Ajju Landwalia
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मुखिया की बीवी आम के बगीचे की रखवाली करने का बहाना देकर अपनी चाल चल चुकी थी,,, और इस बात से सूरज भी बहुत खुश नजर आ रहा था वैसे भी उसे मुखिया की बीवी के साथ वक्त गुजारना अच्छा लगता था और इसी बहाने वह रात भर मुखिया की बीवी के साथ आम की रखवाली तो कर सकता था इसी बात को लेकर उसके चेहरे पर प्रसन्नता के भाव नजर आ रहे थे।
मुखिया को इसमें कोई एतराज नहीं था क्योंकि इससे पहले की उसकी बीवी आपके बगीचे की रखवाली करने के लिए बगीचे में कई राते रुक चुकी थी लेकिन मुखिया इस बात से अनजान था कि आम के बगीचे की रखवाली करने के बहाने उसकी बीवी रात रंगीन करतीथी। इसीलिए तो मुखिया एकदम सहज था अपनी बीवी के प्रति उसे बिल्कुल भी शंका नहीं था और वैसे भी जिस तरह से वह खेत खलिहान का काम संभालती थी,,, मजदूरों को संभालती थी और हिसाब किताब देखी थी इतना कुछ करने की क्षमता मुखिया में बिल्कुल भी नहीं थी इसीलिए तो वह अपनी बीवी से बहुत खुश था क्योंकि उसके चलते ही उसे आराम मिलता था।
एक तरफ मुखिया की बीवी पूरी तरह से उत्सुक थी सूरज से रात को मिलने के लिए और दूसरी तरफ सूरज का भी यही हाल था जिस तरह का नजारा मुखिया की बीवी ने उसे दिखाई थी वह नजारा आज तक उसके मन-मस्तिष्क में किसी चित्र की भांति छप गया था और उसे नजारे के बारे में जब भी उसे ख्याल आता था तब तब उसके बदन में सिहरन सी दौड़ने लगती थी,,, वह उसकी आंखों के सामने कपड़ा उतारना अपनी खूबसूरत बदन की नुमाइश करना और जिस तरह से वह पेटीकोट को खोलकर आगे की तरफ खींची थी उसकी दोनों टांगों के बीच घुंघराले बाल को देखकर आश्चर्यचकित हो जाना यह सब याद करके सूरज के तन बदन में आग लग जाती थी,,, इसलिए तो वह भी बेसब्री से शाम ढलने का इंतजार कर रहा था और यह बात उसने अपने घर पर भी बता दिया था पहले तो उसकी मां थोड़ा नाराज हुई लेकिन,, क्योंकि घर पर उसका पति भी नहीं था और अब सूरज भी कहीं आम की रखवाली करने के लिए जा रहा था वैसे उसने इस बात को नहीं बताया था कि वह मुखिया की बीवी के साथ आम की रखवाली करने के लिए जा रहा है वह सिर्फ इतना ही बताया था कि रात को आम के बगीचे की रखवाली करना है कुछ लोगों के साथ साथ में पैसे भी मिलेंगे और पके हुए आम भी मिलेंगे उसने मुखिया की बीवी के साथ वाली बात को छुपा ले गया था न जाने कहां से सूरज में इतना दिमाग आ गया था वरना अगर वह यह बात बता देता तो शायद सुनैना के मन में ढेर सारे शंका ने जन्म ले लिया होता। और आम के बगीचे की रखवाली के बदले में पैसे और पके हुए आम मिलने के लालच में सुनैना भी कुछ बोल नहीं पाई और जल्दी-जल्दी खाना बनाने लगी।
शाम ढल चुकी थी बहुत जल्द ही उसे मुखिया के घर पर पहुंचना था वैसे तो उसे रात बिरात डर बिल्कुल भी नहीं लगता था लेकिन वह समय पर पहुंचना चाहता था,,, सूरज ठीक रसोई के सामने बैठकर भोजन का इंतजार कर रहा था और उसकी मां जल्दी-जल्दी तवे पर रोटियां पका रही थी लेकिन उसकी इस जल्दबाजी में वह यह भूल गई थी कि उसके कंधे पर से उसके साड़ी का पल्लू नीचे गिर चुका था और वह चूल्हे के सामने बिना साड़ी के पल्लू की बैठी हुई थी जिसकी वजह से उसकी दोनों चूचियां ब्लाउज में एकदम कसी हुई नजर आ रही थी लेकिन ऐसी अवस्था में ,, उसकी बड़ी-बड़ी दोनों चूचियां ब्लाउज फाड़कर बाहर आने के लिए एकदम आतुर नजर आ रहे थे इस पर नजर पडते ही सूरज की हालत खराब होने लगी,,,।
सूरज एकदम से भूल गया कि उसे मुखिया की बीवी के साथ जल्दी आम के बगीचे पर जाना है वह तो अपनी मां के दोनों खरगोश में खो गया था और चूल्हे के आगे बेटी होने की वजह से उसके बदन से पसीना टपक रहा था और उसके माथे से पसीना बुंद बनकर उसके गोरे-गोरे गाल से होते हुए उसके गर्दन का रास्ता नापते हुए सीधे-सीधे उसके ब्लाउज के बीच वाली घाटी से होते हुए ब्लाउज के अंदर की तरफ जा रहे थे यह सब देखकर सूरज के लंड में हरकत होना शुरू हो गया,,, सुनैना इस बात से बेखबर खाना बनाने में लगी हुई थी,,, सूरज यह जानते हुए भी की जो कुछ भी वह अपनी मां की तरफ देख कर सो रहा है वह गलत है लेकिन फिर भी वह अपने आप को रोक नहीं पा रहा था अपनी मां की तरफ देखने से,,,खास करके उसकी चूचियों की तरह और वह भी चूल्हे के सामने बैठी होने की वजह से चूल्हे में जल रही आग की पीली रोशनी में उसका खूबसूरत बदन और भी ज्यादा चमक रहा था।। यह सब सूरज के लिए बहुत ही ज्यादा असहनीय होता जा रहा था। जिस तरह से सुनैना रोटियां बेल रही थी उसके हाथों की हरकत की वजह से उसके ब्लाउज में भी उतार चढ़ाव एकदम साफ नजर आ रहा था यह सब देखकर सूरज के लंड की अकड़ बढ़ती जा रही थी। इस नजारे को देखकर अनायास ही उसके मन में यह ख्याल आ गया कि काश उसकी मां ब्लाउज नहीं पहनी होती तो उसकी नंगी चूचियों को देखने में कितना मजा आता है लेकिन अपने इसी ख्याल पर वह अपने आप पर ही गुस्सा दिखाने लगा,। क्योंकि वह सब जानता था कि जो कुछ भी वर्क कर रहा है अपने मन में सोच रहा है वह बहुत ही गलत है लेकिन वह इससे ज्यादा कुछ सोच पाता इससे पहले ही सुनैना बोली।
बस ले अब तैयार हो गया है गरमा गरम खा ले,,,(इतना कहने के साथ ही एक थाली में थोड़ी सी सब्जी दाल चावल और रोटी निकालकर सूरज की तरफ आगे बढ़ा दी सूरज भी अपना हाथ आगे बढ़कर थाली को ले लिया और खाना शुरू कर दिया उसकी मां तुरंत अपनी जगह से उठकर खड़ी हुई और मटके से ठंडा ठंडा पानी गिलास भरकर लाई और उसके पास रख दी और उसे हिदायत देते हुए बोली,,)
देख रात का समय है और बगीचे का इसलिए ध्यान देना कहीं अकेले मत जाना जहां भी जाना अपने साथी लोग के साथ ही जाना,,, वैसे तो मुझे अच्छा नहीं लग रहा है लेकिन तू भी अब बड़ा हो गया है कामकाज देखेगा तभी तो जीवन की गाड़ी आगे बढ़ेगी।
तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो ना मैं सब संभाल लूंगा,,,(निवाला मुंह में डालते हुए बोला और थोड़ी ही देर में वह खाना खा लिया और जाने के लिए तैयार हो गया था लेकिन जाते-जाते वह अपनी मां को बोला)
मैं अब जा रहा हूं पिताजी भी घर पर नहीं है इसलिए दरवाजा बंद कर लेना और खोलना नहीं और तुम दोनों की जल्दी से खाना खाकर सो जाना।
ठीक है सूरज तू अपना ख्याल रखना,,
ठीक है मां,,,(और इतना कहते हुए वह मुखिया की बीवी के घर की तरफ निकल गया,,, लेकिन रास्ते में वह अपनी मां की चूचियों के बारे में सोचने लगा,,, और अपने आप से ही बातें करते हुए बोला
मां की चूचीया कितनी बड़ी-बड़ी है,,, ब्लाउज में इतनी जबरदस्त लगती है तो बिना ब्लाउज की जब एकदम नंगी होती होगी तो कितनी खूबसूरत लगती होगी एकदम गोल-गोल खरबूजे जैसी मैंने तो कभी देखा भी नहीं है लेकिन ब्लाउज में उसकी गोलाई देखकर अंदाजा लगा लेता हूं कि कैसी दिखती होगी ,,, कसम से अभी तो मेरी हालत खराब हो गई थी,, अच्छा हुआ कि मां ने नहीं देखी,,, यह साला मुझे क्या हो जाता है सब कुछ जानते हुए भी की जो कुछ भी मैं देख रहा हूं जो सोच रहा हूं सब गलत है फिर भी मैं अपने आप को रोक क्यों नहीं पाता,,,, लेकिन पहले तो मैं ऐसा बिल्कुल भी नहीं था तो अब ऐसा क्यों हो रहा है मां को देखते ही मेरे दिल की धड़कन क्यों बढ़ने लगती है क्यों मेरी नजर उनके अंगों पर चली जाती है वैसे भी जिस दिन से मा की चुदाई देखा हूं तब से तो न जाने मेरे मन में कैसे-कैसे विचार आने लगे हैं।
उस दिन कमरे में मां और पिताजी पूरी तरह से नंगे थे लेकिन मुझे ज्यादा कुछ नहीं दिखाई दिया सिर्फ मां की बड़ी-बड़ी गांड और उसकी दोनों टांगों के बीच पिताजी का अंदर बाहर होता हुआ लंड मां की बुर भी मै अभी तक नहीं देख पाया,,, लेकिन वह नजारा देखकर मेरी तो हालत खराब हो गई थी मैं तो कभी सोच भी नहीं सकता था कि मेरी मां भी चुदवाती होगी लेकिन सब कुछ मैं अपनी आंखों से देखा था पिताजी कैसे जोर-जोर से धक्के लगा रहे थे और न जाने कैसे-कैसे आवाज मां के मुंह से निकल रही थी इसका मतलब मन को भी चुदवाने में मजा आता है।
(सूरज अपने मन में यही सब सोते हुए और अपने आप से ही बात करते हुए आगे की तरफ चले जा रहा था वह अपनी बात को अपने मन में ही आगे बढ़ाते हुए अपने आप से ही बोला)
कितना अच्छा मौका था उसे दिन पूरी तरह से मांगी थी पिताजी नंगे थे लेकिन फिर भी ज्यादा कुछ दिखाई नहीं दे रहा था पिताजी मां को नीचे लेट कर उसकी चुदाई करते तो मैं सब कुछ देख लेता उनके बुर भी देख लेता की कैसी उनके बुर हैं,,, नीलू की तो मैं अपनी आंखों से देख लिया था एकदम चिकनी कचोरी की तरह खुली हुई क्या इस तरह की मां की भी बुर होगी,,, पता नहीं मैं अभी तक नीलू की छोड़कर किसी और की बुर देखा ही नहीं,,, मुझे तो यह भी नहीं मालूम कि सब की एक जैसी होती है कि अलग-अलग होती है लेकिन जो नशा देखकर हुआ था वह नशा आज तक मेरी नस-नस में घुला हुआ है,,,
पिताजी कितने कसकस के धक्के लगा रहे थे,,, पूरा दम लगाकर पता नहीं मा कैसे उनके धक्को को सहन कर पा रही थी,,,,,, कुछ पता ही नहीं चला था की मां को कैसा लग रहा है पता नहीं उन्हें दर्द कर रहा था कि मजा आ रहा था और वैसे भी दीवाल पकड़ कर झुकी हुई थी एकदम घोड़ी बनकर,,, जैसे की घोड़ी के ऊपर घोड़ा,,,, जो मां और पिताजी कर रहे थे उसे ही चुदाई कहते हैं और यह सब शादी के बाद ही होता है काश मेरी भी शादी हो गई होती तो मैं भी सब कुछ जान जाता,,,। और रोज मजे लेता,,,,।
(वह यही सब सोते हुए मुखिया के घर की तरफ चले जा रहा था कि तभी एक कुत्ता भोकता हुआ उसकी तरफ लपका तो उसका ध्यान एकदम से भंग हुआ और वह तुरंत नीचे से पत्थर उठा दिया और गाली देता हुआ उसकी तरफ चल दिया कुत्ता तुरंत वहां से भाग गया तब उसे इस बात का एहसास हुआ कि चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था उसे इस बात का डर था कि कहीं देर तो नहीं हो गई कहीं मुखिया की बीवी अकेले तो बगीचे पर नहीं चली गई यही सब सोता हुआ वह जल्दी-जल्दी मुखिया के घर की तरफ जाने लगा जो की दुर से ही मुखिया का घर नजर आ रहा था। ऊपर वाले मंजिले पर बाहर की तरफ लालटेन चल रही थी क्योंकि दूर से ही दिखाई दे रही थी।
सूरज जल्दी-जल्दी मुखिया के घर की तरफ जाने लगा और थोड़ी देर में पहुंच गया बाहर ही कुर्सी पर बैठकर मुखिया और मुखिया की बीवी सूरज का इंतजार कर रही थी सूरज को देखते ही मुखिया की बीवी बोली।
कहां रह गया था रे मैं कब से तेरा इंतजार कर रही हूं देख कितना समय हो गया या अंधेरा हो गया हमें और जल्दी जाना चाहिए था।
मैं माफी चाहता हूं मालकिन घर पर खाना बनने में देर हो गया था इसलिए जल्दी से खाकर मैं जल्दी-जल्दी भागता हुआ यहां आया हूं मुझे तो लग रहा था कि कहीं आप अकेले ना निकल गई हो।
अकेले क्यों जाऊंगी तुझे लिए बिना कैसे जा सकती हूं,,, तूने खाना खा लिया है।
हां मालकिन,,,
चल कोई बात नहीं खाना खा लिया तो ठीक ही है लेकिन खाने का डब्बा भी ले ले कहीं रात को भूख लग गई तो ,,,,
(इतना सुनते ही पास में पड़ा हुआ खाने के डब्बे को सूरज उठा लिया और फिर मुखिया जो वही कुर्सी पर बैठा हुआ था वह बोला)
सूरज वह सामने कुल्हाड़ी पड़ी है उसे भी ले ले,,,
कुल्हाड़ी क्यों मालिक,,,(सूरज आश्चार्य जताते हुए बोला,,,)
अरे पागल रात का समय है चोर उचक्के का डर तो रहता ही है लेकिन जंगली जानवरों का भी डर रहता है हाथ में हथियार रहेगा तो डर तो नहीं रहेगा।
(मुखिया की बात सुनकर सूरज को थोड़ी घबराहट हुई लेकिन फिर भी वहां मुखिया के बताएं अनुसार कुल्हाड़ी को हाथ में ले लिया और फिर मुखिया खुद अपनी जगह से खड़ा होकर लालटेन अपने हाथ में लिया और उसे अपनी बीवी को थमा दिया.. लालटेन को अपने हाथ में लेते हुए वह मुस्कुरा कर बोली,,,)
इसकी तो ज्यादा जरूरत है,,,,(और फिर एक हाथ में लालटेन और एक बड़ा सा डंडा अपने हाथ में लेकर दोनों आम के बगीचे की तरफ निकल गए)
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Bahut hi shandar update he rohnny4545 Bhai,
Suraj ab jawani ke nazare dekhega.............mukhiya ki biwi ek pake huye aam ki tarah he............jiska ras suraj maje lekar chusega............
Keep posting Bhai