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Incest अनोखे संबंध ।।। (Completed)

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  • Maa beta

    Votes: 248 81.0%
  • Baap beti

    Votes: 73 23.9%
  • Aunty bhatija

    Votes: 59 19.3%
  • Uncle bhatiji

    Votes: 21 6.9%

  • Total voters
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Babulaskar

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Update 18


कोमल के घर का नजारा

शीतल अपने कमरे थी। वह अपने बापू के लाये हुए कपड़े देख रही थी। उसके साथ महल्ले की कल्लो चाची की लड्की सपना बेठी हुई थी। दोनों आपस में हंसी मजाक भरी बातें कर रही थीं। राधा मौसी को देख कर शीतल का चेहरा खिल उठता है।

मौसी तुम कब आई" शीतल अपनी जगह से उठती हूई बोली।

तेरी शादी में तो मुझे आना ही था" राधा उसके माथे पर हाथ रख देती है। और अपने सीने से लगा लेती है।

"राधा मौसी कल से ही यह खुशी के मारे झूम रही है" पास बेठी सपना बोल पडी।

राधा उसके शरीर को टटोलती " और नहीं तो क्या! मेरी लाड्ली बिटिया की शादी है। खुश तो वह होगी ही ना!"

"मौसी! रेखा नहीं आई"

राधा: हाँ। वह बस घर का कुछ काम है। वह निपटाके आ जायेगी। और तेरी माँ कहाँ है? कहीं आस पास दिख भी नहीं रही?

शीतल सपना के पास बेठ्ती हूई "होगी आस पास कहीं। बाथरूम में तो नहीं है! मौसी यह देखो ना बापू मेरे लिये शादी का जोड़ा लाये हैं।"

राधा कपड़ों देखती हूई बोली "सारे कपड़े अच्छे हैं। तेरे उपर अच्छा दिखेगा। और अब कमल तेरे बापू नहीं रहे। जब उन्के साथ मंडप में सात फेरे लेगी। उन्के हाथों से अपने गले में मंगल्सूत्र पहनेगी। तो क्या उसी आदमी को तू बापू बापू कह कर बुलाया करेगी!

शीतल थोडी शरमा जाती है "तो क्या कह कर बुलाऊं मौसी?"

राधा: अब से तो उन्हें अजी सुनते हो। अजी क्या खाओगे। यही कह कर पुकारना पडेगा।" यह बोल के राधा और सपना दोनों हंसने लग जाते हैं।

अच्छा तुम दोनों बातें करो। मैं कोमल के पास जाती हुँ।" यह बोल कर राधा शीतल के कमरे से निकल आती है।

कोमल का एक मंजिले का घर था। जिस में नीचे तीन कमरे बने हुए थे। साथ में छोटा सा आँगन, बाथरूम और रसोई। राधा कोमल के कमरे में जा के देखती है वह कमरा खाली है। फिर उसे एहसास होता है कोमल जो इस कमरे में कमल के साथ रहती थी वह शायद कमल के लिये आज के बाद छोड़ने वाली है। इसी लिये कमरे का आधा सामान यहां से खाली किया गया है। मतलब शीतल और कमल की शादी के बाद वह दौनों इसी कमरे में अपनी जिन्दगी शुरु करने जा रहे हैं। राधा इधर उधर देखती हूई जिस कमरे में कोमल का बेटा रामू रहता वहाँ जाती है। कमरे के पास जाते ही कमरे के अन्दर से रामू और कोमल दोनों माँ बेटे की फुसफुसाने की आवाज आती है। कमरे का दरवाजा थोड़ा सा खुला था। रामू के कमरे में दायीं तरफ पलंग था। जिस से दरवाजे से झांकने से दौनों दिख रहे थे। लेकिन उन दोनो माँ बेटे का कोई ध्यान नहीं था। द्रष्य व नजारा कुछ एसा था। रामू अपनी माँ कोमल को अपनी बाहों में लिये अपने पलंग में पड़ा था। कोमल की साड़ी का पल्लू उसके सीने से हट चुका था। दोनो माँ बेटे एक दूसरे की आंखों में खोये बातें कर रहे थे। और प्यार करने की कोशिश कर रहे थे। कोमल का मुड देख के राधा समझ नहीं पाई कोमल अपने बेटे का साथ दे रही है या उसके बेटे रामू ने जबर्दस्ती कोमल को पकड़ रखा है। दोनो को इस हालत में देख कर राधा का दिल घबरा जाता है। इसी बीच रामू की आवाज आने लगती है।

रामू: माँ। अब तो मेरे से रहा भी नहीं जा रहा है। अब तुम ही बताओ माँ मैं क्या करूं।" रामू अपनी माँ कोमल के उभरे हुए चुची पर अपना मुंह फेरता रहता है।

कोमल: जब मैं पूरी तरह से तेरी हो जाऊँगी तब तेरी हर इच्छाएं मैं पूरी कर दूँगी।

रामू: तो क्या मुझे और कुछ इन्तज़ार करना पड़ेगा?

कोमल: बेटा इन्तज़ार तो करना ही पड़ेगा। अगर तुझे मैं चाहिये तो सबर करना ही पड़ेगा। अब तू भी तो समझ रहा है ना की आज शीतल की शादी होने जा रही है। अब इस हालत में सब मे सामने मैं किस तरह तेरे पास आ सकती हुँ बोल।

रामू: तो क्या हम कल ही उस घर में चले जायेंगे?

कोमल:देखते हैं। अब तू मुझे छोड़ेगा तभी तो मैं कुछ इन्तज़ाम कर सकूँगी। जिस दिन से मैं ने तेरे हँ में हामी भरी तू जब चाहे मुझे अपने कमरे में खींच लाता है। एक तो तेरे बापू से साथ भी मैं ने लेटना छोड़ दिया। अब एसे में अगर मुझे इस तरह रगडता रहेगा तो तू ही बोल मेरा क्या हाल होता होगा?

रामू अपनी माँ को और ज्यादा कस के बोलता है: तुम चिंता क्यों करती हो माँ। एकबार तुम्हारी पेतिकोट उतारने का मौका तो दो मैं तुम्हारी सारी गर्मी और खुजली मिटा दूँगा।

कोमल: आह।। इस तरह अपने डंडे से धक्का क्यों मार रहा है रामू।

रामू: माँ किस धक्के की बात कर रही हो तुम?

कोमल उसकी आंखों में देखती हुई बोली: जो तेरे पेन्ट के अन्दर छुपा है उस डंडे की बात कर रही हुँ पग्ले!

रामू अपनी माँ को एक किस करता हुया बोलता है: अब मेरा डंडा मेरी बात नहीं सुनता। जब भी तुम्हारी मोटी गांड देखता है यह बदमाश गुस्से से अपना मुंह फुला लेता है।

कोमल: हाँ मैं भी देखूँगी उसका मुंह कितना फूलता है। उसकी सारी अकड निकाल दूँगी मैं। कोमल मुस्कुराने लगती है।

रामू अपने लण्ड को अपनी माँ के पेट में औरज्यादा घिस्ता हुया बोलता है: तुम इसकी अकड कभी भी निकाल नहीं सकोगी। मैं रोज तेल से इसकी मालिश करता हुँ। जब यह तुम्हारे कब्जे में आयेगा उसका गुस्सा और ज्यादा बड़ जायेगा। देख लेना।

कोमल अपने हाथों से रामू के लण्ड को नीचे से पकड़ लेती है। जिस से रामू मारे मजे के सटपटा जाता है। बाहर से राधा को रामू के लण्ड के साईज का एहसास हो जाता है। रामू का साईज देख कर ही राधा का दिल मचलने लगता है। हाय राम। इतना मोटा लण्ड। केसे लेगी इसे कोमल अपनी चुत में। कमल का लण्ड राधा ने देख रखा है। उसका लण्ड रामू का आधा ही होगा। लेकिन कमल चोद्ता बहुत अच्छा है।
कोमल रामू का लण्ड पकड़ के कहती है: अरे पग्ले! इसकी जितनी भी अकड हो उसे काबू करने के लिये मजबुत गुफा की जरुरत होती है। और वह गुफा तेरी माँ के पास है। एकबार जब इसे लुंगी तो मैं भी देखूँगी तेरी और इसकी अकड कितनी है।

रामू अपने लण्ड पर माँ के हाथों का स्पर्श मह्सुस करता हुया बोलता है: तो अभी आजमा लेते हैं। देखते हैं तुम्हारे उस गुफा की मजबूती कितनी है?

कोमल अपने बेटे रामू को धक्के मार के अपने उपर से हटा देती है: हाय दईया! तू तो अभी से शुरु होना चाहता है। तेरे चक्कर में मैं भी फंस गई। आज राधा रेखा सभी आनेवाले हैं। क्या तुझे पता नहीं। अगर उनकी नजरों में मैं तेरे से इस तरह लिपटी पाई गईं मैं तो शर्म से पानी पानी हो जाऊंगी। अब जा बाहर जा।

रामू का मुड खराब हो गया।:: क्या माँ। तुम भी। हर बार मुझे इसी तरह हटा देती हो। मैं भी देखता हुँ आखिर कब तक तुम मुझ से इस तरह दूर भागती हो।

कोमल: गुस्सा क्यों करता है मेरे लाल। आज बहुत काम पड़ा है। कोमल अपनी साड़ी ठीक करके उठ खड़ी होती है। राधा को यह महसुस होते ही की कोमल अब कमरे से निकलने वाली है वह झट से वहाँ से दौड़ भागती है।
 
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Babulaskar

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Update 19


एकेली रेखा घर पे

रेखा का दिल जोरो से धडक रहा था। पता नहीं उसका बापू उससे क्या कहेगा! वह अपने कमरे में एक कोने से दूसरे कोने तक टेंशन के मारे चल फिरने लगी। लेकिन उसके दिल की धड़कन रफ्ता रफ्ता बढ ही रहा था की पीछे से अचानक उसके बापू की आवाज उसके कान में गुंजने लगी।

बापू: रेखा तेरी माँ कहीं दिखाई नहीं दे रही?

रेखा अपने बापू को देखती है जो दरवाजे के सामने बनयान व धोती में खड़ा था। हाफ बनयान में उसके बापू का शरीर एक नौजवान मर्द से किसी भी रुप से कम नहीं था। काफी दिनो के बाद उसके बापू को रेखा ने इस तरह देखा। रेखा ने अपने बापू की तरफ देखती हुयी बोली: वह माँ तो अभी अभी कोमल मौसी के वहाँ गई है । कुछ काम था बापू?

उसके बापू उसे ही घुरे जा रहे थे। रेखा ने अभी तक रात की पहनी हुई नाईटी पहन रखी थी। घर के माहोल में रेखा और उसकी माँ राधा नाईटी पहने हुई ही ज्यादतर रहती थी। जिसके अन्दर दोनों कुछ भी नहीं पहना करती। ना ब्रा ना पेन्टि व क्च्छा।

बापू: तू कब जानेवाली है?

रेखा: मैं! मैं बाद में चली जाऊँगी। आप कब जाओगे बापू?

बापू: मैं तो शाम को ही जाऊँगा। वैसे तू अभी शीतल को देख के आ सकती थी।

रेखा: बस बापू मैं जाने ही लग रही थी।

बापू: अच्छा। रेखा!! यह बोलते हुए राकेश रेखा के कमरे के अन्दर आ जाता है।

"मुझे तेरे साथ कुछ बात करनी थी, कल सुबह वैसे भी मैं शहर चला जाऊँगा।"
राकेश रेखा के पलंग पर बैठ जाता है । रेखा उसके सामने खड़ी थी।

रेखा: हाँ बोलो बापू" रेखा की धड़कन जोरो से बजने लगती है।

राकेश उसे पकड़ कर अपने पास बिठा लेता है। राकेश के छूते ही रेखा के शरीर में एक लहर सी दौड़ जाती है। वह अपने बापू को देखती रहती है।

बापू: तुझे पता है, जब मैं पहली बार शहर गया था उस वक्त तू छोटी सी थी। मैं उधर काम में बिजी रहा और तू यहाँ जवान होती गई। और आज मेरी बेटी इतनी खुबसूरत हो गई है की अच्छे अच्छे लौंडों का भी दिमाग़ खराब हो जाये।

रेखा अपने बापू के एक हाथ के बन्धन में फंसी हुई थी। उसे अपने बापू से छूटने की कोई जल्दी नहीं थी। वह बोली:: वैसे आप भी तो शहर में जा कर पहले से कितना हेंड्सम हो गए।

राकेश ने रेखा का चेहरा उठा कर अपनी तरफ करके उसकी आंखों में देख कर कहा: मुझे तो मेरी बेटी बहुत पसंद है। मैं तुझ बहुत प्यार करता हूँ। क्या तू भी मुझे प्यार करती है?

रेखा: हाँ बापू। मैं भी आप से सच्चे मन से प्यार करती हूँ।

राकेश: हाँ रेखा मेरी बच्ची। मुझे पता है। हम दोनो ही एक दूसरे को प्यार करते हैं। वैसे मैं तुझ से पूछना चाहता हूँ क्या तू मेरे साथ शहर जायेगी?

रेखा अपने बापू से इस तरह लिपटे अन्दर ही अन्दर सट्पटाने लगती है। वह सिवाय इस के और कुछ ना बोल सकी "हाँ बापू जाऊँगी"

राकेश ने रेखा का जवाब सुन्के रेखा के गाल पर एक चुम्मा दे देता है। रेखा अपना चेहरा नीचे झुका लेती है।

राकेश: मेरे दिल में यह अरमान बहुत पहले से है। जब तू छोटी सी थी। तुझे पता है मैं तुझे चिड़हाया करता था।

रेखा: हाँ बापू मुझे याद है। माँ कभी कभी बोलती थी जब मेरी रेखा बिटिया बड़ी हो जायेगी तो खुब धूमधाम से इसकी शादी करवाउँगी। उस वक्त आप बोलते थे, "क्यों मेरी बेटी है। मैं उसे अपनी दुल्हन बनाऊँगा।"

राकेश: हाँ। रेखा मैं तुझे यही बोलता था। और आज जब तू बड़ी हो गई है मैं तुझ से पूछना चाहता हुँ "क्या तू मेरे साथ शहर जायेगी? वहाँ जाके मेरी दुल्हन बन कर रहेगी? बोल रेखा!"

रेखा ने अपना चेहरा अपने बापू के सीने में छुपा लिया।

रेखा: हाँ बापू मैं बनूँगी तुम्हारी दुल्हन। और दुल्हन बन कर तुम्हारे साथ शहर जाऊँगी।

राकेश ने रेखा को अपनी बाहों नें भर लिया।: : अब तो मेरा दोस्त कमल भी अपनी बेटी शीतल से शादी कर रहा है। मैं भी जल्द ही तुझे अपनी दुल्हन बना कर शहर ले चलूंगा। दोनो बाप-बेटी एक दूसरे को बाहों में भर के प्यार में मगन हो जाते हैं। राकेश अपनी बेटी को बाहों में भर के उसके कंधे को चूमने लगता है। उसे एहसास हो जाता है की रेखा ने अपने अन्दर कुछ भी नहीं पहना। जिससे उसके हाथ का स्पर्श पूरी तरह से रेखा के शरीर को छू रहा था। वह अपनी बेटी के शरीर की बनावट को मह्सुस करता हुया उसके होंट चूमने लगता है। रेखा भी अपने बापू का पुरा साथ देती है। दोनो के अन्दर धीरे धीरे एक भुके आग की चिंगारी फूटने लगती है।

रेखा: बापू आप जितनी जल्दी हो सके मुझे यहां से शहर ले चलो। शीतल की शादी हो जाने के बाद मैं भी तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊँगी।

राकेश: मैं भी रेखा। मैं ने तेरी माँ को भी बता दिया है की मैं तुझे ले जाऊँगा।

रेखा: बापू आप ने सोचा हमारे शहर जाने के बाद माँ किस तरह रहेगी!

राकेश: हाँ रेखा! मैं ने इस बारे में भी सोचा। मैं तेरी माँ को पूरी छुट दे रखी थी। की वह जिसे चाहे अपने साथ करवा सकती है। लेकिन पता नहीं क्योंलेकिन पता नहीं क्यों वह मानती ही नहीं।

रेखा: बापू अगर मेरी और तुम्हारी तरह माँ और भईया भी एक हो जाये तो कितना अच्छा होता बोलो।।

राकेश: हाँ रे। यह तो सही है। अगर तेरी माँ रघु को अपना ले फिर तेरी माँ को कोई दुख नहीं होगा।

रेखा: हाँ बापू। मुझे लगता है, जब तक आप उन्के पति बनके सामने रहेंगे तब तक वह कुछ करेगी नहीं। अगर एक बार आप के साथ उनका तलाक हो जाये फिर वह जिसे मर्जी अपना जीवन साथी चुन सकती है। हो सके तो भाई को भी।।

राकेश: एसा तो मैं ने भी सोचा है जब तू पूरी तरह से मेरी दुलहन बन जायेगी तब मैं तेरी माँ से तलाक करवा लूँगा।

रेखा: लेकिन बापू क्या यह सही नहीं रहेगा की आप पहले ही उन्हें तलाक दे दो। फिर हमारी शादी हो। फिर वह भी अजाद हो जायेगी सारे बन्धन से। और अपना फैसला करने में उन्हे आसानी होगी।

राकेश: ठीक है। तू जो कह रही है मैं वही करूँगा। आखिर अब तो तू ही मेरी दुलहन है। यह बोलके फिर से दोनो एक दूसरे से लिपट जाते हैं।
 
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Napster

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बहोत ही शानदार अपडेट है भाई मजा आ गया
अगले अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी
जल्दी से दिजिएगा
 

Lucky-the-racer

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एकेली रेखा घर पे

रेखा का दिल जोरो से धडक रहा था। पता नहीं उसका बापू उससे क्या कहेगा! वह अपने कमरे में एक कोने से दूसरे कोने तक टेंशन के मारे चल फिरने लगी। लेकिन उसके दिल की धड़कन रफ्ता रफ्ता बढ ही रहा था की पीछे से अचानक उसके बापू की आवाज उसके कान में गुंजने लगी।

बापू: रेखा तेरी माँ कहीं दिखाई नहीं दे रही?

रेखा अपने बापू को देखती है जो दरवाजे के सामने बनयान व धोती में खड़ा था। हाफ बनयान में उसके बापू का शरीर एक नौजवान मर्द से किसी भी रुप से कम नहीं था। काफी दिनो के बाद उसके बापू को रेखा ने इस तरह देखा। रेखा ने अपने बापू की तरफ देखती हुयी बोली: वह माँ तो अभी अभी कोमल मौसी के वहाँ गई है । कुछ काम था बापू?

उसके बापू उसे ही घुरे जा रहे थे। रेखा ने अभी तक रात की पहनी हुई नाईटी पहन रखी थी। घर के माहोल में रेखा और उसकी माँ राधा नाईटी पहने हुई ही ज्यादतर रहती थी। जिसके अन्दर दोनों कुछ भी नहीं पहना करती। ना ब्रा ना पेन्टि व क्च्छा।

बापू: तू कब जानेवाली है?

रेखा: मैं! मैं बाद में चली जाऊँगी। आप कब जाओगे बापू?

बापू: मैं तो शाम को ही जाऊँगा। वैसे तू अभी शीतल को देख के आ सकती थी।

रेखा: बस बापू मैं जाने ही लग रही थी।

बापू: अच्छा। रेखा!! यह बोलते हुए राकेश रेखा के कमरे के अन्दर आ जाता है।

"मुझे तेरे साथ कुछ बात करनी थी, कल सुबह वैसे भी मैं शहर चला जाऊँगा।"
राकेश रेखा के पलंग पर बैठ जाता है । रेखा उसके सामने खड़ी थी।

रेखा: हाँ बोलो बापू" रेखा की धड़कन जोरो से बजने लगती है।

राकेश उसे पकड़ कर अपने पास बिठा लेता है। राकेश के छूते ही रेखा के शरीर में एक लहर सी दौड़ जाती है। वह अपने बापू को देखती रहती है।

बापू: तुझे पता है, जब मैं पहली बार शहर गया था उस वक्त तू छोटी सी थी। मैं उधर काम में बिजी रहा और तू यहाँ जवान होती गई। और आज मेरी बेटी इतनी खुबसूरत हो गई है की अच्छे अच्छे लौंडों का भी दिमाग़ खराब हो जाये।

रेखा अपने बापू के एक हाथ के बन्धन में फंसी हुई थी। उसे अपने बापू से छूटने की कोई जल्दी नहीं थी। वह बोली:: वैसे आप भी तो शहर में जा कर पहले से कितना हेंड्सम हो गए।

राकेश ने रेखा का चेहरा उठा कर अपनी तरफ करके उसकी आंखों में देख कर कहा: मुझे तो मेरी बेटी बहुत पसंद है। मैं तुझ बहुत प्यार करता हूँ। क्या तू भी मुझे प्यार करती है?

रेखा: हाँ बापू। मैं भी आप से सच्चे मन से प्यार करती हूँ।

राकेश: हाँ रेखा मेरी बच्ची। मुझे पता है। हम दोनो ही एक दूसरे को प्यार करते हैं। वैसे मैं तुझ से पूछना चाहता हूँ क्या तू मेरे साथ शहर जायेगी?

रेखा अपने बापू से इस तरह लिपटे अन्दर ही अन्दर सट्पटाने लगती है। वह सिवाय इस के और कुछ ना बोल सकी "हाँ बापू जाऊँगी"

राकेश ने रेखा का जवाब सुन्के रेखा के गाल पर एक चुम्मा दे देता है। रेखा अपना चेहरा नीचे झुका लेती है।

राकेश: मेरे दिल में यह अरमान बहुत पहले से है। जब तू छोटी सी थी। तुझे पता है मैं तुझे चिड़हाया करता था।

रेखा: हाँ बापू मुझे याद है। माँ कभी कभी बोलती थी जब मेरी रेखा बिटिया बड़ी हो जायेगी तो खुब धूमधाम से इसकी शादी करवाउँगी। उस वक्त आप बोलते थे, "क्यों मेरी बेटी है। मैं उसे अपनी दुल्हन बनाऊँगा।"

राकेश: हाँ। रेखा मैं तुझे यही बोलता था। और आज जब तू बड़ी हो गई है मैं तुझ से पूछना चाहता हुँ "क्या तू मेरे साथ शहर जायेगी? वहाँ जाके मेरी दुल्हन बन कर रहेगी? बोल रेखा!"

रेखा ने अपना चेहरा अपने बापू के सीने में छुपा लिया।

रेखा: हाँ बापू मैं बनूँगी तुम्हारी दुल्हन। और दुल्हन बन कर तुम्हारे साथ शहर जाऊँगी।

राकेश ने रेखा को अपनी बाहों नें भर लिया।: : अब तो मेरा दोस्त कमल भी अपनी बेटी शीतल से शादी कर रहा है। मैं भी जल्द ही तुझे अपनी दुल्हन बना कर शहर ले चलूंगा। दोनो बाप-बेटी एक दूसरे को बाहों में भर के प्यार में मगन हो जाते हैं। राकेश अपनी बेटी को बाहों में भर के उसके कंधे को चूमने लगता है। उसे एहसास हो जाता है की रेखा ने अपने अन्दर कुछ भी नहीं पहना। जिससे उसके हाथ का स्पर्श पूरी तरह से रेखा के शरीर को छू रहा था। वह अपनी बेटी के शरीर की बनावट को मह्सुस करता हुया उसके होंट चूमने लगता है। रेखा भी अपने बापू का पुरा साथ देती है। दोनो के अन्दर धीरे धीरे एक भुके आग की चिंगारी फूटने लगती है।

रेखा: बापू आप जितनी जल्दी हो सके मुझे यहां से शहर ले चलो। शीतल की शादी हो जाने के बाद मैं भी तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊँगी।

राकेश: मैं भी रेखा। मैं ने तेरी माँ को भी बता दिया है की मैं तुझे ले जाऊँगा।

रेखा: बापू आप ने सोचा हमारे शहर जाने के बाद माँ किस तरह रहेगी!

राकेश: हाँ रेखा! मैं ने इस बारे में भी सोचा। मैं तेरी माँ को पूरी छुट दे रखी थी। की वह जिसे चाहे अपने साथ करवा सकती है। लेकिन पता नहीं क्योंलेकिन पता नहीं क्यों वह मानती ही नहीं।

रेखा: बापू अगर मेरी और तुम्हारी तरह माँ और भईया भी एक हो जाये तो कितना अच्छा होता बोलो।।

राकेश: हाँ रे। यह तो सही है। अगर तेरी माँ रघु को अपना ले फिर तेरी माँ को कोई दुख नहीं होगा।

रेखा: हाँ बापू। मुझे लगता है, जब तक आप उन्के पति बनके सामने रहेंगे तब तक वह कुछ करेगी नहीं। अगर एक बार आप के साथ उनका तलाक हो जाये फिर वह जिसे मर्जी अपना जीवन साथी चुन सकती है। हो सके तो भाई को भी।।

राकेश: एसा तो मैं ने भी सोचा है जब तू पूरी तरह से मेरी दुलहन बन जायेगी तब मैं तेरी माँ से तलाक करवा लूँगा।

रेखा: लेकिन बापू क्या यह सही नहीं रहेगा की आप पहले ही उन्हें तलाक दे दो। फिर हमारी शादी हो। फिर वह भी अजाद हो जायेगी सारे बन्धन से। और अपना फैसला करने में उन्हे आसानी होगी।

राकेश: ठीक है। तू जो कह रही है मैं वही करूँगा। आखिर अब तो तू ही मेरी दुलहन है। यह बोलके फिर से दोनो एक दूसरे से लिपट जाते हैं।
Awesome update hai👌👌👌👌👌👌
 
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