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Incest आशु की पदमा

moms_bachha

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अध्याय 5
सुरीली के सुरु



आधी रात ढल चुकी थी मगर नयना की आँखों में नींद का नमोनिशान तक नहीं था, होता भी कैसे उसका प्यार भरा दिल जो टूट चूका था.. उसकी पहली नज़र की मोहब्बत बेवफा निकली थी, मोहब्बत तो मोहब्बत उसकी अपनी माँ तक ने उसके साथ विश्वासघात किया था.. नयना कैसे उन दोनों की उस बेशर्मी भारी हरकत को भूल सकती थी? क्या लाज़वन्ति को मालूम नहीं था की वो अंशुल से कितना प्यार करती है? और क्या अंशुल नहीं जानता था की लाज़वन्ति उसकी माँ है? फिर कैसे उन दोनों ने नयना के साथ इतना बड़ा धोखा कर लिया? नयना अपने बिस्तर पर पेट के बल लेटी हुई अपनी लूटी हुई मोहब्बत का मातम मना रही थी और सोच रही थी की क्या मोहब्बत करना गलत है? और गलत है तो फिर क्यों मोहब्बत सजा नहीं होती? मोहब्बत को सरे बाजार पत्थर मारकर क्यों ख़त्म नहीं कर दिया जाता? मजनू को भी तो वहीं सजा मिली थी? क्यों मोहब्बत का गला घोंटकर नहीं मार डाला जाता?

मोहब्बत अगर कोई इंसान होता तो उससे हिसाब भी लिया जा सकता था मगर मोहब्बत तो एक अहसास है एक लगाव है जिसमे मोह और स्नेह की अपार मात्रा मिली होती है और जो शाश्वत होती है जिसमे वासना की कोई मिलावट नहीं होती! मोहब्बत क्या किसी के बस में है? क्या इश्क़ हर चीज सोच समझकर किया जाता है? अगर सोच समझके किया जाता है तो वो भला कैसे इश्क़ है? रात के उस वक़्त ऐसे ही ख्यालों का सामना करती नयना अपने तकिये को अपने सीने से लगाए अपने आप से मन ही मन बाते किये जा रही थी.. और उसके फ़ोन से जुड़े इयरफोन के तार उसके दोनों कानो में लगे हुए थे जिनपर रेडियो का एक प्रोग्राम जख़्मी दिल चल रहा था एक रेडिओ जोकी बेहद दर्द भारी आवाज में टूटे दिल और प्यार में नाकाम आशिक़ो का हाले बयान सुना रहा था जो नयना के जख्मो पर मरहम की जगह नमक का काम कर रहा था.. अपनी दर्द भरी बात ख़त्म कर अभी अभी एक गाना शुरू हुआ था....

अगर दिल गम से खाली हो तो जीने का मज़ा क्या है
ना हो खून-ए-जिगर तो अश्क़ पिने का मज़ा क्या है
ना हो खून-ए-जिगर हाँ हाँ
ना हो खून-ए-जिगर तो अश्क़ पिने का मज़ा क्या है
मुहब्बत में ज़रा आंसू बहाकर हम भी देखेंगे
मुहब्बत में ज़रा आंसू बहाकर हम भी देखेंगे
तेरी महफ़िल में किस्मत आज़मा कर हम भी देखेंगे
अजी हाँ हम भी देखेंगे

इस गाने ने नयना के नयनों से नीर की वर्षा आरम्भ कर दी थी एक के बाद एक आंसू की बुँदे उसके कजरारे कारे मतवारे कटीले साजिले नयनों के अंतरस्थल से बाहर की ओर आ रहे थे साथ में ला रहे थे अंशुल की बेवफाई का दर्द.. ना जाने ऐसी कितनी राते पिछले दो महीनों में उस पागल लड़की ने इसी तरह गुज़ार दी थी! हाय इतनी मासूम लड़की का इतना भारी दुख अभी तक कोई भी क्यों नहीं समझ पाया था? उसने उस दिन के बाद से किसी से हंस बोल कर बाते नहीं की थी किसी से अपने मन की बाते नहीं की थी... लाज़वन्ति से भी उसने कोई शिकायत नहीं की थी ना ही उसने लाज़वन्ति को उसके किये के लिए धुँत्कारा था.. वो आखिर लाज़वन्ति से शिकायत भी क्या करती? क्या लाज़वन्ति को सब नहीं पत्ता था? लाज़वन्ति ओर नयना के बीच तो सब जैसे पहले था वैसे ही अब था, हां नयना ने लाज़वन्ति से बात करना जरुर बंद कर दिया था अब तो बस ओपचारिक बातों के अलावा दोनों में कुछ भी बाते नहीं होती थी..
नयना जो हमेशा गाने की ताल पर कदमताल करती हुई नाचने लगती थी वो अब गाने के बोल समझने की कोशिश कर रही थी.....

पलकों के झूले से सपनों की डोरी
प्यार ने बाँधी जो तूने वो तोड़ी
खेल ये कैसा रे, कैसा रे साथी
दीया तो झूमें हैं, रोये हैं बाती
कहीं भी जाये रे, रोये या गाये रे
चैन न पाये रे हिया..... वाह रे प्यार, वाह रे वाह

दुःख मेरा दुल्हा है, बिरहा है डोली
आँसू की साड़ी है, आहों की चोली
आग मैं पियूँ रे, जैसे हो पानी
नारी दिवानी हूँ, पीड़ा की रानी
मनवा ये जले है, जग सारा छले है
साँस क्यों चले है पिया....
वाह रे प्यार, वाह रे वाह
रंगीला रे, तेरे रँग में यूँ रँगा है मेरा मन
छलिया रे, ना बुझे हैं किसी जल से ये जलन
ओ रंगीला......

नयना का दुख बदलते गाने के साथ ओर बढ़ता जा रहा था आज जैसे सारे दुख भरे गाने चुन चुन के लाये थे रेडियो वाले ने.. आधी रात को नयना उन्हें सुनते हुए दिल दिल में अंशुल को कोस रही थी ओर उसकी याद में आंसू बहा रही थी.. वो तय कर चुकी थी वो अंशुल को भूल जायेगी मगर पिछले दो महीनों में हर पल उसे अंशुल ही याद आया था.. जब माहिमा वापस गाँव लौटी थी तब भी नयना ने उससे कोई ज्यादा बाते नहीं की थी महिमा ने तो उसके दिल की बाते अच्छे से समझ ली थी मगर उसने नयना के दुख का कारण अंशुल की बेरुखी ही लगाया था उसे कहा पत्ता था उसके दुख का कारण अंशुल की बेरुखी नहीं बेवफाई है....

शीशा हो या दिल हो आख़िर टूट जाता है....
लब तक आते आते हाथों से साग़र छूट जाता है...

आज नयना के मन में वेदना थी उसने पिछले दो महीनों से अंशुल को ना फ़ोन किया था ना ही कोई मैसेज, ना किसीसे उसका हाल पूछा था.. नयना तो जैसे अंशुल से ऊपरी तौर पर मुँह मोड़ ही चुकी थी मगर मन के भीतर? मन के भीतर तो अब भी अंशुल बसा हुआ था मगर क्या कोई ऐसे बेवफा को माफ़ कर सकता है? नहीं नहीं... कभी नहीं.... आज नयना के रुदन में वेदना ओर विरह दोनों थी.. अंशुल से दूर रहने की ज़िद ने उसे अंशुल के लिए और भी उत्सुक कर दिया था जिसने आज विरह का रूप ले लिया था.. नयना का मन उसे सोचने पर मजबूर कर रहा था की क्यों अंशुल ने उसके साथ ये सब किया और क्या अंशुल सच में उसे नापसंद करता है? क्या वो नयना को भूल जाएगा? अगर ऐसा हुआ तो नयना क्या करेगी? क्या नयना अंशुल के बिना जी पाएगी? मगर नयना तो पहले ही तय कर चुकी है की अंशुल को मुड़कर कभी नहीं देखेगी फिर उसके मन में अचानक कैसे ये सवाल उठ रहे है? और कैसे उसे आज अंशुल की इतनी याद आ रही है? आज की रात नयना ने अपने जज्बातों से लड़ते हुए बिताई थी....

लाज़वान्ति को नयना के स्वभाव में बदलाव अब तक समझ नहीं आया था उसे कुछ अलग महसूस हुआ था मगर लाज़वन्ति नयना को समझने में नाकाम थी.. शायद इसलिए की वो नयना का दर्द उसकी आँखों से पढ़ पाने में असमर्थ थी क्या ऐसा इसलिए था कि नयना लाज़वन्ति कि असल औलाद नहीं थी? हो भी सकता है.... जब प्रभती लाल ने लाज़वन्ति से ब्याह किया था तब नयना 3 बरस कि थी और अपने पीता प्रभती लाल के पास ही रहती थी और ब्याह के बाद लाज़वन्ति ने ही उसे पाला पोसा था. लाज़वन्ति ने कभी नयना से सौतेली माँ का व्यवहार नहीं किया था मगर वो नयना के मन कि बात बिना उसके कहे जान लेने में असफल थी.. दिन अपनी रफ़्तार से बीत रहे थे और अब नयना के ह्रदय में जो पीड़ा थी दुख था अंशुल की बेवफाई का उसने विराह का रूप धारण कर लिया था वो अंशुल के साथ ब्याह करके रहना चाहती थी मगर अब अंशुल का मुँह देखना भी उसे गवारा नहीं था वो अकेली विरह आग में जल रही थी.....

प्रभती लाल को नयना का दुख साफ साफ दिख रहा था उसने कई बार नयना से उसका मन जानना चाहा पर नयना ने कभी मन की बात किसी के आगे नहीं खोली.. वो जिस विरह की अग्नि में जल रही थी वो शायद उसको खुद भी समझ नहीं आ रहा था.. अगहन का महीना शुरू हो चूका था और अब उसकी मन्नत कबूल होने का वक़्त भी नज़दीक था नयना को तो जैसे उस मन्नत पर यक़ीन ही नहीं रह गया था उसे तो जंगल का पेड़, बुढ़िया की बाते अपनी मन्नत सब मज़ाक़ ही लगा रहा था..

चन्दन की शादी आराम से निपट गई थी महिमा धन्नो के घर में खुशियाँ लेकर आई थी चन्दन और महिमा का मिलन दोनों की जिंदगी सवारने का काम कर रहा था और उसके बीच प्रेम का संचार कर रहा था दोनों आपसी जिंदगी में खुशहाल थे धन्नो भी महिमा से सुखी थी सब अच्छा चल रहा था अब तक महिमा में किसी को कोई शिकायत का मौका नहीं दिया था ना ही चन्दन ने कभी महिमा मान घटने दिया था वो तो जैसे पलकों पर सजाने लगा था महिमा को.... चन्दन और महिमा नजदीकी ने चन्दन और सुरीली का रिस्ता ख़त्म ही कर दिया था आज पुरे दो महीने से ज्यादा का समय बीत चूका था जब चन्दन सुरीली से प्रेम के पल में मिलने आया था सुरीली को जिसका अंदेशा था वहीं सब उसके साथ घाट रहा था मगर अब कौन क्या ही कर सकता है? ये तो होना ही था सुरीली पहले से होने वाली इस हक़ीक़त से रूबरू थी सो उसको भी चन्दन से दूरी का ज्यादा दुख नहीं हुआ.....

अंशुल ने भी जैसे घर से निकलना बंद कर दिया था उसके इम्तिहान का वक़्त भी नजदीक आ रहा था सो उसका सारा ध्यान अब किताबो में ही रहता था पदमा की याद को भूलाने के लिए उसके किताबो को चुना था. पदमा अब तक गुंजन के पास थी बीच में एक बार पदमा अंशुल के साथ घर आई थी लेकिन कुछ दिनों के भीतर ही उसे गुंजन के पास वापस जाना पड़ा.. गुंजन की तबियत पदमा के रहते बेहतर रहती थी जिसके चलते पदमा ने गुंजन के पास थोड़े और दिन रहने का फैसला किया था..

नयना जहा अंशुल के विराह में जल रही थी ठीक उसी तरह अंशुल भी पदमा के विराह में जल रहा था दोनों ही अपने मन की बाते किसीको बटाने में असफल थे और अपने अपने दिल की बात दिल में ही दफन करके बैठे थे अंशुल पदमा से मिलने भी जाता तो उसे एकान्त के वो दो मीठे पल पदमा के साथ नहीं मिल पाते जिनमे वो पदमा से अपने दिल की बाते कह सकता था, अंशुल भी अब अकेला हो चूका था पदमा के अलावा उसके दिल में अब कोई नहीं बस सकता था. अंशुल के प्यास अपनी शारीरिक भूख मिटाने के लिए धन्नो थी मगर उसने चन्दन के ब्याह के बाद कभी धन्नो के साथ सम्बन्ध नहीं बनाये ना ही सुरीली का रुख किया. उसे अब सिर्फ पदमा का प्रेम ही संवार सकता था.. अंशुल ने पदमा के दिल पर और प्रगाड़ पहचान बनाने के लिए आखिरी इंतिहान की तयारी शुरू कर दी थी पहला इम्तिहान तो उसने जैसे तैसे निकाला था मगर ये दूसरा और आखिरी बेहद कठिन और जरुरी था अंशुल के लिए.. महीनों से अंशुल इसकी तयारी कर रहा था और पिछले कुछ दिनों से और ज्यादा जोर लगाकर घुसा हुआ था दिन रात बस किताबें ही उसके लिए जरुरी थी.. महिमा अंशुल को खाना दे जाया करती थी और दोनों में देवर भाभी वाली नोक झोक भी होती थी महिमा कभी कभी अपने मन की बाते करती हुई उससे नयना को अपनी दुल्हन बना लेने की बात कहती तो अंशुल चुप हो जाता... उसके पास शब्द न होते महिमा की बात का जवाब देने के लिए.. कभी कभी धन्नो आती थी मगर अंशुल अब धन्नो के साथ व्यभिचार करने से इंकार कर देता था और धन्नो को बिना देह का सुख भोगे वापस जाना पड़ता था....

रात की किताब के पन्ने पलटते हुए कब अंशुल को नींद आ गई थी कहा नहीं जा सकता सुबह के 11 बज रहे थे और बाहर से किसी के चिल्लाने का शोर आ रहा था जिससे अंशुल की नींद खुली..

अरे भाईसाब आप समझते क्यों नहीं? मैं नहीं जा सकता.. मुझे वापस जाना है....
अरे ऐसे कैसे वापस जाना है भाई? कल तय हुआ था ना सब कुछ? फिर वापस क्यों जाना है? हम पैसे भी तो दे चुके है तुम्हारे मालिक को..
अरे भाईसाब पैसे दिए तो वापस ले लीजियेगा उनसे मगर में नहीं जा सकता.. मेरे घर में एमरजेंसी है मेरी बीवी की डिलेवरी होनी है अभी और हमें तुरंत वहा जाना है.. आप ये गाडी की चाबी रखिये... कोई और ड्राइवर बुला लीजियेगा मालिक को कहकर..
पर उन्हीने तो तुम्हे भेजा है और कोई है नहीं उनके पास अभी.. सिर्फ गाडी का क्या मैं आचार डालू जब कोई चलाने वाला ही नहीं है...
क्या हुआ चन्दन भईया? इतना क्यों परेशान हो?
अरे आशु क्या बताऊ... वो अमीन के यहां से गाडी बुक की थी हुसेनीपुर जाने के लिए.. ये ड्राइवर गाडी ले तो आया अब जाने से मना कर रहा है.. अमीन से बात की तो कह रहा है अभी कोई और ड्राइवर नहीं है.. अब तू ही बता क्या करू?
भईया बस से भी तो जा सकते हो?
अरे आशु कैसी बाते कर रहा है.. वो रामखिलावन भी मोटर से आ रहा है मैं बस से जाऊंगा तो क्या अच्छा लगेगा? मेरा छोडो तुम्हारी भाभी की क्या इज़्ज़त रह जायेगी अपने माइके में? सब तो उसे ताने ही देंगे..
अरे भईया आप भी इन सब चककरो में पड़ते हो?
ये समाज है आशु.. यहां ऐसी बातों में पड़े बिना कोई पार नहीं हो पाया है.. अब एक ही दिन की तो बात है कल सुबह तो वापस भी आ जायेगे मगर ये जाने को त्यार ही नहीं...
अरे भाईसाब मैं कब से समझा रहा हूँ मेरे भी घर में काम है मुझे भी जाना है मगर ये भाईसाब तो सुनने को त्यार ही नहीं.. ना ही चाबी लेते है ना ही जाने देते है.. मैं कब से बोल रहा हूँ सुनते ही नहीं....
ठीक है लाइये आप मुझे चाबी दीजिये.. मैं चला जाऊंगा आप जाइये अपनी बीवी का ख्याल रखिये..
बहुत बहुत धन्यवाद आपका भाईसाब.... लीजिये...
तू गाडी चलाना जानता है आशु?
हां थोड़ी बहुत....मगर आप चिंता मत कीजिये आपको सही सलामत हुसेनीपुर पहुंचा दूंगा..
वाह आशु तूने तो मुश्किल आसान कर दी चल तू नहा ले और जल्दी से त्यार होकर आजा तब तक मैं तेरी भाभी को देखता हूँ अबतक त्यार हुई या नहीं..

अंशुल नहाधो कर त्यार हो चूका था आज स्पोर्ट्स शू के ऊपर नेवी ब्लू शर्ट और लाइट ब्लू जीन्स में वो बेहद आकर्षक लग रहा था, पदमा होती तो पक्का काला टिका लगा देती और कहती की तुझे किसी की नज़र ना लगे.. चन्दन हाथ में सामान लिए बाहर आया और गाडी में सामान रखकर आगे अंशुल के साथ बैठ गया कुछ देर बाद महिमा भी आ गई और पीछे सीट पर बैठ गई.. अंशुल गाडी चलाने लगा.. दो घंटे लम्बा सफर शुरू हो चूका था..

गाडी में चन्दन और अंशुल अपनी ही आपसी बातों में उलझें हुए थे उन्हें पीछे बैठी महिमा की जैसे खबर ही ना थी महिमा भी बेचारी खिड़की से बाहर देखती हुई अपनी ही दुनिया में खोई थी चन्दन के साथ उसका वैवाहिक जीवन सुखद बीत रहा था और आगे भी वैसे ही रहने की कामना थी आज उसकी बड़ी बहन मैना और बहनोई रामखिलावन के 4 साल पुत्र का जन्मदिन था और उन दोनों ने इस बार जन्मदिन बंसी और विद्या के यहां मानाने का तय किया था जिसमे शामिल होने चन्दन और महिमा जा रहे थे और उनके साथ अंशुल भी जुड़ चूका था.... रास्ता बेहद खूबसूरत था घनी आबादी से इतर एक पक्की सडक की दाई और लहलाहते खेत और खेतो के पार जंगल तो बाई तरफ बहती नदी और रह रह कर दिखाई देती पर्वतश्रखला इस मनोरम मनोहर दृश्य को और सुन्दर बना रही थी..

बंसी के घर आज चहल पहल ज्यादा थी लगता था की किसी आयोजन की तयारी चल रही है और घर के कुछ लोग उसके लिए त्यारियों में जूटे है.. रामखिलावन घर के बाहर तम्बू बंधवा रहा था तो बंशी हलवाई का काम देख रहा था, विद्या ने आज सारे गाँव को न्योता दिया था गाँव की लड़कियों ने मंडली बना ली थी और नैना के साथ आँगन में बैठकर ढोलक की ताल पर देहाती सही गलत गीत गाते हुए नाच रही थी.. उन लड़कियों ने नयना को भी जबरदस्ती सरपंच जी की इज़ाज़त लेकर अपने साथ मिला लिया था.. बड़ी मुश्किल से आई थी नयना उन लड़कियों के साथ अपने घर से निकलकर.. बंसी के घर आते आते चन्दन और महिमा को दिन के 2 बज चुके थे आज अंशुल ने गाडी बड़ी ही धीरे चलाई थी जैसे वो यहां आना ही नहीं चाहता था मगर किसी मज़बूरी में उसे यहां आना पड़ा था..

महिमा आते ही अपनी बड़ी बहन मैना के साथ लड़कियों के झुंड में बैठ गई और चन्दन रामखिलावन से मिलकर उसी के साथ बाहर तम्बू के नीचे पड़ी हुई दो चार कुर्सीयो पर आसान जमाकार बैठ गया अंशुल भी वहीं बैठा था.. कुछ देर में चाय भी आ गई और सब चूसकारिया लेते हुए इधर उधर की बातें करने लगे.. अंशुल जा मन कुछ उदास था जैसे उसे कोई बाते खाये जा रही हो.. अगर नयना से उसे यहां देख लिया तो फिर से वो उसके पीछे पड़ जायेगी.. उसे एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ेगी और फिर उसके साथ ब्याह शादी की बाते करेगी. नयना बहुत प्यारी है सुन्दर है और अंशुल के दिल में उसके लिए प्यार भी है लेकिन अंशुल चाहकर उसके साथ ब्याह नहीं कर सकता ये बाते उसे अंशुल कितनी बार समझा चूका है मगर वो नादान लड़की समझने को त्यार नहीं है तो अंशुल क्या करे? अंशुल को यही बाते सता रही थी की अगर नयना ने उसे देख लिया तो क्या होगा? उसने अपनी चाय को हाथ तक नहीं लगाया था वो सोच रहा था की उसने यहां आकर कोई गलती तो नहीं कर दी है? तभी रामखिलावन ने पूछा.... अरे भाई तुम किस ख्याल में खोये हो? चाय नहीं पीते क्या?
चन्दन ने कहा- क्या बात है आशु? कहा घूम हो? चाय भी ठंडी हो गई.. कुछ बाते है?
अरे.. नहीं नहीं चन्दन भईया वो बस ऐसे ही... बस अभी चाय पिने का मन नहीं है..
तो क्या पिने का मन है? बता दो भाई... एक बाते ओर सब इंतज़ाम हो जाएगा... रामखिलवान ने हंसकर कहा...
जिसका मन वो पीना अभी ठीक नहीं रहेगा... अंशुल ने कहा तो चन्दन और रामखिलावन दोनों एक साथ हंस पड़े और रामखिलवान बोला - अरे भाई क्या ठीक नहीं रहेगा.... सारा काम तो हो ही चूका है और बाकी सब देख रहे है.. मैं हरिया को बोल देता हूँ सब संभाल लेगा.. शाम तक तो वापस आ जायेगे.. चलो... चन्दन ने भी इस बार अपने मन की बाते बाहर निकाल ली और बोला - आशु चल... नहर के पास चलकर व्यवस्था करते है कुछ..
नहीं... नहर के पास नहीं.... आशु ने कहा...
रामखिलावन - नहर नहीं... तो जंगल ठीक रहेगा..

चन्दन रामखिलावन और अंशुल गाडी में बैठकर जंगल की तरफ चले गए और एक खाली जगह देखकर गाडी लगा दी.. रामखिलावन पैसे से अध्यापक था मगर पार्टी करने का शोक उसे बहुत था मगर चुकी वो समाज में सम्मानित पद पर था सो ये सब छुपकर करना ही सही समझता था.. रास्ते से शराब और पानी और चखना सब चन्दन ले आया था. तीनो गाडी में बैठे शराब के पेग हाथ में लिए स्पीकर पर नब्बे के दशक का कोई रोमेंटिक गाना सुन रहे थे और आपस में बाते कर रहे थे... आशु आज किसी और मूंड में था उसने जरुरत से ज्यादा शराब पी ली थी और उसके जहन अब उसे अपने मन की बाते कह डालने को बोल रहा था जिसे उसने सबसे छीपा रखी थी.. शराबखोरी और हंसी मज़ाक़ में कब शाम के छः बज गए उन्हें पत्ता ही नहीं चला.. जब बंसी ने रामखिलावन को फ़ोन किया तब उन्हे अपनी गोश्ठी छोड़कर वापस घर जाना पड़ा.. इस वक़्त रामखिलावन और चन्दन तो अपने अंदर की शराब को छुपा सकते थे मगर अंशुल के लिए ऐसा करना मानो असंभव था.. गाँव के लोग अब घर जे बाहर बने तम्बू के नीचे जुटने लगे थे और हरिया ने प्रमोद मदन और नरेश को कहकर सबको खाने के लिए बैठा दिया था खाना शुरू हो चूका था एक तरफ मर्दो के बैठने की व्यवस्था थी तो दूसरी तरफ औरतों की... अंशुल सबसे नज़र बचा कर छत ओर आ गया था ताकि किसी को उसके शराब पिने की बाते का पत्ता न चल सके..... बड़ी अजीब बात थी मगर अंशुल को नयना की याद आने लगी थी शराब का नशा था या दिल का हाल... उसकी नज़र छत से नीचे देखती हुई नयना को तलाश रही थी मानो वो उसे देखना चाहता हो.. कुछ देर पहले तक अंशुल जिससे छिपने की कोशिश कर रहा था अब उसी को देखने की कोशिश कर रहा था.....
रात के नो बज चुके थे और गाँव के लोग खाना खा चुके थे सभीने अब केक काटने की तयारी शुरू कर दी थी.. आँगन में बिचौबीच एक टेबल रखा गया और उसके ऊपर एक केक था सभी आपस में एक दूसरे को देखकर कह रहे थे अरे जरा इसे बुला ला... जरा उसे बुला ला... तभी महिमा ने पास खड़ी नयना से कहा - अरे नयना जा छत पर तेरे जीजा जी के दोस्त है जरा उन्हें नीचे बुला ला... महिमा जानबूझ कर अंशुल का नाम नहीं लिया था मानो नयना को सरप्राइज देना चाहती हो..

अंशुल छत पर बिछी चारपाई पर उल्टा लेटा हुआ एक हाथ से चारपाई के नीचे फर्श पर पानी के गिलास को घुमा रहा था मानो उसे ऐसा करने में मज़ा आ रहा हों. तभी नयना छत पर आ गई और मध्यम रौशनी में पीछे से अंशुल को बोली - सुनिए.... आपको नीचे बुला रहे है... केक कटने वाला है.. जल्दी आ जाइएगा.. नयना को इस बाते का इल्म नहीं था की वो जिससे ये बातें कह रही है वो और कोई नहीं बल्कि अंशुल ही था...
अंशुल ने नयना की सुनी तो वो पीछे मुड़ गया और नयना को देखने लगा.... नयना वापस जाने के लिए मुड़ी ही थी की उसकी नज़र अंशुल के चेहरे पर पड़ गई..

पहले की बाते होतो तो इस वक़्त नयना अंशुल के सीने से लगा जाती और उसे चूमकर एक बार फिर अपने प्यार का इज़हार करते हुए उसे शादी के लिए मनाती मगर अब तो जैसे नयना को अंशुल के चेहरे से भी नफरत हों रहो थी उसे अंशुल का चेहरा देखते ही लाज़वन्ति के साथ उसका व्यभिचार याद आ गया और वो बिना कुछ बोले अपना मुँह फेरकार नीचे चली गई जैसे वो अंशुल को जानती ही ना हों.. अंशुल जिसे कब से ढूंढ़ रहा था वो सामने आई भी तो इस तरह जैसे कोई अजनबी हों और ये क्या? जो पहले उससे चिपकी रहती थी उसने आज देखकर भी उसे अनदेखा कर दिया.... आखिर नयना ने ऐसा क्यों किया? क्या वो इस मध्यम रोशनी में अंशुल का चेहरा ठीक से नहीं देख पाई थी? नहीं नहीं... रौशनी इतनी भी कम नहीं की नयना को कुछ दिखाई ना दिया हों पर नयना ने ऐसा किया क्यों? अंशुल का नशा अब थोड़ा हल्का हों चूका था मगर उसके दिमाग में अब यही बातें घूम रही थी आज वो चाहता था की नयना उसे छेड़े और प्यार भारी बातें करके उसे उसी तरह देखे जैसे पहले देखती थी मगर इस बार तो जैसे नयना के स्वाभाव और व्यवहार में अंशुल के लिए उल्टा बदलाव आ गया था....

अंशुल नीचे आ जाता है जहाँ आँगन में रामखिलावन और मैना अपने बच्चे को गोद में लिए केक काट रहे थे वहीं सब ताली बजाकर बच्चे को हैप्पी बर्थडे कह ररहे थे और छोटे मोटे उपहार दे रहे थे.... अंशुल की नज़र अब भी नयना पर टिकी थी आज उस लड़की ने जिस तरह से अंशुल को नज़रअंदाज़ किया था उससे अंशुल के दिल इतना जोर से दुखा था जैसे किसी ने उसका दिल निकाल लिया हों और अपने पैरों से रोन्द दिया हो. अंशुल सामने था मगर आज नयना ने उससे बात करना और मनाना तो छोड़ उसे देखना भी जरुरी नहीं समझा.... आज इस मासूम सी भोली भाली लड़की का दिल पत्थर क्यों हों गया था? कहा नहीं जा सकता.. उसके दिल में अब तक अंशुल के लिए प्यार था और कल तक तो वो उसके ग़म में दर्द भरे गाने सुन रही थी फिर अचानक से इस तरह का व्यवहार वो भी अपने दिल के शहजादे के लिए? नयना अभी तक वो सब नहीं भूल पाई थी जो उसने देखा था उसी का परिणाम था की आज वो अंशुल की तरफ देख भी नहीं रही थी जिससे अंशुल का दिल अंदर ही अंदर चिंख चिंख के रोने लगा था आज नयना की बेरुखी ने उसके मन को गहरा आघात पंहुचाया था.. तो क्या वो भी? नहीं नहीं अरे... ये कैसे हों सकता है? वो तो सिर्फ पदमा से प्यार करता है तो फिर आज उसका दिल नयना की बेरुखी पर इतना उदास क्यों था? क्यों उसकी आँख आज सिर्फ नयना को ही देख रही थी? क्यों वो नयना से बाते करना चाहता था? उसे नयना के कुछ बोलने का इंतज़ार था? ये प्यार नहीं है? इसका जवाब मैं कैसे दे सकता हूँ? मैं भी तो नहीं जानता.... अंशुल का मन उसी तरह से व्यथित हों रहा था जैसे पदमा के दूर जाने पर हुआ था तो क्या वो दोनों से? ऐसा कैसे हों सकता है? अंशुल यही तो चाहता था की नयना उसे छोड़ दे और उस लड़की ने उसे छोड़ दिया तो उसे क्यों परेशानी हों रही है?

नयना के दिल में भी एक अलग तिरगी थी उसका आशु उसके सामने था और उसका मन उसे बार बार आशु को अपनी बाहों में भर लेने को कह रहा था और बोल रहा था नयना एक बार आशु को माफ़ किया जा सकता था मगर नयना तो जैसे तय कर चुकी थी की अब अंशुल को अपनी जिंदगी से निकाल बाहर करेंगी चाहे उसे खुद कितनी ही तकलीफो का सामना करना पड़े.. आज नयना के होंठो पर बनावटी मुस्कान थी और वो खिलखिलाकर हंस रही थी और सबसे बतिया रही थी जैसे वो अंशुल को दिखाना चाहती हों की वो उसके बैगर कितनी खुश है मगर उसके मन की हालत तो बस परमात्मा ही जानता था....

सारा कार्यक्रम पूरा हुआ तो नयना ने महिमा से कहा - अच्छा अब चलती हूँ.. सुबह फिर से आउंगी.. मेरे आने से पहले वापस चले मत जाना...
महिमा के बिलकुल पीछे अंशुल खड़ा नयना को देख रहा था मगर मजाल है जो मुँह से एक शब्द भी बोल पाता.. नयना भी सामने ही थी मगर उसने अंशुल को जैसे अजनबी ही मान लिया था बाते करना तो दूर देखना भी जरुरी नहीं समझा और अपने घर के लिए निकल पड़ी.... तीन खेत पार नयना का घर था एक लम्बि सडक और कई छोटी छोटी पगदंडी से गुजरता हुआ रास्ता रात के इस पहर सुनसान था.. महिमा के घर से निकालते ही नयना जब सडक पर आई तो उसकी आँखों से आंसू का झरना बहने लगा.... जिसे उसने कब से रोक रखा था हाय.... उस 19 साल की बेहद खूबसूरत और मासूम लड़की का दिल.... कितना दुख रहा था... अंशुल को नज़रअंदाज़ करना कितना मुश्किल था वो अब जान पाई थी अपनी आँखों से आंसू पोछते हुए उसके कदम जैसे ही खेत की पगदंडी पर पड़े पीछे से किसीने उसका हाथ पकड़ लिया....

नयना ने पीछे मुड़कर देखा तो ये गाँव का ही एक आदमी छगन था उसके साथ और भी दो लोग थे तीनो नयना को घेर के खड़े थे और छगन नैना की कलाई पकडे.....
छोड़ मुझे.....
छोड़ने के लिए थोड़ी पकड़ा है मेरी जान.... छगन ने कहा... नैना उसकी आँखों में हवस देख सकती थी और महसूस कर सकती थी की उनकी क्या मंशा है....
छोड़ मुझे वरना बहुत बुरा होगा.... मेरे पापा सरपंच है जानता है ना तू?
तेरा बाप सरपंच हो या विधायक.... मुझे फर्क नहीं पड़ता... आज तो हम तेरी इस मदमस्त जवानी का रस पीकर रहेंगे मेरी जान.... कहते हुए छगन के साथी ने नैना के दामन से दुपट्टा खींच लिया.... नैना घबराह गई थी... और जोर जोर से चिल्लाने लगी मगर वहा आसपास कोई नहीं था महिमा का घर भी काफी पीछे छूट चूका था तो उसकी मदद के लिए कौन आता? और महिमा के घर में बजते dj की आवाज़ में उसकी आवाज़ कहा सुनाई देती?

मगर जैसे ही छगन ने आगे कुछ करना चाहा पीछे से अंशुल ने उसके सर पर पत्थर दे मारा... छगन वहीं जमीन पर गिर गया, उसके साथ ने जब अंशुल को देखा तो उसे मारने उसकी और दौड़ पड़े.. अंशुल नशे और गुस्से दोनों में था नैना की आँखों में आंसू देखकर उसकी आँखे लाल हों चुकी थी.... अंशुल ने छगन के साथियो को भी उसी तरह से घायल कर दिया और बड़ी बेदर्दी से मारता रहा.. अंशुल उन तीनो को आज मार ही डालता अगर नैना उसे ना रोकती.....

नैना के रोकने पर जैसे अंशुल को होश आया.. और वो नशे में लड़खड़ाते हुए खड़ा होकर नैना को देखने लगा.. नैना की आँखों में आंसू थे उसने अपना दुप्पटा वापस ले लिया था और अंशुल के सामने खड़ी हुई थी मगर कुछ ही देर में अपने आंसू पोछते हुए नैना अंशुल से बिना कुछ बोले वापस अपने घर की तरफ जाने लगी.... अंशुल भी धीरे धीरे उसके पीछे पीछे चलने लगा कुछ दूर जाकर जब नैन ने अंशुल को पीवी आते देखा तो उसका मन कुछ हद तक अंशुल के पिघल सा गया और उसके दिल में वहीं प्यार वापर ऊपर आ गया जिसे नैना ने कहीं नीचे दबा दिया था..
नैना बनावटी गुस्से में हलकी आवाज़ से अंशुल से बोली - मैं यहां से चली जाउंगी.... आप वापस जा सकते हो....
अंशुल नैना के नजदीक आ चूका था उसने नैना को देखकर कहा -नाराज़ हो? आज ब्याह की बाते नहीं करोगी?
नैना - पापा ने मेरा ब्याह कहीं और तय कर दिया है. आज से 21 दिन बाद पूर्णिमा को लग्न है.... वैसे भी इतनी बार आपसे बेज्जत होकर मेरा पेट भर चूका है.. मैं और ज्यादा आपको परेशान नहीं करना चाहती.. मेरी इज़्ज़त बचाने के लिए शुक्रिया... आपको मेरी वजह से जो तकलीफ हुई मैं उसके लिए माफ़ी मागती हूँ.. ये कहकर नैना जाने लगी तो अंशुल ने उसका हाथ पकड़ कर उसे जाने से रोक लिया और एकाएक गुस्से से बोला - कोनसा ब्याह? किसका ब्याह? तेरा ब्याह सिर्फ मेरे साथ होगा समझी तू? जाकर कह देना अपने बाप से.... और तूने लगन के लिए हां कैसे बोल दिया? मुझसे प्यार करती थी न? फिर ये अचानक से एक साथ इतना सब कैसे?
नैना अपना हाथ छुड़वाते हुए - हाथ छोड़िये मेरा.. कहीं के शहजादे नहीं है आप.. जो मैं सारी उम्र बैठकर आपका इंतजार करूंगी.. पापा ने जो तय किया है अब वहीं होगा.... अपने कहा था ना किसी और को देख लू... देख लिया... पड़ोस के गाँव के जमींदार का लड़का है करोडो की जायदाद है उनके पास.. उनके नौकर भी आपसे बड़े घर में रहते है....
अंशुल - साली... एक शब्द और मुँह से निकाला ना जबान खींच लूंगा.. समझी? तू मेरी थी और मेरी रहेगी.. जैसा तय हुआ था वैसा ही होगा... अगहन की पूर्णिमा को तुझे अपनी दुल्हन बनाऊंगा..
नैना - आपको जो करना है आप कर सकते है.... मैं आपकी खोखली बातों से नहीं डरने वाली.. और वैसे भी किसी शराबी और लड़कीबाज़ आदमी के साथ व्याह कराके किसका भला हुआ है जो मेरा होगा? आपने आज जो कुछ किया उसके लिए शुक्रिया.... लेकिन अब उम्मीद करती हूँ वापस आपसे दुबारा कभी ना मुलाक़ात हों.....
कहते हुए नैना ने अपने घर की और कदम बढ़ा दिए और अंशुल वहीं जमीन पर बैठ गया....

दोनों के दोनों अपने मन में कितने उदास और दुखी थे वहीं जानते थे, आंसू तो जैसे रातभर रुके ही ना थे आँखों से... किसका दुख ज्यादा था ये भी कह पाना कठिन था एक तरफ नैना थी जो अंशुल को अपनी जान से ज्यादा प्यार करती थी और उसकी बेवफाई से दुखी होकर उसे भूल जाना चाहती थी मगर भूल ना पाई थी और दूसरी तरफ अंशुल था जिसे अभी अभी अपने प्यार का अहसास हो चूका था और अब वो नैना को पाने के लिए बेताब था.. अंशुल ने सारी रात वहीं बैठकर बिताई थी सुबह होने पर वो वापस महिमा के घर आ गया था और उदासी उसके चेहरे पर किसी अखबार की सुर्खियों की तरह पढ़ी जा सकती थी.. वहीं नैना ने भी अपनी रात कुछ इसी तरह बिता दी थी... मगर आज उसे ख़ुशी हों रही थी अंशुल ने अपने प्यार का इज़हार जो किया था वो उसी वक़्त उसे चुम लेना चाहती थी और कहना चाहती थी की अगर अब अपनी बात से मुकरे तो जान से हाथ धो बैठोगे मगर बेवफाई का गुस्सा ज्यादा हावी था.. नैना अब क्या करे? उसके पास उलझन बेशुमार थी और हल एक भी नहीं..

सुबह सुबह होते होते दोनों को कई बातें समझ आ चुकी थी जिनमें उनकी गलती और नासमझी शामिल थी.. अंशुल ने अंदाजा लगा लिया था की नैना ने उसे लड़कीबाज़ क्यों कहा था.. और क्यों वो उससे नज़र थी वो गलत भी हों सकता था मगर अब क्या कहा जा सकता था.... नैना तो जैसे सुबह आसमान में थी वो सोच रही थी की अंशुल भी उससे प्यार करता है पर उसने कभी जताया नहीं और रात को एकदम से सब कह गया.. मगर उसकी बेवफाई? नयना ने तय कर लिया था की अगर अंशुल उससे माफ़ी मागेगा और वापस वैसी गलती नहीं करेगा तो वो उसे माफ़ जर देगी और बहुत प्यार करेगी.... नयना सुबह महिमा से मिलने निकली तो उसके चेहरे की ख़ुशी आसानी से समझी जा सकती थी मगर अंशुल की तो हवाइया उडी हुई थी...

अरे कहा? मैंने कहा था ना मुझसे मिले बिना नहीं जाना.. नैना ने महिमा से कहा.. नैना कँखियो से अंशुल को देख रही थी जो कुछ उदास और हताश लग रहा था.. वो चाहती थी की अंशुल उससे कुछ बाते करे और उसे मनायेंगे ताकि वो झट से उसे अपने दिल की बाते बताकर अपनी बाहों में लेले... पर अंशुल तो जैसे मूरत बन चूका था उसे कहा ये सब मन की बाते समझ आने वाली थी.. अंशुल बिना नयना को देखे गाडी के आगे की सीट पर बैठ गया जैसे वो लाज़वन्ति के कारण उससे बाते करने से झिझक रहा हों.. और उसीके साथ चन्दन भी बैठ गया महिमा कुछ देर नयना से बाते करती रही फिर आकर वो भी गाडी मैं बैठ गई.... सफर शुरू हों गया नयना की उमीदो पर पानी फिर चूका था....

अंशुल जब घर बहुत तो बालचंद घर पर ही था शायद छुटियो में आया होगा पदमा अभी गुंजन के पास ही थी.. अंशुल बालचंद से बाते करने के मूंड में नहीं था सो उसने बालचंद के सवालों का जवाब हां ना में देना उचित समझा और अपने कमरे में आ गया आज उसे पदमा की याद आ रही थी बालचंद ने खाना बनाया था मगर खाने लायक बना था नहीं ये कहा नहीं जा सकता अंशुल ने उसे देखा तक नहीं था बालचंद ही अकेला खाना खा कर रात को टीवी देखते हुए सोफे पर ही सो गया था अंशुल को नींद नहीं आई थी कुछ दिनों में उसका दूसरा और आखिरी इम्तिहान भी था पढ़ाई तो बहुत की थी मगर आगे क्या होने वाला था कौन जानता है.. उसे नैना की चिंता नहीं थी उसे मालूम था की आसानी को वो आसानी से पा लेगा और नयना खुद भी उससे दूर नहीं होगी आखिर वो कब तक अपने दिल की बात दिल में छुपा कर रखेगी, रात को जो नयना ने कहा था सब झूठ था नयना का कोई लगन नहीं होने वाला था ये बात अंशुल ने लाज़वन्ति से सुबह फ़ोन पर की थी और लाज़वन्ति से कहा था की वो नयना का ख्याल रखे....

आज अंशुल के मन में वासना भी भड़क रही थी.. रात हों चुकी थी चन्दन और महिमा के रहते वो धन्नो के पास भी नहीं जा सकता था और कोई उपाय अपनी वासना को शांत करने का उसके पास था नहीं.. सो उसे सुरीली की कही बाते याद आ गई.. अंशुल न चाहते हुए भी रात को टहलता हुआ सुरीली चाची के घर आ गया जहाँ बाहर रमेश बैठा था.....
अंशुल में रमेश को चिढ़ाते हुए कहा - क्या बात है? आज ढोलक बाहर क्यों बैठा है?
आशु भाई आपसे कितनी बार कहा है हमारा नाम ढोलक नहीं रमेश है रमेश....
अच्छा ठीक है रमेश आज सोये नहीं.. क्या बात है?
अरे भईया वो टीवी बिगड़ गया है देखे बिना हमको नींद नहीं आती.. पापा आज दीदी को लेकर शहर गए है तो मन नहीं लगा रहा है...
क्या हुआ टीवी में?
पत्ता नहीं भईया दिन से ही नहीं चल रहा है...
चलो देखे.. क्या हुआ है तुम्हारी टीवी को?
रमेश अंशुल को घर के अंदर ले आता है... आज सुरीली और रमेश ही घर पर थे ये जानकार अंशुल को अपने इरादे पुरे होने की पूरी सम्भावना नज़र आ गई और वो ख़ुशी से अंदर आ गया..
रमेश उम्र से भले ही 16-17 साल का था मगर उसका दिमाग अभी अभी बच्चों जैसा ही था आलस और कामचोरी तो उसमे कूट कूट के भरी थी उसे कहीं और लगाने में अंशुल को कोई मुश्किल नहीं होती..
सुरीली ने जब अंशुल को देखा तो वो हैरानी से भर गयी मगर उसके दिल में एक लहर भी उठ गई थी.. उसे लगा की आखिरी अंशुल उसके लिए ही आया है चन्दन ने तो अब सुरीली को याद करना भी बंद कर दिया था सो अंशुल का सुरीली के लिए उसके घर आना बहुत हैरानी वाला काम था....

अंशुल ने जब टीवी देखा तो रमेश पर हंसी और गुस्सा दोनों एक साथ आया मगर वो चुप खड़े होकर रमेश को देखने लगा.. सुरीली भी अब तक वहां आ चुकी थी और अंशुल और सुरीली की नज़र टकरा रही थी..
अरे ढोलक.... Sorry रमेश.... टीवी में तो बड़ी बिमारी लगती है ये आसानी से ठीक नहीं होने वाला..
पर भईया.. मुझे बिना टीवी देखे नींद कैसे आएगी..
हम्म एक काम कर सकते है मैं तुम्हारे टीवी को टेम्प्रेरी चला सकता हूँ लेकिन उसके लिए मुंहे कुछ करना होगा...
क्या करना होगा भईया?
उसके लिए मुझे तुम्हारी मम्मी की जरुरत पड़ेगी...
अंशुल ने सुरीली की तरफ देखते हुए आँख मार दी..
ठीक है भईया आप बस टीवी चला दो...
टीवी का स्विच ऑन था पर टीवी के सेटॉप बॉक्स से कनेक्शन वायर हटा हुआ था जिससे टीवी ऑन नहीं हों रहा था जिसे अंशुल ने ठीक कर दिया और टीवी ऑन हों गया..
अरे वाह भईया.... मज़ा आ गया अब में आराम से कार्टून देखते हुए सो जाऊंगा...
ठीक है रमेश ओर एक काम तुम्हे भी करना होगा..
क्या भईया..
टीवी की आवाज़ थोड़ी तेज़ रखना और मैं तुम्हारी मम्मी के साथ अंदर रूम में टीवी ऑन रखने के लिए वायर पकड़ के खड़ा हों जाऊंगा.... सुरीली चाची की आवाज़ आये तो अंदर नहीं आना वरना टीवी फिर से बिगड़ जाएगा...
ठीक है भईया....
अंशुल सुरीली को रूम में ले जाता है और रमेश टीवी की आवाज़ तेज़ करके बाहर टीवी के आगे बैठ जाता और कुछ खाते हुए कार्टून देखने लगता है.... करीब 15 मिनट बाद रमेश के कान में उसकी मम्मी की आवाज़ सुनाई पडती है..
हाय मोरी मईया.... मर गई रे..... आहहहहहहह.....
रमेश आवाज़ सुनकर - क्या हुआ मम्मी?
अंशुल - कुछ नहीं रमेश... वो बस सुरीली चाची के बिल में छोटा सा चूहा घुस गया है तो वो डर गई है....
सुरीली कराहते हुए - हाय रे... चूहा है या अजगर? मेरे बिल का सत्यनाश कर दिया....
कुछ देर बाद रमेश के कान में थप थप छप छप की आवाज़ गुंजने लगी...
रमेश - मम्मी अंदर क्या हो रह है?
सुरीली - रमेश तुम्हारे आशु भईया मेरे साथ नीचे वाली ताली बजा रहे है... अगर ऐसा नहीं करेंगे तो टीवी बंद हों जाएगा....
रमेश - ठीक है मम्मी टीवी बंद मत होने देना...
कमरे के अंदर अंशुल और सुरीली दोनों के बदन पर कपडे नहीं थे और अंशुल सुरीली को नंगा दिवार से चिपकाये उसकी एक टांग उठाकर उसे चोद रहा था और रह रह कर सुरीली के रसीले होंठों का आनंद ले रहा था.. बाहर रमेश अंदर अपनी चुदती मम्मी की हालत से बिलकुल अनजान टीवी देख रहा था...
अंशुल - रमेश सरसो का तेल देना.....
रमेश - क्यों भईया...
अंशुल - वो तुम्हारी मम्मी का पीछे वाला बिल खोलना है इसलिए.... बहुत टाइट है...
रमेश - पर भईया मुझे नहीं पत्ता कहा रखा है.. वो मम्मी को ही पत्ता होगा..
अंशुल ठीक है रमेश तुम अपनी आँखे बंद करो.. जब मैं कहु तभी खोलना...
पर क्यों भईया?
टीवी देखना है या नहीं?
हां भईया..
तो जैसा कह रहा हूँ करो.. सवाल जवाब करोगे तो टीवी बिगड़ जाएगा फिर मुझे मत कहना...
ठीक है भाई कर ली....
अंशुल - जाओ चाची तेल के आओ...
नहीं नहीं आशु मैं ऐसे नंगी बाहर नहीं जाउंगी...
अरे चाची रसोई में ही तो जाना है.. रमेश की आँख बंद है तुम टैंशन मत लो.. जाओ जल्दी तेल ले आओ फिर मैं आपकी गांड का गोदाम बनाता हूँ....
चुप बदमाश.... तू तो पूरा बेशम है....
सुरीली बाहर चली जाती है और रसोई में से तेल ले आती है...
रमेश - भईया आँख खोल लू....
अंशुल - हां खोल लो....
अंशुल ने सुरीली को घोड़ी बनाया हुआ था और खूब सारा तेल उसकी गांड के छेद और अपने लंड पर लगा दिया था... अंशुल का आधा लंड सुरीली की गांड में था और सुरीली के चेहरे से उसकी दशा का अंदाजा लगाया जा सकता था...
अंशुल ने सुरीली चाची के बाल अपने दोनों हाथो में पकड़ लिए थे और अब धीरे धीरे सुरीली की गांड चुदाई कर रहा था... इस दृश्य को देखकर ऐसा लगा रहा था जैसे कोई घुड़सावार घोड़ी की सवारी कर रहा हों....
धीरे धीरे लंड जब गांड में आधा आराम से अंदर बाहर होने लगा तो अंशुल ने जोर का धक्का देकर पूरा लंड गांड के अंदर कर दिया जिससे सुरीली की सिटी पीटी घुल हों गई....
सुरीली चिल्लाते हुए - हाय दइया.... मर गई रे.... आशु निकाल बाहर वापस....
रमेश - क्या हुआ मम्मी?
अंशुल - कुछ नहीं रमेश... तेरी मम्मी बहुत कच्ची है मैं पक्का रहा हूँ... सुरीली चाची बिलकुल ठीक है...
रमेश - पर भईया मम्मी चिल्ला क्यों रही है?
अंशुल - वो रमेश पहले चूहा खुले हुए बिल में घुसा था अब बंद बिल में इसलिए.....
सुरीली - बेटा तू मेरी चिंता मत कर मम्मी बिलकुल ठीक है आशु भईया के साथ....
रमेश - ठीक है मम्मी.. मैं टीवी देख रहा हूँ... कुछ चाहिए हों तो बताना..
सुरीली - नहीं बेटा... तेरे आशु भईया मैं वायर पकड़ कर खड़े है तू आराम से टीवी देख...
रमेश - ठीक है मम्मी...
अंशुल ने अब सुरीली की गांड चुदाई शुरू कर दी थी जिससे सुरीली की सिस्कारिया कमरे के बाहर रमेश के कान तक पहुंच रही थी मगर अपनी माँ की सिस्कारिया सुनने के बाद भी वो उसे अनसुना कर मज़े से टीवी देख रहा था..
अंशुल - चाची इतनी मस्त गांड है.. पहले बता देती तो पहले ही आ जाता हम्हारे पास....
सुरीली - लल्ला.... ये चीज़े बताई नहीं जाती... पत्ता लगाईं जाती है..
अंशुल - अच्छा चाची.... चुत का चूबारा बना रखा तुमने.. चाचा अब भी पेलते है क्या?
सुरीली - लल्ला गाजर मूली से काम चलाना पड़ता है.... तेरे चाचा में अब दम नहीं है... तभी तो तेरा लोडा लेने के लिए अपनी गांड की कुर्बानी दे दी...
अंशुल - उफ्फ्फ चाची तेरी ये कुर्बानी.... मज़ा आ गया आज... तेरी गांड लेके... इस गाँव में काकी हों या चाची.... सबके भोस्ङो मेंगर्मी भरी पड़ी है...
सुरीली - बाते तो सोहळा आने सही बोली तूने लगा... आह्ह.... इतना बड़ा लंड है तेरा.. जरा तरस खा अपनी चाची पर... आराम से काम ले मेरी गांड से लल्ला...
अंशुल - आराम से ही तो चोद रहा हूँ चाची....
सुरीली - हाय आज कैसे झड़ रही हूँ बार बार... आह लल्ला तू खिलाडी है...
अंशुल - में भी झड़ रहा हूँ चाची... कहे तो तुम्हारी गांड में निकाल दू?
सुरीली - निकाल दे लल्ला.....
अंशुल सुरीली की गांड में अपना वीर्य निकाल देता है और सुरीली की गांड का पीछा छोड़ कर खड़ा हों जाता है.. सुरीली भी जैसे तैसे खुदको संभाल कर खड़ी हों जाती है.. दोनों की हालत पतली थी दोनों सर से पैर तक पसीने से भीग चुके थे और नंगे खड़े एक दूसरे को देखकर मुस्का रहे थे....
अंशुल ने दरवाजा खोलकर बाहर देखा तो रमेश सो चूका था...
अंशुल और सुरीली ने भी कपडे पहन लिए थे..
अंशुल रमेश के पास आया और पीठ दिवार से लगा कर बैठ गया.. बाहर चलते कूलर ने जैसे उसे राहत दी हों.. सुरीली भी उसके पास आकर बैठ गई और दोनों आपस में चूमा चाटी करने लगे.... उसके बाद अंशुल ने अपनी पेंट खोलकर लोडा वापस बाहर निकाल लिया और सुरीली के सर को अपने लंड पर झुका कर उसके मुँह में अपना लंड दे दिया जिसे सुरीली लॉलीपॉप जैसे चूसने लगी.... बगल में सोते रमेश की बॉडी में कुछ हरकत हुई तो अंशुल ने एक चादर सुरीली पर डाल दी और उसका बदन छुपा लिया...
रमेश की नींद कच्ची थी अभी सोया ही था की खुल गई...
रमेश - भईया आप यहां.... अंदर वायर कौन पकड़ रखा है?
अंशुल - अब वायर पकड़ने की जरुरत नहीं है रमेश.
रमेश - मम्मी कहा है भईया?
अंशुल - तुम्हारी मम्मी मेरा केला चूस रही है....
रमेश - मतलब?
अंशुल - मतलब तुम्हारी मम्मी को भूख लगी थी तो मैंने तेरी मम्मी को अपना केला दे दिया.. बहुत अच्छा चुस्ती है तेरी मम्मी...
रमेश - पर भईया केला तो खाया जाता है..
अंशुल - पर तेरी मम्मी तो चूसके खाती है... उन्होंने बताया नहीं तुझे?
रमेश - नहीं... और आप तो केला लेकर ही नहीं आये थे...
अंशुल - लाया था जेब में था.... अच्छा ये सब छोड़ तू सो जा वरना सुबह देर से उठेगा..
रमेश - पर आशु भईया आप?
अंशुल - रमेश में आज रात यही रहूँगा.... और रातभर तुम्हारी मम्मी के आगे पीछे दोनों बिलों की खुदाई करूँगा ताकि अगली बार उनको चूहों से डर ना लगे...
रमेश - हां भईया.. अच्छे से खुदाई करना.. मम्मी चूहों से बहुत डरती है...
अंशुल - तू चिंता मत कर रमेश... आज सारी रात सुरीली चाची सुरु में गाना गायेगी.... तू सोजा अब..
सुरीली चादर के अंदर अंशुल के लोडा मुँह में लेकर चूसते हुए सारी बाते सुन रही थी और बीच में बीच जब अंशुल की कोई बाते बुरी लगती तो लंड को दांतो से काट भी रही थी....
रमेश टीवी देखते हुए फिर से हलकी नींद में चला जाता है और उसकी नींद खुलती तो वो रसोई में पानी पिने जाता है और देखता है की उसकी माँ सुरीली अंशुल के होंठों को बुरी तरह से चुम रही है दोनों में इग्लिश किसिंग चल रही है....
रमेश - माँ ये क्या हों रहा है? आप आशु भईया के साथ क्या कर रही हो?
सुरीली - अरे बेटा वो तेरे आशु भईया के होंठो पर किसी कीड़े ने काट लिया था तो दर्द हों रहा था उनको, मैं उसका दर्द मिटा रही हूँ....
अंशुल - हां रमेश बहुत जहरीला कीड़ा था शायद....
रमेश - ठीक है मम्मी आप आशु भईया की मदद करो.. लेकिन अंदर वायर पकड़ के कौन खड़ा है?
अंशुल - अरे वो हम जाने ही वाले थे अंदर.. वरना वायर इधर उधर हों गया तो टीवी खराब हों जाएगा... चले चाची?
सुरीली - हां चलो आशु.....
अंशुल रूम जाकर जैसे ही दरवाजा बंद करता है सुरीली उसपर झपट पडती है और आशु को अपनी बाहों में लेते हुए अपने मुँह का स्वाद फिर से उसे चखा देती है.... अंशुल उसके दोनों कबूतर मसलते हुए उसके होंठो का रस पिने लगता है..
कुछ देर बाद दोनों फिर से नंगे हों जाते है और फिर से रमेश को कमरे से आती हुई छपछप थपथप घपघप की आवाजे सुनाई देती है.....
रमेश - मम्मी अंदर सब ठीक है ना?
सुरीली - आह्ह... रमेश.. सब ठीक है बेटा... बस तेरी माँ चुद रही है.... आअह्ह्ह.... उफ्फ्फ....
रमेश - क्या माँ...
सुरीली - खुदाई बेटा... खुदाई चल रही है तेरी माँ के बिल की... आअह्ह्ह......
रमेश - आशु भईया मम्मी की खुदाई धीरे करो..मम्मी को दर्द मत दो...
अंशुल - दर्द में ही तो मज़ा है रमेश....
सुरीली - आह्ह... तू मेरी चिंता मत कर रमेश.... तेरी माँ ये चुदाई... ओह खुदाई संभाल लेगी... तू सोजा बेटा.....
रमेश - ठीक है माँ.....
रमेश अबकी बार जो टीवी देखते हुए सोया तो फिर नहीं उठा और सुरीली अंशुल के साथ पूरी रात मुँह काला करती रही, दोनों ने शर्म लिहाज और कपडे उतार कर सब कुछ किया और सुबह के 5 बजे अंशुल सुरीली की छाती पर सर रख कर लेटा हुआ था...
सुरीली बड़े प्यार से अंशुल का सर सहला रही थी सुरीली की प्यास पूरी तरह बुझ चुकी थी वो तृप्त हों चुकी थी.....
अंशुल - जो कुछ हमारे बीच हुआ चाची किसी से कहोगी तो नहीं?
सुरीली - अरे लल्ला कैसी बात कर रहा है? ये बातें भला किसी को बोली जाती है? तू भी किसी से ना कहना...
अंशुल - बहुत मस्त हों चाची....
सुरीली - तू कोनसा कम है.. पूरी गांड दुख रही है अभी तक....
अंशुल - ये तो हमारे मिलन की निशानी है चाची....
सुरीली - खूब जानती हूँ..... अच्छा अब वापस कब आएगा अपनी सुरीली चाची से मिलने?
अंशुल - जब तुम वापस घर में अकेली रहोगी... मगर एक शर्त है...
सुरीली - क्या?
अंशुल - मुझे सुसु करना है....
सुरीली - तो कर ले ना लल्ला....
अंशुल - तुम्हारे मुँह में चाची....
सुरीली - छी लल्ला कितना गन्दा है तू....
अंशुल - शर्त पूरी करोगी तभी आऊंगा चाची....
सुरीली - अच्छा जब तेरा माल पी लिया तो मूत क्या चीज़ है? आ मूत ले अपनी चाची के मुँह में....
अंशुल सुरीली को घुटनो पर बैठकर अपना लोडा उसका मुँह में डाल देता है और धीरे धीरे मूतने लगता है... सुरीली अंशुल की आँखों में देखती हुई उसका मूत पिने लगती है..
अंशुल - चाची अब खड़ा हों गया तो चूस भी लो....
सुरीली हंसती हुई - तू भी लल्ला.. सुरीली ने एक बार फिर लंड चूसकर वीर्य निकाल दिया..
आह्ह चाची मज़ा आ गया.... कहते हुए अंशुल कमरे से बाहर आ जाता है और अंगड़ाई लेटा है जैसे रातभर की मेहनत के बाद उसका बदन दुख रहा हों..
सुरीली भी कपडे पहनकर बाहर आ जाते है और सुरीली जाने से पहले फिर से अंशुल को अपनी बाहों में खींचकर चूमती है जिसे रमेश जागने के साथ देख लेता है..
रमेश - अब तक दर्द ठीक नहीं हुआ भईया का..
सुरीली - हां बेटा.... तू अंदर जाकर सो जा मैं आती हूँ..
ठीक है मम्मी....
अंशुल सुरीली के घर से अपने घर आ जाता है थकावट से उसकी नींद लग जाती है..



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Agle update me padma pr focus hoga❤️
 
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sammeeramritams

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अध्याय 1
पदमा का प्रेम......

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पदमा

पदमा ओ पदमा.... अरे कहा मर गई.....
अजी क्या हुआ? क्यूँ मुँह फाड़ फाड़ कर चिल्ला रहे हो?
पदमा अपने हाथो मे सूखे कपड़ो का ढेर लिए सीढ़ियों से नीचे आते हुए बालचंद से बोली....
बालचंद अपने हाथ मे एक थैला लिए घर के आँगन मे खड़ा था और बहुत देर से अपनी धर्मपत्नी पदमा देवी को आवाज लगा रह था....
पदमा ने कपडे कमरे के अंदर अपने बेड पर रख दिए और बालचंद से थैला लेते हुए बोली - का बात है? आज वक़्त से पहले ही घर की याद आ गई? कोनो विशेष बात है का? और आज कौन ख़ुशी मे ई चीकेन लाये हो? कोई आने वाला है ?

बालचंद अपने जूते दरवाजे की दाई तरफ बनी एक पट्टी के ऊपर खोलते हुए कंधे पर से गमछा उतारकर गुसलखाने के बाहर बने एक वाशबेसिन का नल खोलकर मुँह धोता हुआ बोला - अरे आज तेरे उस कुपूत को देखने लड़की वाले आ रहे है.... बड़ी मुश्किल से मलखान सिंह ने किसी से बात करके हुसेनीपुर के प्रभाती जी की कन्या से तेरे कुंभाकरण के रिश्ते की बात चलाई है....

पदमा अपने पति बालचंद से अपने बेटे आशु (अंशुल) के बारे मे कुपूत और कुंभकरण जैसी उपमा सुनकर गुस्से से लाल-पिली होती हुई रसोई मे थैला पटकते हुए बोली - अरे ऐसा भी क्या गुनाह कर दिया मेरे बच्चे ने जो उसे इतना ताना मारते हो? किसी का गला काटा है या चोरी की है? या किसी के साथ मुँह काला किया है?

बालचंद आँगन मे रखे मटके से पानी निकलकर पीता हुआ पदमा की बात सुन रहा था जब पदमा अपने बेटे का बचाव करते हुए बोलकर ठंडी हुई तो बालचंद उसे वापस चिढ़ता हुआ बोला - हा हा... कहीं का राजकुमार है ना तुम्हारा बेटा तो? हत्या या चोरी नहीं की तो क्या हुआ, मेरी छाती पर तो मुंग दलने बैठा ही है.... जवान हो गया है लेकिन ना काम करता है ना ही काम की तलाश.... बड़े सर से कहकर अपने ही साथ लगवा रहा था लेकिन नहीं.... अपने बाप की तरह मेहनत करने मे तो देह की जोर आता है ना... सुबह 10 बजे से पहले नवाब साहब की नींद नहीं खुलती... छत पर से खाली सिगरेट के पैकेट और खाली शराब की बोतले मिली थी... अब और ना जाने क्या क्या शोक पाले होंगे तुम्हारे बेटे ने? ये रिश्ता पक्का हो जाए तो अलगे अगहन मे ब्याह करके पीछा छुड़ाऊ.. जब बीवी बच्चे होंगे और जिम्मेदारी पड़ेगी तो अपने आप काम करने की अकल आ जायेगी तुम्हारे लाडले सुपुत को....

पदमा बालचंद की बात सुनकर फिर एक बार गुस्से से आग बबूला होती हुई रसोई से बाहर आकर बालचंद को अपने हाथ मे पकड़ा हुआ चाक़ू दिखाते हुए बोली - एक बात अच्छे से समझ लो.... मेरा आशु कोई बोझ नहीं है जो ऐसे ही किसी ऐरी-गेरी लड़की के साथ ब्याह कर दू.... जवानी मे थोड़ा बहुत तो सभी बहक जाते है.... तुम भी शराब पीते थे भूल गए? और वैसे भी बड़ा अफसर बनने के लिए पढ़ाई कर रहा है मेरा लल्ला.. देखना थोड़े समय बाद किसी बड़े ओहदे पर मुहर वाली नोकरी करेगा मेरा आशु... तुम्हारी तरह चाय-पानी पिलाने वाली नहीं....और अभी उम्र ही क्या है मेरे लल्ला की? 21 साल पुरे होने मे भी 1 महीना घटता है....

बालचंद पदमा की बात का जवाब देते हुए बोला - अरे क्यूँ नहीं.... मुहर वाली नोकरी तुम्हारे उस आलसी कामचोर के लिए ही तो बचा के रखी है सरकार ने... तीन साल का बीए चार साल मे ख़त्म करके बड़े शहर से लौटा है और चार महीने हो गए वापस आये... तब से घर से बाहर तक नहीं निकला.... जब देखो बस अपने कमरे मे बिस्तर तोड़ता मिलता है....

बालचंद की व्यंगात्मक बातें सुनकर पदमा रसोई मे कड़ची चलाते हुए बोली - अरे मेरा बच्चा कम से कम अपने घर मे बिस्तर तोड़ता है किसी का कुछ बिगाड़ा तो नहीं उसने..... तुम्हारे भाई का बेटा तो रंडीखाने से पकड़ा गया था याद है? तुम्हारी बहन शहर मे गहने की दूकान से चोरी करती पकड़ी गई थी... कितना पीटा था दूकानदार ने और फिर police के हवाले कर दिया था याद है या भूल गए? और अपना भी जानते हो? कैसे नाथबाबू ने तुम्हे सिर्फ सो रूपये की रिश्वत लेते पकड़ा था? अरे गोबर ही खाना था तो कम से कम हाथी का तो खाते.... 100 रुपए की रिश्वत लेते पकडे गए.. छी..... वो तो भला हो मेरे लल्ला का.... जिसकी दोस्ती नेता जी के बेटे के साथ थी और उसके कहने पर नाथबाबू ने तुमको नोकरी से नहीं निकालवाया वरना इतनी बातें नहीं करते.... आज जो तुम्हारे मुँह मे बात आ रही है ये सब हवा हो जाती...

पदमा ने इस बार खाना बनाते हुए बालचंद के व्यंग को निस्टोनाबूत करते हुए उसे आईने के सामने लाकर खड़ा कर दिया था बालचंद के पास इस बार पदमा की बात का कोई जवाब नहीं था और ना हीं उसके पास कुछ और कहने को बचा था तर्क तो जैसे ख़त्म ही हो गए थे बालचंद अपना सा मुँह लेकर रह गया था लेकिन फिर भी उसे अपनी हार मंज़ूर नहीं थी उसने आखिर मे आँगन से खड़े होकर अपने कमरे की और जाते हुए पदमा से कहा - अब तुमसे कौन बहस करे? तुम्हे तो अपने बच्चे के सिवा कुछ दीखता ही नहीं है... इतना लाड प्यार करने के लिए अब बच्चा नहीं रहा हट्टाकट्टा लम्बाचौड़ा 6 फ़ीट का आवारा सांड बन चूका है...

पदमा गैस से सब्जी की कढ़ाई उतारते हुए - अरे तुम क्यूँ जलते हो मेरे बेटे से? पुरे कस्बे मे मेरे आशु से सुन्दर नयननक्ष है किसी के? बिलकुल किसी फ्लिम का हीरो लगता है.... पिछले महीने कजरी के ब्याह मे देखा था ना कैसे जवान तो जवान बूढ़ी औरते भी उसे आँखे फाड़ फाड़ कर देख रही थी? ब्याह के बाद 7 दिन तक बीमार रहा था मेरा बच्चा.. पत्ता नहीं किस कलमुही की नज़र लगी थी मेरे लाल को?

बालचंद इस बार पदमा पर कुढ़ता हुआ बोला - अरे भाग्यवान.... बहुत सुन लिया तेरे बेटे की सुंदरता का बखान.. अब जरा उसे जाकर कह दे कि नहाधो ले.. छः बजे मलकान प्रभाती जी और उनके परिवार के साथ घर आ जाएंगे...
गाँव के सरपंच है प्रभाती जी और न जाने कितनी भीघा ज़मीन के मालिक... मलखान कह रहा था दर्जन गाय भैंस तो घर के पिछवाड़े बंधी रहती है.... घर मे नोकर भी रखा हुआ है.... संतान के नाम पर ले देके एकलौती कन्या ही है.... अगर रिश्ता बैठ गया तो ये निकम्मा रातोरात लखपती बन जाएगा....

पदमा आँगन मे रखे पुराने लोहे के सोफे का कवर बढ़ते हुए - अरे कितने ही बड़े आदमी क्यूँ ना हो.. धनवान क्यूँ ना हो? पैसे के लिए बेच थोड़ी दूंगी अपने बच्चे को? इतने बड़े आदमी होकर तुम्हारे जैसे फटीचर के घर अपनी लड़की ब्याहने को त्यार हो गए? मुझे तो कुछ गड़बड़ लगती है.. जरूर लड़की मे कोई दोश होगा वरना कौन तुम्हारे जैसे चपरासी के घर अपनी एकलौती कन्या देगा....

बालचंद बाथरूम मे अपनी दाढ़ी बनाते हुए बोल पड़े - अरे कोई दोष नहीं है लड़की मे.... तुम्हे तो बस शक करने और अपने बच्चे के अलावा हर किसी पर लांचन लगाने की आदत है.. मलखान बता रहा था कजरी के ब्याह मे तुम्हारे सुपुत्र को देखा है प्रभाती जी की लड़की ने... और तभी से ब्याह की ज़िद पकड़ के बैठी है तुम्हारे नालायक बेटे के साथ.. अब इतना अच्छा रिश्ता खुद चलकर आ रहा है तो भी तुम्हे तकलीफ हो रही है....

पदमा छत पर जाने के लिए सीढ़ियों की तरफ कदम बढ़ाते हुए बालचंद की बात का जवाब देती है - हाय.... तभी मेरा लल्ला ब्याह के बाद बीमार पड़ा था.... पहले ही कह देती हूँ अगर मेरे लल्ला ने ब्याह के लिए मना किया तो तुम बिलकुल उसके साथ जोर जबरदस्ती नहीं करोगे....


एक के बाद एक जुड़े हुए पत्थर के छोटे छोटे मकान साथ मे आस पास खाली पड़ी कटी हुई ज़मीन और बड़े मैदान के पीछे उतर से पश्चिम निकलती नदी, नदी के पार जंगल.... सडक पर बिजली के तारों से लिपटे खम्भे और कच्ची पक्की सड़के, सडको पर दौड़ते पुराने वाहन, बिना हेलमेट के हॉर्न बजाकर कर सररर से निकलती मोटरसाइकिल के साथ पेडल मारकर गुजरती साईकिल और पुरानी साईकिल के टायर घुमाते हुए दौड़ लगाते नंगे पैर बच्चे... कुछ दुरी पर औद्योगिक क्षेत्र होने से आस पास मे अच्छी बसावत है और कई सरकारी विभाग भी.. रांडपुर नाम का ये क़स्बा पश्चिमी यूपी के अंदर आता है....

शाम के छः बजने वाले है और अंशुल अभी इस दो मंज़िला मकान की पहली मंज़िल पर पीछे की तरफ बने कमरे के बिस्तर पर घोड़े बेच कर सो रहा है.. पदमा उसे जगाने सीढ़ियों उसे ऊपर आ रही है.. पदमा अपनी साडी के पल्लू से अपने चेहरे का पसीना पोंछती हुई अंशुल के कमरे मे दाखिल हुई और लाइट ऑन करते हुए सबसे पहले कमरे के अंदर दरवाजे के पास स्टेडी टेबल पर पड़े बड़ी एडवांस सिगरेट के पैकेट, लाइटर और कंडोम के पैकेट को उठाकर कमरे के एक कोने मे रखी पुरानी अलमारी को खोलकर ऊपर बाई तरफ कपढ़ो के नीचे छीपा दिया फिर घुटनो के बल बैठकर बेड के नीचे रखी हुई शराब की बोतल और गिलास निकाल कर टेबल पर रखे पानी के जग से गिलास को धोते हुए उसे शराब की बोतल के साथ अलमारी के अंदर छिपा दिया और फिर अलमारी बंद करके बेड पर सो रहे अंशुल को जगाने लगी....

पदमा प्यार से अंशुल के चेहरे पर अपनी उंगलिया फेराते हुए उसे जगा कर कहती है - आशु.... आशु...... इतनी जल्दी नींद भी आ गई? चलो उठो और नहा लो....
आशु अपनी आँख मलता हुआ लेटे से बैठा हुआ और फिर अपनी माँ पदमा को अपने पास बैठा देखकर उसकी गोद मे सर रखता हुआ आँखे बंद किये ही बोल पड़ा - क्या हुआ है? मुझे नींद आ रही है....

पदमा मुस्कुराते हुए आशु का सर सहलाने लगी और फिर उसके गाल को चूमकर बोली - आज तुम्हे देखने लड़कीवालो को बुलाया है तुम्हारे पापा ने.... जल्दी से नहा लो.. और colgate भी कर लो.... कितनी बू आ रही है मुँह से.... छः बजे तक आने का कहा है चलो जल्दी से उठ जाओ....
अंशुल- मुझे शादी नहीं करनी.....
पदमा - ये बात नीचे आके अपने पापा से कहना....

ये कहते हुए पदमा आशु को वही छोड़कर मुस्कुराते हुए नीचे आ जाती है और आशु अपने मुँह मे टूथब्रश लिए कमरे से निकलकर ऊपर ही बने बाथरूम मे घुस जाता है...

पदमा ने सारा खाना बना दिया था बस रोटियां बनाने की देर थी साफ सफाई पहले से थी तो बस कुछ परदे और सोफे का कवर बदल कर सारा मामला त्यार था बालचंद बड़ी बेसब्री से मलखान के साथ प्रभाती और उनके परिवार के इंतजार मे थे रास्ते मे गाडी खराब होने की सुचना मलखान ने बालचंद को फ़ोन पर ही दे दी थी इसलिए थोड़ा लेट होना लाज़मी था बालचंद आँगन मे सोफे पर बैठा हुआ पुराने टीवी पर पुराने हिंदी फिल्मो के गाने सुन रहा था और पदमा अंदर उन्ही गानो को गुनगुनाते हुए बिस्तर पर अंशुल के कपडे इस्त्री कर रही थी जो उसने सुबह धोये थे और कुछ देर पहले छत से उतार लाइ थी....

अब तक लगभग सारे कपडे इस्त्री हो चुके थे और पदमा उन कपड़ो को लेकर आँगन मे सोफे पर बालचंद के पास रखती हुई रसोई मे चली जाती है और चाय बनाकर हाथ मे कप लिए बाहर आती है

बालचंद हसते हुए - वाह पदमा.... बिना कहे ही मेरे चाय बना दी?
पदमा आँखे दिखाती हुई - मेरे आशु के लिए है.... तुम्हे पीनी है तो पतिले से छन्नी करके पी लो....
बालचंद ने पदमा की बात सुनकर गुस्से मे टीवी की वॉल्यूम तेज़ कर दी और अपने लिए चाय छन्नी करने रसोई मे चला गया...
पदमा चाय के साथ इस्त्री किये कपडे उठाकर ऊपर जाने के लिए सीढ़ियों की तरफ बढ़ गई थी तभी टीवी पर देवाआनंद का सदाबहार गाना बजने लगा....

फूलों के रंग से, दिल की कलम से...
तुझको लिखी रोज पाती..
कैसे बताऊँ किस किस तरह से..
पल पल मुझे तू सताती..
तेरे ही सपने लेकर के सोया..
तेरी ही यादों में जागा..
तेरे ख़यालों में उलझा रहा यूँ..
जैसे के माला में धागा..
हाँ बादल बिजली चन्दन पानी जैसा अपना प्यार..
लेना होगा जनम हमें कई कई बार..
हाँ इतना मदीर इतना मधुर तेरा मेरा प्यार..
लेना होगा जनम हमें कई कई बार..

पदमा गाना गुनगुनाते हुए अंशुल के कमरे मे आ जाती जहा तक गाने की आवाज़ साफ सुनाई दे रही थी अंशुल स्टडी टेबल के सामने चेयर पर बैठकर उंगलियों मे पेंसिल फिराता हुआ किसी किताब मे खोया हुआ था.... पदमा टेबल पर चाय का कप रखते हुआ कपडे अलमारी मे रखकर अंशुल की आँखों पर से चश्मा उतारते हुए उसका हाथ पकड़कर उसे खड़ा करती है और नीचे से आ रही गाने की आवाज़ के साथ अंशुल को सीने से लगाती हुई उसकी आँखों मे देखकर गाने लगती है....

साँसों की सरगम....
धड़कन की बीना....
सपनों की गीतांजली तू.....
मन की गली में....
महके जो हरदम.....
ऐसी जूही की कली तू...

छोटा सफ़र हो, लंबा सफ़र हो सूनी डगर हो या मेला.. याद तू आए, मन हो जाए भीड़ के बीच अकेला....

हाँ बादल बिजली चन्दन पानी जैसा अपना प्यार....
लेना होगा जनम हमें कई कई बार......
हाँ इतना मदीर इतना मधुर तेरा मेरा प्यार.....
लेना होगा जनम हमें कई कई बार.....

अंशुल अपनी माँ पदमा की बाहों मे घिरा हुआ उसे देख रहा था और अपने दोनों हाथ अंशुल ने अपनी माँ पदमा के गले मे डाल लिए थे और अपनी माँ का मुस्कुराता और गाने गुनगुनाता हुआ चेहरा देख रहा था अंशुल के चेहरे पर भी मुस्कान थी दोनों धीरे धीरे एक साथ कदम आगे पीछे रखते हुए एक जगह से दूसरी जगह हिल रहे थे और अबकी बार अंशुल ने पदमा को देखते हुए नीचे से आ रही गाने की आवाज़ के साथ आगे की लाइन्स गुनगुनानी शुरु की.....

पूरब हो पश्चिम, उत्तर हो दक्षिण....
तू हर जगह मुस्कुराये....
जितना ही जाऊँ मैं दूर तुझसे.....
उतनी ही तू पास आये...
आंधी ने रोका, पानी ने टोका दुनिया ने हंसकर पुकारा.
तसवीर तेरी लेकिन लिए मैं कर आया सब से किनारा. हाँ बादल बिजली चन्दन पानी जैसा अपना प्यार....
लेना होगा जनम हमें कई कई बार....

अंशुल और पदमा दोनों एकदूसरे को बाहों मे जकड़े हुए एकदूसरे को देखकर इस गाने की लाइन्स गुनगुना रहे थे और मुस्कुराते हुए आँखों मे आँखे डाले एकदूसरे को जैसे अपने प्रेम का अहसास करवा रहे थे की उसके दिलों मे एकदूसरे के लिए कितना प्रेम भरा हुआ है.. आखिर मे दोनों गाने की समाप्ति के बोल एक साथ गुनगुनाने लगे...

हाँ इतना मदीर इतना मधुर तेरा मेरा प्यार...
लेना होगा जनम हमें...
कई कई बार....
कई कई बार..
कई कई बार..

गाना जैसे ही ख़त्म हुआ अंशुल ने अपनी माँ पदमा के माथे पर बनी सिन्दूर रेखा के ऊपर एक प्रगाड़ चुम्बन स्थापित कर दिया और पदमा ने उसके बाद खड़े खड़े ही अंशुल का शर्ट थोड़ा सरकाते हुए उसके दिल की धड़कन पर अपने गुलाबी होंठों की छाप छोड़ दी फिर बिना कुछ कहे अंशुल को अपनी बाहों की क़ैद से आजाद कर दिया और मुस्कुराते हुए चाय के कप की तरफ इशारा करते हुए बोली - चाय पी लो वरना ठंडी हो जायेगी......

लेकिन अंशुल बिना अपनी माँ पदमा के चेहरे से ध्यान हटाए उसके लबों पर टूट पड़ा और पदमा को बाहो मे भरके चूमने लगा....
पदमा और अंशुल का चुम्बन शुरु ही हुआ था की नीचे से बालचंद की आवाज़ आई... पदमा.... पदमा.... मेहमान आ गए है...
बालचंद की आवाज़ सुनकर पदमा ने चुम्बन तोड़ दिया और अंशुल के होंठों पर चुम्बन के कारण हुआ गिलापन अपनी उंगलियों से साफ करने लगी....

टीवी की आवाज़ बंद हो चुकी थी जैसे की बाहर से आती मोटर की आवाज़ सुनकर बालचंद ने टीवी बंद कर दिया हो... अंशुल चेयर पर वापस बैठ चूका था और चाय का पहला सिप ले चूका था
पदमा ने बालचंद की आवाज़ सुनकर अंशुल को उसका चश्मा वापस देते हुए उसके माथे पर उसीके अंदाज़ मे चुम्बन देते हुए नीचे की तरह बढ़ गई....

जाते जाते पदमा ने अंशुल को जल्दी से नीचे आ जाने और ज्यादा देर तक किताबो के साथ उलझें नहीं रहने की हिदायत भी दे दी थी जिसपर अंशुल ने हामी मे सर हिला कर अपनी मोन स्वीकृति दे दी थी....

आइये आइये.... सरपंच जी.... आइये.... कहते हुए मलखान प्रभाती जी को बालचंद के घर के अंदर ले आया और प्रभाती लाल के पीछे पीछे उसकी अर्धांगिनी लाज़वन्ति और एकलौती पुत्री नयना भी घर के भीतर प्रवेश कर गई....


लाज़वन्ति
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नयना

पदमा ने नीचे बालचंद के साथ सबका स्वागत किया.. लाज़वन्ति ने पदमा से और प्रभाती लाल ने बालचंद से मेल मिलाप किया.. मलखान ने अपने हाथ से फलो का एक थैला रसोई के भीतर रखते हुए सबको आँगन मे रखे पुराने सोफे पर बैठा दिया जिसपर अभी कुछ देर पहले ही नई चादर डाली गई थी.. मलखान माध्यस्था कर रहा था उसने सभीके बैठने के बाद हसते हुए बालचंद से प्रभाती लाल का परिचय करते हुए कहा - बालचंद जी.... ये है हमारे गाँव के सरपंच श्री प्रभाती लाल जी.. सकड़ो बीघा मे खेती-किसानी तो पुशतेनी है पहले खुद खेत मे हल चलाते थे अब कामगार चलाते है... उसके अलावा बाड़े मे दर्जनों गाये भैंस बंधी हुई है दूध का भी कारोबार करने लगे है.... एकलौती बिटिया है नयना... सिलाई कढ़ाई बुनाई सब जानती है खाना भी स्वाद बनाती है हमारी नयना..... और प्रभाती जी ये है श्री बालचंद जी.... पेशे से सरकारी महकमे मे बाबू है पर मज़ाल जो सालों काम करने के बाद भी किसी ने एक पैसे रिश्वत का आरोप भी लगाया हो.. निहायती ईमानदार और मेहनती किस्म के आदमी है बालचंद जी.... खुदका अपनी मेहनत की कमाई से बनाया ये पक्का घर है और दो बच्चे.... लड़की का ब्याह तो दो बरस पहले ही आपके बगल वाले गाँव रोजिया मे शोभासिंह के लड़के नीलेश से हो गया था अब ले देके एक लड़का अंशुल ही बचा है.. बड़े शहर जाकर बीए की पढ़ाई की है अंशुल ने.. बड़ा भला लड़का है.. शराब, सिगरेट, गांजा, लड़कीबाज़ी.... अजी किसी भी तरह का कोई शोक नहीं है लड़के को....

पदमा चाय की ट्रे सबके सामने रखते हुए - लीजिये चाय पिजिये....
लाज़वन्ति - अरे बहन जी इसकी क्या जरुरत थी... वैसे ही इतना समय हो चूका है....
नयना उठकर पदमा के पैर छूने लगती है तभी पदमा उसका हाथ पकड़कर रोक देती है - अरे अरे.... ये सब रहने दो.... इसकी जरुरत नहीं है.... तुम बैठो...
मलखान - भाभी जी ये तो संस्कार है बिटिया के....

पदमा मुशसकुराते हुए चाय बिस्किट नमकीन और मीठा टेबल पर रखते हुए बालचंद के बगल मे बैठ गई और मलखान प्रभाती लाल और बालचंद से एकदूसरे की बढ़ाचढ़ा कर तारीफ़ करने लगा और बीच बीच मे हंसी के प्रसंग भी उत्पन्न होने लगे जिसपर सब खुलकर हसने और एक दूसरे के साथ बतियाने लगे......

बात करते करते पदमा ने नायना के चहेरे की तरफ देखा तो उसे दुप्पटे के नीचे नयना की दूधिया काया और प्राकर्तिक गुलाबी होंठो के साथ पतली नाक भी दिखाई दे गई.... नयना को रूपवाती कहना उचित होगा वो अभी उन्नीसवे साल मे थी लेकिन अच्छे खान-पान और रहन-सहन ने उसके अंग को अद्भुत तरीके से निखारा था खूबसूरत सूरत और सीरत उसे अपनी माँ लाज़वन्ति से ही मिली थी... गोरी देह पर आसमानी सूट पहने और सफ़ेद दुपट्टे से अपना सर ढककर बैठी नयना किसी परी से कमतर नहीं लगती थी उसके उन्नत उरोजो का अनुमान सूट की बनावट से लगाया जा सकता था पतली कमर और बाहर की तरफ निकले नितम्भो भी उसे आकर्षक बनाने का काम करते थे....

चाय नाश्ता और बातचित होते होते रात के साढ़े आठ बज चुके थे पिछले डेढ़ घंटे से मलखान ने प्रभाती लाल और बालचंद को एकदूसरे के बारे मे ना जाने क्या क्या कह सुनाया था जिसमे बहुत सा सत्य था और कुछ आटे मे स्वाद लाने के लिए मिलाया गया नमक मालूम पड़ता था जिसे दोनों पक्ष बड़ी आसानी से समझ सकते थे......

पदमा रसोई मे चली गई थी और उसने खाना गर्म करने के लिए गैस पर चढ़ा दिया था उसके पीछे पीछे लाज़वन्ति का इशारा पाकर नयना भी रसोई मे आ गई थी... पदमा ने कितना मना किया था उसे कुछ करने के लिए पर हाय.... ये ज़िद्दी लड़की.... नयना ने पदमा की एक बात नहीं सुनी और गुथे हुए आटे से लोई तोड़कर रोटियां बनाने लग गई थी मानो अपने रूपवती होने के साथ गुणवती होने की घोषणा करना चाहती हो....

खाना त्यार होने पर मलखान सोफे के पास दाई तरफ बिछी चटाई पर प्रभाती लाल और उनकी पत्नी लाज़वन्ति के साथ बैठ गए और बालचंद को देखते हुए आँखों ही आँखों मे अंशुल को बुलाने का इशारा किया.. बालचंद मलखान का इशारा समझते हुए रसोई मे पदमा के पास चला गया और नयना के खाना बाहर ले जाने के बाद धीमी आवाज़ मे गुस्से से पदमा से बोले - कहा है तुम्हारा लाडला? अब तक नीचे क्यूँ नहीं आया? घर मे मेहमान आये है तुमने उसे बताया था या नहीं? जाकर देखो क्या कर रहा है?
बालचंद की गीदड़भभ्की सुनकर पदमा व्यंगात्मक स्वर मे बालचंद को देखते हुए बोली - सरकारी महकमे मे बाबू.... हम्म्म? चपरासी से बाबू कब बने?
बालचंद इधर उधर देखकर - अरे मलखान ने कह दिया तो मैं क्या करता? वैसे भी ऐसे मामलो मे थोड़ा बहुत घालमेल चलता है....अब तुम ये सब छोडो और जल्दी से जाकर अपने सपूत को नीचे बुला लाओ... मलखान ने कहा है सब साथ खाना खाएंगे तो अच्छा प्रभाव जमेगा प्रभाती जी और उनकी धर्मपत्नी पर.... ये कहकर बालचंद रसोई से आँगन की तरफ चल देता है...
पदमा बालचंद की बातें अनसुनी करती हुई रसोई से बाहर जाते हुए बालचंद को उसी व्यंगत्मक स्वर मे चिढ़ाती हुई वापस बोली - ईमानदार और मेहनती.....

बालचंद के जाने के बाद पदमा 3-4 हरी इलायची लेकर रसोई से बाहर निकल गई और सीढ़ियों से ऊपर की तरफ चली गई....
पदमा ने देखा की अंशुल अपने कमरे मे नहीं है तो वो सीधे छत पर सीढ़ियों के पास बने एक छोटे कमरे की तरफ चली गई जहा अंशुल एक कम रौशनी वाले लट्टू की लाइट मे बैठा हुआ सिगरेट के कश ले रहा था....
पदमा अंदर जाते ही अंशुल के हाथ से सिगरेट लेकर अपने होंठो पर लगा लेती है और एक लम्बा कश लेकर धुआँ छोड़ती हुई अंशुल से कहती है - अब तक नीचे क्यूँ नहीं आये?
अंशुल अपने पैरों की तरफ देखता हुआ - मेरा मन नहीं है आने का....
पदमा - खाना नहीं खाना? सुबह भी कुछ नहीं खाया था.... ऐसे भूके ही रहना है तुम्हे?
अंशुल - आप खा लो... आज सच मे भूख नहीं है...
पदमा अंशुल की गोद मे बैठकर सिगरेट के कश लेती हुई - भूख नहीं है या और कोई बात है? छुपाने से अच्छा है बता दो..... इस तरह बातें दिल मे रखने से कुछ नहीं होगा.... शायद मैं कुछ मदद कर दू....

अंशुल अपनी जगह से खड़ा हो जाता है और पदमा जैसे ही सिगरेट का कश लेने के लिए सिगरेट अपने होंठो पर लगाती है अंशुल सिगरेट ज़मीन पर फेंक देता है और पदमा की कमर पकड़कर अपनी तरफ खींचता हुआ कहता है - आप जानती हो ना मैं ये शादी नहीं कर सकता.... मैं सिर्फ आपसे प्यार करता हूँ फिर भी आप चाहती हो मैं ये शादी करू?
पदमा अंशुल के मुँह मे 2 इलायची ड़ालते हुए - मैं सिर्फ इतना चाहती हूँ कि तुम खुश रहो... समझें? अब ये रोतलू चेहरा ठीक करो और चलो... सब नीचे इंतजार कर रहे है... मुझे तो बहुत जोरो की भूख लगी है....

पदमा भी इलायची खाते हुए अंशुल का हाथ पकड़कर उसे सीढ़ियों से नीचे ले आती है और रसोई की तरफ चली जाती वही अंशुल वाशबेसिन मे मुँह धोकर सबके पास चला जाता है जहा मलखान जानभूझकर उसे लाज़वन्ति के बगल मे बैठा देते है....
मलखान - प्रभाती जी... ये रहा हमारा आशु.... भाभी जी बता रही थी किसी बड़े इम्तिहान की त्यारी कर रहा है.... अगले बरस पर्चा देगा.... अगर पास हो गया तो मुहर वाली नोकरी करेगा अपना आशु...
प्रभाती लाल - अरे मलखान भाई.... पास-फ़ैल तो नसीब का खेल है... इंसान के हाथ मे तो बस मेहनत है....
मसलखान - बिलकुल सोलह आने सही बात की आपने भाईसाब.... पर अपना आशु तो जो ठान लेता है करके रहता है.. मैं तो बचपन से देखता आया हूँ...
लाज़वन्ति एक नज़र भरके अंशुल को देखकर - भाईसाब माफ़ करना पर परमात्मा की कृपा से आज हमारे पास बहुत कुछ है और सब कुछ नयना का ही है.... हमने बहुत गरीबी मे दिन गुजारे है मगर जब से परमात्मा ने नयना को हमारी झोली मे डाला है तब से हमारी किस्मत ने ऐसी करवट ली देखते ही देखते पुरे गाँव मे सबसे बड़ी जोत हमारी हो गयी.... कुछ बरस से दूध का व्यापार भी अच्छा चलने लगा है... उसे भी सँभालने वाला कोई चाहिए कब तक ये अपने कंधे पर सारा बोझा ढ़ोते रहेंगे अब तो उम्र भी 50 के पार होने लगी है... आजकल वैसे भी नोकरी मे पहले वाली बात तो रही नहीं.. अब नोकरीपेशा आदमी सिर्फ अपनी जरुरत ही तो पूरी कर सकता है.. अपने मन मुताबिक़ जीना उसके इख़्तियार की बात कहा?
बालचंद की आँखे लाज़वन्ति की बात सुनकर चमक जाती है वही मलखान लाज़वन्ति की बात पर हां मे हां मिलाता हुआ कहता है - खरी बात कही आपने भाभी जी.... अब अपने घर का इतना बड़ा कारोबार छोड़कर अगर आदमी बाहर कुछ पैसो के लिए किसी की चाकरी करें तो अच्छा थोड़ी लगेगा? भले ही वो सरकार की गुलामी क्यों न हो....
प्रभाती लाल - बालचंद जी.... मैं तो तय कर चूका हूँ ब्याह ऐसा होगा की सब देखते रह जाएंगे..
लाज़वन्ति बालचंद से - एकलौती बच्ची है.... हमारे पास जो कुछ है इसीके भाग का है.... और इसी के लिए रखा हुआ है...
पदमा रसोई से चपाती लेकर आती है और परोसने लगती है वहीं नयना के नयनो की धार रसोई की खिड़की को चिरती हुई अंशुल के मनभावन चेहरे पर टिकी थी.. नयना एकटक बेसब्री निगाहो से बस अंशुल को ही देखे जा रही थी जैसे उसे डर हो की कहीं कोई उसकी नज़र से ये नज़ारा छीन ना ले....
नयना आँगन मे चल रही बात सुन रही थी और बारी बारी से सबके चेहरे और हावभाव देख रही थी लेकिन उसकी आँखों से अंशुल का चेहरा नहीं हट रहा था.. खाना खाते हुए अंशुल को नयना अपनी आँखों मे समा लेना चाहती थी वो रसोई मे खड़ी हुई मुस्कुराते हुए बस अंशुल के चेहरे को ही देखे जा रही थी और याद कर रही थी कैसे पिछले माह उसकी सहेली कजरी के ब्याह मे जब वो खाने के लिए पंगत मे एक कुर्सी पर बैठी तब अंशुल खाना परोसता हुआ उसके सामने से गुजरा था....

रात के अँधेरे को चिरती हेलोजन लाइट की रौशनी मे जब अंशुल उसके सामने से गुजरा तो वो अपने साथ उसका दिल भी ले गया था.... नीली जीन्स पर गुलाबी शर्ट पहना था अंशुल ने.. खाना परोसने के लिए जूते उतार दिए थे पैरों मे चप्पल तक नहीं थी.. शर्ट के ऊपरी दो बटन खुले हुए और बाल गर्मी के कारण अस्त व्यस्त हो गए थे फिर भी अंशुल पहली नज़र मे ही नयना की आँखों से होते हुए उसके दिल मे उतर गया था.. जिसे नयना की आँखों से सिर्फ उसकी बचपन की सहेली महिमा ही पढ़ पाई थी.. अरे...... कितना छेड़ा था नयना को महिमा ने बार बार अंशुल की तरफ इशारा करके.. नयना की तो जैसे जान ही हलक मे ला दी थी उस मसखरी लड़की ने.... ऐसा भी कोई करता है भला? शर्म के मारे कैसा लाल मुँह हो गया था नयना का? कैसे वो चीड़के महिमा का गला दबाने भागी थी... आज एक महीना बीतने के बाद भी उसे सब पूरी तरह याद था.. महिमा ने उस रात नयना को चाहे जितना तंग किया हो पर सच तो ये भी था की वहीं कजरी से अंशुल के बारे मे सारी जानकारी निकाल लाइ थी और बहुत सताने के बाद नयना को अंशुल के बारे मे बताया था... ब्याह से वापस आने के बाद भी नयना अंशुल की यादो मे ही खोई हुई थी उसकी तो सारी दिनचर्या अस्त व्यस्त हो गई थी मन मे मीठे मीठे ख्याल आना और सपनो मे अंशुल की मौजूदगी लाज़मी हो चूका था महिमा उसकी मनोदशा से भलीभाती परिचित थी और अब लाज़वन्ति को भी नयना का व्यवहार कुछ अलग लगा रहा था उसे समझते जरा भी देर नहीं लगी की कुछ ना कुछ गड़बड़ है मगर उसके पूछने पर नयना ने उसे कोई बात नहीं बताई और अपने दिल की बात को अपने दिल मे ही छीपा कर रखा मगर लाज़वन्ति भी उस उम्र के पड़ाव से गुजरी थी जहा आज नयना खड़ी है... हमेशा खामोश और चुपचुप रहे वाली नयना के चेहरे पर एकदम से मुस्कुराहट आना और उसका हरदम खुश रहना लाज़वन्ति को भी सुकून दे रहा था लाज़वन्ति ने महिमा से नयना के दिल की सारी बात जान ली और उसी का परिणाम था की नयना आज यहा खड़ी होकर लोहे की बेहद पतली तारों से बनी खिड़की से उस पार जमीन पर बिछी चटाई पर बैठकर खाना खा रहे अंशुल को देख रही थी और मन ही मन ऊपर वाले का शुक्रिया कर रही थी उसे अपने सपने और ख़्वाब सच होते नज़र आ रहे थे..

खिड़की के इस पार नयना अंशुल को देखती हुई अनेको सपने संजो रही थी वहीं खिड़की के उस पार बैठा अंशुल अपने आसपास हो रही बातों को पूरी बेध्यानी के साथ अनसुना कर सिर्फ खाने पर ही ध्यान लगा रहा था... अंशुल के कान मे अब तक किसी की भी बात नहीं गई थी वो सुबह से भूखा था और अपनी माँ पदमा का बनाया लजीज खाना उसे इतना स्वाद लग रहा था की वो बीना नज़र उठाये बस खाने मे ही मग्न था उसे मलखान, बालचंद, प्रभाती लाल और लाज़वान्ति की बात तक सुनाई नहीं दे रही थी.. उसका मन बिलकुल खाली था जहा रिक्त स्थान के सिवा और कुछ नहीं था और अभी कुछ होने की उम्मीद करना भी फिज़ूल था... खाना खाने मे व्यस्त अंशुल ने ध्यान ही नहीं दिया की कब से मलखान उसका नाम लेकर उसे बुला रहा था जब लाज़वन्ति ने अंशुल के कंधे पर अपना हाथ रखा तब जाकर कहीं अंशुल को कुछ सुनाई दिया......

जजज.... जी... अंशुल ने हकलाते हुए कहा...
मलखान - अरे कहा खो गए नवाबजादे? कब से तुम्हारा नाम पुकारे जा रहा हूँ.. क्या अभी शादी की शहनाई सुनाई देने लगी?
मलखान की बात पर सभी जोर जोर से हसने लगे थे रसोई मे खिड़की पर खड़ी नयना के चेहरे पर भी हंसी ने अपना जमाव डाल दिया था लेकिन अंशुल पर तो जैसे मालखान की बात का कोई असर ही नहीं हुआ था वो फिर से अपना हाथ अपने मुँह तक लाकर निवाला मुँह मे ड़ालते हुए खाने मे लग गया...
कुछ देर बाद सभी आदमियों का खाना हो चूका था और अब उनके सोने की बारी थी..
अंशुल की आँखों के सामने ek-do बार नयना का चाँद की चांदनी सा खिलता हुआ खूबसूरत चेहरा सामने आया भी तो उसने उसे देखकर अनदेखा कर दिया... हाय.... कैसे कोई नयना की परी सी सूरत को देखकर भी अनदेखा कर सकता था? आखिर अंशुल मे एकाएक इतना बैराग कैसे उत्पन्न हो गया था? नयना के ह्रदय पर तो जैसे बिजली कोंध गई थी.. अंशुल के अनदेखा करने पर उसका तो खाने से जैसे मन ही मर गया था लेकिन पदमा और लाज़वन्ति के अगल बगल साथ बैठकर खाने से उसे भी बेमन से खाना खाना पड़ा....
आँगन मे ही तीन चारपाई लगाई गई थी जिसपर मलखान, प्रभाती लाल और बालचंद ने अपना आसान जमा लिया था.. एक टेबल फेन दाए से बाए फिर बाए से दाए घूमता हुआ तीनो को हवा दे रहा था लेकिन आज कुदरती हवा का बहाव कुछ ज्यादा था सो सभी को जल्द ही नींद आ गई... पदमा लाज़वन्ति और नयना को अपने कमरे के बेड पर सोने के लिए निमंत्रण देकर कूलर चलाते हुए बेड के बगल ने एक लोहे की बंद होने वाली चारपाई डालकर लेट गई...
जल्द ही पदमा और लाज़वन्ति को भी नींद आ गई पर नयना की आँखों मे नींद का नामोनिशान तक नहीं था वो बिस्तर पर करवट बदलती हुई अंशुल के बारे मे सोच रही थी....
रात करीब 2 बजे रहे थे नयना अपने बिस्तर से उतरकर बाथरूम जाने के लिए निकली लेकि न बाथरूम से वापस अपने नियत स्थान पर आने के बदले उसके कदम खुद ब खुद सीढ़ियों की तरफ बढ़ गए और वो अंशुल को देखने उसके कमरे की तरफ बढ़ गई...
अंशुल की आँखों मे भी अब तक नींद नहीं थी.. वो एक किताब हाथ मे लिए अपने कमरे मे इधर से उधर घूम रहा था.. जब नयना दरवाजे पर आकर खड़ी हो गई तब उसकी नजर एकाएक उसपर चली गई और वो रुक गया......
कहते है प्रेम मे बड़ी ताकत है यही ताकत आधी रात मे नयना को अशुल के कमरे तक खींच लाइ थी अंशुल नयना को इस समय अपने कमरे के दरवाजे पर देखकर हैरान था लेकिन उसकी हैरानी उसकी आँखों से बाहर नहीं आ रही थी वहीं नयना अंशुल को इस वक़्त इस तरह हाथ मे किताब लेकर इधर से उधर टहलते हुए देखकर उसपर हसना चाहती थी लेकिन इतनी हिम्मत और बेबाकी उसमे नहीं थी...
नयना बड़ी हिम्मत जुटा कर सिर्फ इतना कह पाई थी - सोये नहीं अब तक?
जिसके बदले मे अंशुल ने किताब टेबल ओर रखते हुए कहा था - तुम भी तो अब तक नहीं सोइ?
इसके आगे नयना के पास शब्द ही नहीं थे कुछ पूछने को, बात करने को, अंशुल के सामने अपनी बात कहने को.... लेकिन जब नयना की नज़र टेबल पर पड़े सिगरेट के पैकेट और लाइटर पर गई तो उसने झिझकते हुए पूछा - आप सिगरेट पीते हो?
शराब भी पीता हूँ.... अंशुल ने एक नज़र नयना को ददेखकर कहा और टेबल के सामने चेयर पर बैठते हुए सिगरेट और लाइटर उठाकर स्टडी टेबल की दराज मे रखकर किताब के पन्ने बदलने लगा....

नयना अंशुल की बेरुखी से छलनी हो चुकी थी अंशुल ने उसकी तरफ ठीक से देखा तक नहीं था आज उसे उसका ये रूप किसी काम का नहीं लगा रहा था उसके मन की मार्गतर्ष्णा आगे बढ़कर अंशुल के गले लगना चाहती थी लेकिन अभी दोनों के बीच कई फ़ासले थे जिसका तय होने जरुरी थी नयना ने बड़ी धीमी और लड़खड़ाते हुए शांत स्वर मे पूछा - जी.... दिन मे कितनी शराब सिगरेट पीते हो?
अंशुल - पत्ता नहीं.... कभी सोचा नहीं इस बारे मे...
नयना - अगहन तक सोच लेना.....
अंशुल अपनी किताब वापस रखते हुए - ऐसा क्या है अगहन मे?
नयना शर्म के मारे दुपट्टे से अपना मुँह छिपाती हुई मीठे स्वर मे बोली - हमारा ब्याह.... पीताजी ने अगले अगहन की पूर्णिमा का वक़्त तय किया है...

ये कहते हुए नयना दरवाजे से वापस सीढ़ियों की और मुड़ गई और नीचे आकर कमरे मे दाखिल होती हुई अपनी माँ लाज़वन्ति के पास आकर लेट गई जो गहरी नींद मे थी लेकिन अंशुल और नयना के अलवा एक और शख्स की आँखों मे नींद नहीं थी वो थी पदमा.... पदमा की आँख मे अभी तक नींद का कोई पहरा नहीं था उसे नयना के बाहर जाने से लेकर ऊपर अंशुल से मिलने और वापस आने तक की खबर थी मगर वो चुपचाप तकिये पर सर रखे अपनी ही सोच मे मग्न थी उसने सिर्फ नयना को देखा था अंशुल के नयना का प्रेम निश्छल था.....

सुबह सूरज की किरण ने अपना उजाला बिखेरा तो धरती का अन्धकार दूर हुआ और चारो ओर के वातावरण मे नई सी ताज़गी ओर ऊर्जा का संचार हुआ.. सुबह के छः बज रहे थे पदमा रसोई मे चाय नाश्ता त्यार कर रही थी वहीं लाज़वन्ति पदमा को इस काम मे मदद कर रही थी नयना अभी बिस्तर पर ही थी रात को देर से सोने के कारण उसकी आँख अभी तक नहीं खुल पाई थी लाज़वन्ति ने उसे जगाना चाहा पर पदमा ने लाज़वन्ति को ऐसा करने रोक दिया ओर काम मे अपना हाथ बटाने रसोई मे साथ ले आई....

नयना की आँख खुली तो सुबह के साढ़े सात बज रहे थे नयना जब कमरे से बाहर आई तो उसने देखा की आँगन मे बैठे सब लोगों का नशा हो चूका था ओर मलखान प्रभाती लाल ओर बालचंद आपस मे गप्पे मार रहे थे तभी पदमा ने नयना को चाय का कप देते हुए पूछा - रात को देर से नींद आई थी?
नयना ने चाय कप लेते हुए सर नीचे झुका लिया ओर बिना कोई जवाब दिए रसोई के अंदर चली गई जहाँ लाज़वन्ति पहले से मोज़ूद थी..

सबके चाय नाश्ता होने के बाद मलखान ने कहा - अच्छा बालचंद भाई... अब अगले इतवार को आप सपरिवार प्रभाती जी यहा आने का कष्ट करेंगे.... वैसे तो ब्याह शादी की सारी बातें तो कल हो ही चुकी है पर मेल मिलाप चलता रहे तो अच्छा है... संबंधों मे मधुरता बनी रहती है....
प्रभाती लाल - जी... बालचंद जी... मलखान सिंह जी ठीक फरमा रहे है... इस इतवार आप भी हमारे गरीबखाने आकर हमें अपनी सेवा का मौका दीजिये...
बालचंद - अरे सरपंच जी आप क्यूँ मुझे सर्मिन्दा कर रहे है? आप जब बुलाएंगे हम तब आपके सामने हाजिर हो जाएंगे.....
प्रभाती लाल - अच्छा तो बालचंद जी.... ये नेक कबूल कीजिये.. आज से आपका आशु हमारा हुआ.... अब जाने की आज्ञा दे...
बालचंद - अरे रुकिए सरपंच जी... मैं आशु को नीचे बुला लेता हूँ... आप उसी के हाथ मे थमा दीजियेगा...
मलखान - अरे रहने दीजिये बालचंद भाई.... सोने दीजिये आशु को.. कहा नींद से जगाईंयेगा.... आप तो बस इस इतवार आना ना भूलियेगा....
बालचंद - कैसी बातें करते है मलखान भाई... जरूर...

मलखान प्रभाली लाल और लाज़वन्ति के साथ नयना को भी वापस ले जाता है बालचंद ख़ुशी से झूमता हुआ कमरे मे आ जाता है वहीं पदमा चाय का कप हाथ मे लेकर अंशुल के कमरे की तरफ बढ़ती है..
पदमा - रातभर नींद नहीं आई? आँखे कैसे सूझ गई है..... लो चाय पिलो...
अंशुल बिस्तर पर उल्टा लेता हुआ - उन सब लोगों को घर बुलाने कि क्या जरुरत थी? आप जानती हो ना मैं ये शादी नहीं करूंगा....
पदमा - इतनी खूबसूरत तो है लड़की.... घर का सारा कामकाज भी जानती है... तुम्हे प्यार करती है तो खुश भी रखेगी...

अंशुल अपने बेड से उठकर बिना चाय के कप को हाथ लगाए बाहर निकाल जाता....
बालचंद नीचे आटे हुए अंशुल से - अरे कहाँ जा रहा है? देख तेरे लिए सोने की चैन नेक मे दी है सरपंच जी ने....
अंशुल गुस्से से - वापस लौटा दो.... मैं कोई ब्याह व्याह नहीं करने वाला.... और अगली बार किसी को घर बुलाने से पहले मुझसे पूछ लेना...
इतना कह कर अंशुल घर से बाहर चला जाता है....

बालचंद गुस्से मे - अरे आखिर चाहता क्या है तुम्हारा लड़का.... केसा निरमोही है? इतनी सुन्दर सुशील कन्या मिली है... अच्छा खासा खानदान है और दान दहेज़ भी बढ़चढ़कर देने को त्यार है फिर फिर ये है की शादी नहीं करना चाहता....

पदमा नीचे आती हुई - मैंने तो पहले ही कह दिया था मेरा बच्चा जो चाहेगा वहीं होगा.... अगर उसकी इच्छा अभी ब्याह करने की नहीं है तो क्यूँ जबरदस्ती उसके साथ ज़िद करते हो? मेरा बेटा बिकाऊ नहीं है जो कोई खरीद ले.... देखा नहीं कल कैसे अपनी शेखी बगार रहे थे व्याह के बाद मेरे आशु को घर जमाई बनाने की तयारी मे है सब....
बालचंद - तो क्या हुआ? कम से कम लाखो करोडो का मालिक बनकर तो रहेगा.... कब तक ऐसे ही घर मे पड़ा रहेगा....
पदमा इस बार गुस्से मे तमकती हुई बोली - अपनी ये चपरासीगिरी कहीं और जाकर करना.... कह देती हूँ अगर मेरे बच्चे के साथ जोर जबरदस्ती की तो मुझसे बुरा कोई ना होगा... उसका मन होगा तो व्याह करेगा नहीं होगा तो नहीं करेगा.... मैं चाँद रुपयों के लिए अपने आशु का सौदा नहीं करुँगी.... शाम को घर आते वक़्त ये नेक सूत समेत मलखान जी को दे आना और कह देना की हमारा आशु अभी व्याह के लिए त्यार नहीं है वो प्रभाती जी को समझा देंगे....

बालचंद छिड़ते हुए घर से निकल जाता है और सरकारी विभाग मे वहीं चाय समोसे खिलाने और धूल जमीं फाइल्स इधर उधर करने मे लग जाता है वहीं आशु का गुस्सा दोपहर तक ठंडा हो चूका था और वो घर आकर अपने रूम मे चला जाता है पदमा अपने बिस्तर पर लेटी अपनी ही दुनिया मे मग्न थी उसके ख्याल उसे आराम नहीं लेने दे रहे थे....

39 साल की पदमा आज भी किसी नवयौवना की भाति ही दिखाई पढ़ती थी सुडोल उन्नत छाती और नितम्भ, पतली चिकनी कमर उसके यौवन को और निखार प्रदान करते थे अंशुल को सुन्दर नयननक्श पदमा से ही मिले थे पदमा सिर्फ 5 फ़ीट 3 इंच लम्बी थी लेकिन उसकी कम उच्चाई ने उसके रूप और माधूरये को तनिक भी कम नहीं किया था गोरी गठिली देह और काली कजरारी आँखे पदमा के सौन्दर्य मे चार चाँद लगाती थी माथे पर लाल बिंदिया तो जैसे उसे किसी अप्सरा तुल्य होने की बात बतलाती थी.... पदमा जब अपने बेटे अंशुल से गले लगती तो 6 फ़ीट लम्बे अंशुल के सीने मे पदमा का सर ऐसे छुप जाता था जैसे गहरी झील मे भोर के समय चाँद छुप जाता है...

पदमा अभी अंशुल के बारे मे ही सोच रही थी उसे नयना पसंद आई थी और पदमा चाहती भी थी की नयना अंशुल की ब्याहता बने लेकिन उसके मन मे अनेक ख्याल चल रहे थे की अगर नयना अंशुल से व्याह करती है तो वो कहीं अंशुल को उससे अलग ना कर दे....
नयना की माँ लाज़वन्ति के मन मे तो यही चल रहा था पदमा समझ गई थी लेकिन नयना की आँखों मे अंशुल के लिए प्रेम भी उसने देखा था वो किसी असमंजस मे थी जिससे पार पाना उसके बस मे नहीं था रातभर नींद ना आने के बाद भी उसकी आँखों मे नींद नहीं थी.....

दिन के दो बज चुके थे.. पदमा इस गर्मी मे एक गिलास निभूपानी बनाकर अंशुल के कमरे के तरफ बढ़ गई और अंदर जाकर गिलास टेबल पर रखते हुए दरवाजा अंदर से बंद कर लिया....

दिन के दो बजे बंद हुआ अंशुल के कमरे का दरवाजा जब शाम के छः बजे खुला तो पदमा अपने ब्लाउज के बटन बंद करती हुई बाहर की तरफ आई और सीढ़ियों से नीचे की तरफ चली गई उसीके पीछे पीछे अंशुल अपने बदन पर सिर्फ टावल पहने बाहर आकर बाथरूम मे चला गया था.. इन चार घंटो मे उन दोनों के बीच क्या हुआ था ये सिर्फ वो दोनों ही जानते थे.....

सात बजे जब घर की घंटी बाजी तो रसोई मे काम करती हुई पदमा ने जाकर दरवाजा खोला... बाहर खड़े बालचंद ने पदमा को देखकर मुँह बनाते हुए घर मे कदम रखा और सीधा कमरे मे जाकर बिस्तर पर लेट गया.......
पदमा - क्या हुआ? बात हुई मलखान भाईसाब से?
बालचंद मुँह फेरते हुए - हां.... लौटा दिया नेक... कह दिया की नवाब साहब की अभी शादी करने की इच्छा नहीं है.... अब तक तो मलखान ने फ़ोन करके प्रभाती लाल जी को भी बता दिया होगा.... केसी औलाद पैदा की है.. मुझे तो शक है मेरी औलाद है भी या नहीं...
पदमा बालचंद की बात का जवाब दिए बिना ही फिर से रसोई मे चली गई और कुछ देर बाद खाने से भरी हुई थाली लाकर बालचंद के सामने परोस दी... अंशुल भी नीचे आकर खाने की थाली लेकर आँगन मे रखे सोफे पर बैठकर खाना खाने लगा था.... बालचंद की आज खाने की इच्छा बिलकुल भी नहीं थी वो दुखी था और उसके दुख का कारण प्रभाती लाल जैसे धनवान के घर रिश्ता नहीं कर पाना था उसे अंशुल पर गुस्सा आ रहा था.... अंशुल खाना खाकर घर से बाहर चला गया था वहीं खाने के बाद जब बालचंद ने रसोई मे काम कर रही पदमा से पानी माँगा तो पदमा ने गिलास मे पानी भर कर अपने ब्लाउज के अंदर दाहिनी तरफ अपनी दो ऊँगली डालकर एक शीशी निकली और उसमे से एक गोली निकलकर गिलास मे डाल दी जो पानी मे नमक की तरह घुल गई... पदमा ने शीशी वापस अपने ब्लाउज मे डालकर बालचंद को पानी का गिलास दे दिया जिसे बालचंद ने एक सांस मे पीते हुए ख़त्म कर दिया.. पदमा खाने की झूठी थाली और गिलास लेकर रसोई मे आ गई और खुद भी खाना खाने बैठ गई... खाना खाने के बाद पदमा झूठे बर्तन धोने बैठ गई थी...

रात के लगभर 9 बजे थे और अबतक अंशुल वापस घर आकर अपने कमरे मे जा चूका था और पदमा भी रसोई से फ्री होकर अपने कमरे मे आ गई थी उसने देखा की बालचंद किसी मुर्दे की तरह बेड पर अचेत लेता हुआ सो रहा था.... पदमा ने बालचंद को यूँही सोता छोड़कर अपनी अलमारी खोली और एक बेग बाहर निकाला जिसमे पदमा के कपडे थे.. पदमा ने उनमे से एक लाल साडी बाहर निकली और पहन ली उसके बाद अलमारी से दूसरा बेग निकलकर उसमे रखे श्रंगार के सामान को बाहर निकालते हुए आईने के सामने बैठ गई और खुदका श्रंगार करने लगी... पदमा ने किसी त्यौहार की तरह आज खुदको सजाया था हाथो मे खानखनती चुडिया होंठों पर लाल सुर्ख लिपस्टिक आँखों मे काजल माथे पर बिंदिया और बदन पर छिड़का हुआ इत्र....
इस वक़्त पदमा को एक नई नवेली दुल्हन कहना गलत नहीं था पूरा एक घंटा उसने त्यार होने मे लगाया था अब रात के दस का समय था...

पदमा इसी तरह सजीधजी हुई रसोई से एक पानी बोतल अपने हाथ मे लेकर अंशुल के कमरे मे चली गई और फिर से अंदर से दरवाजा बंद कर लिया.. इस बार जो दरवाजा बंद हुआ तो फिर सुबह के 5 बजे ही खुला.. रात के पुरे सात घंटे पदमा ने अपने बेटे अंशुल के कमरे मे बिताये थे और इस बीच उस कमरे मे क्या हुआ इसकी खबर किसी को नहीं थी..

पदमा जब सुबह पांच बजे अंशुल के कमरे से निकली तो उसके बदन पर एक भी कपड़ा नहीं था.. लेकिन उसके एक हाथ मे उसके सारे कपडे थे जो वो रात मे पहन कर आई थी.. पदमा नग्न अवस्था मे ही नीचे चली गई और सारा सामान अलमारी मे वापस रखकर बाथरूम मे नहाने चली गई.. अंशुल अपने बिस्तर पर गहरी नींद मे खराटे भर रहा था.... पदमा ने रोज़ की तरह ही सुबह सात बजे बालचंद को नींद से जागते हुए चाय का प्याला सामने रख दिया फिर बाहर आ गई और रोज़ की तरह की बालचंद चाय पीकर पखाने फिर नाहने के लिए गुसलखाने चला गया उसके बाद खाना खाकर टिफिन हाथ मे पकड़े अपनी ड्यूटी बजाने चला गया....

पदमा का चेहरा आज खिला हुआ लग रहा था उसके चेहरे पर आज सुबह से ही ख़ुशी के भाव थे जिसे समझ पाना बिलकुल आसान था बालचद तो मुर्ख आदमी था वरना इस तरह एक औरत के चेहरे का हावभाव देखकर कोई भी उसके पीछे की वजह बता सकता था...
पदमा इस वक़्त आईने के सामने खड़ी होकर अपना ब्लाउज खोले अपने दोनों सुडोल गोलाकार उठे हुए मुख वाले उन्नत स्तन पर उभरे गहरे लाल निशान देखकर मन ही मन मुस्कुराते हुए खुद से ही शर्मा रही थी रही थी तभी उसे अंशुल की आवाज सुनाई दी....
अंशुल - माँ...... माँ......
पदमा अपना ब्लाउज बंद करके साडी ठीक करती हुई बाहर आई और सीढ़ियों से नीचे आते अंशुल से बोली - हां? क्या हुआ है?
अंशुल - बाइक की चाबी कहा है?
पदमा - अंदर होगी लाती हूँ..... कहा जाना है?
अंशुल - बाजार जा रहा हूँ कुछ बुक्स लानी है....
पदमा चाबी लाते हुए - अच्छा है.... मुझे भी बाजार जाना था चल साथ मे चलते है....
अंशुल - पर माँ.... बाजार मे बहुत टाइम लगेगा आपको... एक बार आप किसी दूकान मे घुसती हो तो पूरी दूकान देखकर ही बाहर निकलती हो....
पदमा - कुछ टाइम नहीं लगेगा लल्ला.... चल.... मैं भी साथ चलती हूँ...
अंशुल - ठीक है जल्दी करो....
अंशुल बाइक निकलता है और पदमा उसके पीछे बैठ जाती है दोनों घर को लॉक करके बाजार की तरफ चले जाते है और पहले अंशुल अपनी किताबे खरीदता है और फिर पदमा अंशुल को लेकर बाजार मे एक दूकान से दूसरी दूकान घूमती है...
अंशुल - माँ... यार क्यूँ थका रही हो? जो लेना एक ही दूकान से लेलो ना....
पदमा - अरे ऐसे कैसे ले लू? कितना महंगा बता रहा था.. क्या लूट मची है.... दो चार दूकान पर मोल भाव करने से ही सही दाम पत्ता लगेगा.. वरना ऐसे तो दुकानदार किसी चीज का कुछ भी वसूल लेगा...
अंशुल - अच्छा ठीक है मेरी माँ..... अब चलो..
पदमा अगली दूकान पर चली जाती है और इस बार फाइनली अंशुल के दबाब बनाने पर उसे सामान खरीदना ही पड़ता है....
सामान खरीदने के बाद पदमा बाइक पर अंशुल के पीछे बैठ जाती है और मन ही मन हवा मे कुछ बड़बड़ाती हुई दूकानदार को उल्टा सीधा कहने लगती है....
पदमा - एक नम्बर का चोर था चोर.... पांच सो से एक पैसा ज्यादा की नहीं थी ये साडी... खामखा हज़ार रुपए ले लिए... अच्छा..... रोको रोको..... जरा रोको.... आशु..... रोको....
अंशुल बाइक सडक के किनारे लगाते हुए चिढ़कर - माँ.... अब क्या हुआ? अब क्या खरीदना रह गया आपको....
पदमा अंशुल को मेडिकल स्टोर की तरफ आँखों से इशारा करती हुई बोली - जाओ....
अंशुल प्रशनवाचक निगाहो से पदमा को देखता हुआ बोला - ख़त्म हो गए?
पदमा अंशुल की आँखों मे देखती हुई - रात को तुमने ही तो खाली पैकेट मुझे फेंकने को दिया था भूल गए?
अंशुल जेब से दो पांच सो के नोट निकालकर पदमा को देता हुआ - लो.... जाओ....
पदमा झिझकते हुए - मैं नहीं तुम ही ले आओ....
अंशुल गुस्से से - माँ यार.... धूप लग रही है.... जल्दी जाओ ना.... क्यूँ आप नखरे कर रही हो?
पदमा अंशुल से पैसे लेकर बाइक से उतर जाती है और सारा सामान अंशुल को थमा कर पर्स से एक मास्क पहनकर मेडिकल स्टोर की तरफ बढ़ जाती है शॉप पर कोई ग्राहक नहीं था बस एक लड़का दुकान के अंदर बैठा था जो शॉपकीपर लगा रहा था.....
शॉपकीपर - जी भाभी जी... क्या दूँ...
पदमा - भईया 2 कंडोम के पैकेट दे दो....
शॉपकीपर - 3 वाला या 8 वाला?
पदमा - जी आठ वाला.....
शॉपकीपर - जी ***** रुपए...
पदमा पैसे देकर कंडोम पर्स मे डाल लेती है और मेडिकल स्टोर से आगे की तरफ एक किराने की दूकान पर चली जाती है.....
दूकानदार - जी मैडम.... क्या चाहिए?
पदमा - भाईसाब 2 बड़ी एडवांस सिगरेट का पैकेट और एक लाइटर दे दो.....
दुकानदार - जी लीजिये मैडम **** रुपए...
पदमा पैसे देकर सिगरेट के पैकेट और लाइटर भी पर्श मे डाल लेटी है और वापस आकर्षित अंशुल से सामान लेकर बाइक के पीछे बैठ जाती है और कुछ देर मे दोनों वापस घर पहुंच जाते है....

पदमा सारा सामान अपने कमरे मे रख देती है और अपने पर्स से कंडोम और सिगरेट निकलकर अंशुल को दे देती है जिसे अंशुल अपने रूम मे लेजाकर अलमारी मे छुपा देता है और फिर अपनी किताबो मे खो जाता है वहीं पदमा को नींद आ जाती है जो बालचंद के घर आने पर ही खुलती है....

पिछले रोज़ की तरह आज भी पदमा मे बालचंद को पानी मे मिलाकर कुछ पीला दिया था जिससे बालचंद खाने के कुछ देर बाद ही घोड़े बेच कर सो गया पदमा फिर से त्यार होकर लगभर रात के 9 बजे अपने बेटे अंशुल के कमरे मे पहुंच गई थी.... अंशुल किताबो मे सर घुसाए उंगलियों से पेंसिल घुमा रहा था तभी पदमा ने कमरे मे दाखिल होते हुए अपने हाथ मे से हल्दी वाले दूध का गिलास मैज़ पर रख दिया और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.... इस बार भी दरवाजा सुबह 5 बजे के आस पास ही खुला और उसी तरह पदमा सीढ़ियों से नीचे चली गई और अंशुल बाथरूम....

3-4 दिन इसीलिए तरह बीते थे एक शाम बालचंद सर पीटता हुआ घर आया....
पदमा बालचंद को देखकर - अरे क्या हुआ? कोनसी आफत आ गई जो ऐसा हाल बना रखा है....
बालचंद - आफत तो आ ही पड़ी पदमा... तबादला हुआ बड़े शहर मे... जरूर बड़े बाबू ने मेरी शिकायत अफसर लोगों से की होगी....
पदमा - मैं तो पहले ही कहती थी ज्यादा लालची मत बनो... अब भुगतो... 100-50 रुपए की लालच मे पहले ही इज़्ज़त लुटा बैठे थे अब तबादला भी करा बैठे.... मैं साफ कह देती हूँ... मैं कहीं नहीं जाउंगी घर छोडके...
बालचंद - अरे तुम भी मुझे ही कोस रही हो....तुम रहो यहां अपने लाडले सपूत के साथ मे अकेला ही चला जाऊंगा.... अब किया है सो भोगना भी तो पड़ेगा...
पदमा - कब जाना होगा?
बालचंद - आज रात की गाडी से ही जाऊंगा.... परसो दफ़्तर मे हाज़िरी देनी है.... जरा बेग मे मेरे कुछ कपडे रख देना....
पदमा - रख दूंगी.... कम से कम वहा तो ठीक से रहना....

बालचंद एक बेग कंधे पर लेकर रात की गाडी से शहर के लिए निकाल गया था अंशुल ने ही बाइक से बस स्टैंड लेजाकर बालचंद को शहर जाने वाली गाडी मे बैठाया था वापस घर आते आते उसे रातके ग्यारह बज गए थे.... अंशुल जब घर आया तो पदमा ने उसकी और खाने की थाली बढ़ाते हुए खाने के लिए कहा जिस पर अंशुल ने खाना लेते हुए वहीं बैठकर खाना खाने लगा...

कुछ देर बाद पदमा अपने रूम मे चली गई और अंशुल भी खाना खाने के बाद अपनी माँ पदमा के पीछे पीछे उसके रूम मे आ गया और इस बार अंशुल ने दरवाजा बंद किया... रात के बारह बज रहे थे..... इस बार जो दरवाजा बंद हुआ तो सुबह भी नहीं खुला.... रात को बारह बजे बंद हुआ दरवाजा रात और दोपहर निकलने के बाद शाम के 6 बजे खुला....

अंशुल अपनी माँ पदमा के रूम से निकलकर अपने रूम मे चला गया और थोड़ी देर बाद पदमा भी अपने रूम से निकलकर घर के कामो मे लग गई....

रात करीब आठ बजे ज़ब अंशुल नीचे आया तो टीवी पर गाने चल रहे थे पदमा रसोई मे बर्तन साफ करके उन्हें रख रही थी तभी टीवी पर एक गाना चला जिसकी वॉल्यूम अंशुल ने बढ़ा दी और अपनी माँ पदमा का हाथ पकड़कर रसोई से बाहर ले आया और आँगन मे पदमा की नंगी कमर मे अपना एक हाथ डालकर अपने सीने से लगा लिया और टीवी मे चल रहा गाना गुनगुनाते हुए पदमा के साथ सालसा डांस की तरह ही अपने माँ पदमा को बाहों मे भरे इधर से उधर होने लगा करने लगा...

ओ हंसिनी..... मेरी हंसिनी.....
कहाँ उड़ चली....
मेरे अरमानों के पंख लगाके
कहाँ उड़ चली....

आजा मेरी सांसों में महक रहा रे तेरा गजरा......
आजा मेरी रातों में लहक रहा रे तेरा कजरा.......
हो आजा मेरी सांसों में महक रहा रे तेरा गजरा......
हो आजा मेरी रातों में लहक रहा रे तेरा कजरा.....

ओ हंसिनी..... मेरी हंसिनी......
कहाँ उड़ चली
मेरे अरमानों के पंख लगाके
कहाँ उड़ चली.......

पदमा ने अपने दोनों पैर ज़मीन से उठा लिए थे और अब वो अंशुल की बाहों मे थी.. कम हाइट और वेट के कारण अंशुल आसानी से अपनी माँ पदमा को अपने बाहों मे उठाये गाना गुनगुनाते हुए आँगन मे घूम रहा था वहीं पदमा मुस्कुराते हुए अपने बेटे के इस रोमेंटिक अंदाज़ पर मन्त्रमुग्ध होकर एकटक उसकी आँखों मे अपने लिए प्रेम और कामरस की झलक पाकर बहक रही थी अंशुल पदमा को गाना गुनगुनाते हुए आँगन मे रखे सोफे की तरह ले जाने लगता है.......

देर से लहरों में कमल संभाले हुये मन का......
जीवन ताल में भटक रहा रे तेरा हंसा......
हो देर से लहरों में कमल संभाले हुये मन का......
हो जीवन ताल में भटक रहा रे तेरा हंसा.......
ओ हंसिनी..... मेरी हंसिनी......
कहाँ उड़ चली......
मेरे अरमानों के पंख लगाके
कहाँ उड़ चली... कहाँ उड़ चली... कहाँ उड़ चली....

गाना ख़त्म होते होते अंशुल ने अपनी माँ पदमा को सोफे पर लिटा दिया था और खुद उसके ऊपर आ चूका था और उसकी बिखरी हुई जुल्फों को संवारते हुए गाने की समाप्ति पर अंशुल ने अपनी माँ पदमा के होंठो को अपने होंठों की गिरफ्त मे लेकर चूमना शुरु कर दिया था जिसमे पदमा अपने दोनों हाथ अंशुल के गले मे डाल कर उसका पूरा साथ दे रही थी और भर भर के अपने लबों से मधुशाला का प्याला अंशुल के मुँह मे उड़ेल रही थी.. टीवी पर गाना बदल गया था और इस बार एक नया गाना बजने लगा था जिसने दोनों की भावनाओं को और भी कामुक बनाने का काम किया...

भीगे होंठ तेरे.... प्यासा दिल मेरा....
लगे अब्र सा.... मुझे तन तेरा....
जम के बरसा दे.... मुझ पर घटायें....
तू ही मेरी प्यास..... तू ही मेरा जाम.....
कभी मेरे साथ कोई रात गुज़ार.....
तुझे सुबह तक मैं करूँ प्यार.....
वो ओ ओहो....
वो ओ ओहो.....
वो ओ ओहो.....
वो ओ ओहो....

करीब 10-15 मिनट इसी तरह पदमा और अंशुल एकदूसरे के मुख का स्वाद लेते रहे पदमा तो रह रह कर अंशुल के होंठो को अपने दांतो से काट लेटी लेकिन अंशुल बड़े आराम और प्रेम से पदमा के होंठो को चूमता और प्यार करता.. दोनों की जीभ भी एकदूसरे के जीभ से कुस्ती कर रही थी जिसमे पदमा को विजेता बनाया जा सकता था पदमा ने जब अंशुल के होंठ को दांतो से खींचते हुए काटा तो अंशुल के मुख से अहह निकाल पड़ी और वो अपनी माँ पदमा को झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोला - माँ.... आराम से ना.... आप तो जंगली बन जाती हो....
पदमा मुस्कुराकर वापस अंशुल के मुँह को अपनी तरफ खींचती हुई बोलती है - अच्छा बाबा... Sorry.... माफ़ कर दो....
और फिर वापस दोनों मे प्रगाड़ चुम्बन बन जाता है जिसमे वापस दोनों बंध जाते है.. अंशुल बड़े प्यार अपनी माँ पदमा के गुलाबी लबों पर अपने होंठों को रखता और चूमने लगता है वहीं पदमा इस बार भी अंशुल पर रहम नहीं खाती और फिर से उसे किसी भूखी शेरनी की तरह चूमने लगती है अंशुल अपनी माँ के इस रूप से भली भाति परिचित था और उसे भी पदमा के इस तरह से प्यार करने पर मज़ा आता था...
दोनों का चुम्बन अभी शुरु हुए कुछ देर ही हुई थी की दरवाजे पर किसीके आने की दस्तक हुई...
अंशुल ने दरवाजे की बेल सुनी तो पदमा से चुम्बन टूट गया और पदमा कामरस के रसातल से बाहर निकलकर क्रोध की अग्नि मे प्रवेश करती हुई बड़बड़ाई - पत्ता नहीं कौन मादरचोद इस वखत दरवाजा पिट रहा है..
ये कहते हुए पदमा अंशुल के नीचे से निकलकर दरवाजे की ओर चली गई.. अंशुल रसोई मे जाकर पानी पिने लगा उसने आज से पहले भी बहुत बार पदमा के मुँह से गन्दी गन्दी गाली सुनी थी पदमा का ये चरित्र केवल अंशुल के आगे ही उजागर था ओर अंशुल भी कभी कभी पदमा के साथ उसी अंदाज़ मे गली गलोच कर लिया करता था जब वो दोनों अकान्त के पलो मे होते थे दोनों का व्यभिचार किसी के सामने अब तक नहीं आया था ओर दोनों ने ही इसे छिपाने के लिए बहुत प्रयास किये थे जिसके कुछ नियम भी दोनों ने बना लिए थे....

पदमा ने दरवाजा खोला था सामने बालचंद खड़ा था पदमा बालचंद को देखते ही आश्चर्य मे पड़ गई बालचंद अंदर आया तो पदमा दरवाजा बंद करते हुए अंदर आकर बालचंद से पूछने लगी - वापस तबादला हो गया तुम्हारा?
बालचंद ने जूते उतारते हुए जवाब दिया - इतनी आसानी से कहा.... उसके लिए तो अब बहुत पापड़ बेलने पड़ेंगे.. शनिवार इतवार ओर त्यौहार के चलते पुरे 4 दिन का लम्बा अवकाश मिला है सोचा घर ही चला आउ....
पदमा को ये सुनकर मन ही मन त्योहारों ओर शनिवार इतवार पर गुस्सा आ रहा था ओर बालचंद पर भी गुस्सा आ रहा था की उसने अचानक आकर उसकी ओर उसके बेटे की रासलीला मे खलल डाला था.... लेकिन उसने ऊपर मन से बालचंद को कहा - अच्छा किया.... ओर अंदर चली गई...
बालचंद ने पदमा से पूछा - कहा है तुम्हारा लाडला? अभी भी अपने कमरे मे ही बिस्तर तोड़ रहा होगा....
पदमा इतना सुनकर गुस्से से तिलमिला गई ओर बालचंद पर चिल्लाती हुई बोली - सांस तो ले लो... आते ही मेरे बच्चे पर चढ़ना जरुरी है? जब देखो उसे ताना मारते रहते हो.. ऐसा भी क्या बिगाड़ा है तुम्हारा मेरे बच्चे ने? तुम्हे तो वापस आना ही नहीं चाहिए था.. वहीं कहीं पड़े रहते तो अच्छा था....

इस बार बालचंद पदमा का गुस्सा देखकर कुछ नहीं बोल पाया चुपचाप कपडे बदल कर खाना खाने बैठ गया वहीं अंशुल बालचंद के अंदर आने से पहले ही उसकी आहट पाकर ऊपर अपने कमरे मे जा चूका था ओर पदमा ना चाहते हुए भी बालचंद के साथ बैठी थी पदमा ने बालचंद के खाने मे दवा मिला दी थी जिससे बालचंद जल्दी ही नींद के आगोश मे चला गया जिसके बाद पदमा भी अंशुल के रूम मे चली गई ओर दरवाजा बंद कर लिया....



Kahani apni jagah sahi hai, lekin ek bat bata dena chahta hu, casual sex/one night stand/mom with benefits tk to thik hai, lekin ek bar maa bete me suhagrat man gai aur husband wife wala bond ban gya to phir na ldka kisi aur ko dekhta hai, na maa kisi aur ko dekhti hai. Maa ideal wife hoti h bete ke liye, bs koi koi beta hi responsible ideal husband ban pata hai.
 
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