अध्याय 1
पदमा का प्रेम......
पदमा
पदमा ओ पदमा.... अरे कहा मर गई.....
अजी क्या हुआ? क्यूँ मुँह फाड़ फाड़ कर चिल्ला रहे हो?
पदमा अपने हाथो मे सूखे कपड़ो का ढेर लिए सीढ़ियों से नीचे आते हुए बालचंद से बोली....
बालचंद अपने हाथ मे एक थैला लिए घर के आँगन मे खड़ा था और बहुत देर से अपनी धर्मपत्नी पदमा देवी को आवाज लगा रह था....
पदमा ने कपडे कमरे के अंदर अपने बेड पर रख दिए और बालचंद से थैला लेते हुए बोली - का बात है? आज वक़्त से पहले ही घर की याद आ गई? कोनो विशेष बात है का? और आज कौन ख़ुशी मे ई चीकेन लाये हो? कोई आने वाला है ?
बालचंद अपने जूते दरवाजे की दाई तरफ बनी एक पट्टी के ऊपर खोलते हुए कंधे पर से गमछा उतारकर गुसलखाने के बाहर बने एक वाशबेसिन का नल खोलकर मुँह धोता हुआ बोला - अरे आज तेरे उस कुपूत को देखने लड़की वाले आ रहे है.... बड़ी मुश्किल से मलखान सिंह ने किसी से बात करके हुसेनीपुर के प्रभाती जी की कन्या से तेरे कुंभाकरण के रिश्ते की बात चलाई है....
पदमा अपने पति बालचंद से अपने बेटे आशु (अंशुल) के बारे मे कुपूत और कुंभकरण जैसी उपमा सुनकर गुस्से से लाल-पिली होती हुई रसोई मे थैला पटकते हुए बोली - अरे ऐसा भी क्या गुनाह कर दिया मेरे बच्चे ने जो उसे इतना ताना मारते हो? किसी का गला काटा है या चोरी की है? या किसी के साथ मुँह काला किया है?
बालचंद आँगन मे रखे मटके से पानी निकलकर पीता हुआ पदमा की बात सुन रहा था जब पदमा अपने बेटे का बचाव करते हुए बोलकर ठंडी हुई तो बालचंद उसे वापस चिढ़ता हुआ बोला - हा हा... कहीं का राजकुमार है ना तुम्हारा बेटा तो? हत्या या चोरी नहीं की तो क्या हुआ, मेरी छाती पर तो मुंग दलने बैठा ही है.... जवान हो गया है लेकिन ना काम करता है ना ही काम की तलाश.... बड़े सर से कहकर अपने ही साथ लगवा रहा था लेकिन नहीं.... अपने बाप की तरह मेहनत करने मे तो देह की जोर आता है ना... सुबह 10 बजे से पहले नवाब साहब की नींद नहीं खुलती... छत पर से खाली सिगरेट के पैकेट और खाली शराब की बोतले मिली थी... अब और ना जाने क्या क्या शोक पाले होंगे तुम्हारे बेटे ने? ये रिश्ता पक्का हो जाए तो अलगे अगहन मे ब्याह करके पीछा छुड़ाऊ.. जब बीवी बच्चे होंगे और जिम्मेदारी पड़ेगी तो अपने आप काम करने की अकल आ जायेगी तुम्हारे लाडले सुपुत को....
पदमा बालचंद की बात सुनकर फिर एक बार गुस्से से आग बबूला होती हुई रसोई से बाहर आकर बालचंद को अपने हाथ मे पकड़ा हुआ चाक़ू दिखाते हुए बोली - एक बात अच्छे से समझ लो.... मेरा आशु कोई बोझ नहीं है जो ऐसे ही किसी ऐरी-गेरी लड़की के साथ ब्याह कर दू.... जवानी मे थोड़ा बहुत तो सभी बहक जाते है.... तुम भी शराब पीते थे भूल गए? और वैसे भी बड़ा अफसर बनने के लिए पढ़ाई कर रहा है मेरा लल्ला.. देखना थोड़े समय बाद किसी बड़े ओहदे पर मुहर वाली नोकरी करेगा मेरा आशु... तुम्हारी तरह चाय-पानी पिलाने वाली नहीं....और अभी उम्र ही क्या है मेरे लल्ला की? 21 साल पुरे होने मे भी 1 महीना घटता है....
बालचंद पदमा की बात का जवाब देते हुए बोला - अरे क्यूँ नहीं.... मुहर वाली नोकरी तुम्हारे उस आलसी कामचोर के लिए ही तो बचा के रखी है सरकार ने... तीन साल का बीए चार साल मे ख़त्म करके बड़े शहर से लौटा है और चार महीने हो गए वापस आये... तब से घर से बाहर तक नहीं निकला.... जब देखो बस अपने कमरे मे बिस्तर तोड़ता मिलता है....
बालचंद की व्यंगात्मक बातें सुनकर पदमा रसोई मे कड़ची चलाते हुए बोली - अरे मेरा बच्चा कम से कम अपने घर मे बिस्तर तोड़ता है किसी का कुछ बिगाड़ा तो नहीं उसने..... तुम्हारे भाई का बेटा तो रंडीखाने से पकड़ा गया था याद है? तुम्हारी बहन शहर मे गहने की दूकान से चोरी करती पकड़ी गई थी... कितना पीटा था दूकानदार ने और फिर police के हवाले कर दिया था याद है या भूल गए? और अपना भी जानते हो? कैसे नाथबाबू ने तुम्हे सिर्फ सो रूपये की रिश्वत लेते पकड़ा था? अरे गोबर ही खाना था तो कम से कम हाथी का तो खाते.... 100 रुपए की रिश्वत लेते पकडे गए.. छी..... वो तो भला हो मेरे लल्ला का.... जिसकी दोस्ती नेता जी के बेटे के साथ थी और उसके कहने पर नाथबाबू ने तुमको नोकरी से नहीं निकालवाया वरना इतनी बातें नहीं करते.... आज जो तुम्हारे मुँह मे बात आ रही है ये सब हवा हो जाती...
पदमा ने इस बार खाना बनाते हुए बालचंद के व्यंग को निस्टोनाबूत करते हुए उसे आईने के सामने लाकर खड़ा कर दिया था बालचंद के पास इस बार पदमा की बात का कोई जवाब नहीं था और ना हीं उसके पास कुछ और कहने को बचा था तर्क तो जैसे ख़त्म ही हो गए थे बालचंद अपना सा मुँह लेकर रह गया था लेकिन फिर भी उसे अपनी हार मंज़ूर नहीं थी उसने आखिर मे आँगन से खड़े होकर अपने कमरे की और जाते हुए पदमा से कहा - अब तुमसे कौन बहस करे? तुम्हे तो अपने बच्चे के सिवा कुछ दीखता ही नहीं है... इतना लाड प्यार करने के लिए अब बच्चा नहीं रहा हट्टाकट्टा लम्बाचौड़ा 6 फ़ीट का आवारा सांड बन चूका है...
पदमा गैस से सब्जी की कढ़ाई उतारते हुए - अरे तुम क्यूँ जलते हो मेरे बेटे से? पुरे कस्बे मे मेरे आशु से सुन्दर नयननक्ष है किसी के? बिलकुल किसी फ्लिम का हीरो लगता है.... पिछले महीने कजरी के ब्याह मे देखा था ना कैसे जवान तो जवान बूढ़ी औरते भी उसे आँखे फाड़ फाड़ कर देख रही थी? ब्याह के बाद 7 दिन तक बीमार रहा था मेरा बच्चा.. पत्ता नहीं किस कलमुही की नज़र लगी थी मेरे लाल को?
बालचंद इस बार पदमा पर कुढ़ता हुआ बोला - अरे भाग्यवान.... बहुत सुन लिया तेरे बेटे की सुंदरता का बखान.. अब जरा उसे जाकर कह दे कि नहाधो ले.. छः बजे मलकान प्रभाती जी और उनके परिवार के साथ घर आ जाएंगे...
गाँव के सरपंच है प्रभाती जी और न जाने कितनी भीघा ज़मीन के मालिक... मलखान कह रहा था दर्जन गाय भैंस तो घर के पिछवाड़े बंधी रहती है.... घर मे नोकर भी रखा हुआ है.... संतान के नाम पर ले देके एकलौती कन्या ही है.... अगर रिश्ता बैठ गया तो ये निकम्मा रातोरात लखपती बन जाएगा....
पदमा आँगन मे रखे पुराने लोहे के सोफे का कवर बढ़ते हुए - अरे कितने ही बड़े आदमी क्यूँ ना हो.. धनवान क्यूँ ना हो? पैसे के लिए बेच थोड़ी दूंगी अपने बच्चे को? इतने बड़े आदमी होकर तुम्हारे जैसे फटीचर के घर अपनी लड़की ब्याहने को त्यार हो गए? मुझे तो कुछ गड़बड़ लगती है.. जरूर लड़की मे कोई दोश होगा वरना कौन तुम्हारे जैसे चपरासी के घर अपनी एकलौती कन्या देगा....
बालचंद बाथरूम मे अपनी दाढ़ी बनाते हुए बोल पड़े - अरे कोई दोष नहीं है लड़की मे.... तुम्हे तो बस शक करने और अपने बच्चे के अलावा हर किसी पर लांचन लगाने की आदत है.. मलखान बता रहा था कजरी के ब्याह मे तुम्हारे सुपुत्र को देखा है प्रभाती जी की लड़की ने... और तभी से ब्याह की ज़िद पकड़ के बैठी है तुम्हारे नालायक बेटे के साथ.. अब इतना अच्छा रिश्ता खुद चलकर आ रहा है तो भी तुम्हे तकलीफ हो रही है....
पदमा छत पर जाने के लिए सीढ़ियों की तरफ कदम बढ़ाते हुए बालचंद की बात का जवाब देती है - हाय.... तभी मेरा लल्ला ब्याह के बाद बीमार पड़ा था.... पहले ही कह देती हूँ अगर मेरे लल्ला ने ब्याह के लिए मना किया तो तुम बिलकुल उसके साथ जोर जबरदस्ती नहीं करोगे....
एक के बाद एक जुड़े हुए पत्थर के छोटे छोटे मकान साथ मे आस पास खाली पड़ी कटी हुई ज़मीन और बड़े मैदान के पीछे उतर से पश्चिम निकलती नदी, नदी के पार जंगल.... सडक पर बिजली के तारों से लिपटे खम्भे और कच्ची पक्की सड़के, सडको पर दौड़ते पुराने वाहन, बिना हेलमेट के हॉर्न बजाकर कर सररर से निकलती मोटरसाइकिल के साथ पेडल मारकर गुजरती साईकिल और पुरानी साईकिल के टायर घुमाते हुए दौड़ लगाते नंगे पैर बच्चे... कुछ दुरी पर औद्योगिक क्षेत्र होने से आस पास मे अच्छी बसावत है और कई सरकारी विभाग भी.. रांडपुर नाम का ये क़स्बा पश्चिमी यूपी के अंदर आता है....
शाम के छः बजने वाले है और अंशुल अभी इस दो मंज़िला मकान की पहली मंज़िल पर पीछे की तरफ बने कमरे के बिस्तर पर घोड़े बेच कर सो रहा है.. पदमा उसे जगाने सीढ़ियों उसे ऊपर आ रही है.. पदमा अपनी साडी के पल्लू से अपने चेहरे का पसीना पोंछती हुई अंशुल के कमरे मे दाखिल हुई और लाइट ऑन करते हुए सबसे पहले कमरे के अंदर दरवाजे के पास स्टेडी टेबल पर पड़े बड़ी एडवांस सिगरेट के पैकेट, लाइटर और कंडोम के पैकेट को उठाकर कमरे के एक कोने मे रखी पुरानी अलमारी को खोलकर ऊपर बाई तरफ कपढ़ो के नीचे छीपा दिया फिर घुटनो के बल बैठकर बेड के नीचे रखी हुई शराब की बोतल और गिलास निकाल कर टेबल पर रखे पानी के जग से गिलास को धोते हुए उसे शराब की बोतल के साथ अलमारी के अंदर छिपा दिया और फिर अलमारी बंद करके बेड पर सो रहे अंशुल को जगाने लगी....
पदमा प्यार से अंशुल के चेहरे पर अपनी उंगलिया फेराते हुए उसे जगा कर कहती है - आशु.... आशु...... इतनी जल्दी नींद भी आ गई? चलो उठो और नहा लो....
आशु अपनी आँख मलता हुआ लेटे से बैठा हुआ और फिर अपनी माँ पदमा को अपने पास बैठा देखकर उसकी गोद मे सर रखता हुआ आँखे बंद किये ही बोल पड़ा - क्या हुआ है? मुझे नींद आ रही है....
पदमा मुस्कुराते हुए आशु का सर सहलाने लगी और फिर उसके गाल को चूमकर बोली - आज तुम्हे देखने लड़कीवालो को बुलाया है तुम्हारे पापा ने.... जल्दी से नहा लो.. और colgate भी कर लो.... कितनी बू आ रही है मुँह से.... छः बजे तक आने का कहा है चलो जल्दी से उठ जाओ....
अंशुल- मुझे शादी नहीं करनी.....
पदमा - ये बात नीचे आके अपने पापा से कहना....
ये कहते हुए पदमा आशु को वही छोड़कर मुस्कुराते हुए नीचे आ जाती है और आशु अपने मुँह मे टूथब्रश लिए कमरे से निकलकर ऊपर ही बने बाथरूम मे घुस जाता है...
पदमा ने सारा खाना बना दिया था बस रोटियां बनाने की देर थी साफ सफाई पहले से थी तो बस कुछ परदे और सोफे का कवर बदल कर सारा मामला त्यार था बालचंद बड़ी बेसब्री से मलखान के साथ प्रभाती और उनके परिवार के इंतजार मे थे रास्ते मे गाडी खराब होने की सुचना मलखान ने बालचंद को फ़ोन पर ही दे दी थी इसलिए थोड़ा लेट होना लाज़मी था बालचंद आँगन मे सोफे पर बैठा हुआ पुराने टीवी पर पुराने हिंदी फिल्मो के गाने सुन रहा था और पदमा अंदर उन्ही गानो को गुनगुनाते हुए बिस्तर पर अंशुल के कपडे इस्त्री कर रही थी जो उसने सुबह धोये थे और कुछ देर पहले छत से उतार लाइ थी....
अब तक लगभग सारे कपडे इस्त्री हो चुके थे और पदमा उन कपड़ो को लेकर आँगन मे सोफे पर बालचंद के पास रखती हुई रसोई मे चली जाती है और चाय बनाकर हाथ मे कप लिए बाहर आती है
बालचंद हसते हुए - वाह पदमा.... बिना कहे ही मेरे चाय बना दी?
पदमा आँखे दिखाती हुई - मेरे आशु के लिए है.... तुम्हे पीनी है तो पतिले से छन्नी करके पी लो....
बालचंद ने पदमा की बात सुनकर गुस्से मे टीवी की वॉल्यूम तेज़ कर दी और अपने लिए चाय छन्नी करने रसोई मे चला गया...
पदमा चाय के साथ इस्त्री किये कपडे उठाकर ऊपर जाने के लिए सीढ़ियों की तरफ बढ़ गई थी तभी टीवी पर देवाआनंद का सदाबहार गाना बजने लगा....
फूलों के रंग से, दिल की कलम से...
तुझको लिखी रोज पाती..
कैसे बताऊँ किस किस तरह से..
पल पल मुझे तू सताती..
तेरे ही सपने लेकर के सोया..
तेरी ही यादों में जागा..
तेरे ख़यालों में उलझा रहा यूँ..
जैसे के माला में धागा..
हाँ बादल बिजली चन्दन पानी जैसा अपना प्यार..
लेना होगा जनम हमें कई कई बार..
हाँ इतना मदीर इतना मधुर तेरा मेरा प्यार..
लेना होगा जनम हमें कई कई बार..
पदमा गाना गुनगुनाते हुए अंशुल के कमरे मे आ जाती जहा तक गाने की आवाज़ साफ सुनाई दे रही थी अंशुल स्टडी टेबल के सामने चेयर पर बैठकर उंगलियों मे पेंसिल फिराता हुआ किसी किताब मे खोया हुआ था.... पदमा टेबल पर चाय का कप रखते हुआ कपडे अलमारी मे रखकर अंशुल की आँखों पर से चश्मा उतारते हुए उसका हाथ पकड़कर उसे खड़ा करती है और नीचे से आ रही गाने की आवाज़ के साथ अंशुल को सीने से लगाती हुई उसकी आँखों मे देखकर गाने लगती है....
साँसों की सरगम....
धड़कन की बीना....
सपनों की गीतांजली तू.....
मन की गली में....
महके जो हरदम.....
ऐसी जूही की कली तू...
छोटा सफ़र हो, लंबा सफ़र हो सूनी डगर हो या मेला.. याद तू आए, मन हो जाए भीड़ के बीच अकेला....
हाँ बादल बिजली चन्दन पानी जैसा अपना प्यार....
लेना होगा जनम हमें कई कई बार......
हाँ इतना मदीर इतना मधुर तेरा मेरा प्यार.....
लेना होगा जनम हमें कई कई बार.....
अंशुल अपनी माँ पदमा की बाहों मे घिरा हुआ उसे देख रहा था और अपने दोनों हाथ अंशुल ने अपनी माँ पदमा के गले मे डाल लिए थे और अपनी माँ का मुस्कुराता और गाने गुनगुनाता हुआ चेहरा देख रहा था अंशुल के चेहरे पर भी मुस्कान थी दोनों धीरे धीरे एक साथ कदम आगे पीछे रखते हुए एक जगह से दूसरी जगह हिल रहे थे और अबकी बार अंशुल ने पदमा को देखते हुए नीचे से आ रही गाने की आवाज़ के साथ आगे की लाइन्स गुनगुनानी शुरु की.....
पूरब हो पश्चिम, उत्तर हो दक्षिण....
तू हर जगह मुस्कुराये....
जितना ही जाऊँ मैं दूर तुझसे.....
उतनी ही तू पास आये...
आंधी ने रोका, पानी ने टोका दुनिया ने हंसकर पुकारा.
तसवीर तेरी लेकिन लिए मैं कर आया सब से किनारा. हाँ बादल बिजली चन्दन पानी जैसा अपना प्यार....
लेना होगा जनम हमें कई कई बार....
अंशुल और पदमा दोनों एकदूसरे को बाहों मे जकड़े हुए एकदूसरे को देखकर इस गाने की लाइन्स गुनगुना रहे थे और मुस्कुराते हुए आँखों मे आँखे डाले एकदूसरे को जैसे अपने प्रेम का अहसास करवा रहे थे की उसके दिलों मे एकदूसरे के लिए कितना प्रेम भरा हुआ है.. आखिर मे दोनों गाने की समाप्ति के बोल एक साथ गुनगुनाने लगे...
हाँ इतना मदीर इतना मधुर तेरा मेरा प्यार...
लेना होगा जनम हमें...
कई कई बार....
कई कई बार..
कई कई बार..
गाना जैसे ही ख़त्म हुआ अंशुल ने अपनी माँ पदमा के माथे पर बनी सिन्दूर रेखा के ऊपर एक प्रगाड़ चुम्बन स्थापित कर दिया और पदमा ने उसके बाद खड़े खड़े ही अंशुल का शर्ट थोड़ा सरकाते हुए उसके दिल की धड़कन पर अपने गुलाबी होंठों की छाप छोड़ दी फिर बिना कुछ कहे अंशुल को अपनी बाहों की क़ैद से आजाद कर दिया और मुस्कुराते हुए चाय के कप की तरफ इशारा करते हुए बोली - चाय पी लो वरना ठंडी हो जायेगी......
लेकिन अंशुल बिना अपनी माँ पदमा के चेहरे से ध्यान हटाए उसके लबों पर टूट पड़ा और पदमा को बाहो मे भरके चूमने लगा....
पदमा और अंशुल का चुम्बन शुरु ही हुआ था की नीचे से बालचंद की आवाज़ आई... पदमा.... पदमा.... मेहमान आ गए है...
बालचंद की आवाज़ सुनकर पदमा ने चुम्बन तोड़ दिया और अंशुल के होंठों पर चुम्बन के कारण हुआ गिलापन अपनी उंगलियों से साफ करने लगी....
टीवी की आवाज़ बंद हो चुकी थी जैसे की बाहर से आती मोटर की आवाज़ सुनकर बालचंद ने टीवी बंद कर दिया हो... अंशुल चेयर पर वापस बैठ चूका था और चाय का पहला सिप ले चूका था
पदमा ने बालचंद की आवाज़ सुनकर अंशुल को उसका चश्मा वापस देते हुए उसके माथे पर उसीके अंदाज़ मे चुम्बन देते हुए नीचे की तरह बढ़ गई....
जाते जाते पदमा ने अंशुल को जल्दी से नीचे आ जाने और ज्यादा देर तक किताबो के साथ उलझें नहीं रहने की हिदायत भी दे दी थी जिसपर अंशुल ने हामी मे सर हिला कर अपनी मोन स्वीकृति दे दी थी....
आइये आइये.... सरपंच जी.... आइये.... कहते हुए मलखान प्रभाती जी को बालचंद के घर के अंदर ले आया और प्रभाती लाल के पीछे पीछे उसकी अर्धांगिनी लाज़वन्ति और एकलौती पुत्री नयना भी घर के भीतर प्रवेश कर गई....
लाज़वन्ति
नयना
पदमा ने नीचे बालचंद के साथ सबका स्वागत किया.. लाज़वन्ति ने पदमा से और प्रभाती लाल ने बालचंद से मेल मिलाप किया.. मलखान ने अपने हाथ से फलो का एक थैला रसोई के भीतर रखते हुए सबको आँगन मे रखे पुराने सोफे पर बैठा दिया जिसपर अभी कुछ देर पहले ही नई चादर डाली गई थी.. मलखान माध्यस्था कर रहा था उसने सभीके बैठने के बाद हसते हुए बालचंद से प्रभाती लाल का परिचय करते हुए कहा - बालचंद जी.... ये है हमारे गाँव के सरपंच श्री प्रभाती लाल जी.. सकड़ो बीघा मे खेती-किसानी तो पुशतेनी है पहले खुद खेत मे हल चलाते थे अब कामगार चलाते है... उसके अलावा बाड़े मे दर्जनों गाये भैंस बंधी हुई है दूध का भी कारोबार करने लगे है.... एकलौती बिटिया है नयना... सिलाई कढ़ाई बुनाई सब जानती है खाना भी स्वाद बनाती है हमारी नयना..... और प्रभाती जी ये है श्री बालचंद जी.... पेशे से सरकारी महकमे मे बाबू है पर मज़ाल जो सालों काम करने के बाद भी किसी ने एक पैसे रिश्वत का आरोप भी लगाया हो.. निहायती ईमानदार और मेहनती किस्म के आदमी है बालचंद जी.... खुदका अपनी मेहनत की कमाई से बनाया ये पक्का घर है और दो बच्चे.... लड़की का ब्याह तो दो बरस पहले ही आपके बगल वाले गाँव रोजिया मे शोभासिंह के लड़के नीलेश से हो गया था अब ले देके एक लड़का अंशुल ही बचा है.. बड़े शहर जाकर बीए की पढ़ाई की है अंशुल ने.. बड़ा भला लड़का है.. शराब, सिगरेट, गांजा, लड़कीबाज़ी.... अजी किसी भी तरह का कोई शोक नहीं है लड़के को....
पदमा चाय की ट्रे सबके सामने रखते हुए - लीजिये चाय पिजिये....
लाज़वन्ति - अरे बहन जी इसकी क्या जरुरत थी... वैसे ही इतना समय हो चूका है....
नयना उठकर पदमा के पैर छूने लगती है तभी पदमा उसका हाथ पकड़कर रोक देती है - अरे अरे.... ये सब रहने दो.... इसकी जरुरत नहीं है.... तुम बैठो...
मलखान - भाभी जी ये तो संस्कार है बिटिया के....
पदमा मुशसकुराते हुए चाय बिस्किट नमकीन और मीठा टेबल पर रखते हुए बालचंद के बगल मे बैठ गई और मलखान प्रभाती लाल और बालचंद से एकदूसरे की बढ़ाचढ़ा कर तारीफ़ करने लगा और बीच बीच मे हंसी के प्रसंग भी उत्पन्न होने लगे जिसपर सब खुलकर हसने और एक दूसरे के साथ बतियाने लगे......
बात करते करते पदमा ने नायना के चहेरे की तरफ देखा तो उसे दुप्पटे के नीचे नयना की दूधिया काया और प्राकर्तिक गुलाबी होंठो के साथ पतली नाक भी दिखाई दे गई.... नयना को रूपवाती कहना उचित होगा वो अभी उन्नीसवे साल मे थी लेकिन अच्छे खान-पान और रहन-सहन ने उसके अंग को अद्भुत तरीके से निखारा था खूबसूरत सूरत और सीरत उसे अपनी माँ लाज़वन्ति से ही मिली थी... गोरी देह पर आसमानी सूट पहने और सफ़ेद दुपट्टे से अपना सर ढककर बैठी नयना किसी परी से कमतर नहीं लगती थी उसके उन्नत उरोजो का अनुमान सूट की बनावट से लगाया जा सकता था पतली कमर और बाहर की तरफ निकले नितम्भो भी उसे आकर्षक बनाने का काम करते थे....
चाय नाश्ता और बातचित होते होते रात के साढ़े आठ बज चुके थे पिछले डेढ़ घंटे से मलखान ने प्रभाती लाल और बालचंद को एकदूसरे के बारे मे ना जाने क्या क्या कह सुनाया था जिसमे बहुत सा सत्य था और कुछ आटे मे स्वाद लाने के लिए मिलाया गया नमक मालूम पड़ता था जिसे दोनों पक्ष बड़ी आसानी से समझ सकते थे......
पदमा रसोई मे चली गई थी और उसने खाना गर्म करने के लिए गैस पर चढ़ा दिया था उसके पीछे पीछे लाज़वन्ति का इशारा पाकर नयना भी रसोई मे आ गई थी... पदमा ने कितना मना किया था उसे कुछ करने के लिए पर हाय.... ये ज़िद्दी लड़की.... नयना ने पदमा की एक बात नहीं सुनी और गुथे हुए आटे से लोई तोड़कर रोटियां बनाने लग गई थी मानो अपने रूपवती होने के साथ गुणवती होने की घोषणा करना चाहती हो....
खाना त्यार होने पर मलखान सोफे के पास दाई तरफ बिछी चटाई पर प्रभाती लाल और उनकी पत्नी लाज़वन्ति के साथ बैठ गए और बालचंद को देखते हुए आँखों ही आँखों मे अंशुल को बुलाने का इशारा किया.. बालचंद मलखान का इशारा समझते हुए रसोई मे पदमा के पास चला गया और नयना के खाना बाहर ले जाने के बाद धीमी आवाज़ मे गुस्से से पदमा से बोले - कहा है तुम्हारा लाडला? अब तक नीचे क्यूँ नहीं आया? घर मे मेहमान आये है तुमने उसे बताया था या नहीं? जाकर देखो क्या कर रहा है?
बालचंद की गीदड़भभ्की सुनकर पदमा व्यंगात्मक स्वर मे बालचंद को देखते हुए बोली - सरकारी महकमे मे बाबू.... हम्म्म? चपरासी से बाबू कब बने?
बालचंद इधर उधर देखकर - अरे मलखान ने कह दिया तो मैं क्या करता? वैसे भी ऐसे मामलो मे थोड़ा बहुत घालमेल चलता है....अब तुम ये सब छोडो और जल्दी से जाकर अपने सपूत को नीचे बुला लाओ... मलखान ने कहा है सब साथ खाना खाएंगे तो अच्छा प्रभाव जमेगा प्रभाती जी और उनकी धर्मपत्नी पर.... ये कहकर बालचंद रसोई से आँगन की तरफ चल देता है...
पदमा बालचंद की बातें अनसुनी करती हुई रसोई से बाहर जाते हुए बालचंद को उसी व्यंगत्मक स्वर मे चिढ़ाती हुई वापस बोली - ईमानदार और मेहनती.....
बालचंद के जाने के बाद पदमा 3-4 हरी इलायची लेकर रसोई से बाहर निकल गई और सीढ़ियों से ऊपर की तरफ चली गई....
पदमा ने देखा की अंशुल अपने कमरे मे नहीं है तो वो सीधे छत पर सीढ़ियों के पास बने एक छोटे कमरे की तरफ चली गई जहा अंशुल एक कम रौशनी वाले लट्टू की लाइट मे बैठा हुआ सिगरेट के कश ले रहा था....
पदमा अंदर जाते ही अंशुल के हाथ से सिगरेट लेकर अपने होंठो पर लगा लेती है और एक लम्बा कश लेकर धुआँ छोड़ती हुई अंशुल से कहती है - अब तक नीचे क्यूँ नहीं आये?
अंशुल अपने पैरों की तरफ देखता हुआ - मेरा मन नहीं है आने का....
पदमा - खाना नहीं खाना? सुबह भी कुछ नहीं खाया था.... ऐसे भूके ही रहना है तुम्हे?
अंशुल - आप खा लो... आज सच मे भूख नहीं है...
पदमा अंशुल की गोद मे बैठकर सिगरेट के कश लेती हुई - भूख नहीं है या और कोई बात है? छुपाने से अच्छा है बता दो..... इस तरह बातें दिल मे रखने से कुछ नहीं होगा.... शायद मैं कुछ मदद कर दू....
अंशुल अपनी जगह से खड़ा हो जाता है और पदमा जैसे ही सिगरेट का कश लेने के लिए सिगरेट अपने होंठो पर लगाती है अंशुल सिगरेट ज़मीन पर फेंक देता है और पदमा की कमर पकड़कर अपनी तरफ खींचता हुआ कहता है - आप जानती हो ना मैं ये शादी नहीं कर सकता.... मैं सिर्फ आपसे प्यार करता हूँ फिर भी आप चाहती हो मैं ये शादी करू?
पदमा अंशुल के मुँह मे 2 इलायची ड़ालते हुए - मैं सिर्फ इतना चाहती हूँ कि तुम खुश रहो... समझें? अब ये रोतलू चेहरा ठीक करो और चलो... सब नीचे इंतजार कर रहे है... मुझे तो बहुत जोरो की भूख लगी है....
पदमा भी इलायची खाते हुए अंशुल का हाथ पकड़कर उसे सीढ़ियों से नीचे ले आती है और रसोई की तरफ चली जाती वही अंशुल वाशबेसिन मे मुँह धोकर सबके पास चला जाता है जहा मलखान जानभूझकर उसे लाज़वन्ति के बगल मे बैठा देते है....
मलखान - प्रभाती जी... ये रहा हमारा आशु.... भाभी जी बता रही थी किसी बड़े इम्तिहान की त्यारी कर रहा है.... अगले बरस पर्चा देगा.... अगर पास हो गया तो मुहर वाली नोकरी करेगा अपना आशु...
प्रभाती लाल - अरे मलखान भाई.... पास-फ़ैल तो नसीब का खेल है... इंसान के हाथ मे तो बस मेहनत है....
मसलखान - बिलकुल सोलह आने सही बात की आपने भाईसाब.... पर अपना आशु तो जो ठान लेता है करके रहता है.. मैं तो बचपन से देखता आया हूँ...
लाज़वन्ति एक नज़र भरके अंशुल को देखकर - भाईसाब माफ़ करना पर परमात्मा की कृपा से आज हमारे पास बहुत कुछ है और सब कुछ नयना का ही है.... हमने बहुत गरीबी मे दिन गुजारे है मगर जब से परमात्मा ने नयना को हमारी झोली मे डाला है तब से हमारी किस्मत ने ऐसी करवट ली देखते ही देखते पुरे गाँव मे सबसे बड़ी जोत हमारी हो गयी.... कुछ बरस से दूध का व्यापार भी अच्छा चलने लगा है... उसे भी सँभालने वाला कोई चाहिए कब तक ये अपने कंधे पर सारा बोझा ढ़ोते रहेंगे अब तो उम्र भी 50 के पार होने लगी है... आजकल वैसे भी नोकरी मे पहले वाली बात तो रही नहीं.. अब नोकरीपेशा आदमी सिर्फ अपनी जरुरत ही तो पूरी कर सकता है.. अपने मन मुताबिक़ जीना उसके इख़्तियार की बात कहा?
बालचंद की आँखे लाज़वन्ति की बात सुनकर चमक जाती है वही मलखान लाज़वन्ति की बात पर हां मे हां मिलाता हुआ कहता है - खरी बात कही आपने भाभी जी.... अब अपने घर का इतना बड़ा कारोबार छोड़कर अगर आदमी बाहर कुछ पैसो के लिए किसी की चाकरी करें तो अच्छा थोड़ी लगेगा? भले ही वो सरकार की गुलामी क्यों न हो....
प्रभाती लाल - बालचंद जी.... मैं तो तय कर चूका हूँ ब्याह ऐसा होगा की सब देखते रह जाएंगे..
लाज़वन्ति बालचंद से - एकलौती बच्ची है.... हमारे पास जो कुछ है इसीके भाग का है.... और इसी के लिए रखा हुआ है...
पदमा रसोई से चपाती लेकर आती है और परोसने लगती है वहीं नयना के नयनो की धार रसोई की खिड़की को चिरती हुई अंशुल के मनभावन चेहरे पर टिकी थी.. नयना एकटक बेसब्री निगाहो से बस अंशुल को ही देखे जा रही थी जैसे उसे डर हो की कहीं कोई उसकी नज़र से ये नज़ारा छीन ना ले....
नयना आँगन मे चल रही बात सुन रही थी और बारी बारी से सबके चेहरे और हावभाव देख रही थी लेकिन उसकी आँखों से अंशुल का चेहरा नहीं हट रहा था.. खाना खाते हुए अंशुल को नयना अपनी आँखों मे समा लेना चाहती थी वो रसोई मे खड़ी हुई मुस्कुराते हुए बस अंशुल के चेहरे को ही देखे जा रही थी और याद कर रही थी कैसे पिछले माह उसकी सहेली कजरी के ब्याह मे जब वो खाने के लिए पंगत मे एक कुर्सी पर बैठी तब अंशुल खाना परोसता हुआ उसके सामने से गुजरा था....
रात के अँधेरे को चिरती हेलोजन लाइट की रौशनी मे जब अंशुल उसके सामने से गुजरा तो वो अपने साथ उसका दिल भी ले गया था.... नीली जीन्स पर गुलाबी शर्ट पहना था अंशुल ने.. खाना परोसने के लिए जूते उतार दिए थे पैरों मे चप्पल तक नहीं थी.. शर्ट के ऊपरी दो बटन खुले हुए और बाल गर्मी के कारण अस्त व्यस्त हो गए थे फिर भी अंशुल पहली नज़र मे ही नयना की आँखों से होते हुए उसके दिल मे उतर गया था.. जिसे नयना की आँखों से सिर्फ उसकी बचपन की सहेली महिमा ही पढ़ पाई थी.. अरे...... कितना छेड़ा था नयना को महिमा ने बार बार अंशुल की तरफ इशारा करके.. नयना की तो जैसे जान ही हलक मे ला दी थी उस मसखरी लड़की ने.... ऐसा भी कोई करता है भला? शर्म के मारे कैसा लाल मुँह हो गया था नयना का? कैसे वो चीड़के महिमा का गला दबाने भागी थी... आज एक महीना बीतने के बाद भी उसे सब पूरी तरह याद था.. महिमा ने उस रात नयना को चाहे जितना तंग किया हो पर सच तो ये भी था की वहीं कजरी से अंशुल के बारे मे सारी जानकारी निकाल लाइ थी और बहुत सताने के बाद नयना को अंशुल के बारे मे बताया था... ब्याह से वापस आने के बाद भी नयना अंशुल की यादो मे ही खोई हुई थी उसकी तो सारी दिनचर्या अस्त व्यस्त हो गई थी मन मे मीठे मीठे ख्याल आना और सपनो मे अंशुल की मौजूदगी लाज़मी हो चूका था महिमा उसकी मनोदशा से भलीभाती परिचित थी और अब लाज़वन्ति को भी नयना का व्यवहार कुछ अलग लगा रहा था उसे समझते जरा भी देर नहीं लगी की कुछ ना कुछ गड़बड़ है मगर उसके पूछने पर नयना ने उसे कोई बात नहीं बताई और अपने दिल की बात को अपने दिल मे ही छीपा कर रखा मगर लाज़वन्ति भी उस उम्र के पड़ाव से गुजरी थी जहा आज नयना खड़ी है... हमेशा खामोश और चुपचुप रहे वाली नयना के चेहरे पर एकदम से मुस्कुराहट आना और उसका हरदम खुश रहना लाज़वन्ति को भी सुकून दे रहा था लाज़वन्ति ने महिमा से नयना के दिल की सारी बात जान ली और उसी का परिणाम था की नयना आज यहा खड़ी होकर लोहे की बेहद पतली तारों से बनी खिड़की से उस पार जमीन पर बिछी चटाई पर बैठकर खाना खा रहे अंशुल को देख रही थी और मन ही मन ऊपर वाले का शुक्रिया कर रही थी उसे अपने सपने और ख़्वाब सच होते नज़र आ रहे थे..
खिड़की के इस पार नयना अंशुल को देखती हुई अनेको सपने संजो रही थी वहीं खिड़की के उस पार बैठा अंशुल अपने आसपास हो रही बातों को पूरी बेध्यानी के साथ अनसुना कर सिर्फ खाने पर ही ध्यान लगा रहा था... अंशुल के कान मे अब तक किसी की भी बात नहीं गई थी वो सुबह से भूखा था और अपनी माँ पदमा का बनाया लजीज खाना उसे इतना स्वाद लग रहा था की वो बीना नज़र उठाये बस खाने मे ही मग्न था उसे मलखान, बालचंद, प्रभाती लाल और लाज़वान्ति की बात तक सुनाई नहीं दे रही थी.. उसका मन बिलकुल खाली था जहा रिक्त स्थान के सिवा और कुछ नहीं था और अभी कुछ होने की उम्मीद करना भी फिज़ूल था... खाना खाने मे व्यस्त अंशुल ने ध्यान ही नहीं दिया की कब से मलखान उसका नाम लेकर उसे बुला रहा था जब लाज़वन्ति ने अंशुल के कंधे पर अपना हाथ रखा तब जाकर कहीं अंशुल को कुछ सुनाई दिया......
जजज.... जी... अंशुल ने हकलाते हुए कहा...
मलखान - अरे कहा खो गए नवाबजादे? कब से तुम्हारा नाम पुकारे जा रहा हूँ.. क्या अभी शादी की शहनाई सुनाई देने लगी?
मलखान की बात पर सभी जोर जोर से हसने लगे थे रसोई मे खिड़की पर खड़ी नयना के चेहरे पर भी हंसी ने अपना जमाव डाल दिया था लेकिन अंशुल पर तो जैसे मालखान की बात का कोई असर ही नहीं हुआ था वो फिर से अपना हाथ अपने मुँह तक लाकर निवाला मुँह मे ड़ालते हुए खाने मे लग गया...
कुछ देर बाद सभी आदमियों का खाना हो चूका था और अब उनके सोने की बारी थी..
अंशुल की आँखों के सामने ek-do बार नयना का चाँद की चांदनी सा खिलता हुआ खूबसूरत चेहरा सामने आया भी तो उसने उसे देखकर अनदेखा कर दिया... हाय.... कैसे कोई नयना की परी सी सूरत को देखकर भी अनदेखा कर सकता था? आखिर अंशुल मे एकाएक इतना बैराग कैसे उत्पन्न हो गया था? नयना के ह्रदय पर तो जैसे बिजली कोंध गई थी.. अंशुल के अनदेखा करने पर उसका तो खाने से जैसे मन ही मर गया था लेकिन पदमा और लाज़वन्ति के अगल बगल साथ बैठकर खाने से उसे भी बेमन से खाना खाना पड़ा....
आँगन मे ही तीन चारपाई लगाई गई थी जिसपर मलखान, प्रभाती लाल और बालचंद ने अपना आसान जमा लिया था.. एक टेबल फेन दाए से बाए फिर बाए से दाए घूमता हुआ तीनो को हवा दे रहा था लेकिन आज कुदरती हवा का बहाव कुछ ज्यादा था सो सभी को जल्द ही नींद आ गई... पदमा लाज़वन्ति और नयना को अपने कमरे के बेड पर सोने के लिए निमंत्रण देकर कूलर चलाते हुए बेड के बगल ने एक लोहे की बंद होने वाली चारपाई डालकर लेट गई...
जल्द ही पदमा और लाज़वन्ति को भी नींद आ गई पर नयना की आँखों मे नींद का नामोनिशान तक नहीं था वो बिस्तर पर करवट बदलती हुई अंशुल के बारे मे सोच रही थी....
रात करीब 2 बजे रहे थे नयना अपने बिस्तर से उतरकर बाथरूम जाने के लिए निकली लेकि न बाथरूम से वापस अपने नियत स्थान पर आने के बदले उसके कदम खुद ब खुद सीढ़ियों की तरफ बढ़ गए और वो अंशुल को देखने उसके कमरे की तरफ बढ़ गई...
अंशुल की आँखों मे भी अब तक नींद नहीं थी.. वो एक किताब हाथ मे लिए अपने कमरे मे इधर से उधर घूम रहा था.. जब नयना दरवाजे पर आकर खड़ी हो गई तब उसकी नजर एकाएक उसपर चली गई और वो रुक गया......
कहते है प्रेम मे बड़ी ताकत है यही ताकत आधी रात मे नयना को अशुल के कमरे तक खींच लाइ थी अंशुल नयना को इस समय अपने कमरे के दरवाजे पर देखकर हैरान था लेकिन उसकी हैरानी उसकी आँखों से बाहर नहीं आ रही थी वहीं नयना अंशुल को इस वक़्त इस तरह हाथ मे किताब लेकर इधर से उधर टहलते हुए देखकर उसपर हसना चाहती थी लेकिन इतनी हिम्मत और बेबाकी उसमे नहीं थी...
नयना बड़ी हिम्मत जुटा कर सिर्फ इतना कह पाई थी - सोये नहीं अब तक?
जिसके बदले मे अंशुल ने किताब टेबल ओर रखते हुए कहा था - तुम भी तो अब तक नहीं सोइ?
इसके आगे नयना के पास शब्द ही नहीं थे कुछ पूछने को, बात करने को, अंशुल के सामने अपनी बात कहने को.... लेकिन जब नयना की नज़र टेबल पर पड़े सिगरेट के पैकेट और लाइटर पर गई तो उसने झिझकते हुए पूछा - आप सिगरेट पीते हो?
शराब भी पीता हूँ.... अंशुल ने एक नज़र नयना को ददेखकर कहा और टेबल के सामने चेयर पर बैठते हुए सिगरेट और लाइटर उठाकर स्टडी टेबल की दराज मे रखकर किताब के पन्ने बदलने लगा....
नयना अंशुल की बेरुखी से छलनी हो चुकी थी अंशुल ने उसकी तरफ ठीक से देखा तक नहीं था आज उसे उसका ये रूप किसी काम का नहीं लगा रहा था उसके मन की मार्गतर्ष्णा आगे बढ़कर अंशुल के गले लगना चाहती थी लेकिन अभी दोनों के बीच कई फ़ासले थे जिसका तय होने जरुरी थी नयना ने बड़ी धीमी और लड़खड़ाते हुए शांत स्वर मे पूछा - जी.... दिन मे कितनी शराब सिगरेट पीते हो?
अंशुल - पत्ता नहीं.... कभी सोचा नहीं इस बारे मे...
नयना - अगहन तक सोच लेना.....
अंशुल अपनी किताब वापस रखते हुए - ऐसा क्या है अगहन मे?
नयना शर्म के मारे दुपट्टे से अपना मुँह छिपाती हुई मीठे स्वर मे बोली - हमारा ब्याह.... पीताजी ने अगले अगहन की पूर्णिमा का वक़्त तय किया है...
ये कहते हुए नयना दरवाजे से वापस सीढ़ियों की और मुड़ गई और नीचे आकर कमरे मे दाखिल होती हुई अपनी माँ लाज़वन्ति के पास आकर लेट गई जो गहरी नींद मे थी लेकिन अंशुल और नयना के अलवा एक और शख्स की आँखों मे नींद नहीं थी वो थी पदमा.... पदमा की आँख मे अभी तक नींद का कोई पहरा नहीं था उसे नयना के बाहर जाने से लेकर ऊपर अंशुल से मिलने और वापस आने तक की खबर थी मगर वो चुपचाप तकिये पर सर रखे अपनी ही सोच मे मग्न थी उसने सिर्फ नयना को देखा था अंशुल के नयना का प्रेम निश्छल था.....
सुबह सूरज की किरण ने अपना उजाला बिखेरा तो धरती का अन्धकार दूर हुआ और चारो ओर के वातावरण मे नई सी ताज़गी ओर ऊर्जा का संचार हुआ.. सुबह के छः बज रहे थे पदमा रसोई मे चाय नाश्ता त्यार कर रही थी वहीं लाज़वन्ति पदमा को इस काम मे मदद कर रही थी नयना अभी बिस्तर पर ही थी रात को देर से सोने के कारण उसकी आँख अभी तक नहीं खुल पाई थी लाज़वन्ति ने उसे जगाना चाहा पर पदमा ने लाज़वन्ति को ऐसा करने रोक दिया ओर काम मे अपना हाथ बटाने रसोई मे साथ ले आई....
नयना की आँख खुली तो सुबह के साढ़े सात बज रहे थे नयना जब कमरे से बाहर आई तो उसने देखा की आँगन मे बैठे सब लोगों का नशा हो चूका था ओर मलखान प्रभाती लाल ओर बालचंद आपस मे गप्पे मार रहे थे तभी पदमा ने नयना को चाय का कप देते हुए पूछा - रात को देर से नींद आई थी?
नयना ने चाय कप लेते हुए सर नीचे झुका लिया ओर बिना कोई जवाब दिए रसोई के अंदर चली गई जहाँ लाज़वन्ति पहले से मोज़ूद थी..
सबके चाय नाश्ता होने के बाद मलखान ने कहा - अच्छा बालचंद भाई... अब अगले इतवार को आप सपरिवार प्रभाती जी यहा आने का कष्ट करेंगे.... वैसे तो ब्याह शादी की सारी बातें तो कल हो ही चुकी है पर मेल मिलाप चलता रहे तो अच्छा है... संबंधों मे मधुरता बनी रहती है....
प्रभाती लाल - जी... बालचंद जी... मलखान सिंह जी ठीक फरमा रहे है... इस इतवार आप भी हमारे गरीबखाने आकर हमें अपनी सेवा का मौका दीजिये...
बालचंद - अरे सरपंच जी आप क्यूँ मुझे सर्मिन्दा कर रहे है? आप जब बुलाएंगे हम तब आपके सामने हाजिर हो जाएंगे.....
प्रभाती लाल - अच्छा तो बालचंद जी.... ये नेक कबूल कीजिये.. आज से आपका आशु हमारा हुआ.... अब जाने की आज्ञा दे...
बालचंद - अरे रुकिए सरपंच जी... मैं आशु को नीचे बुला लेता हूँ... आप उसी के हाथ मे थमा दीजियेगा...
मलखान - अरे रहने दीजिये बालचंद भाई.... सोने दीजिये आशु को.. कहा नींद से जगाईंयेगा.... आप तो बस इस इतवार आना ना भूलियेगा....
बालचंद - कैसी बातें करते है मलखान भाई... जरूर...
मलखान प्रभाली लाल और लाज़वन्ति के साथ नयना को भी वापस ले जाता है बालचंद ख़ुशी से झूमता हुआ कमरे मे आ जाता है वहीं पदमा चाय का कप हाथ मे लेकर अंशुल के कमरे की तरफ बढ़ती है..
पदमा - रातभर नींद नहीं आई? आँखे कैसे सूझ गई है..... लो चाय पिलो...
अंशुल बिस्तर पर उल्टा लेता हुआ - उन सब लोगों को घर बुलाने कि क्या जरुरत थी? आप जानती हो ना मैं ये शादी नहीं करूंगा....
पदमा - इतनी खूबसूरत तो है लड़की.... घर का सारा कामकाज भी जानती है... तुम्हे प्यार करती है तो खुश भी रखेगी...
अंशुल अपने बेड से उठकर बिना चाय के कप को हाथ लगाए बाहर निकाल जाता....
बालचंद नीचे आटे हुए अंशुल से - अरे कहाँ जा रहा है? देख तेरे लिए सोने की चैन नेक मे दी है सरपंच जी ने....
अंशुल गुस्से से - वापस लौटा दो.... मैं कोई ब्याह व्याह नहीं करने वाला.... और अगली बार किसी को घर बुलाने से पहले मुझसे पूछ लेना...
इतना कह कर अंशुल घर से बाहर चला जाता है....
बालचंद गुस्से मे - अरे आखिर चाहता क्या है तुम्हारा लड़का.... केसा निरमोही है? इतनी सुन्दर सुशील कन्या मिली है... अच्छा खासा खानदान है और दान दहेज़ भी बढ़चढ़कर देने को त्यार है फिर फिर ये है की शादी नहीं करना चाहता....
पदमा नीचे आती हुई - मैंने तो पहले ही कह दिया था मेरा बच्चा जो चाहेगा वहीं होगा.... अगर उसकी इच्छा अभी ब्याह करने की नहीं है तो क्यूँ जबरदस्ती उसके साथ ज़िद करते हो? मेरा बेटा बिकाऊ नहीं है जो कोई खरीद ले.... देखा नहीं कल कैसे अपनी शेखी बगार रहे थे व्याह के बाद मेरे आशु को घर जमाई बनाने की तयारी मे है सब....
बालचंद - तो क्या हुआ? कम से कम लाखो करोडो का मालिक बनकर तो रहेगा.... कब तक ऐसे ही घर मे पड़ा रहेगा....
पदमा इस बार गुस्से मे तमकती हुई बोली - अपनी ये चपरासीगिरी कहीं और जाकर करना.... कह देती हूँ अगर मेरे बच्चे के साथ जोर जबरदस्ती की तो मुझसे बुरा कोई ना होगा... उसका मन होगा तो व्याह करेगा नहीं होगा तो नहीं करेगा.... मैं चाँद रुपयों के लिए अपने आशु का सौदा नहीं करुँगी.... शाम को घर आते वक़्त ये नेक सूत समेत मलखान जी को दे आना और कह देना की हमारा आशु अभी व्याह के लिए त्यार नहीं है वो प्रभाती जी को समझा देंगे....
बालचंद छिड़ते हुए घर से निकल जाता है और सरकारी विभाग मे वहीं चाय समोसे खिलाने और धूल जमीं फाइल्स इधर उधर करने मे लग जाता है वहीं आशु का गुस्सा दोपहर तक ठंडा हो चूका था और वो घर आकर अपने रूम मे चला जाता है पदमा अपने बिस्तर पर लेटी अपनी ही दुनिया मे मग्न थी उसके ख्याल उसे आराम नहीं लेने दे रहे थे....
39 साल की पदमा आज भी किसी नवयौवना की भाति ही दिखाई पढ़ती थी सुडोल उन्नत छाती और नितम्भ, पतली चिकनी कमर उसके यौवन को और निखार प्रदान करते थे अंशुल को सुन्दर नयननक्श पदमा से ही मिले थे पदमा सिर्फ 5 फ़ीट 3 इंच लम्बी थी लेकिन उसकी कम उच्चाई ने उसके रूप और माधूरये को तनिक भी कम नहीं किया था गोरी गठिली देह और काली कजरारी आँखे पदमा के सौन्दर्य मे चार चाँद लगाती थी माथे पर लाल बिंदिया तो जैसे उसे किसी अप्सरा तुल्य होने की बात बतलाती थी.... पदमा जब अपने बेटे अंशुल से गले लगती तो 6 फ़ीट लम्बे अंशुल के सीने मे पदमा का सर ऐसे छुप जाता था जैसे गहरी झील मे भोर के समय चाँद छुप जाता है...
पदमा अभी अंशुल के बारे मे ही सोच रही थी उसे नयना पसंद आई थी और पदमा चाहती भी थी की नयना अंशुल की ब्याहता बने लेकिन उसके मन मे अनेक ख्याल चल रहे थे की अगर नयना अंशुल से व्याह करती है तो वो कहीं अंशुल को उससे अलग ना कर दे....
नयना की माँ लाज़वन्ति के मन मे तो यही चल रहा था पदमा समझ गई थी लेकिन नयना की आँखों मे अंशुल के लिए प्रेम भी उसने देखा था वो किसी असमंजस मे थी जिससे पार पाना उसके बस मे नहीं था रातभर नींद ना आने के बाद भी उसकी आँखों मे नींद नहीं थी.....
दिन के दो बज चुके थे.. पदमा इस गर्मी मे एक गिलास निभूपानी बनाकर अंशुल के कमरे के तरफ बढ़ गई और अंदर जाकर गिलास टेबल पर रखते हुए दरवाजा अंदर से बंद कर लिया....
दिन के दो बजे बंद हुआ अंशुल के कमरे का दरवाजा जब शाम के छः बजे खुला तो पदमा अपने ब्लाउज के बटन बंद करती हुई बाहर की तरफ आई और सीढ़ियों से नीचे की तरफ चली गई उसीके पीछे पीछे अंशुल अपने बदन पर सिर्फ टावल पहने बाहर आकर बाथरूम मे चला गया था.. इन चार घंटो मे उन दोनों के बीच क्या हुआ था ये सिर्फ वो दोनों ही जानते थे.....
सात बजे जब घर की घंटी बाजी तो रसोई मे काम करती हुई पदमा ने जाकर दरवाजा खोला... बाहर खड़े बालचंद ने पदमा को देखकर मुँह बनाते हुए घर मे कदम रखा और सीधा कमरे मे जाकर बिस्तर पर लेट गया.......
पदमा - क्या हुआ? बात हुई मलखान भाईसाब से?
बालचंद मुँह फेरते हुए - हां.... लौटा दिया नेक... कह दिया की नवाब साहब की अभी शादी करने की इच्छा नहीं है.... अब तक तो मलखान ने फ़ोन करके प्रभाती लाल जी को भी बता दिया होगा.... केसी औलाद पैदा की है.. मुझे तो शक है मेरी औलाद है भी या नहीं...
पदमा बालचंद की बात का जवाब दिए बिना ही फिर से रसोई मे चली गई और कुछ देर बाद खाने से भरी हुई थाली लाकर बालचंद के सामने परोस दी... अंशुल भी नीचे आकर खाने की थाली लेकर आँगन मे रखे सोफे पर बैठकर खाना खाने लगा था.... बालचंद की आज खाने की इच्छा बिलकुल भी नहीं थी वो दुखी था और उसके दुख का कारण प्रभाती लाल जैसे धनवान के घर रिश्ता नहीं कर पाना था उसे अंशुल पर गुस्सा आ रहा था.... अंशुल खाना खाकर घर से बाहर चला गया था वहीं खाने के बाद जब बालचंद ने रसोई मे काम कर रही पदमा से पानी माँगा तो पदमा ने गिलास मे पानी भर कर अपने ब्लाउज के अंदर दाहिनी तरफ अपनी दो ऊँगली डालकर एक शीशी निकली और उसमे से एक गोली निकलकर गिलास मे डाल दी जो पानी मे नमक की तरह घुल गई... पदमा ने शीशी वापस अपने ब्लाउज मे डालकर बालचंद को पानी का गिलास दे दिया जिसे बालचंद ने एक सांस मे पीते हुए ख़त्म कर दिया.. पदमा खाने की झूठी थाली और गिलास लेकर रसोई मे आ गई और खुद भी खाना खाने बैठ गई... खाना खाने के बाद पदमा झूठे बर्तन धोने बैठ गई थी...
रात के लगभर 9 बजे थे और अबतक अंशुल वापस घर आकर अपने कमरे मे जा चूका था और पदमा भी रसोई से फ्री होकर अपने कमरे मे आ गई थी उसने देखा की बालचंद किसी मुर्दे की तरह बेड पर अचेत लेता हुआ सो रहा था.... पदमा ने बालचंद को यूँही सोता छोड़कर अपनी अलमारी खोली और एक बेग बाहर निकाला जिसमे पदमा के कपडे थे.. पदमा ने उनमे से एक लाल साडी बाहर निकली और पहन ली उसके बाद अलमारी से दूसरा बेग निकलकर उसमे रखे श्रंगार के सामान को बाहर निकालते हुए आईने के सामने बैठ गई और खुदका श्रंगार करने लगी... पदमा ने किसी त्यौहार की तरह आज खुदको सजाया था हाथो मे खानखनती चुडिया होंठों पर लाल सुर्ख लिपस्टिक आँखों मे काजल माथे पर बिंदिया और बदन पर छिड़का हुआ इत्र....
इस वक़्त पदमा को एक नई नवेली दुल्हन कहना गलत नहीं था पूरा एक घंटा उसने त्यार होने मे लगाया था अब रात के दस का समय था...
पदमा इसी तरह सजीधजी हुई रसोई से एक पानी बोतल अपने हाथ मे लेकर अंशुल के कमरे मे चली गई और फिर से अंदर से दरवाजा बंद कर लिया.. इस बार जो दरवाजा बंद हुआ तो फिर सुबह के 5 बजे ही खुला.. रात के पुरे सात घंटे पदमा ने अपने बेटे अंशुल के कमरे मे बिताये थे और इस बीच उस कमरे मे क्या हुआ इसकी खबर किसी को नहीं थी..
पदमा जब सुबह पांच बजे अंशुल के कमरे से निकली तो उसके बदन पर एक भी कपड़ा नहीं था.. लेकिन उसके एक हाथ मे उसके सारे कपडे थे जो वो रात मे पहन कर आई थी.. पदमा नग्न अवस्था मे ही नीचे चली गई और सारा सामान अलमारी मे वापस रखकर बाथरूम मे नहाने चली गई.. अंशुल अपने बिस्तर पर गहरी नींद मे खराटे भर रहा था.... पदमा ने रोज़ की तरह ही सुबह सात बजे बालचंद को नींद से जागते हुए चाय का प्याला सामने रख दिया फिर बाहर आ गई और रोज़ की तरह की बालचंद चाय पीकर पखाने फिर नाहने के लिए गुसलखाने चला गया उसके बाद खाना खाकर टिफिन हाथ मे पकड़े अपनी ड्यूटी बजाने चला गया....
पदमा का चेहरा आज खिला हुआ लग रहा था उसके चेहरे पर आज सुबह से ही ख़ुशी के भाव थे जिसे समझ पाना बिलकुल आसान था बालचद तो मुर्ख आदमी था वरना इस तरह एक औरत के चेहरे का हावभाव देखकर कोई भी उसके पीछे की वजह बता सकता था...
पदमा इस वक़्त आईने के सामने खड़ी होकर अपना ब्लाउज खोले अपने दोनों सुडोल गोलाकार उठे हुए मुख वाले उन्नत स्तन पर उभरे गहरे लाल निशान देखकर मन ही मन मुस्कुराते हुए खुद से ही शर्मा रही थी रही थी तभी उसे अंशुल की आवाज सुनाई दी....
अंशुल - माँ...... माँ......
पदमा अपना ब्लाउज बंद करके साडी ठीक करती हुई बाहर आई और सीढ़ियों से नीचे आते अंशुल से बोली - हां? क्या हुआ है?
अंशुल - बाइक की चाबी कहा है?
पदमा - अंदर होगी लाती हूँ..... कहा जाना है?
अंशुल - बाजार जा रहा हूँ कुछ बुक्स लानी है....
पदमा चाबी लाते हुए - अच्छा है.... मुझे भी बाजार जाना था चल साथ मे चलते है....
अंशुल - पर माँ.... बाजार मे बहुत टाइम लगेगा आपको... एक बार आप किसी दूकान मे घुसती हो तो पूरी दूकान देखकर ही बाहर निकलती हो....
पदमा - कुछ टाइम नहीं लगेगा लल्ला.... चल.... मैं भी साथ चलती हूँ...
अंशुल - ठीक है जल्दी करो....
अंशुल बाइक निकलता है और पदमा उसके पीछे बैठ जाती है दोनों घर को लॉक करके बाजार की तरफ चले जाते है और पहले अंशुल अपनी किताबे खरीदता है और फिर पदमा अंशुल को लेकर बाजार मे एक दूकान से दूसरी दूकान घूमती है...
अंशुल - माँ... यार क्यूँ थका रही हो? जो लेना एक ही दूकान से लेलो ना....
पदमा - अरे ऐसे कैसे ले लू? कितना महंगा बता रहा था.. क्या लूट मची है.... दो चार दूकान पर मोल भाव करने से ही सही दाम पत्ता लगेगा.. वरना ऐसे तो दुकानदार किसी चीज का कुछ भी वसूल लेगा...
अंशुल - अच्छा ठीक है मेरी माँ..... अब चलो..
पदमा अगली दूकान पर चली जाती है और इस बार फाइनली अंशुल के दबाब बनाने पर उसे सामान खरीदना ही पड़ता है....
सामान खरीदने के बाद पदमा बाइक पर अंशुल के पीछे बैठ जाती है और मन ही मन हवा मे कुछ बड़बड़ाती हुई दूकानदार को उल्टा सीधा कहने लगती है....
पदमा - एक नम्बर का चोर था चोर.... पांच सो से एक पैसा ज्यादा की नहीं थी ये साडी... खामखा हज़ार रुपए ले लिए... अच्छा..... रोको रोको..... जरा रोको.... आशु..... रोको....
अंशुल बाइक सडक के किनारे लगाते हुए चिढ़कर - माँ.... अब क्या हुआ? अब क्या खरीदना रह गया आपको....
पदमा अंशुल को मेडिकल स्टोर की तरफ आँखों से इशारा करती हुई बोली - जाओ....
अंशुल प्रशनवाचक निगाहो से पदमा को देखता हुआ बोला - ख़त्म हो गए?
पदमा अंशुल की आँखों मे देखती हुई - रात को तुमने ही तो खाली पैकेट मुझे फेंकने को दिया था भूल गए?
अंशुल जेब से दो पांच सो के नोट निकालकर पदमा को देता हुआ - लो.... जाओ....
पदमा झिझकते हुए - मैं नहीं तुम ही ले आओ....
अंशुल गुस्से से - माँ यार.... धूप लग रही है.... जल्दी जाओ ना.... क्यूँ आप नखरे कर रही हो?
पदमा अंशुल से पैसे लेकर बाइक से उतर जाती है और सारा सामान अंशुल को थमा कर पर्स से एक मास्क पहनकर मेडिकल स्टोर की तरफ बढ़ जाती है शॉप पर कोई ग्राहक नहीं था बस एक लड़का दुकान के अंदर बैठा था जो शॉपकीपर लगा रहा था.....
शॉपकीपर - जी भाभी जी... क्या दूँ...
पदमा - भईया 2 कंडोम के पैकेट दे दो....
शॉपकीपर - 3 वाला या 8 वाला?
पदमा - जी आठ वाला.....
शॉपकीपर - जी ***** रुपए...
पदमा पैसे देकर कंडोम पर्स मे डाल लेती है और मेडिकल स्टोर से आगे की तरफ एक किराने की दूकान पर चली जाती है.....
दूकानदार - जी मैडम.... क्या चाहिए?
पदमा - भाईसाब 2 बड़ी एडवांस सिगरेट का पैकेट और एक लाइटर दे दो.....
दुकानदार - जी लीजिये मैडम **** रुपए...
पदमा पैसे देकर सिगरेट के पैकेट और लाइटर भी पर्श मे डाल लेटी है और वापस आकर्षित अंशुल से सामान लेकर बाइक के पीछे बैठ जाती है और कुछ देर मे दोनों वापस घर पहुंच जाते है....
पदमा सारा सामान अपने कमरे मे रख देती है और अपने पर्स से कंडोम और सिगरेट निकलकर अंशुल को दे देती है जिसे अंशुल अपने रूम मे लेजाकर अलमारी मे छुपा देता है और फिर अपनी किताबो मे खो जाता है वहीं पदमा को नींद आ जाती है जो बालचंद के घर आने पर ही खुलती है....
पिछले रोज़ की तरह आज भी पदमा मे बालचंद को पानी मे मिलाकर कुछ पीला दिया था जिससे बालचंद खाने के कुछ देर बाद ही घोड़े बेच कर सो गया पदमा फिर से त्यार होकर लगभर रात के 9 बजे अपने बेटे अंशुल के कमरे मे पहुंच गई थी.... अंशुल किताबो मे सर घुसाए उंगलियों से पेंसिल घुमा रहा था तभी पदमा ने कमरे मे दाखिल होते हुए अपने हाथ मे से हल्दी वाले दूध का गिलास मैज़ पर रख दिया और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.... इस बार भी दरवाजा सुबह 5 बजे के आस पास ही खुला और उसी तरह पदमा सीढ़ियों से नीचे चली गई और अंशुल बाथरूम....
3-4 दिन इसीलिए तरह बीते थे एक शाम बालचंद सर पीटता हुआ घर आया....
पदमा बालचंद को देखकर - अरे क्या हुआ? कोनसी आफत आ गई जो ऐसा हाल बना रखा है....
बालचंद - आफत तो आ ही पड़ी पदमा... तबादला हुआ बड़े शहर मे... जरूर बड़े बाबू ने मेरी शिकायत अफसर लोगों से की होगी....
पदमा - मैं तो पहले ही कहती थी ज्यादा लालची मत बनो... अब भुगतो... 100-50 रुपए की लालच मे पहले ही इज़्ज़त लुटा बैठे थे अब तबादला भी करा बैठे.... मैं साफ कह देती हूँ... मैं कहीं नहीं जाउंगी घर छोडके...
बालचंद - अरे तुम भी मुझे ही कोस रही हो....तुम रहो यहां अपने लाडले सपूत के साथ मे अकेला ही चला जाऊंगा.... अब किया है सो भोगना भी तो पड़ेगा...
पदमा - कब जाना होगा?
बालचंद - आज रात की गाडी से ही जाऊंगा.... परसो दफ़्तर मे हाज़िरी देनी है.... जरा बेग मे मेरे कुछ कपडे रख देना....
पदमा - रख दूंगी.... कम से कम वहा तो ठीक से रहना....
बालचंद एक बेग कंधे पर लेकर रात की गाडी से शहर के लिए निकाल गया था अंशुल ने ही बाइक से बस स्टैंड लेजाकर बालचंद को शहर जाने वाली गाडी मे बैठाया था वापस घर आते आते उसे रातके ग्यारह बज गए थे.... अंशुल जब घर आया तो पदमा ने उसकी और खाने की थाली बढ़ाते हुए खाने के लिए कहा जिस पर अंशुल ने खाना लेते हुए वहीं बैठकर खाना खाने लगा...
कुछ देर बाद पदमा अपने रूम मे चली गई और अंशुल भी खाना खाने के बाद अपनी माँ पदमा के पीछे पीछे उसके रूम मे आ गया और इस बार अंशुल ने दरवाजा बंद किया... रात के बारह बज रहे थे..... इस बार जो दरवाजा बंद हुआ तो सुबह भी नहीं खुला.... रात को बारह बजे बंद हुआ दरवाजा रात और दोपहर निकलने के बाद शाम के 6 बजे खुला....
अंशुल अपनी माँ पदमा के रूम से निकलकर अपने रूम मे चला गया और थोड़ी देर बाद पदमा भी अपने रूम से निकलकर घर के कामो मे लग गई....
रात करीब आठ बजे ज़ब अंशुल नीचे आया तो टीवी पर गाने चल रहे थे पदमा रसोई मे बर्तन साफ करके उन्हें रख रही थी तभी टीवी पर एक गाना चला जिसकी वॉल्यूम अंशुल ने बढ़ा दी और अपनी माँ पदमा का हाथ पकड़कर रसोई से बाहर ले आया और आँगन मे पदमा की नंगी कमर मे अपना एक हाथ डालकर अपने सीने से लगा लिया और टीवी मे चल रहा गाना गुनगुनाते हुए पदमा के साथ सालसा डांस की तरह ही अपने माँ पदमा को बाहों मे भरे इधर से उधर होने लगा करने लगा...
ओ हंसिनी..... मेरी हंसिनी.....
कहाँ उड़ चली....
मेरे अरमानों के पंख लगाके
कहाँ उड़ चली....
आजा मेरी सांसों में महक रहा रे तेरा गजरा......
आजा मेरी रातों में लहक रहा रे तेरा कजरा.......
हो आजा मेरी सांसों में महक रहा रे तेरा गजरा......
हो आजा मेरी रातों में लहक रहा रे तेरा कजरा.....
ओ हंसिनी..... मेरी हंसिनी......
कहाँ उड़ चली
मेरे अरमानों के पंख लगाके
कहाँ उड़ चली.......
पदमा ने अपने दोनों पैर ज़मीन से उठा लिए थे और अब वो अंशुल की बाहों मे थी.. कम हाइट और वेट के कारण अंशुल आसानी से अपनी माँ पदमा को अपने बाहों मे उठाये गाना गुनगुनाते हुए आँगन मे घूम रहा था वहीं पदमा मुस्कुराते हुए अपने बेटे के इस रोमेंटिक अंदाज़ पर मन्त्रमुग्ध होकर एकटक उसकी आँखों मे अपने लिए प्रेम और कामरस की झलक पाकर बहक रही थी अंशुल पदमा को गाना गुनगुनाते हुए आँगन मे रखे सोफे की तरह ले जाने लगता है.......
देर से लहरों में कमल संभाले हुये मन का......
जीवन ताल में भटक रहा रे तेरा हंसा......
हो देर से लहरों में कमल संभाले हुये मन का......
हो जीवन ताल में भटक रहा रे तेरा हंसा.......
ओ हंसिनी..... मेरी हंसिनी......
कहाँ उड़ चली......
मेरे अरमानों के पंख लगाके
कहाँ उड़ चली... कहाँ उड़ चली... कहाँ उड़ चली....
गाना ख़त्म होते होते अंशुल ने अपनी माँ पदमा को सोफे पर लिटा दिया था और खुद उसके ऊपर आ चूका था और उसकी बिखरी हुई जुल्फों को संवारते हुए गाने की समाप्ति पर अंशुल ने अपनी माँ पदमा के होंठो को अपने होंठों की गिरफ्त मे लेकर चूमना शुरु कर दिया था जिसमे पदमा अपने दोनों हाथ अंशुल के गले मे डाल कर उसका पूरा साथ दे रही थी और भर भर के अपने लबों से मधुशाला का प्याला अंशुल के मुँह मे उड़ेल रही थी.. टीवी पर गाना बदल गया था और इस बार एक नया गाना बजने लगा था जिसने दोनों की भावनाओं को और भी कामुक बनाने का काम किया...
भीगे होंठ तेरे.... प्यासा दिल मेरा....
लगे अब्र सा.... मुझे तन तेरा....
जम के बरसा दे.... मुझ पर घटायें....
तू ही मेरी प्यास..... तू ही मेरा जाम.....
कभी मेरे साथ कोई रात गुज़ार.....
तुझे सुबह तक मैं करूँ प्यार.....
वो ओ ओहो....
वो ओ ओहो.....
वो ओ ओहो.....
वो ओ ओहो....
करीब 10-15 मिनट इसी तरह पदमा और अंशुल एकदूसरे के मुख का स्वाद लेते रहे पदमा तो रह रह कर अंशुल के होंठो को अपने दांतो से काट लेटी लेकिन अंशुल बड़े आराम और प्रेम से पदमा के होंठो को चूमता और प्यार करता.. दोनों की जीभ भी एकदूसरे के जीभ से कुस्ती कर रही थी जिसमे पदमा को विजेता बनाया जा सकता था पदमा ने जब अंशुल के होंठ को दांतो से खींचते हुए काटा तो अंशुल के मुख से अहह निकाल पड़ी और वो अपनी माँ पदमा को झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोला - माँ.... आराम से ना.... आप तो जंगली बन जाती हो....
पदमा मुस्कुराकर वापस अंशुल के मुँह को अपनी तरफ खींचती हुई बोलती है - अच्छा बाबा... Sorry.... माफ़ कर दो....
और फिर वापस दोनों मे प्रगाड़ चुम्बन बन जाता है जिसमे वापस दोनों बंध जाते है.. अंशुल बड़े प्यार अपनी माँ पदमा के गुलाबी लबों पर अपने होंठों को रखता और चूमने लगता है वहीं पदमा इस बार भी अंशुल पर रहम नहीं खाती और फिर से उसे किसी भूखी शेरनी की तरह चूमने लगती है अंशुल अपनी माँ के इस रूप से भली भाति परिचित था और उसे भी पदमा के इस तरह से प्यार करने पर मज़ा आता था...
दोनों का चुम्बन अभी शुरु हुए कुछ देर ही हुई थी की दरवाजे पर किसीके आने की दस्तक हुई...
अंशुल ने दरवाजे की बेल सुनी तो पदमा से चुम्बन टूट गया और पदमा कामरस के रसातल से बाहर निकलकर क्रोध की अग्नि मे प्रवेश करती हुई बड़बड़ाई - पत्ता नहीं कौन मादरचोद इस वखत दरवाजा पिट रहा है..
ये कहते हुए पदमा अंशुल के नीचे से निकलकर दरवाजे की ओर चली गई.. अंशुल रसोई मे जाकर पानी पिने लगा उसने आज से पहले भी बहुत बार पदमा के मुँह से गन्दी गन्दी गाली सुनी थी पदमा का ये चरित्र केवल अंशुल के आगे ही उजागर था ओर अंशुल भी कभी कभी पदमा के साथ उसी अंदाज़ मे गली गलोच कर लिया करता था जब वो दोनों अकान्त के पलो मे होते थे दोनों का व्यभिचार किसी के सामने अब तक नहीं आया था ओर दोनों ने ही इसे छिपाने के लिए बहुत प्रयास किये थे जिसके कुछ नियम भी दोनों ने बना लिए थे....
पदमा ने दरवाजा खोला था सामने बालचंद खड़ा था पदमा बालचंद को देखते ही आश्चर्य मे पड़ गई बालचंद अंदर आया तो पदमा दरवाजा बंद करते हुए अंदर आकर बालचंद से पूछने लगी - वापस तबादला हो गया तुम्हारा?
बालचंद ने जूते उतारते हुए जवाब दिया - इतनी आसानी से कहा.... उसके लिए तो अब बहुत पापड़ बेलने पड़ेंगे.. शनिवार इतवार ओर त्यौहार के चलते पुरे 4 दिन का लम्बा अवकाश मिला है सोचा घर ही चला आउ....
पदमा को ये सुनकर मन ही मन त्योहारों ओर शनिवार इतवार पर गुस्सा आ रहा था ओर बालचंद पर भी गुस्सा आ रहा था की उसने अचानक आकर उसकी ओर उसके बेटे की रासलीला मे खलल डाला था.... लेकिन उसने ऊपर मन से बालचंद को कहा - अच्छा किया.... ओर अंदर चली गई...
बालचंद ने पदमा से पूछा - कहा है तुम्हारा लाडला? अभी भी अपने कमरे मे ही बिस्तर तोड़ रहा होगा....
पदमा इतना सुनकर गुस्से से तिलमिला गई ओर बालचंद पर चिल्लाती हुई बोली - सांस तो ले लो... आते ही मेरे बच्चे पर चढ़ना जरुरी है? जब देखो उसे ताना मारते रहते हो.. ऐसा भी क्या बिगाड़ा है तुम्हारा मेरे बच्चे ने? तुम्हे तो वापस आना ही नहीं चाहिए था.. वहीं कहीं पड़े रहते तो अच्छा था....
इस बार बालचंद पदमा का गुस्सा देखकर कुछ नहीं बोल पाया चुपचाप कपडे बदल कर खाना खाने बैठ गया वहीं अंशुल बालचंद के अंदर आने से पहले ही उसकी आहट पाकर ऊपर अपने कमरे मे जा चूका था ओर पदमा ना चाहते हुए भी बालचंद के साथ बैठी थी पदमा ने बालचंद के खाने मे दवा मिला दी थी जिससे बालचंद जल्दी ही नींद के आगोश मे चला गया जिसके बाद पदमा भी अंशुल के रूम मे चली गई ओर दरवाजा बंद कर लिया....