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Incest आशु की पदमा

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अध्याय 3
धन्नो काकी....


अगले दिन सुबह जब पदमा अपने कपडे और शर्म उतारकर अपने बेटे अंशुल की बाहों मे सोई हुई थी तभी अंशुल के फ़ोन की घंटी बजी जिसकी आवाज़ सुनकर दोनों की नींद खुली और अंशुल बिस्तर मे बजते हुए फ़ोन को तलाशने लगा जो चादर के नीचे कहीं दबा हुआ उसे मिला......
पदमा - किसका फ़ोन है?
अंशुल - काकोड़ी से है.....
पदमा - ला दे...
फ़ोन उठाते हुए - हेलो.... हां....कब? अब कैसी तबियत है? नहीं मैं अभी आ रही हूँ...तुम ख्याल रखो उनका..
अंशुल - क्या हुआ?
पदमा कपडे समेटकर बाथरूम जाते हुए - दीदी को फिर से दौरा आया है... अस्पताल मे भर्ती है..
अंशुल - मैं नीचे आपका इंतजार कर रहा हूँ....
पदमा - नहीं... मैं बस से चली जाउंगी.. तुम आराम करो...

पदमा जल्दी जल्दी मे नहाकर त्यार हो गई.. वहीं अंशुल काफ़ी देर से अपना मुँह हाथ धोकर बाहर बाइक पर बैठे पदमा का इंतजार कर रहा था...
अरे मैं बस से चली जाउंगी... कहा तू इतना दूर आए-जाएगा?
आप चुपचाप बैठो.. और ये बेग मुझे दे दो....
अंशुल अपनी माँ के हाथो मे से एक छोटा सा बेग लेकर अपने आगे रखते हुए बाइक स्टार्ट करता है और पदमा अंशुल के पीछे बैठ जाती है...
काकोड़ी यहां से 40 किलोमीटर की दुरी पर था रास्ता टूटी फूटी सडक से भरा था बस से ये रास्ता अढ़ाई घंटे मे तय होता था और बाइक से डेढ़ घंटे मे...

अंशुल अपनी माँ पदमा को मौसी गुंजन के पास अस्पताल ले आया था जहा नींद के इंजेक्शन से गुंजन सो रही थी और उसके आस पास कुछ लोग खड़े थे....
गुंजन विधवा हो चुकी थी एक लड़की के माँ बनने का सौभाग्य उसे प्राप्त हुआ था जिसकी शादी हो चुकी थी लेकिन दामाद लालची और घरजमाई दोनों था.. बड़े धनवान घर मे ब्याह हुआ था सो दौलत की कमी नहीं थी.. गुंजन की बेटी रूपा और जमाई सुरेंद्र वहीं अस्पताल मे थे... अंशुल को सुरेंद्र जरा भी पसंद नहीं था एक बार तो उसने सबके सामने सुरेंद्र को झाड़ दिया था बस बहुत हँसे थे सुरेंद्र पर... रूपा ने उसका बदला अंशुल के गाल पर तमाचा मारकर लिया था.. रूपा बुरी नहीं थी.. पर सबके सामने अपने पति की बेज्जती सह न सकी थी आखिर वो चाहे जैसा भी हो उसके साथ रूपा का भी तो आत्मसम्मान जुड़ा था.... रूपा ने अंशुल से माफ़ी भी मांगी थी मगर अंशुल ने उस दिन के बाद से रूपा से बात करना बंद कर दिया था...
अंशुल ने डॉक्टर से बात की तो डॉक्टर ने उसे गुंजन की हालत के बारे मे सब सच बता दिया और गुंजन का ख्याल रखने को कहा... अंशुल ने पदमा को डॉक्टर के कहे अनुसार गुंजन का पूरा ध्यान रखने की बात कही जिसे सुनकर पदमा ने कुछ दिन गुंजन के साथ ही रहने का फैसला किया....
अंशुल जब वापस जाने लगा तो रूपा ने अंशुल का हाथ पकड़ लिया और उसके गले से लग गई.. बेचारी रूपा कुछ कह ना सकी थी..
रूपा की आँखों से आंसू की धार बह निकली थी जिसने अंशुल के दिल को पिघला दिया था वो उस दिन के बाद आज रूपा को रोते से चुप करता हुआ उससे बोला..
दीदी रोओ मत....
डॉक्टर ने कहा मासी ठीक है...
वो कुछ दिनों मे पहले जैसी हो जायेगी....
बस उनका ख्याल रखना होगा...
आप प्लीज चुप हो जाओ...
आपको मेरी कसम, रोना बंद करो....

रूपा इतना जोर से अंशुल को पकड़ा था की अंशुल को अपनी पीठ मे रूपा के कंगन चुभ रहे थे... अंशुल ने जैसे तैसे रूपा को चुप करवाया और अस्पताल मे रखी बैंच पर बैठाते हुए उसके आंसू पोंछकर रूपा को किसी बच्चे की तरह समझाया की सब ठीक है और कुछ देर ऐसे ही उसके पास बैठा रहा जब तक रूपा उसके कंधे पर सर रखकर सो नहीं गई...
सुरेंद्र तो बस जैसे कोई औपचारिक तौर पर वहा था उसे किसी से कुछ लेना देना नहीं था वो फ़ोन मे कोई गेम खेल रहा था शायद टाइमपास कर रहा था...

अंशुल पदमा को वहा छोड़कर शाम को वापस घर आ चूका था आज ये घर उसे बिलकुल सुना लगा रहा था जहा उसके अलावा कोई नहीं था..
वो अपने कमरे मे जाकर अपनी किताबो मे खो गया और 5-6 दिन तक तो जैसे उसे किसी चीज का होश ही नहीं था.. वो फ़ोन पर पदमा से बात करता था जो उसे गुंजन के धीरे धीरे ठीक होने की खबर सुनाकर अपने दिल का हाल भी सुना देती थी.....
सातवे दिन की रात को अंशुल के दिल और लिंग दोनों को पदमा की याद बहुत ज्यादा परेशान करने लगी तो अंशुल बाथरूम की दिवार पर अपनी माँ की याद मे वीर्य के धार छोड़ आया था और अचेत होकर सो गया था.....

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धन्नो काकी

धन्नो के घर मे चन्दन के ब्याह की तेयारी जोर-शोर से चल रही थी घर पुराना मगर बड़ा था.. आगे दरवाजा और दरवाजे के दोनों तरफ दो कमरे... फिर आँगन और आँगन मे बाई तरफ रसोई... आँगन के बाद पीछे एक बड़ा सा कमरा और उस कमरे के पीछे थोड़ी सी जगह, जहा चूल्हे के लिए लकड़िया और बाकी चीज़े रखी थी......
सूट आ गया है..
चन्दन भईया से कह दो एक बार पहन के देख ले.. छोटा बड़ा करवा है तो टाइम से हो जाएगा....
और ढ़ोल-बाजे वाले को भी अच्छे से समझा दिया है.... हलवाई भी समय से आ जाएगा बाकी की सारी तयारी भी हो चुकी है....
अब कोई काम बाकी नहीं रहा काकी....
अंशुल ने धन्नो के घर के आँगन मे बिछी खाट पर बैठते हुए ये सब एक सांस मे धन्नो से कह गया था..
आज सुबह से वो चन्दन के ब्याह की तयारी मे लगा था और दिन के 3 बज गए थे खाने तक की फुर्सत नहीं मिली थी...

धन्नो अपनी पड़ोसन गुल्ली के साथ आंगन मे गेहूं छान रही थी जिसे सब गुल्ली ताई कहते थे..
धन्नो - अरे आशु... वो बाजार मे लल्लू सोनार के यहां बहु के लिए गहने बनवाये थे... वो ले आया?
अंशुल - मुझसे कब लाने के लिए कहा था काकी? वो चन्दन भईया लाने वाले थे?
धन्नो - चन्दन तो शहर चला गया.... कल आएगा...
अंशुल - भूल गया होगा काकी.. तुम ऐसा करो मुझे गहने की पर्ची दे दो मैं बाजार जाकर ले आऊंगा... बाइक पर ज्यादा समय नहीं लगेगा.....
धन्नो - तेरी मोटर तो चन्दन लेकर चला गया.. उसका दोस्त गोपाल भी साथ मे था... और पर्ची भी उसी के पास है... बिना पर्ची वो लल्लू चोर.. कहा तुझे गहने देगा.... और गहने भी आज ही लाने जरुरी है लल्ला.. कल तो टाइम ही नहीं मिलेगा... 2 दिन बाद तो बारात जानी है...
अंशुल - अब क्या करे काकी....
धन्नो - तू ठहर लल्ला.... मैं भी तेरे संग बाजार चलती हूँ....
अंशुल - पर टैम्पो या तूफ़ान से तो वापस आते आते अंधेरा हो जाएगा...
धन्नो - जाना तो पड़ेगा लल्ला.... गुल्ली ताई मैं आशु के साथ बाजार जाती हूँ तुम घर पर ही रुकना...

धन्नो अंशुल के साथ कस्बे के पुराने मोड़ पर बाजार जाने वाले साधन के इंतजार मे खड़ी थी उसके सामने से अभी अभी एक तूफ़ान जीब लोगों से खचाखच भरके वहा से रवाना हुई थी धन्नो और अंशुल दोनों ने देखा था कैसे लोग एक दूसरे के उपर गिर पड़ रहे थे औरतों का तो कहना ही क्या था.. कुछ बेचारी छोटी छोटी जगह मे मर्दो से चिपकी हुई बैठी थी तो कुछ अपने साथ आये मर्दो के साथ उनकी गोद मे बैठी थी.... मज़बूरी मे हर कोई इस बात को नज़र अंदाज़ कर रहा था की इस भीड़ मे कई महिलों और लड़की के निजी अंगों को कुछ मनचले अपने हाथो से छेड़ रहे थे... धन्नो तो पहले से इस तरह आने जाने की आदि थी लेकिन अंशुल को ये सब पसंद नहीं था.. 11 km दूर था बाजार इस कस्बे से और करीब एक घंटे का समय लगता था इस तरफ से एक तरफ के सफर मे....

धन्नो - लल्ला बस तो ना आने वाली शांझ तक इसी जाना पड़ेगा....
अंशुल - पर काकी इतनी भीड़ मे कैसे?
धन्नो - लल्ला अब जाना तो पड़ेगा.... और लोग भी तो जा रहे है...
इस बार धन्नो ने ज़िद करके जीभ के अंदर अंशुल को बैठा दिया और खुद उसके पास बैठ गई...
अरे आंटी जी जरा आगे उठ के बैठो अभी तो कई स्वारी आनी बाकी है... कंडक्टर ने धन्नो से कहा तो धन्नो जरा सी उठकर अंशुल की दायी जांघ पर खिसक कर बैठ गई.... अंशुल कुछ ना बोल सका था उसे ऐसे सफर करने की जरा भी आदत नहीं थी.. देखते ही देखते कुछ मिनटों मे खचाखच जीब भर गयी और कई लड़किया और महिलाये सीट पर बैठे आदमियों की गोद मे बैठे गई थी...
अंशुल को सब कुछ अजीब लगा रहा था पूरी तरह से पैक होकर जीभ चल पड़ी थी और साथ की छेड़खानी भी शुरु हो चुकी थी.... जीब के चलते ही सडक के एक खड्डे मे गाडी का टायर पड़ा तो सब उछल पड़े.. धन्नो पर उछल कर अब सीधे अंशुल की जांघ से उसकी गोद मे आ गिरी थी..
अंशुल तो जैसे शर्मा ही गया था.. धन्नो को अब थोड़ा आराम महसूस हो रहा था की वो अब ठीक से अंशुल की गोद मे बैठ गई थी और उसे इस बात से जरा भी फर्क नहीं पड़ रहा था.... गाडी कजच पांच साथ मिनट चली होगी की उबड़ खाबड़ रास्ते की हलचल और झटको से धन्नो अंशुल की गोद मे बार बार उछलने लगी थी जिससे अंशुल बहुत अनकन्फ्टेबल हो रहा था और उसका लिंग धन्नो काकी की उछलती हुई गद्देदार गांड का स्पर्श पाकर पेंट मे ही सख्त हो चला था जिसे अब धन्नो आसानी से महसूस कर रही थी...
धन्नो ने खुदको ढीला छोड़ दिया था जिससे उसकी पीठ अंशुल के सीने से चिपक गई थी और दोनों के गाल आपस मे रगड़ खा रहे थे..
धन्नो के पूरी तरह विकसित स्तन कच्चे रास्ते पर गाडी की चाल से ऊपर नीचे हिल रहे थे जिसे धन्नो ने अपनी गोद मे रखे छोटे से बेग और अपनी साडी के पल्लू की मदद से सबसे छुपा रखा मगर अंशुल की आँखों के सामने ये नज़ारा बिलकुल साफ साफ चल रहा था जिसे धन्नो जानती थी बार बार अपनी आँखों से अंशुल की आँखों की तरफ देख रही थी...
अंशुल बार बार धन्नो की आँखों से पकड़ा जाता और नज़र घुमा लेता.. धन्नो को अंशुल का इस तरह शर्मा अद्भुत सुख दे रहा था जिसे धन्नो ही सुना सकती थी धन्नो विधवा थी और बहुत सालो से उसे देह का सुख नहीं मिला था मगर आज अंशुल का चुबता लिंग और छुप छुप के उसके हिलते स्तन देखना उसे औरत होने का अहसास करवाने के साथ ही अकल्पनीय कामसुख के सागर मे डूबा रहा था....
घंटेभर इसी तरह दोनों ने एक दूसरे के साथ चिपके हुए सफर किया फिर जीब बाजार आकर्षित रुक गई...
धन्नो तो झट से अंशुल की गोद से नीचे उतर गई मगर अंशुल को अपनी पेंट सँभालने मे समय लगा गया था जिसे धन्नो ने बड़े मज़े लेते हुए देखा था....
जीब से उतरने के बाद दोनों ही एक दूसरे से बात करने से बच रहे थे और चुपचाप साथ साथ चल रहे थे.. सोनार ने गहने देते देते सांझ कर दी थी दोनों को अब बाजार मे ही शाम हो गई थी अंधेरा भी होने लगा था...
वापस कस्बे के लिए स्टैंड पर खड़े अंशुल और धन्नो के मन मे बस से जाने की ज़रा भी इच्छा नहीं थी वो उसी तरह जाना चाहते थे जैसे आये पर कौन अपने दिल की बात कहे?
बस आई तो अंशुल एक हाथ मे सामान का बेग पकडे दूसरे हाथ मे धन्नो काकी का हाथ पकड़ कर बस मे चढ़ गया.... दोनों के चेहरे उतरे हुए थे... वो दोनों ही बस से वापस जाना नहीं चाहते थे मगर जा रहे थे...
कंडक्टर - सिर्फ मीरपुर वाले ही चढ़ना.... सिर्फ मीरपुर वाले ही चढ़ना... सिर्फ मीरपुर...
किसी ने कहा - अरे ***** नहीं जायेगी क्या?
कंडक्टर - नहीं..... सिर्फ मीरपुर.....
अंशुल और धन्नो के दिल मे जैसे ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी थी...
दोनों वापस बस से नीचे उतर गए थे और पीछे खचाखच भरी जीभ की तरफ चले गए.....
आ जाओ बहन जी... पूरी खाली है.. कहते हुए जीब के ड्राइवर ने धन्नो को पीछे आखिर बची सीट पर बैठने के लिए कहा...
जीभ पहले से भरी हुई थी मगर थोड़ी सी जगह बाकी रह गई थी जिसमे एक शख्स सिकुड़कर बैठ सकता था...
बहनजी इससे खाली नहीं मिलेगी... आज की आखिर जीब है इसके बाद कोई साधन नहीं है...
इस बार अंशुल बिना कुछ कहे या पूछे उस जगह बैठ गया और उसके बाद धन्नो अंशुल की गोद मे आ बैठी और कंडक्टर ने जीब का दरवाजा पीछे से बंद कर दिया... अंधेरा हो चूका था उसपर जीब के चलने के बाद गाडी की लाइट भी बंद कर दी गई थी....
इस बार अंशुल ने शुरुआत मे ठीक से धन्नो को अपनी गोद मे बैठा लिया और अँधेरे का फ़ायदा भी उसे मिला था.. धन्नो ने वापस अपने को ढीला छोड़ दिया था जिससे उसकी पीठ वापस अंशुल के सीने से जा मिली थी और दोनों के गाल आपस मे टकरा रहे थे इस बार धन्नो के हिलते मादक स्तन केवल अंशुल ही देख सकता था और देख रहा था जिसपर धन्नो अब कुछ नहीं कर रही थी ना ही उसे देखकर शर्मिंदा कर रही थी....
कहते है बड़े बड़े साधु महात्मा का ध्यान और ईमान औरत के कारण भंग हुआ था तो अंशुल तो फिर भी एक साधारण नौजवान लड़का था जिसमे काम की पीपासा भरपूर थी तो वो कैसे इस आकर्षण से बच सकता था? 15-20 मिनट के सफर के बाद अंशुल को महसूस हुआ की उसने अपनी गोद मे बैठी धन्नो काकी के पल्लू के अंदर अपना हाथ डाला हुआ है और उसकी उंगलियां अपने आप धन्नो के स्तन पर अपना दबाब बना रही है जिसपर धन्नो की तरफ से उसे कोई आपत्ति महसूस नहीं हो रही थी थी....
कई दिनों से बिना सम्भोग के अंशुल का मन विचलित हो रहा था और ऊपर से आज धन्नो जैसी आकर्षक उभरो वाली महिला का उसके गोदमें होना उसकी काम इच्छा को और प्रबल बना दिया था...

अंशुल काम की वासना मे बहक गया और अपने दोनों हाथो को धन्नो की साडी के पल्लू के अन्दर डालकर अपने हाथो के दोनों पंजो से धन्नो के ऊपर नीचे हिलते हुए स्तनों को अपनी गिरफ्त मे लेकर एक बार जोर से मसल दिया...
धन्नो ने बिलकुल धीमी आवाज़ मे अंशुल के काम मे कहा - आशु आहिस्ता........
धन्नो के मुँह से सिर्फ ये दो लफ्ज सुनकर अंशुल का सारा डर छुमंतर हो गया और वो अपने हाथो से धन्नो के स्तन को महसूस करने लगा जिससे धन्नो को भी काम के सागर मे आना पड़ गया और अंशुल के साथ इस सफर का मज़ा लेना पड़ा.....
अंशुल ने अब तक धन्नो की गर्दन पर दर्जनों चुम्बन कर डाले थे और उसके हाथ धन्नो की छाती पर उभार के ऊपर निप्पल्स को छेड़ रहे थे...
धन्नो आज सालों बात जो सुख अनुभव कररही थी उसमे डूब चुकी थी उसने अंशुल की अब तक रोकना तो छोड़ कुछ बोला तक नहीं था....
काकी बेग थोड़ा आगे करो.... अंशुल ने कहा तो उसके इरादों से अनजान धन्नो ने उसके कहे अनुसार अपनी गोद मे रखा बेग थोड़ा आगे सरका लिया...
अंशुल अपना दाया हाथ धन्नो के स्तन से नीचे लाते हुए धन्नो की नाभि का रास्ता तय करके हलकी सी साडी ढीली करता हुआ उसकी बुर तक ले आया मानो धन्नो की बुर महसूस करना चाहता हो...

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अपनी बुर पर अंशुल का हाथ महसूस करके धन्नो पूरी तरह बहक चुकी थी उसने मादक निगाहो मे अंशुल की आँखों मे देखा तो जहाँ कुछ देर पहले शर्म थी वहा अब बेशर्मी झलक रही थी..
अंशुल की मुठी मे धन्नो की बालों से घिरी काली बुर थी जिसे अंशुल प्यार से सहला रहा था और अब बुर के मुहने पर अपनी मिडिल फिंगर रखकर अंदर डालने लगा था....
धन्नो तो जैसे जन्नत मे पहुंच गई थी इतनी भीड़ मे भी उसे वो सुख मिल रहा था जो उसे कभी बंद दरवाजे के भीतर नहीं मिल पाया था..
अपनी उंगलियां अंदर बाहर करते करते अंशुल ने धन्नो की बुर पूरी तरह गीली कर दी थी और कुछ देर बाद तो एक जोर की सुनामी अंशुल ने अपने हाथ पर महसूस की थी शायद धन्नो झड़ चुकी थी...
धन्नो को यक़ीन नहीं हो रहा था जो उसके साथ हुआ था वो सच था.... बचपन मे उसकी गोद मे खेलने वाला आशु आज उसे अपनी गोद मे खिला रहा था और इतना आंनद दे रहा था जितना उसे कभी नहीं मिला था.....
अंशुल को जब लगा की धन्नो झड़ चुकी है वो उसकी साडी से अपना हाथ साफ करता हुआ अपने आप को कण्ट्रोल करने लगा.. जैसे खुदको कुछ समझा रहा हो...

अब कुछ मिनटों का ही सफर बाकी थी रात भी हो चुकी थी... जब गाडी गाँव के मोड़ पर रुकी तो दोनों साथ मे नीचे उतर गया...अब धन्नो को लाज आ रही थी और वो अंशुल से नजर तक नहीं मिला पा रही थी... दोनों के कदम अपने आप घर की तरफ बढ़ गए.. दोनों बिना कुछ बोले धन्नो के घर तक आ गए अंशुल ने बिना कोई बात किये बेग धन्नो को दे दिया और अपने घर की तरफ चला गया....
धन्नो ने भी बेग लेकर घर का दरवाजा बंद कर लिया...

आधे घंटे बाद अंशुल को घर के दरवाजे पर दस्तक महसूस हुई तो अपने कमरे से निकलकर बाहर आ गया.. अंशुल इस वख्त 2-3 पेग शराब पी चूका था ओर हलके सुरूर मै था... दरवाजा खोलकर देखा... बाहर धन्नो हाथो मे खाने का बर्तन लिए खड़ी थी... जो अंशुल के दरवाजा खोलने पर बिना बोले अंदर आ गई थी.. अंशुल ने दरवाजा लगा दिया और धन्नो जब खाना रखकर वापस जाने लगी तो उसका हाथ पकड़ कर अपनी बाहों मे खींच लिया......

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करीब एक घंटे बाद अंशुल अपने घर की रसोई मे खड़ा हुआ था उसके हाथ मे धन्नो के बनाये खाने की एक कोर थी जिसे उसने अभी अभी अपने मुँह मे डाला था और अपनी उंगलियों को चाटते हुए खाने का स्वाद ले रहा था..... रात के नो बज चुके थे और अब तक क़स्बा पूरी तरह शांत हो चूका था शहर की चहल पहल से दूर इस कस्बे मे शाम होते होते लोग घर मे चले जाते थे और रात के नो - दस बजे यूँ लगता था जैसे आधी रात हो चुकी हो.......

अंशुल एक के बाद एक निवाला अपने मुँह मे डाल कर खा रहा था वहीं धन्नो अंशुल के आगे अपने घुटनो पर बैठी हुई थी.. कमर से ऊपर उसके बदन पर अब एक भी कपड़ा नहीं रह गया था उसके विशाल स्तन उसकी छाती पर आम की भाती लटक रहे थे मानो सामने वाले को चूसने का निमंत्रण दे रहे हो.. धन्नो के दोनों हाथों मे अंशुल का भीमाकार लिंग था जो अपनी पूरी औकात मे आकाश की ओर अपना मुँह करके अपनी ताकत का परिचय सामने बैठी धन्नो को दे रहा था.. अंशुल ने खाना ख़त्म किया ही था की धन्नो ने लिंग पर अपने होंठों की चुम्बनवर्षा प्रारभ कर दी ओर फिर अंशुल के साफ-सुथरे मोटे-लम्बे लिंग को अपने मुँह मे भरकर किसी भूखी-प्यासी कुतिया की तरह अपने मुखमैथुन से आनंदित करने लगी......

अंशुल की आँखों के सामने धन्नो का ये रूप दोनों के बीच कामुकता ओर मादकता भर रहा था.... 10-15 मिनट बाद ही अंशुल ने धन्नो के दिए मुखमैथुन से उत्तेजित होकर धन्नो के मुँह मै अपने गाड़े वीर्य की धार छोड़ दी जिसे धन्नो ने प्रसाद की तरह ग्रहण करते हुए अपने गले से तुरंत नीचे उतार लिया और अंशुल के चेहरे को देखकर मुस्कुराने लगी मानो अभी अभी उससे मिले प्रसाद के लिए धन्यवाद कह रही हो.......

अंशुल का रूम अंदर से बंद था और रात के ग्यारह बज चुके थे.... धन्नो के बदन पर अब एक भी कपड़ा नहीं रह गया था और अंशुल भी अपनी कुदरती अवस्था मै आ चूका था.. अंशुल की स्टडी टेबल पर धन्नो अपने दोनों हाथ आगे करके झुकी हुई थी और उसकी भारी भरकम चूचियाँ टेबल की चिकनी प्लाई पर आगे पीछे फिसल रही थी... अंशुल धन्नो के बिलकुल पीछे खड़ा हुआ अपने सीधे हाथ से धन्नो के लम्बे-काले बाल जिनमे कुछ कुछ जगह सफ़ेदी भी थी पकड रखा था और अपने उलटे हाथ से धन्नो की कमर पकडकर बार-बार अपने लिंग का हिला देने वाला प्रहार धन्नो की बुर पर कर रहा था जिससे धन्नो काम के अथाह सागर मै डूबी हुई सिस्कारिया ले रही थी जिससे पूरा माहौल कामाधिन हो चूका था.....

रात के साढ़े बारह बजते-बजते धन्नो ने अंशुल के लिंग पर से अपनी बुर कुटाई के बाद वीर्य से भरा कंडोम उतार लिया था और अभी अभी वापस झड़कर पहले की तरह अपने घुटनो पर आ गई थी और अंशुल के लिंग को अपने मुँह मै वापस भर लिया था.. अंशुल ने एक सिगरेट जला ली और कश लेते हुए कामुक निगाहों से धन्नो को देख रहा था की कैसे धन्नो पूरी मेहनत के साथ उसके लिंग को सुख देने मै लगी थी.. धन्नो मुखमैथुन के बीच बीच मै अपनी आँखे ऊपर करके बार बार अंशुल की आँखों मै देखकर मुस्कुरा रही थी और बदले मै अंशुल भी सिगरेट के कश लेता हुआ मुस्कुराते हुए उसे देख रहा था....

अंशुन ने सिगरेट ख़त्म होने पर धन्नो का हाथ पकड़कर उसके मुँह से अपना लिंग निकाल लिया और उसे खड़ा करके दिवार से चिपका दिया जिसके बाद अपने एक हाथ से धन्नो की जांघ पकड़कर उसका पैर उठाते हुए अपने लिंग को उसकी बुर मै डालने लगा....
लल्ला..... गुब्बारा तो लगा ले....
मैं संभाल लूंगा काकी....
इतनी सी बात चित के बाद धन्नो की काली बुर पर अंशुल के लिंग की थाप से पूरा कमरा गुजने लगा.....

एक के बाद एक कई बार धन्नो झड़ चुकी थी लेकिन इस बार अंशुल का स्खलन नहीं हुआ था, रात के डेढ़ बज चुके थे और धन्नो अंशुल के बिस्तर पर लेटी हुई अब तक अंशुल से अपनी बुर कुटाई करवा रही थी और अंशुल धन्नो का कामुक चेहरा देखकर उसे भोग रहा था लेकिन उसके मन मै अब वो उत्तेजना नहीं आ रही थी..... उसे अब तक मालूम हो चूका था की धन्नो के प्रति उसका केवल आकर्षण ही था जो एक बार मै ख़त्म हो चूका था......

आह्ह.... लल्ला.... कब से कर रहा है....
निकलता क्यूँ नहीं है तेरा? अह्ह्ह्ह....
मेरी हालत ख़राब हो रही है....
हाय.... अब तो जलन भी होने लगी है.....
लल्ला... ला.... मुँह से ही निकाल देती हूँ तेरा.....

बस थोड़ी देर काकी.....
अभी निकाल दूंगा....
ये कहते हुए अंशुल ने अपनी आँखे धन्नो के चेहरे से हटा कर कमरे की दिवार पर लगी अपनी माँ पदमा देवी की बड़ी सी तस्वीर पर जमा ली....
अपनी माँ पदमा की तस्वीर देखते हुए अंशुल कामुकता और प्रेम से भर गया और जोर जोर से धन्नो की बुर कुटाई करने लेगा जिससे कुछ ही मिनटों मै अंशुल झड़ने की कगार पर आ गया... जब अंशुल झड़ने वाला था तो उसने अपना लिंग धन्नो की तहस नहस होकर बर्बाद हो चुकी बुर से निकाल कर सीधा धन्नो के मुँह मै दे दिया और अपना सारा वीर्य 8-10 धार मै प्रवाहित कर दिया जिसे धन्नो ने बड़ी सहजता से ग्रहण कर पी लिया....

सुबह के चार बज चुके थे अंशुल अपने बिस्तर पर दिवार से अपनी पीठ से लगाए दिवार का सहारा लेकर पैर फैलाये बैठा था और उसकी गोद मै धन्नो काकी अपनी बुर मै उसका लिंग लिए उसकी ओर मुँह किये बैठी उसे चुम रही थी दोनों ने अब तक कपडे नहीं पहने थे और ज्यादा बात भी नहीं की थी, सोने की कोशिश की थी मगर नींद दोनों की आँखों मै नहीं थी अंशुल सिगरेट के कश लगा रहा और धन्नो अंशुल को उसके बचपन के किस्से सुना कर बच्चों की जैसे हंस रही थी..
धन्नो ने रातभर अंशुल के होंठो को इतना चूमा था की उसके होंठ कुछ सूजे लग रहे थे.....
कुछ देर बाद फिर से अंशुल की गुजारिश पर धन्नो ख़ुशी से अपनी बुर देने को राज़ी हो गई तो इस बार भी अंशुल ने पदमा की तस्वीर देखते हुए अपनी आगे घोड़ी बनी धन्नो काकी को अपनी माँ पदमा सोचकर उसकी स्वारी की और पांच बजते बजते उसे अपने वीर्य का दान किया...

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तू तो बिलकुल घोड़ा हो गया है लल्ला....
पदमा से कहकर जल्दी ही तेरे लिए भी एक सुन्दर सी लड़की देखनी पड़ेगी जो तेरा ख्याल रख सके....
जल्दी ही तेरा भी ब्याह करना पड़ेगा....
अब छोड़ भी दे लल्ला... कोनसा इनमे दूध आता है जो तू बच्चों की तरस चूची चूस रहा है...
अब जाने दे वरना कोई देख लेगा तो फिर जवाब देते ना बनेगा दोनों से....
चल छोड़ मुझे..... प्यार से हँसते हुए धन्नो से अंशुल से कहा...
काकी एक बात पुछु सच सच बताओगी?
पूछ....
तुम चन्दन भईया ओर मुझमे ज्यादा प्यार किसे करती हो?
कोई माँ अपने बच्चों मै फर्क कर सकती है भला... जैसे मेरे लिए चन्दन है वैसे ही तू है... मैं तुम दोनों को जन्म नहीं दिया तो क्या हुआ? प्यार तो अपना मानकर किया है....
काकी हमारे बीच जो हुआ किसीको बताओगी तो नहीं?
अरे पागल हो गया है क्या लल्ला? तू भी किसी से इस बारे मै जिक्र ना करना.... अच्छा अब छोड़ मेरी चूची.... जाने दे....

धन्नो ओर अंशुल घर के बाहरी दरवाजे पर खड़े थे जो अंदर से बंद था सुबह साढ़े पांच होने वाले थे दोनों ने एक दूसरे को अभी चूमने शुरु ही किया था मानो दोनों एकदूसरे को गुड बाय किस दे रहे हो जब किस टूटी तो अंशुल ने कहा - काकी मैं जानता हूँ मैंने आपके साथ जो कुछ किया वो सही नहीं है पर मैं वासना में बहक चूका था.. मुझपर अपना कोई इख़्तियार नहीं था...
धन्नो - लल्ला.... छोड़ इन सब बातों को... गलती तो हम दोनों ने की है.... इसमें तेरे अकेले का कसूर कैसे हुआ भला? मुझे ही हमारी उम्र ओर रिश्ते का लिहाज़ करना चाहिए था... मगर तू चिंता मत कर.. मैं इस बारे में किसी से कोई बात नहीं करुँगी ओर ना ही तू करना.. मैं अब भी तेरी पहले वाली धन्नो काकी हूँ....
अंशुल की आंख में आंसू थे वो बोला - काकी.. आप बहुत अच्छी हो..
ये कहते हुए अंशुल ने एक बार फिरसे धन्नो को अपनी बाहों में भर लिया और उसके होंठ चूमकर बाहर का दरवाजा खोल दिया...
धन्नो अपने चेहरे पर मुस्कुहाट और दिल में नया अहसास और बदन में नई ऊर्जा लेकर इस भोर में अपने घर आ गई... आज उसकी आँखों में नींद नहीं थी और उसे अपनेआप में तरोंताज़गी महसूस हो रही थी पहले जहाँ वो कुछ थकी हुई सी महसूस करती थी वही अब उसे ऐसा कुछ महसूस नहीं हो रहा था...


समय अपने हिसाब से गुजरा और बारात जाने का दिन भी आ गया, धन्नो के घर में मेहमानों का ताँता लगा हुआ था.....
अरे आशु भईया... चन्दर भईया कहा है? फ़ोन भी बंद है उनका...
मुझे क्या पत्ता? भोर में खेत की ओर निकले थे तब से मैंने नहीं था....
वो हज़ाम कब से बैठा इंतजार कर है उसे अपनी दूकान भी जाना है उसे आप जाकर एक बार देख लो खेत में हो तो बुला लाना....
तू खुद क्यूँ नहीं चला जाता? यहां बस आराम करने आया है? हाथी कहीं का....
अरे हमारे पैर में मोच है आशु भईया.... वरना आप तो जानते हो हम कितने फुर्तीले है.. कहने से पहले काम कर देंते है...
हां हां.. देखी है तुम्हारी फुर्तीली.... चार कदम चलने में पैर जवाब दे जाते है....
जाकर बुला ला ना लल्ला... ये तो है ही कामचोर....
धन्नो ने अपने हाथो से गुड़ के 2-3 छोटे छोटे दाने अंशुल के मुँह में डालकर कहा...
हम कामचोर नहीं है काकी.... हमें कामचोर मत कहो.. कल हमने ही आँगन और छत पर तंबू बंधवाया था सुरपाल के लड़को से....
बता तो ऐसे रहा है जैसे तूने ही बाँधा हो....
तुम भी काकी किसके साथ बहस करने बैठ गई, इस ढ़ोल के बारे में तो सब जानते है..
ढ़ोल नहीं है हम.. हमारा नाम रमेश है रमेश... आशु भईया के पास तो मोटर है.. उन्हें खेत जाकर आने में कितना समय लगेगा? हम यहां और काम संभाल लेंगे है...
धन्नो और अंशुल 17-18 साल के उस भैंस की तरह मोटे देखने वाले लड़के रमेश की बात सुनकर एकदूसरे की तरफ देखते हुए हंसने लगे.. रमेश पड़ोस में ही रहने वाली सुरीली चाची का लड़का था जो एक नम्बर का आलसी और कामचोर था खाने और मुहजोरी करने के अलावा कोई ओर काम नहीं था रमेश को....
अंशुल अपनी बाइक लेकर चन्दन को बुलाने खेत की तरफ निकल गया और खेत के किनारे बाइक रोककर पक चुकी लहलाहती फसलो के बीच बनी पगदंडी से होता हुआ खेत के अंदर चला गया......

आज तो तेरा ब्याह हो जाएगा चन्दन....
दुल्हन आने के बाद भूल तो नहीं जाएगा मुझे?
कैसे भूल सकता हूँ? तुमने कितना ख्याल रखा है मेरा.. तुम नहीं होती तो मुझे कौन संभालता? ब्याह के बाद में मैं तुमसे मिलना नहीं छोड़ सकूंगा...
ये सब कहने की बात है मैंने सुना है तेरी दुल्हन रूपवाली है उसके आगे मेरी देह कहा याद रह जायेगी तुझे चन्दन....
ऐसी बात मत करो.... वादा करता हूँ ब्याह के बाद भी आपसे मिलने आऊंगा...
कभी कभार सही चन्दन.. अगर तुम आओगे तो मुझे आराम रहेगा........ (कोई आहट सुनकर) लगता है कोई आ रहा है.... अब हमें चलना चाहिए चन्दन तुम्हारा ब्याह है.... कोई इस तरफ तुम्हे ही ढूंढ़ने आया होगा...
हां सुबह आशु ने मुझे इस तरफ आते देखा था.... ठीक है... मैं पीछे से घर निकल जाता हूँ तुम बसंत के खेतो से जली जाओ....
ठीक है चन्दन...... कहते हुए उस चालिस पार कर चुकी देहाती महिला ने जिसका रूप अब तक उसके साथ था चन्दन को आखिरी चुम्बन देकर भेज दिया ओर खुद भी फसलो के बीच बनी इस छोटी सी जगह से निकल कर बाहर पड़ोस के खेत की तरफ चली गई जहा से गुजरते हुए आशु ने उसे देख लिया...

अरे चाची..... ओ सुरीली चाची.... चिल्लाते हुए आशु ने उस औरतों को पुकारा... एक दो बार तो सुरुली ने ध्यान नहीं दिया पर आशु जब करीब आकर जोर से बोला तो उसका ध्यान आशु की तरफ गया...

अरे लल्ला.... तू यहां क्या कर रहा है?
चन्दन भईया को ढूंढने आया था चाची.... और तुम मिल गई... चन्दन भईया को देखा तुमने?
नहीं लल्ला.... वो यहां कहा होगा? घर पर नहीं है? आज तो ब्याह है उसका....
हां चाची.... अच्छा... घर जा रही हो?
हां लल्ला....
चलो मैं छोड़ देता हूँ.... मैं भी वापस घर ही जा रहा हूँ....
मैं चली जाउंगी लल्ला.... तुम रहने दिओ...
अरे चाची कहा 2 कोस पैदल चलकर पैरों को दुख दोगी... आओ मैं छोड़ दूंगा...
ठीक है लल्ला.... चल....
कहते हुए सुरुली ने जैसे अंशुल के साथ कदम बढ़ाया उसका मुड़ गया...
हाय दइया..... आह्ह....
क्या हुआ चाची....
मेरा पैर....
अंशुल पैर देखकर - मोच आई लगता है चाची.... देखकर चलना भी भूल गयी हो तुम तो... लगता है उम्र हो गई है तुम्हारी.... इतना कहकर धीरे से हँसता हुआ अंशुल सुरीली के साथ मसखरी करता है..
लल्ला क्या मसखरी कर रहा है मेरे साथ.. ला हाथ दे..
सुरीली अंशुल का हाथ पकड़ कर खड़ी होती है मगर चलने में उसे बहुत दर्द हो रहा था....
बहुत दर्द हो रहा है लल्ला.... मैं तो मर ही गई आज....
आशु सुरीली का हाथ छोड़कर अपने दोनों हाथो से उसे अपनी गोद में उठा लेता है...
चिंता मत करो चाची मैं हूँ ना.....
अरे आशु.... छोड़.... लल्ला... कोई देख लेगा..... छोड़...
कोई नहीं है चाची तुम फालतू डरती हो... चलो सडक तक की बात है... कहता हुआ अंशुल सुरीली को गोद में लिए खेत की पगदंडियो से होता हुआ अपनी बाइक की तरफ चल देता है...
लल्ला..... तेरे हाथ में दर्द होगा...
कहा चाची? बच्चों सा वजन है तुमने... लगता है खाना नहीं खाती हो...

जिसके जीवन में सुनापन हो उसके जीवन में दो मीठे बोल बोलने वाले की कद्र भगवान से कहीं अधिक होने लगती है सुरीली के साथ भी वैसा ही था घर पर पति बब्बन का तो उसे कोई सहारा ही ना था और संतान भी उसके साथ कुछ पल बैठने की फुर्सत नहीं निकाल पाती थी आस पड़ोस में औरतों का अलग समूह था मुश्किल से धन्नो कुछ देर बात करती थी तो उसे चैन पड़ता था चन्दन और सुरीली का सम्बन्ध भी वहीं से जुड़ा था..... चन्दन ने दो मीठे बोल क्या सुरीली से कहे सुरीली ने तो उसे अपना मान लिया आज कुछ ऐसा ही आशु के लिए उसे लग रहा था.. आशु चन्दन से दो बरस छोटा है दिखने में कहीं अधिक सुन्दर साजिला और सम्पन है देह भी चन्दन से ज्यादा गठिली और मजबूत लगती है उसका आकर्षण मनमोहक था सुरीली जैसे नहीं उसके लिए अपने दिल के द्वार खोलती?

लल्ला..... तू घर से नज़र का टिका लगाकर के निकला कर.... कहीं किसी की नज़र लगी तो सब चौपट हो जाएगा....
चाची अब तुम भी मसखरी करने लगी...
अरे सच कह रही हूँ लल्ला.... कहीं तेरे इस चाँद से मुखड़े को मेरी ही ना लगा जाए...
अंशुल हसता हुआ- तुम तो मुझे ही छेड़ने लगी चाची... लगता है चाचा ठीक से ख्याल नहीं रखते...
चाचा ख्याल नहीं रखते तो तू कहे नहीं रख लेता अपनी चाची का ख्याल? बोल लल्ला....
मैं कहा ख्याल रख सकता हूँ चाची.... मैं तो बच्चा हूँ आपका... चलो पीछे बैठो.... जरा संभाल कर पैर में ना लगा जाए.....
अब तू दूध पीता बच्चा थोड़ी ही है लल्ला.... खैर छोड़... कभी अगर अपनी इस सुरीली चाची से मिलने का मन हो तो घर आ जाना.... कोई परहेज न रखूंगी लल्ला...
ठीक है चाची.... लो तुम्हारा घर भी आ गया... मैं धन्नो काकी के पास जाता हूँ देखता हूँ चन्दन भईया आये या नहीं...
वो तो घर पहुंच गया होगा लल्ला....
तुमको कैसे पत्ता चाची? तुम कोई ज्योतिषी हो...
अरे आज ब्याह है उसका....
चलो चाची....
सुरीली को छोड़कर अंशुल जब धन्नो के पास आया तो चन्दन अपनी हज़ामत बनवा रहा था और धन्नो आँगन मैं बैठकर गीत गा रही महिलों के साथ बैठकर चाय पी रही थी...
देखते ही देखते दोपहर ढल चुकी थी और बारात के जाने का वखत हो चूका था.....
अरे भाई गोपाल अब और कितना समय लगेगा बबलू को आने में?
पत्ता नहीं चन्दन.... वो साला है ही चुटिया आदमी... सुबह के लिए कहा था अब तक नहीं आया... कह रहा है रास्ते में है...
बबलू चन्दन का सूट फिटिंग करने के लिए लेकर गया था जिसे अब तक आ जाना चाहिए था लेकिन किन्ही कारणों से अब तक नहीं आया था...
गोपाल तुम ऐसा करो चन्दन भईया के साथ बारात लेकर निकालो... ज्यादा लेट करना ठीक नहीं रहेगा...
बबलू के आते ही मैं सामान लेकर आ जाऊंगा...
अंशुल ने कहा तो धन्नो और गोपाल ने अपनी हामी भरदी जिससे सभी बाराती एक पुरानी बस में कचरे की तरह भरके दूल्हे की कार के पीछे पीछे हुसेनीपुर की तरफ रवाना हो गए थे...

शाम का समय हो गया था और बबलू अब जाकर कहीं आया था....
अरे वनराकस.... कहा मर गया था.. पत्ता नहीं था आज बारात जानी है... तू दर्जी है भी या नहीं?
अरे काकी आज ज्यादा काम था और दूकान पर मैं अकेला इसलिए आते आते देर हो गई... वैसे भी कल सुबह विदाई में पहनने वाले है चन्दन भाई इस सूट को.... बारात गई?
वो तो कब की चली गई... तेरे लिए इंतेज़ार थोड़ी करती... ला दे...
धन्नो बबलू से सूट लेकर घर के अंदर चली जाती है जहा कुछ देर पहले मेला लगा हुआ था तो अब सनाटा पसरा हुआ था.... एक दो महिलये अभी भी रह गई थी...
गुल्ली ताई - धन्नो आ गया बबलू....
धन्नो - हां ताई.... अब आया है मुआ...
गुल्ली ताई - अरे तो जाके आशु को दे दे वो साथ ले जाएगा...
धन्नो - हां ताई बस वही कर रही थी पहले जरा ये आँगन साफ कर लू.. रात को गाँव की सारी महिलाओ का जमघट यही तो लगने वाला है...
गुल्ली ताई - अरे वो तो रात को लगेगा.... तू पहले आशु को सामान दे आ... वो तेरी राह देखता होगा.. मैं भी घर हो आती हूँ..
ठीक है ताई... कहती हुई धन्नो हाथ में सामान लिए अंशुल के घर चली जाती है और दरवाजा खुला था...

आशु आशु.... धन्नो ने अंदर आकर आंगन से आवाज़ दी तो अंशुल अपने कमरे से बोला- काकी ऊपर...
धन्नो अंशुल के कमरे की तरह बढ़ गई और रूम में आकर्षित सामान रखते हुए बोली - लल्ला ले.... इसे लेता हुआ जाना तू भी कहीं भूल ना जाना... कहते हुए धन्नो अंशुल के रूम से जाने लगी तो अंशुल ने धन्नो का हाथ हाथ पकड़ लिया....

छोड़ लल्ला.... तू भी क्या करता है? किसीने देख लिया तो क्या सोचेगा?
कोई नहीं आने वाला काकी.... फ़िक्र मत करो...
ठीक है लल्ला.. पर थोड़ा जल्दी.. तू बहुत समय लगता है....
ठीक है काकी.....

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अंशुल ने धन्नो को बिस्तर पर लिटा कर उसका घाघरा ऊपर सरका दिया और चड्डी उतार फ़ेंकी...
गुब्बारा लगा ले बब्बूआ.....
मैं संभाल लूंगा काकी.. तुम तो जानती हो... कहते हुए धन्नो की बुर में अपने लंड को घुसाकार उसे चोदना शुरू कर दिया...
आह्ह.... लल्ला.... आह्ह.... तनिक आराम से... आह्ह.... आह्ह....
अंशुल अब भी अपने नीचे लेटी धन्नो में अपनी माँ पदमा को तलाश रहा था और कामुकता से धन्नो के बदन को भोग रहा था.... इस बार उसे झड़ने में ज्यादा समय नहीं लगा और 15-20 की चुदाई के बाद धन्नो के मुँह में अपने वीर्य की धार छोड़ दी.... धन्नो के चेहरे पर एक शर्म थी जो अंशुल साफ देख पा रहा था धन्नो अपनी चड्डी पहन कर जाने लगी तो अंशुल बोल पड़ा - बाल मेरे लिए साफ किये है काकी...
धन्नो शर्माती हुई - हट... पागल कहीं का.... अब जा....



 

Chahan~saab

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अध्याय 3
धन्नो काकी....


अगले दिन सुबह जब पदमा अपने कपडे और शर्म उतारकर अपने बेटे अंशुल की बाहों मे सोई हुई थी तभी अंशुल के फ़ोन की घंटी बजी जिसकी आवाज़ सुनकर दोनों की नींद खुली और अंशुल बिस्तर मे बजते हुए फ़ोन को तलाशने लगा जो चादर के नीचे कहीं दबा हुआ उसे मिला......
पदमा - किसका फ़ोन है?
अंशुल - काकोड़ी से है.....
पदमा - ला दे...
फ़ोन उठाते हुए - हेलो.... हां....कब? अब कैसी तबियत है? नहीं मैं अभी आ रही हूँ...तुम ख्याल रखो उनका..
अंशुल - क्या हुआ?
पदमा कपडे समेटकर बाथरूम जाते हुए - दीदी को फिर से दौरा आया है... अस्पताल मे भर्ती है..
अंशुल - मैं नीचे आपका इंतजार कर रहा हूँ....
पदमा - नहीं... मैं बस से चली जाउंगी.. तुम आराम करो...

पदमा जल्दी जल्दी मे नहाकर त्यार हो गई.. वहीं अंशुल काफ़ी देर से अपना मुँह हाथ धोकर बाहर बाइक पर बैठे पदमा का इंतजार कर रहा था...
अरे मैं बस से चली जाउंगी... कहा तू इतना दूर आए-जाएगा?
आप चुपचाप बैठो.. और ये बेग मुझे दे दो....
अंशुल अपनी माँ के हाथो मे से एक छोटा सा बेग लेकर अपने आगे रखते हुए बाइक स्टार्ट करता है और पदमा अंशुल के पीछे बैठ जाती है...
काकोड़ी यहां से 40 किलोमीटर की दुरी पर था रास्ता टूटी फूटी सडक से भरा था बस से ये रास्ता अढ़ाई घंटे मे तय होता था और बाइक से डेढ़ घंटे मे...

अंशुल अपनी माँ पदमा को मौसी गुंजन के पास अस्पताल ले आया था जहा नींद के इंजेक्शन से गुंजन सो रही थी और उसके आस पास कुछ लोग खड़े थे....
गुंजन विधवा हो चुकी थी एक लड़की के माँ बनने का सौभाग्य उसे प्राप्त हुआ था जिसकी शादी हो चुकी थी लेकिन दामाद लालची और घरजमाई दोनों था.. बड़े धनवान घर मे ब्याह हुआ था सो दौलत की कमी नहीं थी.. गुंजन की बेटी रूपा और जमाई सुरेंद्र वहीं अस्पताल मे थे... अंशुल को सुरेंद्र जरा भी पसंद नहीं था एक बार तो उसने सबके सामने सुरेंद्र को झाड़ दिया था बस बहुत हँसे थे सुरेंद्र पर... रूपा ने उसका बदला अंशुल के गाल पर तमाचा मारकर लिया था.. रूपा बुरी नहीं थी.. पर सबके सामने अपने पति की बेज्जती सह न सकी थी आखिर वो चाहे जैसा भी हो उसके साथ रूपा का भी तो आत्मसम्मान जुड़ा था.... रूपा ने अंशुल से माफ़ी भी मांगी थी मगर अंशुल ने उस दिन के बाद से रूपा से बात करना बंद कर दिया था...
अंशुल ने डॉक्टर से बात की तो डॉक्टर ने उसे गुंजन की हालत के बारे मे सब सच बता दिया और गुंजन का ख्याल रखने को कहा... अंशुल ने पदमा को डॉक्टर के कहे अनुसार गुंजन का पूरा ध्यान रखने की बात कही जिसे सुनकर पदमा ने कुछ दिन गुंजन के साथ ही रहने का फैसला किया....
अंशुल जब वापस जाने लगा तो रूपा ने अंशुल का हाथ पकड़ लिया और उसके गले से लग गई.. बेचारी रूपा कुछ कह ना सकी थी..
रूपा की आँखों से आंसू की धार बह निकली थी जिसने अंशुल के दिल को पिघला दिया था वो उस दिन के बाद आज रूपा को रोते से चुप करता हुआ उससे बोला..
दीदी रोओ मत....
डॉक्टर ने कहा मासी ठीक है...
वो कुछ दिनों मे पहले जैसी हो जायेगी....
बस उनका ख्याल रखना होगा...
आप प्लीज चुप हो जाओ...
आपको मेरी कसम, रोना बंद करो....

रूपा इतना जोर से अंशुल को पकड़ा था की अंशुल को अपनी पीठ मे रूपा के कंगन चुभ रहे थे... अंशुल ने जैसे तैसे रूपा को चुप करवाया और अस्पताल मे रखी बैंच पर बैठाते हुए उसके आंसू पोंछकर रूपा को किसी बच्चे की तरह समझाया की सब ठीक है और कुछ देर ऐसे ही उसके पास बैठा रहा जब तक रूपा उसके कंधे पर सर रखकर सो नहीं गई...
सुरेंद्र तो बस जैसे कोई औपचारिक तौर पर वहा था उसे किसी से कुछ लेना देना नहीं था वो फ़ोन मे कोई गेम खेल रहा था शायद टाइमपास कर रहा था...

अंशुल पदमा को वहा छोड़कर शाम को वापस घर आ चूका था आज ये घर उसे बिलकुल सुना लगा रहा था जहा उसके अलावा कोई नहीं था..
वो अपने कमरे मे जाकर अपनी किताबो मे खो गया और 5-6 दिन तक तो जैसे उसे किसी चीज का होश ही नहीं था.. वो फ़ोन पर पदमा से बात करता था जो उसे गुंजन के धीरे धीरे ठीक होने की खबर सुनाकर अपने दिल का हाल भी सुना देती थी.....
सातवे दिन की रात को अंशुल के दिल और लिंग दोनों को पदमा की याद बहुत ज्यादा परेशान करने लगी तो अंशुल बाथरूम की दिवार पर अपनी माँ की याद मे वीर्य के धार छोड़ आया था और अचेत होकर सो गया था.....

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धन्नो काकी

धन्नो के घर मे चन्दन के ब्याह की तेयारी जोर-शोर से चल रही थी घर पुराना मगर बड़ा था.. आगे दरवाजा और दरवाजे के दोनों तरफ दो कमरे... फिर आँगन और आँगन मे बाई तरफ रसोई... आँगन के बाद पीछे एक बड़ा सा कमरा और उस कमरे के पीछे थोड़ी सी जगह, जहा चूल्हे के लिए लकड़िया और बाकी चीज़े रखी थी......
सूट आ गया है..
चन्दन भईया से कह दो एक बार पहन के देख ले.. छोटा बड़ा करवा है तो टाइम से हो जाएगा....
और ढ़ोल-बाजे वाले को भी अच्छे से समझा दिया है.... हलवाई भी समय से आ जाएगा बाकी की सारी तयारी भी हो चुकी है....
अब कोई काम बाकी नहीं रहा काकी....
अंशुल ने धन्नो के घर के आँगन मे बिछी खाट पर बैठते हुए ये सब एक सांस मे धन्नो से कह गया था..
आज सुबह से वो चन्दन के ब्याह की तयारी मे लगा था और दिन के 3 बज गए थे खाने तक की फुर्सत नहीं मिली थी...

धन्नो अपनी पड़ोसन गुल्ली के साथ आंगन मे गेहूं छान रही थी जिसे सब गुल्ली ताई कहते थे..
धन्नो - अरे आशु... वो बाजार मे लल्लू सोनार के यहां बहु के लिए गहने बनवाये थे... वो ले आया?
अंशुल - मुझसे कब लाने के लिए कहा था काकी? वो चन्दन भईया लाने वाले थे?
धन्नो - चन्दन तो शहर चला गया.... कल आएगा...
अंशुल - भूल गया होगा काकी.. तुम ऐसा करो मुझे गहने की पर्ची दे दो मैं बाजार जाकर ले आऊंगा... बाइक पर ज्यादा समय नहीं लगेगा.....
धन्नो - तेरी मोटर तो चन्दन लेकर चला गया.. उसका दोस्त गोपाल भी साथ मे था... और पर्ची भी उसी के पास है... बिना पर्ची वो लल्लू चोर.. कहा तुझे गहने देगा.... और गहने भी आज ही लाने जरुरी है लल्ला.. कल तो टाइम ही नहीं मिलेगा... 2 दिन बाद तो बारात जानी है...
अंशुल - अब क्या करे काकी....
धन्नो - तू ठहर लल्ला.... मैं भी तेरे संग बाजार चलती हूँ....
अंशुल - पर टैम्पो या तूफ़ान से तो वापस आते आते अंधेरा हो जाएगा...
धन्नो - जाना तो पड़ेगा लल्ला.... गुल्ली ताई मैं आशु के साथ बाजार जाती हूँ तुम घर पर ही रुकना...

धन्नो अंशुल के साथ कस्बे के पुराने मोड़ पर बाजार जाने वाले साधन के इंतजार मे खड़ी थी उसके सामने से अभी अभी एक तूफ़ान जीब लोगों से खचाखच भरके वहा से रवाना हुई थी धन्नो और अंशुल दोनों ने देखा था कैसे लोग एक दूसरे के उपर गिर पड़ रहे थे औरतों का तो कहना ही क्या था.. कुछ बेचारी छोटी छोटी जगह मे मर्दो से चिपकी हुई बैठी थी तो कुछ अपने साथ आये मर्दो के साथ उनकी गोद मे बैठी थी.... मज़बूरी मे हर कोई इस बात को नज़र अंदाज़ कर रहा था की इस भीड़ मे कई महिलों और लड़की के निजी अंगों को कुछ मनचले अपने हाथो से छेड़ रहे थे... धन्नो तो पहले से इस तरह आने जाने की आदि थी लेकिन अंशुल को ये सब पसंद नहीं था.. 11 km दूर था बाजार इस कस्बे से और करीब एक घंटे का समय लगता था इस तरफ से एक तरफ के सफर मे....

धन्नो - लल्ला बस तो ना आने वाली शांझ तक इसी जाना पड़ेगा....
अंशुल - पर काकी इतनी भीड़ मे कैसे?
धन्नो - लल्ला अब जाना तो पड़ेगा.... और लोग भी तो जा रहे है...
इस बार धन्नो ने ज़िद करके जीभ के अंदर अंशुल को बैठा दिया और खुद उसके पास बैठ गई...
अरे आंटी जी जरा आगे उठ के बैठो अभी तो कई स्वारी आनी बाकी है... कंडक्टर ने धन्नो से कहा तो धन्नो जरा सी उठकर अंशुल की दायी जांघ पर खिसक कर बैठ गई.... अंशुल कुछ ना बोल सका था उसे ऐसे सफर करने की जरा भी आदत नहीं थी.. देखते ही देखते कुछ मिनटों मे खचाखच जीब भर गयी और कई लड़किया और महिलाये सीट पर बैठे आदमियों की गोद मे बैठे गई थी...
अंशुल को सब कुछ अजीब लगा रहा था पूरी तरह से पैक होकर जीभ चल पड़ी थी और साथ की छेड़खानी भी शुरु हो चुकी थी.... जीब के चलते ही सडक के एक खड्डे मे गाडी का टायर पड़ा तो सब उछल पड़े.. धन्नो पर उछल कर अब सीधे अंशुल की जांघ से उसकी गोद मे आ गिरी थी..
अंशुल तो जैसे शर्मा ही गया था.. धन्नो को अब थोड़ा आराम महसूस हो रहा था की वो अब ठीक से अंशुल की गोद मे बैठ गई थी और उसे इस बात से जरा भी फर्क नहीं पड़ रहा था.... गाडी कजच पांच साथ मिनट चली होगी की उबड़ खाबड़ रास्ते की हलचल और झटको से धन्नो अंशुल की गोद मे बार बार उछलने लगी थी जिससे अंशुल बहुत अनकन्फ्टेबल हो रहा था और उसका लिंग धन्नो काकी की उछलती हुई गद्देदार गांड का स्पर्श पाकर पेंट मे ही सख्त हो चला था जिसे अब धन्नो आसानी से महसूस कर रही थी...
धन्नो ने खुदको ढीला छोड़ दिया था जिससे उसकी पीठ अंशुल के सीने से चिपक गई थी और दोनों के गाल आपस मे रगड़ खा रहे थे..
धन्नो के पूरी तरह विकसित स्तन कच्चे रास्ते पर गाडी की चाल से ऊपर नीचे हिल रहे थे जिसे धन्नो ने अपनी गोद मे रखे छोटे से बेग और अपनी साडी के पल्लू की मदद से सबसे छुपा रखा मगर अंशुल की आँखों के सामने ये नज़ारा बिलकुल साफ साफ चल रहा था जिसे धन्नो जानती थी बार बार अपनी आँखों से अंशुल की आँखों की तरफ देख रही थी...
अंशुल बार बार धन्नो की आँखों से पकड़ा जाता और नज़र घुमा लेता.. धन्नो को अंशुल का इस तरह शर्मा अद्भुत सुख दे रहा था जिसे धन्नो ही सुना सकती थी धन्नो विधवा थी और बहुत सालो से उसे देह का सुख नहीं मिला था मगर आज अंशुल का चुबता लिंग और छुप छुप के उसके हिलते स्तन देखना उसे औरत होने का अहसास करवाने के साथ ही अकल्पनीय कामसुख के सागर मे डूबा रहा था....
घंटेभर इसी तरह दोनों ने एक दूसरे के साथ चिपके हुए सफर किया फिर जीब बाजार आकर्षित रुक गई...
धन्नो तो झट से अंशुल की गोद से नीचे उतर गई मगर अंशुल को अपनी पेंट सँभालने मे समय लगा गया था जिसे धन्नो ने बड़े मज़े लेते हुए देखा था....
जीब से उतरने के बाद दोनों ही एक दूसरे से बात करने से बच रहे थे और चुपचाप साथ साथ चल रहे थे.. सोनार ने गहने देते देते सांझ कर दी थी दोनों को अब बाजार मे ही शाम हो गई थी अंधेरा भी होने लगा था...
वापस कस्बे के लिए स्टैंड पर खड़े अंशुल और धन्नो के मन मे बस से जाने की ज़रा भी इच्छा नहीं थी वो उसी तरह जाना चाहते थे जैसे आये पर कौन अपने दिल की बात कहे?
बस आई तो अंशुल एक हाथ मे सामान का बेग पकडे दूसरे हाथ मे धन्नो काकी का हाथ पकड़ कर बस मे चढ़ गया.... दोनों के चेहरे उतरे हुए थे... वो दोनों ही बस से वापस जाना नहीं चाहते थे मगर जा रहे थे...
कंडक्टर - सिर्फ मीरपुर वाले ही चढ़ना.... सिर्फ मीरपुर वाले ही चढ़ना... सिर्फ मीरपुर...
किसी ने कहा - अरे ***** नहीं जायेगी क्या?
कंडक्टर - नहीं..... सिर्फ मीरपुर.....
अंशुल और धन्नो के दिल मे जैसे ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी थी...
दोनों वापस बस से नीचे उतर गए थे और पीछे खचाखच भरी जीभ की तरफ चले गए.....
आ जाओ बहन जी... पूरी खाली है.. कहते हुए जीब के ड्राइवर ने धन्नो को पीछे आखिर बची सीट पर बैठने के लिए कहा...
जीभ पहले से भरी हुई थी मगर थोड़ी सी जगह बाकी रह गई थी जिसमे एक शख्स सिकुड़कर बैठ सकता था...
बहनजी इससे खाली नहीं मिलेगी... आज की आखिर जीब है इसके बाद कोई साधन नहीं है...
इस बार अंशुल बिना कुछ कहे या पूछे उस जगह बैठ गया और उसके बाद धन्नो अंशुल की गोद मे आ बैठी और कंडक्टर ने जीब का दरवाजा पीछे से बंद कर दिया... अंधेरा हो चूका था उसपर जीब के चलने के बाद गाडी की लाइट भी बंद कर दी गई थी....
इस बार अंशुल ने शुरुआत मे ठीक से धन्नो को अपनी गोद मे बैठा लिया और अँधेरे का फ़ायदा भी उसे मिला था.. धन्नो ने वापस अपने को ढीला छोड़ दिया था जिससे उसकी पीठ वापस अंशुल के सीने से जा मिली थी और दोनों के गाल आपस मे टकरा रहे थे इस बार धन्नो के हिलते मादक स्तन केवल अंशुल ही देख सकता था और देख रहा था जिसपर धन्नो अब कुछ नहीं कर रही थी ना ही उसे देखकर शर्मिंदा कर रही थी....
कहते है बड़े बड़े साधु महात्मा का ध्यान और ईमान औरत के कारण भंग हुआ था तो अंशुल तो फिर भी एक साधारण नौजवान लड़का था जिसमे काम की पीपासा भरपूर थी तो वो कैसे इस आकर्षण से बच सकता था? 15-20 मिनट के सफर के बाद अंशुल को महसूस हुआ की उसने अपनी गोद मे बैठी धन्नो काकी के पल्लू के अंदर अपना हाथ डाला हुआ है और उसकी उंगलियां अपने आप धन्नो के स्तन पर अपना दबाब बना रही है जिसपर धन्नो की तरफ से उसे कोई आपत्ति महसूस नहीं हो रही थी थी....
कई दिनों से बिना सम्भोग के अंशुल का मन विचलित हो रहा था और ऊपर से आज धन्नो जैसी आकर्षक उभरो वाली महिला का उसके गोदमें होना उसकी काम इच्छा को और प्रबल बना दिया था...

अंशुल काम की वासना मे बहक गया और अपने दोनों हाथो को धन्नो की साडी के पल्लू के अन्दर डालकर अपने हाथो के दोनों पंजो से धन्नो के ऊपर नीचे हिलते हुए स्तनों को अपनी गिरफ्त मे लेकर एक बार जोर से मसल दिया...
धन्नो ने बिलकुल धीमी आवाज़ मे अंशुल के काम मे कहा - आशु आहिस्ता........
धन्नो के मुँह से सिर्फ ये दो लफ्ज सुनकर अंशुल का सारा डर छुमंतर हो गया और वो अपने हाथो से धन्नो के स्तन को महसूस करने लगा जिससे धन्नो को भी काम के सागर मे आना पड़ गया और अंशुल के साथ इस सफर का मज़ा लेना पड़ा.....
अंशुल ने अब तक धन्नो की गर्दन पर दर्जनों चुम्बन कर डाले थे और उसके हाथ धन्नो की छाती पर उभार के ऊपर निप्पल्स को छेड़ रहे थे...
धन्नो आज सालों बात जो सुख अनुभव कररही थी उसमे डूब चुकी थी उसने अंशुल की अब तक रोकना तो छोड़ कुछ बोला तक नहीं था....
काकी बेग थोड़ा आगे करो.... अंशुल ने कहा तो उसके इरादों से अनजान धन्नो ने उसके कहे अनुसार अपनी गोद मे रखा बेग थोड़ा आगे सरका लिया...
अंशुल अपना दाया हाथ धन्नो के स्तन से नीचे लाते हुए धन्नो की नाभि का रास्ता तय करके हलकी सी साडी ढीली करता हुआ उसकी बुर तक ले आया मानो धन्नो की बुर महसूस करना चाहता हो...

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अपनी बुर पर अंशुल का हाथ महसूस करके धन्नो पूरी तरह बहक चुकी थी उसने मादक निगाहो मे अंशुल की आँखों मे देखा तो जहाँ कुछ देर पहले शर्म थी वहा अब बेशर्मी झलक रही थी..
अंशुल की मुठी मे धन्नो की बालों से घिरी काली बुर थी जिसे अंशुल प्यार से सहला रहा था और अब बुर के मुहने पर अपनी मिडिल फिंगर रखकर अंदर डालने लगा था....
धन्नो तो जैसे जन्नत मे पहुंच गई थी इतनी भीड़ मे भी उसे वो सुख मिल रहा था जो उसे कभी बंद दरवाजे के भीतर नहीं मिल पाया था..
अपनी उंगलियां अंदर बाहर करते करते अंशुल ने धन्नो की बुर पूरी तरह गीली कर दी थी और कुछ देर बाद तो एक जोर की सुनामी अंशुल ने अपने हाथ पर महसूस की थी शायद धन्नो झड़ चुकी थी...
धन्नो को यक़ीन नहीं हो रहा था जो उसके साथ हुआ था वो सच था.... बचपन मे उसकी गोद मे खेलने वाला आशु आज उसे अपनी गोद मे खिला रहा था और इतना आंनद दे रहा था जितना उसे कभी नहीं मिला था.....
अंशुल को जब लगा की धन्नो झड़ चुकी है वो उसकी साडी से अपना हाथ साफ करता हुआ अपने आप को कण्ट्रोल करने लगा.. जैसे खुदको कुछ समझा रहा हो...

अब कुछ मिनटों का ही सफर बाकी थी रात भी हो चुकी थी... जब गाडी गाँव के मोड़ पर रुकी तो दोनों साथ मे नीचे उतर गया...अब धन्नो को लाज आ रही थी और वो अंशुल से नजर तक नहीं मिला पा रही थी... दोनों के कदम अपने आप घर की तरफ बढ़ गए.. दोनों बिना कुछ बोले धन्नो के घर तक आ गए अंशुल ने बिना कोई बात किये बेग धन्नो को दे दिया और अपने घर की तरफ चला गया....
धन्नो ने भी बेग लेकर घर का दरवाजा बंद कर लिया...

आधे घंटे बाद अंशुल को घर के दरवाजे पर दस्तक महसूस हुई तो अपने कमरे से निकलकर बाहर आ गया.. अंशुल इस वख्त 2-3 पेग शराब पी चूका था ओर हलके सुरूर मै था... दरवाजा खोलकर देखा... बाहर धन्नो हाथो मे खाने का बर्तन लिए खड़ी थी... जो अंशुल के दरवाजा खोलने पर बिना बोले अंदर आ गई थी.. अंशुल ने दरवाजा लगा दिया और धन्नो जब खाना रखकर वापस जाने लगी तो उसका हाथ पकड़ कर अपनी बाहों मे खींच लिया......

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करीब एक घंटे बाद अंशुल अपने घर की रसोई मे खड़ा हुआ था उसके हाथ मे धन्नो के बनाये खाने की एक कोर थी जिसे उसने अभी अभी अपने मुँह मे डाला था और अपनी उंगलियों को चाटते हुए खाने का स्वाद ले रहा था..... रात के नो बज चुके थे और अब तक क़स्बा पूरी तरह शांत हो चूका था शहर की चहल पहल से दूर इस कस्बे मे शाम होते होते लोग घर मे चले जाते थे और रात के नो - दस बजे यूँ लगता था जैसे आधी रात हो चुकी हो.......

अंशुल एक के बाद एक निवाला अपने मुँह मे डाल कर खा रहा था वहीं धन्नो अंशुल के आगे अपने घुटनो पर बैठी हुई थी.. कमर से ऊपर उसके बदन पर अब एक भी कपड़ा नहीं रह गया था उसके विशाल स्तन उसकी छाती पर आम की भाती लटक रहे थे मानो सामने वाले को चूसने का निमंत्रण दे रहे हो.. धन्नो के दोनों हाथों मे अंशुल का भीमाकार लिंग था जो अपनी पूरी औकात मे आकाश की ओर अपना मुँह करके अपनी ताकत का परिचय सामने बैठी धन्नो को दे रहा था.. अंशुल ने खाना ख़त्म किया ही था की धन्नो ने लिंग पर अपने होंठों की चुम्बनवर्षा प्रारभ कर दी ओर फिर अंशुल के साफ-सुथरे मोटे-लम्बे लिंग को अपने मुँह मे भरकर किसी भूखी-प्यासी कुतिया की तरह अपने मुखमैथुन से आनंदित करने लगी......

अंशुल की आँखों के सामने धन्नो का ये रूप दोनों के बीच कामुकता ओर मादकता भर रहा था.... 10-15 मिनट बाद ही अंशुल ने धन्नो के दिए मुखमैथुन से उत्तेजित होकर धन्नो के मुँह मै अपने गाड़े वीर्य की धार छोड़ दी जिसे धन्नो ने प्रसाद की तरह ग्रहण करते हुए अपने गले से तुरंत नीचे उतार लिया और अंशुल के चेहरे को देखकर मुस्कुराने लगी मानो अभी अभी उससे मिले प्रसाद के लिए धन्यवाद कह रही हो.......

अंशुल का रूम अंदर से बंद था और रात के ग्यारह बज चुके थे.... धन्नो के बदन पर अब एक भी कपड़ा नहीं रह गया था और अंशुल भी अपनी कुदरती अवस्था मै आ चूका था.. अंशुल की स्टडी टेबल पर धन्नो अपने दोनों हाथ आगे करके झुकी हुई थी और उसकी भारी भरकम चूचियाँ टेबल की चिकनी प्लाई पर आगे पीछे फिसल रही थी... अंशुल धन्नो के बिलकुल पीछे खड़ा हुआ अपने सीधे हाथ से धन्नो के लम्बे-काले बाल जिनमे कुछ कुछ जगह सफ़ेदी भी थी पकड रखा था और अपने उलटे हाथ से धन्नो की कमर पकडकर बार-बार अपने लिंग का हिला देने वाला प्रहार धन्नो की बुर पर कर रहा था जिससे धन्नो काम के अथाह सागर मै डूबी हुई सिस्कारिया ले रही थी जिससे पूरा माहौल कामाधिन हो चूका था.....

रात के साढ़े बारह बजते-बजते धन्नो ने अंशुल के लिंग पर से अपनी बुर कुटाई के बाद वीर्य से भरा कंडोम उतार लिया था और अभी अभी वापस झड़कर पहले की तरह अपने घुटनो पर आ गई थी और अंशुल के लिंग को अपने मुँह मै वापस भर लिया था.. अंशुल ने एक सिगरेट जला ली और कश लेते हुए कामुक निगाहों से धन्नो को देख रहा था की कैसे धन्नो पूरी मेहनत के साथ उसके लिंग को सुख देने मै लगी थी.. धन्नो मुखमैथुन के बीच बीच मै अपनी आँखे ऊपर करके बार बार अंशुल की आँखों मै देखकर मुस्कुरा रही थी और बदले मै अंशुल भी सिगरेट के कश लेता हुआ मुस्कुराते हुए उसे देख रहा था....

अंशुन ने सिगरेट ख़त्म होने पर धन्नो का हाथ पकड़कर उसके मुँह से अपना लिंग निकाल लिया और उसे खड़ा करके दिवार से चिपका दिया जिसके बाद अपने एक हाथ से धन्नो की जांघ पकड़कर उसका पैर उठाते हुए अपने लिंग को उसकी बुर मै डालने लगा....
लल्ला..... गुब्बारा तो लगा ले....
मैं संभाल लूंगा काकी....
इतनी सी बात चित के बाद धन्नो की काली बुर पर अंशुल के लिंग की थाप से पूरा कमरा गुजने लगा.....

एक के बाद एक कई बार धन्नो झड़ चुकी थी लेकिन इस बार अंशुल का स्खलन नहीं हुआ था, रात के डेढ़ बज चुके थे और धन्नो अंशुल के बिस्तर पर लेटी हुई अब तक अंशुल से अपनी बुर कुटाई करवा रही थी और अंशुल धन्नो का कामुक चेहरा देखकर उसे भोग रहा था लेकिन उसके मन मै अब वो उत्तेजना नहीं आ रही थी..... उसे अब तक मालूम हो चूका था की धन्नो के प्रति उसका केवल आकर्षण ही था जो एक बार मै ख़त्म हो चूका था......

आह्ह.... लल्ला.... कब से कर रहा है....
निकलता क्यूँ नहीं है तेरा? अह्ह्ह्ह....
मेरी हालत ख़राब हो रही है....
हाय.... अब तो जलन भी होने लगी है.....
लल्ला... ला.... मुँह से ही निकाल देती हूँ तेरा.....

बस थोड़ी देर काकी.....
अभी निकाल दूंगा....
ये कहते हुए अंशुल ने अपनी आँखे धन्नो के चेहरे से हटा कर कमरे की दिवार पर लगी अपनी माँ पदमा देवी की बड़ी सी तस्वीर पर जमा ली....
अपनी माँ पदमा की तस्वीर देखते हुए अंशुल कामुकता और प्रेम से भर गया और जोर जोर से धन्नो की बुर कुटाई करने लेगा जिससे कुछ ही मिनटों मै अंशुल झड़ने की कगार पर आ गया... जब अंशुल झड़ने वाला था तो उसने अपना लिंग धन्नो की तहस नहस होकर बर्बाद हो चुकी बुर से निकाल कर सीधा धन्नो के मुँह मै दे दिया और अपना सारा वीर्य 8-10 धार मै प्रवाहित कर दिया जिसे धन्नो ने बड़ी सहजता से ग्रहण कर पी लिया....

सुबह के चार बज चुके थे अंशुल अपने बिस्तर पर दिवार से अपनी पीठ से लगाए दिवार का सहारा लेकर पैर फैलाये बैठा था और उसकी गोद मै धन्नो काकी अपनी बुर मै उसका लिंग लिए उसकी ओर मुँह किये बैठी उसे चुम रही थी दोनों ने अब तक कपडे नहीं पहने थे और ज्यादा बात भी नहीं की थी, सोने की कोशिश की थी मगर नींद दोनों की आँखों मै नहीं थी अंशुल सिगरेट के कश लगा रहा और धन्नो अंशुल को उसके बचपन के किस्से सुना कर बच्चों की जैसे हंस रही थी..
धन्नो ने रातभर अंशुल के होंठो को इतना चूमा था की उसके होंठ कुछ सूजे लग रहे थे.....
कुछ देर बाद फिर से अंशुल की गुजारिश पर धन्नो ख़ुशी से अपनी बुर देने को राज़ी हो गई तो इस बार भी अंशुल ने पदमा की तस्वीर देखते हुए अपनी आगे घोड़ी बनी धन्नो काकी को अपनी माँ पदमा सोचकर उसकी स्वारी की और पांच बजते बजते उसे अपने वीर्य का दान किया...

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तू तो बिलकुल घोड़ा हो गया है लल्ला....
पदमा से कहकर जल्दी ही तेरे लिए भी एक सुन्दर सी लड़की देखनी पड़ेगी जो तेरा ख्याल रख सके....
जल्दी ही तेरा भी ब्याह करना पड़ेगा....
अब छोड़ भी दे लल्ला... कोनसा इनमे दूध आता है जो तू बच्चों की तरस चूची चूस रहा है...
अब जाने दे वरना कोई देख लेगा तो फिर जवाब देते ना बनेगा दोनों से....
चल छोड़ मुझे..... प्यार से हँसते हुए धन्नो से अंशुल से कहा...
काकी एक बात पुछु सच सच बताओगी?
पूछ....
तुम चन्दन भईया ओर मुझमे ज्यादा प्यार किसे करती हो?
कोई माँ अपने बच्चों मै फर्क कर सकती है भला... जैसे मेरे लिए चन्दन है वैसे ही तू है... मैं तुम दोनों को जन्म नहीं दिया तो क्या हुआ? प्यार तो अपना मानकर किया है....
काकी हमारे बीच जो हुआ किसीको बताओगी तो नहीं?
अरे पागल हो गया है क्या लल्ला? तू भी किसी से इस बारे मै जिक्र ना करना.... अच्छा अब छोड़ मेरी चूची.... जाने दे....

धन्नो ओर अंशुल घर के बाहरी दरवाजे पर खड़े थे जो अंदर से बंद था सुबह साढ़े पांच होने वाले थे दोनों ने एक दूसरे को अभी चूमने शुरु ही किया था मानो दोनों एकदूसरे को गुड बाय किस दे रहे हो जब किस टूटी तो अंशुल ने कहा - काकी मैं जानता हूँ मैंने आपके साथ जो कुछ किया वो सही नहीं है पर मैं वासना में बहक चूका था.. मुझपर अपना कोई इख़्तियार नहीं था...
धन्नो - लल्ला.... छोड़ इन सब बातों को... गलती तो हम दोनों ने की है.... इसमें तेरे अकेले का कसूर कैसे हुआ भला? मुझे ही हमारी उम्र ओर रिश्ते का लिहाज़ करना चाहिए था... मगर तू चिंता मत कर.. मैं इस बारे में किसी से कोई बात नहीं करुँगी ओर ना ही तू करना.. मैं अब भी तेरी पहले वाली धन्नो काकी हूँ....
अंशुल की आंख में आंसू थे वो बोला - काकी.. आप बहुत अच्छी हो..
ये कहते हुए अंशुल ने एक बार फिरसे धन्नो को अपनी बाहों में भर लिया और उसके होंठ चूमकर बाहर का दरवाजा खोल दिया...
धन्नो अपने चेहरे पर मुस्कुहाट और दिल में नया अहसास और बदन में नई ऊर्जा लेकर इस भोर में अपने घर आ गई... आज उसकी आँखों में नींद नहीं थी और उसे अपनेआप में तरोंताज़गी महसूस हो रही थी पहले जहाँ वो कुछ थकी हुई सी महसूस करती थी वही अब उसे ऐसा कुछ महसूस नहीं हो रहा था...


समय अपने हिसाब से गुजरा और बारात जाने का दिन भी आ गया, धन्नो के घर में मेहमानों का ताँता लगा हुआ था.....
अरे आशु भईया... चन्दर भईया कहा है? फ़ोन भी बंद है उनका...
मुझे क्या पत्ता? भोर में खेत की ओर निकले थे तब से मैंने नहीं था....
वो हज़ाम कब से बैठा इंतजार कर है उसे अपनी दूकान भी जाना है उसे आप जाकर एक बार देख लो खेत में हो तो बुला लाना....
तू खुद क्यूँ नहीं चला जाता? यहां बस आराम करने आया है? हाथी कहीं का....
अरे हमारे पैर में मोच है आशु भईया.... वरना आप तो जानते हो हम कितने फुर्तीले है.. कहने से पहले काम कर देंते है...
हां हां.. देखी है तुम्हारी फुर्तीली.... चार कदम चलने में पैर जवाब दे जाते है....
जाकर बुला ला ना लल्ला... ये तो है ही कामचोर....
धन्नो ने अपने हाथो से गुड़ के 2-3 छोटे छोटे दाने अंशुल के मुँह में डालकर कहा...
हम कामचोर नहीं है काकी.... हमें कामचोर मत कहो.. कल हमने ही आँगन और छत पर तंबू बंधवाया था सुरपाल के लड़को से....
बता तो ऐसे रहा है जैसे तूने ही बाँधा हो....
तुम भी काकी किसके साथ बहस करने बैठ गई, इस ढ़ोल के बारे में तो सब जानते है..
ढ़ोल नहीं है हम.. हमारा नाम रमेश है रमेश... आशु भईया के पास तो मोटर है.. उन्हें खेत जाकर आने में कितना समय लगेगा? हम यहां और काम संभाल लेंगे है...
धन्नो और अंशुल 17-18 साल के उस भैंस की तरह मोटे देखने वाले लड़के रमेश की बात सुनकर एकदूसरे की तरफ देखते हुए हंसने लगे.. रमेश पड़ोस में ही रहने वाली सुरीली चाची का लड़का था जो एक नम्बर का आलसी और कामचोर था खाने और मुहजोरी करने के अलावा कोई ओर काम नहीं था रमेश को....
अंशुल अपनी बाइक लेकर चन्दन को बुलाने खेत की तरफ निकल गया और खेत के किनारे बाइक रोककर पक चुकी लहलाहती फसलो के बीच बनी पगदंडी से होता हुआ खेत के अंदर चला गया......

आज तो तेरा ब्याह हो जाएगा चन्दन....
दुल्हन आने के बाद भूल तो नहीं जाएगा मुझे?
कैसे भूल सकता हूँ? तुमने कितना ख्याल रखा है मेरा.. तुम नहीं होती तो मुझे कौन संभालता? ब्याह के बाद में मैं तुमसे मिलना नहीं छोड़ सकूंगा...
ये सब कहने की बात है मैंने सुना है तेरी दुल्हन रूपवाली है उसके आगे मेरी देह कहा याद रह जायेगी तुझे चन्दन....
ऐसी बात मत करो.... वादा करता हूँ ब्याह के बाद भी आपसे मिलने आऊंगा...
कभी कभार सही चन्दन.. अगर तुम आओगे तो मुझे आराम रहेगा........ (कोई आहट सुनकर) लगता है कोई आ रहा है.... अब हमें चलना चाहिए चन्दन तुम्हारा ब्याह है.... कोई इस तरफ तुम्हे ही ढूंढ़ने आया होगा...
हां सुबह आशु ने मुझे इस तरफ आते देखा था.... ठीक है... मैं पीछे से घर निकल जाता हूँ तुम बसंत के खेतो से जली जाओ....
ठीक है चन्दन...... कहते हुए उस चालिस पार कर चुकी देहाती महिला ने जिसका रूप अब तक उसके साथ था चन्दन को आखिरी चुम्बन देकर भेज दिया ओर खुद भी फसलो के बीच बनी इस छोटी सी जगह से निकल कर बाहर पड़ोस के खेत की तरफ चली गई जहा से गुजरते हुए आशु ने उसे देख लिया...

अरे चाची..... ओ सुरीली चाची.... चिल्लाते हुए आशु ने उस औरतों को पुकारा... एक दो बार तो सुरुली ने ध्यान नहीं दिया पर आशु जब करीब आकर जोर से बोला तो उसका ध्यान आशु की तरफ गया...

अरे लल्ला.... तू यहां क्या कर रहा है?
चन्दन भईया को ढूंढने आया था चाची.... और तुम मिल गई... चन्दन भईया को देखा तुमने?
नहीं लल्ला.... वो यहां कहा होगा? घर पर नहीं है? आज तो ब्याह है उसका....
हां चाची.... अच्छा... घर जा रही हो?
हां लल्ला....
चलो मैं छोड़ देता हूँ.... मैं भी वापस घर ही जा रहा हूँ....
मैं चली जाउंगी लल्ला.... तुम रहने दिओ...
अरे चाची कहा 2 कोस पैदल चलकर पैरों को दुख दोगी... आओ मैं छोड़ दूंगा...
ठीक है लल्ला.... चल....
कहते हुए सुरुली ने जैसे अंशुल के साथ कदम बढ़ाया उसका मुड़ गया...
हाय दइया..... आह्ह....
क्या हुआ चाची....
मेरा पैर....
अंशुल पैर देखकर - मोच आई लगता है चाची.... देखकर चलना भी भूल गयी हो तुम तो... लगता है उम्र हो गई है तुम्हारी.... इतना कहकर धीरे से हँसता हुआ अंशुल सुरीली के साथ मसखरी करता है..
लल्ला क्या मसखरी कर रहा है मेरे साथ.. ला हाथ दे..
सुरीली अंशुल का हाथ पकड़ कर खड़ी होती है मगर चलने में उसे बहुत दर्द हो रहा था....
बहुत दर्द हो रहा है लल्ला.... मैं तो मर ही गई आज....
आशु सुरीली का हाथ छोड़कर अपने दोनों हाथो से उसे अपनी गोद में उठा लेता है...
चिंता मत करो चाची मैं हूँ ना.....
अरे आशु.... छोड़.... लल्ला... कोई देख लेगा..... छोड़...
कोई नहीं है चाची तुम फालतू डरती हो... चलो सडक तक की बात है... कहता हुआ अंशुल सुरीली को गोद में लिए खेत की पगदंडियो से होता हुआ अपनी बाइक की तरफ चल देता है...
लल्ला..... तेरे हाथ में दर्द होगा...
कहा चाची? बच्चों सा वजन है तुमने... लगता है खाना नहीं खाती हो...

जिसके जीवन में सुनापन हो उसके जीवन में दो मीठे बोल बोलने वाले की कद्र भगवान से कहीं अधिक होने लगती है सुरीली के साथ भी वैसा ही था घर पर पति बब्बन का तो उसे कोई सहारा ही ना था और संतान भी उसके साथ कुछ पल बैठने की फुर्सत नहीं निकाल पाती थी आस पड़ोस में औरतों का अलग समूह था मुश्किल से धन्नो कुछ देर बात करती थी तो उसे चैन पड़ता था चन्दन और सुरीली का सम्बन्ध भी वहीं से जुड़ा था..... चन्दन ने दो मीठे बोल क्या सुरीली से कहे सुरीली ने तो उसे अपना मान लिया आज कुछ ऐसा ही आशु के लिए उसे लग रहा था.. आशु चन्दन से दो बरस छोटा है दिखने में कहीं अधिक सुन्दर साजिला और सम्पन है देह भी चन्दन से ज्यादा गठिली और मजबूत लगती है उसका आकर्षण मनमोहक था सुरीली जैसे नहीं उसके लिए अपने दिल के द्वार खोलती?

लल्ला..... तू घर से नज़र का टिका लगाकर के निकला कर.... कहीं किसी की नज़र लगी तो सब चौपट हो जाएगा....
चाची अब तुम भी मसखरी करने लगी...
अरे सच कह रही हूँ लल्ला.... कहीं तेरे इस चाँद से मुखड़े को मेरी ही ना लगा जाए...
अंशुल हसता हुआ- तुम तो मुझे ही छेड़ने लगी चाची... लगता है चाचा ठीक से ख्याल नहीं रखते...
चाचा ख्याल नहीं रखते तो तू कहे नहीं रख लेता अपनी चाची का ख्याल? बोल लल्ला....
मैं कहा ख्याल रख सकता हूँ चाची.... मैं तो बच्चा हूँ आपका... चलो पीछे बैठो.... जरा संभाल कर पैर में ना लगा जाए.....
अब तू दूध पीता बच्चा थोड़ी ही है लल्ला.... खैर छोड़... कभी अगर अपनी इस सुरीली चाची से मिलने का मन हो तो घर आ जाना.... कोई परहेज न रखूंगी लल्ला...
ठीक है चाची.... लो तुम्हारा घर भी आ गया... मैं धन्नो काकी के पास जाता हूँ देखता हूँ चन्दन भईया आये या नहीं...
वो तो घर पहुंच गया होगा लल्ला....
तुमको कैसे पत्ता चाची? तुम कोई ज्योतिषी हो...
अरे आज ब्याह है उसका....
चलो चाची....
सुरीली को छोड़कर अंशुल जब धन्नो के पास आया तो चन्दन अपनी हज़ामत बनवा रहा था और धन्नो आँगन मैं बैठकर गीत गा रही महिलों के साथ बैठकर चाय पी रही थी...
देखते ही देखते दोपहर ढल चुकी थी और बारात के जाने का वखत हो चूका था.....
अरे भाई गोपाल अब और कितना समय लगेगा बबलू को आने में?
पत्ता नहीं चन्दन.... वो साला है ही चुटिया आदमी... सुबह के लिए कहा था अब तक नहीं आया... कह रहा है रास्ते में है...
बबलू चन्दन का सूट फिटिंग करने के लिए लेकर गया था जिसे अब तक आ जाना चाहिए था लेकिन किन्ही कारणों से अब तक नहीं आया था...
गोपाल तुम ऐसा करो चन्दन भईया के साथ बारात लेकर निकालो... ज्यादा लेट करना ठीक नहीं रहेगा...
बबलू के आते ही मैं सामान लेकर आ जाऊंगा...
अंशुल ने कहा तो धन्नो और गोपाल ने अपनी हामी भरदी जिससे सभी बाराती एक पुरानी बस में कचरे की तरह भरके दूल्हे की कार के पीछे पीछे हुसेनीपुर की तरफ रवाना हो गए थे...

शाम का समय हो गया था और बबलू अब जाकर कहीं आया था....
अरे वनराकस.... कहा मर गया था.. पत्ता नहीं था आज बारात जानी है... तू दर्जी है भी या नहीं?
अरे काकी आज ज्यादा काम था और दूकान पर मैं अकेला इसलिए आते आते देर हो गई... वैसे भी कल सुबह विदाई में पहनने वाले है चन्दन भाई इस सूट को.... बारात गई?
वो तो कब की चली गई... तेरे लिए इंतेज़ार थोड़ी करती... ला दे...
धन्नो बबलू से सूट लेकर घर के अंदर चली जाती है जहा कुछ देर पहले मेला लगा हुआ था तो अब सनाटा पसरा हुआ था.... एक दो महिलये अभी भी रह गई थी...
गुल्ली ताई - धन्नो आ गया बबलू....
धन्नो - हां ताई.... अब आया है मुआ...
गुल्ली ताई - अरे तो जाके आशु को दे दे वो साथ ले जाएगा...
धन्नो - हां ताई बस वही कर रही थी पहले जरा ये आँगन साफ कर लू.. रात को गाँव की सारी महिलाओ का जमघट यही तो लगने वाला है...
गुल्ली ताई - अरे वो तो रात को लगेगा.... तू पहले आशु को सामान दे आ... वो तेरी राह देखता होगा.. मैं भी घर हो आती हूँ..
ठीक है ताई... कहती हुई धन्नो हाथ में सामान लिए अंशुल के घर चली जाती है और दरवाजा खुला था...

आशु आशु.... धन्नो ने अंदर आकर आंगन से आवाज़ दी तो अंशुल अपने कमरे से बोला- काकी ऊपर...
धन्नो अंशुल के कमरे की तरह बढ़ गई और रूम में आकर्षित सामान रखते हुए बोली - लल्ला ले.... इसे लेता हुआ जाना तू भी कहीं भूल ना जाना... कहते हुए धन्नो अंशुल के रूम से जाने लगी तो अंशुल ने धन्नो का हाथ हाथ पकड़ लिया....

छोड़ लल्ला.... तू भी क्या करता है? किसीने देख लिया तो क्या सोचेगा?
कोई नहीं आने वाला काकी.... फ़िक्र मत करो...
ठीक है लल्ला.. पर थोड़ा जल्दी.. तू बहुत समय लगता है....
ठीक है काकी.....

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अंशुल ने धन्नो को बिस्तर पर लिटा कर उसका घाघरा ऊपर सरका दिया और चड्डी उतार फ़ेंकी...
गुब्बारा लगा ले बब्बूआ.....
मैं संभाल लूंगा काकी.. तुम तो जानती हो... कहते हुए धन्नो की बुर में अपने लंड को घुसाकार उसे चोदना शुरू कर दिया...
आह्ह.... लल्ला.... आह्ह.... तनिक आराम से... आह्ह.... आह्ह....
अंशुल अब भी अपने नीचे लेटी धन्नो में अपनी माँ पदमा को तलाश रहा था और कामुकता से धन्नो के बदन को भोग रहा था.... इस बार उसे झड़ने में ज्यादा समय नहीं लगा और 15-20 की चुदाई के बाद धन्नो के मुँह में अपने वीर्य की धार छोड़ दी.... धन्नो के चेहरे पर एक शर्म थी जो अंशुल साफ देख पा रहा था धन्नो अपनी चड्डी पहन कर जाने लगी तो अंशुल बोल पड़ा - बाल मेरे लिए साफ किये है काकी...
धन्नो शर्माती हुई - हट... पागल कहीं का.... अब जा....




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