Raja thakur
King
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अध्याय 6
इम्तिहान
अंशुल का आखिरी इम्तिहान 3 दिन बाद था और अंशुल ने उसकी जमकर तयारी की थी उसने यही बाते सोची थी की इम्तिहान के बाद वो सीधा जाकर नयना को ब्याह के लिए मनाकर अपने साथ ले आएगा और पदमा के साथ उसे भी बहुत प्यार करेगा मगर अभी इम्तिहान था और कल रात की ट्रैन से उसे हिमाचल निकलना था पदमा अभी अभी गुंजन के घर से वापस आई थी और रसोई में खाना पक्का रही थी.. बालचंद आज ही बड़े शहर चला गया था और अब घर में पदमा और अंशुल अकेले थे..
अंशुल ने सारी तयारी कर ली थी और अब वो नीचे आ गया था अंशुल सीधा रसोई में पदमा के करीब पंहुचा और पदमा को पीछे से गले लगता हुआ बोला - मौसी कैसी है?
पदमा अपना काम करती हुई बोली - अब पहले से अच्छी है... तुझे कितना याद कर रही थी.. एक बार मिलने आ जाता तो अच्छा रहता....
आप फ़िक्र मत करो इम्तिहान के बाद गुंजन मौसी को यही बुला लेंगे और उनका खूब ख्याल रखेंगे..
इम्तिहान? वो कब है?
3 दिन बाद.... कल की ट्रैन है हिमाचल जाना पड़ेगा इम्तिहान के लिए..
पदमा - तो तू अकेला जा रहा है मुझे यहां अकेला छोड़ कर?
अरे आप अकेले कहा हो? धन्नो काकी है ना.. अब तो महिमा भाभी भी आ गई है.. उनके साथ आपका दिल लग जाएगा.. मुझे अगर मालूम होता की आप आ रही हों तो शायद कुछ कर पाता...
क्या मतलब कुछ कर पाता.. अभी भी तो 3 दिन बाकी है.. मैं तुम्हारे साथ चलूंगी.... समझें?
माँ बहुत लम्बा सफर है आप परेशान हों जाओगी..
कुछ भी हों मैं तुम्हारे साथ चलूंगी मतलब चलूंगी.. मुझे और कुछ नहीं सुनना....
अच्छा ठीक है मैं कुछ करता हूँ.. आप नाराज़ मत हो..
वैसे अभी खाने में क्या बनाया है?
आलू पूरी.. तुम्हे पसंद है ना?
पसंद तो और भी बहुत कुछ है माँ....
हम्म उसके लिए तो थोड़ा सब्र करना पड़ेगा मेरे आशु को.. मुस्कुराते हुए पदमा ने कहा..
अच्छा फिर खाना तो खिला दो अपने हाथो से..
पदमा खाने की थाली हाथो में लेकर अंशुल को अपने हाथो से खिलाने लगती है और अंशुल भी पदमा को अपने हाथो से खाना खिलाता है.. दोनों एक साथ बड़े प्यारे लगा रहे थे जैसे एक दूसरे के लिए बने हों दोनों के बीच का प्रेम अद्भुत था.. खाना खाने के बाद अंशुल पदमा से अपना कुछ सामान पैक करने को कह देता है और अपना टिकट केन्सिल करवाकर सुबह की ट्रैन का फर्स्ट ac क्लास के दो टिकट एक साथ बुक करता है ताकि एक साथ सफर कई सके.... फिर झूठे बर्तन धोने लगता है जिसे देखकर पदमा हँसते हुए अंशुल से कहती है.... अरे अरे.. नवाब साहब कब से ये काम करने लगे? चलो छोडो.... मैं करती हूँ.... तुम आराम करो जाकर....
अंशुल - माँ आज रात आप वो लाल वाली साड़ी पहनो ना.. बहुत प्यारी लगती हों उसमे...
पदमा मुस्कुराते हुए - लगता है आज रात मेरी इज़्ज़त खतरे में है...
अंशुल पदमा के गाल चूमकर - आप भी ना माँ.... चलो में ऊपर जाता हूँ एक बार फिर से बैग चेक कर लेता हूँ..
पदमा रसोई का सारा काम ख़त्म करके वहीं लाल साड़ी पहनती है और हाथो में एक दूध का गिलास लेकर अंशुल के रूम में आ जाती और दरवाजा बंद कर लेती है... अंशुल पदमा का ये रूप देखकर उसपर टूट पड़ता है और फिर कुछ देर में पदमा की मादक सिस्कारिया पुरे कमरे में गुंजने लगती है...
**** स्टेशन से अंशुल पदमा के साथ **** ट्रैन के फर्स्ट ac क्लास डिब्बे में अपनी जगह आ गया था.. ऊपर नीचे दो बर्थ थे और सामने एक दरवाजा जिसके अंदर की तरफ पर्दा लटका हुआ था.. अपना सामान रखकर पदमा खिड़की से बाहर देखने लगी थी उसे आज पहली बार कहीं आने जाने का मौका मिला था वरना वो तो कब से अपने घर में ही रहती थी कभी कभी बहन गुंजन के घर तो कभी अपने भाई के घर इसके अलावा उसने दुनिया नहीं देखी थी.. पदमा ट्रैन के नजारो के साथ अपनी आँखे बिना झपकाये चल रही थी उस उमंग उस उल्लास और उस रोमांचक सफर की और जहाँ अंशुल उसे जिंदगी के असल मायने समझाने वाला था..
सफर शुरू हुए करीब दो घंटे हों चुके थे मगर पदमा की नज़र खिड़की के बाहर से नहीं हटी थी वो सीलसिलेवार गुजरे गाँव शहर और जंगल देख रही थी जैसे उसे डर हों की आज के बाद उसे वापस ये सब देखने को नहीं मिलेगा.. पदमा उन नज़ारों को अपनी नज़र में बंद कर लेना चाहती थी और चाहती थी इसी सफर में रहना.. अंशुल तो सिर्फ किताब में मगन था आखिर उसने इतने महीने दिनरात एक करके मेहनत से इम्तिहान की तयारी की थी वो अभी किताब के पन्ने पलटते हुए देख रहा था... शाम का समय था और सफर पूरी रात का.. इसी तरह बैठे बैठे दोनों को रात हों गई खाना आ चूका था और दोनों ने मिलकर खा भी लिया था आज पदमा और अंशुल के बीच आज अजीब सी कशिश थी जो अक्सर नये नये प्रेमी जोड़ो में देखने को मिलती है..
रात के 11 बजते बजते पदमा की आँखे नींद से भरी जा रही थी उसे अब बाहर के मनमोहक दृश्य देखते हुए नींद आ रही थी मगर अंशुल अब भी अपनी किताब में घुसा हुआ था पदमा ने अंशुल के हाथ से किताब लेकर ऊपर वाली बर्थ पर रख थी और लाइट बंद करते हुए अंशुल को नीचे वाली बर्थ पर लेटा कर खुद अंशुल के सीने पर लेट गई और अंशुल को प्यार से अपनी बाहों में भर लिया....
अंशुल - नींद आ रही है?
पदमा - हम्म....
चादर निकाल दू.. कुछ देर में ठंड लगने लगेगी..
अभी नहीं.. अभी ठीक है..
अंशुल खिड़की से छनकर अंदर आती चाँद की हलकी रौशनी में पदमा का चेहरा देखते हुए उसकी जुल्फ जो उसके चेहरे पर आ रही थी पीछे कर रहा था और बड़ी प्यार से सर सहलाते हुए पदमा को अपने बाजु का सहारा देकर सुलाने लगा था..
अंशुल देख रहा था की पदमा बिलकुल वैसी ही दिख रही है जैसी पहले मिलन के समय दिख रही थी उसके चेहरे पर कोई शिकन कोई फ़िक्र नहीं थी वो बस सुकून चाहती थी जो उसे अंशुल की बाहों में मिल रहा था..
दोनों के बीच कोई पर्दा नहीं था ना बाहर ना भीतर.. अपने मन की बाते दोनों बेझिझक एक दूसरे से कहते और सुनते थे यही कारण था की दोनों का सम्बन्ध प्रगाड़ और मजबूत था ना उसमे किसी तरह की मिलावट थी ना झूठ....
अंशुल अपने मन में और भी कई ख्याल लिए लेटा था.
माँ एक बाते पुछु?
हम्म.... पदमा ने आँख बंद किये हुए ही अंशुल से कहा..
आप खुश तो हों ना मेरे साथ?
पदमा की आँखे नींद से बाहर आ गई और अंशुल के इस सवाल पर खुल गई और अंशुल को देखने लगी जैसे पूछ रही हों की अचानक से ये सवाल उसे क्यों सुझा? क्यों उसने ये सवाल पदमा से किया? क्या वो जानता नहीं की औरत केवल उसे ही अपने बदन को छूने का हक़ देती है जिसे वो चाहती है? अगर वो अंशुल के साथ खुश ना होती तो ऐसे उसके साथ इतनी दूर क्यों आती? क्यों पदमा अंशुल को अब भी किसी बच्चे की तरह प्यार करती? क्यों उसकी हर बात मानती और उसे अपने जिस्म की कसावट और बनावट से रूबरू करवाती? ये केसा सवाल है जो रात के इस वक़्त उसने पदमा से पूछा है? क्या वो खुद इसका जवाब नहीं जानता?
पदमा ने कुछ देर अंशुल को यूँही सवालिया आँखों से देखा और फिर उसके लबों को अपने लबों की गिरफ्त में लेकर दांतो से खींचते हुए कहा - नहीं मैं बिलकुल खुश नहीं हूँ तुमसे..
क्यों?
क्यों क्या? ऐसे मासूम शकल बनाकर न जाने कैसी गन्दी गन्दी हरकत करते हो अपनी सगी माँ के साथ.. कल रात का भूल गए? क्या हाल किया था तुमने मेरा? वो अच्छा हुआ मैंने देख लिया की कंडोम फट चूका है वरना तुम तो मुझे माँ ही बना ड़ालते..
आप रोक भी तो सकती थी मुझे..
मैं क्यों रोकू भला? तुम्हे खुद समझना चाहिए.. कुछ दिन दूर क्या रही तुमसे.. तुम तो बेसब्री हों गए और मुझे भी....
अच्छा sorry माँ....
Sorry क्यू? मैंने ऐसा तो नहीं कहा कि मुझे बुरा लगा.. तुम मर्द हो और मैं औरत.. औरत को हमेशा अपने जिस्म की भूख मिटाने के लिए मर्द के नीचे आना ही पड़ा है.. मैं तो ये कह रही हूँ कि तुम थोड़ा सा ख्याल रखो बस.... जहा से तुम निकले हो वहा बिना कंडोम पहने आना जाना अच्छी बात नही... समझें?
अच्छा ठीक है समझ गया मेरी माँ.... अब से ध्यान रखूँगा.. अब तो खुश?
हम्म्म..... कहते हुए पदमा ने फिर से अंशुल के होंठों को अपने होंठो कि जेल में डाल दिया और चूसने लगी..
ट्रैन और पदमा कि काम इच्छा दोनों अपनी गति से आगे बढ़ रहे थे मीठी मीठी बातों के बाद दोनों ही इसमें कूद पड़े और आधी रात होते होते तृप्त होकर बाहर निकले.. पदमा अब भी अंशुल के सीने पर अपना सर रखे हुए लटी थी और दोनों ने कमर से ऊपर कुछ नहीं पहना था बस एक चादर दोनों ने अभी अभी ओढ़ ली थी और अभी पूरी हुई कामतृप्ति से दोनों के चेहरे पर मुस्कान बिखरी हुई थी....
ऐसे क्या देख रही हो?
कुछ नहीं बस देख रही हूँ तुम कब छोटे से इतने बड़े हो गए और मुझे अपने जाल मै फंसा लिया...
जाल में फंसा लिया? मैंने कब आपको जाल में फंसाया? भूल गई आप खुद आई थी मेरे पास.. वो भी सज धज कर..
हां क्युकी तुमने मजबूर कर दिया था मुझे..
अच्छा जी.. वो भी मेरी गलती है?
हां हां तुम्हारी गलती है और किसकी है? तुम्हे तो पता थी ना मेरी हालत? तभी तुमने मेरे साथ....
बोलो ना.... चुप क्यू हो गई?
छी.... मुझे शर्म आती है..
अंशुल ने पदमा के चेहरे पर चुम्बन करते हुए कहा - माँ होकर बेटे से शर्मा रही हो?
पदमा के चेहरे पर शर्म हया और मुस्कान थी उसे आज अपने ही बेटे अंशुल से शर्म आ रही थी जैसे एक दुल्हन को अपने पति से आती है दोनों की बाते कुछ देर और चली फिर नींद ने दोनों को अपने आगोश में ले लिए और उसी तरह एक बर्थ पर लिपटकर अंशुल और पदमा कब सो गए कहा नहीं जा सकता..
शिमला स्टेशन पर सुबह 10 बजे के करीब ट्रैन पहुंची अंशुल अपना सामान और पदमा को साथ में लेकर नीचे उतरा और तुरंत बाहर निकल कर एक ऑटो लेकर होटल ***** की ओर चल पड़ा... पदमा शिमला की खूबसूरती निहारे जा रही थी एक तरफ उसका गाँव और क़स्बा था दूसरी तरफ खूबसूरती से भरा हिमाचल.. उसकी आँखों में नज़र और चेहरे पर ठंडी हवा की छुअन पदमा के मन को उसहित और प्रफ्फुलित कर रही थी.. रास्ते में एक रेस्टोरेंट पर खाना खा कर दोनों वापस होटल की तरफ बढ़ गए.. होटल अंशुल ने पहले से ही बुक किया हुआ था जो उसके इम्तिहान वाली जगह से कुछ दुरी पर ही था..
गुड आफ्टरनून सर, हाउ कैन ई हेल्प यू? अंशुल को देखकर होटल रिसेप्शन पर बैठे एक आदमी ने कहा..
अंशुल फ़ोन दिखाते हुए - मैंने एक रूम बुक किया था..
रिसेप्शनिस्ट - जी सर, one सेकंड.. जी... अंशुल सिंह...& पदमा देवी.... Yes.. सर, आपका सुइट नंबर 3924.... ये आपकी key....
अंशुल - thanks.. But मैंने सिर्फ ए क्लास रूम बुक किया था....
रिसेप्शनिस्ट - सर..... वो विंटर सीजन स्टार्ट हुआ है थिस वीकेंड एंड जितना आपके रूम का टेरीफ है उसमे नाउ वी कैन प्रोवाइड यू अ सुइट... सो दी होटल अपग्रेड योर रूम टू अ सुइट.... ताकि आप और आपकी वाइफ को कोई प्रॉब्लम न हो...
पदमा को कुछ कुछ समझ आ रहा था और ये वो अच्छे से समझ गई थी की रिसेप्शनिस्ट ने उसे अंशुल की बीवी समझा समझा है.. वो मन ही मन खुश हो रही थी और अंशुल का हाथ पकडे उसके चेहरे की तरफ मुस्कुराते हुए देख रही थी..
अंशुल - थैंक्स.....
रिसेप्शनिस्ट - एन्जॉय योर हनीमून सर...
(अंशुल की इनकम का सोर्स फ़्लैश बैक में पता चल जाएगा)
अंशुल समझ गया था की उसे और पदमा को पति पत्नी समझा जा रहा है but उसने किसी का ये भरम तोड़ने की कोशिश नहीं की उलटे उसी तरह व्यवहार करने लगा...
एक लड़का आकर अंशुल से सामान ले लेता है और दोनों को उनके सुइट पर ले जाता है पदमा जब सुइट में पहुंची तो अंदर का नज़ारा देखकर हैरान रह जाती है जैसे किसी महल में आ गई हो.. उसने अब से पहले ऐसा कुछ नहीं देखा था उसे विश्वास नहीं हो रहा था की कोई होटल भी इतना खूबसूरत और महल जैसा हो सकता है..
अंशुल ने लड़के को टिप देकर वापस भेज दिया और दरवाजा बंद कर लिया, फिर पदमा को बाहो में भरके चूमते हुए बेड पर ले गया जहा मुस्कुराते हुए अंशुल ने पदमा से कहा - ई love यू माँ....
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पदमा - माँ नहीं आशु... पदमा... तुम्हारी पदमा.. और अब से अकेले में आप नहीं तु या तुम कह कर पुकारा करो... यहां मुझे मेरे नाम से बुलाओ... पदमा ने ऐसा कहते हुए जितनी बेबाकी से अंशुल की आँखों में देखा था उतनी बेबाकी अंशुल ने आज तक पदमा की आँखों में नहीं देखी थी..
अंशुल और पदमा वापस बहकने लगे थे और कुछ पलो में काम ने अपना काम कर दिया.. शिमला की ठंडी हवा मे मादकता घोलती पदमा की सिस्कारिया गूंजने लगी थी मखमली बिस्तर पर अंशुल पदमा की मुनिया को इस रफ़्तार से पेल रहा था जैसे कोई बदला निकाल रहा हो पदमा की चुदाई इस सर्दी में आग लगा रही थी. पदमा अंशुल को अपनी बाहों में ऐसे जकड़े हुए थी मानो अपने से अलग नहीं होने देना चाहती हो..
रह रह कर दोनों माँ बेटे के बीच सम्भोग पूरा दिन और शाम चलता रहा जहा दोनों ने बिना किसी शर्म लिहाज और परदे के एकदूसरे को हर सुख प्रदान किया.. रात एक बज चुके थे.. दोनों बुरी तरह थक चुके थे और एक दूसरे से लिपटे सो रहे थे आज अंशुल का इम्तिहान भी था जो सुबह 10 बजे शुरू होने वाला था...
आशु.... आशु... उठो इम्तिहान नहीं देने जाना? जल्दी करो आठ बज चुके है.. पदमा ने कहा.. अंशुल आँख मलता हुआ उठा तो उसने एक बार पदमा को अपने गले से लगा कर उसके माथे पर चुम्मा दे दिया मानो वो शुक्रिया कर रहा हो उन लम्हो का जो उसने पदमा के साथ यहां बिताये थे उसका सारा टेंशन और फ़िक्र जो इम्तिहान को लेकर थी वो हवा हो चुकी थी उसे इम्तिहान से ज्यादा फर्क नहीं पड़ रहा था जैसे कोई सालभर तयारी करके इम्तिहान देने जाता है और घबराहट और चिंता उसके साथ रहती है वैसी अंशुल के साथ आज नहीं थी पदमा ने सारी फ़िक्र और चिंता अपने प्यार से उतार दी थी.. होटल से इम्तिहान की जगह कुछ 15 मिनट वाकिंग डिस्टेंस पर थी सो अंशुल को अभी कोई फ़िक्र नहीं थी
अंशुल बिस्तर से उठ गया और नहाने चला गया पदमा उसके लिए चाय बनाने लगी थी आज पदमा पहले से कहीं ज्यादा सुलझी हुई समझदार और शहरी औरत मालूम पडती थी उसे देखकर कोई नहीं कह सकता था की वो किसी गाँव देहात या कस्बे में बसने वाली आबादी जो आधुनिकता से कोसो दूर है वहा रहती हो.. पदमा के चरित्र और स्वाभाव में आकस्मिक पर अद्भुत परिवर्तन आया था जो उसे भी महसूस हो रहा था वो मन ही मन अपने ऊपर डाली गई समाज की बंदिश और मर्यादा लांघने को आतुर थी उसे अब समाज और महिला की गरिमा की ज्यादा परवाह नहीं रह गई थी.. पदमा चाय बनाते हुए अपनी सारी का पल्लू अपनी ऊँगली में उलझा कर दाँत से कुतर रही थी और सोच रही थी अगर अंशुल सच में उसके पति बन जाए तो? वो हर दम उसके साथ पति पत्नी की तरह जीवन बिताये तो? अंशुल तो कब से इसके लिए त्यार है पर ये तो पदमा ने ही तय किया है की वो अंशुल के साथ परदे के पीछे ही अपना ये नाजायज रिश्ता रखेगी और समाज के सामने एक माँ बेटा होने का पूरा दिखावा करेगी.. पदमा को न जाने क्यू आज अंशुल के प्रति कुछ ज्यादा आकर्षण उत्पन्न हो रहा था वो जानती थी की अंशुल भी उसके प्रति कितना आकर्षित है पर अभी तक दोनों ने अपने दिल की बाते को एकदूसरे के सामने रखते हुए एक मर्यादा रखी थी जिसे शायद उनके मन के भीतर माँ बेटे के रिश्ते का ख्याल कहा जा सकता था..
अंशुल जब नहाकर बाहर आया तो सिर्फ तौलिये में था और अपने बाल सहला रहा था पदमा ने पहले भी उसे कई बार इस तरह देखा था मगर आज उसे अंशुल में अपना बेटा कहीं दूर दूर तक नज़र नहीं आ रहा था वो चाय का कप लिए अंशुल के पीछे खड़ी थी.. उसे देने के लिए अंशुल की और आगे बढ़ गई थी जैसे कोई पत्नी सुबह की पहली चाय अपने पति को देने के लिए बढ़ती है... अंशुल ने जल्दी से एक ब्लू जीन्स और वाइट टीशर्ट पहन लिया था वो आईने के सामने खड़ा हुआ अपने बाल बना रहा था वहीं पदमा आज बिना कुछ बोले अंशुल जे पीछे चाय का कप हाथ में लिए खड़ी थी जैसे इंतजार कर रही हो की आशु कब मोड़कर उससे चाय का कप लेकर चाय पिए और उसे देखकर कोई मीठी प्यार भारी बाते करे.... ऐसा होना मौसम की मांग थी इस ठंडी में पदमा का ऐसा सोचना भी जायज था आखिर इतना खूबसूरत शहर और माहौल कैसे नहीं प्यार की बात करेगा?
अंशुल जब बाल बनाकर पीछे मुड़ा तो पदमा मुस्कुराते हुए चाय लेकर खड़ी थी अंशुल ने चाय का कप लेकर एक दो चुस्की ली फिर चाय मैंज पर रखकर पदमा को अपनी बाहों में खींच लिया और उसके गुलाबी हलके मोटे उभरे हुए होंठों को अपने होंठो में भर कर इतना प्यार से चूमा की पदमा अपने होश खो बैठी और सिमटकार अंशुल की बाहो में समा गई.. पदमा को ये भी ख्याल ना रहा उसका आँचल उसके सीने से नीचे जा चूका है और उसके छाती के उभार साफ साफ अंशुल के सामने है.. मगर वो इसकी परवाह करती भी क्यू? कुछ देर चूमने के बाद अंशुल ने पदमा के चेहरे को अपने दोनों हाथ से पकड़कर उसकी आँखों में देखते हुए कहा.. चाय में मीठा कम था इसलिए आपके होंठ चूमे... पदमा अंशुल की बाते सुनकर नीचे उसकी जीन्स में साफ दिख रहे उसके लिंग की अकड़न महसूस करते हुए बोली - मीठे के चक्कर में अब इसका क्या?
अंशुल पदमा की बात सुनकर मुस्कुराते हुए बोला - आप हो ना...
पदमा ने एक क़ातिल मुस्कुराहट के साथ घड़ी की और इशारा किया, घड़ी में 8.50 हो रहे थे..
पदमा बोली - इम्तिहान नहीं दोगे? अंशुल की नज़र जैसे घड़ी पर पड़ी उसके चेहरे पर मोज़ूद ख़ुशी और कामइच्छा फुर्ररर हो गई और एक उदासी छा गई.. अंशुल अब कुछ बोलने की हालत में नहीं था उसने बस पदमा को एक नज़र प्यार से देखा फिर उसके लबों को चूमकर अपना जैकेट उठाकर बाहर की और जाने के लिए बढ़ गया....
पदमा ने अंशुल को दरवाजे पर ही रोक लिया और प्यार से उसके लबों को चूमकर कहा - इस तरह बे-मन से जाओगे तो इम्तिहान में मन नहीं लगेगा.. और अंशुल का हाथ पकड़कर उसे वापस बिस्तर के करीब ले आई, पदमा ने टेबल पर पड़े पैकेट से एक सिगरेट निकलकर अंशुल के होंठो पर लगा दी और लाइटर से सिगरेट जलाकर घुटनो पर बैठकर अंशुल की जीन्स का बटन खोलकर जीन्स नीचे सरका दी और उसके लंड के सुपाडे पर अपने होंठों को लगा दिया.. अंशुल ने एक लम्बा सिगरेट का कश लेते हुए अपनी माँ के सर पर दो तीन बार प्यार से हाथ फेरा और फिर उसके मुँह में अपने लंड को घुसा कर पदमा से ब्लोजॉब लेने लगा.. पदमा किसी भूखी शेरनी की तरह अंशुल के लिंग को शांत करने में लग गई और अंशुल सिगरेट के कश लेते हुए पदमा को देख रहा था.. पदमा अंशुल के लिंग और आंड ऐसे चूस चाट रही थी जैसे साधारण देहाती औरत न होकर कोई बड़ी पोर्नस्टार हो..
इस वक़्त वो अंशुल को उसके चरम पर खींच लाना चाहती थी और कुछ ही मिनटों में ऐसा हो भी गया.. पदमा का पूरा मुँह अंशुल के वीर्य से भर चूका था सिर्फ दस मिनट में अंशुल पूरी तरह ठंडा हो चूका था.. पदमा अपने मुँह में अंशुल का वीर्य भरे खड़ी हुई तो अंशुल ने जल्दी से अपनी जीन्स पहनी और फिर पदमा के पैर छूकर आशीर्वाद लेते हुए बाहर इम्तिहान देने चला गया...
पदमा ने कई बार अंशुल को आशीर्वाद दिया था मगर आज उसे अंशुल का पैर छूना अजीब लग रहा था उसके मुँह में वीर्य भरा था जिसे वो धीरे धीरे अपने गले से नीचे उतार रही थी और सोच रही थी क्यू वो अंशुल के साथ नई शुरुआत करने से डर रही है? बालचंद तो कब का उसे भुला चूका है और उसके लिए पदमा का कोई महत्त्व भी नहीं.. बालचंद के लिए पदमा घर में काम करने वाली एक औरत है इसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं.. फिर क्यू पदमा अपनी ख़ुशी नहीं सोच सकती? क्यू उसे अपनी मनमानी तरह से खुश रहने का हक़ नहीं है? अंशुल ने कितना ख्याल रखा है पदमा का.. उसे हर तरह से खुश रखा है फिर भी अंशुल को वो अपने ऊपर पूरा हक़ क्यू नहीं दे सकती? पदमा सोच में डूबी जा रही थी.. आज पदमा ने अपने सुहाग की निशानी को उतार कर रख दिया था और मांग में सिन्दूर भी नहीं भरा था.. नहाने के बाद पदमा ने साडी नहीं पहनी बल्कि एक ड्रेस जो अंशुल ने बहुत पहले उसे गिफ्ट की थी और समाज के डर से उसने कभी पहनी ना थी आज उसके हाथ में थी और वो उसे पहने वाली थी आज पदमा ने तय किया था की वो अब अपने मन से ज़िन्दगी जियेगी.. पदमा उस ड्रेस में बेहद खूबसूरत और जवान नज़र आ रही थी..
शाम होने को थी अंशुल इम्तिहान देकर वापस होटल आ चूका था और दरवाजा खोलने वाला थी की पदमा ने दरवाजा खोलकर उसे अंदर आते ही अपनेआप से मिला लिया और किसी प्रियसी की भाती उसके मुख पर अनेको चुम्बन अंकित कर दिए..
अंशुल पदमा का ये बर्ताव देखकर आश्चर्य में था मगर वो आश्चर्य उसे सुख दे रहा था अंशुल ने पदमा को उठाकर बिस्तर पर पटक दिया और उसे आज पहली बार साड़ी के अलावा कुछ और पहना देखकर मुस्कुराने लगा.. पदमा आज बहुत ज्यादा कामुक लग रही थी अंशुल ने पदमा को अपने आलिंगन में ले लिए और सम्भोग के अधीन होकर कामक्रीड़ा करने लगा जिसमे पदमा का उसे पूरा साथ हासिल था.
रात के 8 बज रहे थे और शिमला की ठंडी हवाओ के बिच मालरोड पर किसी कोने में पदमा और अंशुल एकदूसरे को कॉलेज के प्रेमी प्रेमिकाओ की भांति चुम रहे थे आज पदमा को शर्म आने का नाम नहीं था जो बंद कमरे में शर्मा जाती थी वो आज इतने लोगों के बीच अंशुल को किसी बेसब्री की तरह चुम रही थी.. अंशुल के हाथ अपने माँ के बदन की बनावट का जायजा ले रहे थे और पदमा बार बार उसके लबों को दाँत से खींचकर चूमते हुए आँख मार रही थी जैसे कह रही हो अंशुल मुझे अब किसी की कोई फ़िक्र नहीं है.. वहीं कहीं किसी रेस्टोरेंट में खाना खाने के बाद अंशुल वापस पदमा को होटल ले आया और पूरी रात उसके आलिंगन में रहा जैसे उसे भी फर्क हो की कल घर पहूँचने के बाद दोनों के बीच ये सब छुप कर ही हो पायेगा..
सुबह की ट्रैन थी और सुबह जल्दी हो दोनों ट्रैन में आकर्षित बैठ गए थे अब पदमा अंशुल की बाजू पकडे उसके कंधे पर सर रखकर किसी ख्याल में थी और उसके आंसू उसकी आँखों से बाहर आ रहे थे अंशुल खिड़की से बाहर देख रहा था. जब उसके कंधे पर पदमा के आंसू गिरे तो उसे अहसास हुआ की पदमा रो रही है वो पदमा की ओर मुँह करके बैठ गया ओर पदमा के आंसू पोंछते हुई उससे इन आँसुओ के पीछे का कारण पूछने लगा जिसपर पदमा ने बिना कोई जवाब दिया अंशुल के सीने से लग गई ओर उसे अपनी बाहो में कस लिया मानो कह रही हो की अंशुल में भी तुमसे शादी करके अपना घर फिर से बसाना चाहती हूँ मगर मेरे सामने जो मजबूरिया है मैं उनको कैसे दूर करू? मैं बहुत बेबस असहाय ओर लाचार हूँ ओर चाहते हुए भी तुम्हे पूरी तरह से अपना नहीं बना सकती.. आज मेरा दिल बहुत जोरो से मुझे कोस रहा है ओर कह रहा है की मैं सब कुछ छोड़कर तुम्हारे साथ कहीं चली जाऊ मगर ऐसा करना मेरे बस में नहीं.. मैं क्या करू? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा..
अंशुल कुछ हद तक पदमा की मनोभावना समझने में सफल था उसे समझ आ रहा था की पदमा को भी अब अहसास हो रहा है की वो उसके बगैर नहीं रह पाएगी..
अंशुल में पदमा को अपनी गोद में बैठा लिया ओर उसके आँखों से बहती अश्रु धारा को पोंछते हुए कहा - तुम चिंता मत करो मैं तुम्हे छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा ओर हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगा.. ओर तुम्हारा ख्याल रखूँगा..
पदमा - वादा?
अंशुल - पक्का वादा..
अंशुल ओर पदमा वापस घर आ चुके थे और अब बालचंद का भी फिर से ट्रांसफर बड़े शहर घर के पास वाले विभाग में हो गया था बालचंद पदमा और अंशुल की जिंदगी वापस से उसी तरह चलने लगी थी जैसे पहले चलती थी मगर अब पदमा बालचंद से कोई झगड़ा नहीं करती थी अगर झड़गा कभी होता भी तो पदमा बालचंद को ऐसी खरी खोटी सुनती की वो पलटकर कुछ बोलने लायक नहीं रहता.. अंशुल ने पास एक स्कूल में शोखिया तौर पर पढ़ना शुरु कर दिया था..
बालचंद एक शाम घर आया तो कुछ गुस्से में था आज बड़े बाबू से बुरी डांट पड़ी थी उसे आखिर कामचोरी और रिश्वत में भी कुछ एहतियात बर्तनी जरुरी है एक तो कामचोरी और ऊपर से रिश्वत के पैसो का बटवारा दोनों में बालचंद गड़बड़ कर बैठा था सो बड़े बाबू ने जमके लताड़ा था आज उसे.. तरह तरह की उपमा देकर पुकारा था कभी गधो का राजा तो कभी चोरो का सरताज क्या क्या कह दिया था बालचंद को सबके सामने.. बालचंद जूते उतारता हुआ पदमा से बोला - तुम्हारे साहेबजादे कल फ्री हो तो पूछ लेना, मुझे सिहरी जाना है ज्ञानचंद (बालचंद का छोटा भाई) के यहां.. आरुषि (ज्ञानचंद के बेटी) को देखने वाले आएंगे कल..
पदमा - तो बस से चले जाना.. मेरे बच्चे को पूँछ की तरह कहे अपने पीछे पीछे घुमा रहे हो.. वैसे भी अपने बेटे को तो वो लोग घर से निकाल ही चुके है..
बालचंद - जब औलाद हाथ से बाहर हो जाए तो घर में रखकर क्या फ़ायदा? निकाल देना ही बेहतर होता है....
पदमा - क्या मतलब निकाल देना बेहतर होता है? अरे शादी भी तो करवा सकते थे उसकी.. कोठे पर ही तो जाता था किसी का खून थोड़ी किया था उसने.. और अब कोनसा साधु महात्मा बन गया होगा? अब तो और भी बुरी आदत लग चुकी होंगी विजु को (ज्ञानचंद का बेटा ).. ना जाने कहा क्या कर रहा होगा..
बालचंद - सिर्फ कोठे पर जाने की बात नहीं थी.. राह चलते लोगों से लड़ाई-झगड़ा मारपीट करना और उसने तो ज्ञानचंद के फ़र्ज़ी दस्तखत करके बैंक से रुपए तक चुराए थे.. ज्ञानचंद बेचारा क्या करता? मुझे तो डर है कहीं तुम्हारा आशु भी....
पदमा - चुप रहो तुम... मेरे आशु के लिए ऐसी बाते करने से पहले सो बार सोच लेना.. मुझसे बुरा कोई ना होगा.. आजतक तुम्हारा एक रूपया भी नहीं लिया मेरे आशु ने.. अरे तुम्हारे पास है ही क्या जिसे वो चुरायेगा? तुम्हारी चपसारीगिरी और रिश्वत खोरी से घरखर्च चलाना भी मुश्किल होता है जैसे तैसे मैं चलाती हूँ उतना ही शुक्र मनाओ.. कभी किसी चीज़ के लिए ज़िद नहीं की मेरे आशु ने.. हमेशा अपनी मेहनत और पैसो से अपने खर्चे चलाये है..
बालचंद - अरे बस भी करो.. क्या बोलते बोलते सुबह कर दोगी? वैसे भी फ्री ही तो पड़ा रहता है तुम्हारा लाडला एक दिन साथ चला जाएगा तो क्या फर्क पड़ेगा?
पदमा - बहुत फर्क पड़ेगा.. वो घर ही मनहूस है पहले तुम्हारे भाई ने अपने बेटे विजय (विजु) को घर से निकल दिया फिर तुम्हारी वो छिनाल बहन बांसुरी अपने यार के साथ भाग गई और फिर आरुषि की सगाई टूट गई.. और अब रिश्ता मिला भी है तो ऐसा? सुना है तुम्हारी उम्र से कुछ ही कम उम्र का लगता है लड़का.. उस बेचारी लड़की का जीवन ही नर्क कर दोगे तुम सब मिलकर...
बालचंद - तो फिर क्या करे? घर बैठा ले उसे जिंदगीभर? 28 की हो चुकी है.. अब तक तो गांव देहात में लड़कियों के बच्चे भी हो जाते है... जो रिस्ता मिल रहा है वो नहीं मिलेगा कुछ दिनों बाद.. फिर वो भी कहीं बांसुरी की तरह भाग गई तो रही सही इज़्ज़त भी चली जायेगी...
पदमा - इज़्ज़त बची कहा है तुम लोगों के पास? उसे तो तुम सब मिलकर बेच खाये हो..
अंशुल सीढ़ियों से नीचे आता हुआ - क्या हुआ?
पदमा का सारा गुस्सा हवा हो गया ओर प्यार भरी मुस्कान उभर आई - कुछ नहीं आशु... कुछ चाहिए? चाय बना दू?
अंशुल - नहीं मैं वो चन्दन भईया के पास जा रहा था उन्होंने बुलाया था बाजार से भाभी के लिए दवा लानी है तो साथ जाना था....
पदमा - क्या हुआ महिमा को?
अंशुल - कुछ नहीं बस वो पेट से है... सुबह डाक्टर को दिखाया था दवाई लिखी थी आस पास मिली नहीं बाजार जाना पड़ेगा... आते आते रात हो जायेगी..
पदमा - महिमा पेट से है.. ये तो बहुत ख़ुशी की बात है.. पर लल्ला जरा आराम से जाना..
अंशुल - नया रोड बन गया है माँ..अब आने जाने में परेशानी नहीं होगी... कुछ लाना है आपके लिये ?
बालचंद अंदर रूम में जाता हुआ - एक मुँह बंद रखने की गोली ले आना.. अगर मिल जाये तो..
अंशुल और पदमा बालचंद की बात सुनकर एक दूसरे की तरफ देखते हुए मुस्कुराने लगते है.. और आँखों में कुछ बाते एक दूसरे से कहकर अपने अपने काम में लग जाते है..
अंशुल चंदन के साथ बाजार चला जाता है और डाक्टर की लिखी दवाई खरीदने में उसकी मदद करने लगता है.. दवाइया लेकर दोनों वापस घर की तरफ चल पड़ते है लेकिन बीच में नदी के पास बने पुल के नीचे साथ बैठ जाते है.. दोनों पहले भी कई बार यहां ऐसे ही बैठ चुके थे और आपस में घर और इधर उधर की बात करते हुए नदी का बहना देखते थे दोनों के बीच में कुछ जगह खाली थी जहा एक अंग्रेजी शराब की बोतल दो प्लास्टिक के गिलास और उनमे भरी शराब के साथ एक सोडे की बोतल भी बगल में रखी हुई थी.. चकने में मटर खाये जा रहे थे जो ख़रीदे गए तो तरकारी बनाने के लिए थे पर अब बोतल खुलने पर उसका इस्तेमाल अलग तरह से किया जा रहा था चकने में नमकीन भी जिसे चबाते हुए आवाज़ आ रही थी..
क्या हुआ भईया? बाप बनने वाले हो.. इतनी ख़ुशी के मोके पर ऐसा उदास मुँह क्यू बनाया हुआ है? अंशुल ने शराब के गिलाश से मुँह लगाते हुए कहा..
आशु बाप बनना बहुत जिम्मेदारी का काम होता है यार.... मुझे लगता है मैं कभी अच्छा बाप नहीं बन पाउँगा.. मैं कभी किसी का ख्याल नहीं रख पाउँगा.. तुम्हारी भाभी मुझसे कोई शिकायत तो नहीं करती मगर मैं जानता हूँ वो कितनी अकेली है.. शादी के बाद मैंने बस काम ही किया है उस बेचारी के साथ दो पल बैठकर प्रेम के बोल तक नहीं बोल पाया....
अंशुल - भईया जो नहीं कर पाए वो अब कर लो... जिंदगी ख़त्म तो नहीं हुई है.. वैसे भी भाभी जितना प्यार आपसे करती है उससे लगता नहीं है की आप उनका ख्याल न रख पाए हो..
चन्दन - नहीं आशु.... मैं इस प्यार के क़ाबिल नहीं हूँ यार... मैं हूँ तो उसी शराबी की औलाद जिसने नशे में अपने पुरे परिवार को आग में जला कर मार डाला.. सोचता हूँ अगर धन्नो काकी ने मुझे ना पाला होता तो मेरा क्या होगा? ये परिवार ये जिंदगी ये ख़ुशी मैं इसके लायक़ नहीं हूँ..
अंशुल - भईया.... अगर लाइफ में थोड़ी ख़ुशी मिल रही हो तो उसे नकारना नहीं चाहिए.. जो हो चूका उसे बुरा सपना समझकर भूलने में फ़ायदा है.. मैं जानता हूँ आप अच्छे बाप बनेंगे क्युकी आपने अपने बाप को देखा है.. और वैसा आप कभी बन नहीं पाएंगे.. आप उस तरह के है नहीं... अब ये बेकार की चिंता छोड़िये.. घर भी चलना है.. लीजिये खिचिये...
चन्दन मुस्कुराते हुए - लाइफ को समझना बहुत मुश्किल है आशु.... कभी हंसाती है तो कभी रुलाती है.. कभी सब छीन लेटी है तो कभी सब लुटाती है..
अंशुल - आज कुछ ज्यादा इमोशनल नहीं हो रहे है आप? अच्छा ये पेग ख़त्म करिये मैं मूत्रविसर्जन करके आता हूँ...
अंशुल कुछ दूर जाकर जैसे ही अपनी धार बहाने लगता है उसका फ़ोन बज उठता है पदमा का फ़ोन था..
अंशुल - हेलो...
पदमा - कहा हो? कब तक आओगे?
अंशुल - रास्ते में हूँ.. आ रहा हूँ..
पदमा - पूल के नीचे?
अंशुल - यार आप भी ना माँ.. आपसे झूठ भी नहीं बोल सकता....
पदमा - हम्म... लगा ही था... अब अपनी पार्टी ख़त्म करो और जल्दी आओ.. अपने हाथो से शराब पिलाऊँगी...
अंशुल - अच्छा आता हूँ..
अंशुल वापस चन्दन के पास चला आता है और उसके साथ घर आ जाता है..
बालचंद आज कुछ उदास था सो खाना नहीं खा सका और पदमा उसे दवा देने में नाकाम रही बालचंद की आँखों में आज नींद नहीं थी वो कुछ सोच रहा था जैसे किसी फैसले को लेकर कुछ तय करना चाहता हो.. पदमा अंशुल को दूध देने गई थी मगर अब अंशुल उसके थनो से ही दूध पिने लगा था पदमा किसी अठरा साल की लड़की की तरह पहले प्यार में डूबी मुस्काती हुई अंशुल के सर को ऐसे सहला रही थी मानो वो अंशुल से कह देना चाहती हो की अंशुल तुम्हे जब भी अपनी माँ के दूध की जरुरत हो तुम ऐसे ही मेरा दूध पी सकते हो.. पदमा के थनो में दूध तो नहीं था मगर उसी भावना के साथ वो अंशुल को अपनी छाती से लगाए हुए थी और अंशुल उसके निप्पल्स को चूसकर आनंद ले रहा था.. आज रात उसे बिना पदमा के निकालनी थी पदमा उसे बताकर नीचे आई थी की आज वो नहीं आएगी और कल बालचंद अपने छोटे भाई ज्ञानचंद के यहां जा रहा है तो अब दोनों का मिलन कल ही हो पायेगा..
सुबह की पहली किरण धरती पर पड़ चुकी थी और पदमा बिस्तर से उठकर घर के कामो में लग चुकी थी अंशुल भी उठकर छत पर टहल रहा था और इंतजार कर रहा था की कब पदमा छत पर आये और वो उसे अपनी बाहों के घेरे में लेकर अपनी सुबह को मीठा कर ले बालचंद नींद में था रात को देर तक सोच विचार करने के बाद उसे नींद आई थी सो वो अभी नींद में ही खराटे मार रहा था.. पदमा जब छत पर कपडे लेने पहुंची तो अंशुल ने उसे अपनी बाहों में भर लिया और छत पर बने एक छोटे से कमरे में ले गया..
पदमा - आशु..... क्या कर रहे हो? छोडो.. बहुत काम पड़ा है... तुम्हे जरा भी सब्र नहीं है.. आह्ह... आशु... छोडो ना मुझे... आह्ह.... आह्ह.... तुम ना दिन ब दिन बहुत बद्तमीज होते जा रहे हो... आह्ह.. आराम से....
अंशुल ने पदमा की साडी उठाकर चड्डी नीचे सरका दी थी और अपने लिंग से उसकी बुर का नाप ले रहा था पदमा के बाल बिखरे हुए थे उसे सुबह सुबह इस तरह अपनी बुर कुटाई का अंदाजा नहीं था..
पदमा - आह्ह... पूरा दिन पड़ा है आशु.... तुम अभी छोड़ दो... बहुत काम है...
अंशुल - मैं पापा के साथ सीहरी जा रहा हूँ माँ.... सोचा एक बार जाने से पहले आपको प्यार कर लू...
पदमा - आह्ह.. तुम कहीं नहीं जाओगे समझे? और उस आदमी के साथ जाने की जरुरत भी नहीं है..
अंशुल - मैं सिर्फ आरुषि के लिए जा रहा हूँ.. मैं उसे किसी ऐरे गेरे के साथ नहीं देख सकता...
पदमा - आह्ह... आशु.... तुम मुझे अकेला छोड़कर चले जाओगे?
अंशुल - शाम तक तो वापस आ जाऊंगा.. और दिन की भरपाई कर तो रहा हूँ....
पदमा - आह्ह.... आह्ह.... आह्ह....
सुबह के साढ़े छः बज चुके थे और अंशुल पदमा की बुर में उतरकर अभी अभी बाहर आया था पदमा हांफ रही थी उसके कपडे अस्त व्यस्त थे और बाल बिखरे हुए बुर से पानी बह रहा था जिससे लगता था की वो भी झड़ चुकी है अंशुल अपने लंड पर से वीर्य से भरा कंडोम निकाल कर गाँठ लगा चूका था और एक जगह रख दिया था, अंशुल नीचे अपने रूम में आ चूका था और पदमा अब तक अपनी हालत सुधार रही थी जब वो नीचे आई तो अपने साथ वो वीर्य से भरा हुआ कंडोम भी ले आई और बाथरूम के ऊपर रखी हुई एक बाल्टी जिसमे पहले से कई इस्तेमाल किये कंडोम पड़े थे उसे भी वहीं डाल दिया और काम में लग गई उसे अजीब ख़ुशी मिल रही थी उसका मन अंशुल के ख्यालों से भरा हुआ था फ्लिमी गाना गुनगुनाते हुए वो अपने काम में व्यस्त थी..
सुबह की चाय बन चुकी थी आज बालचंद को उठते उठते 9 बज गए थे चाय पीकर वो नहाने चला गया था और पदमा चाय लेकर अंशुल के पास आ गई थी अंशुल ने फिर से एक बार पदमा के गुलाबी लबों को अपना शिकार बना लिया था पदमा भी इस बार शायद शिकार होने की नियत से ही उसके पास गई थी जब तक नीचे बालचंद नाहधोकर त्यार हुआ अंशुल फिर से अपनी माँ पदमा के बुर का रस निकाल चूका था....
जब बालचंद जाने लगा तब अंशुल ने कहा - रुकिए मैं भी साथ चलता हूँ.. कहते हुए उसने अपनी बाइक निकाल ली और बालचंद बिना कुछ कहे उसके पीछे बैठकर सीहरी के लिए निकल पड़ा था.. दोनों के बिच तालमेल देखकर कोई भी बता सकता था की दोनों में जरा भी नहीं बनती.. मगर बालचंद ने रास्ते में पूछ ही लिया..
ब - पेपर केसा हुआ तुम्हारा?
अ - अच्छा हुआ है..
ब - सिर्फ अच्छे से कहा सिलेक्शन होता है..
अ - शायद निकल जाएगा..
ब - कहने में क्या जाता है? तयारी तो हमने भी बहुत की थी.. मगर पांच सीट पर पांच हज़ार लोग इंतिहान देंगे तो कितनी भी मेहनत कर लो कैसे होगा..
अ - चिंता मत कीजिये मैं चपरासी से अच्छा ही कुछ करूँगा..
इस बार बालचंद ने बात घुमा दी और यहां वहा की बाते करने लगा दोनों बाप बेटे के बीच जो मोन कई सालों से कायम था वो आज टूट गया था और दोनों आपस में खुलकर बतिया रहे थे...
बालचंद जिस औरत को भोग चूका था अंशुल उसे भोग रहा था और आगे भी इसी तरह भोगना चाहता था एक छत नीचे जो हो रहा था उसका होना अकासमात नहीं था..
अंशुल ज्ञानचंद के घर पहुंच चूका था ये घर गाँव के बाजार से लगता हुआ था जहा नीचे दूकान और ऊपर मकान जैसी प्रथा आम थी ऐसा ही एक घर ज्ञानचंद का था उसकी पत्नी शांति स्वाभाव की बहुत ही अशांत औरत थी लालच तो उसमे कूट कूट कर भरा हुआ था यही कारण था की वो इस बेमेल रिश्ते को मान गई थी और अपनी बेटी की ख़ुशी उसे नज़र नहीं आई..
[/JUSTIFY
आरुषि छत पर अकेली उदास आँखों से खेतो की लहलाहती हुई फसल को देख रही थी और सोच रही की क्या वो इतनी बदकिस्मत है की उसके नसीब में मनचाहे पुरुष का सुख भी नहीं है.. बिन ब्याही लड़की को क्यू इस समाज में बोझ समझा जाता है? आरुषि में ऐसी कोई कमी नहीं थी जो उसको कोई ठुकरा सकता था मगर ज्ञानचंद का बड़बोलापन और शान्ति के लालच ने उसके लिएआये कई रिश्तो की लंका लगा दी थी.. आरुषि दिखने में सामान्य और सुशील थी मन की साफ.. वो ज्ञानचंद और शांती के घर कैसे पैदा हो गई कहा नहीं जा सकता, आज वो 28 साल की हो चुकी थी मगर अब तक कवारी थी.. आरुषि छत पर खड़ी खेत देख रही थी की पीछे से अंशुल ने उसकी आँखों पर अपने हाथ रख लिए और उसकी आँखे बंद कर दी..
आरुषि समझ नहीं पाई की आखिर कौन है जिसने उसकी आँखों को इस तरह अपनी हथेलियों से ढक लिया था आरुषि ने हाथो को महसूस किया मगर पता न चला सकी और फिर पूछ बैठी.. कौन?
अंशुल अपने होंठ आरुषि के कान के करीब लेजाकर धीमे से कहा - मैं...
आरुषि कई सालों से अंशुल से नहीं मिली थी मगर उसकी आवाज़ सुनते ही समझ गई की कौन है जिसने उसकी आँखे ढाप रखी है.. अंशुल का नाम लेकर तुरंत पीछे पलट गई और अंशुल को अपनी बाहों में भर लिया.... अंशुल को आरुषि से इस तरह के आलिंगन की उम्मीद नहीं थी आरुषि के उन्नत उरोज अंशुल के वक्ष में किसी मुलायम गद्दे की भाँती दब गए और आरुषि के बदन से उठती एक भीनी महक अंशुल की नाक में भर चुकी थी...
आरुषि - इतने सालों बाद याद आई है अपनी बहन की? हम्म?
अंशुल - तुम्हे भी तो याद नहीं आई मेरी? पहले तो कितना याद करती थी..
आरुषि - याद तो अब भी आती पर तुम हो की आने का नाम ही नहीं लेते.. कितने बड़े और प्यारे हो गए हो... बिलकुल किसी शहजादे की तरह खूबसूरत और सुन्दर....
अंशुल - तुम भी तो पहले से ज्यादा चमक रही हो..
आरुषि - मस्का मत लगाओ.. सब जानती हूँ तुमको... आखिर बड़ी बहन हूँ तुम्हारी..
अंशुल - अच्छा अब छोडो मुझे... कोई ऐसे गले लगे हुए देख लेगा तो पता नहीं क्या सोचेगा..
आरुषि - शर्मा रहे हो मुझसे?
अंशुल - तुमसे क्यू शर्माऊंगा? वैसे भी जो किसी बुड्ढे से शादी करने वाली हो उससे मैं क्यू शर्माउ?
आरुषि अंशुल को छोड़कर - तुम भी यहा मेरा मज़ाक़ उड़ाने आये हो ना..
अंशुल - नहीं.... मैं अपनी प्यारी बड़ी बहन को समझाने आया हूँ.. पता है ना जब विजु को पता चलेगा तो क्या हाल करेगा उस बुड्ढे का?
आरुषि उदासी से - छोडो आशु.... सारी उम्र यही थोड़े बैठे रहूंगी.. अब तो सब ताने मारने लगे है.. और अब मेरे लिए कोनसा सहजादा आने वाला है?
अंशुल - अगर आ जाए तो?
आरुषि - मज़ाक़ नहीं आशु.. हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं हो सकता.... तुम छोटे भाई हो मेरे..
अंशुल - अरे बुद्धू मैं अपनी बात नहीं कर रहा हूँ.. वैसे तुम्हारा आईडिया बुरा भी नहीं है... हमारे बीच भी कुछ.......
आरुषि - सपने देखो बच्चू.... कुछ नहीं मिलने वाला मुझसे....
अंशुल फ़ोन निकालते हुए - अच्छा ठीक है यहां आओ.... देखो.....
आरुषि - कौन है ये?
अंशुल - पहले बताओ.... पसंद है या नहीं? दोस्त है शहर रहता है....
आरुषि बिना कुछ बोले अंशुल के सीने से चिपक जाती है और इस बार उसके गाल पर एक जोरदार चुबन अंकित कर देती है..
अरे अभी तो कह रही थी कुछ नहीं मिलने वाला और अब चुम्मे दे रही हो....
आरुषि शरमाते हुए - आशु....
अच्छा अब उस बुड्ढे को नीचे से भगाओ.. साले की शकल देकर मेरा खून खोल रहा है..
आरुषि - पर क्या वो मुझसे शादी करेगा?
अंशुल - वो मुझे पर छोड़ दो... तुम बस अब अपने इस प्यारे से चेहरे को एक मीठी से मुस्कुराहट से सजा लो....
आरुषि ने रिश्ते से साफ इंकार कर दिया था और अगले ही दिन अंशुल के जुगाड़ से किसी के कहने पर आरुषि और अंशुल के दोस्त विशाल के रिश्ते की बात उठ गई थी.. अंशुल ने विशाल से बातों ही बातों में अनजान बनकर विशाल को उसके और आरुषि के भाई बहन होने के बारे में बता दिया था आज विशाल अपने माँ बाप के साथ आरुषि को देखने अगुआ के साथ उसके घर आया था आरुषि रसोई में चाय बना रही थी वहीं बगल में खड़ा अंशुल उसे इशारे कर करके छेड़े जा रहा था.. आरुषि का मन प्रसन्न था ज्ञानचंद के बड़बोलेपन और शान्ति के लालची स्वाभाव के कारण शायद ये रिश्ता भी हाथ से निकल गया होता अगर अंशुल ने बीच में सब संभाला ना होता और विशाल को पहली नज़र में ही आरुषि पसंद न आई होती..
आमतौर पर कुछ समय बाद ऐसा होता है मगर आज कुछ बिशेष था विवाह की तिथि भी आज ही निकल गई थी अब से तीन माह बाद आरुषि का ब्याह तय हुआ था, आरुषि तो ख़ुशी से मचल उठी थी.. उसने अंशुल का पूरा चेहरा चूमते हुए लाल कर दिया था.. और कहा था आशु.... तुम सच मरे लिए किसी फ़रिश्ते जैसे हो.. और बदले में अंशुल ने सिर्फ अपने होंठों पर लगी लिपस्टिक उंगलिओ से हटाते हुए कहा था.. छोटे भाई के होंठो को कौन चूमता है.. आरुषि ने फिर से एक प्यारा सा चूमा करके अंशुल के होंठों को काट लिया था....
दोनों के जज़्बात बाहकने तो लगे थे मगर अंशुल ने अपने आप पर काबू रखा और इस चुम्मे को बस एक मीठी याद बनकर ही रह जाना पड़ा....
आज किस ख़ुशी में चिकेन बन रहा है? अंशुल ने पीछे से अपनी माँ पदमा को अपनी बाहों में भरते हुए पूछा..
पदमा ने अपने पीछे से अंशुल की शरारत समझते हुए कहा - थोड़ा दूर से.... भालू अंदर ही है.... और कोई ख़ास वजह नहीं है.. बस आज मन हुआ तो बना लिया..
अंशुल - अपने पति को भालू तो मत बोलो....
पदमा मुस्कुराते हुए - जानती हूँ कितनी इज़्ज़त करते हो तुम उसकी.. ये दिखावा ना किसी और के सामने करना.. अभी घर पर ही है वो...
अंशुल - कहो तो भालू को ठिकाने लगा देता हूँ....
पदमा - अच्छा? मार खाने का इरादा है आज?
अंशुल - आपके हाथो की मार भी कबूल है....
पदमा मुस्कुराते हुए - चुप बेशर्म.....
बालचंद अंदर से आवाज़ लगाते हुए - पदमा.... नीली कमीज देखी तुमने मेरी?
पदमा चिल्लाते हुए - वो अलमारी के ऊपर वाले हिस्से में है..
अंशुल नक़ल करते हुए - पदमा.... मेरी गुलाबी चड्डी देखी तुमने?
पदमा हँसते हुए - वो तुम्हरी पेंट के अंदर है.. चलो अब जाओ ऊपर... मैं आती हूँ खाना लेके..
अगले दिन सुबह के चार बज रहे थे बालचंद दवाई के नशे में बेसुध होकर सो रहा था और पदमा अंशुल की बाहों में बेपर्दा होकर लेटी थी अभी अभी दोनों ने काम क्रिया को पूजा था और अब एक दूसरे से छेड़खानी करते हुए खेल रहे थे पदमा अंशुल को चिढ़ा रही थी और अंशुल उसे बार बार प्यार से चुम रहा था..
पदमा - अंशुल क्या सच मेरे लिए ऐसा कुछ कर सकते हो?
अंशुल - मतलब?
पदमा - जो तुमने नीचे मुझसे कहा था...
अंशुल - क्या?
पदमा - यही की तुम भालू को ठिकाने....
पदमा इतना बोलते ही रुक गई और अंशुल पदमा को हैरानी से देखता हुआ सोचने लगा ये बात तो उसने मज़ाक़ में कही थी मगर पदमा के मन में अब तक वो बाते बैठी हुई थी..
अंशुल ने पदमा की बाते का जवाब नहीं दिया और उसे फिर से अपने आलिंगन में खींचते हुए भोगक्रिया के अधीन कर लिया.... आज अगहन की पूर्णिमा थी.. पदमा जब अंशुल के कमरे से बाहर निकली तो उसके चेहरे पर हंसी थी और एक संतुस्टी मानो उसे किसी जवाब का मन चाहा उतर मिला हो...
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Zabardast update...naina ko anshul ko saara sach bata dena chaiyaअध्याय 7
अगहन की पूर्णिमा
प्रभातीलाल घर के बाहर बने पेड़ के चबूतरे के ऊपर अपना सर पकड़कर बैठा था, सुबह उसका झगड़ा लाज़वन्ति से हुआ था लाजो (लाज़वन्ति) पेट से थी और ये अंशुल और लाजो के बिच उस रोज़ हुई घमासान ताबड़तोड़ चुदाई का परिणाम था जिसे लाजो ने बड़ी ख़ुशी से स्वीकार किया था प्रभतीलाल को शंशय था मगर लाजो के पेट में पल रहे बच्चे को अपना न मानने की उसके पास कोई वजह न थी.. कुदरत ने इतने सालों के बाद एक बार पहले भी उसे बाप बनाया था मगर लाजो का वो बच्चा होते ही मृत्यु को हासिल हो गया था.. सुबह प्रभतीलाल जब लाजो से नयना को लेकर किसी सम्बन्ध में झगड़ रहा था तब नयना घर में ही मोज़ूद थी.. लाजो अपनी जबान पर काबू न रख सकी और उसके मुँह आज इतने सालों बाद निकल ही गया की - नयना कोनसी तुम्हारी अपनी औलाद है.... जिस शराबी ने अपनी बेटी कहकर नयना को तुम्हे दिया था.. सुना है किसी जेल में बंद है.. बच्चा चुराते हुए पकड़ा था.. नयना को भी किसी अस्पताल से चुराया होगा उसने... बच्चे के मोह में तुमने जरा भी छान बिन नहीं की थी.. भूल गए?
नयना ने लाजो की ये बात सुन ली थी और उसके दिल पर एक और वज्र आ गिरा था लाजो ने क्या उसके दिल को अपने कदमो से रोदने का ठेका ले रखा है? पहले अंशुल के साथ वो सब करके और अब इन सब बातों से....
नयना बिन बताये कहीं चली गई थी.. प्रभतीलाल ने बहुत ढूंढा पर मिली नहीं गाँव में भी हर तरफ उसीकी तलाश हो रही थी मगर नयना का कोई अता पता नहीं था प्रभती सभी सहेलियों, सखियों और जानने वालो के घर पूछ आया था अब रोता हुआ अपना सर पिट रहा था उसे लाजो पर गुस्सा आ रहा था की उसने सुबह ऐसी बातें बोली ही क्यू? हो न हो नयना उन बातों को सुनकर ही वहा से गई होगी.. वरना आज तक उस बच्ची ने कोई गलत कदम नहीं उठाया था.. लाजो को अपनी बेवकूफी पर गुस्सा आ रहा था वो दिल की साफ थी मगर आज उसके जुबान से जो बातें निकली थी वो उसे भी पीड़ा पंहुचा रही थी उसने तय किया था नयना से अपने किये की माफ़ी मांगेगी..
सुबह बीत चुकी थी और दोपहर का समय आ गया था.. नयना जेल के सामने खड़े थी उसने उस आदमी से मिलने की ठान ली थी जिसने नयना को प्रभती लाल के यहां अपनी बेटी बताकर दिया था.. नयना ने उस आदमी के बारे में पता किया था, नाम जब्बार था शराब के साथ और भी कई नशे करता था.. Police ने कई कानूनी दफाओ में उसे बंद करवा दिया था बीस बरस की सजा हुई थी उसे.... और पिछले 16 साल से जेल में बंद था.. हफ्ते में जिन दो दिनों में क़दी से मिला जा सकता था उनमे से एक दिन आज था.. आज क़दी से मिलने आने जाने की छूट थी.. एक स्थानीय वकील की मदद से नयना को जब्बार से मिलने का मौका मिल गया था.. नयना घबराते हुए लोहे की जाली के करीब खड़ी थी अंदर से एक नाटा सा आदमी संवाले रंग वहा आ गया देखने में खुंखार तो नहीं था मगर उसकी आँखों से लगता था जैसे उसने अपनी जिंदगी में हर नशा किया था मगर अब उसकी हालात बेहतर थी जेल में रहकर उसने कम से कम नशे से मुक्ति पा ली थी.. जब्बार 45 साल के करीब था शरीर में दुबला पतला मरियल मगर तेज़ दिमाग और नोटंकी में उस्ताद....
दिवार के पास सिपाही तैनात था उसी के थोड़ा दूर जाली से बाहर की तरफ नयना और अंदर जब्बार..
जब्बार - जी कहिए....
नयना की आँख नम थी और मन अस्त व्यस्त मगर उसने होने बिखरे दिल को समेटकर जब्बार से पूछा..
आज से 19 साल पहले एक बच्ची तुमने यहां से 22 कोस पश्चिम की ओर हुस्नीपुर में प्रभतीलाल को दी थी.. तुमने उसे कहा से चुराया था?
जब्बार दिमाग पर जोर डालकर कुछ सोचने लगा ओर फिर हँसता हुआ बोला - अरे.... बिटिया तुम तो बड़ी हो गई हो.. मेरी लाड़ली बिटिया... मैंने तुम्हे कहीं से चुराया नहीं था तुम तो मेरी अपनी बिटिया हो...
नयना को जब्बार की बाते सुनकर गुस्सा आ रहा था वो वापस बोली - देखो अगर तुम सच सच बताओगे तो ये वकील साब तुम्हे बाहर लाने के लिए कोशिश कर सकते है.. तुम जल्दी बाहर आ जाओगे..
जब्बार - बिटिया सच कह रहा हूँ... तुम्हारी कसम.. तू मेरा अपना खून है.. मेरी बिटिया...
नयना - देखो नाटक मत करो.. तुम्हे जो चाहिए मैं दिलवा सकती हूँ.. मगर मुझे सच जानना है.. तुम्हे चुप रहकर भी कुछ नहीं मिलने वाला... सच बोलकर तुम जो चाहो पा सकते हो...
जब्बार - जो मागूंगा दोगी....
नयना - हां....
जब्बार - बिरयानी चाहिए.... रायते के साथ..
नयना - ठीक है पर जेल में कैसे??
जब्बार - ये जेल है यहां सब मुमकिन है... जब्बार ने पास खड़े सिपाही को पास आने इशारा किया और नयना से कहा.. मेरी एक साल की बिरयानी के पैसे सिपाही जी की जेब में रख दो....
नयना - क्या?
जब्बार - क्या नहीं.... हां.... जल्दी करो... तुम्हे अपने घरवालों के बारे में जानना है या नहीं..
नयना - पर मेरे पास अभी इतने ही पैसे है..
जब्बार - कितने है?
नयना - 12-13 हज़ार...
जब्बार - सिपाही की जेब रख दो....
नयना ने पास खड़े सिपाही को पैसे दे दिये..
जब्बार खुश होता हुआ सिपाही को इशारे से वापस भेज दिया और मुँह का थूक गटकते हुए धीमे से बोला चलो महीने भर का जुगाड़ तो हुआ...
नयना - अब बताओ कहा से चुराया था मुझे?
जब्बार - श्यामलाल अस्पताल, विराटपुर, वार्ड-3 बेड नम्बर-7 दिन-बुधवार दिनांक - ##-##-####...
नयना ने अपने फ़ोन में जब्बार की सारी बाते रिकॉर्ड कर ली थी.. वो बाहर आ गई उसका दिल जोरो से धड़क रहा था.. उसने बाहर से एक रिक्शा पकड़ा और विराटपुर के लिए चली रिक्शा विरातपुर में श्यामलाल अस्पताल के आगे रुका था.. नयना ने सबसे पहले अस्पताल के बाहर एटीएम से पैसे निकलवाये और रिक्शा वाले को भाड़ा देकर अस्पताल के अंदर आ गई.. ये एक सरकारी अस्पताल था..
नयना पिछले एक घंटे से अस्पताल की टूटी हुई कुर्सी पर बैठे इंतजार कर रही थी एक मोटी सी भद्दी दिखने वाली महिला ने उसे बैठने को कहा था और अंदर चली गई थी जब वो बाहर आई तो नयना ने वापस उससे वहीं सवाल पूछ लिया जो पहले पूछा था.. जब्बार से मिली डिटेल बताते हुए नयना ने उस औरतों से उस रोज़ बेड नम्बर 7 पर एडमिट महिला के बारे में पूछा तो वो औरत मुँह से गुटका थूकती हुई नयना पर चिल्ला कर बोली - कहा रिकॉर्ड ढूंढ़ रहे है.. बैठी रहो चुप छप जा चली जाओ यहां से... कितना काम है पड़ा... सरकारी अस्पताल में लोग काम भी करते है? नयना ने मन में यही बाते बोली थी वो देख रही थी कैसे वो औरत अपने साथ बैठी दूसरी औरत के साथ पान मसाला खाती हुई लूडो खेलने में व्यस्त थी.. मरीज़ तो भगवान भरोसे थे.. मगर जहा मरीज़ खुद इसी इलाज के लायक हो वहा उनका ऐसा ही इलाज होता है.. नयना ने टीवी में देखा था अमेरिका के सरकारी अस्पताल और उसकी खुबिया.... और आज वो यहां सरकारी अस्पताल देख रही थी.. मगर अमेरिका में लोग भी अलग है.. पढ़े लिखें, अपने हक़ अधिकारों को लेकर सजग और ईमानदार, खुले दिमाग और विचारों वाले.. सरकार से सवाल पूछने वाले मगर यहां? यहां तो पढ़ाई लिखाई का कोई महत्त्व ही नहीं है.. जो पढ़ाया जाता उससे बच्चे का नैतिक विकास तो दूर उसमे खुदसे सोचने समझने की काबिलियत तक नहीं आ पाती, जाती और धर्म के मामले में उलझकर विकास का गला घुट जाता है.. राजनितिक लोग राजनितिक लाभ के लिए लोगों को गुमराह करते है और वो आसानी हो भी जाते है.. जब अपने दिमाग से किसी चीज़ की परख ही नहीं कर पाएंगे, सही गलत ही नहीं जांच पाएंगे तो इसी हाल में रहना होगा.. और क्या? नयना के दिमाग में यही चल रहा था मगर उसे अब बैठे हुए काफी देर हो चुकी थी उसने फिर दूसरा रास्ता अपनाया..
नयना ने एक सो का नोट उस औरत के सामने रखे रजिस्टर के नीचे रखा और प्यार से कहा - जरा अर्जेंट है देख लीजिये ना.. औरत ने सो का नोट अपनी जेब में डाल लिया और नयना को अपने पीछे आने का इशारा किया..
नयना औरत के पीछे पीछे रिकॉर्ड रूम में आ गई.. ये बेसमेंट में था.. साल #### के माह ### का एक बड़ा पोटला निकाल कर सामने टेबल पर रख दिया और उसपर जमीं धूल साफ करती हुई गाँठ खोल दी.. एक रजिस्टर निकलकर नयना को देती हुई बोली जल्दी से देखकर वापस दो..
नयना रजिस्टर लेकर पन्ने पलटते हुए उस पन्ने पर पहुंची जहाँ उस दिन की सारी एंट्री लिखी हुई थी जिस दिन के बारे में जब्बार ने जिक्र किया था.. नयना ने पहले अपने फ़ोन उस पेज की तस्वीर ली फिर पन्ने पर लिखी एंट्री को गौर से देखने लगी....
वार्ड नंबर -3 बेड नम्बर -7 पेशेंट नेम - पदमा देवी पति का नाम - बालचंद..... पता - ******* एडमिट होने का कारण - प्रेगनेंसी.... नयना के पैरों के नीचे से ज़मीन निकल गई थी.. उसे यकीन नहीं हो रहा था जो उसने अभी अभी पढ़ा था क्या वो सच था? या कोई मज़ाक़ जो जब्बार ने उसके साथ किया था?
हो गया? पढ़ लिया? लाओ दो.. उस औरत ने वापस पोटली को वहीं बांधकर रख दिया.. नयना अस्पताल से बाहर आ गई थी उसकी आँखों में आंशू की धारा बह चली थी जो अब बंद होने का नाम ही नहीं ले रही थी तो क्या वो अंशुल की..... नहीं नहीं... ऐसा नहीं हो सकता... उसने जो अभी अभी देखा उसपर नयना को यक़ीन नहीं आ रहा था और ना ही वो यक़ीन करना चाहती थी.. ऐसा कैसे हो सकता है? इतना बड़ा संयोग? नहीं नहीं.. ऐसा नहीं हो सकता.. मगर क्या कागज झूठ बोलते है? पर ऐसा कैसे मुमकिन है? वो तो अंशुल से बेताशा प्यार करती है और आज की रात अंशुल से ब्याह का वादा था उसका.. आखिरी बार अंशुल ने भी उसे आज रात ब्याह करने की बात कही थी.. पर क्या अंशुल उसका बड़ा भाई... नहीं ये नयना क्या सोच रही है? ऐसा नहीं है... नयना भारी कश्मकश और उलझनों से जूझती हुई अस्पताल से बाहर आकर एक जगह बैठ गई थी और रोये जा रही थी उसकी आँखों से आंसू का सागर बह जाना चाहता था.. वो सोच भी नहीं सकती थी की ऐसा कैसे हो सकता है? अंशुल जिसे वो दिल और जान से चाहती है अपना मान चुकी है वो उसको सगा बड़ा भाई है.. उसने अपने बड़े भाई से प्यार क्या है.. नयना के नयन आंसू के साथ उसके मन की हालात भी बाहर निकाल रहे थे...
अंशुल आज नयना को अपना बनाने के इरादे से घर से निकला था वो जब नयना के घर पंहुचा तो लाजो ने उसे सारा वृतांत कह सुनाया.. नयना सुबह से किसी का फ़ोन भी नहीं उठा रही है... लाजो की आँखों में आंसू थे मगर अंशुल जानता था की नयना इस वक़्त उसे कहा मिल सकती है अंशुल ने लाजो के गर्भवती होने की बात भी पता चली थी जिसपर उसने लाजो को अपने सीने से लगाते हुए अपना और बच्चे का ख्याल रखने की नसीहत भी दे दी.. अगर इस वक़्त नयना का ख्याल ना होता तो अंशुल और लाजो के बीच सम्भोग होना तय था.. लाजो की आँखों में नयना के दुख के साथ साथ अंशुल से कामसुख की इच्छा भी थी.. मगर इस इच्छा को अंशुल ने सिर्फ एक चुम्बन में समेटकर रख दिया..
अंशुल जब नयना के घर से बाहर निकला तो उसे सामने से प्रभतीलाल आते दिखे और वो रुक गया.. दोनों के बीच मोन था.. दोनों को समझ नहीं आ रह था की कैसे वो बात की शुरुआत करे और एक दूसरे के सामना करे..
अंशुल प्रभतीलाल को नस्कार किया तो प्रभती लाल ने भी विचलित मन से उसका जवाब दे दिया.. नयना की बाते होने लगी.. अंशुल ने प्रभती लाल से कहा की वो चिंता न करे अंशुल उसे खोज लाएगा.. अ नयना का प्रेम प्रभती लाल जानता था मगर उसे अब अंशुल के बारे में भी पता चला था.. दोनों एक दूसरे से प्यार करने लगे है.. प्रभती लाल की आँखों में कुछ सुकून आया था..
शाम हो चुकी थी अंशुल ने पदमा से आज घर नहीं आने का कोई बहाना बना लिया था जिसपर पदमा बड़ी नाराज़ हुई थी मगर अंशुल ने उसे समझा लिया था अंशुल गाँव से बाहर आ चूका था एक एक करके उन सारी जगहों पर जा आया था जहाँ नयना मिल सकती थी.. फिर अंशुल के दिमाग में कुछ ख्याल आया और वो अपनी बाइक स्टार्ट करके किसी ओर चल दिया... एक जगह पहुंच कर उसने बाइक रोक दी.. रास्ता सुनसान था सांझ ढल चुकी थी पूर्णिमा के पुरे चाँद ने रौशनी की कोई कमी नहीं रखी थी इस रौशनी में अंशुल साफ साफ सब देख सकता था सडक के दोनों तरफ पेड़ थे जैसे जंगल हो... अंशुल आगे बढ़ गया था...
अंशुल के बाहर रहने से पदमा के स्वाभाव में परिवर्तन आ गया था वो आज चिड़चिड़ी सी लग रही थी बालचंद ने उसका मूंड देखकर उससे उलझना जरुरी नहीं समझा ओर दूर ही रहा यही उसके लिए सही भी था.. आज अंशुल नहीं था मगर फिर भी पदमा को चैन नहीं आ रहा था ओर वो बेचैन हो रही थी उसने आज भी बालचंद को दवाई दे दी थी जिससे बालचंद नींद में खराटे मार रहा था ओर पदमा अंशुल के रूम में जाकर उसी बिस्तर पर जहाँ वो अंशुल के साथ काम क्रीड़ा किया करती थी लेट गई थी ओर अंशुल की तस्वीर अपनी छाती से लगा कर चुत में उंगलियां करते हुए सोने की कोशिश कर रही थी.. पदमा को महसूस हो रहा था की अंशुल उसके लिए कितना जरुरी बन चूका है और अब वो अंशुल के बिना नहीं रह सकती.. पदमा अंशुल के प्यार में पागल हो चुकी थी ऐसा उसकी हालात देखकर कहा जा सकता था..
नयना की आँखे नम थी आज का सारा दिन उसने अपनी हक़ीक़त पता लगाने में लगाया था और किसी का फ़ोन नहीं उठा रही थी इस वक़्त जंगल में उसी पेड़ के नीचे अकेली बैठी थी जहाँ उसने अपने लिए मन्नत मांगी थी मन में चलती कश्मकश और उथल पुथल के बीच उसे समझ नहीं आ रहा था की वो क्या करे? अंशुल उसका अपना बड़ा भाई निकलेगा ऐसा उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था.. कैसे सपने देखे थे उसने अंशुल के साथ जिनमे वो अपनी मर्यादा लांघ चुकी थी.. हर रात वो अंशुल के साथ हम बदन होने के ख्याब देखती थी मगर आज उसे उन ख़्वाबों के लिए अजीब लग रहा था ये पश्चात् नहीं था मगर वैसा ही कुछ था जिसे बयान करना व्यर्थ है.. नयना ने अच्छी तरह जांच पड़ताल की थी... तब जाकर उसने ये माना था की जब्बार जो कह रहा था वो सही और सत्य था.. जब पहली बार नयना अंशुल के घर गई थी तब बालचंद ने भी ये प्रसंग छेड़ा था जिसमे अस्पताल से उनकी बच्ची के चोरी होने का जिक्र था मगर वो इतना विस्तृत नहीं था जिससे नयना सारा माजरा समझ पाती.. नयना कुछ तय करने का मन बना रही थी.. इस चांदनी रात की रौशनी में उसका दुदिया रंग चमक रहा था जिसे अंशुल ने दूर से ही देख लिया था.. नयना अपने ख्यालों में इतनी खोई हुई थी उसे महसूस भी नहीं हुआ की अंशुल उसके बेहद नज़दीक आ कर बैठ चूका था..
लो.. खा लो... अंशुल ने नयना की तरफ एक खाने का पैकेट बढ़ाते हुए कहा तो नयना अपने ख्याल से बाहर आते हुए चौंक गई.. आप....? यहाँ...
अंशुल ने खाने का पैकेट फाड़ कर चम्मच से एक निवाला नयना के होंठों की तरफ खाते हुए कहा - क्यू यहां तुम ही आ सकती हो? चलो मुँह खोलो... वरना खाना ठंडा हो जाएगा.. अंशुल रास्ते में पड़े एक रेस्टोरेंट से राजमाचावल ले आया था उसे यक़ीन था की नयना सुबह से भूखी प्यासी होगी और अंशुल के शादी से इंकार करने के कारण ही घर से चली गई होगी.. अंशुल नयना को अपना बनाने आया था.. अंशुल को पदमा ने नयना से शादी करने के लिए पहले से परमिशन दे रखी थी और उसके लिए अंशुल को बोला भी था मगर अंशुल ही अब तक नयना से शादी करने से भाग रहा था.. मगर अब वो नयना का प्यार स्वीकार कर चूका था और पदमा के साथ नयना को भी अपना बनाकर रखना चाहता था वहीं पदमा में आये परिवर्तन का उसे इल्म नहीं था पदमा अब अंशुल के पीछे पागल हो रही थी..
नयना ने बिना कुछ बोले पहला निवाला मुँह में ले लिया और खाने लगी.. धीरे धीरे अंशुल ने उसे खाना खिला दिया नयना और अंशुल ने उस दौरान कोई ख़ास बात चीत नहीं हुई थी.. बस अंशुल नयना की तरह देखता हुआ प्यार से उसे खाना खाने की गुजारिश करता रहा और नयना उसकी मिन्नतो को मानते हुए खाना खाती रही.. नयना का दिल जोरो से धड़क रहा था उसके सामने उसका प्रेमी था जिसमे उसे अब अपना बड़ा भाई नज़र आ रहा था.. कुदरत का केसा निज़ाम है? अगर इस वक़्त नयना को ये मालूम ना होता की वो अंशुल की छोटी बहन है तो वो अंशुल को अपनी बाहो में लेकर बहक चुकी होती और प्यार सागर में दोनों का मिलन हो चूका होता मगर उसे ये ख्याल अंशुल से दूर ले जा रहा था की नयना तू ये नहीं कर सकती.. ये जान लेने के बाद की अंशुल तेरा सगा भाई है तू उसके साथ ये रिस्ता नहीं रख सकती.. नयना को समाज के नियम कायदे और रितिया याद आने लगी थी खुद पर शर्म आने लगी थी उसका दिल कितनी बार टूटेगा वो सोच रही थी और अब उसकी आँख फिर से नम हो चली थी जिसे अंशुल ने अपने हाथो से आंसू पोचकर साफ किया था.. खाने के बाद पानी पीते हुए नयना ने अंशुल से कहा - आपको कैसे पता मैं यहां हूँ....
अब बीवी कहा है ये तो पति को मालूम ही होना चाहिए. अंशुल ने अपना रुमाल निकलकर नयना के होंठो को साफ करते हुए जवाब दिया था जिसपर नयना लज्जा गई थी... मगर क्यू? उसने तो अब अंशुल से दूर होने का फैसला किया था.. मगर अंशुल का प्रेम नयना के मन में इतना पक्का था की वो उसे निकालने में असमर्थ थी..
नयना शर्म से लाल थी और जमीन की ओर देख रही थी अंशुल ने उसको चेहरा उसकी ठोदी से उंगलि लगा कर ऊपर उठाया ओर उसके गुलाब सुर्ख लबों पर अपने लब रख दिए.. इस चांदनी रात में दोनों इस बड़े से पेड़ के नीचे एक दूसरे के प्यार में घुल चुके थे नयना के लबों को चूमते ही अंशुल ने उसके दिमाग में चल रहे सारे ख्याल को शून्य कर दिया नयना बस इसी पल में होकर रह गई जहाँ वो अंशुल को अपने लबों के शराबी जाम पीला रही थी.. नयना ने अंशुल को इतना कसके पकड़ा हुआ था जैसे कोई छोटा बच्चा डर से किसी बड़े से चिपक जाता है.. अंशुल ने चुम्बन की शुरुआत की थी मगर नयना उसके लबों को ऐसे चुम रही थी जैसे जन्मो की प्यासी हो उसने सब भुला दिया था.. अंशुल की बेवफाई ओर उसके रिश्ते को भूल चुकी थी.. अब सिर्फ उसे इसी पल को जीना था जिसमे उसे उसका प्यार अपनी बाहों में लिए खड़ा था ओर अपना बनाने को आतुर था..
नयना अपने दोनों हाथ अंशुल जे गले में डालकर उसके लबों को प्रियसी बनकर चुम रही थी ओर अपने प्रियतम को अपनी कला से भावविभोर कर रही थी अंशुल नयना की इस हरकत पर मन्त्रमुग्ध हो रहा था.. अंशुल ने नयना की कमर में हाथ डालकर उसे हवा में उठा लिया था ओर दोनों के बदन आपस में ऐसे चिपक गए थे जैसे की दोनों एक ही हो.. इस चांदनी रात में नयना की लहराती जुल्फे किसी फ़िल्मी दृश्य का काम कर रही थी नयना ओर अंशुल ने जी भरके एक दूसरे को चूमा ओर फिर अंशुल ने चुम्बन तोड़कर नयना के चहेरे ओर गर्दन पर अपने चुम्बन की बौछार शुरु कर दी अंशुल की मदमस्त प्रेमी की तरह नयना के जिस्म का स्वाद ले रहा था गर्दन चाटने पर नयना ओर भी ज़्यदा अंशुल की तरफ मोहित होने लगी थी वो भूलने लगी थी अंशुल उसका बड़ा भाई है नयना को अंशुल में सिर्फ अपना प्यार नज़र आ रहा था पहली नज़र वाला प्यार और नयना कब से यही तो चाहती थी की अंशुल उसे अपना बना ले आज हो भी तो वहीं रहा था.. नयना कैसे अपने आप पर काबू रखती क्या इतना गहरा प्यार एक पल में ख़त्म किया जा सकता है? नहीं ऐसा नहीं हो सकता.. नयना कैसे अंशुल से दूर जा सकती थी अंशुल ने उसे पूरी तरह अपने बस में लिया हुआ था..
गर्दन और कंधे चूमने के बाद एक बार फिर से अंशुल नयना के लबों पर आ गया और उसके गुलाबी होंठ को बड़े प्यार से चूमने लगा... नयना भी अंशुल के लबों को अपने दांतो से खींचते हुए चुम रही थी और बार बार अंशुल की जीभ को अपनी जीभ से लड़ा रही थी मानो वो दोनों की कुस्ती करवाना चाहती हो.. चांदनी रात की रौशनी में जंगल में इस पेड़ के नीचे दोनों चुम रहे थे की किसी जानवर के आने की आहट हुई तो दोनों का चुम्बन एक बार फिर टूट गया.. अंशुल और नयना आपस में चिपके हुए थे दोनों की नज़र एक साथ जानवर पर गई तो थोड़ी दूर कुत्ते नज़र आ रहे थे.. एक कुत्ता कुतिया के पीछे चढ़ा हुआ उसके साथ सम्भोग कर रहा था और कुतिया के मुँह से आवाजे आ रही थी.. अंशुल और नयना ने ये नज़ारा देखकर एक दूसरे की तरफ देखा फिर हंसने लगे जैसे आगे होने वाली प्रकिया को पहले ही जान चुके हो..
अंशुल ने अपने एक हाथ से नयना का एक कुल्हा पकड़ लिया और जोर से मसलने लगा जिससे नयना के मुँह से भी सिस्करी निकाल पड़ी.. वो शिकायत भरी आँखों से अंशुल को देखने लगी मानो पूछ रही हो अंशुल क्या तुम यही सब कर लोगे? अंशुल ने नयना को अपनी गोद में उठा लिया और पेड़ के पीछे दाई और घास की सेज पर लिटा दिया जहाँ साफ साफ चाँद की रौशनी पहुंच रही थी जहाँ से सारा नज़ारा बिना किसी परेशानी या रुकावट के देखा जा सकता था मगर ये देखने वाला वहा था कौन? कोई भी तो नहीं था.. नयना के मन में अंशुल का चेहरा देखकर फिर से वहीं ख्याल आने लगे थे.. नहीं नहीं.. ये मैं क्या कर रही हूँ? अंशुल मेरा भाई है.. सगा भाई.. और में उसके साथ ही.. नहीं.. मैं ये नहीं कर सकती.. ऐसा नहीं हो सकता.. मुझे अंशुल को रोकना होगा.. हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं हो सकता.. ये सब पाप है.. गलत है.. नयना के मन जब तक ये सवाल आये तब तक उसके बदन से अंशुल ने कुर्ती उतार ली थी और अब नयना अंशुल के सामने घास पर सलवार के ऊपर ब्रा पहने लेटी हुई थी.. चाँद की रौशनी में नयना का गोरा बदन सोने की तरह चमक रहा था.. विकसित चुचे उसके छाती पर काले रंग की ब्रा से ढके हुए थे जिन्हे अंशुल ब्रा के ऊपर से मसल रहा था और चुम रहा था.. नयना अपने मन की गहराइयों में इस मिलने का मज़ा लेते हुए अपने मन की उपरी परत पर आज हुए खुलासे के घाव से परेशान थी.. वो समझ नहीं पा रही थी उसे क्या करना है वो एक पल कुछ तय करती और फिर अगले पल कुछ और..
अंशुल ने नयना की ब्रा के साथ ही अपनी शर्ट भी उतार दी और अब दोनों कमर से ऊपर नंगे थे अंशुल पूरी चाहत के साथ नयना को अपना बनाने में लगा था वहीं नयना अपने बदन की जरुरत और हालात से मजबूर थी वो चाहती थी तो अंशुल से दूर होना थी मगर उसका जिस्म उसे इस बाते की इज़्ज़त नहीं दे रहा था.. अंशुल नयना के छाती पर उभार को अपने मुँह से चाट रहा था और बार बार नयना की निप्पल्स को अपने मुँह में भरकर चूसता हुआ उसकी मादक सिस्कारिया सुन रहा था पूरा माहौल चुदाईमय बन चूका था जहाँ थोड़ी दूर कुतिया एक कुत्ते से चुदती हुई चीख रही थी वहीं यहां नयना जो अंशुल से दूर होना चाहती थी वो अंशुल के सर को सहलाती हुई अपने चुचे उसके मुँह में दे रही थी जिसे अंशुल बड़े ही प्यार से चूस रहा था और निप्पल्स दांतो से काटते हुए खींच रहा था.. अंशुल ने नयना बोबो को दबा दबा के और चूस चाट के लाल कर दिया था नयना की छाती पर गहरे निशान पड़ने लगे थे जिसमे नयना को आनंद की अनुभूति हो रही थी मर्द का प्यार उसे पहली बार मिला था..
अंशुल फिर से नयना के होंठो पर आ गया और नयना ने उसे फिर से अपने दोनों हाथ से अपनी मधुशाला का प्याला भरके अंशुल को अपने होंठ से पिलाना शुरू किया.. अंशुल का एक हाथ धीरे धीरे नयना के चेहरे से होता हुआ उसके कंधे फिर चुचे फिर नाभि और फिर नयना की सलवार में जा घुसा नयना को इसका अंदेशा भी नहीं था की अंशुल ने अपना एक हाथ उसकी सलवार में डाल दिया था वो तो बस होने लबों से अंशूल को चाहत के जाम पिलाने में मस्त थी उसके लिए यही सब अभी हो रहा था..
अंशुल का हाथ सलवार में नयना के पैर के जोड़ तक चला गया जहाँ नयन की बुर पनिया रही थी नयना की पैंटी बिलकुल गीली हो चुकी थी और बुर को छूने पर नयना और ज्यादा उत्तेजित होने लगी थी उसने अंशुल को और कसके जकड लिया था.. अंशुल के हाथ ने नयना की बुर को तालाशा तो अंदाजा लगाया की नयना की बुर बिलकुल साफ सुथरी है जिसपर अभी तक बाल का कोई नामो निशान नहीं है हलके से दो चार बाल आये भी है तो वो बुर के ऊपर मुहाने पर.. इतनी प्यारी और रसदार बहती चुत को अंशुल चोदने की इज़ाज़त लेने नयना की आँखों में देखता हुई उसकी बुर सहलाने लगा.. मगर नयना की आँख बंद थी वो अंशुल को पकडे हुए उसके चेहरे और आस पास के हिस्से चुम रही थी.
अंशुल ने अपना हाथ नयना की बुर से हटा लिया और फिर मादकता के नशे में डूबी हुई नयना को देखते हुए उसकी सलवार का नाड़ा खोल दिया और सलवार नीचे सरका दी.. आँख बंद करके अंशुल की बाहों में पड़ी नयना अपने साथ होते इस सब घटनाक्रम को महसूस कर रही थी.. उसके बदन पर सिर्फ बुर के पानी से भीगी हुई पेंटी ही बची थी जिसे भी अंशुल ने अगले ही पल उसके बदन से अलग कर दिया था.. अंशुल की बाहों में अब एक पूरी नंगी जवान खूबसूरत हसीन लड़की लेटी हुई थी जो अपने हाथो से अपना चेहरा छुपाने की कोशिश कर रही थी.. अंशुल ने भी अपनी जीन्स उतार कर एक तरफ रख दी और वो भी अपनी प्राकृतिक अवस्था में आ गया.. अंशुल ने नयना के पैरों को खोला और उसकी गुलाबी चिकनी साफ बुर पर अपने होंठ रख दिए..
अंशुल को चुदाई कला का पूरा ज्ञान था उसने जो अनुभव पदमा धन्नो सुरीली से लिया था वो आज काम आ रहा था और यही कारण था की नयना जो पहले अंशुल से दूर जाने की सोच रही थी वो अब उसके सामने बेबस और लाचार बनकर लेटी हुई उसकी हर हरकत को प्यार कर रही थी.. अंशुल ने जैसे ही नयना की बुर पर अपने होंठ रखे नयना के मुँह से आह्ह... निकल गई और फिर नयना ने अंशुल के सर को अपने दोनों हाथो से एकसाथ अपनी बुर पर दबा लिया मानो कह रही को की अंशुल चुसो मेरी बुर को चाटो.. खा जाओ इसे.. मैं तुम्हे अपनी कच्ची बुर पर पूरा हक़ देती हुई.. मेरी बुर का घमंड तोड़ दो.. अंशुल बुर चाटते हुए उससे छेड़खानी कर रहा था जिससे नयना कुछ ही पलो में अंशुल के मुँह में झड़ गई और तुरंत बाद पेशाब करने लगी जैसे उसका अपने शारीर पर कोई नियंत्रण ही नहीं था.. अंशुल का मुँह नयना ने अपने बुर से निकले पानी से भर दिया जिसे अंशुल को पीना पड़ा.. नयना शर्म से लाल हो चुकी थी और कुछ हद तक झड़ने के बाद कामुकता के जाल से हलकी बाहर आई थी.. अंशुल भी अब अपनी लंड की ताकत से नयना को रूबरू करवाना चाहता था उसने नयना की बुर को चाटकर साफ किया और फिर अपने लोडे को उसकी बुर की दरार पर रगढ़ते हुए नयना का चेहरा देखने लगा जिसपर दुविधा के निशान थे जैसे वो इस मादकता के पलो में भी कुछ सोच रही हो..
अंशुल के लंड में पत्थर सी अकड़न थी जो पूरा खड़ा था अंशुल ने नयना की चुत पर लोडा रगड़ने के बाद उसके छेद के मुहने पर टिका दिया और दबाब बनाकर अंदर करने की कोशिश करने लगा.. नयना की बुर में पहली बार लंड वो भी अंशुल के जैसा बड़ा मोटा और मजबूत... नयना की हालात खराब हो रही थी उसके मन में चलते विचारो के बिच अंशुल ने उसकी बुर में अपना सुपाडा घुसा दिया था जिससे नयना सिसकने लगी.. नयना को होश आया की उसने तो अंशुल से दूर रहने का फैसला किया था फिर क्यू वो अपने बदन के बहकावे में आकर अपने सगे बड़े भाई के साथ सम्भग करने पर उतारू हो चुकी है? क्या उसके बदन की आग रिस्तो पर हावी हो गई है? नयना ऐसा नहीं कर सकती..... हां ये पाप है... ये सोचते हुए नयना ने अब अंशुल का विरोध शुरू कर दिया और अंशुल के लंड को पकड़ कर अपनी चुत से उसका सुपाडा बाहर निकलने की कोशिश करने लगी मगर अब तक बहुत देर हो चुकी थी.. अंशुल ने अगले ही पल एक झटके में अपना आधे से ज्यादा लंड नयना की बुर में घुसा दिया और नयना के दोनों हाथ पकड़ कर ऊपर की और उठा दिए.. नयना बिलकुल विचार शून्य हो गई उसे समझ नहीं आया की वो क्या करें पहली चुदाई की तकलीफ के बीच अंशुल की मनमानी ने उसे किसी लायक नहीं छोड़ा... उसकी आँख चौड़ी होगई जो उसे हो रहे पहली चुदाई के दर्द को बयान करने में सक्षम थी.. नयना की बुर से दो-तीन खून की बून्द भी बाहर आ गई थी जो बता रही थी नयना की ये पहली चुदाई है और अब तक उसने अपनी बुर में लोकी खीरा केला गाजर मूली कुछ नहीं डाला है...
आखिरकार नयना की इज़्ज़त अंशुल ने अपने नाम कर ही ली.. नयना अंशुल को देखते हुए सिसकियाँ ले रही थी और सोच रही थी की वो कैसी लड़की है जो अपने सगे भाई को अपनी इज़्ज़त दे रही है.. उससे बुरी लड़की शायद ही कोई और हो.. अंशुल ने नयना की बुर कुटाई अभियान की शुरुआत कर दी थी.. अंशुल रह रह कर झटके मारता हुआ नयना को चोदने लगा था हर झटके पर नयना का बदन ऊपर से नीचे तक पूरा हिल जाता और नयना मादक सिस्कारिया भरती हुई आवाजे इस माहौल में कामुकता के फूल खिला रही थी... एक तरफ कुतिया चुदते हुए आवाजे कर रही थी दूसरी तरफ नयना.. अंशुल और नयना इस चांदनी रात में ऐसे मिल रहे थे जैसे उसका मिलन ही दोनों का एक मात्र लक्ष्य हो.. नयना की चुत खुल चुकी थी और अब पानी छोड़ने लगी थी जिससे अंशुल का लंड आराम से अंदर बाहर हो रहा था और अब नयना अंशुल का कड़क तूफानी लंड चुत में मज़े से लेने लगी थी पर अब भी उसे वहीं ख्याल सताये जा रहा था..
नयना के दिमाग पर चुदाई से ज्यादा जब रिश्ते का ख्याल हावी हुआ तो उसने अंशुल को धक्का देकर अपने से दूर कर दिया जिससे अंशुल का लंड बुर से बाहर निकल गया नयना की आँख में आंसू आ गए थे वो कैसी लड़की है? इतना बड़ा पाप? इसका प्रायश्चित कैसे होगा सोचने लगी.. अंशुल नयना का ये बर्ताव समझ नहीं पाया था वो कुछ पल के लिए ठहर गया मगर उसके दिमाग में नयना को पाने की चाहत उफान मार रही थी.. नयना पलट गई थी उसकी पीठ अब अंशुल के सामने थी.. नयना अपनी गलती पर रोते हुए जैसे ही उठने की कोशिश करने लगी अंशुल ने नयना को उसी तरह से कमर पर हाथ लगाते हुए पकड़ लिया और घोड़ी की पोजीशन में लाते हुए फिर अपना लोडा नयना की चुत के अंदर घुसा दिया.. नयना को इस बात का अंदाजा भी नहीं था की अंशुल कुछ ऐसा करेगा.. वो बेचारी तो उठकर अपने कपडे पहनना चाहती थी मगर अब घोड़ी बनकर अपने बड़े भाई से चुद रही थी.. अंशुल नयना की कमर पकड़ कर झटके मारता हुआ उसे किसी बाजारू की तरफ पेल रहा था.. नयना के मन में वहीं सब चल रहा था ऊपर से चुदाई का सुख भी उसे मिल रहा था तो उसके मन की हालात जान पाना कठिन था.. अंशुल ने एक हाथ से नयना के लहराते हुए बाल पकड़ लिए थे और दूसरे से कमर थामे हुए था.. उसका लंड नयना की बुर में तहलका मचाये हुए अंदर बाहर हो रहा था.. अब लगभग कुत्ते कुतिया वाली पोजीशन में ही दोनों थे..
नयना के मुँह से सिस्कारिया और आँख से आंसू आ रहे थे, उसे अपने प्यार से पहले मिलन के सुख के साथ-साथ रिश्ते में बड़े भाई से चुदने का दुख भी हो रहा था.. नयना फिर से झड़ चुकी थी और अब अंशुल भी उसी राह पर था उसका झड़ना भी कुछ ही देर में होने वाला था वो नयना की बुर पर बार बार ताकत के साथ हमला कर रहा था जिससे नयना की आवाज और तेज़ होने लगी थी.. पहली बुर चुदाई वो भी इतनी बेरहमी से.. नयना की हालात पतली थी वो अब सही गलत छोड़ चुकी थी और बस इस लम्हे के ख़त्म होने का ही इंतजार कर रही थी वो अब आखिरी फैसला कर चुकी थी की ये अंशुल के साथ उसकी पहली और आखिरी चुदाई है.. अंशुल ने झड़ते हुए अपना सारा वीर्य नयना की बुर में खाली कर दिया जिसे नयना आसानी से महसूस कर सकती थी वो आखिरी बार आहे भर रही थी और आंसू पोंछ कर अपनी इस पहली चुदाई विश्लेषण करने की कोशिश कर रही थी..
अंशुल नयना को चोद कर एक पत्थर पर गांड टिका के बैठ गया और नयना घास में नंगी पेट के बल ही पड़ी रही उसका बदन इस चांदनी रौशनी में दिव्य लग रहा था जैसे कोई आसमान की परी अभी अभी नीचे उतरकर आई है और अंशुल को उसने सम्भोग का असली पाठ पढ़ाया है..
नयना लड़खड़ाती हुई जैसे तैसे खड़ी हुई फिर अपनी बुर से बहते अंशुल के वीर्य को अपनी उंगलियों से साफ किया और अपनी ब्रा पैंटी वापस पहन ली कुत्ते का लंड कुतिया की बुर में चिपक गया था जिसे दोनों देख रहे थे.. अंशुल और नयना आपस में ना बोल रहे थे ना ही एक दूसरे को देख रहे थे.. नयना अपनी सलवार कुर्ती भी पहन चुकी थी.. अंशुल पथर से उठा और वो भी अपने कपडे पहनने लगा.. कपडे पहन कर उसने पास खड़ी नयना को देखा और उसके पास आ गया.. अंशुल नयना का हाथ पकड़ कर उसे जंगल से बाहर ले जाने लगा मगर पहली चुदाई के कारण नयना के बदन में अकड़न और पैरों में लंगडापन आ गया था.. अंशुल ने नयना को गोद में उठा लिया और सडक की ओर आ गया.. नयन अंशुल को बड़े प्यार से देख रही थी मगर अब ये प्यार अपने बड़े भाई के लिए था वो अंशुल में अपना भाई देख रही थी..
अंशुल बाइक के पास पहुंचकर नयना को गोद से उतारता है और कहता है..
अंशुल - पता आज से सेकड़ो साल पहले यहां जंगल में एक काबिल रहता था.. **** नाम था उस क़ाबिले का.. बड़ी अजीब मान्यता थी उस काबिले की अगहन की पूर्णिमा को लेकर...
नयना कुछ नहीं बोलती और चुपचाप अंशुल के पीछे बैठ जाती है.. अंशुल बाइक चलाकर प्रभातीलाल के यहां पहुँचता है जहाँ प्रभतीलाल और लज्जो के साथ गाँव के कुछ लोग भी नयना के इंतजार में बैठे थे..
प्रभतीलाल और लाजो नयना को देखते ही गले लगा लेते और और उससे घर से जाने का कारण पूछने लगते है उसे लाड प्यार करने लगते है.. प्रभती लाल ने तो नयना के लंगड़ाने का कारण नयन के पैर की मोच समझा मगर लज्जो अच्छी तरह उसका मतलब समझ रही थी.. लज्जो ने आँखों ही आँखों में अंशुल से सारा किस्सा समझ लिया और नयना को होने साथ घर जे अंदर ले गई.. प्रभती लाल अंशुल से बाते करने लगा और उसका धन्यवाद करने लगा.. अंशुल ने प्रभती लाल से कह दिया था की वो नयना से ब्याह करना चाहता है और जल्दी ही प्रभती लाल घर आकर बालचंद से ब्याह की तारिक पक्की कर ले.... प्रभातीलाल नयना का मन जानता था और इस पर सहमति जताते हुए अंशुल को गले लगाकर बोला - तुम इस घर के जमाई नहीं बेटे बनोगे...
अंशुल नयना को घर छोड़ कर चला गया था और नयना अपने रूम में जाकर बिस्तर सोते हुए अपने आप को कोस रही थी की वो बदन की आग में रिश्ते भी भूल गयी? मगर उसका ध्यान अंशुल की आखिरी बात पर था.. वो क़ाबिले वाली बात.. नयना ने तुरंत अपना फोन निकाला और google पर उस क़ाबिले के बारे में पता लगाने लगी....
नयना क़ाबिले के बारे में पढ़ रही थी की पढ़ते पढ़ते उसकी आँख बड़ी हो गई... क्या? ऐसा कैसे हो सकता है? इसका मतलब मेरी मन्नत पूरी..... मगर क्या सच मे ऐसा हो सकता है?
नयना ने पढ़ा था की उस क़ाबिले में एक परंपरा थी जिसमे अगर अगहन की पूर्णिमा को कोई औरत मर्द चाँद की पूरी रौशनी में सम्भोग़ कर ले तो उन्हें पति पत्नी होने का दर्जा मिल जाएगा... इसका मतलब उस क़ाबिले की परम्परा से नयना अंशुल की पत्नी बन चुकी है.... नयना इसे झूठलाने की कोशिश कर रही थी.. और अपने आप को समझा रही थी की ऐसा नहीं हो सकता... अंशुल उसका भाई है और अब वो उसे सिर्फ भाई की नज़र से ही देखेगी.. और कोई दूसरा रिस्ता उससे नहीं रखेगी.. अपनी मोहब्बत का गला वो घोंट देगी.. नयना और अंशुल के बीच अब सिर्फ यही एक रिस्ता होगा.... नयना खुदको पापी समझ रही थी.. अंशुल ने जो किया अनजाने में था मगर नयना को सब पता था फिर भी.... नहीं अब ये नहीं होगा.. नयना ने दृढ़निश्चिय किया था....
अंशुल को घर पहुंचते पहुंचते सुबह के चार बज चुके थे जब वो घर आया तो पदमा की हालात देख हैरान था.. पदमा ने रात जागकर गुजारि थी और उसकी आँखे बोझल लग रही थी.. अंशुल पदमा को अपनी गोद में उठाकर अपने कमरे में ले गया और अपनी बाहों में लेटा कर प्यार से उसका सर सहलाते हुए सुलाने लगा था.. पदमा जो रात से अंशुल की याद में जाग रही थी वो अंशुल की बाहों में तुरंत सो गई...
अंशुल के लिए पदमा और नयना में कोई फर्क नहीं रह गया था वो दोनों को अपने पास रखना चाहता था और प्यार करना चाहता था उसका मन अब दोनों को चाहने लगा था.. उसकी बाहो में सो रही उसकी माँ पदमा उसे कितना चाहने लगी थी ये उसे आज की उसकी हालात से पता लगा......
दिन गुजरने लगे थे... दो महीने बीत गए मगर नयना की अंशुल से कोई बात न हो सकती थी एक दो बार अंशुल नयना से मिलने गया भी तो पता लगा नयना अपने चाचा के यहां गई हुई है उधर पदमा अब दिनरात बालचंद से नज़र बचकर अंशुल के साथ सम्बन्ध बनाने के लिए आतुर रहती थी.. दोनों का प्रेम प्रगाड़ से भी अधिक मजबूत हो गया था... नयना अंशुल से बच रही थी वो नहीं चाहती थी की अब अंशुल उसे अपनी प्रेमिका के रूम में देखे और प्यार करे.. नयना बस अंशुल को अपना भाई समझने लगी थी और उससे भाई वाला रिस्ता कायम रखना चाहती थी.
एक दिन दोपहर को जब बालचंद ऑफिस में बड़े बाबू की गाली खा रहा था और बेज़्ज़त हो रहा था वहीं दूसरी तरफ उसकी बीवी अपने बेटे के सामने अपनी गांड फैलाये घर पर उसके ही बिस्तर में अपनी बुर चुदवा रही थी.... अंशुल पदमा के बाल पकड़ कर पीछे से उसकी बुर कुटाई कर रहा था और पदमा सिसकते हुए मज़ा ले रही थी... तभी अंशुल का फ़ोन बजा....
पदमा ने चुदते हुए फ़ोन उठा कर स्पीकर पर डाल दिया और अपना एक हाथ पीछे करते हुए अंशुल की तरफ फ़ोन कर दिया अंशुल अपने दोनों हाथ से पदमा की कमर थामे चोदता हुआ फ़ोन पर बात करने लगा...
हेलो...
हेलो.. आशु....
हां... मस्तु (अंशुल का शहर में रूमपार्टनर, पदमा के फलेशबैक में डिटेल से इसके बारे में लिखा गया है)
मस्तु - भाई अभी अभी तेरा परिणाम आया है...
अंशुल अपनी माँ चोदते हुए - अच्छा....
पदमा चुदते हुए सारी बाते सुन रही थी...
(मस्तु चुदाई की आवाजे साफ साफ सुन रहा था.. मगर वो जनता था ये किसकी चुदाई चल रही है इसलिए चुदाई के बारे में कुछ बोला नहीं..)
मस्तु - भाई कहा था मैंने तू पहली बार में निकाल लेगा.. निकाल लिया तूने.... अब तू सिर्फ अंशुल नहीं... ******* अंशुल है.. जल्दी से शहर आ बड़ी पार्टी लेनी है तुझसे... कहते हुए मस्तु ने फ़ोन काट दिया..
अंशुल ने पदमा को पलट दिया और अब वो मिशनरी पोज़ में पदमा के ऊपर आकर उसकी चुदाई करने लगा...
अंशुल - बधाई हो माँ.... अब तू सरकारी चपरासी की बीवी नहीं.. सरकारी अधिकारी की माँ है...
पदमा - आह्ह लल्ला.. तूने तो सच में अपना वादा पूरा कर दिया... मैं तो तुझे इस ख़ुशी के मोके पर कुछ दे भी नहीं सकती..
अंशुल - बिलकुल दे सकती हो माँ.....
पदमा - सब तो दे चुकी हूँ बेटा अब मेरे पास बचा ही क्या है?
अंशुल ने पदमा को होंठ चूमते हुए कहा - माँ मुझे तुम्हारी गांड चाहिए......
पदमा अंशुल की बात सुनकर शर्म से पानी पानी हो गई अब तक उसने अंशुल के दानवी लंड से डर कर अपनी गांड उसे नहीं दी थी मगर आज अंशुल ने उससे वहीं मांग ली थी...
पदमा ने मुस्कुराते हुए कहा - मैं तो खुद तुझे सब देना चाहती हूँ लेकिन डरती हूँ तेरे उस लोडे से... मगर ठीक है दो दिन बाद जब भालू शहर जाए तब ले लेना.. अंशुल झड़ चूका था..
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Bhai finally most awaited Padma scene has started and I really like it, bas aage updates me meri request yaad rakhna bro, Padma se cigarette smoking sex, specially in positions, blowjob, cowgirl riding, images/gifs bhi add karoge toh excitement next level hojayegiअध्याय 8
मुहर
(पदमा फलेशबैक, भाग -1)
आज भी नींद आ रही है?
तुम्हारे साथ तो मैंने शादी ही गलत कर ली..
तुम्हारे बाप ने उल्टा सीधा बोलकर मुझे फंसा लिया. इतना समय हो गया मैं तो जैसे जीना ही भूल गई हूँ.. अरे जब संभाल नहीं सकते थे तो शादी की ही क्यूँ तुमने?
रोज़ आकर मरियल बुड्ढे की तरह सो जाते हो..
पदमा ने आज बालचंद को अनाप शनाप ना जाने क्या क्या कह दिया था वो दो बच्चों की माँ थी लेकिन अब भी जवान और खूबसूरत थी शारीरिक संरचना मे उसका कोई सानी नहीं था जिसतरह के उभार और कटाव उसके बदन पर थे उसे पाना हर स्त्री की इच्छा होती थी मगर उसकी ये बदकिस्मती थी की बालचंद मे अब मर्दानगी का कोई रस नहीं बचा था बालचंद की शादी जब हुई थी वो तीस साल का था और आज उसकी उम्र पचास पार कर गई थी उसने अठरा साल की नवयौवना पदमा से ब्याह किया था लेकिन कुछ साल बाद ही बालचंद कामरस से विमुख हो गया था.. पदमा ने शादी के अगले साल ही जुड़वा बच्चों को जन्म दिया था जिसका नामकरण बालचंद के पीता मूलचंद ने किया था लड़के का नाम अंशुल और लड़की का नाम आँचल रखा गया था आँचल का विवाह अभी सालभर पहले ही हुआ था और अंशुल अभी अपने कॉलेज के आखिरी साल के इम्तिहान दे रहा था..
आज पदमा की उम्र 39 थी और उसमे काम के प्रति आसक्ति पूरी तरह से भरी हुई थी और वो काम की उतेजना मे जल रही थी जिसे शांत करना बालचंद के बुते जे बाहर था....
पदमा का हाल बिलकुल वैसा था जैसे सवान मे अपने प्रियतम के विराह मे एक नव विवाहित दुल्हन का होता था बदन की आग और सेज का सुनापन उसे कचोट कचोट कर खा रहा था सारा दिन घर के कामो और अपने ख्यालों से अपनी हक़ीक़त को झूठलाते हुए पदमा अपनी ख्वाहिशे अपने मन मे दबा कर जी रही थी जैसे समाज मे महिलाओ को जीना पड़ता है उसे समाज के कायदे मानने पड़ते है उन नियमो के अनुसार आचरण करना पड़ता है उनमे ही सिमट कर रहना पड़ता है भले ही ऐसा करने से उनके भीतर कितना ही कुछ टूट क्यूँ ना जाए उनकी आत्मा कमजोर क्यूँ ना हो जाए मगर महिलाओ के लिए हमारे पुरुषप्रधान समाज ने उन बेड़ियों का निर्माण किया जिसमे अगर एक बार कोई महिला बंध जाए तो उसे पूरा जीवन उसी मे बंध कर निकाल देना पड़ता है उसके लिए अपनी ख़ुशी सुख दुख का कोई अस्तित्व नहीं रह जाता.. ऐसा ही पदमा के साथ भी था.. उसका रूप यौवन माधुर्य बेजोड़ था लेकिन अब इन चीज़ो का उसके लिए कोई महत्त्व नहीं रह गया था जब तक आंचल थी तब तक पदमा उसके साथ बतियाती बात करती और उसका दिन गुजर जाता लेकिन जब से आंचल का ब्याह हुआ था वो बिलकुल अकेली पड़ चुकी थी आंचल के ब्याह के बाद तो जैसे उसकी जिंदगी मे कोई बात करने वाला या उसे समझने वाला कोई रह ही नहीं गया था...
आज होली का दिन था बालचंद अपने छोटे भाई ज्ञानचंद के साथ घर के आँगन मे शराबखोरी कर रहा था हर तरफ गुलाल बिखरा पड़ा था और इस कस्बे मे लोग इस त्यौहार को बड़ी ख़ुशी के साथ मना रहे थे ऐसा लगा रहा था जैसे आज धरती को रंगबिरंगे गुलाल से सजाया जा रहा था महिलाये अपना झुण्ड बनाकर अपने देवरो या रिश्तेदारों को रंग लगा रही थी और कपडे के कोड़े बनाकर उन्हें पिट रही थी वहीं कुछ आदमी भी टोलिया बनाकर अकेली रह जाने वाली भाभी या औरत को पकड़कर जमके रंग लगाने और चिढ़ाने का काम कर रहे थे.... पदमा के मन मे आज बहुत ज्यादा कामुकता भरी हुई थी वो अक्सर ऊँगली से अपनी प्यास बुझाती थी लेकिन आज उसे मौका नहीं मिल पाया था वो रसोई मे खाना बना रही थी.. दोपहर के बारह बजे थे और अब तक बालचंद शराब के नशे मे चूर होकर आँगन मे ही सोफे पर ढेर हो चूका था लेकिन ज्ञानचंद अभी सुरूर मे था वो रह रह कर आँखों से पदमा को भोग रहा था उसका अंदाजा पदमा को हो चूका था लेकिन कामुकता के वाशीभूत होकर पदमा ने ज्ञानचंद को ऐसा करने से नहीं रोका उलटे उसके आँखों से अपने रूप और जोबन का रस पिलाती रही.. आज पदमा को ज्ञानचंद का इस तरह उसे देखना सुख दे रहा था और उसे उसके जवान और खूबसूरत होने का अहसास करवा रहा था सालों से जो उसने महसूस नहीं किया था वो आज महसूस कर रही थी.... अगर बालचंद पदमा को सुखी रखता और उसकी शारीरिक जरुरत पूरी तरता तो अवश्य ही पदमा ज्ञानचंद की इस हरकत पर उसे टोकती या अपने कपडे सही करके ज्ञानचंद के द्वारा किया जा रहा पदमा के रूप का चक्षुचोदन बंद कर देती लेकिन आज उसे इसमें सुख मिल रहा था उसकी लालसा बढ़ रही थी पदमा पहले से ही कामुकता से भरी हुई थी उसपर से इस तरह ज्ञानचंद का उसे देखना बहुत अच्छा लगा रहा था.... ज्ञानचंद एक साधारण कदकाठी वाला, बालचंद की तरह ही आधा गंजा और पुराने तरह के कपडे पहनें वाला आदमी था उम्र पेतालिस के पार थी लेकिन काम वासना से भरा हुआ व्यक्तित्व था ज्ञानचंद का...
पदमा ने आज स्लीव लेस ब्लाउज पहना था जो किसी ब्रा की तरह ही देखने से लगता था और होली मे गंदे होने के डर से पुरानी साडी जो बार बार उसके कंधे से सर कर नीचे आ रही थी आज पदमा और दिनों के मुक़ाबले ज्यादा आकर्षक और कामुक लगा रही थी यही कारण था की ज्ञानचंद भी अपने आप को पदमा के रूप का शिकार होने से खुदको बचा नहीं पाया था.. ज्ञानचंद ने मौका पाकर पदमा से होली खेलने के नाम पर छेड़खानी शुरु कर दी थी जिसे कोई शरीफ औरतों कभी बर्दास्त नहीं करती लेकिन जो औरत काम के अधीन हो उसे शरीफ होने की उम्मीद की जानी व्यर्थ होती है.. ज्ञानचंद ने पदमा की नंगी चिकनी पतली कमर को इस तरह गुलाल से रंग दिया था जैसे जैसे छिंट के महीन सफ़ेद कपडे को रंगा जाता है.. ज्ञानचंद के हाथ कमर से होते हुए पदमा के कंधे तक पहुंच गए थे और रास्ते मे ज्ञानचंद के हाथो ने पदमा की छाती को गुलाल के रंग से रंगीन कर दिया था पदमा इतना सब होने के बाद भी आज अपने देवर ज्ञानचंद को नहीं रोक पाई थी और अब ज्ञानचंद का हाथ उसकी देह को जगह जगह से रंग रहा था जिसका पदमा पूरा मज़ा ले रही थी लेकिन उसकी आवाज़ उससे विपरीत बातें कहलवा रही थी...
उफ्फ्फ देवर जी छोड़िये.. आप क्या कर रहे है.... थोड़ी भी लाज नहीं आती है.... हम शोर मचा देंगे.. छोड़िये हमें...
मचा दीजिये भाभी शोर.... मैं जानता हूँ आप बहुत प्यासी है... भाभी भाईसाब तो शाम से पहले नहीं उठने वाले... यहां हमारे सिवा कोई नहीं है... ऐसा मौका बार बार नहीं मिलता भाभी....
आह्ह.... आप क्या कर रहे है देवर जी.... हमारा ब्लाउज फट जायगा... छोड़िये हमें... जाने दीजिये...
क्यूँ नखरे कर रही हो भाभी... आज तो होली का त्यौहार है.... रंग के साथ आपको थोड़ा अंग भी लगा दूंगा तो क्या बिगड़ जाएगा.... वैसे भी आपका ये रूप बेकार ही जा रहा है... भाईसब को तो बिलकुल कदर नहीं है आपकी....
देवर जी आप अभी नशे मे हो.... आप मेरी कमर छोड़ दीजिये.... देखिये मैं आपके साथ ये सब नहीं कर सकती.... आप जाइये यहां से.... दरवाजा खुला है कोई आ गया तो मेरी शामत आ जायेगी....
अरे भाभी कोई नहीं आएगा अंदर.... सब बाहर होली खेलने मे मस्त है आप तो फालतू ही डर रही हो.... अब ये सब चिंता छोडो और मान जाओ.... मैं भाईसाब से अच्छा ख्याल रखूँगा आपका... आओ ना भाभी...
पदमा ऊपरी तौर पर जुबान से ज्ञानचंद का विरोध कर रही थी लेकिन उसने ज्ञानचंद को अभी तक खुदको छूने से नहीं रोका था ज्ञानचंद ने ऊपर से नीचे तक पदमा को छुआ था जिससे पदमा काफी उत्तेजित हो चुकी थी उसके बदन की आग और बढ़ चुकी थी उसकी योनि से जल प्रवाह तेज़ हो चूका था अब पदमा को किसी भी हाल मे उसका समाधान चाहिए था... ज्ञानचंद ने पदमा को आगे रसोई की पट्टी पर झुकाते हुए पीछे से उसकी साडी उठाकर झंघिया नीचे सरका दी जिससे पदमा की झांटो से घिरी हुई गुलाबी घुफा के दर्शन हो गए थे पदमा का दिल अब ज्ञानचंद का केला लेने को आतुर हो चूका था लेकिन जैसे ही ज्ञानचंद ने अपनी पेंट नीचे की तो पदमा उसके चार इंच के केले को देखकर फिर से दुख के सागर मे दूब गयी थी उसे अपनी गलती का पछतावा हो रहा था उसने आज व्यभिचार किया था लेकिन उसमे भी उसे शारीरिक सुख की अनुभूति नहीं हुई थी उसे खुद पर और ज्ञानचंद पर गुस्सा आ रहा था.. उसका तो ठीक से पदमा की योनि पर लिंग लगा भी नहीं था नशे मे ही ज्ञानचंद ने मुश्किल से चार झटके मारे थे की बस वो वहीं ढेर हो गया पदमा की आँखों से आंशू झलक रहे थे.......
अंशुल आज त्यौहार के मोके पर घर आया था लेकिन ये नज़ारा देखकर उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई थी उसने जो आज अपनी आँखों से देखा था वो अपने सामने मे भी नहीं सोच सकता था उसके दिल मे अपनी माँ और पापा के लिए बहुत सामान था लेकिन उसका सारा सामान आज उसकी आँखों से अंशु बनकर बह निकला था.. आँगन मे खड़ा होकर खिड़की के मुहाने से अंशुल ने अपनी माँ पदमा और चाचा ज्ञानचंद के इस कुकर्म को अपनी आँखों से देखा था उसे समझ नहीं आ रहा था की वो क्या करें? अगर वो उसी वक़्त कुछ करता तो समाज मे उसकी माँ पदमा का चरित्र शोषण होना लगभग तय था.. अंशुल के सामने जो हो रहा था उसमे पदमा की मोन सहमति थी जिसे अंशुल अच्छे से समझता था वरना जो औरत बालचंद पर दिनरात चिल्लाती थी और कभी काबू नहीं आती थी वो ज्ञानचंद जैसे साधारण काया वाले इंसान के काबू मे आ जाती ये नहीं माना जा सकता था.... जब ज्ञानचंद बिना पदमा की योनि मे प्रवेश किये ही झड़ गया तब अंशुल अपनी आँखों मे अंशु लिए वापस घर से बाहर निकल गया और वापस चला गया वहीं पदमा अपनी किस्मत को कोसती हुई बाथरूम मे चली गई और अब उंगलियों से ही अपनी ख़ुशी का मार्ग खोजने लगी.... पदमा को इस बात की जरा भी भनक नहीं लगी थी की उसके बेटे ने रसोई मे जो कुछ हुआ था पूरा नज़ारा आप ई आँखों से देखा था और अब वो पूरी तरफ पदमा की शारीरिक असंतुस्टी का राज़ जानता था.... पदमा जब बाथरूम से बाहर आई तब तक ज्ञानचंद घर से जा चूका था पदमा को अगर ज्ञानचंद अब मिलता तो वो न जाने क्या क्या उसे कह सुनाती और जलील करके घर से निकाल देती लेकिन ज्ञानचंद को कुछ ही पलो मे अपनी करनी का अहसास हो गया था और वो लड़खड़ाते हुए बाहर चला गया था.....
हारे रे किस्मत... पदमा सोच रही थी की उसने आज पहली बार व्यभिचार किया था और वो भी उसे देह का सुख नहीं दे पाया था उसने ऐसे कोनसे पाप किये है जो उसे ये सब देखना पड़ रहा है आखिर हर औरत अपने पति से शारीरिक सुख की कामना रखती है मगर जब उससे वो सुख नहीं मिलता तो वो कैसे अपना गुजारा करें यही सोचते हुए पदमा आज उदासी से आंशू बहती हुई बिस्तर के एक ओर लेटी हुई नींद के आने का इंतजार कर रही थी... वहीं दूसरी ओर अंशुल अब तक वापस बड़े शहर आ चूका था ओर अपने दोस्त मनसुख (मस्तु) के रूम पर रुक गया था उसे भी नींद का इंतज़ार था मगर नींद उसकी आँख से कोसो दूर थी अंशुल मे मन मे अजीब अजीब ख्याल ओर प्रशन उठ रहे थे जिसके जवाब उसके पास नहीं थे उसे समझ नहीं आ रहा था कैसे उसकी माँ पदमा इस तरह व्यभिचारिणी बन सकती है उसने आज जो देखा वो उसके लिए कतई बर्दाश करने वाली चीज नहीं थी मगर वो कर भी क्या सकता था अगर वो अपनी माँ को उस हाल मे पकड़ लेता ओर चाचा से लड़ाई करता तो उसकी माँ उससे ऐसा प्यार जैसा की वो करती आई है क्या आगे भी करती? क्या कभी पदमा वापस अंशुल से आँख मिला के बात कर पाती? क्या समाज मे पदमा की बदनाम नहीं होती? क्या उसका परिवार एक साथ रह पाता? अगर अंशुल उस वक़्त कुछ करता तो निश्चित ही उसके परिणाम बुरे या कहे बहुत बुरे हो सकते थे.... कब से ऐसा चल रहा होगा? क्या माँ ओर भी किसी के साथ? छी छी... मैं ये क्या सोच रहा हूँ? ये सब गलत है...
आज नींद नहीं आ रही क्या?
आशु ख्यालो मे गुम था की उसके दोस्त मस्तु ने उससे पूछा....
नहीं भाई... सर थोड़ा भारी हो रहा है...
टेबल के दूसरे दराज मे सर दर्द की दवा है एक गोली लेले ठीक हो जाएगा.. कहते हुए मस्तु पेशाब करने चला गया.....
अंशुल ने गोली ले ली और वापस लेट गया.. उसका फ़ोन भी स्विच ऑफ हो चूका था जिसे उसने अभी चार्ज करने के लिए लगाया था....
मस्तु बाथरूम से वापस आकर अंशुल के बगल मे लेट गया अंशुल से कहने लगा - भाई वो विशाल से बात की क्या तूने? उसका फ़ोन आया था शाम को.... कह रहा था तेरा फ़ोन बंद है...
अंशुल - नहीं वो चार्ज खत्म हो गया था तो फ़ोन चार्ज करने के वक़्त ही नहीं मिला.... अभी जस्ट चार्ज के लिए लगाया है... तू तेरा फ़ोन दे अभी बात कर लेता हूँ.... वो ट्रेडिंग के पैसे के बारे मे बात कर रहा होगा...
मस्तु लॉक खोलकर अपना फ़ोन देते हुए - ले भाई.... तुम्हारा भी सही है.. कोई पूरा दिन मेहनत करके भी कुछ नहीं कमाता और तुम दोनों बैठे बैठे पैसे छाप लेते हो...
अंशुल फ़ोन लेते हुए - कहा भाई.... ये तो हमारे कुछ तुक्के सही बैठ जाते है बस.. वरना तूने तो देखा ही लोगों को ऑनलाइन ट्रेडिंग मे बर्बाद होते हुए...
मस्तु तकिया लगाते हुए - ठीक है भाई... अच्छा मुझे नींद आ रही है तू लाइट बंद कर देना.... वरना कहीं मकान मालिक ने दिख लिया तो सुबह रोयेगा...
अंशुल मस्तु के फ़ोन से विशाल को फ़ोन करता है और उनके बीच बातें काफ़ी लम्बी चलती है जिसमे उसके बीच प्रॉफिट का हिसाब और नई ट्रेड की बातें
हो रही होती है अंशुल ने रूम की लाइट बंद कर दी थी और वापस मस्तु के पास बिस्तर पर आकर लेट गया था मस्तु की आँख लगा चुकी थी और अब करीब एक घंटे बाद अंशुल ने विशाल से बात करके फ़ोन काट दिया था लेकिन अब भी उसका मन नहीं लगा रहा था तो अंशुल ऐसे ही मस्तु का फ़ोन देखने लगता है जिसमे पहले वो मस्तु के फ़ोन मे कुछ देर कैंडी क्रश खेलता है फिर उसके फ़ोन मे व्हाट्सप्प और इंस्टा चलाने लगता है फिर कुछ देर बाद अंशुल मस्तु के फ़ोन की गैलरी मे पहुंच जाता है जहाँ ऐप लॉक लगा हुआ था एक दो बार रैंडम पासवर्ड डालकर अंशुल चेक करता तो गैलरी नहीं खुलती लेकिन अंशुल जब मस्तु की बर्थडेट डालकर गैलरी ओपन करता है तो गैलरी ओपन हो जाती है जहाँ मस्तु की बहुत सारी पिक्स होती है जिसमे वो कभी कॉलेज तो कभी किसी घूमने वाली जगह मे था कुछ मे दोस्तों के साथ अंशुल यूँही पीछे देखते हुए नीचे आता है तो एक फोल्डर उसे नज़र आता है जिसे ओपन करते ही उसकी आँखे फटी की फटी रह जाती है..... उस फोल्डर मे मस्तु एक 45 साल के लगभग की औरत के साथ था और दोनों आपस मे बहुत नजदीक थे दोनों की बहुत सारी पिक्स और वीडियो थे जिसे अंशुल ने इयरफोन लगा कर भी देखा था... अंशुल की आंखे फटी की फटी रह गई थी वो इस औरत को जानता था और न जाने कितनी बार आशीर्वाद लेने के लिए उसके पैर भी छू चूका था.. अंशुल को आज ये दूसरा झटका मिला था और उसे अब इस पर भी भरोसा नहीं हो रहा था अंशुल ने अपना फ़ोन ऑन करके वो सारी पिक्चर्स और वीडियोस अपने फ़ोन मे ट्रांसफर कर ली और मस्तु का फ़ोन वापस जैसा था वैसा करके वही रख दिया.. अंशुल को अब नींद नहीं आने वाली थी उसके सर ओर आज दो बोम गिरे थे एक अपनी माँ पदमा के व्यभिचार का और दूसरा अपने दोस्त मस्तु के अवैध सम्भन्ध का...
रसुबह के पांच बज रहे थे और अंशुल रूम की लाइट ऑन करके बैठा हुआ था उसके सर मे बहुत सी बातें चल रही थी जो उसे सोने नहीं दे रही थी रातभर वो जागा था मस्तु की नींद भी खुल चुकी थी और वो अंशुल को इस तरह बैठा हुआ देखकर चौंक चूका था....
क्या हुआ आशु... सर दर्द ठीक नहीं हुआ? मस्तु ने पूछा तो अंशुल ने उसकी और देखते हुए उतर दिया - नहीं....
मस्तु नींद के बाद की ऊँगाई से जागते हुए आंखे मलकर बोला - रुक भाई मे चाय बना देता हूँ....
अंशुल बेरुखी से - रहने दे.... मन नहीं है चाय पिने का...
मस्तु अंशुल की बात सुनकर बाथरूम चला जाता है और अच्छी तरह मुँह हाथ धोकर वापस आ जाता है.. मस्तु इस बार अंशुल से बिना कुछ बोले चेयर पर बैठकर किताब उठकर पढ़ने लगता है शायद इतिहास की किताब होगी.... करीब डेढ़ घंटे बाद भी अंशु जब उसी तरह बैठा रहता है तो मस्तु इस बार उसे देखकर झाल्लाते हुए बोलता है - अरे भाई हुआ क्या है कुछ भोकेगा? या फिर रंडवि भाभी बनकर बैठा रहेगा? तुमको देखकर साला हमको भी डिप्रेशन हो रहा है अब....
अंशुल इस बार मस्तु से बोला - साले शर्म नहीं आती तुझे?
मस्तु - अबे किस बात की शर्म बे? कमरे का किराया और बाकी खर्चा पूरा तू देता है तो क्या हुआ? ****** बनुगा तो सूत समेत ले लेना.... इस बार प्रिलियम्स निकल गया है... मेंस और इंटरव्यू भी निकाल जाएगा देखना.... फिर जो चाहिए ले लेना....
अंशुल गुस्से से - भोस्डिके मैं सारी रात जागकर सुबह तुझसे किराये की बात करूंगा? तूने जो गुल खिलाये है मैं उसकी बात कर रहा हूँ.... साले तुझे जरा भी शर्म नहीं आई ये सब करते हुए वो भी........ छी....
मस्तु इस बार अंशुल की बात सुनकर थोड़ा घबराह जाता है लेकिन उसने तो अपने फ़ोन पर ऐपलॉक लगाया था तो फिर कैसे? नहीं नहीं... जरुर ये कोई और बात कर रहा होगा.. मस्तु ये सब सोचकर अंशुल से कहता है....
मस्तु - अबे पहेलियाँ ही बुझाता रहेगा या साफ साफ कुछ कहेगा भी? तुम्हारा ये रंडी रोना हमारे समझ के बाहर है.... हमने ऐसा क्या कर दिया जो तुम्हे रातभर नींद नहीं आई? कुछ बताएगा?
अंशुल गुस्से मे - अरे मादरचोद..... तू सब जानता है जनता है मैं क्या बात कर रहा हूँ.... महीने के आखिर मे 3-4 दिन तू अपनी अम्मा को इसिलए मधुबनी से बुलाता था ना.... और इस सबका खर्चा भी मुझिसे लेता था.... साले तुझसे बड़ा मादरचोद मैंने आज तक नहीं देखा.... थोड़ी तो शर्म करता हराम के जने...
मस्तु के कान मे जैसे ही अंशुल की बात गई वो उठकर सबसे पहले कमरे का दरवाजा बंद कर देता है और अंशुल के पैर पकड़ लेता है...
भाई.... भाई.... यार तुम्हारे पैर पकड़ते है... किसीसे कुछ मत कहना.. हमारी बहुत बदनामी होगी... किसीको मुँह दिखाने के काबिल नहीं रहेंगे भाई प्लीज...
अंशुल - तुझसे ये उम्मीद नहीं थी.... साले तूने अपनी भोली भली माँ को ही अपनी हवस का शिकार बना लिया? बेचारी को क्या क्या सहना पड़ा होगा? तेरे जैसा बेटा होने से तो अच्छा होता बेचारी बाँझ ही रह जाती... तू वाक़ई मे बहुत गंदा इंसान है मस्तु.... मैं तुझे देखना भी नहीं चाहता है.... मैं जा रहा हूँ और आज के बाद तेरी शक्ल भी नहीं देखना चाहता... तेरी माँ ने कितनी बार मुझे अपने हाथ का खाना खिलाया है प्यार से मेरा दुख सुख साझा किया है मैंने कितनी बार उसके पैर छुए है.... मैं अपनी माँ की तरह ही उसे सम्मान देता हूँ लेकिन तूने? तूने तो रिस्तो को तार तार ही कर दिया मस्तु....
मस्तु अंशुल के सामने हाथ जोड़ते हुए - भाई... प्लीज मुझे माफ़ कर दे.... मैं जानता हूँ ऐसी गलती माफ़ी के लायक नहीं है लेकिन इसमें सिर्फ मेरे अकेले की गलती है... अगर तू ऐसा सोचता है तो तू भी गलत है.... मेरी माँ भी मेरे साथ उतनी ही दोषी है जितना की मैं.... और इस रिश्ते की शुरुआत उसीने की थी....
अंशुल - खुदको बचाने के लिए कुछ भी मत बोल मस्तु.... मैं अच्छी तरह जानता हूँ आंटी को.... उनके जैसी सीधी सादी घरेलु औरतों कभी ऐसी हरकत खुदसे नहीं कर सकती.... जरुर तूने ही उन्ही फुसलाया होगा और इस सब मे खींचा होगा...
मस्तु - तुझे मेरी बात पर विश्वास नहीं है तो ठीक है... मै अभी तुझे सबूत दे सकता हूँ.. तब तो तू मेरी बात पर विश्वास करेगा....
अंशुल - मैंने तेरे फ़ोन मे सब देख लिया है मस्तु... अब क्या सबूत बाकी है देने को?
मस्तु अंशुल को बैठाते हुए - भाई मैं झूठ नहीं बोल रहा..... उन्होंने ही मेरे साथ इस सब की शुरुआत की थी ताकि मेरा ध्यान पढ़ाई से ना भटके और मैं जल्दी से एक बड़ा अफसर बनकर घर संभाल सकूँ.... तू अगर यक़ीन नहीं होता तो रुक मैं अभी तुझे यक़ीन दिलाता हूँ.....
मस्तु अपना फ़ोन लेकर अपनी माँ चमेली को फ़ोन करता है.....
चमेली फ़ोन उठाकर - हेलो बेटा.... आज सुबह सुबह कैसे याद आ गई अपनी माँ की बुर की.... लंडवा मे ज्यादा खुजली चल रही है क्या? कहो तो मिटाने आये?
अंशुल चमेली की बात सुनकर मस्तु की तरफ हैरानी से देखने लगता है उसने अभी जो सुना उस पर उसे विश्वास कर पाना कठिन था लेकिन सत्य यही था जो उसने अभी सुना, अंशुल को अब मस्तु की बात पर यक़ीन हो चूका था.......
मस्तु - नहीं माँ.... वो हम सिर्फ इतना कह रहे थे की इस बार जब आप यहां आइयेगा तो आचार लाना ना भूलियेगा.... खाने की बहुत इच्छा होती है...
चमेली - चिंता मत कर बेटा... कुछ दिनों की बात है.... इस बार जब आउंगी तो अपनी बुर पर आचार लगाकर चटवाउंगी तुझे.... वैसे पढ़ाई तो सही चल रहा है ना तुम्हारी? अपना ध्यान कहीं भटकने मत देना बेटा.... अगर चाहिए तो अपनी माँ की चुत 8-10 बार एक्स्ट्रा चोद लेना लेकिन पढ़ाई मे पूरा ध्यान देना.... हमें अफसर की माँ बनना है.... ठीक है ना?
मस्तु - पढ़ाई ही कर रहे थे माँ....
चमेली - अच्छा.... तुम्हारा दोस्त आशु केसा है?
मस्तु - वो ठीक है माँ.. बाथरूम मे है....
चमेली - हम्म्म.... बहुत मासूम है बेचारा.... बाहर आये तो बात करवाना.....
मस्तु फ़ोन अंशुल की तरफ बढ़ाते हुए - लो आ गया बात कर लो..
अंशुल को जो हो रहा था कुछ समझ नहीं आ रहा था वो तो किसी गहरी सोच मे डूबा हुआ था जहाँ से मस्तु ने उसे निकालते हुए फ़ोन दे दिया था अंशुल इस वक़्त क्या बात करेगा और किस तरह बात करेगा ये बड़ा सवाल था लेकिन फिर भी अंशुल ने फ़ोन ले लिया और खुदको सँभालते हुए बोला....
अंशुल फ़ोन लेकर - नमस्ते आंटी....
चमेली - अरे खुश रहो बेटा.... ककैसे हो? अपनी आंटी की याद करते हो या नहीं?
अंशुल - बस आंटी अभी आपको ही याद कर रहा था.....
चमेली हसते हुए - कहा याद कर रहे थे? बाथरूम मे?
अंशुल - अरे आंटी आप भी ना.... अच्छा कब आ रही है आप? मस्तु बुला रहा था आपको....
चमेली - अभी कहा बेटा.... बहुत काम है यहां... और इस महीने मे अब छुटि भी नहीं मिलेगी वहा आने के लिए....
अंशुल - आप काम करती हो?
चमेली - अब बिना काम के कैसे पेट भरेगा बेटा? काम तो करना ही पड़ेगा....
अंशुल - आंटी आप पैसे की चिंता मत करो मैं अभी कुछ पैसे भिजवा देता हूँ आप बस जल्दी से यहां आ जाओ.... मुझे आपके हाथो का खाना खाना है...
चमेली - ठीक है बेटा.... मैं इस इतवार को ही आ जाउंगी.....
अंशुल फ़ोन मस्तु को दे देता है और टेबल पर रखी बोतल से पानी पिने लगता है...
मस्तु -अच्छा माँ अब फ़ोन रखते है....
चमेली - ठीक है बेटा.... फ़ोन कट हो जाता है...
मस्तु - भाई अब तो यक़ीन हो गया.. मैंने कहा था ना की मैं अकेला दोषी नहीं हूँ....
अंशुल उदासी से - भाई एक बात समझायेगा? आखिर औरत को चाहिए क्या होता है?
मस्तु - क्या हुआ भाई? ऐसे क्यूँ बात कर रहा है?
अंशुल मस्तु को अपने दिल की सारी उलझन बता देता है और ये भी बता देता है की कैसे उसने अपनी माँ पदमा देवी को अपने चाचा के साथ अधूरा व्यभिचार करते देखा था अंशुल के दिल की सारी बातें मस्तु सुन रहा था और समझ रहा था मस्तु उसी की उम्र का लड़के था लेकिन उसमे समझ अंशुल से ज्यादा थी उसे अंशुल की मनोदशा और उसके साथ होने घटने वाली व्यथा अच्छे से समझ आ रही थी और उसका समाधान भी दिखाई दे रहा था लेकिन ये समाधान क्या अंशुल को स्वीकार था? कहा नहीं जा सकता क्युकी जिसतरह से अंशुल ने मस्तु और चमेली के रिश्ते पर आपत्ति जताई थी वो कैसे मस्तु के समाधान पर सहमति जता सकता था... अंशुल की बातें सुन और समझकर मस्तु अंशुल को दिलासा दे रहा था और जल्दी ही उसकी परिस्थिति बदल जाने की बात कह रहा था...
मस्तु - भाई मैं तेरी परेशानी समझ सकता हूँ.... ये तो हर दूसरे घर की कहानी है.. आज कहीं भी देख लो महिलाओ को अगर काम सुख नहीं मिलता तो वो किसी ना किसी के जाल मे फंस ही जाती है.... तुम्हे क्या लगता है मेरी माँ बड़ी साफ सुथरी है? मुझसे पहले उसके कई आशिक थे.. उन्होंने अपनी जुबान से हमें अपना राज़ बताया है वो भी इसी बिस्तर पर....
लेकिन जब से मेरे साथ उसका रिस्ता बना है तब से उन्हें कहीं बाहर मुँह मारने की जरुरत नहीं पड़ी उसके सारे बाहरी रिश्ते ख़त्म हो गए.... भाई बुरा मत मानना मगर अगर तुम चाहते हो की तुम्हारा घर बाहरी लोगों से बचा रहे तो तुमको ही कुछ करना होगा....
अंशुल चुपचाप मस्तु की बात सुन रहा था और उसे उसकी बातें कुछ कुछ समझ भी आ रही थी जिससे वो चाहकर भी नहीं बच सकता था....
अंशुल - भाई मगर मैं अपनी ही माँ के साथ..... नहीं यार मैं सपने मे भी ऐसा कुछ नहीं सोच सकता.... मैं ऐसा कुछ करने से पहले मरना पसंद करूंगा....
मस्तु - मैं समझ सकता हूँ आशु.... तुम्हारे लिए ये आसान नहीं होगा... मगर अगर तुम्हे अपना घर बाहरी लोगों से बचाना है तो मेरी बात को एक बार फिर सोचना भाई.... क्युकी बाद मे पश्चिताप के सिवा और कुछ नहीं होगा..
अंशुल मुरझाई आवाज़ मे - नहीं मस्तु.... मैं ऐसा नहीं कर सकता... मैं अपनी माँ के साथ ऐसे रिश्ते मे नहीं बंध सकता जहाँ प्रेम के स्थान पर वासना भरी हो.. जहाँ शारीरिक सुख भोगने के लिए मानसिक सुख की बली चढ़ानी पड़े.... और वैसे भी इस बात की क्या गारंटी है मैं ये सब कर पाउँगा? मैंने आज तक जो भी किया है मैं उसमे नाकाम ही रहा हूँ.... फिर कैसे इस काम कर सकता हूँ....
मस्तु - भाई अपनेआप पर शक मत कर..... तुमने आज तक हर काम अधूरा छोड़ा है क्युकी उसमे तुम्हारा नहीं मन था.... मगर मैं जानता हूँ तुम इसे अच्छे से पूरा कर सकते हो.... जहाँ तक बात प्यार की है तो देखना इसके बाद तुम्हारे रिश्ते मे गहराइ और सोच मे पवित्रता आएगी.... तुम पहले की तुलना मे अधिक प्रेम करोगे अपनी माँ से..... और ये हम दावे के साथ कह सकते है... आशु हमने एक दो बार तुम्हे तुम्हारी प्रकर्तिक हालत मे देखा है और हम सर्त लगा सकते है की तुम किसी भी औरत को खुश रख सकते हो...
अंशुल - तुमने कब मुझे नंगा देख लिया?
मस्तु - भाई तुम्हे कितने बार बोले थे बाथरूम का दरवाजा लगा कर नहाना कर... अब नज़र पड़ ही जाती है...
अंशुल - तुम्हे सच मे लगता है मैं अपनी माँ को खुश रखता हूँ जैसे तुम आंटी को रखते हो?
मस्तु अपना लिंग निकालते हुए - भाई मेरा 7 इंच लम्बा और ढाई इंचाई मोटा है.... और मुझे लगता है की तुम्हरा मुझसे ज्यादा बड़ा है.... इसलिए तुम अपनी तो क्या मेरी माँ को भी खुश रख सकते हो... किसी भी लड़की को खुश रखा सकते हो...
अंशुल मस्तु का देखकर अपना भी निकाल लेता है और मस्तु उसे देखकर कहता है - कहा था ना भाई.... देखने लगता है 8-9 इंच से कम लम्बा नहीं होगा और 3 साढ़े 3 इंच से कम मोटा नहीं होगा....
अंशुल अपना वापस अंदर डाल लेता है...
अंशुल - पर भाई शुरुआत कैसे करूंगा? मेरी तो हिम्मत ही नहीं होगी कुछ करने की.... समझ नहीं आ रहा क्या कहूंगा माँ से? अगर उन्हें मेरी किसी बात का बुरा लगा गया तो? मुझे तो बहुत डर लग रहा है... कुछ समझ नहीं आ रहा मस्तु....
मस्तु - भाई... अभी से इतना डर? तू सबसे पहले तो दिल से डर निकाल दे... समझा? और जाते ही सब थोड़ी होगा.... भाई धीरे धीरे शुरुआत करनी होगी.... तुमने बताया तुम्हारी माँ पूरा दिन घर पर अकेली रहती तो अकेले बोर हो जाती होगी दिल नहीं लगता होगा.... तू उनसे बात करना शुरु कर किसी भी बारे मे... सारा दिन आगे पीछे घूम.... उनका ख्याल रख जैसे उनके अलावा तेरी लाइफ और कुछ है ही नहीं... फिर देखना सब अपने आप हो जाएगा.... पर एक बात याद रखना आशु.... कभी भी जल्दबाजी मत करना वरना सब बिगड़ जाएगा....
अंशुल - मुझसे हो पायेगा ये सब?
मस्तु - सब होगा..... हर औरत को पैसो से प्यार होता है तू थोड़ा बहुत उनपर खर्चा करेगा उन्हें सर सपाटा कराएगा तो सब होगा....
अंशुल अपना फ़ोन उठाते हुए - समझ गया मस्तु...... अच्छा पैसे भेज रहा हूँ तेरे **** पर.... आंटी को इस बार एक बढ़िया सी महँगी बनारसी साडी दिलवा देना मेरी तरफ से... और एक अच्छा सा मोटा मुलायम गद्दा भी खरीद लेना.... बेचारी चमेली आंटी इस पुराने ठोस बिस्तर पर रातभर परेशान हो जाती होंगी....
मस्तु - थेंक्स भाई.... देखना एक दिन तेरा सारा अहसान सूत समेत वापस करूंगा...
अंशुल - पहले ****** बन तो जा....
मस्तु - मैं तो बन जाऊंगा भाई तू भी कुछ सोच ले.... एक छोटी मोटी सरकारी जॉब की तयारी तू भी कर ले...
अंशुल हसते हुए - मुझसे कहा तयारी होगी भाई तू तो जानता है मैं पढ़ाई मे कितना तेज़ हूँ.....
मस्तु - भाई तेरा ****** सब्जेक्ट बहुत स्ट्रांग है ****** मे वेकन्सी निकली है फॉर्म लगा दे थोड़ी सी त्यारी करेगा तो निकाल लेगा... और एक बार पहला पेपर निकला तो असद भाई का बहुत स्ट्रांग जुगाड़ है ऊपर तक.... दूसरे पेपर मे पैसे देके सब हो जाएगा....
अंशुल - भाई जितनी तनख्वाह मिलेगी उतना मैं वैसे ही कुछ दिनों मे ट्रेडिंग से कमा लूंगा.... क्यूँ फालतू अपना सर खर्चा करू इन सब मे? वैसे भी कोनसे बड़े ओहदे की नोकरी होगी? ज्यादा से ज्यादा किसी अफसर की चाटने का काम मिलेगा....
मस्तु - तुमने ठीक से नहीं सुना भाई.... ये ****** वाली नौकरी है.. लोग तुम्हारे नीचे काम करेंगे.... तुम्हरे कहने पर काम करेंगे.... तुम्हारे पास अपने से नीचे के लोगों को ससपेंड करने की पावर होगी....
तुम्हारे नाम की मुहर लगेगी सरकारी कागज पर....
अंशुल मुहर शब्द सुनकर अपनी पुरानी याद के सागर मे डूब जाता है जहाँ उसे एक सरकारी दफ़्तर याद आता है जहा वो अपने बचपन मे अपनी माँ और पापा के साथ गया था..
हर तरफ फाइल्स के ढेर और मोटी तोंद लटकाए सरकारी कर्मी उसकी आँखों के सामने आज भी उसी तरह बैठे थे जैसे की बचपन मे उसने देखा था..
अपनी जमीन के एक छोटे से काम के सिलसिले मे दर्जनों बार अंशुल को कभी बालचंद तो कभी पदमा के साथ उस सरकारी दफ़्तर के चक्कर लगाने पड़े थे...
ना जाने कितनी ही बार अंशुल ने छोटे मोटे सरकारी नौकरो से अपने माँ बाप को खरी खोटी सुनते देखा था घुस नहीं दे पाने के कारण वो जमीन वापस न मिल सकती थी..
बालचंद खुद भी एक दफ़्तर मे सरकारी चपरासी था लेकिन उसकी पहुंच उसीके कद वाले लोगों तक थी दफ़्तर मे कोई उसे मुँह तक नहीं लगाता था तो बड़े बाबू से शिफारिश करना भी उसके बस की बात नहीं थी और वैसे भी ये काम किसी बाबू के कहने पर होने वाला नहीं था.... या तो बालचंद को मोटी घुस देनी पडती या किसी बड़े अधिकारी से सिफारिश लगवानी पडती जो दोनों ही उसके बुते के बाहर की चीज थी...
अंशुल को आज भी साफ साफ एक एक शब्द याद है जो उस वक़्त टेबल पर बैठे आदमी ने उसके माँ बाप से कहे थे....
अरे चलो चलो.... निकलो यहां से....
एक बार कह दिया ना तुम्हरा काम नहीं हो सकता....
एक बार का समझ नहीं आता है तुमको?
फिर कहे बार बार अपनी ये मनहूस शकल लेकर बेज्जती करवाने चले आते हो सुबह सुबह?
और कोई काम धंधा नहीं है तुम लोगों को?
चलो अब दफा हो जाओ यहां से....
दूसरा सरकारी आदमी आकर बैठते हुए बोला....
तुम तो ***** मे सरकारी चपरासी हो ना बालचंद? फिर भी तुम्हे सरकारी नियम कायदा समझना पड़ेगा?
अरे या तो हमारे साब के लिए बताई हुई भेंट का बंदोबस्त करो या किसी बड़े ओहदे के अफसर से सिफारिस लगवाओ जिसके पास सरकारी मुहर हो..... तभी तुम्हारा काम हो पायेगा....... समझें?
मुहर...... हां.... मुहर..... एक यही शब्द था जो अंशुल के दिल मे उस दिन घर कर गया था..
कितनी शर्मिंदा हुई थी उसकी माँ पादमा.... घर आने के बाद बेचारी ने जमीन छीन जाने के ग़म मे आंसू की नदिया बहा दी थी......
उस वक़्त अंशुल सिर्फ दस बरस का था उसे अपने सामने हो रही किसी भी चीज को उतनी गहराइ से समझने की अकल नहीं थी लेकिन उसे इतना समझ जरुर आ गया था की कोई बड़ा आदमी जिसके पास मुहर हो वो उसके माँ बाप का काम कर सकता था...
अंशुल ने उस दिन अपनी माँ पदमा को आंसू पोछते हुए कहा था....
रो मत माँ.....
मैं जब बड़ा हो जाऊंगा तो एक बड़ा अफसर बनुगा.. और मुहर वाली नोकरी करूँगा....
और फिर अपनी जमीन सरकार से वापस लेकर आपको दे दूंगा....
और उस गंदे आदमी को सबक भी सिखाऊंगा जिसने आपको रुलाया है.....
आप रोओ मत..... मैं बड़ा होकर सब ठीक कर दूंगा..
पदमा ने उस वक़्त छोटे से आँशु का चेहरा चूमते हुए उसे अपनी छाती से लगा लिया था और बहुत देर तक यूँही बैठी रही थी वो..
मगर वक़्त के साथ अंशुल के दिमाग से मुहर वाली नोकरी करने का ख्याल भी निकाल गया और पदमा के जहन से अंशुल की वो बातें जो उसने बचपने मे कही थी.....
मगर आज अंशुल के जहन मे वो सब फिर से ताज़ा हो व्यक्ति था....
अंशुल ने मस्तु से पूछा - अगर मैंने दोनों पेपर निकाल लिये तो क्या मुझे अपने जिले के ***** मे पोस्टिंग मिलेगी?
मस्तु हसते हुए - पैसे से क्या कुछ नहीं हो सकता अंशु.... यही तो हमारे सिस्टम की सबसे बड़ी खूबी और कमी है.....
अंशुल - **** पैसे और भेज रहा हूँ.... तू आज ही मेरा फॉर्म फीलअप कर दे.... और शाम को किताबें भी ले आना.... मैं घर जाकर दोनों काम एक साथ करुंगा.
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Xforum pr Advertisement bahut jyada aa rhe h yaar kisike pass solution h btana
Flashback ki starting achi hअध्याय 8
मुहर
(पदमा फलेशबैक, भाग -1)
आज भी नींद आ रही है?
तुम्हारे साथ तो मैंने शादी ही गलत कर ली..
तुम्हारे बाप ने उल्टा सीधा बोलकर मुझे फंसा लिया. इतना समय हो गया मैं तो जैसे जीना ही भूल गई हूँ.. अरे जब संभाल नहीं सकते थे तो शादी की ही क्यूँ तुमने?
रोज़ आकर मरियल बुड्ढे की तरह सो जाते हो..
पदमा ने आज बालचंद को अनाप शनाप ना जाने क्या क्या कह दिया था वो दो बच्चों की माँ थी लेकिन अब भी जवान और खूबसूरत थी शारीरिक संरचना मे उसका कोई सानी नहीं था जिसतरह के उभार और कटाव उसके बदन पर थे उसे पाना हर स्त्री की इच्छा होती थी मगर उसकी ये बदकिस्मती थी की बालचंद मे अब मर्दानगी का कोई रस नहीं बचा था बालचंद की शादी जब हुई थी वो तीस साल का था और आज उसकी उम्र पचास पार कर गई थी उसने अठरा साल की नवयौवना पदमा से ब्याह किया था लेकिन कुछ साल बाद ही बालचंद कामरस से विमुख हो गया था.. पदमा ने शादी के अगले साल ही जुड़वा बच्चों को जन्म दिया था जिसका नामकरण बालचंद के पीता मूलचंद ने किया था लड़के का नाम अंशुल और लड़की का नाम आँचल रखा गया था आँचल का विवाह अभी सालभर पहले ही हुआ था और अंशुल अभी अपने कॉलेज के आखिरी साल के इम्तिहान दे रहा था..
आज पदमा की उम्र 39 थी और उसमे काम के प्रति आसक्ति पूरी तरह से भरी हुई थी और वो काम की उतेजना मे जल रही थी जिसे शांत करना बालचंद के बुते जे बाहर था....
पदमा का हाल बिलकुल वैसा था जैसे सवान मे अपने प्रियतम के विराह मे एक नव विवाहित दुल्हन का होता था बदन की आग और सेज का सुनापन उसे कचोट कचोट कर खा रहा था सारा दिन घर के कामो और अपने ख्यालों से अपनी हक़ीक़त को झूठलाते हुए पदमा अपनी ख्वाहिशे अपने मन मे दबा कर जी रही थी जैसे समाज मे महिलाओ को जीना पड़ता है उसे समाज के कायदे मानने पड़ते है उन नियमो के अनुसार आचरण करना पड़ता है उनमे ही सिमट कर रहना पड़ता है भले ही ऐसा करने से उनके भीतर कितना ही कुछ टूट क्यूँ ना जाए उनकी आत्मा कमजोर क्यूँ ना हो जाए मगर महिलाओ के लिए हमारे पुरुषप्रधान समाज ने उन बेड़ियों का निर्माण किया जिसमे अगर एक बार कोई महिला बंध जाए तो उसे पूरा जीवन उसी मे बंध कर निकाल देना पड़ता है उसके लिए अपनी ख़ुशी सुख दुख का कोई अस्तित्व नहीं रह जाता.. ऐसा ही पदमा के साथ भी था.. उसका रूप यौवन माधुर्य बेजोड़ था लेकिन अब इन चीज़ो का उसके लिए कोई महत्त्व नहीं रह गया था जब तक आंचल थी तब तक पदमा उसके साथ बतियाती बात करती और उसका दिन गुजर जाता लेकिन जब से आंचल का ब्याह हुआ था वो बिलकुल अकेली पड़ चुकी थी आंचल के ब्याह के बाद तो जैसे उसकी जिंदगी मे कोई बात करने वाला या उसे समझने वाला कोई रह ही नहीं गया था...
आज होली का दिन था बालचंद अपने छोटे भाई ज्ञानचंद के साथ घर के आँगन मे शराबखोरी कर रहा था हर तरफ गुलाल बिखरा पड़ा था और इस कस्बे मे लोग इस त्यौहार को बड़ी ख़ुशी के साथ मना रहे थे ऐसा लगा रहा था जैसे आज धरती को रंगबिरंगे गुलाल से सजाया जा रहा था महिलाये अपना झुण्ड बनाकर अपने देवरो या रिश्तेदारों को रंग लगा रही थी और कपडे के कोड़े बनाकर उन्हें पिट रही थी वहीं कुछ आदमी भी टोलिया बनाकर अकेली रह जाने वाली भाभी या औरत को पकड़कर जमके रंग लगाने और चिढ़ाने का काम कर रहे थे.... पदमा के मन मे आज बहुत ज्यादा कामुकता भरी हुई थी वो अक्सर ऊँगली से अपनी प्यास बुझाती थी लेकिन आज उसे मौका नहीं मिल पाया था वो रसोई मे खाना बना रही थी.. दोपहर के बारह बजे थे और अब तक बालचंद शराब के नशे मे चूर होकर आँगन मे ही सोफे पर ढेर हो चूका था लेकिन ज्ञानचंद अभी सुरूर मे था वो रह रह कर आँखों से पदमा को भोग रहा था उसका अंदाजा पदमा को हो चूका था लेकिन कामुकता के वाशीभूत होकर पदमा ने ज्ञानचंद को ऐसा करने से नहीं रोका उलटे उसके आँखों से अपने रूप और जोबन का रस पिलाती रही.. आज पदमा को ज्ञानचंद का इस तरह उसे देखना सुख दे रहा था और उसे उसके जवान और खूबसूरत होने का अहसास करवा रहा था सालों से जो उसने महसूस नहीं किया था वो आज महसूस कर रही थी.... अगर बालचंद पदमा को सुखी रखता और उसकी शारीरिक जरुरत पूरी तरता तो अवश्य ही पदमा ज्ञानचंद की इस हरकत पर उसे टोकती या अपने कपडे सही करके ज्ञानचंद के द्वारा किया जा रहा पदमा के रूप का चक्षुचोदन बंद कर देती लेकिन आज उसे इसमें सुख मिल रहा था उसकी लालसा बढ़ रही थी पदमा पहले से ही कामुकता से भरी हुई थी उसपर से इस तरह ज्ञानचंद का उसे देखना बहुत अच्छा लगा रहा था.... ज्ञानचंद एक साधारण कदकाठी वाला, बालचंद की तरह ही आधा गंजा और पुराने तरह के कपडे पहनें वाला आदमी था उम्र पेतालिस के पार थी लेकिन काम वासना से भरा हुआ व्यक्तित्व था ज्ञानचंद का...
पदमा ने आज स्लीव लेस ब्लाउज पहना था जो किसी ब्रा की तरह ही देखने से लगता था और होली मे गंदे होने के डर से पुरानी साडी जो बार बार उसके कंधे से सर कर नीचे आ रही थी आज पदमा और दिनों के मुक़ाबले ज्यादा आकर्षक और कामुक लगा रही थी यही कारण था की ज्ञानचंद भी अपने आप को पदमा के रूप का शिकार होने से खुदको बचा नहीं पाया था.. ज्ञानचंद ने मौका पाकर पदमा से होली खेलने के नाम पर छेड़खानी शुरु कर दी थी जिसे कोई शरीफ औरतों कभी बर्दास्त नहीं करती लेकिन जो औरत काम के अधीन हो उसे शरीफ होने की उम्मीद की जानी व्यर्थ होती है.. ज्ञानचंद ने पदमा की नंगी चिकनी पतली कमर को इस तरह गुलाल से रंग दिया था जैसे जैसे छिंट के महीन सफ़ेद कपडे को रंगा जाता है.. ज्ञानचंद के हाथ कमर से होते हुए पदमा के कंधे तक पहुंच गए थे और रास्ते मे ज्ञानचंद के हाथो ने पदमा की छाती को गुलाल के रंग से रंगीन कर दिया था पदमा इतना सब होने के बाद भी आज अपने देवर ज्ञानचंद को नहीं रोक पाई थी और अब ज्ञानचंद का हाथ उसकी देह को जगह जगह से रंग रहा था जिसका पदमा पूरा मज़ा ले रही थी लेकिन उसकी आवाज़ उससे विपरीत बातें कहलवा रही थी...
उफ्फ्फ देवर जी छोड़िये.. आप क्या कर रहे है.... थोड़ी भी लाज नहीं आती है.... हम शोर मचा देंगे.. छोड़िये हमें...
मचा दीजिये भाभी शोर.... मैं जानता हूँ आप बहुत प्यासी है... भाभी भाईसाब तो शाम से पहले नहीं उठने वाले... यहां हमारे सिवा कोई नहीं है... ऐसा मौका बार बार नहीं मिलता भाभी....
आह्ह.... आप क्या कर रहे है देवर जी.... हमारा ब्लाउज फट जायगा... छोड़िये हमें... जाने दीजिये...
क्यूँ नखरे कर रही हो भाभी... आज तो होली का त्यौहार है.... रंग के साथ आपको थोड़ा अंग भी लगा दूंगा तो क्या बिगड़ जाएगा.... वैसे भी आपका ये रूप बेकार ही जा रहा है... भाईसब को तो बिलकुल कदर नहीं है आपकी....
देवर जी आप अभी नशे मे हो.... आप मेरी कमर छोड़ दीजिये.... देखिये मैं आपके साथ ये सब नहीं कर सकती.... आप जाइये यहां से.... दरवाजा खुला है कोई आ गया तो मेरी शामत आ जायेगी....
अरे भाभी कोई नहीं आएगा अंदर.... सब बाहर होली खेलने मे मस्त है आप तो फालतू ही डर रही हो.... अब ये सब चिंता छोडो और मान जाओ.... मैं भाईसाब से अच्छा ख्याल रखूँगा आपका... आओ ना भाभी...
पदमा ऊपरी तौर पर जुबान से ज्ञानचंद का विरोध कर रही थी लेकिन उसने ज्ञानचंद को अभी तक खुदको छूने से नहीं रोका था ज्ञानचंद ने ऊपर से नीचे तक पदमा को छुआ था जिससे पदमा काफी उत्तेजित हो चुकी थी उसके बदन की आग और बढ़ चुकी थी उसकी योनि से जल प्रवाह तेज़ हो चूका था अब पदमा को किसी भी हाल मे उसका समाधान चाहिए था... ज्ञानचंद ने पदमा को आगे रसोई की पट्टी पर झुकाते हुए पीछे से उसकी साडी उठाकर झंघिया नीचे सरका दी जिससे पदमा की झांटो से घिरी हुई गुलाबी घुफा के दर्शन हो गए थे पदमा का दिल अब ज्ञानचंद का केला लेने को आतुर हो चूका था लेकिन जैसे ही ज्ञानचंद ने अपनी पेंट नीचे की तो पदमा उसके चार इंच के केले को देखकर फिर से दुख के सागर मे दूब गयी थी उसे अपनी गलती का पछतावा हो रहा था उसने आज व्यभिचार किया था लेकिन उसमे भी उसे शारीरिक सुख की अनुभूति नहीं हुई थी उसे खुद पर और ज्ञानचंद पर गुस्सा आ रहा था.. उसका तो ठीक से पदमा की योनि पर लिंग लगा भी नहीं था नशे मे ही ज्ञानचंद ने मुश्किल से चार झटके मारे थे की बस वो वहीं ढेर हो गया पदमा की आँखों से आंशू झलक रहे थे.......
अंशुल आज त्यौहार के मोके पर घर आया था लेकिन ये नज़ारा देखकर उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई थी उसने जो आज अपनी आँखों से देखा था वो अपने सामने मे भी नहीं सोच सकता था उसके दिल मे अपनी माँ और पापा के लिए बहुत सामान था लेकिन उसका सारा सामान आज उसकी आँखों से अंशु बनकर बह निकला था.. आँगन मे खड़ा होकर खिड़की के मुहाने से अंशुल ने अपनी माँ पदमा और चाचा ज्ञानचंद के इस कुकर्म को अपनी आँखों से देखा था उसे समझ नहीं आ रहा था की वो क्या करें? अगर वो उसी वक़्त कुछ करता तो समाज मे उसकी माँ पदमा का चरित्र शोषण होना लगभग तय था.. अंशुल के सामने जो हो रहा था उसमे पदमा की मोन सहमति थी जिसे अंशुल अच्छे से समझता था वरना जो औरत बालचंद पर दिनरात चिल्लाती थी और कभी काबू नहीं आती थी वो ज्ञानचंद जैसे साधारण काया वाले इंसान के काबू मे आ जाती ये नहीं माना जा सकता था.... जब ज्ञानचंद बिना पदमा की योनि मे प्रवेश किये ही झड़ गया तब अंशुल अपनी आँखों मे अंशु लिए वापस घर से बाहर निकल गया और वापस चला गया वहीं पदमा अपनी किस्मत को कोसती हुई बाथरूम मे चली गई और अब उंगलियों से ही अपनी ख़ुशी का मार्ग खोजने लगी.... पदमा को इस बात की जरा भी भनक नहीं लगी थी की उसके बेटे ने रसोई मे जो कुछ हुआ था पूरा नज़ारा आप ई आँखों से देखा था और अब वो पूरी तरफ पदमा की शारीरिक असंतुस्टी का राज़ जानता था.... पदमा जब बाथरूम से बाहर आई तब तक ज्ञानचंद घर से जा चूका था पदमा को अगर ज्ञानचंद अब मिलता तो वो न जाने क्या क्या उसे कह सुनाती और जलील करके घर से निकाल देती लेकिन ज्ञानचंद को कुछ ही पलो मे अपनी करनी का अहसास हो गया था और वो लड़खड़ाते हुए बाहर चला गया था.....
हारे रे किस्मत... पदमा सोच रही थी की उसने आज पहली बार व्यभिचार किया था और वो भी उसे देह का सुख नहीं दे पाया था उसने ऐसे कोनसे पाप किये है जो उसे ये सब देखना पड़ रहा है आखिर हर औरत अपने पति से शारीरिक सुख की कामना रखती है मगर जब उससे वो सुख नहीं मिलता तो वो कैसे अपना गुजारा करें यही सोचते हुए पदमा आज उदासी से आंशू बहती हुई बिस्तर के एक ओर लेटी हुई नींद के आने का इंतजार कर रही थी... वहीं दूसरी ओर अंशुल अब तक वापस बड़े शहर आ चूका था ओर अपने दोस्त मनसुख (मस्तु) के रूम पर रुक गया था उसे भी नींद का इंतज़ार था मगर नींद उसकी आँख से कोसो दूर थी अंशुल मे मन मे अजीब अजीब ख्याल ओर प्रशन उठ रहे थे जिसके जवाब उसके पास नहीं थे उसे समझ नहीं आ रहा था कैसे उसकी माँ पदमा इस तरह व्यभिचारिणी बन सकती है उसने आज जो देखा वो उसके लिए कतई बर्दाश करने वाली चीज नहीं थी मगर वो कर भी क्या सकता था अगर वो अपनी माँ को उस हाल मे पकड़ लेता ओर चाचा से लड़ाई करता तो उसकी माँ उससे ऐसा प्यार जैसा की वो करती आई है क्या आगे भी करती? क्या कभी पदमा वापस अंशुल से आँख मिला के बात कर पाती? क्या समाज मे पदमा की बदनाम नहीं होती? क्या उसका परिवार एक साथ रह पाता? अगर अंशुल उस वक़्त कुछ करता तो निश्चित ही उसके परिणाम बुरे या कहे बहुत बुरे हो सकते थे.... कब से ऐसा चल रहा होगा? क्या माँ ओर भी किसी के साथ? छी छी... मैं ये क्या सोच रहा हूँ? ये सब गलत है...
आज नींद नहीं आ रही क्या?
आशु ख्यालो मे गुम था की उसके दोस्त मस्तु ने उससे पूछा....
नहीं भाई... सर थोड़ा भारी हो रहा है...
टेबल के दूसरे दराज मे सर दर्द की दवा है एक गोली लेले ठीक हो जाएगा.. कहते हुए मस्तु पेशाब करने चला गया.....
अंशुल ने गोली ले ली और वापस लेट गया.. उसका फ़ोन भी स्विच ऑफ हो चूका था जिसे उसने अभी चार्ज करने के लिए लगाया था....
मस्तु बाथरूम से वापस आकर अंशुल के बगल मे लेट गया अंशुल से कहने लगा - भाई वो विशाल से बात की क्या तूने? उसका फ़ोन आया था शाम को.... कह रहा था तेरा फ़ोन बंद है...
अंशुल - नहीं वो चार्ज खत्म हो गया था तो फ़ोन चार्ज करने के वक़्त ही नहीं मिला.... अभी जस्ट चार्ज के लिए लगाया है... तू तेरा फ़ोन दे अभी बात कर लेता हूँ.... वो ट्रेडिंग के पैसे के बारे मे बात कर रहा होगा...
मस्तु लॉक खोलकर अपना फ़ोन देते हुए - ले भाई.... तुम्हारा भी सही है.. कोई पूरा दिन मेहनत करके भी कुछ नहीं कमाता और तुम दोनों बैठे बैठे पैसे छाप लेते हो...
अंशुल फ़ोन लेते हुए - कहा भाई.... ये तो हमारे कुछ तुक्के सही बैठ जाते है बस.. वरना तूने तो देखा ही लोगों को ऑनलाइन ट्रेडिंग मे बर्बाद होते हुए...
मस्तु तकिया लगाते हुए - ठीक है भाई... अच्छा मुझे नींद आ रही है तू लाइट बंद कर देना.... वरना कहीं मकान मालिक ने दिख लिया तो सुबह रोयेगा...
अंशुल मस्तु के फ़ोन से विशाल को फ़ोन करता है और उनके बीच बातें काफ़ी लम्बी चलती है जिसमे उसके बीच प्रॉफिट का हिसाब और नई ट्रेड की बातें
हो रही होती है अंशुल ने रूम की लाइट बंद कर दी थी और वापस मस्तु के पास बिस्तर पर आकर लेट गया था मस्तु की आँख लगा चुकी थी और अब करीब एक घंटे बाद अंशुल ने विशाल से बात करके फ़ोन काट दिया था लेकिन अब भी उसका मन नहीं लगा रहा था तो अंशुल ऐसे ही मस्तु का फ़ोन देखने लगता है जिसमे पहले वो मस्तु के फ़ोन मे कुछ देर कैंडी क्रश खेलता है फिर उसके फ़ोन मे व्हाट्सप्प और इंस्टा चलाने लगता है फिर कुछ देर बाद अंशुल मस्तु के फ़ोन की गैलरी मे पहुंच जाता है जहाँ ऐप लॉक लगा हुआ था एक दो बार रैंडम पासवर्ड डालकर अंशुल चेक करता तो गैलरी नहीं खुलती लेकिन अंशुल जब मस्तु की बर्थडेट डालकर गैलरी ओपन करता है तो गैलरी ओपन हो जाती है जहाँ मस्तु की बहुत सारी पिक्स होती है जिसमे वो कभी कॉलेज तो कभी किसी घूमने वाली जगह मे था कुछ मे दोस्तों के साथ अंशुल यूँही पीछे देखते हुए नीचे आता है तो एक फोल्डर उसे नज़र आता है जिसे ओपन करते ही उसकी आँखे फटी की फटी रह जाती है..... उस फोल्डर मे मस्तु एक 45 साल के लगभग की औरत के साथ था और दोनों आपस मे बहुत नजदीक थे दोनों की बहुत सारी पिक्स और वीडियो थे जिसे अंशुल ने इयरफोन लगा कर भी देखा था... अंशुल की आंखे फटी की फटी रह गई थी वो इस औरत को जानता था और न जाने कितनी बार आशीर्वाद लेने के लिए उसके पैर भी छू चूका था.. अंशुल को आज ये दूसरा झटका मिला था और उसे अब इस पर भी भरोसा नहीं हो रहा था अंशुल ने अपना फ़ोन ऑन करके वो सारी पिक्चर्स और वीडियोस अपने फ़ोन मे ट्रांसफर कर ली और मस्तु का फ़ोन वापस जैसा था वैसा करके वही रख दिया.. अंशुल को अब नींद नहीं आने वाली थी उसके सर ओर आज दो बोम गिरे थे एक अपनी माँ पदमा के व्यभिचार का और दूसरा अपने दोस्त मस्तु के अवैध सम्भन्ध का...
रसुबह के पांच बज रहे थे और अंशुल रूम की लाइट ऑन करके बैठा हुआ था उसके सर मे बहुत सी बातें चल रही थी जो उसे सोने नहीं दे रही थी रातभर वो जागा था मस्तु की नींद भी खुल चुकी थी और वो अंशुल को इस तरह बैठा हुआ देखकर चौंक चूका था....
क्या हुआ आशु... सर दर्द ठीक नहीं हुआ? मस्तु ने पूछा तो अंशुल ने उसकी और देखते हुए उतर दिया - नहीं....
मस्तु नींद के बाद की ऊँगाई से जागते हुए आंखे मलकर बोला - रुक भाई मे चाय बना देता हूँ....
अंशुल बेरुखी से - रहने दे.... मन नहीं है चाय पिने का...
मस्तु अंशुल की बात सुनकर बाथरूम चला जाता है और अच्छी तरह मुँह हाथ धोकर वापस आ जाता है.. मस्तु इस बार अंशुल से बिना कुछ बोले चेयर पर बैठकर किताब उठकर पढ़ने लगता है शायद इतिहास की किताब होगी.... करीब डेढ़ घंटे बाद भी अंशु जब उसी तरह बैठा रहता है तो मस्तु इस बार उसे देखकर झाल्लाते हुए बोलता है - अरे भाई हुआ क्या है कुछ भोकेगा? या फिर रंडवि भाभी बनकर बैठा रहेगा? तुमको देखकर साला हमको भी डिप्रेशन हो रहा है अब....
अंशुल इस बार मस्तु से बोला - साले शर्म नहीं आती तुझे?
मस्तु - अबे किस बात की शर्म बे? कमरे का किराया और बाकी खर्चा पूरा तू देता है तो क्या हुआ? ****** बनुगा तो सूत समेत ले लेना.... इस बार प्रिलियम्स निकल गया है... मेंस और इंटरव्यू भी निकाल जाएगा देखना.... फिर जो चाहिए ले लेना....
अंशुल गुस्से से - भोस्डिके मैं सारी रात जागकर सुबह तुझसे किराये की बात करूंगा? तूने जो गुल खिलाये है मैं उसकी बात कर रहा हूँ.... साले तुझे जरा भी शर्म नहीं आई ये सब करते हुए वो भी........ छी....
मस्तु इस बार अंशुल की बात सुनकर थोड़ा घबराह जाता है लेकिन उसने तो अपने फ़ोन पर ऐपलॉक लगाया था तो फिर कैसे? नहीं नहीं... जरुर ये कोई और बात कर रहा होगा.. मस्तु ये सब सोचकर अंशुल से कहता है....
मस्तु - अबे पहेलियाँ ही बुझाता रहेगा या साफ साफ कुछ कहेगा भी? तुम्हारा ये रंडी रोना हमारे समझ के बाहर है.... हमने ऐसा क्या कर दिया जो तुम्हे रातभर नींद नहीं आई? कुछ बताएगा?
अंशुल गुस्से मे - अरे मादरचोद..... तू सब जानता है जनता है मैं क्या बात कर रहा हूँ.... महीने के आखिर मे 3-4 दिन तू अपनी अम्मा को इसिलए मधुबनी से बुलाता था ना.... और इस सबका खर्चा भी मुझिसे लेता था.... साले तुझसे बड़ा मादरचोद मैंने आज तक नहीं देखा.... थोड़ी तो शर्म करता हराम के जने...
मस्तु के कान मे जैसे ही अंशुल की बात गई वो उठकर सबसे पहले कमरे का दरवाजा बंद कर देता है और अंशुल के पैर पकड़ लेता है...
भाई.... भाई.... यार तुम्हारे पैर पकड़ते है... किसीसे कुछ मत कहना.. हमारी बहुत बदनामी होगी... किसीको मुँह दिखाने के काबिल नहीं रहेंगे भाई प्लीज...
अंशुल - तुझसे ये उम्मीद नहीं थी.... साले तूने अपनी भोली भली माँ को ही अपनी हवस का शिकार बना लिया? बेचारी को क्या क्या सहना पड़ा होगा? तेरे जैसा बेटा होने से तो अच्छा होता बेचारी बाँझ ही रह जाती... तू वाक़ई मे बहुत गंदा इंसान है मस्तु.... मैं तुझे देखना भी नहीं चाहता है.... मैं जा रहा हूँ और आज के बाद तेरी शक्ल भी नहीं देखना चाहता... तेरी माँ ने कितनी बार मुझे अपने हाथ का खाना खिलाया है प्यार से मेरा दुख सुख साझा किया है मैंने कितनी बार उसके पैर छुए है.... मैं अपनी माँ की तरह ही उसे सम्मान देता हूँ लेकिन तूने? तूने तो रिस्तो को तार तार ही कर दिया मस्तु....
मस्तु अंशुल के सामने हाथ जोड़ते हुए - भाई... प्लीज मुझे माफ़ कर दे.... मैं जानता हूँ ऐसी गलती माफ़ी के लायक नहीं है लेकिन इसमें सिर्फ मेरे अकेले की गलती है... अगर तू ऐसा सोचता है तो तू भी गलत है.... मेरी माँ भी मेरे साथ उतनी ही दोषी है जितना की मैं.... और इस रिश्ते की शुरुआत उसीने की थी....
अंशुल - खुदको बचाने के लिए कुछ भी मत बोल मस्तु.... मैं अच्छी तरह जानता हूँ आंटी को.... उनके जैसी सीधी सादी घरेलु औरतों कभी ऐसी हरकत खुदसे नहीं कर सकती.... जरुर तूने ही उन्ही फुसलाया होगा और इस सब मे खींचा होगा...
मस्तु - तुझे मेरी बात पर विश्वास नहीं है तो ठीक है... मै अभी तुझे सबूत दे सकता हूँ.. तब तो तू मेरी बात पर विश्वास करेगा....
अंशुल - मैंने तेरे फ़ोन मे सब देख लिया है मस्तु... अब क्या सबूत बाकी है देने को?
मस्तु अंशुल को बैठाते हुए - भाई मैं झूठ नहीं बोल रहा..... उन्होंने ही मेरे साथ इस सब की शुरुआत की थी ताकि मेरा ध्यान पढ़ाई से ना भटके और मैं जल्दी से एक बड़ा अफसर बनकर घर संभाल सकूँ.... तू अगर यक़ीन नहीं होता तो रुक मैं अभी तुझे यक़ीन दिलाता हूँ.....
मस्तु अपना फ़ोन लेकर अपनी माँ चमेली को फ़ोन करता है.....
चमेली फ़ोन उठाकर - हेलो बेटा.... आज सुबह सुबह कैसे याद आ गई अपनी माँ की बुर की.... लंडवा मे ज्यादा खुजली चल रही है क्या? कहो तो मिटाने आये?
अंशुल चमेली की बात सुनकर मस्तु की तरफ हैरानी से देखने लगता है उसने अभी जो सुना उस पर उसे विश्वास कर पाना कठिन था लेकिन सत्य यही था जो उसने अभी सुना, अंशुल को अब मस्तु की बात पर यक़ीन हो चूका था.......
मस्तु - नहीं माँ.... वो हम सिर्फ इतना कह रहे थे की इस बार जब आप यहां आइयेगा तो आचार लाना ना भूलियेगा.... खाने की बहुत इच्छा होती है...
चमेली - चिंता मत कर बेटा... कुछ दिनों की बात है.... इस बार जब आउंगी तो अपनी बुर पर आचार लगाकर चटवाउंगी तुझे.... वैसे पढ़ाई तो सही चल रहा है ना तुम्हारी? अपना ध्यान कहीं भटकने मत देना बेटा.... अगर चाहिए तो अपनी माँ की चुत 8-10 बार एक्स्ट्रा चोद लेना लेकिन पढ़ाई मे पूरा ध्यान देना.... हमें अफसर की माँ बनना है.... ठीक है ना?
मस्तु - पढ़ाई ही कर रहे थे माँ....
चमेली - अच्छा.... तुम्हारा दोस्त आशु केसा है?
मस्तु - वो ठीक है माँ.. बाथरूम मे है....
चमेली - हम्म्म.... बहुत मासूम है बेचारा.... बाहर आये तो बात करवाना.....
मस्तु फ़ोन अंशुल की तरफ बढ़ाते हुए - लो आ गया बात कर लो..
अंशुल को जो हो रहा था कुछ समझ नहीं आ रहा था वो तो किसी गहरी सोच मे डूबा हुआ था जहाँ से मस्तु ने उसे निकालते हुए फ़ोन दे दिया था अंशुल इस वक़्त क्या बात करेगा और किस तरह बात करेगा ये बड़ा सवाल था लेकिन फिर भी अंशुल ने फ़ोन ले लिया और खुदको सँभालते हुए बोला....
अंशुल फ़ोन लेकर - नमस्ते आंटी....
चमेली - अरे खुश रहो बेटा.... ककैसे हो? अपनी आंटी की याद करते हो या नहीं?
अंशुल - बस आंटी अभी आपको ही याद कर रहा था.....
चमेली हसते हुए - कहा याद कर रहे थे? बाथरूम मे?
अंशुल - अरे आंटी आप भी ना.... अच्छा कब आ रही है आप? मस्तु बुला रहा था आपको....
चमेली - अभी कहा बेटा.... बहुत काम है यहां... और इस महीने मे अब छुटि भी नहीं मिलेगी वहा आने के लिए....
अंशुल - आप काम करती हो?
चमेली - अब बिना काम के कैसे पेट भरेगा बेटा? काम तो करना ही पड़ेगा....
अंशुल - आंटी आप पैसे की चिंता मत करो मैं अभी कुछ पैसे भिजवा देता हूँ आप बस जल्दी से यहां आ जाओ.... मुझे आपके हाथो का खाना खाना है...
चमेली - ठीक है बेटा.... मैं इस इतवार को ही आ जाउंगी.....
अंशुल फ़ोन मस्तु को दे देता है और टेबल पर रखी बोतल से पानी पिने लगता है...
मस्तु -अच्छा माँ अब फ़ोन रखते है....
चमेली - ठीक है बेटा.... फ़ोन कट हो जाता है...
मस्तु - भाई अब तो यक़ीन हो गया.. मैंने कहा था ना की मैं अकेला दोषी नहीं हूँ....
अंशुल उदासी से - भाई एक बात समझायेगा? आखिर औरत को चाहिए क्या होता है?
मस्तु - क्या हुआ भाई? ऐसे क्यूँ बात कर रहा है?
अंशुल मस्तु को अपने दिल की सारी उलझन बता देता है और ये भी बता देता है की कैसे उसने अपनी माँ पदमा देवी को अपने चाचा के साथ अधूरा व्यभिचार करते देखा था अंशुल के दिल की सारी बातें मस्तु सुन रहा था और समझ रहा था मस्तु उसी की उम्र का लड़के था लेकिन उसमे समझ अंशुल से ज्यादा थी उसे अंशुल की मनोदशा और उसके साथ होने घटने वाली व्यथा अच्छे से समझ आ रही थी और उसका समाधान भी दिखाई दे रहा था लेकिन ये समाधान क्या अंशुल को स्वीकार था? कहा नहीं जा सकता क्युकी जिसतरह से अंशुल ने मस्तु और चमेली के रिश्ते पर आपत्ति जताई थी वो कैसे मस्तु के समाधान पर सहमति जता सकता था... अंशुल की बातें सुन और समझकर मस्तु अंशुल को दिलासा दे रहा था और जल्दी ही उसकी परिस्थिति बदल जाने की बात कह रहा था...
मस्तु - भाई मैं तेरी परेशानी समझ सकता हूँ.... ये तो हर दूसरे घर की कहानी है.. आज कहीं भी देख लो महिलाओ को अगर काम सुख नहीं मिलता तो वो किसी ना किसी के जाल मे फंस ही जाती है.... तुम्हे क्या लगता है मेरी माँ बड़ी साफ सुथरी है? मुझसे पहले उसके कई आशिक थे.. उन्होंने अपनी जुबान से हमें अपना राज़ बताया है वो भी इसी बिस्तर पर....
लेकिन जब से मेरे साथ उसका रिस्ता बना है तब से उन्हें कहीं बाहर मुँह मारने की जरुरत नहीं पड़ी उसके सारे बाहरी रिश्ते ख़त्म हो गए.... भाई बुरा मत मानना मगर अगर तुम चाहते हो की तुम्हारा घर बाहरी लोगों से बचा रहे तो तुमको ही कुछ करना होगा....
अंशुल चुपचाप मस्तु की बात सुन रहा था और उसे उसकी बातें कुछ कुछ समझ भी आ रही थी जिससे वो चाहकर भी नहीं बच सकता था....
अंशुल - भाई मगर मैं अपनी ही माँ के साथ..... नहीं यार मैं सपने मे भी ऐसा कुछ नहीं सोच सकता.... मैं ऐसा कुछ करने से पहले मरना पसंद करूंगा....
मस्तु - मैं समझ सकता हूँ आशु.... तुम्हारे लिए ये आसान नहीं होगा... मगर अगर तुम्हे अपना घर बाहरी लोगों से बचाना है तो मेरी बात को एक बार फिर सोचना भाई.... क्युकी बाद मे पश्चिताप के सिवा और कुछ नहीं होगा..
अंशुल मुरझाई आवाज़ मे - नहीं मस्तु.... मैं ऐसा नहीं कर सकता... मैं अपनी माँ के साथ ऐसे रिश्ते मे नहीं बंध सकता जहाँ प्रेम के स्थान पर वासना भरी हो.. जहाँ शारीरिक सुख भोगने के लिए मानसिक सुख की बली चढ़ानी पड़े.... और वैसे भी इस बात की क्या गारंटी है मैं ये सब कर पाउँगा? मैंने आज तक जो भी किया है मैं उसमे नाकाम ही रहा हूँ.... फिर कैसे इस काम कर सकता हूँ....
मस्तु - भाई अपनेआप पर शक मत कर..... तुमने आज तक हर काम अधूरा छोड़ा है क्युकी उसमे तुम्हारा नहीं मन था.... मगर मैं जानता हूँ तुम इसे अच्छे से पूरा कर सकते हो.... जहाँ तक बात प्यार की है तो देखना इसके बाद तुम्हारे रिश्ते मे गहराइ और सोच मे पवित्रता आएगी.... तुम पहले की तुलना मे अधिक प्रेम करोगे अपनी माँ से..... और ये हम दावे के साथ कह सकते है... आशु हमने एक दो बार तुम्हे तुम्हारी प्रकर्तिक हालत मे देखा है और हम सर्त लगा सकते है की तुम किसी भी औरत को खुश रख सकते हो...
अंशुल - तुमने कब मुझे नंगा देख लिया?
मस्तु - भाई तुम्हे कितने बार बोले थे बाथरूम का दरवाजा लगा कर नहाना कर... अब नज़र पड़ ही जाती है...
अंशुल - तुम्हे सच मे लगता है मैं अपनी माँ को खुश रखता हूँ जैसे तुम आंटी को रखते हो?
मस्तु अपना लिंग निकालते हुए - भाई मेरा 7 इंच लम्बा और ढाई इंचाई मोटा है.... और मुझे लगता है की तुम्हरा मुझसे ज्यादा बड़ा है.... इसलिए तुम अपनी तो क्या मेरी माँ को भी खुश रख सकते हो... किसी भी लड़की को खुश रखा सकते हो...
अंशुल मस्तु का देखकर अपना भी निकाल लेता है और मस्तु उसे देखकर कहता है - कहा था ना भाई.... देखने लगता है 8-9 इंच से कम लम्बा नहीं होगा और 3 साढ़े 3 इंच से कम मोटा नहीं होगा....
अंशुल अपना वापस अंदर डाल लेता है...
अंशुल - पर भाई शुरुआत कैसे करूंगा? मेरी तो हिम्मत ही नहीं होगी कुछ करने की.... समझ नहीं आ रहा क्या कहूंगा माँ से? अगर उन्हें मेरी किसी बात का बुरा लगा गया तो? मुझे तो बहुत डर लग रहा है... कुछ समझ नहीं आ रहा मस्तु....
मस्तु - भाई... अभी से इतना डर? तू सबसे पहले तो दिल से डर निकाल दे... समझा? और जाते ही सब थोड़ी होगा.... भाई धीरे धीरे शुरुआत करनी होगी.... तुमने बताया तुम्हारी माँ पूरा दिन घर पर अकेली रहती तो अकेले बोर हो जाती होगी दिल नहीं लगता होगा.... तू उनसे बात करना शुरु कर किसी भी बारे मे... सारा दिन आगे पीछे घूम.... उनका ख्याल रख जैसे उनके अलावा तेरी लाइफ और कुछ है ही नहीं... फिर देखना सब अपने आप हो जाएगा.... पर एक बात याद रखना आशु.... कभी भी जल्दबाजी मत करना वरना सब बिगड़ जाएगा....
अंशुल - मुझसे हो पायेगा ये सब?
मस्तु - सब होगा..... हर औरत को पैसो से प्यार होता है तू थोड़ा बहुत उनपर खर्चा करेगा उन्हें सर सपाटा कराएगा तो सब होगा....
अंशुल अपना फ़ोन उठाते हुए - समझ गया मस्तु...... अच्छा पैसे भेज रहा हूँ तेरे **** पर.... आंटी को इस बार एक बढ़िया सी महँगी बनारसी साडी दिलवा देना मेरी तरफ से... और एक अच्छा सा मोटा मुलायम गद्दा भी खरीद लेना.... बेचारी चमेली आंटी इस पुराने ठोस बिस्तर पर रातभर परेशान हो जाती होंगी....
मस्तु - थेंक्स भाई.... देखना एक दिन तेरा सारा अहसान सूत समेत वापस करूंगा...
अंशुल - पहले ****** बन तो जा....
मस्तु - मैं तो बन जाऊंगा भाई तू भी कुछ सोच ले.... एक छोटी मोटी सरकारी जॉब की तयारी तू भी कर ले...
अंशुल हसते हुए - मुझसे कहा तयारी होगी भाई तू तो जानता है मैं पढ़ाई मे कितना तेज़ हूँ.....
मस्तु - भाई तेरा ****** सब्जेक्ट बहुत स्ट्रांग है ****** मे वेकन्सी निकली है फॉर्म लगा दे थोड़ी सी त्यारी करेगा तो निकाल लेगा... और एक बार पहला पेपर निकला तो असद भाई का बहुत स्ट्रांग जुगाड़ है ऊपर तक.... दूसरे पेपर मे पैसे देके सब हो जाएगा....
अंशुल - भाई जितनी तनख्वाह मिलेगी उतना मैं वैसे ही कुछ दिनों मे ट्रेडिंग से कमा लूंगा.... क्यूँ फालतू अपना सर खर्चा करू इन सब मे? वैसे भी कोनसे बड़े ओहदे की नोकरी होगी? ज्यादा से ज्यादा किसी अफसर की चाटने का काम मिलेगा....
मस्तु - तुमने ठीक से नहीं सुना भाई.... ये ****** वाली नौकरी है.. लोग तुम्हारे नीचे काम करेंगे.... तुम्हरे कहने पर काम करेंगे.... तुम्हारे पास अपने से नीचे के लोगों को ससपेंड करने की पावर होगी....
तुम्हारे नाम की मुहर लगेगी सरकारी कागज पर....
अंशुल मुहर शब्द सुनकर अपनी पुरानी याद के सागर मे डूब जाता है जहाँ उसे एक सरकारी दफ़्तर याद आता है जहा वो अपने बचपन मे अपनी माँ और पापा के साथ गया था..
हर तरफ फाइल्स के ढेर और मोटी तोंद लटकाए सरकारी कर्मी उसकी आँखों के सामने आज भी उसी तरह बैठे थे जैसे की बचपन मे उसने देखा था..
अपनी जमीन के एक छोटे से काम के सिलसिले मे दर्जनों बार अंशुल को कभी बालचंद तो कभी पदमा के साथ उस सरकारी दफ़्तर के चक्कर लगाने पड़े थे...
ना जाने कितनी ही बार अंशुल ने छोटे मोटे सरकारी नौकरो से अपने माँ बाप को खरी खोटी सुनते देखा था घुस नहीं दे पाने के कारण वो जमीन वापस न मिल सकती थी..
बालचंद खुद भी एक दफ़्तर मे सरकारी चपरासी था लेकिन उसकी पहुंच उसीके कद वाले लोगों तक थी दफ़्तर मे कोई उसे मुँह तक नहीं लगाता था तो बड़े बाबू से शिफारिश करना भी उसके बस की बात नहीं थी और वैसे भी ये काम किसी बाबू के कहने पर होने वाला नहीं था.... या तो बालचंद को मोटी घुस देनी पडती या किसी बड़े अधिकारी से सिफारिश लगवानी पडती जो दोनों ही उसके बुते के बाहर की चीज थी...
अंशुल को आज भी साफ साफ एक एक शब्द याद है जो उस वक़्त टेबल पर बैठे आदमी ने उसके माँ बाप से कहे थे....
अरे चलो चलो.... निकलो यहां से....
एक बार कह दिया ना तुम्हरा काम नहीं हो सकता....
एक बार का समझ नहीं आता है तुमको?
फिर कहे बार बार अपनी ये मनहूस शकल लेकर बेज्जती करवाने चले आते हो सुबह सुबह?
और कोई काम धंधा नहीं है तुम लोगों को?
चलो अब दफा हो जाओ यहां से....
दूसरा सरकारी आदमी आकर बैठते हुए बोला....
तुम तो ***** मे सरकारी चपरासी हो ना बालचंद? फिर भी तुम्हे सरकारी नियम कायदा समझना पड़ेगा?
अरे या तो हमारे साब के लिए बताई हुई भेंट का बंदोबस्त करो या किसी बड़े ओहदे के अफसर से सिफारिस लगवाओ जिसके पास सरकारी मुहर हो..... तभी तुम्हारा काम हो पायेगा....... समझें?
मुहर...... हां.... मुहर..... एक यही शब्द था जो अंशुल के दिल मे उस दिन घर कर गया था..
कितनी शर्मिंदा हुई थी उसकी माँ पादमा.... घर आने के बाद बेचारी ने जमीन छीन जाने के ग़म मे आंसू की नदिया बहा दी थी......
उस वक़्त अंशुल सिर्फ दस बरस का था उसे अपने सामने हो रही किसी भी चीज को उतनी गहराइ से समझने की अकल नहीं थी लेकिन उसे इतना समझ जरुर आ गया था की कोई बड़ा आदमी जिसके पास मुहर हो वो उसके माँ बाप का काम कर सकता था...
अंशुल ने उस दिन अपनी माँ पदमा को आंसू पोछते हुए कहा था....
रो मत माँ.....
मैं जब बड़ा हो जाऊंगा तो एक बड़ा अफसर बनुगा.. और मुहर वाली नोकरी करूँगा....
और फिर अपनी जमीन सरकार से वापस लेकर आपको दे दूंगा....
और उस गंदे आदमी को सबक भी सिखाऊंगा जिसने आपको रुलाया है.....
आप रोओ मत..... मैं बड़ा होकर सब ठीक कर दूंगा..
पदमा ने उस वक़्त छोटे से आँशु का चेहरा चूमते हुए उसे अपनी छाती से लगा लिया था और बहुत देर तक यूँही बैठी रही थी वो..
मगर वक़्त के साथ अंशुल के दिमाग से मुहर वाली नोकरी करने का ख्याल भी निकाल गया और पदमा के जहन से अंशुल की वो बातें जो उसने बचपने मे कही थी.....
मगर आज अंशुल के जहन मे वो सब फिर से ताज़ा हो व्यक्ति था....
अंशुल ने मस्तु से पूछा - अगर मैंने दोनों पेपर निकाल लिये तो क्या मुझे अपने जिले के ***** मे पोस्टिंग मिलेगी?
मस्तु हसते हुए - पैसे से क्या कुछ नहीं हो सकता अंशु.... यही तो हमारे सिस्टम की सबसे बड़ी खूबी और कमी है.....
अंशुल - **** पैसे और भेज रहा हूँ.... तू आज ही मेरा फॉर्म फीलअप कर दे.... और शाम को किताबें भी ले आना.... मैं घर जाकर दोनों काम एक साथ करुंगा.
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Xforum pr Advertisement bahut jyada aa rhe h yaar kisike pass solution h btana
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