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Incest आशु की पदमा

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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Alka Sharma

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अध्याय 9
घर वापसी
(फ़्लैशबैक भाग -2)



विशाल - आज तक का अपना कंबाइन प्रॉफिट है ****** इसमें से आधा मेने अपने और आधा तेरे दोनों अकॉउंट में बराबर ट्रांसफर कर दिया है.... ठीक है भाई अब तक का अपना हिसाब बराबर, अब कल से फ्रेश स्टार्ट होगा...
नहीं भाई मैं गाँव जा रहा हूँ आज... तू अकेला ही संभाल अब ये सब...
क्यों भाई? इतना अच्छा तो चल रहा है सब.. फिर अचानक से गाँव क्यों जा रहा है? तुझे तो करोडो कमाने थे ना.. बड़ी गाडी घर लेना था.. फिर इतने से पैसे से कैसे काम चला लेगा?
भाई पैसे से भी जरुरी चीज़े है दुनिया में.... और वैसे भी हफ्ते में एक-आदि ट्रेड तो मैं तेरे साथ फ़ोन पर भी उठा सकता हूँ.... और तू जानता मेरा अंदाजा कितना सटीक होता है.. उतने से अपना काम हो जाएगा... पर अब गाँव जाना जरुरी है...
ठीक है अंशुल.... जैसा तू चाहे.. तेरे फ़ोन को क्या हुआ? बंद आ रहा था अब भी बंद है....
कुछ नहीं यार... कल चार्ज नहीं था और सुबह हाथ से छूट गया तो टूट गया....
भाई आजकल बहुत अजीब हो रहा है तेरे साथ... मेरे पास एक्स्ट्रा फ़ोन है तू चाहे तो उसे कर ले...
नहीं यार.... अभी बाइक लेनी है तो साथ न्यू फ़ोन भी ले लूंगा... चल निकलता हूँ...

अंशुल न्यू फ़ोन और बाइक दोनों खरीद लेता है और मस्तु से किताबें लेकर अपने कस्बे जिसे बड़े शहर में सब गाँव ही कहते है चला देता है.....

रात के 9 बज रहे थे.. पदमा ने बालचंद को खाना परोस कर टीवी ऑन कर दिया था बालचंद ने हमेशा की तरह गाने का चैनल लगा दिया था और आराम से आँगन में बैठा खाना खा रहा था, खाना खाने के बाद बालचंद अंदर चला गया और थकावट के आगोश में उसे जल्दी ही नींद आ गई पदमा इस वक़्त रसोई का काम करके निपटी ही थी दरवाजे दस्तक हुई....

इस वक़्त कौन आया होगा? सोचती हुई पदमा रसोई से निकलकर अपनी साडी के पल्लू से अपने पसीने पोछती हुई दरवाजे की तरफ बढ़ी और दरवाजा खोला और अपने सामने अपने बेटे अंशुल को खड़े देखा, अंशुल को अपने सामने खड़े देखकर पदमा ख़ुशी से चहक उठी थी मानो उसकी कोई मन्नत पूरी हो गई हो.. आज पुरे 2 साल बाद अंशुल पदमा की आँखों के सामने था, आखिर बार जब वो यहां था तो उसकी जुड़वाँ बहन आँचल की शादी थी शादी के तुरंत बाद ही अंशुल पदमा से बिना मिले शहर चला गया था और उसके बाद आज पदमा अंशुल को देख रही थी......

आशु..... कहते हुए पदमा ने अंशुल को गले से लगा लिया...
अंशुल ने जिस पदमा को कल व्यभिचार के जाल में फंसा हुआ देखा था आज वो इतने प्रेम और मातृत्व के साथ उसे अपने गले से लगाए हुई थी मानो इस धरती की सबसे पावित्र स्त्री हो.. पदमा की ममता में कोई मिलावट न थी.. कितना निश्चिंल प्रेम था पदमा के मन में अंशुल के लिए.. अंशुल को इस बात का अहसास हो रहा था और वो सोच रहा था अगर कल वो अपनी माँ को उस हालत में पकड़ लेता तो क्या उसे ये प्रेम नसीब होता? बिलकुल भी नहीं.. वो यहां अपनी माँ को बाहरी लोगों से बचाकर अपना प्यार देने आया था.. अंशुल पदमा को अपनी माँ के साथ साथ एक स्त्री भी मानने लगा था जिसे शारीरिक सुख की कामना थी और वो सुख अंशुल देने के लिए वापस आया था..
पदमा के गले से लगे हुए अंशुल ने अपने दोनों हाथो को पदमा के पीछे लेजाकर पदमा को भी उसी सहजता और ताकत से साथ अपने सीने में क़ैद कर लिया था जैसे पदमा ने उसे किया हुआ था.... हाय... अंशुल के मन में सिर्फ यही एक शब्द उठा था... आज अंशुल अपनी माँ पदमा की देह की सुगंध ले रहा था उसकी नाक पदमा के गले की तरफ थी जहाँ पदमा की खुली हुई जुल्फों से होती हुई बाहर उठती उसकी देह की खुशबु अंशुल की नाक से होती हुई उसके बदन में उतेजना भरने का काम कर रही थी... वो उसी तरह से अपनी माँ पदमा को बाहों में भरे तब तक खड़ा रहा जब तक की पदमा ने उसे अपनी क़ैद से आजाद न किया था... अंशुल इन कुछ पल में पदमा के बदन ने नाप ले चूका था उसके बदन की खुश्बू से वाक़िफ़ हो चूका था.. उसके रूप का अध्यन कर चूका था....

यूँ ही कुछ देर अंशुल को गले से लगाने के बाद पदमा ने उसे अपने से अलग कर दिया तो अंशुल ने झुककर पदमा के पैर छुए... मानो वो जो कार्य करने वाला था जीसमे रिश्ते-नाते और समाज की नियमावली छीन-भीन होने वाली थी उसके लिए पदमा से आशीर्वाद और माफ़ी एक साथ मांग रहा हो....
पदमा मुस्कुराते हुए - अरे अरे.... तू भी क्या ये सब करने लगा.... चल अंदर आ... पर ये बाइक किसी ले आया आशु? और इतना बड़ा बेग?
अंशुल - बाइक मेरी ही है माँ..... और इस बेग में मेरा सामान....
पदमा हैरानी से - तू वापस शहर नहीं जाएगा?
अंशुल पदमा के माथे को चूमते हुए - क्यों आप मुझे वापस अपने से दूर भेजना चाहती हो? में अपनी माँ को छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगा... ये कहते हुए अंशुल अपना बेग लेकर घर के अंदर आ गया..
पदमा ख़ुशी से फिर अंशुल को गले लगा लेती है और कहती है - सच कह रहा है आशु?
अंशुल मुस्कुराते हुए - बिलकुल सच.... अच्छा अब छोडो मुझे.. मैं बेग रखकर आता हूँ....
पदमा - हां... तू अपने कमरे में जा.. हाथ मुँह धो ले.. मैं तेरे लिए खाना लाती हूँ...

अंशुल ने अपना बेग़ कमरे में रखा और नहाने चला गया जब नहाकर बाहर आया तो बस उसके बदन पर तौलिया था जिसमें उसकी प्राकर्तिक बनावट और देह की आकर्षक पेशीया सुगठित दिखाई दे रही थी जो उसके जिम करने का परिणाम थी अंशुल का बदन किसी हीरो से कतई कम नहीं था सीने पर हलके से बाल और चहेरे पर कामदेव की कृपा से झलकता तेज़ हलके घूँघराले बालों से साथ बेहद मनमोहक लगता था...

जब अंशुल नहाकर कमरे में आया तो सामने उसकी माँ पदमा खड़ी हुई किसी किताब को देख रही थी पदमा अपने साथ खाने की थाली लाइ थी जिसे उसने स्टडी टेबल पर रख दिया था.. अंशुल के आने की आहट सुनकर पदमा का ध्यान किताब से निकलकर अंशुल पर आ टिका था और एक बार के लिए पदमा अपने बेटे अंशुल के बदन को देखकर कर कामुक हो उठी थी लेकिन अगले ही पल जैसे कोई उसे काम के कुए में गिरने से बचाकर बाहर खींच लाया था.....
अंशुल के सुन्दर मुख और गठिली चौड़ी छाती के साथ साथ उसपर लगी पानी की कुछ बूंदो के अलावा मसक्युलर बाहों से नज़र हटा कर पदमा ने खुदको सँभालते हुए अंशुल से पूछा - आशु... ये किताबे? कॉलेज का और भी इंतिहान बाकी है?

अंशुल पहली नज़र में ही पदमा के मन की बात समझ गया था पदमा काम की अग्नि में जल रही थी और उसीके कारण कल पदमा ने ज्ञानचंद जैसे कुरूप और अपनी जवानी खो चुके आदमी को अपनी देह सौंप दी थी मगर फिर भी उसके बदन की आग शांत न हो पाई थी आज अंशुल के सामने खड़ी पदमा ने अंशुल के बदन को जिस तरह से निहारा था वो देखकर अंधा भी पदमा के मन की भावना समझ सकता था अंशुल के लिए उसे समझना मुश्किल न था और उसे मालूम हो चूका था की अगर वो पदमा का ख्याल नहीं रखेगा तो वो इस अग्नि में अपने आप को भस्म कर लेगी, अंशुल जानबूझकर सिर्फ तौलिया में ही रहा और ऊपर कोई कपड़ा नहीं पहना, वो चाहता था की पदमा उसके बदन को अच्छे से निहारे और उसके लिए पदमा के दिल में अलग भावना का जन्म हो.....
अंशुल - नहीं माँ.... कॉलेज तो ख़त्म हो चूका है... ये तो दूसरे इम्तिहान की किताबे है.... अरे वाह आपने **** बनाया है.. आपको पत्ता था मैं आने वाला हूँ? बहुत भूख लगी है... ये कहते हुए अंशुल तौलिये में ही स्टडी टेबल के सामने रखी चेयर पर बैठकर खाने की थाली अपनी और खिसका ली और खाना खाने की शुरुआत कर दी...
पदमा आठवीं फ़ैल थी ज्यादा तो नहीं मगर हां.. पढ़ना और लिखना बखूबी जानती थी... पदमा ने वापस किताब देखते हुए कहा - कॉलेज की नहीं तो किस इंतिहान की किताब है आशु.... पदमा ने बड़ी अचरजता और जिज्ञासा के साथ खाना खाते अंशुल से पूछा...
अंशुल ने खाना खाते हुए बिना पदमा को देखे जवाब दिया - आप भूल गई? मैंने क्या वादा किया था आपसे?
पदमा और ज्यादा जिज्ञासा के साथ - क्या आशु?
अंशुल ने इस बार पदमा को देखा और उसका हाथ पकड़ कर कहा - यही की मैं एक दिन किसी बड़े ओहदे पर मुहर वाली नोकरी करूँगा.... ये उसी के इंतिहान की किताबें है.....
अंशुल के इतना कहते ही पदमा को वो बातें याद आ गई जो अंशुल ने बहुत पहले उसके आंसू पोछते हुए उससे कही थी.... पदमा के मन में अंशुल के प्रति करुणा प्रेम मोह और सम्मान अविरल बह चला था... इतनी पुरानी बात अब तक अंशुल को याद थी? वो मेरे लिए इम्तिहान देगा? आज तक पदमा के लिए किसी ने किया ही क्या था? मगर आज उसका बेटा अंशुल उसके लिए बड़ा इम्तिहान देने वाला था मुहर वाली नोकरी हासिल कर पदमा से किया वादा निभाने वाला था... पदमा की आँखों में नमी आ गई थी, पदमा खाना खाते अंशुल के गले लगने से खुदको रोक न सकी और चेयर पर बैठे अंशुल की गोद में बैठते हुए अंशुल के सीने से लग गई.. पदमा को ये भी ख्याल न रहा की अंशुल सिर्फ तौलिये में है.....
अपनी माँ का ये बर्ताव देख अंशुल के हाथ खाना खाते हुए रुक गए.. और अंशुल ने भी पदमा को अपने सीने में जकड लिया... पदमा एक पल को तो भावनाओ में बहकर अंशुल के गले से लग गई थी मगर अगले ही पल उसपर अंशुल के बदन की मादकता हावी होने लगी.. आखिर वो एक औरत थी और कितने समय से काम की अग्नि में जल रही थी.. पदमा की देह अंशुल की काया से मिलकर अद्भुत कामोंत्कार उत्पन्न कर रही थी...
अंशुल - मैंने देखा था माँ.... उसदिन आप कितना रोई थी.. आपको रुलाने वाले उन लोगों को मैंने अगर खून के आंसू नहीं रुलाये तो मुझे कोई हक़ नहीं है अपना बेटा कहलाने में...
पदमा अंशुल की बात सुनकर उसके सीने से अलग हुई मगर अब भी पदमा अंशुल की गोद में ही बैठी थी, प्यार से अंशुल का चहेरा देखकर उसके बालों को इधर उधर करती पदमा अंशुल का ललाट चूमकर बोली - लल्ला.... सच में तू मेरे लिए इतना सब करेगा?
अंशुल - माँ.... आपके लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ... आपको यक़ीन नहीं हो तो कभी भी आजमा लेना.... मुस्कुराते हुए कहा था अंशुल ने जिसपर पदमा भी खिलखिलाती हुई हँसने लगी थी और फिर अपने हाथ से अंशुल को उसकी गोद में बैठे बैठे ही खाना खिलाने लगी थी.....
खाना खाने के बाद जब पदमा जाने लगी तो अंशुल ने उसे रोककर कहा - माँ.... आपके लिए कुछ लाया था..
पदमा हैरानी से - क्या लल्ला?
अंशुल अपने बेग से एक छोटा बॉक्स निकलकर पदमा को देते हुए - खुद देख लो...
पदमा ने बॉक्स खोला तो हैरानी से पहले बॉक्स में रखी सोने की चैन और फिर अंशुल को देखने लगी..
पदमा - आशु..... ये क्या है... तू मुझे सच सच बता? कोई गलत काम तो नहीं कर रहा है ना लल्ला? बाहर मोटर और ये चैन? कहा से आया इतना पैसा तेरे पास?
पदमा की आवाज आँखों में डर, चिंता, घबराहट और उम्मीद साफ झलक रही थी उसने अंशुल की बाजू पकड़ी हुई थी और इस माहौल में कब उसका आँचल उसके बदन से सरक गया था उसे खुद भी नहीं पत्ता चला और न ही उसे उसकी परवाह थी उसे तो सिर्फ उसकी बातों का जवाब चाहिए थे... अंशुल ने मुस्कुराते हुए अपनी माँ पदमा को अपनी बाहों में भर लिया और बोला - अरे बाबा.....आप चुप होगी तभी तो बताऊंगा.... चलो पहले अच्छे बच्चे की तरह चुप हो जाओ... और बुरी बाते मत सोचो..... आपका आशु कमाने लगा है... समझी? और अब से आपकी सारी जरूरतों का ख्याल रख सकता है.... और भी बहुत से गिफ्ट लाया हूँ मैं अपनी प्यारी माँ के लिए पर वो आपको अगले हफ्ते आपके बर्थडे पर ही मिलेंगे....

पदमा अंशुल की बाहों में उसकी बातें सुनते हुए उसे हैरान कर देने वाली नज़रो के साथ देखे जा रही थी उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था...
पदमा - लल्ला मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा है.... तू क्या कह रहा है?
अंशुल - अच्छा ठीक है... अभी समझाता हूँ.. चलो पहले इस चेयर पर बैठो..... पदमा चेयर पर बैठी तो अंशुल ने अपने फ़ोन के हवाले से पदमा को कुछ चीज़े बताये जो पदमा के दिमाग में नहीं बैठी थी बहुत देर तक अंशुल पदमा को उसके काम यानी ट्रेडिंग के बारे में समझाता रहा और उसकी जिज्ञासा शांत करता रहा.. पदमा को इतनी बातों में सिर्फ इतनी बात समझ आई थी की अंशुल फ़ोन में कुछ करके पैसे कमाता है और कुछ भी नहीं....

अंशुल - अब तो आपको यक़ीन हुआ मैं कोई गलत काम नहीं करता?
पदमा मुस्कुराते हुए - ठीक है समझ गई.... अच्छा और क्या है मेरे लिए? पदमा ने पूछा तो अंशुल मुस्कुराते हुए बोल पड़ा - ये जानने के लिए तो आपको अपने जन्मदिन का इंतजार करना पड़ेगा...
माँ ऐसे नहीं... इस तरह से नहीं.... लाओ में पहना देता हूँ.. कहते हुए अंशुल ने चैन पदमा को पहनाई तो उसकी निगाह अपनी माँ के मासूम चेहरे पर चली गई... हाय कितनी खूबसूरत थी पदमा.... लगता था उसका रूप किसी अप्सरा के सामान था... उसका आंचल अभी भी थोड़ा सरका हुआ था जिससे अंशुल को पदमा के जोबन का दृश्य साफ नज़र आ गया... पदमा ने अंशुल की भावना समझ ली थी मगर वो कुछ बोल ना सकी ना ही अंशुल को अपने आप को देखने से रोक पाई थी.... फिर दोनों की नज़र जैसे ही टकराई तो दोनों के चेहरे नज़दीक थे लबों में मुश्किल से 3-4 इंच का फासला था जैसे दोनों एकदूसरे को चूमने ही वाले हो.. और ये चुम्बन हो भी सकता था अगर नीचे आँगन में बर्तन गिरने की आवाज़ न आई होती.....
बर्तन गिरने की आवाज़ सुनकर पदमा अंशुल से अलग हो गई और नीचे आँगन में आ गई.. पदमा ने देखा की बिल्ली दूध का पतीला गिरा कर भाग गई थी.. किसी और दिन तो ये देखकर उसका दिमाग गुस्से से भर जाता मगर आज उसके चेहरे पर मुस्कान थी.. पदमा ने रसोई में गिरा दूध साफ किया और पतीला धोकर रख दिया.... पदमा अपने कमरे में सो रहे बालचंद के बगल आकर लेट गयी और अपने गले में पड़ी चैन को अपनी उंगलियों से घुमाकर देखती हुई अंशुल के बारे में सोचने लगी.... पदमा ने करवट बदलते बदलते क्या कुछ नहीं सोच डाला था.. कभी उसे अंशुल पर प्यार आ रहा था तो कभी उसका मन अंशुल के मोह से जकड़ा जा रहा था.. अंशुल ने आते ही पदमा के दिल में उसके लिए बेटे के साथ साथ एक अलग तरह का आकर्षण भी उत्पन्न कर दिया था.... पदमा ने चैन अपनी अलमारी में रख दी और आज जो कुछ भी हुआ उसके बारे में सोचने लगी.. पहले तो सिर्फ वो ही अंशुल को पकड़कर अपने गले से लगा लेती थी मगर आज अंशुल ने भी उसे अपने गले से लगाया था और अपने हाथो से अपनी तरफ खींचा था.. पदमा यही सब सोचकर बिस्तर में लेटी हुई कभी अंशुल पर बनावटी गुस्सा करती तो कभी मुस्कुराते हुए अंशुल को माफ कर देती....

पदमा को आज नींद नहीं आई थी उसने सारी रात बस करवट बदलकर निकाली थी और अंशुल के ख्यालों से खुदको घेर रखा था.... जिस तरह अकाल में दरखत पानी की कमी से सूखने लगते है उसी तरह पदमा भी अब तक मुरझाई हुई थी.... लेकिन जब सावन की पहली बौछार पड़ने से पेड़ को पानी मिलता है तो वो वापस हरे भरे होने लगते है और उसी तरह पदमा भी अंशुल का प्रेम स्नेह और उपहार पाकर खिल उठी थी....

रातभर न सोने के बाद भी उसकी आँखों में कहीं नींद नहीं थी न ही उसके बदन में कोई थकावट महसूस हो रही थी आज उसका मन शांत था और शारीर तरोताज़ा... घर का जो काम करने में उसे पहले आलस आता था आज वो सारा काम पदमा ख़ुशी से कर रही थी मानो उसके लिए ये काम कोई काम ही ना हो..... बालचंद के साथ आज सुबह उसकी कोई बाते नहीं हुई.. पदमा ने सिर्फ इतना बताया था की अंशुल रात को वापस घर आ गया, मगर बालचंद ने पदमा की बात पर ध्यान नहीं दिया और घर से अपनी चपरासीगिरी करने बाहर चला गया था....

अंशुल ने रात किताब से मुलाक़ात करते और अपनी जान पहचान बढ़ाते हुए ही बिता दी थी... रात को पढ़ते पढ़ते उसे कब नींद आ गई थी उसे भी नहीं पत्ता चला.. चेयर के ऊपर बैठा हुआ अंशुल मैज़ पर रखी किताब पर सर रख कर सो रहा था जब पदमा चाय का कप अपने हाथ में लिए उसके रूम में आई....

पदमा को आज से पहले कभी नहीं लगा था की कोई चेयर पर बैठा हुआ आदमी भी नींद के आगोश में जा सकता है मगर आज उसके सामने प्रत्यक्ष उदाहरण था अंशुल की नींद गहरी थी सफर की थकावट और देर तक जागने के कारण वो उसी तरह सो गया था जैसे कोई बच्चा दिनभर खेल कर गहरी नींद में चला जाता है. उसकी साँसों में आवाज़ थी. खर्राटे कहना तो गलत होगा क्युकी आवाज़ तेज़ नहीं थी ना ही कानो में चुबने वाली थी. सोते हुए अंशुल का चेहरा पदमा की आँखों में ठंडक दे रहा था.. रात की एक एक बाते उसे अच्छे से याद थी और उसी बातों से वो चहक उठी थी और पुरे घर में गुलाब की तरह महक रही थी.

पदमा ने चाय का कप टेबल पर रखा और सो रहे अंशुल को जागते हुए कहा- आशु..... आशु.... उठो... देखो दिन कितना चढ़ आया है? चलो उठो...
अपनी माँ के जगाने पर आँखे मलता हुआ अंशुल चेयर से उठकर पीछे रखी एक सिंगल चारपाई पर जाकर वापस सो गया...
अरे ये बच्चा भी ना.... अरे उठा ना.... आशु.... चलो उठो...
5 मिनट ना... माँ....
नहीं... अभी उठो... चलो... चाय पी लो.... मुझे कहीं जाना.. जल्दी करो...
कहा? अंशुल ने इस बार आँख खोलकर चारपाई से नीचे पैर लटकाकर बैठते हुए कहा..
अरे बहुत सी घर की चीजे खरीदनी है.. बाजार जाना है... आज पूरा दिन इसी में लग जाएगा... येकहकर पदमा नीचे चली जाती है और अंशुल अपना मुँह धोकर चाय का कप अपने हाथो में लेकर चाय की चुस्की लेटा हुआ नीचे आ जाता है... सुबह के 10 बज रहे थे...
मैं खाना बना देती हूँ आँशु.. तू खा लेना... मुझे वापस आते आते दिन हो जायेगा...
रहने दो माँ मुझे भूख नहीं है... मैं भी आपके साथ बाजार चलता हूँ.. बस से तो आपको बहुत समय लगा जाएगा...
नहीं लल्ला तू परेशान हो जाएगा मेरे साथ.. रहने देओ..
अरे माँ.... आप भी ना.... 10 मिनट दो मैं अभी नहाकर आता हूँ... फिर साथ में बाजार चलते है...
पदमा अंशुल की बाते सुनकर अपनी मोन स्वीकृति दे देती है.. जैसे उसे भी बस से अकेले जाने का मन नहीं था....
अंशुल कुछ ही देर में मैरून चेक शर्ट और एक ब्लैक जीन्स पहनकर नीचे आ गया. देखने में किसी हीरो की तरह ही लग रहा था अंशुल, पदमा ने तो झट से अपनी आँख का काजल अपनी उंगलि पर ले कान के पीछे काला टिका भी लगा दिया था अंशुल को....
मा क्या कर रही हो?
नज़र ना लगे इसलिए काला टिका लगा रही हूँ.. इतना सोना लगता है मेरा आशु... बिलकुल फ्लिम के हीरो जैसे....
अच्छा? तो फिर आप अपनेआप को क्यों नहीं लगाती काला टिका? आप भी किसी हीरोइनी से कम कहा लगती हो?
चुप बदमाश.... माँ से मसखरी करता है...
मैं तो सच बोलता हूँ.... अब आपको मसखरी लगती है तो मैं क्या करू?
अच्छा अच्छा चल अब वरना यही खड़े खड़े दिन ढल जाएगा....

अंशुल अपनी बाइक स्टार्ट करता है और पदमा घर को ताला मारकर अंशुल के पीछे बैठ जाती है कच्चा रस्ता दोनों की देह को आपस में मिलाये हुए था और सडक में पड़ने वाले गड्डे पदमा के उभर का घ्रषण अंशुल की पीठ इस तरह से कर रहे थे जैसे धोबी पत्थर पर कपड़ा घिसता है.. पदमा ने अपने सीधे हाथ से अंशुल के कंधे को पकड़ रखा था जिसे अंशुल ने कंधे से हटाकर उसके सीने पर रख लिया था. दोनों के बीच मादकता और काम के बीज पनप रहे थे मगर दोनों के मुँह से एक शब्द नहीं निकाल रहा था जो निकलना चाहिए था...
बाजार पहुंचते ही पदमा अंशुल के साथ घर का सामान खरीदने में लगा गई... पदमा हर चीज का मोल भाव करती और कम से कम कीमत में खरीदने की कोशिश करती.. कई दूकानदारो से तो उसका झगड़ा भी हुआ था जिसे अंशुल ने बीच बचाव से शांत करवाया....
अरे बहन जी कैसी बाते करती हो? फ्री में ही दे दे क्या आपको सामान? इतना तो हमारे ही नहीं आता.. हमारे खुदकी खरीद इससे ज्यादा है... आप कहीं और देखो...
बड़े आये फ्री देने वाले.... पूरा बाजार जानता है कैसे ग्राहक को चुना लगाते हो तुम लोग... नहीं खरीदना तुम्हारा सामान.. बाज़ार में और भी दूकाने है...
अरे जाओ जाओ बड़े आये....
दूकानदार से साथ पदमा की तीखी नोक झोक देखकर अंशुल को पदमा पर प्यार आ रहा था जैसे वो कहना चाहता हो माँ तुम पर ये गुस्सा कितना जचता है... पर उस वक़्त उसने पदमा को दूकान से बाहर ले जाते हुए पदमा को समझाया - माँ यार क्यों झगड़ा कर रही हो? जो खरीदना है खरीदो ना... आप पैसे की क्यों चिंता कर रही हो? मैं हूँ ना... इसी तरह खरीददारी करने पर तो हमें दिन नहीं शाम हो जायेगी घर लौटते लौटते.... आप जल्दी से जो लेना है लेकर ख़त्म करो.. मुझे भूख भी लगी है...
पदमा अंशुल की बाते सुनकर - अरे ये सब लुटेरे है लुटेरे जब तक मौलभाव ना करो कोई चीज सही कीमत पर देते ही नहीं...
अंशुल - आप छोडो मुझे लिस्ट दो.... दिखाओ क्या क्या चाहिए? अंशुल पदमा से सामान की लिस्ट ले लेटा है और एक दूकान पर जाकर वो लिस्ट किसी आदमी को दे देता है....
दूकानदार - भाईसाब 2-3 आइटम गोदाम पर है मैं मंगवा देता हूँ थोड़ा समय लगा जाएगा...
अंशुल - ठीक है.... कितना हुआ सबका?
दूकानदार - जी आपके हो गए ****....
अंशुल अपने फ़ोन से ई-पेमेंट कर देता है और थोड़ी देर में वापस आने की बात कहकर पदमा के साथ बाजार में एक नये से खुले रस्टोरेंट में चला जाता है.. पदमा तो कब से अंशुल की इस हरकत पर बड़बड़ा रही थी - ऐसे कोई खरीददारी करता है? ना जाने क्या क्या भाव लगाया होगा उस दूकान वाले ने? पक्का हर सामान का कुछ ज्यादा ही मोल लगाया होगा.. पैसे कोई पेड़ पर उगते है? ये लड़का माने तब ना.. कद्र ही नहीं है बिलकुल.....
अच्छा माँ... अब छोडो ये बाते.... बताओ क्या खाओगी? कल चन्दन भैया बता रहे थे यहां सबसे बेस्ट खाना मिलता है....
मुझे कुछ नहीं खाना?
आप भी ना माँ.... बिलकुल बच्चों की तरह गुस्सा करती हो... चलो मैं ही आपका फेवरेट बटर चिकन आर्डर कर देता हूँ..
कहा ना मुझे नहीं खाना... घर जाकर खा लुंगी कुछ..
मैं आपकी एक ज़िद नहीं चलने दूंगा... समझी आप? कब से इतना मुरझाया मुँह बनाया है.. देखो कैसे नाक लाल हो गयी है आपकी.... बिलकुल टमाटर की तरह.. अब गुस्सा छोडो और अपनी ये प्यारी सी सूरत सही करो वरना मैं वापस शहर चला जाऊँगा... ये सब कहते हुए अंशुल ने जिस प्यार से पदमा को देखा था और अपनी हथेली से उसके गाल सहलाये थे उसे देखकर पदमा का सारा गुस्सा काफूर हो गया था और उसके चेहरे पर एक मुस्कान दौड़ गई थी...
पदमा अंशुल की बातें सुनकर अपने मन में सोचने लगी की कब अंशुल इतना बड़ा हो गया की उसे अपनी माँ का ख्याल रखना आ गया? आज पहली बार पदमा अपनी 39 साल की उम्र कहीं बाहर खाने आई थी वरना उसे कभी घर के चूल्हे से फुर्सत ही नही मिली थी कहीं बाहर जाने की, और अपना मनपसंद खाना बिना बनाये खाने की.... पदमा को अंशुल पर आज प्यार और गुस्सा साथ साथ आ रहा था.. गुस्सा उसकी बिना सोचे समझें खर्चीली आदत को लेकर और प्यार उसका इतना ख्याल रखने पर...
अंशुल आर्डर करके आ गया था और इस बार पदमा के सामने नही बैठकर वो पदमा के बगल में बैठा था और टिश्यू लेकर पदमा की नाक पर मोज़ूद हल्का सा पसीना पोंछने लगा था..
गर्मी के दिन थे मगर इस वक़्त दोनों रेस्टोरेंट के अंदर एयर कंडीशन में बैठे थे फिर भी पदमा की नाक पर हल्का सा पसीना आ ही गया था जो उसके अभी अभी उतरे गुस्से को चिढ़ा रहा था...
गुस्से में ना बिलकुल श्रीदेवी लगती हो आप... मुस्कुराते हुए अंशुल ने कहा तो पदमा भी खिलकर मुस्कुरा दी और बोली - ज़्यदा मखन लगाने की जरुरत नहीं है समझा.... और ये फालतू खर्चा करने ही भी..
अच्छा ठीक है आगे से आप ही खरीददारी करना... खुश? अब ये सब छोडो.... कल रात को रमेश चन्दन भईया को बता रहा था **** के गाँव में तमाशे वाले आये है... मेला लगा है वहा.... नाचगाना भी होगा... कुल्फी और तरह तरह की चाट के सामान की भरमार होगी... बड़े बड़े झूले भी लग चुके है... आसपास के बिसो गाँव से लोग आएंगे.. आप चलोगी मेरे साथ?
मैं?
हां आप और कौन?
नहीं नहीं.... तेरे पापा से क्या कहूँगी?
उनसे क्या कहना है? उनके जाने के बाद हम चले जाएंगे और शाम होने से पहले वापस आ भी जाएंगे...
गाँव के भी तो सभी लोग जा रहे है.... फिर आपको चलने में क्या तकलीफ है? मेरे साथ नहीं जाना चाहती तो बता दो... दुबारा नहीं पूछूंगा....
पदमा आशु की बाते सुनकर अपने मन की गहराई में जाकर याद झरने लगी की आखिरी बार वो कब बाहर निकल कर अपने मन से कहीं घूमी थी मेला तो देखे हुए उसे ज़माने बीत गए थे.. बचपन में अपनी माँ से पैसे लेकर छुपके से अपनी बहन गुंजन के साथ मेले में गई थी पदमा.. मगर जब उसके पीता को इस बात की खबर चली तो कितना पीटा था पदमा के बाप ने उसकी माँ को... तब से कहीं बाहर जाना तो छोड़, बाहर जाने का ख्याल तक छोड़ दिया था पदमा ने.. मगर आज उसके मन में नई उमंग जग उठी थी आज ना उसके पीता का बंधन था आना ही कोई बंदिश.. फिर क्यों वो अपने मन की ना करे?
अच्छा चलूंगी तुम्हारे साथ.. अब खुश? मगर शाम से पहले वापस घर आ जाएंगे..
अंशुल की बाते का जवाब देते हुए पदमा ने कहा..
अंशुल पदमा की हां सुनकर मुस्कुराते हुए ख़ुशी से उसका हाथ पाने हाथो में लेकर चुम लेता है....

सर आपका आर्डर.... एक वेटर ने ट्रे टेबल पर रखते हुए कहा और और चला गया..
अंशुल ने पदमा को अपने हाथ से खाना खिलाना शुरू किया तो पदमा उसके प्रेम रस में डूबती चली गई.. उसकी जिंदगी में कोई ऐसा भी है जो उसका इतना ख्याल रख सकता है ये उसने सोचा भी नहीं था. आज पहली बार पदमा को अपने अस्तित्व की अनुभूति हो रही थी की वो भी एक अलग इंसान है जिसे खुश रहने का हँसने का और प्यार करने के साथ प्यार पाने का अधिकार है.. पदमा ने अब ऊपरी आवरण हटाकर खुलकर अंशुल के साथ बाते करना शुरू कर दिया था जिससे अंशुल भी बेहद खुश था....

खाना अच्छा है? अंशुल ने पूछा तो पदमा ने मुस्कुराते हुए कहा - हम्म.... पर मेरे आशु से ज्यादा नहीं...
अंशुल पदमा की बाते सुनकर मुस्कुरा बैठा और खाना खाने के बाद बिल pay करके दूकान से सामान लेकर पदमा के साथ वापस घर की ओर चल दिया.. इस बार पदमा के चेहरे पर पुरे रास्ते एक अजीब सी ख़ुशी ओर मुस्कान थी.. घर पहुंचते ही अंशुल अपने कमरे में फिर से किताबो में उलझ गया ओर पदमा मन में आशु की तस्वीर लिए मुस्कुराती हुई घर का काम करने लगी... पदमा के मन से आशु उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था उसकी बातें ओर बात करते हुए चेहरे पर उभरी मुस्कान बार बार पदमा को याद आ रही थी उसे लगा रहा था जैसे कोई चुम्बक उसे आशु की तरफ खींच रही हो.. ये सम्मोहन था मगर ऐसा सम्मोहन पदमा पर कैसे हो सकता है? वो भी अपने ही बेटे का? क्या आशु ने पदमा के मन को अपने वश में कर लिया था? पर कैसे? क्या उसका दो मीठे बोल बोलना और अपनी माँ का अपनी सहजादी की तरह ख्याल रखना पदमा को भा गया था? पदमा के मन में दबी इच्छाये आकांशाए फिर से पनपने लगी थी और उसे इन सबके पुरे होने का एक ही जरिया नज़र आने लगा था वो था अंशुल.... मगर क्या अंशुल भी उसके साथ.... नहीं नहीं यह मैं क्या सोच रही हूँ? अपने ही बेटे के बारे में.. ये गलत है.. मैं ऐसा नहीं कर सकती... कितनी घटिया सोच है मेरी? मैं अपने ही बेटे के बारे में ये सब सोच रही हूँ? आशु कितना प्यार करता है मुझसे और कितना ख्याल रखता है मेरा.. और मेरे मन में उसका फ़ायदा उठाने का ख्याल... छी छी.... मुझसे गन्दी सोच किसी की नहीं हो सकती..
शाम हो चुकी थी और पदमा आँगन में दिवार से पीठ लगाए ज़मीन पर बैठी हुई यही सब सोच रही थी और अपने ख्याल में ही उलझती जा रही थी, उसके सारे ख्याब फिर से उसके सामने आ गए थे जिसे उसने कब का भूला दिया था.. उसके दिल में आशु के लिए मातृत्व की भावना काम की भावना के साथ मिलकर बहने लगी थी जिसे वो अलग करने का प्रयास कर रही थी.....

पदमा आँगन में बैठी यही सब सोच रही थी की अंशुल ऊपर से बोल पड़ा - माँ.... एक कप चाय मिलेगी?
पदमा का जैसे ध्यान ही टूट गया था उसके मुँह से अपनेआप निकल पड़ा - जी... अभी लाई.....
अंशुल वापस कमरे में आ गया और चेयर पर बैठ कर वापस अपनी किताब में घुस गया वो पदमा के इन दो शब्दो का मतलब समझने में नाकाम रहा था लेकिन पदमा तो जैसे शर्म से पानी पानी हो गई थी.. जी.. अभी लाई.... क्या कोई माँ अपने बेटे के चाय माँगने पर इस तरफ जवाब देती है? इस तरह तो कोई लड़की अपने पति को जवाब देती है... मगर जल्दीबाज़ी और मन में चल रही अनगिनत बातों के कारण उसके मुँह से यही निकल गया था.... पदमा चाय बनाते हुए अपनेआप को ताने दे रही थी जैसे उसने कोई बहुत बड़ा गुनाह कर दिया हो.. अब तक इतना तो तय था की पदमा के मन में अब आशु के लिए सिर्फ बेटे वाला प्यार ही नहीं था उसके अलावा भी कुछ था जिसे पदमा अच्छे से समझ रही थी लेकिन रिस्तो की मर्यादा और परिवार की गरिमा बचाने के लिए उसे अंदर ही छुपाने का काम कर रही थी...

चाय लेकर पदमा अंशुल के पास आई तो अंशुल का ध्यान अपनी किताब में था उसने पदमा की तरफ देखा तक नहीं और पदमा भी चाय रखकर वापस चली गई थी जैसे वो जाना ही चाहती थी उसके दिल में अब अंशुल के पास आकर फिर दूर जाने और फिर पास आने वाली फीलिंग जन्म ले चुकी थी.. अगले दिन पदमा और अंशुल मेले में नहीं जा सके और शाम को बालचंद दफ़्तर से जल्दी वापस आ गया था और कुछ परेशान लगा रहा था..
पदमा - क्या हुआ? तुम्हरी शकल पहले से ही खराब है और क्यों बिगाड़ रहे हो?
बालचंद - ज्यादा फालतू मुहजोरी न करो मुझसे... पहले ही मगज़ ख़राब हुआ पड़ा है..
पदमा - पर हुआ क्या? और इतनी जल्दी में क्या देख रहे हो?
बालचंद - बाबू का कागज था यही कहीं रखा था नज़र नहीं आ रहा..
पदमा - हरे रंग का कागज था? लम्बा वाला..
बालचंद - हां.... सरकारी कागज था कहा रखा है....
पदमा - हटो में निकालकर देती हूँ....
बालचंद - हां यही है...
पदमा - बेग क्यों निकाल रहे हो? कहीं जा रहे हो?
बालचंद - अरे ***** जाना है बताया था ना इलेक्शन में बड़े बाबू के साथ ड्यूटी लगी है.. कल और परसो वहीं रहना होगा..
पदमा - मैं तो भूल ही गई थी... रुको मैं खाना त्यार कर देती हूँ...
बालचंद - रहने दो.. खाने का प्रबंध है वहा... और अभी भूख भी नहीं लगी है.......(बेग में कपडे रखते hue) तुम्हारा लाठसाहब कभी कमरे से बाहर भी निकलता है या नहीं.. आगे काम धाम करने का इरादा है या नहीं उसका?
पदमा - परसो ही तो आया और अभी से तुमने ताने मारना शुरू कर दिया.. तुमको शर्म आती है ना नहीं?
बालचंद - मुझे क्यों शर्म आएगी? बाप के साथ काम करने में तो उसे शर्म आती है... दिनभर बस बिस्तर तोड़ता है...
पदमा - चपरासीगिरी तुम्हारे ऊपर अच्छी लगती है.. मेरे आशु पर नहीं.... समझें.. बड़े इंतिहान की तयारी करने लगा है मेरा बच्चा... तुम्हारे जैसे तो उसके दफ़्तर में काम करेंगे देखना...
बालचंद - पढ़ने में कितना तेज़ है देखा है मैंने.. मुझे मत बताओ... बड़ी आई बेटे की तरफदारी करने वाली.
पदमा - हा हा जाओ.. चपसारी कहीं के.... मेरा आशु तुम्हारी आँख में कितना चुभता है पत्ता है मुझे..

अंशुल चाय की चुस्की लेटा हुआ अपनी माँ और बाप के बीच होती इस तीखी नोक झोक को किसी दर्शक की तरह ऊपर से देख और सुन रहा था जिसके उन्हें कोई अंदाजा नहीं था.. जब बालचंद घर से चला गया तो अंशुल भी वापस अपने कमरे में आ गया, अंशुल जब ऊपर बाथरूम गया था वहा नल में कचरा फंसने से पानी बंद हो गया था शाम का वक़्त था सो उसने इस अभी ठीक करना भी जरुरी नहीं समझा.. रात को खाने के वक़्त उसने पदमा की ढेर सारी तारीफ करते हुए नल वाली बाते बता दी थी और पदमा ने कल सही कर लेने की बाते कह कर उसे टाल दिया था....

आधी रात का समय था पदमा की कच्ची नींद खुल चुकी थी वो आँख मलते हुए जैसे ही बाथरूम में घुसी उसने सामने खड़े अंशुल को सिगरेट के कश लेकर मूतते हुए देख लिया और झेप गई... अंशुल भी एकाएक पदमा के इस वक़्त बाथरूम आने से घबरा गया..

अंशुल पेशाब करके बिना कुछ बोले ऊपर अपने रूम में चला गया और पदमा अंशुल के ऊपर जाने के बाद बाथरूम में आ गई.. उसने देखा की एक तरफ दिवार पर बने जालदान में अंशुल के सिगरेट पैकेट और लाइटर पड़े है जिन्हे वो ले जाना भूल गया है.. पदमा ने उसपर ध्यान न देकर अपनी साडी कमर तक उठाते हुए बैठ गई और मूतने लगी, मूतने के समने पदमा के आँखों में अभी अभी देखे अंशुल के लंड का दृश्य घूम गया.. बाप रे इतना बड़ा? अंशुल कोई दवाई तो नहीं लेटा इन सब की... नहीं नहीं.. ऐसी दवाई भला कहा मिलती है.. पर इतना बड़ा? उसके पापा से तिगुना होगा.. उफ्फ्फ मैं भी क्या सोचने लगी.. आशु के बारे में... अपने ही बेटे के बारे में ऐसी चीज़े.. छी... पदमा की चुत गीली हो चुकी थी और पदमा की आँखों की नींद उड़ चुकी थी उसने अपनी चुत में उंगलि करनी शुरु कर दी थी.. बड़ी हैरानी की बाते थी की वो उंगलि करते हुए अंशुल का ही नाम ले रही थी.. उफ्फ्फ मैं क्या कर रही हूँ... पदमा की चुत जैसे जल रही थी उसकी गर्मी निकलना चाहती थी पदमा को जैसे गलत सही का ध्यान ही नहीं रहा और वो अंशुल के लंड को याद करके झड़ गई... उसने आहों के साथ अंशुल का नाम बहुत बार लिया था.. झड़ने के बाद वो जैसे होश में आई और अपने आप को सही करके बाथरूम से बाहर आ गई और अपने रूम में जाकर दरवाजा बंद करते हुए लाइट बंद कर ली... अंशुल ऊपर से पदमा के निकलने का इंतज़ार कर रहा था उसे लगा था की पदमा सिर्फ पेशाब करके चली जायेगी पर पदमा ने बहुत सारा समय बाथरूम में लगा दिया था..
अंशुल वापस नीचे आया और चुपचाप बाथरूम में चला गया वहा उसने अपनी सिगरेट लाइटर ली और पीछे दिवार पर बनी छोटी सी जगह में जो उसने अपना फ़ोन छिपाया था उसे भी निकाल लिया.. फ़ोन का कैमरा अभी भी ऑन था... अंशुल अपने रूम में आ गया और तसल्ली से पूरी रिकॉर्डिंग देख ली.. उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था की उसकी चाल कामयाब रही है.. उसे खुशी हो रही थी की उसकी माँ पदमा बहुत प्यासी है और उसे पटाने के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़गी.. मगर क्या अंशुल पदमा को आगे से उसके साथ नया रिश्ता कायम करने को मजबूर कर सकता था? अंशुल यही सोच रहा था कैसे पदमा को मजबूर कर दे की वो खुद अंशुल से आकर अपनी हवस का इजहार करें और उससे एक औरत और मर्द वाला रिस्ता रखे...

अंशुल की ही तरफ पदमा भी बिस्तर में करवट बदलती हुई सोच रही थी की उसने ये क्या किया? कैसे वो ये सब कर सकती है वो भी अपने बेटे आशु के लिए.. पर वो जितनी काम उतजना से भरी थी वो कर भी क्या सकती है ये जिस्म की आग किसी के बस में नहीं होती.. इसका पता तो सबको है.. पदमा को रह रह कर बाथरूम वाला दृश्य याद आ रहा था.. अंशुल का वो लंड.... उफ्फ्फ अगर वो मिल जाय तो... छी... अरे मैं क्यू ये सब सोच रही हूँ? मैं तो उसकी माँ हूँ.. फिर मुझे उसके लंड की इतनी प्यास.... पदमा वापस उत्तेजित होने लगी थी और अपनी चुत पर उसकी ऊँगली वापस आ गई थी.. आँशु.... आह्ह आशु.... पदमा की ये हालात देखकर कोई भी उससे अपनी हवस मिटा सकता था अभी शायद वो किसी को ना नहीं करती मगर पदमा जब ये सब कर रही थी उसे अपना ख्याल था... पदमा ने अंशुल के नाम पर वापस अपनी आग को शांत करना शुरु कर दिया था जो उसे गलत लग रहा था वो वही कर रही थी.. रात इसी तरह से गुजरी अंशुल भी देर तक जागा था और पदमा भी.. दोनों की आँखे सुबह देर से ही खुली थी.


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Gokb

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Bahut badhiya update diya hai apne
 
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rajeev13

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क्या ये कहानी माँ-बेटे के बीच ही सिर्फ केंद्रित नहीं रह सकती है ?
 
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VAJRADHIKARI

Hello dosto
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अध्याय 8
मुहर
(पदमा फलेशबैक, भाग -1)



आज भी नींद आ रही है?
तुम्हारे साथ तो मैंने शादी ही गलत कर ली..
तुम्हारे बाप ने उल्टा सीधा बोलकर मुझे फंसा लिया. इतना समय हो गया मैं तो जैसे जीना ही भूल गई हूँ.. अरे जब संभाल नहीं सकते थे तो शादी की ही क्यूँ तुमने?
रोज़ आकर मरियल बुड्ढे की तरह सो जाते हो..
पदमा ने आज बालचंद को अनाप शनाप ना जाने क्या क्या कह दिया था वो दो बच्चों की माँ थी लेकिन अब भी जवान और खूबसूरत थी शारीरिक संरचना मे उसका कोई सानी नहीं था जिसतरह के उभार और कटाव उसके बदन पर थे उसे पाना हर स्त्री की इच्छा होती थी मगर उसकी ये बदकिस्मती थी की बालचंद मे अब मर्दानगी का कोई रस नहीं बचा था बालचंद की शादी जब हुई थी वो तीस साल का था और आज उसकी उम्र पचास पार कर गई थी उसने अठरा साल की नवयौवना पदमा से ब्याह किया था लेकिन कुछ साल बाद ही बालचंद कामरस से विमुख हो गया था.. पदमा ने शादी के अगले साल ही जुड़वा बच्चों को जन्म दिया था जिसका नामकरण बालचंद के पीता मूलचंद ने किया था लड़के का नाम अंशुल और लड़की का नाम आँचल रखा गया था आँचल का विवाह अभी सालभर पहले ही हुआ था और अंशुल अभी अपने कॉलेज के आखिरी साल के इम्तिहान दे रहा था..

आज पदमा की उम्र 39 थी और उसमे काम के प्रति आसक्ति पूरी तरह से भरी हुई थी और वो काम की उतेजना मे जल रही थी जिसे शांत करना बालचंद के बुते जे बाहर था....

पदमा का हाल बिलकुल वैसा था जैसे सवान मे अपने प्रियतम के विराह मे एक नव विवाहित दुल्हन का होता था बदन की आग और सेज का सुनापन उसे कचोट कचोट कर खा रहा था सारा दिन घर के कामो और अपने ख्यालों से अपनी हक़ीक़त को झूठलाते हुए पदमा अपनी ख्वाहिशे अपने मन मे दबा कर जी रही थी जैसे समाज मे महिलाओ को जीना पड़ता है उसे समाज के कायदे मानने पड़ते है उन नियमो के अनुसार आचरण करना पड़ता है उनमे ही सिमट कर रहना पड़ता है भले ही ऐसा करने से उनके भीतर कितना ही कुछ टूट क्यूँ ना जाए उनकी आत्मा कमजोर क्यूँ ना हो जाए मगर महिलाओ के लिए हमारे पुरुषप्रधान समाज ने उन बेड़ियों का निर्माण किया जिसमे अगर एक बार कोई महिला बंध जाए तो उसे पूरा जीवन उसी मे बंध कर निकाल देना पड़ता है उसके लिए अपनी ख़ुशी सुख दुख का कोई अस्तित्व नहीं रह जाता.. ऐसा ही पदमा के साथ भी था.. उसका रूप यौवन माधुर्य बेजोड़ था लेकिन अब इन चीज़ो का उसके लिए कोई महत्त्व नहीं रह गया था जब तक आंचल थी तब तक पदमा उसके साथ बतियाती बात करती और उसका दिन गुजर जाता लेकिन जब से आंचल का ब्याह हुआ था वो बिलकुल अकेली पड़ चुकी थी आंचल के ब्याह के बाद तो जैसे उसकी जिंदगी मे कोई बात करने वाला या उसे समझने वाला कोई रह ही नहीं गया था...

आज होली का दिन था बालचंद अपने छोटे भाई ज्ञानचंद के साथ घर के आँगन मे शराबखोरी कर रहा था हर तरफ गुलाल बिखरा पड़ा था और इस कस्बे मे लोग इस त्यौहार को बड़ी ख़ुशी के साथ मना रहे थे ऐसा लगा रहा था जैसे आज धरती को रंगबिरंगे गुलाल से सजाया जा रहा था महिलाये अपना झुण्ड बनाकर अपने देवरो या रिश्तेदारों को रंग लगा रही थी और कपडे के कोड़े बनाकर उन्हें पिट रही थी वहीं कुछ आदमी भी टोलिया बनाकर अकेली रह जाने वाली भाभी या औरत को पकड़कर जमके रंग लगाने और चिढ़ाने का काम कर रहे थे.... पदमा के मन मे आज बहुत ज्यादा कामुकता भरी हुई थी वो अक्सर ऊँगली से अपनी प्यास बुझाती थी लेकिन आज उसे मौका नहीं मिल पाया था वो रसोई मे खाना बना रही थी.. दोपहर के बारह बजे थे और अब तक बालचंद शराब के नशे मे चूर होकर आँगन मे ही सोफे पर ढेर हो चूका था लेकिन ज्ञानचंद अभी सुरूर मे था वो रह रह कर आँखों से पदमा को भोग रहा था उसका अंदाजा पदमा को हो चूका था लेकिन कामुकता के वाशीभूत होकर पदमा ने ज्ञानचंद को ऐसा करने से नहीं रोका उलटे उसके आँखों से अपने रूप और जोबन का रस पिलाती रही.. आज पदमा को ज्ञानचंद का इस तरह उसे देखना सुख दे रहा था और उसे उसके जवान और खूबसूरत होने का अहसास करवा रहा था सालों से जो उसने महसूस नहीं किया था वो आज महसूस कर रही थी.... अगर बालचंद पदमा को सुखी रखता और उसकी शारीरिक जरुरत पूरी तरता तो अवश्य ही पदमा ज्ञानचंद की इस हरकत पर उसे टोकती या अपने कपडे सही करके ज्ञानचंद के द्वारा किया जा रहा पदमा के रूप का चक्षुचोदन बंद कर देती लेकिन आज उसे इसमें सुख मिल रहा था उसकी लालसा बढ़ रही थी पदमा पहले से ही कामुकता से भरी हुई थी उसपर से इस तरह ज्ञानचंद का उसे देखना बहुत अच्छा लगा रहा था.... ज्ञानचंद एक साधारण कदकाठी वाला, बालचंद की तरह ही आधा गंजा और पुराने तरह के कपडे पहनें वाला आदमी था उम्र पेतालिस के पार थी लेकिन काम वासना से भरा हुआ व्यक्तित्व था ज्ञानचंद का...

पदमा ने आज स्लीव लेस ब्लाउज पहना था जो किसी ब्रा की तरह ही देखने से लगता था और होली मे गंदे होने के डर से पुरानी साडी जो बार बार उसके कंधे से सर कर नीचे आ रही थी आज पदमा और दिनों के मुक़ाबले ज्यादा आकर्षक और कामुक लगा रही थी यही कारण था की ज्ञानचंद भी अपने आप को पदमा के रूप का शिकार होने से खुदको बचा नहीं पाया था.. ज्ञानचंद ने मौका पाकर पदमा से होली खेलने के नाम पर छेड़खानी शुरु कर दी थी जिसे कोई शरीफ औरतों कभी बर्दास्त नहीं करती लेकिन जो औरत काम के अधीन हो उसे शरीफ होने की उम्मीद की जानी व्यर्थ होती है.. ज्ञानचंद ने पदमा की नंगी चिकनी पतली कमर को इस तरह गुलाल से रंग दिया था जैसे जैसे छिंट के महीन सफ़ेद कपडे को रंगा जाता है.. ज्ञानचंद के हाथ कमर से होते हुए पदमा के कंधे तक पहुंच गए थे और रास्ते मे ज्ञानचंद के हाथो ने पदमा की छाती को गुलाल के रंग से रंगीन कर दिया था पदमा इतना सब होने के बाद भी आज अपने देवर ज्ञानचंद को नहीं रोक पाई थी और अब ज्ञानचंद का हाथ उसकी देह को जगह जगह से रंग रहा था जिसका पदमा पूरा मज़ा ले रही थी लेकिन उसकी आवाज़ उससे विपरीत बातें कहलवा रही थी...



उफ्फ्फ देवर जी छोड़िये.. आप क्या कर रहे है.... थोड़ी भी लाज नहीं आती है.... हम शोर मचा देंगे.. छोड़िये हमें...

मचा दीजिये भाभी शोर.... मैं जानता हूँ आप बहुत प्यासी है... भाभी भाईसाब तो शाम से पहले नहीं उठने वाले... यहां हमारे सिवा कोई नहीं है... ऐसा मौका बार बार नहीं मिलता भाभी....

आह्ह.... आप क्या कर रहे है देवर जी.... हमारा ब्लाउज फट जायगा... छोड़िये हमें... जाने दीजिये...

क्यूँ नखरे कर रही हो भाभी... आज तो होली का त्यौहार है.... रंग के साथ आपको थोड़ा अंग भी लगा दूंगा तो क्या बिगड़ जाएगा.... वैसे भी आपका ये रूप बेकार ही जा रहा है... भाईसब को तो बिलकुल कदर नहीं है आपकी....

देवर जी आप अभी नशे मे हो.... आप मेरी कमर छोड़ दीजिये.... देखिये मैं आपके साथ ये सब नहीं कर सकती.... आप जाइये यहां से.... दरवाजा खुला है कोई आ गया तो मेरी शामत आ जायेगी....

अरे भाभी कोई नहीं आएगा अंदर.... सब बाहर होली खेलने मे मस्त है आप तो फालतू ही डर रही हो.... अब ये सब चिंता छोडो और मान जाओ.... मैं भाईसाब से अच्छा ख्याल रखूँगा आपका... आओ ना भाभी...

पदमा ऊपरी तौर पर जुबान से ज्ञानचंद का विरोध कर रही थी लेकिन उसने ज्ञानचंद को अभी तक खुदको छूने से नहीं रोका था ज्ञानचंद ने ऊपर से नीचे तक पदमा को छुआ था जिससे पदमा काफी उत्तेजित हो चुकी थी उसके बदन की आग और बढ़ चुकी थी उसकी योनि से जल प्रवाह तेज़ हो चूका था अब पदमा को किसी भी हाल मे उसका समाधान चाहिए था... ज्ञानचंद ने पदमा को आगे रसोई की पट्टी पर झुकाते हुए पीछे से उसकी साडी उठाकर झंघिया नीचे सरका दी जिससे पदमा की झांटो से घिरी हुई गुलाबी घुफा के दर्शन हो गए थे पदमा का दिल अब ज्ञानचंद का केला लेने को आतुर हो चूका था लेकिन जैसे ही ज्ञानचंद ने अपनी पेंट नीचे की तो पदमा उसके चार इंच के केले को देखकर फिर से दुख के सागर मे दूब गयी थी उसे अपनी गलती का पछतावा हो रहा था उसने आज व्यभिचार किया था लेकिन उसमे भी उसे शारीरिक सुख की अनुभूति नहीं हुई थी उसे खुद पर और ज्ञानचंद पर गुस्सा आ रहा था.. उसका तो ठीक से पदमा की योनि पर लिंग लगा भी नहीं था नशे मे ही ज्ञानचंद ने मुश्किल से चार झटके मारे थे की बस वो वहीं ढेर हो गया पदमा की आँखों से आंशू झलक रहे थे.......



अंशुल आज त्यौहार के मोके पर घर आया था लेकिन ये नज़ारा देखकर उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई थी उसने जो आज अपनी आँखों से देखा था वो अपने सामने मे भी नहीं सोच सकता था उसके दिल मे अपनी माँ और पापा के लिए बहुत सामान था लेकिन उसका सारा सामान आज उसकी आँखों से अंशु बनकर बह निकला था.. आँगन मे खड़ा होकर खिड़की के मुहाने से अंशुल ने अपनी माँ पदमा और चाचा ज्ञानचंद के इस कुकर्म को अपनी आँखों से देखा था उसे समझ नहीं आ रहा था की वो क्या करें? अगर वो उसी वक़्त कुछ करता तो समाज मे उसकी माँ पदमा का चरित्र शोषण होना लगभग तय था.. अंशुल के सामने जो हो रहा था उसमे पदमा की मोन सहमति थी जिसे अंशुल अच्छे से समझता था वरना जो औरत बालचंद पर दिनरात चिल्लाती थी और कभी काबू नहीं आती थी वो ज्ञानचंद जैसे साधारण काया वाले इंसान के काबू मे आ जाती ये नहीं माना जा सकता था.... जब ज्ञानचंद बिना पदमा की योनि मे प्रवेश किये ही झड़ गया तब अंशुल अपनी आँखों मे अंशु लिए वापस घर से बाहर निकल गया और वापस चला गया वहीं पदमा अपनी किस्मत को कोसती हुई बाथरूम मे चली गई और अब उंगलियों से ही अपनी ख़ुशी का मार्ग खोजने लगी.... पदमा को इस बात की जरा भी भनक नहीं लगी थी की उसके बेटे ने रसोई मे जो कुछ हुआ था पूरा नज़ारा आप ई आँखों से देखा था और अब वो पूरी तरफ पदमा की शारीरिक असंतुस्टी का राज़ जानता था.... पदमा जब बाथरूम से बाहर आई तब तक ज्ञानचंद घर से जा चूका था पदमा को अगर ज्ञानचंद अब मिलता तो वो न जाने क्या क्या उसे कह सुनाती और जलील करके घर से निकाल देती लेकिन ज्ञानचंद को कुछ ही पलो मे अपनी करनी का अहसास हो गया था और वो लड़खड़ाते हुए बाहर चला गया था.....



हारे रे किस्मत... पदमा सोच रही थी की उसने आज पहली बार व्यभिचार किया था और वो भी उसे देह का सुख नहीं दे पाया था उसने ऐसे कोनसे पाप किये है जो उसे ये सब देखना पड़ रहा है आखिर हर औरत अपने पति से शारीरिक सुख की कामना रखती है मगर जब उससे वो सुख नहीं मिलता तो वो कैसे अपना गुजारा करें यही सोचते हुए पदमा आज उदासी से आंशू बहती हुई बिस्तर के एक ओर लेटी हुई नींद के आने का इंतजार कर रही थी... वहीं दूसरी ओर अंशुल अब तक वापस बड़े शहर आ चूका था ओर अपने दोस्त मनसुख (मस्तु) के रूम पर रुक गया था उसे भी नींद का इंतज़ार था मगर नींद उसकी आँख से कोसो दूर थी अंशुल मे मन मे अजीब अजीब ख्याल ओर प्रशन उठ रहे थे जिसके जवाब उसके पास नहीं थे उसे समझ नहीं आ रहा था कैसे उसकी माँ पदमा इस तरह व्यभिचारिणी बन सकती है उसने आज जो देखा वो उसके लिए कतई बर्दाश करने वाली चीज नहीं थी मगर वो कर भी क्या सकता था अगर वो अपनी माँ को उस हाल मे पकड़ लेता ओर चाचा से लड़ाई करता तो उसकी माँ उससे ऐसा प्यार जैसा की वो करती आई है क्या आगे भी करती? क्या कभी पदमा वापस अंशुल से आँख मिला के बात कर पाती? क्या समाज मे पदमा की बदनाम नहीं होती? क्या उसका परिवार एक साथ रह पाता? अगर अंशुल उस वक़्त कुछ करता तो निश्चित ही उसके परिणाम बुरे या कहे बहुत बुरे हो सकते थे.... कब से ऐसा चल रहा होगा? क्या माँ ओर भी किसी के साथ? छी छी... मैं ये क्या सोच रहा हूँ? ये सब गलत है...



आज नींद नहीं आ रही क्या?

आशु ख्यालो मे गुम था की उसके दोस्त मस्तु ने उससे पूछा....

नहीं भाई... सर थोड़ा भारी हो रहा है...

टेबल के दूसरे दराज मे सर दर्द की दवा है एक गोली लेले ठीक हो जाएगा.. कहते हुए मस्तु पेशाब करने चला गया.....

अंशुल ने गोली ले ली और वापस लेट गया.. उसका फ़ोन भी स्विच ऑफ हो चूका था जिसे उसने अभी चार्ज करने के लिए लगाया था....

मस्तु बाथरूम से वापस आकर अंशुल के बगल मे लेट गया अंशुल से कहने लगा - भाई वो विशाल से बात की क्या तूने? उसका फ़ोन आया था शाम को.... कह रहा था तेरा फ़ोन बंद है...

अंशुल - नहीं वो चार्ज खत्म हो गया था तो फ़ोन चार्ज करने के वक़्त ही नहीं मिला.... अभी जस्ट चार्ज के लिए लगाया है... तू तेरा फ़ोन दे अभी बात कर लेता हूँ.... वो ट्रेडिंग के पैसे के बारे मे बात कर रहा होगा...

मस्तु लॉक खोलकर अपना फ़ोन देते हुए - ले भाई.... तुम्हारा भी सही है.. कोई पूरा दिन मेहनत करके भी कुछ नहीं कमाता और तुम दोनों बैठे बैठे पैसे छाप लेते हो...

अंशुल फ़ोन लेते हुए - कहा भाई.... ये तो हमारे कुछ तुक्के सही बैठ जाते है बस.. वरना तूने तो देखा ही लोगों को ऑनलाइन ट्रेडिंग मे बर्बाद होते हुए...

मस्तु तकिया लगाते हुए - ठीक है भाई... अच्छा मुझे नींद आ रही है तू लाइट बंद कर देना.... वरना कहीं मकान मालिक ने दिख लिया तो सुबह रोयेगा...

अंशुल मस्तु के फ़ोन से विशाल को फ़ोन करता है और उनके बीच बातें काफ़ी लम्बी चलती है जिसमे उसके बीच प्रॉफिट का हिसाब और नई ट्रेड की बातें

हो रही होती है अंशुल ने रूम की लाइट बंद कर दी थी और वापस मस्तु के पास बिस्तर पर आकर लेट गया था मस्तु की आँख लगा चुकी थी और अब करीब एक घंटे बाद अंशुल ने विशाल से बात करके फ़ोन काट दिया था लेकिन अब भी उसका मन नहीं लगा रहा था तो अंशुल ऐसे ही मस्तु का फ़ोन देखने लगता है जिसमे पहले वो मस्तु के फ़ोन मे कुछ देर कैंडी क्रश खेलता है फिर उसके फ़ोन मे व्हाट्सप्प और इंस्टा चलाने लगता है फिर कुछ देर बाद अंशुल मस्तु के फ़ोन की गैलरी मे पहुंच जाता है जहाँ ऐप लॉक लगा हुआ था एक दो बार रैंडम पासवर्ड डालकर अंशुल चेक करता तो गैलरी नहीं खुलती लेकिन अंशुल जब मस्तु की बर्थडेट डालकर गैलरी ओपन करता है तो गैलरी ओपन हो जाती है जहाँ मस्तु की बहुत सारी पिक्स होती है जिसमे वो कभी कॉलेज तो कभी किसी घूमने वाली जगह मे था कुछ मे दोस्तों के साथ अंशुल यूँही पीछे देखते हुए नीचे आता है तो एक फोल्डर उसे नज़र आता है जिसे ओपन करते ही उसकी आँखे फटी की फटी रह जाती है..... उस फोल्डर मे मस्तु एक 45 साल के लगभग की औरत के साथ था और दोनों आपस मे बहुत नजदीक थे दोनों की बहुत सारी पिक्स और वीडियो थे जिसे अंशुल ने इयरफोन लगा कर भी देखा था... अंशुल की आंखे फटी की फटी रह गई थी वो इस औरत को जानता था और न जाने कितनी बार आशीर्वाद लेने के लिए उसके पैर भी छू चूका था.. अंशुल को आज ये दूसरा झटका मिला था और उसे अब इस पर भी भरोसा नहीं हो रहा था अंशुल ने अपना फ़ोन ऑन करके वो सारी पिक्चर्स और वीडियोस अपने फ़ोन मे ट्रांसफर कर ली और मस्तु का फ़ोन वापस जैसा था वैसा करके वही रख दिया.. अंशुल को अब नींद नहीं आने वाली थी उसके सर ओर आज दो बोम गिरे थे एक अपनी माँ पदमा के व्यभिचार का और दूसरा अपने दोस्त मस्तु के अवैध सम्भन्ध का...

रसुबह के पांच बज रहे थे और अंशुल रूम की लाइट ऑन करके बैठा हुआ था उसके सर मे बहुत सी बातें चल रही थी जो उसे सोने नहीं दे रही थी रातभर वो जागा था मस्तु की नींद भी खुल चुकी थी और वो अंशुल को इस तरह बैठा हुआ देखकर चौंक चूका था....



क्या हुआ आशु... सर दर्द ठीक नहीं हुआ? मस्तु ने पूछा तो अंशुल ने उसकी और देखते हुए उतर दिया - नहीं....

मस्तु नींद के बाद की ऊँगाई से जागते हुए आंखे मलकर बोला - रुक भाई मे चाय बना देता हूँ....

अंशुल बेरुखी से - रहने दे.... मन नहीं है चाय पिने का...

मस्तु अंशुल की बात सुनकर बाथरूम चला जाता है और अच्छी तरह मुँह हाथ धोकर वापस आ जाता है.. मस्तु इस बार अंशुल से बिना कुछ बोले चेयर पर बैठकर किताब उठकर पढ़ने लगता है शायद इतिहास की किताब होगी.... करीब डेढ़ घंटे बाद भी अंशु जब उसी तरह बैठा रहता है तो मस्तु इस बार उसे देखकर झाल्लाते हुए बोलता है - अरे भाई हुआ क्या है कुछ भोकेगा? या फिर रंडवि भाभी बनकर बैठा रहेगा? तुमको देखकर साला हमको भी डिप्रेशन हो रहा है अब....

अंशुल इस बार मस्तु से बोला - साले शर्म नहीं आती तुझे?

मस्तु - अबे किस बात की शर्म बे? कमरे का किराया और बाकी खर्चा पूरा तू देता है तो क्या हुआ? ****** बनुगा तो सूत समेत ले लेना.... इस बार प्रिलियम्स निकल गया है... मेंस और इंटरव्यू भी निकाल जाएगा देखना.... फिर जो चाहिए ले लेना....

अंशुल गुस्से से - भोस्डिके मैं सारी रात जागकर सुबह तुझसे किराये की बात करूंगा? तूने जो गुल खिलाये है मैं उसकी बात कर रहा हूँ.... साले तुझे जरा भी शर्म नहीं आई ये सब करते हुए वो भी........ छी....

मस्तु इस बार अंशुल की बात सुनकर थोड़ा घबराह जाता है लेकिन उसने तो अपने फ़ोन पर ऐपलॉक लगाया था तो फिर कैसे? नहीं नहीं... जरुर ये कोई और बात कर रहा होगा.. मस्तु ये सब सोचकर अंशुल से कहता है....

मस्तु - अबे पहेलियाँ ही बुझाता रहेगा या साफ साफ कुछ कहेगा भी? तुम्हारा ये रंडी रोना हमारे समझ के बाहर है.... हमने ऐसा क्या कर दिया जो तुम्हे रातभर नींद नहीं आई? कुछ बताएगा?

अंशुल गुस्से मे - अरे मादरचोद..... तू सब जानता है जनता है मैं क्या बात कर रहा हूँ.... महीने के आखिर मे 3-4 दिन तू अपनी अम्मा को इसिलए मधुबनी से बुलाता था ना.... और इस सबका खर्चा भी मुझिसे लेता था.... साले तुझसे बड़ा मादरचोद मैंने आज तक नहीं देखा.... थोड़ी तो शर्म करता हराम के जने...

मस्तु के कान मे जैसे ही अंशुल की बात गई वो उठकर सबसे पहले कमरे का दरवाजा बंद कर देता है और अंशुल के पैर पकड़ लेता है...

भाई.... भाई.... यार तुम्हारे पैर पकड़ते है... किसीसे कुछ मत कहना.. हमारी बहुत बदनामी होगी... किसीको मुँह दिखाने के काबिल नहीं रहेंगे भाई प्लीज...

अंशुल - तुझसे ये उम्मीद नहीं थी.... साले तूने अपनी भोली भली माँ को ही अपनी हवस का शिकार बना लिया? बेचारी को क्या क्या सहना पड़ा होगा? तेरे जैसा बेटा होने से तो अच्छा होता बेचारी बाँझ ही रह जाती... तू वाक़ई मे बहुत गंदा इंसान है मस्तु.... मैं तुझे देखना भी नहीं चाहता है.... मैं जा रहा हूँ और आज के बाद तेरी शक्ल भी नहीं देखना चाहता... तेरी माँ ने कितनी बार मुझे अपने हाथ का खाना खिलाया है प्यार से मेरा दुख सुख साझा किया है मैंने कितनी बार उसके पैर छुए है.... मैं अपनी माँ की तरह ही उसे सम्मान देता हूँ लेकिन तूने? तूने तो रिस्तो को तार तार ही कर दिया मस्तु....

मस्तु अंशुल के सामने हाथ जोड़ते हुए - भाई... प्लीज मुझे माफ़ कर दे.... मैं जानता हूँ ऐसी गलती माफ़ी के लायक नहीं है लेकिन इसमें सिर्फ मेरे अकेले की गलती है... अगर तू ऐसा सोचता है तो तू भी गलत है.... मेरी माँ भी मेरे साथ उतनी ही दोषी है जितना की मैं.... और इस रिश्ते की शुरुआत उसीने की थी....

अंशुल - खुदको बचाने के लिए कुछ भी मत बोल मस्तु.... मैं अच्छी तरह जानता हूँ आंटी को.... उनके जैसी सीधी सादी घरेलु औरतों कभी ऐसी हरकत खुदसे नहीं कर सकती.... जरुर तूने ही उन्ही फुसलाया होगा और इस सब मे खींचा होगा...

मस्तु - तुझे मेरी बात पर विश्वास नहीं है तो ठीक है... मै अभी तुझे सबूत दे सकता हूँ.. तब तो तू मेरी बात पर विश्वास करेगा....

अंशुल - मैंने तेरे फ़ोन मे सब देख लिया है मस्तु... अब क्या सबूत बाकी है देने को?

मस्तु अंशुल को बैठाते हुए - भाई मैं झूठ नहीं बोल रहा..... उन्होंने ही मेरे साथ इस सब की शुरुआत की थी ताकि मेरा ध्यान पढ़ाई से ना भटके और मैं जल्दी से एक बड़ा अफसर बनकर घर संभाल सकूँ.... तू अगर यक़ीन नहीं होता तो रुक मैं अभी तुझे यक़ीन दिलाता हूँ.....

मस्तु अपना फ़ोन लेकर अपनी माँ चमेली को फ़ोन करता है.....

चमेली फ़ोन उठाकर - हेलो बेटा.... आज सुबह सुबह कैसे याद आ गई अपनी माँ की बुर की.... लंडवा मे ज्यादा खुजली चल रही है क्या? कहो तो मिटाने आये?

अंशुल चमेली की बात सुनकर मस्तु की तरफ हैरानी से देखने लगता है उसने अभी जो सुना उस पर उसे विश्वास कर पाना कठिन था लेकिन सत्य यही था जो उसने अभी सुना, अंशुल को अब मस्तु की बात पर यक़ीन हो चूका था.......

मस्तु - नहीं माँ.... वो हम सिर्फ इतना कह रहे थे की इस बार जब आप यहां आइयेगा तो आचार लाना ना भूलियेगा.... खाने की बहुत इच्छा होती है...

चमेली - चिंता मत कर बेटा... कुछ दिनों की बात है.... इस बार जब आउंगी तो अपनी बुर पर आचार लगाकर चटवाउंगी तुझे.... वैसे पढ़ाई तो सही चल रहा है ना तुम्हारी? अपना ध्यान कहीं भटकने मत देना बेटा.... अगर चाहिए तो अपनी माँ की चुत 8-10 बार एक्स्ट्रा चोद लेना लेकिन पढ़ाई मे पूरा ध्यान देना.... हमें अफसर की माँ बनना है.... ठीक है ना?

मस्तु - पढ़ाई ही कर रहे थे माँ....

चमेली - अच्छा.... तुम्हारा दोस्त आशु केसा है?

मस्तु - वो ठीक है माँ.. बाथरूम मे है....

चमेली - हम्म्म.... बहुत मासूम है बेचारा.... बाहर आये तो बात करवाना.....

मस्तु फ़ोन अंशुल की तरफ बढ़ाते हुए - लो आ गया बात कर लो..

अंशुल को जो हो रहा था कुछ समझ नहीं आ रहा था वो तो किसी गहरी सोच मे डूबा हुआ था जहाँ से मस्तु ने उसे निकालते हुए फ़ोन दे दिया था अंशुल इस वक़्त क्या बात करेगा और किस तरह बात करेगा ये बड़ा सवाल था लेकिन फिर भी अंशुल ने फ़ोन ले लिया और खुदको सँभालते हुए बोला....

अंशुल फ़ोन लेकर - नमस्ते आंटी....

चमेली - अरे खुश रहो बेटा.... ककैसे हो? अपनी आंटी की याद करते हो या नहीं?

अंशुल - बस आंटी अभी आपको ही याद कर रहा था.....

चमेली हसते हुए - कहा याद कर रहे थे? बाथरूम मे?

अंशुल - अरे आंटी आप भी ना.... अच्छा कब आ रही है आप? मस्तु बुला रहा था आपको....

चमेली - अभी कहा बेटा.... बहुत काम है यहां... और इस महीने मे अब छुटि भी नहीं मिलेगी वहा आने के लिए....

अंशुल - आप काम करती हो?

चमेली - अब बिना काम के कैसे पेट भरेगा बेटा? काम तो करना ही पड़ेगा....

अंशुल - आंटी आप पैसे की चिंता मत करो मैं अभी कुछ पैसे भिजवा देता हूँ आप बस जल्दी से यहां आ जाओ.... मुझे आपके हाथो का खाना खाना है...

चमेली - ठीक है बेटा.... मैं इस इतवार को ही आ जाउंगी.....

अंशुल फ़ोन मस्तु को दे देता है और टेबल पर रखी बोतल से पानी पिने लगता है...

मस्तु -अच्छा माँ अब फ़ोन रखते है....

चमेली - ठीक है बेटा.... फ़ोन कट हो जाता है...

मस्तु - भाई अब तो यक़ीन हो गया.. मैंने कहा था ना की मैं अकेला दोषी नहीं हूँ....

अंशुल उदासी से - भाई एक बात समझायेगा? आखिर औरत को चाहिए क्या होता है?

मस्तु - क्या हुआ भाई? ऐसे क्यूँ बात कर रहा है?



अंशुल मस्तु को अपने दिल की सारी उलझन बता देता है और ये भी बता देता है की कैसे उसने अपनी माँ पदमा देवी को अपने चाचा के साथ अधूरा व्यभिचार करते देखा था अंशुल के दिल की सारी बातें मस्तु सुन रहा था और समझ रहा था मस्तु उसी की उम्र का लड़के था लेकिन उसमे समझ अंशुल से ज्यादा थी उसे अंशुल की मनोदशा और उसके साथ होने घटने वाली व्यथा अच्छे से समझ आ रही थी और उसका समाधान भी दिखाई दे रहा था लेकिन ये समाधान क्या अंशुल को स्वीकार था? कहा नहीं जा सकता क्युकी जिसतरह से अंशुल ने मस्तु और चमेली के रिश्ते पर आपत्ति जताई थी वो कैसे मस्तु के समाधान पर सहमति जता सकता था... अंशुल की बातें सुन और समझकर मस्तु अंशुल को दिलासा दे रहा था और जल्दी ही उसकी परिस्थिति बदल जाने की बात कह रहा था...



मस्तु - भाई मैं तेरी परेशानी समझ सकता हूँ.... ये तो हर दूसरे घर की कहानी है.. आज कहीं भी देख लो महिलाओ को अगर काम सुख नहीं मिलता तो वो किसी ना किसी के जाल मे फंस ही जाती है.... तुम्हे क्या लगता है मेरी माँ बड़ी साफ सुथरी है? मुझसे पहले उसके कई आशिक थे.. उन्होंने अपनी जुबान से हमें अपना राज़ बताया है वो भी इसी बिस्तर पर....

लेकिन जब से मेरे साथ उसका रिस्ता बना है तब से उन्हें कहीं बाहर मुँह मारने की जरुरत नहीं पड़ी उसके सारे बाहरी रिश्ते ख़त्म हो गए.... भाई बुरा मत मानना मगर अगर तुम चाहते हो की तुम्हारा घर बाहरी लोगों से बचा रहे तो तुमको ही कुछ करना होगा....

अंशुल चुपचाप मस्तु की बात सुन रहा था और उसे उसकी बातें कुछ कुछ समझ भी आ रही थी जिससे वो चाहकर भी नहीं बच सकता था....

अंशुल - भाई मगर मैं अपनी ही माँ के साथ..... नहीं यार मैं सपने मे भी ऐसा कुछ नहीं सोच सकता.... मैं ऐसा कुछ करने से पहले मरना पसंद करूंगा....

मस्तु - मैं समझ सकता हूँ आशु.... तुम्हारे लिए ये आसान नहीं होगा... मगर अगर तुम्हे अपना घर बाहरी लोगों से बचाना है तो मेरी बात को एक बार फिर सोचना भाई.... क्युकी बाद मे पश्चिताप के सिवा और कुछ नहीं होगा..



अंशुल मुरझाई आवाज़ मे - नहीं मस्तु.... मैं ऐसा नहीं कर सकता... मैं अपनी माँ के साथ ऐसे रिश्ते मे नहीं बंध सकता जहाँ प्रेम के स्थान पर वासना भरी हो.. जहाँ शारीरिक सुख भोगने के लिए मानसिक सुख की बली चढ़ानी पड़े.... और वैसे भी इस बात की क्या गारंटी है मैं ये सब कर पाउँगा? मैंने आज तक जो भी किया है मैं उसमे नाकाम ही रहा हूँ.... फिर कैसे इस काम कर सकता हूँ....

मस्तु - भाई अपनेआप पर शक मत कर..... तुमने आज तक हर काम अधूरा छोड़ा है क्युकी उसमे तुम्हारा नहीं मन था.... मगर मैं जानता हूँ तुम इसे अच्छे से पूरा कर सकते हो.... जहाँ तक बात प्यार की है तो देखना इसके बाद तुम्हारे रिश्ते मे गहराइ और सोच मे पवित्रता आएगी.... तुम पहले की तुलना मे अधिक प्रेम करोगे अपनी माँ से..... और ये हम दावे के साथ कह सकते है... आशु हमने एक दो बार तुम्हे तुम्हारी प्रकर्तिक हालत मे देखा है और हम सर्त लगा सकते है की तुम किसी भी औरत को खुश रख सकते हो...

अंशुल - तुमने कब मुझे नंगा देख लिया?

मस्तु - भाई तुम्हे कितने बार बोले थे बाथरूम का दरवाजा लगा कर नहाना कर... अब नज़र पड़ ही जाती है...

अंशुल - तुम्हे सच मे लगता है मैं अपनी माँ को खुश रखता हूँ जैसे तुम आंटी को रखते हो?

मस्तु अपना लिंग निकालते हुए - भाई मेरा 7 इंच लम्बा और ढाई इंचाई मोटा है.... और मुझे लगता है की तुम्हरा मुझसे ज्यादा बड़ा है.... इसलिए तुम अपनी तो क्या मेरी माँ को भी खुश रख सकते हो... किसी भी लड़की को खुश रखा सकते हो...

अंशुल मस्तु का देखकर अपना भी निकाल लेता है और मस्तु उसे देखकर कहता है - कहा था ना भाई.... देखने लगता है 8-9 इंच से कम लम्बा नहीं होगा और 3 साढ़े 3 इंच से कम मोटा नहीं होगा....

अंशुल अपना वापस अंदर डाल लेता है...



अंशुल - पर भाई शुरुआत कैसे करूंगा? मेरी तो हिम्मत ही नहीं होगी कुछ करने की.... समझ नहीं आ रहा क्या कहूंगा माँ से? अगर उन्हें मेरी किसी बात का बुरा लगा गया तो? मुझे तो बहुत डर लग रहा है... कुछ समझ नहीं आ रहा मस्तु....

मस्तु - भाई... अभी से इतना डर? तू सबसे पहले तो दिल से डर निकाल दे... समझा? और जाते ही सब थोड़ी होगा.... भाई धीरे धीरे शुरुआत करनी होगी.... तुमने बताया तुम्हारी माँ पूरा दिन घर पर अकेली रहती तो अकेले बोर हो जाती होगी दिल नहीं लगता होगा.... तू उनसे बात करना शुरु कर किसी भी बारे मे... सारा दिन आगे पीछे घूम.... उनका ख्याल रख जैसे उनके अलावा तेरी लाइफ और कुछ है ही नहीं... फिर देखना सब अपने आप हो जाएगा.... पर एक बात याद रखना आशु.... कभी भी जल्दबाजी मत करना वरना सब बिगड़ जाएगा....

अंशुल - मुझसे हो पायेगा ये सब?

मस्तु - सब होगा..... हर औरत को पैसो से प्यार होता है तू थोड़ा बहुत उनपर खर्चा करेगा उन्हें सर सपाटा कराएगा तो सब होगा....

अंशुल अपना फ़ोन उठाते हुए - समझ गया मस्तु...... अच्छा पैसे भेज रहा हूँ तेरे **** पर.... आंटी को इस बार एक बढ़िया सी महँगी बनारसी साडी दिलवा देना मेरी तरफ से... और एक अच्छा सा मोटा मुलायम गद्दा भी खरीद लेना.... बेचारी चमेली आंटी इस पुराने ठोस बिस्तर पर रातभर परेशान हो जाती होंगी....

मस्तु - थेंक्स भाई.... देखना एक दिन तेरा सारा अहसान सूत समेत वापस करूंगा...

अंशुल - पहले ****** बन तो जा....

मस्तु - मैं तो बन जाऊंगा भाई तू भी कुछ सोच ले.... एक छोटी मोटी सरकारी जॉब की तयारी तू भी कर ले...

अंशुल हसते हुए - मुझसे कहा तयारी होगी भाई तू तो जानता है मैं पढ़ाई मे कितना तेज़ हूँ.....

मस्तु - भाई तेरा ****** सब्जेक्ट बहुत स्ट्रांग है ****** मे वेकन्सी निकली है फॉर्म लगा दे थोड़ी सी त्यारी करेगा तो निकाल लेगा... और एक बार पहला पेपर निकला तो असद भाई का बहुत स्ट्रांग जुगाड़ है ऊपर तक.... दूसरे पेपर मे पैसे देके सब हो जाएगा....

अंशुल - भाई जितनी तनख्वाह मिलेगी उतना मैं वैसे ही कुछ दिनों मे ट्रेडिंग से कमा लूंगा.... क्यूँ फालतू अपना सर खर्चा करू इन सब मे? वैसे भी कोनसे बड़े ओहदे की नोकरी होगी? ज्यादा से ज्यादा किसी अफसर की चाटने का काम मिलेगा....

मस्तु - तुमने ठीक से नहीं सुना भाई.... ये ****** वाली नौकरी है.. लोग तुम्हारे नीचे काम करेंगे.... तुम्हरे कहने पर काम करेंगे.... तुम्हारे पास अपने से नीचे के लोगों को ससपेंड करने की पावर होगी....

तुम्हारे नाम की मुहर लगेगी सरकारी कागज पर....



अंशुल मुहर शब्द सुनकर अपनी पुरानी याद के सागर मे डूब जाता है जहाँ उसे एक सरकारी दफ़्तर याद आता है जहा वो अपने बचपन मे अपनी माँ और पापा के साथ गया था..

हर तरफ फाइल्स के ढेर और मोटी तोंद लटकाए सरकारी कर्मी उसकी आँखों के सामने आज भी उसी तरह बैठे थे जैसे की बचपन मे उसने देखा था..

अपनी जमीन के एक छोटे से काम के सिलसिले मे दर्जनों बार अंशुल को कभी बालचंद तो कभी पदमा के साथ उस सरकारी दफ़्तर के चक्कर लगाने पड़े थे...

ना जाने कितनी ही बार अंशुल ने छोटे मोटे सरकारी नौकरो से अपने माँ बाप को खरी खोटी सुनते देखा था घुस नहीं दे पाने के कारण वो जमीन वापस न मिल सकती थी..

बालचंद खुद भी एक दफ़्तर मे सरकारी चपरासी था लेकिन उसकी पहुंच उसीके कद वाले लोगों तक थी दफ़्तर मे कोई उसे मुँह तक नहीं लगाता था तो बड़े बाबू से शिफारिश करना भी उसके बस की बात नहीं थी और वैसे भी ये काम किसी बाबू के कहने पर होने वाला नहीं था.... या तो बालचंद को मोटी घुस देनी पडती या किसी बड़े अधिकारी से सिफारिश लगवानी पडती जो दोनों ही उसके बुते के बाहर की चीज थी...



अंशुल को आज भी साफ साफ एक एक शब्द याद है जो उस वक़्त टेबल पर बैठे आदमी ने उसके माँ बाप से कहे थे....



अरे चलो चलो.... निकलो यहां से....

एक बार कह दिया ना तुम्हरा काम नहीं हो सकता....

एक बार का समझ नहीं आता है तुमको?

फिर कहे बार बार अपनी ये मनहूस शकल लेकर बेज्जती करवाने चले आते हो सुबह सुबह?

और कोई काम धंधा नहीं है तुम लोगों को?

चलो अब दफा हो जाओ यहां से....

दूसरा सरकारी आदमी आकर बैठते हुए बोला....

तुम तो ***** मे सरकारी चपरासी हो ना बालचंद? फिर भी तुम्हे सरकारी नियम कायदा समझना पड़ेगा?

अरे या तो हमारे साब के लिए बताई हुई भेंट का बंदोबस्त करो या किसी बड़े ओहदे के अफसर से सिफारिस लगवाओ जिसके पास सरकारी मुहर हो..... तभी तुम्हारा काम हो पायेगा....... समझें?



मुहर...... हां.... मुहर..... एक यही शब्द था जो अंशुल के दिल मे उस दिन घर कर गया था..

कितनी शर्मिंदा हुई थी उसकी माँ पादमा.... घर आने के बाद बेचारी ने जमीन छीन जाने के ग़म मे आंसू की नदिया बहा दी थी......

उस वक़्त अंशुल सिर्फ दस बरस का था उसे अपने सामने हो रही किसी भी चीज को उतनी गहराइ से समझने की अकल नहीं थी लेकिन उसे इतना समझ जरुर आ गया था की कोई बड़ा आदमी जिसके पास मुहर हो वो उसके माँ बाप का काम कर सकता था...



अंशुल ने उस दिन अपनी माँ पदमा को आंसू पोछते हुए कहा था....

रो मत माँ.....

मैं जब बड़ा हो जाऊंगा तो एक बड़ा अफसर बनुगा.. और मुहर वाली नोकरी करूँगा....

और फिर अपनी जमीन सरकार से वापस लेकर आपको दे दूंगा....

और उस गंदे आदमी को सबक भी सिखाऊंगा जिसने आपको रुलाया है.....

आप रोओ मत..... मैं बड़ा होकर सब ठीक कर दूंगा..



पदमा ने उस वक़्त छोटे से आँशु का चेहरा चूमते हुए उसे अपनी छाती से लगा लिया था और बहुत देर तक यूँही बैठी रही थी वो..



मगर वक़्त के साथ अंशुल के दिमाग से मुहर वाली नोकरी करने का ख्याल भी निकाल गया और पदमा के जहन से अंशुल की वो बातें जो उसने बचपने मे कही थी.....

मगर आज अंशुल के जहन मे वो सब फिर से ताज़ा हो व्यक्ति था....

अंशुल ने मस्तु से पूछा - अगर मैंने दोनों पेपर निकाल लिये तो क्या मुझे अपने जिले के ***** मे पोस्टिंग मिलेगी?

मस्तु हसते हुए - पैसे से क्या कुछ नहीं हो सकता अंशु.... यही तो हमारे सिस्टम की सबसे बड़ी खूबी और कमी है.....

अंशुल - **** पैसे और भेज रहा हूँ.... तू आज ही मेरा फॉर्म फीलअप कर दे.... और शाम को किताबें भी ले आना.... मैं घर जाकर दोनों काम एक साथ करुंगा.



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❤️❤️❤️❤️❤️❤️

Xforum pr Advertisement bahut jyada aa rhe h yaar kisike pass solution h btana

Hello Bhai aapke sare update hi ek se badhkar ek hote hai jinhe padhkar ek alag maja aaye aur aise hi story mujhe pasand bhi hai ki jinme sirf se ya chudai na ho balki apni ek story ho ek plot ho isiliye is story ko padhne me alag maja aata hai waise kuch chije mujhe khatki woh me aapko highlight karna chahunga ummid hai aap use positive le aur agar aapko kuch naraz kare bada Dil rakhkar is nasamz lekhak ko maaf kare

1) sex parts :- waise mene aapko pahle bataya ki sex story ka main part naa ho tab ek alag maja aata hai lekin jab aap ek story likh rahe ho toh sex ko achhe se explore karna chahiye lekin aap sex parts ko turant khatam kar dete ho jo kabhi kabhi pasand nahi aata


2) un wanted blanks :- un wanted blanks aapke story me bahut jaga hai jisse padhne ka fill aur maja dono thoda kharab ho ne lagta hai jaise as a example

अंशुल - **** पैसे और भेज रहा हूँ.... तू आज ही मेरा फॉर्म फीलअप कर दे.... और शाम को किताबें भी ले आना.... मैं घर जाकर दोनों काम एक साथ करुंगा.

Jaise aap is scene me stars ke badle koi bhi imaginary word use kar sakte ho jaise

अंशुल - कुछ पैसे और भेज रहा हूँ.... तू आज ही मेरा फॉर्म फीलअप कर दे.... और शाम को किताबें भी ले आना.... मैं घर जाकर दोनों काम एक साथ करुंगा.

Is Tarah padhne ki continuti bhi bani rahegi aur kahi ataka hua bhi mahsoos nahi hoga

Jaise ki mene pahle kaha kuch bura lage toh maaf kare
 
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RK5022

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Details me har writter likh sakta hai, aah uhh se pura sex scene bada kiya ja sakta hai par ye writer alag hai, Padma ke saath jis tarah se suru me sex scene skip kiya gaya tha wo sabse aacha decision tha, nahi to abhi flashback me padma ke saath jo dikhaya ja raha hai usme utna maja nahi ta
 
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RK5022

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अध्याय 9
घर वापसी
(फ़्लैशबैक भाग -2)



विशाल - आज तक का अपना कंबाइन प्रॉफिट है ****** इसमें से आधा मेने अपने और आधा तेरे दोनों अकॉउंट में बराबर ट्रांसफर कर दिया है.... ठीक है भाई अब तक का अपना हिसाब बराबर, अब कल से फ्रेश स्टार्ट होगा...
नहीं भाई मैं गाँव जा रहा हूँ आज... तू अकेला ही संभाल अब ये सब...
क्यों भाई? इतना अच्छा तो चल रहा है सब.. फिर अचानक से गाँव क्यों जा रहा है? तुझे तो करोडो कमाने थे ना.. बड़ी गाडी घर लेना था.. फिर इतने से पैसे से कैसे काम चला लेगा?
भाई पैसे से भी जरुरी चीज़े है दुनिया में.... और वैसे भी हफ्ते में एक-आदि ट्रेड तो मैं तेरे साथ फ़ोन पर भी उठा सकता हूँ.... और तू जानता मेरा अंदाजा कितना सटीक होता है.. उतने से अपना काम हो जाएगा... पर अब गाँव जाना जरुरी है...
ठीक है अंशुल.... जैसा तू चाहे.. तेरे फ़ोन को क्या हुआ? बंद आ रहा था अब भी बंद है....
कुछ नहीं यार... कल चार्ज नहीं था और सुबह हाथ से छूट गया तो टूट गया....
भाई आजकल बहुत अजीब हो रहा है तेरे साथ... मेरे पास एक्स्ट्रा फ़ोन है तू चाहे तो उसे कर ले...
नहीं यार.... अभी बाइक लेनी है तो साथ न्यू फ़ोन भी ले लूंगा... चल निकलता हूँ...

अंशुल न्यू फ़ोन और बाइक दोनों खरीद लेता है और मस्तु से किताबें लेकर अपने कस्बे जिसे बड़े शहर में सब गाँव ही कहते है चला देता है.....

रात के 9 बज रहे थे.. पदमा ने बालचंद को खाना परोस कर टीवी ऑन कर दिया था बालचंद ने हमेशा की तरह गाने का चैनल लगा दिया था और आराम से आँगन में बैठा खाना खा रहा था, खाना खाने के बाद बालचंद अंदर चला गया और थकावट के आगोश में उसे जल्दी ही नींद आ गई पदमा इस वक़्त रसोई का काम करके निपटी ही थी दरवाजे दस्तक हुई....

इस वक़्त कौन आया होगा? सोचती हुई पदमा रसोई से निकलकर अपनी साडी के पल्लू से अपने पसीने पोछती हुई दरवाजे की तरफ बढ़ी और दरवाजा खोला और अपने सामने अपने बेटे अंशुल को खड़े देखा, अंशुल को अपने सामने खड़े देखकर पदमा ख़ुशी से चहक उठी थी मानो उसकी कोई मन्नत पूरी हो गई हो.. आज पुरे 2 साल बाद अंशुल पदमा की आँखों के सामने था, आखिर बार जब वो यहां था तो उसकी जुड़वाँ बहन आँचल की शादी थी शादी के तुरंत बाद ही अंशुल पदमा से बिना मिले शहर चला गया था और उसके बाद आज पदमा अंशुल को देख रही थी......

आशु..... कहते हुए पदमा ने अंशुल को गले से लगा लिया...
अंशुल ने जिस पदमा को कल व्यभिचार के जाल में फंसा हुआ देखा था आज वो इतने प्रेम और मातृत्व के साथ उसे अपने गले से लगाए हुई थी मानो इस धरती की सबसे पावित्र स्त्री हो.. पदमा की ममता में कोई मिलावट न थी.. कितना निश्चिंल प्रेम था पदमा के मन में अंशुल के लिए.. अंशुल को इस बात का अहसास हो रहा था और वो सोच रहा था अगर कल वो अपनी माँ को उस हालत में पकड़ लेता तो क्या उसे ये प्रेम नसीब होता? बिलकुल भी नहीं.. वो यहां अपनी माँ को बाहरी लोगों से बचाकर अपना प्यार देने आया था.. अंशुल पदमा को अपनी माँ के साथ साथ एक स्त्री भी मानने लगा था जिसे शारीरिक सुख की कामना थी और वो सुख अंशुल देने के लिए वापस आया था..
पदमा के गले से लगे हुए अंशुल ने अपने दोनों हाथो को पदमा के पीछे लेजाकर पदमा को भी उसी सहजता और ताकत से साथ अपने सीने में क़ैद कर लिया था जैसे पदमा ने उसे किया हुआ था.... हाय... अंशुल के मन में सिर्फ यही एक शब्द उठा था... आज अंशुल अपनी माँ पदमा की देह की सुगंध ले रहा था उसकी नाक पदमा के गले की तरफ थी जहाँ पदमा की खुली हुई जुल्फों से होती हुई बाहर उठती उसकी देह की खुशबु अंशुल की नाक से होती हुई उसके बदन में उतेजना भरने का काम कर रही थी... वो उसी तरह से अपनी माँ पदमा को बाहों में भरे तब तक खड़ा रहा जब तक की पदमा ने उसे अपनी क़ैद से आजाद न किया था... अंशुल इन कुछ पल में पदमा के बदन ने नाप ले चूका था उसके बदन की खुश्बू से वाक़िफ़ हो चूका था.. उसके रूप का अध्यन कर चूका था....

यूँ ही कुछ देर अंशुल को गले से लगाने के बाद पदमा ने उसे अपने से अलग कर दिया तो अंशुल ने झुककर पदमा के पैर छुए... मानो वो जो कार्य करने वाला था जीसमे रिश्ते-नाते और समाज की नियमावली छीन-भीन होने वाली थी उसके लिए पदमा से आशीर्वाद और माफ़ी एक साथ मांग रहा हो....
पदमा मुस्कुराते हुए - अरे अरे.... तू भी क्या ये सब करने लगा.... चल अंदर आ... पर ये बाइक किसी ले आया आशु? और इतना बड़ा बेग?
अंशुल - बाइक मेरी ही है माँ..... और इस बेग में मेरा सामान....
पदमा हैरानी से - तू वापस शहर नहीं जाएगा?
अंशुल पदमा के माथे को चूमते हुए - क्यों आप मुझे वापस अपने से दूर भेजना चाहती हो? में अपनी माँ को छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगा... ये कहते हुए अंशुल अपना बेग लेकर घर के अंदर आ गया..
पदमा ख़ुशी से फिर अंशुल को गले लगा लेती है और कहती है - सच कह रहा है आशु?
अंशुल मुस्कुराते हुए - बिलकुल सच.... अच्छा अब छोडो मुझे.. मैं बेग रखकर आता हूँ....
पदमा - हां... तू अपने कमरे में जा.. हाथ मुँह धो ले.. मैं तेरे लिए खाना लाती हूँ...

अंशुल ने अपना बेग़ कमरे में रखा और नहाने चला गया जब नहाकर बाहर आया तो बस उसके बदन पर तौलिया था जिसमें उसकी प्राकर्तिक बनावट और देह की आकर्षक पेशीया सुगठित दिखाई दे रही थी जो उसके जिम करने का परिणाम थी अंशुल का बदन किसी हीरो से कतई कम नहीं था सीने पर हलके से बाल और चहेरे पर कामदेव की कृपा से झलकता तेज़ हलके घूँघराले बालों से साथ बेहद मनमोहक लगता था...

जब अंशुल नहाकर कमरे में आया तो सामने उसकी माँ पदमा खड़ी हुई किसी किताब को देख रही थी पदमा अपने साथ खाने की थाली लाइ थी जिसे उसने स्टडी टेबल पर रख दिया था.. अंशुल के आने की आहट सुनकर पदमा का ध्यान किताब से निकलकर अंशुल पर आ टिका था और एक बार के लिए पदमा अपने बेटे अंशुल के बदन को देखकर कर कामुक हो उठी थी लेकिन अगले ही पल जैसे कोई उसे काम के कुए में गिरने से बचाकर बाहर खींच लाया था.....
अंशुल के सुन्दर मुख और गठिली चौड़ी छाती के साथ साथ उसपर लगी पानी की कुछ बूंदो के अलावा मसक्युलर बाहों से नज़र हटा कर पदमा ने खुदको सँभालते हुए अंशुल से पूछा - आशु... ये किताबे? कॉलेज का और भी इंतिहान बाकी है?

अंशुल पहली नज़र में ही पदमा के मन की बात समझ गया था पदमा काम की अग्नि में जल रही थी और उसीके कारण कल पदमा ने ज्ञानचंद जैसे कुरूप और अपनी जवानी खो चुके आदमी को अपनी देह सौंप दी थी मगर फिर भी उसके बदन की आग शांत न हो पाई थी आज अंशुल के सामने खड़ी पदमा ने अंशुल के बदन को जिस तरह से निहारा था वो देखकर अंधा भी पदमा के मन की भावना समझ सकता था अंशुल के लिए उसे समझना मुश्किल न था और उसे मालूम हो चूका था की अगर वो पदमा का ख्याल नहीं रखेगा तो वो इस अग्नि में अपने आप को भस्म कर लेगी, अंशुल जानबूझकर सिर्फ तौलिया में ही रहा और ऊपर कोई कपड़ा नहीं पहना, वो चाहता था की पदमा उसके बदन को अच्छे से निहारे और उसके लिए पदमा के दिल में अलग भावना का जन्म हो.....
अंशुल - नहीं माँ.... कॉलेज तो ख़त्म हो चूका है... ये तो दूसरे इम्तिहान की किताबे है.... अरे वाह आपने **** बनाया है.. आपको पत्ता था मैं आने वाला हूँ? बहुत भूख लगी है... ये कहते हुए अंशुल तौलिये में ही स्टडी टेबल के सामने रखी चेयर पर बैठकर खाने की थाली अपनी और खिसका ली और खाना खाने की शुरुआत कर दी...
पदमा आठवीं फ़ैल थी ज्यादा तो नहीं मगर हां.. पढ़ना और लिखना बखूबी जानती थी... पदमा ने वापस किताब देखते हुए कहा - कॉलेज की नहीं तो किस इंतिहान की किताब है आशु.... पदमा ने बड़ी अचरजता और जिज्ञासा के साथ खाना खाते अंशुल से पूछा...
अंशुल ने खाना खाते हुए बिना पदमा को देखे जवाब दिया - आप भूल गई? मैंने क्या वादा किया था आपसे?
पदमा और ज्यादा जिज्ञासा के साथ - क्या आशु?
अंशुल ने इस बार पदमा को देखा और उसका हाथ पकड़ कर कहा - यही की मैं एक दिन किसी बड़े ओहदे पर मुहर वाली नोकरी करूँगा.... ये उसी के इंतिहान की किताबें है.....
अंशुल के इतना कहते ही पदमा को वो बातें याद आ गई जो अंशुल ने बहुत पहले उसके आंसू पोछते हुए उससे कही थी.... पदमा के मन में अंशुल के प्रति करुणा प्रेम मोह और सम्मान अविरल बह चला था... इतनी पुरानी बात अब तक अंशुल को याद थी? वो मेरे लिए इम्तिहान देगा? आज तक पदमा के लिए किसी ने किया ही क्या था? मगर आज उसका बेटा अंशुल उसके लिए बड़ा इम्तिहान देने वाला था मुहर वाली नोकरी हासिल कर पदमा से किया वादा निभाने वाला था... पदमा की आँखों में नमी आ गई थी, पदमा खाना खाते अंशुल के गले लगने से खुदको रोक न सकी और चेयर पर बैठे अंशुल की गोद में बैठते हुए अंशुल के सीने से लग गई.. पदमा को ये भी ख्याल न रहा की अंशुल सिर्फ तौलिये में है.....
अपनी माँ का ये बर्ताव देख अंशुल के हाथ खाना खाते हुए रुक गए.. और अंशुल ने भी पदमा को अपने सीने में जकड लिया... पदमा एक पल को तो भावनाओ में बहकर अंशुल के गले से लग गई थी मगर अगले ही पल उसपर अंशुल के बदन की मादकता हावी होने लगी.. आखिर वो एक औरत थी और कितने समय से काम की अग्नि में जल रही थी.. पदमा की देह अंशुल की काया से मिलकर अद्भुत कामोंत्कार उत्पन्न कर रही थी...
अंशुल - मैंने देखा था माँ.... उसदिन आप कितना रोई थी.. आपको रुलाने वाले उन लोगों को मैंने अगर खून के आंसू नहीं रुलाये तो मुझे कोई हक़ नहीं है अपना बेटा कहलाने में...
पदमा अंशुल की बात सुनकर उसके सीने से अलग हुई मगर अब भी पदमा अंशुल की गोद में ही बैठी थी, प्यार से अंशुल का चहेरा देखकर उसके बालों को इधर उधर करती पदमा अंशुल का ललाट चूमकर बोली - लल्ला.... सच में तू मेरे लिए इतना सब करेगा?
अंशुल - माँ.... आपके लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ... आपको यक़ीन नहीं हो तो कभी भी आजमा लेना.... मुस्कुराते हुए कहा था अंशुल ने जिसपर पदमा भी खिलखिलाती हुई हँसने लगी थी और फिर अपने हाथ से अंशुल को उसकी गोद में बैठे बैठे ही खाना खिलाने लगी थी.....
खाना खाने के बाद जब पदमा जाने लगी तो अंशुल ने उसे रोककर कहा - माँ.... आपके लिए कुछ लाया था..
पदमा हैरानी से - क्या लल्ला?
अंशुल अपने बेग से एक छोटा बॉक्स निकलकर पदमा को देते हुए - खुद देख लो...
पदमा ने बॉक्स खोला तो हैरानी से पहले बॉक्स में रखी सोने की चैन और फिर अंशुल को देखने लगी..
पदमा - आशु..... ये क्या है... तू मुझे सच सच बता? कोई गलत काम तो नहीं कर रहा है ना लल्ला? बाहर मोटर और ये चैन? कहा से आया इतना पैसा तेरे पास?
पदमा की आवाज आँखों में डर, चिंता, घबराहट और उम्मीद साफ झलक रही थी उसने अंशुल की बाजू पकड़ी हुई थी और इस माहौल में कब उसका आँचल उसके बदन से सरक गया था उसे खुद भी नहीं पत्ता चला और न ही उसे उसकी परवाह थी उसे तो सिर्फ उसकी बातों का जवाब चाहिए थे... अंशुल ने मुस्कुराते हुए अपनी माँ पदमा को अपनी बाहों में भर लिया और बोला - अरे बाबा.....आप चुप होगी तभी तो बताऊंगा.... चलो पहले अच्छे बच्चे की तरह चुप हो जाओ... और बुरी बाते मत सोचो..... आपका आशु कमाने लगा है... समझी? और अब से आपकी सारी जरूरतों का ख्याल रख सकता है.... और भी बहुत से गिफ्ट लाया हूँ मैं अपनी प्यारी माँ के लिए पर वो आपको अगले हफ्ते आपके बर्थडे पर ही मिलेंगे....

पदमा अंशुल की बाहों में उसकी बातें सुनते हुए उसे हैरान कर देने वाली नज़रो के साथ देखे जा रही थी उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था...
पदमा - लल्ला मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा है.... तू क्या कह रहा है?
अंशुल - अच्छा ठीक है... अभी समझाता हूँ.. चलो पहले इस चेयर पर बैठो..... पदमा चेयर पर बैठी तो अंशुल ने अपने फ़ोन के हवाले से पदमा को कुछ चीज़े बताये जो पदमा के दिमाग में नहीं बैठी थी बहुत देर तक अंशुल पदमा को उसके काम यानी ट्रेडिंग के बारे में समझाता रहा और उसकी जिज्ञासा शांत करता रहा.. पदमा को इतनी बातों में सिर्फ इतनी बात समझ आई थी की अंशुल फ़ोन में कुछ करके पैसे कमाता है और कुछ भी नहीं....

अंशुल - अब तो आपको यक़ीन हुआ मैं कोई गलत काम नहीं करता?
पदमा मुस्कुराते हुए - ठीक है समझ गई.... अच्छा और क्या है मेरे लिए? पदमा ने पूछा तो अंशुल मुस्कुराते हुए बोल पड़ा - ये जानने के लिए तो आपको अपने जन्मदिन का इंतजार करना पड़ेगा...
माँ ऐसे नहीं... इस तरह से नहीं.... लाओ में पहना देता हूँ.. कहते हुए अंशुल ने चैन पदमा को पहनाई तो उसकी निगाह अपनी माँ के मासूम चेहरे पर चली गई... हाय कितनी खूबसूरत थी पदमा.... लगता था उसका रूप किसी अप्सरा के सामान था... उसका आंचल अभी भी थोड़ा सरका हुआ था जिससे अंशुल को पदमा के जोबन का दृश्य साफ नज़र आ गया... पदमा ने अंशुल की भावना समझ ली थी मगर वो कुछ बोल ना सकी ना ही अंशुल को अपने आप को देखने से रोक पाई थी.... फिर दोनों की नज़र जैसे ही टकराई तो दोनों के चेहरे नज़दीक थे लबों में मुश्किल से 3-4 इंच का फासला था जैसे दोनों एकदूसरे को चूमने ही वाले हो.. और ये चुम्बन हो भी सकता था अगर नीचे आँगन में बर्तन गिरने की आवाज़ न आई होती.....
बर्तन गिरने की आवाज़ सुनकर पदमा अंशुल से अलग हो गई और नीचे आँगन में आ गई.. पदमा ने देखा की बिल्ली दूध का पतीला गिरा कर भाग गई थी.. किसी और दिन तो ये देखकर उसका दिमाग गुस्से से भर जाता मगर आज उसके चेहरे पर मुस्कान थी.. पदमा ने रसोई में गिरा दूध साफ किया और पतीला धोकर रख दिया.... पदमा अपने कमरे में सो रहे बालचंद के बगल आकर लेट गयी और अपने गले में पड़ी चैन को अपनी उंगलियों से घुमाकर देखती हुई अंशुल के बारे में सोचने लगी.... पदमा ने करवट बदलते बदलते क्या कुछ नहीं सोच डाला था.. कभी उसे अंशुल पर प्यार आ रहा था तो कभी उसका मन अंशुल के मोह से जकड़ा जा रहा था.. अंशुल ने आते ही पदमा के दिल में उसके लिए बेटे के साथ साथ एक अलग तरह का आकर्षण भी उत्पन्न कर दिया था.... पदमा ने चैन अपनी अलमारी में रख दी और आज जो कुछ भी हुआ उसके बारे में सोचने लगी.. पहले तो सिर्फ वो ही अंशुल को पकड़कर अपने गले से लगा लेती थी मगर आज अंशुल ने भी उसे अपने गले से लगाया था और अपने हाथो से अपनी तरफ खींचा था.. पदमा यही सब सोचकर बिस्तर में लेटी हुई कभी अंशुल पर बनावटी गुस्सा करती तो कभी मुस्कुराते हुए अंशुल को माफ कर देती....

पदमा को आज नींद नहीं आई थी उसने सारी रात बस करवट बदलकर निकाली थी और अंशुल के ख्यालों से खुदको घेर रखा था.... जिस तरह अकाल में दरखत पानी की कमी से सूखने लगते है उसी तरह पदमा भी अब तक मुरझाई हुई थी.... लेकिन जब सावन की पहली बौछार पड़ने से पेड़ को पानी मिलता है तो वो वापस हरे भरे होने लगते है और उसी तरह पदमा भी अंशुल का प्रेम स्नेह और उपहार पाकर खिल उठी थी....

रातभर न सोने के बाद भी उसकी आँखों में कहीं नींद नहीं थी न ही उसके बदन में कोई थकावट महसूस हो रही थी आज उसका मन शांत था और शारीर तरोताज़ा... घर का जो काम करने में उसे पहले आलस आता था आज वो सारा काम पदमा ख़ुशी से कर रही थी मानो उसके लिए ये काम कोई काम ही ना हो..... बालचंद के साथ आज सुबह उसकी कोई बाते नहीं हुई.. पदमा ने सिर्फ इतना बताया था की अंशुल रात को वापस घर आ गया, मगर बालचंद ने पदमा की बात पर ध्यान नहीं दिया और घर से अपनी चपरासीगिरी करने बाहर चला गया था....

अंशुल ने रात किताब से मुलाक़ात करते और अपनी जान पहचान बढ़ाते हुए ही बिता दी थी... रात को पढ़ते पढ़ते उसे कब नींद आ गई थी उसे भी नहीं पत्ता चला.. चेयर के ऊपर बैठा हुआ अंशुल मैज़ पर रखी किताब पर सर रख कर सो रहा था जब पदमा चाय का कप अपने हाथ में लिए उसके रूम में आई....

पदमा को आज से पहले कभी नहीं लगा था की कोई चेयर पर बैठा हुआ आदमी भी नींद के आगोश में जा सकता है मगर आज उसके सामने प्रत्यक्ष उदाहरण था अंशुल की नींद गहरी थी सफर की थकावट और देर तक जागने के कारण वो उसी तरह सो गया था जैसे कोई बच्चा दिनभर खेल कर गहरी नींद में चला जाता है. उसकी साँसों में आवाज़ थी. खर्राटे कहना तो गलत होगा क्युकी आवाज़ तेज़ नहीं थी ना ही कानो में चुबने वाली थी. सोते हुए अंशुल का चेहरा पदमा की आँखों में ठंडक दे रहा था.. रात की एक एक बाते उसे अच्छे से याद थी और उसी बातों से वो चहक उठी थी और पुरे घर में गुलाब की तरह महक रही थी.

पदमा ने चाय का कप टेबल पर रखा और सो रहे अंशुल को जागते हुए कहा- आशु..... आशु.... उठो... देखो दिन कितना चढ़ आया है? चलो उठो...
अपनी माँ के जगाने पर आँखे मलता हुआ अंशुल चेयर से उठकर पीछे रखी एक सिंगल चारपाई पर जाकर वापस सो गया...
अरे ये बच्चा भी ना.... अरे उठा ना.... आशु.... चलो उठो...
5 मिनट ना... माँ....
नहीं... अभी उठो... चलो... चाय पी लो.... मुझे कहीं जाना.. जल्दी करो...
कहा? अंशुल ने इस बार आँख खोलकर चारपाई से नीचे पैर लटकाकर बैठते हुए कहा..
अरे बहुत सी घर की चीजे खरीदनी है.. बाजार जाना है... आज पूरा दिन इसी में लग जाएगा... येकहकर पदमा नीचे चली जाती है और अंशुल अपना मुँह धोकर चाय का कप अपने हाथो में लेकर चाय की चुस्की लेटा हुआ नीचे आ जाता है... सुबह के 10 बज रहे थे...
मैं खाना बना देती हूँ आँशु.. तू खा लेना... मुझे वापस आते आते दिन हो जायेगा...
रहने दो माँ मुझे भूख नहीं है... मैं भी आपके साथ बाजार चलता हूँ.. बस से तो आपको बहुत समय लगा जाएगा...
नहीं लल्ला तू परेशान हो जाएगा मेरे साथ.. रहने देओ..
अरे माँ.... आप भी ना.... 10 मिनट दो मैं अभी नहाकर आता हूँ... फिर साथ में बाजार चलते है...
पदमा अंशुल की बाते सुनकर अपनी मोन स्वीकृति दे देती है.. जैसे उसे भी बस से अकेले जाने का मन नहीं था....
अंशुल कुछ ही देर में मैरून चेक शर्ट और एक ब्लैक जीन्स पहनकर नीचे आ गया. देखने में किसी हीरो की तरह ही लग रहा था अंशुल, पदमा ने तो झट से अपनी आँख का काजल अपनी उंगलि पर ले कान के पीछे काला टिका भी लगा दिया था अंशुल को....
मा क्या कर रही हो?
नज़र ना लगे इसलिए काला टिका लगा रही हूँ.. इतना सोना लगता है मेरा आशु... बिलकुल फ्लिम के हीरो जैसे....
अच्छा? तो फिर आप अपनेआप को क्यों नहीं लगाती काला टिका? आप भी किसी हीरोइनी से कम कहा लगती हो?
चुप बदमाश.... माँ से मसखरी करता है...
मैं तो सच बोलता हूँ.... अब आपको मसखरी लगती है तो मैं क्या करू?
अच्छा अच्छा चल अब वरना यही खड़े खड़े दिन ढल जाएगा....

अंशुल अपनी बाइक स्टार्ट करता है और पदमा घर को ताला मारकर अंशुल के पीछे बैठ जाती है कच्चा रस्ता दोनों की देह को आपस में मिलाये हुए था और सडक में पड़ने वाले गड्डे पदमा के उभर का घ्रषण अंशुल की पीठ इस तरह से कर रहे थे जैसे धोबी पत्थर पर कपड़ा घिसता है.. पदमा ने अपने सीधे हाथ से अंशुल के कंधे को पकड़ रखा था जिसे अंशुल ने कंधे से हटाकर उसके सीने पर रख लिया था. दोनों के बीच मादकता और काम के बीज पनप रहे थे मगर दोनों के मुँह से एक शब्द नहीं निकाल रहा था जो निकलना चाहिए था...
बाजार पहुंचते ही पदमा अंशुल के साथ घर का सामान खरीदने में लगा गई... पदमा हर चीज का मोल भाव करती और कम से कम कीमत में खरीदने की कोशिश करती.. कई दूकानदारो से तो उसका झगड़ा भी हुआ था जिसे अंशुल ने बीच बचाव से शांत करवाया....
अरे बहन जी कैसी बाते करती हो? फ्री में ही दे दे क्या आपको सामान? इतना तो हमारे ही नहीं आता.. हमारे खुदकी खरीद इससे ज्यादा है... आप कहीं और देखो...
बड़े आये फ्री देने वाले.... पूरा बाजार जानता है कैसे ग्राहक को चुना लगाते हो तुम लोग... नहीं खरीदना तुम्हारा सामान.. बाज़ार में और भी दूकाने है...
अरे जाओ जाओ बड़े आये....
दूकानदार से साथ पदमा की तीखी नोक झोक देखकर अंशुल को पदमा पर प्यार आ रहा था जैसे वो कहना चाहता हो माँ तुम पर ये गुस्सा कितना जचता है... पर उस वक़्त उसने पदमा को दूकान से बाहर ले जाते हुए पदमा को समझाया - माँ यार क्यों झगड़ा कर रही हो? जो खरीदना है खरीदो ना... आप पैसे की क्यों चिंता कर रही हो? मैं हूँ ना... इसी तरह खरीददारी करने पर तो हमें दिन नहीं शाम हो जायेगी घर लौटते लौटते.... आप जल्दी से जो लेना है लेकर ख़त्म करो.. मुझे भूख भी लगी है...
पदमा अंशुल की बाते सुनकर - अरे ये सब लुटेरे है लुटेरे जब तक मौलभाव ना करो कोई चीज सही कीमत पर देते ही नहीं...
अंशुल - आप छोडो मुझे लिस्ट दो.... दिखाओ क्या क्या चाहिए? अंशुल पदमा से सामान की लिस्ट ले लेटा है और एक दूकान पर जाकर वो लिस्ट किसी आदमी को दे देता है....
दूकानदार - भाईसाब 2-3 आइटम गोदाम पर है मैं मंगवा देता हूँ थोड़ा समय लगा जाएगा...
अंशुल - ठीक है.... कितना हुआ सबका?
दूकानदार - जी आपके हो गए ****....
अंशुल अपने फ़ोन से ई-पेमेंट कर देता है और थोड़ी देर में वापस आने की बात कहकर पदमा के साथ बाजार में एक नये से खुले रस्टोरेंट में चला जाता है.. पदमा तो कब से अंशुल की इस हरकत पर बड़बड़ा रही थी - ऐसे कोई खरीददारी करता है? ना जाने क्या क्या भाव लगाया होगा उस दूकान वाले ने? पक्का हर सामान का कुछ ज्यादा ही मोल लगाया होगा.. पैसे कोई पेड़ पर उगते है? ये लड़का माने तब ना.. कद्र ही नहीं है बिलकुल.....
अच्छा माँ... अब छोडो ये बाते.... बताओ क्या खाओगी? कल चन्दन भैया बता रहे थे यहां सबसे बेस्ट खाना मिलता है....
मुझे कुछ नहीं खाना?
आप भी ना माँ.... बिलकुल बच्चों की तरह गुस्सा करती हो... चलो मैं ही आपका फेवरेट बटर चिकन आर्डर कर देता हूँ..
कहा ना मुझे नहीं खाना... घर जाकर खा लुंगी कुछ..
मैं आपकी एक ज़िद नहीं चलने दूंगा... समझी आप? कब से इतना मुरझाया मुँह बनाया है.. देखो कैसे नाक लाल हो गयी है आपकी.... बिलकुल टमाटर की तरह.. अब गुस्सा छोडो और अपनी ये प्यारी सी सूरत सही करो वरना मैं वापस शहर चला जाऊँगा... ये सब कहते हुए अंशुल ने जिस प्यार से पदमा को देखा था और अपनी हथेली से उसके गाल सहलाये थे उसे देखकर पदमा का सारा गुस्सा काफूर हो गया था और उसके चेहरे पर एक मुस्कान दौड़ गई थी...
पदमा अंशुल की बातें सुनकर अपने मन में सोचने लगी की कब अंशुल इतना बड़ा हो गया की उसे अपनी माँ का ख्याल रखना आ गया? आज पहली बार पदमा अपनी 39 साल की उम्र कहीं बाहर खाने आई थी वरना उसे कभी घर के चूल्हे से फुर्सत ही नही मिली थी कहीं बाहर जाने की, और अपना मनपसंद खाना बिना बनाये खाने की.... पदमा को अंशुल पर आज प्यार और गुस्सा साथ साथ आ रहा था.. गुस्सा उसकी बिना सोचे समझें खर्चीली आदत को लेकर और प्यार उसका इतना ख्याल रखने पर...
अंशुल आर्डर करके आ गया था और इस बार पदमा के सामने नही बैठकर वो पदमा के बगल में बैठा था और टिश्यू लेकर पदमा की नाक पर मोज़ूद हल्का सा पसीना पोंछने लगा था..
गर्मी के दिन थे मगर इस वक़्त दोनों रेस्टोरेंट के अंदर एयर कंडीशन में बैठे थे फिर भी पदमा की नाक पर हल्का सा पसीना आ ही गया था जो उसके अभी अभी उतरे गुस्से को चिढ़ा रहा था...
गुस्से में ना बिलकुल श्रीदेवी लगती हो आप... मुस्कुराते हुए अंशुल ने कहा तो पदमा भी खिलकर मुस्कुरा दी और बोली - ज़्यदा मखन लगाने की जरुरत नहीं है समझा.... और ये फालतू खर्चा करने ही भी..
अच्छा ठीक है आगे से आप ही खरीददारी करना... खुश? अब ये सब छोडो.... कल रात को रमेश चन्दन भईया को बता रहा था **** के गाँव में तमाशे वाले आये है... मेला लगा है वहा.... नाचगाना भी होगा... कुल्फी और तरह तरह की चाट के सामान की भरमार होगी... बड़े बड़े झूले भी लग चुके है... आसपास के बिसो गाँव से लोग आएंगे.. आप चलोगी मेरे साथ?
मैं?
हां आप और कौन?
नहीं नहीं.... तेरे पापा से क्या कहूँगी?
उनसे क्या कहना है? उनके जाने के बाद हम चले जाएंगे और शाम होने से पहले वापस आ भी जाएंगे...
गाँव के भी तो सभी लोग जा रहे है.... फिर आपको चलने में क्या तकलीफ है? मेरे साथ नहीं जाना चाहती तो बता दो... दुबारा नहीं पूछूंगा....
पदमा आशु की बाते सुनकर अपने मन की गहराई में जाकर याद झरने लगी की आखिरी बार वो कब बाहर निकल कर अपने मन से कहीं घूमी थी मेला तो देखे हुए उसे ज़माने बीत गए थे.. बचपन में अपनी माँ से पैसे लेकर छुपके से अपनी बहन गुंजन के साथ मेले में गई थी पदमा.. मगर जब उसके पीता को इस बात की खबर चली तो कितना पीटा था पदमा के बाप ने उसकी माँ को... तब से कहीं बाहर जाना तो छोड़, बाहर जाने का ख्याल तक छोड़ दिया था पदमा ने.. मगर आज उसके मन में नई उमंग जग उठी थी आज ना उसके पीता का बंधन था आना ही कोई बंदिश.. फिर क्यों वो अपने मन की ना करे?
अच्छा चलूंगी तुम्हारे साथ.. अब खुश? मगर शाम से पहले वापस घर आ जाएंगे..
अंशुल की बाते का जवाब देते हुए पदमा ने कहा..
अंशुल पदमा की हां सुनकर मुस्कुराते हुए ख़ुशी से उसका हाथ पाने हाथो में लेकर चुम लेता है....

सर आपका आर्डर.... एक वेटर ने ट्रे टेबल पर रखते हुए कहा और और चला गया..
अंशुल ने पदमा को अपने हाथ से खाना खिलाना शुरू किया तो पदमा उसके प्रेम रस में डूबती चली गई.. उसकी जिंदगी में कोई ऐसा भी है जो उसका इतना ख्याल रख सकता है ये उसने सोचा भी नहीं था. आज पहली बार पदमा को अपने अस्तित्व की अनुभूति हो रही थी की वो भी एक अलग इंसान है जिसे खुश रहने का हँसने का और प्यार करने के साथ प्यार पाने का अधिकार है.. पदमा ने अब ऊपरी आवरण हटाकर खुलकर अंशुल के साथ बाते करना शुरू कर दिया था जिससे अंशुल भी बेहद खुश था....

खाना अच्छा है? अंशुल ने पूछा तो पदमा ने मुस्कुराते हुए कहा - हम्म.... पर मेरे आशु से ज्यादा नहीं...
अंशुल पदमा की बाते सुनकर मुस्कुरा बैठा और खाना खाने के बाद बिल pay करके दूकान से सामान लेकर पदमा के साथ वापस घर की ओर चल दिया.. इस बार पदमा के चेहरे पर पुरे रास्ते एक अजीब सी ख़ुशी ओर मुस्कान थी.. घर पहुंचते ही अंशुल अपने कमरे में फिर से किताबो में उलझ गया ओर पदमा मन में आशु की तस्वीर लिए मुस्कुराती हुई घर का काम करने लगी... पदमा के मन से आशु उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था उसकी बातें ओर बात करते हुए चेहरे पर उभरी मुस्कान बार बार पदमा को याद आ रही थी उसे लगा रहा था जैसे कोई चुम्बक उसे आशु की तरफ खींच रही हो.. ये सम्मोहन था मगर ऐसा सम्मोहन पदमा पर कैसे हो सकता है? वो भी अपने ही बेटे का? क्या आशु ने पदमा के मन को अपने वश में कर लिया था? पर कैसे? क्या उसका दो मीठे बोल बोलना और अपनी माँ का अपनी सहजादी की तरह ख्याल रखना पदमा को भा गया था? पदमा के मन में दबी इच्छाये आकांशाए फिर से पनपने लगी थी और उसे इन सबके पुरे होने का एक ही जरिया नज़र आने लगा था वो था अंशुल.... मगर क्या अंशुल भी उसके साथ.... नहीं नहीं यह मैं क्या सोच रही हूँ? अपने ही बेटे के बारे में.. ये गलत है.. मैं ऐसा नहीं कर सकती... कितनी घटिया सोच है मेरी? मैं अपने ही बेटे के बारे में ये सब सोच रही हूँ? आशु कितना प्यार करता है मुझसे और कितना ख्याल रखता है मेरा.. और मेरे मन में उसका फ़ायदा उठाने का ख्याल... छी छी.... मुझसे गन्दी सोच किसी की नहीं हो सकती..
शाम हो चुकी थी और पदमा आँगन में दिवार से पीठ लगाए ज़मीन पर बैठी हुई यही सब सोच रही थी और अपने ख्याल में ही उलझती जा रही थी, उसके सारे ख्याब फिर से उसके सामने आ गए थे जिसे उसने कब का भूला दिया था.. उसके दिल में आशु के लिए मातृत्व की भावना काम की भावना के साथ मिलकर बहने लगी थी जिसे वो अलग करने का प्रयास कर रही थी.....

पदमा आँगन में बैठी यही सब सोच रही थी की अंशुल ऊपर से बोल पड़ा - माँ.... एक कप चाय मिलेगी?
पदमा का जैसे ध्यान ही टूट गया था उसके मुँह से अपनेआप निकल पड़ा - जी... अभी लाई.....
अंशुल वापस कमरे में आ गया और चेयर पर बैठ कर वापस अपनी किताब में घुस गया वो पदमा के इन दो शब्दो का मतलब समझने में नाकाम रहा था लेकिन पदमा तो जैसे शर्म से पानी पानी हो गई थी.. जी.. अभी लाई.... क्या कोई माँ अपने बेटे के चाय माँगने पर इस तरफ जवाब देती है? इस तरह तो कोई लड़की अपने पति को जवाब देती है... मगर जल्दीबाज़ी और मन में चल रही अनगिनत बातों के कारण उसके मुँह से यही निकल गया था.... पदमा चाय बनाते हुए अपनेआप को ताने दे रही थी जैसे उसने कोई बहुत बड़ा गुनाह कर दिया हो.. अब तक इतना तो तय था की पदमा के मन में अब आशु के लिए सिर्फ बेटे वाला प्यार ही नहीं था उसके अलावा भी कुछ था जिसे पदमा अच्छे से समझ रही थी लेकिन रिस्तो की मर्यादा और परिवार की गरिमा बचाने के लिए उसे अंदर ही छुपाने का काम कर रही थी...

चाय लेकर पदमा अंशुल के पास आई तो अंशुल का ध्यान अपनी किताब में था उसने पदमा की तरफ देखा तक नहीं और पदमा भी चाय रखकर वापस चली गई थी जैसे वो जाना ही चाहती थी उसके दिल में अब अंशुल के पास आकर फिर दूर जाने और फिर पास आने वाली फीलिंग जन्म ले चुकी थी.. अगले दिन पदमा और अंशुल मेले में नहीं जा सके और शाम को बालचंद दफ़्तर से जल्दी वापस आ गया था और कुछ परेशान लगा रहा था..
पदमा - क्या हुआ? तुम्हरी शकल पहले से ही खराब है और क्यों बिगाड़ रहे हो?
बालचंद - ज्यादा फालतू मुहजोरी न करो मुझसे... पहले ही मगज़ ख़राब हुआ पड़ा है..
पदमा - पर हुआ क्या? और इतनी जल्दी में क्या देख रहे हो?
बालचंद - बाबू का कागज था यही कहीं रखा था नज़र नहीं आ रहा..
पदमा - हरे रंग का कागज था? लम्बा वाला..
बालचंद - हां.... सरकारी कागज था कहा रखा है....
पदमा - हटो में निकालकर देती हूँ....
बालचंद - हां यही है...
पदमा - बेग क्यों निकाल रहे हो? कहीं जा रहे हो?
बालचंद - अरे ***** जाना है बताया था ना इलेक्शन में बड़े बाबू के साथ ड्यूटी लगी है.. कल और परसो वहीं रहना होगा..
पदमा - मैं तो भूल ही गई थी... रुको मैं खाना त्यार कर देती हूँ...
बालचंद - रहने दो.. खाने का प्रबंध है वहा... और अभी भूख भी नहीं लगी है.......(बेग में कपडे रखते hue) तुम्हारा लाठसाहब कभी कमरे से बाहर भी निकलता है या नहीं.. आगे काम धाम करने का इरादा है या नहीं उसका?
पदमा - परसो ही तो आया और अभी से तुमने ताने मारना शुरू कर दिया.. तुमको शर्म आती है ना नहीं?
बालचंद - मुझे क्यों शर्म आएगी? बाप के साथ काम करने में तो उसे शर्म आती है... दिनभर बस बिस्तर तोड़ता है...
पदमा - चपरासीगिरी तुम्हारे ऊपर अच्छी लगती है.. मेरे आशु पर नहीं.... समझें.. बड़े इंतिहान की तयारी करने लगा है मेरा बच्चा... तुम्हारे जैसे तो उसके दफ़्तर में काम करेंगे देखना...
बालचंद - पढ़ने में कितना तेज़ है देखा है मैंने.. मुझे मत बताओ... बड़ी आई बेटे की तरफदारी करने वाली.
पदमा - हा हा जाओ.. चपसारी कहीं के.... मेरा आशु तुम्हारी आँख में कितना चुभता है पत्ता है मुझे..

अंशुल चाय की चुस्की लेटा हुआ अपनी माँ और बाप के बीच होती इस तीखी नोक झोक को किसी दर्शक की तरह ऊपर से देख और सुन रहा था जिसके उन्हें कोई अंदाजा नहीं था.. जब बालचंद घर से चला गया तो अंशुल भी वापस अपने कमरे में आ गया, अंशुल जब ऊपर बाथरूम गया था वहा नल में कचरा फंसने से पानी बंद हो गया था शाम का वक़्त था सो उसने इस अभी ठीक करना भी जरुरी नहीं समझा.. रात को खाने के वक़्त उसने पदमा की ढेर सारी तारीफ करते हुए नल वाली बाते बता दी थी और पदमा ने कल सही कर लेने की बाते कह कर उसे टाल दिया था....

आधी रात का समय था पदमा की कच्ची नींद खुल चुकी थी वो आँख मलते हुए जैसे ही बाथरूम में घुसी उसने सामने खड़े अंशुल को सिगरेट के कश लेकर मूतते हुए देख लिया और झेप गई... अंशुल भी एकाएक पदमा के इस वक़्त बाथरूम आने से घबरा गया..

अंशुल पेशाब करके बिना कुछ बोले ऊपर अपने रूम में चला गया और पदमा अंशुल के ऊपर जाने के बाद बाथरूम में आ गई.. उसने देखा की एक तरफ दिवार पर बने जालदान में अंशुल के सिगरेट पैकेट और लाइटर पड़े है जिन्हे वो ले जाना भूल गया है.. पदमा ने उसपर ध्यान न देकर अपनी साडी कमर तक उठाते हुए बैठ गई और मूतने लगी, मूतने के समने पदमा के आँखों में अभी अभी देखे अंशुल के लंड का दृश्य घूम गया.. बाप रे इतना बड़ा? अंशुल कोई दवाई तो नहीं लेटा इन सब की... नहीं नहीं.. ऐसी दवाई भला कहा मिलती है.. पर इतना बड़ा? उसके पापा से तिगुना होगा.. उफ्फ्फ मैं भी क्या सोचने लगी.. आशु के बारे में... अपने ही बेटे के बारे में ऐसी चीज़े.. छी... पदमा की चुत गीली हो चुकी थी और पदमा की आँखों की नींद उड़ चुकी थी उसने अपनी चुत में उंगलि करनी शुरु कर दी थी.. बड़ी हैरानी की बाते थी की वो उंगलि करते हुए अंशुल का ही नाम ले रही थी.. उफ्फ्फ मैं क्या कर रही हूँ... पदमा की चुत जैसे जल रही थी उसकी गर्मी निकलना चाहती थी पदमा को जैसे गलत सही का ध्यान ही नहीं रहा और वो अंशुल के लंड को याद करके झड़ गई... उसने आहों के साथ अंशुल का नाम बहुत बार लिया था.. झड़ने के बाद वो जैसे होश में आई और अपने आप को सही करके बाथरूम से बाहर आ गई और अपने रूम में जाकर दरवाजा बंद करते हुए लाइट बंद कर ली... अंशुल ऊपर से पदमा के निकलने का इंतज़ार कर रहा था उसे लगा था की पदमा सिर्फ पेशाब करके चली जायेगी पर पदमा ने बहुत सारा समय बाथरूम में लगा दिया था..
अंशुल वापस नीचे आया और चुपचाप बाथरूम में चला गया वहा उसने अपनी सिगरेट लाइटर ली और पीछे दिवार पर बनी छोटी सी जगह में जो उसने अपना फ़ोन छिपाया था उसे भी निकाल लिया.. फ़ोन का कैमरा अभी भी ऑन था... अंशुल अपने रूम में आ गया और तसल्ली से पूरी रिकॉर्डिंग देख ली.. उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था की उसकी चाल कामयाब रही है.. उसे खुशी हो रही थी की उसकी माँ पदमा बहुत प्यासी है और उसे पटाने के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़गी.. मगर क्या अंशुल पदमा को आगे से उसके साथ नया रिश्ता कायम करने को मजबूर कर सकता था? अंशुल यही सोच रहा था कैसे पदमा को मजबूर कर दे की वो खुद अंशुल से आकर अपनी हवस का इजहार करें और उससे एक औरत और मर्द वाला रिस्ता रखे...

अंशुल की ही तरफ पदमा भी बिस्तर में करवट बदलती हुई सोच रही थी की उसने ये क्या किया? कैसे वो ये सब कर सकती है वो भी अपने बेटे आशु के लिए.. पर वो जितनी काम उतजना से भरी थी वो कर भी क्या सकती है ये जिस्म की आग किसी के बस में नहीं होती.. इसका पता तो सबको है.. पदमा को रह रह कर बाथरूम वाला दृश्य याद आ रहा था.. अंशुल का वो लंड.... उफ्फ्फ अगर वो मिल जाय तो... छी... अरे मैं क्यू ये सब सोच रही हूँ? मैं तो उसकी माँ हूँ.. फिर मुझे उसके लंड की इतनी प्यास.... पदमा वापस उत्तेजित होने लगी थी और अपनी चुत पर उसकी ऊँगली वापस आ गई थी.. आँशु.... आह्ह आशु.... पदमा की ये हालात देखकर कोई भी उससे अपनी हवस मिटा सकता था अभी शायद वो किसी को ना नहीं करती मगर पदमा जब ये सब कर रही थी उसे अपना ख्याल था... पदमा ने अंशुल के नाम पर वापस अपनी आग को शांत करना शुरु कर दिया था जो उसे गलत लग रहा था वो वही कर रही थी.. रात इसी तरह से गुजरी अंशुल भी देर तक जागा था और पदमा भी.. दोनों की आँखे सुबह देर से ही खुली थी.


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Seduction ka level bahut high pe hai :applause: jabardast update
 
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