Kumarshiva
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Ab thoda naina aur ashu ki kahani thoda track pr aayi hai,mahima ke ghar se aakar ashu ekdam sust pad gya,naina ke liye bechain nhi dikh rha
अध्याय 5
सुरीली के सुरु
आधी रात ढल चुकी थी मगर नयना की आँखों में नींद का नमोनिशान तक नहीं था, होता भी कैसे उसका प्यार भरा दिल जो टूट चूका था.. उसकी पहली नज़र की मोहब्बत बेवफा निकली थी, मोहब्बत तो मोहब्बत उसकी अपनी माँ तक ने उसके साथ विश्वासघात किया था.. नयना कैसे उन दोनों की उस बेशर्मी भारी हरकत को भूल सकती थी? क्या लाज़वन्ति को मालूम नहीं था की वो अंशुल से कितना प्यार करती है? और क्या अंशुल नहीं जानता था की लाज़वन्ति उसकी माँ है? फिर कैसे उन दोनों ने नयना के साथ इतना बड़ा धोखा कर लिया? नयना अपने बिस्तर पर पेट के बल लेटी हुई अपनी लूटी हुई मोहब्बत का मातम मना रही थी और सोच रही थी की क्या मोहब्बत करना गलत है? और गलत है तो फिर क्यों मोहब्बत सजा नहीं होती? मोहब्बत को सरे बाजार पत्थर मारकर क्यों ख़त्म नहीं कर दिया जाता? मजनू को भी तो वहीं सजा मिली थी? क्यों मोहब्बत का गला घोंटकर नहीं मार डाला जाता?
मोहब्बत अगर कोई इंसान होता तो उससे हिसाब भी लिया जा सकता था मगर मोहब्बत तो एक अहसास है एक लगाव है जिसमे मोह और स्नेह की अपार मात्रा मिली होती है और जो शाश्वत होती है जिसमे वासना की कोई मिलावट नहीं होती! मोहब्बत क्या किसी के बस में है? क्या इश्क़ हर चीज सोच समझकर किया जाता है? अगर सोच समझके किया जाता है तो वो भला कैसे इश्क़ है? रात के उस वक़्त ऐसे ही ख्यालों का सामना करती नयना अपने तकिये को अपने सीने से लगाए अपने आप से मन ही मन बाते किये जा रही थी.. और उसके फ़ोन से जुड़े इयरफोन के तार उसके दोनों कानो में लगे हुए थे जिनपर रेडियो का एक प्रोग्राम जख़्मी दिल चल रहा था एक रेडिओ जोकी बेहद दर्द भारी आवाज में टूटे दिल और प्यार में नाकाम आशिक़ो का हाले बयान सुना रहा था जो नयना के जख्मो पर मरहम की जगह नमक का काम कर रहा था.. अपनी दर्द भरी बात ख़त्म कर अभी अभी एक गाना शुरू हुआ था....
अगर दिल गम से खाली हो तो जीने का मज़ा क्या है
ना हो खून-ए-जिगर तो अश्क़ पिने का मज़ा क्या है
ना हो खून-ए-जिगर हाँ हाँ
ना हो खून-ए-जिगर तो अश्क़ पिने का मज़ा क्या है
मुहब्बत में ज़रा आंसू बहाकर हम भी देखेंगे
मुहब्बत में ज़रा आंसू बहाकर हम भी देखेंगे
तेरी महफ़िल में किस्मत आज़मा कर हम भी देखेंगे
अजी हाँ हम भी देखेंगे
इस गाने ने नयना के नयनों से नीर की वर्षा आरम्भ कर दी थी एक के बाद एक आंसू की बुँदे उसके कजरारे कारे मतवारे कटीले साजिले नयनों के अंतरस्थल से बाहर की ओर आ रहे थे साथ में ला रहे थे अंशुल की बेवफाई का दर्द.. ना जाने ऐसी कितनी राते पिछले दो महीनों में उस पागल लड़की ने इसी तरह गुज़ार दी थी! हाय इतनी मासूम लड़की का इतना भारी दुख अभी तक कोई भी क्यों नहीं समझ पाया था? उसने उस दिन के बाद से किसी से हंस बोल कर बाते नहीं की थी किसी से अपने मन की बाते नहीं की थी... लाज़वन्ति से भी उसने कोई शिकायत नहीं की थी ना ही उसने लाज़वन्ति को उसके किये के लिए धुँत्कारा था.. वो आखिर लाज़वन्ति से शिकायत भी क्या करती? क्या लाज़वन्ति को सब नहीं पत्ता था? लाज़वन्ति ओर नयना के बीच तो सब जैसे पहले था वैसे ही अब था, हां नयना ने लाज़वन्ति से बात करना जरुर बंद कर दिया था अब तो बस ओपचारिक बातों के अलावा दोनों में कुछ भी बाते नहीं होती थी..
नयना जो हमेशा गाने की ताल पर कदमताल करती हुई नाचने लगती थी वो अब गाने के बोल समझने की कोशिश कर रही थी.....
पलकों के झूले से सपनों की डोरी
प्यार ने बाँधी जो तूने वो तोड़ी
खेल ये कैसा रे, कैसा रे साथी
दीया तो झूमें हैं, रोये हैं बाती
कहीं भी जाये रे, रोये या गाये रे
चैन न पाये रे हिया..... वाह रे प्यार, वाह रे वाह
दुःख मेरा दुल्हा है, बिरहा है डोली
आँसू की साड़ी है, आहों की चोली
आग मैं पियूँ रे, जैसे हो पानी
नारी दिवानी हूँ, पीड़ा की रानी
मनवा ये जले है, जग सारा छले है
साँस क्यों चले है पिया....
वाह रे प्यार, वाह रे वाह
रंगीला रे, तेरे रँग में यूँ रँगा है मेरा मन
छलिया रे, ना बुझे हैं किसी जल से ये जलन
ओ रंगीला......
नयना का दुख बदलते गाने के साथ ओर बढ़ता जा रहा था आज जैसे सारे दुख भरे गाने चुन चुन के लाये थे रेडियो वाले ने.. आधी रात को नयना उन्हें सुनते हुए दिल दिल में अंशुल को कोस रही थी ओर उसकी याद में आंसू बहा रही थी.. वो तय कर चुकी थी वो अंशुल को भूल जायेगी मगर पिछले दो महीनों में हर पल उसे अंशुल ही याद आया था.. जब माहिमा वापस गाँव लौटी थी तब भी नयना ने उससे कोई ज्यादा बाते नहीं की थी महिमा ने तो उसके दिल की बाते अच्छे से समझ ली थी मगर उसने नयना के दुख का कारण अंशुल की बेरुखी ही लगाया था उसे कहा पत्ता था उसके दुख का कारण अंशुल की बेरुखी नहीं बेवफाई है....
शीशा हो या दिल हो आख़िर टूट जाता है....
लब तक आते आते हाथों से साग़र छूट जाता है...
आज नयना के मन में वेदना थी उसने पिछले दो महीनों से अंशुल को ना फ़ोन किया था ना ही कोई मैसेज, ना किसीसे उसका हाल पूछा था.. नयना तो जैसे अंशुल से ऊपरी तौर पर मुँह मोड़ ही चुकी थी मगर मन के भीतर? मन के भीतर तो अब भी अंशुल बसा हुआ था मगर क्या कोई ऐसे बेवफा को माफ़ कर सकता है? नहीं नहीं... कभी नहीं.... आज नयना के रुदन में वेदना ओर विरह दोनों थी.. अंशुल से दूर रहने की ज़िद ने उसे अंशुल के लिए और भी उत्सुक कर दिया था जिसने आज विरह का रूप ले लिया था.. नयना का मन उसे सोचने पर मजबूर कर रहा था की क्यों अंशुल ने उसके साथ ये सब किया और क्या अंशुल सच में उसे नापसंद करता है? क्या वो नयना को भूल जाएगा? अगर ऐसा हुआ तो नयना क्या करेगी? क्या नयना अंशुल के बिना जी पाएगी? मगर नयना तो पहले ही तय कर चुकी है की अंशुल को मुड़कर कभी नहीं देखेगी फिर उसके मन में अचानक कैसे ये सवाल उठ रहे है? और कैसे उसे आज अंशुल की इतनी याद आ रही है? आज की रात नयना ने अपने जज्बातों से लड़ते हुए बिताई थी....
लाज़वान्ति को नयना के स्वभाव में बदलाव अब तक समझ नहीं आया था उसे कुछ अलग महसूस हुआ था मगर लाज़वन्ति नयना को समझने में नाकाम थी.. शायद इसलिए की वो नयना का दर्द उसकी आँखों से पढ़ पाने में असमर्थ थी क्या ऐसा इसलिए था कि नयना लाज़वन्ति कि असल औलाद नहीं थी? हो भी सकता है.... जब प्रभती लाल ने लाज़वन्ति से ब्याह किया था तब नयना 3 बरस कि थी और अपने पीता प्रभती लाल के पास ही रहती थी और ब्याह के बाद लाज़वन्ति ने ही उसे पाला पोसा था. लाज़वन्ति ने कभी नयना से सौतेली माँ का व्यवहार नहीं किया था मगर वो नयना के मन कि बात बिना उसके कहे जान लेने में असफल थी.. दिन अपनी रफ़्तार से बीत रहे थे और अब नयना के ह्रदय में जो पीड़ा थी दुख था अंशुल की बेवफाई का उसने विराह का रूप धारण कर लिया था वो अंशुल के साथ ब्याह करके रहना चाहती थी मगर अब अंशुल का मुँह देखना भी उसे गवारा नहीं था वो अकेली विरह आग में जल रही थी.....
प्रभती लाल को नयना का दुख साफ साफ दिख रहा था उसने कई बार नयना से उसका मन जानना चाहा पर नयना ने कभी मन की बात किसी के आगे नहीं खोली.. वो जिस विरह की अग्नि में जल रही थी वो शायद उसको खुद भी समझ नहीं आ रहा था.. अगहन का महीना शुरू हो चूका था और अब उसकी मन्नत कबूल होने का वक़्त भी नज़दीक था नयना को तो जैसे उस मन्नत पर यक़ीन ही नहीं रह गया था उसे तो जंगल का पेड़, बुढ़िया की बाते अपनी मन्नत सब मज़ाक़ ही लगा रहा था..
चन्दन की शादी आराम से निपट गई थी महिमा धन्नो के घर में खुशियाँ लेकर आई थी चन्दन और महिमा का मिलन दोनों की जिंदगी सवारने का काम कर रहा था और उसके बीच प्रेम का संचार कर रहा था दोनों आपसी जिंदगी में खुशहाल थे धन्नो भी महिमा से सुखी थी सब अच्छा चल रहा था अब तक महिमा में किसी को कोई शिकायत का मौका नहीं दिया था ना ही चन्दन ने कभी महिमा मान घटने दिया था वो तो जैसे पलकों पर सजाने लगा था महिमा को.... चन्दन और महिमा नजदीकी ने चन्दन और सुरीली का रिस्ता ख़त्म ही कर दिया था आज पुरे दो महीने से ज्यादा का समय बीत चूका था जब चन्दन सुरीली से प्रेम के पल में मिलने आया था सुरीली को जिसका अंदेशा था वहीं सब उसके साथ घाट रहा था मगर अब कौन क्या ही कर सकता है? ये तो होना ही था सुरीली पहले से होने वाली इस हक़ीक़त से रूबरू थी सो उसको भी चन्दन से दूरी का ज्यादा दुख नहीं हुआ.....
अंशुल ने भी जैसे घर से निकलना बंद कर दिया था उसके इम्तिहान का वक़्त भी नजदीक आ रहा था सो उसका सारा ध्यान अब किताबो में ही रहता था पदमा की याद को भूलाने के लिए उसके किताबो को चुना था. पदमा अब तक गुंजन के पास थी बीच में एक बार पदमा अंशुल के साथ घर आई थी लेकिन कुछ दिनों के भीतर ही उसे गुंजन के पास वापस जाना पड़ा.. गुंजन की तबियत पदमा के रहते बेहतर रहती थी जिसके चलते पदमा ने गुंजन के पास थोड़े और दिन रहने का फैसला किया था..
नयना जहा अंशुल के विराह में जल रही थी ठीक उसी तरह अंशुल भी पदमा के विराह में जल रहा था दोनों ही अपने मन की बाते किसीको बटाने में असफल थे और अपने अपने दिल की बात दिल में ही दफन करके बैठे थे अंशुल पदमा से मिलने भी जाता तो उसे एकान्त के वो दो मीठे पल पदमा के साथ नहीं मिल पाते जिनमे वो पदमा से अपने दिल की बाते कह सकता था, अंशुल भी अब अकेला हो चूका था पदमा के अलावा उसके दिल में अब कोई नहीं बस सकता था. अंशुल के प्यास अपनी शारीरिक भूख मिटाने के लिए धन्नो थी मगर उसने चन्दन के ब्याह के बाद कभी धन्नो के साथ सम्बन्ध नहीं बनाये ना ही सुरीली का रुख किया. उसे अब सिर्फ पदमा का प्रेम ही संवार सकता था.. अंशुल ने पदमा के दिल पर और प्रगाड़ पहचान बनाने के लिए आखिरी इंतिहान की तयारी शुरू कर दी थी पहला इम्तिहान तो उसने जैसे तैसे निकाला था मगर ये दूसरा और आखिरी बेहद कठिन और जरुरी था अंशुल के लिए.. महीनों से अंशुल इसकी तयारी कर रहा था और पिछले कुछ दिनों से और ज्यादा जोर लगाकर घुसा हुआ था दिन रात बस किताबें ही उसके लिए जरुरी थी.. महिमा अंशुल को खाना दे जाया करती थी और दोनों में देवर भाभी वाली नोक झोक भी होती थी महिमा कभी कभी अपने मन की बाते करती हुई उससे नयना को अपनी दुल्हन बना लेने की बात कहती तो अंशुल चुप हो जाता... उसके पास शब्द न होते महिमा की बात का जवाब देने के लिए.. कभी कभी धन्नो आती थी मगर अंशुल अब धन्नो के साथ व्यभिचार करने से इंकार कर देता था और धन्नो को बिना देह का सुख भोगे वापस जाना पड़ता था....
रात की किताब के पन्ने पलटते हुए कब अंशुल को नींद आ गई थी कहा नहीं जा सकता सुबह के 11 बज रहे थे और बाहर से किसी के चिल्लाने का शोर आ रहा था जिससे अंशुल की नींद खुली..
अरे भाईसाब आप समझते क्यों नहीं? मैं नहीं जा सकता.. मुझे वापस जाना है....
अरे ऐसे कैसे वापस जाना है भाई? कल तय हुआ था ना सब कुछ? फिर वापस क्यों जाना है? हम पैसे भी तो दे चुके है तुम्हारे मालिक को..
अरे भाईसाब पैसे दिए तो वापस ले लीजियेगा उनसे मगर में नहीं जा सकता.. मेरे घर में एमरजेंसी है मेरी बीवी की डिलेवरी होनी है अभी और हमें तुरंत वहा जाना है.. आप ये गाडी की चाबी रखिये... कोई और ड्राइवर बुला लीजियेगा मालिक को कहकर..
पर उन्हीने तो तुम्हे भेजा है और कोई है नहीं उनके पास अभी.. सिर्फ गाडी का क्या मैं आचार डालू जब कोई चलाने वाला ही नहीं है...
क्या हुआ चन्दन भईया? इतना क्यों परेशान हो?
अरे आशु क्या बताऊ... वो अमीन के यहां से गाडी बुक की थी हुसेनीपुर जाने के लिए.. ये ड्राइवर गाडी ले तो आया अब जाने से मना कर रहा है.. अमीन से बात की तो कह रहा है अभी कोई और ड्राइवर नहीं है.. अब तू ही बता क्या करू?
भईया बस से भी तो जा सकते हो?
अरे आशु कैसी बाते कर रहा है.. वो रामखिलावन भी मोटर से आ रहा है मैं बस से जाऊंगा तो क्या अच्छा लगेगा? मेरा छोडो तुम्हारी भाभी की क्या इज़्ज़त रह जायेगी अपने माइके में? सब तो उसे ताने ही देंगे..
अरे भईया आप भी इन सब चककरो में पड़ते हो?
ये समाज है आशु.. यहां ऐसी बातों में पड़े बिना कोई पार नहीं हो पाया है.. अब एक ही दिन की तो बात है कल सुबह तो वापस भी आ जायेगे मगर ये जाने को त्यार ही नहीं...
अरे भाईसाब मैं कब से समझा रहा हूँ मेरे भी घर में काम है मुझे भी जाना है मगर ये भाईसाब तो सुनने को त्यार ही नहीं.. ना ही चाबी लेते है ना ही जाने देते है.. मैं कब से बोल रहा हूँ सुनते ही नहीं....
ठीक है लाइये आप मुझे चाबी दीजिये.. मैं चला जाऊंगा आप जाइये अपनी बीवी का ख्याल रखिये..
बहुत बहुत धन्यवाद आपका भाईसाब.... लीजिये...
तू गाडी चलाना जानता है आशु?
हां थोड़ी बहुत....मगर आप चिंता मत कीजिये आपको सही सलामत हुसेनीपुर पहुंचा दूंगा..
वाह आशु तूने तो मुश्किल आसान कर दी चल तू नहा ले और जल्दी से त्यार होकर आजा तब तक मैं तेरी भाभी को देखता हूँ अबतक त्यार हुई या नहीं..
अंशुल नहाधो कर त्यार हो चूका था आज स्पोर्ट्स शू के ऊपर नेवी ब्लू शर्ट और लाइट ब्लू जीन्स में वो बेहद आकर्षक लग रहा था, पदमा होती तो पक्का काला टिका लगा देती और कहती की तुझे किसी की नज़र ना लगे.. चन्दन हाथ में सामान लिए बाहर आया और गाडी में सामान रखकर आगे अंशुल के साथ बैठ गया कुछ देर बाद महिमा भी आ गई और पीछे सीट पर बैठ गई.. अंशुल गाडी चलाने लगा.. दो घंटे लम्बा सफर शुरू हो चूका था..
गाडी में चन्दन और अंशुल अपनी ही आपसी बातों में उलझें हुए थे उन्हें पीछे बैठी महिमा की जैसे खबर ही ना थी महिमा भी बेचारी खिड़की से बाहर देखती हुई अपनी ही दुनिया में खोई थी चन्दन के साथ उसका वैवाहिक जीवन सुखद बीत रहा था और आगे भी वैसे ही रहने की कामना थी आज उसकी बड़ी बहन मैना और बहनोई रामखिलावन के 4 साल पुत्र का जन्मदिन था और उन दोनों ने इस बार जन्मदिन बंसी और विद्या के यहां मानाने का तय किया था जिसमे शामिल होने चन्दन और महिमा जा रहे थे और उनके साथ अंशुल भी जुड़ चूका था.... रास्ता बेहद खूबसूरत था घनी आबादी से इतर एक पक्की सडक की दाई और लहलाहते खेत और खेतो के पार जंगल तो बाई तरफ बहती नदी और रह रह कर दिखाई देती पर्वतश्रखला इस मनोरम मनोहर दृश्य को और सुन्दर बना रही थी..
बंसी के घर आज चहल पहल ज्यादा थी लगता था की किसी आयोजन की तयारी चल रही है और घर के कुछ लोग उसके लिए त्यारियों में जूटे है.. रामखिलावन घर के बाहर तम्बू बंधवा रहा था तो बंशी हलवाई का काम देख रहा था, विद्या ने आज सारे गाँव को न्योता दिया था गाँव की लड़कियों ने मंडली बना ली थी और नैना के साथ आँगन में बैठकर ढोलक की ताल पर देहाती सही गलत गीत गाते हुए नाच रही थी.. उन लड़कियों ने नयना को भी जबरदस्ती सरपंच जी की इज़ाज़त लेकर अपने साथ मिला लिया था.. बड़ी मुश्किल से आई थी नयना उन लड़कियों के साथ अपने घर से निकलकर.. बंसी के घर आते आते चन्दन और महिमा को दिन के 2 बज चुके थे आज अंशुल ने गाडी बड़ी ही धीरे चलाई थी जैसे वो यहां आना ही नहीं चाहता था मगर किसी मज़बूरी में उसे यहां आना पड़ा था..
महिमा आते ही अपनी बड़ी बहन मैना के साथ लड़कियों के झुंड में बैठ गई और चन्दन रामखिलावन से मिलकर उसी के साथ बाहर तम्बू के नीचे पड़ी हुई दो चार कुर्सीयो पर आसान जमाकार बैठ गया अंशुल भी वहीं बैठा था.. कुछ देर में चाय भी आ गई और सब चूसकारिया लेते हुए इधर उधर की बातें करने लगे.. अंशुल जा मन कुछ उदास था जैसे उसे कोई बाते खाये जा रही हो.. अगर नयना से उसे यहां देख लिया तो फिर से वो उसके पीछे पड़ जायेगी.. उसे एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ेगी और फिर उसके साथ ब्याह शादी की बाते करेगी. नयना बहुत प्यारी है सुन्दर है और अंशुल के दिल में उसके लिए प्यार भी है लेकिन अंशुल चाहकर उसके साथ ब्याह नहीं कर सकता ये बाते उसे अंशुल कितनी बार समझा चूका है मगर वो नादान लड़की समझने को त्यार नहीं है तो अंशुल क्या करे? अंशुल को यही बाते सता रही थी की अगर नयना ने उसे देख लिया तो क्या होगा? उसने अपनी चाय को हाथ तक नहीं लगाया था वो सोच रहा था की उसने यहां आकर कोई गलती तो नहीं कर दी है? तभी रामखिलावन ने पूछा.... अरे भाई तुम किस ख्याल में खोये हो? चाय नहीं पीते क्या?
चन्दन ने कहा- क्या बात है आशु? कहा घूम हो? चाय भी ठंडी हो गई.. कुछ बाते है?
अरे.. नहीं नहीं चन्दन भईया वो बस ऐसे ही... बस अभी चाय पिने का मन नहीं है..
तो क्या पिने का मन है? बता दो भाई... एक बाते ओर सब इंतज़ाम हो जाएगा... रामखिलवान ने हंसकर कहा...
जिसका मन वो पीना अभी ठीक नहीं रहेगा... अंशुल ने कहा तो चन्दन और रामखिलावन दोनों एक साथ हंस पड़े और रामखिलवान बोला - अरे भाई क्या ठीक नहीं रहेगा.... सारा काम तो हो ही चूका है और बाकी सब देख रहे है.. मैं हरिया को बोल देता हूँ सब संभाल लेगा.. शाम तक तो वापस आ जायेगे.. चलो... चन्दन ने भी इस बार अपने मन की बाते बाहर निकाल ली और बोला - आशु चल... नहर के पास चलकर व्यवस्था करते है कुछ..
नहीं... नहर के पास नहीं.... आशु ने कहा...
रामखिलावन - नहर नहीं... तो जंगल ठीक रहेगा..
चन्दन रामखिलावन और अंशुल गाडी में बैठकर जंगल की तरफ चले गए और एक खाली जगह देखकर गाडी लगा दी.. रामखिलावन पैसे से अध्यापक था मगर पार्टी करने का शोक उसे बहुत था मगर चुकी वो समाज में सम्मानित पद पर था सो ये सब छुपकर करना ही सही समझता था.. रास्ते से शराब और पानी और चखना सब चन्दन ले आया था. तीनो गाडी में बैठे शराब के पेग हाथ में लिए स्पीकर पर नब्बे के दशक का कोई रोमेंटिक गाना सुन रहे थे और आपस में बाते कर रहे थे... आशु आज किसी और मूंड में था उसने जरुरत से ज्यादा शराब पी ली थी और उसके जहन अब उसे अपने मन की बाते कह डालने को बोल रहा था जिसे उसने सबसे छीपा रखी थी.. शराबखोरी और हंसी मज़ाक़ में कब शाम के छः बज गए उन्हें पत्ता ही नहीं चला.. जब बंसी ने रामखिलावन को फ़ोन किया तब उन्हे अपनी गोश्ठी छोड़कर वापस घर जाना पड़ा.. इस वक़्त रामखिलावन और चन्दन तो अपने अंदर की शराब को छुपा सकते थे मगर अंशुल के लिए ऐसा करना मानो असंभव था.. गाँव के लोग अब घर जे बाहर बने तम्बू के नीचे जुटने लगे थे और हरिया ने प्रमोद मदन और नरेश को कहकर सबको खाने के लिए बैठा दिया था खाना शुरू हो चूका था एक तरफ मर्दो के बैठने की व्यवस्था थी तो दूसरी तरफ औरतों की... अंशुल सबसे नज़र बचा कर छत ओर आ गया था ताकि किसी को उसके शराब पिने की बाते का पत्ता न चल सके..... बड़ी अजीब बात थी मगर अंशुल को नयना की याद आने लगी थी शराब का नशा था या दिल का हाल... उसकी नज़र छत से नीचे देखती हुई नयना को तलाश रही थी मानो वो उसे देखना चाहता हो.. कुछ देर पहले तक अंशुल जिससे छिपने की कोशिश कर रहा था अब उसी को देखने की कोशिश कर रहा था.....
रात के नो बज चुके थे और गाँव के लोग खाना खा चुके थे सभीने अब केक काटने की तयारी शुरू कर दी थी.. आँगन में बिचौबीच एक टेबल रखा गया और उसके ऊपर एक केक था सभी आपस में एक दूसरे को देखकर कह रहे थे अरे जरा इसे बुला ला... जरा उसे बुला ला... तभी महिमा ने पास खड़ी नयना से कहा - अरे नयना जा छत पर तेरे जीजा जी के दोस्त है जरा उन्हें नीचे बुला ला... महिमा जानबूझ कर अंशुल का नाम नहीं लिया था मानो नयना को सरप्राइज देना चाहती हो..
अंशुल छत पर बिछी चारपाई पर उल्टा लेटा हुआ एक हाथ से चारपाई के नीचे फर्श पर पानी के गिलास को घुमा रहा था मानो उसे ऐसा करने में मज़ा आ रहा हों. तभी नयना छत पर आ गई और मध्यम रौशनी में पीछे से अंशुल को बोली - सुनिए.... आपको नीचे बुला रहे है... केक कटने वाला है.. जल्दी आ जाइएगा.. नयना को इस बाते का इल्म नहीं था की वो जिससे ये बातें कह रही है वो और कोई नहीं बल्कि अंशुल ही था...
अंशुल ने नयना की सुनी तो वो पीछे मुड़ गया और नयना को देखने लगा.... नयना वापस जाने के लिए मुड़ी ही थी की उसकी नज़र अंशुल के चेहरे पर पड़ गई..
पहले की बाते होतो तो इस वक़्त नयना अंशुल के सीने से लगा जाती और उसे चूमकर एक बार फिर अपने प्यार का इज़हार करते हुए उसे शादी के लिए मनाती मगर अब तो जैसे नयना को अंशुल के चेहरे से भी नफरत हों रहो थी उसे अंशुल का चेहरा देखते ही लाज़वन्ति के साथ उसका व्यभिचार याद आ गया और वो बिना कुछ बोले अपना मुँह फेरकार नीचे चली गई जैसे वो अंशुल को जानती ही ना हों.. अंशुल जिसे कब से ढूंढ़ रहा था वो सामने आई भी तो इस तरह जैसे कोई अजनबी हों और ये क्या? जो पहले उससे चिपकी रहती थी उसने आज देखकर भी उसे अनदेखा कर दिया.... आखिर नयना ने ऐसा क्यों किया? क्या वो इस मध्यम रोशनी में अंशुल का चेहरा ठीक से नहीं देख पाई थी? नहीं नहीं... रौशनी इतनी भी कम नहीं की नयना को कुछ दिखाई ना दिया हों पर नयना ने ऐसा किया क्यों? अंशुल का नशा अब थोड़ा हल्का हों चूका था मगर उसके दिमाग में अब यही बातें घूम रही थी आज वो चाहता था की नयना उसे छेड़े और प्यार भारी बातें करके उसे उसी तरह देखे जैसे पहले देखती थी मगर इस बार तो जैसे नयना के स्वाभाव और व्यवहार में अंशुल के लिए उल्टा बदलाव आ गया था....
अंशुल नीचे आ जाता है जहाँ आँगन में रामखिलावन और मैना अपने बच्चे को गोद में लिए केक काट रहे थे वहीं सब ताली बजाकर बच्चे को हैप्पी बर्थडे कह ररहे थे और छोटे मोटे उपहार दे रहे थे.... अंशुल की नज़र अब भी नयना पर टिकी थी आज उस लड़की ने जिस तरह से अंशुल को नज़रअंदाज़ किया था उससे अंशुल के दिल इतना जोर से दुखा था जैसे किसी ने उसका दिल निकाल लिया हों और अपने पैरों से रोन्द दिया हो. अंशुल सामने था मगर आज नयना ने उससे बात करना और मनाना तो छोड़ उसे देखना भी जरुरी नहीं समझा.... आज इस मासूम सी भोली भाली लड़की का दिल पत्थर क्यों हों गया था? कहा नहीं जा सकता.. उसके दिल में अब तक अंशुल के लिए प्यार था और कल तक तो वो उसके ग़म में दर्द भरे गाने सुन रही थी फिर अचानक से इस तरह का व्यवहार वो भी अपने दिल के शहजादे के लिए? नयना अभी तक वो सब नहीं भूल पाई थी जो उसने देखा था उसी का परिणाम था की आज वो अंशुल की तरफ देख भी नहीं रही थी जिससे अंशुल का दिल अंदर ही अंदर चिंख चिंख के रोने लगा था आज नयना की बेरुखी ने उसके मन को गहरा आघात पंहुचाया था.. तो क्या वो भी? नहीं नहीं अरे... ये कैसे हों सकता है? वो तो सिर्फ पदमा से प्यार करता है तो फिर आज उसका दिल नयना की बेरुखी पर इतना उदास क्यों था? क्यों उसकी आँख आज सिर्फ नयना को ही देख रही थी? क्यों वो नयना से बाते करना चाहता था? उसे नयना के कुछ बोलने का इंतज़ार था? ये प्यार नहीं है? इसका जवाब मैं कैसे दे सकता हूँ? मैं भी तो नहीं जानता.... अंशुल का मन उसी तरह से व्यथित हों रहा था जैसे पदमा के दूर जाने पर हुआ था तो क्या वो दोनों से? ऐसा कैसे हों सकता है? अंशुल यही तो चाहता था की नयना उसे छोड़ दे और उस लड़की ने उसे छोड़ दिया तो उसे क्यों परेशानी हों रही है?
नयना के दिल में भी एक अलग तिरगी थी उसका आशु उसके सामने था और उसका मन उसे बार बार आशु को अपनी बाहों में भर लेने को कह रहा था और बोल रहा था नयना एक बार आशु को माफ़ किया जा सकता था मगर नयना तो जैसे तय कर चुकी थी की अब अंशुल को अपनी जिंदगी से निकाल बाहर करेंगी चाहे उसे खुद कितनी ही तकलीफो का सामना करना पड़े.. आज नयना के होंठो पर बनावटी मुस्कान थी और वो खिलखिलाकर हंस रही थी और सबसे बतिया रही थी जैसे वो अंशुल को दिखाना चाहती हों की वो उसके बैगर कितनी खुश है मगर उसके मन की हालत तो बस परमात्मा ही जानता था....
सारा कार्यक्रम पूरा हुआ तो नयना ने महिमा से कहा - अच्छा अब चलती हूँ.. सुबह फिर से आउंगी.. मेरे आने से पहले वापस चले मत जाना...
महिमा के बिलकुल पीछे अंशुल खड़ा नयना को देख रहा था मगर मजाल है जो मुँह से एक शब्द भी बोल पाता.. नयना भी सामने ही थी मगर उसने अंशुल को जैसे अजनबी ही मान लिया था बाते करना तो दूर देखना भी जरुरी नहीं समझा और अपने घर के लिए निकल पड़ी.... तीन खेत पार नयना का घर था एक लम्बि सडक और कई छोटी छोटी पगदंडी से गुजरता हुआ रास्ता रात के इस पहर सुनसान था.. महिमा के घर से निकालते ही नयना जब सडक पर आई तो उसकी आँखों से आंसू का झरना बहने लगा.... जिसे उसने कब से रोक रखा था हाय.... उस 19 साल की बेहद खूबसूरत और मासूम लड़की का दिल.... कितना दुख रहा था... अंशुल को नज़रअंदाज़ करना कितना मुश्किल था वो अब जान पाई थी अपनी आँखों से आंसू पोछते हुए उसके कदम जैसे ही खेत की पगदंडी पर पड़े पीछे से किसीने उसका हाथ पकड़ लिया....
नयना ने पीछे मुड़कर देखा तो ये गाँव का ही एक आदमी छगन था उसके साथ और भी दो लोग थे तीनो नयना को घेर के खड़े थे और छगन नैना की कलाई पकडे.....
छोड़ मुझे.....
छोड़ने के लिए थोड़ी पकड़ा है मेरी जान.... छगन ने कहा... नैना उसकी आँखों में हवस देख सकती थी और महसूस कर सकती थी की उनकी क्या मंशा है....
छोड़ मुझे वरना बहुत बुरा होगा.... मेरे पापा सरपंच है जानता है ना तू?
तेरा बाप सरपंच हो या विधायक.... मुझे फर्क नहीं पड़ता... आज तो हम तेरी इस मदमस्त जवानी का रस पीकर रहेंगे मेरी जान.... कहते हुए छगन के साथी ने नैना के दामन से दुपट्टा खींच लिया.... नैना घबराह गई थी... और जोर जोर से चिल्लाने लगी मगर वहा आसपास कोई नहीं था महिमा का घर भी काफी पीछे छूट चूका था तो उसकी मदद के लिए कौन आता? और महिमा के घर में बजते dj की आवाज़ में उसकी आवाज़ कहा सुनाई देती?
मगर जैसे ही छगन ने आगे कुछ करना चाहा पीछे से अंशुल ने उसके सर पर पत्थर दे मारा... छगन वहीं जमीन पर गिर गया, उसके साथ ने जब अंशुल को देखा तो उसे मारने उसकी और दौड़ पड़े.. अंशुल नशे और गुस्से दोनों में था नैना की आँखों में आंसू देखकर उसकी आँखे लाल हों चुकी थी.... अंशुल ने छगन के साथियो को भी उसी तरह से घायल कर दिया और बड़ी बेदर्दी से मारता रहा.. अंशुल उन तीनो को आज मार ही डालता अगर नैना उसे ना रोकती.....
नैना के रोकने पर जैसे अंशुल को होश आया.. और वो नशे में लड़खड़ाते हुए खड़ा होकर नैना को देखने लगा.. नैना की आँखों में आंसू थे उसने अपना दुप्पटा वापस ले लिया था और अंशुल के सामने खड़ी हुई थी मगर कुछ ही देर में अपने आंसू पोछते हुए नैना अंशुल से बिना कुछ बोले वापस अपने घर की तरफ जाने लगी.... अंशुल भी धीरे धीरे उसके पीछे पीछे चलने लगा कुछ दूर जाकर जब नैन ने अंशुल को पीवी आते देखा तो उसका मन कुछ हद तक अंशुल के पिघल सा गया और उसके दिल में वहीं प्यार वापर ऊपर आ गया जिसे नैना ने कहीं नीचे दबा दिया था..
नैना बनावटी गुस्से में हलकी आवाज़ से अंशुल से बोली - मैं यहां से चली जाउंगी.... आप वापस जा सकते हो....
अंशुल नैना के नजदीक आ चूका था उसने नैना को देखकर कहा -नाराज़ हो? आज ब्याह की बाते नहीं करोगी?
नैना - पापा ने मेरा ब्याह कहीं और तय कर दिया है. आज से 21 दिन बाद पूर्णिमा को लग्न है.... वैसे भी इतनी बार आपसे बेज्जत होकर मेरा पेट भर चूका है.. मैं और ज्यादा आपको परेशान नहीं करना चाहती.. मेरी इज़्ज़त बचाने के लिए शुक्रिया... आपको मेरी वजह से जो तकलीफ हुई मैं उसके लिए माफ़ी मागती हूँ.. ये कहकर नैना जाने लगी तो अंशुल ने उसका हाथ पकड़ कर उसे जाने से रोक लिया और एकाएक गुस्से से बोला - कोनसा ब्याह? किसका ब्याह? तेरा ब्याह सिर्फ मेरे साथ होगा समझी तू? जाकर कह देना अपने बाप से.... और तूने लगन के लिए हां कैसे बोल दिया? मुझसे प्यार करती थी न? फिर ये अचानक से एक साथ इतना सब कैसे?
नैना अपना हाथ छुड़वाते हुए - हाथ छोड़िये मेरा.. कहीं के शहजादे नहीं है आप.. जो मैं सारी उम्र बैठकर आपका इंतजार करूंगी.. पापा ने जो तय किया है अब वहीं होगा.... अपने कहा था ना किसी और को देख लू... देख लिया... पड़ोस के गाँव के जमींदार का लड़का है करोडो की जायदाद है उनके पास.. उनके नौकर भी आपसे बड़े घर में रहते है....
अंशुल - साली... एक शब्द और मुँह से निकाला ना जबान खींच लूंगा.. समझी? तू मेरी थी और मेरी रहेगी.. जैसा तय हुआ था वैसा ही होगा... अगहन की पूर्णिमा को तुझे अपनी दुल्हन बनाऊंगा..
नैना - आपको जो करना है आप कर सकते है.... मैं आपकी खोखली बातों से नहीं डरने वाली.. और वैसे भी किसी शराबी और लड़कीबाज़ आदमी के साथ व्याह कराके किसका भला हुआ है जो मेरा होगा? आपने आज जो कुछ किया उसके लिए शुक्रिया.... लेकिन अब उम्मीद करती हूँ वापस आपसे दुबारा कभी ना मुलाक़ात हों.....
कहते हुए नैना ने अपने घर की और कदम बढ़ा दिए और अंशुल वहीं जमीन पर बैठ गया....
दोनों के दोनों अपने मन में कितने उदास और दुखी थे वहीं जानते थे, आंसू तो जैसे रातभर रुके ही ना थे आँखों से... किसका दुख ज्यादा था ये भी कह पाना कठिन था एक तरफ नैना थी जो अंशुल को अपनी जान से ज्यादा प्यार करती थी और उसकी बेवफाई से दुखी होकर उसे भूल जाना चाहती थी मगर भूल ना पाई थी और दूसरी तरफ अंशुल था जिसे अभी अभी अपने प्यार का अहसास हो चूका था और अब वो नैना को पाने के लिए बेताब था.. अंशुल ने सारी रात वहीं बैठकर बिताई थी सुबह होने पर वो वापस महिमा के घर आ गया था और उदासी उसके चेहरे पर किसी अखबार की सुर्खियों की तरह पढ़ी जा सकती थी.. वहीं नैना ने भी अपनी रात कुछ इसी तरह बिता दी थी... मगर आज उसे ख़ुशी हों रही थी अंशुल ने अपने प्यार का इज़हार जो किया था वो उसी वक़्त उसे चुम लेना चाहती थी और कहना चाहती थी की अगर अब अपनी बात से मुकरे तो जान से हाथ धो बैठोगे मगर बेवफाई का गुस्सा ज्यादा हावी था.. नैना अब क्या करे? उसके पास उलझन बेशुमार थी और हल एक भी नहीं..
सुबह सुबह होते होते दोनों को कई बातें समझ आ चुकी थी जिनमें उनकी गलती और नासमझी शामिल थी.. अंशुल ने अंदाजा लगा लिया था की नैना ने उसे लड़कीबाज़ क्यों कहा था.. और क्यों वो उससे नज़र थी वो गलत भी हों सकता था मगर अब क्या कहा जा सकता था.... नैना तो जैसे सुबह आसमान में थी वो सोच रही थी की अंशुल भी उससे प्यार करता है पर उसने कभी जताया नहीं और रात को एकदम से सब कह गया.. मगर उसकी बेवफाई? नयना ने तय कर लिया था की अगर अंशुल उससे माफ़ी मागेगा और वापस वैसी गलती नहीं करेगा तो वो उसे माफ़ जर देगी और बहुत प्यार करेगी.... नयना सुबह महिमा से मिलने निकली तो उसके चेहरे की ख़ुशी आसानी से समझी जा सकती थी मगर अंशुल की तो हवाइया उडी हुई थी...
अरे कहा? मैंने कहा था ना मुझसे मिले बिना नहीं जाना.. नैना ने महिमा से कहा.. नैना कँखियो से अंशुल को देख रही थी जो कुछ उदास और हताश लग रहा था.. वो चाहती थी की अंशुल उससे कुछ बाते करे और उसे मनायेंगे ताकि वो झट से उसे अपने दिल की बाते बताकर अपनी बाहों में लेले... पर अंशुल तो जैसे मूरत बन चूका था उसे कहा ये सब मन की बाते समझ आने वाली थी.. अंशुल बिना नयना को देखे गाडी के आगे की सीट पर बैठ गया जैसे वो लाज़वन्ति के कारण उससे बाते करने से झिझक रहा हों.. और उसीके साथ चन्दन भी बैठ गया महिमा कुछ देर नयना से बाते करती रही फिर आकर वो भी गाडी मैं बैठ गई.... सफर शुरू हों गया नयना की उमीदो पर पानी फिर चूका था....
अंशुल जब घर बहुत तो बालचंद घर पर ही था शायद छुटियो में आया होगा पदमा अभी गुंजन के पास ही थी.. अंशुल बालचंद से बाते करने के मूंड में नहीं था सो उसने बालचंद के सवालों का जवाब हां ना में देना उचित समझा और अपने कमरे में आ गया आज उसे पदमा की याद आ रही थी बालचंद ने खाना बनाया था मगर खाने लायक बना था नहीं ये कहा नहीं जा सकता अंशुल ने उसे देखा तक नहीं था बालचंद ही अकेला खाना खा कर रात को टीवी देखते हुए सोफे पर ही सो गया था अंशुल को नींद नहीं आई थी कुछ दिनों में उसका दूसरा और आखिरी इम्तिहान भी था पढ़ाई तो बहुत की थी मगर आगे क्या होने वाला था कौन जानता है.. उसे नैना की चिंता नहीं थी उसे मालूम था की आसानी को वो आसानी से पा लेगा और नयना खुद भी उससे दूर नहीं होगी आखिर वो कब तक अपने दिल की बात दिल में छुपा कर रखेगी, रात को जो नयना ने कहा था सब झूठ था नयना का कोई लगन नहीं होने वाला था ये बात अंशुल ने लाज़वन्ति से सुबह फ़ोन पर की थी और लाज़वन्ति से कहा था की वो नयना का ख्याल रखे....
आज अंशुल के मन में वासना भी भड़क रही थी.. रात हों चुकी थी चन्दन और महिमा के रहते वो धन्नो के पास भी नहीं जा सकता था और कोई उपाय अपनी वासना को शांत करने का उसके पास था नहीं.. सो उसे सुरीली की कही बाते याद आ गई.. अंशुल न चाहते हुए भी रात को टहलता हुआ सुरीली चाची के घर आ गया जहाँ बाहर रमेश बैठा था.....
अंशुल में रमेश को चिढ़ाते हुए कहा - क्या बात है? आज ढोलक बाहर क्यों बैठा है?
आशु भाई आपसे कितनी बार कहा है हमारा नाम ढोलक नहीं रमेश है रमेश....
अच्छा ठीक है रमेश आज सोये नहीं.. क्या बात है?
अरे भईया वो टीवी बिगड़ गया है देखे बिना हमको नींद नहीं आती.. पापा आज दीदी को लेकर शहर गए है तो मन नहीं लगा रहा है...
क्या हुआ टीवी में?
पत्ता नहीं भईया दिन से ही नहीं चल रहा है...
चलो देखे.. क्या हुआ है तुम्हारी टीवी को?
रमेश अंशुल को घर के अंदर ले आता है... आज सुरीली और रमेश ही घर पर थे ये जानकार अंशुल को अपने इरादे पुरे होने की पूरी सम्भावना नज़र आ गई और वो ख़ुशी से अंदर आ गया..
रमेश उम्र से भले ही 16-17 साल का था मगर उसका दिमाग अभी अभी बच्चों जैसा ही था आलस और कामचोरी तो उसमे कूट कूट के भरी थी उसे कहीं और लगाने में अंशुल को कोई मुश्किल नहीं होती..
सुरीली ने जब अंशुल को देखा तो वो हैरानी से भर गयी मगर उसके दिल में एक लहर भी उठ गई थी.. उसे लगा की आखिरी अंशुल उसके लिए ही आया है चन्दन ने तो अब सुरीली को याद करना भी बंद कर दिया था सो अंशुल का सुरीली के लिए उसके घर आना बहुत हैरानी वाला काम था....
अंशुल ने जब टीवी देखा तो रमेश पर हंसी और गुस्सा दोनों एक साथ आया मगर वो चुप खड़े होकर रमेश को देखने लगा.. सुरीली भी अब तक वहां आ चुकी थी और अंशुल और सुरीली की नज़र टकरा रही थी..
अरे ढोलक.... Sorry रमेश.... टीवी में तो बड़ी बिमारी लगती है ये आसानी से ठीक नहीं होने वाला..
पर भईया.. मुझे बिना टीवी देखे नींद कैसे आएगी..
हम्म एक काम कर सकते है मैं तुम्हारे टीवी को टेम्प्रेरी चला सकता हूँ लेकिन उसके लिए मुंहे कुछ करना होगा...
क्या करना होगा भईया?
उसके लिए मुझे तुम्हारी मम्मी की जरुरत पड़ेगी...
अंशुल ने सुरीली की तरफ देखते हुए आँख मार दी..
ठीक है भईया आप बस टीवी चला दो...
टीवी का स्विच ऑन था पर टीवी के सेटॉप बॉक्स से कनेक्शन वायर हटा हुआ था जिससे टीवी ऑन नहीं हों रहा था जिसे अंशुल ने ठीक कर दिया और टीवी ऑन हों गया..
अरे वाह भईया.... मज़ा आ गया अब में आराम से कार्टून देखते हुए सो जाऊंगा...
ठीक है रमेश ओर एक काम तुम्हे भी करना होगा..
क्या भईया..
टीवी की आवाज़ थोड़ी तेज़ रखना और मैं तुम्हारी मम्मी के साथ अंदर रूम में टीवी ऑन रखने के लिए वायर पकड़ के खड़ा हों जाऊंगा.... सुरीली चाची की आवाज़ आये तो अंदर नहीं आना वरना टीवी फिर से बिगड़ जाएगा...
ठीक है भईया....
अंशुल सुरीली को रूम में ले जाता है और रमेश टीवी की आवाज़ तेज़ करके बाहर टीवी के आगे बैठ जाता और कुछ खाते हुए कार्टून देखने लगता है.... करीब 15 मिनट बाद रमेश के कान में उसकी मम्मी की आवाज़ सुनाई पडती है..
हाय मोरी मईया.... मर गई रे..... आहहहहहहह.....
रमेश आवाज़ सुनकर - क्या हुआ मम्मी?
अंशुल - कुछ नहीं रमेश... वो बस सुरीली चाची के बिल में छोटा सा चूहा घुस गया है तो वो डर गई है....
सुरीली कराहते हुए - हाय रे... चूहा है या अजगर? मेरे बिल का सत्यनाश कर दिया....
कुछ देर बाद रमेश के कान में थप थप छप छप की आवाज़ गुंजने लगी...
रमेश - मम्मी अंदर क्या हो रह है?
सुरीली - रमेश तुम्हारे आशु भईया मेरे साथ नीचे वाली ताली बजा रहे है... अगर ऐसा नहीं करेंगे तो टीवी बंद हों जाएगा....
रमेश - ठीक है मम्मी टीवी बंद मत होने देना...
कमरे के अंदर अंशुल और सुरीली दोनों के बदन पर कपडे नहीं थे और अंशुल सुरीली को नंगा दिवार से चिपकाये उसकी एक टांग उठाकर उसे चोद रहा था और रह रह कर सुरीली के रसीले होंठों का आनंद ले रहा था.. बाहर रमेश अंदर अपनी चुदती मम्मी की हालत से बिलकुल अनजान टीवी देख रहा था...
अंशुल - रमेश सरसो का तेल देना.....
रमेश - क्यों भईया...
अंशुल - वो तुम्हारी मम्मी का पीछे वाला बिल खोलना है इसलिए.... बहुत टाइट है...
रमेश - पर भईया मुझे नहीं पत्ता कहा रखा है.. वो मम्मी को ही पत्ता होगा..
अंशुल ठीक है रमेश तुम अपनी आँखे बंद करो.. जब मैं कहु तभी खोलना...
पर क्यों भईया?
टीवी देखना है या नहीं?
हां भईया..
तो जैसा कह रहा हूँ करो.. सवाल जवाब करोगे तो टीवी बिगड़ जाएगा फिर मुझे मत कहना...
ठीक है भाई कर ली....
अंशुल - जाओ चाची तेल के आओ...
नहीं नहीं आशु मैं ऐसे नंगी बाहर नहीं जाउंगी...
अरे चाची रसोई में ही तो जाना है.. रमेश की आँख बंद है तुम टैंशन मत लो.. जाओ जल्दी तेल ले आओ फिर मैं आपकी गांड का गोदाम बनाता हूँ....
चुप बदमाश.... तू तो पूरा बेशम है....
सुरीली बाहर चली जाती है और रसोई में से तेल ले आती है...
रमेश - भईया आँख खोल लू....
अंशुल - हां खोल लो....
अंशुल ने सुरीली को घोड़ी बनाया हुआ था और खूब सारा तेल उसकी गांड के छेद और अपने लंड पर लगा दिया था... अंशुल का आधा लंड सुरीली की गांड में था और सुरीली के चेहरे से उसकी दशा का अंदाजा लगाया जा सकता था...
अंशुल ने सुरीली चाची के बाल अपने दोनों हाथो में पकड़ लिए थे और अब धीरे धीरे सुरीली की गांड चुदाई कर रहा था... इस दृश्य को देखकर ऐसा लगा रहा था जैसे कोई घुड़सावार घोड़ी की सवारी कर रहा हों....
धीरे धीरे लंड जब गांड में आधा आराम से अंदर बाहर होने लगा तो अंशुल ने जोर का धक्का देकर पूरा लंड गांड के अंदर कर दिया जिससे सुरीली की सिटी पीटी घुल हों गई....
सुरीली चिल्लाते हुए - हाय दइया.... मर गई रे.... आशु निकाल बाहर वापस....
रमेश - क्या हुआ मम्मी?
अंशुल - कुछ नहीं रमेश... तेरी मम्मी बहुत कच्ची है मैं पक्का रहा हूँ... सुरीली चाची बिलकुल ठीक है...
रमेश - पर भईया मम्मी चिल्ला क्यों रही है?
अंशुल - वो रमेश पहले चूहा खुले हुए बिल में घुसा था अब बंद बिल में इसलिए.....
सुरीली - बेटा तू मेरी चिंता मत कर मम्मी बिलकुल ठीक है आशु भईया के साथ....
रमेश - ठीक है मम्मी.. मैं टीवी देख रहा हूँ... कुछ चाहिए हों तो बताना..
सुरीली - नहीं बेटा... तेरे आशु भईया मैं वायर पकड़ कर खड़े है तू आराम से टीवी देख...
रमेश - ठीक है मम्मी...
अंशुल ने अब सुरीली की गांड चुदाई शुरू कर दी थी जिससे सुरीली की सिस्कारिया कमरे के बाहर रमेश के कान तक पहुंच रही थी मगर अपनी माँ की सिस्कारिया सुनने के बाद भी वो उसे अनसुना कर मज़े से टीवी देख रहा था..
अंशुल - चाची इतनी मस्त गांड है.. पहले बता देती तो पहले ही आ जाता हम्हारे पास....
सुरीली - लल्ला.... ये चीज़े बताई नहीं जाती... पत्ता लगाईं जाती है..
अंशुल - अच्छा चाची.... चुत का चूबारा बना रखा तुमने.. चाचा अब भी पेलते है क्या?
सुरीली - लल्ला गाजर मूली से काम चलाना पड़ता है.... तेरे चाचा में अब दम नहीं है... तभी तो तेरा लोडा लेने के लिए अपनी गांड की कुर्बानी दे दी...
अंशुल - उफ्फ्फ चाची तेरी ये कुर्बानी.... मज़ा आ गया आज... तेरी गांड लेके... इस गाँव में काकी हों या चाची.... सबके भोस्ङो मेंगर्मी भरी पड़ी है...
सुरीली - बाते तो सोहळा आने सही बोली तूने लगा... आह्ह.... इतना बड़ा लंड है तेरा.. जरा तरस खा अपनी चाची पर... आराम से काम ले मेरी गांड से लल्ला...
अंशुल - आराम से ही तो चोद रहा हूँ चाची....
सुरीली - हाय आज कैसे झड़ रही हूँ बार बार... आह लल्ला तू खिलाडी है...
अंशुल - में भी झड़ रहा हूँ चाची... कहे तो तुम्हारी गांड में निकाल दू?
सुरीली - निकाल दे लल्ला.....
अंशुल सुरीली की गांड में अपना वीर्य निकाल देता है और सुरीली की गांड का पीछा छोड़ कर खड़ा हों जाता है.. सुरीली भी जैसे तैसे खुदको संभाल कर खड़ी हों जाती है.. दोनों की हालत पतली थी दोनों सर से पैर तक पसीने से भीग चुके थे और नंगे खड़े एक दूसरे को देखकर मुस्का रहे थे....
अंशुल ने दरवाजा खोलकर बाहर देखा तो रमेश सो चूका था...
अंशुल और सुरीली ने भी कपडे पहन लिए थे..
अंशुल रमेश के पास आया और पीठ दिवार से लगा कर बैठ गया.. बाहर चलते कूलर ने जैसे उसे राहत दी हों.. सुरीली भी उसके पास आकर बैठ गई और दोनों आपस में चूमा चाटी करने लगे.... उसके बाद अंशुल ने अपनी पेंट खोलकर लोडा वापस बाहर निकाल लिया और सुरीली के सर को अपने लंड पर झुका कर उसके मुँह में अपना लंड दे दिया जिसे सुरीली लॉलीपॉप जैसे चूसने लगी.... बगल में सोते रमेश की बॉडी में कुछ हरकत हुई तो अंशुल ने एक चादर सुरीली पर डाल दी और उसका बदन छुपा लिया...
रमेश की नींद कच्ची थी अभी सोया ही था की खुल गई...
रमेश - भईया आप यहां.... अंदर वायर कौन पकड़ रखा है?
अंशुल - अब वायर पकड़ने की जरुरत नहीं है रमेश.
रमेश - मम्मी कहा है भईया?
अंशुल - तुम्हारी मम्मी मेरा केला चूस रही है....
रमेश - मतलब?
अंशुल - मतलब तुम्हारी मम्मी को भूख लगी थी तो मैंने तेरी मम्मी को अपना केला दे दिया.. बहुत अच्छा चुस्ती है तेरी मम्मी...
रमेश - पर भईया केला तो खाया जाता है..
अंशुल - पर तेरी मम्मी तो चूसके खाती है... उन्होंने बताया नहीं तुझे?
रमेश - नहीं... और आप तो केला लेकर ही नहीं आये थे...
अंशुल - लाया था जेब में था.... अच्छा ये सब छोड़ तू सो जा वरना सुबह देर से उठेगा..
रमेश - पर आशु भईया आप?
अंशुल - रमेश में आज रात यही रहूँगा.... और रातभर तुम्हारी मम्मी के आगे पीछे दोनों बिलों की खुदाई करूँगा ताकि अगली बार उनको चूहों से डर ना लगे...
रमेश - हां भईया.. अच्छे से खुदाई करना.. मम्मी चूहों से बहुत डरती है...
अंशुल - तू चिंता मत कर रमेश... आज सारी रात सुरीली चाची सुरु में गाना गायेगी.... तू सोजा अब..
सुरीली चादर के अंदर अंशुल के लोडा मुँह में लेकर चूसते हुए सारी बाते सुन रही थी और बीच में बीच जब अंशुल की कोई बाते बुरी लगती तो लंड को दांतो से काट भी रही थी....
रमेश टीवी देखते हुए फिर से हलकी नींद में चला जाता है और उसकी नींद खुलती तो वो रसोई में पानी पिने जाता है और देखता है की उसकी माँ सुरीली अंशुल के होंठों को बुरी तरह से चुम रही है दोनों में इग्लिश किसिंग चल रही है....
रमेश - माँ ये क्या हों रहा है? आप आशु भईया के साथ क्या कर रही हो?
सुरीली - अरे बेटा वो तेरे आशु भईया के होंठो पर किसी कीड़े ने काट लिया था तो दर्द हों रहा था उनको, मैं उसका दर्द मिटा रही हूँ....
अंशुल - हां रमेश बहुत जहरीला कीड़ा था शायद....
रमेश - ठीक है मम्मी आप आशु भईया की मदद करो.. लेकिन अंदर वायर पकड़ के कौन खड़ा है?
अंशुल - अरे वो हम जाने ही वाले थे अंदर.. वरना वायर इधर उधर हों गया तो टीवी खराब हों जाएगा... चले चाची?
सुरीली - हां चलो आशु.....
अंशुल रूम जाकर जैसे ही दरवाजा बंद करता है सुरीली उसपर झपट पडती है और आशु को अपनी बाहों में लेते हुए अपने मुँह का स्वाद फिर से उसे चखा देती है.... अंशुल उसके दोनों कबूतर मसलते हुए उसके होंठो का रस पिने लगता है..
कुछ देर बाद दोनों फिर से नंगे हों जाते है और फिर से रमेश को कमरे से आती हुई छपछप थपथप घपघप की आवाजे सुनाई देती है.....
रमेश - मम्मी अंदर सब ठीक है ना?
सुरीली - आह्ह... रमेश.. सब ठीक है बेटा... बस तेरी माँ चुद रही है.... आअह्ह्ह.... उफ्फ्फ....
रमेश - क्या माँ...
सुरीली - खुदाई बेटा... खुदाई चल रही है तेरी माँ के बिल की... आअह्ह्ह......
रमेश - आशु भईया मम्मी की खुदाई धीरे करो..मम्मी को दर्द मत दो...
अंशुल - दर्द में ही तो मज़ा है रमेश....
सुरीली - आह्ह... तू मेरी चिंता मत कर रमेश.... तेरी माँ ये चुदाई... ओह खुदाई संभाल लेगी... तू सोजा बेटा.....
रमेश - ठीक है माँ.....
रमेश अबकी बार जो टीवी देखते हुए सोया तो फिर नहीं उठा और सुरीली अंशुल के साथ पूरी रात मुँह काला करती रही, दोनों ने शर्म लिहाज और कपडे उतार कर सब कुछ किया और सुबह के 5 बजे अंशुल सुरीली की छाती पर सर रख कर लेटा हुआ था...
सुरीली बड़े प्यार से अंशुल का सर सहला रही थी सुरीली की प्यास पूरी तरह बुझ चुकी थी वो तृप्त हों चुकी थी.....
अंशुल - जो कुछ हमारे बीच हुआ चाची किसी से कहोगी तो नहीं?
सुरीली - अरे लल्ला कैसी बात कर रहा है? ये बातें भला किसी को बोली जाती है? तू भी किसी से ना कहना...
अंशुल - बहुत मस्त हों चाची....
सुरीली - तू कोनसा कम है.. पूरी गांड दुख रही है अभी तक....
अंशुल - ये तो हमारे मिलन की निशानी है चाची....
सुरीली - खूब जानती हूँ..... अच्छा अब वापस कब आएगा अपनी सुरीली चाची से मिलने?
अंशुल - जब तुम वापस घर में अकेली रहोगी... मगर एक शर्त है...
सुरीली - क्या?
अंशुल - मुझे सुसु करना है....
सुरीली - तो कर ले ना लल्ला....
अंशुल - तुम्हारे मुँह में चाची....
सुरीली - छी लल्ला कितना गन्दा है तू....
अंशुल - शर्त पूरी करोगी तभी आऊंगा चाची....
सुरीली - अच्छा जब तेरा माल पी लिया तो मूत क्या चीज़ है? आ मूत ले अपनी चाची के मुँह में....
अंशुल सुरीली को घुटनो पर बैठकर अपना लोडा उसका मुँह में डाल देता है और धीरे धीरे मूतने लगता है... सुरीली अंशुल की आँखों में देखती हुई उसका मूत पिने लगती है..
अंशुल - चाची अब खड़ा हों गया तो चूस भी लो....
सुरीली हंसती हुई - तू भी लल्ला.. सुरीली ने एक बार फिर लंड चूसकर वीर्य निकाल दिया..
आह्ह चाची मज़ा आ गया.... कहते हुए अंशुल कमरे से बाहर आ जाता है और अंगड़ाई लेटा है जैसे रातभर की मेहनत के बाद उसका बदन दुख रहा हों..
सुरीली भी कपडे पहनकर बाहर आ जाते है और सुरीली जाने से पहले फिर से अंशुल को अपनी बाहों में खींचकर चूमती है जिसे रमेश जागने के साथ देख लेता है..
रमेश - अब तक दर्द ठीक नहीं हुआ भईया का..
सुरीली - हां बेटा.... तू अंदर जाकर सो जा मैं आती हूँ..
ठीक है मम्मी....
अंशुल सुरीली के घर से अपने घर आ जाता है थकावट से उसकी नींद लग जाती है..
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Agle update me padma pr focus hoga
Dekhte hai next kya hota hai
Padma to ashu ki permanent wife hai hi,yadi naina bhi ban jati padma ko swikar karte hue to ashu ki bale bale ho jati