Ashu_Chodu007
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Zabardast update broअध्याय 11
अधूरा मिलन
फलेशबेक भाग - 4
अंशुल और पदमा का मिलन उनके इजहारे इश्क़ के साथ नहीं हो पाया था, घर में कभी धन्नो काकी तो कभी बालचंद तो कभी किसी और की मोज़ूदगी ने दोनों के दिलो में पल रहे अरमानो को अभी अंदर ही दबाये रखा था उसपर गुंजन की बिमारी ने पदमा को अंशुल से दूर कर दिया था पदमा को न चाहते हुए भी अंशुल से दूर अपनी बहन गुंजन के पास जाना पड़ा था जिससे दोनों के दरमियान प्यार और वासना के शोले रह रह कर भड़कने का काम कर रहे थे जिसे दोनों आँखों ही आँखों में एक दूसरे से बयान कर रहे थे कभी कभार कुछ फुसरत के पलो में अंशुल पदमा को अपनी बाहों में भर लेता और उसके लबों से भर भर के मदिरापन करता पदमा को इसमें जरा भी आपत्ति नहीं होती वो तो खुद भी उतावलेपन से अंशुल की बाहों में समा जाना चाहती थी अंशुल ने अपनी माँ पदमा के बदन की पूरी बनावट और नाप ले ली थी वो पदमा के बदन से पूरी तरफ परिचित हो चूका था मगर अब तक एक माह गुजर जाने के बाद भी उसे पदमा के साथ एक होने का मौका नहीं मिला था दोनों का मिलन जैसे समाज को नामज़ूर था जिसके चलते अलग अलग बाधा दोनों के मिलन में आती रहती थी और दोनों को मिलन का समय नहीं मिल रहा था.. अंशुल बालचंद के साथ घर पर था और पदमा गुंजन के पास, अंशुल को पदमा की याद खाये जा रही थी यही हाल पदमा का भी था उसे भी अंशुल की याद खाये जा रही थी..
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पुरे एक माह बाद गुंजन की हालात में सुधार हुआ तो उसने अंशुल को फ़ोन कर पदमा को अपने साथ ले जाने को कहा अंशुल अपनी मौसी का फ़ोन सुनकर खिलखिलाता हुआ पदमा को लेने चला गया.. अंशुल ने बिना कोई देर किये पदमा को अपने साथ लाने का तय किया था मगर सुबह का दिन हो चूका था बड़ी मुश्किल से अंशुल गुंजन और रूपा से अलविदा लेकर पदमा को अपने साथ लाने के लिए वहा से वापस आने लगा था.. आज मौसम की भी मार पड़ने वाली थी कड़ाके की बिजली चमक रही थी और रास्ते में ही बरसात भी होने लगी थी पदमा के कहने पर एक पेड़ के नीचे अंशुल ने बाइक रोक दी और दोनों बारिश के थमने का इंतेज़ार करने लगे बारिश का कहर आज इतनी आसानी से थमने वाला नहीं था अंशुल पदमा का हाथ थामे बारिश के रुकने का इंतेज़ार कर रह था वहीं पदमा भी अंशुल के हाथ को अपनी दोनों हथेलियों से पकडे उसके चेहरे को देख रही थी कितना चमक रहा था अंशुल का चेहरा आज.. पदमा जानती थी की अब उसकी इज़्ज़त ज्यादा देर उसके पास नहीं रहने वाली और अंशुल मौका मिलते ही उसका चिर हरण करके उसकी इज़्ज़त को लूट लेगा और उसे अपनी मर्दानगी दिखाकर उसपर अपने प्यार और प्रभुत्व की छाप लगा देगा.. मगर उसके सीने में धड़क रहा दिल पदमा को बार बार यही याद दिला रहा था की अंशुल उसका सगा बेटा है और वो उसके साथ ये सब नहीं कर सकती मगर हवस की आग के आगे उसके विचार और ये बातें बहुत छोटी थी.. भला कोई हवस की आग के आगे रिश्ते की बंदिश देखता है? पदमा का भी वहीं हाल था उसे भी इंतजार था अंशुल के साथ नये रिश्ते में बंध जाने का और नई शुरुआत करने का.. मगर आज बारिश ने जैसे दोनों की मंशा को पूरा होने देने की इज़ाज़त ही नहीं दी थी..
दो घंटे बाद जब शाम हो गई तब तक दोनों पूरी तरह से गीले चुके थे दोनों ने बारिश से बचने की कोशिश की पर नाकाम ही रहे जब बारिश रुकी तो भी मौसम ऐसा लग रह था मानो बरसात कभी भी वापस आ सकती है.. अंशुल ने बाइक स्टार्ट करके घर की और चलानी शुरु की तो कुछ दूर आगे अनेको अनेक वहन खड़े दिखाई दिए..
क्या हुआ भईया? भीड़ काहे लगी है? एक आदमी ने पीछे से सडक के किनारे पक्की दूकान के एक चाय वाले से पूछा तो उसने जवाब दिया.. अरे भईया पुल ढह गया है और आगे बरसात का पानी भरा हुआ है आज तो कोई भी गाडी उसपर नहीं जा पाएगी..
मगर पिछले साल ही तो बना था पुल...
तो क्या हुआ भईया.. सरकार का बनाया पुल है.. कौन गारंटी ले इसकी..
अब क्या?
अब तो इंतजार करना पड़ेगा भईया और कोनो चारा नहीं..
मगर दूसरा रास्ता भी तो होगा? बरसात तो लग रहा है वापस आने को है.. अगर यहां फंस गए तो फिर भगवान जाने क्या होगा.. आगे नदी भी उफान पर लगती है..
पीछे मोती मोड़ से एक कच्चा रास्ता निकलता है हाईवे से होता हुआ मगर बहुत लम्बा है, वहा से जाना है जाओ मगर कोई गारंटी नहीं वहा भी पानी भरा हो तो..
अंशुल सारी बातें सुन रहा था उसे पता था की अब यहां से उस पार जाना तो असंभव है और हाईवे वाला रास्ता लेगा तो घर पहुंचते हुए आधी रात हो जायेगी तभी उसे याद आया की पीछे करीब 3-4 किलोमीटर दूर उसका एक दोस्त रहता है जिससे वो कई सालों से नहीं मिला था अगर वो अंशुल की मदद कर दे तो रात गुज़ारने का शायद काम बन सकता था बरसात वापस शुरु होने लगी थी....
अंशुल ने बाइक उस चाय वाले के पास रोकी और उसकी पक्की छत के नीचे अपने आपको और पदमा को भीगने से बचाता हुआ बैठ गया.. पदमा और अंशुल ने वहा चाय की चुस्की लेटे हुए एक दूसरे को देखा मगर आपस में कुछ कह ना सके, दोनों को मालुम था की ऐसी हालत में कुछ भी उसके पक्ष में नहीं था और उन्हें अचानक उत्पन्न हुए इस विघ्न को दूर करना ही पड़ेगा..
जैसे शहर में लड़की का जुगाड़ होने पर कमरा नहीं मिलता वैसे ही आज अंशुल की मनोदशा थी उसके पास अब उसकी माँ पदमा थी जो उसे अपनी इज़्ज़त ख़ुशी ख़ुशी देने को त्यार थी मगर पिछले एक महीने से कुछ ना कुछ रोड़ा उसकी राहो में कहीं ना कहीं से आ ही जाता था..
अंशुल ने दिमाग पर जोर देते हुए उस दोस्त का नम्बर याद किया पर नंबर कहा याद होता है उसपर पुराना नंबर फ़ोन भी बदल चूका था सो पुराना नंबर फ़ोन से डिलीट हो गया था लेकिन आखिरकार जैसे तैसे करके अंशुल ने किसी और दोस्त से उस दोस्त का नंबर ले ही लिया था अंशुल ने जब नंबर पर कॉल किया तो किसी औरत ने फ़ोन उठाया मगर अंशुल के कहने पर फ़ोन उस दोस्त को दे दिया..
हेलो आशु?
हां... मंकू?
क्या हाल है? तू तो भूल ही गया शहर जाने के बाद..
अरे नहीं यार... वो थोड़ा बिजी हो गया था और कुछ नहीं..
अच्छा इतने दिनों बाद कैसे याद आई? कुछ काम था?
हां यार मैं बांकी पुलिया पर फंसा हुआ हूँ.. पुल टूट गया नदी भी उफान पर है.. आसपास कहीं रात गुज़ारने का इंतज़ाम हो जाए तो देख ले..
भाई घर आजा ना...
अरे मम्मी साथ में है यार.. मौसी के यहां लेने आया था बीच में ही फंस गया.. तुझे फालतू दिक्कत होगी...
नहीं भाई कोई दिक्कत नहीं होगी तू घर आजा.. रास्ता जानता है ना?
हां वो स्कूल के पीछे वाला रास्ता है ना..
हां हां सीधा वहीं से आजा..
ठीक है भाई...
इस बार बरसात को रुकते रुकते अंधेरा होने लगा था अंशुल ने बरसात रुकने पर पदमा को अपने साथ लिया और मंकू के घर की तरफ चल दिया जहाँ पहुंचते पहुंचते उसे रात के आठ बज चुके थे.. अंशुल और मंकू दोनों पुराने जिगरी दोस्त थे स्कूल में एक ही बैंच पर आखिर साल तक एक साथ बैठा करते थे.. आज 4-5 बरस बाद दोनों मिल रहे थे.. मंकू ने पूरी गर्मजोशी के साथ अंशुल का स्वागत किया और अंशुल और पदमा को छत पर बने एक रूम में ठहरने की व्यवस्था कर दी.. मंकू का घर छोटा था सिर्फ दो कमरे थे एक नीचे जहाँ हाल रसोई और बाथरूम था वहीं दूसरा छत पर जहाँ कमरे के साथ सिर्फ बाथरूम था यही कहरण था अंशुल मंकू के घर आने से झिझक रहा था लेकिन मज़बूरी में उसे वहा आना ही पड़ा.. जब पिछली बार अंशुल यहां आया था तब मंकू अपने बड़े भाई मैदाराम और भाभी कंचन के साथ रहता था, माता पीता तो पहले ही चल बसे थे और बाकी रिश्तेदार अलग रहते थे मंकू मैदाराम के साथ इस छोटे से घर में रहता था..
मगर आज अंशुल को मैदाराम कहीं नज़र नहीं आया.. अंशुल ने घर में प्रवेश के दौरान कंचन भाभी को जरुर देखा था कंचन को सब लोग बाँझ ही समझते थे यही कारण था की मैदाराम कंचन पर आये दिन हाथ उठा दिया करता था मगर आज कंचन अपनी गोद में एक बच्चे को लिए खड़ी थी
अंशुल को लगा की शायद ऊपर वाले ने कंचन की झोली भर दी है और उसे भी बच्चे की ख़ुशी मिल गई है.. मगर मैदाराम कहा था? अंशुल को वो कहीं दिखाई नहीं दे रहा था.. मंकू ने कमरे में ले जाते हुए अंशुल से कपडे बदलने को कहा और नीचे आ गया.. पदमा ने बेग से कपडे निकाले और बदलने लगी अंशुल मंकू के दिए टीशर्ट और लोवर को पहन पहले ही नीचे आ चूका था..
लगता है बारिश आज कहर बरपा के ही रहेगी..
हां यार लगता तो यही है पुरे रास्ते बहुत परेशान किया है.. एक बार को लगा की आज की रात बहुत मुश्किल गुजरेगी मगर फिर तेरी याद आ गई.. तू हर मुश्किल में काम आता है मेरे.. हसते हुए अंशुल ने कहा..
पीछे से कंचन एक पतली महीन सी गेरूए रंग की साडी पहने सर पर पल्लू किये हाथ में चाय की ट्रे लेकर खड़ी हो गई..
जी चाय...
शुक्रिया भाभी.. अंशुल ने चाय लेते हुए कहा.. अंशुल ने देखा की कंचन भाभी ने बच्चे को हॉल में पड़ी खटिया पर सुला दिया और कंचन भाभी का पेट हल्का सा निकला हुआ है जैसे वो वापस गर्भिन हो.. और कंचन भाभी ने मंकू और उससे पर्दा किया है जबकि वो दोनों उम्र में लगभग़ दस साल छोटे थे.. अंशुल को बात कुछ हज़म नहीं हुई तो उसने कंचन के हाथ से चाय लेते हुए मंकू से पूछ लिया.. मंकू मैदा भईया कहा है? दिख नहीं रहे..
मंकू ने चाय की चुस्की लेटे हुए कहा.. वो कब के चले गए..
कहाँ?
माँ बाबा के पास...
मतलब?
मतलब आशु.. दो साल पहले मैदा भईया ने ज़हर खाकर खेत में आत्महत्या कर ली...
पर तूने कुछ बताया नहीं..
क्या बताता यार.. मुझे तो खुद कुछ भी समझ नहीं आ रहा था उस वक़्त...
फिर कंचन भाभी??
आशु.. भईया के जाने के बाद सबने मुझे कंचन भाभी से शादी करने को कहा और मैंने सबकी सलाह मानते हुए भाभी से शादी कर ली....
मगर भाभी उम्र में तुझसे इतनी बड़ी है?
तो क्या हुआ? वैसे भी मुझे कंचन पहले से बहुत पसंद थी तो क्या फर्क पड़ता है..
अच्छा साले.. तभी बच्चे पर बच्चे पैदा कर रहा है.. चल छोड़... मौसम बिगड़ा हुआ चल दो दो घूंट मदिरापान करते है.. तेरे पास है शराब?
मगर आंटी तुझे पिने देगी?
तू वो छोड़.. मम्मी जानती है सब.. तू बता क्या पड़ा है?
विष्की है....
चल निकाल तब तक मैं मम्मी के पास जाकर आता हूँ..
ठीक है.. जल्दी आ.. मंकू ने कहा..
अंशुल छत पर बने कमरे में दाखिल होता है तो देखता है की पदमा खिड़की के पास अपने गीले बाल संवार रही थी.. अंशुल ने पीछे से जाकर पदमा को पकड़ लिया और कान के पास मुँह लाकर धीरे से कहा..
माँ मैं मंकू के साथ थोड़ी सी शराब पी रहा हूँ.. आप नीचे कमरे में मत आना..
पदमा ने अंशुल की बातें सुनकर उसके चेहरे को देखते हुए उसी हलकी आवाजे में जवाब दिया.. ज्यादा मत पीना.. अंशुल पदमा को वहीं रूम मेँ छोड़कर अपना फ़ोन लेकर नीचे आ गया जहा मंकू ने कमरे के अंदर दो प्लास्टिक की कुर्सी लगाकर दरमियान एक लकड़ी का आसान लगा दिया थ जिसपर शराब की बोतल रखी हुई थी और दो कांच के गिलास भी थे..
पहला पेग लेने के बाद मंकू ने आवाज लगाते हुए कहा.. कंचन.... कंचन...
जी... कंचन ने धीरे से घूँघट निकालकर जवाब दिया..
सालाद कहा है?
जी अभी लाई.. कुछ देर बाद कंचन एक प्लेट में सलाद और नमकीन लाकर दरमियान लकड़ी के आसान पर रख गई..
मंकू भी लगभग अंशुल की उम्र का था या उससे एक साल बड़ा मगर उसने अपने बड़े भाई मैदाराम के मरने के बाद उम्र में दस साल बड़ी अपनी भाभी कंचन को अपना बना लिया था और जब कंचन सोच रही थी की कैसे वो मंकू के साथ रहेगी कैसे उसका निभाह होगा.. मंकू ने कंचन को बिना किसी शर्म लिहाज़ के पूरी बेशमी के साथ रगड़ के चोद दिया था जिसके बाद अगली सुबह से ही कंचन मंकू के साथ उसी तरह रहने लगी थी जैसे वो मैदाराम के साथ रहती थी..
मैदाराम सिर्फ नाम का मर्द था यही कारण था की शादी के कई साल बाद तक भी कंचन माँ ना बन सकी थी और बाँझ होने के ताने उसे सुनने पड़े थे मगर मंकू ने तुरंत कंचन का पैर भारी कर दिया था और माँ बनने का सुख दिया था.. कंचन बत्तीस साल की सुडोल सुगठित महिला था जो अब अपने देवर मंकू के साथ इस बंधन में बंध चुकी थी और देखने से खुशहाल जिंदगी बिता रहा थी..
शराब पीते हुए अंशुल और मंकू पुराने दिन याद करने लगे थे और एक दूसरे से शराबखोरी करते हुए बातचीत कर अपना अपना हाल बया कर रहे थे वहीं पदमा नीचे आ गई थी और रसोई में कंचन के साथ बातचीत करते हुए खाना बनाने में उसकी मदद करने लगी थी..
खाना खाने के बाद पदमा ऊपर कमरे में चली गई थी अंशुल भी उसके पीछे पीछे चल दिया था.. कंचन ने बच्चे को पालने में सुलाकर दरवाजा बंद कर लिया था और मंकू ने कंचन को दरवाजा बंद होते ही अपनी बाहों में भर लिया था चूमने लगा.....
आह्ह... बिलकुल सब्र नहीं होता तुमसे देवर जी?
बिस्तर में जब तेरे जैसा कंचा माल हो तो सब्र कैसे करू भाभी? चल जल्दी से अपने देवर का लोडा मुँह में लेले आजा....
देवर जी बत्ती तो बुझा दो..
क्यू पहली बार मेरा लंड मुह में ले रही हो भाभी?
कंचन मंकू का लंड मुँह में लेकर चूसने लगती ही जैसे उसे इसमें मज़ा आ रह हो..
मंकू - बहन की लोड़ी... रंडी.. साली छिनाल... उस रात मुझे अगर तेरी चुत में मज़ा ना आता ना.. तो इस वक़्त तू किसी जेल में सड़ रही होती.... पूरा लोडा ले मुह में... अच्छे से.. मादरचोद..
मंकू अपने दोनों हाथों से कंचन का सर पकड़ कर जोर जोर से उसका मुह चोद रहा था..
गुगुगु..... आह्ह.... देवर जी... तनिक आराम से... गुगुगुगुगुगु देवर जी.. अह्ह्ह्ह....
मंकू ने कंचन के कपडे फाड़कर उसे नंगा कर दिया और बिस्तर पर पीठ के बल लेटाकर उसके ऊपर आ गया और अपना खड़ा हुआ लंड उसकी चुत में पेल दिया..
आह्ह.... देवर जी... आअह्ह्ह.... उफ्फ्फ.... आह्ह... आज जान निकालोगे क्या देवर जी.... आराम से... आराम... सोनू (बच्चा) उठ जाएगा... आह्ह... देवर जी..
मंकू कंचन की चुत में झटके मारते हुए बोलता है.. जान निकालने का काम तो तेरा है मादरचोद छिनाल.... अगर तेरी इस चुत की लत ना होती तो तुझे भईया को ज़हर देकर मारने के जुर्म में जेल करवा देता...
आह्ह.... जरा धीरे... धीरे बोलो.. बोलो देवर जी... कोई सुन लेगा... आह्ह... तुम्हारे भईया रोज़ कितना जुल्म करते थे हमारे ऊपर... आह्ह... कितना मारते पीटते थे हमें... उफ्फ्फ... आह्ह.... शराब पीकर गालिया देते थे.. हम और क्या करते?
मार और गालिया तो तू मुझसे भी खाती है भाभी.. तो क्या अगली बार मुझे ज़हर देकर मार देगी? (चोदने की स्पीड बढ़ाते हुए) बोल ना हरामजादी...
आह्ह.... देवर जी... तुमने तो मुझे वो सुख दिया है जो मैं सोच भी नहीं सकती थी.. आराम से करिये ना...
आह्ह... तुम्हारे लिए तो मैं अपनी जान भी दे सकती हूँ.. आह्ह.. आअह्ह्ह... तुम्हारे मुँह से गालिया भी हमें प्यारी लगती है.. आह्ह.. आह्ह..... आहहह.... तुम्हरे दुलार के बदले हम तुम्हारी प्यार भरी मार भी सह सकते है... आह्ह....
कितनी मीठी मीठी बातें करती है मादरचोद... इतना बड़ा काण्ड करके भी ज़रा सी शिकन माथे पर नहीं है.... मैदाभईया जैसे गठिया आदमी से मैं भी परेशान था.. इसलिए उस रात मैंने मैदाभईया और तेरी चुत में से तेरी चुत को चुना भाभी...
स्कूल के समय से ही तुम मुझपर लट्टू थे.. है ना देवर जी? तुम्हारी नज़र तो हमेशा मेरे ब्लाउज के अंदर ही गड़ी रहती थी.. आह्ह.... मेरी तो मज़बूरी थी अगर मैं वो सब नहीं करती तो किसी रोज़ तुम्हारे भईया ही मेरी जान ले लेते.... आह्ह.... देवर जी अब छोड़िए उन बातों को.. अब तो सबकी नज़र में हम पत्नी है तुम्हारी?
मगर अभी शादी कहा हुई है भाभी? मैंने तो सबसे सिर्फ कहा है की शादी हो गई.. असल में थोड़ी हुई है..
आह्ह... बच्चा तो हो गया ना? अब शादी की क्या जरुरत है देवर जी? तुमने तो वापस मेरा पेट फुला दिया.. मेरी तो एक भी बात नहीं मानते आअह्ह्ह....
जब बिस्तर में चोदने को अपनी मन पसंद औरत मिल जाए ना कंचन भाभी.. तब बातें मानी नहीं मनवाई जाती है.. समझी? ले आजा... निकलने वाला है मेरा मुंह मीठा करर ले...
कंचन मंकू का लंड बुर से निकलते ही मुंह में भर लेती है और बेसब्री से चूसने लगती है कुछ ही देर में मंकू कंचन के मुंह में झड़ जाता है और दोनों नंगे ही एक दूसरे से लिपटकर सोने की कोशिश करते है..
मैदाराम बहुत क्रूर और ज़ालिम प्रवर्ती का आदमी थी जो कोमल सी नाजुक दिखने वाली कंचन पर जोर जुल्म करता था उसकी हरकते किसी से छिपी ना रह सकी थी मगर कोई चाह कर भी कुछ ना कर सकता था.. कंचन ने तंग आकर एक अपने मायके से अपनी किसी सहेली से ज़हर की पुड़िया लाकर मैदा की शराब में घोल दी थी जिसे मंकू ने देख लिया था मगर उसने कुछ ना किया.. मंकू भी मैदाराम की रोज़ रोज़ की हरकतो से तंग आ चूका था खेत बेचकर जो रकम मिली थी आधी तो उसने शराब में ही उड़ा दी थी इसलिए मंकू ने कंचन को नहीं रोका और जब मैदाराम खेत में दारू पीकर लुढ़क गया तो सबने समझा ज़हरीली शराब से या ज़हर खा कर मैदाराम की मौत हुई है मगर police को तहकीकात करने की फुसरत कहा थी जो सच्चाई सामने आती? और कोई चश्मदीद भी नहीं था अस्पताल में पोस्टमॉर्टम तो यहां सपनो की बात थी, इसलिए मैदा की मौत एक मज़ाक़ और कंचन के लिए मैदा के अत्याचारों से मुक्ति बनकर ही रह गई..
मगर जिस रोज़ मैदा मरा उसी रात मंकू ने कंचन को जबरन घर में जहा मौका मिला वही पर लेटा लिया और जी भरके उसे चोदा.. कंचन अपने से दस साल छोटे देवर मंकू की बाहों में आने के बाद उसकी गुलाम हो चुकी थी.. देह के सुख ने कंचन के मन की चिंता को भस्म कर दिया था.. मगर मंकू अब सबको मैदा के बारे में वहीं कहानी सुनाता था जो उसने अंशुल को सुनाई थी.. कंचन और मंकू के एक दूसरे के सिवा अब कोई ना था यही कारण था वो इतने करीब आ चुके थे....
नीचे मंकू कंचन की चुदाई कर रहा था वहीं ऊपर अंशुल ने अब तक अपनी सगी माँ पदमा पर चढ़ाई की तैयारी शुरु कर दी थी.. कमरे में आते ही अंशुल ने पदमा की साडी का पल्लू फ़िल्मी अंदाज़ में कुछ इस तरह खींचा था की पदमा घूमती हुई सीधा बिस्तर पर गिरी थी उसके बाद अंशुल ने पदमा के ऊपर आकर अपनी शर्ट उतार दी और पदमा के ब्लाउज का बट्टन खोलते हुए पदमा के होंठों को अपने होंठों से सटा लिया और चूमने लगा ऐसा लग रहा था जैसे कोई भंवरा फूल का रस पी रहा हो.. दोनों का चुम्बन इतना प्रगाड़ था की दोनों के मुंह से लार एक दूसरे के मुंह में आ जा रही थी जिसे दोनों आँख बंद किये हुए महसूस कर रहे थे मगर चुम्बन को नहीं तोड़ रहे थे जैसे दोनों को इस घड़ी का लम्बा इंतजार था और अब वो एक दूजे में समा जाना चाहते थे.. अंशुल से दो के बाद जब ब्लाउज का तीसरा बटन नहीं खुला तो उसने चुम्बन तोड़कर पदमा के ब्लाउज को अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया और जोर से खींचते हुए ब्लाउज को फाड़ डाला जिससे ब्लाउज के साथ पदमा की ब्रा भी फट गई और अंशुल के सामने पहली बार अपनी माँ पदमा की उभरी हुई दुदिया छाती बिना किसी कपडे के आ गई..
अंशुल ने पदमा की गोरी उन्नत चूची पर गुलाबी तने हुए दाने को तुरंत अपने मुंह में ले लिया जिससे पदमा के मुंह से सिस्कारी निकाल गई और पदमा बदहवस होकर अंशुल के सर को आहे भरते हुए सहलाने लगी.. अंशुल पदमा के थन को मुंह में भरे हुए जीभ से छेड़ते हुए चूसने लगा जिसमे पदमा को स्वर्गलोक की सेर का आनंद आने लगा और वो मादक निगाहो से अंशुल को देखती हुई उससे अपनी चूची चुसवाने का मज़ा लेने लगी..
पदमा सोच रही थी की कैसे समय इतना जल्दी बदल जाता है और जो नहीं होने की उम्मीद होती है एक दिन वो भी हो जाता है, पदमा को लग रहा था की जैसे अभी कल ही की तो बात थी जब अंशुल उसकी गोद में खेलता हुआ उसकी चूची से दूध पीता था तब उसे इस बात का अहसास नहीं था की एक दिन वो इस तरह से भी उसके दूध का स्वाद चखेगा और पदमा खुद अंशुल को इस बात की इज़ाज़त देगी मगर ऐसा ही हो रहा था जिस पर पदमा को भी आज हैरात थी.. पदमा अंशुल का सर पकडे हुए अपने बोबे का गुलाबी दाना जो टाइट होकर खड़ा था अंशुल के दांतो से कटवाते हुए आह कर रही थी और अंशुल की आँखों में मादक निगाहो से इस तरह देख रही थी जैसे प्रयसी अपने प्रियतम को देखती है.. कुदरत का अजीब करिश्मा था जो आज हो रहा था बाहर मूसलाधार बरसात में बिजली कड़क रही थी और पास के जंगल से जानवरो के चीखने की आवाजे आ रही थी वहीं यहां एक बेटा अपनी सगी माँ की इज़्ज़त लूट रहा था और माँ खुशी से ऐसा होने भी दे रही थी समाज की सारी नियमावली आज धरी की धरी रह गई थी सभी कायदे और कानून जो समाज ने परिवार के लिए बनाये थे वो टूट रहे थे नए रिश्ते का गठन हो रहा था..
अंशुल ने जब देखा की पदमा पूरी तरह काम के अधीन आ चुकी है उसने झटके से पदमा का घाघरा भी उतार फेंका और उसकी बुर से रिस्ते पानी से भीगी चड्डी के ऊपर से ही पदमा की चुत अपनी मुट्ठी में पकड़ ली और पदमा के होंठो को वापस अपने होंठों में भर लिया.. पदमा मादक और कामुक सिसकारियों से पुरे माहौल को चुदाईमय बनाये जा रही थी और अंशुल भी उसी राह पर अग्रसर था.. अंशुल ने पदमा की बुर के पास आते हुए धीरे धीरे चड्डी के ऊपर से ही पदमा की बुर चाटने लगा जिससे पदमा अपने दोनों हाथों से बिस्तर को अपनी मुट्ठी में पकड़ कर सिसकने लगी वहीं अगले ही पल अंशुल ने चड्डी भी उतार कर एक तरफ कर दी अब उसके सामने पदमा बिलकुल नंगी थी.. आज एक बेटे के सामने उसकी माँ पूरी तरह नंगी थी और अंशुल अपनी माँ की नंगी बुर के सामने था लम्बी लम्बी झांटो से घिरी हुई पदमा की गुलाबी बुर देखने में ऐसी लगती थी जैसे किसी अभेद किले को जंगल के बड़े बड़े पेड़ो ने चारो तरफ से घेर रखा हो.. अंशुल ने बिना वक़्त बर्बाद किया बुर से उठती भीनी भीनी महक को सुघते हुए पदमा की चुत को अपने होंठों से चुम लिया और फिर चटाई का दौर शुरु हुआ जिसमे पदमा के काममय सुकून और सिसकारियों की गर्जना से पूरा कमरा गूंजने लगा.. ऐसा लग रहा था जैसे दो प्रेमी प्रेमिका का मिलन प्रकृति स्वं अपनी देख रेख में करवाना चाह रही हो.. अंशुल ने जब चटाई में अपना पूरा अनुभव झोंक दिया तो पदमा ज्यादा देर तक बिना झड़े नहीं रह सकी और अंशुल के चेहरे पर ही झड़ गई और पदमा का पूरा बदन काँपने लगा उसके बदन की अकड़न उसकी दशा को साफ बया कर रही थी अंशुल के मुंह आज पहली बार अपनी माँ पदमा के काम रस का स्वाद लगा था जिसे वो चखता हुआ पदमा को देखने लगा पदमा की हालात बद से बदत्तर होती जा रही थी झड़ने के बाद उसे अंशुल से एक तरह की शर्म पैदा हो रही थी जिसे वो भी समझ नहीं पा रही थी पदमा बिस्तर पर पैर सिकोड़कर बैठ गई और अपना सर दोनों घुटनो के बीच देकर गहरी साँसे लेने लगी जैसे उसे किसी बात से डर लग रहा हो..
अंशुल बिस्तर पर अपनी नंगी सगी माँ के सामने बैठा था और पदमा को शरमाते हुए देख रहा था उसे महसूस हो रहा था पदमा किसी बात से घबरा रही है और उससे नज़र चुराने लगी है तभी अंशुल ने पदमा के सामने अपनी जीन्स पर से बेल्ट उतार दिया और फिर जीन्स का बॉटन उनहुक कर दिया और जीप खोलकर जीन्स नीचे सरका दी पदमा अपने आँखों के बिलकुल सामने कुछ दुरी पर अंशुल को ऐसा करते हुए छुपके से देख रही थी मगर उसमे इतनी हिम्मत नहीं बची थी की वो अंशुल से इसका समर्थन या विरोध कर पाए.. अंशुल भी पूरी तरह अपनी प्रकृतिक अवस्था में आ चूका था और पदमा भी पहले से ही नंगी बैठी थी..
अंशुल ने पदमा के चेहरे को उसके घुटनो से उठाते हुए एक मधुर चुम्बन कर उसके गर्दन और गाल को चूमने लगा पदमा की आँखों ना जाने कहा से एकाएक इतनी नमी आ गई वो जैसे किसी बात का शोक मनाने लगी मगर अब भी उसमे अंशुल का विरोध करने की क्षमता नहीं थी पदमा अंशुल की हर हरकत को अपना मोन समर्थन दे रही थी अंशुल ने वापस पदमा को बिस्तर पर लेटा दिया और उसकी आँखों में देखते हुए उसका एक हाथ पकड़ कर अपने खड़े लंड पर रख दिया और हलके से पदमा के हाथो अपना लंड सहलाने लगा पदमा अंशुल की आँखों में देखते हुए अपनी सोच में गुम थी की कैसे आज अंशुल इतना बेशर्म और बेपरवाह हो गया है पदमा तो हवस में अंधी थी मगर क्या अंशुल भी हवस में अंधा हो चूका है? और वो भी अपनी सगी माँ के लिए? पदमा के चेहरे पर ख़ामोशी थी उम्मीद थी और एक तरह की बेचैनी भी थी जिसे अंशुल नहीं समझ सका था पदमा कितनी भी हवस में अंधी क्यू ना हो जाए मगर आज वो अपने बेटे के साथ सम्बन्ध बनाने जा रही थी यही सोच उसे कचोट कचोट कर खा रही थी और यही बात उसे अब तक डराये हुए थी जो इस वक़्त से पहले तक तो उसके दिल के किसी कोने में दबी हुई थी मगर एकदम से वो बात उभरकर दिल के ऊपरी छोर पर आकर खड़ी हो चुकी थी जिसका जवाब पदमा तलाशने की कोशिश कर रही थी लेकिन अंशुल को उसने इस वक़्त कुछ भी करने से मना नहीं किया..
अंशुल जो चाह रहा था वो पदमा के साथ कर रहा था और पदमा अपने मातृत्व भाव से अंशुल को वो सब करने की इज़ाज़त दे रही थी मगर अब अंशुल पदमा के नारित्व को भंग करने वाला था अपने लंड से पदमा की चुत की गहराई नापने वाला था जिसे पदमा अच्छे से समझ रही थी पदमा के मन में तो अभी अंशुल के इस विशालकाय लंड को लेने और अपनी हवस भुझा लेने की इच्छा थी मगर क्या वो अपने सगे बेटे से और आगे जाकर नाजायज सम्बन्ध कायम कर सकती है? पदमा को ये सवाल खाये जा रहा था....
अंशुल ने पदमा की जांघ पकड़ कर टाँगे चौड़ी कर दी और अपने खड़े लंड का सुपाडा चुत के मुहाने पर टिका कर थोड़ा दबाब बनाते हुए एक हल्का सा झटका दिया तो सालों से बंजर देखती हुई आ रही पदमा की बुर में लंड का सुपाडा आसानी से घुस गया लेकिन जैसे ही पदमा को इसका अहसास हुआ उसने अंशुल को पीछे दक्का देकर बिस्तर पर गिरा दिया जिससे लंड चुत से बाहर निकल गया और पदमा बिस्तर से उतरकर खुली हुई खिड़की की तरफ आकर अंशुल से पीठ किये खड़ी हो गई और अचानक से आंसू बहाने लगी जैसे कुछ गलत हो गया हो..
पदमा ने अंशुल से अपने प्यार का इज़हार तो पहले ही कर दिया था मगर सम्भोग.. सम्भोग करने में उसे हिचकिचाहट होने लगी थी
उसे लगा था की समाज की बेड़िया तोडना आसान होगा मगर अब उसे इल्म हो रहा था की ये कितना मुश्किल है दोनों प्रेम करते थे मगर थे तो माँ बेटे..
पदमा को अचानक से इस बात का अहसास हुआ तो उसने अंशुल को धक्का देकर धकेल दिया और उठकर अलग हो गई थी कुछ देर पहले जहाँ उसकी आँखों में हवस चमक रही थी वहीं अब उसकी आँखों में नमी थी और आंसू की धारा प्रवाहित हो रही थी..
अंशुल को अचानक से पदमा में हुए इस बदलाव और उसके बर्ताव में आये परिवर्तन को समझने में सफलता नहीं मिली थी वो बिस्तर पर अपना लंड पकडे पदमा के वापस बिस्तर में आने का इंतेज़ार करता रहा था मगर जब वो नहीं आई तो अंशुल ही बिस्तर से खड़ा हो गया..
पदमा और अंशुल दोनों पूरी तरह से नंगे थे और काम देवता की आराधना में लीन थे मगर बीच में ही पदमा का मन रासलीला से उचट गया और वो अलग ख्याल में चली गई.. अंशुल ने पदमा को पीछे से गले लगा लिया जिससे उसका खड़ा हुआ लंड पदमा के चुत्तड़ चिरता हुआ चुत के चोबारे तक आ गया..
क्या हुआ पदमा? अंशुल ने पदमा के कान में धीरे से पूछा..
कुछ नहीं... आंसू पोछते हुए पदमा ने जवाब दिया..
बिस्तर पर चले? अंशुल ने पदमा के दाहिने बोबे को अपने पंजे में पकड़ते हुए पूछा..
अभी नहीं.. पदमा ने अपने बोबे पर से अंशुल की हथेली हटाते हुए कहा..
क्यू मन नहीं है? अंशुल ने पदमा को अपनी तरफ घुमाकर पूछा तो पदमा ने ना में सर हिला दिया और नीचे देखने लगी..
अच्छा ठीक है.. मैं मेरी पदमा के साथ कोई जबरदस्ती नहीं करूंगा, जब आपका मन होगा मैं तभी आपको प्यार करूंगा.. ओके.. अंशुल ये बोलते हुए इतना मासूम बच्चों जैसा चेहरा बनाया था की पदमा के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई और वो अंशुल की आँखों में देखते हुए उसकी बाहों में ही क़ैद रही और अंशुल उसे उठा कर बिस्तर में आकर लेट गया दोनों नंगे ही एक दूसरे से चिपके हुए सोने लगे.. पदमा ने भी कपडे पहनने की कोशिश नहीं की ना ही अंशुल ने ऐसा किया...
आशु....
हम्म..
मुझे एक बात सच सच बताओगे?
हम्म पूछो?
मुझसे कितना प्यार करते हो?
इतना... अंशुल ने पदमा को एक लम्बा चुम्मा देकर कहा..
आशु.. मज़ाक़ नहीं.. सच बताओ..
कैसे बताऊ? बोलो?
मेरे लिए क्या कर सकते हो?
सबकुछ..
सच?
बिलकुल सच..
झूठ तो नहीं कह रहे हो?
झूठ बोलू तो आप मेरा मरा मुंह देखो..
छी.. कैसी बात कर रहे हो.. दुबारा ऐसी बात मत करना..
अच्छा ठीक है..
तूम नाराज़ नहीं हो मुझसे..
नाराज़गी किस बात की? मैं जानता हूँ जो चीज़ मेरी है आज नहीं तो कल वो चीज़ मुझे मिलकर ही रहेगी..
अच्छा जी...
हम्म...
अगर मैं वो चीज़ ना दू तो? जबरदस्ती करोगे?
पांच फ़ीट की हो आप.. मैं छः फ़ीट का.. पचास किलो की हो आप.. मैं सत्तर का.. अगर जबरदस्ती करनी होती तो अब तक आप मेरे लंड पर बैठकर उछल रही होती..
हट बेशर्म.. कितना गन्दा बोलता है...
अभी गन्दा बोलना शुरु कहा किया है पदमा.. जल्दी से हां कह दो.. फिर देखना.. क्या क्या बोलता हूँ..
कभी नहीं बोलूंगी... समझें?
देखते है..
देख लेना बच्चू.. अच्छा सिगरेट पीना सिखाओगे मुझे?
अंशुल बेग से सिगरेट निकालकर एक बड़ी एडवांस पदमा के गुलाबी होंठो पर लगा देता है और लाइटर से सुलगा कर कश लेने को कहता है...
ऐसे नहीं माँ... देखो ऐसे... समझी..
हम्म्म... समझी..
पदमा दो ही कश में सिगरेट पिने का हुनर सिख चुकी थी एक चादर के नीचे दोनों माँ बेटे नंगे थे और पदमा सिगरेट के कश लगा रही थी..
ये क्या चुभ रहा है.. हटाओ ना.. पदमा ने अपने चुत्तड़ से अड़ता हुआ कुछ हटाते हुए कहा..
ये नहीं हटेगा पदमा.. ये तुम्हारे बेटे का लंड है.. अंशुल ने मज़ाकिया अंदाज़ में जवाब दिया..
अच्छा? पदमा ने अंशुल के मज़ाकिया अंदाज़ पर एक काम की दृस्टि डालते हुए कहा और सिगरेट के कश लेटी हुई चादर हटा दी और अपने बालों को बांध कर अंशुल के खड़े लंड को अपनी हथेली में पकड़ लिया..
अभी हटाती हूँ इस शैतान को... कहते हुए पदमा ने अंशुल के लंड को सिगरेट का कश लेने के तुरंत बाद धुआँ छोड़ते हुए अपने मुंह में भर लिया और अंशुल को मुखमैथुन का आनंद देने लगी....
आअह्ह्ह.... माँ... आह्ह.. पदमा.... आहहह...
क्या हुआ? इतने में ही हवाईया उड़ गई.. पदमा ने लंड मुंह से निकलकर सिगरेट के कश लेती हुई अंशुल को छेड़ने की नियत से देखकर बोली...
ई लव यू पदमा... ई लव यू... अंशुल ने पदमा के बाल पकड़ कर वापस अपना लंड उसके मुंह में ड़ालते हुए कहा और अपना लंड चूसाने लगा..
पदमा बीच बीच में सिगरेट के दम भरती हुई अंशुल के लंड को अपने मुंह में भरकर ऐसे चूस रही थी जैसे बच्चा लॉलीपॉप चूसता है..
पदमा की आँखों में भी बेशर्मी आ रही थी उसे पता ही नहीं चला की कब अंशुल ने उसे वापस काम की अग्नि में झोंक दिया था.. पदमा की दूसरी सिगरेट ख़त्म होते होते अंशुल ने अपनी सगी माँ पदमा के मुंह में पहली बार अपने वीर्य का दान कर दिया था जिसे मज़बूरी में ही सही पदमा को पीना पड़ा.. अंशुल पदमा का ये रूप देखते हुए पसीने पसीने हो चूका था.. बिगड़े हुए मौसम में आज अंशुल के साथ ये पहला सुकून भरा काम हुआ था जिसकी उसे ख़ुशी थी और वो इसका भगवान से शुक्रिया अदा कर रहा था.. पदमा ने वीर्य पिने के बाद अंशुल के लंड को चाटकर साफ करने की इच्छा से वापस लंड मुंह में भर लिया और चूसने लगी मगर अंशुल का लंड पदमा के ऐसा करने पर अगले ही पल अपनी पूरी औकात में आसमान को देखता हुआ खड़ा हो गया और पदमा हैरानी भरी आँखों से अंशुल को देखने लगी मगर अंशुल बच्चों जैसा मुंह बनाकर अनजान बनता हुआ पदमा को देखने लगा.. पदमा ने अंशुल को झूठा गुस्सा दिखाते हुए वापस सिगरेट जला ली और फिर से अंशुल के लंड की अपने मुंह से सेवा करने में लग गई.. इस बार ये सेवा लम्बी चलने वाली थी...
पदमा....
हह्म्म्मम्म?? पदमा ने लोडा चूसते हुए जवाब दिया..
लो.... तुम्हारे पति का फ़ोन है...
पदमा ने लोडा मुंह से निकलकर एक लम्बा सिगरेट का कश लिया और धुआँ छोड़ती हुई फ़ोन उठाकर कान से फ़ोन लगाती हुई बोली.. हां... बोलो..
बालचंद - कहा हो?
तुम्हारी अम्मा के घर.... आधी रात को याद आई है हमारी? कहते हुए पदमा ने फ़ोन स्पीकर पर डालकर अंशुल के लंड से कुछ ऊपर उसके पेट पर रख दिया और वापस ऊँगली से पकड़ी हुई सिगरेट के कश लेटे हुए अंशुल के लंड को पकड़ कर चूसने लगी..
बालचंद - अरे वो मुखिया जी से पता चला की पुल ढह गया है.. बहुत से लोग वहीं पुल पर फंसे है.. बरसात भी बहुत ज्यादा हुई है रुकने का नाम नहीं ले रही और नदी भी उफान पर है.. मुझे लगा कोई अनहोनी ना हो गई हो..
पदमा ने आशु का लंड अपने मुंह से निकाल कर बालचंद को तीखे स्वर में जवाब दिया.. तुम तो चाहते ही यही हो की हम माँ बेटे कहीं किसी नदी में डूब के मर जाए.. क्यू? तुम्हारी आँख में फूटे नहीं सुहाते ना हम दोनों..
बालचंद - अरे तुमको तो अब इस रात में भी मुझसे लड़ना है.. कभी इत्मीनान से दो घड़ी बात भी नहीं कर सकती.. मैंने तो खैर खबर लेने के लिए ही फ़ोन किया था.. आज मुझे भी बड़े बाबू के साथ बरसात के कारण ऑफिस में देरी हो गई थी..
अंशुल ने इसी बीच पदमा की उंगलियों में सुलग रही सिगरेट ले ली और इससे पहले की पदमा बालचंद की बात का वापस कोई बेढंगा सा जवाब देती अंशुल ने पदमा को किसी रंडी की तरह बाल से पकड़ लिया और उसके मुंह में अपना लोडा जड़ तक ठूस दिया जिससे पदमा की आँखे चौड़ी हो गई और फ़ोन अपने हाथ में लेता हुआ अंशुल बालचंद से बोला.. बारिश से परेशानी हुई थी लेकिन पुल के पास मेरा पुराना दोस्त रहता है... मैं और मम्मी यही आज रात रुके हुए है.. सुबह मौसम साफ होते ही हाईवे वाले रास्ते से घर आ जाएंगे..
बालचंद - अच्छा ठीक है.. मम्मी का ख्याल रखना..
अंशुल सिगरेट का एक लम्बा कश लेकर लंड चुस्ती हुई अपनी माँ पदमा के मुंह पर सिगरेट का धुआँ छोड़ते हुए बालचंद से बोला - आपसे से अच्छा ही ख्याल रखा है मम्मी का... चाहो तो पूछ लो.. अंशुल ने पदमा के मुंह से लंड निकाल कर फ़ोन पदमा की तरफ बड़ा दिया...
पदमा फ़ोन लेती हुई - तुम मेरी चिंता छोड़ दो.. मेरा आशु है मेरे पास..
बालचंद - अच्छा ठीक है भाग्येवान्....
अंशुल पदमा से फ़ोन लेकर - सुबह बात करता हूँ.. (फ़ोन काटते हुए)
माँ का ख्याल तो मेरा लंड रखेगा... कहते हुए अंशुल पदमा के मुंह में अपना लंड आगे पीछे करने लगता और पदमा से किसी रंडी की तरह ही बात करने लगता है जैसे पदमा अंशुल की माँ नहीं रखैल हो...
अंशुल कुछ ही देर बाद जब झड़ने वाला होता है वो अपना फ़ोन लेकर उसका वीडियो ऑन कर देता और लोडा पदमा के मुंह से निकाल कर अपना सारा मुठ पदमा के चेहरे पर गिरा देता है जिससे पदमा का पूरा चहरा अंशुल के मुठ से भर जाता है और अंशुल ये सारा मज़ा अपने फ़ोन गैलेक्सी s24 अल्ट्रा के कैमरे से बेस्ट क्वालिटी में रिकॉर्ड कर लेटा है जिसका पदमा को पता नहीं चलता..
hoyt pool
पदमा बनावटी गुस्से में अंशुल के लंड पर दो तीन हलकी हलकी चपत लगाती हुई नंगी ही कमरे के बाहर बने बाथरूम में चली जाती है मुंह साफ करने लगती है.. अंशुल भी पीछे पीछे हाथो में तौलिया लेकर बाथरूम में घुस जाता है और पदमा जैसे ही मुंह धोकर मुड़ती है अंशुल बड़ी प्यार से पदमा का चेहरा अपने हाथो के तौलिये से साफ करता हुआ पदमा से कहता है...
अब तो हां कर दो मेरी पदमा रानी..
पदमा मुस्कुराते हुए अंशुल के गाल पर अपने दांतो से हल्का सा काटती हुई कहती है.. नहीं... नहीं.... नहीं... नहीं करूंगी हां...
अंशुल पदमा की छाती पर तने हुए बोबे को अपने दोनों हाथो से पकड़कर पदमा को बाथरूम की दिवार से सटा देता है और पदमा के तने हुए दोनों चुचे के दाने मसलते हुए कहता है.. और कितना तड़पाओगी माँ?
आह्ह... आशु आहिस्ता.... ज्यादा जोर जबरदस्ती करोगे तो जो कर रहे हो वो भी नहीं कर पाओगे... समझें?
जबरदस्ती अभी आपने देखी ही कहा है माँ.. एक बार हां बोल तो आपकी कसम आपको तारे दिखा दूंगा..
बड़े आया तारे दिखाने वाला... हटो जाने दो.. मुझे..
अंशुल ने बाथरूम से रूम में जाती हुई पदमा के पीछे हिलते हुए कुल्हो पर एक जोर की चपत लगाई तो पदमा के मुंह से आह... निकल गई और वो अपने चुत्तड़ मसलते हुए नंगी ही बिस्तर में आकर लेट गई और चादर ओढ़ ली.. कुछ ही पल बाद अंशुल भी वहा आ गया और पदमा को पीछे से गले लगता हुआ चादर ओढ़कर पदमा के साथ बिस्तर ने लेट गया..
जब आपके मन में हां है तो होंठों पर ना क्यू है? अंशुल ने हलकी सी आवाज में पदमा के कान में कहा तो पदमा ने मुड़कर अंशुल को एक नज़र हैरानी से देखा और फिर वापस मुड़कर अंशुल का हाथ अपने चुत्तड़ पर से हटाटी हुई बोली.. तुमसे किसने कह दिया मेरे मन में हां है?
अंशुल ने पदमा को अपनी तरफ मोड़ते हुए कहा - अगर आपके होंठों की तरह आपके मन में भी ना होती तो आप इस वक़्त मेरी बाहों में इस तरह नंगी नहीं लेटी होती.. मैं जानता हूँ कोई ना कोई ऐसी बात जरूर है जो आपको मेरे साथ एक होने से, हमबदन होने से रोक रही है.. मैं नहीं जानता पदमा.. वो क्या बात है मगर आज नहीं तो कल मैं जरुर उस बात को जान जाऊँगा और उसे ख़त्म करके आपको हमेशा के लिए अपना बना लूंगा.. मेरे लिए अब इस जहान में आपसे बड़ी और कोई चीज़ नहीं है.. ई लव यू पदमा..
पदमा ने अंशुल की बातें सुनकर हँसते हुए अंशुल के लबों पर एक छोटा सा चुम्मा करते हुए कहा - अच्छा जी.. अब मिस्टर अंशुल... मुझे यानी अपनी सगी माँ को अपनी बीवी बनाना चाहते है? इतना आसान नहीं है बच्चू.. मेरा नाम पदमा देवी है पदमा देवी.. तुम्हरी इन मीठी मीठी बातों और झाँसों में आकर मैं हां नहीं बोलने वाली....
अंशुल ने पदमा को अपने नीचे लेटाकर उसके ऊपर आते हुए कहा - मेरी सगी माँ नंगी होकर आज इस बिस्तर पर मेरे नीचे तो आ गई है... देखना जल्दी ही हां बोलने के बाद मेरे लंड के नीचे भी आ जाओगी.....
पदमा - ख्याब देखो आशु.... वहीं सच होंगे... समझें... मैं इस तरह तुम्हारे साथ हूँ ये तो बस तुमने जो मेरा इतना ख्याल रखा है और मुझपर इतना सारा खर्चा किया उसके बदले है जो मैं तुम्हारा दिल बहला रही हूँ वरना मुझे नंगा देखना तो दूर तुम बस मेरे तंग ब्लाउज में मेरे मोटे मोटे थनों की दरार देखते हुए ही दिन बिता रहे होते.. मैं सब जानती हूँ.. तुम मेरे बेटे हो मगर मर्द भी तो हो..
अंशुल पदमा की बात ख़त्म होने पर उसे चूमने ही वाला था की दरवाजे पर दस्तक हो गई...
कौन आया है? पदमा ने अंशुल की आँखों में देखते हुए हैरानी से कहा..
मैं देखता हूँ.. अंशुल ने जवाब दिया और बिस्तर से उठकर बदन पर तौलिया लपेटता हुआ दरवाजे की तरफ मुड़ गया..
जी भाभी...
कंचन एक मैक्सी पहने अंशुल के सामने दरवाजे के बाहर की तरफ खड़ी थी कमरे में बिस्तर ऐसे लगा हुआ था की कंचन को अंदर की हालात का अंदाजा नहीं हो सकता था..
जी... इन्होने कहा है आपको ये टोर्च और मोमबत्ती देने के लिए.. कंचन ने कहा..
शुक्रिया भाभी... कहते हुए अंशुल ने दरवाजा वापस बंद कर दिया और कंचन नीचे चली गई.. अंशुल और पदमा को रासलीला में इस बात का ध्यान ही नहीं रहा की लाइट कब की जा चुकी है और वो दोनों कब से अँधेरे में ही एकदूसरे से बाते कर रहे थे..
कंचन नीचे आई तो देखा की मंकू बाहर की तरफ खड़ा सिगरेट के कश लगता हुआ होती बरसात को देख रहा था.. कंचन ने पीछे से जाकर मंकू को अपनी बाहों में भर लिया और कान में धीरे से कहा.. क्या हुआ देवर जी.. ऐसे मौसम में एक बार में ही अपका मन अपनी भाभी से भर गया?
मंकू ने सिगरेट का अगला कश लेकर सिगरेट बाहर फेंक दी और कंचन को अपनी गोद में उठाकर बिस्तर की तरफ चल दिया.. कंचन और मंकू फिर से चुदाई करने लगे वहीं अंशुल पदमा के साथ लेटा हुआ उससे प्यार भरी बातें करने लगा....
भोर का समय हो चूका था कंचन मंकू की बाहों में से अंगड़ाई लेटी हुई उठी और घर के काम में लग गई बच्चा अभी भी पालने में चैन से सो रहा था वहीं पदमा भी अब अंशुल की बाहों से खुदको छुड़ाती हुई बाथरूम में जाकर नहाने लगी थी.. रातभर अंशुल ने पदमा के साथ हर वो काम किया था जो एक पति और पत्नी के बीच हो सकता था बस दोनों में चुदाई अभी तक नहीं हुई थी पदमा ने सारी रात अंशुल को तरसाया था और अपनी बुर खोदने से दूर रखा था अंशुल भी पदमा को मनाता हुआ उससे खुल चूका था और हर तरह की बाते दोनों के बीच हो रही थी.. अंशुल ने पदमा की चुत तो नहीं ली थी मगर दिल और मन दोनों ले चूका था पदमा को उसकी किसी भी हरकत पर सिर्फ प्यार आ रहा था जिससे अंशुल समझ गया था पदमा ज्यादा देर तक उससे दूर नहीं रह पाएगी और खुद ही आकर उससे मिलन की बात कह देगी..
सुबह का मौसम साफ था धुप खिल चुकी थी अंशुल ने मंकू से विदा लेकर पदमा के साथ हाईवे वाले रास्ते आ गया था पदमा ने इस बार अंशुल को पूरा कसकर पकड़ा हुआ था जैसे एक प्यार में पड़ी लड़की अपने प्रेमी को पकड़ती है अंशुल को इसका पूरा अंदाजा था.. घर पहुंचते पहुंचते दोनों को ग्यारह बज चुके थे बालचंद से बाते हुई तो पता चला वो अपनी चपरासीगिरी करने ऑफिस गया है पदमा ने घर पहुंचते ही फैले हुए सामान को समेटना और घर का काम करना शुरु कर दिया अंशुल भी अपने रूम में जाकर किताबो में खो गया उसने पदमा से सम्भोग के बारे में जोर जबरदस्ती करना सही नहीं लगा था उसे जल्दी बाज़ी में अपना मुंह नहीं जलाना था सो वो अपने कमरे में किताबो में ही खोया रहा और दिन के तीन बजे तक कमरे से बाहर नहीं आया.. इस वक़्त पदमा घर का काम करके आराम फरमा रही थी उसने अंशुल को नीचे आते देखा तो बिस्तर से खड़ी होकर बोली - आशु.. मौसी से फ़ोन बात करवा दो..
अंशुल ने जैसे ही अपने फ़ोन का लॉक खोलकर पदमा के हाथो में फ़ोन दिया, फ़ोन देखते ही पदमा का दिल रुक सा गया और वो फोन बंद करके रसोई में पानी पीते हुए अंशुल की टीशर्ट को गिरेबान से पकड़ कर बोली - चुपचाप फ़ोन से ये तस्वीर हटाओ..
अंशुल मुस्कुराते हुए - पर देखो ना... कितनी प्यारी लग रही हो आप इसमें...
पदमा गुस्से से - मुझसे ना ज्यादा चालाकी मत करो समझें? अपनी माँ की नंगी तस्वीर को फ़ोन पर लगाया हुआ है शर्म नहीं आती? मेरे पुरे चेहरे पर तुमने अपना... छी... जल्दी से बदलो इसे और कल रात जितनी तस्वीर ली है तुमने मुझे अभी दिखाकर डिलीट करो.. वरना..
अंशुल मुस्कुराते हुए - वरना क्या?
पदमा गुस्से से - वरना तुझसे बात तक नहीं करुँगी... पदमा ऐसा कहकर जाने लगी तो अंशुल ने उसका हाथ पकड़कर अपनी बाहों में भर लिया और गाल पर एक चुम्मा देकर कहा - अच्छा ठीक है बाबा.. लो तुम ही डिलीट कर दो.. अब तो खुश?
पदमा ने फ़ोन लेकर कल रात की सारी तस्वीर डिलीट कर दी और अंशुल के साथ अपनी एक क्यूट सी तस्वीर खींच कर फ़ोन पर लगा दी फिर अंशुल को देखती हुई बोली.. आइंदा बिना बताये तस्वीर ली तो देखना..
अंशुल - अच्छा ठीक है मेरी माँ... एक कप चाय बना दोगी? बहुत नींद आ रही है..
पदमा गैस पर चाय चढ़ाते हुए - पूरी रात जागोगे तो नींद ही आएगी..
अंशुल - मैं तो सो जाऊ माँ.... पर आपका ये आशिक सोने ही नहीं देता..
पदमा ने पलटकर देखा तो अंशुल ने लोवर नीचे सरका कर अपना लंड बाहर निकाल लिया था जो एकदम लोहे की तरह कड़क था जिसे दिन के उजाले में साफ साफ देखकर पदमा शर्म से लाल हो गई थी और शरमाते हुए मुंह फेर लिया था..
अंशुल में पदमा का हाथ हलके से पकड़कर अपनी तरफ खींचा तो दूसरे हाथ से पदमा ने गैस का फ्लेम बिलकुल कम कर दिया और अपनेआप ही अपने घुटनो पर बैठकर अंशुल के लंड को अपने दोनों हाथो से पकड़ते हुए आगे पीछे करने लगी.. उसने अंदर की हवस एक दम बाहर आ गई थी अंशुल और पदमा की नज़र इस दौरान मिलती तो अंशुल मुस्कुराते हुए पदमा को आँख मार देता और पदमा शरमाते हुए अंशुल का लंड हिलाते हुए मुस्कुराने लगती.. अंशुल ने कुछ देर बाद पदमा के सर को पकड़कर लोडा उसके मुंह में ठूस दिया और चूसाने लगा वहीं चाय के उबाल आने पर चाय छन्नी करके चाय पीते हुए अपनी माँ से लोडा चूसाईं का मज़ा लेने लगा..
पदमा पूरी मेहनत और लग्न से अंशुल का लंड ऐसे चूस रही थी जैसे वो बॉलीवुड की महंगी एक्ट्रेस/रांड हो.. अंशुल की चाय ख़त्म होने के काफी देर बाद पदमा को मुंह में अंशुल के वीर्य की धार बही जिसे पदमा ने आँख बंद करके अपने गले से नीचे उतार लिया और अपने ऊँगली से अपने होंठ साफ करती हुई खड़ी हो गई और बिना कुछ बोले रसोई से निकलकर रूम में आ गई अंशुल भी अपना लंड लोवर में डालकर पानी की बोतल लेकर ऊपर अपने रूम में चला गया और शाम होने पर बालचंद भी घर में आ गया, माहौल शांत था....
बालचंद खाना खाकर सोने की तयारी कर रहा था वहीं पदमा खाने की थाली त्यार कर अंशुल के रूम की तरफ बढ़ गई और दरवाजे में दाखिल होते हुए अंशुल को किताबो में उलझें देखा तो मुस्कुराते हुए खाने की थाली सामने रखकर अंशुल के सर पर हाथ फेरकर पहले खाना खाने को कहने लगी और फिर वापस नीचे आ गई अंशुल ने इस बार पदमा को नहीं रोका और खाना खाने लगा....
करीब एक घंटे बाद जब पदमा खाना खाने के बाद अंशुल के रूम में उसकी झूठी थाली लेने पहुंची तो अंशुल ने पदमा को अपनी बाहों में भर लिया और पीछे सिंगल चारपाई पर गीर गया.. अंशुल ने पदमा की साडी उच्ची करके उसकी चुत को चूसकर उसका रस निकाल दिया था पदमा ने भी अंशुल का सर पकड़कर उसे अपनी चुत चूसाने में मदद करने का काम बखूबी किया था मगर हिलती चारपाई और आह भरती पदमा ने अंशुल को अब भी अपनी गुफा में प्रवेश की इज़ाज़त नहीं दी थी..
आह्ह.. आशु बेड चुबता है...
कहा चुबता है...
पीछे पीठ में.. पदमा ने अपनी पीठ की तरफ इशारा करते हुए अंशुल से कहा..
अंशुल - थोड़ा नीचे आ जाओ...
नहीं.. अब जाने दे... पदमा ने कहा और बेड से उठकर अपनी साडी ठीक करती हुई नीचे चली गई.. उसकी चुत अंशुल के चाटने से दो बार झड़ी थी और पदमा मुस्कुराते हुए झूठी थाली लेकर नीचे आ गई थी..
बालचंद सो चूका था और पदमा भी बर्तन साफ करने के बाद चैन की नींद में सो गई थी..
पदमा ओ पदमा.... अरे मेरा फ़ोन देखा तुमने? पदमा??
सुबह के साढ़े आठ बज रहे थे और पदमा छत पर बने एक छोटे से कमरे में अंशुल के साथ पिछले 15 मिनट से चोंच लड़ा रही थी अंशुल और पदमा की जीभ आपस में ऐसे मिल रही थी जैसे रस्सी के दो बल आपस में मिलते है.. पदमा कपडे उतारने छत पर आई थी मगर अंशुल ने उसे अपनी बाहों में भर लिया और यहां लाकर रासलीला करने लगा था.. बालचंद की आवाज से दोनों के होंठ अलग हुए तो दोनों के होंठो पर मुस्कान थी..
हट... अब जाने दे... बेशर्म कहीं भी पकड़ लेता है..
अच्छा आखिरी किस्सी तो दे दो...
अब उस भालू के जाने के बाद ही कुछ मिलेगा....
अच्छा ठीक है.. अंशुल ने मुंह लटकाते हुए कहा तो पदमा को आशु के चेहरे पर तरस आ गया और वो उसे एक हल्का सा चुम्मा देकर मुस्कुराते हुए कपडे लेकर नीचे चली गई..
फ़ोन कहा है मेरा?
अरे आखों के अंधे रसोई में तुमने ही तो चार्ज पर लगाया था.. ये देखो..
अच्छा ठीक है.. खाना का डिब्बा दे दो.. आज देर हो जायेगी.. बड़े बाबू की मीटिंग है.. उन्होंने साथ रहने को कहा है..
पदमा खाने का डब्बा बालचंद को देते हुए बोली.. सारी जिंदगी.. लोगों की जी हुज़ूरी में ही बिता देना.. चपरासी कहीं के..
बालचंद डिब्बा लेकर चला जाता है.. और पदमा घर के बाकी कामो में लग जाती है अंशुल भी कुछ देर बाद अपनी बाइक लेकर बाजार की तरफ चल पड़ता है..
अध्याय 11
अधूरा मिलन
फलेशबेक भाग - 4
अंशुल और पदमा का मिलन उनके इजहारे इश्क़ के साथ नहीं हो पाया था, घर में कभी धन्नो काकी तो कभी बालचंद तो कभी किसी और की मोज़ूदगी ने दोनों के दिलो में पल रहे अरमानो को अभी अंदर ही दबाये रखा था उसपर गुंजन की बिमारी ने पदमा को अंशुल से दूर कर दिया था पदमा को न चाहते हुए भी अंशुल से दूर अपनी बहन गुंजन के पास जाना पड़ा था जिससे दोनों के दरमियान प्यार और वासना के शोले रह रह कर भड़कने का काम कर रहे थे जिसे दोनों आँखों ही आँखों में एक दूसरे से बयान कर रहे थे कभी कभार कुछ फुसरत के पलो में अंशुल पदमा को अपनी बाहों में भर लेता और उसके लबों से भर भर के मदिरापन करता पदमा को इसमें जरा भी आपत्ति नहीं होती वो तो खुद भी उतावलेपन से अंशुल की बाहों में समा जाना चाहती थी अंशुल ने अपनी माँ पदमा के बदन की पूरी बनावट और नाप ले ली थी वो पदमा के बदन से पूरी तरफ परिचित हो चूका था मगर अब तक एक माह गुजर जाने के बाद भी उसे पदमा के साथ एक होने का मौका नहीं मिला था दोनों का मिलन जैसे समाज को नामज़ूर था जिसके चलते अलग अलग बाधा दोनों के मिलन में आती रहती थी और दोनों को मिलन का समय नहीं मिल रहा था.. अंशुल बालचंद के साथ घर पर था और पदमा गुंजन के पास, अंशुल को पदमा की याद खाये जा रही थी यही हाल पदमा का भी था उसे भी अंशुल की याद खाये जा रही थी..
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पुरे एक माह बाद गुंजन की हालात में सुधार हुआ तो उसने अंशुल को फ़ोन कर पदमा को अपने साथ ले जाने को कहा अंशुल अपनी मौसी का फ़ोन सुनकर खिलखिलाता हुआ पदमा को लेने चला गया.. अंशुल ने बिना कोई देर किये पदमा को अपने साथ लाने का तय किया था मगर सुबह का दिन हो चूका था बड़ी मुश्किल से अंशुल गुंजन और रूपा से अलविदा लेकर पदमा को अपने साथ लाने के लिए वहा से वापस आने लगा था.. आज मौसम की भी मार पड़ने वाली थी कड़ाके की बिजली चमक रही थी और रास्ते में ही बरसात भी होने लगी थी पदमा के कहने पर एक पेड़ के नीचे अंशुल ने बाइक रोक दी और दोनों बारिश के थमने का इंतेज़ार करने लगे बारिश का कहर आज इतनी आसानी से थमने वाला नहीं था अंशुल पदमा का हाथ थामे बारिश के रुकने का इंतेज़ार कर रह था वहीं पदमा भी अंशुल के हाथ को अपनी दोनों हथेलियों से पकडे उसके चेहरे को देख रही थी कितना चमक रहा था अंशुल का चेहरा आज.. पदमा जानती थी की अब उसकी इज़्ज़त ज्यादा देर उसके पास नहीं रहने वाली और अंशुल मौका मिलते ही उसका चिर हरण करके उसकी इज़्ज़त को लूट लेगा और उसे अपनी मर्दानगी दिखाकर उसपर अपने प्यार और प्रभुत्व की छाप लगा देगा.. मगर उसके सीने में धड़क रहा दिल पदमा को बार बार यही याद दिला रहा था की अंशुल उसका सगा बेटा है और वो उसके साथ ये सब नहीं कर सकती मगर हवस की आग के आगे उसके विचार और ये बातें बहुत छोटी थी.. भला कोई हवस की आग के आगे रिश्ते की बंदिश देखता है? पदमा का भी वहीं हाल था उसे भी इंतजार था अंशुल के साथ नये रिश्ते में बंध जाने का और नई शुरुआत करने का.. मगर आज बारिश ने जैसे दोनों की मंशा को पूरा होने देने की इज़ाज़त ही नहीं दी थी..
दो घंटे बाद जब शाम हो गई तब तक दोनों पूरी तरह से गीले चुके थे दोनों ने बारिश से बचने की कोशिश की पर नाकाम ही रहे जब बारिश रुकी तो भी मौसम ऐसा लग रह था मानो बरसात कभी भी वापस आ सकती है.. अंशुल ने बाइक स्टार्ट करके घर की और चलानी शुरु की तो कुछ दूर आगे अनेको अनेक वहन खड़े दिखाई दिए..
क्या हुआ भईया? भीड़ काहे लगी है? एक आदमी ने पीछे से सडक के किनारे पक्की दूकान के एक चाय वाले से पूछा तो उसने जवाब दिया.. अरे भईया पुल ढह गया है और आगे बरसात का पानी भरा हुआ है आज तो कोई भी गाडी उसपर नहीं जा पाएगी..
मगर पिछले साल ही तो बना था पुल...
तो क्या हुआ भईया.. सरकार का बनाया पुल है.. कौन गारंटी ले इसकी..
अब क्या?
अब तो इंतजार करना पड़ेगा भईया और कोनो चारा नहीं..
मगर दूसरा रास्ता भी तो होगा? बरसात तो लग रहा है वापस आने को है.. अगर यहां फंस गए तो फिर भगवान जाने क्या होगा.. आगे नदी भी उफान पर लगती है..
पीछे मोती मोड़ से एक कच्चा रास्ता निकलता है हाईवे से होता हुआ मगर बहुत लम्बा है, वहा से जाना है जाओ मगर कोई गारंटी नहीं वहा भी पानी भरा हो तो..
अंशुल सारी बातें सुन रहा था उसे पता था की अब यहां से उस पार जाना तो असंभव है और हाईवे वाला रास्ता लेगा तो घर पहुंचते हुए आधी रात हो जायेगी तभी उसे याद आया की पीछे करीब 3-4 किलोमीटर दूर उसका एक दोस्त रहता है जिससे वो कई सालों से नहीं मिला था अगर वो अंशुल की मदद कर दे तो रात गुज़ारने का शायद काम बन सकता था बरसात वापस शुरु होने लगी थी....
अंशुल ने बाइक उस चाय वाले के पास रोकी और उसकी पक्की छत के नीचे अपने आपको और पदमा को भीगने से बचाता हुआ बैठ गया.. पदमा और अंशुल ने वहा चाय की चुस्की लेटे हुए एक दूसरे को देखा मगर आपस में कुछ कह ना सके, दोनों को मालुम था की ऐसी हालत में कुछ भी उसके पक्ष में नहीं था और उन्हें अचानक उत्पन्न हुए इस विघ्न को दूर करना ही पड़ेगा..
जैसे शहर में लड़की का जुगाड़ होने पर कमरा नहीं मिलता वैसे ही आज अंशुल की मनोदशा थी उसके पास अब उसकी माँ पदमा थी जो उसे अपनी इज़्ज़त ख़ुशी ख़ुशी देने को त्यार थी मगर पिछले एक महीने से कुछ ना कुछ रोड़ा उसकी राहो में कहीं ना कहीं से आ ही जाता था..
अंशुल ने दिमाग पर जोर देते हुए उस दोस्त का नम्बर याद किया पर नंबर कहा याद होता है उसपर पुराना नंबर फ़ोन भी बदल चूका था सो पुराना नंबर फ़ोन से डिलीट हो गया था लेकिन आखिरकार जैसे तैसे करके अंशुल ने किसी और दोस्त से उस दोस्त का नंबर ले ही लिया था अंशुल ने जब नंबर पर कॉल किया तो किसी औरत ने फ़ोन उठाया मगर अंशुल के कहने पर फ़ोन उस दोस्त को दे दिया..
हेलो आशु?
हां... मंकू?
क्या हाल है? तू तो भूल ही गया शहर जाने के बाद..
अरे नहीं यार... वो थोड़ा बिजी हो गया था और कुछ नहीं..
अच्छा इतने दिनों बाद कैसे याद आई? कुछ काम था?
हां यार मैं बांकी पुलिया पर फंसा हुआ हूँ.. पुल टूट गया नदी भी उफान पर है.. आसपास कहीं रात गुज़ारने का इंतज़ाम हो जाए तो देख ले..
भाई घर आजा ना...
अरे मम्मी साथ में है यार.. मौसी के यहां लेने आया था बीच में ही फंस गया.. तुझे फालतू दिक्कत होगी...
नहीं भाई कोई दिक्कत नहीं होगी तू घर आजा.. रास्ता जानता है ना?
हां वो स्कूल के पीछे वाला रास्ता है ना..
हां हां सीधा वहीं से आजा..
ठीक है भाई...
इस बार बरसात को रुकते रुकते अंधेरा होने लगा था अंशुल ने बरसात रुकने पर पदमा को अपने साथ लिया और मंकू के घर की तरफ चल दिया जहाँ पहुंचते पहुंचते उसे रात के आठ बज चुके थे.. अंशुल और मंकू दोनों पुराने जिगरी दोस्त थे स्कूल में एक ही बैंच पर आखिर साल तक एक साथ बैठा करते थे.. आज 4-5 बरस बाद दोनों मिल रहे थे.. मंकू ने पूरी गर्मजोशी के साथ अंशुल का स्वागत किया और अंशुल और पदमा को छत पर बने एक रूम में ठहरने की व्यवस्था कर दी.. मंकू का घर छोटा था सिर्फ दो कमरे थे एक नीचे जहाँ हाल रसोई और बाथरूम था वहीं दूसरा छत पर जहाँ कमरे के साथ सिर्फ बाथरूम था यही कहरण था अंशुल मंकू के घर आने से झिझक रहा था लेकिन मज़बूरी में उसे वहा आना ही पड़ा.. जब पिछली बार अंशुल यहां आया था तब मंकू अपने बड़े भाई मैदाराम और भाभी कंचन के साथ रहता था, माता पीता तो पहले ही चल बसे थे और बाकी रिश्तेदार अलग रहते थे मंकू मैदाराम के साथ इस छोटे से घर में रहता था..
मगर आज अंशुल को मैदाराम कहीं नज़र नहीं आया.. अंशुल ने घर में प्रवेश के दौरान कंचन भाभी को जरुर देखा था कंचन को सब लोग बाँझ ही समझते थे यही कारण था की मैदाराम कंचन पर आये दिन हाथ उठा दिया करता था मगर आज कंचन अपनी गोद में एक बच्चे को लिए खड़ी थी
अंशुल को लगा की शायद ऊपर वाले ने कंचन की झोली भर दी है और उसे भी बच्चे की ख़ुशी मिल गई है.. मगर मैदाराम कहा था? अंशुल को वो कहीं दिखाई नहीं दे रहा था.. मंकू ने कमरे में ले जाते हुए अंशुल से कपडे बदलने को कहा और नीचे आ गया.. पदमा ने बेग से कपडे निकाले और बदलने लगी अंशुल मंकू के दिए टीशर्ट और लोवर को पहन पहले ही नीचे आ चूका था..
लगता है बारिश आज कहर बरपा के ही रहेगी..
हां यार लगता तो यही है पुरे रास्ते बहुत परेशान किया है.. एक बार को लगा की आज की रात बहुत मुश्किल गुजरेगी मगर फिर तेरी याद आ गई.. तू हर मुश्किल में काम आता है मेरे.. हसते हुए अंशुल ने कहा..
पीछे से कंचन एक पतली महीन सी गेरूए रंग की साडी पहने सर पर पल्लू किये हाथ में चाय की ट्रे लेकर खड़ी हो गई..
जी चाय...
शुक्रिया भाभी.. अंशुल ने चाय लेते हुए कहा.. अंशुल ने देखा की कंचन भाभी ने बच्चे को हॉल में पड़ी खटिया पर सुला दिया और कंचन भाभी का पेट हल्का सा निकला हुआ है जैसे वो वापस गर्भिन हो.. और कंचन भाभी ने मंकू और उससे पर्दा किया है जबकि वो दोनों उम्र में लगभग़ दस साल छोटे थे.. अंशुल को बात कुछ हज़म नहीं हुई तो उसने कंचन के हाथ से चाय लेते हुए मंकू से पूछ लिया.. मंकू मैदा भईया कहा है? दिख नहीं रहे..
मंकू ने चाय की चुस्की लेटे हुए कहा.. वो कब के चले गए..
कहाँ?
माँ बाबा के पास...
मतलब?
मतलब आशु.. दो साल पहले मैदा भईया ने ज़हर खाकर खेत में आत्महत्या कर ली...
पर तूने कुछ बताया नहीं..
क्या बताता यार.. मुझे तो खुद कुछ भी समझ नहीं आ रहा था उस वक़्त...
फिर कंचन भाभी??
आशु.. भईया के जाने के बाद सबने मुझे कंचन भाभी से शादी करने को कहा और मैंने सबकी सलाह मानते हुए भाभी से शादी कर ली....
मगर भाभी उम्र में तुझसे इतनी बड़ी है?
तो क्या हुआ? वैसे भी मुझे कंचन पहले से बहुत पसंद थी तो क्या फर्क पड़ता है..
अच्छा साले.. तभी बच्चे पर बच्चे पैदा कर रहा है.. चल छोड़... मौसम बिगड़ा हुआ चल दो दो घूंट मदिरापान करते है.. तेरे पास है शराब?
मगर आंटी तुझे पिने देगी?
तू वो छोड़.. मम्मी जानती है सब.. तू बता क्या पड़ा है?
विष्की है....
चल निकाल तब तक मैं मम्मी के पास जाकर आता हूँ..
ठीक है.. जल्दी आ.. मंकू ने कहा..
अंशुल छत पर बने कमरे में दाखिल होता है तो देखता है की पदमा खिड़की के पास अपने गीले बाल संवार रही थी.. अंशुल ने पीछे से जाकर पदमा को पकड़ लिया और कान के पास मुँह लाकर धीरे से कहा..
माँ मैं मंकू के साथ थोड़ी सी शराब पी रहा हूँ.. आप नीचे कमरे में मत आना..
पदमा ने अंशुल की बातें सुनकर उसके चेहरे को देखते हुए उसी हलकी आवाजे में जवाब दिया.. ज्यादा मत पीना.. अंशुल पदमा को वहीं रूम मेँ छोड़कर अपना फ़ोन लेकर नीचे आ गया जहा मंकू ने कमरे के अंदर दो प्लास्टिक की कुर्सी लगाकर दरमियान एक लकड़ी का आसान लगा दिया थ जिसपर शराब की बोतल रखी हुई थी और दो कांच के गिलास भी थे..
पहला पेग लेने के बाद मंकू ने आवाज लगाते हुए कहा.. कंचन.... कंचन...
जी... कंचन ने धीरे से घूँघट निकालकर जवाब दिया..
सालाद कहा है?
जी अभी लाई.. कुछ देर बाद कंचन एक प्लेट में सलाद और नमकीन लाकर दरमियान लकड़ी के आसान पर रख गई..
मंकू भी लगभग अंशुल की उम्र का था या उससे एक साल बड़ा मगर उसने अपने बड़े भाई मैदाराम के मरने के बाद उम्र में दस साल बड़ी अपनी भाभी कंचन को अपना बना लिया था और जब कंचन सोच रही थी की कैसे वो मंकू के साथ रहेगी कैसे उसका निभाह होगा.. मंकू ने कंचन को बिना किसी शर्म लिहाज़ के पूरी बेशमी के साथ रगड़ के चोद दिया था जिसके बाद अगली सुबह से ही कंचन मंकू के साथ उसी तरह रहने लगी थी जैसे वो मैदाराम के साथ रहती थी..
मैदाराम सिर्फ नाम का मर्द था यही कारण था की शादी के कई साल बाद तक भी कंचन माँ ना बन सकी थी और बाँझ होने के ताने उसे सुनने पड़े थे मगर मंकू ने तुरंत कंचन का पैर भारी कर दिया था और माँ बनने का सुख दिया था.. कंचन बत्तीस साल की सुडोल सुगठित महिला था जो अब अपने देवर मंकू के साथ इस बंधन में बंध चुकी थी और देखने से खुशहाल जिंदगी बिता रहा थी..
शराब पीते हुए अंशुल और मंकू पुराने दिन याद करने लगे थे और एक दूसरे से शराबखोरी करते हुए बातचीत कर अपना अपना हाल बया कर रहे थे वहीं पदमा नीचे आ गई थी और रसोई में कंचन के साथ बातचीत करते हुए खाना बनाने में उसकी मदद करने लगी थी..
खाना खाने के बाद पदमा ऊपर कमरे में चली गई थी अंशुल भी उसके पीछे पीछे चल दिया था.. कंचन ने बच्चे को पालने में सुलाकर दरवाजा बंद कर लिया था और मंकू ने कंचन को दरवाजा बंद होते ही अपनी बाहों में भर लिया था चूमने लगा.....
आह्ह... बिलकुल सब्र नहीं होता तुमसे देवर जी?
बिस्तर में जब तेरे जैसा कंचा माल हो तो सब्र कैसे करू भाभी? चल जल्दी से अपने देवर का लोडा मुँह में लेले आजा....
देवर जी बत्ती तो बुझा दो..
क्यू पहली बार मेरा लंड मुह में ले रही हो भाभी?
कंचन मंकू का लंड मुँह में लेकर चूसने लगती ही जैसे उसे इसमें मज़ा आ रह हो..
मंकू - बहन की लोड़ी... रंडी.. साली छिनाल... उस रात मुझे अगर तेरी चुत में मज़ा ना आता ना.. तो इस वक़्त तू किसी जेल में सड़ रही होती.... पूरा लोडा ले मुह में... अच्छे से.. मादरचोद..
मंकू अपने दोनों हाथों से कंचन का सर पकड़ कर जोर जोर से उसका मुह चोद रहा था..
गुगुगु..... आह्ह.... देवर जी... तनिक आराम से... गुगुगुगुगुगु देवर जी.. अह्ह्ह्ह....
मंकू ने कंचन के कपडे फाड़कर उसे नंगा कर दिया और बिस्तर पर पीठ के बल लेटाकर उसके ऊपर आ गया और अपना खड़ा हुआ लंड उसकी चुत में पेल दिया..
आह्ह.... देवर जी... आअह्ह्ह.... उफ्फ्फ.... आह्ह... आज जान निकालोगे क्या देवर जी.... आराम से... आराम... सोनू (बच्चा) उठ जाएगा... आह्ह... देवर जी..
मंकू कंचन की चुत में झटके मारते हुए बोलता है.. जान निकालने का काम तो तेरा है मादरचोद छिनाल.... अगर तेरी इस चुत की लत ना होती तो तुझे भईया को ज़हर देकर मारने के जुर्म में जेल करवा देता...
आह्ह.... जरा धीरे... धीरे बोलो.. बोलो देवर जी... कोई सुन लेगा... आह्ह... तुम्हारे भईया रोज़ कितना जुल्म करते थे हमारे ऊपर... आह्ह... कितना मारते पीटते थे हमें... उफ्फ्फ... आह्ह.... शराब पीकर गालिया देते थे.. हम और क्या करते?
मार और गालिया तो तू मुझसे भी खाती है भाभी.. तो क्या अगली बार मुझे ज़हर देकर मार देगी? (चोदने की स्पीड बढ़ाते हुए) बोल ना हरामजादी...
आह्ह.... देवर जी... तुमने तो मुझे वो सुख दिया है जो मैं सोच भी नहीं सकती थी.. आराम से करिये ना...
आह्ह... तुम्हारे लिए तो मैं अपनी जान भी दे सकती हूँ.. आह्ह.. आअह्ह्ह... तुम्हारे मुँह से गालिया भी हमें प्यारी लगती है.. आह्ह.. आह्ह..... आहहह.... तुम्हरे दुलार के बदले हम तुम्हारी प्यार भरी मार भी सह सकते है... आह्ह....
कितनी मीठी मीठी बातें करती है मादरचोद... इतना बड़ा काण्ड करके भी ज़रा सी शिकन माथे पर नहीं है.... मैदाभईया जैसे गठिया आदमी से मैं भी परेशान था.. इसलिए उस रात मैंने मैदाभईया और तेरी चुत में से तेरी चुत को चुना भाभी...
स्कूल के समय से ही तुम मुझपर लट्टू थे.. है ना देवर जी? तुम्हारी नज़र तो हमेशा मेरे ब्लाउज के अंदर ही गड़ी रहती थी.. आह्ह.... मेरी तो मज़बूरी थी अगर मैं वो सब नहीं करती तो किसी रोज़ तुम्हारे भईया ही मेरी जान ले लेते.... आह्ह.... देवर जी अब छोड़िए उन बातों को.. अब तो सबकी नज़र में हम पत्नी है तुम्हारी?
मगर अभी शादी कहा हुई है भाभी? मैंने तो सबसे सिर्फ कहा है की शादी हो गई.. असल में थोड़ी हुई है..
आह्ह... बच्चा तो हो गया ना? अब शादी की क्या जरुरत है देवर जी? तुमने तो वापस मेरा पेट फुला दिया.. मेरी तो एक भी बात नहीं मानते आअह्ह्ह....
जब बिस्तर में चोदने को अपनी मन पसंद औरत मिल जाए ना कंचन भाभी.. तब बातें मानी नहीं मनवाई जाती है.. समझी? ले आजा... निकलने वाला है मेरा मुंह मीठा करर ले...
कंचन मंकू का लंड बुर से निकलते ही मुंह में भर लेती है और बेसब्री से चूसने लगती है कुछ ही देर में मंकू कंचन के मुंह में झड़ जाता है और दोनों नंगे ही एक दूसरे से लिपटकर सोने की कोशिश करते है..
मैदाराम बहुत क्रूर और ज़ालिम प्रवर्ती का आदमी थी जो कोमल सी नाजुक दिखने वाली कंचन पर जोर जुल्म करता था उसकी हरकते किसी से छिपी ना रह सकी थी मगर कोई चाह कर भी कुछ ना कर सकता था.. कंचन ने तंग आकर एक अपने मायके से अपनी किसी सहेली से ज़हर की पुड़िया लाकर मैदा की शराब में घोल दी थी जिसे मंकू ने देख लिया था मगर उसने कुछ ना किया.. मंकू भी मैदाराम की रोज़ रोज़ की हरकतो से तंग आ चूका था खेत बेचकर जो रकम मिली थी आधी तो उसने शराब में ही उड़ा दी थी इसलिए मंकू ने कंचन को नहीं रोका और जब मैदाराम खेत में दारू पीकर लुढ़क गया तो सबने समझा ज़हरीली शराब से या ज़हर खा कर मैदाराम की मौत हुई है मगर police को तहकीकात करने की फुसरत कहा थी जो सच्चाई सामने आती? और कोई चश्मदीद भी नहीं था अस्पताल में पोस्टमॉर्टम तो यहां सपनो की बात थी, इसलिए मैदा की मौत एक मज़ाक़ और कंचन के लिए मैदा के अत्याचारों से मुक्ति बनकर ही रह गई..
मगर जिस रोज़ मैदा मरा उसी रात मंकू ने कंचन को जबरन घर में जहा मौका मिला वही पर लेटा लिया और जी भरके उसे चोदा.. कंचन अपने से दस साल छोटे देवर मंकू की बाहों में आने के बाद उसकी गुलाम हो चुकी थी.. देह के सुख ने कंचन के मन की चिंता को भस्म कर दिया था.. मगर मंकू अब सबको मैदा के बारे में वहीं कहानी सुनाता था जो उसने अंशुल को सुनाई थी.. कंचन और मंकू के एक दूसरे के सिवा अब कोई ना था यही कारण था वो इतने करीब आ चुके थे....
नीचे मंकू कंचन की चुदाई कर रहा था वहीं ऊपर अंशुल ने अब तक अपनी सगी माँ पदमा पर चढ़ाई की तैयारी शुरु कर दी थी.. कमरे में आते ही अंशुल ने पदमा की साडी का पल्लू फ़िल्मी अंदाज़ में कुछ इस तरह खींचा था की पदमा घूमती हुई सीधा बिस्तर पर गिरी थी उसके बाद अंशुल ने पदमा के ऊपर आकर अपनी शर्ट उतार दी और पदमा के ब्लाउज का बट्टन खोलते हुए पदमा के होंठों को अपने होंठों से सटा लिया और चूमने लगा ऐसा लग रहा था जैसे कोई भंवरा फूल का रस पी रहा हो.. दोनों का चुम्बन इतना प्रगाड़ था की दोनों के मुंह से लार एक दूसरे के मुंह में आ जा रही थी जिसे दोनों आँख बंद किये हुए महसूस कर रहे थे मगर चुम्बन को नहीं तोड़ रहे थे जैसे दोनों को इस घड़ी का लम्बा इंतजार था और अब वो एक दूजे में समा जाना चाहते थे.. अंशुल से दो के बाद जब ब्लाउज का तीसरा बटन नहीं खुला तो उसने चुम्बन तोड़कर पदमा के ब्लाउज को अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया और जोर से खींचते हुए ब्लाउज को फाड़ डाला जिससे ब्लाउज के साथ पदमा की ब्रा भी फट गई और अंशुल के सामने पहली बार अपनी माँ पदमा की उभरी हुई दुदिया छाती बिना किसी कपडे के आ गई..
अंशुल ने पदमा की गोरी उन्नत चूची पर गुलाबी तने हुए दाने को तुरंत अपने मुंह में ले लिया जिससे पदमा के मुंह से सिस्कारी निकाल गई और पदमा बदहवस होकर अंशुल के सर को आहे भरते हुए सहलाने लगी.. अंशुल पदमा के थन को मुंह में भरे हुए जीभ से छेड़ते हुए चूसने लगा जिसमे पदमा को स्वर्गलोक की सेर का आनंद आने लगा और वो मादक निगाहो से अंशुल को देखती हुई उससे अपनी चूची चुसवाने का मज़ा लेने लगी..
पदमा सोच रही थी की कैसे समय इतना जल्दी बदल जाता है और जो नहीं होने की उम्मीद होती है एक दिन वो भी हो जाता है, पदमा को लग रहा था की जैसे अभी कल ही की तो बात थी जब अंशुल उसकी गोद में खेलता हुआ उसकी चूची से दूध पीता था तब उसे इस बात का अहसास नहीं था की एक दिन वो इस तरह से भी उसके दूध का स्वाद चखेगा और पदमा खुद अंशुल को इस बात की इज़ाज़त देगी मगर ऐसा ही हो रहा था जिस पर पदमा को भी आज हैरात थी.. पदमा अंशुल का सर पकडे हुए अपने बोबे का गुलाबी दाना जो टाइट होकर खड़ा था अंशुल के दांतो से कटवाते हुए आह कर रही थी और अंशुल की आँखों में मादक निगाहो से इस तरह देख रही थी जैसे प्रयसी अपने प्रियतम को देखती है.. कुदरत का अजीब करिश्मा था जो आज हो रहा था बाहर मूसलाधार बरसात में बिजली कड़क रही थी और पास के जंगल से जानवरो के चीखने की आवाजे आ रही थी वहीं यहां एक बेटा अपनी सगी माँ की इज़्ज़त लूट रहा था और माँ खुशी से ऐसा होने भी दे रही थी समाज की सारी नियमावली आज धरी की धरी रह गई थी सभी कायदे और कानून जो समाज ने परिवार के लिए बनाये थे वो टूट रहे थे नए रिश्ते का गठन हो रहा था..
अंशुल ने जब देखा की पदमा पूरी तरह काम के अधीन आ चुकी है उसने झटके से पदमा का घाघरा भी उतार फेंका और उसकी बुर से रिस्ते पानी से भीगी चड्डी के ऊपर से ही पदमा की चुत अपनी मुट्ठी में पकड़ ली और पदमा के होंठो को वापस अपने होंठों में भर लिया.. पदमा मादक और कामुक सिसकारियों से पुरे माहौल को चुदाईमय बनाये जा रही थी और अंशुल भी उसी राह पर अग्रसर था.. अंशुल ने पदमा की बुर के पास आते हुए धीरे धीरे चड्डी के ऊपर से ही पदमा की बुर चाटने लगा जिससे पदमा अपने दोनों हाथों से बिस्तर को अपनी मुट्ठी में पकड़ कर सिसकने लगी वहीं अगले ही पल अंशुल ने चड्डी भी उतार कर एक तरफ कर दी अब उसके सामने पदमा बिलकुल नंगी थी.. आज एक बेटे के सामने उसकी माँ पूरी तरह नंगी थी और अंशुल अपनी माँ की नंगी बुर के सामने था लम्बी लम्बी झांटो से घिरी हुई पदमा की गुलाबी बुर देखने में ऐसी लगती थी जैसे किसी अभेद किले को जंगल के बड़े बड़े पेड़ो ने चारो तरफ से घेर रखा हो.. अंशुल ने बिना वक़्त बर्बाद किया बुर से उठती भीनी भीनी महक को सुघते हुए पदमा की चुत को अपने होंठों से चुम लिया और फिर चटाई का दौर शुरु हुआ जिसमे पदमा के काममय सुकून और सिसकारियों की गर्जना से पूरा कमरा गूंजने लगा.. ऐसा लग रहा था जैसे दो प्रेमी प्रेमिका का मिलन प्रकृति स्वं अपनी देख रेख में करवाना चाह रही हो.. अंशुल ने जब चटाई में अपना पूरा अनुभव झोंक दिया तो पदमा ज्यादा देर तक बिना झड़े नहीं रह सकी और अंशुल के चेहरे पर ही झड़ गई और पदमा का पूरा बदन काँपने लगा उसके बदन की अकड़न उसकी दशा को साफ बया कर रही थी अंशुल के मुंह आज पहली बार अपनी माँ पदमा के काम रस का स्वाद लगा था जिसे वो चखता हुआ पदमा को देखने लगा पदमा की हालात बद से बदत्तर होती जा रही थी झड़ने के बाद उसे अंशुल से एक तरह की शर्म पैदा हो रही थी जिसे वो भी समझ नहीं पा रही थी पदमा बिस्तर पर पैर सिकोड़कर बैठ गई और अपना सर दोनों घुटनो के बीच देकर गहरी साँसे लेने लगी जैसे उसे किसी बात से डर लग रहा हो..
अंशुल बिस्तर पर अपनी नंगी सगी माँ के सामने बैठा था और पदमा को शरमाते हुए देख रहा था उसे महसूस हो रहा था पदमा किसी बात से घबरा रही है और उससे नज़र चुराने लगी है तभी अंशुल ने पदमा के सामने अपनी जीन्स पर से बेल्ट उतार दिया और फिर जीन्स का बॉटन उनहुक कर दिया और जीप खोलकर जीन्स नीचे सरका दी पदमा अपने आँखों के बिलकुल सामने कुछ दुरी पर अंशुल को ऐसा करते हुए छुपके से देख रही थी मगर उसमे इतनी हिम्मत नहीं बची थी की वो अंशुल से इसका समर्थन या विरोध कर पाए.. अंशुल भी पूरी तरह अपनी प्रकृतिक अवस्था में आ चूका था और पदमा भी पहले से ही नंगी बैठी थी..
अंशुल ने पदमा के चेहरे को उसके घुटनो से उठाते हुए एक मधुर चुम्बन कर उसके गर्दन और गाल को चूमने लगा पदमा की आँखों ना जाने कहा से एकाएक इतनी नमी आ गई वो जैसे किसी बात का शोक मनाने लगी मगर अब भी उसमे अंशुल का विरोध करने की क्षमता नहीं थी पदमा अंशुल की हर हरकत को अपना मोन समर्थन दे रही थी अंशुल ने वापस पदमा को बिस्तर पर लेटा दिया और उसकी आँखों में देखते हुए उसका एक हाथ पकड़ कर अपने खड़े लंड पर रख दिया और हलके से पदमा के हाथो अपना लंड सहलाने लगा पदमा अंशुल की आँखों में देखते हुए अपनी सोच में गुम थी की कैसे आज अंशुल इतना बेशर्म और बेपरवाह हो गया है पदमा तो हवस में अंधी थी मगर क्या अंशुल भी हवस में अंधा हो चूका है? और वो भी अपनी सगी माँ के लिए? पदमा के चेहरे पर ख़ामोशी थी उम्मीद थी और एक तरह की बेचैनी भी थी जिसे अंशुल नहीं समझ सका था पदमा कितनी भी हवस में अंधी क्यू ना हो जाए मगर आज वो अपने बेटे के साथ सम्बन्ध बनाने जा रही थी यही सोच उसे कचोट कचोट कर खा रही थी और यही बात उसे अब तक डराये हुए थी जो इस वक़्त से पहले तक तो उसके दिल के किसी कोने में दबी हुई थी मगर एकदम से वो बात उभरकर दिल के ऊपरी छोर पर आकर खड़ी हो चुकी थी जिसका जवाब पदमा तलाशने की कोशिश कर रही थी लेकिन अंशुल को उसने इस वक़्त कुछ भी करने से मना नहीं किया..
अंशुल जो चाह रहा था वो पदमा के साथ कर रहा था और पदमा अपने मातृत्व भाव से अंशुल को वो सब करने की इज़ाज़त दे रही थी मगर अब अंशुल पदमा के नारित्व को भंग करने वाला था अपने लंड से पदमा की चुत की गहराई नापने वाला था जिसे पदमा अच्छे से समझ रही थी पदमा के मन में तो अभी अंशुल के इस विशालकाय लंड को लेने और अपनी हवस भुझा लेने की इच्छा थी मगर क्या वो अपने सगे बेटे से और आगे जाकर नाजायज सम्बन्ध कायम कर सकती है? पदमा को ये सवाल खाये जा रहा था....
अंशुल ने पदमा की जांघ पकड़ कर टाँगे चौड़ी कर दी और अपने खड़े लंड का सुपाडा चुत के मुहाने पर टिका कर थोड़ा दबाब बनाते हुए एक हल्का सा झटका दिया तो सालों से बंजर देखती हुई आ रही पदमा की बुर में लंड का सुपाडा आसानी से घुस गया लेकिन जैसे ही पदमा को इसका अहसास हुआ उसने अंशुल को पीछे दक्का देकर बिस्तर पर गिरा दिया जिससे लंड चुत से बाहर निकल गया और पदमा बिस्तर से उतरकर खुली हुई खिड़की की तरफ आकर अंशुल से पीठ किये खड़ी हो गई और अचानक से आंसू बहाने लगी जैसे कुछ गलत हो गया हो..
पदमा ने अंशुल से अपने प्यार का इज़हार तो पहले ही कर दिया था मगर सम्भोग.. सम्भोग करने में उसे हिचकिचाहट होने लगी थी
उसे लगा था की समाज की बेड़िया तोडना आसान होगा मगर अब उसे इल्म हो रहा था की ये कितना मुश्किल है दोनों प्रेम करते थे मगर थे तो माँ बेटे..
पदमा को अचानक से इस बात का अहसास हुआ तो उसने अंशुल को धक्का देकर धकेल दिया और उठकर अलग हो गई थी कुछ देर पहले जहाँ उसकी आँखों में हवस चमक रही थी वहीं अब उसकी आँखों में नमी थी और आंसू की धारा प्रवाहित हो रही थी..
अंशुल को अचानक से पदमा में हुए इस बदलाव और उसके बर्ताव में आये परिवर्तन को समझने में सफलता नहीं मिली थी वो बिस्तर पर अपना लंड पकडे पदमा के वापस बिस्तर में आने का इंतेज़ार करता रहा था मगर जब वो नहीं आई तो अंशुल ही बिस्तर से खड़ा हो गया..
पदमा और अंशुल दोनों पूरी तरह से नंगे थे और काम देवता की आराधना में लीन थे मगर बीच में ही पदमा का मन रासलीला से उचट गया और वो अलग ख्याल में चली गई.. अंशुल ने पदमा को पीछे से गले लगा लिया जिससे उसका खड़ा हुआ लंड पदमा के चुत्तड़ चिरता हुआ चुत के चोबारे तक आ गया..
क्या हुआ पदमा? अंशुल ने पदमा के कान में धीरे से पूछा..
कुछ नहीं... आंसू पोछते हुए पदमा ने जवाब दिया..
बिस्तर पर चले? अंशुल ने पदमा के दाहिने बोबे को अपने पंजे में पकड़ते हुए पूछा..
अभी नहीं.. पदमा ने अपने बोबे पर से अंशुल की हथेली हटाते हुए कहा..
क्यू मन नहीं है? अंशुल ने पदमा को अपनी तरफ घुमाकर पूछा तो पदमा ने ना में सर हिला दिया और नीचे देखने लगी..
अच्छा ठीक है.. मैं मेरी पदमा के साथ कोई जबरदस्ती नहीं करूंगा, जब आपका मन होगा मैं तभी आपको प्यार करूंगा.. ओके.. अंशुल ये बोलते हुए इतना मासूम बच्चों जैसा चेहरा बनाया था की पदमा के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई और वो अंशुल की आँखों में देखते हुए उसकी बाहों में ही क़ैद रही और अंशुल उसे उठा कर बिस्तर में आकर लेट गया दोनों नंगे ही एक दूसरे से चिपके हुए सोने लगे.. पदमा ने भी कपडे पहनने की कोशिश नहीं की ना ही अंशुल ने ऐसा किया...
आशु....
हम्म..
मुझे एक बात सच सच बताओगे?
हम्म पूछो?
मुझसे कितना प्यार करते हो?
इतना... अंशुल ने पदमा को एक लम्बा चुम्मा देकर कहा..
आशु.. मज़ाक़ नहीं.. सच बताओ..
कैसे बताऊ? बोलो?
मेरे लिए क्या कर सकते हो?
सबकुछ..
सच?
बिलकुल सच..
झूठ तो नहीं कह रहे हो?
झूठ बोलू तो आप मेरा मरा मुंह देखो..
छी.. कैसी बात कर रहे हो.. दुबारा ऐसी बात मत करना..
अच्छा ठीक है..
तूम नाराज़ नहीं हो मुझसे..
नाराज़गी किस बात की? मैं जानता हूँ जो चीज़ मेरी है आज नहीं तो कल वो चीज़ मुझे मिलकर ही रहेगी..
अच्छा जी...
हम्म...
अगर मैं वो चीज़ ना दू तो? जबरदस्ती करोगे?
पांच फ़ीट की हो आप.. मैं छः फ़ीट का.. पचास किलो की हो आप.. मैं सत्तर का.. अगर जबरदस्ती करनी होती तो अब तक आप मेरे लंड पर बैठकर उछल रही होती..
हट बेशर्म.. कितना गन्दा बोलता है...
अभी गन्दा बोलना शुरु कहा किया है पदमा.. जल्दी से हां कह दो.. फिर देखना.. क्या क्या बोलता हूँ..
कभी नहीं बोलूंगी... समझें?
देखते है..
देख लेना बच्चू.. अच्छा सिगरेट पीना सिखाओगे मुझे?
अंशुल बेग से सिगरेट निकालकर एक बड़ी एडवांस पदमा के गुलाबी होंठो पर लगा देता है और लाइटर से सुलगा कर कश लेने को कहता है...
ऐसे नहीं माँ... देखो ऐसे... समझी..
हम्म्म... समझी..
पदमा दो ही कश में सिगरेट पिने का हुनर सिख चुकी थी एक चादर के नीचे दोनों माँ बेटे नंगे थे और पदमा सिगरेट के कश लगा रही थी..
ये क्या चुभ रहा है.. हटाओ ना.. पदमा ने अपने चुत्तड़ से अड़ता हुआ कुछ हटाते हुए कहा..
ये नहीं हटेगा पदमा.. ये तुम्हारे बेटे का लंड है.. अंशुल ने मज़ाकिया अंदाज़ में जवाब दिया..
अच्छा? पदमा ने अंशुल के मज़ाकिया अंदाज़ पर एक काम की दृस्टि डालते हुए कहा और सिगरेट के कश लेटी हुई चादर हटा दी और अपने बालों को बांध कर अंशुल के खड़े लंड को अपनी हथेली में पकड़ लिया..
अभी हटाती हूँ इस शैतान को... कहते हुए पदमा ने अंशुल के लंड को सिगरेट का कश लेने के तुरंत बाद धुआँ छोड़ते हुए अपने मुंह में भर लिया और अंशुल को मुखमैथुन का आनंद देने लगी....
आअह्ह्ह.... माँ... आह्ह.. पदमा.... आहहह...
क्या हुआ? इतने में ही हवाईया उड़ गई.. पदमा ने लंड मुंह से निकलकर सिगरेट के कश लेती हुई अंशुल को छेड़ने की नियत से देखकर बोली...
ई लव यू पदमा... ई लव यू... अंशुल ने पदमा के बाल पकड़ कर वापस अपना लंड उसके मुंह में ड़ालते हुए कहा और अपना लंड चूसाने लगा..
पदमा बीच बीच में सिगरेट के दम भरती हुई अंशुल के लंड को अपने मुंह में भरकर ऐसे चूस रही थी जैसे बच्चा लॉलीपॉप चूसता है..
पदमा की आँखों में भी बेशर्मी आ रही थी उसे पता ही नहीं चला की कब अंशुल ने उसे वापस काम की अग्नि में झोंक दिया था.. पदमा की दूसरी सिगरेट ख़त्म होते होते अंशुल ने अपनी सगी माँ पदमा के मुंह में पहली बार अपने वीर्य का दान कर दिया था जिसे मज़बूरी में ही सही पदमा को पीना पड़ा.. अंशुल पदमा का ये रूप देखते हुए पसीने पसीने हो चूका था.. बिगड़े हुए मौसम में आज अंशुल के साथ ये पहला सुकून भरा काम हुआ था जिसकी उसे ख़ुशी थी और वो इसका भगवान से शुक्रिया अदा कर रहा था.. पदमा ने वीर्य पिने के बाद अंशुल के लंड को चाटकर साफ करने की इच्छा से वापस लंड मुंह में भर लिया और चूसने लगी मगर अंशुल का लंड पदमा के ऐसा करने पर अगले ही पल अपनी पूरी औकात में आसमान को देखता हुआ खड़ा हो गया और पदमा हैरानी भरी आँखों से अंशुल को देखने लगी मगर अंशुल बच्चों जैसा मुंह बनाकर अनजान बनता हुआ पदमा को देखने लगा.. पदमा ने अंशुल को झूठा गुस्सा दिखाते हुए वापस सिगरेट जला ली और फिर से अंशुल के लंड की अपने मुंह से सेवा करने में लग गई.. इस बार ये सेवा लम्बी चलने वाली थी...
पदमा....
हह्म्म्मम्म?? पदमा ने लोडा चूसते हुए जवाब दिया..
लो.... तुम्हारे पति का फ़ोन है...
पदमा ने लोडा मुंह से निकलकर एक लम्बा सिगरेट का कश लिया और धुआँ छोड़ती हुई फ़ोन उठाकर कान से फ़ोन लगाती हुई बोली.. हां... बोलो..
बालचंद - कहा हो?
तुम्हारी अम्मा के घर.... आधी रात को याद आई है हमारी? कहते हुए पदमा ने फ़ोन स्पीकर पर डालकर अंशुल के लंड से कुछ ऊपर उसके पेट पर रख दिया और वापस ऊँगली से पकड़ी हुई सिगरेट के कश लेटे हुए अंशुल के लंड को पकड़ कर चूसने लगी..
बालचंद - अरे वो मुखिया जी से पता चला की पुल ढह गया है.. बहुत से लोग वहीं पुल पर फंसे है.. बरसात भी बहुत ज्यादा हुई है रुकने का नाम नहीं ले रही और नदी भी उफान पर है.. मुझे लगा कोई अनहोनी ना हो गई हो..
पदमा ने आशु का लंड अपने मुंह से निकाल कर बालचंद को तीखे स्वर में जवाब दिया.. तुम तो चाहते ही यही हो की हम माँ बेटे कहीं किसी नदी में डूब के मर जाए.. क्यू? तुम्हारी आँख में फूटे नहीं सुहाते ना हम दोनों..
बालचंद - अरे तुमको तो अब इस रात में भी मुझसे लड़ना है.. कभी इत्मीनान से दो घड़ी बात भी नहीं कर सकती.. मैंने तो खैर खबर लेने के लिए ही फ़ोन किया था.. आज मुझे भी बड़े बाबू के साथ बरसात के कारण ऑफिस में देरी हो गई थी..
अंशुल ने इसी बीच पदमा की उंगलियों में सुलग रही सिगरेट ले ली और इससे पहले की पदमा बालचंद की बात का वापस कोई बेढंगा सा जवाब देती अंशुल ने पदमा को किसी रंडी की तरह बाल से पकड़ लिया और उसके मुंह में अपना लोडा जड़ तक ठूस दिया जिससे पदमा की आँखे चौड़ी हो गई और फ़ोन अपने हाथ में लेता हुआ अंशुल बालचंद से बोला.. बारिश से परेशानी हुई थी लेकिन पुल के पास मेरा पुराना दोस्त रहता है... मैं और मम्मी यही आज रात रुके हुए है.. सुबह मौसम साफ होते ही हाईवे वाले रास्ते से घर आ जाएंगे..
बालचंद - अच्छा ठीक है.. मम्मी का ख्याल रखना..
अंशुल सिगरेट का एक लम्बा कश लेकर लंड चुस्ती हुई अपनी माँ पदमा के मुंह पर सिगरेट का धुआँ छोड़ते हुए बालचंद से बोला - आपसे से अच्छा ही ख्याल रखा है मम्मी का... चाहो तो पूछ लो.. अंशुल ने पदमा के मुंह से लंड निकाल कर फ़ोन पदमा की तरफ बड़ा दिया...
पदमा फ़ोन लेती हुई - तुम मेरी चिंता छोड़ दो.. मेरा आशु है मेरे पास..
बालचंद - अच्छा ठीक है भाग्येवान्....
अंशुल पदमा से फ़ोन लेकर - सुबह बात करता हूँ.. (फ़ोन काटते हुए)
माँ का ख्याल तो मेरा लंड रखेगा... कहते हुए अंशुल पदमा के मुंह में अपना लंड आगे पीछे करने लगता और पदमा से किसी रंडी की तरह ही बात करने लगता है जैसे पदमा अंशुल की माँ नहीं रखैल हो...
अंशुल कुछ ही देर बाद जब झड़ने वाला होता है वो अपना फ़ोन लेकर उसका वीडियो ऑन कर देता और लोडा पदमा के मुंह से निकाल कर अपना सारा मुठ पदमा के चेहरे पर गिरा देता है जिससे पदमा का पूरा चहरा अंशुल के मुठ से भर जाता है और अंशुल ये सारा मज़ा अपने फ़ोन गैलेक्सी s24 अल्ट्रा के कैमरे से बेस्ट क्वालिटी में रिकॉर्ड कर लेटा है जिसका पदमा को पता नहीं चलता..
hoyt pool
पदमा बनावटी गुस्से में अंशुल के लंड पर दो तीन हलकी हलकी चपत लगाती हुई नंगी ही कमरे के बाहर बने बाथरूम में चली जाती है मुंह साफ करने लगती है.. अंशुल भी पीछे पीछे हाथो में तौलिया लेकर बाथरूम में घुस जाता है और पदमा जैसे ही मुंह धोकर मुड़ती है अंशुल बड़ी प्यार से पदमा का चेहरा अपने हाथो के तौलिये से साफ करता हुआ पदमा से कहता है...
अब तो हां कर दो मेरी पदमा रानी..
पदमा मुस्कुराते हुए अंशुल के गाल पर अपने दांतो से हल्का सा काटती हुई कहती है.. नहीं... नहीं.... नहीं... नहीं करूंगी हां...
अंशुल पदमा की छाती पर तने हुए बोबे को अपने दोनों हाथो से पकड़कर पदमा को बाथरूम की दिवार से सटा देता है और पदमा के तने हुए दोनों चुचे के दाने मसलते हुए कहता है.. और कितना तड़पाओगी माँ?
आह्ह... आशु आहिस्ता.... ज्यादा जोर जबरदस्ती करोगे तो जो कर रहे हो वो भी नहीं कर पाओगे... समझें?
जबरदस्ती अभी आपने देखी ही कहा है माँ.. एक बार हां बोल तो आपकी कसम आपको तारे दिखा दूंगा..
बड़े आया तारे दिखाने वाला... हटो जाने दो.. मुझे..
अंशुल ने बाथरूम से रूम में जाती हुई पदमा के पीछे हिलते हुए कुल्हो पर एक जोर की चपत लगाई तो पदमा के मुंह से आह... निकल गई और वो अपने चुत्तड़ मसलते हुए नंगी ही बिस्तर में आकर लेट गई और चादर ओढ़ ली.. कुछ ही पल बाद अंशुल भी वहा आ गया और पदमा को पीछे से गले लगता हुआ चादर ओढ़कर पदमा के साथ बिस्तर ने लेट गया..
जब आपके मन में हां है तो होंठों पर ना क्यू है? अंशुल ने हलकी सी आवाज में पदमा के कान में कहा तो पदमा ने मुड़कर अंशुल को एक नज़र हैरानी से देखा और फिर वापस मुड़कर अंशुल का हाथ अपने चुत्तड़ पर से हटाटी हुई बोली.. तुमसे किसने कह दिया मेरे मन में हां है?
अंशुल ने पदमा को अपनी तरफ मोड़ते हुए कहा - अगर आपके होंठों की तरह आपके मन में भी ना होती तो आप इस वक़्त मेरी बाहों में इस तरह नंगी नहीं लेटी होती.. मैं जानता हूँ कोई ना कोई ऐसी बात जरूर है जो आपको मेरे साथ एक होने से, हमबदन होने से रोक रही है.. मैं नहीं जानता पदमा.. वो क्या बात है मगर आज नहीं तो कल मैं जरुर उस बात को जान जाऊँगा और उसे ख़त्म करके आपको हमेशा के लिए अपना बना लूंगा.. मेरे लिए अब इस जहान में आपसे बड़ी और कोई चीज़ नहीं है.. ई लव यू पदमा..
पदमा ने अंशुल की बातें सुनकर हँसते हुए अंशुल के लबों पर एक छोटा सा चुम्मा करते हुए कहा - अच्छा जी.. अब मिस्टर अंशुल... मुझे यानी अपनी सगी माँ को अपनी बीवी बनाना चाहते है? इतना आसान नहीं है बच्चू.. मेरा नाम पदमा देवी है पदमा देवी.. तुम्हरी इन मीठी मीठी बातों और झाँसों में आकर मैं हां नहीं बोलने वाली....
अंशुल ने पदमा को अपने नीचे लेटाकर उसके ऊपर आते हुए कहा - मेरी सगी माँ नंगी होकर आज इस बिस्तर पर मेरे नीचे तो आ गई है... देखना जल्दी ही हां बोलने के बाद मेरे लंड के नीचे भी आ जाओगी.....
पदमा - ख्याब देखो आशु.... वहीं सच होंगे... समझें... मैं इस तरह तुम्हारे साथ हूँ ये तो बस तुमने जो मेरा इतना ख्याल रखा है और मुझपर इतना सारा खर्चा किया उसके बदले है जो मैं तुम्हारा दिल बहला रही हूँ वरना मुझे नंगा देखना तो दूर तुम बस मेरे तंग ब्लाउज में मेरे मोटे मोटे थनों की दरार देखते हुए ही दिन बिता रहे होते.. मैं सब जानती हूँ.. तुम मेरे बेटे हो मगर मर्द भी तो हो..
अंशुल पदमा की बात ख़त्म होने पर उसे चूमने ही वाला था की दरवाजे पर दस्तक हो गई...
कौन आया है? पदमा ने अंशुल की आँखों में देखते हुए हैरानी से कहा..
मैं देखता हूँ.. अंशुल ने जवाब दिया और बिस्तर से उठकर बदन पर तौलिया लपेटता हुआ दरवाजे की तरफ मुड़ गया..
जी भाभी...
कंचन एक मैक्सी पहने अंशुल के सामने दरवाजे के बाहर की तरफ खड़ी थी कमरे में बिस्तर ऐसे लगा हुआ था की कंचन को अंदर की हालात का अंदाजा नहीं हो सकता था..
जी... इन्होने कहा है आपको ये टोर्च और मोमबत्ती देने के लिए.. कंचन ने कहा..
शुक्रिया भाभी... कहते हुए अंशुल ने दरवाजा वापस बंद कर दिया और कंचन नीचे चली गई.. अंशुल और पदमा को रासलीला में इस बात का ध्यान ही नहीं रहा की लाइट कब की जा चुकी है और वो दोनों कब से अँधेरे में ही एकदूसरे से बाते कर रहे थे..
कंचन नीचे आई तो देखा की मंकू बाहर की तरफ खड़ा सिगरेट के कश लगता हुआ होती बरसात को देख रहा था.. कंचन ने पीछे से जाकर मंकू को अपनी बाहों में भर लिया और कान में धीरे से कहा.. क्या हुआ देवर जी.. ऐसे मौसम में एक बार में ही अपका मन अपनी भाभी से भर गया?
मंकू ने सिगरेट का अगला कश लेकर सिगरेट बाहर फेंक दी और कंचन को अपनी गोद में उठाकर बिस्तर की तरफ चल दिया.. कंचन और मंकू फिर से चुदाई करने लगे वहीं अंशुल पदमा के साथ लेटा हुआ उससे प्यार भरी बातें करने लगा....
भोर का समय हो चूका था कंचन मंकू की बाहों में से अंगड़ाई लेटी हुई उठी और घर के काम में लग गई बच्चा अभी भी पालने में चैन से सो रहा था वहीं पदमा भी अब अंशुल की बाहों से खुदको छुड़ाती हुई बाथरूम में जाकर नहाने लगी थी.. रातभर अंशुल ने पदमा के साथ हर वो काम किया था जो एक पति और पत्नी के बीच हो सकता था बस दोनों में चुदाई अभी तक नहीं हुई थी पदमा ने सारी रात अंशुल को तरसाया था और अपनी बुर खोदने से दूर रखा था अंशुल भी पदमा को मनाता हुआ उससे खुल चूका था और हर तरह की बाते दोनों के बीच हो रही थी.. अंशुल ने पदमा की चुत तो नहीं ली थी मगर दिल और मन दोनों ले चूका था पदमा को उसकी किसी भी हरकत पर सिर्फ प्यार आ रहा था जिससे अंशुल समझ गया था पदमा ज्यादा देर तक उससे दूर नहीं रह पाएगी और खुद ही आकर उससे मिलन की बात कह देगी..
सुबह का मौसम साफ था धुप खिल चुकी थी अंशुल ने मंकू से विदा लेकर पदमा के साथ हाईवे वाले रास्ते आ गया था पदमा ने इस बार अंशुल को पूरा कसकर पकड़ा हुआ था जैसे एक प्यार में पड़ी लड़की अपने प्रेमी को पकड़ती है अंशुल को इसका पूरा अंदाजा था.. घर पहुंचते पहुंचते दोनों को ग्यारह बज चुके थे बालचंद से बाते हुई तो पता चला वो अपनी चपरासीगिरी करने ऑफिस गया है पदमा ने घर पहुंचते ही फैले हुए सामान को समेटना और घर का काम करना शुरु कर दिया अंशुल भी अपने रूम में जाकर किताबो में खो गया उसने पदमा से सम्भोग के बारे में जोर जबरदस्ती करना सही नहीं लगा था उसे जल्दी बाज़ी में अपना मुंह नहीं जलाना था सो वो अपने कमरे में किताबो में ही खोया रहा और दिन के तीन बजे तक कमरे से बाहर नहीं आया.. इस वक़्त पदमा घर का काम करके आराम फरमा रही थी उसने अंशुल को नीचे आते देखा तो बिस्तर से खड़ी होकर बोली - आशु.. मौसी से फ़ोन बात करवा दो..
अंशुल ने जैसे ही अपने फ़ोन का लॉक खोलकर पदमा के हाथो में फ़ोन दिया, फ़ोन देखते ही पदमा का दिल रुक सा गया और वो फोन बंद करके रसोई में पानी पीते हुए अंशुल की टीशर्ट को गिरेबान से पकड़ कर बोली - चुपचाप फ़ोन से ये तस्वीर हटाओ..
अंशुल मुस्कुराते हुए - पर देखो ना... कितनी प्यारी लग रही हो आप इसमें...
पदमा गुस्से से - मुझसे ना ज्यादा चालाकी मत करो समझें? अपनी माँ की नंगी तस्वीर को फ़ोन पर लगाया हुआ है शर्म नहीं आती? मेरे पुरे चेहरे पर तुमने अपना... छी... जल्दी से बदलो इसे और कल रात जितनी तस्वीर ली है तुमने मुझे अभी दिखाकर डिलीट करो.. वरना..
अंशुल मुस्कुराते हुए - वरना क्या?
पदमा गुस्से से - वरना तुझसे बात तक नहीं करुँगी... पदमा ऐसा कहकर जाने लगी तो अंशुल ने उसका हाथ पकड़कर अपनी बाहों में भर लिया और गाल पर एक चुम्मा देकर कहा - अच्छा ठीक है बाबा.. लो तुम ही डिलीट कर दो.. अब तो खुश?
पदमा ने फ़ोन लेकर कल रात की सारी तस्वीर डिलीट कर दी और अंशुल के साथ अपनी एक क्यूट सी तस्वीर खींच कर फ़ोन पर लगा दी फिर अंशुल को देखती हुई बोली.. आइंदा बिना बताये तस्वीर ली तो देखना..
अंशुल - अच्छा ठीक है मेरी माँ... एक कप चाय बना दोगी? बहुत नींद आ रही है..
पदमा गैस पर चाय चढ़ाते हुए - पूरी रात जागोगे तो नींद ही आएगी..
अंशुल - मैं तो सो जाऊ माँ.... पर आपका ये आशिक सोने ही नहीं देता..
पदमा ने पलटकर देखा तो अंशुल ने लोवर नीचे सरका कर अपना लंड बाहर निकाल लिया था जो एकदम लोहे की तरह कड़क था जिसे दिन के उजाले में साफ साफ देखकर पदमा शर्म से लाल हो गई थी और शरमाते हुए मुंह फेर लिया था..
अंशुल में पदमा का हाथ हलके से पकड़कर अपनी तरफ खींचा तो दूसरे हाथ से पदमा ने गैस का फ्लेम बिलकुल कम कर दिया और अपनेआप ही अपने घुटनो पर बैठकर अंशुल के लंड को अपने दोनों हाथो से पकड़ते हुए आगे पीछे करने लगी.. उसने अंदर की हवस एक दम बाहर आ गई थी अंशुल और पदमा की नज़र इस दौरान मिलती तो अंशुल मुस्कुराते हुए पदमा को आँख मार देता और पदमा शरमाते हुए अंशुल का लंड हिलाते हुए मुस्कुराने लगती.. अंशुल ने कुछ देर बाद पदमा के सर को पकड़कर लोडा उसके मुंह में ठूस दिया और चूसाने लगा वहीं चाय के उबाल आने पर चाय छन्नी करके चाय पीते हुए अपनी माँ से लोडा चूसाईं का मज़ा लेने लगा..
पदमा पूरी मेहनत और लग्न से अंशुल का लंड ऐसे चूस रही थी जैसे वो बॉलीवुड की महंगी एक्ट्रेस/रांड हो.. अंशुल की चाय ख़त्म होने के काफी देर बाद पदमा को मुंह में अंशुल के वीर्य की धार बही जिसे पदमा ने आँख बंद करके अपने गले से नीचे उतार लिया और अपने ऊँगली से अपने होंठ साफ करती हुई खड़ी हो गई और बिना कुछ बोले रसोई से निकलकर रूम में आ गई अंशुल भी अपना लंड लोवर में डालकर पानी की बोतल लेकर ऊपर अपने रूम में चला गया और शाम होने पर बालचंद भी घर में आ गया, माहौल शांत था....
बालचंद खाना खाकर सोने की तयारी कर रहा था वहीं पदमा खाने की थाली त्यार कर अंशुल के रूम की तरफ बढ़ गई और दरवाजे में दाखिल होते हुए अंशुल को किताबो में उलझें देखा तो मुस्कुराते हुए खाने की थाली सामने रखकर अंशुल के सर पर हाथ फेरकर पहले खाना खाने को कहने लगी और फिर वापस नीचे आ गई अंशुल ने इस बार पदमा को नहीं रोका और खाना खाने लगा....
करीब एक घंटे बाद जब पदमा खाना खाने के बाद अंशुल के रूम में उसकी झूठी थाली लेने पहुंची तो अंशुल ने पदमा को अपनी बाहों में भर लिया और पीछे सिंगल चारपाई पर गीर गया.. अंशुल ने पदमा की साडी उच्ची करके उसकी चुत को चूसकर उसका रस निकाल दिया था पदमा ने भी अंशुल का सर पकड़कर उसे अपनी चुत चूसाने में मदद करने का काम बखूबी किया था मगर हिलती चारपाई और आह भरती पदमा ने अंशुल को अब भी अपनी गुफा में प्रवेश की इज़ाज़त नहीं दी थी..
आह्ह.. आशु बेड चुबता है...
कहा चुबता है...
पीछे पीठ में.. पदमा ने अपनी पीठ की तरफ इशारा करते हुए अंशुल से कहा..
अंशुल - थोड़ा नीचे आ जाओ...
नहीं.. अब जाने दे... पदमा ने कहा और बेड से उठकर अपनी साडी ठीक करती हुई नीचे चली गई.. उसकी चुत अंशुल के चाटने से दो बार झड़ी थी और पदमा मुस्कुराते हुए झूठी थाली लेकर नीचे आ गई थी..
बालचंद सो चूका था और पदमा भी बर्तन साफ करने के बाद चैन की नींद में सो गई थी..
पदमा ओ पदमा.... अरे मेरा फ़ोन देखा तुमने? पदमा??
सुबह के साढ़े आठ बज रहे थे और पदमा छत पर बने एक छोटे से कमरे में अंशुल के साथ पिछले 15 मिनट से चोंच लड़ा रही थी अंशुल और पदमा की जीभ आपस में ऐसे मिल रही थी जैसे रस्सी के दो बल आपस में मिलते है.. पदमा कपडे उतारने छत पर आई थी मगर अंशुल ने उसे अपनी बाहों में भर लिया और यहां लाकर रासलीला करने लगा था.. बालचंद की आवाज से दोनों के होंठ अलग हुए तो दोनों के होंठो पर मुस्कान थी..
हट... अब जाने दे... बेशर्म कहीं भी पकड़ लेता है..
अच्छा आखिरी किस्सी तो दे दो...
अब उस भालू के जाने के बाद ही कुछ मिलेगा....
अच्छा ठीक है.. अंशुल ने मुंह लटकाते हुए कहा तो पदमा को आशु के चेहरे पर तरस आ गया और वो उसे एक हल्का सा चुम्मा देकर मुस्कुराते हुए कपडे लेकर नीचे चली गई..
फ़ोन कहा है मेरा?
अरे आखों के अंधे रसोई में तुमने ही तो चार्ज पर लगाया था.. ये देखो..
अच्छा ठीक है.. खाना का डिब्बा दे दो.. आज देर हो जायेगी.. बड़े बाबू की मीटिंग है.. उन्होंने साथ रहने को कहा है..
पदमा खाने का डब्बा बालचंद को देते हुए बोली.. सारी जिंदगी.. लोगों की जी हुज़ूरी में ही बिता देना.. चपरासी कहीं के..
बालचंद डिब्बा लेकर चला जाता है.. और पदमा घर के बाकी कामो में लग जाती है अंशुल भी कुछ देर बाद अपनी बाइक लेकर बाजार की तरफ चल पड़ता है..