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Incest आशु की पदमा

Ajju Landwalia

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अध्याय 4
लाज़वन्ति का विश्वासघात


बंसी काका ओ बंसी काका....
बारात पुराने टीले तक पहुंच चुकी है रामखिलावन जी ने स्कूल का दरवाजा खुलवा दिया है रामु बता रहा था डेढ़ सो लोग शामिल है बारात मे, रामखिलावन जी आपको बुला रहे थे स्कूल पर बारात के स्वागत सत्कार के लिए.......
ठीक है मैं स्कूल जाता हूँ हरिया तू जरा यहां हलवाई का काम संभाल ले.... जैसे ही नाश्ता त्यार हो प्रमोद और मदन से कहकर सबका नाश्ता स्कूल मे भिजवा देना....
बंसी अपनी पसीने से भीगी हुई कमीज की आस्तीन चढ़ाते हुए हरिया से बोला.....
हरिया - पर काका.. बारात को सीधा यहां खेत मे ही ले आने के लिए कहा है रामखिलावन जी ने... स्कूल पर तो सिर्फ चन्दन बाबू और उसके साथ कुछ उनके मित्रो के ठहरने की व्यवस्था है....
बंसी - अच्छा अच्छा ठीक है.. जैसा वो कहता है कर.. मैं पहले घर हो आता हूँ... सुबह से सांस लेने तक की फुर्सत नहीं मिली है....
हरिया - हा काका... रास्ते मे काकी ने भी कहकर भेजा था आपको घर भेजनें के लिए.... पहले एक बार घर ही चले जाइये...
बंसी हरिया की बात सुनकर गमचे से अपना पसीना पोंछता हुआ खेत से घर की तरफ चल पड़ता है..

आज चन्दन और महिमा का ब्याह है हुसेनीपुर नाम के इस गाँव मे ब्याह की त्यारिया जोर शोर से चल रही है जिसे जो जिम्मेदारी मिली है वो उसे पूरी निष्ठा और ईमानदारी से निभाने मे लगा हुआ है.....
बंसी महिमा के पीता है और हरिया बंसी के बड़े भाई का सबसे छोटा लड़का....
रामखिलावन बंसी के बड़े जमाई और महिमा की बड़ी बहन मैना के पति है स्वाभाव से स्वाभिमानी और मेहनती पेशे से अध्यापक, एक एक चीज का सही हिसाब रखना उन्हें अच्छे से आता है पिछले 3 दिन से ब्याह की सारी जिम्मेदारी अपने कंधो पर संभाली है रामखिलावन ने....
गाँव के सरकारी स्कूल मे चन्दन के ठहरने की बात हो या घर के पास खाली पड़े खेत मे तम्बू गाड़कर बरातियों की पेट पूजा का सवाल रामखिलावन ने ही गाँव के सरपंच प्रभाती लाल जी के साथ मिलकर सारी व्यवस्था की थी....

बारात के स्वागत सत्कार के बाद चन्दन और कुछ लोग स्कूल के कमरे मे बिछे गद्दे पर बैठा दिए गए थे उसके सामने गाँव के कुछ लोग बैठे थे पंखा इस गर्मी मे सबको राहत देने का काम कर रहा था.. बाकी बारात को खेत मे किसी भेड़ के झुड की भाति चरने के लिए छोड़ दिया गया था जहाँ ज़मीन पर पंगत लगी हुई थी और एक कोने मे कुछ लोग तम्बू के पीछे से खाने का सामान अंदर ला रहे थे.... बारतियों मे कुछ लोग अपनी हैसियत भूलकर आज बड़ी बड़ी बात कर रहे थे जिनकी चप्पलों मे भी छेड़ था जो आज शराब के नशे खुद को PM CM DM SDM इन सबका रिश्तेदार बता रहे थे और गिनगिन के कभी व्यवस्थाओ मे कमी निकाल रहे थे कभी खाने मे.......

बारात के आने की खबर से गाँव मे हर तरफ ख़ुशी का माहौल था महिमा दुल्हन के लिबास मे आज किसी अप्सरा से कम न लगती थी उसकी चमक के आगे उसके आसपास की सारी लड़किया फिकी नज़र आ रही थी केवल नयना ही थी जो बिना किसी साज श्रंगार के भी महिमा के तुल्य आज लग रही थी....
पर आज नयना का मन उदास था पहला उसकी सखी महिमा उसे छोड़कर जा रही थी वहीं दूसरा उसे पूरी बारात मे आशु कहीं नज़र नहीं आया था उसका उदास चेहरा इस ख़ुशी के माहौल मे दुख मिला रहा था जो किसी को स्वीकार कैसे हो सकता है? उसने अपनी आँखों से देखा था फिर मेघा को भी तो आशु को ढूंढने भेजा था बारात मे.. पर आशु कहीं नहीं था...

हरिया ने प्रमोद और मदन से कहकर नाश्ता स्कूल भिजवा दिया था जिसे रामखिलावन ने चन्दन के सामने रख दिया था आपस मे. लोगों के बीच मानोहर हो रही थी पुराने मज़ेदार प्रसंग निकलकर सामने आ रहे थे और जोरो के ठहाके लग रहे थे पूरा माहौल रमणिये था.....

स्कूल से चन्दन बाबू को दुल्हन के घर की देहलीज़ पर ले आया गया था गिनती के एक या दो लोग चन्दन के साथ बैठे थे वहीं अब तक लगभग सारी बारात खाना खा चुकी थी महिमा चन्दन को देखकर बहुत खुश थी और उसके दिल मे हिलोरे उठ रहे थे वहीं नयना के नयनों से आज आंसू बहने वाले थे जिसे उसने महिमा के सामने रोक रखा था तभी मेघा ने आकर नयना के कान मे कुछ कहा जिसे सुनकर नयना मेघा के साथ महिमा के कमरे से बाहर चली गई....

नयना खेत मे लगे टेंट के अंदर आई तो उसने देखा की अब मुश्किल से कुछ बाराती बैठे खाना खा रहे थे और और एक कोने मे अभिभी इसने सामने अंशुल खाने के लिए बैठा था.... साधारण जीन्स टीशर्ट मे भी वो बहुत आकर्षक और कमाल लगा रहा था, अंशुल को देखकर नयना के आंसू उसकी आँखों से उतर आये मगर इस बार उन्हें ख़ुशी के आंसू कहना सही होगा... नयना अपने आंसू पोंछकर अंशुल के सामने जा बैठी और उसकी आँखों मे देखने लगी...

पूरी बारात मे कहीं नहीं दिखे.....
कहा थे अबतक? मुझसे छुप रहे थे?
इतनी बुरी हूँ मैं की मेरी सूरत भी नहीं देखना चाहते?
पत्ता है कितनी बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी आपका?
अब उठिये यहां से.... मेरे साथ चलिए...

कहते हुए नयना ने अंशुल के सामने से परोसा गया खाना हटा दिया जिसे अभी अंशुल ने हाथ भी नहीं लगाया था और उसका हाथ पकड़ कर वहा से अपने साथ महिमा के घर की तरफ ले गयी जहा उसे नयना और महिमा की सखियों ने ठीक चन्दन के बगल मे बैठा दिया गया.....

अरे कहा गायब हो गया था आशु?
और फ़ोन कहा है तुम्हारा? कब से फ़ोन करवा रहा हूँ.
लग ही नहीं रहा.... सब ठीक है ना...

सब ठीक है भईया.... वो गाडी मे ज़रा आँख लग गई थी तो समय का पत्ता नहीं चला...
अंशुल ने चन्दन की बात का जवाब देते हुए कहा....

चन्दन और उसके साथ पीछे बैठे दोस्तो का गाँव की इन अल्हड़ भोली भाली लड़कियों से हंसी ठिठोली का दौर जारी था कभी एक तरफ से कोई कुछ कहता तो कभी दूसरी तरफ से कोई उसका जवाब देता.. मगर चन्दन के बगल मे बैठे अंशुल का मन कहीं खोया सा था उसे इन सब से कोई लेना देना नहीं था... महिमा और नयना की सखियों ने उससे हंसी मज़ाक़ करना भी चाहा था बदले मे अंशुल की ख़ामोशी ही उन्हें वापस मिली..

अरे हटो हटो.... पीछे हटो.. आगे जाने दो जरा...
अरे कोयल भाभी आप कहा इन लड़कियो के बीच बैठी ठिठोली कर रही है... अंजू जगह दो.... हटो....
चन्दन के सामने बैठी गाँव की लड़कियों को अगल बगल करती महिमा की माँ विद्या चन्दन के सामने आ गई और अपने पीछे आती एक लड़की के हाथो से थाली लेकर चन्दन के आगे रखते हुए बोली.....

माफ़ करना पाहून जी.... भोजन मे तनिक देरी हो गई.. और एक एक करके ब्याह मे बने पकवान चन्दन के सामने विद्या ने परोस दिए.... चन्दन के साथ मे उसको दोस्तों को भी भोजन परोसा गया लेकिन अंशुल की थाली खाली थी जिसे नयना ने अपने हाथो से अभी अभी अंशुल के सामने रखा था और उसी के सामने आ बैठी थी.. जिस मीठे स्वाभाव के साथ विद्या ने अपने जमाई चन्दन को खाना परोसा था उसी के साथ नयना ने भी अंशुल की थाली भोजन से सजाई थी..... इस माहौल मे सब अपना अपना आनंदरस खोज रहे थे और व्यस्त नज़र आ रहे थे....

क्या हुआ?
कहा खोये हो?
अपने हाथो से खा लोगे या हम खिलाये?
नयना ने जब ये बात अंशुल को कहीं तो चन्दन और उसके दोस्तों के साथ साथ नयना के साथ बैठी सभी सखियों जोर से ठहाके मारकर हँसने लगी.... बेचारे अंशुल का चेहरा शर्म से लाल हो चूका था जिसे देखकर नयना को उसकी हालत पर प्यार के साथ तरस दोनों एक साथ आ रहा था..

पाहून जी आपके दोस्त तो कुछ बोलते ही नहीं..
गूंगे है?
एक लड़की ने कहा तो सब वापस जोर से हसने लगे...
इस बार नयना भी मुस्कुराने लगी थी..

क्या हुआ आशु?
कहा खोये हो? अभी भी नींद आ रही है?
खाना ठंडा हो जाएगा.... चन्दन ने कहा....

चन्दन की बात सुनकर आशु ने सामने बैठकर पंखा झलती नयना को देखते हुए खाने की पहली कोर मुँह मे डाली और खाने लगा.... दोनों की नज़र बार बार एक दूसरे से टकरा रही थी और कई सवाल जो एक दूसरे के मन मे थे आपस मे पूछ रही थी और उनके जवाब भी उन्ही आँखों से दिए जा रहे थे.. नयना अपने सपनो के सागर मे फिर से एक बार खो चुकी थी अंशुल का चेहरा उसे उसके दिल की गहराइयों मे बसे प्रेम की अथाह सागर मे ले जा चूका था वहीं अंशुल खाना खाते हुए अपने मन मे चल रहे द्वन्द से लड़ रहा था मानो उसपर कोई ऊपर साया अपना काबू करना चाहता था जिसे उसकी आत्मा ने अब तक उसे छूने से भी रोका हुआ था....

खाने के बाद हाथ धोते हुए चन्दन ने हरिया के कहे अनुसार घर के पिछवाड़े साजे मंडप की और कदम बढ़ा दिए नहा शादी की रस्म पूरी होनी थी....

बंसी जी...
ये एक सो सातवा विवाह करवा रहे है हम....
दूर दूर तक कोई भी दूसरा पंडित हमसे ज्यादा विधि विधान के साथ कोई शुभ कार्य करवा ही नहीं सकता..
अजी इतनी उम्र ऐसे ही थोड़ी ले कर बैठे है....
सरपंच जी.....
आज तक जिसका भी विवाह करवाया है सब के सब ख़ुशी से अपना जीवन निर्वाह कर रहे है...
किसीके भी घर टूटने या कचहरी तक जाने की खबर नहीं सुनी....
आप तो अच्छे से जानते है.......
धोती कुर्ते मे बैठे एक अधेड़ उम्र के पंडित जी अपनी चुटिया को ऊँगली से घुमाते हुए बंसी और प्रभाती लाल से अपनी योग्यता का बखान कर रहे थे....

अरे आओ आओ पाहून जी....
यहां बिराजिये... पंडित जी ये है चन्दन बाबू..
हरिया... अपनी काकी से कह महिमा को भी भेजे....
चन्दन को आता देखकर बंशी ने कहा..

शादी की रस्म शुरु हो चुकी थी वही अंशुल सबकी नज़र बचाकर खेत की तरफ आ चूका था इस बार उसने नयना को भी छका दिया था.. खेत से अब तक पूरी बारात और गाँव के लोग खाना खाकर जा चुके थे और कुछ लोगों ने सुबह लगाए हुए तम्बू अब उखड़ कर एक तरफ कर दिए थे और वहा अब धीमी लाइट की रौशनी ही बची थी जहा चन्दन के साथ खाना खाने के बाद उसका एक दोस्त खड़ा हुआ सिगरेट के कश ले रहा था....

अंशुल के मन मे हलचल थी आज फिर से नयना ने उसके दिल को छुआ था उसे रह रह कर नयना का चेहरा दिखाई दे रहा था और उसकी बातें सुनाई.... अजीब मनोदशा के बीच अंशुल अब तक प्रभाती और उनकी धर्मपत्नी लाज़वन्ति से बचकर ही रहा था जैसे उसमे उनका सामना करने की हिम्मत ही ना हो.. इस बार नयना से भी नज़र बचाने मे कामयाब रहा था कहीं और जाने की जगह नहीं दिखी तो खेत मे आ गया था....

सिगरेट?
चन्दन के दोस्त गोपाल ने अंशुल की तरफ सिगरेट का पैकेट और लाइटर बढ़ाते हुए कहा..
अंशुल सिगरेट कभी कभार.. हफ्ते मे एकआदि बार ही पीता था मगर इस वक़्त उसने बिना कुछ कहे गोपाल के हाथ से वो सब ले लिया और वहीं खड़ा हुआ अपने ख्याल मे रहा...

मैं चन्दन के पास जा रहा हूँ...
जब तुम वापस आओ तो चुपके से मुझे वापस कर देना....

गोपाल ने अंशुल ये बात कहकर अपने कदम बढ़ा दिए.. अंशुल वहीं कहीं एक बड़े से पत्थर पर बैठ गया काफी देर तक अपनी सोच मे खोया रहा, जहाँ खेत मे कुछ देर पहले मेला सा लगा हुआ था वहा आसपास अब इंसान का मानो निशान तक नहीं था.... अबतक नयना ने अंशुल पत्ता लगा लिया था और वो अकेली ही रात के इस वक़्त खेत की तरफ चली आई थी..
अंशुल ने बहुत देर तक बैठे बैठे जिस दौराहे पर वो था उसीके बारे मे सोच रहा था फिर आखिर मे एक सिगरेट पैकेट निकालकर जला ली और पहला ही कश लिया ही था की नयना पीछे से बोल पड़ी....

शराब का प्रबंध करू या है आपके पास?
अंशुल ने पीछे मुड़कर नयना को देखा तो हाथ से सिगरेट अपने आप नीचे गिर गई...
तुम अकेली इस वक़्त यहां क्या कर रही हो? अंशुल ने पूछा..

जहा आप हो.. वहा मैं क्या करूंगी? आपको लेने आई हूँ... सोना नहीं है? यहां शोर गुल मे तो आपको नींद आने से रही... उस दिन सासु माँ ने बताया था आपको सुकून से सोना पसंद है.. तो मैं आ गई आपको लेने... वैसे तो शादी से पहले दूल्हा अपने ससुराल मे नहीं आता मगर आप को पूरी छूट है.... आप जब चाहे आ जा सकते है... अब खड़े खड़े मेरी शकल क्या देख रहे है... चलिए....

क्या सासुमा? क्या ससुराल? क्या दूल्हा? आधी रात को कोई दौरा पड़ा है तुम्हे? उस दिन देखकर समझ आ गया था पागल हो मगर इतनी बड़ी पागल... आज समझ आया है.. तब से क्या कुछ भी बोले जा रही हो? एक बार की बात समझ नहीं आती तुमको? तेरा मेरा कुछ नहीं हो सकता.... मुझे ना तुममें कोई दिलचस्पी है ना तुम्हारे बाप की दौलत मे.... और तुमसे शादी भी नहीं करना चाहता.. अगहन तक इंतज़ार करने की तुम्हे कोई जरुरत नहीं है.... समझी..

हाय..... कैसे कोई नयना जैसी परी को इतनी दिल को दुःखाने वाली बात कह सकता था.. क्या आशु के दिल मे ज़रा भी रहम नहीं था नयना के लिए? कौन जाने? अंशुल की बात तो जैसे नयना के कानो तक पहुंच कर वापस लौट गई थी उस नादान लड़की पर अंशुल की इतनी कठोर बातों का कोई असर नहीं हुआ था वो वो बस टकटकी लगाए अंशुल के हिलते हुए होंठों को बड़े प्यार देख रही थी.. उसके दिल मे तो था की आगे बढ़ कर अंशुल के लबों को अपने लबों की कोमल और रसदार हाथकड़ी से गिरफ्तार कर ले मगर लोकलाज और उसकी मर्यादा ने उसे अब तक रोका हुआ था..

एक सिगरेट क्या नीचे गिर गई.... उसके लिए इतना गुस्सा? अच्छा पी लो अब कुछ नहीं कहती.... इतना कहकर नयना अंशुल के बिलकुल करीब आ गई और पत्थर पर पड़े सिगरेट के पैकेट और लाइटर को उठाकर अंशुल की हथेली पर रख दिया..

अंशुल ने उसे फेंकते हुए कहा - देख नयना.... मैं कोई मज़ाक़ नहीं कर रहा हूँ.. तू अच्छे से जानती है.. मुझे बक्श दे... तेरा मेरा कुछ नहीं हो सकता..

मुझे मेरी मन्नत पर पूरा भरोसा है....
देखना आप खुद अगहन की पूर्णिमा को मेरे साथ मेरा हाथ पकड़कर जीने मरने की कस्मे खाओगे.... और मुझे अपनी बनाओगे..
फिर देखना मैं कैसे आपकी बातों का गिन गिन के आपसे बदला लेती हूँ......

इस बार अंशुल ने आगे कुछ कहना जरुरी नहीं समझा और वहा से वापस आने के लिए चल दिया.. अंशुल के एक कदम पीछे अपनी ही बात करते करते नयना भी वापस आ रही थी.... नयना की सारी बातें अंशुल के मन मे उतर रही थी लेकिन पदमा के प्रेम मे उसे रोक रखा था अंशुल को नयना का रूप और स्वाभाव भा गया था लेकिन वो चाह कर भी उसे स्वीकार नहीं कर सकता था, बस ऊपरी तौर पर कड़वे बोल बोलकर नयना का दिल दुखाना चाहता था ताकि नयना उसे छोड़ कर किसी भले आदमी से ब्याह कर ले, मगर नयना भी पक्के इश्क़ आजमाइश को समझती थी और जानती थी इश्क़ सब्र और इम्तिहान दोनों मांगता है अपने प्यार को छोड़ देना उसके बस मे नहीं था.....

अब तक विवाह सम्पन हो चूका था.. पंडित जी और रामखिलावन के बीच पैसो को लेकर तीखी नौकजोख चल रही थी....
अरे पंडित जी.. जो रकम तय हुई थी वहीं तो लोगे ना.. ऐसे थोड़ी कुछ भी माँगने लगोगे.... अब जो बात बता रहे हो वो बात पहले बतानी चाहिए थी.. पंडितो की कमी थोड़े ही है हम दूसरा कर लेते..

अरे कौन है ये बीच का बांस? कब से कुछ भी बोले जा रहा है.... आस पास के अस्सी गाँव मे कितना आदर, सम्मान से बुलाते है लोग और मुँह मांगी राशि देते है.... कोई तुम्हारी तरह पंचायत नहीं करता..

पाहून जी... कितना शुभ काम हुआ है अभी वादविवाद करना ठीक नहीं.. जो मांगते है पंडित जी दे दीजिये ना.... महिमा की माँ विद्या ने कहा...
बंशी भी विद्या के साथ मे बोल पड़ा - पाहून जी.. अब छोड़िये अपना गुस्सा.... पंडित जी को विदा कीजिये...

रामखिलावन ना चाहते हुए भी पंडित जी की मांगी गई रकम उन्हें देकर विदा करता है और फिर नाक सिकोड़ता हुआ कहता है - शुभ अवसर है कोई कुछ बोलेगा नहीं यही सोच कर तो अपना मुँह फाड़ते है सबके सब.... चाहे हलवाई वाला हो या टेंट वाला.. चाहे किराने वाला हो या फेरे कराने वाला... शादी को कमाई का धंधा बना रखा है सबने...

रामखिलावन ये कहते बाहर निकलकर छत पर आ गया था जहा अंशुल नयना से किसी तरह हाथ पैर जोड़कर पीछा छुड़ाते हुए एक चार पाई पर लेट गया था.. बड़ी मुश्किल पीछा छोड़ा था नयना ने, और आखिर मे अंशुल से कहा भी था कि सुबह देखती हूँ बच्चू....






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आह्ह.... आह्ह.... आह्ह......
कोई आ जाएगा......
आह्ह.... जमाई जी..... छोड़िये..... आह्ह....

सवेरे सवेरे खेत के दूसरी तरफ स्कूल में जब महिमा की माँ विद्या रात को छोटे जमाई चन्दन का स्वागत करके वापस घर गई थी तब विद्या स्कूल में अपना कोई सामान भूल गयी थी... आज इतवार था स्कूल बंद था कोई भी नहीं दिखाई पड़ता था रामखिलावन सरपंच प्रभाती जी से ताला लेकर स्कूल बंद करने आया था वहीं विद्या उसे मिल गई थी......
रामखिलावन ने जिस गद्दे पर रात में चन्दन बैठा था उसी गद्दे पर विद्या को अपने नीचे लेटा लिया था और भोग रहा था.... दरवाजा बंद था और खिड़की भी बंद.... पिछली बार 3 महीने पहले जब वो यहां आया था तब उसका और विद्या का सम्बन्ध बना था....

क्यों चिंता करती हो विद्या...... इतनी सुबह कोई नहीं आएगा.... ठीक से मुँह खोलो.... हां.... आह्ह... तुम सच में कमाल हो विद्या.... ऐसे ही चुसो... हां...
आह्ह..... जमाई जी..... छोड़िये ना.... कोई देख लेगा...
कितने दिनों बाद आज मौका मिला है विद्या.... कैसे छोड़ दू? कोई नहीं आने वाला....
जमाई जी..... आह्ह......
सच कहु तो विद्या मैना से शादी मैंने तुम्हारे लिए ही की थी....
ई का कह रहे हो जमाई जी....
सच कह रहा हूँ विद्या..... ज़ब पहली बार देखा था मैं पागल हो गया था.... तुम्हारे इन दोनों मोटे मोटे कबूतरो ने मुझे पागल कर दिया था...
जमाई जी मुझे डर लग रहा है कोई आ जाएगा... आप फिर कभी कर लीजियेगा.... मैं कहा मना कर रही हूँ.....
फिर कभी क्यों सासु माँ? इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा.... तुम डरो मत.....
आह्ह जमाई जी.... आप तो बहुत बुरे हो.... आह्ह...
अपने जमाई को अपना बदन दिखाकर बिगाडो तुम और बुरे हम हुए.... वाह सासु जी वाह....
जरा जल्दी करो जमाई जी.... आह्ह... महिमा की विदाई है आज... बहुत काम पड़ा है घर में...

थप थप छप छप की आवाज और रामखिलावन और विद्या की बातों से हल्का सा शोर हो रहा था जिसे सुनकर विद्या डरी हुई थी मगर रामखिलावन ने जैसे तैसे करके विद्या को मनाकर उसके साथ कामसुख लूट ही लिया था और स्कूल से निकालते हुए उसके चेहरे पर विजयी मुस्कान थी वहीं विद्या का चेहरा शर्म से लाल........

उठ जाओ बच्चू..... सोते ही रहोगे? कुम्भकरण हो?
नयना ने अंशुल को जगाते हुए कहा.....
तुम्हे सुबह भी चैन नहीं है? क्यों मेरा पीछा नहीं छोड़ती? अंशुल पास रखे पानी के बर्तन से मुँह धोता हुआ बोला...
नयना - पीछा छोड़ने के लिए थोड़ी पीछा किया है आपका.... अब तो मरकर ही पीछा छूटेगा.... याद है ना.... अगहन की पूर्णिमा को मेरे घर बारात न लाये तो क्या होगा?
अंशुल - हां तुम खुदखुशी कर लोगी.... बस.... मुझे तुम्हारी धमकियों से कोई मतलब नहीं है.... मेरी ना का मतलब ना है...
नयना - आपको फिर मेरी बातों से इतना फर्क क्यों पड़ रहा है? मर जाने दीजिये.... आपका क्या बिगड़ेगा?
अंशुल - मुझे क्यों फर्क पड़ेगा.... लेकिन आज सुबह सब गए कहा? यहां कोई भी नहीं दिख रहा... चन्दन कहा है?
नयना - सुबह? बारह बज रहे है.... शहजादे.... ये सुबह नहीं दोपहर होती है यहां.... सब द्वारे की तरफ है... विदाई होनी है महिमा की... आज से तीन माह बाद जैसी मेरी विदाई होगी और आप मुझे अपने साथ लेकर जाओगे.... नयना ने मुस्कुराते हुए कहा फिर रात को अंशुल का फ़ेंका हुआ सिगरेट का पैकेट और लाइटर उसे देती हुई बोली.... लो.. और गुस्सा थोड़ा कम किया करो..
अंशुल सिगरेट और लाइटर ले लेता है और छत से नीचे आ जाता है...
पीछे आती नयना ने कहा -चाय बना दूँ आपके लिए?
अंशुल - नहीं.... जरुरत नहीं....
नयना ने दुप्पटा नहीं ले रखा था उसके स्तन उसकी छाती पर तने हुए थे जिसपर अंशुल की नज़र चली गई....
नयना - क्या देख रहे हो मिस्टर? ऐसा वैसा कुछ सोचना भी मत बच्चू.... ब्याह से पहले कुछ नहीं करने देंगे आपको.. और ब्याह के बाद कुछ नहीं करोगे तो छोड़ेंगे नहीं... हाहा...
अंशुल - ब्याह होगा तब ना..... ये कहते हुए अंशुल जब बाहर की तरफ जाने लगा तो नयना ने अंशुल का हाथ खींच लिया और उसे अपनी तरफ करके अंशुल के अधरों पर अपने अधर ठिका दिये......

ये प्यार का पहला चुम्बन था जो नयना अंशुल को दे रही थी इस चुम्बन में सिर्फ दोनों के होंठो हो नहीं आँखे भी मिल गई थी दोनों चुम्बन के वक़्त एकदूसरे को देख रहे थे किसीने भी अपनी आँखे बंद नहीं की थी जैसे आँखों से कोई सवाल पूछ रहे हो.. अंशुल पर तो नयना ने जैसे कोई जादू कर दिया था वो चाह कर भी अपने होंठ अलग न कर सका और यूँही नयना को देखता हुआ खड़ा रहा.. नयना के गुलाब सुर्ख नरम होंठों का अहसास पाकर अंशुल मादकता और प्रेम के शिखर पर जा पंहुचा था जहाँ से नयना उसके साथ कुछ भी कर सकती थी.. उसके दिल में नयना के लिये जो प्रेम था वो और प्रगाड़ हो चला था... कुछ देर बाद जब नयना ने चुम्बन तोड़ा तो दोनों की साँसे तेज़ चल रही थी अंशुल किसी बूत की तरफ खड़ा हुआ बस नयना को ही देखे जा रहा था जैसे कोई मूरत हो.. नयना चुम्बन के बाद अंशुल के सीने से जा लिपटी जैसे उसे खोने का डर हो और अपनी बाहों में हमेशा के लिए क़ैद करना चाहती हो..

नयना ने अंशुल की बात का जवाब देते हुए कहा.. ब्याह तो होगा... और जरुर होगा आपके साथ.. आप देखना.... इस अगहन मेरे हाथो की मेहंदी आपके बिस्तर पर ही झड़ेगी..... मन तो कर रहा है अभी आपकी इज़्ज़त लूट लू मगर अगहन तक इंतजार करुँगी आपका.. और आपकी मर्ज़ी के साथ ही करूंगी सबकुछ....
अंशुल चाहता तो फिरसे नयना के अधरों को अपने अधरो पर सजाना था मगर पदमा का ख्याल उसे इसकी इज़ाज़त नहीं दे रहा था. नयना का भोलापन मासूमियत और आँखों में अपने लिए झलकते पागलपन को अंशुल समझ रहा था.. वो अपने ख्याल से बाहर आता हुआ बोला - ये ज़िद छोड़ दो नयना... मैं किसी और का हो चूका हूँ.... तुम्हारे साथ ब्याह नहीं कर सकता... मुझे माफ़ कर दो..
नयना के गंभीर चेहरे पर हंसी आ गई और वो हसते हुए बोली - ये सब मेरा दिल जलाने के लिए कह रहे हो ना? ताकि मैं आपका पीछा छोड़ दू? बच्चू इस जन्म तो ऐसा मुमकिन नहीं है.... मरने के बाद भी पीछा नहीं छोडूंगी......
बाहर से किसी के आने की आहट सुनकर नयना और अंशुल थोड़े सतर्क हो जाते है और थोड़ा दूर होकर यहां वहा देखने लगते है...
दीदी चलो ना... महिमा दी कब से आपको बुला रही है... ये मेघा थी गाँव की ही एक किशोर लड़की... जिसके साथ नयना अंशुल को देखकर मुस्कुराती हुई बाहर की तरफ चली गई...



विदाई में इतना देर कौन करता है भाई?
अरे यार क्या बताये पहले रस्मे में देरी हुई अब ये गाडी बिगड़ गई आस पास तो कोई है नहीं गाडी बनाने वाला अब लुटिया गाँव के नेनु को बुलाया अभी रास्ते में बताता है...
लोग आपस में बात कर रहे थे सुबह हो जाने वाली विदाई दिन के 1 बजे तक नहीं हुई थी.. विदाई में समय लगने वाला था...

अंशुल गाँव घूमता घूमता नहर के पास आ पंहुचा दिन सुहावना था, एक पेड़ के नीचे खड़े होकर अंशुल में पेड़ के तने पर अपनी पीठ टिका दी और नहर की तरफ देखने लगा.. नहर के उस पास एक सडक थी और सडक के पार घना जंगल... कहते है वहा से कभी कभी जंगली जानवर गाँव में घुस आते थे.. अंशुल बस प्रकर्ति की खूबसूरती निहार रहा था उसके मन से अब नयना के ख्याल उतर चुके थे और वो हक़ीक़त की ज़मीन पर था... उसने एक सिगरेट जला ली थी और कश लेते हुए नज़ारा अपनी आँखों में भर रहा था..

अंशुल खड़ा था की पीछे से किसी की आवाज़ आई - अरे आप यहा कब आये?
अंशुल ने पीछे मुड़कर देखा तो लाज़वन्ति खड़ी थी...


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लाल साडी देह पर सजाये सुन्दर चेहरे वाली लाज़वन्ति अपनी अंगकांति से जोबन की छलकियां बिखेर रही थी. उसके उभार उसकी छाती पर साफ देखे जा सकते थे जो चलने पर हलचल करते थे और साडी में उसकी कमर का दृश्य किसी को भी काम के अधीन करने के लिए पर्याप्त था... अंशुल ने सिगरेट फेंक दी...
जी... बस ऐसे ही घूमते हुए.... यहां आ गया था..
अंशुल ने बिना लाज़वन्ति की तरफ देखे कहा..
कैसे लगा आपको हमारा गाँव? लाज़वन्ति ने बाते करने की इच्छा से आगे पूछा तो अंशुल बोला - अच्छा है.. बहुत खूबसूरत है..
लाज़वन्ति अंशुल का जवाब सुनकर थोड़ा खुल गई और इस बार अंशुल को छेड़ने की नियत से पूछ बैठी...
लाज़वन्ति - इतना खूबसूरत लगा तो यहां के जमाईराजा बनने से क्यों इंकार कर दिया?
अंशुल लाज़वन्ति की बातों में लिपटा सवाल समझ गया था उसने इस बार लाज़वन्ति की तरफ मुँह करके कहा - आप नाराज़ है मुझसे?
लाज़वन्ति अंशुल के करीब आती हुई उसका हाथ पकड़ कर बोली...
लाज़वन्ति - हमारे नाराज़ होने से अगर आपको कोई फर्क पड़ता है तो हां... हम नाराज़ है आपसे?
लाज़वन्ति की बातों में मोह था और स्नेह भी.. जिसने अंशुल को बाँध लिया था, लाज़वन्ति ने मुस्कुराते हुए ऐसी बात कह दी थी जिसका अंशुल के पास कोई जवाब नहीं था.. अंशुल नज़र झुकता हुआ बोला..
अंशुल - मुझे माफ़ कर दीजिये....
लाज़वन्ति - माफ़ी तो आपको नयना से मागनी पड़ेगी जो दिन रात आपके नाम की रट लगाए रहती है... कहती है शादी आपके साथ ही करेगी.. वरना नहीं करेगी.. बहुत ज़िद्दी है..
अंशुल - मैं कई बार उसे समझा चूका हूँ पर वो मेरी बाते सुनने को त्यार नहीं..
लाज़वन्ति - हम्म... ये आप दोनों के बीच का मामला है.. इसमें मैं कुछ नहीं कर सकती..... वैसे इस मौसम में आपको गरमागरम चाय की इच्छा होगी... आप मेरे साथ चलिए.. यही पास में हमारा घर है आपको चाय पीलाती हूँ.....
अंशुल - नहीं शुक्रिया.... मुझे अभी चाय की तलब नहीं है...
लाज़वन्ति अंशुल का हाथ पकड़कर - चलिए ना... ऐसे शर्माने से काम नहीं चलेगा.... घर पर कोई नहीं है.. जिससे आपको परेशानी हो... चाय नहीं तो मेरे साथ एक सिगरेट पी लीजियेगा.... चलिए...
इस बार अंशुल लाज़वन्ति के साथ चल देता है..

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अंशुल लाज़वन्ति के पीछे पीछे चल देता है... लाज़वन्ति की मटकती गांड देखकर अंशुल अपने होश खाने लगता है और मदहोशी में कामुकता के पंजे में फँसता चला जाता है लाज़वन्ति की कमर और पीछे से दिखती उसकी जिस्मानी खूबसूरती अंशुल को समोहित करने में सफल होती है.. अंशुल किसी गुलाम की तरह लाज़वन्ति के पीछे पीछे उसके घर तक पहुंच जाता है.....

गाँव की सबसे बड़ा घर था सरपंच प्रभती लाल का जहाँ लाज़वन्ति अंशुल को ले आई थी.. घर में कोई नहीं था लाज़वान्ति घर के अंदर सोफे पर अंशुल को बैठाकर आँगन में चाय बनाने चली गई और थोड़ी देर बाद हाथ में चाय और पकोड़े की प्लेट लेकर अंशुल के सामने रख दी.... लाज़वन्ति अंशुल के बगल में बैठ गई थी..

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अंशुल चाय का कप उठाकर पिने लगा.. दोनों में अब तक और कोई बात न हुई थी.. मगर अब लाज़वन्ति ने अपने दामन पर से आँचल सरका लिया था जिससे अंशुल को ब्लाउज में उसके उभार साफ साफ दिख रहे थे.. जिसे लाज़वन्ति अच्छे से जानती थी फिर भी उसने उसे ठीक करने की जहमत नहीं उठाई... और उसी तरह अंशुल के पास बैठकर उसे देखती रही जैसे उसे अंशुल से कुछ कहना था.... बाहर बारिश की रिमझिम झड़ी लग चुकी थी...
चाय बहुत अच्छी है....
शुक्रिया.... पकोड़े भी खा कर देखो... बरसात में अच्छे लगेंगे...
आप भी मेरे साथ खाइये ना... अकेले खाना अच्छा नहीं लगता... अंशुल के कहने ओर लाज़वन्ति ने पकोड़े उठाकर खाने शुरू कर दिए और दोनों के बीच बात होनी फिर से शुरू हो गई.. कभी गाँव.. कभी महिमा की शादी.. कभी चन्दन के स्वाभाव तो कभी लाज़वन्ति और अंशुल की आपसी जिंदगी के बारे में बात होने लगी थी....
लाज़वन्ति और अंशुल आपस में काफी खुल चुके थे और अब खुलकर बाते करने लगे थे अंशुल के माँगने पर लाज़वन्ति वापस चाय बनाने चली गई थी और बारिश अपनी रफ़्तार पकड़ने लगी थी एक घंटे से ऊपर का समय हो चूका था दोनों को बाते करते..
अंशुल लाज़वन्ति की आँखों में उसकी प्यास देख रहा था उसे मालूम हो चूका था की लाज़वन्ति अब उसकी और पूरी आकर्षित हो चुकी है...

लाज़वन्ति जब इस बार चाय लाई तो चाय देते हुए उसका पल्लू नीचे गिर गया जिससे उसके कबूतर अंशुल के सामने लटक गए जो ब्लाउज के अंदर से अंशुल को चिढ़ा रहे थे.. लाज़वन्ति ऐसा अनजाने में हुआ था या जानबूझकर ये तो वो ही बता सकती है मगर इतना तय था की लाज़वन्ति अंशुल पर लट्टू हो चुकी थी और उसे हर तरह से खुश करना चाहती थी..
अंशुल ने अपना मुँह मोड़ लिया और लाज़वन्ति ने भी पल्लू ठीक कर लिया और बगल में बैठ गई..
सिगरेट है आपके पास?
आप सिगरेट पीती है?
क्यों सिर्फ आप मर्द ही पी सकते है? हम औरते नहीं?
नहीं नहीं... लीजिये....
लाज़वन्ति ने एक सिगरेट निकलकर जला ली और और एक कश लेकर सिगरेट अंशुल को देते हुए कहा - शादी से इंकार करके आपने अच्छा नहीं किया.. अपनी बाते कहते हुए लाज़वन्ति थोड़ा झुक गई थी जिससे उसके कबूतर अब अंशुल के सामने थे ओर लाज़वन्ति ने उन्हें छिपाने का कोई प्रयास नहीं किया..

अंशुल ने लाज़वन्ति के हाथ से सिगरेट लेकर फेंक दी और लाज़वन्ति का हाथ पकड़कर उसे अपने ऊपर खिंच लिया.... इसके साथ ही दोनों के बीच सम्भोग आरम्भ हो गया....
बाहर होती बरसात ने माहौल को और भी कामुक बना दिया था और अंशुल लाज़वन्ति के बदन के आगे अपना काबू नहीं रख पाया जिससे दोनों काम की अग्नि में प्रेवश कर गए और अंशुल लाज़वन्ति को अपने ऊपर खींचकर उसके होंठों को अपने होंठों में भरकर चूमने लगा जैसे लाज़वन्ति के लबों का रस उसी के लिए हो.....
लाज़वन्ति ने अंशुल की इस हरकत का विरोध नहीं किया बल्कि खुद उसे पूरा पूरा सहयोग करने लगी अपने साथ कामक्रीड़ा करने में जैसे वो पहले से इसके लिए त्यार हो और जानती हो की अब आगे क्या होने वाला है......

प्रभाती लाल तो वैसे भी महीने में एक दो बार ही धीमे से लाज़वन्ति को अब वो सुख दे पाते थे जो जवानी में दिया करते थे लेकिन अब लाज़वन्ति उस सुख की तलाश में थी और अंशुल उसका शिकार बना था.. या कहना कठिन है की किसने किसका शिकार किया था फिर भी दोनों जिसे तरह से एक दूसरे को चुम रहे थे उससे लगता था की ये सब दोनों की प्रबल इच्छा से ही हो रहा है.....
कुछ देर इसी तरह अंशुल ने लाज़वन्ति के होंठों से अपना मुँह मीठा करने का बाद चुम्बन तोड़ दिया और उसकी आँखों में देखने लगा जहा काम की अपार इच्छा उसे दिखाई देने लगी. अंशुल ने अपनी पेंट की जीब खोल दी और उसमे से अपने लोडा बाहर निकाल लिया जिसे देखकर लाज़वन्ति की आँखे चमक उठी..... हाय दइया.... कितना मस्त लंड है.... ऐसा तो कभी नहीं देखा... अंशुल लाज़वन्ति के मन में चलते ख्याल उसकी आँखों से पढ़ सकता था अंशुल ने लाज़वन्ति के बाल पकड़ कर उसका चेहरा अपने लंड के करीब खींचा और लाज़वन्ति अंशुल के मन की बाते समझकर उसके लंड को मुँह में भरकर चूसने लगी.....


अंशुल नयना की माँ की लाज़वन्ति को अपना लंड चूसाते हुए बाहर होती बरसात देख रहा था और इस पल के आनंद में डूब रहा था.... लाज़वन्ति पुरे ध्यान और मज़े के साथ अंशुल का लोडा अपने मुँह में भरकर चूस रही थी जैसे उसे इसमें असीम आनंद की अनुभूति हो रही हो....
अंशुल ने एक सिगरेट जला ली और कश लेते हुए बाहर होती बारिश और अंदर होती लंड चुसाई का मज़ा लेने लगा वो लाज़वन्ति का सर बड़े प्यार से सहला रहा था मानो उसे लंड चूसने का आशीर्वाद दे रहा हो.... 42 साल की लाज़वन्ति दिखने में पदमा की भाति ही सुडोल अंगों वाली गोरी आकर्षक महिला था जो पीछे साल खरीशमाई तरीके से घर्भवती हुई थी लेकिन बच्चा पैदा होते ही ख़त्म हो गया था जिससे उसके स्तन में दूध उभर आया था.....
अंशुल पुरे मज़े के साथ सिगरेट के कश लेते हुए लाज़वन्ति की लंड चुसाई का सुख भोग रहा था तभी उसका फ़ोन बजा...
हेलो..
हेलो... आशु... कहा है तू? कब से तेरा वेट हो रहा है.. चलना नहीं है?
चन्दन भईया..... अरे मैं बाइक से आ जाऊंगा आप जाओ... मैं नहर के पास फंसा हुआ हूँ...
आशु... गोपाल बाइक लेकर पहले ही जा चूका है.. मैं किसी को भेजता हूँ नहर के पास....
नहीं भईया आप रहने दो... आप जाओ मैं बारिश ख़त्म होते ही बस से आ जाऊंगा... मेरी वजह से देर मत करो....
फ़ोन कट हो जाता है और अंशुल लाज़वन्ति का सर पकड़ कर उसके मुँह में अपने वीर्य की धार छोड़ देता है....

आह्ह.... उम्म्म्म..... उम्म्म्म..... लाज़वन्ति को अंशुल के वीर्य का सेवन करना ही पड़ता है और वो उसे पीकर अपना मुँह पोंछती है अंशुल लंड पर लगी लाज़वन्ति के होंठों की लिपस्टिक साफ करते हुए कहता है - एक कप चाय मिलेगी लाज़वन्ति?
लाज़वन्ति? मुझे नाम से बुलाया? और अब चाय चाहिए? लाज़वन्ति तो कब से उसे चुत देने को त्यार बैठी है और अंशुल उससे सर्फ़ चाय की मांग कर रहा है... अरे केसा लड़का है ये जो सम्भोग के बीच भी चाय पिने को मरा जा रहा है उसे क्या लाज़वन्ति की दशा समझने का दिमाग नहीं है? अंशुल के चाय माँगने लाज़वन्ति उखड़ा सा मुँह लेकर रसोई में आ गई और चाय बनाती हुई अपनी गीली चुत को सहलाकार बड़बड़ाने लगी.... कितना पागल लड़का है? मैं यहां सबसे कीमती चीज देने को त्यार बैठी हूँ और इसे चाय की पड़ी है.... इतना अच्छा मौसम है.. मुझसे तो रहा ही नहीं जाता... कैसे भी करके आज इससे काम निकलवाना ही है..... बिना मेरी आग बुझाये तो इसे नहीं जाने दूंगी.... चाय पिने के बाद क्या करेगा देखती हूँ.... लाज़वन्ति जब बुदबूदा रही थी तभी उसे अहसास हुआ की किसीने उसे पीछे से अपनी बाहों में भर रखा है.... उसने पीछे मुहकार देखा तो अंशुल खड़ा हुआ उसे अपनी बाहों में थामे था उसके बदन पर अब कपड़ा नहीं था जैसे उसने सारे कपडे पहले ही उतार दिए हो और अब वो एक एक करके लाज़वन्ति को भी निर्वास्त्र करने लगा था पहले उसकी साडी और फिर ब्लाउज फिर घाघरा एक एक करके अंशुल ने सही कपडे लाज़वन्ति की देह से उतार दिए.....
लाज़वन्ति शर्म से पानी पानी होकर अंशुल के सामने नज़र झुकाये खड़ी थी गैस पर चाय उफ़न रही थी और यहां अंशुल और लाज़वन्ति.....
अंशुल ने गैस बंद करके लाज़वन्ति को अपनी बाहों में उठा लिया और चूमते हुए लाज़वन्ति से बैडरूम का रास्ता पूछने लगा जिसपर लाज़वन्ति ने अपने हाथ के इशारे से उसे बेडरूम का रास्ता बता दिया.....

बिस्तर पर गिराकर अंशुल सबसे पहले लाज़वन्ति के मोटे मोटे स्तनों से खेलता हुआ उसका दूध पिने लगा और लाज़वान्ति भी उसे अपना दूध पिने में पूरा पूरा सहयोग करती हुई अंशुल के बाल सहला रही थी मानो वो अपने बच्चे को दूध पीला रही हो.... अंशुल लाज़वान्ति की छाती का दूध पूरी मस्ती से पी रहा था और बारी बारी उसके दोनों बोबे दबा दबाकर लाज़वन्ति को काम के अभिभूत कर रहा था....

कुछ देर के बाद अंशुल ने लाज़वन्ति को सीधा लेटा दिया और उसकी चुत को अपनी जीभ से छेड़ने लगा...
उफ्फ्फ हाय..... दइया..... ओह मोरी मईया.... आह्ह... सिस्कारिया लेते हुए लाज़वान्ति अंशुल के बुर चटाई का स्वाद लेने लगी और काम के सागर में गोते लगाने लगी उसे इस वक़्त वो सुख मिल रहा था जो उसने कभी सोचा भी ना होगा... लाज़वन्ति अंशुल का सर अपनी बुर पर दबा दबा कर चूसा रही थी मानो वो आज अंशुल से कहना चाहती हो की उसे इसमें बहुत मज़ा अ रहा है और वो नहीं चाहती की अंशुल रुके... आह्ह.... आशु..... आशु..... उफ्फ्फ.... बेटा.... आह... करते हुए लाज़वन्ति झड़ चुकी थी मगर अब भी काम के अधीन थी अंशुल ने अब उसकी चुत पर अपना लंड टिकाया तो पहले धक्के पर लंड फिसल गया.. लाज़वन्ति ने अंशुल का लंड अपने हाथ पकड़ कर अपनी बुर के मुहाने पर रखा और अंशुल से कहा - बेटा.... जरा आराम से.... बहुत बड़ा है तुम्हारा.... तनिक धीरे करना.....
मगर अंशुल ने उसकी बाते नहीं मानी और पहला धक्का ही इतना जोर से दिया की उसका लंड बच्चेदानी तक घुस गया और लाज़वन्ति की चिंख निकल गई... बरसात की आवाज ने उस चिंख को दबा लिया वरना उस चिंख से पुरे गाँव को पत्ता लगा जाता की सरपंच प्रभाती लाल की धर्मपत्नी लाज़वन्ति देवी की बुर में अभी अभी कोई मोटा लम्बा लंड घुसा है.... लाज़वन्ति की आँखों से आशु और चुत से खून की दो बून्द बाहर आ गई थी लाज़वान्ति के चेहरे से साफ लगा रह था की उसकी हालत पतली है लाज़वन्ति ने एक जोर का थप्पड़ अंशुल के गाल पर जड़ दिया और कहने लगी - इस तरह भी कोई लंड घुसाता है बुर में? तुमको बिलकुल तरस नहीं आता? पूरी फाड़ के रख दी.... एक तो इतना बड़ा लंड है ऊपर से एक ही बार में डाल दिया.... आह्ह..... कितना दर्द हो रहा है...
अंशुल ने बड़े प्यार से लाज़वन्ति के होंठों को चुम लिया जैसे कुछ हुआ ही ना हो और बोला - पहले बताना था ना तू कुंवारी है....
लाज़वन्ति अंशुल की बाते सुनकर शर्मा गई एक 21 साल का लड़का उसको कुंवारी कह रहा था और अभी उसका लंड उसकी चुत में था.... अंशुल ने धीरे धीरे चुदाई का आरम्भ किया और लाज़वान्ति को चोदने लगा... Ufff हर धक्के पर हिलता हुआ लाज़वन्ति का बदन माहौल में काम ही काम भरे जा रहा था....
इस उम्र में भी इतनी टाइट बुर लाज़वान्ति? सरपंच जी का खड़ा नहीं होता क्या?
बेशर्म नाम से तो मत बुला.... कितनी बड़ी हूँ तुझसे? आह्ह... सरपंच जी तो अब बूढ़े हो गए.... और कोई है ही नहीं ख्याल रखने वाला...
चिंता मत कर लाज़वान्ति... अब से में teri बुर का ख्याल रखूँगा....
दोनों के बीच बाते और चुदाई दोनों एक साथ हो रही थी जो बता रही थी की दोनों को एक दूसरे का साथ कितना पसंद है लाज़वन्ति के चेहरे में अंशुल पदमा तलाश रहा था जो कहीं हद तक उसे मिल भी गई थी.. लाज़वान्ति का स्वाभाव कुछ कुछ पदमा सा ही था और बदन भी उसी तरह आकर्षक....
दिन के तीन बज चुके थे और अब तक अशुल ने लाज़वन्ति की बुर में अपने वीर्य की वर्षा कर दी थी.... लाज़वन्ति ने अभी अभी घोड़ी कुतिया और छिपकली पोज़ में अंशुल का लंड लिया था और अपनी बुर की गर्मी शांत की थी....

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इधर बारिश के बिच महिमा की विदाई होने जा रही थी गाडी का काम पूरा हो चूका था नेनु ने गाडी बना दी थी चंदन और महिमा आस पास बैठे थे और सभी गाँव की औरत और लड़की उसके आस पास... बीच में महिला मुँह से गीत गाती और ढोलक बजती मस्ती से नाच रही थी.... उनमे से एक नयना भी थी... भोली-भाली नयना अपनी सखियों संग यहां नाच रही थी और वहा उसके पर उसकी माँ लाज़वन्ति उसके प्यार अंशुल के लंड पर नाच रही थी....

बिस्तर पर पीठ के बल लेते अंशुल के खड़े लंड पर लाज़वन्ति पूरी शिद्दत के साथ उछल रही थी उसकी जुल्फे हवाओ में किसी नागिन की सी लहरा रही थी और चुचे उभर नीचे हिलते हुए ऐसे लगा रहे थे जैसे कोई स्पज की गेंद हो.... अंशुल की आँखों में देखती हुई लाज़वन्ति अब बिलकुल नहीं शर्मा रही थी...

चार बजते बजते अंशुल ने एक बार फिर से लाज़वन्ति
की चुत अपने वीर्य के सलाब से भर दी थी और अब दोनों वापस अपने कपडे पहनकर सोफे पर आकर साथ में बैठ गए थे.... बारिश भी अब बूंदाबन्दी में तब्दील हो चली थी अंशुल ने लाज़वन्ति से जाने की इज़ाज़त मांगी तो लाज़वन्ति ने अंशुल के होंठों को अपने लबों की हिरासत में ले लिया और चूमने लगी जैसे वो अंशुल को नहीं जाने देना चाहती हो....

अब जाने दो..... वरना रात हो जायेगी...
कल चले जाना....
अच्छा? रातभर कहा रहूँगा?
यहां मेरे पास....
नयना पागल कर देगी मुझे....
नयना को मैं समझा दूंगी....
उसे तो कोई नहीं समझा सकता....
तुमने शादी से मना क्यों किया? नयना पसंद नहीं?
नहीं ऐसी बाते नहीं है.. मुझे अभी शादी नहीं करनी..
तो बाद में कर लेना.... बेचारी बहुत प्यार करती है..
मैं जानता हूँ लाज़वन्ति.... और अब मुझे लगता है तुम भी कहीं ना कहीं मुझसे प्यार करने लगी हो.. ये कहते हुए अंशुल ने लाज़वन्ति के बूब्स मसल दिए...
आह्ह.... तुम भी ना.... बेशर्म हो पुरे.... पहले मेरी बाते का जवाब दो.... करोगे नयना से ब्याह? सोच लो उसके साथ मैं भी तुम्हारा ख्याल रखूंगी.... कहते हुए लाज़वन्ति ने अंशुल के लंड को अपने हाथो से पकड़ लिया और अंशुल को देखने लगी....
लाज़वन्ति की इस हरकत पर अशुल के लंड में वापस तनाव आ गया और वो लाज़वन्ति को उठकर अंदर बिस्तर पर ले गया और उसकी साडी ऊपर करके फिर से उसे भोगने लगा....




महिमा की विदाई हो चुकी थी और वो चन्दन के साथ चली गई थी, वहीं नयना भी अब घर आ चुकी थी और उसे घर में लाज़वन्ति के रूम से आ रही आवाज सुनाई दी तो उसका सर चकरा गया... नयना सोचने लगी की उसके पीता प्रभाती लाला अब तक बंसी काका के यहां थे तो घर में उसकी माँ लाज़वन्ति के साथ कौन था? नयना ने दरवाजे के पास बनी खिड़की जो कुछ हद तक खुली हुई थी से अंदर झाँक कर देखा तो उसके पैरों तले ज़मीन हिल चुकी थी....
अपनी माँ और अंशुल को साथ में देखकर नयना के सर पर जैसे बिजली गिर चुकी थी.... लाज़वान्ति अपने घुटनो पर बैठकर भूखी कुतिया की तरह अंशुल के लंड और टट्टे चूस रही थी और अंशुल लाज़वन्ति के बाल पकड़ कर उसे लोडा चूसा था था... दोनों बदन पर कपडे का नामोनिशान नहीं था....
नयना बिना कुछ बोले आँखों में आशु लेकर अपने रूम में आ गई और रोने लगी, थोड़ी देर पहले जहाँ वो खुशी से झूम रही थी अब उसकी आँखों में आंसू थे और वो रोये जा रही थी. उसका दिल टूट चूका था...

अंशुल और लाज़वन्ति को नयना के घर लौट आने की कोई खबर नहीं थी और दोनों मज़े से सम्भोग का मज़ा लूट रहे थे लाज़वन्ति तो जैसे अंशुल की गुलाम बन चुकी थी वो अंशुल की हर बाते किसी गुलाम की तरह मान रही थी और उससे चुदवा रही थी उसकी सिस्कारिया नयना के कानो तक पहुंच रही थी जो नयना के दिल को और दुखा रही थी.. उसके साथ ऐसा कैसे हो गया? क्यों हो गया? क्या उसकी माँ लाज़वन्ति नहीं जानती थी उसके प्यार के बारे में? नहीं लाज़वन्ति तो सब जानती थी और उसे पत्ता था की अंशुल से नयना कितना प्यार करती है फिर भी लाज़वन्ति अंशुल के साथ? पर कैसे? क्या उसने सही सोचा था अंशुल के बारे में? क्या अंशुल वैसा था जैसा नयना ने सोचा था? हज़ार ख्याल और अपनी माँ की सिस्करीया नयना के कान से होती हुई दिल और दिमाग में ह्रदय विदारक बनकर गूंज रही थी...

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लाज़वन्ति कैसे अपनी ही बेटी के साथ इतना बड़ा धोखा कर सकती है? विश्वासघात कर सकती है? नयना के आँखों से बह रहे अविरल आंसू उसके मन से अंशुल के प्रति प्रेम को बहा कर ले जा रहे थे उसे अब अंशुल पर गुस्सा आ रहा था वो मन ही मन तय करने लगी थी की अब अंशुल का चेहरा तक नहीं देखेगी...

यहा अंशुल फिर से लाज़वन्ति की बुर को वीर्य से नहला चूका था अब उसने आखिर चुम्बन के साथ लाज़वान्ति से विदाई ले ली... आज लाज़वान्ति की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था.. उसे अपनी जिंदगी में पहली बार ऐसा सुख मिला था जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी वो खुद भी अब अंशुल के प्यार में पड़ चुकी थी शायद ये उसका आकर्षण था पर उसे भी अंशुल से लगाव हो चूका था और वो दिल ही दिल चाहने लगी थी की नयना की शादी अंशुल से ही हो उसके लिए अब वो पुरे जतन करेगी.... जाते हुए अंशुल से लाज़वन्ति ने कहा था.. जमाई जी... अब जल्दी बारात लेकर आना.... जिसपर अंशुल हँसने लगा था.. आज लाज़वन्ति को जवान लंड मिला था जिससे वो जमकर चुदी थी वहीं नयना ने रो रो कर तकिया गिला कर दिया था.. उस बेचारी ने कहा सोचा था की उसे इतना बड़ा धोखा मिलेगा वो भी अपनी माँ लाज़वन्ति से?







Badi hi shandar update he moms_bachha Bro,

Gaanv me Shadi byah ka jo mahaul hota he, uska bahut hi sunder chitran kiya he aapne.......

Lajwanti aur aashu ke beech sex relations ban gaye, aur in do ko nayna ne sex karte huye dekh bhi liya.......

Nayna ka do dil hi tut gaya...........uske pyar par daaka bhi kisne dala...uski sagi maa ne..........

Dekhte he ab aage kya hota he......

Keep rocking Bro
 
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urc4me

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Adhed auratonki pyas na bujhane par yehi halat hoti hai unki. Apno par hi kutharaghat hoa hai. Pratiksha agle rasprad update ki
 
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nimesh18

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वाह वाह क्या लिखते हो आप मजा आ गया कहानी पढ़ कर। हर शब्द हर पल ऐसा लगता है की जैसे अभी सामने ही सब कुछ हो रहा हो।
बहुत ही कामुक, उम्दा उत्कृष्ट लेखन शैली है आप की। कृपया कहानी को ऐसे ही आगे बढ़ाएं और लगातार अपडेट देते रहें।
 
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Vishalji1

I love women's @ll body part👅lick(peelover)
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Wow, what a great write-up you have enjoyed reading the story. Every word, every moment feels like everything is happening right in front of you.

You have a very sensual, excellent writing style. Please continue the story like this and keep reading.
 
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Rajpoot MS

I love my family and friends ....
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क्या शानदार स्टोरी लिख रहे हो भाई बहुत ही शानदार लाजवंती ने तो तो सारी लाज ही छोड़ दी क्या खूब छुड़वाया साले ने गजब की स्टोरी है नैना के साथ धोखा तो हुआ है देखते आगे होता है क्या और कितने गुल खिला है लड़का बहुत शानदार आगे के लिए शुभकामनाएं
 
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moms_bachha

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Badi hi shandar update he moms_bachha Bro,

Gaanv me Shadi byah ka jo mahaul hota he, uska bahut hi sunder chitran kiya he aapne.......

Lajwanti aur aashu ke beech sex relations ban gaye, aur in do ko nayna ne sex karte huye dekh bhi liya.......

Nayna ka do dil hi tut gaya...........uske pyar par daaka bhi kisne dala...uski sagi maa ne..........

Dekhte he ab aage kya hota he......

Keep rocking Bro
🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿 ❤️❤️❤️❤️
 
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moms_bachha

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क्या शानदार स्टोरी लिख रहे हो भाई बहुत ही शानदार लाजवंती ने तो तो सारी लाज ही छोड़ दी क्या खूब छुड़वाया साले ने गजब की स्टोरी है नैना के साथ धोखा तो हुआ है देखते आगे होता है क्या और कितने गुल खिला है लड़का बहुत शानदार आगे के लिए शुभकामनाएं
🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿❤️❤️❤️❤️❤️❤️
 
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