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Adultery जब तक है जान

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#21

भटकते भटकते मैं उस जगह पर जा पहुंचा जो होकर भी नहीं थी .........
मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था की ये बारिश मुझे कैसे भिगोएगी, सिर्फ मेरे तन को ही नहीं मेरे मन को भी जंगल में मोर को नाचते तो दुनिया ने देखा था पर मैंने उसे देखा, उसे देखा और देखता ही रह गया. बारिश की बूंदों संग खेलती वो ,फुल पत्तियों संग डोलती वो . उगता सूरज भी देखा था ,दोपहर को तपता सूरज भी देखा था पर बारिश में उगता चाँद मैंने पहली बार देखा था, वो सांवली सूरत ,उसके गुनगुनाते होंठ जैसे बंसी की कोई तान . मेरी जगह को कवी, शायर होता तो उसकी पहली तमन्ना यही होती की वक्त का पन्ना वही उस छोटे से लम्हे में रुक जाए.
तभी उसकी नजर मुझ पर पड़ी और उसके हाथ थम गए. उसने अपना नाच रोका और मुझे देखने लगी.

“माफ़ी चाहूँगा , मेरा इरादा बिलकुल भी नहीं था आपका ध्यान भटकाने का ” मैंने कहा

“हम्म ” उसने मेरे पास आते हुए कहा

केसरिया लहंगा चोली में वो सांवली सूरत , उसकी आभा में कोई तो बात थी . कुछ देर वो बस मुझे देखती रही और फिर वो जाने लगी .

“बारिश बहुत तेज है ,क्या मैं आपकी मदद करू, मेरा मतलब है इस समय आप अकेली है आपको घर तक छोड़ दू ” मालूम नहीं क्यों मैंने उसे ये बात कह दी

“घर , हाँ घर तो जाना ही है बस देखना है की देर कितनी लगेगी ” उसने कहा

मैं- कुछ समझा नहीं

वो- मेरा घर पास में ही है , वैसे तुम क्यों भटक रहे हो

मैं- सच कहूँ, घर जाने का मन नहीं था

“एक हम है जो घर को तरसते है एक ये है जो घर को घर नहीं समझते ” उसने कहा

मैं- समझा नहीं

तभी बादलो से बिजली लड़ पड़ी, इतनी जोर की आवाज थी की एक पल के लिए लगा की सूरज ही उग आया हो , शोर से जैसे कानो के परदे फट ही गए हो बिजली पास में ही गिरी थी वो दौड़ पड़ी उसके पीछे मैं भागा. खंडहर की मीनार को ध्वस्त कर दिया था बिजली ने पत्थरों के आँगन में मीनार के टुकड़े बिखरे हुए थे .

“नुक्सान बहुत हुआ है ” मैंने कहा

“खंडहर नहीं है ये मंदिर था किसी ज़माने में, और ज़माने ने ही भुला दिया इसे. ” उसने कहा और जाकर उस जगह बैठ गयी जहाँ पर माता की मूर्ति थी मैं भी बैठ गया .

“क्या कहानी है इस जगह की ” मैंने सवाल किया

“समय से पूछना क्यों भुला दिया गया ” उसने जवाब दिया

मैं- तुम्हारी आधी बाते तो मेरे सर के ऊपर से जा रही है

“इतनी भी मुश्किल नहीं मैं ” वो बोली

मैं- आसान भी तो नहीं

वो- तुम्हे लौट जाना चाहिए अब

मैं- तुम नहीं जाओगी

वो- मेरा घर यही है , तालाब के पीछे घर है मेरा

मैं- ठीक है तुम्हे छोड़ते हुए मैं भी निकल जाऊँगा

उसने काँधे उचकाए और सीढियों से उतरते हुए हम उस जगह जा पहुंचे जहाँ एक झोपडी थी

मैं- यहाँ रहती हो तुम

वो- हाँ

मैं- बस्ती से इतनी दूर तुम्हे परेशानी नहीं होती

वो- बस्ती में जायदा परेशानी होगी मुझे

“ठीक है , मिलते है फिर ” मैंने कहा कायदे से मुझे आगे बढ़ जाना चाहिए था पर मेरे पैर जाना नहीं चाहते थे वहां से

वो- क्या हुआ

मैं- बारिश की वजह से ठण्ड सी लग रही है चाय मिल सकती है क्या एक कप

वो- दस्तूर तो यही है की इस मौसम में कुछ चुसकिया ली जाये पर अफ़सोस आज मेरे घर चाय नहीं मिल पायेगी मैंने कुछ दिन पहले ही बकरी बेचीं है

मैं- कोई बात नहीं फिर तो

“मुझे लगता है की तुम्हे अब जाना चाहिए ” उसने आसमान की तरफ देखते हुए कहा और मैं गाँव की तरफ चल दिया .पुरे रस्ते मैं बस उसके बारे में ही सोचता रहा .
चोबारे में गया तो पाया की बुआ कुछ परेशान सी थी

मैं- क्या हुआ बुआ कुछ परेशान सी लगती हो

बुआ के चेहरे पर अस्मंस्ज्स के भाव थे हो न हो वो उसी किताब की वजह से परेशान थी , अब सीधे सीधे तो मुझ से पूछ सकती नहीं थी

बुआ- नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं

मैंने रेडियो चला दिया, बारिश के मौसम में बड़ा साफ़ पकड़ता था . हलकी आवाज में गाने सुनते हुए मैंने वो शाम काटी, कभी कभी मेरी और बुआ की निगाहें मिल जाती थी , जिन्दगी में मैंने पहली बार बुआ को गौर से देखा, पांच फूट लम्बी , गोरी, भारी छातिया और पीछे को उभरे हुए कुल्हे, मेरे दिमाग में हलचल सी मचने लगी, शयद उस किताब में पढ़ी कहानियो का असर था ये .


रात घिर आई थी , चूँकि बारिश अभि भी हो रही थी तो हलकी सी ठण्ड थी मैंने चादर ओढ़ ली, बुआ मेरे पास ही लेटी ही थी रात न जाने कितनी बीती कितनी बची थी पर मैं जाग रहा था .बुआ ने अपना मुह मेरी तरफ किया और अपने पैर को मेरे पैर पर चढ़ा लिया बुआ की गरम साँसे मैंने अपने गालो पर महसूस की . कुछ देर बाद बुआ ने अपने होंठ मेरे गालो रख दिए और हलके से पप्पी ली. मेरा तो बदन ही सुन्न हो गया था . बुआ का बदन धीरे धीरे हिलने लगा था पर क्यों हिल रहा था मैं ये समझ नहीं आ रहा था .

बुआ थोड़ी सी मेरी तरफ सरकी और हलके से बुआ ने मेरे होंठो से खुद के होंठ जोड़ दिए, जीवन का पहला चुम्बन मेरी बुआ ले रही थी \मैं चाह कर भी अपने लिंग में भरती उत्तेजना को रोक नहीं सका , चूँकि बुआ की जांघ मेरे ऊपर थी तो शायद उन्होंने भी मेरे लिंग का तनाव महसूस किया होगा . फिर बुआ सीढ़ी होकर लेट गयी , कुछ देर जरा भी हरकत नहीं हुई और फिर अचानक से बुआ ने अपना हाथ मेरे लिंग पर रख दिया . बेशक कमरे में अँधेरा था पर मैं शर्म से मरा जा रहा था मेरी बुआ अपने ही भतीजे के साथ ये अब कर रही थी . बुआ पेंट के ऊपर से मेरे लिंग को सहला रही थी और मैं शर्त लगा कर कह सकता हूँ की ठीक उसी समय बुआ का हाथ अपनी सलवार में था . फिर बुआ ने हाथ लिंग से हटाया और मेरे हाथ को उसकी चुचियो पर रख दिया बुआ सोच रही थी की मैं गहरी नींद में हु पर मैं जागा हुआ था , मैं सोचने लगा की ऐसा बुआ ने क्या पहले भी मेरे साथ ही किया होगा

 
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parkas

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भटकते भटकते मैं उस जगह पर जा पहुंचा जो होकर भी नहीं थी .........
मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था की ये बारिश मुझे कैसे भिगोएगी, सिर्फ मेरे तन को ही नहीं मेरे मन को भी जंगल में मोर को नाचते तो दुनिया ने देखा था पर मैंने उसे देखा, उसे देखा और देखता ही रह गया. बारिश की बूंदों संग खेलती वो ,फुल पत्तियों संग डोलती वो . उगता सूरज भी देखा था ,दोपहर को तपता सूरज भी देखा था पर बारिश में उगता चाँद मैंने पहली बार देखा था, वो सांवली सूरत ,उसके गुनगुनाते होंठ जैसे बंसी की कोई तान . मेरी जगह को कवी, शायर होता तो उसकी पहली तमन्ना यही होती की वक्त का पन्ना वही उस छोटे से लम्हे में रुक जाए.
तभी उसकी नजर मुझ पर पड़ी और उसके हाथ थम गए. उसने अपना नाच रोका और मुझे देखने लगी.


“माफ़ी चाहूँगा , मेरा इरादा बिलकुल भी नहीं था आपका ध्यान भटकाने का ” मैंने कहा

“हम्म ” उसने मेरे पास आते हुए कहा

केसरिया लहंगा चोली में वो सांवली सूरत , उसकी आभा में कोई तो बात थी . कुछ देर वो बस मुझे देखती रही और फिर वो जाने लगी .

“बारिश बहुत तेज है ,क्या मैं आपकी मदद करू, मेरा मतलब है इस समय आप अकेली है आपको घर तक छोड़ दू ” मालूम नहीं क्यों मैंने उसे ये बात कह दी

“घर , हाँ घर तो जाना ही है बस देखना है की देर कितनी लगेगी ” उसने कहा

मैं- कुछ समझा नहीं

वो- मेरा घर पास में ही है , वैसे तुम क्यों भटक रहे हो

मैं- सच कहूँ, घर जाने का मन नहीं था

“एक हम है जो घर को तरसते है एक ये है जो घर को घर नहीं समझते ” उसने कहा

मैं- समझा नहीं

तभी बादलो से बिजली लड़ पड़ी, इतनी जोर की आवाज थी की एक पल के लिए लगा की सूरज ही उग आया हो , शोर से जैसे कानो के परदे फट ही गए हो बिजली पास में ही गिरी थी वो दौड़ पड़ी उसके पीछे मैं भागा. खंडहर की मीनार को ध्वस्त कर दिया था बिजली ने पत्थरों के आँगन में मीनार के टुकड़े बिखरे हुए थे .

“नुक्सान बहुत हुआ है ” मैंने कहा

“खंडहर नहीं है ये मंदिर था किसी ज़माने में, और ज़माने ने ही भुला दिया इसे. ” उसने कहा और जाकर उस जगह बैठ गयी जहाँ पर माता की मूर्ति थी मैं भी बैठ गया .


“क्या कहानी है इस जगह की ” मैंने सवाल किया

“समय से पूछना क्यों भुला दिया गया ” उसने जवाब दिया

मैं- तुम्हारी आधी बाते तो मेरे सर के ऊपर से जा रही है

“इतनी भी मुश्किल नहीं मैं ” वो बोली

मैं- आसान भी तो नहीं

वो- तुम्हे लौट जाना चाहिए अब

मैं- तुम नहीं जाओगी

वो- मेरा घर यही है , तालाब के पीछे घर है मेरा

मैं- ठीक है तुम्हे छोड़ते हुए मैं भी निकल जाऊँगा

उसने काँधे उचकाए और सीढियों से उतरते हुए हम उस जगह जा पहुंचे जहाँ एक झोपडी थी

मैं- यहाँ रहती हो तुम

वो- हाँ

मैं- बस्ती से इतनी दूर तुम्हे परेशानी नहीं होती

वो- बस्ती में जायदा परेशानी होगी मुझे

“ठीक है , मिलते है फिर ” मैंने कहा कायदे से मुझे आगे बढ़ जाना चाहिए था पर मेरे पैर जाना नहीं चाहते थे वहां से

वो- क्या हुआ

मैं- बारिश की वजह से ठण्ड सी लग रही है चाय मिल सकती है क्या एक कप

वो- दस्तूर तो यही है की इस मौसम में कुछ चुसकिया ली जाये पर अफ़सोस आज मेरे घर चाय नहीं मिल पायेगी मैंने कुछ दिन पहले ही बकरी बेचीं है

मैं- कोई बात नहीं फिर तो

“मुझे लगता है की तुम्हे अब जाना चाहिए ” उसने आसमान की तरफ देखते हुए कहा और मैं गाँव की तरफ चल दिया .पुरे रस्ते मैं बस उसके बारे में ही सोचता रहा .

चोबारे में गया तो पाया की बुआ कुछ परेशान सी थी

मैं- क्या हुआ बुआ कुछ परेशान सी लगती हो

बुआ के चेहरे पर अस्मंस्ज्स के भाव थे हो न हो वो उसी किताब की वजह से परेशान थी , अब सीधे सीधे तो मुझ से पूछ सकती नहीं थी

बुआ- नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं

मैंने रेडियो चला दिया, बारिश के मौसम में बड़ा साफ़ पकड़ता था . हलकी आवाज में गाने सुनते हुए मैंने वो शाम काटी, कभी कभी मेरी और बुआ की निगाहें मिल जाती थी , जिन्दगी में मैंने पहली बार बुआ को गौर से देखा, पांच फूट लम्बी , गोरी, भारी छातिया और पीछे को उभरे हुए कुल्हे, मेरे दिमाग में हलचल सी मचने लगी, शयद उस किताब में पढ़ी कहानियो का असर था ये .



रात घिर आई थी , चूँकि बारिश अभि भी हो रही थी तो हलकी सी ठण्ड थी मैंने चादर ओढ़ ली, बुआ मेरे पास ही लेटी ही थी रात न जाने कितनी बीती कितनी बची थी पर मैं जाग रहा था .बुआ ने अपना मुह मेरी तरफ किया और अपने पैर को मेरे पैर पर चढ़ा लिया बुआ की गरम साँसे मैंने अपने गालो पर महसूस की . कुछ देर बाद बुआ ने अपने होंठ मेरे गालो रख दिए और हलके से पप्पी ली. मेरा तो बदन ही सुन्न हो गया था . बुआ का बदन धीरे धीरे हिलने लगा था पर क्यों हिल रहा था मैं ये समझ नहीं आ रहा था .

बुआ थोड़ी सी मेरी तरफ सरकी और हलके से बुआ ने मेरे होंठो से खुद के होंठ जोड़ दिए, जीवन का पहला चुम्बन मेरी बुआ ले रही थी \मैं चाह कर भी अपने लिंग में भरती उत्तेजना को रोक नहीं सका , चूँकि बुआ की जांघ मेरे ऊपर थी तो शायद उन्होंने भी मेरे लिंग का तनाव महसूस किया होगा . फिर बुआ सीढ़ी होकर लेट गयी , कुछ देर जरा भी हरकत नहीं हुई और फिर अचानक से बुआ ने अपना हाथ मेरे लिंग पर रख दिया . बेशक कमरे में अँधेरा था पर मैं शर्म से मरा जा रहा था मेरी बुआ अपने ही भतीजे के साथ ये अब कर रही थी . बुआ पेंट के ऊपर से मेरे लिंग को सहला रही थी और मैं शर्त लगा कर कह सकता हूँ की ठीक उसी समय बुआ का हाथ अपनी सलवार में था . फिर बुआ ने हाथ लिंग से हटाया और मेरे हाथ को उसकी चुचियो पर रख दिया बुआ सोच रही थी की मैं गहरी नींद में हु पर मैं जागा हुआ था , मैं सोचने लगा की ऐसा बुआ ने क्या पहले भी मेरे साथ ही किया होगा
Bahut hi badhiya update diya hai HalfbludPrince bhai...
Nice and beautiful update....
 

park

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भटकते भटकते मैं उस जगह पर जा पहुंचा जो होकर भी नहीं थी .........
मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था की ये बारिश मुझे कैसे भिगोएगी, सिर्फ मेरे तन को ही नहीं मेरे मन को भी जंगल में मोर को नाचते तो दुनिया ने देखा था पर मैंने उसे देखा, उसे देखा और देखता ही रह गया. बारिश की बूंदों संग खेलती वो ,फुल पत्तियों संग डोलती वो . उगता सूरज भी देखा था ,दोपहर को तपता सूरज भी देखा था पर बारिश में उगता चाँद मैंने पहली बार देखा था, वो सांवली सूरत ,उसके गुनगुनाते होंठ जैसे बंसी की कोई तान . मेरी जगह को कवी, शायर होता तो उसकी पहली तमन्ना यही होती की वक्त का पन्ना वही उस छोटे से लम्हे में रुक जाए.
तभी उसकी नजर मुझ पर पड़ी और उसके हाथ थम गए. उसने अपना नाच रोका और मुझे देखने लगी.


“माफ़ी चाहूँगा , मेरा इरादा बिलकुल भी नहीं था आपका ध्यान भटकाने का ” मैंने कहा

“हम्म ” उसने मेरे पास आते हुए कहा

केसरिया लहंगा चोली में वो सांवली सूरत , उसकी आभा में कोई तो बात थी . कुछ देर वो बस मुझे देखती रही और फिर वो जाने लगी .

“बारिश बहुत तेज है ,क्या मैं आपकी मदद करू, मेरा मतलब है इस समय आप अकेली है आपको घर तक छोड़ दू ” मालूम नहीं क्यों मैंने उसे ये बात कह दी

“घर , हाँ घर तो जाना ही है बस देखना है की देर कितनी लगेगी ” उसने कहा

मैं- कुछ समझा नहीं

वो- मेरा घर पास में ही है , वैसे तुम क्यों भटक रहे हो

मैं- सच कहूँ, घर जाने का मन नहीं था

“एक हम है जो घर को तरसते है एक ये है जो घर को घर नहीं समझते ” उसने कहा

मैं- समझा नहीं

तभी बादलो से बिजली लड़ पड़ी, इतनी जोर की आवाज थी की एक पल के लिए लगा की सूरज ही उग आया हो , शोर से जैसे कानो के परदे फट ही गए हो बिजली पास में ही गिरी थी वो दौड़ पड़ी उसके पीछे मैं भागा. खंडहर की मीनार को ध्वस्त कर दिया था बिजली ने पत्थरों के आँगन में मीनार के टुकड़े बिखरे हुए थे .

“नुक्सान बहुत हुआ है ” मैंने कहा

“खंडहर नहीं है ये मंदिर था किसी ज़माने में, और ज़माने ने ही भुला दिया इसे. ” उसने कहा और जाकर उस जगह बैठ गयी जहाँ पर माता की मूर्ति थी मैं भी बैठ गया .


“क्या कहानी है इस जगह की ” मैंने सवाल किया

“समय से पूछना क्यों भुला दिया गया ” उसने जवाब दिया

मैं- तुम्हारी आधी बाते तो मेरे सर के ऊपर से जा रही है

“इतनी भी मुश्किल नहीं मैं ” वो बोली

मैं- आसान भी तो नहीं

वो- तुम्हे लौट जाना चाहिए अब

मैं- तुम नहीं जाओगी

वो- मेरा घर यही है , तालाब के पीछे घर है मेरा

मैं- ठीक है तुम्हे छोड़ते हुए मैं भी निकल जाऊँगा

उसने काँधे उचकाए और सीढियों से उतरते हुए हम उस जगह जा पहुंचे जहाँ एक झोपडी थी

मैं- यहाँ रहती हो तुम

वो- हाँ

मैं- बस्ती से इतनी दूर तुम्हे परेशानी नहीं होती

वो- बस्ती में जायदा परेशानी होगी मुझे

“ठीक है , मिलते है फिर ” मैंने कहा कायदे से मुझे आगे बढ़ जाना चाहिए था पर मेरे पैर जाना नहीं चाहते थे वहां से

वो- क्या हुआ

मैं- बारिश की वजह से ठण्ड सी लग रही है चाय मिल सकती है क्या एक कप

वो- दस्तूर तो यही है की इस मौसम में कुछ चुसकिया ली जाये पर अफ़सोस आज मेरे घर चाय नहीं मिल पायेगी मैंने कुछ दिन पहले ही बकरी बेचीं है

मैं- कोई बात नहीं फिर तो

“मुझे लगता है की तुम्हे अब जाना चाहिए ” उसने आसमान की तरफ देखते हुए कहा और मैं गाँव की तरफ चल दिया .पुरे रस्ते मैं बस उसके बारे में ही सोचता रहा .

चोबारे में गया तो पाया की बुआ कुछ परेशान सी थी

मैं- क्या हुआ बुआ कुछ परेशान सी लगती हो

बुआ के चेहरे पर अस्मंस्ज्स के भाव थे हो न हो वो उसी किताब की वजह से परेशान थी , अब सीधे सीधे तो मुझ से पूछ सकती नहीं थी

बुआ- नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं

मैंने रेडियो चला दिया, बारिश के मौसम में बड़ा साफ़ पकड़ता था . हलकी आवाज में गाने सुनते हुए मैंने वो शाम काटी, कभी कभी मेरी और बुआ की निगाहें मिल जाती थी , जिन्दगी में मैंने पहली बार बुआ को गौर से देखा, पांच फूट लम्बी , गोरी, भारी छातिया और पीछे को उभरे हुए कुल्हे, मेरे दिमाग में हलचल सी मचने लगी, शयद उस किताब में पढ़ी कहानियो का असर था ये .



रात घिर आई थी , चूँकि बारिश अभि भी हो रही थी तो हलकी सी ठण्ड थी मैंने चादर ओढ़ ली, बुआ मेरे पास ही लेटी ही थी रात न जाने कितनी बीती कितनी बची थी पर मैं जाग रहा था .बुआ ने अपना मुह मेरी तरफ किया और अपने पैर को मेरे पैर पर चढ़ा लिया बुआ की गरम साँसे मैंने अपने गालो पर महसूस की . कुछ देर बाद बुआ ने अपने होंठ मेरे गालो रख दिए और हलके से पप्पी ली. मेरा तो बदन ही सुन्न हो गया था . बुआ का बदन धीरे धीरे हिलने लगा था पर क्यों हिल रहा था मैं ये समझ नहीं आ रहा था .

बुआ थोड़ी सी मेरी तरफ सरकी और हलके से बुआ ने मेरे होंठो से खुद के होंठ जोड़ दिए, जीवन का पहला चुम्बन मेरी बुआ ले रही थी \मैं चाह कर भी अपने लिंग में भरती उत्तेजना को रोक नहीं सका , चूँकि बुआ की जांघ मेरे ऊपर थी तो शायद उन्होंने भी मेरे लिंग का तनाव महसूस किया होगा . फिर बुआ सीढ़ी होकर लेट गयी , कुछ देर जरा भी हरकत नहीं हुई और फिर अचानक से बुआ ने अपना हाथ मेरे लिंग पर रख दिया . बेशक कमरे में अँधेरा था पर मैं शर्म से मरा जा रहा था मेरी बुआ अपने ही भतीजे के साथ ये अब कर रही थी . बुआ पेंट के ऊपर से मेरे लिंग को सहला रही थी और मैं शर्त लगा कर कह सकता हूँ की ठीक उसी समय बुआ का हाथ अपनी सलवार में था . फिर बुआ ने हाथ लिंग से हटाया और मेरे हाथ को उसकी चुचियो पर रख दिया बुआ सोच रही थी की मैं गहरी नींद में हु पर मैं जागा हुआ था , मैं सोचने लगा की ऐसा बुआ ने क्या पहले भी मेरे साथ ही किया होगा
Nice and superb update....
 
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