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Incest आखिर पापा से चुदवा लिया मैंने

Ting ting

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सुगंधा ने पहले जीभ से सुपारे को चाटा और फिर धीरे से अपने मुँह में लेकर चूसने लगी.

जयशंकर जी को असीम आनन्द की प्राप्ति हुई, मगर वो अपने ज़ज्बात को काबू में किए हुए वैसे ही खड़े रहे.

सुगंधा ने थोड़ी देर लंड चूसा, फिर मुँह हटा लिया क्योंकि थोड़ा नाटक करना पड़ता है, नहीं तो जयशंकर जी को शक हो जाता.

सुगंधा- पापा, ये क्या है बहुत अजीब सी चीज है, गोल भी है, नर्म भी है कुछ नमकीन सा स्वाद है, समझ नहीं आ रहा.
जयशंकर- अरे कहा था ना.. ये हार्ड है. ऐसे जल्दी समझ नहीं आएगा वैसे तुझे एक हेल्प देता हूँ. ये लंबी चीज है अगर तू पूरा मुँह में लेकर चूसेगी तो शायद इसका नाम बता पाएगी, नहीं तो हार जाओगी.
सुगंधा ने फिर लंड को मुँह में ले लिया और मज़े से चूसने लगी. जयशंकर जी भी अपनी बेटी को लंड चुसवा कर बहुत ज़्यादा खुश हो रहे थे.

सुगंधा सुपारे को होंठों में दबा कर चूस रही थी. अब वो ज़्यादा से ज़्यादा लंड मुँह में लेना चाहती थी मगर वो कोई मॉंटी का लंड तो था नहीं, जो वो पूरा निगल जाती. ये तो 8″ का अज़गर था, जिसे निगलना मुश्किल था. दूसरी बात वो चीज को पहचानने के लिए ये कर रही थी, तो ज़्यादा मज़ा भी नहीं ले सकती थी. मगर उसने एक तरकीब लगाई, लंड को वापस बाहर निकाला.

जयशंकर- अरे क्या हुआ.. तुझे इसका नाम पता चल गया क्या?
सुगंधा- नहीं पापा समझ में नहीं आ रहा. ये तो कोई बड़ी लॉलीपॉप जैसी कोई चीज है. इसमें से थोड़ा नमकीन रस जैसा आ रहा है.. और ऐसा स्वाद मैंने लाइफ में कभी नहीं चखा है.

सुगंधा की बात सुनकर जयशंकर जी थोड़े घबरा गए क्योंकि उनके लंड से पानी की बूंदें आने लगी थीं और सुगंधा को शक ना हो जाए ये सोच कर उन्होंने बात को बदल दिया और सुगंधा तो खुद यही चाहती थी.
जयशंकर- अरे वाह तू तो बहुत करीब आ गई. ये रियल में ऐसी ही चीज है, इसमें रस भी रियल है. अब तू इसको चूसती रह और मज़ा लेती रह. जब समझ आ जाए बता देना.
सुगंधा- ठीक है पापा अब तो खुलकर चूसना पड़ेगा.. तभी मज़ा आएगा.
जयशंकर- हाँ ये हुई ना बात, चल चूस और रस के पूरे मज़े ले.

सुगंधा को अब कोई डर नहीं था वो खुलकर लंड को चूसने लगी. मगर एक गड़बड़ थी कि उसने पेंटी नहीं पहनी थी और उसकी चुत रस टपका रही थी. ऐसे तगड़े लंड की चुसाई से उसकी उत्तेजना भी बढ़ गई थी. उसका बहुत मन था कि उसके पापा उसकी चुत को चूस कर उसकी खुजली मिटा दें. मगर ये इतना आसान नहीं था, तो वो बस लंड को चूस कर मज़ा लेने लगी.

काफ़ी टाइम तक ये लंड चुसाई चलती रही. अब तो जयशंकर जी धीरे-धीरे झटके भी मारने लगे थे, उनकी उत्तेजना बहुत बढ़ गई थी. उनके विशाल लंड से रस की धारा निकलने को बेताब थी, तभी उन्होंने जल्दी से लंड को बाहर निकाला और पास पड़े प्याले में सारा रस निकाल दिया तब जाकर उनको सुकून मिला.

सुगंधा भी समझ गई थी कि उसके पापा ठंडे हो गए हैं मगर उसने अनजान बनने का नाटक किया- क्या हुआ पापा, चुसाओ ना.. बहुत मज़ा आ रहा था.
जयशंकर- बस बस.. बहुत टाइम हो गया और तू इसको पहचान भी नहीं पाई इसका मतलब तू हार गई है.
सुगंधा- अरे थोड़ी देर और चूसती तो पता लग जाता ना पापा.
जयशंकर- नहीं अब तुझे हार मान लेनी चाहिए.. मैंने तुझे बहुत मौका दिया.
सुगंधा- अच्छा बाबा हार गई मैं.. बस हैप्पी! चलो अब मुझे खोलो तो.

जयशंकर जी ने वो प्याला टेबल के नीचे छुपा दिया और लुंगी ठीक करके सुगंधा को खोल दिया. मगर ये सब करने के पहले उन्होंने ये नहीं सोचा था कि लास्ट में सुगंधा को वो क्या चीज का नाम बताएँगे.

सुगंधा- ओफफो आप बहुत स्मार्ट हो पापा.. लास्ट में चीज ऐसी ले आए कि मैं पता ही नहीं लगा सकी. वैसे अब तो में हार गई हूँ, तो बताओ मुझे वो क्या चीज थी.. जिसे चूसने में मुझे इतना मज़ा आ रहा था?
जयशंकर- व्व..वो तत..तू हार गई है. अब तुझे मेरी बात माननी पड़ेगी समझी.
सुगंधा- अरे मगर वो चीज का नाम तो मुझे पता होना चाहिए ना?
जयशंकर- नहीं अगर बता दूँगा तो दोबारा मैं कैसे जीतूँगा.. चल तू हार गई है.
सुगंधा- अच्छा ऐसे कैसे हार गई. आपकी बारी भी आएगी और आपको भी ऐसे ही बताना होगा.

जयशंकर जी तो अब ठंडे हो गए थे. अब कहाँ उनका मन था, तो बस वो बहाना बनाने लगे कि वो थक गए हैं, आराम करना है.
सुगंधा- ये चीटिंग है पापा, ऐसे मैं नहीं हार मानूँगी ओके.

बोलते बोलते सुगंधा की नज़र टेबल के नीचे पड़े प्याले पे गई.

सुगंधा- अच्छा तो वो चीज अपने नीचे छुपा कर रखी है, अभी देखती हूँ.

सुगंधा उस प्याले को लेने लगी, तो घबराहट में जयशंकर जी ने सुगंधा के पैर में पैर मार दिया, जिससे वो उलझ कर गिर गई और उसकी मैक्सी भी ऊपर हो गई. जिसकी वजह से उसकी खुली चुत के दीदार जयशंकर जी को हो गए.

सुगंधा की नज़र जयशंकर जी की नज़र पर गई, जो कहीं और ही टिकी थी. तब उनकी नज़र का पीछा करते हुए सुगंधा को अहसास हुआ कि वो उसकी चुत को घूर रहे हैं, जो रस से भीगी हुई थी और चमक रही थी.

सुगंधा ने हालत को समझते हुए जल्दी से कपड़े ठीक किए और झूठ मूट का नाटक करने लग गई.
सुगंधा- ओह माँ.. मर गई मैं उउउह पापा.
जयशंकर- अरे ठीक से चल भी नहीं सकती. अब गिर गई ना.. दिखा कहाँ लगी है.

सुगंधा के दिमाग़ में अपनी चुत को शांत करने का फ़ौरन आइडिया आ गया.

सुगंधा- आह.. पापा पैर में दर्द हो रहा है और कमर में भी जोर से लगी है.
जयशंकर- अच्छा तू खड़ी हो, मैं देखता हूँ.
सुगंधा- आह.. उठा भी नहीं जा रहा.. बहुत दर्द हो रहा है पापा.

जयशंकर जी उसके पास बैठ गए और उसके चेहरे को देखने लगे.
जयशंकर- सॉरी बेटा.. मेरी वजह से ही तू गिरी है. अगर मेरा पैर बीच में नहीं आता तो तुझे तकलीफ़ नहीं होती. मगर तू घबरा मत, मैं अभी तुझे उठा कर तेरे कमरे में लेकर जाता हूँ.
सुगंधा- ओह हाँ पापा आप मुझे ही गोदी में उठा लो.. आह.. मुझसे तो उठा नहीं जाएगा आह.. पापा उफ्फ..

जयशंकर जी ने एक हाथ उसकी गांड के नीचे और दूसरा गर्दन के नीचे रखा और उसे उठा कर कमरे में ले गए.

सुगंधा- आह.. पापा आप बहुत अच्छे हो. अब ये दर्द का कुछ करो आह.. मुझे बहुत दुख रहा है.
जयशंकर- देख मैं तेरी माँ के आने के पहले तुझे ठीक कर दूँगा. तू रुक, मैं अभी तेरा इलाज लेकर आता हूँ.

जयशंकर जी बाहर गए, सबसे पहले तो उन्होंने उस प्याले को साफ किया. फिर उसमें सरसों का तेल लेकर उसको गर्म करने लगे.

उधर सुगंधा अपने ख्यालों में खोई हुई सोच रही थी ‘ओह पापा, आपका लंड तो बहुत बड़ा है. उसको चूसते हुए मेरा मुँह दुखने लगा. काश मैं उसको देख पाती, अपने हाथों से उसे पकड़ कर हिला पाती और आपका रस.. आह कितना मज़ा आ रहा था.. काश वो रस आप मुझे पिला देते, तो मज़ा आ जाता मगर जो भी हुआ अब आपको उसके आगे लेकर आऊंगी. तभी तो दर्द का नाटक किया मैंने, अब जल्दी से आ जाओ और मेरी चुत को सुकून दे दो.

जयशंकर- ये देखो में सरसों का तेल लाया हूँ इससे तुम्हें आराम मिल जाएगा.
सुगंधा- लेकिन पापा मैं कैसे लगाऊं.. मुझसे तो उठा भी नहीं जा रहा.
जयशंकर- अरे मैं लगा दूँगा ना.. तू टेंशन क्यों ले रही है.
सुगंधा- पापा व्व..वो आप कैसे लगा सकते हो.. व्व..वो दर्द पीठ पर और पैरों में ऊपर की तरफ़ हो रहा है.
जयशंकर- अरे तो क्या हुआ.. पहले जब तू छोटी थी ना तब तेरे जिस्म की मालिश तेरी माँ नहीं, मैं ही किया करता था. समझी अब मुँह से कोई आवाज़ मत निकलना समझी.
सुगंधा- ल्ल..लेकिन पापा वो तो एमेम.. मैंने नीचे कुछ न..नहीं पहना है..!
जयशंकर- मैंने कहा ना चुप, अब मैं जो करता हूँ, करने दे.. इससे तुझे आराम मिलेगा, तब बोलना.. समझी..!

सुगंधा की बात का जयशंकर जी पर कोई असर नहीं हुआ, वो तो बस जल्दी से उसकी मालिश करना चाह रहे थे.

सुगंधा- ठीक है पापा आप जो चाहे करो.

जयशंकर जी ने मैक्सी थोड़ी ऊपर की और घुटनों की मालिश करने लगे.. फिर धीरे-धीरे हाथ को ऊपर जाँघों पे ले गए.

अपने पापा के हाथ जाँघों पे लगते ही सुगंधा के जिस्म ने झटका खाया. उसकी काम भरी सिसकी निकल गई और चुत में एक करंट सा दौड़ गया. जयशंकर जी ने सुगंधा की तरफ़ देखा तो उसकी आँखें बंद थीं और वो अपने होंठों को दांतों में दबा कर काट रही थी.

जयशंकर जी अब सिर्फ़ जाँघों की मालिश कर रहे थे और एक-दो बार उनकी उंगली चुत से टच भी हुई, जिसका असर सुगंधा की कामुक सिसकी से पता लग रहा था कि वो कितनी उत्तेजित हो गई है.

पापा को भी अपनी कमसिन बेटी की मालिश करने में मज़ा आ रहा था और उनका लंड फिर उठाव लेने लगा था. सुगंधा की चुत रिसने लगी थी, इस बात का अहसास जयशंकर जी को तब हुआ, जब दोबारा उनकी उंगली चुत से टकराई.

जयशंकर जी मन में ‘लगता है सुगंधा उत्तेजित हो गई है, तभी उसकी चुत गीली हो गई. अब इसे शांत करना जरूरी है.. नहीं तो ये परेशान रहेगी.’

सुगंधा की आँखें अब भी बंद थीं.. वो बस घुटी-घुटी आवाज़ में मादकता से सिसक रही थी.

जयशंकर जी मन में ‘मेरी सुगंधा, तू तो बड़ी हो गई है.. देख तेरी चुत कैसे पानी छोड़ रही है, बस ऐसे ही आँखें बंद रखना. मैं तेरे कामरस को चख कर देखूं कि कैसा स्वाद है मेरी बेटी की चुत के रस का!’

जयशंकर जी ने अब सीधे उंगली चुत पे लगा दी और उसके सहलाने लगे, फिर उसपे जो रस लगा उसे वो चाट गए. उनका लंड एकदम टाइट हो गया था और वो भी बहुत ज़्यादा उत्तेजित हो गए थे.
जयशंकर- सुगंधा बेटा तू पेट के बाल लेट जा, तेरी पीठ पे भी तेल लगा देता हूँ.. जिससे तुझे आराम मिल जाएगा.
 
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सुगंधा तो इतनी ज़्यादा उत्तेजित थी कि वो सब भूल गई कि उसके पापा कैसे उसका फायदा उठा रहे हैं. वो बिना कुछ बोले उल्टी लेट गई. जयशंकर जी ने उसकी मैक्सी ऊपर कर दी, अब नीचे का पूरा हिस्सा नंगा उनके सामने था. सुगंधा की भरी हुई गांड देख कर जयशंकर जी ने मन में सोचा कि अभी इसमें लंड घुसा दूँ तो मज़ा आ जाए. मगर एक बाप और बेटी के बीच की शर्म उनको रोके हुए थी.

अब उन्होंने पीठ की मालिश शुरू कर दी. वो सुगंधा की गोरी गांड पर भी हाथ घुमा रहे थे. फिर उन्होंने सोचा सुगंधा तो कुछ बोल भी नहीं रही, तो क्यों न कुछ मज़ा ले लिया जाए. जयशंकर जी ने लंड को बाहर निकाला और सुगंधा के ऊपर दोनों तरफ़ अपने पैर निकाल कर बैठ गए और लंड को चुत पे सैट करके ऊपर-नीचे रगड़ने लगे.

सुगंधा को जब लंड का अहसास सीधे चुत पे हुआ तो उसका पसीना छूट गया. सुगंधा मन में- हे राम, ये पापा को ज़रा भी शर्म नहीं आ रही क्या.. कैसे चुत पे लंड घिस रहे हैं. कहीं ये लंड को चुत के अन्दर ही ना पेल दें.

जयशंकर जी तो बस मज़े लेने में लगे हुए थे और सुगंधा की उत्तेजना अब चरम पर पहुँच गई थी- आह.. ससस्स पापा उफ़फ्फ़ आह…. ऐसे ही करो.. आह.. यहीं दर्द ज़्यादा है आह.. ऐसे ही जोर से रगड़ो आह…
जयशंकर जी समझ गए कि सुगंधा की चुत का बाँध टूटने वाला है, उन्होंने जोर-जोर से लंड को रगड़ना शुरू कर दिया और तभी सुगंधा की चुत से रस की फुहार निकलने लगी.

जयशंकर जी जल्दी से अलग हुए और हाथ से चुत के रस को साफ किया, फिर उसको चाटने लगे. अब सुगंधा शांत हो गई थी मगर ये अहसास कि उसके पापा उसका रस चाट रहे हैं, उसको और अधिक रोमांचित कर रहा था.
सुगंधा- आह.. ससस्स बस पापा अब ठीक है आह.. आपने मेरा सारा दर्द निकाल दिया है.

जयशंकर- अच्छा अब तू थोड़ी देर आराम कर.. मैं ये तेल रख कर आता हूँ.

जयशंकर जी वहां से चले गए और सुगंधा वैसे ही लेटी रही और बड़बड़ाने लगी ‘उफ्फ ये सब क्या हो रहा है.. मैं सोच भी नहीं सकती कि इतनी जल्दी पापा मेरी चुत तक पहुँच जाएँगे. उफ्फ क्या आग लगा दी पापा ने, अब जो होगा देखा जाएगा.. बस मैं पापा को इतना पागल बना दूँगी कि वो खुद चुत माँगने लगेंगे.’

उधर जयशंकर जी अपने कमरे में चले गए उनका लंड अभी भी तना हुआ था. उन्होंने लंड बाहर निकाला और सहलाते हुए बिस्तर पे बैठ गए

जयशंकर जी ने पक्का सोच लिया था कि वो सुगंधा को चोदेंगे. इसी सोच के चलते उनका लंड अब और ज़्यादा अकड़ गया था. मगर उन्होंने खुद को समझाया कि जल्दबाज़ी में काम बिगड़ सकता है और वैसे भी अभी सुगंधा ठंडी हुई है तो उसके पास जाने का फायद नहीं.

एक घंटे तक दोनों बाप-बेटी अपने-अपने कमरे में रहे. मगर सुगंधा ने तो ठान लिया था कि जब-जब उसको मौका मिलेगा, वो अपने पापा को सिड्यूस करती रहेगी.

सुगंधा कमरे से बाहर निकली और पापा को आवाज़ लगाई- पापा, लगता है माँ को आने में टाइम लगेगा. मैं लंच बना रही हूँ आपको क्या खाना है, मुझे बता दो.

सुगंधा ने एक पतली टी-शर्ट और पजामा पहन लिया था, उसका मन अब कुछ और करने का था.

जयशंकर जी बाहर आए और सुगंधा को ऊपर से नीचे तक गंदी नज़रों से देखते हुए सुगंधा के खाना बनाने के सवाल पर बोले- अपने पापा का बड़ा ख्याल है तुझे.. आज तो तू परांठे बना.. एकदम कड़क और मसालेदार.. तब मज़ा आएगा.
सुगंधा- ठीक है पापा बना देती हूँ. तब तक आप बाहर बैठ कर इंतजार करो.
जयशंकर- अरे बाहर क्यों? हम दोनों साथ मिलकर बनाते हैं ना, बात भी होती रहेगी और परांठे भी बन जाएँगे.

सुगंधा समझ गई कि उसकी तरह उसके पापा भी उसके मज़े लेने के चक्कर में हैं. अब वो भी कहाँ पीछे रहने वाली थी उसकी शराफत तो कब की हवा हो गई थी. अब तो सुगंधा बस लंड और चुत के खेल को आगे ले जाना चाहती थी.
सुगंधा- ठीक है पापा, जैसा आपको अच्छा लगे. चलो आप आलू उबालो, मैं तब तक आटा गूँथ लेती हूँ.

जयशंकर जी ने अपना काम निपटा दिया और सुगंधा खड़ी हुई आटा गूँथ रही थी. उसकी गांड थोड़ी बाहर को निकली हुई थी, जिसे देख कर जयशंकर जी का मन डोलने लगा. वो सुगंधा के ठीक पीछे जाकर खड़े हो गए और लंड को सुगंधा की गांड से टच कर दिया.

सुगंधा- क्या कर रहे हो पापा.. मुझे काम करने दो ना.
जयशंकर- अरे देख रहा हूँ ना कैसे तुम आटा गूँथ रही हो.
सुगंधा अपने मन में- अच्छा ये बात है.. देख रहे हो या आप लंड को गांड से सटा कर मज़ा ले रहे हो.

सुगंधा ने कुछ बोला नहीं और गांड को थोड़ा और पीछे कर दिया और आटा गूँथने लगी, जैसे वो हिलती, उसकी गांड ऊपर-नीचे होती, जिससे लंड की अच्छी- ख़ासी घिसाई होने लगी.
थोड़ी देर ये खेल चलता रहा, फिर सुगंधा ने अपने पापा को एक्सट्रा मज़ा देने की एक तरकीब लगाई. वो कोहनी से अपने पेट पर खुजलाने लगी, जिससे जयशंकर जी को भी एक्सट्रा मज़ा लेने का मौका मिल गया.

जयशंकर- अरे क्या हुआ है तुम्हें?
सुगंधा- वो पेट के ऊपर खुजली हो रही है.. अब हाथ आटे में सने हैं तो कोहनी से करूँगी ना.
जयशंकर- अरे पापा के होते तुम परेशान क्यों होती हो. लाओ मैं कर देता हूँ.. बताओ कहाँ करूं?
सुगंधा- नहीं पापा रहने दो.. मैं अपने आप कर लूँगी ना!
जयशंकर- अरे ऐसे कैसे.. बताओ मुझे, मैं कर दूँगा.. नहीं तो ऐसे ही परेशान रहोगी.

इतना कहकर जयशंकर जी ने पीछे से ही सुगंधा के पेट के ऊपर हाथ रख दिया.
सुगंधा- पापा व्व..वो थोड़ा ऊपर करो.

जयशंकर जी ने धीरे-धीरे हाथ को ऊपर करना शुरू किया. अब वो सुगंधा के मम्मों से बस एक इंच की दूरी पर थे.
सुगंधा- आह…. नहीं.. रहने दो सस्स.. मैं खुद कर लूँगी ना पापा.
जयशंकर- अरे मैं तेरा पापा हूँ, ऐसे क्यों बर्ताव कर रही हो.. यहीं करूं क्या?
सुगंधा- व्व..वो पापा आपको कैसे बताऊं व्व..वो मेरे कहाँ खुजली हो रही है?

जयशंकर जी भी समझदार थे, उन्हें इतना इशारा काफ़ी था. उन्होंने शर्म को साइड में रखा और हाथ सीधे सुगंधा के मम्मों पे रख दिया और धीरे-धीरे सहलाने लगे.
सुगंधा- सस्स आह.. पापा.. यहीं हो रही है मगर नहीं रहने दो ना.. नहीं प्लीज़ पापा.
जयशंकर- चुप कर तू.. ऐसे खुजली ज़्यादा होगी.. मैं कर रहा हूँ ना.

जयशंकर जी ऐसे बर्ताव कर रहे थे, जैसे ये एक नॉर्मल बात है. फिर सुगंधा ने भी आगे कुछ नहीं कहा, बस वैसे ही खड़ी अपने मम्मों को दबवाती रही. वैसे तो जयशंकर जी कपड़ों के ऊपर से मज़ा ले रहे थे, मगर उनका मन था कि वो सीधे सुगंधा के नंगे चूचों को मसल कर मजा लें और सुगंधा भी यही चाहती थी. मगर वो मर्यादा में रहकर सब करना चाहती थी यानि सब कुछ हो भी जाए और जयशंकर जी की नज़र में वो सीधी भी बनी रहे.

सुगंधा- बस बस पापा हो गया.. अब सही है. अब आप रहने दो.

जयशंकर जी ने हाथ हटा लिया मगर वो वैसे ही खड़े रहे और लंड को गांड पर दबाते रहे और जैसे सुगंधा का मन था कि पापा डायरेक्ट मम्मों को छुएँ.. अन्दर उसने कुछ पहना भी नहीं था तो वो फिर कोहनी से खुजलाने लगी.
सुगंधा- ओफफो.. ये आज क्या हो रहा है बार-बार खुजली क्यों हो रही है?
जयशंकर- फिर से हो गई.. ला मैं करता हूँ.
सुगंधा- नहीं पापा रहने दो, ऐसे ही शायद पसीने से हो रहा होगा.
जयशंकर- अरे कोई चींटी होगी जो काट रही होगी.. मुझे देखने दे, नहीं तो तुझे और ज़्यादा परेशानी होगी.

सुगंधा कुछ कहती, उससे पहले ही जयशंकर जी ने हाथ टी-शर्ट में डाल दिया और सीधे सुगंधा के नंगे मम्मों पे लगा दिया.
सुगंधा- ससस्स.. प्प..पापा ये आप क्या..
सुगंधा आगे कुछ बोलती तब तक जयशंकर जी ने उसके मम्मों को अच्छे से दबा दिया और उसके निप्पलों को भी मरोड़ दिया. फिर जल्दी से हाथ बाहर निकाल लिया.
जयशंकर- त्त.. तुमने अन्दर कुछ नहीं पहना.. मुझे पहले क्यों नहीं बोली.
सुगंधा- सॉरी पापा व्व..वो मैं बताना चाहती थी मगर आपने मेरी बात सुनी ही नहीं.

जयशंकर जी ऐसे बर्ताव करने लगे जैसे ये अंजाने में हुआ हो.
जयशंकर- अरे वो उस दिन तुझे कपड़े दिलाए थे.. उसमें वो अन्दर की भी थी ना.. उसे पहना कर.
सुगंधा- व्व..वो पापा घर में मुझे अच्छा नहीं लगता इसलिए.
जयशंकर- अच्छा अच्छा समझ गया.. जाने दे वैसे वो नए कपड़े क्यों नहीं पहनती. वो बहुत अच्छे हैं, तुझपे जमेंगे भी.
सुगंधा- बाद में पहन लूँगी पापा.. अभी नहीं.. पहले मैं थोड़ी एड्जस्टमेंट कर लूँ उसके बाद पहनूंगी.

जयशंकर- अच्छा ठीक है, जब मर्ज़ी हो पहन लेना.. अच्छा बेटी तुझे बुरा तो नहीं लगा ना.. अभी जो मैंने किया?
सुगंधा- नहीं पापा आपने जानबूझ के थोड़े किया.. वो तो ग़लती से हो गया इट्स ओके.
जयशंकर- अच्छा बेटी वो तेल मालिश और ये बात अपनी माँ को मत बताना. ऐसे उन्हें पता लगेगा तो अच्छा नहीं लगेगा ना.
सुगंधा ने बहुत ही सेक्सी अंदाज में मुस्कान दी.

सुगंधा- आप भी ना पापा.. ये बात कोई बताने की थोड़ी है और वैसे भी अपने ऐसा कुछ गलत भी नहीं किया. मेरे दर्द को ठीक किया और अभी खुजली की.. बस यही ना..!

सुगंधा की बात सुनकर जयशंकर जी खुश हो गए, उनको लगा सुगंधा भी यही चाहती है कि उसके पापा उसको मज़ा दें.
सुगंधा- क्या हुआ पापा क्या सोच रहे..?
बोलते-बोलते वो जोर से उछली जैसे उसको किसी जानवर ने काट लिया हो.

सुगंधा- ओह माँ उफ़फ्फ़ पापा आह..
जयशंकर- अरे क्या हुआ.. ऐसे क्यों उछल रही हो.. क्या हो गया है?
सुगंधा- व्व..वो पापा टी-शर्ट में कोई कीड़ा है.. मुझे जोर से काट लिया.. उफ़फ्फ़..
जयशंकर- मैंने पहले ही कहा था.. ला इधर आ.. देखने दे मुझे.
 
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जयशंकर जी ने मौके का फायदा उठाया और सुगंधा की टी-शर्ट में हाथ डाल कर अबकी बार बारी-बारी दोनों मम्मों को अच्छे से दबाया और मसला.
सुगंधा- उफ़फ्फ़ सस्स क्या हुआ पापा.. कुछ मिला क्या?
जयशंकर- नहीं कुछ नहीं मिला.. मुझे ठीक से देखने दे.. शायद चिंटी होगी.

इतना कहकर जयशंकर जी ने टी-शर्ट ऊपर कर दी. अब सुगंधा के नंगे चूचे उनके सामने थे और सुगंधा आँखें बंद किए बस दर्द का नाटक कर रही थी.

जयशंकर जी ने एक बार सुगंधा को देखा फिर अच्छे से पूरे मम्मों पर दोबारा हाथ घुमाया और मौका देख कर जल्दी से एक निप्पल को चूस भी लिया.

सुगंधा इस हरकत से एकदम सिहर गई और जल्दी से पीछे हो गई, उसने अपनी टी-शर्ट ठीक की और जयशंकर जी से नज़रें चुराने लगी.
जयशंकर- क्या हुआ सुगंधा.. देखने तो दे.
सुगंधा- नहीं पापा निकल गया शायद.. अब आप बाहर जाओ, मुझे काम करने दो.

दरअसल सुगंधा उत्तेजित हो गई थी और वो नहीं चाहती थी कि वो पापा को इससे ज़्यादा मौका दे, वरना कुछ भी हो सकता था.
जयशंकर जी भी समझ गए कि शायद उन्होंने कुछ ज़्यादा कर दिया, तो वो चुपचाप बाहर निकल गए और अपने कमरे में चले गए.
सुगंधा ने परांठे बना लिए, तब तक मम्मी भी आ गई. सबने खाना खाया और रोज की तरह आराम करने लगे.

शाम तक ऐसे ही चलता रहा. आग तो दोनो तरफ लगी हुई थी. बस देरी तो इस बात की थी की बात कैसे आगे बढ़े. उसके पापा सोच रहे थे कि किसी ढंग से बात चुदाई तक पहुँचे. थोड़ी देर के बाद उसके पापा ने पास आ कर बात शुरू की.

पापा- तुझसे एक बात करनी थी.
सुगंधा- हाँ पापा बोलो ना क्या बात है?
पापा- रात को तेरी माँ तो जल्दी सो जाती है और मुझे नींद नहीं आती तो क्या मैं तेरे पास आ जाऊं, अगर तुझे कोई दिक्कत ना हो तो?
सुगंधा- अरे इसमें पूछना क्या पापा.. मैंने तो रात को ही कहा था कि आप मुझे रोज ऐसे ही मालिश करके सुलाना. सच में आपके हाथों में जादू है, आप सर को एकदम हल्का कर देते हो, उससे नींद अच्छी आती है.

इतना कह कर सुगंधा अन्दर चली गई और अपनी माँ की काम में मदद करने लगी.

सुगंधा का जवाब सुनकर जयशंकर जी की आँखों में चमक आ गई, अब उनके इरादे क्या थे.. वो तो रात को ही पता चलेगा.

रात का खाना खाने के बाद रोज की तरह मम्मी ने सारे काम निपटा दिए और सोने चली गई. जयशंकर जी बस उसके सोने का इन्तजार करने बैठ गए. उधर सुगंधा को पता था कि उसके पापा ऐसे ही तो नहीं आ रहे, उनके मन में कुछ तो चल ही रहा होगा और जैसे उन्होंने सुबह उसके निप्पलों को चूसा था, उससे उनके इरादे अब ज़्यादा ख़तरनाक हो सकते हैं, वो मन ही मन यही सब सोच रही थी.
सुगंधा सोचने लगी कि पापा तो मेरे ऊपर एकदम लट्टू हो गए, उन्होंने मेरा सब कुछ देख लिया मगर अभी तक मुझे उनका लंड देखने को नहीं मिला. वैसे चूसने से तो लगता है कि पापा का लंड काफ़ी मोटा और बड़ा होगा. चलो आज पापा के लंड को देखने के लिए कुछ ना कुछ आइडिया लगाती हूँ.

सुगंधा ने थोड़ी देर सोचा, उसके बाद वो उठी और उसने अपनी नई ब्रा और पेंटी का सैट पहना, उसके बाद अपने रोज वाले नाइट के कपड़े पहन लिए और अपने पापा का इन्तजार करने लग गई.

आग तो दोनों तरफ़ बराबर लगी हुई थी. जैसे ही मम्मी सोई, जयशंकर जी उठे और सीधे सुगंधा के कमरे में चले गए. उस वक़्त रूम की लाइट भी जली हुई थी और सुगंधा पेट के बल लेटी हुई थी.

जयशंकर- क्या तुम सुगंधा सो गईं?
सुगंधा- नहीं पापा आपका ही वेट कर रही थी. आ जाओ ना अन्दर.. आप ऐसे दरवाजे पर क्यों खड़े हो गए हो!

जयशंकर जी ने दरवाजा बंद किया और सुगंधा के पास आकर बैठ गए.

सुगंधा- पापा आप बहुत अच्छे हो, मुझे सुलाने के लिए आ गए.
जयशंकर- अरे आता कैसे नहीं.. तू मेरी जान है, तेरे लिए तो मैं कुछ भी कर सकता हूँ.
सुगंधा- थैंक्स पापा.. चलो मेरा सर दबाओ, मुझे आपका दबाना अच्छा लगता है.

जयशंकर जी शुरू हो गए मगर सुगंधा को सर थोड़ी दबवाना था, वो तो आज कुछ और ही दवबाने के मूड में थी. थोड़ी देर बाद उसने अपना नाटक शुरू कर दिया. सुगंधा ज़ोर से उछली और अपने सीने पर खुजाने लगी.
जयशंकर- अरे क्या हुआ.. क्या तुझे फिर खुजली हो रही है?
सुगंधा- आह.. सस्स ये सुबह से ही हो रही है. लगता है चींटी ख़तरनाक थी.. उसका जहर अभी तक असर कर रहा है.
जयशंकर- मैंने कहा भी था कि मुझे देखने दे. मगर तू नहीं मानी अब ये ज़्यादा हो गया ना.. चल अब मुझे देखने दे. उसके काटने से कोई दाद-वाद तो नहीं हो गई.?

सुगंधा- नहीं पापा रहने दो, मैं खुजा रही हूँ ना.. अब इस वक्त कौन सा मेरे हाथ पर आटा लगा हुआ है.
जयशंकर- बात तेरे हाथ की नहीं है, तू कैसे देख पाएगी. अब बहस मत कर, मैं ठीक से देख लेता हूँ.
सुगंधा- ठीक है पापा आप ही देख लो.

जयशंकर जी ने जैसे ही टी-शर्ट ऊपर की तो उनको सुगंधा की लाल ब्रा नज़र आई और उनके अरमान पानी-पानी हो गए.
जयशंकर- अरे तूने अन्दर पहन लिया. अब मैं कैसे देखूँ?
सुगंधा- व्व..वो पापा सुबह आपने ही तो कहा था. इसलिए मैंने..
जयशंकर- तू एकदम पागल है.. अरे बेटा जब बाहर जाओ, तब पहनने के लिए कहा था. रात को सोने के टाइम नहीं पहनते, इससे भी खुजली होती है और शरीर को हवा नहीं मिलती. रात को तो ऊपर-नीचे एकदम खुलकर सोना चाहिए. तू मेरी बात को समझ रही है ना?
सुगंधा- हाँ पापा, समझ रही हूँ सॉरी मैं ठीक से समझी नहीं थी. कल से में पहन कर नहीं सोऊंगी.
जयशंकर- अरे कल से क्यों? अभी निकाल दे ना.. और हाँ तूने वो कपड़ों के साथ रात में पहनने के लिए वो नाइट ड्रेसिज ली थीं ना.. वो क्यों नहीं पहनती, उनमें ज़्यादा आराम रहता है और जिस्म को हवा भी मिलती है.

सुगंधा अपने मन में कहने लगी- वाह पापा मानना पड़ेगा आपको.. बिना ब्रा-पेंटी की वो सेक्सी नाइटी मुझे पहनाना चाहते हो ताकि मेरे मज़े खुल कर ले सको.
जयशंकर- तू अब क्या सोच रही है?
सुगंधा- कुछ नहीं पापा.. कल से मैं सोने के टाइम वही पहन लूँगी.
जयशंकर- अरे तू कल पर क्यों अटकी हुई है. चल अभी पहन. मैं भी तो देखूं मेरी बेटी मॉर्डन कपड़ों में कैसी लगती है.
सुगंधा- ठीक है पापा आपकी इच्छा यही है तो मैं अभी पहन कर आती हूँ.

सुगंधा ने अलमारी से नाइटी ली और बाथरूम में चली गई. वहां वो एकदम नंगी हो गई और अपने मम्मों पे हाथ घुमा कर बड़बड़ाने लगी- ओह पापा.. आपने मुझे अपना दीवाना बना लिया है. आज ये चूचे आपके हाथों के स्पर्श के लिए मचल रहे हैं. आज तो मैं आपको भरपूर मज़ा दूँगी और आपका लंड रस आज वेस्ट नहीं होने दूँगी.. पूरा पी जाऊँगी.

थोड़ी देर तक सुगंधा अपने आपसे बात करती रही, फिर जब वो नाइटी पहन कर बाहर आई तो जयशंकर जी तो बस उसको देखते ही रह गए. सुगंधा ने एक ब्लैक शॉर्ट नाइटी पहनी थी जो उसको घुटनों से भी ऊपर थी और उस काली नाइटी में उसका गोरा बदन बड़ा ही मनमोहक नज़र आ रहा था. बिना ब्रा के उसके चूचे आधे से ज़्यादा बाहर झाँक रहे थे.

जयशंकर तो सांस रोके उस वासना की मूरत को घूरे जा रहे थे. सुगंधा उनके एकदम पास आकर खड़ी हो गई- क्या हुआ पापा, मैं इन कपड़ों में कैसी लग रही हूँ?
जयशंकर- बहुत सुन्दर तू एकदम किसी अप्सरा की तरह लग रही है.

सुगंधा ने थैंक्स कहा और अपने पापा से लिपट गई और जानबूझ कर वो उनसे ऐसे चिपकी कि उसके चूचे जयशंकर के सीने में धँस जाएं. इस वक्त सुगंधा अपने पापा का लंड अपनी नाभि पे महसूस कर रही थी, जो एकदम अकड़ा हुआ था.. जैसे अभी उसके पेट को फाड़ देगा.

जयशंकर- चल अब तू लेट जा, मैं तुझे सुला देता हूँ और वो तुझे चींटी ने किधर काटा था, वो भी देखता हूँ.
सुगंधा- नहीं पापा रहने दो.. आप कैसे देखोगे.. इसको ऊपर करना पड़ेगा और मैंने अब नीचे कुछ पहना भी नहीं है.
जयशंकर- अरे मैं तेरा पापा हूँ, तू ऐसे क्यों बोल रही है और इसको उठाने की जरूरत नहीं मैं ऊपर से ही देख लूँगा.. ठीक है.
सुगंधा- नहीं पापा मुझे शर्म आएगी. आप ऐसा करो कि लाइट बंद करके देख लो.
जयशंकर- लो कर लो बात.. अंधेरा होने के बाद मैं कैसे देख सकता हूँ. मुझे तुमने उल्लू समझा है, जो अंधेरे में देख सकूं?
सुगंधा- हा हा हा हा पापा आप भी ना.. अच्छा ठीक है. मैं आँखें बंद कर लेती हूँ आप प्लीज़ जल्दी से देख लेना.
जयशंकर- अच्छा ठीक है.. चल तू आराम से लेट जा, मैं देखता हूँ.

सुगंधा सीधी लेट गई और अपनी आँखों पर हाथ लगा लिए.

बस जयशंकर जी को और क्या चाहिए था, उन्होंने ऊपर से जो डोरी बंधी थी.. उसको खोला तो सुगंधा का पूरा सीना साफ नज़र आने लगा. जयशंकर सुगंधा के सीने पर बड़े प्यार से हाथ घुमा कर मज़ा लेने लगे. वो थोड़ा दबा भी रहे थे, कभी निपल्स को उंगली और अंगूठे से दबा देते.

सुगंधा- आह.. सस्स पापा.. आराम से देखो ना.. दुख़्ता है आह.. सस्स धीरे.
जयशंकर- अरे इनको इनको ऊपर-नीचे करके देखने दे. मैं ठीक से देख रहा हूँ कि कहाँ-कहाँ काटा है.. समझी.

जयशंकर जी तो बस अपनी बेटी के मम्मों को दबा कर मज़ा ले रहे थे. उन पर वासना सवार हो गई थी. जयशंकर जी का लंड लुंगी में तंबू बना चुका था, उनकी आँखें लाल हो गई थीं.

सुगंधा- क्या हुआ पापा.. देख लिया क्या मुझे दर्द हो रहा है.
जयशंकर- हाँ देख लिया.. बहुत जगहों पे काटा है.. लाल सुगंधान हो गए हैं.
सुगंधा- ओह.. गॉड अब क्या होगा पापा इनमें तो बहुत खुजली होगी ना?
जयशंकर- ऐसे कैसे होगी.. मैं किस लिए हूँ.. अभी मैं इसका सब इलाज कर दूँगा.

सुगंधा- आप इलाज कैसे करोगे पापा?
जयशंकर- बेटी दवा से कुछ नहीं होगा. मैं देसी तरीके से ठीक करूंगा.
सुगंधा- कौन सा तरीका मुझे तो बताओ पापा.
जयशंकर- मैं इन सुगंधानों को चूस कर चींटी का सारा जहर निकाल दूँगा, फिर तुझे इनमें खुजली नहीं होगी.
सुगंधा- नहीं पापा रहने दो, मुझे ये सब अच्छा नहीं लग रहा और मुझे शर्म भी बहुत आ रही है. आपके सामने मैं ऐसे पड़ी हुई हूँ, नहीं नहीं.. जाने दो.
जयशंकर- अरे जाने कैसे दूँ.. ये बहुत ख़तरनाक है. अभी खुजली होगी फिर एलर्जी हो जाएगी. मैं तेरा पापा हूँ कोई गैर नहीं.. मुझसे कैसी शर्म!
सुगंधा- अच्छा पापा कर दो मगर प्लीज़ लाइट बंद कर दो ना प्लीज़.. मुझे शर्म आ रही है.

जयशंकर जी ने सुगंधा की बात मान ली, वैसे अंधेरा होने में उनका ही फायदा था. वो खुलकर मज़े ले सकते थे और बाप-बेटी के बीच ये परदा भी बना रहता.

जयशंकर जी ने लाइट बंद कर दी और वो सुगंधा के मम्मों पर भूखे कुत्ते की तरह टूट पड़े. मम्मों को दबाने लगे, निप्पलों को बारी-बारी से चूसने लगे, जिससे सुगंधा की उत्तेजना बढ़ने लगी. वो बस मादक सिसकारियां लेकर मज़ा लेने लगी.
सुगंधा- आह.. सस्स पापा.. आह.. अच्छा लग रहा है. उई काटो मत ना.. आह.. हाँ ऐसे ही आह.. आराम से चूसो उफ्फ आह…

काफ़ी देर तक जयशंकर जी अपनी बेटी के मम्मों को चूसते रहे. अब तो सुगंधा की चुत भी पानी टपकाने लगी थी. वो एकदम गर्म हो चुकी थी और यही हाल जयशंकर जी का भी था. उनका लंड अकड़ कर दर्द करने लगा था.

जब सुगंधा से बर्दाश्त नहीं हुआ तो उसने दूसरा दांव खेला, जो जयशंकर जी के लिए भी फायदेमंद साबित हुआ.

सुगंधा- आह.. पापा बस भी करो.. अब ठीक हो गया है. मुझे बहुत बेचैनी हो रही है.
जयशंकर जी समझ गए ये उत्तेज़ित हो गई है और इसकी चुत रिस रही होगी.
जयशंकर- कैसी बेचैनी बेटा.. मुझे ठीक से बता ना.. मैं सब कुछ ठीक कर दूँगा.
सुगंधा- पापा व्व..वो वो शायद चींटी ने मेरे पैरों के ऊपर भी काटा है.. वहां भी खुजली हो रही है.
जयशंकर- पैरों पर कहाँ? बता मुझे मैं अभी चूस कर ठीक कर देता हूँ.
 
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सुगंधा खुलकर बोल नहीं सकती थी कि मेरी चुत को चाटो, वहां बेचैनी हो रही है और जयशंकर जी अच्छी तरह जानते थे कि उनको कहाँ चूसना है. मगर ये शर्म का झूठा परदा भर दोनों ने लगाया हुआ था.
सुगंधा- अब आपको कैसे बताऊं पापा.. वो नीचे मेरा मतलब पैरों के ऊपर एकदम वहां..
जयशंकर- अच्छा अच्छा वहां.. मैं समझ गया, तू रहने दे. बस अपने पैरों को थोड़ा खोल दे, मैं अभी ठीक कर देता हूँ.

सुगंधा ने नाइटी ऊपर कर दी और घुटनों को मोड़कर अपनी चुत जयशंकर जी के सामने खोल दी.

वैसे तो कमरे की लाइट बंद थी मगर बाहर से हल्की रोशनी अन्दर आ रही थी और उसने सुगंधा की चुत एकदम चमक रही थी. चूंकि उसकी चुत का रस बहकर चुत पर फैल गया था और अंधेरे में चमक फैला रहा था. सुगंधा की चुत से भीनी भीनी खुशबू आ रही थी, जो जयशंकर जी को और पागल बना रही थी.

जयशंकर जी ने पहले तो उसकी जाँघों को चूमा-चाटा, उसके बाद वो सीधे चुत को चूसने में लग गए.

सुगंधा- आह.. सस्स पापा.. आह.. यहीं बहुत खुजली हो रही है.. उफ्फ आह.. आह…

जयशंकर जी तो खुद चुत के आशिक थे. अब तो सुगंधा ने उनको खुला निमन्त्रण दे दिया था. वो बड़े मज़े से चुत को चूसने लगे.
चुत चूसते हुए उनको एक ख्याल आया कि ये जो हो रहा है, सुगंधा जानबूझ कर तो नहीं करा रही ना. कहीं वो अपनी उंगली से चुत को चोदती होगी या किसी लड़के के साथ कहीं चुदवा तो नहीं ली. बस यही ख्याल उनके मन में घूमने लगा.
अब जयशंकर जी कभी अपनी जीभ से चुत को कुरेदते, अपनी जीभ की नोक चुत में घुसेड़ने की कोशिश करते और एक बार तो उन्होंने उंगली चुत में घुसाने की कोशिश भी कि जिसका परिणाम जल्दी उनके सामने था.

सुगंधा- ओह पापा.. क्या कर रहे हो आह.. सस्स दुख़्ता है ना.. बस चूस के दर्द दूर कर दो.. आप हाथ मत लगाओ.

सुगंधा की चीख उनके लिए ये इशारा थी कि वो एकदम अनछुई कली है. अब वो और जोश में चुत चुसाई करने लगे. परिणाम स्वरूप अब सुगंधा अपने चरम पे पहुँच गई थी. सुगंधा ने अपनी चुत उठा कर अपने पापा के मुँह से लगा दी- आह.. पापा सस्स.. आह.. ज़ोर से यहीं चींटी ने काटा था आह.. जल्दी आह.. बहुत तेज खुजली हो रही है.

जयशंकर जी समझ गए कि ये अब झड़ने वाली है. वो चुत के होंठों को अपने मुँह में भरकर ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगे और सुगंधा का रस बह गया, जिसे जयशंकर जी ने चाट कर साफ कर दिया. अब सुगंधा की आग तो ठंडी हो गई थी और ये सब अंजाने बहाने में ही सही.. मगर दोनों को पता था कि अभी क्या हुआ है.

सुगंधा- आह.. सस्स बस पापा.. अब ठीक है.. ठीक हो गया.

जयशंकर जी ने चुत को एकदम चाट कर साफ कर दिया. फिर सुगंधा के पास बैठ गए और उसके सर को सहलाने लगे. सुगंधा तो ठंडी हो गई थी मगर वो जानती थी कि उसके पापा अब वासना की आग में जल रहे हैं और अब उनको शांत करने की उसकी बारी है. मगर उसके लिए भी कोई आइडिया तो लगाना ही पड़ेगा.. और वो सोचने लगी.

सुगंधा- पापा आप बहुत अच्छे हो.. मेरा कितना ख्याल रखते हो आप.
जयशंकर- अरे तू मेरी लाड़ली बेटी है.. तेरा ख्याल ना रखूं तो किसका रखूं.
सुगंधा- पापा मुझे भी आपके लिए कुछ करना है.. आप बताओ मैं क्या करूँ.
जयशंकर- अरे तू क्या करेगी.. चल आजा मेरी गोद में सो जा, तेरे सर को सहला देता हूँ.

जयशंकर जी की बात सुनकर सुगंधा को आइडिया मिल गया. जब उसके पापा आसानी से उसकी चुत को चूस सकते हैं तो वो उनके लंड को क्यों नहीं पकड़ सकती. वो जल्दी से उनकी गोदी में लेट गई. अब उसके होंठ लंड के एकदम करीब थे और लंड अभी भी खड़ा हुआ था.
सुगंधा- पापा वो हम खेल रहे थे तो आपने मुझे क्या चूसने को दिया था.. उसका स्वाद बहुत अच्छा था. प्लीज़ एक बार दिखाओ ना.

सुगंधा ने इनडाइरेक्ट्ली अपने पापा के लंड को देखने की इच्छा जाहिर कर दी.
जयशंकर- अच्छा तुझे इतना पसंद आया वो..?
सुगंधा- हाँ पापा रियली उसका टेस्ट बहुत ही ज़्यादा अच्छा था. काश वैसा बहुत सारा रस एक साथ मिल जाए.

सुगंधा के इशारे जयशंकर जी को समझ में आ रहे थे. वो ये भी समझ गए कि सुगंधा को लंड का पता लग गया है और अब उसका दोबारा उसको चूसने का मन कर रहा है.. वीर्य पीने का दिल कर रहा है.

जयशंकर जी सुगंधा की बात को समझ तो गए मगर वो सीधे कैसे उसके मुँह में लंड घुसा देते. वो कुछ सोचते तभी सुगंधा ने धीरे से उनके लंड पे उंगली टिका दी, जिससे उनका काम आसान हो गया.

जयशंकर- मैं तुझे सुला देता हूँ. तू एक काम कर, मेरी जाँघ पर थोड़ा खुजा दे, थोड़ी बेचैनी हो रही है.
सुगंधा- पापा आपको तो चींटी ने नहीं काटा ना.. मैं देखूं क्या?
जयशंकर- अरे नहीं नहीं, ये तो ऐसे ही हो रही है.. तू ऐसे ही खुजा दे.

सुगंधा को इशारा मिल गया था, अब वो धीरे-धीरे उनकी जाँघ पे हाथ घुमा रही थी.. साथ ही साथ लंड को भी हाथ लगा देती.

जयशंकर- हाँ ऐसे ही कर.. अच्छा लग रहा है.

सुगंधा कुछ देर तो डरते-डरते लंड को छू रही थी मगर थोड़ी देर बाद वो खुल गई और सीधे लंड को पकड़ लिया और जैसे ही जयशंकर जी का अज़गर उसके हाथ में आया, उसकी साँसें ऊपर-नीचे हो गईं और होती भी क्यों नहीं.. आपको तो पता ही है. वो एक 10″ का काफ़ी मोटा लौड़ा था.

सुगंधा अपने मन में बुदबुदाने लगी- हे राम इतना बड़ा है पापा का लंड.. और मोटा भी कितना है, तभी मेरे मुँह में ठीक से नहीं घुस पा रहा था. इसको तो आज चूस कर ठंडा कर दूँगी, तभी मुझे सुकून मिलेगा.

सुगंधा का हाथ लंड पर पड़ते ही जयशंकर जी ने भी चैन की सांस ली. अब उनको यकीन हो गया था कि ये खेल मजेदार होने वाला है.

जयशंकर- आह.. बेटी ऐसे ही सहलाती रह.. इससे मुझे बड़ा आराम मिल रहा है.
सुगंधा ने लंड को मसल कर उसे जांघ कहते हुए कहा- पापा आपकी जाँघ इतनी गर्म क्यों है.. और कितनी सख़्त भी है ये.

सुगंधा अब भी अंधेरे में नासमझी का नाटक कर रही थी मगर इससे क्या फर्क पड़ता है. दोनों अब वासना के जाल में फँस चुके थे. अब इनकी ये वासना इन्हें कहाँ लेकर जाएगी ये तो आने वाला वक़्त बताएगा. अभी तो इन्हें ही देखते हैं.

जयशंकर- आदमी की जाँघ ऐसे ही सख़्त होती है.. तू बस सहलाती रह बेटा.

सुगंधा- पापा आपकी लुंगी की वजह से ठीक से नहीं कर पा रही.. इसको थोड़ा साइड में कर के कर दूँ क्या??
सुगंधा की सारी शर्मोहया अब हवा हो गई थी. वो खुलकर लंड को सहलाना चाहती थी.

जयशंकर- तेरा जैसा मन करे, तू वैसे कर ले बेटी.. मुझे क्या दिक्कत है.

सुगंधा ने लुंगी को एक तरफ़ सरका दिया. अब जयशंकर जी का लंड आज़ाद था और वो किसी ज़हरीले नाग की तरह फुंफकार रहा था. उसे तो बस चुत की जरूरत थी.. मगर इस वक़्त उसको चुत तो नहीं मिली लेकिन एक कमसिन कली का स्पर्श उसको और पागल बना रहा था.

सुगंधा अब बड़े प्यार से लंड को सहला रही थी. ऊपर से नीचे तक पूरा हाथ में लेकर लंड को आगे-पीछे कर रही थी.

जयशंकर- सस्स सुगंधा.. आह.. अच्छा लग रहा है.. मुझे लगता है यहाँ मुझे भी चींटी ने काटा होगा.. थोड़ी जलन हो रही है अगर तुझे कोई दिक्कत ना हो तो बेटा थोड़ा चूस दे ना.
सुगंधा- पापा आप कैसी बात कर रहे हो.. मुझे क्या दिक्कत होगी, आपने भी तो मुझे कितना आराम दिया है.

इतना कहकर सुगंधा ने अपने सर को ठीक किया. वो अपने पापा के लंड सुपारे को जीभ से चाटने लगी और धीरे-धीरे उसने सुपारा मुँह में लेकर चूसने लगी.

जयशंकर जी धीरे-धीरे सुगंधा की पीठ को सहला रहे थे और मज़ा ले रहे थे. इधर सुगंधा बड़े मज़े से अपने पापा के लंड को चूस रही थी. उसकी पूरी कोशिश थी कि ज़्यादा से ज़्यादा लंड वो निगल जाए. मगर इतना बड़ा लौड़ा पूरा मुँह में लेना उसके बस का नहीं था. बस जितना वो ले सकती थी, उसने लिया और लंड पे चुप्पे मारने लगी.

जयशंकर जी तो अपनी बेटी से लंड चुसवा कर स्वर्ग की सैर पर निकल गए. उनके मुँह से मादक सिसकारियां निकलने लगीं. काफ़ी देर तक सुगंधा उनको मज़ा देती रही.. जब वो चरम पर पहुँच गए तो..
जयशंकर- बस सुगंधा सस्स आह.. अब आराम है.. आह.. रहने दो नहीं करो.. आह…

मगर सुगंधा कहाँ मानने वाली थी. उसको पता था जिस वीर्य से उसका जन्म हुआ है.. आज वही उसको पीने को मिलेगा. उसने और तेज़ी से लंड की चुसाई शुरू कर दी और अगले ही पल वीर्य की तेज धार उसके गले में उतर गई. एक के बाद ना जाने ऐसी कितनी धारें निकलीं, जिसे सुगंधा ने गटक लिया और आख़िरी बूँद तक सुपारे से निचोड़ डाली. उसके बाद वो अलग होकर लेट गई.

सुगंधा- पापा लगता है बहुत सारी चींटियों ने आपको काटा था, तभी बहुत सारा जहर निकला. अब आपको आराम मिला ना..!
जयशंकर- हाँ सुगंधा बहुत आराम मिला.. तू बहुत अच्छी है मगर ये जो हुआ सही था क्या..? हम बाप बेटी हैं बेटा..!
सुगंधा- ये आप क्या बोल रहे हो मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा. इसमें सही ग़लत कहाँ से आ गया? चींटी ने काटा तो आपने मेरी हेल्प की.. और मैंने आप की हेल्प की. अब आप जाओ मुझे बहुत नींद आ रही है, सुबह कॉलेज भी जाना है.

जयशंकर जी समझ नहीं पाए ये क्या है. सुगंधा अब भी परदा बनाए हुए है. वो उठे और वहां से निकल गए.

जयशंकर जी के जाने के बाद सुगंधा ने चैन की सांस ली. उसकी ज़रा भी हिम्मत नहीं थी इस टॉपिक पे उनसे बात करने की. उधर जयशंकर जी भी झिझक रहे थे तो उन्होंने जाना ही ठीक समझा और जाकर सो गए. इधर सुगंधा भी सोचती रही और कब उसको भी नींद आ गई पता नहीं चला.

दोस्तो सुबह हो गई और रोज की तरह सुगंधा अपने कॉलेज चली गई

सुगंधा सीधी अपने घर चली गई तो देखा पापा भी वहीं थे.. और उनके और मम्मी जी के बीच कोई बात चल रही थी, जो शायद कुछ गड़बड़ का संकेत दे रही थी.

जयशंकर- बेटा तेरी नानी की तबीयत बहुत खराब है. शायद उनका अंतिम समय आ गया है.
सुगंधा- पापा ठीक कह रहे हैं माँ.. आपको वहां जाना चाहिए

सुगंधा और जयशंकर जी ने मम्मी को समझाया तो वो मान गईं. सुगंधा का कॉलेज और जयशंकर जी की दुकान की वजह से दोनों नहीं जा सकते थे, तो ये तय हुआ कि शाम की ट्रेन से मम्मी जी जयपुर जाएंगी.

जयशंकर जी टिकट लेने चले गए और सुगंधा ने खाना खाया, फिर वो पैकिंग में अपनी माँ की मदद करने लगी.

दोपहर से शाम कब हुई, पता भी नहीं चला. दोनों बाप-बेटी मम्मी को स्टेशन छोड़ने गए

मम्मी के जाने से दोनों बाप-बेटी बहुत रिलेक्स फील कर रहे थे. सुगंधा ने नाइटी पहनी हुई थी और खाना तैयार कर रही थी और पापा जी तो वही अपनी लुंगी में मस्त थे. अब मम्मी नहीं है तो आज वो खुलकर मज़ा लेने के मूड में थे.

सुगंधा रोटी बना रही थी और उसकी गांड पीछे को निकली हुई थी, जिसे देख कर पापा जी का मन मचल गया, वो उसके पीछे गए और लंड को लुंगी से बाहर निकाल कर उन्होंने धीरे से सुगंधा की नाइटी ऊपर की.. तो देख कर खुश हो गए कि उसने भी अन्दर कुछ नहीं पहना था. फिर उन्होंने लंड को दोनों जाँघों के बीच फंसाया और सुगंधा से चिपक कर खड़े हो गए.

सुगंधा को जब गर्म अहसास हुआ वो समझ गई कि पापा जी ने लंड को कैसे फँसाया हुआ है मगर वो अनजान बनी रही.
सुगंधा- क्या पापा क्यों परेशान कर रहे हो.. मुझे रोटी बनाने दो ना.
पापा- अरे तो किसने रोका है.. तू अपना काम कर, मैं तो बस तुझे देख रहा हूँ.
सुगंधा- लेकिन आप मुझसे चिपके हुए हो.. मुझे दिक्कत हो रही है ना.
पापा- अरे इसमें दिक्कत कैसी.. तू अपना काम कर, मैं अपना कर रहा हूँ.
सुगंधा- आप बहुत शरारती हो पापा.. अभी जाओ यहाँ से.. आपका काम मैं खाने के बाद कर दूँगी ना.. ऐसे तो मुझसे रोटी ही नहीं बनेगी.
पापा- तूने कल भी नहीं किया था.. बस नींद का बहाना मार दिया.
सुगंधा- अच्छा मेरे अच्छे पापा आज पक्का कर दूँगी.. अब आप यहाँ से जाओ.

पापा जी का लंड चुत से रगड़ खा रहा था, जिससे सुगंधा को भी मज़ा आ रहा था. उसकी चुत एकदम गीली हो गई थी.

पापा- अरे रहने दे ना और वैसे भी तुझे भी तो मेरा ऐसे चिपकना अच्छा लग रहा है.. फिर हटा क्यों रही है.
सुगंधा- नहीं मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा.. आप बस जाओ यहाँ से.
पापा- अच्छा, बिना मज़ा आए ही तेरा रस टपक रहा है क्या?

सुगंधा जल्दी से पलटी और अपने पापा को धक्का देकर अलग किया. तभी उसकी नज़र उनके लंड पर चली गई जो एकदम तना हुआ खड़ा था. आज पहली बार सुगंधा ने लाइट की रोशनी में पापा का लंड देखा था. वो बस पापा का मूसल लंड देखती ही रह गई. जब जयशंकर जी को यह अहसास हुआ तो उन्होंने जल्दी से लुंगी ठीक की.
सुगंधा- पापा आप बहुत बदमाश हो.. कुछ भी बोल देते हो, अब जाओ यहाँ से.

जयशंकर जी ने रुकना चाहा मगर सुगंधा ने ज़िद की तो वो बाहर चले गए और फ्रीज़ से बियर की बोतल निकाल कर बैठ गए.

उधर सुगंधा तो बस लंड के बारे में ही सोच रही थी. आज उसने उस भीमकाय लंड को ऐसे तना हुआ देखा था. सुगंधा सोचने लगी कि वाउ पापा का लंड तो बहुत प्यारा है.. आज तक बस अँधेरे में उसको चूसा है, मगर आज तो ऐसे ही देख कर मज़ा लूँगी मैं..

जयशंकर जी लंड सहलाते हुए बुदबुदा रहे थे- बस सुगंधा, ये लुका-छिपी बहुत हो गई. आज तो तुझे चुदने के लिए बोल ही देता हूँ. अब मुझसे बर्दाश्त नहीं होता.

अन्दर सुगंधा कुछ और सोच रही थी और बाहर जयशंकर जी कुछ और

सुगंधा का खाना रेडी हो गया था. जब वो बाहर आई, तो उसके पापा जी मज़े से बियर पी रहे थे.
सुगंधा- ओह.. पापा.. ये क्या है आप अभी क्यों पीने लगे.. पहले खाना तो खा लेते. उसके बाद आराम से पी लेते और मैंने भी तो कहा था मैं भी पीऊंगी.
पापा- सुगंधा, ये चाय नहीं जो खाने के बाद पी जाए. ये बियर है बेटा इसको खाने के पहले ही पीते हैं.
सुगंधा- तो ठीक है लाओ मुझे भी दो.. मैं भी तो देखूं ये क्या है.
पापा- ये तेरे काम की नहीं है बेटा.. तुझे इससे नशा हो जाएगा.
सुगंधा- आपने तो कहा था ये शराब नहीं है.. फिर नशा कैसे होगा?

जयशंकर जी ने सुगंधा को बहुत समझाया कि पहली बार पीने से नशा होता है मगर वो नहीं मानी और गिलास में बियर डालकर पीने लगी. पहली बार तो उसको ये बहुत अजीब लगी मगर धीरे-धीरे इसका टेस्ट सुगंधा को भा गया. उसने आधी बोतल गटक ली.
पापा- बस कर.. नहीं तो यहीं लुढ़क जाएगी. चल अब खाना लगा बहुत भूख लगी है. उसके बाद आज तुझे मेरे साथ ही सोना है.. तेरी माँ तो है नहीं ना..!
सुगंधा- हिच हिच.. नहीं मैं आपके साथ नहीं सोऊंगी.. आप मुझे.. हिच हिच.. परेशान करोगे.
सुगंधा की आँखें नशे से लाल हो गई थीं.. उसकी ज़ुबान भी लड़खड़ा रही थी.

पापा- मैंने कहा था ना मत पी, अब चढ़ गई ना.. देख सोना तो तुझे मेरे साथ ही पड़ेगा.. आज मुझे मज़ा देने का तेरा अपना पक्का वादा याद है ना?
सुगंधा- हाँ याद है.. हिच एमेम मगर वो करने के बाद मैं अपने कमरे में सो जाऊँगी.. हिच.. नहीं तो आप पूरी रात सताओगे.
पापा- तुझे बहुत चढ़ गई है. तू यहाँ बैठ मैं खाना लगाता हूँ और तेरा इलाज भी करता हूँ. नहीं तो तू ऐसे ही हिचकियां लेती रहेगी और मेरा भी मूड खराब करेगी.

जयशंकर जी ने खाना लगाया और सुगंधा को नींबू काट कर चूसने को दिया, जिससे उसका नशा थोड़ा कम हो और एक गिलास में नींबू पानी भी बना के उसको पिला दिया, जिससे उसकी हिचकी बंद हो गई.

दोनों ने जमकर खाना खाया. फिर जयशंकर जी सुगंधा को अपने कमरे में ले गए. बियर का नशा अभी भी सुगंधा पर था मगर बहुत कम हो गया था. अब वो अपने पापा से ठीक से बात कर रही थी- पापा लाइट बंद कर दो ना ऐसे हम दोनों को नींद कैसे आएगी?
पापा- अरे अभी से सोने की बात कर रही है.. मुझे आराम तो दे दे पहले.. या पहले मैं तुझे मज़ा दूँ?
सुगंधा- ये सब बाद में.. पहले लाइट बंद कर दो आप.. ओके..!
पापा- अरे अंधेरे में तो रोज ही करती हो.. आज ऐसे ही करो ना सुगंधा.
 
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सुगंधा- नहीं पापा मुझे शर्म आती है.

जयशंकर जी ने साफ़ साफ़ कह दिया- ये क्या बात हुई सुगंधा, तुम मेरा लौड़ा कई बार चूस चुकी हो और मुझसे अपनी चुत चटवा चुकी हो.. अब कैसी शर्म?
सुगंधा- छी: पापा ये आज आप कैसी बातें कर रहे हो.. मैं नहीं सोती यहाँ.. मैं जा रही हूँ.

सुगंधा उठ कर जाने लगी तो जयशंकर जी ने उसे पकड़ लिया और बिस्तर पे गिरा कर खुद उसके ऊपर आ गए और अब दोनों की गर्म साँसें एक-दूसरे के होंठों पे पड़ रही थी. बस किसी के पहल करने की देर थी.

सुगंधा- नहीं पापा.. ये ग़लत है आप ऐसा नहीं कर सकते.. मैं आपकी बेटी हूँ.
पापा- सुगंधा कुछ ग़लत नहीं है. इन दिनों हम दोनों ने जो किया, वो यही तो था. बस हम दोनों अनजान बने हुए थे और आज खुलकर मज़ा करेंगे.

पापा- मेरी बेटी, तुम कितनी अच्छी हो. आई लव यू डार्लिंग मगर तुम शायद ये भूल गई कि अगर तुम मुझे तड़पाओगी तो तुम भी तो साथ में तड़पोगी ना.. अब तुम्हें भी तो लंड की जरूरत पड़ेगी तो कोई और क्यों? तुम ही मेरे साथ कर लो ना.. ताकि घर की बात घर में ही रहे.
सुगंधा- नहीं पापा मुझे डर लगता है.. इससे बहुत दर्द होता है.. नहीं नहीं.. मैं नहीं करूँगी.
पापा- अरे तूने कभी किया ही नहीं तो तुझे क्या पता दर्द होगा.
सुगंधा- पापा मैं कोई बच्ची नहीं हूँ. इतना तो पता ही है, इसके लिए करना जरूरी नहीं है.
पापा- अच्छा तू किसी और पे भरोसा मत कर.. मैं तेरा बाप हूँ मुझपे तो तुझे भरोसा है ना, मैं बहुत आराम से करूंगा… एकदम धीरे-धीरे..!
सुगंधा- पापा, मैं आपका लंड चूस कर पानी निकाल देती हूँ ना.. प्लीज़ मुझे बहुत डर लग रहा है. मेरा सेक्स करने का कोई इरादा नहीं था, आप समझो ना प्लीज़.

सुगंधा के चेहरे पर डर साफ नज़र आ रहा था.
पापा- देख सुगंधा, तू मेरी बात सुन आज नहीं तो कल तुझे चुदाई करनी ही होगी. मुझसे नहीं तो किसी और से.. या शादी के बाद अपने पति से तो चुदेगी ही, तब क्या होगा.. सोच?
सुगंधा- पापा, पता नहीं मुझे इससे इतना डर क्यों लगता है.
पापा- अच्छा तुझे कैसे पता दर्द का.. कुछ तो हुआ होगा? तू खुलकर मुझे बता ना!

सुगंधा ने बताया वो एक बार नहा रही थी तब नीचे साबुन लगाते टाइम ग़लती से उसकी उंगली अन्दर चली गई तो बहुत दर्द हुआ था.. तब से उसको डर लगता है. सुगंधा ने एक झूठी कहानी सुनाई .

जयशंकर जी समझ गए कि सुगंधा को सेक्स फोबिया है यानि इंसान किसी भी चीज का वहाँ अपने मन में तय कर लेता है, फिर वही उसका डर बन जाता है. हालांकि सुगंधा ने कभी चुदाई नहीं की थी मगर एक बार चुत रगड़ते टाइम उसकी उंगली जरा सी अन्दर घुस गई थी बस उसी पल से उसको अहसास हुआ कि ये छोटी सी उंगली से इतना दर्द हुआ तो लंड से कितना होगा और यही डर धीरे-धीरे उसको चुदाई के खिलाफ कर चुका था.

पापा- अच्छा ये बात है.. चल जाने दे मैं तेरी चुदाई नहीं करूंगा मगर तुझे मैं खुलकर प्यार तो कर सकता हूँ ना.. उसमें तो तू मेरा साथ देगी ना.
सुगंधा- हाँ पापा, सेक्स के अलावा आप कुछ भी कहो… मैं करने को रेडी हूँ.
पापा- तो ठीक है ये नाइटी निकाल दे, मैं रोशनी में तेरे जिस्म को देखना चाहता हूँ.. इसे चूसना चाहता हूँ तेरे निपल्स को निचोड़ कर इनका रस पीना चाहता हूँ.
सुगंधा- चुप करो पापा, मुझे आप से शर्म आ रही है.

जयशंकर जी ने अपनी लुंगी उतार दी और लंड को हाथ से सहलाते हुए बोले- अरे लंड चूसने में शर्म नहीं आई तो देखने में कैसी शर्म? ये देख कैसे मेरा लंड तुझे बुला रहा है.. चल अब निकाल दे.
सुगंधा- पापा आप ही निकाल लो ना प्लीज़.

सुगंधा ने इशारा दे दिया तो जयशंकर जी आगे बढ़े और बेटी को नंगी कर दिया अब वो ऊपर से नीचे तक सुगंधा को निहार रहे थे और मन ही मन अपनी कामयाबी पे खुश हो रहे थे, उन्होंने सुगंधा को बिस्तर पर लेटाया; उसके नर्म होंठों को अपने होंठों से जकड़ लिया और फिर एक लंबी किस के बाद वो सुगंधा की जीभ को चूसने लगे.
अब सुगंधा भी खुलकर उनका साथ दे रही थी.

अब जयशंकर जी उसके मम्मों पर टूट पड़े और निप्पलों को ऐसे चूसने लगे जैसे कोई बच्चा दूध पी रहा हो.
सुगंधा- आह.. पापा नहीं.. आह.. मज़ा आ रहा है.. आप बहुत अच्छे हो.. आह.. चूसो उफ्फ ऐसे ही दबाओ इन्हें आह..
जयशंकर जी मंजे हुए खिलाड़ी थे और सुगंधा नादान कली थी, उसको तो मज़ा आना ही था. अब जयशंकर उसके गले पर सीने के ऊपर पेट पर हर जगह चूम रहे थे, चाट रहे थे और सुगंधा तड़प रही थी.

धीरे-धीरे जयशंकर जी अब नीचे चुत पर आ गए और सुगंधा की जांघें चूसने लगे. अब सुगंधा की उत्तेजना बहुत बढ़ गई थी चुत के बाँध को रोके रखना अब उसके बस का नहीं था.
सुगंधा- ससस्स पापा आह नहीं.. आह.. उफ़फ्फ़.. मेरा पानी निकालने वाला है.
जयशंकर जी समझ गए कि अब रस की धारा आने वाली है, वो जल्दी से बेटी की चुत से चिपक गए और चुत को होंठों में दबा कर चूसने लगे. उसी पल सुगंधा की चुत का लावा बह गया वो कमर को हिला हिला कर झड़ने लगी और जयशंकर जी सारा रस चाट गए.

सुगंधा- आह.. पापा उफ़फ्फ़.. बस भी करो जान निकाल कर मानोगे क्या.. आह.. आज तो आपने मेरी चाटे बिना ही पानी निकाल दिया.
पापा- क्या चाटे बिना.. चुत बोल सुगंधा.. मुझे तेरे मुँह से सुनकर अच्छा लगेगा.
सुगंधा- नहीं मुझे शर्म आती है.
पापा- अरे नंगी चुत को चटवा सकती है तो पापा की ख़ुशी के लिए बोल नहीं सकती.
सुगंधा- अच्छा ठीक है चुत को आपने चाटा.. मुझे अच्छा लगा. बस अब आप खुश..!
पापा- हाँ मेरी जान खुश. अब तू क्या करेगी.. वो भी बोल कर बता.
सुगंधा- मैं आपके इस लंबे लंड को चूस कर ठंडा करूंगी और आपका रस पीऊंगी.
पापा- आह.. मज़ा आ गया तेरे मुँह से ये चुत और लंड सुनना कितना अच्छा लगता है.
सुगंधा- चलो अब आप लेट जाओ और मैं भी आपको उसी तरह मज़ा दूँगी जैसे अपने मुझे अभी दिया है.
पापा- ठीक है सुगंधा जैसा तेरा मन करे, तू कर ले.. निकाल ले अपने मन की.

जयशंकर जी लेट गए तो सुगंधा उन्हें किस करने लगी. उनके सीने पर भी किस किया.. फिर उसकी लंड चूसने की ललक उसको नीचे ले गई और वो मज़े से लंड को चूसने लगी. साथ ही साथ वो गोटियां भी चूस रही थी.

पापा- आह.. सुगंधा आज तूने मेरी बरसों की तमन्ना पूरी कर दी.. आह.. उफ्फ.. चूस मेरी जान आ चूस.
पापा की बातें सुगंधा को और जोश दिला रही थी. अब वो और तेज़ी से लंड को चूस रही थी.
पापा- आह.. सुगंधा चूस.. तेरे होंठों में इतनी गर्मी है..तो तेरी चुत कैसी होगी उफ्फ चूस आह…

काफ़ी देर तक ये चुसाई चलती रही उसके बाद जयशंकर जी झड़ गए. सुगंधा ने उनका पूरा वीर्य गटक लिया और लास्ट बूँद भी जीभ से छत कर साफ कर दी.
 
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पापा- सुगंधा तुम बहुत अच्छी तरह लंड चूसती हो.. ये कहाँ से सीखा तुमने?
सुगंधा- मैं कहाँ से सीखूँगी.. आपने ही पहले चुसाया था.. तब से सीखी हूँ बस.
पापा- अरे मैं कोई इल्ज़ाम नहीं लगा रहा बेटी.. बस मैं तो ऐसे ही पूछ रहा था.

अब प्लीज़ मान जाओ ना. बस एक बार हाँ कहो. कि मैं तुझे ही चोदूँ.. ताकि घर की बात बाहर ना जाए.
सुगंधा- नहीं पापा मैंने बताया तो है आपको.. मुझे डर लगता है.
पापा- अरे शादी के बाद पति रहम नहीं करेगा.. वो तो ज़बरदस्ती तेरी चुत में लंड घुसा देगा और तब ज़्यादा दर्द होगा. इससे अच्छा तू मुझसे चुदवा ले. मैं तेरा बाप हूँ तुझे बहुत प्यार से चोदूँगा समझी.

सुगंधा ने थोड़ी देर सोचा कि पापा सही कह रहे हैं और पापा से चुदवाने में फायदा भी है. पापा- क्या सोच रही हो सुगंधा. ये दुनिया बहुत खराब है, इसमें जीना है तो इसके तौर-तरीके सीखने जरूरी है. नहीं तो बाद में तुम्हें मौका नहीं मिलेगा.
सुगंधा- ठीक है पापा, मैं आपकी बात मान लेती हूँ.. मगर आपका लंड बहुत बड़ा है और मुझे पता है एक बार तो ये मेरी जान निकाल ही देगा और कल कॉलेज में मेरा जाना बहुत जरूरी है तो आज आप बस ऐसे ही मज़ा ले लो, कल आप मेरी चुत मार लेना.

पापा- थैंक्स बेटा मुझे ये मौका देने के लिए.. अब इतना वेट किया है तो एक दिन और सही.. बस कल देखना मैं तुझे कैसे कली से खिलता हुआ गुलाब बना देता हूँ.
सुगंधा- ठीक है पापा आपकी बातों से चुत में फिर हलचल शुरू हो गई है. एक बार और इसको चूस कर ठंडा कर दो ना.
पापा- क्यों नहीं मेरी जान तेरी चुत को तो पूरी रात चूस सकता हूँ.. मगर बदले में तुझे भी कुछ करना होगा.
सुगंधा- नहीं पापा आपका पानी बहुत देर से निकलता है और दूसरी बार तो पता नहीं कितनी देर लगेगी. फिर मुझे सुबह जल्दी उठने में तकलीफ़ हो जाएगी.

पापा- अरे मैं लंड चूसने को नहीं बोल रहा.. पहले मेरी बात सुन तो लेती.
सुगंधा- अच्छा तो फिर क्या बात है.
पापा- आज रात तू ऐसे ही नंगी मेरे साथ चिपक कर सोएगी, यहीं इसी कमरे में.
सुगंधा- नहीं पापा पूरी रात ऐसे नंगी.. नहीं नहीं.. रात को आपका दिमाग़ घूम गया और अपने मेरी चुत में लंड घुसा दिया तो?
पापा- अरे मैं तेरा पापा हूँ कोई जल्लाद नहीं और तुम्हें मुझपे इतना भी भरोसा नहीं है क्या? ऐसी हरकत मैं क्यों करूँगा?

सुगंधा- सॉरी पापा ग़लती हो गई अच्छा ठीक है हम ऐसे ही सोएंगे.. चलो अब जल्दी से मेरी चुत को ठंडा करो.
पापा- पहले मैं अपना लंड चुत पे रगड़ता हूँ.. फिर चाट लूँगा.. ठीक है.
सुगंधा- नहीं आप फिर गर्म हो जाओगे तो मुझे भी आपका पानी निकालना पड़ेगा. आप ऐसे ही कर दो फिर चुपचाप सो जाएँगे.

पापा मान गए और अबकी बार उन्होंने जीभ से चुत को कुरेद कर सुगंधा को मज़ा दिया. फिर अच्छे से चुत की चुसाई की और उसको ठंडा किया.

सुगंधा- थैंक्स पापा.. अब हम सो जाएं मगर आपका लंड तो बहुत कड़क हो गया.
पापा- कोई बात नहीं बेटा, इसको ऐसे सूखा रहने की आदत है.. मगर बस आज की बात है. कल से तो इसकी हर रात रंगीन हो जाएगी.
सुगंधा- हाँ पापा, मैं कोशिश करूंगी कि आपको कभी सूखा ना रहना पड़े लेकिन माँ के आने के बाद हम कैसे करेंगे?
पापा- जैसे अभी कर रहे हैं.. वैसे ही करेंगे.
सुगंधा- ओके पापा जी.
पापा- बस मेरी जान अब कल का इन्तजार है. उसके बाद सब कमी दूर हो जाएगी.

जयशंकर जी ने सुगंधा को अपने से चिपका कर सुला लिया. सुगंधा तो दो बार झड़ने के कारण थक गई थी, तो उसको जल्दी नींद आ गई. मगर जयशंकर जी सोने की कोशिश करते रहे. वैसे तो ऐसी कली पास में हो और वो भी नंगी, तो किस पागल को नींद आएगी मगर जयशंकर जी ने अपने ज़ज्बात पर काबू रखा और देर से ही सही, उनको भी नींद आ ही गई.

रात को अपने पापा से वादा करके सुगंधा सो गई थी. सुबह वो उठी तो पापा जी का लंड अकड़ा हुआ था, जिसे देख कर सुगंधा के मुँह में पानी आ गया.
सुगंधा- उह… पापा आपका लंड है या गन्ना, हमेशा खड़ा ही रहता है, अब सुबह-सुबह ही देखो कैसे तना हुआ है. अब इसको ठंडा करने के बाद ही मैं फ्रेश होने जाऊंगी. नहीं तो ये आपको परेशान करेगा.
सुगंधा ने अपने पापा के लंड के सुपारे को मुँह में ले लिया और उसको मजे से चूसने लगी. तभी जयशंकर की आँख खुल गई और वो ये नजारा देख कर बहुत खुश हो गए.

पापा- आह.. मजा आ गया बेटी.. अगर ऐसे ही सुबह सुबह लंड को मसाज मिल जाए तो क्या कहने. वाह… तेरी जैसी बेटी पाकर मैं धन्य हो गया सुगंधा.. आह.. चूस मेरी जान.. ओफ्फ.. मजा आ रहा है आह!
सुगंधा- ये कैसा लंड है पापा.. मैं उठी तो अकड़ा हुआ था तो मैंने सोचा इसको ठंडा कर देती हूँ.. नहीं तो ये पूरा दिन आपको परेशान करेगा.
पापा- बहुत अच्छा सोचा तूने.. आह.. चूस दे इसे, अगर तेरी चुत भी मचल रही है तो बता दे.. मैं उसको भी ठंडी कर देता हूँ.
सुगंधा- नहीं पापा इसको तड़पने दो आज तो आप इसको लंड से ही ठंडा करना.
पापा- ठीक है सुगंधा, तू कॉलेज से आकर अच्छी तरह नहा लेना. आज रात मैं तेरे लिए यादगार बनाना चाहता हूँ.
सुगंधा- सीधे से कहो ना.. सारे बाल साफ करने हैं और आप भी कर लेना. ये छोटे-छोटे बाल मेरे मुँह को चुभते हैं.
पापा- हा हा हा तू बड़ी स्यानी हो गई है.. अच्छा कर लूँगा अब जल्दी कर, इसका पानी निकालने के बाद तुझे नाश्ता भी रेडी करना है और खुद को भी रेडी करना है.

सुगंधा ने फिर लंड को मुँह में ले लिया और स्पीड से लंड चूसने लगी. साथ ही वो लंड की गोटियां भी चूस रही थी और गुलसन जी मजे की अलग ही दुनिया में खो गए थे.

बीस मिनट की ज़बरदस्त चुसाई के बाद जयशंकर जी के लंड ने पानी चोदा, जिसे उनकी बेटी सुगंधा रसमलाई समझ कर गटक गई.

पापा- आह.. मजा आ गया सुगंधा बेटी ओफ्फ.. काश तू रोज ऐसे ही सुबह सुबह मेरे लंड को शांत कर दिया करे तो कितना मजा आए.
सुगंधा- अच्छा ऐसी बात है तो रोज कर दूँगी, इसमें क्या है.. पापा, ये तो अब मेरा ही लंड है ना.
सुगंधा ने अपने बाप के लंड पे एक किस किया, फिर मुस्कुराते हुए वहाँ से उठ कर चली गई.

बस जयशंकर जी बहुत देर तक आँखें बंद किए वहीं लेटे रहे.

सुगंधा रेडी हो गई, उसने नाश्ता बना दिया और पापा के साथ नाश्ता करके वो टीना के घर की तरफ़ निकल गई.

सुगंधा घर आई और पापा को वहाँ देख कर चौंक गई.
सुगंधा- पापा, आप यहीं हो… आज आप दुकान नहीं गए?
पापा- गया था मेरी जान… मगर मन नहीं लगा तो वापिस आ गया और सोचा कॉलेज से आकर तू क्या बनाएगी क्या खाएगी, इसलिए आते वक़्त बाहर से खाना भी लेकर आ गया. मगर तू घर आने में इतनी लेट क्यों हो गई?
सुगंधा- वो पापा, मैं अपनी फ्रेंड्स के साथ उसके घर चली गई थी. मुझे पता होता आप यहीं हो तो मैं सीधे यहीं आती ना.

पापा- चल जाने दे, अब तो आ गई ना तू अब जल्दी से कपड़े चेंज कर ले. फिर साथ में खाना खाते हैं. उसके बाद हमें बहुत काम भी करने हैं.
सुगंधा- कौन से काम पापा… ज़रा आप मुझे भी तो बताओ?
पापा- सब बताऊंगा… पहले खाना तो खालो.

सुगंधा समझ गई कि जो भी काम है, वो मजेदार ही होगा और वैसे भी उसकी चुत गीली हो गई थी. अब उसको भी ठंडा करने की जरूरत थी. यही सोच कर सुगंधा अपने कमरे में गई और सिर्फ़ नाइटी पहन कर बाहर आ गई.

दोनों ने साथ में खाना खाया उसके बाद जयशंकर जी ने एक छोटा पैकेट सुगंधा को दिखाते हुए कहा- ये है वो काम.
सुगंधा- ये क्या है पापा दिखाओ तो?
‘खुद ही देख लो.’

जब सुगंधा ने पैकेट खोला, तो उसमें रेजर थे. कुछ लेडीज के और कुछ नॉर्मल, जो मर्दों के काम आते हैं.

सुगंधा- ये क्या पापा आप ये रेजर क्यों लेके आए हो… इनसे क्या करोगे?
पापा- मेरी जान, इस वाले से मेरी झांटें साफ होंगी और ये सॉफ्ट वाले से तेरी झांटें साफ होंगी… समझी तू!
सुगंधा- लेकिन इसकी क्या जरूरत थी मेरे पास तो बाल साफ़ करने वाली क्रीम है ना… मैं तो उसी से कर लेती.
पापा- नहीं मेरी बेटी क्रीम से वो चिकनाई नहीं आती, जो इससे आएगी समझी और वैसे भी तुझे डरने की जरूरत नहीं है. मैं खुद अपने हाथों से तेरी चुत को साफ करूँगा. आज उसके बाद तू मेरे लंड को साफ करना बहुत मजा आएगा.

सुगंधा- ये तो अपने बहुत मस्त आइडिया लगाया है.

पापा- सुगंधा मैंने तुम्हें समझाया तो था कि हम दोनों करेंगे. घर की बात घर में रहेगी. वैसे भी तुम इस लंड और चुत के खेल में इतना आगे आ गई हो, अब तुम्हें भी लंड की जरूरत है. नहीं तो तुम भी मेरी तरह असंतुष्ट घूमती रहोगी समझी.

सुगंधा- आपकी बात सही है.

पापा- मेरी भोली सुगंधा तू डरती क्यों है. आज तेरी मस्त चुदाई कर दूँ, और तेरा डर भी दूर हो जाएगा. फिर हम तो रोज मजा कर सकते हैं. जब तक तेरी माँ नहीं आ जातीं तब तक खुलकर चुत लंड का खेल करेंगे और उसके आने के बाद छुपकर चुदाई हो जाएगी. क्यों कैसा लगा तुझे मेरा आइडिया?
सुगंधा- आइडिया तो मस्त है पापा, मगर सच कहूँ आपका बहुत बड़ा है, इसे देख कर ही मुझे डर लग रहा है.
पापा- पागल, मैं तेरा बाप हूँ तुझे तकलीफ़ थोड़े दे सकता हूँ. तू देखना कितने आराम से करूँगा, तुझे कम से कम तकलीफ़ होगी. चल अब देर मत कर साथ में बाथरूम जाएंगे और वहाँ अपनी झांटों की सफ़ाई करेंगे समझी.
सुगंधा- ठीक है मेरे प्यारे पापा चलो, आप नहीं मानने वाले.

दोनों बाप और बेटी बाथरूम में चले गए और वहाँ नंगे हो गए.

सुगंधा- अब क्या करना है पापा, क्या आप पहले मेरे बाल साफ करोगे?
पापा- हाँ मेरी जान… पहले तेरे जिस्म के सारे बाल साफ करूँगा, उसके बाद तू मेरे करना… मजा आएगा.
सुगंधा- लेकिन आप ऐसे कैसे करोगे… यहाँ तो बैठने की कोई जगह भी नहीं है.

जयशंकर जी ने सुगंधा को कमोड पे बिठा दिया और उसकी टांगें फैला दीं- अब समझ आया कैसे होगी ये झांटें साफ… अब बस चुपचाप बैठी रहना… मैं आराम से साफ कर दूँगा.
सुगंधा- पापा आराम से करना… कहीं कट ना जाए, नहीं तो खून निकल आएगा.
पापा- अरे ऐसे कैसे कट जाएगा और खून निकलने में अभी टाइम है मेरी जान… जब तेरी सील टूटेगी ना तब ज़रूर निकलेगा.
सुगंधा- पापा आप डराओ मत प्लीज़… नहीं तो मैं यहाँ से भाग जाऊंगी.
पापा- अरे मजाक कर रहा हूँ मेरी जान… चल अब चुप बैठ पहले अच्छे से साबुन लगाने दे, उसके बाद मैं तेरी चुत को चिकना बना दूँगा.

जयशंकर जी ने चुत पे साबुन लगाया, उसके बाद धीरे-धीरे वो रेजर से चुत को चमकाने में लग गए.

सुगंधा- आह… सस्स… पापा, आपका हाथ लगते ही चुत में आग लग गई ओफ्फ… लगता है, जैसे अन्दर कोई लावा उफान रहा हो… आह… प्लीज़ जल्दी से साफ करके इसको शांत कर दो, नहीं तो ये ऐसे ही सुलगती रहेगी.
पापा- कर दूँगा मेरी रानी… बस आज की बात है. कल से इसमें कोई लावा नहीं फूटेगा क्योंकि मैं अपना लंड इसमें हर वक़्त डाले रहूँगा ताकि इसको सुकून मिलता रहे.
सुगंधा- सच्ची पूरा दिन डाले रहोगे… ऐसे तो मुझे पूरा दिन ऐसे नंगी रहना पड़ेगा.
पापा- अच्छा है ना, हम दोनों के अलावा कोई है भी नहीं… तो कपड़े किस लिए पहनने हैं.

दोनों बाप-बेटी बहुत देर तक बातें करते रहे और साथ साथ जयशंकर जी ने सुगंधा के सारे बाल साफ कर दिए. फिर जब चुत को पानी से साफ किया तो उसका निखार देखने लायक था. जयशंकर जी ने उसपर एक जोरदार किस भी कर दिया, जिससे सुगंधा सिहर गई.

सुगंधा- इसस्स पापा प्लीज़ चूस दो ना… आज इसमें बहुत आग लगी हुई है.
पापा- नहीं मेरी जान ऐसे नहीं पहले तू मेरी झांटें साफ कर, फिर कमरे में जाकर आराम से तेरी चुत को चाटूँगा.
सुगंधा- नहीं पापा आप खुद कर लो… मुझे ये रेजर चलाना नहीं आता. कहीं आपको लग गई तो मुसीबत आ जाएगी.
पापा- कुछ नहीं होगा ये तेरे पापा का लंड फौलाद से बना है. इतनी आसानी से नहीं कटेगा, चल मैं तुझे बताता हूँ वैसे करना है.

जयशंकर जी के बताने पर सुगंधा ने लंड पे अच्छे से साबुन लगाया, फिर धीरे-धीरे उसको साफ करने लग गई.

ये साफ सफ़ाई का प्रोग्राम चलते चलते दोनों एकदम गर्म हो गए थे. फिर दोनों ने साथ में शावर लिया और नंगे ही बाहर आ गए और सुगंधा बिस्तर पर चुत फैला कर ऐसे लेट गई जैसे अभी चुदने को रेडी हो.

सुगंधा- पापा, अब साफ सफ़ाई का प्रोग्राम खत्म हो गया ना… अब तो मेरी चुत की आग शांत कर दो प्लीज़!
पापा- ठीक है मेरी जान तेरा इतना ही मन है, तो कर देता हूँ. नहीं तो मैंने सोचा था कि आज रात तेरी चुत को लंड से ही अच्छी तरह से शांत करूँगा.
सुगंधा- नहीं पापा रात को मुझे पता है आप मेरी हालत बिगाड़ने वाले हो. उस टाइम कोई मजा नहीं आने वाला. इसी लिए बोल रही हूँ कि मुझे अभी मजा दे दो. फिर रात को तो बस दर्द ही होना है.
पापा- नहीं मेरी जान ऐसे सीधे ही थोड़े तेरी चुत में लंड घुसा दूँगा. पहले तुझे अच्छी तरह मजा दूँगा, उसके बाद पूरी रात तेरी जमकर चुदाई करूँगा.
सुगंधा- ऐसी बात है तो फिर मुझे सोने दो… तभी तो मैं रात को जाग पाऊंगी.

जयशंकर जी समझ गए कि सुगंधा सही बोल रही है और उनको भी थोड़ा रेस्ट कर लेना चाहिए क्योंकि रात में उनको अपनी बेटी की जवानी का मजा जो लूटना है. जयशंकर जी का मन था कि वो सुगंधा के साथ लिपट कर सोएं मगर कुछ सोचकर वो दूसरे कमरे में चले गए और सो गए.

रात दस बजे सुगंधा कमरे से बाहर आई. वो किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी. उसके चेहरे की चमक देखने लायक थी. जयशंकर पापा जी तो बस उसको देख कर देखते ही रह गए.
सुगंधा- ऐसे क्या देख रहे हो पापा? क्या इरादा है आपका?
पापा- क्या बताऊं सुगंधा इतनी सुन्दर… उफ़फ्फ़ दिमाग़ चकरा गया. मेरा तो तुम दुनिया की सबसे हसीन लड़की हो. तुम्हें देख कर मेरी हालत खराब हो रही है.
सुगंधा- मैं जो भी हूँ, आपकी ही हूँ. अब आप जो चाहें मेरे साथ कर सकते हो. आज से सुगंधा आपकी हो गई समझो. पापा, सुबह से तड़प रही हूँ. अब जल्दी से आप मुझे शांत कर दो.
 
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पापा- बस कुछ देर की बात है जान, उसके बाद हमेशा के लिए तू मेरी हो जाएगी.

जयशंकर जी ने सुगंधा को बांहों में लिया और उसको किस करने लगे. वो उसके मम्मों को भी दबा रहे थे. कभी कानों पर हल्का सा काट देते, तो कभी किस करते.

जयशंकर जी अब सुगंधा के एक-एक कपड़े को धीरे-धीरे निकाल रहे थे. लगभग 15 मिनट के इस प्यार में पापा ने अपनी बेटी सुगंधा को एकदम नंगी कर दिया था और खुद के कपड़े भी निकाल दिए थे.

सुगंधा- ओह पापा… आप कितने अच्छे हो इस्स… इतना प्यार कर रहे हो मुझे बहुत अच्छा लग रहा है… उई… काटो मत ना पापा.
पापा- क्या करूं तू है ही इतनी मस्त, एकदम रस मलाई की तरह कि चाटने और काटने को दिल कर रहा है.
सुगंधा- अच्छा ये बात है… फिर मैं आपके लंड पर काटूं, तब आप कुछ मत कहना.
पापा- अरे ऐसी ग़लती मत करना अगर वहाँ काटेगी ना… तो वो उसका बदला तेरी चुत से ले लेगा, फिर मत कहना कि दर्द होता है.
सुगंधा- अच्छा मेरे पापा मैं हार गई, अब बातें ही करोगे या आगे भी बढ़ाओगे… मेरी चुत बहुत तड़प रही है.

जयशंकर जी समझ गए कि अब बातों का कोई फायदा नहीं. वो फिर शुरू हो गए और सुगंधा के शरीर को मज़े से चूसने लगे. धीरे-धीरे वो उसकी चुत पे पहुँच गए और जीभ से चुत को चाटने लगे. साथ ही उन्होंने उंगली से चुत को फैला कर सुगंधा के दाने को चूसना शुरू किया, जिससे सुगंधा के जिस्म में 440 वॉल्ट का करंट लगा, वो तड़पने लगी.

सुगंधा- ससस्स आह… पापा अपने ये क्या कर दिया… आह बहुत मजा आ रहा है… अइ ओफ्फ… चूसो आह…

जयशंकर जी बिना कुछ बोले अपने काम में लगे हुए थे. एक बार उन्होंने उंगली पर थूक लगाया और धीरे से चुत में थोड़ा घुसा दिया, जिससे सुगंधा तड़प उठी.

सुगंधा- आआ नहीं ओफ्फ… पापा दर्द हो रहा है आह… निकालो ना बाहर… आह…
पापा- मेरी जान चुप रह कर बस मजा ले, सीधे लंड घुसा दूँगा तो तुझे ज़्यादा तकलीफ़ होगी, इसलिए पहले उंगली से थोड़ी देर तेरी चुत को खोलने दे ताकि बाद में दर्द कम हो और ज़्यादा मजा आए.

सुगंधा समझ गई कि अब पापा जो कर रहे हैं, उसके भले के लिए ही होगा. वो बस मादक सिसकारियां लेती रही और उसने पापा को कह दिया कि आप जो करना चाहते हो करो… अब नहीं रोकूंगी.
पापा जी धीरे-धीरे उंगली से अपनी सगी बेटी की चूत को चोदने लगे. शुरू में उसको दर्द हुआ फिर जब उंगली चुत में एड्जस्ट हो गई तो उसको मजा आने लगा.

सुगंधा- आह… सस्स पापा इससे तो बहुत मजा आ रहा है… अब दर्द कम है… आह… करो और अन्दर तक घुसा दो ओफ्फ… आह…

सुगंधा की उत्तेजना देख कर अब जयशंकर जी ने दो उंगलियां एक साथ चुत में घुसा दीं और उसका अंजाम वही हुआ… सुगंधा के मुँह से दर्द भरी आवाज़ निकली, मगर वो सहन कर गई और वैसे ही पड़ी रही. कुछ देर बाद उसको मजा आने लगा और अब वो एकदम चरम पर पहुँच गई थी. उसकी साँसें तेज हो गईं और वो कमर को हिला-हिला कर मजा लेने लगी.

सुगंधा- आह… ससस्स… ज़ोर से करो पापा आह… फास्ट आह… मजा आ रहा है अइ और करो.
पापा- सुगंधा तेरी चुत में बहुत आग है… मेरी उंगली झुलस रही है… बाहर ये हाल है तो अन्दर तो क्या पता कितनी आग होगी… ले मेरी बेटी आने दे तेरी रस की धारा… तेरा पापा तैयार है पीने को.

पापा ने अब अपने होंठ चुत पर टिका दिए थे ताकि सुगंधा का रस सीधा उनके मुँह में जाए.
सुगंधा- आह पापा आह… चाटो… मैं गई उफ़फ्फ़ चूसो आह… ज़ोर से करो… मेरी चुत पापा आह… चाट लो.
सुगंधा कमर को हिला कर झड़ने लगी और उसका सारा रस पापा चट कर गए. अब बेटी तो शांत हो गई थी. मगर पापा जी का लंड पूरे उफान पर था और चुत को देख कर सलामी दिए जा रहा था.

सुगंधा- आह… पापा मजा आ गया अब मुझे भी आपका लंड चूसने दो ताकि उसकी आग में ठंडी कर सकूं और आपको भी आराम दूँ.
पापा- नहीं मेरी जान, तू सिर्फ़ चूस कर इसको गीला कर दे… बाकी आज इसको तो मैं तेरी चुत से ही ठंडा करूँगा.
सुगंधा- ठीक है पापा जी, लाओ आप खड़े हो जाओ… मैं आराम से इसको चूस कर गीला करती हूँ, फिर आप भी मेरी चुत को चाट कर गीला कर देना ताकि ये मूसल आराम से अन्दर घुस जाए और मुझे तकलीफ़ ना दे.

पापा- एक काम कर… मेरे ऊपर लेट कर लंड चूस और मैं तुम्हारी चुत को चूस कर चुदाई के लायक बना देता हूँ, इससे दोनों को मजा आएगा.

सुगंधा को बात समझ आ गई. अब वो दोनों 69 के पोज़ में हो गए और चुसाई शुरू कर दी. थोड़ी देर बाद सुगंधा फिर से गर्म हो गई और जयशंकर पापा का लंड भी अब चुत में जाने को बेताब हो रहा था तो उन्होंने सुगंधा को सीधा लेटाया और कमर के नीचे तकिया लगा दिया ताकि चुत का उभार ऊपर उठ जाए और वो लंड को आसानी से उसमें घुसा सके.

सुगंधा- पापा आराम से करना, इसमें आज के पहले उंगली भी नहीं गई और आज आपका ये अज़गर घुसने वाला है.
पापा- डरो मत बेटा… मैं बड़े आराम से डालूँगा बस तू थोड़ा सहन करना.

सुगंधा जानती थी कि उसको दर्द होगा मगर कही बात उसको याद थी कि जितना बड़ा लंड होता है, मजा भी उतना ही ज्यादा देता है. बस इसी चक्कर में वो जोश में होश खो बैठी.
सुगंधा- ठीक है पापा… अब आप हो तो आप जैसे चाहो डाल दो. मैं बर्दाश्त करने की कोशिश करूँगी.

पापा लंड को चुत के ऊपर रगड़ने लगे. कभी लंड से चुत पे ज़ोर से मारते, जिससे सुगंधा को बहुत मजा आ रहा था.
सुगंधा- आह… सस्स पापा आपका लंड है या डंडा… आउच लगता है एयेए…
पापा- क्यों मेरी बेटी को मजा नहीं आ रहा क्या… बंद कर दूँ मारना… सीधे पेल दूँ?
सुगंधा- नहीं पापा… मजा आ रहा है, करते रहो… ओफ्फ… पापा चुत के ऊपर रगड़ो ना… ज़ोर ज़ोर से… उसमें ज़्यादा मजा आ रहा था.

जयशंकर जी समझ गए कि अब सुगंधा की उत्तेजना बढ़ रही है और जब ये एकदम गर्म हो जाएगी, तब चोदना सही रहेगा. यही सोच कर उन्होंने लंड को ज़ोर ज़ोर से चुत पर रगड़ना शुरू कर दिया और साथ ही साथ हाथों से सुगंधा की जाँघों को भी मसलने लगे, जिससे सुगंधा का मजा दुगुना हो गया.

सुगंधा- आह… पापा… बहुत मजा आ रहा है उफ़फ्फ़ आपने तो चुत में आग लगा दी… अब मत तड़पाओ ना आह… प्लीज़ ओफ्फ…
पापा- सुगंधा अब वक़्त आ गया बेटा… ले संभाल लेना ठीक है.

जयशंकर जी ने चुत को फैलाया और अपना मोटा सुपारा चुत की फांकों में घुसेड़ने लगे.

सुगंधा की चुत बहुत टाइट थी और सुपारा बड़ा था, वो अन्दर जा नहीं पा रहा था तो जयशंकर जी ने चुत और लंड पर अच्छे से थूक लगाया और दोबारा कोशिश की. इस बार सुपारा चुत को फैलाता हुआ अन्दर घुस गया और उसके साथ ही सुगंधा को असीम दर्द हुआ मगर उसने मुँह से एक आवाज़ भी नहीं निकाली, बस दाँत भींचे पड़ी रही.

जयशंकर जी ने सुपारा फँसा कर हल्का सा धक्का मारा तो लंड 2″ चुत में घुस गया और इस बार सुगंधा की बर्दाश्त की ताक़त हार गई, उसके मुँह से दर्द भरी चीख निकली और आँखों से आँसुओं की धारा बह गई.
पापा- बस बेटी… रो मत, अब नहीं डालूँगा… मैं इतना ही रखूँगा.
सुगंधा- आह… आह… पापा मेरी जान निकल रही है ओफ्फ… एयेए…

जयशंकर जी ने सुगंधा को बहलाया कि वो आराम से करेंगे. थोड़ी देर वो उसी अवस्था में रहे और सुगंधा की चुत के ऊपर हाथ घुमाते रहे, जब उसका दर्द कम हुआ तो वो 2″ लंड को ही चुत में अन्दर बाहर करने लगे.
सुगंधा- आ यस पापा आह… करो… अब दर्द नहीं है… आह… करो.

सुगंधा की मादक सिसकारियां जयशंकर जी को पागल बना रही थीं. उन्होंने कमर को पीछे किया और ज़ोर का झटका मारा जिससे आधे से ज़्यादा लंड चुत को फाड़ता हुआ अन्दर घुस गया. सुगंधा के मुँह से दर्द भरी चीख निकली मगर जल्दी से जयशंकर जी ने उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए और कमर को फिर पीछे किया और एक और जोरदार झटका मार दिया. अबकी बार पूरा लंड चुत की गहराई में खो गया और सुगंधा की आँखें चढ़ गईं, उनमें से लगातार आँसू बह रहे थे, मगर जयशंकर जी बहुत बड़े खिलाड़ी थे. वो वैसे के वैसे पड़े रहे, उन्होंने ज़रा भी हरकत नहीं की.

कुछ मिनट तक बिना हिले जयशंकर जी पड़े रहे, फिर उनको अहसास हुआ कि सुगंधा अब नॉर्मल हो चली है तो उन्होंने उसके होंठ आज़ाद कर दिए.

पापा- सॉरी बेटा, तुम्हारी चुत बहुत टाइट थी तो धीरे से लंड जा नहीं रहा था इसलिए मैंने ज़ोर से पेल दिया, मगर अब तू टेंशन मत ले, अब तू कहेगी तभी मैं हिलूँगा.
सुगंधा- आह… पापा अपने तो एमेम मेरी जान ही निकाल दी आज ओफ्फ… अब बस और अन्दर मत डालना… आह… बहुत दर्द हो रहा है.
पापा- अब बचा ही क्या… जो डालूँगा तेरी चुत ने मेरा पूरा लंड निगल लिया है मेरी जान.

सुगंधा को यकीन नहीं हुआ कि इतना बड़ा लंड पूरा चला गया मगर जयशंकर के समझाने पर वो मान गई. थोड़ी देर दोनों नॉर्मल रहे फिर सुगंधा को पूछ कर जयशंकर जी धीरे-धीरे लंड को हिलाने लगे.

सुगंधा- आह… उई नहीं… आह… दुख़्ता है पापा आह… ससस्स बहुत दर्द हो रहा है.
पापा- बस थोड़ी देर की बात है बेटा… फिर नहीं होगा. तू आँखें बंद करके मजा ले बस.

थोड़ी देर ऐसे ही धीरे-धीरे चुदाई चलती रही. अब सुगंधा का दर्द कम हो गया और उसकी उत्तेजना बढ़ गई थी अब उसकी दर्द भरी आहें मादक सिसकारियों में बदल गई थीं- आह… सस्स पापा आह… करो आह… मजा आ रहा है उफ़ फास्ट करो चोद दो अपनी बेटी को… आह… फास्ट पापा फास्ट एयेए अइ आह…

सुगंधा अब चरम सीमा पर थी और जयशंकर जी भी बहुत देर से कंट्रोल किए हुए थे. ऐसी गर्म चुत के आगे वो कब तक टिक पाते, अब उनका लावा भी बहने को तैयार था.
पापा- आह… ले बेटी… तेरी चुत को आज अपने लंड के रस से भर दूँगा ले… आह…

अगले 2 मिनट जयशंकर जी ने फुल स्पीड से सुगंधा की चुदाई की और दोनों बाप बेटी एक साथ झड़ गए. जयशंकर जी वैसे ही सुगंधा पे पड़े रहे.

अगले 2 मिनट जयशंकर जी ने फुल स्पीड से सुगंधा की चुदाई की और दोनों बाप बेटी एक साथ झड़ गए.
 
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झड़ने के बाद वो वैसे ही सुगंधा पर लेटे रहे. थोड़ी देर तो सुगंधा ने कुछ नहीं कहा मगर बाद में उसको लगा कि पापा को हटा दूँ और चुत का हाल देखूं कि क्या हुआ है.

ये सोच कर वो बोली- पापा अब हटो ना.. मुझे देखना है आपने मेरी चुत का क्या हाल किया है?
पापा- हट तो जाऊंगा बेटा.. मगर एक बात बता देता हूँ तेरी सील टूटने से थोड़ा खून भी निकला होगा, तू घबराना मत.
सुगंधा- मैं सब जानती हूँ पापा.. अब आप हटो तो सही.

जयशंकर जी जब उठे तो फ्च्च की आवाज़ के साथ उनका लंड चुत से निकला और सुगंधा दर्द से सिसक उठी.
सुगंधा- ऊ माँ… ये देखो आपने मेरी चुत का क्या हाल कर दिया है.. कैसे खून से लाल हुई पड़ी है और सूज कर कैसे फूल गई.
पापा- अब पहली बार में ऐसा ही होता है मेरी जान.. चलो तुम्हें अभी आराम दिलाता हूँ, फिर कहना कि दर्द हो रहा है क्या?

जयशंकर जी ने गर्म पानी से सुगंधा की चुत को साफ किया उसकी अच्छे से सिकाई की, उसके बाद दोनों बाप बेटी साथ में बैठ कर बातें करने लगे.

सुगंधा- पापा आप बहुत अच्छे हो.. मैंने सोचा नहीं था मेरी चुत आपके नाम लिखी हुई है.
पापा- सब नसीब का चक्कर है बेटा. मैंने भी कहाँ सोचा था कि मुझे चोदने को तेरे जैसी कमसिन कली मिलेगी.
सुगंधा- अब जो हुआ सो हुआ. ये बातें बंद करो. मुझे बहुत भूख लगी है. तैयार होने के चक्कर में मैंने खाना भी नहीं खाया और शायद आपने भी नहीं खाया होगा.
पापा- हाँ सुगंधा मैंने भी नहीं खाया. वैसे मैं खाना लेकर आया हूँ. बस गर्म करना पड़ेगा. उसके बाद साथ में खाएँगे और उसके बाद फिर तेरी चुत को चाट कर चुदने को रेडी करूँगा.
सुगंधा- नहीं पापा इसमें बहुत दर्द हो रहा है.. आज का हो गया बस.
पापा- बेटा.. आज मुझे जी भर कर चोदने दे, उसके बाद तू जैसा कहेगी.. वैसा होगा.
सुगंधा- ठीक है पापा आपकी बात मानना ही पड़ेगा. अब चलो खाना गर्म करो, मेरी तो उठने की भी हिम्मत नहीं है. आपने अपने इस मूसल से मेरी टांगें फिरा दी हैं.

पापा- हा हा हा अभी कहाँ फिरी हैं मेरी जान.. अभी तो असली चुदाई बाकी है.
सुगंधा- तो अभी क्या नकली चुदाई हुई थी.
पापा- तो और क्या.. धीरे धीरे मजा कहाँ आता है. अबकी बार तुझे रेल बना दूँगा.. मैं तेरी चुत को रस से भर दूँगा तब देखना आएगा असली मजा.
सुगंधा- ओके मेरे प्यारे पापा, जैसे मर्ज़ी चोद लेना. चुत को बाद में भरना पहले पेट को तो भर दो.

जयशंकर जी ने खाना गर्म किया और दोनों ने मिलकर खूब मज़े से खाना खाया. उसके बाद जयशंकर जी सुगंधा को गोद में उठा कर बिस्तर पर ले गए और उसके मम्मों को सहलाने लगे.

सुगंधा- पापा आज आप मुझे कितनी बार चोदोगे?
पापा- जब तक मेरे लंड में जान है तब तक चोदूँगा.
सुगंधा- अच्छा ये बात है.. और कैसे कैसे चोदोगे वो भी बता दो.
पापा- अभी तो सीधे लेटा कर ही शुरू करूँगा. उसके बाद तुझे घोड़ी बनाऊँगा गोद में लेकर चोदूँगा, फिर तुझे मेरे ऊपर कुदवाऊंगा.. तू बस मज़े लेना.
सुगंधा- इतनी बार चोदोगे तो मैं मर नहीं जाऊंगी.. फिर कैसे मज़े?
पापा- हा हा हा… ऐसे कैसे मरने दूँगा मेरी जान को.. अब तो यमराज भी आ जाएं तो उनसे लड़ जाऊंगा. मैं अपनी प्यारी बेटी को नहीं लेके जाने दूँगा.

दोनों में तकरार चलती रही और इस तकरार के साथ प्यार भी हो रहा था. अब जयशंकर जी सुगंधा को बेदर्दी से रगड़ रहे थे. उसके मम्मों को ज़ोर ज़ोर से दबा रहे थे, कभी चूस रहे थे.

सुगंधा- उम्म्ह… अहह… हय… याह… पापा दुख़ता है.. आह.. नहीं उफ ऐसे चूसो.. मेरी चुत एयेए को भी चाटो ना आह.. सस्स आह…

अब दोनों उत्तेज़ित हो गए थे. जयशंकर जी ने सुगंधा को ऊपर लेटा लिया और दोनों 69 के पोज़ में आ गए. अब ज़बरदस्त चुसाई शुरू हो गई और सुगंधा की चुत का सारा दर्द गायब हो गया. उसमें खुजली होने लगी, जो सिर्फ़ लंड से ही दूर हो सकती थी.

सुगंधा- आह.. सस्स पापा बस.. अब बर्दाश्त नहीं होता.. घुसा दो अपना अज़गर अपनी बेटी की चुत में.. उफ इसमें बहुत आग लगी है.

जयशंकर जी ने सुगंधा के पैरों को कंधे पे रखा और लंड के सुपारे को चुत पे टिका कर हल्के से धक्का मारा. उनका आधा लंड चुत में चला गया और सुगंधा की चीख निकल गई.

जयशंकर जी पर कोई असर नहीं हुआ उन्होंने लंड को पूरा बाहर निकाला और एक जोरदार झटका मारा, अबकी बार पूरा लंड चुत में समा गया.

सुगंधा- एयेए एयेए पापा आह.. आपने तो कहा था दूसरी बार दर्द नहीं होगा ओफ… मर गई..
पापा- मेरी बेटी ये थोड़ी देर होगा.. ले चुद अपने पापा से आह.. ले आह…

जयशंकर जी ताबड़तोड़ चुदाई करने लगे और हर झटके पे सुगंधा की चीख निकल जाती.

करीब 20 मिनट तक जयशंकर जी दे दनादन अपनी बेटी की चुदाई करते रहे, तब कहीं जाकर सुगंधा की चुत में लंड अड्जस्ट हुआ. अब दर्द मीठा हो गया था और चुत में पानी रिसने लगा था, जिससे लंड को अन्दर बाहर होने में आसानी हो गई. सुगंधा की चुत में खुजली भी बढ़ गई, अब वो भी मजा लेने लगी थी.

सुगंधा- आ आह.. फक मी पापा.. आह.. फक मी हार्ड आइआह.. सस्स फाड़ दो मेरी चुत को आह.. नहीं ज़ोर से करो पापा आह.. मेरी चुत गई पापा चोदो मुझे आह आह फास्ट करो पापा और फास्ट आ आह…

सुगंधा की उत्तेजना अब चरम पर पहुँच गई थी. उसकी चुत से रस की धारा बहने लगी. गर्म रस जब जयशंकर जी के लंड से टकराया तो उन्होंने स्पीड और बढ़ा दी और सुगंधा को हावड़ा एक्सप्रेस की स्पीड से चोदने लगे.

सुगंधा का पानी निकल चुका था, वो बेजान सी होकर पड़ गई, मगर जयशंकर जी अभी कहाँ झड़ने वाले थे, वो तो मज़े से सुगंधा की चुत चोदने में लगे हुए थे.

सुगंधा- आह.. पापा.. बस भी करो आह.. मेरी चुत में जलन होने लगी है.. थोड़ा रेस्ट तो दो आह.. प्लीज़ मान जाओ ना आह…

जयशंकर जी को सुगंधा की हालत पर तरस आ गया, उन्होंने एक झटके में लंड बाहर निकाल लिया और फ़ौरन सुगंधा को बैठा कर उसके मुँह में लंड घुसा दिया. सुगंधा कुछ समझ ही नहीं पाई और जयशंकर जी अब उसके मुँह को चोदने लगे.

थोड़ी देर सुगंधा ने मज़े से लंड को चूसा. उसके बाद इशारे से पापा को कहा कि अब वापस चुत में पेल दो. तब जयशंकर जी ने उसको घोड़ी बनाया और उसकी गांड को कस के पकड़ कर शॉट मारने लगे. सुगंधा को अब मजा आने लगा था. वो गांड को हिला हिला कर चुदने लगी.

करीब 30 मिनट तक जयशंकर जी सुगंधा की पलंगतोड़ चुदाई करते रहे. उस दौरान वो दो बार झड़ गई. उसके बाद जयशंकर जी ने अपना सारा रस उसकी चुत में भर दिया.

इस चुदाई के बाद दोनों बिस्तर पे लेटे छत की तरफ़ देखने लगे. सुगंधा की हालत देखने लायक थी, वो लंबी लंबी साँसें ले रही थी उसके पापा ने चोद दिया था उसे… और जयशंकर जी उसके सीने से चिपके हुए बस ऊपर देख रहे थे.
जब सुगंधा एकदम शांत हो गई तो नीचे उतर कर लेट गई मगर जयशंकर जी का लंड अभी भी तना हुआ था, उनका पानी अन्दर उफान मार रहा था.

सुगंधा- आह.. पापा मज़ा आ गया.. सच्ची आपका लंड बहुत मजेदार है.
पापा- तुझे तो शान्ति मिल गई मगर मेरे लंड को अभी भी चुदाई की जरूरत है. चलो अब घोड़ी बन जाओ फिर देखो कैसे नया मज़ा देता हूँ तुझे.
सुगंधा- ठीक है मेरे पापा जी, आपके लंड का ख्याल मैं नहीं तो और कौन रखेगा. लो बन गई घोड़ी, डाल दो चुत में.. और आप इसको भी ठंडा कर लो.

जयशंकर जी के दिमाग़ में कुछ और ही चल रहा था. उनको तो बस सुगंधा की गांड का गुलाबी छेद दिख रहा था और उनकी नियत उस पर पूरी तरह बिगड़ चुकी थी.

जयशंकर जी ने गांड पर जीभ लगाई और छेद को चाटने लगे.
सुगंधा- सस्स्सस्स आह.. पापा.. ये आप क्या कर रहे हो आह.. नहीं.. उफ़.. मेरे पूरे जिस्म में करंट दौड़ रहा है.. अहह..

हर लड़की या औरत का एक सेन्सिटिव पॉइंट होता है, वैसे ही सुगंधा का पॉइंट उसकी गांड का छेद था. अब जयशंकर जी के चाटने से वो बहुत ज़्यादा उत्तेज़ित हो गई थी.
सुगंधा- आह.. पापा प्लीज़ आह.. डाल दो आह.. लंड आह.. चुत में बहुत खुजली हो रही है. मेरी चूत की खुजली मिटा दो!

जयशंकर जी का इरादा तो गांड मारने का था. वो सुगंधा की बात को अनसुना कर गए और लंड को गांड के छेद पर रख कर घिसने लगे.

जब सुगंधा को ये अहसास हुआ कि उसके पापा अब उसकी गांड मारने वाले हैं.. तो वो डर से काँपने लगी. उसके जिस्म में कंपन होने लगा जो उत्तेजना अभी जागी थी, वो हवा हो गई.
सुगंधा- पापा आप ये क्या कर रहे हो? नहीं मेरी गांड में मत डालना, ये फट जाएगी.. इसमें आह.. आपका लंड नहीं जाएगा प्लीज़ नहीं आह.
पापा- मेरी जान, जब चुत नहीं फटी तो गांड कैसे फटेगी. बस अब हाथ को टाइट कर ले मैं लंड घुसेड़ने वाला हूँ.

सुगंधा ने बहुत मना किया मगर जयशंकर जी तो पूरा मूड बना चुके थे. उन्होंने लंड को छेद पे टिकाया और ज़ोर का धक्का मारा. उनका आधा लंड सुगंधा की गांड में घुस गया और सुगंधा ज़ोर से चिल्ला उठी.

जयशंकर जी ने वही तरीका अपनाया जैसे चुत मारने के टाइम किया था. उन्होंने दोबारा कमर को पीछे किया और दूसरा झटका भी मार दिया. सुगंधा की तो जैसे जान ही निकल गई. वो बिस्तर पे गिर गई उसके साथ साथ जयशंकर जी भी उस पर गिरे और पूरा लंड बेटी की गांड में घुसा रहा.

सुगंधा- आह.. सस्स पापा एमेम मेरी जान निकल ज्ज..जाएगी आह.. प्लीज़ निकाल लो.. आह.. नहीं उउउह पापा आह…
पापा- बस बस अब पूरा घुस गया. अब कुछ नहीं होगा.. तू रो मत मेरी जान.

कुछ देर वो ऐसे ही पड़े रहे, उसके बाद उन्होंने गांड मारनी शुरू की और दे दनादन पेलते रहे. बेचारी सुगंधा बिलबिलाती रही और वो लंड ठोकते रहे.

आधा घंटा तक जयशंकर जी ने गांड को बराबर ठोका. अब उनकी उत्तेज्ना चरम पे थी. वो स्पीड से चोदने लगे, उनके लंड की नसें फूल गईं, लंड आग की तरह गर्म हो गया. तब जाकर उनका पानी निकाला और गर्म वीर्य गांड में भरने लगा. अब गर्म वीर्य जाने से सुगंधा को भी थोड़ा आराम मिला.

बस दोस्तो, सुगंधा की गांड का भी मुहूर्त हो गया. अब ये कहीं से भी कुँवारी नहीं रही,

सुगंधा बेटी की गांड को रस से भरने के बाद जयशंकर पापा जी हटे तो फच्च की आवाज़ के साथ लंड गांड से बाहर आया.



सुगंधा मन ही मन सोच रही थी ” आखिर पापा से चुदवा लिया मैंने!”

The
End
 
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Xabhi

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फिर तब मैंने कहा कि ठीक है और पापा ने गाड़ी साईड में रोककर मुझे अपने आगे बैठाया और मेरी बगल में से अपने दोनों हाथ डालकर हैंडल पकड़ा और धीरे-धीरे चलाने लगे। लेकिन अब गाड़ी चलाने में किसका ध्यान था? अब मेरा ध्यान तो पापा के पजामे में लटके उनके लंड पर था। तो तभी गाड़ी जैसे ही खड्डे में गयी, तो मैंने हिलने का बहाना करके उनका लंड ठीक मेरी गांड के नीचे दबा लिया। अब पापा कुछ अच्छा महसूस नहीं कर रहे थे। अब में अपनी गांड को उनके लंड पर रगड़ने लगी थी। अब गर्मी पाकर उनका लंड धीरे-धीरे खड़ा होने लगा था, जिससे मुझे भी मस्ती आने लगी थी। अब पापा को भी मज़ा आ रहा था और फिर इस तरह मस्ती करते हुए में स्कूल पहुँच गयी। फिर पापा को जाते वक़्त मैंने एक बार फिर से किस किया। अब पापा शायद मुझे लेकर कुछ परेशान हो गये थे और में मेरी तो पूछो मत, मेरी हालत तो इतना करने में ही बहुत खराब हो गयी थी और मेरी पेंटी इतनी गीली हो चुकी थी कि मुझे लग रहा था मेरी स्कर्ट खराब ना हो जाए।

फिर पूरे दिन स्कूल में मेरे दिमाग में पापा का लंड ही घूमता रहा और अब मेरा दिल कर रहा था कि में पापा के लंड पर ही बैठी रहूँ। अब पता नहीं मुझे क्या हो गया था? ऐसा कौन सा वासना का तूफान मेरे अंदर था कि में पापा से चुदने के लिए ही सोचने लगी थी। खैर आगे बढ़ते है, फिर में चुदाई की इच्छा और गीली पेंटी लेकर घर पहुँची। अब उस वक़्त लगभग 3 बज रहे थे। अब घर में दादा, दादी के अलावा कोई नहीं था, मम्मी कहीं गयी हुई थी और पापा अपने ऑफिस में थे। ख़ैर फिर में बाथरूम में गयी और गंदे कपड़ो में से पापा की अंडरवेयर ढूंढकर अपनी चूत पर रगड़ते हुए हस्तमैथुन किया। अब मुझे बहुत मज़ा आया था और फिर में सो गयी। फिर मेरी आँख खुली तो शाम के 5 बज रहे थे। फिर मैंने नहा धोकर कपड़े पहने और मैंने कपड़े भी उस दिन कुछ सेक्सी दिखने वाले पहने थे, मैंने एक शॉर्ट स्कर्ट और फिटिंग टी-शर्ट पहनी थी। अब पापा के आने का टाईम हो गया था, लेकिन मम्मी का कोई पता नहीं था।

फिर शाम के 6 बजे पापा ने घंटी बजाई तो में दौड़ती हुई गयी और दरवाजा खोला। फिर पापा मुझे देखकर थोड़े मुस्कुराए और मुझे गले लगाकर मेरे गालों पर किस करते हुए बोले कि बेटा आज तो बहुत स्मार्ट लग रही हो। अब मुझे इतनी खुशी हुई थी कि में पापा को फंसाने में धीरे-धीरे सफल होती जा रही थी। फिर अंदर आकर पापा ने चाय का ऑर्डर कर दिया तो में किचन में जाकर चाय बनाने लगी। फिर पापा भी फ्रेश होकर किचन में आ गये और इधर उधर की बातें करने लगे थे। फिर थोड़ी देर में पापा मेरी गोरी जांघो देखकर गर्म हो गये और मेरे पीछे खड़े होकर अपना लंड मेरी गांड से सटाने की कोशिश करने लगे थे। तब में भी अपनी गांड को उनके लंड पर रगड़ने लगी। अब मुझे तो ऐसा लग रहा था कि जैसे में जन्नत में हूँ और बस ऐसे ही खड़ी रहूँ।

ख़ैर अब चाय बन चुकी थी और फिर मैंने पापा से डाइनिंग रूम में जाकर बैठने को कहा और चाय वहाँ सर्व करके बाथरूम में जाकर फिर से उंगली करने लगी थी। फिर में झड़ने के बाद बाहर आई, तो तब तक मम्मी भी आ चुकी थी। मुझे मम्मी पर बहुत गुस्सा आया, क्योंकि मुझे पापा से अभी और मज़ा लेना था और मम्मी के सामने में कुछ नहीं कर सकती थी। अब पापा भी मम्मी के आने से थोड़े दुखी हो गये थे, क्योंकि ना तो वो कुछ करती थी और ना ही उन्हें कुछ करने देती थी। अब पापा मुझे देखकर बार-बार अपना लंड पजामे के ऊपर से ही सहला रहे थे और मुझे भी उन्हें सताने में बहुत मज़ा मिल रहा था।



अब उस दिन के बाद से मैं पापा से सेक्स करने का प्लान बनाने लगी थी। मैं घर मे जान के छोटे कपड़े पहना करती थी। पापा के सामने जाके झुक जाती जिससे मेरी चुचिया उनको दिख जये। तो कभी अपने रूम का गेट खोल के स्कर्ट ऊपर कर के सो जाती थी। ये सब कभी न क़भी मेरे पापा देख लेते थे। मैंने ध्यन दिया कि उनकी मेरे ऊपर नज़र रह रही है।


अब पापा भी मेरी ओर आकर्षित हो रहे थे। लेकिन कुछ होना तबतक मुमकिन नही था जबतक की मम्मी घर मे थी।
Very erotic update bhai jabarjast hot papa ko fasane ki Kosis beti kr rhi hai or papa Kuch beti ko fasane ke tarike dhundh rhe hai dekhte hai Kiska luck goodluck banta hai or kiska badluck...
 
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