अत्यंत सुंदर रचनाअध्याय 10
मेला
फ़्लैशबैक भाग -3
अंशुल बाइक चला रहा था और पदमा पीछे एक हाथ अंशुल की बगल के नीचे से आगे करके उसकी बाह पकडे बैठी थी अंशुल बार बार ब्रेक मारकर पदमा की छाती को अपनी पीठ पर महसूस कर रहा था लेकिन पदमा ने खुद ही अपनी छाती अंशुल की पीठ से चिपका दी तो अंशुल ने ब्रेक मारना छोड दिया और पदमा को महसूस करते हुए बाइक चलाने लगा.. आज दोनों में सुबह से कुछ ज्यादा बातचीत नहीं हुई थी आधी रात हुए हादसे के बारे में तो बिलकुल भी किसीने मुँह नहीं खोला.. दोनों के ही मन में एक दूसरे के प्रति आसक्ति थी और कामुकता के बीज भी पनप रहे थे जो उनके भीतर कामदेवता की छाया का काम कर रहे थे..
अंशुल ने दो ही दिनों में पदमा को अपनी माँ से अपनी दोस्त बना लिया था वो पदमा से शर्मा नहीं रहा था, पदमा को भी अंशुल से बाते करके लगने लगा था की अब उसका अकेला पन दूर हो जाएगा.. उसके पास कोई भी तो नहीं था जिससे वो सारा दिन दिल खोल कर बाते कर सके.. अंशुल के साथ पिछले दो दिन कैसे बीते पदमा को पता भी नहीं लगा था.. आज का दिन भी कुछ ऐसा ही था पदमा मुस्कुराते हुए रास्ते का मज़ा ले रही थी.. उसके पास ऐसा था ही कौन जो उसे कहीं सेर सपाटा कराये और घुमाने ले जाए.. अंशुल तो पदमा की आँखों में बस चूका है उसे अब पदमा से कौन दूर करे? अंशुल अगर आज वापस शहर जाने की ज़िद करे तो शायद पदमा उसे जाने नहीं देगी.. और अपने गले से लगा के अपने साथ रहने की विनती करेगी.. उसकी गुहार में उसके अकेलेपन को काटने की उम्मीद होगी.. अंशुल समझ चूका था की पदमा से अगर वो चाहे तो अभी ही कहीं रास्ते में सुनसान जगह लेजाकर सम्बन्ध बना सकता है पदमा की जैसी हालात है और वो अंशुल से आकर्षित है पदमा ज्यादा विरोध नहीं करेगी लेकिन वो ऐसा नहीं करना चाहता.. उसे पदमा का पूरा समर्पण चाहिए.. अंशुल प्रेम करना चाहता है.. प्रेम?? हां प्रेम.. सम्भोग तो जानवर भी करते है.. पर क्या वो लोग उस सम्भोग़ का पूरा आंनद ले पाते है? क्षण भर की तृप्ति ही उन्हें नसीब होती है.. मगर जब दो लोग अपनी मर्ज़ी एक दूसरे से मिलते है वो सम्बन्ध प्रेम ही कहलाता है जिसमे तृप्ति हर क्षण भोगने का मार्ग दिखलाई पड़ता है.. अंशुल उसीके लिए पदमा के दिल में अपने लिए प्यार जगाना चाहता है मगर वो प्यार एक बेटे के लिए नहीं एक मर्द के लिए होगा..
दोपहर के 1 बज रहे है.. मौसम सुहावना है त्यौहार के दिनों में लगने वाला ये मेला खचाखच भरा हुआ है.. सभी के चेहरे पर मुस्कान है कोई हँसता है तो उछल उछल कर अपनी रेड़ी पर लोगों को बुलाने के लिए आवाजे मार रहा है.. गाँव के बाहर खाली ज़मीन जिसे जोता नहीं जाता वहीं इस मेले का आयोजन हुआ है और इस गाँव को गाँव कहना भी ठीक नहीं, ये विधायक जी का गाँव है देखने से लगता है हर तरह का विकास का काम उन्होंने इसी गाँव में करवाया है.. तरह तरह के झूले यहां लगे हुए है और उन सभी में आस पास के अनेको गाँव से झुण्ड बनाकर आये लोग झूल रहे है.. भीड़ देखने से लगता है जैसे कुम्भ का मेला भर गया हो..
मेला शुरू हुए आज दूसरा दिन था और भीड़ आज कुछ ज्यादा ही उमड़ गई थी बच्चे शोर मचाते हुए इधर से उधर घूम रहे थे और ना ना प्रकार की चीज़ो के लिए ज़िद कर रहे थे अंशुल ने बाइक पार्किंग में लगा दी और पदमा का हाथ अपने हाथ में थामे मेले के प्रवेश द्वार से होता हुआ अंदर आ गया, पदमा की आँखों में चमक थी वो अपने सामने का नज़ारा देखकर ख़ुशी से भरी जा रही थी आजतक बालचंद उसे कहीं लेकर घुमाने नहीं गया था पदमा का जीवन नीरस था जिसे अंशुल पिछले दो दिनों से रसमय कर रहा था.. पदमा अंशुल का हाथ थामे मेले में इधर से उधर अपने आप ही घूमने लगी थी वो आज ये नज़ारा अपनी आँखों में भर लेना चाहती थी अंशुल सिर्फ पदमा के पीछे पीछे आ रहा था उसे पदमा के चेहरे की ख़ुशी अच्छे से दिख रही थी और वो समझ रहा था की पदमा कितनी खुश है.. भीड़ में एक जगह से दूसरी जगह जाने में भले ही दोनों को मुश्किल आ रही थी भीड़ का सामना करना पड़ रहा था लेकिन पदमा हर बाधा पार करके आज एक एक नज़ारा देख लेना चाहती थी.. काफी देर तक सब पदमा मेले में अंशुल का हाथ थामे घूमती रही और बार बार अंशुल को देखकर अपनी मन की बातें बतलाने लगी की कैसे वो बचपन से ही मेला देखने की शौकीन थी मगर आज तक उसे कभी कहीं आने जाने का मौका ही नहीं मिला था..
बहुत देर तक घूमने के बाद अंशुल ने पदमा को एक चाट की जगह रोक लिया और वहा खड़े लोगों को पार करता हुआ 2-3 चाट की चीज़े लेकर पदमा को अपने हाथ से खिलाने लगा.. पदमा अंशुल के हाथो से वो चीज़े ख़ुशी खुशी खा रही थी और अंशुल को भी अपने हाथ से खिला रही थी खाने के दौरान पदमा अपने मन की बाते अंशुल को सुनाने का काम भी बड़ी अधीरता के साथ कर रही थी जैसे वो एक सांस में अपनी सारी बाते कह देना चाहती थी अंशुल बड़े इत्मीनान से वो बातें सुनता हुआ पदमा के होंठों पर लगा खाना अपनी उंगलि से साफ कर रहा था.. खाने के बाद एक बड़े झूले में जिसे स्थानीय भाषा में ड्रागेन झूला भी कहते है आकर अंशुल और पदमा आस पास बैठ गए.. झूला शुरू होने पर पदमा को ये अहसास हुआ की उसे कितना डर लग रहा है वो झूला चलने पर अंशुल को किसी बच्चे की तरह पकड़ कर बैठी थी और फिर कुछ ही पालो में पदमा ने अंशुल की बाह से खुदको चिपका लिया और आँख बंद कर ली.. अंशुल पदमा के चेहरे को देखे जा रहा था. हाय.... कितनी प्यारी लग रही थी पदमा बिलकुल किसी नवयोवना स्त्री की भाति कोमल और आकर्षक.. अतुलनीय सुंदरता की प्रतिमा को आज पदमा ने अपने इस चलचित्र से साकार कर दिया था.. ऊपर नीचे आते जाते झूले के दरमियान आँख बंद कर अंशुल से चिपकी हुई पदमा ऐसे लग रही थी मानो किसी अप्सरा ने धरती पर आकर अपना अनुपम रूप दर्शाया हो.. अंशुल तो जैसे सच में उस रूपवती के प्यार में पड़ गया था अंशुल को पदमा के रूप के आगे ध्यान ही नहीं रहा की वो उसकी माँ है..
पदमा की कजरारी बंद आँखे, डर से भीच गए होंठ चेहरे पर लहराती काली घनी जुल्फे और कंधे से सरकता हुआ पल्लू.. अंशुल के दिल की धड़कन में अद्भुत गति प्रदान कर रहे थे. अंशुल ने पदमा के हाथों से अपना हाथ छुड़ाकर पदमा को अपनी बाहों में कस लिया और उसकी जुल्फ संवारने लगा..
डर लग रहा है?
हां.... पदमा ने आँख बंद किये हुए ही कहा..
बहुत आवाजे आ रही है लगता है.. झूला टूटने वाला है..
पदमा अंशुल की बात सुनकर और भी उसकी बाहों में समाती चली गई उसे ये अहसास नहीं हो रहा था की अंशुल के सीने से उसकी छाती कितनी चिपकी हुई है अंशुल तो जैसे स्वर्ग लोक की सेर पर था उसने पदमा के सर को बड़े प्यार से अपने कंधे पर संभाल रखा था
कुछ नहीं होगा.. आप खामखा डर रही हो.. मैं तो मज़ाक़ कर रहा हूँ.. देखो झूला भी अब धीमे हो रहा है. आँख खोलो.. माँ.... देखो ना..
पदमा ने डरते हुए अपनी आँख खोल दी और ऊपर नीचे आते जाते हुए उसके पेट में कुछ हलचल सी होने लगी थी जिसे महसूस करना आसान है..
आशु.... कहते हुए पदमा ने फिर से अपनी आँख बंद कर ली और अंशुल के सीने से खुदको तब तक अलग नहीं किया जब तक की झूला वाक़ई में नहीं रुक गया.. झूले से नीचे आते ही कुछ दुरी ओर पदमा ने उलटी कर दी और जो भी अब तक खाया पिया था बाहर कर दिया.. अंशुल समझ गया था की पदमा को झूले से डर लगता है उसने पदमा को पानी दिया और संभाला.. पदमा थोड़ी देर में ही फिर से पहले जैसी हो गई और हँसते हुए अंशुल को देखने लगी और बोली..
बच गया तू.. मुझे तो झूले पर ही उलटी आ रही थी.. एक बार को लगा तुझ पर ही ना कर दू.. बाप रे.. मेरे लिए तो झूला देखने में ही ठीक है.. झूला झूलना नहीं..
आप भी ना माँ.... मैंने तो पहले ही कहा था आपको डर लगेगा पर आप ही ज़िद करने लगी.. मेरे ऊपर ही उल्टी कर देती तो मेरा क्या होगा? वहा कम भीड़ है वहा चलते है..
कहा.. निशाने पर?
हां... चलो आपको बन्दूक चलाना सिखाता हूँ..
पदमा अंशुल के साथ एक निशाने वाले के पास आ गई जहाँ एक निशाने लगाने वाली लम्भी बन्दूक से गुबारे पर निशाना लगाकर फोडने खेल हो रहा था..
अंशुल ने बन्दूक पदमा को दे दी और पदमा बन्दूक से इधर उधर निशांने लगाने लगी मगर एक भी निशाना ठीक नहीं लगा.. तब अंशुल ने बन्दूक रेलोड करवाकर पदमा के हाथो में दे दी और खुदको अपनी माँ पदमा के पीछे आ कर बन्दूक पकड़ ली.. अंशुल और पदमा उसी पोज़ में थे जिसमे शोले के धर्मेंद्र और हेमा मालिनी बाग़ में आम पर निशाने लगाते समय थे.. अंशुल महसूस कर रहा था पदमा के जुल्फ की खुशबू, इसके बदन की गहराइयाँ... पदमा तो सिर्फ मेला का आनंद लेने में ही मग्न थी उसने इस बात पर ध्यान नहीं दिया की अंशुल उसे पूरा चेकआउट कर रहा है.. अंशुल ने पदमा के कानो को चूमते हुए निशाना लगाया जो बिलकुल सटीक गुबारे पर लगा.. पदमा ख़ुशी से खिलखिलाकर हँसने लगी और अंशुल को देखकर वापस ऐसा ही करने को कहने लगी.. अंशुल हर निशाने पर एक गुब्बारा फोड़कर पदमा को किसी निशानेबज़ी की प्रतियोगिता में जितने वाली ख़ुशी दे रहा था..
निशानेबाज़ी की दूकान वाला अंशुल की हरकते देख रहा था और नज़रअंदाज़ कर रहा था मगर फिर भी उसके लिंग में अकड़न आ गई थी अंशुल तो बेपरवाह होकर ही पदमा को निशानेबाज़ी सीखा रहा था उसे कहा मालूम था की आस पास के लोग उसे ऐसा करते हुए देखकर मज़े ले रहे है.. निशाने बाज़ी के बाद अंशुल और पदमा वहा से एक रिंग फेंकने वाले की दूकान पर आ गए जहाँ अनेक चीज़े रखी हुई थी और कई लोग उन चीज़ो पर रिंग डालने का प्रयास कर रहे थे, पदमा ने एक के बाद एक कई रिंग डाली लेकिन कुछ भी जीत नहीं पाई मगर अंशुल ने आखिरी रिंग में एक छोटा सा टेडी बियर जीतकर पदमा को दे दिया जिसपर खुश होते हुए पदमा ने अंशुल को गले से लगा लिया था.. ऐसे ही एक के बाद दूसरी दूसरी के बाद तीसरी दूकान पर जाते हुए पदमा और अंशुल मेले का मज़ा लेने लगे थे शाम का वक़्त करीब आ चूका था मौसम पहले से ही सुहावना था जो सूरज को पूरी तरह ढके हुए था और हल्का सा अंधेरा कायम रखे था..
आशु तू यहां ?
क्या हुआ चन्दन भैया?
कुछ नहीं बस घर पर धन्नो काकी नहीं थी तो सोचा मेला घूम लू मगर अब घर जाने का मन कर रहा है.. यहां से तो कोई नहीं है जो ले गाँव जाए...
आप मेरी बाइक ले जाइये.. मैं रात को ले लूंगा...
चन्दन बाइक लेकर घर चला गया..
एक स्टेज की तरफ भीड़ लगी हुई थी लोगों खचाखच वहा भरे हुए थे स्टेज पर एक औरत का नाच चल रहा था और जमा हुए लोग गाने की ताल पर उस औरत को देखते हुए नाच रहे थे और अश्लील भाषा का इस्तेमाल कर रहे थे कोई गालिया देते हुए मज़े ले रहा था तो कोई अश्लील इशारे से औरत को चिढ़ा रहा था.. ये एक प्रतियोगिता थी जिसमे कई औरतों ने भाग लिया था मेले में आई कई औरत अभी तक नाच चुकी थी जितने वाली पहली महिला को 25 हज़ार का नगद इनाम मिलने की बात थी दूसरी को 15 और तीसरी को 10 हज़ार.... पदमा भी वहा आ चुकी थी और अब वो भी स्टेज पर हो रहे नाच गाने को देख सुन रही थी और अंशुल का हाथ पकडे अपनी जगह खड़ी हुई हिल दुल रही थी मानो उसपर नाचने की धुन सवार हो लेकिन अंशुल बस दूर से ही पदमा को वो सब दिखाने लाया था उसे पता था की ऐसे मोके पर लोगों का लड़की के प्रति केसा व्यवहार हो जाता है इसलिए अंशुल पदमा को दूर से ही वो सब दिखा कर वापस ले जाना चाहता था.. पदमा अंशुल से आगे चलने की ज़िद कर रही थी जिसे अंशुल मानने वाला नहीं था वो पदमा को समझा रहा था की आगे बहुत भीड़ है और अगर वो आगे जाती है तो कोई ना कोई बखेड़ा जरुर खड़ा हो जाएगा.. आगे खड़ी औरतों के साथ भीड़ में होती हरकतो से पदमा भी अनजान नहीं थी लेकिन उसे नाच गाना देखने का इतना शोक था की वो आगे जाने की ज़िद पर अड़ गई थी और अंशुल ये ज़िद मानने को कतई राज़ी नहीं था.. दोनों के बीच इस बात पर झगड़ा सा हो रहा था अंशुल पदमा का हाथ पकडे उसकी ज़िद पर गुस्सा करते हुए उसे लगभग डांट रहा था, पदमा भी जैसे पिंजरा तोड़कर आजाद होने की इच्छा से अंशुल का बनवटी गुस्सा नज़रअंदाज़ कर आगे जाने की ज़िद कर रही थी.. दोनों एक दूसरे का हाथ पकडे कर ही ये सब कर रहे थे.. मगर बदलो ने मेले की रौनक में विघ्न डालने का मन बना लिया था हलकी सी बूंदाबांदी शुरू हुई और फिर धीरे धीरे बरसात तेज़ होने लगी भरी भीड़ जो मेरे में आई थी वो छुपने की जगह तलाश करने लगी स्टेज के नीचे कई लोग घुसकर बरसात से बचने की कोशिश करने लगे, अंशुल भी पदमा को स्टेज के नीचे ही लेकर आ गया था जहाँ पहले से बहुत सारे लोग भीगने से बचने के लिए आकर छुप गए थे, भीड़ ज्यादा थी और लोग अपनेआप को बरसात से बचने के लिए जहाँ जगह मिल रही थी वहीं आकर छुप रहे थे जिससे स्टेज के नीचे भी बहुत भीड़ हो गई थी अंशुल ने इस बीड से पदमा को बचाने के लिए उसे अपनी बाहों के घेरे में ले रखा था जो बढ़ती भीड़ के साथ कस्ता जा रहा था.. पदमा भी अंशुल की बाहों में खुदको महफूस समझने लगी थी और दोनों के मन में जो भावना भड़क रही थी वो उन्हें ही मालूम थी.. काम तो जैसे हवा में घुलकर बहने की मांग कर रहा था लेकिन रिश्ता और झिझक ने दोनों के मन से इस परत को अभी नहीं उतरने दिया था..
कुछ देर के बाद बरसात रुकी तो फिर से धीरे धीरे मेले की रंगत बढ़ने लगी और लोगों के चेहरे पर हंसी खुशी और प्रसन्नता का भाव जगमगाने लगा.. अंशुल अब भी स्टेज के सामने थे इस बार पदमा आगे जाने के जगह प्रतियोगिता में भाग लेने की zid करने लगी थी जिसपर अंशुल ने उसे बहुत समझाया पर वो नहीं मानी और अंशुल को साथ लेकर नाचने की प्रतियोगिता में अपना नाम दे दिया.. पदमा को नाचने का शोक तो बचपन से था वो नाचने की कला से परिचित भी थी गाँव में कोई मांगलिक काम हो या अन्य आयोजन.. महिलाओ के बीच पदमा का नाच बड़ा लोकप्रिय था उसके बदन की लचक और बालखाती लहराती जुल्फों को देखकर मर्द तो मर्द औरत भी उस पर अपना दिल हार सकते थे अंशुल को इस बात का कोई पता नहीं था की पदमा कितनी सुन्दर नचनिया है हिंदी फ्लिमो में जिसे आइटम गर्ल कहा जा सकता है देशी भाषा में उसे जबरू नचनिया कहा जाता है.. पदमा को नाचने के लिए आयोजको से एक ड्रेस मिली थी गाना फाइनल हो चूका था अंशुल डर रहा था की कहीं कोई गाँव का आदमी पदमा को ऐसे देख लेगा तो बात फ़ैल जायेगी और आफत आ जायेगी.. पदमा ने अंशुल को देखकर मुस्कुराते हुए बस इतना कहा था कुछ नहीं होगा.. और वो परदे के पीछे कपडे बदलने लगी थी एक छोटा ब्लाउज जिसमे से पदमा के चुचो का कुछ भाग बाहर झलक रहा था वहीं एक छोटा घाघरा जो पदमा के घुटनो तक ही था पहन कर पदमा परदे से बाहर आई थी अंशुल तो पदमा को देखकर बेचैन ही हो गया था..
माँ ये क्या पहना है.. सब दिख रहा है.. मैं कह रहा हूँ छोडो ये ज़िद.. चलो यहां से..
अरे कुछ नहीं आशु.. वो सब यही तो पहन कर नाच रहे है.. तू देखना पहला पुरुस्कार तो मैं ही जीतूंगी..
गाँव के किसीआदमी या औरत ने देख लिया तो आफत आ जायेगी.. पापा को जानती हो ना आप? मैं फिर से कह रहा हूँ ये नाच गाना छोड़ा चलो यहां से..
रुक ना आशु.. तू भी.. देख मैं ये मास्क लगाने वाली हूँ किसी को पता नहीं चलेगा मैं कौन हूँ.. तू बस दस मिनट रुक मैं अभी नाचकर आती हूँ..
माँ.. मुझे ठीक नहीं लग रहा है इतने लोग है.. भीड़ है.. और आप जानती हो सब आपको किस नज़र से देख रहे है.. आपको जरुरत नहीं है ये सब करने की.. आपको जो चाहिए मैं हूँ ना उसके लिए..
आशु.. तू ना फालतू डर रहा है.. मेरी ये इच्छा पूरी नहीं कर सकता.. मैं अपने लिए एक नाच प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं ले सकती?
अंशुल पदमा का चहरा देखकर पिघल जता है और कहता है अच्छा ठीक है मगर ध्यान से.. किसीने पहचान लिया तो जानती हो ना कितनी बदनामी होगी.. कहकर अंशुल स्टेज के सामने भीड़ में आ जाता है और इंतजार करता है कब पदमा का परफॉर्मेंस होगा और वो कब वापस आएगी..
विधायक चरणदास का बेटा बबन भी अब अपने आवारा दोस्तों के साथ मेले में आ चूका था स्वाभाविक रूप से कामुक और महिलाओ के प्रति हीन भावना रखने वाला बबन अपने दोस्तों के साथ नाच देखने के लिए संयोग से अंशुल के पास ही रुक गया था अंशुल और बबन अगल बगल ही थे.. स्टेज पर अभी अभी एक डांस प्रफार्मन्स ख़त्म हुई थी और अब पदमा की बारी थी छोटे छोटे लाल ब्लाउज और घाघरे में पदमा ने एक बॉलीवुड गाने पर एंट्री मारी तो मुर्दा पड़ी भीड़ में जान आ गई और वो भी नाचने लगी..
चिक चिक चिक चिक चिक
चिक चिक चिक चिक चिक
रिंग रिंग रिंगा
रिंग रिंग रिंगा
रिंग रिंग रिंगा रिंग रिंगा
हईये!
ए री!!!
आहहह!!!!
चुआ चुआ चुआ चुचुआ चुआ हाय री
चुआ चुआ ारा रा रा चुआ चुचुआ
चुआ चुआ चुआ चुचुआ
आई आई आई या मई मई या
आई आई आई आई यी यी यी
रिंग रिंग रिंगा
रिंग रिंग रिंगा
रिंग रिंग रिंगा रिंग रिंगा
पदमा ने जैसे पुरे मेले की चमक ही खिंच ली थी और वो इस गाने पर स्टेज पर अपनी अदाओ से सबका मन मोह रही थी कई लोग तो पदमा को हवस की निगाहो से देख रहे थे और कई बूढ़े अपनी जवानी को कोस रहे थे बबन एक टक पदमा को निहार रहा था उसके हिलते डुलते बदन पर उसकी निगाह थी गाने के बोल पर पदमा जिस तरह से अपने बदन को लचका रहा थी उसे देखकर किसी भी जवान मर्द का कामुकता से भर जाना स्वाभाविक ही था अंशुल भी पदमा का डांस देखकर चौंक गया था वो हैरानी और आश्चर्य से पदमा को देख रहा था..
खटिये पे में पड़ी थी
और गहरी नींद बड़ी थी
आगे क्या मैं कहु सखी रे
एक खटमल था सैयना
मुझपे था उसका निशाना
चुनरी में घुस गया धीरे धीरे
ऊऊऊ ओह्ह्ह
कुछ नहीं समझा वो बुद्धू
कुछ नहीं सोचा
रेंग के जाने कहा पंहुचा
रिंग रिंग रिंगा
रिंग रिंग रिंगा
रिंग रिंग रिंगा रिंग रिंगा
चिक चिक चिक चिक चिक
चिक चिक चिक चिक चिक
बबन और अंशुल अगल बगल खड़े बस स्टेज पर पदमा के नाच को देखकर कामुक हो रहे थे बबन के साथी बार बार पदमा को देखकर बबन से उसके बारे में अश्लील बातें कर रहे थे जो की अंशुल को साफ सुनाई दे रही थी लेकिन अंशुल कोई तमाशा नहीं करना चाहता थ इसलिए उसने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया..
भाई क्या माल है यार...
इसे तो आज रात चखना ही पड़ेगा.
उफ्फ्फ.. क्या बदन है.. सर पैर तक कमाल है बबन भैया..
मगर है कौन साली.. पहली बार दिखी है.. इस गाँव की तो नहीं है लगता है पास के किसी गाँव से आई है..
जहाँ से भी आई तो आज तो चुदके जायेगी ये रंडी....
बबन ने शराब की घूंट मारते हुए कहा और लड़खड़ाते हुए आगे की और चल दिया अंशुल भी बबन के बगल से होता हुआ आगे की और जाने लगा अंशुल को अब मालूम हो गया था की बबन कोई ना कोई जलील हरकत जरुरत करेगा इसलिए वो चाहता था जल्दी से पदमा को वहा से ले जाए.. गाने के ख़त्म होने के साथ ही बबन स्टेज पर चढ़ गया और नाचती हुई पदमा की कलाई पकड़ ली और दूसरे हाथ में पकड़ी हुई पिस्तौल से एक हवाई फायर कर दिया..
पिस्तौल की गोली की आवाज के साथ ही गाना ख़त्म हो चूका था भीड़ पदमा के नाच गाने से मदहोश थी आयोजक बबन की इस हरकत के आगे कुछ नहीं बोल सके, सब विधायक को अच्छे से जानते थे और ये भी की बबन विधायक का एकलौता लोंडा है और विधायक को बबन से कितना पुत्र मोह है.. यही कारण था की बबन की जलील हटकतो के बाद भी विधायक अपने बेटे का पूरा साथ देता था और किसी भी काण्ड से बचा लेटा था आज बबन पदमा का हाथ पकडे भीड़ के सामने खड़ा था और दूसरे हाथ से उसका नकाब उतारने ही वाला था की अंशुल ने अपनी माँ को बबन से बचाने के लिए बीच में ही एंट्री मार ली.. अंशुल ने अपने चेहरे पर अपना रुमाल लगा लिया था उसे मालूम था जो वो करने वाला है उसके बाद अगर उसे कोई देख लेगा तो जरुर ढूंढने की कोशिश करेगा.. अंशुल ने पीछे से बबन के हाथ से छीन ली और इससे पहले की बबन पदमा के तंग ब्लाउज में हाथ डालता अंशुल ने लात घूंसो से स्टेज पर ही बबन की हालात किसी मरीज़ की तरह कर दी.. तभी सामने से बबन के साथी चिल्लाते हुए स्टेज की तरफ भागने लगे जहा जिसे देखकर अंशुल पदमा का हाथ पकड़ कर भीड़ में कूद गया और मेले से बाहर निकल कर पीछे पहाड़ी की तरफ भागने लगा.. बबन के कुछ साथी उसे सँभालने लगे और कुछ अंशुल के पीछे भागने लगे.. पदमा के चहरे पर नक़ाब था और अंशुल के चेहरे पर रुमाल.. भीड़ भागती हुई पदमा के हिलते बदन को देखकर आँखे चौड़ी कर रही थी और पीवी बबन के साथ उन्हें रुकने का कह रहे थे मगर अंशुल पदमा के साथ मेले से निकल कर पहाड़ी की तरफ चला गया जहा कई वेश्याए पेड़ झाडी और सुने पन का सहारा लेकर जिस्मफरोशी का धंधा कर रही थी.. अंशुल पदमा को लेकर उनके बीच से होते हुए दूसरी तरफ भाग गया पीछे पीछे बबन के चमचे आ रहे थे वेश्याए नंगधड़ग पहाड़ी पर कहीं लेटी हुई तो कहीं बैठी हुई थी कई तो काम क्रीड़ा में मग्न भी थी मेले में आये कई लोग पहाड़ी पर चुदाई करने आये हुए थे.. अंशुल अपनी माँ पदमा के साथ ये सब देखते हुए पहाड़ी पार कर रहा था पीछे तीन लोग भाग रहे थे जो अंशुल को धमकी देते हुए रुकने का बोल रहे रहे.. अंशुल पहाड़ी बार करके कच्ची सडक ओर आ गया और पीछे से आते हुए बबन जे साथियो को वहीं पड़े लकड़ी के डंडे से घायल कर दिया जिससे उनकी हड्डिया टूट गई और तीनो ज़मीन पर गिर गए.. अंशुल पदमा को लेकर कच्ची सडक से होता हुआ नदी के मुहाने पर जंगल के करीब बने एक पुराने खंडर के पास आ गया जहाँ उसने पदमा को अपने सीने से लगा लिया..
अंशुल हस्ते हुए - और नाचना है?
पदमा के चेहरे की हवाइया उडी हुई थी वो अंशुल की बाहों में खुदको महफूस महसूस कर रही थी और अंशुल के उस व्यंग को सुनकर उसका जवाब देने में असमर्थ थी पदमा डरी हुई और थकी हुई थी ऊपर से थोड़े कपडे पहनने के कारण तेज़ी से सांस लेने के वक़्त उसकी छाती ऊपर नीचे होकर अंशुल को बावला कर रही थी जिससे वो अनजान थी पदमा अपने दोनों हाथों से अंशुल को बाहों में घेरे हुए थी और मन ही मन सोच रही थी की अगर अंशुल नहीं होता तो क्या अनार्थ हो सकता था अंशुल ने कितना उसे समझाया था पर वो थी की अपनी ज़िद पर कायम थी.. पदमा की देह पर जो कपडे थे उसे देखकर अंशुल बाहकने लगा था और बार बार पदमा को एक स्त्री की नज़र से देख रहा था जिसका पूरा इल्म पदमा को हो चूका था खंडर में अपने बेटे की बाहों में पदमा उसकी नियत अच्छे से समझ रही थी.. अंशुल ने जिस तरह से पदमा की नंगी कमर को अपने हाथ से पकड़कर अपनी और खींचा हुआ था वो पदमा को सब समझ आ रहा था.. दोनों की नज़र जब आपस में मिलती तो दोनों को एक शर्म महसूस होती जो अक्सर किसी प्रेमी जोड़े में होती है..
अंशुल का तो मन कर रहा था की वो अभी पदमा को यही लेटा कर भोग़ ले और उसे अपनी बनाकर रख ले मगर उसे डर था की कहीं पदमा को उसके व्यवहार का बुरा लगा तो वो शायद क्या सोचेगी पदमा का मन तो अंशुल के आगोश में बहक रहा था सो वो अंशुल की बाहों से दूर हो गई और एक और खड़ी हो गई..
अंशुल के सामने उसकी माँ पदमा पीठ किये खड़ी थी जहा से पदमा की पूरी तरह नंगी पीठ अंशुल के सामने थी पदमा का ब्लाउज बैकलेस था जहाँ बस दो डोरी ही ब्लाउज को संभाले था नीचे एक छोड़ा सा घाघरा जो बस पदमा के चुत्तड़ को ढके हुए थे अंशुल ये देखकर बेहद कामुकता से भरा जा रहा था उसने आगे बढ़ कर अपनी माँ पदमा को अपनी बाहों में फिर से कस लिया और इस बार उसके बाल एक तरफ करते हुए पदमा की गर्दन पर चुम्बन कर दिया..
पदमा सिहर गई उसके मन भी काम की इच्छा थी मगर अपने बेटे जे साथ वो ये नहीं चाहती थी पदमा को अंशुल ने आज खुलकर बता दिया था की वो पदमा को माँ के साथ साथ स्त्री की नज़र से भी देखता था मगर पदमा को अभी कुछ समझ नहीं आ रहा था की वो क्या करे आज ही अंशुल ने उसकी जान और इज़्ज़त दोनों बच्चाई थी और अपने प्यार का सांकेतिक इज़हार भी कर दिया था वहीं पदमा अभी कुछ भी सोचने समझने और करने की हालात में नहीं थी एक के बाद एक अंशुल ने पदमा की गर्दन को अनेक चुम्बन दे डाले थे और अब पदमा के हाल को चूमने लगा था इस माहौल में पदमा के बदन में कम्पन होना शुरू हो चूका था.. पदमा ने अंशुल को रोकते हुए कहा - हम ये नहीं कर सकते आशु...
क्या नहीं कर सकते माँ? आशु ने पदमा को अपनी बाहों में लेटे हुए इतनी प्यार से ये बात कही की पदमा खामोश हो गई और कुछ ना बोल सकी...
ये गलत है आशु.. हमारे बीच ये सब नहीं हो सकता..
अंशुल ने पदमा के काँपते लबों पर अपने होंठ रखने चाहे मगर पदमा ने चेहरा दूसरी और मोड़ लिया.. अंशुल ने पदमा की छाती पर हाथ रख दिया और दायी चूची जोर से मसल दी जिससे पदमा के मुँह से आह निकाल गई और उसने मुँह अंशुल की और कर लिया अंशुल पदमा के होंठो को अपने होंठ में भरके चूमने लगा.. अंशुल को पदमा के होंठ आम से भी मीठे लग रहे थे करीब दस मिनट तक अंशुल पदमा के होंठो को चूमता रहा और पदमा अंशुल का विरोध ही नहीं कर पाई उसके मन में जो काम था उसे अंशुल से दूर नहीं होने दे रहा था.. मगर एक कुछ दूर जानवर की हलकी सी आवाज ने पदमा को डरा दिया और उसने अंशुल को धक्का देकर पीछे कर दिया..
अंशुल अगर थोड़ा जोर डालता तो आज उसकी माँ उसे अपनी इज़्ज़त देने में जरा भी संकोच नहीं करती मगर अंशुल ने ऐसा कुछ नहीं किया और वो पदमा से दूर हट गया और कहने लगा..
अंधेरा होने वाला है पास एक बस्ती है मैं वहा से देखता हूँ कोई हमें घर के करीब छोड़ सकता है तो आप यही पर मेरा इंतजार करना.. मैं जल्द आ जाऊंगा..
मेला तो जैसे ख़त्म ही हो गया था चारो तरफ बबन के पीटने की ख़राब फ़ैल गई थी आनन फानन में बबन को हॉस्पिटल ले जाया गया मगर हालात ख़राब होने से उसे शहर ले जाने को कह दिया गया विधायक ने अपने सारे आदमी से कह दिया की जिसने भी बबन को मारा है उसे तलाश करो और सभी अंशुल की तलाश में लग गए मेला ख़त्म हो चूका था मेला तो पूरी तरफ ख़त्म हो चूका है मानो किसी ने एक झटके में सब बंद करवा दिया हो विधयाक बबन के साथ शहर चला गया...
अंशुल पदमा को खंडर के अंदर छोड़कर बस्ती की तरफ आ गया जहाँ कुछ दूकान खुली हुई थी ज्यादा तो नहीं मगर कई दूकाने अच्छी भी थी जो जरुरी चीज़े बेच रही थी घर ऐसे थे जो खुले हुए और बड़े थे अंशुल ने दूकान से अंशुल ने दूकान से कई जरुरी चीज़े ली और फिर इधर उधर देखकर एक मकान में सुखते हुए सलवार को चोरी कर अपने साथ लेकर वहा से निकाल आया.. उसने कोई गाडी या रिक्सा देखा पर उसे इस गाँव में कोई ऐसा आदमी नहीं मिला जो उसे घर पर छोड़ सके..
अंशुल वापस खंडर की तरफ आ गया और उसने सरलवार पदमा को देते हुए कपडे बदलने को कहा पदमा ने ऐसा ही किया सलवार पहनते हुए अंशुल ने जिस तरह से पदमा को देखा था उसे लग रहा था मानो आसमान से उतारकर कोई परी उसके सामने आ गई हो आज तक उसने इतना तरह और इतने प्यार से पदमा को नहीं देखा था पदमा अभी भी कितनी जवान और खूबसूरत है.. अंशुल आज अपने आप को ये बात समझा रहा था.. पदमा कपडे बदल रही थी तभी अंशुल सुसु करने बाहर आ गया और बाथरूम करने लगा जब पदमा ने पीछे से आवाज लगाई तो वो मुड़ा और पदमा को एक बार फिर से अंशुल के लंड का दीदार हो गया.. पदमा काले सूट में किसी बॉलीवुड की हीरोइन लग रही थी उसने दुप्पटा सर पर ले लिया था और अंशुल के हिलते लंड को देखे जा रही थी अंशुल पदमा को देखकर भूल चूका था की उसका लंड अपनी माँ के सामने नंगी हालात में है.. पदमा ने कुछ देर लंड निहारा फिर मुँह फेर लिया जिससे अंशुल को पता चल गया की उसका लंड नंगा है अंशुल ने लंड अंदर डाला और पदमा को लेकर सडक की तरफ आ गया..
थोड़ी देर बाद एक जीप आई जहाँ मुश्किल से एक आदमी के बैठने की जगह थी अंधेरा हो चूका था अंशुल पदमा को अपनी गोद में लेकर वहा बैठ गया जैसा अक्सर होता रहता है जीब के झटको से पदमा को अंशुल का लंड साफ महसूस हो रहा था और उसके मन में अब इसे लेने की प्रबल इच्छा उत्पन्न होने लगी थी अंशुल के चुम्बन ने पदमा के मन में अब काम की पूरी फसल ऊगा दी थी जिसे अंशुल जब चाहे तब काट सकता था..
घर पहुंचते पहुंचते रात हो गई थी अंशुल और पदमा घर के अंदर आ गए और बिना एक दूसरे से कुछ बोले अपने अपने काम में जुट गए अंशुल अपने कमरे में चला गया और पदमा रसोई में खाना बनाने चली गई..
पदमा से बिना कुछ बोले अंशुल खाने के बाद वापस अपने रूम में आ गया था वो अपने ही ख्यालों में उलझा सा था उसे आज मेले में जो कुछ हुआ उसकी कोई सुध नहीं थी उसे तो बस अपनी माँ पदमा के साथ हुए पहले चुम्बन की मधुरम याद उस वक़्त उसके दिल में उमड़े आंनद की अनुभूति हो रही थी अंशुल ने सारी रात इसी एक बात को सोचकर काट दी की काश वो पदमा को भी अपने चुम्बन में शरीक कर पाता.. पफमा ने चुम्बन में उसका विरोध नहीं किया था पर साथ भी नहीं दिया था जिससे अंशुल को अब भी पदमा के मन की अवस्था समझने में कठिनाई हो रही थी उसने बाथरूम में पदमा की हालात देखी थी लेकिन क्या अकेले में जो भावना पदमा के चेहरे पर आती थी वो अंशुल के सामने आ सकती थी? सोचने वाली बात ये है की क्या पदमा अपने मन की बात अंशुल से बिना की किसी लोक लाज और मर्यादा के कह सकती है? अगर हां तब तो अंशुल को पदमा के साथ कोई मुश्किल नहीं होगी लेकिन अगर पदमा को अंशुल की याद कचौटती रहेगी तो फिर क्या होगा.. पदमा का मन अंशुल के लिए अधीर था वो अंशुल के साथ सारी मर्यादा लाघना चाहती थी लेकिन किसी डर से वो ऐसा नहीं कर पा रही थी उसे ऐसा करने से कुछ रोक रहा था जिसे वो भी नहीं समझ पा रही थी और अब पदमा समझ चुकी थी की अंशुल के मन में उसके लिए क्या है और वो पदमा से क्या चाहता है.. आखिर पदमा जैसी औरत जो जोबन से भरपूर हो और काम की अग्नि में जल रही हो वो कैसे अंशुल से मर्द से दूर रह सकती है? रिश्तो का बंधन क्या इच्छाओ को रोक सकता है? आखिर कब तब? ये भी किसी ना किसी दिन टूट ही जाएगा, अगले तीन दिन ऐसे ही गुजर गए और अंशुल पदमा दोनों झिझकते हुए ही एक दूसरे से बात कर रहे थे जैसे उन्हें डर था की वो एक दूसरे का आकर्षण बर्दास्त नहीं कर पाएंगे और काम में लिप्त होकर अपनी मर्यादा भूल जाएंगे और हो भी वैसा ही कुछ रहा था दोनों के बीच छेड़छाड़ होना शुरू हो चूका था जिसमे दोनों कभी भी बहक कर बिस्तर तक आ सकते थे....
अरे एक टिफिन त्यार करने में कितना समय लगता है? मालूम नहीं है नया अफसर आया है विभाग में समय पर नहीं पहुँचो तो खूब खबर लेता है.. बालचंद ने पदमा से रूखे स्वर में कहा..
इतनी ही जल्दी चाहिए तो खूबसूरत क्यू नहीं बना लेटे? चपरासी हो चपसारी.. घर चलाने लायक तो कमा नहीं सकते आये बड़े हुकुम झाड़ने.. पदमा ने व्यंगत्मक ढंग से कहा तो बालचंद निरुत्तर होकर घर से बाहर चला गया.. पदमा भोर से ही उदास थी ऊपर से आज तो और भी ज्यादा अकेलापन उसे महसूस हो रहा था अंशुल ने पिछले दो दिनों से कोई ख़ास बातचीत नहीं की थी और बस किताब से ही दोस्ती रखता हुआ अपने रूम में बंद था..
सुबह के दस बज रहे थे जब पदमा चाय का कप हाथ में लेकर अंशुल के कमरे में दरवाजा खोलते हुए दाखिल हुई.. अंशुल एक सिंगल चारपाई पर किताब हाथ में लिए ही पढ़ते पढ़ते सो गया था..
पदमा ने किताब उठाकर स्टडी टेबल पर रख दी और अंशुल को जगाते हुए उसके सुन्दर चेहरे को देखने लगी.. हाय कितना प्यारा लगता है अंशुल.. आशु.... आशु.... उठो... चलो उठो.. अंशुल ने पदमा का हाथ पकड़ कर अपने सरहाने रख दिया और उसपर अपना सर रखकर सोने लगा तो पदमा ने प्यार से अंशुल का मुँह चूमकर उसे उठाने लगी..
अंशुल की नींद खुली तो उसने पदमा को अपनी बाहों में भर लिया और पदमा के गाल चूमते हुए कहा - हैप्पी बर्थडे माँ... जन्मदिन मुबारक हो... पदमा के चेहरे की उदासी मानो एक पल में गायब हो चुकी थी और उसपर एक प्रसन्नता का भाव तेरने लगा था.. तुम्हे पता था?
क्यू नहीं होना चाहिए?
नहीं... वो मुझे लगा तुम भी अपने पापा की तरह ही..
क्या?
नहीं.. कुछ नहीं..
बोलो ना माँ....
छोडो... अच्छा मेरा गिफ्ट कहा है?
आपके सामने तो है..
कहा?
यहां... कहते हुए अंशुल ने पदमा के लबों को अपनी लबों में भर लिया और चूमने लगा जैसे पदमा उसकी माँ ना होकर उसकी गर्लफ्रेंड हो.. अंशुल को किसी का डर नहीं था वो पहले भी पदमा को चुम चूका था लेकिन पदमा ने उसके बारे में किसी से कोई जिक्र नहीं किया था और फिर कई बार हंसी मज़ाक़ में छेड़ छाड़ भी अंशुल पदमा से कर चूका था.. पदमा को कुछ समझ नहीं आ रहा था वो चाहकर भी अंशुल को रोक नहीं पा रही थी उसे जैसे साँप सूंघ गया था अंशुल अपनी माँ पदमा को अपनी बाहों में भरे ऐसे चुम रहा था जैसे पदमा उसी की बीवी हो अंशुल ने पदमा को दिवार से सटा कर काफी देर तक चूमा और पदमा को अपने साथ बहकने पर मजबूर करने लगा....
बाहर का दरवाजा बजा तो एकदम से पदमा की आँखे जो मदहोशी से बंद हो चुकी थी खुल गई और उसने अंशुल को धक्केलते हुए पीछे कर दिया और कमरे बाहर निकलकर पसीने पोछते हुए नीचे आ गई और बाहर का दरवाजा खोलने चली गई.. डाकिया अंशुल के नाम एक तार देकर चला गया मगर पदमा की साँसे अब भी अंशुल के कमरे में ही अटकी थी, पदमा लड़खड़ाते हुए कदमो और धड़कते हुए दिल के साथ अंशुल के कमरे की तरफ वापस बढ़ गई.. अंशुल ने अलमारी से एक बेग निकाल लिया था उसने जैसे ही पदमा को वापस रूम में आते देखा वो समझ गया की पदमा क्या चाहती है? अंशुल ने देखा की पदमा को जो तार डाकिया दे गया है वो कॉलेज से आया है और उसमे बेकाम का कुछ कागज लगा हुआ है अंशुल ने उसे एक जगह रखते हुए पदमा को फिर से अपने सीने से लगा लिया..
अंशुल ने बैग से बहुत से गहने निकालकर पदमा को पहना दिए थे जो वो अपने साथ शहर से खरीदकर पदमा के लिए लाया था और बर्थडे पर देने का वादा किया था पदमा को यक़ीन नहीं हो रहा था की ये उसके साथ क्या हो रहा है आज तक बालचंद ने उसे चांदी तक का कोई गहना नहीं दिलवाया था ना ही पदमा ने कोई ख़ास गहना अपनी जिंदगी में पहना ही था, मगर अंशुल ने तो उसे ऊपर से नीचे तक गहनो से लाद दिया था पदमा के कानो में ख़नकते झुमके, गले में सजता हार, हाथो में सोने की छनकती चूड़ी, कमर में कमरबंध की झंकार, पैरों में पायल की छन छन और नाक में नथुनी की चमक.. पदमा इन सब में कोई अप्सरा लगती थी जिसने आज अद्भुत श्रंगार किया हो..
पदमा किसी मूर्ति ही तरह खामोश शांत सी एक जगह खड़ी थी तभी अंशुल ने पदमा के चेहरे को ठोड़ी से पकड़ कर ऊंचा करते हुए खुले तौर पर अपने प्रेम का इज़हार कर दिया था...
ई लव यू पदमा... अंशुल ने बिना किसी शर्म लिहाज़ के पदमा की आँखों में आँखों डालकर कह दिया था.. जिसका जवाब पदमा ने उसी वक़्त अंशुल के होंठों को अपने होंठों में लेकर चूमते हुए दे दिया था और दोनों ने एक दूसरे से अपने प्रेम का इज़हार कर दिया था दोनों आज माँ बेटे के बंधन से निकल कर बाहर आ चुके थे और अब प्रेमी प्रेमिका के बंधन में बाँधने वाले थे..
Updateअध्याय 10
मेला
फ़्लैशबैक भाग -3
अंशुल बाइक चला रहा था और पदमा पीछे एक हाथ अंशुल की बगल के नीचे से आगे करके उसकी बाह पकडे बैठी थी अंशुल बार बार ब्रेक मारकर पदमा की छाती को अपनी पीठ पर महसूस कर रहा था लेकिन पदमा ने खुद ही अपनी छाती अंशुल की पीठ से चिपका दी तो अंशुल ने ब्रेक मारना छोड दिया और पदमा को महसूस करते हुए बाइक चलाने लगा.. आज दोनों में सुबह से कुछ ज्यादा बातचीत नहीं हुई थी आधी रात हुए हादसे के बारे में तो बिलकुल भी किसीने मुँह नहीं खोला.. दोनों के ही मन में एक दूसरे के प्रति आसक्ति थी और कामुकता के बीज भी पनप रहे थे जो उनके भीतर कामदेवता की छाया का काम कर रहे थे..
अंशुल ने दो ही दिनों में पदमा को अपनी माँ से अपनी दोस्त बना लिया था वो पदमा से शर्मा नहीं रहा था, पदमा को भी अंशुल से बाते करके लगने लगा था की अब उसका अकेला पन दूर हो जाएगा.. उसके पास कोई भी तो नहीं था जिससे वो सारा दिन दिल खोल कर बाते कर सके.. अंशुल के साथ पिछले दो दिन कैसे बीते पदमा को पता भी नहीं लगा था.. आज का दिन भी कुछ ऐसा ही था पदमा मुस्कुराते हुए रास्ते का मज़ा ले रही थी.. उसके पास ऐसा था ही कौन जो उसे कहीं सेर सपाटा कराये और घुमाने ले जाए.. अंशुल तो पदमा की आँखों में बस चूका है उसे अब पदमा से कौन दूर करे? अंशुल अगर आज वापस शहर जाने की ज़िद करे तो शायद पदमा उसे जाने नहीं देगी.. और अपने गले से लगा के अपने साथ रहने की विनती करेगी.. उसकी गुहार में उसके अकेलेपन को काटने की उम्मीद होगी.. अंशुल समझ चूका था की पदमा से अगर वो चाहे तो अभी ही कहीं रास्ते में सुनसान जगह लेजाकर सम्बन्ध बना सकता है पदमा की जैसी हालात है और वो अंशुल से आकर्षित है पदमा ज्यादा विरोध नहीं करेगी लेकिन वो ऐसा नहीं करना चाहता.. उसे पदमा का पूरा समर्पण चाहिए.. अंशुल प्रेम करना चाहता है.. प्रेम?? हां प्रेम.. सम्भोग तो जानवर भी करते है.. पर क्या वो लोग उस सम्भोग़ का पूरा आंनद ले पाते है? क्षण भर की तृप्ति ही उन्हें नसीब होती है.. मगर जब दो लोग अपनी मर्ज़ी एक दूसरे से मिलते है वो सम्बन्ध प्रेम ही कहलाता है जिसमे तृप्ति हर क्षण भोगने का मार्ग दिखलाई पड़ता है.. अंशुल उसीके लिए पदमा के दिल में अपने लिए प्यार जगाना चाहता है मगर वो प्यार एक बेटे के लिए नहीं एक मर्द के लिए होगा..
दोपहर के 1 बज रहे है.. मौसम सुहावना है त्यौहार के दिनों में लगने वाला ये मेला खचाखच भरा हुआ है.. सभी के चेहरे पर मुस्कान है कोई हँसता है तो उछल उछल कर अपनी रेड़ी पर लोगों को बुलाने के लिए आवाजे मार रहा है.. गाँव के बाहर खाली ज़मीन जिसे जोता नहीं जाता वहीं इस मेले का आयोजन हुआ है और इस गाँव को गाँव कहना भी ठीक नहीं, ये विधायक जी का गाँव है देखने से लगता है हर तरह का विकास का काम उन्होंने इसी गाँव में करवाया है.. तरह तरह के झूले यहां लगे हुए है और उन सभी में आस पास के अनेको गाँव से झुण्ड बनाकर आये लोग झूल रहे है.. भीड़ देखने से लगता है जैसे कुम्भ का मेला भर गया हो..
मेला शुरू हुए आज दूसरा दिन था और भीड़ आज कुछ ज्यादा ही उमड़ गई थी बच्चे शोर मचाते हुए इधर से उधर घूम रहे थे और ना ना प्रकार की चीज़ो के लिए ज़िद कर रहे थे अंशुल ने बाइक पार्किंग में लगा दी और पदमा का हाथ अपने हाथ में थामे मेले के प्रवेश द्वार से होता हुआ अंदर आ गया, पदमा की आँखों में चमक थी वो अपने सामने का नज़ारा देखकर ख़ुशी से भरी जा रही थी आजतक बालचंद उसे कहीं लेकर घुमाने नहीं गया था पदमा का जीवन नीरस था जिसे अंशुल पिछले दो दिनों से रसमय कर रहा था.. पदमा अंशुल का हाथ थामे मेले में इधर से उधर अपने आप ही घूमने लगी थी वो आज ये नज़ारा अपनी आँखों में भर लेना चाहती थी अंशुल सिर्फ पदमा के पीछे पीछे आ रहा था उसे पदमा के चेहरे की ख़ुशी अच्छे से दिख रही थी और वो समझ रहा था की पदमा कितनी खुश है.. भीड़ में एक जगह से दूसरी जगह जाने में भले ही दोनों को मुश्किल आ रही थी भीड़ का सामना करना पड़ रहा था लेकिन पदमा हर बाधा पार करके आज एक एक नज़ारा देख लेना चाहती थी.. काफी देर तक सब पदमा मेले में अंशुल का हाथ थामे घूमती रही और बार बार अंशुल को देखकर अपनी मन की बातें बतलाने लगी की कैसे वो बचपन से ही मेला देखने की शौकीन थी मगर आज तक उसे कभी कहीं आने जाने का मौका ही नहीं मिला था..
बहुत देर तक घूमने के बाद अंशुल ने पदमा को एक चाट की जगह रोक लिया और वहा खड़े लोगों को पार करता हुआ 2-3 चाट की चीज़े लेकर पदमा को अपने हाथ से खिलाने लगा.. पदमा अंशुल के हाथो से वो चीज़े ख़ुशी खुशी खा रही थी और अंशुल को भी अपने हाथ से खिला रही थी खाने के दौरान पदमा अपने मन की बाते अंशुल को सुनाने का काम भी बड़ी अधीरता के साथ कर रही थी जैसे वो एक सांस में अपनी सारी बाते कह देना चाहती थी अंशुल बड़े इत्मीनान से वो बातें सुनता हुआ पदमा के होंठों पर लगा खाना अपनी उंगलि से साफ कर रहा था.. खाने के बाद एक बड़े झूले में जिसे स्थानीय भाषा में ड्रागेन झूला भी कहते है आकर अंशुल और पदमा आस पास बैठ गए.. झूला शुरू होने पर पदमा को ये अहसास हुआ की उसे कितना डर लग रहा है वो झूला चलने पर अंशुल को किसी बच्चे की तरह पकड़ कर बैठी थी और फिर कुछ ही पालो में पदमा ने अंशुल की बाह से खुदको चिपका लिया और आँख बंद कर ली.. अंशुल पदमा के चेहरे को देखे जा रहा था. हाय.... कितनी प्यारी लग रही थी पदमा बिलकुल किसी नवयोवना स्त्री की भाति कोमल और आकर्षक.. अतुलनीय सुंदरता की प्रतिमा को आज पदमा ने अपने इस चलचित्र से साकार कर दिया था.. ऊपर नीचे आते जाते झूले के दरमियान आँख बंद कर अंशुल से चिपकी हुई पदमा ऐसे लग रही थी मानो किसी अप्सरा ने धरती पर आकर अपना अनुपम रूप दर्शाया हो.. अंशुल तो जैसे सच में उस रूपवती के प्यार में पड़ गया था अंशुल को पदमा के रूप के आगे ध्यान ही नहीं रहा की वो उसकी माँ है..
पदमा की कजरारी बंद आँखे, डर से भीच गए होंठ चेहरे पर लहराती काली घनी जुल्फे और कंधे से सरकता हुआ पल्लू.. अंशुल के दिल की धड़कन में अद्भुत गति प्रदान कर रहे थे. अंशुल ने पदमा के हाथों से अपना हाथ छुड़ाकर पदमा को अपनी बाहों में कस लिया और उसकी जुल्फ संवारने लगा..
डर लग रहा है?
हां.... पदमा ने आँख बंद किये हुए ही कहा..
बहुत आवाजे आ रही है लगता है.. झूला टूटने वाला है..
पदमा अंशुल की बात सुनकर और भी उसकी बाहों में समाती चली गई उसे ये अहसास नहीं हो रहा था की अंशुल के सीने से उसकी छाती कितनी चिपकी हुई है अंशुल तो जैसे स्वर्ग लोक की सेर पर था उसने पदमा के सर को बड़े प्यार से अपने कंधे पर संभाल रखा था
कुछ नहीं होगा.. आप खामखा डर रही हो.. मैं तो मज़ाक़ कर रहा हूँ.. देखो झूला भी अब धीमे हो रहा है. आँख खोलो.. माँ.... देखो ना..
पदमा ने डरते हुए अपनी आँख खोल दी और ऊपर नीचे आते जाते हुए उसके पेट में कुछ हलचल सी होने लगी थी जिसे महसूस करना आसान है..
आशु.... कहते हुए पदमा ने फिर से अपनी आँख बंद कर ली और अंशुल के सीने से खुदको तब तक अलग नहीं किया जब तक की झूला वाक़ई में नहीं रुक गया.. झूले से नीचे आते ही कुछ दुरी ओर पदमा ने उलटी कर दी और जो भी अब तक खाया पिया था बाहर कर दिया.. अंशुल समझ गया था की पदमा को झूले से डर लगता है उसने पदमा को पानी दिया और संभाला.. पदमा थोड़ी देर में ही फिर से पहले जैसी हो गई और हँसते हुए अंशुल को देखने लगी और बोली..
बच गया तू.. मुझे तो झूले पर ही उलटी आ रही थी.. एक बार को लगा तुझ पर ही ना कर दू.. बाप रे.. मेरे लिए तो झूला देखने में ही ठीक है.. झूला झूलना नहीं..
आप भी ना माँ.... मैंने तो पहले ही कहा था आपको डर लगेगा पर आप ही ज़िद करने लगी.. मेरे ऊपर ही उल्टी कर देती तो मेरा क्या होगा? वहा कम भीड़ है वहा चलते है..
कहा.. निशाने पर?
हां... चलो आपको बन्दूक चलाना सिखाता हूँ..
पदमा अंशुल के साथ एक निशाने वाले के पास आ गई जहाँ एक निशाने लगाने वाली लम्भी बन्दूक से गुबारे पर निशाना लगाकर फोडने खेल हो रहा था..
अंशुल ने बन्दूक पदमा को दे दी और पदमा बन्दूक से इधर उधर निशांने लगाने लगी मगर एक भी निशाना ठीक नहीं लगा.. तब अंशुल ने बन्दूक रेलोड करवाकर पदमा के हाथो में दे दी और खुदको अपनी माँ पदमा के पीछे आ कर बन्दूक पकड़ ली.. अंशुल और पदमा उसी पोज़ में थे जिसमे शोले के धर्मेंद्र और हेमा मालिनी बाग़ में आम पर निशाने लगाते समय थे.. अंशुल महसूस कर रहा था पदमा के जुल्फ की खुशबू, इसके बदन की गहराइयाँ... पदमा तो सिर्फ मेला का आनंद लेने में ही मग्न थी उसने इस बात पर ध्यान नहीं दिया की अंशुल उसे पूरा चेकआउट कर रहा है.. अंशुल ने पदमा के कानो को चूमते हुए निशाना लगाया जो बिलकुल सटीक गुबारे पर लगा.. पदमा ख़ुशी से खिलखिलाकर हँसने लगी और अंशुल को देखकर वापस ऐसा ही करने को कहने लगी.. अंशुल हर निशाने पर एक गुब्बारा फोड़कर पदमा को किसी निशानेबज़ी की प्रतियोगिता में जितने वाली ख़ुशी दे रहा था..
निशानेबाज़ी की दूकान वाला अंशुल की हरकते देख रहा था और नज़रअंदाज़ कर रहा था मगर फिर भी उसके लिंग में अकड़न आ गई थी अंशुल तो बेपरवाह होकर ही पदमा को निशानेबाज़ी सीखा रहा था उसे कहा मालूम था की आस पास के लोग उसे ऐसा करते हुए देखकर मज़े ले रहे है.. निशाने बाज़ी के बाद अंशुल और पदमा वहा से एक रिंग फेंकने वाले की दूकान पर आ गए जहाँ अनेक चीज़े रखी हुई थी और कई लोग उन चीज़ो पर रिंग डालने का प्रयास कर रहे थे, पदमा ने एक के बाद एक कई रिंग डाली लेकिन कुछ भी जीत नहीं पाई मगर अंशुल ने आखिरी रिंग में एक छोटा सा टेडी बियर जीतकर पदमा को दे दिया जिसपर खुश होते हुए पदमा ने अंशुल को गले से लगा लिया था.. ऐसे ही एक के बाद दूसरी दूसरी के बाद तीसरी दूकान पर जाते हुए पदमा और अंशुल मेले का मज़ा लेने लगे थे शाम का वक़्त करीब आ चूका था मौसम पहले से ही सुहावना था जो सूरज को पूरी तरह ढके हुए था और हल्का सा अंधेरा कायम रखे था..
आशु तू यहां ?
क्या हुआ चन्दन भैया?
कुछ नहीं बस घर पर धन्नो काकी नहीं थी तो सोचा मेला घूम लू मगर अब घर जाने का मन कर रहा है.. यहां से तो कोई नहीं है जो ले गाँव जाए...
आप मेरी बाइक ले जाइये.. मैं रात को ले लूंगा...
चन्दन बाइक लेकर घर चला गया..
एक स्टेज की तरफ भीड़ लगी हुई थी लोगों खचाखच वहा भरे हुए थे स्टेज पर एक औरत का नाच चल रहा था और जमा हुए लोग गाने की ताल पर उस औरत को देखते हुए नाच रहे थे और अश्लील भाषा का इस्तेमाल कर रहे थे कोई गालिया देते हुए मज़े ले रहा था तो कोई अश्लील इशारे से औरत को चिढ़ा रहा था.. ये एक प्रतियोगिता थी जिसमे कई औरतों ने भाग लिया था मेले में आई कई औरत अभी तक नाच चुकी थी जितने वाली पहली महिला को 25 हज़ार का नगद इनाम मिलने की बात थी दूसरी को 15 और तीसरी को 10 हज़ार.... पदमा भी वहा आ चुकी थी और अब वो भी स्टेज पर हो रहे नाच गाने को देख सुन रही थी और अंशुल का हाथ पकडे अपनी जगह खड़ी हुई हिल दुल रही थी मानो उसपर नाचने की धुन सवार हो लेकिन अंशुल बस दूर से ही पदमा को वो सब दिखाने लाया था उसे पता था की ऐसे मोके पर लोगों का लड़की के प्रति केसा व्यवहार हो जाता है इसलिए अंशुल पदमा को दूर से ही वो सब दिखा कर वापस ले जाना चाहता था.. पदमा अंशुल से आगे चलने की ज़िद कर रही थी जिसे अंशुल मानने वाला नहीं था वो पदमा को समझा रहा था की आगे बहुत भीड़ है और अगर वो आगे जाती है तो कोई ना कोई बखेड़ा जरुर खड़ा हो जाएगा.. आगे खड़ी औरतों के साथ भीड़ में होती हरकतो से पदमा भी अनजान नहीं थी लेकिन उसे नाच गाना देखने का इतना शोक था की वो आगे जाने की ज़िद पर अड़ गई थी और अंशुल ये ज़िद मानने को कतई राज़ी नहीं था.. दोनों के बीच इस बात पर झगड़ा सा हो रहा था अंशुल पदमा का हाथ पकडे उसकी ज़िद पर गुस्सा करते हुए उसे लगभग डांट रहा था, पदमा भी जैसे पिंजरा तोड़कर आजाद होने की इच्छा से अंशुल का बनवटी गुस्सा नज़रअंदाज़ कर आगे जाने की ज़िद कर रही थी.. दोनों एक दूसरे का हाथ पकडे कर ही ये सब कर रहे थे.. मगर बदलो ने मेले की रौनक में विघ्न डालने का मन बना लिया था हलकी सी बूंदाबांदी शुरू हुई और फिर धीरे धीरे बरसात तेज़ होने लगी भरी भीड़ जो मेरे में आई थी वो छुपने की जगह तलाश करने लगी स्टेज के नीचे कई लोग घुसकर बरसात से बचने की कोशिश करने लगे, अंशुल भी पदमा को स्टेज के नीचे ही लेकर आ गया था जहाँ पहले से बहुत सारे लोग भीगने से बचने के लिए आकर छुप गए थे, भीड़ ज्यादा थी और लोग अपनेआप को बरसात से बचने के लिए जहाँ जगह मिल रही थी वहीं आकर छुप रहे थे जिससे स्टेज के नीचे भी बहुत भीड़ हो गई थी अंशुल ने इस बीड से पदमा को बचाने के लिए उसे अपनी बाहों के घेरे में ले रखा था जो बढ़ती भीड़ के साथ कस्ता जा रहा था.. पदमा भी अंशुल की बाहों में खुदको महफूस समझने लगी थी और दोनों के मन में जो भावना भड़क रही थी वो उन्हें ही मालूम थी.. काम तो जैसे हवा में घुलकर बहने की मांग कर रहा था लेकिन रिश्ता और झिझक ने दोनों के मन से इस परत को अभी नहीं उतरने दिया था..
कुछ देर के बाद बरसात रुकी तो फिर से धीरे धीरे मेले की रंगत बढ़ने लगी और लोगों के चेहरे पर हंसी खुशी और प्रसन्नता का भाव जगमगाने लगा.. अंशुल अब भी स्टेज के सामने थे इस बार पदमा आगे जाने के जगह प्रतियोगिता में भाग लेने की zid करने लगी थी जिसपर अंशुल ने उसे बहुत समझाया पर वो नहीं मानी और अंशुल को साथ लेकर नाचने की प्रतियोगिता में अपना नाम दे दिया.. पदमा को नाचने का शोक तो बचपन से था वो नाचने की कला से परिचित भी थी गाँव में कोई मांगलिक काम हो या अन्य आयोजन.. महिलाओ के बीच पदमा का नाच बड़ा लोकप्रिय था उसके बदन की लचक और बालखाती लहराती जुल्फों को देखकर मर्द तो मर्द औरत भी उस पर अपना दिल हार सकते थे अंशुल को इस बात का कोई पता नहीं था की पदमा कितनी सुन्दर नचनिया है हिंदी फ्लिमो में जिसे आइटम गर्ल कहा जा सकता है देशी भाषा में उसे जबरू नचनिया कहा जाता है.. पदमा को नाचने के लिए आयोजको से एक ड्रेस मिली थी गाना फाइनल हो चूका था अंशुल डर रहा था की कहीं कोई गाँव का आदमी पदमा को ऐसे देख लेगा तो बात फ़ैल जायेगी और आफत आ जायेगी.. पदमा ने अंशुल को देखकर मुस्कुराते हुए बस इतना कहा था कुछ नहीं होगा.. और वो परदे के पीछे कपडे बदलने लगी थी एक छोटा ब्लाउज जिसमे से पदमा के चुचो का कुछ भाग बाहर झलक रहा था वहीं एक छोटा घाघरा जो पदमा के घुटनो तक ही था पहन कर पदमा परदे से बाहर आई थी अंशुल तो पदमा को देखकर बेचैन ही हो गया था..
माँ ये क्या पहना है.. सब दिख रहा है.. मैं कह रहा हूँ छोडो ये ज़िद.. चलो यहां से..
अरे कुछ नहीं आशु.. वो सब यही तो पहन कर नाच रहे है.. तू देखना पहला पुरुस्कार तो मैं ही जीतूंगी..
गाँव के किसीआदमी या औरत ने देख लिया तो आफत आ जायेगी.. पापा को जानती हो ना आप? मैं फिर से कह रहा हूँ ये नाच गाना छोड़ा चलो यहां से..
रुक ना आशु.. तू भी.. देख मैं ये मास्क लगाने वाली हूँ किसी को पता नहीं चलेगा मैं कौन हूँ.. तू बस दस मिनट रुक मैं अभी नाचकर आती हूँ..
माँ.. मुझे ठीक नहीं लग रहा है इतने लोग है.. भीड़ है.. और आप जानती हो सब आपको किस नज़र से देख रहे है.. आपको जरुरत नहीं है ये सब करने की.. आपको जो चाहिए मैं हूँ ना उसके लिए..
आशु.. तू ना फालतू डर रहा है.. मेरी ये इच्छा पूरी नहीं कर सकता.. मैं अपने लिए एक नाच प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं ले सकती?
अंशुल पदमा का चहरा देखकर पिघल जता है और कहता है अच्छा ठीक है मगर ध्यान से.. किसीने पहचान लिया तो जानती हो ना कितनी बदनामी होगी.. कहकर अंशुल स्टेज के सामने भीड़ में आ जाता है और इंतजार करता है कब पदमा का परफॉर्मेंस होगा और वो कब वापस आएगी..
विधायक चरणदास का बेटा बबन भी अब अपने आवारा दोस्तों के साथ मेले में आ चूका था स्वाभाविक रूप से कामुक और महिलाओ के प्रति हीन भावना रखने वाला बबन अपने दोस्तों के साथ नाच देखने के लिए संयोग से अंशुल के पास ही रुक गया था अंशुल और बबन अगल बगल ही थे.. स्टेज पर अभी अभी एक डांस प्रफार्मन्स ख़त्म हुई थी और अब पदमा की बारी थी छोटे छोटे लाल ब्लाउज और घाघरे में पदमा ने एक बॉलीवुड गाने पर एंट्री मारी तो मुर्दा पड़ी भीड़ में जान आ गई और वो भी नाचने लगी..
चिक चिक चिक चिक चिक
चिक चिक चिक चिक चिक
रिंग रिंग रिंगा
रिंग रिंग रिंगा
रिंग रिंग रिंगा रिंग रिंगा
हईये!
ए री!!!
आहहह!!!!
चुआ चुआ चुआ चुचुआ चुआ हाय री
चुआ चुआ ारा रा रा चुआ चुचुआ
चुआ चुआ चुआ चुचुआ
आई आई आई या मई मई या
आई आई आई आई यी यी यी
रिंग रिंग रिंगा
रिंग रिंग रिंगा
रिंग रिंग रिंगा रिंग रिंगा
पदमा ने जैसे पुरे मेले की चमक ही खिंच ली थी और वो इस गाने पर स्टेज पर अपनी अदाओ से सबका मन मोह रही थी कई लोग तो पदमा को हवस की निगाहो से देख रहे थे और कई बूढ़े अपनी जवानी को कोस रहे थे बबन एक टक पदमा को निहार रहा था उसके हिलते डुलते बदन पर उसकी निगाह थी गाने के बोल पर पदमा जिस तरह से अपने बदन को लचका रहा थी उसे देखकर किसी भी जवान मर्द का कामुकता से भर जाना स्वाभाविक ही था अंशुल भी पदमा का डांस देखकर चौंक गया था वो हैरानी और आश्चर्य से पदमा को देख रहा था..
खटिये पे में पड़ी थी
और गहरी नींद बड़ी थी
आगे क्या मैं कहु सखी रे
एक खटमल था सैयना
मुझपे था उसका निशाना
चुनरी में घुस गया धीरे धीरे
ऊऊऊ ओह्ह्ह
कुछ नहीं समझा वो बुद्धू
कुछ नहीं सोचा
रेंग के जाने कहा पंहुचा
रिंग रिंग रिंगा
रिंग रिंग रिंगा
रिंग रिंग रिंगा रिंग रिंगा
चिक चिक चिक चिक चिक
चिक चिक चिक चिक चिक
बबन और अंशुल अगल बगल खड़े बस स्टेज पर पदमा के नाच को देखकर कामुक हो रहे थे बबन के साथी बार बार पदमा को देखकर बबन से उसके बारे में अश्लील बातें कर रहे थे जो की अंशुल को साफ सुनाई दे रही थी लेकिन अंशुल कोई तमाशा नहीं करना चाहता थ इसलिए उसने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया..
भाई क्या माल है यार...
इसे तो आज रात चखना ही पड़ेगा.
उफ्फ्फ.. क्या बदन है.. सर पैर तक कमाल है बबन भैया..
मगर है कौन साली.. पहली बार दिखी है.. इस गाँव की तो नहीं है लगता है पास के किसी गाँव से आई है..
जहाँ से भी आई तो आज तो चुदके जायेगी ये रंडी....
बबन ने शराब की घूंट मारते हुए कहा और लड़खड़ाते हुए आगे की और चल दिया अंशुल भी बबन के बगल से होता हुआ आगे की और जाने लगा अंशुल को अब मालूम हो गया था की बबन कोई ना कोई जलील हरकत जरुरत करेगा इसलिए वो चाहता था जल्दी से पदमा को वहा से ले जाए.. गाने के ख़त्म होने के साथ ही बबन स्टेज पर चढ़ गया और नाचती हुई पदमा की कलाई पकड़ ली और दूसरे हाथ में पकड़ी हुई पिस्तौल से एक हवाई फायर कर दिया..
पिस्तौल की गोली की आवाज के साथ ही गाना ख़त्म हो चूका था भीड़ पदमा के नाच गाने से मदहोश थी आयोजक बबन की इस हरकत के आगे कुछ नहीं बोल सके, सब विधायक को अच्छे से जानते थे और ये भी की बबन विधायक का एकलौता लोंडा है और विधायक को बबन से कितना पुत्र मोह है.. यही कारण था की बबन की जलील हटकतो के बाद भी विधायक अपने बेटे का पूरा साथ देता था और किसी भी काण्ड से बचा लेटा था आज बबन पदमा का हाथ पकडे भीड़ के सामने खड़ा था और दूसरे हाथ से उसका नकाब उतारने ही वाला था की अंशुल ने अपनी माँ को बबन से बचाने के लिए बीच में ही एंट्री मार ली.. अंशुल ने अपने चेहरे पर अपना रुमाल लगा लिया था उसे मालूम था जो वो करने वाला है उसके बाद अगर उसे कोई देख लेगा तो जरुर ढूंढने की कोशिश करेगा.. अंशुल ने पीछे से बबन के हाथ से छीन ली और इससे पहले की बबन पदमा के तंग ब्लाउज में हाथ डालता अंशुल ने लात घूंसो से स्टेज पर ही बबन की हालात किसी मरीज़ की तरह कर दी.. तभी सामने से बबन के साथी चिल्लाते हुए स्टेज की तरफ भागने लगे जहा जिसे देखकर अंशुल पदमा का हाथ पकड़ कर भीड़ में कूद गया और मेले से बाहर निकल कर पीछे पहाड़ी की तरफ भागने लगा.. बबन के कुछ साथी उसे सँभालने लगे और कुछ अंशुल के पीछे भागने लगे.. पदमा के चहरे पर नक़ाब था और अंशुल के चेहरे पर रुमाल.. भीड़ भागती हुई पदमा के हिलते बदन को देखकर आँखे चौड़ी कर रही थी और पीवी बबन के साथ उन्हें रुकने का कह रहे थे मगर अंशुल पदमा के साथ मेले से निकल कर पहाड़ी की तरफ चला गया जहा कई वेश्याए पेड़ झाडी और सुने पन का सहारा लेकर जिस्मफरोशी का धंधा कर रही थी.. अंशुल पदमा को लेकर उनके बीच से होते हुए दूसरी तरफ भाग गया पीछे पीछे बबन के चमचे आ रहे थे वेश्याए नंगधड़ग पहाड़ी पर कहीं लेटी हुई तो कहीं बैठी हुई थी कई तो काम क्रीड़ा में मग्न भी थी मेले में आये कई लोग पहाड़ी पर चुदाई करने आये हुए थे.. अंशुल अपनी माँ पदमा के साथ ये सब देखते हुए पहाड़ी पार कर रहा था पीछे तीन लोग भाग रहे थे जो अंशुल को धमकी देते हुए रुकने का बोल रहे रहे.. अंशुल पहाड़ी बार करके कच्ची सडक ओर आ गया और पीछे से आते हुए बबन जे साथियो को वहीं पड़े लकड़ी के डंडे से घायल कर दिया जिससे उनकी हड्डिया टूट गई और तीनो ज़मीन पर गिर गए.. अंशुल पदमा को लेकर कच्ची सडक से होता हुआ नदी के मुहाने पर जंगल के करीब बने एक पुराने खंडर के पास आ गया जहाँ उसने पदमा को अपने सीने से लगा लिया..
अंशुल हस्ते हुए - और नाचना है?
पदमा के चेहरे की हवाइया उडी हुई थी वो अंशुल की बाहों में खुदको महफूस महसूस कर रही थी और अंशुल के उस व्यंग को सुनकर उसका जवाब देने में असमर्थ थी पदमा डरी हुई और थकी हुई थी ऊपर से थोड़े कपडे पहनने के कारण तेज़ी से सांस लेने के वक़्त उसकी छाती ऊपर नीचे होकर अंशुल को बावला कर रही थी जिससे वो अनजान थी पदमा अपने दोनों हाथों से अंशुल को बाहों में घेरे हुए थी और मन ही मन सोच रही थी की अगर अंशुल नहीं होता तो क्या अनार्थ हो सकता था अंशुल ने कितना उसे समझाया था पर वो थी की अपनी ज़िद पर कायम थी.. पदमा की देह पर जो कपडे थे उसे देखकर अंशुल बाहकने लगा था और बार बार पदमा को एक स्त्री की नज़र से देख रहा था जिसका पूरा इल्म पदमा को हो चूका था खंडर में अपने बेटे की बाहों में पदमा उसकी नियत अच्छे से समझ रही थी.. अंशुल ने जिस तरह से पदमा की नंगी कमर को अपने हाथ से पकड़कर अपनी और खींचा हुआ था वो पदमा को सब समझ आ रहा था.. दोनों की नज़र जब आपस में मिलती तो दोनों को एक शर्म महसूस होती जो अक्सर किसी प्रेमी जोड़े में होती है..
अंशुल का तो मन कर रहा था की वो अभी पदमा को यही लेटा कर भोग़ ले और उसे अपनी बनाकर रख ले मगर उसे डर था की कहीं पदमा को उसके व्यवहार का बुरा लगा तो वो शायद क्या सोचेगी पदमा का मन तो अंशुल के आगोश में बहक रहा था सो वो अंशुल की बाहों से दूर हो गई और एक और खड़ी हो गई..
अंशुल के सामने उसकी माँ पदमा पीठ किये खड़ी थी जहा से पदमा की पूरी तरह नंगी पीठ अंशुल के सामने थी पदमा का ब्लाउज बैकलेस था जहाँ बस दो डोरी ही ब्लाउज को संभाले था नीचे एक छोड़ा सा घाघरा जो बस पदमा के चुत्तड़ को ढके हुए थे अंशुल ये देखकर बेहद कामुकता से भरा जा रहा था उसने आगे बढ़ कर अपनी माँ पदमा को अपनी बाहों में फिर से कस लिया और इस बार उसके बाल एक तरफ करते हुए पदमा की गर्दन पर चुम्बन कर दिया..
पदमा सिहर गई उसके मन भी काम की इच्छा थी मगर अपने बेटे जे साथ वो ये नहीं चाहती थी पदमा को अंशुल ने आज खुलकर बता दिया था की वो पदमा को माँ के साथ साथ स्त्री की नज़र से भी देखता था मगर पदमा को अभी कुछ समझ नहीं आ रहा था की वो क्या करे आज ही अंशुल ने उसकी जान और इज़्ज़त दोनों बच्चाई थी और अपने प्यार का सांकेतिक इज़हार भी कर दिया था वहीं पदमा अभी कुछ भी सोचने समझने और करने की हालात में नहीं थी एक के बाद एक अंशुल ने पदमा की गर्दन को अनेक चुम्बन दे डाले थे और अब पदमा के हाल को चूमने लगा था इस माहौल में पदमा के बदन में कम्पन होना शुरू हो चूका था.. पदमा ने अंशुल को रोकते हुए कहा - हम ये नहीं कर सकते आशु...
क्या नहीं कर सकते माँ? आशु ने पदमा को अपनी बाहों में लेटे हुए इतनी प्यार से ये बात कही की पदमा खामोश हो गई और कुछ ना बोल सकी...
ये गलत है आशु.. हमारे बीच ये सब नहीं हो सकता..
अंशुल ने पदमा के काँपते लबों पर अपने होंठ रखने चाहे मगर पदमा ने चेहरा दूसरी और मोड़ लिया.. अंशुल ने पदमा की छाती पर हाथ रख दिया और दायी चूची जोर से मसल दी जिससे पदमा के मुँह से आह निकाल गई और उसने मुँह अंशुल की और कर लिया अंशुल पदमा के होंठो को अपने होंठ में भरके चूमने लगा.. अंशुल को पदमा के होंठ आम से भी मीठे लग रहे थे करीब दस मिनट तक अंशुल पदमा के होंठो को चूमता रहा और पदमा अंशुल का विरोध ही नहीं कर पाई उसके मन में जो काम था उसे अंशुल से दूर नहीं होने दे रहा था.. मगर एक कुछ दूर जानवर की हलकी सी आवाज ने पदमा को डरा दिया और उसने अंशुल को धक्का देकर पीछे कर दिया..
अंशुल अगर थोड़ा जोर डालता तो आज उसकी माँ उसे अपनी इज़्ज़त देने में जरा भी संकोच नहीं करती मगर अंशुल ने ऐसा कुछ नहीं किया और वो पदमा से दूर हट गया और कहने लगा..
अंधेरा होने वाला है पास एक बस्ती है मैं वहा से देखता हूँ कोई हमें घर के करीब छोड़ सकता है तो आप यही पर मेरा इंतजार करना.. मैं जल्द आ जाऊंगा..
मेला तो जैसे ख़त्म ही हो गया था चारो तरफ बबन के पीटने की ख़राब फ़ैल गई थी आनन फानन में बबन को हॉस्पिटल ले जाया गया मगर हालात ख़राब होने से उसे शहर ले जाने को कह दिया गया विधायक ने अपने सारे आदमी से कह दिया की जिसने भी बबन को मारा है उसे तलाश करो और सभी अंशुल की तलाश में लग गए मेला ख़त्म हो चूका था मेला तो पूरी तरफ ख़त्म हो चूका है मानो किसी ने एक झटके में सब बंद करवा दिया हो विधयाक बबन के साथ शहर चला गया...
अंशुल पदमा को खंडर के अंदर छोड़कर बस्ती की तरफ आ गया जहाँ कुछ दूकान खुली हुई थी ज्यादा तो नहीं मगर कई दूकाने अच्छी भी थी जो जरुरी चीज़े बेच रही थी घर ऐसे थे जो खुले हुए और बड़े थे अंशुल ने दूकान से अंशुल ने दूकान से कई जरुरी चीज़े ली और फिर इधर उधर देखकर एक मकान में सुखते हुए सलवार को चोरी कर अपने साथ लेकर वहा से निकाल आया.. उसने कोई गाडी या रिक्सा देखा पर उसे इस गाँव में कोई ऐसा आदमी नहीं मिला जो उसे घर पर छोड़ सके..
अंशुल वापस खंडर की तरफ आ गया और उसने सरलवार पदमा को देते हुए कपडे बदलने को कहा पदमा ने ऐसा ही किया सलवार पहनते हुए अंशुल ने जिस तरह से पदमा को देखा था उसे लग रहा था मानो आसमान से उतारकर कोई परी उसके सामने आ गई हो आज तक उसने इतना तरह और इतने प्यार से पदमा को नहीं देखा था पदमा अभी भी कितनी जवान और खूबसूरत है.. अंशुल आज अपने आप को ये बात समझा रहा था.. पदमा कपडे बदल रही थी तभी अंशुल सुसु करने बाहर आ गया और बाथरूम करने लगा जब पदमा ने पीछे से आवाज लगाई तो वो मुड़ा और पदमा को एक बार फिर से अंशुल के लंड का दीदार हो गया.. पदमा काले सूट में किसी बॉलीवुड की हीरोइन लग रही थी उसने दुप्पटा सर पर ले लिया था और अंशुल के हिलते लंड को देखे जा रही थी अंशुल पदमा को देखकर भूल चूका था की उसका लंड अपनी माँ के सामने नंगी हालात में है.. पदमा ने कुछ देर लंड निहारा फिर मुँह फेर लिया जिससे अंशुल को पता चल गया की उसका लंड नंगा है अंशुल ने लंड अंदर डाला और पदमा को लेकर सडक की तरफ आ गया..
थोड़ी देर बाद एक जीप आई जहाँ मुश्किल से एक आदमी के बैठने की जगह थी अंधेरा हो चूका था अंशुल पदमा को अपनी गोद में लेकर वहा बैठ गया जैसा अक्सर होता रहता है जीब के झटको से पदमा को अंशुल का लंड साफ महसूस हो रहा था और उसके मन में अब इसे लेने की प्रबल इच्छा उत्पन्न होने लगी थी अंशुल के चुम्बन ने पदमा के मन में अब काम की पूरी फसल ऊगा दी थी जिसे अंशुल जब चाहे तब काट सकता था..
घर पहुंचते पहुंचते रात हो गई थी अंशुल और पदमा घर के अंदर आ गए और बिना एक दूसरे से कुछ बोले अपने अपने काम में जुट गए अंशुल अपने कमरे में चला गया और पदमा रसोई में खाना बनाने चली गई..
पदमा से बिना कुछ बोले अंशुल खाने के बाद वापस अपने रूम में आ गया था वो अपने ही ख्यालों में उलझा सा था उसे आज मेले में जो कुछ हुआ उसकी कोई सुध नहीं थी उसे तो बस अपनी माँ पदमा के साथ हुए पहले चुम्बन की मधुरम याद उस वक़्त उसके दिल में उमड़े आंनद की अनुभूति हो रही थी अंशुल ने सारी रात इसी एक बात को सोचकर काट दी की काश वो पदमा को भी अपने चुम्बन में शरीक कर पाता.. पफमा ने चुम्बन में उसका विरोध नहीं किया था पर साथ भी नहीं दिया था जिससे अंशुल को अब भी पदमा के मन की अवस्था समझने में कठिनाई हो रही थी उसने बाथरूम में पदमा की हालात देखी थी लेकिन क्या अकेले में जो भावना पदमा के चेहरे पर आती थी वो अंशुल के सामने आ सकती थी? सोचने वाली बात ये है की क्या पदमा अपने मन की बात अंशुल से बिना की किसी लोक लाज और मर्यादा के कह सकती है? अगर हां तब तो अंशुल को पदमा के साथ कोई मुश्किल नहीं होगी लेकिन अगर पदमा को अंशुल की याद कचौटती रहेगी तो फिर क्या होगा.. पदमा का मन अंशुल के लिए अधीर था वो अंशुल के साथ सारी मर्यादा लाघना चाहती थी लेकिन किसी डर से वो ऐसा नहीं कर पा रही थी उसे ऐसा करने से कुछ रोक रहा था जिसे वो भी नहीं समझ पा रही थी और अब पदमा समझ चुकी थी की अंशुल के मन में उसके लिए क्या है और वो पदमा से क्या चाहता है.. आखिर पदमा जैसी औरत जो जोबन से भरपूर हो और काम की अग्नि में जल रही हो वो कैसे अंशुल से मर्द से दूर रह सकती है? रिश्तो का बंधन क्या इच्छाओ को रोक सकता है? आखिर कब तब? ये भी किसी ना किसी दिन टूट ही जाएगा, अगले तीन दिन ऐसे ही गुजर गए और अंशुल पदमा दोनों झिझकते हुए ही एक दूसरे से बात कर रहे थे जैसे उन्हें डर था की वो एक दूसरे का आकर्षण बर्दास्त नहीं कर पाएंगे और काम में लिप्त होकर अपनी मर्यादा भूल जाएंगे और हो भी वैसा ही कुछ रहा था दोनों के बीच छेड़छाड़ होना शुरू हो चूका था जिसमे दोनों कभी भी बहक कर बिस्तर तक आ सकते थे....
अरे एक टिफिन त्यार करने में कितना समय लगता है? मालूम नहीं है नया अफसर आया है विभाग में समय पर नहीं पहुँचो तो खूब खबर लेता है.. बालचंद ने पदमा से रूखे स्वर में कहा..
इतनी ही जल्दी चाहिए तो खूबसूरत क्यू नहीं बना लेटे? चपरासी हो चपसारी.. घर चलाने लायक तो कमा नहीं सकते आये बड़े हुकुम झाड़ने.. पदमा ने व्यंगत्मक ढंग से कहा तो बालचंद निरुत्तर होकर घर से बाहर चला गया.. पदमा भोर से ही उदास थी ऊपर से आज तो और भी ज्यादा अकेलापन उसे महसूस हो रहा था अंशुल ने पिछले दो दिनों से कोई ख़ास बातचीत नहीं की थी और बस किताब से ही दोस्ती रखता हुआ अपने रूम में बंद था..
सुबह के दस बज रहे थे जब पदमा चाय का कप हाथ में लेकर अंशुल के कमरे में दरवाजा खोलते हुए दाखिल हुई.. अंशुल एक सिंगल चारपाई पर किताब हाथ में लिए ही पढ़ते पढ़ते सो गया था..
पदमा ने किताब उठाकर स्टडी टेबल पर रख दी और अंशुल को जगाते हुए उसके सुन्दर चेहरे को देखने लगी.. हाय कितना प्यारा लगता है अंशुल.. आशु.... आशु.... उठो... चलो उठो.. अंशुल ने पदमा का हाथ पकड़ कर अपने सरहाने रख दिया और उसपर अपना सर रखकर सोने लगा तो पदमा ने प्यार से अंशुल का मुँह चूमकर उसे उठाने लगी..
अंशुल की नींद खुली तो उसने पदमा को अपनी बाहों में भर लिया और पदमा के गाल चूमते हुए कहा - हैप्पी बर्थडे माँ... जन्मदिन मुबारक हो... पदमा के चेहरे की उदासी मानो एक पल में गायब हो चुकी थी और उसपर एक प्रसन्नता का भाव तेरने लगा था.. तुम्हे पता था?
क्यू नहीं होना चाहिए?
नहीं... वो मुझे लगा तुम भी अपने पापा की तरह ही..
क्या?
नहीं.. कुछ नहीं..
बोलो ना माँ....
छोडो... अच्छा मेरा गिफ्ट कहा है?
आपके सामने तो है..
कहा?
यहां... कहते हुए अंशुल ने पदमा के लबों को अपनी लबों में भर लिया और चूमने लगा जैसे पदमा उसकी माँ ना होकर उसकी गर्लफ्रेंड हो.. अंशुल को किसी का डर नहीं था वो पहले भी पदमा को चुम चूका था लेकिन पदमा ने उसके बारे में किसी से कोई जिक्र नहीं किया था और फिर कई बार हंसी मज़ाक़ में छेड़ छाड़ भी अंशुल पदमा से कर चूका था.. पदमा को कुछ समझ नहीं आ रहा था वो चाहकर भी अंशुल को रोक नहीं पा रही थी उसे जैसे साँप सूंघ गया था अंशुल अपनी माँ पदमा को अपनी बाहों में भरे ऐसे चुम रहा था जैसे पदमा उसी की बीवी हो अंशुल ने पदमा को दिवार से सटा कर काफी देर तक चूमा और पदमा को अपने साथ बहकने पर मजबूर करने लगा....
बाहर का दरवाजा बजा तो एकदम से पदमा की आँखे जो मदहोशी से बंद हो चुकी थी खुल गई और उसने अंशुल को धक्केलते हुए पीछे कर दिया और कमरे बाहर निकलकर पसीने पोछते हुए नीचे आ गई और बाहर का दरवाजा खोलने चली गई.. डाकिया अंशुल के नाम एक तार देकर चला गया मगर पदमा की साँसे अब भी अंशुल के कमरे में ही अटकी थी, पदमा लड़खड़ाते हुए कदमो और धड़कते हुए दिल के साथ अंशुल के कमरे की तरफ वापस बढ़ गई.. अंशुल ने अलमारी से एक बेग निकाल लिया था उसने जैसे ही पदमा को वापस रूम में आते देखा वो समझ गया की पदमा क्या चाहती है? अंशुल ने देखा की पदमा को जो तार डाकिया दे गया है वो कॉलेज से आया है और उसमे बेकाम का कुछ कागज लगा हुआ है अंशुल ने उसे एक जगह रखते हुए पदमा को फिर से अपने सीने से लगा लिया..
अंशुल ने बैग से बहुत से गहने निकालकर पदमा को पहना दिए थे जो वो अपने साथ शहर से खरीदकर पदमा के लिए लाया था और बर्थडे पर देने का वादा किया था पदमा को यक़ीन नहीं हो रहा था की ये उसके साथ क्या हो रहा है आज तक बालचंद ने उसे चांदी तक का कोई गहना नहीं दिलवाया था ना ही पदमा ने कोई ख़ास गहना अपनी जिंदगी में पहना ही था, मगर अंशुल ने तो उसे ऊपर से नीचे तक गहनो से लाद दिया था पदमा के कानो में ख़नकते झुमके, गले में सजता हार, हाथो में सोने की छनकती चूड़ी, कमर में कमरबंध की झंकार, पैरों में पायल की छन छन और नाक में नथुनी की चमक.. पदमा इन सब में कोई अप्सरा लगती थी जिसने आज अद्भुत श्रंगार किया हो..
पदमा किसी मूर्ति ही तरह खामोश शांत सी एक जगह खड़ी थी तभी अंशुल ने पदमा के चेहरे को ठोड़ी से पकड़ कर ऊंचा करते हुए खुले तौर पर अपने प्रेम का इज़हार कर दिया था...
ई लव यू पदमा... अंशुल ने बिना किसी शर्म लिहाज़ के पदमा की आँखों में आँखों डालकर कह दिया था.. जिसका जवाब पदमा ने उसी वक़्त अंशुल के होंठों को अपने होंठों में लेकर चूमते हुए दे दिया था और दोनों ने एक दूसरे से अपने प्रेम का इज़हार कर दिया था दोनों आज माँ बेटे के बंधन से निकल कर बाहर आ चुके थे और अब प्रेमी प्रेमिका के बंधन में बाँधने वाले थे..
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मेला
फ़्लैशबैक भाग -3
अंशुल बाइक चला रहा था और पदमा पीछे एक हाथ अंशुल की बगल के नीचे से आगे करके उसकी बाह पकडे बैठी थी अंशुल बार बार ब्रेक मारकर पदमा की छाती को अपनी पीठ पर महसूस कर रहा था लेकिन पदमा ने खुद ही अपनी छाती अंशुल की पीठ से चिपका दी तो अंशुल ने ब्रेक मारना छोड दिया और पदमा को महसूस करते हुए बाइक चलाने लगा.. आज दोनों में सुबह से कुछ ज्यादा बातचीत नहीं हुई थी आधी रात हुए हादसे के बारे में तो बिलकुल भी किसीने मुँह नहीं खोला.. दोनों के ही मन में एक दूसरे के प्रति आसक्ति थी और कामुकता के बीज भी पनप रहे थे जो उनके भीतर कामदेवता की छाया का काम कर रहे थे..
अंशुल ने दो ही दिनों में पदमा को अपनी माँ से अपनी दोस्त बना लिया था वो पदमा से शर्मा नहीं रहा था, पदमा को भी अंशुल से बाते करके लगने लगा था की अब उसका अकेला पन दूर हो जाएगा.. उसके पास कोई भी तो नहीं था जिससे वो सारा दिन दिल खोल कर बाते कर सके.. अंशुल के साथ पिछले दो दिन कैसे बीते पदमा को पता भी नहीं लगा था.. आज का दिन भी कुछ ऐसा ही था पदमा मुस्कुराते हुए रास्ते का मज़ा ले रही थी.. उसके पास ऐसा था ही कौन जो उसे कहीं सेर सपाटा कराये और घुमाने ले जाए.. अंशुल तो पदमा की आँखों में बस चूका है उसे अब पदमा से कौन दूर करे? अंशुल अगर आज वापस शहर जाने की ज़िद करे तो शायद पदमा उसे जाने नहीं देगी.. और अपने गले से लगा के अपने साथ रहने की विनती करेगी.. उसकी गुहार में उसके अकेलेपन को काटने की उम्मीद होगी.. अंशुल समझ चूका था की पदमा से अगर वो चाहे तो अभी ही कहीं रास्ते में सुनसान जगह लेजाकर सम्बन्ध बना सकता है पदमा की जैसी हालात है और वो अंशुल से आकर्षित है पदमा ज्यादा विरोध नहीं करेगी लेकिन वो ऐसा नहीं करना चाहता.. उसे पदमा का पूरा समर्पण चाहिए.. अंशुल प्रेम करना चाहता है.. प्रेम?? हां प्रेम.. सम्भोग तो जानवर भी करते है.. पर क्या वो लोग उस सम्भोग़ का पूरा आंनद ले पाते है? क्षण भर की तृप्ति ही उन्हें नसीब होती है.. मगर जब दो लोग अपनी मर्ज़ी एक दूसरे से मिलते है वो सम्बन्ध प्रेम ही कहलाता है जिसमे तृप्ति हर क्षण भोगने का मार्ग दिखलाई पड़ता है.. अंशुल उसीके लिए पदमा के दिल में अपने लिए प्यार जगाना चाहता है मगर वो प्यार एक बेटे के लिए नहीं एक मर्द के लिए होगा..
दोपहर के 1 बज रहे है.. मौसम सुहावना है त्यौहार के दिनों में लगने वाला ये मेला खचाखच भरा हुआ है.. सभी के चेहरे पर मुस्कान है कोई हँसता है तो उछल उछल कर अपनी रेड़ी पर लोगों को बुलाने के लिए आवाजे मार रहा है.. गाँव के बाहर खाली ज़मीन जिसे जोता नहीं जाता वहीं इस मेले का आयोजन हुआ है और इस गाँव को गाँव कहना भी ठीक नहीं, ये विधायक जी का गाँव है देखने से लगता है हर तरह का विकास का काम उन्होंने इसी गाँव में करवाया है.. तरह तरह के झूले यहां लगे हुए है और उन सभी में आस पास के अनेको गाँव से झुण्ड बनाकर आये लोग झूल रहे है.. भीड़ देखने से लगता है जैसे कुम्भ का मेला भर गया हो..
मेला शुरू हुए आज दूसरा दिन था और भीड़ आज कुछ ज्यादा ही उमड़ गई थी बच्चे शोर मचाते हुए इधर से उधर घूम रहे थे और ना ना प्रकार की चीज़ो के लिए ज़िद कर रहे थे अंशुल ने बाइक पार्किंग में लगा दी और पदमा का हाथ अपने हाथ में थामे मेले के प्रवेश द्वार से होता हुआ अंदर आ गया, पदमा की आँखों में चमक थी वो अपने सामने का नज़ारा देखकर ख़ुशी से भरी जा रही थी आजतक बालचंद उसे कहीं लेकर घुमाने नहीं गया था पदमा का जीवन नीरस था जिसे अंशुल पिछले दो दिनों से रसमय कर रहा था.. पदमा अंशुल का हाथ थामे मेले में इधर से उधर अपने आप ही घूमने लगी थी वो आज ये नज़ारा अपनी आँखों में भर लेना चाहती थी अंशुल सिर्फ पदमा के पीछे पीछे आ रहा था उसे पदमा के चेहरे की ख़ुशी अच्छे से दिख रही थी और वो समझ रहा था की पदमा कितनी खुश है.. भीड़ में एक जगह से दूसरी जगह जाने में भले ही दोनों को मुश्किल आ रही थी भीड़ का सामना करना पड़ रहा था लेकिन पदमा हर बाधा पार करके आज एक एक नज़ारा देख लेना चाहती थी.. काफी देर तक सब पदमा मेले में अंशुल का हाथ थामे घूमती रही और बार बार अंशुल को देखकर अपनी मन की बातें बतलाने लगी की कैसे वो बचपन से ही मेला देखने की शौकीन थी मगर आज तक उसे कभी कहीं आने जाने का मौका ही नहीं मिला था..
बहुत देर तक घूमने के बाद अंशुल ने पदमा को एक चाट की जगह रोक लिया और वहा खड़े लोगों को पार करता हुआ 2-3 चाट की चीज़े लेकर पदमा को अपने हाथ से खिलाने लगा.. पदमा अंशुल के हाथो से वो चीज़े ख़ुशी खुशी खा रही थी और अंशुल को भी अपने हाथ से खिला रही थी खाने के दौरान पदमा अपने मन की बाते अंशुल को सुनाने का काम भी बड़ी अधीरता के साथ कर रही थी जैसे वो एक सांस में अपनी सारी बाते कह देना चाहती थी अंशुल बड़े इत्मीनान से वो बातें सुनता हुआ पदमा के होंठों पर लगा खाना अपनी उंगलि से साफ कर रहा था.. खाने के बाद एक बड़े झूले में जिसे स्थानीय भाषा में ड्रागेन झूला भी कहते है आकर अंशुल और पदमा आस पास बैठ गए.. झूला शुरू होने पर पदमा को ये अहसास हुआ की उसे कितना डर लग रहा है वो झूला चलने पर अंशुल को किसी बच्चे की तरह पकड़ कर बैठी थी और फिर कुछ ही पालो में पदमा ने अंशुल की बाह से खुदको चिपका लिया और आँख बंद कर ली.. अंशुल पदमा के चेहरे को देखे जा रहा था. हाय.... कितनी प्यारी लग रही थी पदमा बिलकुल किसी नवयोवना स्त्री की भाति कोमल और आकर्षक.. अतुलनीय सुंदरता की प्रतिमा को आज पदमा ने अपने इस चलचित्र से साकार कर दिया था.. ऊपर नीचे आते जाते झूले के दरमियान आँख बंद कर अंशुल से चिपकी हुई पदमा ऐसे लग रही थी मानो किसी अप्सरा ने धरती पर आकर अपना अनुपम रूप दर्शाया हो.. अंशुल तो जैसे सच में उस रूपवती के प्यार में पड़ गया था अंशुल को पदमा के रूप के आगे ध्यान ही नहीं रहा की वो उसकी माँ है..
पदमा की कजरारी बंद आँखे, डर से भीच गए होंठ चेहरे पर लहराती काली घनी जुल्फे और कंधे से सरकता हुआ पल्लू.. अंशुल के दिल की धड़कन में अद्भुत गति प्रदान कर रहे थे. अंशुल ने पदमा के हाथों से अपना हाथ छुड़ाकर पदमा को अपनी बाहों में कस लिया और उसकी जुल्फ संवारने लगा..
डर लग रहा है?
हां.... पदमा ने आँख बंद किये हुए ही कहा..
बहुत आवाजे आ रही है लगता है.. झूला टूटने वाला है..
पदमा अंशुल की बात सुनकर और भी उसकी बाहों में समाती चली गई उसे ये अहसास नहीं हो रहा था की अंशुल के सीने से उसकी छाती कितनी चिपकी हुई है अंशुल तो जैसे स्वर्ग लोक की सेर पर था उसने पदमा के सर को बड़े प्यार से अपने कंधे पर संभाल रखा था
कुछ नहीं होगा.. आप खामखा डर रही हो.. मैं तो मज़ाक़ कर रहा हूँ.. देखो झूला भी अब धीमे हो रहा है. आँख खोलो.. माँ.... देखो ना..
पदमा ने डरते हुए अपनी आँख खोल दी और ऊपर नीचे आते जाते हुए उसके पेट में कुछ हलचल सी होने लगी थी जिसे महसूस करना आसान है..
आशु.... कहते हुए पदमा ने फिर से अपनी आँख बंद कर ली और अंशुल के सीने से खुदको तब तक अलग नहीं किया जब तक की झूला वाक़ई में नहीं रुक गया.. झूले से नीचे आते ही कुछ दुरी ओर पदमा ने उलटी कर दी और जो भी अब तक खाया पिया था बाहर कर दिया.. अंशुल समझ गया था की पदमा को झूले से डर लगता है उसने पदमा को पानी दिया और संभाला.. पदमा थोड़ी देर में ही फिर से पहले जैसी हो गई और हँसते हुए अंशुल को देखने लगी और बोली..
बच गया तू.. मुझे तो झूले पर ही उलटी आ रही थी.. एक बार को लगा तुझ पर ही ना कर दू.. बाप रे.. मेरे लिए तो झूला देखने में ही ठीक है.. झूला झूलना नहीं..
आप भी ना माँ.... मैंने तो पहले ही कहा था आपको डर लगेगा पर आप ही ज़िद करने लगी.. मेरे ऊपर ही उल्टी कर देती तो मेरा क्या होगा? वहा कम भीड़ है वहा चलते है..
कहा.. निशाने पर?
हां... चलो आपको बन्दूक चलाना सिखाता हूँ..
पदमा अंशुल के साथ एक निशाने वाले के पास आ गई जहाँ एक निशाने लगाने वाली लम्भी बन्दूक से गुबारे पर निशाना लगाकर फोडने खेल हो रहा था..
अंशुल ने बन्दूक पदमा को दे दी और पदमा बन्दूक से इधर उधर निशांने लगाने लगी मगर एक भी निशाना ठीक नहीं लगा.. तब अंशुल ने बन्दूक रेलोड करवाकर पदमा के हाथो में दे दी और खुदको अपनी माँ पदमा के पीछे आ कर बन्दूक पकड़ ली.. अंशुल और पदमा उसी पोज़ में थे जिसमे शोले के धर्मेंद्र और हेमा मालिनी बाग़ में आम पर निशाने लगाते समय थे.. अंशुल महसूस कर रहा था पदमा के जुल्फ की खुशबू, इसके बदन की गहराइयाँ... पदमा तो सिर्फ मेला का आनंद लेने में ही मग्न थी उसने इस बात पर ध्यान नहीं दिया की अंशुल उसे पूरा चेकआउट कर रहा है.. अंशुल ने पदमा के कानो को चूमते हुए निशाना लगाया जो बिलकुल सटीक गुबारे पर लगा.. पदमा ख़ुशी से खिलखिलाकर हँसने लगी और अंशुल को देखकर वापस ऐसा ही करने को कहने लगी.. अंशुल हर निशाने पर एक गुब्बारा फोड़कर पदमा को किसी निशानेबज़ी की प्रतियोगिता में जितने वाली ख़ुशी दे रहा था..
निशानेबाज़ी की दूकान वाला अंशुल की हरकते देख रहा था और नज़रअंदाज़ कर रहा था मगर फिर भी उसके लिंग में अकड़न आ गई थी अंशुल तो बेपरवाह होकर ही पदमा को निशानेबाज़ी सीखा रहा था उसे कहा मालूम था की आस पास के लोग उसे ऐसा करते हुए देखकर मज़े ले रहे है.. निशाने बाज़ी के बाद अंशुल और पदमा वहा से एक रिंग फेंकने वाले की दूकान पर आ गए जहाँ अनेक चीज़े रखी हुई थी और कई लोग उन चीज़ो पर रिंग डालने का प्रयास कर रहे थे, पदमा ने एक के बाद एक कई रिंग डाली लेकिन कुछ भी जीत नहीं पाई मगर अंशुल ने आखिरी रिंग में एक छोटा सा टेडी बियर जीतकर पदमा को दे दिया जिसपर खुश होते हुए पदमा ने अंशुल को गले से लगा लिया था.. ऐसे ही एक के बाद दूसरी दूसरी के बाद तीसरी दूकान पर जाते हुए पदमा और अंशुल मेले का मज़ा लेने लगे थे शाम का वक़्त करीब आ चूका था मौसम पहले से ही सुहावना था जो सूरज को पूरी तरह ढके हुए था और हल्का सा अंधेरा कायम रखे था..
आशु तू यहां ?
क्या हुआ चन्दन भैया?
कुछ नहीं बस घर पर धन्नो काकी नहीं थी तो सोचा मेला घूम लू मगर अब घर जाने का मन कर रहा है.. यहां से तो कोई नहीं है जो ले गाँव जाए...
आप मेरी बाइक ले जाइये.. मैं रात को ले लूंगा...
चन्दन बाइक लेकर घर चला गया..
एक स्टेज की तरफ भीड़ लगी हुई थी लोगों खचाखच वहा भरे हुए थे स्टेज पर एक औरत का नाच चल रहा था और जमा हुए लोग गाने की ताल पर उस औरत को देखते हुए नाच रहे थे और अश्लील भाषा का इस्तेमाल कर रहे थे कोई गालिया देते हुए मज़े ले रहा था तो कोई अश्लील इशारे से औरत को चिढ़ा रहा था.. ये एक प्रतियोगिता थी जिसमे कई औरतों ने भाग लिया था मेले में आई कई औरत अभी तक नाच चुकी थी जितने वाली पहली महिला को 25 हज़ार का नगद इनाम मिलने की बात थी दूसरी को 15 और तीसरी को 10 हज़ार.... पदमा भी वहा आ चुकी थी और अब वो भी स्टेज पर हो रहे नाच गाने को देख सुन रही थी और अंशुल का हाथ पकडे अपनी जगह खड़ी हुई हिल दुल रही थी मानो उसपर नाचने की धुन सवार हो लेकिन अंशुल बस दूर से ही पदमा को वो सब दिखाने लाया था उसे पता था की ऐसे मोके पर लोगों का लड़की के प्रति केसा व्यवहार हो जाता है इसलिए अंशुल पदमा को दूर से ही वो सब दिखा कर वापस ले जाना चाहता था.. पदमा अंशुल से आगे चलने की ज़िद कर रही थी जिसे अंशुल मानने वाला नहीं था वो पदमा को समझा रहा था की आगे बहुत भीड़ है और अगर वो आगे जाती है तो कोई ना कोई बखेड़ा जरुर खड़ा हो जाएगा.. आगे खड़ी औरतों के साथ भीड़ में होती हरकतो से पदमा भी अनजान नहीं थी लेकिन उसे नाच गाना देखने का इतना शोक था की वो आगे जाने की ज़िद पर अड़ गई थी और अंशुल ये ज़िद मानने को कतई राज़ी नहीं था.. दोनों के बीच इस बात पर झगड़ा सा हो रहा था अंशुल पदमा का हाथ पकडे उसकी ज़िद पर गुस्सा करते हुए उसे लगभग डांट रहा था, पदमा भी जैसे पिंजरा तोड़कर आजाद होने की इच्छा से अंशुल का बनवटी गुस्सा नज़रअंदाज़ कर आगे जाने की ज़िद कर रही थी.. दोनों एक दूसरे का हाथ पकडे कर ही ये सब कर रहे थे.. मगर बदलो ने मेले की रौनक में विघ्न डालने का मन बना लिया था हलकी सी बूंदाबांदी शुरू हुई और फिर धीरे धीरे बरसात तेज़ होने लगी भरी भीड़ जो मेरे में आई थी वो छुपने की जगह तलाश करने लगी स्टेज के नीचे कई लोग घुसकर बरसात से बचने की कोशिश करने लगे, अंशुल भी पदमा को स्टेज के नीचे ही लेकर आ गया था जहाँ पहले से बहुत सारे लोग भीगने से बचने के लिए आकर छुप गए थे, भीड़ ज्यादा थी और लोग अपनेआप को बरसात से बचने के लिए जहाँ जगह मिल रही थी वहीं आकर छुप रहे थे जिससे स्टेज के नीचे भी बहुत भीड़ हो गई थी अंशुल ने इस बीड से पदमा को बचाने के लिए उसे अपनी बाहों के घेरे में ले रखा था जो बढ़ती भीड़ के साथ कस्ता जा रहा था.. पदमा भी अंशुल की बाहों में खुदको महफूस समझने लगी थी और दोनों के मन में जो भावना भड़क रही थी वो उन्हें ही मालूम थी.. काम तो जैसे हवा में घुलकर बहने की मांग कर रहा था लेकिन रिश्ता और झिझक ने दोनों के मन से इस परत को अभी नहीं उतरने दिया था..
कुछ देर के बाद बरसात रुकी तो फिर से धीरे धीरे मेले की रंगत बढ़ने लगी और लोगों के चेहरे पर हंसी खुशी और प्रसन्नता का भाव जगमगाने लगा.. अंशुल अब भी स्टेज के सामने थे इस बार पदमा आगे जाने के जगह प्रतियोगिता में भाग लेने की zid करने लगी थी जिसपर अंशुल ने उसे बहुत समझाया पर वो नहीं मानी और अंशुल को साथ लेकर नाचने की प्रतियोगिता में अपना नाम दे दिया.. पदमा को नाचने का शोक तो बचपन से था वो नाचने की कला से परिचित भी थी गाँव में कोई मांगलिक काम हो या अन्य आयोजन.. महिलाओ के बीच पदमा का नाच बड़ा लोकप्रिय था उसके बदन की लचक और बालखाती लहराती जुल्फों को देखकर मर्द तो मर्द औरत भी उस पर अपना दिल हार सकते थे अंशुल को इस बात का कोई पता नहीं था की पदमा कितनी सुन्दर नचनिया है हिंदी फ्लिमो में जिसे आइटम गर्ल कहा जा सकता है देशी भाषा में उसे जबरू नचनिया कहा जाता है.. पदमा को नाचने के लिए आयोजको से एक ड्रेस मिली थी गाना फाइनल हो चूका था अंशुल डर रहा था की कहीं कोई गाँव का आदमी पदमा को ऐसे देख लेगा तो बात फ़ैल जायेगी और आफत आ जायेगी.. पदमा ने अंशुल को देखकर मुस्कुराते हुए बस इतना कहा था कुछ नहीं होगा.. और वो परदे के पीछे कपडे बदलने लगी थी एक छोटा ब्लाउज जिसमे से पदमा के चुचो का कुछ भाग बाहर झलक रहा था वहीं एक छोटा घाघरा जो पदमा के घुटनो तक ही था पहन कर पदमा परदे से बाहर आई थी अंशुल तो पदमा को देखकर बेचैन ही हो गया था..
माँ ये क्या पहना है.. सब दिख रहा है.. मैं कह रहा हूँ छोडो ये ज़िद.. चलो यहां से..
अरे कुछ नहीं आशु.. वो सब यही तो पहन कर नाच रहे है.. तू देखना पहला पुरुस्कार तो मैं ही जीतूंगी..
गाँव के किसीआदमी या औरत ने देख लिया तो आफत आ जायेगी.. पापा को जानती हो ना आप? मैं फिर से कह रहा हूँ ये नाच गाना छोड़ा चलो यहां से..
रुक ना आशु.. तू भी.. देख मैं ये मास्क लगाने वाली हूँ किसी को पता नहीं चलेगा मैं कौन हूँ.. तू बस दस मिनट रुक मैं अभी नाचकर आती हूँ..
माँ.. मुझे ठीक नहीं लग रहा है इतने लोग है.. भीड़ है.. और आप जानती हो सब आपको किस नज़र से देख रहे है.. आपको जरुरत नहीं है ये सब करने की.. आपको जो चाहिए मैं हूँ ना उसके लिए..
आशु.. तू ना फालतू डर रहा है.. मेरी ये इच्छा पूरी नहीं कर सकता.. मैं अपने लिए एक नाच प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं ले सकती?
अंशुल पदमा का चहरा देखकर पिघल जता है और कहता है अच्छा ठीक है मगर ध्यान से.. किसीने पहचान लिया तो जानती हो ना कितनी बदनामी होगी.. कहकर अंशुल स्टेज के सामने भीड़ में आ जाता है और इंतजार करता है कब पदमा का परफॉर्मेंस होगा और वो कब वापस आएगी..
विधायक चरणदास का बेटा बबन भी अब अपने आवारा दोस्तों के साथ मेले में आ चूका था स्वाभाविक रूप से कामुक और महिलाओ के प्रति हीन भावना रखने वाला बबन अपने दोस्तों के साथ नाच देखने के लिए संयोग से अंशुल के पास ही रुक गया था अंशुल और बबन अगल बगल ही थे.. स्टेज पर अभी अभी एक डांस प्रफार्मन्स ख़त्म हुई थी और अब पदमा की बारी थी छोटे छोटे लाल ब्लाउज और घाघरे में पदमा ने एक बॉलीवुड गाने पर एंट्री मारी तो मुर्दा पड़ी भीड़ में जान आ गई और वो भी नाचने लगी..
चिक चिक चिक चिक चिक
चिक चिक चिक चिक चिक
रिंग रिंग रिंगा
रिंग रिंग रिंगा
रिंग रिंग रिंगा रिंग रिंगा
हईये!
ए री!!!
आहहह!!!!
चुआ चुआ चुआ चुचुआ चुआ हाय री
चुआ चुआ ारा रा रा चुआ चुचुआ
चुआ चुआ चुआ चुचुआ
आई आई आई या मई मई या
आई आई आई आई यी यी यी
रिंग रिंग रिंगा
रिंग रिंग रिंगा
रिंग रिंग रिंगा रिंग रिंगा
पदमा ने जैसे पुरे मेले की चमक ही खिंच ली थी और वो इस गाने पर स्टेज पर अपनी अदाओ से सबका मन मोह रही थी कई लोग तो पदमा को हवस की निगाहो से देख रहे थे और कई बूढ़े अपनी जवानी को कोस रहे थे बबन एक टक पदमा को निहार रहा था उसके हिलते डुलते बदन पर उसकी निगाह थी गाने के बोल पर पदमा जिस तरह से अपने बदन को लचका रहा थी उसे देखकर किसी भी जवान मर्द का कामुकता से भर जाना स्वाभाविक ही था अंशुल भी पदमा का डांस देखकर चौंक गया था वो हैरानी और आश्चर्य से पदमा को देख रहा था..
खटिये पे में पड़ी थी
और गहरी नींद बड़ी थी
आगे क्या मैं कहु सखी रे
एक खटमल था सैयना
मुझपे था उसका निशाना
चुनरी में घुस गया धीरे धीरे
ऊऊऊ ओह्ह्ह
कुछ नहीं समझा वो बुद्धू
कुछ नहीं सोचा
रेंग के जाने कहा पंहुचा
रिंग रिंग रिंगा
रिंग रिंग रिंगा
रिंग रिंग रिंगा रिंग रिंगा
चिक चिक चिक चिक चिक
चिक चिक चिक चिक चिक
बबन और अंशुल अगल बगल खड़े बस स्टेज पर पदमा के नाच को देखकर कामुक हो रहे थे बबन के साथी बार बार पदमा को देखकर बबन से उसके बारे में अश्लील बातें कर रहे थे जो की अंशुल को साफ सुनाई दे रही थी लेकिन अंशुल कोई तमाशा नहीं करना चाहता थ इसलिए उसने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया..
भाई क्या माल है यार...
इसे तो आज रात चखना ही पड़ेगा.
उफ्फ्फ.. क्या बदन है.. सर पैर तक कमाल है बबन भैया..
मगर है कौन साली.. पहली बार दिखी है.. इस गाँव की तो नहीं है लगता है पास के किसी गाँव से आई है..
जहाँ से भी आई तो आज तो चुदके जायेगी ये रंडी....
बबन ने शराब की घूंट मारते हुए कहा और लड़खड़ाते हुए आगे की और चल दिया अंशुल भी बबन के बगल से होता हुआ आगे की और जाने लगा अंशुल को अब मालूम हो गया था की बबन कोई ना कोई जलील हरकत जरुरत करेगा इसलिए वो चाहता था जल्दी से पदमा को वहा से ले जाए.. गाने के ख़त्म होने के साथ ही बबन स्टेज पर चढ़ गया और नाचती हुई पदमा की कलाई पकड़ ली और दूसरे हाथ में पकड़ी हुई पिस्तौल से एक हवाई फायर कर दिया..
पिस्तौल की गोली की आवाज के साथ ही गाना ख़त्म हो चूका था भीड़ पदमा के नाच गाने से मदहोश थी आयोजक बबन की इस हरकत के आगे कुछ नहीं बोल सके, सब विधायक को अच्छे से जानते थे और ये भी की बबन विधायक का एकलौता लोंडा है और विधायक को बबन से कितना पुत्र मोह है.. यही कारण था की बबन की जलील हटकतो के बाद भी विधायक अपने बेटे का पूरा साथ देता था और किसी भी काण्ड से बचा लेटा था आज बबन पदमा का हाथ पकडे भीड़ के सामने खड़ा था और दूसरे हाथ से उसका नकाब उतारने ही वाला था की अंशुल ने अपनी माँ को बबन से बचाने के लिए बीच में ही एंट्री मार ली.. अंशुल ने अपने चेहरे पर अपना रुमाल लगा लिया था उसे मालूम था जो वो करने वाला है उसके बाद अगर उसे कोई देख लेगा तो जरुर ढूंढने की कोशिश करेगा.. अंशुल ने पीछे से बबन के हाथ से छीन ली और इससे पहले की बबन पदमा के तंग ब्लाउज में हाथ डालता अंशुल ने लात घूंसो से स्टेज पर ही बबन की हालात किसी मरीज़ की तरह कर दी.. तभी सामने से बबन के साथी चिल्लाते हुए स्टेज की तरफ भागने लगे जहा जिसे देखकर अंशुल पदमा का हाथ पकड़ कर भीड़ में कूद गया और मेले से बाहर निकल कर पीछे पहाड़ी की तरफ भागने लगा.. बबन के कुछ साथी उसे सँभालने लगे और कुछ अंशुल के पीछे भागने लगे.. पदमा के चहरे पर नक़ाब था और अंशुल के चेहरे पर रुमाल.. भीड़ भागती हुई पदमा के हिलते बदन को देखकर आँखे चौड़ी कर रही थी और पीवी बबन के साथ उन्हें रुकने का कह रहे थे मगर अंशुल पदमा के साथ मेले से निकल कर पहाड़ी की तरफ चला गया जहा कई वेश्याए पेड़ झाडी और सुने पन का सहारा लेकर जिस्मफरोशी का धंधा कर रही थी.. अंशुल पदमा को लेकर उनके बीच से होते हुए दूसरी तरफ भाग गया पीछे पीछे बबन के चमचे आ रहे थे वेश्याए नंगधड़ग पहाड़ी पर कहीं लेटी हुई तो कहीं बैठी हुई थी कई तो काम क्रीड़ा में मग्न भी थी मेले में आये कई लोग पहाड़ी पर चुदाई करने आये हुए थे.. अंशुल अपनी माँ पदमा के साथ ये सब देखते हुए पहाड़ी पार कर रहा था पीछे तीन लोग भाग रहे थे जो अंशुल को धमकी देते हुए रुकने का बोल रहे रहे.. अंशुल पहाड़ी बार करके कच्ची सडक ओर आ गया और पीछे से आते हुए बबन जे साथियो को वहीं पड़े लकड़ी के डंडे से घायल कर दिया जिससे उनकी हड्डिया टूट गई और तीनो ज़मीन पर गिर गए.. अंशुल पदमा को लेकर कच्ची सडक से होता हुआ नदी के मुहाने पर जंगल के करीब बने एक पुराने खंडर के पास आ गया जहाँ उसने पदमा को अपने सीने से लगा लिया..
अंशुल हस्ते हुए - और नाचना है?
पदमा के चेहरे की हवाइया उडी हुई थी वो अंशुल की बाहों में खुदको महफूस महसूस कर रही थी और अंशुल के उस व्यंग को सुनकर उसका जवाब देने में असमर्थ थी पदमा डरी हुई और थकी हुई थी ऊपर से थोड़े कपडे पहनने के कारण तेज़ी से सांस लेने के वक़्त उसकी छाती ऊपर नीचे होकर अंशुल को बावला कर रही थी जिससे वो अनजान थी पदमा अपने दोनों हाथों से अंशुल को बाहों में घेरे हुए थी और मन ही मन सोच रही थी की अगर अंशुल नहीं होता तो क्या अनार्थ हो सकता था अंशुल ने कितना उसे समझाया था पर वो थी की अपनी ज़िद पर कायम थी.. पदमा की देह पर जो कपडे थे उसे देखकर अंशुल बाहकने लगा था और बार बार पदमा को एक स्त्री की नज़र से देख रहा था जिसका पूरा इल्म पदमा को हो चूका था खंडर में अपने बेटे की बाहों में पदमा उसकी नियत अच्छे से समझ रही थी.. अंशुल ने जिस तरह से पदमा की नंगी कमर को अपने हाथ से पकड़कर अपनी और खींचा हुआ था वो पदमा को सब समझ आ रहा था.. दोनों की नज़र जब आपस में मिलती तो दोनों को एक शर्म महसूस होती जो अक्सर किसी प्रेमी जोड़े में होती है..
अंशुल का तो मन कर रहा था की वो अभी पदमा को यही लेटा कर भोग़ ले और उसे अपनी बनाकर रख ले मगर उसे डर था की कहीं पदमा को उसके व्यवहार का बुरा लगा तो वो शायद क्या सोचेगी पदमा का मन तो अंशुल के आगोश में बहक रहा था सो वो अंशुल की बाहों से दूर हो गई और एक और खड़ी हो गई..
अंशुल के सामने उसकी माँ पदमा पीठ किये खड़ी थी जहा से पदमा की पूरी तरह नंगी पीठ अंशुल के सामने थी पदमा का ब्लाउज बैकलेस था जहाँ बस दो डोरी ही ब्लाउज को संभाले था नीचे एक छोड़ा सा घाघरा जो बस पदमा के चुत्तड़ को ढके हुए थे अंशुल ये देखकर बेहद कामुकता से भरा जा रहा था उसने आगे बढ़ कर अपनी माँ पदमा को अपनी बाहों में फिर से कस लिया और इस बार उसके बाल एक तरफ करते हुए पदमा की गर्दन पर चुम्बन कर दिया..
पदमा सिहर गई उसके मन भी काम की इच्छा थी मगर अपने बेटे जे साथ वो ये नहीं चाहती थी पदमा को अंशुल ने आज खुलकर बता दिया था की वो पदमा को माँ के साथ साथ स्त्री की नज़र से भी देखता था मगर पदमा को अभी कुछ समझ नहीं आ रहा था की वो क्या करे आज ही अंशुल ने उसकी जान और इज़्ज़त दोनों बच्चाई थी और अपने प्यार का सांकेतिक इज़हार भी कर दिया था वहीं पदमा अभी कुछ भी सोचने समझने और करने की हालात में नहीं थी एक के बाद एक अंशुल ने पदमा की गर्दन को अनेक चुम्बन दे डाले थे और अब पदमा के हाल को चूमने लगा था इस माहौल में पदमा के बदन में कम्पन होना शुरू हो चूका था.. पदमा ने अंशुल को रोकते हुए कहा - हम ये नहीं कर सकते आशु...
क्या नहीं कर सकते माँ? आशु ने पदमा को अपनी बाहों में लेटे हुए इतनी प्यार से ये बात कही की पदमा खामोश हो गई और कुछ ना बोल सकी...
ये गलत है आशु.. हमारे बीच ये सब नहीं हो सकता..
अंशुल ने पदमा के काँपते लबों पर अपने होंठ रखने चाहे मगर पदमा ने चेहरा दूसरी और मोड़ लिया.. अंशुल ने पदमा की छाती पर हाथ रख दिया और दायी चूची जोर से मसल दी जिससे पदमा के मुँह से आह निकाल गई और उसने मुँह अंशुल की और कर लिया अंशुल पदमा के होंठो को अपने होंठ में भरके चूमने लगा.. अंशुल को पदमा के होंठ आम से भी मीठे लग रहे थे करीब दस मिनट तक अंशुल पदमा के होंठो को चूमता रहा और पदमा अंशुल का विरोध ही नहीं कर पाई उसके मन में जो काम था उसे अंशुल से दूर नहीं होने दे रहा था.. मगर एक कुछ दूर जानवर की हलकी सी आवाज ने पदमा को डरा दिया और उसने अंशुल को धक्का देकर पीछे कर दिया..
अंशुल अगर थोड़ा जोर डालता तो आज उसकी माँ उसे अपनी इज़्ज़त देने में जरा भी संकोच नहीं करती मगर अंशुल ने ऐसा कुछ नहीं किया और वो पदमा से दूर हट गया और कहने लगा..
अंधेरा होने वाला है पास एक बस्ती है मैं वहा से देखता हूँ कोई हमें घर के करीब छोड़ सकता है तो आप यही पर मेरा इंतजार करना.. मैं जल्द आ जाऊंगा..
मेला तो जैसे ख़त्म ही हो गया था चारो तरफ बबन के पीटने की ख़राब फ़ैल गई थी आनन फानन में बबन को हॉस्पिटल ले जाया गया मगर हालात ख़राब होने से उसे शहर ले जाने को कह दिया गया विधायक ने अपने सारे आदमी से कह दिया की जिसने भी बबन को मारा है उसे तलाश करो और सभी अंशुल की तलाश में लग गए मेला ख़त्म हो चूका था मेला तो पूरी तरफ ख़त्म हो चूका है मानो किसी ने एक झटके में सब बंद करवा दिया हो विधयाक बबन के साथ शहर चला गया...
अंशुल पदमा को खंडर के अंदर छोड़कर बस्ती की तरफ आ गया जहाँ कुछ दूकान खुली हुई थी ज्यादा तो नहीं मगर कई दूकाने अच्छी भी थी जो जरुरी चीज़े बेच रही थी घर ऐसे थे जो खुले हुए और बड़े थे अंशुल ने दूकान से अंशुल ने दूकान से कई जरुरी चीज़े ली और फिर इधर उधर देखकर एक मकान में सुखते हुए सलवार को चोरी कर अपने साथ लेकर वहा से निकाल आया.. उसने कोई गाडी या रिक्सा देखा पर उसे इस गाँव में कोई ऐसा आदमी नहीं मिला जो उसे घर पर छोड़ सके..
अंशुल वापस खंडर की तरफ आ गया और उसने सरलवार पदमा को देते हुए कपडे बदलने को कहा पदमा ने ऐसा ही किया सलवार पहनते हुए अंशुल ने जिस तरह से पदमा को देखा था उसे लग रहा था मानो आसमान से उतारकर कोई परी उसके सामने आ गई हो आज तक उसने इतना तरह और इतने प्यार से पदमा को नहीं देखा था पदमा अभी भी कितनी जवान और खूबसूरत है.. अंशुल आज अपने आप को ये बात समझा रहा था.. पदमा कपडे बदल रही थी तभी अंशुल सुसु करने बाहर आ गया और बाथरूम करने लगा जब पदमा ने पीछे से आवाज लगाई तो वो मुड़ा और पदमा को एक बार फिर से अंशुल के लंड का दीदार हो गया.. पदमा काले सूट में किसी बॉलीवुड की हीरोइन लग रही थी उसने दुप्पटा सर पर ले लिया था और अंशुल के हिलते लंड को देखे जा रही थी अंशुल पदमा को देखकर भूल चूका था की उसका लंड अपनी माँ के सामने नंगी हालात में है.. पदमा ने कुछ देर लंड निहारा फिर मुँह फेर लिया जिससे अंशुल को पता चल गया की उसका लंड नंगा है अंशुल ने लंड अंदर डाला और पदमा को लेकर सडक की तरफ आ गया..
थोड़ी देर बाद एक जीप आई जहाँ मुश्किल से एक आदमी के बैठने की जगह थी अंधेरा हो चूका था अंशुल पदमा को अपनी गोद में लेकर वहा बैठ गया जैसा अक्सर होता रहता है जीब के झटको से पदमा को अंशुल का लंड साफ महसूस हो रहा था और उसके मन में अब इसे लेने की प्रबल इच्छा उत्पन्न होने लगी थी अंशुल के चुम्बन ने पदमा के मन में अब काम की पूरी फसल ऊगा दी थी जिसे अंशुल जब चाहे तब काट सकता था..
घर पहुंचते पहुंचते रात हो गई थी अंशुल और पदमा घर के अंदर आ गए और बिना एक दूसरे से कुछ बोले अपने अपने काम में जुट गए अंशुल अपने कमरे में चला गया और पदमा रसोई में खाना बनाने चली गई..
पदमा से बिना कुछ बोले अंशुल खाने के बाद वापस अपने रूम में आ गया था वो अपने ही ख्यालों में उलझा सा था उसे आज मेले में जो कुछ हुआ उसकी कोई सुध नहीं थी उसे तो बस अपनी माँ पदमा के साथ हुए पहले चुम्बन की मधुरम याद उस वक़्त उसके दिल में उमड़े आंनद की अनुभूति हो रही थी अंशुल ने सारी रात इसी एक बात को सोचकर काट दी की काश वो पदमा को भी अपने चुम्बन में शरीक कर पाता.. पफमा ने चुम्बन में उसका विरोध नहीं किया था पर साथ भी नहीं दिया था जिससे अंशुल को अब भी पदमा के मन की अवस्था समझने में कठिनाई हो रही थी उसने बाथरूम में पदमा की हालात देखी थी लेकिन क्या अकेले में जो भावना पदमा के चेहरे पर आती थी वो अंशुल के सामने आ सकती थी? सोचने वाली बात ये है की क्या पदमा अपने मन की बात अंशुल से बिना की किसी लोक लाज और मर्यादा के कह सकती है? अगर हां तब तो अंशुल को पदमा के साथ कोई मुश्किल नहीं होगी लेकिन अगर पदमा को अंशुल की याद कचौटती रहेगी तो फिर क्या होगा.. पदमा का मन अंशुल के लिए अधीर था वो अंशुल के साथ सारी मर्यादा लाघना चाहती थी लेकिन किसी डर से वो ऐसा नहीं कर पा रही थी उसे ऐसा करने से कुछ रोक रहा था जिसे वो भी नहीं समझ पा रही थी और अब पदमा समझ चुकी थी की अंशुल के मन में उसके लिए क्या है और वो पदमा से क्या चाहता है.. आखिर पदमा जैसी औरत जो जोबन से भरपूर हो और काम की अग्नि में जल रही हो वो कैसे अंशुल से मर्द से दूर रह सकती है? रिश्तो का बंधन क्या इच्छाओ को रोक सकता है? आखिर कब तब? ये भी किसी ना किसी दिन टूट ही जाएगा, अगले तीन दिन ऐसे ही गुजर गए और अंशुल पदमा दोनों झिझकते हुए ही एक दूसरे से बात कर रहे थे जैसे उन्हें डर था की वो एक दूसरे का आकर्षण बर्दास्त नहीं कर पाएंगे और काम में लिप्त होकर अपनी मर्यादा भूल जाएंगे और हो भी वैसा ही कुछ रहा था दोनों के बीच छेड़छाड़ होना शुरू हो चूका था जिसमे दोनों कभी भी बहक कर बिस्तर तक आ सकते थे....
अरे एक टिफिन त्यार करने में कितना समय लगता है? मालूम नहीं है नया अफसर आया है विभाग में समय पर नहीं पहुँचो तो खूब खबर लेता है.. बालचंद ने पदमा से रूखे स्वर में कहा..
इतनी ही जल्दी चाहिए तो खूबसूरत क्यू नहीं बना लेटे? चपरासी हो चपसारी.. घर चलाने लायक तो कमा नहीं सकते आये बड़े हुकुम झाड़ने.. पदमा ने व्यंगत्मक ढंग से कहा तो बालचंद निरुत्तर होकर घर से बाहर चला गया.. पदमा भोर से ही उदास थी ऊपर से आज तो और भी ज्यादा अकेलापन उसे महसूस हो रहा था अंशुल ने पिछले दो दिनों से कोई ख़ास बातचीत नहीं की थी और बस किताब से ही दोस्ती रखता हुआ अपने रूम में बंद था..
सुबह के दस बज रहे थे जब पदमा चाय का कप हाथ में लेकर अंशुल के कमरे में दरवाजा खोलते हुए दाखिल हुई.. अंशुल एक सिंगल चारपाई पर किताब हाथ में लिए ही पढ़ते पढ़ते सो गया था..
पदमा ने किताब उठाकर स्टडी टेबल पर रख दी और अंशुल को जगाते हुए उसके सुन्दर चेहरे को देखने लगी.. हाय कितना प्यारा लगता है अंशुल.. आशु.... आशु.... उठो... चलो उठो.. अंशुल ने पदमा का हाथ पकड़ कर अपने सरहाने रख दिया और उसपर अपना सर रखकर सोने लगा तो पदमा ने प्यार से अंशुल का मुँह चूमकर उसे उठाने लगी..
अंशुल की नींद खुली तो उसने पदमा को अपनी बाहों में भर लिया और पदमा के गाल चूमते हुए कहा - हैप्पी बर्थडे माँ... जन्मदिन मुबारक हो... पदमा के चेहरे की उदासी मानो एक पल में गायब हो चुकी थी और उसपर एक प्रसन्नता का भाव तेरने लगा था.. तुम्हे पता था?
क्यू नहीं होना चाहिए?
नहीं... वो मुझे लगा तुम भी अपने पापा की तरह ही..
क्या?
नहीं.. कुछ नहीं..
बोलो ना माँ....
छोडो... अच्छा मेरा गिफ्ट कहा है?
आपके सामने तो है..
कहा?
यहां... कहते हुए अंशुल ने पदमा के लबों को अपनी लबों में भर लिया और चूमने लगा जैसे पदमा उसकी माँ ना होकर उसकी गर्लफ्रेंड हो.. अंशुल को किसी का डर नहीं था वो पहले भी पदमा को चुम चूका था लेकिन पदमा ने उसके बारे में किसी से कोई जिक्र नहीं किया था और फिर कई बार हंसी मज़ाक़ में छेड़ छाड़ भी अंशुल पदमा से कर चूका था.. पदमा को कुछ समझ नहीं आ रहा था वो चाहकर भी अंशुल को रोक नहीं पा रही थी उसे जैसे साँप सूंघ गया था अंशुल अपनी माँ पदमा को अपनी बाहों में भरे ऐसे चुम रहा था जैसे पदमा उसी की बीवी हो अंशुल ने पदमा को दिवार से सटा कर काफी देर तक चूमा और पदमा को अपने साथ बहकने पर मजबूर करने लगा....
बाहर का दरवाजा बजा तो एकदम से पदमा की आँखे जो मदहोशी से बंद हो चुकी थी खुल गई और उसने अंशुल को धक्केलते हुए पीछे कर दिया और कमरे बाहर निकलकर पसीने पोछते हुए नीचे आ गई और बाहर का दरवाजा खोलने चली गई.. डाकिया अंशुल के नाम एक तार देकर चला गया मगर पदमा की साँसे अब भी अंशुल के कमरे में ही अटकी थी, पदमा लड़खड़ाते हुए कदमो और धड़कते हुए दिल के साथ अंशुल के कमरे की तरफ वापस बढ़ गई.. अंशुल ने अलमारी से एक बेग निकाल लिया था उसने जैसे ही पदमा को वापस रूम में आते देखा वो समझ गया की पदमा क्या चाहती है? अंशुल ने देखा की पदमा को जो तार डाकिया दे गया है वो कॉलेज से आया है और उसमे बेकाम का कुछ कागज लगा हुआ है अंशुल ने उसे एक जगह रखते हुए पदमा को फिर से अपने सीने से लगा लिया..
अंशुल ने बैग से बहुत से गहने निकालकर पदमा को पहना दिए थे जो वो अपने साथ शहर से खरीदकर पदमा के लिए लाया था और बर्थडे पर देने का वादा किया था पदमा को यक़ीन नहीं हो रहा था की ये उसके साथ क्या हो रहा है आज तक बालचंद ने उसे चांदी तक का कोई गहना नहीं दिलवाया था ना ही पदमा ने कोई ख़ास गहना अपनी जिंदगी में पहना ही था, मगर अंशुल ने तो उसे ऊपर से नीचे तक गहनो से लाद दिया था पदमा के कानो में ख़नकते झुमके, गले में सजता हार, हाथो में सोने की छनकती चूड़ी, कमर में कमरबंध की झंकार, पैरों में पायल की छन छन और नाक में नथुनी की चमक.. पदमा इन सब में कोई अप्सरा लगती थी जिसने आज अद्भुत श्रंगार किया हो..
पदमा किसी मूर्ति ही तरह खामोश शांत सी एक जगह खड़ी थी तभी अंशुल ने पदमा के चेहरे को ठोड़ी से पकड़ कर ऊंचा करते हुए खुले तौर पर अपने प्रेम का इज़हार कर दिया था...
ई लव यू पदमा... अंशुल ने बिना किसी शर्म लिहाज़ के पदमा की आँखों में आँखों डालकर कह दिया था.. जिसका जवाब पदमा ने उसी वक़्त अंशुल के होंठों को अपने होंठों में लेकर चूमते हुए दे दिया था और दोनों ने एक दूसरे से अपने प्रेम का इज़हार कर दिया था दोनों आज माँ बेटे के बंधन से निकल कर बाहर आ चुके थे और अब प्रेमी प्रेमिका के बंधन में बाँधने वाले थे..