Office and Stressful life
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Devar bhabhi ke milan ka bohot sameh se intzar hai...ho sake toh thoda tadka laga hi dena bhai..अपडेट २६
ताईजी मुझे लस्सी देने के लिए मेरे कमरे में आती है मैं भोजन कर चुका था।
"लल्ला मुझे मंदिर जाना है बगीचे से आम की पत्तियां और फूल लाओ और नारियल खरीद लाना"
कुछ देर के बाद मैं बगीचे में चला गया और आम की पत्तियां और फूल लेकर बाजार से नारियल खरीद लाया, ताईजी ने पूजा की थाली सजाई और मंदिर चली गईं।
मैं अपने कमरे में आ रहा था कि तभी मुझे ताईजी के फोन की घंटी सुनाई दी, उनका फोन टीवी के ऊपर रखा हुआ था। शहनाज खाला का कॉल था।
"हेल्लो"
"बेटा अपनी मां को फोन देना"
"खाला मैं बलराम हूं और ताईजी गांव के मंदिर गई हुई हैं"
"बेटा घर में और कौन है?"
"क्या बात है खाला आप बहुत परेशान लग रही हैं"
"बलराम बेटा बात ये है कि मैं नुसरत के साथ इसकी फूफी के घर आई हूं और घर पर रूबीना की तबियत थोड़ी खराब हो गई है और शादाब दुकान पर है"
"आप चिंता मत कीजिए खाला, मैं ताईजी को बता दूंगा और मैं भी घर पर हूं, आप निश्चिंत रहिए"
"तुम्हारा बहुत बहुत शुक्रिया बेटा"
"खाला आप शुक्रिया कहकर मुझे शर्मिंदा कर रही हैं, आप निश्चिंत रहिए, मैं भाभीजान का ख्याल रखूंगा" कहकर मैंने फोन कट कर दिया
"देवरजी किसका ख्याल रखने की बात हो रही है? कौन था?" शीला भाभी अपने कमरे से तैयार होकर बाहर आती हुई बोली
मैं भाभी को देखते ही थोड़ी देर के लिए ठहर गया, क्या लग रही थी जैसे स्वर्ग की कोई देवी हो, गुलाबी रंग की पारदर्शी साड़ी में बिलकुल कहर ढहा रही थी।
"देवरजी कौन था?" शीला भाभी मुझे झकझोरते हुए बोली।
"भाभी पड़ोस वाली खाला का फोन था" कहकर मैंने सारी बातें भाभी को बता दी
"अरे देवरजी तुम कैसे ख्याल रखोगे और आज मंदिर में हवन है इसलिए मां भी दोपहर तक आएंगी"
"मैं कोई बच्चा नहीं हूं भाभी, आप चिंता मत कीजिए"
"तुम्हारे भईया नहाने गए हैं उन्हें आने दो मैं बात करती हूं" कहकर शीला भाभी अपने कमरे में चली जाती हैं।
कुछ देर बाद भीमा भईया घर के पिछवाड़े से नहाकर अपने कमरे में चले जाते हैं। मुझे अब खुजली होने लगती है इसलिए मैं उनके कमरे के बाहर छुपके से अपने कान लगाकर उनकी बातें सुनता हूं।
"कोई बात नहीं, बलराम है ना और पीहू भी तो है"
"मेरे भोंदू पतिदेव रात वाली बात याद नहीं है क्या? रूबीना के करीब आने का ऐसा मौका दोबारा नहीं मिलेगा"
"लेकिन हम झील पर घूमने के लिए जाने वाले थे ना, घर पर बलराम है पीहू है किसी ने कुछ सुन लिया या कुछ देख लिया तो?"
"आप मेरी बात सुनिए मां दोपहर तक मंदिर से आएंगी, पीहू को रसोई के काम में लगा देना और मैं बलराम के साथ घूमने के लिए झील चली जाती हूं, आप रूबीना पर ध्यान दीजिए"
"लेकिन क्या बलराम तुम्हारे साथ झील घूमने के लिए मानेगा?"
"मानेगा कैसे नहीं, मैं बात करती हूं आप रूबीना के घर चले जाओ"
Friend , i already told everyone that updates are coming weekly so keep patience....Bhai, Please update
सब लोग कुछ जा दा हीतेज हैअपडेट २४
अगले दिन मैं सुबह 7 बजे उठकर अपने नियम अनुसार कसरत करके नहाने चला गया। अब मुझे बहुत हल्का महसूस हो रहा था मैं नहाकर धोती लपेटा और आंगन में चला गया। मैंने देखा कि पीहू दीदी चारपाई पर बैठी हुई है तो मैं उन्हें नजरंदाज करके अपने कमरे में चला गया तो पीछे पीछे पीहू दीदी भी मेरे कमरे में आ गई।
"क्या हुआ दीदी, अब क्या है?" मैं थोड़ा गुस्से में बोला
"भाई तू मां को सूरज के बारे में कुछ कहेगा तो नहीं" पीहू दीदी विनती करती हुई बोली
"मैंने वादा किया था कि कुछ नहीं कहूंगा लेकिन आपको मेरी कुछ बातें माननी पड़ेंगी"
"भाई मैं सब कुछ करूंगी अपने प्यार के लिए"
"तो सूरज को कॉल करके बता देना कि आप कुछ दिन के लिए अपने चाचा के घर जा रही हो और आप अब घर से बाहर नहीं जाओगी और न ही सूरज से फोन पर बात करोगी।"
"लेकिन भाई"
"आपको मुझ पर विश्वास है ना! तो फिर मेरी इतनी बात मान लीजिए"
"ठीक है भाई मुझे पता नहीं तू क्या सोच रहा है लेकिन मुझे तुझ पर खुद से भी ज्यादा भरोसा है"
इतना कहकर पीहू दीदी घर के पिछवाड़े में नहाने चली जाती हैं, और मैं कुछ सोचता हुआ खेत में चला आता हूं, खेत में मुझे कल्लू दिखाई देता है जिसकी मुझे तलाश थी, मैं कल्लू के पास चला जाता हूं।
"राम राम बाबूजी, आप इतनी सुबह यहां खेत में क्या कर रहे हैं?"
"अरे मैं तो ऐसे ही घूमने फिरने आया था, तुम इतनी सुबह हल चला रहे हो, बहुत मेहनत करते हो भाई"
"बाबूजी पापी पेट का सवाल है, जब मेहनत करेंगे तभी तो खाने के लिए मिलेगा"
"ये बात भी ठीक है लो ये रख लो" मैंने ५०० रुपए का नोट कल्लू की तरफ बढ़ा दिया।
"ये किसलिए बाबूजी?"
"अरे पूछो मत रख लो"
"नहीं बाबूजी"
"शरमाओ नहीं तुम्हारी मां के लिए हैं, साड़ी खरीद देना सभ्या चाची के लिए"
कल्लू ५०० का नोट मुझसे लेकर रख लेता है।
"बाबूजी आपका बहुत बहुत धन्यवाद"
"५०० और दूंगा लेकिन उसके लिए एक छोटा सा काम करना पड़ेगा"
"बाबूजी आप हुकुम कीजिए"
"तुम्हे प्रधान जी के बेटे सूरज पर नजर रखनी पड़ेगी, सुबह से लेकर रात तक सूरज क्या करता है? कहां जाता है? सब कुछ पता करना पड़ेगा"
"नहीं बाबूजी प्रधान जी का बेटा नहीं बाकी गांव में किसी पर भी नजर रख लेंगे"
"१००० रुपए दूंगा"
"ठीक है बाबूजी आपके लिए कर रहा हूं।"
"और सुन मुझे पल–पल की खबर चाहिए, अभी से चालू हो जा"
फिर कल्लू हल रखकर वहां से चला जाता है, तभी मैं सभ्या चाची को सब्जियों के खेत में घूमते देखता हूं।
"सभ्या चाची इधर आना"
सभ्या चाची दौड़कर मेरे पास आने लगती है और उनकी चूचियां बहुत जोर जोर से ऊपर नीचे हिलती जाती हैं, सच कहूं तो मन कर रहा था कि यहीं सभ्या चाची को पटक के पेल दूं लेकिन मैं रागिनी काकी वाली गलती दोबारा नहीं दोहराना चाहता था।
"क्या हुआ बेटा तू इतनी सवेरे यहां किसलिए आया है?"
"चाची उस दिन हम दोनों के बीच शर्त लगी थी और मैं जीता था याद है की नहीं?"
"हां बेटा और मुझे ये भी याद है कि मुझे २४ घंटों के लिए तेरी सेवा करनी है लेकिन उस दिन के बाद तू पता नही कहां गायब हो गया"
"चाची मुझे कुछ काम आ गया था इसलिए याद नहीं रहा, आज फुरसत में हूं अब देखना कितनी मेहनत करवाता हूं।"
"मैं अपने बेटे की सेवा नहीं करूंगी तो कौन करेगा"
"आओ चाची पंपहाउस में बैठते हैं मेरे लिए चारपाई लगाओ और पानी लेकर आओ बहुत प्यास लगी है"
सभ्या चाची भागकर पंपहाउस में जाती है जिससे उनकी मोटी भरावदार गांड़ थिरकन करने लगती है, मेरा मन किया कि साली की गांड़ दबोचकर चूम लूं, मुझे खुद पर नियंत्रण ही नहीं हो रहा था मैंने सोचा कि सभ्या चाची को पंपहाउस में घुसते ही दबोच लेता हूं लेकिन ऐसा करता तो सब कुछ सत्यानाश हो जाता।
सभ्या चाची पंपहाउस के अंदर मेरे लिए चारपाई लगाती हैं और पानी लेने मटके के पास चली जाती हैं मैं सभ्या चाची के जिस्म के कटाव ताड़ते हुए चारपाई पर बैठता हूं।
"लो बेटा पानी" सभ्या चाची मुझे पानी का ग्लास देती हुई बोली
सभ्या चाची पानी देने के लिए झुकी हुई थी तो मैंने उनकी उंगलियों को स्पर्श करते हुए ग्लास का पानी उनकी साड़ी पर गिरा दिया और ऐसे दर्शाया जैसे की मुझसे गलती से गिरा हो।
"ओह चाची माफ कीजिए"
"ये क्या मेरी साड़ी गीली हो गई, अब मुझे अपने कमरे तक जाना पड़ेगा"
"कोई बात नहीं चाची साड़ी उतार कर बाहर डाल दीजिए कुछ देर में सूख जाएगी"
"ये तू क्या कह रहा है बेटा"
"चाची ठीक ही तो कह रहा हूं"
"कोई देखेगा तो क्या सोचेगा"
"चाची यहां कोई नहीं आएगा आप निश्चिंत हो जाओ"
"कल्लू देख लेगा तो गजब हो जाएगा"
"चाची कल्लू किसी काम से गया है शाम तक आएगा, और क्या कल्लू के जैसे मैं आपका बेटा नहीं हूं जो मुझसे इतना शर्मा रही हो"
"ऐसी कोई शर्म वाली बात नहीं है, चल ठीक है कर रही हूं" इतना कहकर सभ्या चाची ने अपनी साड़ी उतार कर बाहर झाड़ियों पर सुखाने के लिए डाल दी।
सभ्या चाची को ब्लाउज और पेटीकोट में देख मेरे लन्ड में हल्की हल्की अकड़न आने लगी क्योंकि उन्होंने ब्लाउज और पेटीकोट के अंदर कुछ नहीं पहना था और ब्लाउज और पेटीकोट का कपड़ा इतना पारदर्शी था कि उनकी बड़ी बड़ी चूचिया और उभारदार गांड़ कपड़े के बाहर छलक रहे थे और उनकी चने के दाने जैसी घुंडियां और उनका भूरा रंग नजर आ रहा था।
"चाची बड़ी खूबसूरत लग रही हो कसम से" मैं सभ्या चाची की बड़ी बड़ी चूचियों को घूरते हुए बोला
"चल झूठे मक्खन मत लगा" सभ्या चाची मुस्कुराती हुई बोली
"चाची सच में इस अवतार में तो आप कामदेवी से कम नही लग रही हो"
"बड़ा बदमाश हो गया है तू, अब बता क्या करना है।"
मैंने अपना मोबाइल चालू किया और उसमें एक गाना लगा दिया "बीड़ी जलाई ले जिगर से पिया"
"मेरी प्यारी चाची इस गाने पर नाचना शुरू कीजिए"
"क्या?"
"चाची शर्त मैं जीता था जो मैं कहूंगा आपको करना पड़ेगा"
सभ्या चाची थोड़ा गुस्से वाला मुंह बनाकर आंख दिखाने लगी लेकिन आखिर में उन्होंने नाचना शुरू किया और जैसे जैसे गाने की घुन पर उनकी गांड़ थिरकने लगी तो मेरे लन्ड में भी तनाव आना शुरू हो गया, सभ्या चाची की मोटी गांड़ आपस से टकरा रही थी जिससे एक कामुक ध्वनि बजने लगी थी और उनकी बड़ी बड़ी चूचियां भी ब्लाउज फाड़कर बाहर आने लगी थी।
तभी मैंने दूसरा गाना लगा दिया "टिप टिप बरसा पानी" सभ्या चाची ने नाचना चालू रखा और मैं कहां अपनी शरारत से बाज आने वाला था इसलिए मैंने पंपहाउस में लगी हुई छोटी सी टोटी को चालू कर दिया जिसमे एक पाइप लगा हुआ था और पाइप से सभ्या चाची के ऊपर पानी की बौछार मारने लगा तो उनकी ब्लाउज और पेटीकोट ऊपर से नीचे तक गीला होने लगा।
"आह्ह ये क्या कर रहा है तू" सभ्या चाची नाचती हुई रुक कर बोली
"उफ्फफ्फ चाची मजा आ गया हाहाहाहा" मैं मुस्कुराते हुए बोला
अब सभ्या चाची मादरजात नंगी नजर आ रही थी उनके ब्लाउज और पेटीकोट के पीछे छुपा अनमोल खजाना मेरी आंखों की गर्मी के साथ मेरे लन्ड की गर्मी को भी बढ़ा रहा था। सभ्या चाची का पूरा जिस्म गीला हो चुका था वह अपनी बड़ी बड़ी रसदार चुचियों को अपने दोनो हाथों से ढक कर उन्हें छुपाने की कोशिश कर रही थी।
"बेशरम ये क्या किया?" सभ्या चाची थोड़ा गुस्से में बोली
"चाची मैं थोड़ी मस्ती कर रहा था, आप इतना गुस्सा मत कीजिए, सब कुछ तय हुआ था कि २४ घंटों के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं और अभी तो १ घंटे भी नहीं हुए हैं, और अगर शर्त आप जीत जाती तो मुझे १ महीने तक गुलाम बनाती और अब ये गुस्सा मुझे मत दिखाओ नहीं तो देख लेना मैं आपसे कभी बात भी नहीं करूंगा इसलिए जो तय हुआ था निभाना पड़ेगा"
"ठीक है बेटा मैं आगे से गुस्सा नही करूंगी लेकिन तुम ऐसे मुझसे नाराज़ मत हो" सभ्या चाची मुझसे विनती करती हुई बोली
"चाची अब मेरी पीठ की तेल से मालिश कर दीजिए" कहकर मैंने धोती को छोड़कर अपने सारे कपड़े उतारे और पेट के बल चारपाई पर लेट गया