- 432
- 1,565
- 139
सुगंधा ने पहले जीभ से सुपारे को चाटा और फिर धीरे से अपने मुँह में लेकर चूसने लगी.
जयशंकर जी को असीम आनन्द की प्राप्ति हुई, मगर वो अपने ज़ज्बात को काबू में किए हुए वैसे ही खड़े रहे.
सुगंधा ने थोड़ी देर लंड चूसा, फिर मुँह हटा लिया क्योंकि थोड़ा नाटक करना पड़ता है, नहीं तो जयशंकर जी को शक हो जाता.
सुगंधा- पापा, ये क्या है बहुत अजीब सी चीज है, गोल भी है, नर्म भी है कुछ नमकीन सा स्वाद है, समझ नहीं आ रहा.
जयशंकर- अरे कहा था ना.. ये हार्ड है. ऐसे जल्दी समझ नहीं आएगा वैसे तुझे एक हेल्प देता हूँ. ये लंबी चीज है अगर तू पूरा मुँह में लेकर चूसेगी तो शायद इसका नाम बता पाएगी, नहीं तो हार जाओगी.
सुगंधा ने फिर लंड को मुँह में ले लिया और मज़े से चूसने लगी. जयशंकर जी भी अपनी बेटी को लंड चुसवा कर बहुत ज़्यादा खुश हो रहे थे.
सुगंधा सुपारे को होंठों में दबा कर चूस रही थी. अब वो ज़्यादा से ज़्यादा लंड मुँह में लेना चाहती थी मगर वो कोई मॉंटी का लंड तो था नहीं, जो वो पूरा निगल जाती. ये तो 8″ का अज़गर था, जिसे निगलना मुश्किल था. दूसरी बात वो चीज को पहचानने के लिए ये कर रही थी, तो ज़्यादा मज़ा भी नहीं ले सकती थी. मगर उसने एक तरकीब लगाई, लंड को वापस बाहर निकाला.
जयशंकर- अरे क्या हुआ.. तुझे इसका नाम पता चल गया क्या?
सुगंधा- नहीं पापा समझ में नहीं आ रहा. ये तो कोई बड़ी लॉलीपॉप जैसी कोई चीज है. इसमें से थोड़ा नमकीन रस जैसा आ रहा है.. और ऐसा स्वाद मैंने लाइफ में कभी नहीं चखा है.
सुगंधा की बात सुनकर जयशंकर जी थोड़े घबरा गए क्योंकि उनके लंड से पानी की बूंदें आने लगी थीं और सुगंधा को शक ना हो जाए ये सोच कर उन्होंने बात को बदल दिया और सुगंधा तो खुद यही चाहती थी.
जयशंकर- अरे वाह तू तो बहुत करीब आ गई. ये रियल में ऐसी ही चीज है, इसमें रस भी रियल है. अब तू इसको चूसती रह और मज़ा लेती रह. जब समझ आ जाए बता देना.
सुगंधा- ठीक है पापा अब तो खुलकर चूसना पड़ेगा.. तभी मज़ा आएगा.
जयशंकर- हाँ ये हुई ना बात, चल चूस और रस के पूरे मज़े ले.
सुगंधा को अब कोई डर नहीं था वो खुलकर लंड को चूसने लगी. मगर एक गड़बड़ थी कि उसने पेंटी नहीं पहनी थी और उसकी चुत रस टपका रही थी. ऐसे तगड़े लंड की चुसाई से उसकी उत्तेजना भी बढ़ गई थी. उसका बहुत मन था कि उसके पापा उसकी चुत को चूस कर उसकी खुजली मिटा दें. मगर ये इतना आसान नहीं था, तो वो बस लंड को चूस कर मज़ा लेने लगी.
काफ़ी टाइम तक ये लंड चुसाई चलती रही. अब तो जयशंकर जी धीरे-धीरे झटके भी मारने लगे थे, उनकी उत्तेजना बहुत बढ़ गई थी. उनके विशाल लंड से रस की धारा निकलने को बेताब थी, तभी उन्होंने जल्दी से लंड को बाहर निकाला और पास पड़े प्याले में सारा रस निकाल दिया तब जाकर उनको सुकून मिला.
सुगंधा भी समझ गई थी कि उसके पापा ठंडे हो गए हैं मगर उसने अनजान बनने का नाटक किया- क्या हुआ पापा, चुसाओ ना.. बहुत मज़ा आ रहा था.
जयशंकर- बस बस.. बहुत टाइम हो गया और तू इसको पहचान भी नहीं पाई इसका मतलब तू हार गई है.
सुगंधा- अरे थोड़ी देर और चूसती तो पता लग जाता ना पापा.
जयशंकर- नहीं अब तुझे हार मान लेनी चाहिए.. मैंने तुझे बहुत मौका दिया.
सुगंधा- अच्छा बाबा हार गई मैं.. बस हैप्पी! चलो अब मुझे खोलो तो.
जयशंकर जी ने वो प्याला टेबल के नीचे छुपा दिया और लुंगी ठीक करके सुगंधा को खोल दिया. मगर ये सब करने के पहले उन्होंने ये नहीं सोचा था कि लास्ट में सुगंधा को वो क्या चीज का नाम बताएँगे.
सुगंधा- ओफफो आप बहुत स्मार्ट हो पापा.. लास्ट में चीज ऐसी ले आए कि मैं पता ही नहीं लगा सकी. वैसे अब तो में हार गई हूँ, तो बताओ मुझे वो क्या चीज थी.. जिसे चूसने में मुझे इतना मज़ा आ रहा था?
जयशंकर- व्व..वो तत..तू हार गई है. अब तुझे मेरी बात माननी पड़ेगी समझी.
सुगंधा- अरे मगर वो चीज का नाम तो मुझे पता होना चाहिए ना?
जयशंकर- नहीं अगर बता दूँगा तो दोबारा मैं कैसे जीतूँगा.. चल तू हार गई है.
सुगंधा- अच्छा ऐसे कैसे हार गई. आपकी बारी भी आएगी और आपको भी ऐसे ही बताना होगा.
जयशंकर जी तो अब ठंडे हो गए थे. अब कहाँ उनका मन था, तो बस वो बहाना बनाने लगे कि वो थक गए हैं, आराम करना है.
सुगंधा- ये चीटिंग है पापा, ऐसे मैं नहीं हार मानूँगी ओके.
बोलते बोलते सुगंधा की नज़र टेबल के नीचे पड़े प्याले पे गई.
सुगंधा- अच्छा तो वो चीज अपने नीचे छुपा कर रखी है, अभी देखती हूँ.
सुगंधा उस प्याले को लेने लगी, तो घबराहट में जयशंकर जी ने सुगंधा के पैर में पैर मार दिया, जिससे वो उलझ कर गिर गई और उसकी मैक्सी भी ऊपर हो गई. जिसकी वजह से उसकी खुली चुत के दीदार जयशंकर जी को हो गए.
सुगंधा की नज़र जयशंकर जी की नज़र पर गई, जो कहीं और ही टिकी थी. तब उनकी नज़र का पीछा करते हुए सुगंधा को अहसास हुआ कि वो उसकी चुत को घूर रहे हैं, जो रस से भीगी हुई थी और चमक रही थी.
सुगंधा ने हालत को समझते हुए जल्दी से कपड़े ठीक किए और झूठ मूट का नाटक करने लग गई.
सुगंधा- ओह माँ.. मर गई मैं उउउह पापा.
जयशंकर- अरे ठीक से चल भी नहीं सकती. अब गिर गई ना.. दिखा कहाँ लगी है.
सुगंधा के दिमाग़ में अपनी चुत को शांत करने का फ़ौरन आइडिया आ गया.
सुगंधा- आह.. पापा पैर में दर्द हो रहा है और कमर में भी जोर से लगी है.
जयशंकर- अच्छा तू खड़ी हो, मैं देखता हूँ.
सुगंधा- आह.. उठा भी नहीं जा रहा.. बहुत दर्द हो रहा है पापा.
जयशंकर जी उसके पास बैठ गए और उसके चेहरे को देखने लगे.
जयशंकर- सॉरी बेटा.. मेरी वजह से ही तू गिरी है. अगर मेरा पैर बीच में नहीं आता तो तुझे तकलीफ़ नहीं होती. मगर तू घबरा मत, मैं अभी तुझे उठा कर तेरे कमरे में लेकर जाता हूँ.
सुगंधा- ओह हाँ पापा आप मुझे ही गोदी में उठा लो.. आह.. मुझसे तो उठा नहीं जाएगा आह.. पापा उफ्फ..
जयशंकर जी ने एक हाथ उसकी गांड के नीचे और दूसरा गर्दन के नीचे रखा और उसे उठा कर कमरे में ले गए.
सुगंधा- आह.. पापा आप बहुत अच्छे हो. अब ये दर्द का कुछ करो आह.. मुझे बहुत दुख रहा है.
जयशंकर- देख मैं तेरी माँ के आने के पहले तुझे ठीक कर दूँगा. तू रुक, मैं अभी तेरा इलाज लेकर आता हूँ.
जयशंकर जी बाहर गए, सबसे पहले तो उन्होंने उस प्याले को साफ किया. फिर उसमें सरसों का तेल लेकर उसको गर्म करने लगे.
उधर सुगंधा अपने ख्यालों में खोई हुई सोच रही थी ‘ओह पापा, आपका लंड तो बहुत बड़ा है. उसको चूसते हुए मेरा मुँह दुखने लगा. काश मैं उसको देख पाती, अपने हाथों से उसे पकड़ कर हिला पाती और आपका रस.. आह कितना मज़ा आ रहा था.. काश वो रस आप मुझे पिला देते, तो मज़ा आ जाता मगर जो भी हुआ अब आपको उसके आगे लेकर आऊंगी. तभी तो दर्द का नाटक किया मैंने, अब जल्दी से आ जाओ और मेरी चुत को सुकून दे दो.
जयशंकर- ये देखो में सरसों का तेल लाया हूँ इससे तुम्हें आराम मिल जाएगा.
सुगंधा- लेकिन पापा मैं कैसे लगाऊं.. मुझसे तो उठा भी नहीं जा रहा.
जयशंकर- अरे मैं लगा दूँगा ना.. तू टेंशन क्यों ले रही है.
सुगंधा- पापा व्व..वो आप कैसे लगा सकते हो.. व्व..वो दर्द पीठ पर और पैरों में ऊपर की तरफ़ हो रहा है.
जयशंकर- अरे तो क्या हुआ.. पहले जब तू छोटी थी ना तब तेरे जिस्म की मालिश तेरी माँ नहीं, मैं ही किया करता था. समझी अब मुँह से कोई आवाज़ मत निकलना समझी.
सुगंधा- ल्ल..लेकिन पापा वो तो एमेम.. मैंने नीचे कुछ न..नहीं पहना है..!
जयशंकर- मैंने कहा ना चुप, अब मैं जो करता हूँ, करने दे.. इससे तुझे आराम मिलेगा, तब बोलना.. समझी..!
सुगंधा की बात का जयशंकर जी पर कोई असर नहीं हुआ, वो तो बस जल्दी से उसकी मालिश करना चाह रहे थे.
सुगंधा- ठीक है पापा आप जो चाहे करो.
जयशंकर जी ने मैक्सी थोड़ी ऊपर की और घुटनों की मालिश करने लगे.. फिर धीरे-धीरे हाथ को ऊपर जाँघों पे ले गए.
अपने पापा के हाथ जाँघों पे लगते ही सुगंधा के जिस्म ने झटका खाया. उसकी काम भरी सिसकी निकल गई और चुत में एक करंट सा दौड़ गया. जयशंकर जी ने सुगंधा की तरफ़ देखा तो उसकी आँखें बंद थीं और वो अपने होंठों को दांतों में दबा कर काट रही थी.
जयशंकर जी अब सिर्फ़ जाँघों की मालिश कर रहे थे और एक-दो बार उनकी उंगली चुत से टच भी हुई, जिसका असर सुगंधा की कामुक सिसकी से पता लग रहा था कि वो कितनी उत्तेजित हो गई है.
पापा को भी अपनी कमसिन बेटी की मालिश करने में मज़ा आ रहा था और उनका लंड फिर उठाव लेने लगा था. सुगंधा की चुत रिसने लगी थी, इस बात का अहसास जयशंकर जी को तब हुआ, जब दोबारा उनकी उंगली चुत से टकराई.
जयशंकर जी मन में ‘लगता है सुगंधा उत्तेजित हो गई है, तभी उसकी चुत गीली हो गई. अब इसे शांत करना जरूरी है.. नहीं तो ये परेशान रहेगी.’
सुगंधा की आँखें अब भी बंद थीं.. वो बस घुटी-घुटी आवाज़ में मादकता से सिसक रही थी.
जयशंकर जी मन में ‘मेरी सुगंधा, तू तो बड़ी हो गई है.. देख तेरी चुत कैसे पानी छोड़ रही है, बस ऐसे ही आँखें बंद रखना. मैं तेरे कामरस को चख कर देखूं कि कैसा स्वाद है मेरी बेटी की चुत के रस का!’
जयशंकर जी ने अब सीधे उंगली चुत पे लगा दी और उसके सहलाने लगे, फिर उसपे जो रस लगा उसे वो चाट गए. उनका लंड एकदम टाइट हो गया था और वो भी बहुत ज़्यादा उत्तेजित हो गए थे.
जयशंकर- सुगंधा बेटा तू पेट के बाल लेट जा, तेरी पीठ पे भी तेल लगा देता हूँ.. जिससे तुझे आराम मिल जाएगा.
जयशंकर जी को असीम आनन्द की प्राप्ति हुई, मगर वो अपने ज़ज्बात को काबू में किए हुए वैसे ही खड़े रहे.
सुगंधा ने थोड़ी देर लंड चूसा, फिर मुँह हटा लिया क्योंकि थोड़ा नाटक करना पड़ता है, नहीं तो जयशंकर जी को शक हो जाता.
सुगंधा- पापा, ये क्या है बहुत अजीब सी चीज है, गोल भी है, नर्म भी है कुछ नमकीन सा स्वाद है, समझ नहीं आ रहा.
जयशंकर- अरे कहा था ना.. ये हार्ड है. ऐसे जल्दी समझ नहीं आएगा वैसे तुझे एक हेल्प देता हूँ. ये लंबी चीज है अगर तू पूरा मुँह में लेकर चूसेगी तो शायद इसका नाम बता पाएगी, नहीं तो हार जाओगी.
सुगंधा ने फिर लंड को मुँह में ले लिया और मज़े से चूसने लगी. जयशंकर जी भी अपनी बेटी को लंड चुसवा कर बहुत ज़्यादा खुश हो रहे थे.
सुगंधा सुपारे को होंठों में दबा कर चूस रही थी. अब वो ज़्यादा से ज़्यादा लंड मुँह में लेना चाहती थी मगर वो कोई मॉंटी का लंड तो था नहीं, जो वो पूरा निगल जाती. ये तो 8″ का अज़गर था, जिसे निगलना मुश्किल था. दूसरी बात वो चीज को पहचानने के लिए ये कर रही थी, तो ज़्यादा मज़ा भी नहीं ले सकती थी. मगर उसने एक तरकीब लगाई, लंड को वापस बाहर निकाला.
जयशंकर- अरे क्या हुआ.. तुझे इसका नाम पता चल गया क्या?
सुगंधा- नहीं पापा समझ में नहीं आ रहा. ये तो कोई बड़ी लॉलीपॉप जैसी कोई चीज है. इसमें से थोड़ा नमकीन रस जैसा आ रहा है.. और ऐसा स्वाद मैंने लाइफ में कभी नहीं चखा है.
सुगंधा की बात सुनकर जयशंकर जी थोड़े घबरा गए क्योंकि उनके लंड से पानी की बूंदें आने लगी थीं और सुगंधा को शक ना हो जाए ये सोच कर उन्होंने बात को बदल दिया और सुगंधा तो खुद यही चाहती थी.
जयशंकर- अरे वाह तू तो बहुत करीब आ गई. ये रियल में ऐसी ही चीज है, इसमें रस भी रियल है. अब तू इसको चूसती रह और मज़ा लेती रह. जब समझ आ जाए बता देना.
सुगंधा- ठीक है पापा अब तो खुलकर चूसना पड़ेगा.. तभी मज़ा आएगा.
जयशंकर- हाँ ये हुई ना बात, चल चूस और रस के पूरे मज़े ले.
सुगंधा को अब कोई डर नहीं था वो खुलकर लंड को चूसने लगी. मगर एक गड़बड़ थी कि उसने पेंटी नहीं पहनी थी और उसकी चुत रस टपका रही थी. ऐसे तगड़े लंड की चुसाई से उसकी उत्तेजना भी बढ़ गई थी. उसका बहुत मन था कि उसके पापा उसकी चुत को चूस कर उसकी खुजली मिटा दें. मगर ये इतना आसान नहीं था, तो वो बस लंड को चूस कर मज़ा लेने लगी.
काफ़ी टाइम तक ये लंड चुसाई चलती रही. अब तो जयशंकर जी धीरे-धीरे झटके भी मारने लगे थे, उनकी उत्तेजना बहुत बढ़ गई थी. उनके विशाल लंड से रस की धारा निकलने को बेताब थी, तभी उन्होंने जल्दी से लंड को बाहर निकाला और पास पड़े प्याले में सारा रस निकाल दिया तब जाकर उनको सुकून मिला.
सुगंधा भी समझ गई थी कि उसके पापा ठंडे हो गए हैं मगर उसने अनजान बनने का नाटक किया- क्या हुआ पापा, चुसाओ ना.. बहुत मज़ा आ रहा था.
जयशंकर- बस बस.. बहुत टाइम हो गया और तू इसको पहचान भी नहीं पाई इसका मतलब तू हार गई है.
सुगंधा- अरे थोड़ी देर और चूसती तो पता लग जाता ना पापा.
जयशंकर- नहीं अब तुझे हार मान लेनी चाहिए.. मैंने तुझे बहुत मौका दिया.
सुगंधा- अच्छा बाबा हार गई मैं.. बस हैप्पी! चलो अब मुझे खोलो तो.
जयशंकर जी ने वो प्याला टेबल के नीचे छुपा दिया और लुंगी ठीक करके सुगंधा को खोल दिया. मगर ये सब करने के पहले उन्होंने ये नहीं सोचा था कि लास्ट में सुगंधा को वो क्या चीज का नाम बताएँगे.
सुगंधा- ओफफो आप बहुत स्मार्ट हो पापा.. लास्ट में चीज ऐसी ले आए कि मैं पता ही नहीं लगा सकी. वैसे अब तो में हार गई हूँ, तो बताओ मुझे वो क्या चीज थी.. जिसे चूसने में मुझे इतना मज़ा आ रहा था?
जयशंकर- व्व..वो तत..तू हार गई है. अब तुझे मेरी बात माननी पड़ेगी समझी.
सुगंधा- अरे मगर वो चीज का नाम तो मुझे पता होना चाहिए ना?
जयशंकर- नहीं अगर बता दूँगा तो दोबारा मैं कैसे जीतूँगा.. चल तू हार गई है.
सुगंधा- अच्छा ऐसे कैसे हार गई. आपकी बारी भी आएगी और आपको भी ऐसे ही बताना होगा.
जयशंकर जी तो अब ठंडे हो गए थे. अब कहाँ उनका मन था, तो बस वो बहाना बनाने लगे कि वो थक गए हैं, आराम करना है.
सुगंधा- ये चीटिंग है पापा, ऐसे मैं नहीं हार मानूँगी ओके.
बोलते बोलते सुगंधा की नज़र टेबल के नीचे पड़े प्याले पे गई.
सुगंधा- अच्छा तो वो चीज अपने नीचे छुपा कर रखी है, अभी देखती हूँ.
सुगंधा उस प्याले को लेने लगी, तो घबराहट में जयशंकर जी ने सुगंधा के पैर में पैर मार दिया, जिससे वो उलझ कर गिर गई और उसकी मैक्सी भी ऊपर हो गई. जिसकी वजह से उसकी खुली चुत के दीदार जयशंकर जी को हो गए.
सुगंधा की नज़र जयशंकर जी की नज़र पर गई, जो कहीं और ही टिकी थी. तब उनकी नज़र का पीछा करते हुए सुगंधा को अहसास हुआ कि वो उसकी चुत को घूर रहे हैं, जो रस से भीगी हुई थी और चमक रही थी.
सुगंधा ने हालत को समझते हुए जल्दी से कपड़े ठीक किए और झूठ मूट का नाटक करने लग गई.
सुगंधा- ओह माँ.. मर गई मैं उउउह पापा.
जयशंकर- अरे ठीक से चल भी नहीं सकती. अब गिर गई ना.. दिखा कहाँ लगी है.
सुगंधा के दिमाग़ में अपनी चुत को शांत करने का फ़ौरन आइडिया आ गया.
सुगंधा- आह.. पापा पैर में दर्द हो रहा है और कमर में भी जोर से लगी है.
जयशंकर- अच्छा तू खड़ी हो, मैं देखता हूँ.
सुगंधा- आह.. उठा भी नहीं जा रहा.. बहुत दर्द हो रहा है पापा.
जयशंकर जी उसके पास बैठ गए और उसके चेहरे को देखने लगे.
जयशंकर- सॉरी बेटा.. मेरी वजह से ही तू गिरी है. अगर मेरा पैर बीच में नहीं आता तो तुझे तकलीफ़ नहीं होती. मगर तू घबरा मत, मैं अभी तुझे उठा कर तेरे कमरे में लेकर जाता हूँ.
सुगंधा- ओह हाँ पापा आप मुझे ही गोदी में उठा लो.. आह.. मुझसे तो उठा नहीं जाएगा आह.. पापा उफ्फ..
जयशंकर जी ने एक हाथ उसकी गांड के नीचे और दूसरा गर्दन के नीचे रखा और उसे उठा कर कमरे में ले गए.
सुगंधा- आह.. पापा आप बहुत अच्छे हो. अब ये दर्द का कुछ करो आह.. मुझे बहुत दुख रहा है.
जयशंकर- देख मैं तेरी माँ के आने के पहले तुझे ठीक कर दूँगा. तू रुक, मैं अभी तेरा इलाज लेकर आता हूँ.
जयशंकर जी बाहर गए, सबसे पहले तो उन्होंने उस प्याले को साफ किया. फिर उसमें सरसों का तेल लेकर उसको गर्म करने लगे.
उधर सुगंधा अपने ख्यालों में खोई हुई सोच रही थी ‘ओह पापा, आपका लंड तो बहुत बड़ा है. उसको चूसते हुए मेरा मुँह दुखने लगा. काश मैं उसको देख पाती, अपने हाथों से उसे पकड़ कर हिला पाती और आपका रस.. आह कितना मज़ा आ रहा था.. काश वो रस आप मुझे पिला देते, तो मज़ा आ जाता मगर जो भी हुआ अब आपको उसके आगे लेकर आऊंगी. तभी तो दर्द का नाटक किया मैंने, अब जल्दी से आ जाओ और मेरी चुत को सुकून दे दो.
जयशंकर- ये देखो में सरसों का तेल लाया हूँ इससे तुम्हें आराम मिल जाएगा.
सुगंधा- लेकिन पापा मैं कैसे लगाऊं.. मुझसे तो उठा भी नहीं जा रहा.
जयशंकर- अरे मैं लगा दूँगा ना.. तू टेंशन क्यों ले रही है.
सुगंधा- पापा व्व..वो आप कैसे लगा सकते हो.. व्व..वो दर्द पीठ पर और पैरों में ऊपर की तरफ़ हो रहा है.
जयशंकर- अरे तो क्या हुआ.. पहले जब तू छोटी थी ना तब तेरे जिस्म की मालिश तेरी माँ नहीं, मैं ही किया करता था. समझी अब मुँह से कोई आवाज़ मत निकलना समझी.
सुगंधा- ल्ल..लेकिन पापा वो तो एमेम.. मैंने नीचे कुछ न..नहीं पहना है..!
जयशंकर- मैंने कहा ना चुप, अब मैं जो करता हूँ, करने दे.. इससे तुझे आराम मिलेगा, तब बोलना.. समझी..!
सुगंधा की बात का जयशंकर जी पर कोई असर नहीं हुआ, वो तो बस जल्दी से उसकी मालिश करना चाह रहे थे.
सुगंधा- ठीक है पापा आप जो चाहे करो.
जयशंकर जी ने मैक्सी थोड़ी ऊपर की और घुटनों की मालिश करने लगे.. फिर धीरे-धीरे हाथ को ऊपर जाँघों पे ले गए.
अपने पापा के हाथ जाँघों पे लगते ही सुगंधा के जिस्म ने झटका खाया. उसकी काम भरी सिसकी निकल गई और चुत में एक करंट सा दौड़ गया. जयशंकर जी ने सुगंधा की तरफ़ देखा तो उसकी आँखें बंद थीं और वो अपने होंठों को दांतों में दबा कर काट रही थी.
जयशंकर जी अब सिर्फ़ जाँघों की मालिश कर रहे थे और एक-दो बार उनकी उंगली चुत से टच भी हुई, जिसका असर सुगंधा की कामुक सिसकी से पता लग रहा था कि वो कितनी उत्तेजित हो गई है.
पापा को भी अपनी कमसिन बेटी की मालिश करने में मज़ा आ रहा था और उनका लंड फिर उठाव लेने लगा था. सुगंधा की चुत रिसने लगी थी, इस बात का अहसास जयशंकर जी को तब हुआ, जब दोबारा उनकी उंगली चुत से टकराई.
जयशंकर जी मन में ‘लगता है सुगंधा उत्तेजित हो गई है, तभी उसकी चुत गीली हो गई. अब इसे शांत करना जरूरी है.. नहीं तो ये परेशान रहेगी.’
सुगंधा की आँखें अब भी बंद थीं.. वो बस घुटी-घुटी आवाज़ में मादकता से सिसक रही थी.
जयशंकर जी मन में ‘मेरी सुगंधा, तू तो बड़ी हो गई है.. देख तेरी चुत कैसे पानी छोड़ रही है, बस ऐसे ही आँखें बंद रखना. मैं तेरे कामरस को चख कर देखूं कि कैसा स्वाद है मेरी बेटी की चुत के रस का!’
जयशंकर जी ने अब सीधे उंगली चुत पे लगा दी और उसके सहलाने लगे, फिर उसपे जो रस लगा उसे वो चाट गए. उनका लंड एकदम टाइट हो गया था और वो भी बहुत ज़्यादा उत्तेजित हो गए थे.
जयशंकर- सुगंधा बेटा तू पेट के बाल लेट जा, तेरी पीठ पे भी तेल लगा देता हूँ.. जिससे तुझे आराम मिल जाएगा.