Update 19
एकेली रेखा घर पे
रेखा का दिल जोरो से धडक रहा था। पता नहीं उसका बापू उससे क्या कहेगा! वह अपने कमरे में एक कोने से दूसरे कोने तक टेंशन के मारे चल फिरने लगी। लेकिन उसके दिल की धड़कन रफ्ता रफ्ता बढ ही रहा था की पीछे से अचानक उसके बापू की आवाज उसके कान में गुंजने लगी।
बापू: रेखा तेरी माँ कहीं दिखाई नहीं दे रही?
रेखा अपने बापू को देखती है जो दरवाजे के सामने बनयान व धोती में खड़ा था। हाफ बनयान में उसके बापू का शरीर एक नौजवान मर्द से किसी भी रुप से कम नहीं था। काफी दिनो के बाद उसके बापू को रेखा ने इस तरह देखा। रेखा ने अपने बापू की तरफ देखती हुयी बोली: वह माँ तो अभी अभी कोमल मौसी के वहाँ गई है । कुछ काम था बापू?
उसके बापू उसे ही घुरे जा रहे थे। रेखा ने अभी तक रात की पहनी हुई नाईटी पहन रखी थी। घर के माहोल में रेखा और उसकी माँ राधा नाईटी पहने हुई ही ज्यादतर रहती थी। जिसके अन्दर दोनों कुछ भी नहीं पहना करती। ना ब्रा ना पेन्टि व क्च्छा।
बापू: तू कब जानेवाली है?
रेखा: मैं! मैं बाद में चली जाऊँगी। आप कब जाओगे बापू?
बापू: मैं तो शाम को ही जाऊँगा। वैसे तू अभी शीतल को देख के आ सकती थी।
रेखा: बस बापू मैं जाने ही लग रही थी।
बापू: अच्छा। रेखा!! यह बोलते हुए राकेश रेखा के कमरे के अन्दर आ जाता है।
"मुझे तेरे साथ कुछ बात करनी थी, कल सुबह वैसे भी मैं शहर चला जाऊँगा।"
राकेश रेखा के पलंग पर बैठ जाता है । रेखा उसके सामने खड़ी थी।
रेखा: हाँ बोलो बापू" रेखा की धड़कन जोरो से बजने लगती है।
राकेश उसे पकड़ कर अपने पास बिठा लेता है। राकेश के छूते ही रेखा के शरीर में एक लहर सी दौड़ जाती है। वह अपने बापू को देखती रहती है।
बापू: तुझे पता है, जब मैं पहली बार शहर गया था उस वक्त तू छोटी सी थी। मैं उधर काम में बिजी रहा और तू यहाँ जवान होती गई। और आज मेरी बेटी इतनी खुबसूरत हो गई है की अच्छे अच्छे लौंडों का भी दिमाग़ खराब हो जाये।
रेखा अपने बापू के एक हाथ के बन्धन में फंसी हुई थी। उसे अपने बापू से छूटने की कोई जल्दी नहीं थी। वह बोली:: वैसे आप भी तो शहर में जा कर पहले से कितना हेंड्सम हो गए।
राकेश ने रेखा का चेहरा उठा कर अपनी तरफ करके उसकी आंखों में देख कर कहा: मुझे तो मेरी बेटी बहुत पसंद है। मैं तुझ बहुत प्यार करता हूँ। क्या तू भी मुझे प्यार करती है?
रेखा: हाँ बापू। मैं भी आप से सच्चे मन से प्यार करती हूँ।
राकेश: हाँ रेखा मेरी बच्ची। मुझे पता है। हम दोनो ही एक दूसरे को प्यार करते हैं। वैसे मैं तुझ से पूछना चाहता हूँ क्या तू मेरे साथ शहर जायेगी?
रेखा अपने बापू से इस तरह लिपटे अन्दर ही अन्दर सट्पटाने लगती है। वह सिवाय इस के और कुछ ना बोल सकी "हाँ बापू जाऊँगी"
राकेश ने रेखा का जवाब सुन्के रेखा के गाल पर एक चुम्मा दे देता है। रेखा अपना चेहरा नीचे झुका लेती है।
राकेश: मेरे दिल में यह अरमान बहुत पहले से है। जब तू छोटी सी थी। तुझे पता है मैं तुझे चिड़हाया करता था।
रेखा: हाँ बापू मुझे याद है। माँ कभी कभी बोलती थी जब मेरी रेखा बिटिया बड़ी हो जायेगी तो खुब धूमधाम से इसकी शादी करवाउँगी। उस वक्त आप बोलते थे, "क्यों मेरी बेटी है। मैं उसे अपनी दुल्हन बनाऊँगा।"
राकेश: हाँ। रेखा मैं तुझे यही बोलता था। और आज जब तू बड़ी हो गई है मैं तुझ से पूछना चाहता हुँ "क्या तू मेरे साथ शहर जायेगी? वहाँ जाके मेरी दुल्हन बन कर रहेगी? बोल रेखा!"
रेखा ने अपना चेहरा अपने बापू के सीने में छुपा लिया।
रेखा: हाँ बापू मैं बनूँगी तुम्हारी दुल्हन। और दुल्हन बन कर तुम्हारे साथ शहर जाऊँगी।
राकेश ने रेखा को अपनी बाहों नें भर लिया।: : अब तो मेरा दोस्त कमल भी अपनी बेटी शीतल से शादी कर रहा है। मैं भी जल्द ही तुझे अपनी दुल्हन बना कर शहर ले चलूंगा। दोनो बाप-बेटी एक दूसरे को बाहों में भर के प्यार में मगन हो जाते हैं। राकेश अपनी बेटी को बाहों में भर के उसके कंधे को चूमने लगता है। उसे एहसास हो जाता है की रेखा ने अपने अन्दर कुछ भी नहीं पहना। जिससे उसके हाथ का स्पर्श पूरी तरह से रेखा के शरीर को छू रहा था। वह अपनी बेटी के शरीर की बनावट को मह्सुस करता हुया उसके होंट चूमने लगता है। रेखा भी अपने बापू का पुरा साथ देती है। दोनो के अन्दर धीरे धीरे एक भुके आग की चिंगारी फूटने लगती है।
रेखा: बापू आप जितनी जल्दी हो सके मुझे यहां से शहर ले चलो। शीतल की शादी हो जाने के बाद मैं भी तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊँगी।
राकेश: मैं भी रेखा। मैं ने तेरी माँ को भी बता दिया है की मैं तुझे ले जाऊँगा।
रेखा: बापू आप ने सोचा हमारे शहर जाने के बाद माँ किस तरह रहेगी!
राकेश: हाँ रेखा! मैं ने इस बारे में भी सोचा। मैं तेरी माँ को पूरी छुट दे रखी थी। की वह जिसे चाहे अपने साथ करवा सकती है। लेकिन पता नहीं क्योंलेकिन पता नहीं क्यों वह मानती ही नहीं।
रेखा: बापू अगर मेरी और तुम्हारी तरह माँ और भईया भी एक हो जाये तो कितना अच्छा होता बोलो।।
राकेश: हाँ रे। यह तो सही है। अगर तेरी माँ रघु को अपना ले फिर तेरी माँ को कोई दुख नहीं होगा।
रेखा: हाँ बापू। मुझे लगता है, जब तक आप उन्के पति बनके सामने रहेंगे तब तक वह कुछ करेगी नहीं। अगर एक बार आप के साथ उनका तलाक हो जाये फिर वह जिसे मर्जी अपना जीवन साथी चुन सकती है। हो सके तो भाई को भी।।
राकेश: एसा तो मैं ने भी सोचा है जब तू पूरी तरह से मेरी दुलहन बन जायेगी तब मैं तेरी माँ से तलाक करवा लूँगा।
रेखा: लेकिन बापू क्या यह सही नहीं रहेगा की आप पहले ही उन्हें तलाक दे दो। फिर हमारी शादी हो। फिर वह भी अजाद हो जायेगी सारे बन्धन से। और अपना फैसला करने में उन्हे आसानी होगी।
राकेश: ठीक है। तू जो कह रही है मैं वही करूँगा। आखिर अब तो तू ही मेरी दुलहन है। यह बोलके फिर से दोनो एक दूसरे से लिपट जाते हैं।