के साथ ही जाना,,, वैसे तो मुझे अच्छा नहीं लग रहा है लेकिन तू भी अब बड़ा हो गया है कामकाज देखेगा तभी तो जीवन की गाड़ी आगे बढ़ेगी।

तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो ना मैं सब संभाल लूंगा,,,(निवाला मुंह में डालते हुए बोला और थोड़ी ही देर में वह खाना खा लिया और जाने के लिए तैयार हो गया था लेकिन जाते-जाते वह अपनी मां को बोला)

मैं अब जा रहा हूं पिताजी भी घर पर नहीं है इसलिए दरवाजा बंद कर लेना और खोलना नहीं और तुम दोनों की जल्दी से खाना खाकर सो जाना।

ठीक है सूरज तू अपना ख्याल रखना,,

ठीक है मां,,,(और इतना कहते हुए वह मुखिया की बीवी के घर की तरफ निकल गया,,, लेकिन रास्ते में वह अपनी मां की चूचियों के बारे में सोचने लगा,,, और अपने आप से ही बातें करते हुए बोला

मां की चूचीया कितनी बड़ी-बड़ी है,,, ब्लाउज में इतनी जबरदस्त लगती है तो बिना ब्लाउज की जब एकदम नंगी होती होगी तो कितनी खूबसूरत लगती होगी एकदम गोल-गोल खरबूजे जैसी मैंने तो कभी देखा भी नहीं है लेकिन ब्लाउज में उसकी गोलाई देखकर अंदाजा लगा लेता हूं कि कैसी दिखती होगी ,,, कसम से अभी तो मेरी हालत खराब हो गई थी,, अच्छा हुआ कि मां ने नहीं देखी,,, यह साला मुझे क्या हो जाता है सब कुछ जानते हुए भी की जो कुछ भी मैं देख रहा हूं जो सोच रहा हूं सब गलत है फिर भी मैं अपने आप को रोक क्यों नहीं पाता,,,, लेकिन पहले तो मैं ऐसा बिल्कुल भी नहीं था तो अब ऐसा क्यों हो रहा है मां को देखते ही मेरे दिल की धड़कन क्यों बढ़ने लगती है क्यों मेरी नजर उनके अंगों पर चली जाती है वैसे भी जिस दिन से मा की चुदाई देखा हूं तब से तो न जाने मेरे मन में कैसे-कैसे विचार आने लगे हैं।

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उस दिन कमरे में मां और पिताजी पूरी तरह से नंगे थे लेकिन मुझे ज्यादा कुछ नहीं दिखाई दिया सिर्फ मां की बड़ी-बड़ी गांड और उसकी दोनों टांगों के बीच पिताजी का अंदर बाहर होता हुआ लंड मां की बुर भी मै अभी तक नहीं देख पाया,,, लेकिन वह नजारा देखकर मेरी तो हालत खराब हो गई थी मैं तो कभी सोच भी नहीं सकता था कि मेरी मां भी चुदवाती होगी लेकिन सब कुछ मैं अपनी आंखों से देखा था पिताजी कैसे जोर-जोर से धक्के लगा रहे थे और न जाने कैसे-कैसे आवाज मां के मुंह से निकल रही थी इसका मतलब मन को भी चुदवाने में मजा आता है।
(सूरज अपने मन में यही सब सोते हुए और अपने आप से ही बात करते हुए आगे की तरफ चले जा रहा था वह अपनी बात को अपने मन में ही आगे बढ़ाते हुए अपने आप से ही बोला)

कितना अच्छा मौका था उसे दिन पूरी तरह से मांगी थी पिताजी नंगे थे लेकिन फिर भी ज्यादा कुछ दिखाई नहीं दे रहा था पिताजी मां को नीचे लेट कर उसकी चुदाई करते तो मैं सब कुछ देख लेता उनके बुर भी देख लेता की कैसी उनके बुर हैं,,, नीलू की तो मैं अपनी आंखों से देख लिया था एकदम चिकनी कचोरी की तरह खुली हुई क्या इस तरह की मां की भी बुर होगी,,, पता नहीं मैं अभी तक नीलू की छोड़कर किसी और की बुर देखा ही नहीं,,, मुझे तो यह भी नहीं मालूम कि सब की एक जैसी होती है कि अलग-अलग होती है लेकिन जो नशा देखकर हुआ था वह नशा आज तक मेरी नस-नस में घुला हुआ है,,,

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पिताजी कितने कसकस के धक्के लगा रहे थे,,, पूरा दम लगाकर पता नहीं मा कैसे उनके धक्को को सहन कर पा रही थी,,,,,, कुछ पता ही नहीं चला था की मां को कैसा लग रहा है पता नहीं उन्हें दर्द कर रहा था कि मजा आ रहा था और वैसे भी दीवाल पकड़ कर झुकी हुई थी एकदम घोड़ी बनकर,,, जैसे की घोड़ी के ऊपर घोड़ा,,,, जो मां और पिताजी कर रहे थे उसे ही चुदाई कहते हैं और यह सब शादी के बाद ही होता है काश मेरी भी शादी हो गई होती तो मैं भी सब कुछ जान जाता,,,। और रोज मजे लेता,,,,।

(वह यही सब सोते हुए मुखिया के घर की तरफ चले जा रहा था कि तभी एक कुत्ता भोकता हुआ उसकी तरफ लपका तो उसका ध्यान एकदम से भंग हुआ और वह तुरंत नीचे से पत्थर उठा दिया और गाली देता हुआ उसकी तरफ चल दिया कुत्ता तुरंत वहां से भाग गया तब उसे इस बात का एहसास हुआ कि चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था उसे इस बात का डर था कि कहीं देर तो नहीं हो गई कहीं मुखिया की बीवी अकेले तो बगीचे पर नहीं चली गई यही सब सोता हुआ वह जल्दी-जल्दी मुखिया के घर की तरफ जाने लगा जो की दुर से ही मुखिया का घर नजर आ रहा था। ऊपर वाले मंजिले पर बाहर की तरफ लालटेन चल रही थी क्योंकि दूर से ही दिखाई दे रही थी।


सूरज जल्दी-जल्दी मुखिया के घर की तरफ जाने लगा और थोड़ी देर में पहुंच गया बाहर ही कुर्सी पर बैठकर मुखिया और मुखिया की बीवी सूरज का इंतजार कर रही थी सूरज को देखते ही मुखिया की बीवी बोली।

कहां रह गया था रे मैं कब से तेरा इंतजार कर रही हूं देख कितना समय हो गया या अंधेरा हो गया हमें और जल्दी जाना चाहिए था।

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मैं माफी चाहता हूं मालकिन घर पर खाना बनने में देर हो गया था इसलिए जल्दी से खाकर मैं जल्दी-जल्दी भागता हुआ यहां आया हूं मुझे तो लग रहा था कि कहीं आप अकेले ना निकल गई हो।

अकेले क्यों जाऊंगी तुझे लिए बिना कैसे जा सकती हूं,,, तूने खाना खा लिया है।

हां मालकिन,,,

चल कोई बात नहीं खाना खा लिया तो ठीक ही है लेकिन खाने का डब्बा भी ले ले कहीं रात को भूख लग गई तो ,,,,
(इतना सुनते ही पास में पड़ा हुआ खाने के डब्बे को सूरज उठा लिया और फिर मुखिया जो वही कुर्सी पर बैठा हुआ था वह बोला)

सूरज वह सामने कुल्हाड़ी पड़ी है उसे भी ले ले,,,

कुल्हाड़ी क्यों मालिक,,,(सूरज आश्चार्य जताते हुए बोला,,,)

अरे पागल रात का समय है चोर उचक्के का डर तो रहता ही है लेकिन जंगली जानवरों का भी डर रहता है हाथ में हथियार रहेगा तो डर तो नहीं रहेगा।
(मुखिया की बात सुनकर सूरज को थोड़ी घबराहट हुई लेकिन फिर भी वहां मुखिया के बताएं अनुसार कुल्हाड़ी को हाथ में ले लिया और फिर मुखिया खुद अपनी जगह से खड़ा होकर लालटेन अपने हाथ में लिया और उसे अपनी बीवी को थमा दिया.. लालटेन को अपने हाथ में लेते हुए वह मुस्कुरा कर बोली,,,)

इसकी तो ज्यादा जरूरत है,,,,(और फिर एक हाथ में लालटेन और एक बड़ा सा डंडा अपने हाथ में लेकर दोनों आम के बगीचे की तरफ निकल गए)

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बहुत ही बेहतरीन अपडेट है
सूरज जवान हो गया है आज तो सुनैना की चूची देखते हुए खाना खाता है तो नीचे का बाबू खड़ा ओ गया है अब उसका नजरिया बदल गया है सूरज बाग में मुखिया की बीवी के साथ चला गया है आज रात मुखिया की बीवी के आम चूसने को मिलने वाला है साथ ही में मुखिया की बीवी के नीचे के बगीचे में एंट्री होने वाली है
 
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rohnny4545

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‌‌ ‍ मुखिया की बीवी एक हाथ में लालटेन और एक हाथ में बड़ा सा डंडा लेकर आम के बगीचे की ओर जाने के लिए तैयार हो चुकी थी सूरज भी हाथ में कुल्हाड़ी ले लिया था हालांकि कुल्हाड़ी का जिक्र आते ही उसे थोड़ी बहुत घबराहट हुई थी लेकिन मुखिया की बीवी के साथ में होते ही ना जाने क्यों उसकी हिम्मत दुगनी हो जाती थी,,, वह भी बेफिक्र होकर हाथ में कुल्हाड़ी ले लिया था। सूरज के लिए यह पहला मौका था जब पहली बार वह रात को आम की रखवाली करने के लिए आम के बगीचे में जा रहा था वरना आज तक वह कभी रात को कहीं रुका ही नहीं था,,,। पैसों का लालच या किसी चीज को पाने का लालच उसमें बिल्कुल भी नहीं था अगर ऐसा होता तो शायद वह जाने के लिए तैयार भी नहीं होता लेकिन यहां बात थी मुखिया की बीवी के साथ रात गुजारने की उसके साथ रख कर आम के बगीचे की रखवाली करने की इसलिए सूरज तुरंततैयार हो गया था। क्योंकि मुखिया की बीवी का साथ ही उसके लिए काफी था।

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देर तो हो चुकी थी लेकिन फिर भी मुखिया की बीवी सूरज को बिल्कुल भी डांट नहीं रही थी,,, और इसके पीछे उसका लालच भी छुपा हुआ था। चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था। घर से निकलते समय मुखिया की बीवी रोटी और सब्जी रुमाल में बांध ली थी ताकि रात को अगर भूख लगे तो खा सके वैसे तो दोनों घर से खा कर ही निकले थे और मुखिया की बीवी तो सूरज के खाने का इंतजाम घर पर एक ही थी लेकिन वह घर से खा कर ही आया था और इसी में देर भी हो चुकी थी।

धीरे-धीरे मुखिया की बीवी और सूरज दोनों आगे बढ़ रहे थे चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था थोड़ी देर में दोनों गांव से दूर निकल गए थे वैसे तो आम का बगीचा कुछ खास दूरी पर नहीं था लेकिन फिर भी आधा घंटे का समय लगता था। बात की शुरुआत इस तरह के माहौल में वैसे तो मुखिया की बीवी ही करती थी लेकिन सूरज से रहा नहीं जा रहा था इसलिए वह बोला।

मालकिन तुम इसी तरह से आपकी रखवाली करने के लिए रात को आती रहती हो।,,,,

हां रे,,, मेरा तो रोज का काम है आए दिन में आम के बगीचे की रखवाली करने के लिए आती ही रहती हूं।

अकेली आती हो या फिर किसी के साथ,,,

वैसे तो अकेली कभी आई नहीं हूं क्योंकि रात का समय होता है तो अकेले थोड़ा तो डर लगता ही है लेकिन वैसे मुझे डर नहीं लगता लेकिन कोई साथ होता है तो अच्छा ही लगता है आज तू मिल गया तो तुझे लेकर आई हूं तू घर पर बात कर तो आया है ना।

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हां मालकिन में घर पर बात कर आया हूं वैसे मैं घर से बाहर कभी रात को कहीं रुकता नहीं हूं लेकिन तुम्हारे कहने पर मैं चल रहा हूं।

(सूरज की इस बात पर मुखिया की बीवी मंद मंद मुस्कुराने लगी क्योंकि एक जवान होते लड़के के मन की बात को वह भी अच्छी तरह से समझती थी वह जानती थी कि सूरज किस लालच से उसके साथ रात को बगीचे की रखवाली करने के लिए आया है,,, सूरज की बात सुनकर मुस्कुराते हुए वह बोली,,)

तब तो बहुत अच्छा है कि तू मेरी बात मानने लगा है,,,, वैसे तुझे डर तो नहीं लगता ना रात में,,,

बिल्कुल भी नहीं मालकिन इसमें डरने का क्या है,,,

तब तो बहुत अच्छा है वैसे भी मुझे निडर लोग बहुत अच्छे लगते हैं डरपोक मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है,,,।

तुम भी बहुत बहादुर हो मालकिन वरना इस तरह से रात को कोई बगीचे की रखवाली करने के लिए औरत नहीं आती।

बात तो तो सही कह रहा है। और वैसे भी पहले में डरपोक रही थी लेकिन धीरे-धीरे जब घर की जिम्मेदारी अपने सर पर लेना पड़ता है तो निडर होना पड़ता है।

( मुखिया की बीवी भी काफी खुश नजर आ रही थी क्योंकि आज बहुत दिनों बाद वह आम के बगीचे की रखवाली जो करने जा रही थी और वह भी एक जवान लड़के के साथ,,,, चारों तरफ धुप्प अंधेरा छाया हुआ था,,, तकरीबन तीन-चार मीटर से ज्यादा दूर दिखाई नहीं दे रहा था इतना दे रहा था वह तो गनीमत थी कि आगेआगे मुखिया की बीवी लालटेन लेकर चल रही थी जिसकी रोशनी में सूरज सब कुछ साफ़-साफ़ देख पा रहा था उस दिन की तरह आज भी मुखिया की बीवी आगे आगे चल रही थी क्योंकि उसे दिन भी सूरज को नहीं मालूम था कि कहां जाना है और आज भी सूरज को नहीं मालूम था कि आम का बगीचा कहां है इसलिए दिशा निर्देश के लिए मुखिया की बीवी खुद आगेवानी करते हुए आगे आगे चल रही थी लेकिन उसके इस तरह से आगे चलने पर इसकी भारी भरकम नितंबों का घेराव लालटेन की पीली रोशनी में,,, एकदम साफ साफ दिखाई दे रहा था जो कि वातावरण और सूरज के मन में मादकता भर रहा था।

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सूरज का ध्यान पूरी तरह से मुखिया की बीवी की गांड पर था,,, न जाने क्यों उसे मुखिया की बीवी की गांड का आकर्षण कुछ ज्यादा ही बढ़ता जा रहा था हालांकि अभी तक उसने मुखिया की बीवी की गांड को संपूर्ण रूप से नग्न अवस्था में नहीं देखा था। लेकिन फिर भी उसे पूरा यकीन था कि पूरा कपड़ा उतारने के बाद सबसे ज्यादा आकर्षक उसकी गांड ही नजर आती होगी,,, हालांकि नहाते समय जिस तरह से वह अपने कपड़े उतार रही थी उसके बदन की थोड़ी बहुत झलक सूरज देख लिया था जिसकी वजह से ही तो आज उसका मन उसका नजरिया पूरी तरह से बदल चुका था।,,,, कुछ देर वातावरण में पूरी तरह से खामोशी छाई रही,,,।

वातावरण में झींगुर की आवाज बड़ी तेज सुनाई दे रही थी रह रहकर कुत्तों के भौंकने की आवाज आ रही थी। बस्ती से दोनों काफी दूर आ चुके थे और वैसे भी एक गांव पूरी तरह से पहाड़ों से घिरा हुआ था इसलिए अंधेरे में कुछ ज्यादा ही,,, डरावना नजर आता था। जिस तरह का माहौल बना हुआ था चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था अगर ऐसे समय में केवल मुखिया की बीवी को ही आना होता तो शायद वह डर के मारे नहीं आती और शायद सूरज भी इस तरह से अंधेरे में बाहर निकलने से घबराता,,, क्योंकि इससे पहले कभी भी वहां रात को बाहर और अभी इतनी दूर निकला नहीं था लेकिन आज की बात कुछ और थी,,, दोनों के मन में किसी भी प्रकार का भय नहीं था दोनों निडर होकर आगे बढ़ रहे थे क्योंकि एक दूसरे का साथ जो था और उससे भी बड़ी बात थी कि दोनों का एक दूसरे के प्रति आकर्षण था,,,

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जवानी से भरी हुई मुखिया की बीवी सूरज का साथ पाकर पूरी तरह से भाव भी बोर हो चुकी थी वह एक साजिश के तौर पर उसे आम के बगीचे की रखवाली करने के लिए ले जा रही थी क्योंकि वह उसकी जवानी से खेलना चाहती थी और जवानी के दहलीज पर कदम रख चुका सूरज एक जवान औरत का साथ प्रकार पूरी तरह से मत हो चुका था,,, उसके बदन के आकर्षण में पूरी तरह से अपने आप को डूबो चुका था,,, उसे यह तो नहीं मालूम था कि आम के बगीचे में उसके साथ क्या होने वाला है लेकिन वह बहुत खुश था,,,।

कुछ देर की खामोशी के बाद मुखिया की बीवी बोली,,,,।

बस अब आने ही वाला है,,,,आहहहह,,,(दर्द भरी कहानी की आवाज मुंह से निकलने के साथ ही अपनी हथेली को अपनी कमर पर रख दी और हल्का सा झुक गई और एक ही जगह पर खड़ी होकर,,) हाय दइया मर गई रे,,,

क्या हुआ मालकिन,,,,?(एकदम आश्चर्य से सूरज भी अपनी जगह पर खड़ा होकर बोला)

हाय मेरी कमर ऐसा लगता है कि जैसे मेरी जान लेकर छोड़ेगी,,,,,(मुखिया की बीवी उसी जगह पर खड़ी होकर अपनी हथेली को कमर पर हल्के-हल्के घूमाते हुए बोली,,, वह अपनी हरकत से सूरज का ध्यान अपनी कमर पर लाना चाहती थी लेकिन सूरज का ध्यान उसकी गोलाकार नितंबों पर था फिर भी वह कमर की तरफ देखते हुए बोला,,,)

कमर में क्या हो गया मालकिन,,,,!


ऊबड खाबड रास्ते से चलते हुए मेरी कमर लचक गई है,,,,आहहहहह,,,, बहुत दर्द कर रही हैं,,,,(एक कदम बढ़ाकर एकदम से लड़खड़ाने का नाटक करते हुए वह बोली,,, और मुखिया की बीवी को इस तरह से लड़खड़ाता हुआ देखकर सूरज से रहने की और वह तुरंत आगे बढ़ाकर उसकी कमर को दोनों हाथों से थाम लिया,,, और बोला,,,)

संभाल कर मालकिन,,,,,,
(जैसे ही मुखिया की बीवी ने अपनी कमर पर सूरज के मर्दाना हथेलियां का स्पर्श महसूस की वह पूरी तरह से मदहोश हो गई उसके बदन में एकदम से सुरसुराहट बढ़ गई,,,, खास करके उसकी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार में तो मानो जैसे आग लग गई हो,,,, तुरंत उसकी बुर नुमा कटोरी मदन रस से भर गई,,, मन तो उसका कर रहा था कि इसी समय सूरज को धर दबोचे और उसके ऊपर चढ़ जाए,,, लेकिन अनुभव से भरी हुई मुखिया की बीवी जल्दबाजी करने में नहींमानती थी,,,, वह जानती थी कि उसके दोनों टांग खोलते ही सूरज लार टपकाते हुए उसकी दोनों टांगों के बीच आ जाएगा,,,)


हाय दईया,,,,,,,(एकदम से मदहोश होते हुए मुखिया की बीवी बोली,,,,) अच्छा हुआ तू थाम लिया वरना मैं तो गिर जाती,,,,

मेरे होते हुए तुम कैसे गिर जाओगी मालकिन,,, मैं किस लिए हूं,,,,

अरे इसीलिए तो तुझे लेकर आई हूं,,,,(और इतना कहने के साथ ही वह खुद ही सूरज के कंधे पर हाथ रख दी और बोली) मुझे तो एक कदम भी नहीं चला जा रहा है,,,,, तुझे सहारा देकर ही मुझे ले जाना पड़ेगा,,,,,।

(सूरज के कंधे पर हाथ डालकर सहारा लेते ही सूरज के तन बदन में आग लग गई थी एक खूबसूरत औरत का इस तरह से उसके बदन से चिपकना उसे बहुत ज्यादा उत्तेजित कर रहा था उसका लंड पूरी तरह से औकात में आकर खड़ा हो चुका था उसकी सांसे बड़ी तेजी से चल रही थी क्योंकि जिस तरह से वह उसके कंधे पर अपना हाथ रखकर सहारा ली थी उसकी भाई च सीधे-सीधे उसके एक तरफ की छाती से स्पर्श हो रही थी और सूरज भी उसे सहारा देते हुए अपने हाथ को दूसरी तरफ से उसकी कमर पर लपेट रखा था कुल मिलाकर दोनों की हरकत बेहद कामोत्तेजना से भरी हुई थी ,,,)

लाओ मालकिन लालटेन मुझे दे दो,,,(और इतना कहने के साथ ही सूरज मुखिया की बीवी के हाथ से लालटेन को अपने हाथ में ले लिया और उसकी पीली रोशनी में धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा,,,,)

मुझे नहीं मालूम था रे की कमर इतनी ज्यादा परेशान करेगी वरना मैं आज नहीं आती,,,,(धीरे-धीरे लंगड़ा कर पैर आगे बढ़ाते हुए बोली,,,)

कोई बात नहीं मालकिन में हूं ना तुम्हें फिक्र करने की जरूरत नहीं है,,,।

तू तो बहुत अच्छा लड़का है मुझे लगता है कि तो हम लोगों का साथ बहुत देगा,,,, अब तो हमारे लिए ही काम किया कर पैसे इज्जत सब कुछ मिलेगा।


यह तो आपका बड़प्पन है मालकिन जो आपने काम के लिए मुझे चुना है,,,,(सूरज और मुखिया की बीवी बातें करते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे मुखिया की बीवी की कमर में और ना ही पैर में बिल्कुल भी तकलीफ नहीं थी वह तो सिर्फ अपना जादू चल रही थी सूरज के ऊपर जो कि अच्छा खासा काम भी कर रहा था क्योंकि लालटेन की रोशनी में मुखिया की बीवी की नजर उसके पजामा के आगे वाले भाग पर थी जो की काफी उठा हुआ था उसमें तंबू बना हुआ था यही देखकर मुखिया की बीवी मन ही मनपसंद भी हो रही थी और उतेजित भी हो रही थी क्योंकि उसका जादू काम कर रहा था,,,, सूरज बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,,)

अभी कितना दूर है मालकिन,,,,

बस आने ही वाला है तुझे तकलीफ हो रही है क्या,,,!

नहीं नहीं मालकिन मुझे बिल्कुल भी तकलीफ नहीं हो रही है मैं तो जिंदगी भर तुम्हें सहारा देकर इसी तरह से चल सकता हूं,,,।

अरे वाह रे बातें तो तू बड़ी-बड़ी करता है,,, एकदम मर्द की तरह,,,

मैं भी तो मर्द ही हूं मालकिन,,,,

हां वह तो दिखाई दे ही रहा है,,,(कनखियों से सूरज के पजामे की तरफ देखते हुए बोली,,, वैसे भी इस तरह से मुखिया की बीवी को सहारा देने में उसे किसी भी प्रकार की दिक्कत नहीं थी जिस तरह से वह मुखिया की बीवी की कमर पर हाथ रखा हुआ था उसके कमर की चिकनाहट उसकी हथेली में स्पर्श हो रही थी,,, सूरज को अब जाकर इस बात का एहसास हो रहा था की औरतों की कमर कितनी चिकनी होती है एकदम मक्खन की तरह उसकी हथेली फिसल जा रही थी और मुखिया की बीवी सूरज की हथेली को अपनी कमर पर महसूस करके गनगना जा रही थी,,,,)

मैंने कितनी बार शालू और नीलू को कहा कि मेरी कमर की मालिश कर दे लेकिन वह दोनों है कि दिनभर बस खेलती रहती है इधर-उधर मेरी बात सुनती ही नहीं है,,,,
(मुखिया की बीवी जानबूझकर सूरज से कमर की मालिश वाली बात बोली थी और सच तो यही था कि ना तो उसकी कमर में दर्द हो रहा था ना ही वह मालिश के लिए चालू और नीलू को बोली थी वह तो बस सूरज के मन को टटोल रही थी)

हां मालकिन वो तो में देखा हूं,,, शालू और नीलू दोनों दिन भर बस घूमती रहती है उन्हें चाहिए था कि तुम्हारी कमर की मालिश कर देती ताकि आराम हो जाता,,,,

अरे सूरज मेरी कहां सुनने वाली है दोनों मैं तो परेशान हो गई हूं बस जल्दी से जल्दी दोनों के हाथ पीले करके ससुराल भेज दु तो समझ लूं की गंगा नहा ली,,, अच्छा सूरज तुझे आता है क्या मालिश करना,,,,

ममममम,, मालिश करना,,,,,,हां,,,हां,,, आता तो है एक दो बार मैंने मालिश किया हूं मां की उनकी भी कमर में इसी तरह का दर्द होता था,,,,(सूरज हड बढ़ाते हुए झूठ बोल रहा था,,, क्योंकि मालिश वाली बात सुनकर उसके मन में उमंग जगने लगी थी ,,, उसे इस बात का एहसास होने लगा था की मुखिया की बीवी उसे मालिश करने के लिए जरुर बोलेगी इसीलिए वह इनकार नहीं कर पाया और सच तो यही था कि उसे मालिश करना नहीं आता था और ना ही कभी उसने अपनी मां की मालिश किया था बस वह ईस मौके को जाने नहीं देना चाहता था,,,, मालिश के बहाने वहां मुखिया की बीवी की मक्खन जैसी कमर को अपने हाथों से छूना चाहता था स्पर्श करना चाहता था रगड़ना चाहता था इसलिए सूरज की बात सुनते ही वह बोली,,,,)

तब तो ठीक है तब तो तू मेरी भी मालिश कर लेगा ना,,,

जरूर मालकिन इसमें कौन सी बड़ी बात है,,,

सूरज तु कितना अच्छा लड़का है,,, काश तू मेरा बेटा होता तो मुझे यह सब चिंता करने की जरूरत ही नहीं होती,,,,

कोई बात नहीं मालकिन अपना ही समझो,,,,
(वैसे तो सूरज को औरतों से बात करने का अनुभव बिल्कुल भी नहीं था लेकिन न जाने क्यों इस समय वह मुखिया की बीवी के साथ एक मजे हुए मर्द की तरह बातें कर रहा था ऐसा लग ही नहीं रहा था कि वह पहली बार किसी औरत से बात कर रहा हो ऐसा लग रहा था कि जैसे वह इस तरह की बातें औरतों से कर चुका है और उसे इस तरह की बातें करने में मजा भी आ रही थी,,,, मुखिया की बीवी की तो हालत खराब होती जा रही थी उसके बदन में उत्तेजना का तूफान उठ रहा था वह न जाने किस तरह से अपने आप को संभाली हुई थी वरना उसका मन तो चुदवाने के लिए मचल रहा था,,, उसकी बर पानी पानी हो रही थी उसे अपनी बुर से मदन रस टपकता हुआ महसूस हो रहा था,,,, मालिश वाली बात का जिक्र छेड़ कर वह मन ही मन प्रसन्न हो रही थी क्योंकि वह जानती थी की मालिश करवाने के बहाने वह अपने हर एक अंक को खोलकर सूरज को दिखा सकेगी और फिर सूरज को अपनी जवानी का जलवा दिखाकर मदहोश करके अपनी मनमानी करवा सकेगी और अपनी जवानी की आग बुझा सकेगी,,,,, क्योंकि अभी तक खेतों में जिस तरह से उसे गिरने से बचाते हुए सूरज ने उसे अपनी बाहों में भर लिया था,,, साड़ी के ऊपर से ही उसके लंड की चुभन उसे अभी तक महसूस होती थी,,,, और इस चुभन को महसूस करके मुखिया की बीवी अंदाजा लगा ली थी कि सूरज के पास जो मर्दाना अंग है वह बहुत खास और मजबूत है जो कि उसे अपनी बुर में लेकर वह पूरी तरह से अपनी जवानी का रस निचोड़ सकेगी,,,,)

रात धीरे-धीरे गहरा रही है देखो तो सही चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है और वैसे भी हम लोग गांव से काफी दूर आ चुके हैं,,,,

सही कह रहा है सूरज तू,,,, इसीलिए तो मुझे आम के बगीचे की रखवाली करने आना पड़ता है क्योंकि यह दूर है और यहां पर लोग आसानी से आम चुरा ले जाते हैं,,,,

(चूड़ियों की खनक पायल की झनक से वातावरण और भी ज्यादा उत्तेजित हुआ जा रहा था मुखिया की बीवी के खूबसूरत बदन की मादक खुशबू सूरज के तन बदन में आग लग रही थी पहली बार वह किसी औरत को इस तरह से अपने बदन से सटाया हुआ था इसीलिए तो औरत के बदन की खुशबू भी उसे महसूस हो रही थी,,,,,,, यहां तक की उसकी चूचियों की रगड़ से उसके बदन में उत्तेजना बरकरार थी वह पूरी तरह से मदहोश हुआ जा रहा था यहां तक कि उसे अपने लंड में दर्द महसूस होने लगा था,,,। और यही हाल मुखिया की बीवी का भी था उसकी बुर पानी पानी हो रही थी यहां तक की उसकी पर से निकलने वाला पानी उसे अपनी जांघों पर टपकता हुआ महसूस हो रहा था और जिस तरह से उसकी चूची उसकी छाती से रगड़ खा रही थी,,, उसकी वजह से उसकी चूची में उत्तेजना के चलते कसाव बढ़ता जा रहा था,,,,,, थोड़ी ही देर में आपका बगीचा दिखाई देने लगा बड़े-बड़े पेड़ की वजह से उसे जगह पर और भी ज्यादा अंधेरा छाया हुआ था,,,,, बगीचे पर नजर पडते ही मुखिया की बीवी बोली,,,।)

वह देख सूरज बगीचा आ गया,,,,

हां मालकिन बहुत बड़े-बड़े पेड़ हैं इसके आम भी तो बड़े-बड़े होंगे,,,,

बहुत बड़े-बड़े है रे चल तुझे दिखाती हूं,,,,

(मुखिया की बीवी यह बात अपनी चूचियों को लेकर बोली थी लेकिन सूरज समझ नहीं पाया था,,,, सूरज अभी भी उसी तरह से उसे सहारा देकर आगे बढ़ रहा था उसके हाथ में लालटेन थी और दूसरे हाथ में कुल्हाड़ी थी और मुखिया की बीवी उसके कंधे पर हाथ रखकर एक हाथ में डंडा लेकर उसके सहारे से चल रही थी,,,, आम के बगीचे में प्रवेश करने से पहले ही वह शर्माने का नाटक करते हुए धीरे से बोली,,,)

ररररररर,,,, यही रुक जा सूरज,,,,,
(उसकी बात सुनते ही सूरज एकदम से रुक गया और उसकी तरफ आश्चर्य से देखते हुए बोला)

क्यों क्या हुआ मालकिन,,,,

अब तुझे कैसे कहूं मैं,,,,(इधर-उधर देखकर शर्माने का नाटक करते हुए बोली)

क्यों क्या हुआ बोलो तो सही,,,,

मुझे बड़ी जोरों की पेशाब लगी है,,,,
(मुखिया की बीवी के मुंह से पेशाब शब्द सुनते ही उत्तेजना के मारे सूरज का गला सूखने लगा पहली बार किसी औरत के मुंह से पेशाब करने वाली बात सुन रहा था उसका दिल जोरो से धड़कने लगा था वह पल भर में उत्तेजना के परम शिखर पर पहुंच चुका था वह आश्चर्य से मुखिया की बीवी के खूबसूरत चेहरे की तरफ देख रहा था जो की लालटेन की पीली रोशनी में और भी ज्यादा दमक रहा था,,,)
 
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Ajju Landwalia

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‌‌ ‍ मुखिया की बीवी एक हाथ में लालटेन और एक हाथ में बड़ा सा डंडा लेकर आम के बगीचे की ओर जाने के लिए तैयार हो चुकी थी सूरज भी हाथ में कुल्हाड़ी ले लिया था हालांकि कुल्हाड़ी का जिक्र आते ही उसे थोड़ी बहुत घबराहट हुई थी लेकिन मुखिया की बीवी के साथ में होते ही ना जाने क्यों उसकी हिम्मत दुगनी हो जाती थी,,, वह भी बेफिक्र होकर हाथ में कुल्हाड़ी ले लिया था। सूरज के लिए यह पहला मौका था जब पहली बार वह रात को आम की रखवाली करने के लिए आम के बगीचे में जा रहा था वरना आज तक वह कभी रात को कहीं रुका ही नहीं था,,,। पैसों का लालच या किसी चीज को पाने का लालच उसमें बिल्कुल भी नहीं था अगर ऐसा होता तो शायद वह जाने के लिए तैयार भी नहीं होता लेकिन यहां बात थी मुखिया की बीवी के साथ रात गुजारने की उसके साथ रख कर आम के बगीचे की रखवाली करने की इसलिए सूरज तुरंततैयार हो गया था। क्योंकि मुखिया की बीवी का साथ ही उसके लिए काफी था।

देर तो हो चुकी थी लेकिन फिर भी मुखिया की बीवी सूरज को बिल्कुल भी डांट नहीं रही थी,,, और इसके पीछे उसका लालच भी छुपा हुआ था। चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था। घर से निकलते समय मुखिया की बीवी रोटी और सब्जी रुमाल में बांध ली थी ताकि रात को अगर भूख लगे तो खा सके वैसे तो दोनों घर से खा कर ही निकले थे और मुखिया की बीवी तो सूरज के खाने का इंतजाम घर पर एक ही थी लेकिन वह घर से खा कर ही आया था और इसी में देर भी हो चुकी थी।

धीरे-धीरे मुखिया की बीवी और सूरज दोनों आगे बढ़ रहे थे चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था थोड़ी देर में दोनों गांव से दूर निकल गए थे वैसे तो आम का बगीचा कुछ खास दूरी पर नहीं था लेकिन फिर भी आधा घंटे का समय लगता था। बात की शुरुआत इस तरह के माहौल में वैसे तो मुखिया की बीवी ही करती थी लेकिन सूरज से रहा नहीं जा रहा था इसलिए वह बोला।

मालकिन तुम इसी तरह से आपकी रखवाली करने के लिए रात को आती रहती हो।,,,,

हां रे,,, मेरा तो रोज का काम है आए दिन में आम के बगीचे की रखवाली करने के लिए आती ही रहती हूं।

अकेली आती हो या फिर किसी के साथ,,,

वैसे तो अकेली कभी आई नहीं हूं क्योंकि रात का समय होता है तो अकेले थोड़ा तो डर लगता ही है लेकिन वैसे मुझे डर नहीं लगता लेकिन कोई साथ होता है तो अच्छा ही लगता है आज तू मिल गया तो तुझे लेकर आई हूं तू घर पर बात कर तो आया है ना।

हां मालकिन में घर पर बात कर आया हूं वैसे मैं घर से बाहर कभी रात को कहीं रुकता नहीं हूं लेकिन तुम्हारे कहने पर मैं चल रहा हूं।

(सूरज की इस बात पर मुखिया की बीवी मंद मंद मुस्कुराने लगी क्योंकि एक जवान होते लड़के के मन की बात को वह भी अच्छी तरह से समझती थी वह जानती थी कि सूरज किस लालच से उसके साथ रात को बगीचे की रखवाली करने के लिए आया है,,, सूरज की बात सुनकर मुस्कुराते हुए वह बोली,,)

तब तो बहुत अच्छा है कि तू मेरी बात मानने लगा है,,,, वैसे तुझे डर तो नहीं लगता ना रात में,,,

बिल्कुल भी नहीं मालकिन इसमें डरने का क्या है,,,

तब तो बहुत अच्छा है वैसे भी मुझे निडर लोग बहुत अच्छे लगते हैं डरपोक मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है,,,।

तुम भी बहुत बहादुर हो मालकिन वरना इस तरह से रात को कोई बगीचे की रखवाली करने के लिए औरत नहीं आती।

बात तो तो सही कह रहा है। और वैसे भी पहले में डरपोक रही थी लेकिन धीरे-धीरे जब घर की जिम्मेदारी अपने सर पर लेना पड़ता है तो निडर होना पड़ता है।

( मुखिया की बीवी भी काफी खुश नजर आ रही थी क्योंकि आज बहुत दिनों बाद वह आम के बगीचे की रखवाली जो करने जा रही थी और वह भी एक जवान लड़के के साथ,,,, चारों तरफ धुप्प अंधेरा छाया हुआ था,,, तकरीबन तीन-चार मीटर से ज्यादा दूर दिखाई नहीं दे रहा था इतना दे रहा था वह तो गनीमत थी कि आगेआगे मुखिया की बीवी लालटेन लेकर चल रही थी जिसकी रोशनी में सूरज सब कुछ साफ़-साफ़ देख पा रहा था उस दिन की तरह आज भी मुखिया की बीवी आगे आगे चल रही थी क्योंकि उसे दिन भी सूरज को नहीं मालूम था कि कहां जाना है और आज भी सूरज को नहीं मालूम था कि आम का बगीचा कहां है इसलिए दिशा निर्देश के लिए मुखिया की बीवी खुद आगेवानी करते हुए आगे आगे चल रही थी लेकिन उसके इस तरह से आगे चलने पर इसकी भारी भरकम नितंबों का घेराव लालटेन की पीली रोशनी में,,, एकदम साफ साफ दिखाई दे रहा था जो कि वातावरण और सूरज के मन में मादकता भर रहा था।
सूरज का ध्यान पूरी तरह से मुखिया की बीवी की गांड पर था,,, न जाने क्यों उसे मुखिया की बीवी की गांड का आकर्षण कुछ ज्यादा ही बढ़ता जा रहा था हालांकि अभी तक उसने मुखिया की बीवी की गांड को संपूर्ण रूप से नग्न अवस्था में नहीं देखा था। लेकिन फिर भी उसे पूरा यकीन था कि पूरा कपड़ा उतारने के बाद सबसे ज्यादा आकर्षक उसकी गांड ही नजर आती होगी,,, हालांकि नहाते समय जिस तरह से वह अपने कपड़े उतार रही थी उसके बदन की थोड़ी बहुत झलक सूरज देख लिया था जिसकी वजह से ही तो आज उसका मन उसका नजरिया पूरी तरह से बदल चुका था।,,,, कुछ देर वातावरण में पूरी तरह से खामोशी छाई रही,,,।

वातावरण में झींगुर की आवाज बड़ी तेज सुनाई दे रही थी रह रहकर कुत्तों के भौंकने की आवाज आ रही थी। बस्ती से दोनों काफी दूर आ चुके थे और वैसे भी एक गांव पूरी तरह से पहाड़ों से घिरा हुआ था इसलिए अंधेरे में कुछ ज्यादा ही,,, डरावना नजर आता था। जिस तरह का माहौल बना हुआ था चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था अगर ऐसे समय में केवल मुखिया की बीवी को ही आना होता तो शायद वह डर के मारे नहीं आती और शायद सूरज भी इस तरह से अंधेरे में बाहर निकलने से घबराता,,, क्योंकि इससे पहले कभी भी वहां रात को बाहर और अभी इतनी दूर निकला नहीं था लेकिन आज की बात कुछ और थी,,, दोनों के मन में किसी भी प्रकार का भय नहीं था दोनों निडर होकर आगे बढ़ रहे थे क्योंकि एक दूसरे का साथ जो था और उससे भी बड़ी बात थी कि दोनों का एक दूसरे के प्रति आकर्षण था,,,

जवानी से भरी हुई मुखिया की बीवी सूरज का साथ पाकर पूरी तरह से भाव भी बोर हो चुकी थी वह एक साजिश के तौर पर उसे आम के बगीचे की रखवाली करने के लिए ले जा रही थी क्योंकि वह उसकी जवानी से खेलना चाहती थी और जवानी के दहलीज पर कदम रख चुका सूरज एक जवान औरत का साथ प्रकार पूरी तरह से मत हो चुका था,,, उसके बदन के आकर्षण में पूरी तरह से अपने आप को डूबो चुका था,,, उसे यह तो नहीं मालूम था कि आम के बगीचे में उसके साथ क्या होने वाला है लेकिन वह बहुत खुश था,,,।

कुछ देर की खामोशी के बाद मुखिया की बीवी बोली,,,,।

बस अब आने ही वाला है,,,,आहहहह,,,(दर्द भरी कहानी की आवाज मुंह से निकलने के साथ ही अपनी हथेली को अपनी कमर पर रख दी और हल्का सा झुक गई और एक ही जगह पर खड़ी होकर,,) हाय दइया मर गई रे,,,

क्या हुआ मालकिन,,,,?(एकदम आश्चर्य से सूरज भी अपनी जगह पर खड़ा होकर बोला)

हाय मेरी कमर ऐसा लगता है कि जैसे मेरी जान लेकर छोड़ेगी,,,,,(मुखिया की बीवी उसी जगह पर खड़ी होकर अपनी हथेली को कमर पर हल्के-हल्के घूमाते हुए बोली,,, वह अपनी हरकत से सूरज का ध्यान अपनी कमर पर लाना चाहती थी लेकिन सूरज का ध्यान उसकी गोलाकार नितंबों पर था फिर भी वह कमर की तरफ देखते हुए बोला,,,)

कमर में क्या हो गया मालकिन,,,,!


ऊबड खाबड रास्ते से चलते हुए मेरी कमर लचक गई है,,,,आहहहहह,,,, बहुत दर्द कर रही हैं,,,,(एक कदम बढ़ाकर एकदम से लड़खड़ाने का नाटक करते हुए वह बोली,,, और मुखिया की बीवी को इस तरह से लड़खड़ाता हुआ देखकर सूरज से रहने की और वह तुरंत आगे बढ़ाकर उसकी कमर को दोनों हाथों से थाम लिया,,, और बोला,,,)

संभाल कर मालकिन,,,,,,
(जैसे ही मुखिया की बीवी ने अपनी कमर पर सूरज के मर्दाना हथेलियां का स्पर्श महसूस की वह पूरी तरह से मदहोश हो गई उसके बदन में एकदम से सुरसुराहट बढ़ गई,,,, खास करके उसकी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार में तो मानो जैसे आग लग गई हो,,,, तुरंत उसकी बुर नुमा कटोरी मदन रस से भर गई,,, मन तो उसका कर रहा था कि इसी समय सूरज को धर दबोचे और उसके ऊपर चढ़ जाए,,, लेकिन अनुभव से भरी हुई मुखिया की बीवी जल्दबाजी करने में नहींमानती थी,,,, वह जानती थी कि उसके दोनों टांग खोलते ही सूरज लार टपकाते हुए उसकी दोनों टांगों के बीच आ जाएगा,,,)


हाय दईया,,,,,,,(एकदम से मदहोश होते हुए मुखिया की बीवी बोली,,,,) अच्छा हुआ तू थाम लिया वरना मैं तो गिर जाती,,,,

मेरे होते हुए तुम कैसे गिर जाओगी मालकिन,,, मैं किस लिए हूं,,,,

अरे इसीलिए तो तुझे लेकर आई हूं,,,,(और इतना कहने के साथ ही वह खुद ही सूरज के कंधे पर हाथ रख दी और बोली) मुझे तो एक कदम भी नहीं चला जा रहा है,,,,, तुझे सहारा देकर ही मुझे ले जाना पड़ेगा,,,,,।

(सूरज के कंधे पर हाथ डालकर सहारा लेते ही सूरज के तन बदन में आग लग गई थी एक खूबसूरत औरत का इस तरह से उसके बदन से चिपकना उसे बहुत ज्यादा उत्तेजित कर रहा था उसका लंड पूरी तरह से औकात में आकर खड़ा हो चुका था उसकी सांसे बड़ी तेजी से चल रही थी क्योंकि जिस तरह से वह उसके कंधे पर अपना हाथ रखकर सहारा ली थी उसकी भाई च सीधे-सीधे उसके एक तरफ की छाती से स्पर्श हो रही थी और सूरज भी उसे सहारा देते हुए अपने हाथ को दूसरी तरफ से उसकी कमर पर लपेट रखा था कुल मिलाकर दोनों की हरकत बेहद कामोत्तेजना से भरी हुई थी ,,,)

लाओ मालकिन लालटेन मुझे दे दो,,,(और इतना कहने के साथ ही सूरज मुखिया की बीवी के हाथ से लालटेन को अपने हाथ में ले लिया और उसकी पीली रोशनी में धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा,,,,)

मुझे नहीं मालूम था रे की कमर इतनी ज्यादा परेशान करेगी वरना मैं आज नहीं आती,,,,(धीरे-धीरे लंगड़ा कर पैर आगे बढ़ाते हुए बोली,,,)

कोई बात नहीं मालकिन में हूं ना तुम्हें फिक्र करने की जरूरत नहीं है,,,।

तू तो बहुत अच्छा लड़का है मुझे लगता है कि तो हम लोगों का साथ बहुत देगा,,,, अब तो हमारे लिए ही काम किया कर पैसे इज्जत सब कुछ मिलेगा।


यह तो आपका बड़प्पन है मालकिन जो आपने काम के लिए मुझे चुना है,,,,(सूरज और मुखिया की बीवी बातें करते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे मुखिया की बीवी की कमर में और ना ही पैर में बिल्कुल भी तकलीफ नहीं थी वह तो सिर्फ अपना जादू चल रही थी सूरज के ऊपर जो कि अच्छा खासा काम भी कर रहा था क्योंकि लालटेन की रोशनी में मुखिया की बीवी की नजर उसके पजामा के आगे वाले भाग पर थी जो की काफी उठा हुआ था उसमें तंबू बना हुआ था यही देखकर मुखिया की बीवी मन ही मनपसंद भी हो रही थी और उतेजित भी हो रही थी क्योंकि उसका जादू काम कर रहा था,,,, सूरज बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,,)

अभी कितना दूर है मालकिन,,,,

बस आने ही वाला है तुझे तकलीफ हो रही है क्या,,,!

नहीं नहीं मालकिन मुझे बिल्कुल भी तकलीफ नहीं हो रही है मैं तो जिंदगी भर तुम्हें सहारा देकर इसी तरह से चल सकता हूं,,,।

अरे वाह रे बातें तो तू बड़ी-बड़ी करता है,,, एकदम मर्द की तरह,,,

मैं भी तो मर्द ही हूं मालकिन,,,,

हां वह तो दिखाई दे ही रहा है,,,(कनखियों से सूरज के पजामे की तरफ देखते हुए बोली,,, वैसे भी इस तरह से मुखिया की बीवी को सहारा देने में उसे किसी भी प्रकार की दिक्कत नहीं थी जिस तरह से वह मुखिया की बीवी की कमर पर हाथ रखा हुआ था उसके कमर की चिकनाहट उसकी हथेली में स्पर्श हो रही थी,,, सूरज को अब जाकर इस बात का एहसास हो रहा था की औरतों की कमर कितनी चिकनी होती है एकदम मक्खन की तरह उसकी हथेली फिसल जा रही थी और मुखिया की बीवी सूरज की हथेली को अपनी कमर पर महसूस करके गनगना जा रही थी,,,,)

मैंने कितनी बार शालू और नीलू को कहा कि मेरी कमर की मालिश कर दे लेकिन वह दोनों है कि दिनभर बस खेलती रहती है इधर-उधर मेरी बात सुनती ही नहीं है,,,,
(मुखिया की बीवी जानबूझकर सूरज से कमर की मालिश वाली बात बोली थी और सच तो यही था कि ना तो उसकी कमर में दर्द हो रहा था ना ही वह मालिश के लिए चालू और नीलू को बोली थी वह तो बस सूरज के मन को टटोल रही थी)

हां मालकिन वो तो में देखा हूं,,, शालू और नीलू दोनों दिन भर बस घूमती रहती है उन्हें चाहिए था कि तुम्हारी कमर की मालिश कर देती ताकि आराम हो जाता,,,,

अरे सूरज मेरी कहां सुनने वाली है दोनों मैं तो परेशान हो गई हूं बस जल्दी से जल्दी दोनों के हाथ पीले करके ससुराल भेज दु तो समझ लूं की गंगा नहा ली,,, अच्छा सूरज तुझे आता है क्या मालिश करना,,,,

ममममम,, मालिश करना,,,,,,हां,,,हां,,, आता तो है एक दो बार मैंने मालिश किया हूं मां की उनकी भी कमर में इसी तरह का दर्द होता था,,,,(सूरज हड बढ़ाते हुए झूठ बोल रहा था,,, क्योंकि मालिश वाली बात सुनकर उसके मन में उमंग जगने लगी थी ,,, उसे इस बात का एहसास होने लगा था की मुखिया की बीवी उसे मालिश करने के लिए जरुर बोलेगी इसीलिए वह इनकार नहीं कर पाया और सच तो यही था कि उसे मालिश करना नहीं आता था और ना ही कभी उसने अपनी मां की मालिश किया था बस वह ईस मौके को जाने नहीं देना चाहता था,,,, मालिश के बहाने वहां मुखिया की बीवी की मक्खन जैसी कमर को अपने हाथों से छूना चाहता था स्पर्श करना चाहता था रगड़ना चाहता था इसलिए सूरज की बात सुनते ही वह बोली,,,,)

तब तो ठीक है तब तो तू मेरी भी मालिश कर लेगा ना,,,

जरूर मालकिन इसमें कौन सी बड़ी बात है,,,

सूरज तु कितना अच्छा लड़का है,,, काश तू मेरा बेटा होता तो मुझे यह सब चिंता करने की जरूरत ही नहीं होती,,,,

कोई बात नहीं मालकिन अपना ही समझो,,,,
(वैसे तो सूरज को औरतों से बात करने का अनुभव बिल्कुल भी नहीं था लेकिन न जाने क्यों इस समय वह मुखिया की बीवी के साथ एक मजे हुए मर्द की तरह बातें कर रहा था ऐसा लग ही नहीं रहा था कि वह पहली बार किसी औरत से बात कर रहा हो ऐसा लग रहा था कि जैसे वह इस तरह की बातें औरतों से कर चुका है और उसे इस तरह की बातें करने में मजा भी आ रही थी,,,, मुखिया की बीवी की तो हालत खराब होती जा रही थी उसके बदन में उत्तेजना का तूफान उठ रहा था वह न जाने किस तरह से अपने आप को संभाली हुई थी वरना उसका मन तो चुदवाने के लिए मचल रहा था,,, उसकी बर पानी पानी हो रही थी उसे अपनी बुर से मदन रस टपकता हुआ महसूस हो रहा था,,,, मालिश वाली बात का जिक्र छेड़ कर वह मन ही मन प्रसन्न हो रही थी क्योंकि वह जानती थी की मालिश करवाने के बहाने वह अपने हर एक अंक को खोलकर सूरज को दिखा सकेगी और फिर सूरज को अपनी जवानी का जलवा दिखाकर मदहोश करके अपनी मनमानी करवा सकेगी और अपनी जवानी की आग बुझा सकेगी,,,,, क्योंकि अभी तक खेतों में जिस तरह से उसे गिरने से बचाते हुए सूरज ने उसे अपनी बाहों में भर लिया था,,, साड़ी के ऊपर से ही उसके लंड की चुभन उसे अभी तक महसूस होती थी,,,, और इस चुभन को महसूस करके मुखिया की बीवी अंदाजा लगा ली थी कि सूरज के पास जो मर्दाना अंग है वह बहुत खास और मजबूत है जो कि उसे अपनी बुर में लेकर वह पूरी तरह से अपनी जवानी का रस निचोड़ सकेगी,,,,)

रात धीरे-धीरे गहरा रही है देखो तो सही चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है और वैसे भी हम लोग गांव से काफी दूर आ चुके हैं,,,,

सही कह रहा है सूरज तू,,,, इसीलिए तो मुझे आम के बगीचे की रखवाली करने आना पड़ता है क्योंकि यह दूर है और यहां पर लोग आसानी से आम चुरा ले जाते हैं,,,,

(चूड़ियों की खनक पायल की झनक से वातावरण और भी ज्यादा उत्तेजित हुआ जा रहा था मुखिया की बीवी के खूबसूरत बदन की मादक खुशबू सूरज के तन बदन में आग लग रही थी पहली बार वह किसी औरत को इस तरह से अपने बदन से सटाया हुआ था इसीलिए तो औरत के बदन की खुशबू भी उसे महसूस हो रही थी,,,,,,, यहां तक की उसकी चूचियों की रगड़ से उसके बदन में उत्तेजना बरकरार थी वह पूरी तरह से मदहोश हुआ जा रहा था यहां तक कि उसे अपने लंड में दर्द महसूस होने लगा था,,,। और यही हाल मुखिया की बीवी का भी था उसकी बुर पानी पानी हो रही थी यहां तक की उसकी पर से निकलने वाला पानी उसे अपनी जांघों पर टपकता हुआ महसूस हो रहा था और जिस तरह से उसकी चूची उसकी छाती से रगड़ खा रही थी,,, उसकी वजह से उसकी चूची में उत्तेजना के चलते कसाव बढ़ता जा रहा था,,,,,, थोड़ी ही देर में आपका बगीचा दिखाई देने लगा बड़े-बड़े पेड़ की वजह से उसे जगह पर और भी ज्यादा अंधेरा छाया हुआ था,,,,, बगीचे पर नजर पडते ही मुखिया की बीवी बोली,,,।)

वह देख सूरज बगीचा आ गया,,,,

हां मालकिन बहुत बड़े-बड़े पेड़ हैं इसके आम भी तो बड़े-बड़े होंगे,,,,

बहुत बड़े-बड़े है रे चल तुझे दिखाती हूं,,,,

(मुखिया की बीवी यह बात अपनी चूचियों को लेकर बोली थी लेकिन सूरज समझ नहीं पाया था,,,, सूरज अभी भी उसी तरह से उसे सहारा देकर आगे बढ़ रहा था उसके हाथ में लालटेन थी और दूसरे हाथ में कुल्हाड़ी थी और मुखिया की बीवी उसके कंधे पर हाथ रखकर एक हाथ में डंडा लेकर उसके सहारे से चल रही थी,,,, आम के बगीचे में प्रवेश करने से पहले ही वह शर्माने का नाटक करते हुए धीरे से बोली,,,)

ररररररर,,,, यही रुक जा सूरज,,,,,
(उसकी बात सुनते ही सूरज एकदम से रुक गया और उसकी तरफ आश्चर्य से देखते हुए बोला)

क्यों क्या हुआ मालकिन,,,,

अब तुझे कैसे कहूं मैं,,,,(इधर-उधर देखकर शर्माने का नाटक करते हुए बोली)

क्यों क्या हुआ बोलो तो सही,,,,

मुझे बड़ी जोरों की पेशाब लगी है,,,,
(मुखिया की बीवी के मुंह से पेशाब शब्द सुनते ही उत्तेजना के मारे सूरज का गला सूखने लगा पहली बार किसी औरत के मुंह से पेशाब करने वाली बात सुन रहा था उसका दिल जोरो से धड़कने लगा था वह पल भर में उत्तेजना के परम शिखर पर पहुंच चुका था वह आश्चर्य से मुखिया की बीवी के खूबसूरत चेहरे की तरफ देख रहा था जो की लालटेन की पीली रोशनी में और भी ज्यादा दमक रहा था,,,)


Bahut hi behtareen update he rohnny4545 Bhai,

Mukhiya ki biwi badi hi shatir he..........dheere dheere wo suraj ko apni jawani ke jaal me fansa kar uske sath maje karegi.............

Keep posting Bhai
 

rohnny4545

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बहुत ही सुंदर लाजवाब और शानदार अपडेट है भाई मजा आ गया
सुरज की जवानी बहुत ही हिलोरे मार रही हैं
खाना बनाते समय सुनैना की मदमस्त चुचिया देखकर उसके नीचे का बाबु बडा ही उछल कुद करने लगा है
नीलु के बुर के दर्शन करने के बाद वो सभी के बुर कैसे होती होगी उसकी कल्पना करने लगा
अब आम के बाग में मुखिया की बिबी और वो रात को क्या धमाल करते है देखते हैं आगे
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
Dhanyawad dost
Mukhiya ki bibi or Suraj
 
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