Thanks for appreciating Milflover bhai..... update posted.Beautiful built up of story
Keep the momentum. Larger updates will serve the story better. It is my humble request don't feel other way.
Thanks for appreciating Milflover bhai..... update posted.Beautiful built up of story
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Thanks Nevil bhai.... update posted.Waiting bhai
Thanks Kingfisher bhai.... Update posted.Waiting for another fabulous update sanju bhai
थैंक्यू भाई । अपडेट पोस्ट कर दिया है ।कहां चले गए संजू भाई? थोड़ा समय निकालने की कोशिश करिए।
Ha ha ha....likh bhi liya aur post bhi ho gaya.Sanju bhaiya ji next update likhne me busy hain,,,,
Gajab ka update bhaiअपडेट ६.
" अभी तुम दोनों क्या करने जा रहे थे ?"- एंथनी दोनों के कान और जोर से खींचता हुआ सहज भाव से बोला ।
" क.. कुछ.. कुछ नहीं , एंथनी !"- राक्षस जैसे लड़के का साथी बोला -" लेकिन यह साला हलकट..."
" साला ! हलकट ! "- एंथनी की भवें तनी -" मुझे तो यहां कोई साला , कोई हलकट नहीं दिखाई दे रहा है ! मुझे तो यहां सिर्फ यह साहब दिखाई दे रहे हैं ! क्या !"
" एंथोनी , ये साहब..."
" सोलंकी साहब ।"
" सोलंकी साहब । क्या ?"
" तुमने सोलंकी साहब के साथ जो बेअदबी की है उसके लिए साहब से माफी मांगो ।"
" लेकिन..."
" शायद ये तुम्हें माफ कर दें । बोलो , साॅरी , सोलंकी साहब ।"
" साॅरी , सोलंकी साहब ।"- दोनों एक साथ बोले ।
एंथोनी ने दोनों के कान छोड़ दिए ।
" उस छोकरे का नाम क्या है "- एंथनी अभी भी घुटनों में हाथ दबाये पीड़ा से बिलबिलाते राक्षस जैसे लड़के की ओर देखता बोला ।
" रघु ।"- लडके का साथी बोला ।
" इसे कहो छोकरी से माफी मांगे ।"
" क्या ?"- रघु चौंकते हुए बोला ।
" पांव पकड़ कर.... पांव पकड़ कर माफी मांगे ।"
" मैं किसी आइटम के पांव नहीं पकड़ने वाला "- रघु भुनभुनाया ।
एंथनी ने अकबर की तरफ देखा ।
अकबर रघु के करीब पहुंचा । उसने नीचे झुक कर अपने जुर्राब में खुंसा हुआ उस्तरा खिंच लिया । फिर उस्तरे को खोला और बड़े निर्विकार भाव से अपने बांये हाथ के अंगूठे पर उसकी धार चेक करने लगा ।
रघु का चेहरा पीला पड़ गया । उसने व्याकुल भाव से अपने साथियों की तरफ देखा ।
" एंथनी !"- उसका एक साथी यातनापूर्ण स्वर में बोला -" अब बिल्कुल ही तो हमारी इज्जत का जनाजा मत निकालो । कुछ तो ख्याल करो !"
" ठीक है ।"- एंथनी बड़ी दयानतदारी जताता बोला -" ख्याल करने का काम सोलंकी साहब पर छोड़ा । सोलंकी साहब चाहेंगे कि ये छोकरा रघु लड़की के पांव छुए तो यह छुएगा । सोलंकी साहब नहीं चाहेंगे तो यह नहीं छुएगा । सोलंकी साहब से पुछ इनकी क्या मर्जी है !"
तीनों लड़कों ने अमर की तरफ देखा ।
अमर ने नर्वस भाव से अपने होंठों पर जुबान फेरी । उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि एंथनी उसका कैसा इम्तिहान ले रहा है और उसे उस वक्त कौन सा रूख अख्तियार करना चाहिए था । उसने अकबर की तरफ देखा लेकिन अकबर ने उस्तरे पर से सिर नहीं उठाया । उसने एंथनी की तरफ देखा लेकिन वहां भी उसे कोई प्रोत्साहन नहीं मिला । उसने मोनिका की तरफ देखा ।
मोनिका उसके कान में कुछ फुसफुसाई ।
तुरंत अमर के चेहरे पर रौनक आई ।
" जाओ , तुम्हें माफ किया !"- अमर बोला -" लेकिन आइंदा ऐसी हरकत न करना ।"
तीनों की जान में जान आई ।
" साहब का शुक्रिया बोलो ।"- एंथनी बोला ।
सबने शुक्रिया बोला ।
" कट लो ।"
तीनों फौरन वहां से कट लिए ।
मोनिका अमर की बाहें पकड़े एक ओर चली गई ।
एंथनी बार पर अपने पसंदीदा स्थान पर पहुंचा । वहां बैठे लोग उसे आया देख दो दो स्टूल परे हट गए । दिया और शबनम तुरंत उसके दाएं बाएं पहुंच गई ।
माईकल ने फौरन उसे ड्रिंक सर्व किया ।"
" एंथनी "- शबनम उसकी एक बांह से झुलती बोली -" हमें गोवा कब ले चलोगे ?"
" तुमने पिछले हफ्ते का वादा किया था "- दिया उसकी दूसरी बांह से चिपकती बोली ।
" माईकल "- एंथनी बोला -" ये फुलझड़ी कौन है जो मेरे पर लाइन मार रही है ?"
माईकल ने उत्तर न दिया । वह जानता था उत्तर उससे अपेक्षित भी नहीं था ।
" ओह , एंथनी "- शबनम मुंह बिसूर कर बोली -" हमेशा इन्सल्ट करते रहते हो ।"
" तुने भी कुछ कहना होगा "- एंथनी दिया को घूरता बोला ।
" इतने लोगों के सामने तो हमारी इन्सल्ट न किया करो "- वह एक क्षण ठिठकी और फिर अपने वक्ष को उसकी बांह के साथ रगड़ती बड़े ही सेक्सी स्वर में बोली -" वैसे जो मर्जी किया करो ।"
गाॅड डैम यू , बिचिज !"- एंथनी कहर भरे स्वर में बोला -" मेरा नाम एंथनी डिसूजा है । एंथनी ने कब क्या करना होता है , यह उसे किसी लेग पीस ने नहीं बताना । दोबारा मुझे सलाह दी तो गला रेत दुंगा । गोवा जाना है तो जाना है , नहीं जाना है तो नहीं जाना है । फैसला मैं करूंगा । यह भी फैसला मैं करूंगा कि मैंने वहां एक को बांध कर ले जानी है या दो । क्या ?"
दोनों चुप रही ।
" अरे बोलो !"- एंथनी दहाड़ा -" क्या ?"
" ठीक है "- दोनों बोली ।
' अब बोलो क्या पियोगी ?"
तभी अमर मोनिका के साथ वहां पहुंचा ।
" मजा आया !"- एंथनी ने अमर से पूछा ।
" क्यों न मजा आता !"- मोनिका बोली -" देखा नहीं किसके साथ गया था !"
एंथनी का एक झन्नाटेदार झापड़ मोनिका के गाल पर पड़ा ।
मोनिका की गर्दन फिरकनी की तरह घुमी । उसकी आंखों में आसूं छलछला आए । हाल में सन्नाटा छा गया ।
अमर एकाएक एंथनी की तरफ झपटा लेकिन मोनिका उसके रास्ते में आ गई ।
" एंथनी जिससे सवाल करता है "- एंथनी दांत भींचकर फुंफकारा -" वही जबाव देता है । क्या ?"
मोनिका की आंखें अपमान से जल रही थी लेकिन वह जबरन मुस्कराई ।
" आजकल क्या रेट है तेरा ?"
मोनिका ने चार उंगलियां उठाई ।
एंथनी ने जेब से सौ की एक गड्डी उसके ब्लाउज में खोंस दिए ।
" यह तेरी अक्खा बाॅडी इस्तेमाल करने का प्राइस है । मैंने तो सिर्फ एक गाल इस्तेमाल किया । ठीक ?"
" ठीक ।"
" हिसाब बरोबर ।"
" बरोबर ।"
" कट ले ।"
मोनिका फौरन वहां से हट गई ।
" तुम दोनों "- एंथनी जिया और शबनम से बोला -" बाहर जाकर गाड़ी में बैठो ।"
" किधर जाने का है ?"- जिया बोली ।
एंथनी ने खूनी निगाहों से उसे देखा ।
जिया के सारे शरीर में सिहरन दौड़ गई । तभी शबनम ने उसकी बांह थामी और उसे बाहर को ले चली ।
" इधर आ , पप्पू ।"
अमर एंथनी के करीब पहुंचा ।
" अभी तु मेरे पर झपटने लगा था "- एंथनी धीमे किंतु बेहद हिंसक स्वर में बोला -" एक रण्डी के खातिर एंथनी पर झपटने लगा था ।"
" न... नहीं ।"- अमर हकलाया -" नहीं ।"
" आज दस मिनट में दो बार तुने मेरी उम्मीदों पर पानी फेरा ।"
" दो... दो बार ।"
" मैंने तो तुझे पप्पू से सोलंकी बनाया , तु अमरदीप भी बन कर न दिखा सका । जब जरूरत उन छोकरों को धूल चटाने की थी तो तुने उन्हें माफ कर दिया ।"
" वो अपनी करतूत से शर्मिंदा थे ।"
" बेवकूफ ! शर्मिंदा होना तो दूर की बात है , वो तो शर्मिन्दा लग भी नहीं रहे थे । उन्होंने साॅरी नहीं बोला था , तुझे बेवकूफ बनाया था । तु पप्पू ही रहा ।"
अमर खामोश रहा ।
" तु क्या समझता है मुझे इस बात की परवाह थी कि वो छोकरे उस नशे में चूर लड़की के साथ क्या करते थे ! मेरी बला से वो लड़की को यहां नंगी नचाते ।"
" तो... तो ?"
" वो लड़के नौजवान थे , राक्षसों जैसे विशाल और हट्टे कट्टे थे और दादा बनने की कोशिश में थे । पप्पू , यहां इज्जत और दबदबा किसी पिलपिलाए हुए कुत्ते की दुम उमेठने से नहीं बनता , जाबर पर , दादा पर जोर दिखाने से बनता है । वो तीनों मेरे से डबल थे , उनमें से जो चाहता , मेरी बोटी-बोटी नोच कर यहां छितरा देता । किसी की मजाल हुई ? नहीं हुई । लेकिन तु , जो उन्हीं के जैसा हट्टा कट्टा है , तेरे से भिड़ने की मजाल हुई उनकी । मै न पहुंच गया होता तो तु यहां के फर्श से अपने दांत बटोर रहा होता । मैंने तुझे पप्पू से अमरदीप सोलंकी बनने का मौका दिया जो कि तुने खो दिया । तु पिलपिला गया । तेरी हिम्मत नहीं हुई । बावजूद मेरे और अकबर के यहां होते तेरी हिम्मत नहीं हुई । तु पप्पू का पप्पू ही रहा ।
" एंथनी "- अमर खेद पूर्ण स्वर में बोला -" मुझे अफसोस है कि..."
" अरे , तुझे क्या अफसोस है । अफसोस तो मुझे है , पप्पू ।"
" वो... वो.."
" छोड़ । जा काम कर अपना । कल अड्डे पर आना ।"
अमर मन में कुछ मंसूबे बनाता वहां से निकल गया ।
Nice and awesome update...अपडेट ६.
" अभी तुम दोनों क्या करने जा रहे थे ?"- एंथनी दोनों के कान और जोर से खींचता हुआ सहज भाव से बोला ।
" क.. कुछ.. कुछ नहीं , एंथनी !"- राक्षस जैसे लड़के का साथी बोला -" लेकिन यह साला हलकट..."
" साला ! हलकट ! "- एंथनी की भवें तनी -" मुझे तो यहां कोई साला , कोई हलकट नहीं दिखाई दे रहा है ! मुझे तो यहां सिर्फ यह साहब दिखाई दे रहे हैं ! क्या !"
" एंथोनी , ये साहब..."
" सोलंकी साहब ।"
" सोलंकी साहब । क्या ?"
" तुमने सोलंकी साहब के साथ जो बेअदबी की है उसके लिए साहब से माफी मांगो ।"
" लेकिन..."
" शायद ये तुम्हें माफ कर दें । बोलो , साॅरी , सोलंकी साहब ।"
" साॅरी , सोलंकी साहब ।"- दोनों एक साथ बोले ।
एंथोनी ने दोनों के कान छोड़ दिए ।
" उस छोकरे का नाम क्या है "- एंथनी अभी भी घुटनों में हाथ दबाये पीड़ा से बिलबिलाते राक्षस जैसे लड़के की ओर देखता बोला ।
" रघु ।"- लडके का साथी बोला ।
" इसे कहो छोकरी से माफी मांगे ।"
" क्या ?"- रघु चौंकते हुए बोला ।
" पांव पकड़ कर.... पांव पकड़ कर माफी मांगे ।"
" मैं किसी आइटम के पांव नहीं पकड़ने वाला "- रघु भुनभुनाया ।
एंथनी ने अकबर की तरफ देखा ।
अकबर रघु के करीब पहुंचा । उसने नीचे झुक कर अपने जुर्राब में खुंसा हुआ उस्तरा खिंच लिया । फिर उस्तरे को खोला और बड़े निर्विकार भाव से अपने बांये हाथ के अंगूठे पर उसकी धार चेक करने लगा ।
रघु का चेहरा पीला पड़ गया । उसने व्याकुल भाव से अपने साथियों की तरफ देखा ।
" एंथनी !"- उसका एक साथी यातनापूर्ण स्वर में बोला -" अब बिल्कुल ही तो हमारी इज्जत का जनाजा मत निकालो । कुछ तो ख्याल करो !"
" ठीक है ।"- एंथनी बड़ी दयानतदारी जताता बोला -" ख्याल करने का काम सोलंकी साहब पर छोड़ा । सोलंकी साहब चाहेंगे कि ये छोकरा रघु लड़की के पांव छुए तो यह छुएगा । सोलंकी साहब नहीं चाहेंगे तो यह नहीं छुएगा । सोलंकी साहब से पुछ इनकी क्या मर्जी है !"
तीनों लड़कों ने अमर की तरफ देखा ।
अमर ने नर्वस भाव से अपने होंठों पर जुबान फेरी । उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि एंथनी उसका कैसा इम्तिहान ले रहा है और उसे उस वक्त कौन सा रूख अख्तियार करना चाहिए था । उसने अकबर की तरफ देखा लेकिन अकबर ने उस्तरे पर से सिर नहीं उठाया । उसने एंथनी की तरफ देखा लेकिन वहां भी उसे कोई प्रोत्साहन नहीं मिला । उसने मोनिका की तरफ देखा ।
मोनिका उसके कान में कुछ फुसफुसाई ।
तुरंत अमर के चेहरे पर रौनक आई ।
" जाओ , तुम्हें माफ किया !"- अमर बोला -" लेकिन आइंदा ऐसी हरकत न करना ।"
तीनों की जान में जान आई ।
" साहब का शुक्रिया बोलो ।"- एंथनी बोला ।
सबने शुक्रिया बोला ।
" कट लो ।"
तीनों फौरन वहां से कट लिए ।
मोनिका अमर की बाहें पकड़े एक ओर चली गई ।
एंथनी बार पर अपने पसंदीदा स्थान पर पहुंचा । वहां बैठे लोग उसे आया देख दो दो स्टूल परे हट गए । दिया और शबनम तुरंत उसके दाएं बाएं पहुंच गई ।
माईकल ने फौरन उसे ड्रिंक सर्व किया ।"
" एंथनी "- शबनम उसकी एक बांह से झुलती बोली -" हमें गोवा कब ले चलोगे ?"
" तुमने पिछले हफ्ते का वादा किया था "- दिया उसकी दूसरी बांह से चिपकती बोली ।
" माईकल "- एंथनी बोला -" ये फुलझड़ी कौन है जो मेरे पर लाइन मार रही है ?"
माईकल ने उत्तर न दिया । वह जानता था उत्तर उससे अपेक्षित भी नहीं था ।
" ओह , एंथनी "- शबनम मुंह बिसूर कर बोली -" हमेशा इन्सल्ट करते रहते हो ।"
" तुने भी कुछ कहना होगा "- एंथनी दिया को घूरता बोला ।
" इतने लोगों के सामने तो हमारी इन्सल्ट न किया करो "- वह एक क्षण ठिठकी और फिर अपने वक्ष को उसकी बांह के साथ रगड़ती बड़े ही सेक्सी स्वर में बोली -" वैसे जो मर्जी किया करो ।"
गाॅड डैम यू , बिचिज !"- एंथनी कहर भरे स्वर में बोला -" मेरा नाम एंथनी डिसूजा है । एंथनी ने कब क्या करना होता है , यह उसे किसी लेग पीस ने नहीं बताना । दोबारा मुझे सलाह दी तो गला रेत दुंगा । गोवा जाना है तो जाना है , नहीं जाना है तो नहीं जाना है । फैसला मैं करूंगा । यह भी फैसला मैं करूंगा कि मैंने वहां एक को बांध कर ले जानी है या दो । क्या ?"
दोनों चुप रही ।
" अरे बोलो !"- एंथनी दहाड़ा -" क्या ?"
" ठीक है "- दोनों बोली ।
' अब बोलो क्या पियोगी ?"
तभी अमर मोनिका के साथ वहां पहुंचा ।
" मजा आया !"- एंथनी ने अमर से पूछा ।
" क्यों न मजा आता !"- मोनिका बोली -" देखा नहीं किसके साथ गया था !"
एंथनी का एक झन्नाटेदार झापड़ मोनिका के गाल पर पड़ा ।
मोनिका की गर्दन फिरकनी की तरह घुमी । उसकी आंखों में आसूं छलछला आए । हाल में सन्नाटा छा गया ।
अमर एकाएक एंथनी की तरफ झपटा लेकिन मोनिका उसके रास्ते में आ गई ।
" एंथनी जिससे सवाल करता है "- एंथनी दांत भींचकर फुंफकारा -" वही जबाव देता है । क्या ?"
मोनिका की आंखें अपमान से जल रही थी लेकिन वह जबरन मुस्कराई ।
" आजकल क्या रेट है तेरा ?"
मोनिका ने चार उंगलियां उठाई ।
एंथनी ने जेब से सौ की एक गड्डी उसके ब्लाउज में खोंस दिए ।
" यह तेरी अक्खा बाॅडी इस्तेमाल करने का प्राइस है । मैंने तो सिर्फ एक गाल इस्तेमाल किया । ठीक ?"
" ठीक ।"
" हिसाब बरोबर ।"
" बरोबर ।"
" कट ले ।"
मोनिका फौरन वहां से हट गई ।
" तुम दोनों "- एंथनी जिया और शबनम से बोला -" बाहर जाकर गाड़ी में बैठो ।"
" किधर जाने का है ?"- जिया बोली ।
एंथनी ने खूनी निगाहों से उसे देखा ।
जिया के सारे शरीर में सिहरन दौड़ गई । तभी शबनम ने उसकी बांह थामी और उसे बाहर को ले चली ।
" इधर आ , पप्पू ।"
अमर एंथनी के करीब पहुंचा ।
" अभी तु मेरे पर झपटने लगा था "- एंथनी धीमे किंतु बेहद हिंसक स्वर में बोला -" एक रण्डी के खातिर एंथनी पर झपटने लगा था ।"
" न... नहीं ।"- अमर हकलाया -" नहीं ।"
" आज दस मिनट में दो बार तुने मेरी उम्मीदों पर पानी फेरा ।"
" दो... दो बार ।"
" मैंने तो तुझे पप्पू से सोलंकी बनाया , तु अमरदीप भी बन कर न दिखा सका । जब जरूरत उन छोकरों को धूल चटाने की थी तो तुने उन्हें माफ कर दिया ।"
" वो अपनी करतूत से शर्मिंदा थे ।"
" बेवकूफ ! शर्मिंदा होना तो दूर की बात है , वो तो शर्मिन्दा लग भी नहीं रहे थे । उन्होंने साॅरी नहीं बोला था , तुझे बेवकूफ बनाया था । तु पप्पू ही रहा ।"
अमर खामोश रहा ।
" तु क्या समझता है मुझे इस बात की परवाह थी कि वो छोकरे उस नशे में चूर लड़की के साथ क्या करते थे ! मेरी बला से वो लड़की को यहां नंगी नचाते ।"
" तो... तो ?"
" वो लड़के नौजवान थे , राक्षसों जैसे विशाल और हट्टे कट्टे थे और दादा बनने की कोशिश में थे । पप्पू , यहां इज्जत और दबदबा किसी पिलपिलाए हुए कुत्ते की दुम उमेठने से नहीं बनता , जाबर पर , दादा पर जोर दिखाने से बनता है । वो तीनों मेरे से डबल थे , उनमें से जो चाहता , मेरी बोटी-बोटी नोच कर यहां छितरा देता । किसी की मजाल हुई ? नहीं हुई । लेकिन तु , जो उन्हीं के जैसा हट्टा कट्टा है , तेरे से भिड़ने की मजाल हुई उनकी । मै न पहुंच गया होता तो तु यहां के फर्श से अपने दांत बटोर रहा होता । मैंने तुझे पप्पू से अमरदीप सोलंकी बनने का मौका दिया जो कि तुने खो दिया । तु पिलपिला गया । तेरी हिम्मत नहीं हुई । बावजूद मेरे और अकबर के यहां होते तेरी हिम्मत नहीं हुई । तु पप्पू का पप्पू ही रहा ।
" एंथनी "- अमर खेद पूर्ण स्वर में बोला -" मुझे अफसोस है कि..."
" अरे , तुझे क्या अफसोस है । अफसोस तो मुझे है , पप्पू ।"
" वो... वो.."
" छोड़ । जा काम कर अपना । कल अड्डे पर आना ।"
अमर मन में कुछ मंसूबे बनाता वहां से निकल गया ।
majedar update ..anthony ne un rakshak jaise ladko ki hawa tight kar di ,aur amar ko solanki sahab bana diya ..अपडेट ६.
" अभी तुम दोनों क्या करने जा रहे थे ?"- एंथनी दोनों के कान और जोर से खींचता हुआ सहज भाव से बोला ।
" क.. कुछ.. कुछ नहीं , एंथनी !"- राक्षस जैसे लड़के का साथी बोला -" लेकिन यह साला हलकट..."
" साला ! हलकट ! "- एंथनी की भवें तनी -" मुझे तो यहां कोई साला , कोई हलकट नहीं दिखाई दे रहा है ! मुझे तो यहां सिर्फ यह साहब दिखाई दे रहे हैं ! क्या !"
" एंथोनी , ये साहब..."
" सोलंकी साहब ।"
" सोलंकी साहब । क्या ?"
" तुमने सोलंकी साहब के साथ जो बेअदबी की है उसके लिए साहब से माफी मांगो ।"
" लेकिन..."
" शायद ये तुम्हें माफ कर दें । बोलो , साॅरी , सोलंकी साहब ।"
" साॅरी , सोलंकी साहब ।"- दोनों एक साथ बोले ।
एंथोनी ने दोनों के कान छोड़ दिए ।
" उस छोकरे का नाम क्या है "- एंथनी अभी भी घुटनों में हाथ दबाये पीड़ा से बिलबिलाते राक्षस जैसे लड़के की ओर देखता बोला ।
" रघु ।"- लडके का साथी बोला ।
" इसे कहो छोकरी से माफी मांगे ।"
" क्या ?"- रघु चौंकते हुए बोला ।
" पांव पकड़ कर.... पांव पकड़ कर माफी मांगे ।"
" मैं किसी आइटम के पांव नहीं पकड़ने वाला "- रघु भुनभुनाया ।
एंथनी ने अकबर की तरफ देखा ।
अकबर रघु के करीब पहुंचा । उसने नीचे झुक कर अपने जुर्राब में खुंसा हुआ उस्तरा खिंच लिया । फिर उस्तरे को खोला और बड़े निर्विकार भाव से अपने बांये हाथ के अंगूठे पर उसकी धार चेक करने लगा ।
रघु का चेहरा पीला पड़ गया । उसने व्याकुल भाव से अपने साथियों की तरफ देखा ।
" एंथनी !"- उसका एक साथी यातनापूर्ण स्वर में बोला -" अब बिल्कुल ही तो हमारी इज्जत का जनाजा मत निकालो । कुछ तो ख्याल करो !"
" ठीक है ।"- एंथनी बड़ी दयानतदारी जताता बोला -" ख्याल करने का काम सोलंकी साहब पर छोड़ा । सोलंकी साहब चाहेंगे कि ये छोकरा रघु लड़की के पांव छुए तो यह छुएगा । सोलंकी साहब नहीं चाहेंगे तो यह नहीं छुएगा । सोलंकी साहब से पुछ इनकी क्या मर्जी है !"
तीनों लड़कों ने अमर की तरफ देखा ।
अमर ने नर्वस भाव से अपने होंठों पर जुबान फेरी । उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि एंथनी उसका कैसा इम्तिहान ले रहा है और उसे उस वक्त कौन सा रूख अख्तियार करना चाहिए था । उसने अकबर की तरफ देखा लेकिन अकबर ने उस्तरे पर से सिर नहीं उठाया । उसने एंथनी की तरफ देखा लेकिन वहां भी उसे कोई प्रोत्साहन नहीं मिला । उसने मोनिका की तरफ देखा ।
मोनिका उसके कान में कुछ फुसफुसाई ।
तुरंत अमर के चेहरे पर रौनक आई ।
" जाओ , तुम्हें माफ किया !"- अमर बोला -" लेकिन आइंदा ऐसी हरकत न करना ।"
तीनों की जान में जान आई ।
" साहब का शुक्रिया बोलो ।"- एंथनी बोला ।
सबने शुक्रिया बोला ।
" कट लो ।"
तीनों फौरन वहां से कट लिए ।
मोनिका अमर की बाहें पकड़े एक ओर चली गई ।
एंथनी बार पर अपने पसंदीदा स्थान पर पहुंचा । वहां बैठे लोग उसे आया देख दो दो स्टूल परे हट गए । दिया और शबनम तुरंत उसके दाएं बाएं पहुंच गई ।
माईकल ने फौरन उसे ड्रिंक सर्व किया ।"
" एंथनी "- शबनम उसकी एक बांह से झुलती बोली -" हमें गोवा कब ले चलोगे ?"
" तुमने पिछले हफ्ते का वादा किया था "- दिया उसकी दूसरी बांह से चिपकती बोली ।
" माईकल "- एंथनी बोला -" ये फुलझड़ी कौन है जो मेरे पर लाइन मार रही है ?"
माईकल ने उत्तर न दिया । वह जानता था उत्तर उससे अपेक्षित भी नहीं था ।
" ओह , एंथनी "- शबनम मुंह बिसूर कर बोली -" हमेशा इन्सल्ट करते रहते हो ।"
" तुने भी कुछ कहना होगा "- एंथनी दिया को घूरता बोला ।
" इतने लोगों के सामने तो हमारी इन्सल्ट न किया करो "- वह एक क्षण ठिठकी और फिर अपने वक्ष को उसकी बांह के साथ रगड़ती बड़े ही सेक्सी स्वर में बोली -" वैसे जो मर्जी किया करो ।"
गाॅड डैम यू , बिचिज !"- एंथनी कहर भरे स्वर में बोला -" मेरा नाम एंथनी डिसूजा है । एंथनी ने कब क्या करना होता है , यह उसे किसी लेग पीस ने नहीं बताना । दोबारा मुझे सलाह दी तो गला रेत दुंगा । गोवा जाना है तो जाना है , नहीं जाना है तो नहीं जाना है । फैसला मैं करूंगा । यह भी फैसला मैं करूंगा कि मैंने वहां एक को बांध कर ले जानी है या दो । क्या ?"
दोनों चुप रही ।
" अरे बोलो !"- एंथनी दहाड़ा -" क्या ?"
" ठीक है "- दोनों बोली ।
' अब बोलो क्या पियोगी ?"
तभी अमर मोनिका के साथ वहां पहुंचा ।
" मजा आया !"- एंथनी ने अमर से पूछा ।
" क्यों न मजा आता !"- मोनिका बोली -" देखा नहीं किसके साथ गया था !"
एंथनी का एक झन्नाटेदार झापड़ मोनिका के गाल पर पड़ा ।
मोनिका की गर्दन फिरकनी की तरह घुमी । उसकी आंखों में आसूं छलछला आए । हाल में सन्नाटा छा गया ।
अमर एकाएक एंथनी की तरफ झपटा लेकिन मोनिका उसके रास्ते में आ गई ।
" एंथनी जिससे सवाल करता है "- एंथनी दांत भींचकर फुंफकारा -" वही जबाव देता है । क्या ?"
मोनिका की आंखें अपमान से जल रही थी लेकिन वह जबरन मुस्कराई ।
" आजकल क्या रेट है तेरा ?"
मोनिका ने चार उंगलियां उठाई ।
एंथनी ने जेब से सौ की एक गड्डी उसके ब्लाउज में खोंस दिए ।
" यह तेरी अक्खा बाॅडी इस्तेमाल करने का प्राइस है । मैंने तो सिर्फ एक गाल इस्तेमाल किया । ठीक ?"
" ठीक ।"
" हिसाब बरोबर ।"
" बरोबर ।"
" कट ले ।"
मोनिका फौरन वहां से हट गई ।
" तुम दोनों "- एंथनी जिया और शबनम से बोला -" बाहर जाकर गाड़ी में बैठो ।"
" किधर जाने का है ?"- जिया बोली ।
एंथनी ने खूनी निगाहों से उसे देखा ।
जिया के सारे शरीर में सिहरन दौड़ गई । तभी शबनम ने उसकी बांह थामी और उसे बाहर को ले चली ।
" इधर आ , पप्पू ।"
अमर एंथनी के करीब पहुंचा ।
" अभी तु मेरे पर झपटने लगा था "- एंथनी धीमे किंतु बेहद हिंसक स्वर में बोला -" एक रण्डी के खातिर एंथनी पर झपटने लगा था ।"
" न... नहीं ।"- अमर हकलाया -" नहीं ।"
" आज दस मिनट में दो बार तुने मेरी उम्मीदों पर पानी फेरा ।"
" दो... दो बार ।"
" मैंने तो तुझे पप्पू से सोलंकी बनाया , तु अमरदीप भी बन कर न दिखा सका । जब जरूरत उन छोकरों को धूल चटाने की थी तो तुने उन्हें माफ कर दिया ।"
" वो अपनी करतूत से शर्मिंदा थे ।"
" बेवकूफ ! शर्मिंदा होना तो दूर की बात है , वो तो शर्मिन्दा लग भी नहीं रहे थे । उन्होंने साॅरी नहीं बोला था , तुझे बेवकूफ बनाया था । तु पप्पू ही रहा ।"
अमर खामोश रहा ।
" तु क्या समझता है मुझे इस बात की परवाह थी कि वो छोकरे उस नशे में चूर लड़की के साथ क्या करते थे ! मेरी बला से वो लड़की को यहां नंगी नचाते ।"
" तो... तो ?"
" वो लड़के नौजवान थे , राक्षसों जैसे विशाल और हट्टे कट्टे थे और दादा बनने की कोशिश में थे । पप्पू , यहां इज्जत और दबदबा किसी पिलपिलाए हुए कुत्ते की दुम उमेठने से नहीं बनता , जाबर पर , दादा पर जोर दिखाने से बनता है । वो तीनों मेरे से डबल थे , उनमें से जो चाहता , मेरी बोटी-बोटी नोच कर यहां छितरा देता । किसी की मजाल हुई ? नहीं हुई । लेकिन तु , जो उन्हीं के जैसा हट्टा कट्टा है , तेरे से भिड़ने की मजाल हुई उनकी । मै न पहुंच गया होता तो तु यहां के फर्श से अपने दांत बटोर रहा होता । मैंने तुझे पप्पू से अमरदीप सोलंकी बनने का मौका दिया जो कि तुने खो दिया । तु पिलपिला गया । तेरी हिम्मत नहीं हुई । बावजूद मेरे और अकबर के यहां होते तेरी हिम्मत नहीं हुई । तु पप्पू का पप्पू ही रहा ।
" एंथनी "- अमर खेद पूर्ण स्वर में बोला -" मुझे अफसोस है कि..."
" अरे , तुझे क्या अफसोस है । अफसोस तो मुझे है , पप्पू ।"
" वो... वो.."
" छोड़ । जा काम कर अपना । कल अड्डे पर आना ।"
अमर मन में कुछ मंसूबे बनाता वहां से निकल गया ।