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Thriller The cold night (वो सर्द रात) (completed)

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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Story read karte time uski gehrai mein khokar jab hero ki jagah khudko feel karne lag jaata hoon tab Meko updates ke liye wait karna nahi hota , isliye jyadatar completed stories hi read karta hoon. :sigh:
Meri story Me aisa nahi hai bhai, apne update har 2 din baad aate hai :declare:
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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Kafi intresting lagta hai na bhai
75 का चाकू 😂
और आज कल कार्बन कॉपी कौन मॉल वाला रखता है 😷
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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और आज कल कार्बन कॉपी कौन मॉल वाला रखता है 😷
Are :yes1: Bola na 90's ke dashak ki stoey hai, mention karna bhool gaya tha.
 

Raj_sharma

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Raj_sharma

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Raj_sharma

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# 16

फिर एक टेलीफोन बूथ से रोमेश ने जे.एन. को फ़ोन लगाया। कोड दोहराते ही उसका सीधे जे.एन.से सम्पर्क हो गया।

"हैलो !” जे.एन. की आवाज़ आयी, "कौन बोल रहे हो ?"

"तुम्हारा होने वाला कातिल।" रोमेश ने हल्का-सा कहकहा लगाते हुए कहा।

"तू जो कोई भी है, सामने आ। मर्द का बच्चा है, तो सामने आकर दिखा। तब मैं तुझे बताऊंगा कि कत्ल कैसे होता है? फोन पर मुझे डराता है साले।"

"आज मैंने तुम्हारा कत्ल करने के लिए चाकू भी खरीद लिया है। अब तुम्हें जल्द ही तारीख भी पता लग जायेगी। मैं तुम्हें बताऊंगा कि मैं तुम्हें किस दिन मारने वाला हूँ । तुम्हारी मौत के दिन बहुत करीब आते जा रहे हैं मिस्टर जनार्दन नागा रेड्डी, ठहरो ! शायद तुमने यह जानने का भी प्रबन्ध किया है कि फोन कहाँ से आता है? मैं तुम्हें खुद बता देता हूँ, मैं दादर स्टेशन के बाहर टेलीफोन बूथ से बोल रहा हूँ, अब करो अपनी पावर का इस्तेमाल और पकड़ लो मुझे।" रोमेश ने कहकहा लगाते हुए फोन काट दिया।

फिर वह बड़े आराम से बूथ से बाहर निकला और घर चल पड़ा। उसने अपना काम कर दिया था। उसके बाद सारी रात वह सुकून से सोता रहा था। उसकी सेवा के लिए फ्लैट में न तो पत्नी थी न नौकर, नौकर को निकालने का उसे रंज अवश्य था। वह एक वफादार नौकर था। पता नहीं उसे कोई रोजगार मिला भी होगा या नहीं ? जाते-जाते वह यही कह रहा था कि वह गाँव चला जायेगा। रोमेश ने एक शिकायती पत्र पुलिस कमिश्नर के नाम टाइप किया, जिसमें उसने जे.एन. को अपनी पत्नी के दुर्व्यवहार के लिए आरोपित किया था और यह भी शिकायत की थी कि बान्द्रा पुलिस ने उसकी शिकायत पर किस तरह अमल किया था। उसकी प्रतिलिपि उसने एक अखबार को भी प्रसारित कर दी। उसे मालूम था कि अखबार वाले यह समाचार तब तक नहीं छापेंगे, जब तक जे.एन. पर मुकदमा कायम नहीं हो जाता।

जे. एन. भले ही चीफ मिनिस्टर न रहा हो , लेकिन वह शक्तिशाली लीडर तो था ही और उसे केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल में लिए जाने की चर्चा गरम थी। परन्तु एक बात रोमेश अच्छी तरह जानता था कि जनार्दन नागा रेड्डी की हत्या के बाद यह कहानी अवश्य प्रकाशित होगी।
वह यह भी जानता था कि पुलिस कमिश्नर मुकदमा कायम नहीं होने देगा और मुकदमा रोमेश कायम करना भी नहीं चाहता था।

तीन जनवरी ! शनिवार का दिन था। रोमेश उस दिन एक ऐसी दुकान पर रुका, जहाँ बर्तनों पर नाम गोदे जाते थे या नक्काशी होती थी। जिस समय रोमेश दुकान में प्रविष्ट हुआ, उसकी नजर वैशाली पर पड़ गई। वह ठिठका। परन्तु वैशाली ने भी उसे देख लिया था।

"नमस्ते सर आइए।" वैशाली ने रोमेश का वेलकम किया। वैशाली एक प्रेशर कुकर पर कुछ लिखवा रही थी । कुछ और बर्तन भी थे, हर किसी पर वी.वी. लिखा जा रहा था।

"यानि विजय-वैशाली, यही हुआ न वी.वी. का मतलब?" रोमेश ने पूछा।

"जी ।" वैशाली शरमा गयी।

"मुबारक हो, शादी कब हो रही है ?"

"आपको पता चल ही जायेगा, अभी तो एंगेजमेन्ट हो रही है सर। आपने तो आना-जाना ही बन्द कर दिया, फोन भी नहीं सुनते।" कुछ कहते-कहते वैशाली रुक गई। उसे महसूस हुआ कि वह पब्लिक प्लेस पर खड़ी है,

"सॉरी सर, मैं तो शिकायत लेकर बैठ गई। आपका दुकान में कैसे आना हुआ ? कुछ काम था?"

"हाँ ।"

"अरे पहले साहब का काम देखो, मेरा बाद में कर लेना।" वैशाली ने नाम गोदने वाले से कहा। नाम गोदने वाला एक दिल बना कर उसके बीच में वी .वी . लिख रहा था, वह बहुत खूबसूरत नक्काशी कर रहा था।

"हाँ साहब।" उसने काम रोककर रोमेश की तरफ देखा। रोमेश ने जेब से रामपुरी निकाला और उसका फल खोल डाला। रामपुरी देखकर पहले तो नाम गोदने वाला सकपका गया।

"क्या नाम है तुम्हारा?" रोमेश ने पूछा।

"कासिम खान, साहब।" वह बोला।

"इस पर लिखना है।" रोमेश के कुछ कहने से पहले ही वैशाली बोल पड़ी,

"रोमेश सक्सेना ! सर का नाम रोमेश सक्सेना है, चलो मैं स्पेलिंग बताती हूँ।"

"हाँ मेमसाहब, बताओ।" उसने कागज पेन सम्भाल लिया। वैशाली उस नाम की स्पेलिंग बताने लगी। स्पेलिंग लिखने के बाद उसने वैशाली को दिखा दी।

"हाँ ठीक है, यही है।" "किधर लिखूं साहब ?"

"ठहरो, इस पर दो नाम लिखे जायेंगे। दूसरा नाम भी लिखो।"

"द…दो नाम !" कासिम चौंका। वैशाली भी हैरानी से कुछ परेशानी के आलम में रोमेश को देखने लगी। पहले तो वह रामपुरी देखकर ही चौंक पड़ी थी।

"हाँ , दूसरा नाम है जना र्दन नागा रेड्डी ! ब्रैकेट में जे.एन. लिखो।" रोमेश ने खुद कागज पर वह नाम लिख डाला। यह नाम सुनकर वैशाली की धड़कनें भी तेज हो गयीं।

"आप यह क्या …?" वैशाली ने दबी जुबान में कुछ कहना चाहा, परन्तु रोमेश ने तुरन्त उसे रोक दिया।

"प्लीज मुझे मेरा काम करने दो।" फिर रोमेश, कासिम से मुखातिब हुआ,

"यह जो दूसरा नाम है, वह चाकू के ब्लेड पर लिखा जायेगा। चाकू की मूठ पर मेरा नाम । ठीक है? समझ में आया या नहीं ?"

"बरोबर आया साहब ! पण अपुन को यह तो बताइए साहब, इन दो नामों में मिस्टर कौन है और मिसेज कौन ?" कासिम ने शरारतपूर्ण अन्दाज में कहा।

"इसमें न तो कोई मिस्टर है और न मिसेज, इसमें एक नाम मकतूल का है और दूसरा कातिल का। जिसका नाम चाकू के फल पर लिखा जा रहा है, वह मकतूल का नाम है यानि कि मरने वाले का। और जिसका नाम मूठ पर है, वह कातिल का नाम है, यानि मारने वाले का।"

"ज…जी।" वह झोंक में बोला और फिर उछल पड़ा, "जी क्या कहा, मकतूल और कातिल?"

"हाँ, इस चाकू से मैं जे.एन. का कत्ल करने वाला हूँ, अखबार में पढ़ लेना।" कासिम खां हैरत से मुंह फाड़े रोमेश को देखने लगा।

"घबराओ नहीं, मैं तुम्हारा कत्ल करने नहीं जा रहा हूँ, अब जरा यह नाम फटा फट लिख दो।" कासिम खान ने जल्दी-जल्दी दोनों नाम लिखे और फिर चाकू रोमेश को थमा दिया। रोमेश ने पेमेन्ट से पहले बिल बनाने के लिए कहा।

"बिल!" चौंका कासिम।

"हाँ भई ! मैं कोई दो नम्बर का आदमी नहीं हूँ, सब कुछ एकाउण्ट में लिखा जाता है। बिल पर मेरा नाम लिखना न भूलना।"

"जल तू जलाल तू, आई बला को टाल तू।" मन ही मन बड़बड़ा ते हुए कासिम ने बिल बना कर उसे दे दिया और उस पर नाम भी लिख दिया,

"लीजिये।" रोमेश ने पेमेंट करना चाहा, तो वैशाली बोली,

"मैं कर दूँगी।"

"नहीं, यह खाता मेरा अपना है।" रोमेश ने पेमेंट देते हुए कहा,

"हाँ तो कासिम खान, अब जरा ख़ुदा को हाजिर नाजिर जानकर एक बात और सुन लीजिये।"

"ज…जी फरमाइए।"

"आपको जल्दी ही कोर्ट में गवाही के लिए तलब किया जायेगा। कटघरे में मैं खड़ा होऊंगा, क्यों कि मैंने इस चाकू से जनार्दन नागा रेड्डी का कत्ल किया होगा। उस वक्त आपको खुद को हाजिर नाजिर जानकर कहना है, हुजूर यही वह आदमी है, जो मेरी दुकान पर इसी चाकू पर नाम गुदवाने आया था और इसने कहा था कि जनार्दन नागा रेड्डी का कत्ल इसी चाकू से करेगा, इस पर मैंने ही दोनों नाम लिखे थे हुजूर।" इतना कहकर रोमेश मुड़ा और फिर वैशाली की तरफ घूमा,

"किसी वजह से अगर मैं शादी में शरीक न हो सका, तो बुरा मत मानना। मेरी तरफ से एडवांस में बधाई ! अच्छा गुडबाय।"

उसने हैट उठा कर हल्के से सिर झुकाया। फिर हैट सिर पर रखी और दुकान से बाहर निकल आया। एक बार फिर उसकी मोटर साइकिल मुम्बई की सड़कों पर घूम रही थी। रात के ग्यारह बजे उसने टेलीफोन बूथ से फिर एक नम्बर डायल किया। इस बार फोन पर दूसरी तरफ से किसी नारी का स्वर सुनाई दिया ।

"हैल्लो , कौन मांगता ?"

"माया।" रोमेश ने मुस्करा कर कहा।

"हाँ , मैं माया बोलती।"

"जे.एन. को फोन दो, बोलो कि खास आदमी का फोन है।"

"मगर आप हैं कौन ?"

"सुअर की बच्ची, मैं कहता हूँ जे.एन. को फोन दे, वह भारी मुसीबत में पड़ने वाला है।"

"कौन बोलता ?" इस बार जे.एन. का भारी स्वर सुनाई दिया। उसके स्वर से ही पता चल जाता था कि वह नशे में है, रोमेश ने उसकी आवाज पहचानकर हल्का सा कहकहा लगाया।

"नहीं पहचाना, वही तुम्हारा होने वाला कातिल।"

"सुअर के बच्चे, तू यहाँ भी मर गया। मैं तुझे गोली मार दूँगा, तू हैं कौन हरामजादे ? तेरी इतनी हिम्मत, मैं तेरी बोटी-बोटी नोंचकर कुत्तों को खिला दूँगा।"

"अगर मैं तुम्हारे हाथ आ गया, तो तुम ऐसा ही करोगे। क्यों कि तुमने पहले भी कईयों के साथ ऐसा ही सलूक किया होगा। सुन मेरे प्यारे मकतूल, मैं अब तुझे तेरी मौत की तारीख बताना चाहता हूँ। दस जनवरी की रात तेरी जिन्दगी की आखिरी रात होगी। मैं तुझे दस जनवरी की रात सरेआम कत्ल कर दूँगा।"

"सरेआम ! मैं समझा नहीं ।"

"कुल सात दिन बाकी रह गये हैं तेरी जिन्दगी के। ऐश कर ले। यह घड़ी फिर नहीं आयेगी।"

इतना कहकर रोमेश ने फोन काट दिया। सुबह-सुबह विजय उसके फ्लैट पर आ धमका।

"कहिये कैसे आना हुआ इंस्पेक्टर साहब ?"

"कुछ दिन से तो आपको भी फुर्सत नहीं मिल रही थी और कुछ हम भी व्यस्त थे। इसलिये चंद दिनों से आपकी हमारी मुलाकात नहीं हो पा रही थी और आजकल टेली फोन डिपार्टमेंट भी कुछ नाकारा हो गया लगता है, आपका फोन मिलता ही नहीं।"

"शायद आपको पता ही होगा कि मैं फ़िलहाल न तो किसी से मिलने के मूड में हूँ, न किसी की कॉल सुनना चाहता हूँ।"

"कब तक? " विजय ने पूछा।

"ग्यारह जनवरी के बाद सब रूटीन में आ जायेगा।"

"और, यानि दस जनवरी को तो आपकी मैरिज एनिवर्सरी है। क्या भाभी लौट रही हैं?"

"नहीं, अपनी शादी की यह सालगिरह मैं कुछ दूसरे ही अंदाज में मनाने जा रहा हूँ।"

"वह किस तरह, जरा हम भी तो सुनें।"

"इंस्पेक्टर विजय, तुम अच्छी तरह जानते हो कि मैं जे.एन. का कत्ल करने जा रहा हूँ, ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि वैशाली ने तुम्हें न बताया हो। हाँ, उसने डेट नहीं बताई होगी।

“मैं जे.एन. का कत्ल 10 जनवरी की रात करूंगा, ठीक उस वक्त जब मैंने सुहागरात मनाई थी।"

"ओह, तो शहर में जो चर्चायें हो रही है कि एक वकील पागल हो गया है, वह कहाँ तक ठीक है?"

"पागल मैं नहीं, पागल तो जे.एन. होगा, दस तारीख की रात तक। वह जहाँ भी रहेगा, मैं भी वहीं उसे फोन करता रहूँगा और वह यह सोचकर पागल हो जायेगा कि दुनिया के किसी भी कोने में वह सुरक्षित नहीं है। फिर दस जनवरी की रात मैं उसे जहाँ ले जाना चाहूँगा, वह वहीं पहुंचेगा और मैं उसका कत्ल कर दूँगा। मेरा यह काम खत्म होने के बाद पुलिस का काम शुरू होना है, इसलिए कहता हूँ दोस्त कि 11 जनवरी को यहाँ आना, यहाँ सब ठीक मिलेगा।"

"जहाँ तक पुलिस की तरफ से आने का प्रश्न है, मैं पहले भी आ सकता हूँ । तुम्हारी जानकारी के लिए मैं इतना बता दूँ कि जे.एन. ने रिपोर्ट दर्ज करा दी है, उसने कमिश्नर से सीधा सम्पर्क किया है और पुलिस डिपार्टमेंट की ओर से मुझे दो काम सौंपे गये हैं। एक तो मुझे होने वाले कातिल से जे.एन. की हिफाजत करनी है, दूसरे उस होने वाले कातिल का पता लगा कर उसे सलाखों के पीछे पहुँचाना है।"

"वंडरफुल यह तो तुम्हारी बहुत बड़ी तरक्की हुई। सावंत के हत्यारे को पकड़ तो न सके, उल्टे उसकी हिफाजत करने चले हो।"

"यह कानूनी प्रक्रिया है, ऐसा नहीं है कि मैं जे.एन. के खिलाफ सबूत नहीं जुटा रहा हूँ और मैंने यह चैप्टर क्लोज कर दिया है, लेकिन यह मेरी सिर्फ डिपार्टमेंटल ड्यूटी है, किसी कातिल को इस तरह कत्ल करने की छूट पुलिस नहीं देती, चाहे वह डाकू ही क्यों न हो। जे.एन. पर वैसे भी कोई जिन्दा या मुर्दा का इनाम नहीं है और न ही वह वांटेड है, अभी भी वह वी .आई.पी . ही है। "

"ठीक है, तो तुम अपना कर्तव्य निभाओ, अगर तुम्हारा इरादा मुझे गिरफ्तार करके सलाखों के पीछे पहुचाने का है, तो शायद तुम यह भूल रहे हो कि मैं कानून का ज्ञाता भी हूँ। किसी को धमकी देने के जुर्म में तुम मुझे कितनी देर अन्दर रख सकोगे, यह तुम खुद जान सकते हो।"

"रोमेश प्लीज, मेरी बात मानो।" विजय का अन्दाज बदल गया,

"मैं जानता हूँ कि तुम ऐसा कुछ नहीं कर सकते, क्यों कि तुम तो खुद कानून के रक्षक हो, आदर्श वकील हो। फिर यह सब पागलपन वाली हरकतें कहाँ तक अच्छी लगती हैं। देखो, मैं यकीन से कहता हूँ कि जे.एन. एक दिन पकड़ा जायेगा और फिर उसे कानून सजा देगा। "

"मर गया तुम्हारा वह कानून जो उसे सजा दे सकता है। अरे तुम उसके चमचे बटाला को ही सजा करके दिखा दो, तो जानूं। विजय मुझे नसीहत देने की कौशिश मत करो, मैं जो कर रहा हूँ, ठीक कर रहा हूँ। जे.एन. के मामले में एक बात ध्यान से सुनो विजय। कानून और कानून की किताबें भूल जाओ, अपनी यह वर्दी भी भूल जाओ। अब जे.एन. का मुकदमा मेरी अदालत में है, इस अदालत का ज्यूरी भी मैं हूँ और जज भी मैं हूँ और जल्लाद भी मैं हूँ। अब तुम जा सकते हो।"

"भगवान तुम्हें सबुद्धि दे।" विजय सिर झटककर बाहर निकल गया।


जारी रहेगा….✍:writing:
 
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