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Thriller The cold night (वो सर्द रात) (completed)

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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बहुत ही सुंदर लाजवाब और रोमांचक अपडेट है भाई मजा आ गया
आखिर वकील बाबू ने मुख्यमंत्री की हत्या करने का शंकर का प्रस्ताव स्विकार कर के दस लाख रुपये पेशगी ले ली वही शंकर ने अपनी असलियत छुपा के रखी. रोमेश ने पहला काम ये किया की अपने चाहने वालों से दुरी बना कर उन्हे आने वाले खतरों से दूर कर दिया साथ ही साथ वैशाली को अपने सभी केस और अपना चेंबर भी सौप दिया और ये करने का कारण भी बता दिया
फिर शुरु हुई जे एन की तहकिकात वहा भी उसे उसकी एक कमजोरी मिल ही गयी उसकी रखैल माया
अब रोमेश ने अपना मायाजाल फैलाना शुरु कर दिया उसका पहला पडाव है माॅल वहा से सभी चिजें काली खरीद ली और उस खरेदी का मकसद भी बता दिया कत्ल करना
बडा ही खतरनाक अपडेट है भाई मजा आ गया है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा

वैसे तो जनार्दन रेड्डी साहब की कुर्सी चली गई है लेकिन जब वह चीफ मिनिस्टर थे तो उनके कत्ल की बोली पच्चीस लाख रुपए लगाई गई थी । यह एक चीफ मिनिस्टर के पद के साथ बहुत ही बड़ी नाइंसाफी है । एक चीफ मिनिस्टर के कत्ल के लिए सिर्फ पच्चीस लाख रुपए ! कम से कम एकाध हजार करोड़ की सुपाड़ी तो होनी ही चाहिए थी ।
खैर , यह स्टोरी हंड्रेड पर्सेंट देव आनंद साहब के समय का लग रहा है । अन्यथा हमारा हीरो , हमारे हरिश्चन्द्र बाबु देव आनंद के गेट अप मे न आते ! खुद को हूबहू देव आनंद साहब के अवतार मे ढाला न होता । वही ब्लैक पैंट , वही ब्लैक शर्ट , वही ब्लैक जूते , वही ब्लैक हैट । थोड़ी सी कसर रह गई ब्लैक ब्लाॅजर और ब्लैक टाई की । आपको शायद पता न हो , देव साहब को ब्लैक ड्रेस पहनने से बैन कर दिया गया था ।

रोमेश साहब ने मात्र तीन दिन के भीतर चीफ मिनिस्टर साहब की जन्म कुंडली निकाल ली । वह जानकारी भी जिसे मिनिस्टर साहब के परिवार वाले भी शायद न जानते हों । इस डिटेक्टिव की पुरी अपडेट हमे चाहिए ।
वैसे बहुत सारी जानकारी उन्हे शंकर रेड्डी साहब से भी मिल गया होता ।
एक बात समझ मे नही आ रहा है । शंकर साहब को मतलब सिर्फ चीफ मिनिस्टर के कत्ल से होना चाहिए था । पर वो यह भी चाहते हैं कि रोमेश साहब कत्ल करने के बाद कानून से बच भी निकलें । ऐसा क्या सहानुभूति है रोमेश साहब से उन्हे ?

रोमेश साहब के लिए एक चीज और भी आसान हो गया । जनार्दन साहब की गद्दी छिन ली गई मतलब वो भूतपूर्व चीफ मिनिस्टर हो गए । एक चीफ मिनिस्टर की सिक्युरिटी कुछ और होती है और एक साधारण मिनिस्टर चाहे वह केन्द्र मे हो या राज्य मे , कुछ और होती है ।
जनार्दन साहब की सुरक्षा कवच थोड़ी तो लूज अवश्य ही होगी । यह रोमेश साहब के लिए बढ़िया संकेत है ।

खैर देखते हैं रोमेश साहब ऐसा क्या कमाल करते हैं कि जनार्दन साहब से उनका पीछा भी छूटे और कानून के हाथ उनके गर्दन तक भी न पहुंचे !

खुबसूरत अपडेट शर्मा जी ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट ।

Yar index update karo iska

Wait for next update Bhai ☺️

intezaar rahega....

Bahut hi badhiya update diya hai Raj_sharma bhai....
Nice and beautiful update....

Badi Heavy Game Planing Ke sath chal raha hai Romesh
Ab to Dout hone laga hai shyad Romesh katal karega ya khe kisi or se nahi ker vayga
Kafi tedi chaal chal rha hai Romesh

kya gazab ki update di he Raj_sharma Bhai,

Romy bhai ke dimag ki daad deni padegi.............pehle se hi sare gavah jod liye he...........jo court me kahenge mere se coat kharida aur mere se rampuri

Superb, simply outstanding

Keep rocking Bro

क्या ही लिख रहे हो बढ़िया, साला रोमेश कर क्या रहा है अपने आप को पागल साबित करवाना है या सजा से बचने का प्लान है इसका कोई
सीमा जी पता नहीं कहा है
बढ़िया अपडेट हमेशा की तरह और सस्पेंस बढ़ाये जा रहे हो

Awesome update
Romesh jaise sab sabut fix krta ja raha hai usse lag raha hai yahi use saja nhi hone denge
Kyoki jab sab clear kahenge ki romesh ne unse ye sab pahle hi kaha hai to sab use mansik rup se problem hi samjh sakte hai
Ya romesh sabit krega ki agar mujhe qatal krna hota to kyo main sab sabut chhodta aise

Badhiya update

Ye romesh kar kya raha ha khud katla karne ja raha ha or khud ke khilaf sabut bhi ikathe karte ja raha ha jo adalat me gawahi de sake uske khilaf ab uska plan kya ha kya ye sab karne ke bad uske dimag me kuchh chal raha ha jisse wo bach sake katla karne ke bad sekhte han kya karta ha romesh

Wah Bhai ji great romanch se bharpoor adhbhut lekhni apne ko romesh Saxena ka character pasand aaya kya hi baat Jabardast superb mast Lajawab ekdum dhasu update :yes1: :rock1::ban:👌👌

Shandar jabardast update 💓 👌 💯💯💯💯
Samvad aur dailog dono shandar aur behtreen trike se likha gaya hai 😊
👍👍👍

Wah kya update hai, Romesh karne wale gunah ke sabut aur gawah khud plant krta ja raha hai. Aur abhi ke liye aesa lag raha hai mano wo khun karke khud ko mansik rogi sabit krwayega.

Pr dekhte hai writer babu aage kya twist nikalte hai

Nice update...

Haan bilkul bhai :approve:
Filhaal abhi jo story read kar raha hun usko khatam karne ke baad ispe aata hun. :five:

बहुत ही इंटरेस्टिंग अपडेट!
खून करने का तरीक़ा क्या होगा, इस पर हम लोग तो बस क़यास ही लगा सकते हैं।
इतने खुलेआम, ढिंढोरा पीट पीट कर सभी साज़ो-सामान खरीदने का मतलब है कि अदालत में पेशी के समय रोमेश जज साहब के मन में sufficient doubt पैदा करना चाहता होगा।
क़त्ल के समय वो कहीं और होगा? मतलब उसकी alibi पक्की होगी।
ख़ैर, अपना दिमाग न लगा कर, कहानी का आनंद लेता हूँ।
Raj_sharma भाई मेहनत कर ही रहे हैं :)

Nice update...

बढ़िया

रोमेश की प्लानिंग समझ आ गई मुझे, कहानी बहुत शानदार तरीके से लिख रहे हो Raj_sharma भाई।


Contessa gadi, club culture par kisi ka dhyan nahi gaya lagta hai ..

अगले धांसू अपडेट का इंतजार रहेगा भाई


UPDATE POSTED FRIENDS 🧡 :good:
 

despicable

त्वयि मे'नन्या विश्वरूपा
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बहुत ही बढ़िया लगभग सारी तैयारी रोमेश कर चुका है । जे एन को डरा भी दिया है की उसने शिकायत तक कर दी है। सीमा का अता पता ना रोमेश और ना विजय ने लगाया अभी तक ना उसका ज़िक्र कही आया है ।
विजय बाबू का घर बस रहा है और रोमेश का उजड़ गया है
अब कहानी को क़त्ल की तैयारी से आगे बढ़ाओ भाई ।
 

parkas

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# 16

फिर एक टेलीफोन बूथ से रोमेश ने जे.एन. को फ़ोन लगाया। कोड दोहराते ही उसका सीधे जे.एन.से सम्पर्क हो गया।

"हैलो !” जे.एन. की आवाज़ आयी, "कौन बोल रहे हो ?"

"तुम्हारा होने वाला कातिल।" रोमेश ने हल्का-सा कहकहा लगाते हुए कहा।

"तू जो कोई भी है, सामने आ। मर्द का बच्चा है, तो सामने आकर दिखा। तब मैं तुझे बताऊंगा कि कत्ल कैसे होता है? फोन पर मुझे डराता है साले।"

"आज मैंने तुम्हारा कत्ल करने के लिए चाकू भी खरीद लिया है। अब तुम्हें जल्द ही तारीख भी पता लग जायेगी। मैं तुम्हें बताऊंगा कि मैं तुम्हें किस दिन मारने वाला हूँ । तुम्हारी मौत के दिन बहुत करीब आते जा रहे हैं मिस्टर जनार्दन नागा रेड्डी, ठहरो ! शायद तुमने यह जानने का भी प्रबन्ध किया है कि फोन कहाँ से आता है? मैं तुम्हें खुद बता देता हूँ, मैं दादर स्टेशन के बाहर टेलीफोन बूथ से बोल रहा हूँ, अब करो अपनी पावर का इस्तेमाल और पकड़ लो मुझे।" रोमेश ने कहकहा लगाते हुए फोन काट दिया।

फिर वह बड़े आराम से बूथ से बाहर निकला और घर चल पड़ा। उसने अपना काम कर दिया था। उसके बाद सारी रात वह सुकून से सोता रहा था। उसकी सेवा के लिए फ्लैट में न तो पत्नी थी न नौकर, नौकर को निकालने का उसे रंज अवश्य था। वह एक वफादार नौकर था। पता नहीं उसे कोई रोजगार मिला भी होगा या नहीं ? जाते-जाते वह यही कह रहा था कि वह गाँव चला जायेगा। रोमेश ने एक शिकायती पत्र पुलिस कमिश्नर के नाम टाइप किया, जिसमें उसने जे.एन. को अपनी पत्नी के दुर्व्यवहार के लिए आरोपित किया था और यह भी शिकायत की थी कि बान्द्रा पुलिस ने उसकी शिकायत पर किस तरह अमल किया था। उसकी प्रतिलिपि उसने एक अखबार को भी प्रसारित कर दी। उसे मालूम था कि अखबार वाले यह समाचार तब तक नहीं छापेंगे, जब तक जे.एन. पर मुकदमा कायम नहीं हो जाता।

जे. एन. भले ही चीफ मिनिस्टर न रहा हो , लेकिन वह शक्तिशाली लीडर तो था ही और उसे केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल में लिए जाने की चर्चा गरम थी। परन्तु एक बात रोमेश अच्छी तरह जानता था कि जनार्दन नागा रेड्डी की हत्या के बाद यह कहानी अवश्य प्रकाशित होगी।
वह यह भी जानता था कि पुलिस कमिश्नर मुकदमा कायम नहीं होने देगा और मुकदमा रोमेश कायम करना भी नहीं चाहता था।

तीन जनवरी ! शनिवार का दिन था। रोमेश उस दिन एक ऐसी दुकान पर रुका, जहाँ बर्तनों पर नाम गोदे जाते थे या नक्काशी होती थी। जिस समय रोमेश दुकान में प्रविष्ट हुआ, उसकी नजर वैशाली पर पड़ गई। वह ठिठका। परन्तु वैशाली ने भी उसे देख लिया था।

"नमस्ते सर आइए।" वैशाली ने रोमेश का वेलकम किया। वैशाली एक प्रेशर कुकर पर कुछ लिखवा रही थी । कुछ और बर्तन भी थे, हर किसी पर वी.वी. लिखा जा रहा था।

"यानि विजय-वैशाली, यही हुआ न वी.वी. का मतलब?" रोमेश ने पूछा।

"जी ।" वैशाली शरमा गयी।

"मुबारक हो, शादी कब हो रही है ?"

"आपको पता चल ही जायेगा, अभी तो एंगेजमेन्ट हो रही है सर। आपने तो आना-जाना ही बन्द कर दिया, फोन भी नहीं सुनते।" कुछ कहते-कहते वैशाली रुक गई। उसे महसूस हुआ कि वह पब्लिक प्लेस पर खड़ी है,

"सॉरी सर, मैं तो शिकायत लेकर बैठ गई। आपका दुकान में कैसे आना हुआ ? कुछ काम था?"

"हाँ ।"

"अरे पहले साहब का काम देखो, मेरा बाद में कर लेना।" वैशाली ने नाम गोदने वाले से कहा। नाम गोदने वाला एक दिल बना कर उसके बीच में वी .वी . लिख रहा था, वह बहुत खूबसूरत नक्काशी कर रहा था।

"हाँ साहब।" उसने काम रोककर रोमेश की तरफ देखा। रोमेश ने जेब से रामपुरी निकाला और उसका फल खोल डाला। रामपुरी देखकर पहले तो नाम गोदने वाला सकपका गया।

"क्या नाम है तुम्हारा?" रोमेश ने पूछा।

"कासिम खान, साहब।" वह बोला।

"इस पर लिखना है।" रोमेश के कुछ कहने से पहले ही वैशाली बोल पड़ी,

"रोमेश सक्सेना ! सर का नाम रोमेश सक्सेना है, चलो मैं स्पेलिंग बताती हूँ।"

"हाँ मेमसाहब, बताओ।" उसने कागज पेन सम्भाल लिया। वैशाली उस नाम की स्पेलिंग बताने लगी। स्पेलिंग लिखने के बाद उसने वैशाली को दिखा दी।

"हाँ ठीक है, यही है।" "किधर लिखूं साहब ?"

"ठहरो, इस पर दो नाम लिखे जायेंगे। दूसरा नाम भी लिखो।"

"द…दो नाम !" कासिम चौंका। वैशाली भी हैरानी से कुछ परेशानी के आलम में रोमेश को देखने लगी। पहले तो वह रामपुरी देखकर ही चौंक पड़ी थी।

"हाँ , दूसरा नाम है जना र्दन नागा रेड्डी ! ब्रैकेट में जे.एन. लिखो।" रोमेश ने खुद कागज पर वह नाम लिख डाला। यह नाम सुनकर वैशाली की धड़कनें भी तेज हो गयीं।

"आप यह क्या …?" वैशाली ने दबी जुबान में कुछ कहना चाहा, परन्तु रोमेश ने तुरन्त उसे रोक दिया।

"प्लीज मुझे मेरा काम करने दो।" फिर रोमेश, कासिम से मुखातिब हुआ,

"यह जो दूसरा नाम है, वह चाकू के ब्लेड पर लिखा जायेगा। चाकू की मूठ पर मेरा नाम । ठीक है? समझ में आया या नहीं ?"

"बरोबर आया साहब ! पण अपुन को यह तो बताइए साहब, इन दो नामों में मिस्टर कौन है और मिसेज कौन ?" कासिम ने शरारतपूर्ण अन्दाज में कहा।

"इसमें न तो कोई मिस्टर है और न मिसेज, इसमें एक नाम मकतूल का है और दूसरा कातिल का। जिसका नाम चाकू के फल पर लिखा जा रहा है, वह मकतूल का नाम है यानि कि मरने वाले का। और जिसका नाम मूठ पर है, वह कातिल का नाम है, यानि मारने वाले का।"

"ज…जी।" वह झोंक में बोला और फिर उछल पड़ा, "जी क्या कहा, मकतूल और कातिल?"

"हाँ, इस चाकू से मैं जे.एन. का कत्ल करने वाला हूँ, अखबार में पढ़ लेना।" कासिम खां हैरत से मुंह फाड़े रोमेश को देखने लगा।

"घबराओ नहीं, मैं तुम्हारा कत्ल करने नहीं जा रहा हूँ, अब जरा यह नाम फटा फट लिख दो।" कासिम खान ने जल्दी-जल्दी दोनों नाम लिखे और फिर चाकू रोमेश को थमा दिया। रोमेश ने पेमेन्ट से पहले बिल बनाने के लिए कहा।

"बिल!" चौंका कासिम।

"हाँ भई ! मैं कोई दो नम्बर का आदमी नहीं हूँ, सब कुछ एकाउण्ट में लिखा जाता है। बिल पर मेरा नाम लिखना न भूलना।"

"जल तू जलाल तू, आई बला को टाल तू।" मन ही मन बड़बड़ा ते हुए कासिम ने बिल बना कर उसे दे दिया और उस पर नाम भी लिख दिया,

"लीजिये।" रोमेश ने पेमेंट करना चाहा, तो वैशाली बोली,

"मैं कर दूँगी।"

"नहीं, यह खाता मेरा अपना है।" रोमेश ने पेमेंट देते हुए कहा,

"हाँ तो कासिम खान, अब जरा ख़ुदा को हाजिर नाजिर जानकर एक बात और सुन लीजिये।"

"ज…जी फरमाइए।"

"आपको जल्दी ही कोर्ट में गवाही के लिए तलब किया जायेगा। कटघरे में मैं खड़ा होऊंगा, क्यों कि मैंने इस चाकू से जनार्दन नागा रेड्डी का कत्ल किया होगा। उस वक्त आपको खुद को हाजिर नाजिर जानकर कहना है, हुजूर यही वह आदमी है, जो मेरी दुकान पर इसी चाकू पर नाम गुदवाने आया था और इसने कहा था कि जनार्दन नागा रेड्डी का कत्ल इसी चाकू से करेगा, इस पर मैंने ही दोनों नाम लिखे थे हुजूर।" इतना कहकर रोमेश मुड़ा और फिर वैशाली की तरफ घूमा,

"किसी वजह से अगर मैं शादी में शरीक न हो सका, तो बुरा मत मानना। मेरी तरफ से एडवांस में बधाई ! अच्छा गुडबाय।"

उसने हैट उठा कर हल्के से सिर झुकाया। फिर हैट सिर पर रखी और दुकान से बाहर निकल आया। एक बार फिर उसकी मोटर साइकिल मुम्बई की सड़कों पर घूम रही थी। रात के ग्यारह बजे उसने टेलीफोन बूथ से फिर एक नम्बर डायल किया। इस बार फोन पर दूसरी तरफ से किसी नारी का स्वर सुनाई दिया ।

"हैल्लो , कौन मांगता ?"

"माया।" रोमेश ने मुस्करा कर कहा।

"हाँ , मैं माया बोलती।"

"जे.एन. को फोन दो, बोलो कि खास आदमी का फोन है।"

"मगर आप हैं कौन ?"

"सुअर की बच्ची, मैं कहता हूँ जे.एन. को फोन दे, वह भारी मुसीबत में पड़ने वाला है।"

"कौन बोलता ?" इस बार जे.एन. का भारी स्वर सुनाई दिया। उसके स्वर से ही पता चल जाता था कि वह नशे में है, रोमेश ने उसकी आवाज पहचानकर हल्का सा कहकहा लगाया।

"नहीं पहचाना, वही तुम्हारा होने वाला कातिल।"

"सुअर के बच्चे, तू यहाँ भी मर गया। मैं तुझे गोली मार दूँगा, तू हैं कौन हरामजादे ? तेरी इतनी हिम्मत, मैं तेरी बोटी-बोटी नोंचकर कुत्तों को खिला दूँगा।"

"अगर मैं तुम्हारे हाथ आ गया, तो तुम ऐसा ही करोगे। क्यों कि तुमने पहले भी कईयों के साथ ऐसा ही सलूक किया होगा। सुन मेरे प्यारे मकतूल, मैं अब तुझे तेरी मौत की तारीख बताना चाहता हूँ। दस जनवरी की रात तेरी जिन्दगी की आखिरी रात होगी। मैं तुझे दस जनवरी की रात सरेआम कत्ल कर दूँगा।"

"सरेआम ! मैं समझा नहीं ।"

"कुल सात दिन बाकी रह गये हैं तेरी जिन्दगी के। ऐश कर ले। यह घड़ी फिर नहीं आयेगी।"

इतना कहकर रोमेश ने फोन काट दिया। सुबह-सुबह विजय उसके फ्लैट पर आ धमका।

"कहिये कैसे आना हुआ इंस्पेक्टर साहब ?"

"कुछ दिन से तो आपको भी फुर्सत नहीं मिल रही थी और कुछ हम भी व्यस्त थे। इसलिये चंद दिनों से आपकी हमारी मुलाकात नहीं हो पा रही थी और आजकल टेली फोन डिपार्टमेंट भी कुछ नाकारा हो गया लगता है, आपका फोन मिलता ही नहीं।"

"शायद आपको पता ही होगा कि मैं फ़िलहाल न तो किसी से मिलने के मूड में हूँ, न किसी की कॉल सुनना चाहता हूँ।"

"कब तक? " विजय ने पूछा।

"ग्यारह जनवरी के बाद सब रूटीन में आ जायेगा।"

"और, यानि दस जनवरी को तो आपकी मैरिज एनिवर्सरी है। क्या भाभी लौट रही हैं?"

"नहीं, अपनी शादी की यह सालगिरह मैं कुछ दूसरे ही अंदाज में मनाने जा रहा हूँ।"

"वह किस तरह, जरा हम भी तो सुनें।"

"इंस्पेक्टर विजय, तुम अच्छी तरह जानते हो कि मैं जे.एन. का कत्ल करने जा रहा हूँ, ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि वैशाली ने तुम्हें न बताया हो। हाँ, उसने डेट नहीं बताई होगी।

“मैं जे.एन. का कत्ल 10 जनवरी की रात करूंगा, ठीक उस वक्त जब मैंने सुहागरात मनाई थी।"

"ओह, तो शहर में जो चर्चायें हो रही है कि एक वकील पागल हो गया है, वह कहाँ तक ठीक है?"

"पागल मैं नहीं, पागल तो जे.एन. होगा, दस तारीख की रात तक। वह जहाँ भी रहेगा, मैं भी वहीं उसे फोन करता रहूँगा और वह यह सोचकर पागल हो जायेगा कि दुनिया के किसी भी कोने में वह सुरक्षित नहीं है। फिर दस जनवरी की रात मैं उसे जहाँ ले जाना चाहूँगा, वह वहीं पहुंचेगा और मैं उसका कत्ल कर दूँगा। मेरा यह काम खत्म होने के बाद पुलिस का काम शुरू होना है, इसलिए कहता हूँ दोस्त कि 11 जनवरी को यहाँ आना, यहाँ सब ठीक मिलेगा।"

"जहाँ तक पुलिस की तरफ से आने का प्रश्न है, मैं पहले भी आ सकता हूँ । तुम्हारी जानकारी के लिए मैं इतना बता दूँ कि जे.एन. ने रिपोर्ट दर्ज करा दी है, उसने कमिश्नर से सीधा सम्पर्क किया है और पुलिस डिपार्टमेंट की ओर से मुझे दो काम सौंपे गये हैं। एक तो मुझे होने वाले कातिल से जे.एन. की हिफाजत करनी है, दूसरे उस होने वाले कातिल का पता लगा कर उसे सलाखों के पीछे पहुँचाना है।"

"वंडरफुल यह तो तुम्हारी बहुत बड़ी तरक्की हुई। सावंत के हत्यारे को पकड़ तो न सके, उल्टे उसकी हिफाजत करने चले हो।"

"यह कानूनी प्रक्रिया है, ऐसा नहीं है कि मैं जे.एन. के खिलाफ सबूत नहीं जुटा रहा हूँ और मैंने यह चैप्टर क्लोज कर दिया है, लेकिन यह मेरी सिर्फ डिपार्टमेंटल ड्यूटी है, किसी कातिल को इस तरह कत्ल करने की छूट पुलिस नहीं देती, चाहे वह डाकू ही क्यों न हो। जे.एन. पर वैसे भी कोई जिन्दा या मुर्दा का इनाम नहीं है और न ही वह वांटेड है, अभी भी वह वी .आई.पी . ही है। "

"ठीक है, तो तुम अपना कर्तव्य निभाओ, अगर तुम्हारा इरादा मुझे गिरफ्तार करके सलाखों के पीछे पहुचाने का है, तो शायद तुम यह भूल रहे हो कि मैं कानून का ज्ञाता भी हूँ। किसी को धमकी देने के जुर्म में तुम मुझे कितनी देर अन्दर रख सकोगे, यह तुम खुद जान सकते हो।"

"रोमेश प्लीज, मेरी बात मानो।" विजय का अन्दाज बदल गया,

"मैं जानता हूँ कि तुम ऐसा कुछ नहीं कर सकते, क्यों कि तुम तो खुद कानून के रक्षक हो, आदर्श वकील हो। फिर यह सब पागलपन वाली हरकतें कहाँ तक अच्छी लगती हैं। देखो, मैं यकीन से कहता हूँ कि जे.एन. एक दिन पकड़ा जायेगा और फिर उसे कानून सजा देगा। "

"मर गया तुम्हारा वह कानून जो उसे सजा दे सकता है। अरे तुम उसके चमचे बटाला को ही सजा करके दिखा दो, तो जानूं। विजय मुझे नसीहत देने की कौशिश मत करो, मैं जो कर रहा हूँ, ठीक कर रहा हूँ। जे.एन. के मामले में एक बात ध्यान से सुनो विजय। कानून और कानून की किताबें भूल जाओ, अपनी यह वर्दी भी भूल जाओ। अब जे.एन. का मुकदमा मेरी अदालत में है, इस अदालत का ज्यूरी भी मैं हूँ और जज भी मैं हूँ और जल्लाद भी मैं हूँ। अब तुम जा सकते हो।"

"भगवान तुम्हें सबुद्धि दे।" विजय सिर झटककर बाहर निकल गया।


जारी रहेगा….✍:writing:
Bahut hi shaandar update diya hai Raj_sharma bhai....
Nice and lovely update....
 

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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# 16

फिर एक टेलीफोन बूथ से रोमेश ने जे.एन. को फ़ोन लगाया। कोड दोहराते ही उसका सीधे जे.एन.से सम्पर्क हो गया।

"हैलो !” जे.एन. की आवाज़ आयी, "कौन बोल रहे हो ?"

"तुम्हारा होने वाला कातिल।" रोमेश ने हल्का-सा कहकहा लगाते हुए कहा।

"तू जो कोई भी है, सामने आ। मर्द का बच्चा है, तो सामने आकर दिखा। तब मैं तुझे बताऊंगा कि कत्ल कैसे होता है? फोन पर मुझे डराता है साले।"

"आज मैंने तुम्हारा कत्ल करने के लिए चाकू भी खरीद लिया है। अब तुम्हें जल्द ही तारीख भी पता लग जायेगी। मैं तुम्हें बताऊंगा कि मैं तुम्हें किस दिन मारने वाला हूँ । तुम्हारी मौत के दिन बहुत करीब आते जा रहे हैं मिस्टर जनार्दन नागा रेड्डी, ठहरो ! शायद तुमने यह जानने का भी प्रबन्ध किया है कि फोन कहाँ से आता है? मैं तुम्हें खुद बता देता हूँ, मैं दादर स्टेशन के बाहर टेलीफोन बूथ से बोल रहा हूँ, अब करो अपनी पावर का इस्तेमाल और पकड़ लो मुझे।" रोमेश ने कहकहा लगाते हुए फोन काट दिया।

फिर वह बड़े आराम से बूथ से बाहर निकला और घर चल पड़ा। उसने अपना काम कर दिया था। उसके बाद सारी रात वह सुकून से सोता रहा था। उसकी सेवा के लिए फ्लैट में न तो पत्नी थी न नौकर, नौकर को निकालने का उसे रंज अवश्य था। वह एक वफादार नौकर था। पता नहीं उसे कोई रोजगार मिला भी होगा या नहीं ? जाते-जाते वह यही कह रहा था कि वह गाँव चला जायेगा। रोमेश ने एक शिकायती पत्र पुलिस कमिश्नर के नाम टाइप किया, जिसमें उसने जे.एन. को अपनी पत्नी के दुर्व्यवहार के लिए आरोपित किया था और यह भी शिकायत की थी कि बान्द्रा पुलिस ने उसकी शिकायत पर किस तरह अमल किया था। उसकी प्रतिलिपि उसने एक अखबार को भी प्रसारित कर दी। उसे मालूम था कि अखबार वाले यह समाचार तब तक नहीं छापेंगे, जब तक जे.एन. पर मुकदमा कायम नहीं हो जाता।

जे. एन. भले ही चीफ मिनिस्टर न रहा हो , लेकिन वह शक्तिशाली लीडर तो था ही और उसे केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल में लिए जाने की चर्चा गरम थी। परन्तु एक बात रोमेश अच्छी तरह जानता था कि जनार्दन नागा रेड्डी की हत्या के बाद यह कहानी अवश्य प्रकाशित होगी।
वह यह भी जानता था कि पुलिस कमिश्नर मुकदमा कायम नहीं होने देगा और मुकदमा रोमेश कायम करना भी नहीं चाहता था।

तीन जनवरी ! शनिवार का दिन था। रोमेश उस दिन एक ऐसी दुकान पर रुका, जहाँ बर्तनों पर नाम गोदे जाते थे या नक्काशी होती थी। जिस समय रोमेश दुकान में प्रविष्ट हुआ, उसकी नजर वैशाली पर पड़ गई। वह ठिठका। परन्तु वैशाली ने भी उसे देख लिया था।

"नमस्ते सर आइए।" वैशाली ने रोमेश का वेलकम किया। वैशाली एक प्रेशर कुकर पर कुछ लिखवा रही थी । कुछ और बर्तन भी थे, हर किसी पर वी.वी. लिखा जा रहा था।

"यानि विजय-वैशाली, यही हुआ न वी.वी. का मतलब?" रोमेश ने पूछा।

"जी ।" वैशाली शरमा गयी।

"मुबारक हो, शादी कब हो रही है ?"

"आपको पता चल ही जायेगा, अभी तो एंगेजमेन्ट हो रही है सर। आपने तो आना-जाना ही बन्द कर दिया, फोन भी नहीं सुनते।" कुछ कहते-कहते वैशाली रुक गई। उसे महसूस हुआ कि वह पब्लिक प्लेस पर खड़ी है,

"सॉरी सर, मैं तो शिकायत लेकर बैठ गई। आपका दुकान में कैसे आना हुआ ? कुछ काम था?"

"हाँ ।"

"अरे पहले साहब का काम देखो, मेरा बाद में कर लेना।" वैशाली ने नाम गोदने वाले से कहा। नाम गोदने वाला एक दिल बना कर उसके बीच में वी .वी . लिख रहा था, वह बहुत खूबसूरत नक्काशी कर रहा था।

"हाँ साहब।" उसने काम रोककर रोमेश की तरफ देखा। रोमेश ने जेब से रामपुरी निकाला और उसका फल खोल डाला। रामपुरी देखकर पहले तो नाम गोदने वाला सकपका गया।

"क्या नाम है तुम्हारा?" रोमेश ने पूछा।

"कासिम खान, साहब।" वह बोला।

"इस पर लिखना है।" रोमेश के कुछ कहने से पहले ही वैशाली बोल पड़ी,

"रोमेश सक्सेना ! सर का नाम रोमेश सक्सेना है, चलो मैं स्पेलिंग बताती हूँ।"

"हाँ मेमसाहब, बताओ।" उसने कागज पेन सम्भाल लिया। वैशाली उस नाम की स्पेलिंग बताने लगी। स्पेलिंग लिखने के बाद उसने वैशाली को दिखा दी।

"हाँ ठीक है, यही है।" "किधर लिखूं साहब ?"

"ठहरो, इस पर दो नाम लिखे जायेंगे। दूसरा नाम भी लिखो।"

"द…दो नाम !" कासिम चौंका। वैशाली भी हैरानी से कुछ परेशानी के आलम में रोमेश को देखने लगी। पहले तो वह रामपुरी देखकर ही चौंक पड़ी थी।

"हाँ , दूसरा नाम है जना र्दन नागा रेड्डी ! ब्रैकेट में जे.एन. लिखो।" रोमेश ने खुद कागज पर वह नाम लिख डाला। यह नाम सुनकर वैशाली की धड़कनें भी तेज हो गयीं।

"आप यह क्या …?" वैशाली ने दबी जुबान में कुछ कहना चाहा, परन्तु रोमेश ने तुरन्त उसे रोक दिया।

"प्लीज मुझे मेरा काम करने दो।" फिर रोमेश, कासिम से मुखातिब हुआ,

"यह जो दूसरा नाम है, वह चाकू के ब्लेड पर लिखा जायेगा। चाकू की मूठ पर मेरा नाम । ठीक है? समझ में आया या नहीं ?"

"बरोबर आया साहब ! पण अपुन को यह तो बताइए साहब, इन दो नामों में मिस्टर कौन है और मिसेज कौन ?" कासिम ने शरारतपूर्ण अन्दाज में कहा।

"इसमें न तो कोई मिस्टर है और न मिसेज, इसमें एक नाम मकतूल का है और दूसरा कातिल का। जिसका नाम चाकू के फल पर लिखा जा रहा है, वह मकतूल का नाम है यानि कि मरने वाले का। और जिसका नाम मूठ पर है, वह कातिल का नाम है, यानि मारने वाले का।"

"ज…जी।" वह झोंक में बोला और फिर उछल पड़ा, "जी क्या कहा, मकतूल और कातिल?"

"हाँ, इस चाकू से मैं जे.एन. का कत्ल करने वाला हूँ, अखबार में पढ़ लेना।" कासिम खां हैरत से मुंह फाड़े रोमेश को देखने लगा।

"घबराओ नहीं, मैं तुम्हारा कत्ल करने नहीं जा रहा हूँ, अब जरा यह नाम फटा फट लिख दो।" कासिम खान ने जल्दी-जल्दी दोनों नाम लिखे और फिर चाकू रोमेश को थमा दिया। रोमेश ने पेमेन्ट से पहले बिल बनाने के लिए कहा।

"बिल!" चौंका कासिम।

"हाँ भई ! मैं कोई दो नम्बर का आदमी नहीं हूँ, सब कुछ एकाउण्ट में लिखा जाता है। बिल पर मेरा नाम लिखना न भूलना।"

"जल तू जलाल तू, आई बला को टाल तू।" मन ही मन बड़बड़ा ते हुए कासिम ने बिल बना कर उसे दे दिया और उस पर नाम भी लिख दिया,

"लीजिये।" रोमेश ने पेमेंट करना चाहा, तो वैशाली बोली,

"मैं कर दूँगी।"

"नहीं, यह खाता मेरा अपना है।" रोमेश ने पेमेंट देते हुए कहा,

"हाँ तो कासिम खान, अब जरा ख़ुदा को हाजिर नाजिर जानकर एक बात और सुन लीजिये।"

"ज…जी फरमाइए।"

"आपको जल्दी ही कोर्ट में गवाही के लिए तलब किया जायेगा। कटघरे में मैं खड़ा होऊंगा, क्यों कि मैंने इस चाकू से जनार्दन नागा रेड्डी का कत्ल किया होगा। उस वक्त आपको खुद को हाजिर नाजिर जानकर कहना है, हुजूर यही वह आदमी है, जो मेरी दुकान पर इसी चाकू पर नाम गुदवाने आया था और इसने कहा था कि जनार्दन नागा रेड्डी का कत्ल इसी चाकू से करेगा, इस पर मैंने ही दोनों नाम लिखे थे हुजूर।" इतना कहकर रोमेश मुड़ा और फिर वैशाली की तरफ घूमा,

"किसी वजह से अगर मैं शादी में शरीक न हो सका, तो बुरा मत मानना। मेरी तरफ से एडवांस में बधाई ! अच्छा गुडबाय।"

उसने हैट उठा कर हल्के से सिर झुकाया। फिर हैट सिर पर रखी और दुकान से बाहर निकल आया। एक बार फिर उसकी मोटर साइकिल मुम्बई की सड़कों पर घूम रही थी। रात के ग्यारह बजे उसने टेलीफोन बूथ से फिर एक नम्बर डायल किया। इस बार फोन पर दूसरी तरफ से किसी नारी का स्वर सुनाई दिया ।

"हैल्लो , कौन मांगता ?"

"माया।" रोमेश ने मुस्करा कर कहा।

"हाँ , मैं माया बोलती।"

"जे.एन. को फोन दो, बोलो कि खास आदमी का फोन है।"

"मगर आप हैं कौन ?"

"सुअर की बच्ची, मैं कहता हूँ जे.एन. को फोन दे, वह भारी मुसीबत में पड़ने वाला है।"

"कौन बोलता ?" इस बार जे.एन. का भारी स्वर सुनाई दिया। उसके स्वर से ही पता चल जाता था कि वह नशे में है, रोमेश ने उसकी आवाज पहचानकर हल्का सा कहकहा लगाया।

"नहीं पहचाना, वही तुम्हारा होने वाला कातिल।"

"सुअर के बच्चे, तू यहाँ भी मर गया। मैं तुझे गोली मार दूँगा, तू हैं कौन हरामजादे ? तेरी इतनी हिम्मत, मैं तेरी बोटी-बोटी नोंचकर कुत्तों को खिला दूँगा।"

"अगर मैं तुम्हारे हाथ आ गया, तो तुम ऐसा ही करोगे। क्यों कि तुमने पहले भी कईयों के साथ ऐसा ही सलूक किया होगा। सुन मेरे प्यारे मकतूल, मैं अब तुझे तेरी मौत की तारीख बताना चाहता हूँ। दस जनवरी की रात तेरी जिन्दगी की आखिरी रात होगी। मैं तुझे दस जनवरी की रात सरेआम कत्ल कर दूँगा।"

"सरेआम ! मैं समझा नहीं ।"

"कुल सात दिन बाकी रह गये हैं तेरी जिन्दगी के। ऐश कर ले। यह घड़ी फिर नहीं आयेगी।"

इतना कहकर रोमेश ने फोन काट दिया। सुबह-सुबह विजय उसके फ्लैट पर आ धमका।

"कहिये कैसे आना हुआ इंस्पेक्टर साहब ?"

"कुछ दिन से तो आपको भी फुर्सत नहीं मिल रही थी और कुछ हम भी व्यस्त थे। इसलिये चंद दिनों से आपकी हमारी मुलाकात नहीं हो पा रही थी और आजकल टेली फोन डिपार्टमेंट भी कुछ नाकारा हो गया लगता है, आपका फोन मिलता ही नहीं।"

"शायद आपको पता ही होगा कि मैं फ़िलहाल न तो किसी से मिलने के मूड में हूँ, न किसी की कॉल सुनना चाहता हूँ।"

"कब तक? " विजय ने पूछा।

"ग्यारह जनवरी के बाद सब रूटीन में आ जायेगा।"

"और, यानि दस जनवरी को तो आपकी मैरिज एनिवर्सरी है। क्या भाभी लौट रही हैं?"

"नहीं, अपनी शादी की यह सालगिरह मैं कुछ दूसरे ही अंदाज में मनाने जा रहा हूँ।"

"वह किस तरह, जरा हम भी तो सुनें।"

"इंस्पेक्टर विजय, तुम अच्छी तरह जानते हो कि मैं जे.एन. का कत्ल करने जा रहा हूँ, ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि वैशाली ने तुम्हें न बताया हो। हाँ, उसने डेट नहीं बताई होगी।

“मैं जे.एन. का कत्ल 10 जनवरी की रात करूंगा, ठीक उस वक्त जब मैंने सुहागरात मनाई थी।"

"ओह, तो शहर में जो चर्चायें हो रही है कि एक वकील पागल हो गया है, वह कहाँ तक ठीक है?"

"पागल मैं नहीं, पागल तो जे.एन. होगा, दस तारीख की रात तक। वह जहाँ भी रहेगा, मैं भी वहीं उसे फोन करता रहूँगा और वह यह सोचकर पागल हो जायेगा कि दुनिया के किसी भी कोने में वह सुरक्षित नहीं है। फिर दस जनवरी की रात मैं उसे जहाँ ले जाना चाहूँगा, वह वहीं पहुंचेगा और मैं उसका कत्ल कर दूँगा। मेरा यह काम खत्म होने के बाद पुलिस का काम शुरू होना है, इसलिए कहता हूँ दोस्त कि 11 जनवरी को यहाँ आना, यहाँ सब ठीक मिलेगा।"

"जहाँ तक पुलिस की तरफ से आने का प्रश्न है, मैं पहले भी आ सकता हूँ । तुम्हारी जानकारी के लिए मैं इतना बता दूँ कि जे.एन. ने रिपोर्ट दर्ज करा दी है, उसने कमिश्नर से सीधा सम्पर्क किया है और पुलिस डिपार्टमेंट की ओर से मुझे दो काम सौंपे गये हैं। एक तो मुझे होने वाले कातिल से जे.एन. की हिफाजत करनी है, दूसरे उस होने वाले कातिल का पता लगा कर उसे सलाखों के पीछे पहुँचाना है।"

"वंडरफुल यह तो तुम्हारी बहुत बड़ी तरक्की हुई। सावंत के हत्यारे को पकड़ तो न सके, उल्टे उसकी हिफाजत करने चले हो।"

"यह कानूनी प्रक्रिया है, ऐसा नहीं है कि मैं जे.एन. के खिलाफ सबूत नहीं जुटा रहा हूँ और मैंने यह चैप्टर क्लोज कर दिया है, लेकिन यह मेरी सिर्फ डिपार्टमेंटल ड्यूटी है, किसी कातिल को इस तरह कत्ल करने की छूट पुलिस नहीं देती, चाहे वह डाकू ही क्यों न हो। जे.एन. पर वैसे भी कोई जिन्दा या मुर्दा का इनाम नहीं है और न ही वह वांटेड है, अभी भी वह वी .आई.पी . ही है। "

"ठीक है, तो तुम अपना कर्तव्य निभाओ, अगर तुम्हारा इरादा मुझे गिरफ्तार करके सलाखों के पीछे पहुचाने का है, तो शायद तुम यह भूल रहे हो कि मैं कानून का ज्ञाता भी हूँ। किसी को धमकी देने के जुर्म में तुम मुझे कितनी देर अन्दर रख सकोगे, यह तुम खुद जान सकते हो।"

"रोमेश प्लीज, मेरी बात मानो।" विजय का अन्दाज बदल गया,

"मैं जानता हूँ कि तुम ऐसा कुछ नहीं कर सकते, क्यों कि तुम तो खुद कानून के रक्षक हो, आदर्श वकील हो। फिर यह सब पागलपन वाली हरकतें कहाँ तक अच्छी लगती हैं। देखो, मैं यकीन से कहता हूँ कि जे.एन. एक दिन पकड़ा जायेगा और फिर उसे कानून सजा देगा। "

"मर गया तुम्हारा वह कानून जो उसे सजा दे सकता है। अरे तुम उसके चमचे बटाला को ही सजा करके दिखा दो, तो जानूं। विजय मुझे नसीहत देने की कौशिश मत करो, मैं जो कर रहा हूँ, ठीक कर रहा हूँ। जे.एन. के मामले में एक बात ध्यान से सुनो विजय। कानून और कानून की किताबें भूल जाओ, अपनी यह वर्दी भी भूल जाओ। अब जे.एन. का मुकदमा मेरी अदालत में है, इस अदालत का ज्यूरी भी मैं हूँ और जज भी मैं हूँ और जल्लाद भी मैं हूँ। अब तुम जा सकते हो।"

"भगवान तुम्हें सबुद्धि दे।" विजय सिर झटककर बाहर निकल गया।


जारी रहेगा….✍:writing:
Shandar jabardast super faddu update 👌 👌 💯 💯 💯
मुकदमा मेरी अदालत में है, इस अदालत का ज्यूरी भी मैं हूँ और जज भी मैं हूँ और जल्लाद भी मैं हूँ। :applause:
 

DEVIL MAXIMUM

"सर्वेभ्यः सर्वभावेभ्यः सर्वात्मना नमः।"
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# 16

फिर एक टेलीफोन बूथ से रोमेश ने जे.एन. को फ़ोन लगाया। कोड दोहराते ही उसका सीधे जे.एन.से सम्पर्क हो गया।

"हैलो !” जे.एन. की आवाज़ आयी, "कौन बोल रहे हो ?"

"तुम्हारा होने वाला कातिल।" रोमेश ने हल्का-सा कहकहा लगाते हुए कहा।

"तू जो कोई भी है, सामने आ। मर्द का बच्चा है, तो सामने आकर दिखा। तब मैं तुझे बताऊंगा कि कत्ल कैसे होता है? फोन पर मुझे डराता है साले।"

"आज मैंने तुम्हारा कत्ल करने के लिए चाकू भी खरीद लिया है। अब तुम्हें जल्द ही तारीख भी पता लग जायेगी। मैं तुम्हें बताऊंगा कि मैं तुम्हें किस दिन मारने वाला हूँ । तुम्हारी मौत के दिन बहुत करीब आते जा रहे हैं मिस्टर जनार्दन नागा रेड्डी, ठहरो ! शायद तुमने यह जानने का भी प्रबन्ध किया है कि फोन कहाँ से आता है? मैं तुम्हें खुद बता देता हूँ, मैं दादर स्टेशन के बाहर टेलीफोन बूथ से बोल रहा हूँ, अब करो अपनी पावर का इस्तेमाल और पकड़ लो मुझे।" रोमेश ने कहकहा लगाते हुए फोन काट दिया।

फिर वह बड़े आराम से बूथ से बाहर निकला और घर चल पड़ा। उसने अपना काम कर दिया था। उसके बाद सारी रात वह सुकून से सोता रहा था। उसकी सेवा के लिए फ्लैट में न तो पत्नी थी न नौकर, नौकर को निकालने का उसे रंज अवश्य था। वह एक वफादार नौकर था। पता नहीं उसे कोई रोजगार मिला भी होगा या नहीं ? जाते-जाते वह यही कह रहा था कि वह गाँव चला जायेगा। रोमेश ने एक शिकायती पत्र पुलिस कमिश्नर के नाम टाइप किया, जिसमें उसने जे.एन. को अपनी पत्नी के दुर्व्यवहार के लिए आरोपित किया था और यह भी शिकायत की थी कि बान्द्रा पुलिस ने उसकी शिकायत पर किस तरह अमल किया था। उसकी प्रतिलिपि उसने एक अखबार को भी प्रसारित कर दी। उसे मालूम था कि अखबार वाले यह समाचार तब तक नहीं छापेंगे, जब तक जे.एन. पर मुकदमा कायम नहीं हो जाता।

जे. एन. भले ही चीफ मिनिस्टर न रहा हो , लेकिन वह शक्तिशाली लीडर तो था ही और उसे केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल में लिए जाने की चर्चा गरम थी। परन्तु एक बात रोमेश अच्छी तरह जानता था कि जनार्दन नागा रेड्डी की हत्या के बाद यह कहानी अवश्य प्रकाशित होगी।
वह यह भी जानता था कि पुलिस कमिश्नर मुकदमा कायम नहीं होने देगा और मुकदमा रोमेश कायम करना भी नहीं चाहता था।

तीन जनवरी ! शनिवार का दिन था। रोमेश उस दिन एक ऐसी दुकान पर रुका, जहाँ बर्तनों पर नाम गोदे जाते थे या नक्काशी होती थी। जिस समय रोमेश दुकान में प्रविष्ट हुआ, उसकी नजर वैशाली पर पड़ गई। वह ठिठका। परन्तु वैशाली ने भी उसे देख लिया था।

"नमस्ते सर आइए।" वैशाली ने रोमेश का वेलकम किया। वैशाली एक प्रेशर कुकर पर कुछ लिखवा रही थी । कुछ और बर्तन भी थे, हर किसी पर वी.वी. लिखा जा रहा था।

"यानि विजय-वैशाली, यही हुआ न वी.वी. का मतलब?" रोमेश ने पूछा।

"जी ।" वैशाली शरमा गयी।

"मुबारक हो, शादी कब हो रही है ?"

"आपको पता चल ही जायेगा, अभी तो एंगेजमेन्ट हो रही है सर। आपने तो आना-जाना ही बन्द कर दिया, फोन भी नहीं सुनते।" कुछ कहते-कहते वैशाली रुक गई। उसे महसूस हुआ कि वह पब्लिक प्लेस पर खड़ी है,

"सॉरी सर, मैं तो शिकायत लेकर बैठ गई। आपका दुकान में कैसे आना हुआ ? कुछ काम था?"

"हाँ ।"

"अरे पहले साहब का काम देखो, मेरा बाद में कर लेना।" वैशाली ने नाम गोदने वाले से कहा। नाम गोदने वाला एक दिल बना कर उसके बीच में वी .वी . लिख रहा था, वह बहुत खूबसूरत नक्काशी कर रहा था।

"हाँ साहब।" उसने काम रोककर रोमेश की तरफ देखा। रोमेश ने जेब से रामपुरी निकाला और उसका फल खोल डाला। रामपुरी देखकर पहले तो नाम गोदने वाला सकपका गया।

"क्या नाम है तुम्हारा?" रोमेश ने पूछा।

"कासिम खान, साहब।" वह बोला।

"इस पर लिखना है।" रोमेश के कुछ कहने से पहले ही वैशाली बोल पड़ी,

"रोमेश सक्सेना ! सर का नाम रोमेश सक्सेना है, चलो मैं स्पेलिंग बताती हूँ।"

"हाँ मेमसाहब, बताओ।" उसने कागज पेन सम्भाल लिया। वैशाली उस नाम की स्पेलिंग बताने लगी। स्पेलिंग लिखने के बाद उसने वैशाली को दिखा दी।

"हाँ ठीक है, यही है।" "किधर लिखूं साहब ?"

"ठहरो, इस पर दो नाम लिखे जायेंगे। दूसरा नाम भी लिखो।"

"द…दो नाम !" कासिम चौंका। वैशाली भी हैरानी से कुछ परेशानी के आलम में रोमेश को देखने लगी। पहले तो वह रामपुरी देखकर ही चौंक पड़ी थी।

"हाँ , दूसरा नाम है जना र्दन नागा रेड्डी ! ब्रैकेट में जे.एन. लिखो।" रोमेश ने खुद कागज पर वह नाम लिख डाला। यह नाम सुनकर वैशाली की धड़कनें भी तेज हो गयीं।

"आप यह क्या …?" वैशाली ने दबी जुबान में कुछ कहना चाहा, परन्तु रोमेश ने तुरन्त उसे रोक दिया।

"प्लीज मुझे मेरा काम करने दो।" फिर रोमेश, कासिम से मुखातिब हुआ,

"यह जो दूसरा नाम है, वह चाकू के ब्लेड पर लिखा जायेगा। चाकू की मूठ पर मेरा नाम । ठीक है? समझ में आया या नहीं ?"

"बरोबर आया साहब ! पण अपुन को यह तो बताइए साहब, इन दो नामों में मिस्टर कौन है और मिसेज कौन ?" कासिम ने शरारतपूर्ण अन्दाज में कहा।

"इसमें न तो कोई मिस्टर है और न मिसेज, इसमें एक नाम मकतूल का है और दूसरा कातिल का। जिसका नाम चाकू के फल पर लिखा जा रहा है, वह मकतूल का नाम है यानि कि मरने वाले का। और जिसका नाम मूठ पर है, वह कातिल का नाम है, यानि मारने वाले का।"

"ज…जी।" वह झोंक में बोला और फिर उछल पड़ा, "जी क्या कहा, मकतूल और कातिल?"

"हाँ, इस चाकू से मैं जे.एन. का कत्ल करने वाला हूँ, अखबार में पढ़ लेना।" कासिम खां हैरत से मुंह फाड़े रोमेश को देखने लगा।

"घबराओ नहीं, मैं तुम्हारा कत्ल करने नहीं जा रहा हूँ, अब जरा यह नाम फटा फट लिख दो।" कासिम खान ने जल्दी-जल्दी दोनों नाम लिखे और फिर चाकू रोमेश को थमा दिया। रोमेश ने पेमेन्ट से पहले बिल बनाने के लिए कहा।

"बिल!" चौंका कासिम।

"हाँ भई ! मैं कोई दो नम्बर का आदमी नहीं हूँ, सब कुछ एकाउण्ट में लिखा जाता है। बिल पर मेरा नाम लिखना न भूलना।"

"जल तू जलाल तू, आई बला को टाल तू।" मन ही मन बड़बड़ा ते हुए कासिम ने बिल बना कर उसे दे दिया और उस पर नाम भी लिख दिया,

"लीजिये।" रोमेश ने पेमेंट करना चाहा, तो वैशाली बोली,

"मैं कर दूँगी।"

"नहीं, यह खाता मेरा अपना है।" रोमेश ने पेमेंट देते हुए कहा,

"हाँ तो कासिम खान, अब जरा ख़ुदा को हाजिर नाजिर जानकर एक बात और सुन लीजिये।"

"ज…जी फरमाइए।"

"आपको जल्दी ही कोर्ट में गवाही के लिए तलब किया जायेगा। कटघरे में मैं खड़ा होऊंगा, क्यों कि मैंने इस चाकू से जनार्दन नागा रेड्डी का कत्ल किया होगा। उस वक्त आपको खुद को हाजिर नाजिर जानकर कहना है, हुजूर यही वह आदमी है, जो मेरी दुकान पर इसी चाकू पर नाम गुदवाने आया था और इसने कहा था कि जनार्दन नागा रेड्डी का कत्ल इसी चाकू से करेगा, इस पर मैंने ही दोनों नाम लिखे थे हुजूर।" इतना कहकर रोमेश मुड़ा और फिर वैशाली की तरफ घूमा,

"किसी वजह से अगर मैं शादी में शरीक न हो सका, तो बुरा मत मानना। मेरी तरफ से एडवांस में बधाई ! अच्छा गुडबाय।"

उसने हैट उठा कर हल्के से सिर झुकाया। फिर हैट सिर पर रखी और दुकान से बाहर निकल आया। एक बार फिर उसकी मोटर साइकिल मुम्बई की सड़कों पर घूम रही थी। रात के ग्यारह बजे उसने टेलीफोन बूथ से फिर एक नम्बर डायल किया। इस बार फोन पर दूसरी तरफ से किसी नारी का स्वर सुनाई दिया ।

"हैल्लो , कौन मांगता ?"

"माया।" रोमेश ने मुस्करा कर कहा।

"हाँ , मैं माया बोलती।"

"जे.एन. को फोन दो, बोलो कि खास आदमी का फोन है।"

"मगर आप हैं कौन ?"

"सुअर की बच्ची, मैं कहता हूँ जे.एन. को फोन दे, वह भारी मुसीबत में पड़ने वाला है।"

"कौन बोलता ?" इस बार जे.एन. का भारी स्वर सुनाई दिया। उसके स्वर से ही पता चल जाता था कि वह नशे में है, रोमेश ने उसकी आवाज पहचानकर हल्का सा कहकहा लगाया।

"नहीं पहचाना, वही तुम्हारा होने वाला कातिल।"

"सुअर के बच्चे, तू यहाँ भी मर गया। मैं तुझे गोली मार दूँगा, तू हैं कौन हरामजादे ? तेरी इतनी हिम्मत, मैं तेरी बोटी-बोटी नोंचकर कुत्तों को खिला दूँगा।"

"अगर मैं तुम्हारे हाथ आ गया, तो तुम ऐसा ही करोगे। क्यों कि तुमने पहले भी कईयों के साथ ऐसा ही सलूक किया होगा। सुन मेरे प्यारे मकतूल, मैं अब तुझे तेरी मौत की तारीख बताना चाहता हूँ। दस जनवरी की रात तेरी जिन्दगी की आखिरी रात होगी। मैं तुझे दस जनवरी की रात सरेआम कत्ल कर दूँगा।"

"सरेआम ! मैं समझा नहीं ।"

"कुल सात दिन बाकी रह गये हैं तेरी जिन्दगी के। ऐश कर ले। यह घड़ी फिर नहीं आयेगी।"

इतना कहकर रोमेश ने फोन काट दिया। सुबह-सुबह विजय उसके फ्लैट पर आ धमका।

"कहिये कैसे आना हुआ इंस्पेक्टर साहब ?"

"कुछ दिन से तो आपको भी फुर्सत नहीं मिल रही थी और कुछ हम भी व्यस्त थे। इसलिये चंद दिनों से आपकी हमारी मुलाकात नहीं हो पा रही थी और आजकल टेली फोन डिपार्टमेंट भी कुछ नाकारा हो गया लगता है, आपका फोन मिलता ही नहीं।"

"शायद आपको पता ही होगा कि मैं फ़िलहाल न तो किसी से मिलने के मूड में हूँ, न किसी की कॉल सुनना चाहता हूँ।"

"कब तक? " विजय ने पूछा।

"ग्यारह जनवरी के बाद सब रूटीन में आ जायेगा।"

"और, यानि दस जनवरी को तो आपकी मैरिज एनिवर्सरी है। क्या भाभी लौट रही हैं?"

"नहीं, अपनी शादी की यह सालगिरह मैं कुछ दूसरे ही अंदाज में मनाने जा रहा हूँ।"

"वह किस तरह, जरा हम भी तो सुनें।"

"इंस्पेक्टर विजय, तुम अच्छी तरह जानते हो कि मैं जे.एन. का कत्ल करने जा रहा हूँ, ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि वैशाली ने तुम्हें न बताया हो। हाँ, उसने डेट नहीं बताई होगी।

“मैं जे.एन. का कत्ल 10 जनवरी की रात करूंगा, ठीक उस वक्त जब मैंने सुहागरात मनाई थी।"

"ओह, तो शहर में जो चर्चायें हो रही है कि एक वकील पागल हो गया है, वह कहाँ तक ठीक है?"

"पागल मैं नहीं, पागल तो जे.एन. होगा, दस तारीख की रात तक। वह जहाँ भी रहेगा, मैं भी वहीं उसे फोन करता रहूँगा और वह यह सोचकर पागल हो जायेगा कि दुनिया के किसी भी कोने में वह सुरक्षित नहीं है। फिर दस जनवरी की रात मैं उसे जहाँ ले जाना चाहूँगा, वह वहीं पहुंचेगा और मैं उसका कत्ल कर दूँगा। मेरा यह काम खत्म होने के बाद पुलिस का काम शुरू होना है, इसलिए कहता हूँ दोस्त कि 11 जनवरी को यहाँ आना, यहाँ सब ठीक मिलेगा।"

"जहाँ तक पुलिस की तरफ से आने का प्रश्न है, मैं पहले भी आ सकता हूँ । तुम्हारी जानकारी के लिए मैं इतना बता दूँ कि जे.एन. ने रिपोर्ट दर्ज करा दी है, उसने कमिश्नर से सीधा सम्पर्क किया है और पुलिस डिपार्टमेंट की ओर से मुझे दो काम सौंपे गये हैं। एक तो मुझे होने वाले कातिल से जे.एन. की हिफाजत करनी है, दूसरे उस होने वाले कातिल का पता लगा कर उसे सलाखों के पीछे पहुँचाना है।"

"वंडरफुल यह तो तुम्हारी बहुत बड़ी तरक्की हुई। सावंत के हत्यारे को पकड़ तो न सके, उल्टे उसकी हिफाजत करने चले हो।"

"यह कानूनी प्रक्रिया है, ऐसा नहीं है कि मैं जे.एन. के खिलाफ सबूत नहीं जुटा रहा हूँ और मैंने यह चैप्टर क्लोज कर दिया है, लेकिन यह मेरी सिर्फ डिपार्टमेंटल ड्यूटी है, किसी कातिल को इस तरह कत्ल करने की छूट पुलिस नहीं देती, चाहे वह डाकू ही क्यों न हो। जे.एन. पर वैसे भी कोई जिन्दा या मुर्दा का इनाम नहीं है और न ही वह वांटेड है, अभी भी वह वी .आई.पी . ही है। "

"ठीक है, तो तुम अपना कर्तव्य निभाओ, अगर तुम्हारा इरादा मुझे गिरफ्तार करके सलाखों के पीछे पहुचाने का है, तो शायद तुम यह भूल रहे हो कि मैं कानून का ज्ञाता भी हूँ। किसी को धमकी देने के जुर्म में तुम मुझे कितनी देर अन्दर रख सकोगे, यह तुम खुद जान सकते हो।"

"रोमेश प्लीज, मेरी बात मानो।" विजय का अन्दाज बदल गया,

"मैं जानता हूँ कि तुम ऐसा कुछ नहीं कर सकते, क्यों कि तुम तो खुद कानून के रक्षक हो, आदर्श वकील हो। फिर यह सब पागलपन वाली हरकतें कहाँ तक अच्छी लगती हैं। देखो, मैं यकीन से कहता हूँ कि जे.एन. एक दिन पकड़ा जायेगा और फिर उसे कानून सजा देगा। "

"मर गया तुम्हारा वह कानून जो उसे सजा दे सकता है। अरे तुम उसके चमचे बटाला को ही सजा करके दिखा दो, तो जानूं। विजय मुझे नसीहत देने की कौशिश मत करो, मैं जो कर रहा हूँ, ठीक कर रहा हूँ। जे.एन. के मामले में एक बात ध्यान से सुनो विजय। कानून और कानून की किताबें भूल जाओ, अपनी यह वर्दी भी भूल जाओ। अब जे.एन. का मुकदमा मेरी अदालत में है, इस अदालत का ज्यूरी भी मैं हूँ और जज भी मैं हूँ और जल्लाद भी मैं हूँ। अब तुम जा सकते हो।"

"भगवान तुम्हें सबुद्धि दे।" विजय सिर झटककर बाहर निकल गया।


जारी रहेगा….✍:writing:
Romesh ki ek bat samj nahi aayee mujhe iski bivi Ghar me nahi hai or ise pervah nahi hai ki kaha hogi iski bivi kiske sath hogi ye bus apne me laga hua hai aakhir Seema kaha per hai kahee kisi ne kidnap to nahi ker leya jiske chlte Romesh ye sab ker rha ho
.
Ab to din bhi decide ker leya Romesh ne J N ko marne ka sath use bata bhi dia
Ab to JN ne bhi complain ker di hai or Vijay is case ko dekh rha hai
.
Hoga kya aakhir in sab me samj ke pre hai
.
Lekin Update Jabardast hai Raj_sharma bhai wonderful 🎊🎊🎊🎊🎊🎉🎉🎉🎉💐💐💐💐
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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# 16

फिर एक टेलीफोन बूथ से रोमेश ने जे.एन. को फ़ोन लगाया। कोड दोहराते ही उसका सीधे जे.एन.से सम्पर्क हो गया।

"हैलो !” जे.एन. की आवाज़ आयी, "कौन बोल रहे हो ?"

"तुम्हारा होने वाला कातिल।" रोमेश ने हल्का-सा कहकहा लगाते हुए कहा।

"तू जो कोई भी है, सामने आ। मर्द का बच्चा है, तो सामने आकर दिखा। तब मैं तुझे बताऊंगा कि कत्ल कैसे होता है? फोन पर मुझे डराता है साले।"

"आज मैंने तुम्हारा कत्ल करने के लिए चाकू भी खरीद लिया है। अब तुम्हें जल्द ही तारीख भी पता लग जायेगी। मैं तुम्हें बताऊंगा कि मैं तुम्हें किस दिन मारने वाला हूँ । तुम्हारी मौत के दिन बहुत करीब आते जा रहे हैं मिस्टर जनार्दन नागा रेड्डी, ठहरो ! शायद तुमने यह जानने का भी प्रबन्ध किया है कि फोन कहाँ से आता है? मैं तुम्हें खुद बता देता हूँ, मैं दादर स्टेशन के बाहर टेलीफोन बूथ से बोल रहा हूँ, अब करो अपनी पावर का इस्तेमाल और पकड़ लो मुझे।" रोमेश ने कहकहा लगाते हुए फोन काट दिया।

फिर वह बड़े आराम से बूथ से बाहर निकला और घर चल पड़ा। उसने अपना काम कर दिया था। उसके बाद सारी रात वह सुकून से सोता रहा था। उसकी सेवा के लिए फ्लैट में न तो पत्नी थी न नौकर, नौकर को निकालने का उसे रंज अवश्य था। वह एक वफादार नौकर था। पता नहीं उसे कोई रोजगार मिला भी होगा या नहीं ? जाते-जाते वह यही कह रहा था कि वह गाँव चला जायेगा। रोमेश ने एक शिकायती पत्र पुलिस कमिश्नर के नाम टाइप किया, जिसमें उसने जे.एन. को अपनी पत्नी के दुर्व्यवहार के लिए आरोपित किया था और यह भी शिकायत की थी कि बान्द्रा पुलिस ने उसकी शिकायत पर किस तरह अमल किया था। उसकी प्रतिलिपि उसने एक अखबार को भी प्रसारित कर दी। उसे मालूम था कि अखबार वाले यह समाचार तब तक नहीं छापेंगे, जब तक जे.एन. पर मुकदमा कायम नहीं हो जाता।

जे. एन. भले ही चीफ मिनिस्टर न रहा हो , लेकिन वह शक्तिशाली लीडर तो था ही और उसे केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल में लिए जाने की चर्चा गरम थी। परन्तु एक बात रोमेश अच्छी तरह जानता था कि जनार्दन नागा रेड्डी की हत्या के बाद यह कहानी अवश्य प्रकाशित होगी।
वह यह भी जानता था कि पुलिस कमिश्नर मुकदमा कायम नहीं होने देगा और मुकदमा रोमेश कायम करना भी नहीं चाहता था।

तीन जनवरी ! शनिवार का दिन था। रोमेश उस दिन एक ऐसी दुकान पर रुका, जहाँ बर्तनों पर नाम गोदे जाते थे या नक्काशी होती थी। जिस समय रोमेश दुकान में प्रविष्ट हुआ, उसकी नजर वैशाली पर पड़ गई। वह ठिठका। परन्तु वैशाली ने भी उसे देख लिया था।

"नमस्ते सर आइए।" वैशाली ने रोमेश का वेलकम किया। वैशाली एक प्रेशर कुकर पर कुछ लिखवा रही थी । कुछ और बर्तन भी थे, हर किसी पर वी.वी. लिखा जा रहा था।

"यानि विजय-वैशाली, यही हुआ न वी.वी. का मतलब?" रोमेश ने पूछा।

"जी ।" वैशाली शरमा गयी।

"मुबारक हो, शादी कब हो रही है ?"

"आपको पता चल ही जायेगा, अभी तो एंगेजमेन्ट हो रही है सर। आपने तो आना-जाना ही बन्द कर दिया, फोन भी नहीं सुनते।" कुछ कहते-कहते वैशाली रुक गई। उसे महसूस हुआ कि वह पब्लिक प्लेस पर खड़ी है,

"सॉरी सर, मैं तो शिकायत लेकर बैठ गई। आपका दुकान में कैसे आना हुआ ? कुछ काम था?"

"हाँ ।"

"अरे पहले साहब का काम देखो, मेरा बाद में कर लेना।" वैशाली ने नाम गोदने वाले से कहा। नाम गोदने वाला एक दिल बना कर उसके बीच में वी .वी . लिख रहा था, वह बहुत खूबसूरत नक्काशी कर रहा था।

"हाँ साहब।" उसने काम रोककर रोमेश की तरफ देखा। रोमेश ने जेब से रामपुरी निकाला और उसका फल खोल डाला। रामपुरी देखकर पहले तो नाम गोदने वाला सकपका गया।

"क्या नाम है तुम्हारा?" रोमेश ने पूछा।

"कासिम खान, साहब।" वह बोला।

"इस पर लिखना है।" रोमेश के कुछ कहने से पहले ही वैशाली बोल पड़ी,

"रोमेश सक्सेना ! सर का नाम रोमेश सक्सेना है, चलो मैं स्पेलिंग बताती हूँ।"

"हाँ मेमसाहब, बताओ।" उसने कागज पेन सम्भाल लिया। वैशाली उस नाम की स्पेलिंग बताने लगी। स्पेलिंग लिखने के बाद उसने वैशाली को दिखा दी।

"हाँ ठीक है, यही है।" "किधर लिखूं साहब ?"

"ठहरो, इस पर दो नाम लिखे जायेंगे। दूसरा नाम भी लिखो।"

"द…दो नाम !" कासिम चौंका। वैशाली भी हैरानी से कुछ परेशानी के आलम में रोमेश को देखने लगी। पहले तो वह रामपुरी देखकर ही चौंक पड़ी थी।

"हाँ , दूसरा नाम है जना र्दन नागा रेड्डी ! ब्रैकेट में जे.एन. लिखो।" रोमेश ने खुद कागज पर वह नाम लिख डाला। यह नाम सुनकर वैशाली की धड़कनें भी तेज हो गयीं।

"आप यह क्या …?" वैशाली ने दबी जुबान में कुछ कहना चाहा, परन्तु रोमेश ने तुरन्त उसे रोक दिया।

"प्लीज मुझे मेरा काम करने दो।" फिर रोमेश, कासिम से मुखातिब हुआ,

"यह जो दूसरा नाम है, वह चाकू के ब्लेड पर लिखा जायेगा। चाकू की मूठ पर मेरा नाम । ठीक है? समझ में आया या नहीं ?"

"बरोबर आया साहब ! पण अपुन को यह तो बताइए साहब, इन दो नामों में मिस्टर कौन है और मिसेज कौन ?" कासिम ने शरारतपूर्ण अन्दाज में कहा।

"इसमें न तो कोई मिस्टर है और न मिसेज, इसमें एक नाम मकतूल का है और दूसरा कातिल का। जिसका नाम चाकू के फल पर लिखा जा रहा है, वह मकतूल का नाम है यानि कि मरने वाले का। और जिसका नाम मूठ पर है, वह कातिल का नाम है, यानि मारने वाले का।"

"ज…जी।" वह झोंक में बोला और फिर उछल पड़ा, "जी क्या कहा, मकतूल और कातिल?"

"हाँ, इस चाकू से मैं जे.एन. का कत्ल करने वाला हूँ, अखबार में पढ़ लेना।" कासिम खां हैरत से मुंह फाड़े रोमेश को देखने लगा।

"घबराओ नहीं, मैं तुम्हारा कत्ल करने नहीं जा रहा हूँ, अब जरा यह नाम फटा फट लिख दो।" कासिम खान ने जल्दी-जल्दी दोनों नाम लिखे और फिर चाकू रोमेश को थमा दिया। रोमेश ने पेमेन्ट से पहले बिल बनाने के लिए कहा।

"बिल!" चौंका कासिम।

"हाँ भई ! मैं कोई दो नम्बर का आदमी नहीं हूँ, सब कुछ एकाउण्ट में लिखा जाता है। बिल पर मेरा नाम लिखना न भूलना।"

"जल तू जलाल तू, आई बला को टाल तू।" मन ही मन बड़बड़ा ते हुए कासिम ने बिल बना कर उसे दे दिया और उस पर नाम भी लिख दिया,

"लीजिये।" रोमेश ने पेमेंट करना चाहा, तो वैशाली बोली,

"मैं कर दूँगी।"

"नहीं, यह खाता मेरा अपना है।" रोमेश ने पेमेंट देते हुए कहा,

"हाँ तो कासिम खान, अब जरा ख़ुदा को हाजिर नाजिर जानकर एक बात और सुन लीजिये।"

"ज…जी फरमाइए।"

"आपको जल्दी ही कोर्ट में गवाही के लिए तलब किया जायेगा। कटघरे में मैं खड़ा होऊंगा, क्यों कि मैंने इस चाकू से जनार्दन नागा रेड्डी का कत्ल किया होगा। उस वक्त आपको खुद को हाजिर नाजिर जानकर कहना है, हुजूर यही वह आदमी है, जो मेरी दुकान पर इसी चाकू पर नाम गुदवाने आया था और इसने कहा था कि जनार्दन नागा रेड्डी का कत्ल इसी चाकू से करेगा, इस पर मैंने ही दोनों नाम लिखे थे हुजूर।" इतना कहकर रोमेश मुड़ा और फिर वैशाली की तरफ घूमा,

"किसी वजह से अगर मैं शादी में शरीक न हो सका, तो बुरा मत मानना। मेरी तरफ से एडवांस में बधाई ! अच्छा गुडबाय।"

उसने हैट उठा कर हल्के से सिर झुकाया। फिर हैट सिर पर रखी और दुकान से बाहर निकल आया। एक बार फिर उसकी मोटर साइकिल मुम्बई की सड़कों पर घूम रही थी। रात के ग्यारह बजे उसने टेलीफोन बूथ से फिर एक नम्बर डायल किया। इस बार फोन पर दूसरी तरफ से किसी नारी का स्वर सुनाई दिया ।

"हैल्लो , कौन मांगता ?"

"माया।" रोमेश ने मुस्करा कर कहा।

"हाँ , मैं माया बोलती।"

"जे.एन. को फोन दो, बोलो कि खास आदमी का फोन है।"

"मगर आप हैं कौन ?"

"सुअर की बच्ची, मैं कहता हूँ जे.एन. को फोन दे, वह भारी मुसीबत में पड़ने वाला है।"

"कौन बोलता ?" इस बार जे.एन. का भारी स्वर सुनाई दिया। उसके स्वर से ही पता चल जाता था कि वह नशे में है, रोमेश ने उसकी आवाज पहचानकर हल्का सा कहकहा लगाया।

"नहीं पहचाना, वही तुम्हारा होने वाला कातिल।"

"सुअर के बच्चे, तू यहाँ भी मर गया। मैं तुझे गोली मार दूँगा, तू हैं कौन हरामजादे ? तेरी इतनी हिम्मत, मैं तेरी बोटी-बोटी नोंचकर कुत्तों को खिला दूँगा।"

"अगर मैं तुम्हारे हाथ आ गया, तो तुम ऐसा ही करोगे। क्यों कि तुमने पहले भी कईयों के साथ ऐसा ही सलूक किया होगा। सुन मेरे प्यारे मकतूल, मैं अब तुझे तेरी मौत की तारीख बताना चाहता हूँ। दस जनवरी की रात तेरी जिन्दगी की आखिरी रात होगी। मैं तुझे दस जनवरी की रात सरेआम कत्ल कर दूँगा।"

"सरेआम ! मैं समझा नहीं ।"

"कुल सात दिन बाकी रह गये हैं तेरी जिन्दगी के। ऐश कर ले। यह घड़ी फिर नहीं आयेगी।"

इतना कहकर रोमेश ने फोन काट दिया। सुबह-सुबह विजय उसके फ्लैट पर आ धमका।

"कहिये कैसे आना हुआ इंस्पेक्टर साहब ?"

"कुछ दिन से तो आपको भी फुर्सत नहीं मिल रही थी और कुछ हम भी व्यस्त थे। इसलिये चंद दिनों से आपकी हमारी मुलाकात नहीं हो पा रही थी और आजकल टेली फोन डिपार्टमेंट भी कुछ नाकारा हो गया लगता है, आपका फोन मिलता ही नहीं।"

"शायद आपको पता ही होगा कि मैं फ़िलहाल न तो किसी से मिलने के मूड में हूँ, न किसी की कॉल सुनना चाहता हूँ।"

"कब तक? " विजय ने पूछा।

"ग्यारह जनवरी के बाद सब रूटीन में आ जायेगा।"

"और, यानि दस जनवरी को तो आपकी मैरिज एनिवर्सरी है। क्या भाभी लौट रही हैं?"

"नहीं, अपनी शादी की यह सालगिरह मैं कुछ दूसरे ही अंदाज में मनाने जा रहा हूँ।"

"वह किस तरह, जरा हम भी तो सुनें।"

"इंस्पेक्टर विजय, तुम अच्छी तरह जानते हो कि मैं जे.एन. का कत्ल करने जा रहा हूँ, ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि वैशाली ने तुम्हें न बताया हो। हाँ, उसने डेट नहीं बताई होगी।

“मैं जे.एन. का कत्ल 10 जनवरी की रात करूंगा, ठीक उस वक्त जब मैंने सुहागरात मनाई थी।"

"ओह, तो शहर में जो चर्चायें हो रही है कि एक वकील पागल हो गया है, वह कहाँ तक ठीक है?"

"पागल मैं नहीं, पागल तो जे.एन. होगा, दस तारीख की रात तक। वह जहाँ भी रहेगा, मैं भी वहीं उसे फोन करता रहूँगा और वह यह सोचकर पागल हो जायेगा कि दुनिया के किसी भी कोने में वह सुरक्षित नहीं है। फिर दस जनवरी की रात मैं उसे जहाँ ले जाना चाहूँगा, वह वहीं पहुंचेगा और मैं उसका कत्ल कर दूँगा। मेरा यह काम खत्म होने के बाद पुलिस का काम शुरू होना है, इसलिए कहता हूँ दोस्त कि 11 जनवरी को यहाँ आना, यहाँ सब ठीक मिलेगा।"

"जहाँ तक पुलिस की तरफ से आने का प्रश्न है, मैं पहले भी आ सकता हूँ । तुम्हारी जानकारी के लिए मैं इतना बता दूँ कि जे.एन. ने रिपोर्ट दर्ज करा दी है, उसने कमिश्नर से सीधा सम्पर्क किया है और पुलिस डिपार्टमेंट की ओर से मुझे दो काम सौंपे गये हैं। एक तो मुझे होने वाले कातिल से जे.एन. की हिफाजत करनी है, दूसरे उस होने वाले कातिल का पता लगा कर उसे सलाखों के पीछे पहुँचाना है।"

"वंडरफुल यह तो तुम्हारी बहुत बड़ी तरक्की हुई। सावंत के हत्यारे को पकड़ तो न सके, उल्टे उसकी हिफाजत करने चले हो।"

"यह कानूनी प्रक्रिया है, ऐसा नहीं है कि मैं जे.एन. के खिलाफ सबूत नहीं जुटा रहा हूँ और मैंने यह चैप्टर क्लोज कर दिया है, लेकिन यह मेरी सिर्फ डिपार्टमेंटल ड्यूटी है, किसी कातिल को इस तरह कत्ल करने की छूट पुलिस नहीं देती, चाहे वह डाकू ही क्यों न हो। जे.एन. पर वैसे भी कोई जिन्दा या मुर्दा का इनाम नहीं है और न ही वह वांटेड है, अभी भी वह वी .आई.पी . ही है। "

"ठीक है, तो तुम अपना कर्तव्य निभाओ, अगर तुम्हारा इरादा मुझे गिरफ्तार करके सलाखों के पीछे पहुचाने का है, तो शायद तुम यह भूल रहे हो कि मैं कानून का ज्ञाता भी हूँ। किसी को धमकी देने के जुर्म में तुम मुझे कितनी देर अन्दर रख सकोगे, यह तुम खुद जान सकते हो।"

"रोमेश प्लीज, मेरी बात मानो।" विजय का अन्दाज बदल गया,

"मैं जानता हूँ कि तुम ऐसा कुछ नहीं कर सकते, क्यों कि तुम तो खुद कानून के रक्षक हो, आदर्श वकील हो। फिर यह सब पागलपन वाली हरकतें कहाँ तक अच्छी लगती हैं। देखो, मैं यकीन से कहता हूँ कि जे.एन. एक दिन पकड़ा जायेगा और फिर उसे कानून सजा देगा। "

"मर गया तुम्हारा वह कानून जो उसे सजा दे सकता है। अरे तुम उसके चमचे बटाला को ही सजा करके दिखा दो, तो जानूं। विजय मुझे नसीहत देने की कौशिश मत करो, मैं जो कर रहा हूँ, ठीक कर रहा हूँ। जे.एन. के मामले में एक बात ध्यान से सुनो विजय। कानून और कानून की किताबें भूल जाओ, अपनी यह वर्दी भी भूल जाओ। अब जे.एन. का मुकदमा मेरी अदालत में है, इस अदालत का ज्यूरी भी मैं हूँ और जज भी मैं हूँ और जल्लाद भी मैं हूँ। अब तुम जा सकते हो।"

"भगवान तुम्हें सबुद्धि दे।" विजय सिर झटककर बाहर निकल गया।


जारी रहेगा….✍:writing:
अब तो 10 जनवरी का ही इंतजार है।

बढ़िया अपडेट।
 
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रोमेश साहब यह क्या बवाल मचा रहे है ? कत्ल करने से पहले हर जगह खुद ही ढोल नगाड़े के साथ आलाप किए जा रहे है कि वो एक हस्ती का खून करने जा रहे है !
ऐसा कौन करता है भाई ? यह तो आ बैल मुझे मार वाली कहावत हो गई ।
क्या वह यह सब इसलिए कर रहे है कि अदालत मे यह सब संज्ञान आने के बाद जज साहब भ्रमित हो जाए कि एक रियल कातिल ऐसा नही करता । खुद को ही फंसाने के लिए ऐसी हरकतें नही करता । खुद ही एलिबाई की फौज खड़ा नही करता ।
और फिर संदेह के आधार पर वो अदालत से बरी कर दिया जाता ।
लेकिन अगर खून उसी रामपुरी चाकू से किया जाए और उस चाकू के मुठ पर रोमेश साहब के उँगलियों के निशान पाए जाए तब वह क्या करेंगे ? क्या दस्ताने पहन कर रोमेश साहब कत्ल करने वाले है ताकि एक और भ्रम फैलाया जाए ?

लेकिन जिस तरह से रोमेश साहब भूतपूर्व चीफ मिनिस्टर साहब के कत्ल की बात कर रहे है उससे ताज्जुब होता है कि अबतक कपड़े वाले कर्मचारी ने , चाकू बेचने वाले दुकानदार ने , चाकू पर निशान बनाने वाले कारीगर ने पुलिस स्टेशन जाने का जहमत तक नही उठाया ।
अगर वह लोग पुलिस के पास जाते तब रोमेश साहब कुछ करने से पहले ही हिरासत मे ले लिए जाते ।

देखते है रोमेश साहब क्या खिचड़ी पका रहे है !
बहुत खुबसूरत अपडेट शर्मा जी ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट ।
 
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# 16

फिर एक टेलीफोन बूथ से रोमेश ने जे.एन. को फ़ोन लगाया। कोड दोहराते ही उसका सीधे जे.एन.से सम्पर्क हो गया।

"हैलो !” जे.एन. की आवाज़ आयी, "कौन बोल रहे हो ?"

"तुम्हारा होने वाला कातिल।" रोमेश ने हल्का-सा कहकहा लगाते हुए कहा।

"तू जो कोई भी है, सामने आ। मर्द का बच्चा है, तो सामने आकर दिखा। तब मैं तुझे बताऊंगा कि कत्ल कैसे होता है? फोन पर मुझे डराता है साले।"

"आज मैंने तुम्हारा कत्ल करने के लिए चाकू भी खरीद लिया है। अब तुम्हें जल्द ही तारीख भी पता लग जायेगी। मैं तुम्हें बताऊंगा कि मैं तुम्हें किस दिन मारने वाला हूँ । तुम्हारी मौत के दिन बहुत करीब आते जा रहे हैं मिस्टर जनार्दन नागा रेड्डी, ठहरो ! शायद तुमने यह जानने का भी प्रबन्ध किया है कि फोन कहाँ से आता है? मैं तुम्हें खुद बता देता हूँ, मैं दादर स्टेशन के बाहर टेलीफोन बूथ से बोल रहा हूँ, अब करो अपनी पावर का इस्तेमाल और पकड़ लो मुझे।" रोमेश ने कहकहा लगाते हुए फोन काट दिया।

फिर वह बड़े आराम से बूथ से बाहर निकला और घर चल पड़ा। उसने अपना काम कर दिया था। उसके बाद सारी रात वह सुकून से सोता रहा था। उसकी सेवा के लिए फ्लैट में न तो पत्नी थी न नौकर, नौकर को निकालने का उसे रंज अवश्य था। वह एक वफादार नौकर था। पता नहीं उसे कोई रोजगार मिला भी होगा या नहीं ? जाते-जाते वह यही कह रहा था कि वह गाँव चला जायेगा। रोमेश ने एक शिकायती पत्र पुलिस कमिश्नर के नाम टाइप किया, जिसमें उसने जे.एन. को अपनी पत्नी के दुर्व्यवहार के लिए आरोपित किया था और यह भी शिकायत की थी कि बान्द्रा पुलिस ने उसकी शिकायत पर किस तरह अमल किया था। उसकी प्रतिलिपि उसने एक अखबार को भी प्रसारित कर दी। उसे मालूम था कि अखबार वाले यह समाचार तब तक नहीं छापेंगे, जब तक जे.एन. पर मुकदमा कायम नहीं हो जाता।

जे. एन. भले ही चीफ मिनिस्टर न रहा हो , लेकिन वह शक्तिशाली लीडर तो था ही और उसे केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल में लिए जाने की चर्चा गरम थी। परन्तु एक बात रोमेश अच्छी तरह जानता था कि जनार्दन नागा रेड्डी की हत्या के बाद यह कहानी अवश्य प्रकाशित होगी।
वह यह भी जानता था कि पुलिस कमिश्नर मुकदमा कायम नहीं होने देगा और मुकदमा रोमेश कायम करना भी नहीं चाहता था।

तीन जनवरी ! शनिवार का दिन था। रोमेश उस दिन एक ऐसी दुकान पर रुका, जहाँ बर्तनों पर नाम गोदे जाते थे या नक्काशी होती थी। जिस समय रोमेश दुकान में प्रविष्ट हुआ, उसकी नजर वैशाली पर पड़ गई। वह ठिठका। परन्तु वैशाली ने भी उसे देख लिया था।

"नमस्ते सर आइए।" वैशाली ने रोमेश का वेलकम किया। वैशाली एक प्रेशर कुकर पर कुछ लिखवा रही थी । कुछ और बर्तन भी थे, हर किसी पर वी.वी. लिखा जा रहा था।

"यानि विजय-वैशाली, यही हुआ न वी.वी. का मतलब?" रोमेश ने पूछा।

"जी ।" वैशाली शरमा गयी।

"मुबारक हो, शादी कब हो रही है ?"

"आपको पता चल ही जायेगा, अभी तो एंगेजमेन्ट हो रही है सर। आपने तो आना-जाना ही बन्द कर दिया, फोन भी नहीं सुनते।" कुछ कहते-कहते वैशाली रुक गई। उसे महसूस हुआ कि वह पब्लिक प्लेस पर खड़ी है,

"सॉरी सर, मैं तो शिकायत लेकर बैठ गई। आपका दुकान में कैसे आना हुआ ? कुछ काम था?"

"हाँ ।"

"अरे पहले साहब का काम देखो, मेरा बाद में कर लेना।" वैशाली ने नाम गोदने वाले से कहा। नाम गोदने वाला एक दिल बना कर उसके बीच में वी .वी . लिख रहा था, वह बहुत खूबसूरत नक्काशी कर रहा था।

"हाँ साहब।" उसने काम रोककर रोमेश की तरफ देखा। रोमेश ने जेब से रामपुरी निकाला और उसका फल खोल डाला। रामपुरी देखकर पहले तो नाम गोदने वाला सकपका गया।

"क्या नाम है तुम्हारा?" रोमेश ने पूछा।

"कासिम खान, साहब।" वह बोला।

"इस पर लिखना है।" रोमेश के कुछ कहने से पहले ही वैशाली बोल पड़ी,

"रोमेश सक्सेना ! सर का नाम रोमेश सक्सेना है, चलो मैं स्पेलिंग बताती हूँ।"

"हाँ मेमसाहब, बताओ।" उसने कागज पेन सम्भाल लिया। वैशाली उस नाम की स्पेलिंग बताने लगी। स्पेलिंग लिखने के बाद उसने वैशाली को दिखा दी।

"हाँ ठीक है, यही है।" "किधर लिखूं साहब ?"

"ठहरो, इस पर दो नाम लिखे जायेंगे। दूसरा नाम भी लिखो।"

"द…दो नाम !" कासिम चौंका। वैशाली भी हैरानी से कुछ परेशानी के आलम में रोमेश को देखने लगी। पहले तो वह रामपुरी देखकर ही चौंक पड़ी थी।

"हाँ , दूसरा नाम है जना र्दन नागा रेड्डी ! ब्रैकेट में जे.एन. लिखो।" रोमेश ने खुद कागज पर वह नाम लिख डाला। यह नाम सुनकर वैशाली की धड़कनें भी तेज हो गयीं।

"आप यह क्या …?" वैशाली ने दबी जुबान में कुछ कहना चाहा, परन्तु रोमेश ने तुरन्त उसे रोक दिया।

"प्लीज मुझे मेरा काम करने दो।" फिर रोमेश, कासिम से मुखातिब हुआ,

"यह जो दूसरा नाम है, वह चाकू के ब्लेड पर लिखा जायेगा। चाकू की मूठ पर मेरा नाम । ठीक है? समझ में आया या नहीं ?"

"बरोबर आया साहब ! पण अपुन को यह तो बताइए साहब, इन दो नामों में मिस्टर कौन है और मिसेज कौन ?" कासिम ने शरारतपूर्ण अन्दाज में कहा।

"इसमें न तो कोई मिस्टर है और न मिसेज, इसमें एक नाम मकतूल का है और दूसरा कातिल का। जिसका नाम चाकू के फल पर लिखा जा रहा है, वह मकतूल का नाम है यानि कि मरने वाले का। और जिसका नाम मूठ पर है, वह कातिल का नाम है, यानि मारने वाले का।"

"ज…जी।" वह झोंक में बोला और फिर उछल पड़ा, "जी क्या कहा, मकतूल और कातिल?"

"हाँ, इस चाकू से मैं जे.एन. का कत्ल करने वाला हूँ, अखबार में पढ़ लेना।" कासिम खां हैरत से मुंह फाड़े रोमेश को देखने लगा।

"घबराओ नहीं, मैं तुम्हारा कत्ल करने नहीं जा रहा हूँ, अब जरा यह नाम फटा फट लिख दो।" कासिम खान ने जल्दी-जल्दी दोनों नाम लिखे और फिर चाकू रोमेश को थमा दिया। रोमेश ने पेमेन्ट से पहले बिल बनाने के लिए कहा।

"बिल!" चौंका कासिम।

"हाँ भई ! मैं कोई दो नम्बर का आदमी नहीं हूँ, सब कुछ एकाउण्ट में लिखा जाता है। बिल पर मेरा नाम लिखना न भूलना।"

"जल तू जलाल तू, आई बला को टाल तू।" मन ही मन बड़बड़ा ते हुए कासिम ने बिल बना कर उसे दे दिया और उस पर नाम भी लिख दिया,

"लीजिये।" रोमेश ने पेमेंट करना चाहा, तो वैशाली बोली,

"मैं कर दूँगी।"

"नहीं, यह खाता मेरा अपना है।" रोमेश ने पेमेंट देते हुए कहा,

"हाँ तो कासिम खान, अब जरा ख़ुदा को हाजिर नाजिर जानकर एक बात और सुन लीजिये।"

"ज…जी फरमाइए।"

"आपको जल्दी ही कोर्ट में गवाही के लिए तलब किया जायेगा। कटघरे में मैं खड़ा होऊंगा, क्यों कि मैंने इस चाकू से जनार्दन नागा रेड्डी का कत्ल किया होगा। उस वक्त आपको खुद को हाजिर नाजिर जानकर कहना है, हुजूर यही वह आदमी है, जो मेरी दुकान पर इसी चाकू पर नाम गुदवाने आया था और इसने कहा था कि जनार्दन नागा रेड्डी का कत्ल इसी चाकू से करेगा, इस पर मैंने ही दोनों नाम लिखे थे हुजूर।" इतना कहकर रोमेश मुड़ा और फिर वैशाली की तरफ घूमा,

"किसी वजह से अगर मैं शादी में शरीक न हो सका, तो बुरा मत मानना। मेरी तरफ से एडवांस में बधाई ! अच्छा गुडबाय।"

उसने हैट उठा कर हल्के से सिर झुकाया। फिर हैट सिर पर रखी और दुकान से बाहर निकल आया। एक बार फिर उसकी मोटर साइकिल मुम्बई की सड़कों पर घूम रही थी। रात के ग्यारह बजे उसने टेलीफोन बूथ से फिर एक नम्बर डायल किया। इस बार फोन पर दूसरी तरफ से किसी नारी का स्वर सुनाई दिया ।

"हैल्लो , कौन मांगता ?"

"माया।" रोमेश ने मुस्करा कर कहा।

"हाँ , मैं माया बोलती।"

"जे.एन. को फोन दो, बोलो कि खास आदमी का फोन है।"

"मगर आप हैं कौन ?"

"सुअर की बच्ची, मैं कहता हूँ जे.एन. को फोन दे, वह भारी मुसीबत में पड़ने वाला है।"

"कौन बोलता ?" इस बार जे.एन. का भारी स्वर सुनाई दिया। उसके स्वर से ही पता चल जाता था कि वह नशे में है, रोमेश ने उसकी आवाज पहचानकर हल्का सा कहकहा लगाया।

"नहीं पहचाना, वही तुम्हारा होने वाला कातिल।"

"सुअर के बच्चे, तू यहाँ भी मर गया। मैं तुझे गोली मार दूँगा, तू हैं कौन हरामजादे ? तेरी इतनी हिम्मत, मैं तेरी बोटी-बोटी नोंचकर कुत्तों को खिला दूँगा।"

"अगर मैं तुम्हारे हाथ आ गया, तो तुम ऐसा ही करोगे। क्यों कि तुमने पहले भी कईयों के साथ ऐसा ही सलूक किया होगा। सुन मेरे प्यारे मकतूल, मैं अब तुझे तेरी मौत की तारीख बताना चाहता हूँ। दस जनवरी की रात तेरी जिन्दगी की आखिरी रात होगी। मैं तुझे दस जनवरी की रात सरेआम कत्ल कर दूँगा।"

"सरेआम ! मैं समझा नहीं ।"

"कुल सात दिन बाकी रह गये हैं तेरी जिन्दगी के। ऐश कर ले। यह घड़ी फिर नहीं आयेगी।"

इतना कहकर रोमेश ने फोन काट दिया। सुबह-सुबह विजय उसके फ्लैट पर आ धमका।

"कहिये कैसे आना हुआ इंस्पेक्टर साहब ?"

"कुछ दिन से तो आपको भी फुर्सत नहीं मिल रही थी और कुछ हम भी व्यस्त थे। इसलिये चंद दिनों से आपकी हमारी मुलाकात नहीं हो पा रही थी और आजकल टेली फोन डिपार्टमेंट भी कुछ नाकारा हो गया लगता है, आपका फोन मिलता ही नहीं।"

"शायद आपको पता ही होगा कि मैं फ़िलहाल न तो किसी से मिलने के मूड में हूँ, न किसी की कॉल सुनना चाहता हूँ।"

"कब तक? " विजय ने पूछा।

"ग्यारह जनवरी के बाद सब रूटीन में आ जायेगा।"

"और, यानि दस जनवरी को तो आपकी मैरिज एनिवर्सरी है। क्या भाभी लौट रही हैं?"

"नहीं, अपनी शादी की यह सालगिरह मैं कुछ दूसरे ही अंदाज में मनाने जा रहा हूँ।"

"वह किस तरह, जरा हम भी तो सुनें।"

"इंस्पेक्टर विजय, तुम अच्छी तरह जानते हो कि मैं जे.एन. का कत्ल करने जा रहा हूँ, ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि वैशाली ने तुम्हें न बताया हो। हाँ, उसने डेट नहीं बताई होगी।

“मैं जे.एन. का कत्ल 10 जनवरी की रात करूंगा, ठीक उस वक्त जब मैंने सुहागरात मनाई थी।"

"ओह, तो शहर में जो चर्चायें हो रही है कि एक वकील पागल हो गया है, वह कहाँ तक ठीक है?"

"पागल मैं नहीं, पागल तो जे.एन. होगा, दस तारीख की रात तक। वह जहाँ भी रहेगा, मैं भी वहीं उसे फोन करता रहूँगा और वह यह सोचकर पागल हो जायेगा कि दुनिया के किसी भी कोने में वह सुरक्षित नहीं है। फिर दस जनवरी की रात मैं उसे जहाँ ले जाना चाहूँगा, वह वहीं पहुंचेगा और मैं उसका कत्ल कर दूँगा। मेरा यह काम खत्म होने के बाद पुलिस का काम शुरू होना है, इसलिए कहता हूँ दोस्त कि 11 जनवरी को यहाँ आना, यहाँ सब ठीक मिलेगा।"

"जहाँ तक पुलिस की तरफ से आने का प्रश्न है, मैं पहले भी आ सकता हूँ । तुम्हारी जानकारी के लिए मैं इतना बता दूँ कि जे.एन. ने रिपोर्ट दर्ज करा दी है, उसने कमिश्नर से सीधा सम्पर्क किया है और पुलिस डिपार्टमेंट की ओर से मुझे दो काम सौंपे गये हैं। एक तो मुझे होने वाले कातिल से जे.एन. की हिफाजत करनी है, दूसरे उस होने वाले कातिल का पता लगा कर उसे सलाखों के पीछे पहुँचाना है।"

"वंडरफुल यह तो तुम्हारी बहुत बड़ी तरक्की हुई। सावंत के हत्यारे को पकड़ तो न सके, उल्टे उसकी हिफाजत करने चले हो।"

"यह कानूनी प्रक्रिया है, ऐसा नहीं है कि मैं जे.एन. के खिलाफ सबूत नहीं जुटा रहा हूँ और मैंने यह चैप्टर क्लोज कर दिया है, लेकिन यह मेरी सिर्फ डिपार्टमेंटल ड्यूटी है, किसी कातिल को इस तरह कत्ल करने की छूट पुलिस नहीं देती, चाहे वह डाकू ही क्यों न हो। जे.एन. पर वैसे भी कोई जिन्दा या मुर्दा का इनाम नहीं है और न ही वह वांटेड है, अभी भी वह वी .आई.पी . ही है। "

"ठीक है, तो तुम अपना कर्तव्य निभाओ, अगर तुम्हारा इरादा मुझे गिरफ्तार करके सलाखों के पीछे पहुचाने का है, तो शायद तुम यह भूल रहे हो कि मैं कानून का ज्ञाता भी हूँ। किसी को धमकी देने के जुर्म में तुम मुझे कितनी देर अन्दर रख सकोगे, यह तुम खुद जान सकते हो।"

"रोमेश प्लीज, मेरी बात मानो।" विजय का अन्दाज बदल गया,

"मैं जानता हूँ कि तुम ऐसा कुछ नहीं कर सकते, क्यों कि तुम तो खुद कानून के रक्षक हो, आदर्श वकील हो। फिर यह सब पागलपन वाली हरकतें कहाँ तक अच्छी लगती हैं। देखो, मैं यकीन से कहता हूँ कि जे.एन. एक दिन पकड़ा जायेगा और फिर उसे कानून सजा देगा। "

"मर गया तुम्हारा वह कानून जो उसे सजा दे सकता है। अरे तुम उसके चमचे बटाला को ही सजा करके दिखा दो, तो जानूं। विजय मुझे नसीहत देने की कौशिश मत करो, मैं जो कर रहा हूँ, ठीक कर रहा हूँ। जे.एन. के मामले में एक बात ध्यान से सुनो विजय। कानून और कानून की किताबें भूल जाओ, अपनी यह वर्दी भी भूल जाओ। अब जे.एन. का मुकदमा मेरी अदालत में है, इस अदालत का ज्यूरी भी मैं हूँ और जज भी मैं हूँ और जल्लाद भी मैं हूँ। अब तुम जा सकते हो।"

"भगवान तुम्हें सबुद्धि दे।" विजय सिर झटककर बाहर निकल गया।


जारी रहेगा….✍:writing:
Nice update...
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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बहुत ही बढ़िया लगभग सारी तैयारी रोमेश कर चुका है । जे एन को डरा भी दिया है की उसने शिकायत तक कर दी है। सीमा का अता पता ना रोमेश और ना विजय ने लगाया अभी तक ना उसका ज़िक्र कही आया है ।
विजय बाबू का घर बस रहा है और रोमेश का उजड़ गया है
अब कहानी को क़त्ल की तैयारी से आगे बढ़ाओ भाई ।
Tareekh najdeek aarahi hai bhai :declare: Thank you very much for your valuable review and support bhai :good:
 
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