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Incest अपनी शादीशुदा बेटी को मां बनाया

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अपनी शादीशुदा बेटी को माँ बनाया
 

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भाग 1
नमस्कार साथियों मेरा नाम राजनाथ है और मैं आज आपको अपनी जिंदगी की कहानी बताने जा रहा हूं।

इस कहानी के मुख्य किरदार हैं पहले किरदार मेरी मां है जिनकी उम्र इस वक्त 75 साल है।

और इस कहानी का दूसरा किरदार मैं हूं मेरा नाम राजनाथ है और मेरी उम्र 55 साल है।

और तीसरा किरदार मेरी पत्नी थी जिसका स्वर्गवास हो चुका है वह अब इस दुनिया में नहीं है।

और इस कहानी का चौंथा और सबसे अहम किरदार मेरी इकलौती बेटी जिसका नाम आरती है।
और उसकी शादी हो चुकी है और उसकी उम्र अभी 26 साल है।

और पांचवा किरदार है अशोक जो मेरा दामाद और मेरी बेटी का पति भी है और उसकी उम्र 30 साल है।

और कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ेगी कुछ किरदार और भी आएंगे उनको आगे जाकर बताऊंगा।

अब आते हैं कहानी पर जैसे कि मैं आप लोगों को बताया कि मेरा नाम राजनाथ है और मैं एक गांव इलाके में रहता हूं और मैं उसे इलाके का सरपंच भी हूं इसलिए मेरा उसे एरिया में बहुत इज्जत और नाम भी है और मेरे घर में इस वक्त मैं और मेरी मां जो बूढी हो चुकी है और तीसरा मेरे घर का नौकर जिसका नाम रघु है जो कि मेरा दोस्त भी है।
और मेरा कोई बेटा नहीं है मेरा सिर्फ एक ही बेटी है आरती जिसकी शादी हो चुकी है और वह इस वक्त मेरे घर में आई हुई है क्योंकि उसके ससुराल में झगड़ा चल रहा है और झगड़ा का कारण यह है कि उसकी शादी को 6 साल हो चुके हैं और उसका कोई बच्चा नहीं है अभी तक इसलिए उसके साथ ससुर उसको ताना मारते रहते हैं और भला बुरा सुनाते रहते हैं कि इसमें कोई खराबी है इसलिए बच्चा नहीं हो रहा है।
तो आज मैं बाजार गया हुआ था घर का कुछ सामान लाने के लिए तो जैसे मैं बाजार से घर वापस आया

तो मेरी बेटी ने पूछा बाबूजी आप आ गए तो मैंने कहा हां बेटा आ गया बहुत प्यास लगी है जरा पानी लाना।

आरती- जी बाबू जी अभी लाई यह लीजिए पानी।

राजनाथ- बेटा दादी कहां गई बाबूजी दादी कहीं बाहर गई है घूमने के लिए अच्छा ठीक है बेटा आज गर्मी बहुत है मैं नहाने जा रहा हूं मेरा कपड़ा और साबुन लाकर देना तो।

आरती- जी बाबूजी तब तक आप नल के पास चलिए मैं आपके कपड़े लेकर आती हूं।
फिर मैं नल पर जाकर नहाने लगा और उसके बाद मेरी बेटी मेरे कपड़े लेकर आई और वह बोली पापा आप नहा कर आईए तब तक मैं खाना बनाती हूं
फिर मैंने कहा ठीक है बेटा तू जा जाकर खाना बना

फिर मैं जब नहा कर आया तब तक मेरी मां भी बाहर से आ चुकी थी और वह आंगन में बैठी हुई थी और वह मुझे देखकर बोली बेटा राजू तू आ गया वह मुझे राजनाथ नहीं बुलाती है वह मुझे राजू कह कर ही बुलाती है

फिर मैंने कहा मां मैं तो कब से आया हूं तू कहां गई थी।

फिर मेरी मां ने कहा बेटा मैं शंकर के घर गया हुआ था उसकी बेटी का बच्चा हुआ है ना उसे देखने के लिए।
फिर मैंने कहा कि शंकर की बेटी को जिसका अगले साल शादी हुआ था।

मेरी मां हां हां उसी का लड़का हुआ है।

आगे की कहानी अगले भाग में।
 

Premkumar65

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भाग 1
नमस्कार साथियों मेरा नाम राजनाथ है और मैं आज आपको अपनी जिंदगी की कहानी बताने जा रहा हूं।

इस कहानी के मुख्य किरदार हैं पहले किरदार मेरी मां है जिनकी उम्र इस वक्त 75 साल है।

और इस कहानी का दूसरा किरदार मैं हूं मेरा नाम राजनाथ है और मेरी उम्र 55 साल है।

और तीसरा किरदार मेरी पत्नी थी जिसका स्वर्गवास हो चुका है वह अब इस दुनिया में नहीं है।

और इस कहानी का चौंथा और सबसे अहम किरदार मेरी इकलौती बेटी जिसका नाम आरती है।
और उसकी शादी हो चुकी है और उसकी उम्र अभी 26 साल है।

और पांचवा किरदार है अशोक जो मेरा दामाद और मेरी बेटी का पति भी है और उसकी उम्र 30 साल है।

और कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ेगी कुछ किरदार और भी आएंगे उनको आगे जाकर बताऊंगा।

अब आते हैं कहानी पर जैसे कि मैं आप लोगों को बताया कि मेरा नाम राजनाथ है और मैं एक गांव इलाके में रहता हूं और मैं उसे इलाके का सरपंच भी हूं इसलिए मेरा उसे एरिया में बहुत इज्जत और नाम भी है और मेरे घर में इस वक्त मैं और मेरी मां जो बूढी हो चुकी है और तीसरा मेरे घर का नौकर जिसका नाम रघु है जो कि मेरा दोस्त भी है।
और मेरा कोई बेटा नहीं है मेरा सिर्फ एक ही बेटी है आरती जिसकी शादी हो चुकी है और वह इस वक्त मेरे घर में आई हुई है क्योंकि उसके ससुराल में झगड़ा चल रहा है और झगड़ा का कारण यह है कि उसकी शादी को 6 साल हो चुके हैं और उसका कोई बच्चा नहीं है अभी तक इसलिए उसके साथ ससुर उसको ताना मारते रहते हैं और भला बुरा सुनाते रहते हैं कि इसमें कोई खराबी है इसलिए बच्चा नहीं हो रहा है।
तो आज मैं बाजार गया हुआ था घर का कुछ सामान लाने के लिए तो जैसे मैं बाजार से घर वापस आया

तो मेरी बेटी ने पूछा बाबूजी आप आ गए तो मैंने कहा हां बेटा आ गया बहुत प्यास लगी है जरा पानी लाना।

आरती- जी बाबू जी अभी लाई यह लीजिए पानी।

राजनाथ- बेटा दादी कहां गई बाबूजी दादी कहीं बाहर गई है घूमने के लिए अच्छा ठीक है बेटा आज गर्मी बहुत है मैं नहाने जा रहा हूं मेरा कपड़ा और साबुन लाकर देना तो।

आरती- जी बाबूजी तब तक आप नल के पास चलिए मैं आपके कपड़े लेकर आती हूं।
फिर मैं नल पर जाकर नहाने लगा और उसके बाद मेरी बेटी मेरे कपड़े लेकर आई और वह बोली पापा आप नहा कर आईए तब तक मैं खाना बनाती हूं
फिर मैंने कहा ठीक है बेटा तू जा जाकर खाना बना

फिर मैं जब नहा कर आया तब तक मेरी मां भी बाहर से आ चुकी थी और वह आंगन में बैठी हुई थी और वह मुझे देखकर बोली बेटा राजू तू आ गया वह मुझे राजनाथ नहीं बुलाती है वह मुझे राजू कह कर ही बुलाती है

फिर मैंने कहा मां मैं तो कब से आया हूं तू कहां गई थी।

फिर मेरी मां ने कहा बेटा मैं शंकर के घर गया हुआ था उसकी बेटी का बच्चा हुआ है ना उसे देखने के लिए।
फिर मैंने कहा कि शंकर की बेटी को जिसका अगले साल शादी हुआ था।

मेरी मां हां हां उसी का लड़का हुआ है।

आगे की कहानी अगले भाग में।
Bahut achhe se likh rahe ho.
 

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भाग 2
अभी तक आप लोगों ने पढ़ा कि राजनाथ की मां आपने पड़ोसी के घर गई थी जिसका नाम शंकर है उसकी बेटी का बच्चा हुआ था उसको देखने के लिए

और जब वह वापस अपने घर आई तो उसके दिमाग में यही चल रहा था कि सभी के बच्चे हो रहे हैं लेकिन उसकी पोती आरती को बच्चा नहीं हो रहा है।

यही सब सोंचते हुए उसने अपने बेटे राजनाथ से बोली बेटा राजू कुछ सोचा है इसके बारे में कि सिर्फ अपने काम में ही लगा रहेगा या इसके बारे में भी कुछ सोचेगा।

राजनाथ-- किसके बारे में क्या सोचा है मां।

राजनाथ की मां अरे अपनी आरती के बारे में और किसके बारे में तुझे कुछ होश है उसकी शादी को इतना साल हो गया और अभी तक उसकी गोद नहीं भरा है उसको कहीं जाकर दिखाएगा या ऐसे ही छोड़ देगा उसको।

राजनाथ-- ठीक है मां मैं दामाद जी से बोलता हूं कहीं जाकर इलाज कराने के लिए और समधी जी से भी बोलता हूं कि वह भी दामाद जी से कहे की आरती को यहां से ले जाए और इलाज करवाए।

राजनाथ की मां अरे उनको क्या बोलेगा उनको इतनी फिक्र होती तो वह आरती को यहां लाकर नहीं छोड़ देते अब तक कहीं ना कहीं जाकर दिखाए होते उनको तो बस पोता और पोती से मतलब है।

इसलिए अब तुमको ही कुछ करना पड़ेगा अब तुम इसको अपने जाकर दिखाओ।

राजनाथ-- ठीक है मां मैं कोई अच्छा सा डॉक्टर पता लगाता हूं उसके बाद मै इसको ले जाकर दिखाऊंगा।

राजनाथ की मां अरे डॉक्टर के पास काहे के लिए लेकर जाएगा डॉक्टर कुछ नहीं करेगा वह खाली पैसा लूटेगा मैं जहां कहती हूं वहां इसको लेकर जाओ काली पहाड़ी के पीछे एक बाबा रहते हैं और वह इन सब का बहुत बढ़िया इलाज करते हैं इसलिए तुम भी आरती को वहीं लेकर जाओ।

राजनाथ-- नहीं मां ऐसी कोई बात नहीं आजकल बहुत सारे -अच्छे अच्छे डॉक्टर हैं जो बढ़िया से इलाज करते हैं इसलिए एक बार कोई अच्छी लेडिस डॉक्टर के पास चेकअप करवा कर देख लेता हूं कि वह कुछ बताता है कि नहीं बताता है तो ठीक है अगर नहीं बताया तो तुम जहां कह रही हो जो बाबा के पास फिर वही लेकर जाऊंगा।

राजनाथ की मां ठीक है जैसे तुम्हारी मर्जी अगर तुमको डॉक्टर के पास जाकर तसल्ली करना है तो जाकर देख ले।

और आरती यह सब बात दरवाजे के पीछे से खड़ी होकर सब सुन रही थी।
और वह लोग आंगन में बैठकर बातें कर रहे थे फिर उसकी दादी ने आवाज लगाई आरती आरती

उधर दरवाजे के पीछे से आरती ने आवाज दी जी दादी अभी आई फिर वह शरमाते हुए अपने बाबूजी और दादी के पास जाकर खड़ी हो गई और बोली हां दादी क्या हुआ फिर दादी ने कहा बेटा खाना बन गया

आरती हां दादी खाना बन गया अभी लेकर आती हूं फिर सभी लोगों ने खाना खाया और खाना खाने के बाद राजनाथ अपने कमरे में सोने चला गया और आरती और दादी दोनों एक ही कमरे में सोती थी तो आरती अपनी दादी की पैर दबा रही थी तो फिर उसकी दादी ने कहा तुम्हारा बाबूजी भी इधर-उधर घूमते फिरते थक जाता है उसको भी जाकर पैर हाथ थोड़ा दबा दे जब से तुम्हारी मां गई है उसे बेचारे को देखभाल करने वाला कोई नहीं है।

आरती अपनी दादी की बात सुनकर शर्मा रही थी और सोच रही थी कि कैसे वह अपने बापू के पैर जाकर दबा आएगी क्योंकि आज तक उसने कभी ऐसा नहीं किया था इसलिए उसे शर्म आ रही थी और वह चुपचाप अपनी दादी की पैर दबा रही थी तो फिर उसकी दादी ने कहा अरे मेरा पैर को छोड़ और जा अपने बाप का पैर थोड़ा दबा दे उसकी थकान मिट जाएगी।

फिर वह ना चाहते हुए भी अपने बाप के कमरे में जाने लगी और दरवाजे के पास जाकर उसने धीरे से आवाज दी बाबूजी सो गए क्या अंदर से उसके बाप ने आवाज दी के आरती जी बापू जी क्या बात है बेटा आओ अंदर आओ खुला है फिर वह अंदर गई तो उसके बाप ने पूछा क्या बात है कोई काम है क्या।

फिर आरती ने कहा कि जी आपका पैर दबा दूं क्या।

तो राजनाथ ने चैंकते हुए पूछा क्यों क्या हुआ मेरे पैर को।

तो फिर आरती ने कहा कि जि वो दादी कह रही थी कि आप थक गए होंगे इसलिए बोल रही थी जा जाकर पैर दबा दे।

फिर राजनाथ ने कहा कि क्या दादी ने ऐसा करने के लिए कहा तो फिर आरती ने कहा कि जी दादी ने हीं बोला है।

फिर राजनाथ ने बोला कि ठीक है जाओ जाकर तुम सो जाओ और दादी को बोल देना कि मैंने मना किया

फिर आरती ने कुछ देर सोचने के बाद बोली कि मैं वापस जाऊंगी फिर मुझे दादी डांटेगी और बोलेगी कि मैंने जो तुमको करने के लिए बोली वह बिना किए हुए वापस आ गई ।

फिर राजनाथ ने कहा कि क्या सच में तू मेरा पैर दबाना चाहती है।

तो आरती ने कहा कि जी हां

तो फिर राजनाथ ने कहा ठीक है हल्का-हल्का दबा दे फिर वह सीधा होकर लेट गया और आरती पलंग के साइड में झुक कर खड़ी हो गई और पैर दबाने लगी और राजनाथ को भी अपनी बेटी से पहली बार पैर दबाते हुए हैं बहुत ही आनंद आ रहा था और कुछ देर इसी तरह आनंद लेने के बाद उसने कहा कि बेटा अब हो गया अब रहने दे और तू जाकर आराम कर फिर आरती वहां से चली गई और वह दादी के पास जाकर सो गई और अपने बापू के बारे में सोचने लगी कि मेरे बाबूजी इस उम्र में भी कितने मजबूत है क्योंकि आरती का पति एक दुबला पतला और ढीला डाला इंसान है इसलिए जब आज उसे अपने बाप का पैर हाथ दबाने को मिला तो उसे समझ में आया कि एक
असली मर्द कैसा होता है। और यह सब सोचते सोचते उससे भी नींद आ गई।

आगे की कहानी अगले भाग में
 

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भाग 3

आरति सुबह उठकर अपने घर का काम करने लगी और राजनाथ भी सुबह उठकर कहीं घूमने के लिए चला गया फिर दोपहर को घर आया तो आरती ने पूछा बाबूजी आप आ गए खाना लगा दूं आपके लिए।

तो राजनाथ ने कहा हां बेटा खाना लगाओ तब तक मैं पैर हांथ धो कर आता हूं।

आरती ठीक है बाबूजी आप पैर हांथ धोकर आईए मैं खाना लगती हूं।

उसके बाद राजनाथ पैर हांथ धो कर आया और नीचे चटाई बिछाया हुआ था उसी पर बैठ गया फिर आरती ने थाली में खाना ला कर दिया और वह खाने लगा।

और आरती वही साइड में खड़ी होकर देख रही थी फिर राजनाथ ने खाना खाते-खाते उसने आरती से कहा बेटा आरती।

तो आरती ने कहा जी बाबूजी।

फिर राजनाथ ने कहा बेटा मैं एक डॉक्टर पता लगा कर आया हूँ जिस किसी को भी बच्चा नहीं होता उसका वह इलाज करता है इसलिए कल सुबह तुम जल्दी से तैयार हो जाना मैं तुमको लेकर जाऊंगा उसके पास।

फिर आरती ने पूछा बाबूजी कितना सुबह जाना है फिर हमको खाना भी तो बनाना पड़ेगा।

तो राजनाथ ने कहा हां तुम सुबह खाना-वाना बना लेना फिर उसके बाद नहा वहां के रेडी होना उसके बाद हम लोग 10:00 बजे के करीब यहां से निकलेंगे।

फिर आरती ने कहा ठीक है कल सुबह मैं जल्दी उठूंगी और घर का सभी काम खत्म करके खाना-वाना बनाकर फ्री हो जाऊंगी।

फिर राजनाथ ने पूछा दादी कहां है तो आरती ने कहा कि दादी खाना- खाकर अपने कमरे आराम कर रही है।

फिर राजनाथ ने आरती से पूछा कि तुमने खाना खाया तो आरती ने जवाब दिया कि नहीं आपको खाने के बाद खाऊंगी।

फिर राजनाथ ने कहा मेरा तो खाना हो गया अब तू जा जल्दी से खाना खा ले और तू मेरा इंतजार मत किया कर मेरा आने में कभी-कभी देर भी हो सकती है इसलिए तू अपने टाइम पर खाना खा लिया कर।

तो फिर आरती ने जवाब दिया कि मैं आपके खाए बगैर मै कैसे खा सकती हूँ।

तो फिर राजनाथ ने कहा क्यों क्यों नहीं खा सकती।
तो फिर आरती ने जवाब दिया कि आप भूखे रहेंगे और मैं खा लूंगी।

तो फिर राजा नाथ ने कहा कि यह तुम कौन से जमाने की बात कर रही है यह बहुत पहले हुआ करता था कि घर की औरतें भूखी रहती थी कि जब तक उसका मर्द नहीं खाएगा तब तक वह नहीं खायेगी और वैसे भी मैं तुम्हारा पति नहीं मैं तुम्हारा बाप हूँ तो तू मेरे लिए क्यों भूखी रहेगी।

तो फिर आरती में जवाब दिया क्या आप मेरे पति नहीं है तो क्या हुआ आप मेरे पिताजी तो हैं और वैसे भी एक लड़की की जिंदगी में उसका पति बाद में आता है पहले तो उसका पिता ही रहता है।

फिर राजनाथ ने मुस्कुराते का ठीक है ठीक है मैं तुमसे जीत नहीं सकता अब मेरा खाना हो गया और तू भी जाकर अब जल्दी से खा ले और मैं भी थोड़ा आराम कर लेता हूं।

फिर राजनाथ वहां से उठकर चला गया और फिर आरती ने भी खाना खाया और फिर इसी तरह पूरा दिन बीत गया।

फिर शाम को आरती ने खाना बनाया और सभी लोगों ने खाना खाया और खाना खाने के बाद राजनाथ अपने रूम में सोने चला गया फिर आरती ने भी अपना घर का काम थोड़ा बहुत था उसे खत्म कर के वह भी सोने गई तो उसने देखा की दादी सो चुकी है फिर वह भी सोने जा रही थी कि तभी उसको याद आया कि कल उसने अपने बापू का पैर दबाया था और वह सोचने लगी कीआज भी जाकर दबा दूँ क्या और मैं उनके पास जाऊंगी तो वह पूछेंगे की दादी ने भेजा है क्या तो मैं क्या जवाब दूंगी दादी तो चुकी है।


फिर कुछ देर सोचने के बाद अपने कमरे से निकल कर अपने बापू की कमरे की तरफ जाने लगी और दरवाजे के पास जाने के बाद उसने धीरे से आवाज लगाई बाबूजी बाबूजी सो गए क्या ।

अंदर राजनाथ भी यही सब सोच रहा था कि आज आरती पैर दबाने के लिए आएगी कि नहीं आएगी तभी उसके कान में आरती की आवाज पड़ी और उसने जवाब दिया की के आरती दरवाजा खुला है अंदर आजाओ फिर आरती अंदर आई तो फिर उसने पूछा कि क्या बात है कोई काम है क्या।

फिर आरती ने मजाकिया अंदाज में कहा क्यों कोई काम रहेगा तभी आ आऊंगी ऐसी नहीं आ सकती क्या।

तो फिर राजनाथ ने कहा की अरे नहीं बेटा मैंने ऐसा कब कहा कि तू ऐसे नहीं आ सकती मैंने तो इसलिए पूछा कि अभी सोने का टाइम हो चुका और तू यहां आई है तो कोई तो काम होगा।

तो फिर आरती ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया कि मेरा कुछ काम नहीं है आप थक गए होंगे इसलिए आपका पैर दबाने के लिए आई हूँ।

तो फिर राजनाथ ने भी मुस्कुराते हुए कहा अच्छा अच्छा तो आज दादी ने फिर तुमको यहाँ भेज दिया।

तो आरती ने जवाब दिया की मुझे दादी ने नहीं भेजा है मैं अपने से आई हूँ दादी सो चुकी हैं।

तो फिर राजनाथ ने कहा कि क्या दादी सो गई है तो फिर तुम यहां क्यों आई हो तुम भी सो जाति आराम से।

तो फिर आरती ने कहा हां मैं भी सोने जा रही थी फिर मुझे याद आया कि आप थक गए होंगे तो थोड़ा आपका पैर हांथ दबा दूंगी तो आपको आराम मिलेगा।

फिर राजनाथ ने कहा तू मेरा इस तरह से रोज-रोज पैर हाथ दबाओगी और फिर मुझे आदत लग जाएगा और तू यहां से चली जाएगी तो फिर मैं क्या करूंगा।

फिर आरती ने कहा कि आप फिकर मत कीजिए मैं यहां से कहीं नहीं जा रही हूं।

आगे की कहानी अगले भाग में।
 
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