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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
Smart-Select-20210324-171448-Chrome
भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:
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Rajesh chod lehlas eh बात के खुशी भी baa lekin oker dhamakedar varnan hokhe k chahat rahal ab saryu singh gussa mein jordar tarike se gaand marihan kahi gussa mein aake sugna k Aise hi na chhod deve bina chode
Next update ke intezaar ba
 

Lovely Anand

Love is life
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Lagta hai suraj aur suguna ke milan ki adharshila rakh rahi hai niyati banaam lekhak mahodaya.

Hatotsahit karne wala update.
हतोत्साहित न हों न्याय होगा।
 

Lovely Anand

Love is life
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Rajesh chod lehlas eh बात के खुशी भी baa lekin oker dhamakedar varnan hokhe k chahat rahal ab saryu singh gussa mein jordar tarike se gaand marihan kahi gussa mein aake sugna k Aise hi na chhod deve bina chode
Next update ke intezaar ba
सुगाना चोदाइल बिया की ना ई त बादे में।मालूम चली। तब ले अपडेट के राह देखत रहे के बा। बाकि सरयूसिह का करीहें ई आले मिली...
 

Rekha rani

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Kal se ye update bar bar padh chuki hu aur saryu Singh pr kya gujar rhi hogi soch soch kr man me ajib ajib khayal aa rhe hai, jisko usne taumra apna mana aur payar kiya uski yani pr kisi aur ka virya dekh kr kya bit rhi hogi, puri kahani ek taraf abhi tak ki aur is update ka last paragraph ek taraf kamal kiya aapne apni lekhni se
 
Last edited:

NEHAVERMA

Member
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भाग -58

डॉक्टर उस समय भी एक दुर्लभ प्रजाति थी। बनारस महोत्सव में डॉक्टर का मिलना असंभव था और वह भी इस धुआंधार बारिश के मौसम में। सब एक-दूसरे का मुंह ताक रहे थे। ऐसा कोई व्यक्ति न था जो सुगना की मदद कर सकता था। और जो था वो सुगना की गुदांज छेद के उद्घाटन की तैयारी में अपने हथियार में धार लगा रहा था….

अब आगे....

मूसलाधार बारिश हो रही थी। सरयू सिंह अपनी बहू की सेज सजा कर उसके छेद का उद्घाटन करने की पूरी तैयारी कर चुके थे। मौका देखकर उन्होंने शिलाजीत का सेवन भी कर लिया था। हथियार में धार और दिल में प्यार लिए वह बारिश के रुकने का इंतजार करने लगे। रह रह के बस मक्खन को देखते जिसकी मदद से उन्हें सुगना की मखमली गांड का उद्घाटन करना था.. वह पंडाल में आई विपत्ति से पूरी तरह अनजान थे।

राजेश ने हिम्मत जुटाई और वह भागकर भीगते हुए मेला प्रबंधन केंद्र की तरफ गया।


उधर सोनू ने बनारस महोत्सव आते जाते एक डॉक्टर का घर देखा था वह भीगता हुआ उस डॉक्टर के घर की तरफ दौड़ पड़ा यहअलग बात थी कि सोनू के जाने से वह डॉक्टर कतई बनारस महोत्सव नहीं आता परंतु सोनू अपनी बहन और भतीजे को उस दुख में देख नहीं सकता था।

रतन तो निर्विकार और निरापद था। वह भी पंडाल से बाहर निकल गया इतने दिनों तक मुंबई में रहने के कारण उसका बनारस शहर से संपर्क टूट गया था वह बाहर निकल कर लोगों से मदद मांगने लगा….

जब तक कजरी सरयू सिंह को बुलाने के लिए कह पाती तब तक तीनों मर्द अलग-अलग दिशाओं में जा चुके थे। सुगना भी कातर निगाहों से पंडाल के गेट की तरफ देख रही थी काश उसके बाबूजी आ जाते और अपने पुत्र को अनजान विपत्ति से निकालने में उसका सहयोग करते।

आखिरकार राजेश ने सफलता पाई और मेला प्रबंधन से एंबुलेंस प्राप्त करने में सफल हो गया कुछ ही देर में एंबुलेंस विद्यानंद के पंडाल के सामने खड़ी थी सुगना सूरज को लेकर एंबुलेंस में बैठ गई उसका साथ देने के लिए कजरी जाने लगी तभी लाली ने कहा..

"चाची तू रहे तो हम जा तानी ओहिजा कुछ काम पड़े त हम संभाल लेब तू ई दोनों बच्चा के संभाल ल"


उसने अपने दोनों बच्चों राजू और रीमा से कहा

"नानी के तंग मत करिहा लोग और अच्छा से रहीह लोग"

राजू और रीमा को पांडाल में बहुत आनंद आता था वह दोनों सहर्ष रुक गए और लाली सुगना और सूरज के साथ एंबुलेंस में बैठ गई। राजेश ड्राइवर के बगल वाली सीट पर बैठ गया। एम्बुसेन्स सांय सांय करती हॉस्पिटल की तरफ बढ़ गयी।

सूरज की तबीयत सचमुच खराब हो गई थी सुगना ने अपने जीवन में यह दिन कभी नहीं देखा था। आज मिले अकस्मात धन की खुशियां एक पल में ही काफूर हो गई थी। माता के लिए पुत्र से बड़ा कोई धन नहीं होता है आज सूरज विपत्ति में था और सुगना का हृदय व्यथित।

हॉस्पिटल पहुंचने पर डॉक्टर ने सूरज का निरीक्षण किया और यह बात सच थी वाकई मालपुए की वजह से उसे उल्टियां शुरू हो गई थी कजरी द्वारा बनवाया गया मालपूआ उसे रास ना आया था।

डॉक्टर ने उसे कुछ दवाइयां दी और थोड़ी ही देर में सूरज भला चंगा हो गया रात के 10:00 बज चुके थे बाहर अभी भी बारिश हो रही थी।

हॉस्पिटल से राजेश की घर की दूरी कम थी जहां आसानी से जाया जा सकता था बनारस महोत्सव वापस जाना बेहद कठिन था।

सुगना लाली और राजेश के साथ उनके घर आ गई सूरज को सामान्य होते थे उसके चेहरे पर खुशियां स्पष्ट दिखाई देने लगी थी वह अब लाली और राजेश से खुलकर बात कर रही थी । लाली के घर पहुंच कर उसे सरयू सिंह की याद आई और वह एक बार फिर परेशान हो गई काश वह अपनी स्थिति सरयू सिंह को बता पाती काश उसके बाबूजी कैसे भी करके यहां लाली के घर आकर उसे ले जाते।

"का सोचतारे भीगल बाड़े कपड़ा बदल ले फेर सोचिहे" लाली ने सुगना को उसकी सोच से बाहर निकाला.

सुगना ने तो सूरज को तो अपने आंचल में ढककर भीगने से बचा लिया था परंतु तीनों वयस्क इंद्रदेव की रिमझिम बारिश से न बच पाए थे।

लाली अंदर गई और अपने संदूक से दो नाइटी लेकर बाहर आ गई उसने सुगना को देते हुए कहा..

"कौन वाला पहिनबे?

सुगना ने देखा एक नाइटी उत्तेजक थी और दूसरी बेहद उत्तेजक। दोनों ही नाइटी प्रेमी जोड़ों के लिए ही बनी थी सुगना ने कहा

"और दूसर नइखे"

"सब त भीग गइल बा…"

बारिश के कारण लाली द्वारा बाहर सुखाने के लिए डाले गए कपड़े भी भीग चुके थे।

राजेश दोनों नाइटियो को देख कर खुद भी उत्तेजित हो रहा था। वह उन दोनों के बीच से हट गया और जाकर अपने कपड़े बदलने लगा। परंतु अपने इष्ट देव से वह मन ही मन यह प्रार्थना कर रहा था कि सुगना लाली की बात मानकर कोई भी एक नाइटी पहन ले।


सुगना के खूबसूरत शरीर को उस नाइटी में देखने की कल्पना कर राजेश मन ही मन प्रसन्न हो रहा था। उसका लण्ड उछलने लगा।

आज उसने सुगना और सूरज की जी भर कर सेवा की थी। उसके छोटे से योगदान ने सूरज के तकदीर में ₹10 लाख का एक ऐसा विशाल धन ला दिया था जो सुगना के परिवार के जीवन स्तर को सुधारने में एक महती भूमिका अदा कर सकता था। सुगना आज राजेश के प्रति कृतज्ञ थी। राजेश ने उसके पुत्र की जान बचा कर आज उसने उसके जीवन में एक ऐसे पुरुष की भूमिका निभाई थी जो पति तुल्य थी।

कुछ ही देर में लाली और सुगना बेहद सुंदर नाइटियो में लाली की रसोई में दूध गर्म कर रहीं थी।

राजेश हाल के बिस्तर पर बैठा सूरज के साथ खेल रहा था और उन दोनों खूबसूरत सुंदरियों को देख रहा था परंतु उसकी निगाहें सुगना से ना हट रही थी।

आज राजेश के दोनों हाथों में लड्डू थे उसकी खूबसूरत पत्नी लाली और मदमस्त सुगना आह ….ऐसा मादक अहसास….खूबसूरत और पतली झीनी नाइटी से दोनों ही सुंदरियों के बदन का उभार स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था । शरीर के ऐसे कटाव ग्रामीण परिवेश में ही देखने को मिलते हैं या फिर फिल्मों में। मध्यमवर्ग की अधिकतर महिलाएं चाह कर भी वह कसाव नहीं पा पातीं खासकर बच्चा होने के बाद।

राजेश ज्यादा देर तक उस खूबसूरती का आनंद न ले पाया बारिश तेज होने की वजह से रेलवे कॉलोनी की लाइट गुल हो गई एक पल के लिए राजेश की आंखों के सामने अंधेरा छा गया गैस की आंच में अब भी सुगना का चेहरा चमक रहा था जाने सुगना के शरीर में भगवान ने कौन सी उर्जा डाली थी उसकी त्वचा हमेशा चमकती थी थोड़ा सा भी प्रकाश पड़ने पर उसकी खूबसूरती और निखर आती।

लाली ने मोमबत्ती जला ली एक मोमबत्ती से उसने रसोई घर में उजाला कर दिया और दूसरी मोमबत्ती को सुगना को देते हुए बोली ले अपना जीजा जी के दूध दे द सुगना एक हाथ में गिलास लिए और दूसरे हाथ में मोमबत्ती लिए राजेश की तरफ चल पड़ी मोमबत्ती की रोशनी सीधे सुगना के चेहरे और छातियों के खुले भाग पर पढ़ रही थी उसकी चुचियों के बीच की बेहद आकर्षक घाटी पीली रोशनी में चमक रही थी सुगना का कुंदन शरीर राजेश की निगाहों में रच बस रहा था..

"जीजा जी दूध ले लीं"

सुगना की मधुर आवाज राजेश को सुनाई जरूर दी पर उसकी आंखें उसके खूबसूरत जिस्म से चिपक सी गयीं थीं।

सुगना ने फिर कहा..

"कहां भुलाईल बानी भाई दूध ले लीं"


रसोई में खड़ी लाली ने सुगना द्वारा दोबारा कहीं बात सुन ली और उसे राजेश की मनोदशा का अंदाजा हो गया उसमें मुस्कुराते हुए कहा

"तोहरे पुआ में भुलाईल होइहें"

सुगना शर्म से पानी पानी हो गई। लाली ने स्पष्ट तौर पर वही बात कह दी थी जो सुगना मन ही मन सोच रही थी राजेश लाली की बात सुनकर सचेत हो गया था उसने स्थिति संभालते हुए कहा..

"उ नकली पूआ त सब काम खराब कइले बा सूरज बाबू के तबीयत वोही से नु खराब भईल…"

" आज भगवांन बचा लेनी" सुगना कृतज्ञ भाव से बोली।

राजेश ने मुस्कुराते हुए कहा

"आज त सुगना के दिन ह, ₹10 लाख भी जितली और बेटा भी ठीक हो गईल"

"जीजा जी आज ही त आप भगवान बन कर आइनी"

"त भगवान जी के का मिली? राजेश ने मुस्कुराते हुए पूछा"

"सब आपके ही ह बताई का चाहीं?"

लाली भी अब तक उनके करीब आ चुकी थी उसने एक बार फिर राजेश की दुखती रग पर हाथ रख दिया..

"छोड़, उनका जवन चाहीं तोरा से होइ ना"

"हमरा त एगो सूरज जइसन लइका चाहीं" राजेश ने पास खेल रहे सूरज को उठाकर चूम लिया।

मन में सुगना को सोच कर लिया गया यह चुम्बन कुछ ज्यादा ही आत्मीय था सूरज छूटने के प्रयास कर रहा था।

सुगना तो राजेश की बातों का गूढ़ अर्थ न समझ भाई परंतु लाली ने राजेश की मंशा जानकर सुगना से कहा..

"देख तोर जीजा जी का मांग तारे" जो आज उनके संगे सूत रह…उनको साध बुता जाई"

राजेश ने अनजाने में ही सुगना से उसका गर्भधारण मांग लिया था इच्छा तो सुगना की भी थी पर उसके गर्भधारण का प्रयोजन अलग था और राजेश का अलग।

"हट पागल कुछो बोलेले... हम कह तानी की सूरज अतना भाग्यशाली लईका बा जरूर अपना मां बाप के नाम रोशन करी और पूरा परिवार के भी" राजेश ने स्थिति को सामान्य करते हुए कहा….

जीजा साली और लाली के बीच हुई वार्तालाप ने नियति को मौका दे दिया।

कुछ देर की हंसी ठिठोली के बाद सुगना और लाली भीतर कमरे में सोने चली गई और राजेश हाल में ही अपनी मस्तराम की किताबों में डूब गया।

अंदर दोनों सहेलियां बिस्तर पर लेटी आज सुगना के जीवन में हुई धन वर्षा का आनंद ले रही थी..

"ए सुगना का करबे अतना पैसा के"

"हमु बनारस शहर में मकान खरीदब…"

" तब तो बहुत अच्छा बा हमरे साथ खरीद लीहे साथे रहल जायी।"

"अच्छा तोर पेट फुला वे के का भईल आज तक बनारस महोत्सव के आखिरी रात ह तोरा त रतन भैया के पास होखे के चाहीं ते एहजा बाड़े।"

सुगना के दिमाग में विद्यानंद की बातें एक बार फिर घूमने लगी सच आज बनारस महोत्सव की आखिरी रात थी वह अपने बाबूजी के साथ मनोरमा के कमरे में जी कर चुदना चाहती थी परंतु परिस्थितियों ने उसे ऐसी जगह पर लाकर छोड़ दिया था जहां वह न सिर्फ स्वयं को लाचार महसूस कर रही थी अपितु बेहद दुखी थी थी।

उसे पता था कल सुबह ही बनारस महोत्सव से उसके परिवार की विदाई निश्चित थी। नियति ने उसके साथ क्रूर खिलवाड़ किया था उसके बाबूजी उससे कुछ ही दूर पर उपस्थित थे परंतु उन दोनों के बीच का यह फासला मिटा पाना संभव न था।

"कहां भुला गइले" लाली ने सुगना को झकझोरा जो विचार मग्न थी।

"सोचा तानी कि तोर इच्छा पूरा करिए दीं"

"साँच सुगना… उ त सुन के पागल हो जइहें"

"पर ते सम्हाल लीहे…"

सुगना ने मन ही मन निर्णय कर लिया था। अपने पुत्र सूरज की मुक्तिदाता उसकी बहन का सृजन इसी बनारस महोत्सव में होना था इसके लिए समय बेहद ही कम था वह सुबह तक अपने बाबूजी का इंतजार कर सकती थी परंतु वह इसकी पक्षधर न थी। वह अपने भाग्य से अब तक आंख मिचौली खेलती आ रही थी और अब वह भाग्य भरोसे नहीं रहना चाहती थी। अपने पुत्र के साथ घृणित संभोग की आशंकाओं ने उसे अधीर कर दिया था।

अंततः उसने लाली को अपनी सशर्त सहमति दे ही दी। वह किसी भी स्थिति में खुद की नजरों में गिराना नहीं चाहती थी …..पर क्या यह संभव था? नियति सुगना की मासूमियत और उसके मन मे चल रहे द्वंद्व को भली भांति जान रही थी। नियति ने ही इन पात्रों का सृजन किया था और इनका अंत भी उसी के हाथों होना था विधाता ने शायद सुगना के भाग्य में यही लिखा था।

अभी भी बिजली लगातार कड़क रही थी…सुगना ने जीवन में भूचाल आने वाला था।…..

उधर पंडाल में सरयू सिंह सुगना को खोजते हुए आ गए थे। पूरी तरह बारिश से लथपथ सरयू सिंह के चेहरे पर झुझलाहट साफ दिखाई दे रही थी वह पंडाल की वस्तुस्थिति से पूर्णता अनभिज्ञ थे।

"कहां चल गई रहनी हां?" कजरी ने पूछा….. पर उनका उत्तर सुना नहीं। उसने सूरज और उसकी स्थिति के बारे में स्वयं ही सब कुछ बता दिया। परंतु कोई भी यह बात पाने में असमर्थ था कि सुगना और राजेश सूरज को लेकर किस अस्पताल गए हैं।


मरता क्या न करता। सरयू सिंह के पास के पास और कोई चारा न था। इतनी रात को चाहकर भी वह सुगना और सूरज को ढूढने नही जा सकते थे। बारिश अभी भी जारी थी। वह मन मसोसकर रह कर रह गए। झोले में रखा सुगना के दूसरे द्वार भेदन के लाया गया मक्खन उन्हें मुह चिढा रहा था।

अपनी कामवासना के आधीन सरयू सिंह सुगना की मनोस्थिति से अनजान थे। उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सूरज की तबीयत हल्की फुल्की खराब होगी पर राजेश ने जबरजस्ती उसे अस्पताल के बहाने अपने घर ले गया होगा।

आशंकाये आपकी सोच को प्रभावित करती हैं। सरयू सिंह ने अपने मन में राजेश को लेकर जो अवधारणा बनाई थी वह परिस्थितियों को उसी अनुसार देख रहे थे।

एक तो रतन का खत पढ़कर उनके मन में सुगना को खोने का डर समा गया था वह स्वयं को असुरक्षित महसूस कर रहे थे।

सुगना उन्हें अपने हाथों से फिसलती हुई महसूस हो रही थी।

बिजली कड़क रही थी और बारिश थमने का नाम नहीं ले रही शिलाजीत का असर अभी भी कायम था पर लण्ड नाउम्मीद हो चुका था। सुपारे पर उसके द्वारा छोड़ी गई लार सूख चुकी थी। बनारस महोत्सव का छठवां दिन भी सरयू सिंह की आकांक्षाओं को पूरा न कर पाया था।

परंतु लाली के घर में नियति का खेल चालू था।

बनारस महोत्सव का अंतिम दिन…

ड्राइवर सुबह-सुबह विद्यानंद के पांडाल के सामने खड़ा था। सरयू सिह उसका ही इंतजार कर रहे थे। पहले रेलवे कॉलोनी ले चलो। सरयू सिंह सूरज और सुगना से मिलना चाहते थे।ड्राइवर ने कहा..

"मैडम बाहर जाने वाली है पहले उनसे मिल लीजीए वो आपका इंतजार कर रही हैं।" सरयू सिह पशेपेश में थे पर उन्होंने ड्राइवर की बात मान ली जैसे उन्होंने पूरी रात इंतजार किया था वैसे कुछ समय और सही।


मनोरमा द्वारा दी गई राहत सामग्री और कुछ जरूरी कागजात अभी गाड़ी में ही थे। सरयू सिंह को उन्हें मनोरमा को वापस करना था। वो सलेमपुर में की गई गतिविधियों की विस्तृत रिपोर्ट भी बताना चाहते थे। कल शाम बनारस महोत्सव पहुंचते-पहुंचते काफी देर हो गई थी और देर रात को मनोरमा से मिलना उचित नहीं था। और वह खुद भी सुगना और अपने परिवार की खुशियों में मशगूल हो गए थे।

कुछ ही देर बाद सरयू सिंह अपना झोला लिए मनोरमा के होटल के सामने खड़े थे। रिसेप्शन पर पहुंचने के पश्चात उन्होंने मनोरमा के कमरे में संदेश भिजवाया और रिसेप्शन पर बैठकर मनोरमा का इंतजार करने लगे। जब तक मनोरमा आती वह होटल की खूबसूरती को आंखों में बसा रहे थे। क्या रहने की जगह पर कोई इतना भी खर्च कर सकता है?


सरयू सिंह को पैसे की अहमियत पता थी और वह हमेशा से उसका सदुपयोग करते थे परंतु होटल के साज सजावट पर हुए खर्च का अनुमान कर उन्हें यह दुनिया दूसरी ही प्रतीत हो रही थी होटल सचमुच बेहद खूबसूरत था।

तभी मनोरमा सीढ़ियों से उतरते हुए दिखाई दी। सरयू सिंह ने मनोरमा की तरफ देखा यह पहला अवसर था जब मनोरमा ने अपनी नजरें झुका लीं। शायद सरयू सिह से आंख मिलाने में उसे शर्म आ रही थी।


सुबह-सुबह मनोरमा एक ताजे खिले हुए फूल की तरह दिखाई पड़ रही थी। सजा धजा कसा हुआ शरीर। आज पहली बार मनोरमा को उन्होंने अपनी काम वासना से भरी निगाहों से देखा । कल रात में खाये शिलाजीत ने उनके लण्ड में रक्त भर दिया।

मनोरमा करीब आ चुकी थी सरयू सिंह ने खड़े होकर उसका अभिवादन किया। मनोरमा उनकी आंख से आंख नहीं मिला पा रही थी पर उसने उनकी धोती में आया उभार देख लिया था।

सरयू सिंह ने मनोरमा को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। सभी सीढ़ियों से होटल का वेटर मनोरमा का सामान लेकर नीचे उतर रहा था और पीछे पीछे सेक्रेटरी साहब भी नीचे आ रहे थे।

मनोरमा ने सरयू सिंह से कहा मुझे किसी आवश्यक कार्य से लखनऊ निकलना है।

मनोरमा ने सेक्रेटरी साहब से होटल के कमरे की चाबी ली और सरयू सिंह को देते हुए बोली

"मेरे कमरे में बनारस महोत्सव से संबंधित कई सारे कागजात रखे हुए वह आप ऑफिस खुलने के पश्चात बनारस महोत्सव के कार्यालय में पहुंचा दीजिएगा।"

मनोरमा ने सरयू सिंह का परिचय होटल के रिसेप्शन पर करा दिया।

मनोरमा का ड्राइवर गाड़ी में रखे हुए कागजात लेकर रिसेप्शन पर आ चुका था मनोरमा ने उससे कहा

"तुम आज इनके साथ ही रहना तथा इनके परिवार को सलेमपुर छोड़ने के पश्चात छुट्टी पर चले जाना"

ड्राइवर भी खुश हो गया।

मनोरमा के जाने के पश्चात सरयू सिंह मनोरमा के कमरे में गए और कमरे की खूबसूरती और भव्यता को देख बेहद प्रसन्न हो गए। आलीशान कमरा और बेहतरीन सजा धजा डबल बेड देखकर सरयू सिंह की कामवासना जाग उठी उस सुंदर बिस्तर पर सुगना को चोदने का सुख सोच कर ही उनका लण्ड उत्तेजना से भर गया।

उन्होंने देर करना उचित न समझा वह नीचे आए और मनोरमा की गाड़ी में पीछे बैठकर सुगना को लेने चल पड़े।

थोड़ी ही देर में में उनकी गाड़ी रेलवे कॉलोनी में राजेश के घर के सामने खड़ी थी।


ड्राइवर ने हॉर्न बजाया। ड्राइवर भी एक चतुर और व्यवहारिक प्राणी होता है वह घर की बाहरी हालत देखकर रहने वाले का वजन अंदाज लेता है और उसके अनुरूप बर्ताव करता है।

यदि वह रेलवे कॉलोनी का घर न होकर किसी अधिकारी का बंगला होता तो ड्राइवर की हार्न बजाने की हिम्मत ना होती पर राजेश का घर सामान्य था।

ड्राइवर ने दोबारा हार्न बजाया। सरयू सिह अभी गाड़ी से नहीं उतरे थे वह चाहते थे कि कम से कम एक बार राजेश उसे इस गाड़ी की पिछली सीट पर बैठा हुआ देख ले ताकि वह अपना प्रभुत्व उस पर और जमा सकें।

वह मन ही मन वह राजेश को अपना प्रतिद्वंद्वी मानने लगे थे परंतु राजेश बाहर नहीं आया।

ड्राइवर ने फिर हार्न बजाने की कोशिश की पर सरयू सिंह ने उन्हें रोक दिया। ड्राइवर का यह व्यवहार आसपास के लोगों को दिक्कत कर सकता था और वह अपनी प्रतिक्रिया देकर माहौल खराब कर सकते थे।


सरयू सिंह गाड़ी की पिछली सीट से उतरे और सधे हुए कदमों से राजेश के घर के दरवाजे पर पहुंच गए उन्होंने दरवाजा खटखटा दिया।

लाली ऊँघती हुई बाहर आई और दरवाजा खोला। लाली उनकी पुत्री समान थी वह उनके दोस्त हरिया की पुत्री थी उसे नाइटी में देखकर सरयू से ने अपनी आंखें घुमा लीं। इतने उत्तेजक कपड़ों में अपनी पुत्री समान लाली को देखना पसंद ना आया।

लाली को कतई उम्मीद नहीं थी कि सरयू सिंह इतनी सुबह सुबह बिना बताए उसके घर पर आ धमकेंगे। अन्यथा लाली पूरी शालीन कपड़ों में उनका इंतजार कर रही होती । परंतु अब जो होना था हो चुका था लाली ने उनके चरण छुए और उन्हें अंदर बुलाया तथा हाल में बैठने के लिए कहा।

सरयू सिंह वस्त्रों के चयन को लेकर मन ही मन आज की नई पीढ़ी की मानसिकता को समझने का प्रयास करने लगे।

सुगना को हाल में न पाकर सरयू सिह परेशान हो गए क्या सुगना अंदर सो रही थी? सरयू सिंह को थोड़ी खुशी हुई उन्हें लगा जैसे राजेश घर पर नहीं था इसलिए लाली और सुगना अंदर सो गए थे।

लाली अंदर गई और राजेश को जगाया। राजेश बेसुध सो रहा था। बीती रात वह तृप्त हो चुका था। अपने जीवन में इतनी सुखद नींद उसने आज तक नहीं मिली थी।

राजेश कमरे से उठकर हाल में आया और सरयू सिंह के चरण छुए सरयू सिंह ने उसे आशीर्वाद तो दिया पर शब्दों से। उनके मन में राजेश के प्रति नफरत घर कर गयी थी और सुगना के प्रति गुस्सा था।

राजेश ने एक काम सही किया था। आते हुए उसने सुगना को उठा दिया। सरयू सिह की आवाज सुन सुगना सचेत हो गयी और आनन फानन में अपनी साड़ी पहनी और कुछ ही देर में हाल में आ गयी।

सुगना की हालत देखकर सरयू सिंह के मन में कई तरह के भाव आ रहे थे परंतु अपनी भावनाओं को काबू में रखते हुए उन्होंने पूछा

"सूरज कैसन बा"

"ठीक बा काल त सब के डेरा देले रहे"

लाली अंदर से अपने कपड़े बदल कर सूरज को लेकर आ गई। सूरज ने अपनी आंखें खोली और सरयू सिंह को देखकर बेहद खुश हो गया वह उछल कर उनकी गोद में आ गया। पिता और पुत्र का या प्यार सिर्फ सुगना और सरयू सिंह ही समझ सकते थे। लाली और राजेश, सूरज और सरयू सिंह के बीच इस आत्मीय संबंध के कारण से पूरी तरह अनजान थे।


सूरज को स्वस्थ और सुगना को पसंद देखकर सरयू सिंह की उम्मीद जाग उठी उन्होंने मौका निकाल कर शिलाजीत की दूसरी गोली का सेवन कर लिया पर राजेश ने उन्हें गोली खाते हुए देखकर पूछा..

"रोज गोली खाए के परेला का"

राजेश शहर का रहने वाला था उसे पता था शहर के मानिंद लोग 50 -55 वर्ष की अवस्था में कुछ न कुछ गोलियां खाया करते थे

सरयू सिंह झेंप गए । वह किस मुंह से बताते कि वह यह गोली किस लिए खा रहे हैं।

सरयू सिंह ने फरमान जारी किया

"फटाफट तैयार हो जा बाहर गाड़ी खड़ा बिया हमनी के जल्दी चले के बा।"

सुगना बाथरूम में गई परंतु बिजली गुल होने की वजह से नल मैं पानी नहीं आ रहा था उसने मुश्किल से रसोई में रखे पानी से अपना मुंह धोया और बालों को व्यवस्थित कर सरयू सिंह के साथ जाने के लिए तैयार हो गयी। वह स्वयं भी अपने परिवार से शीघ्र मिलना चाहती थी वह जानती थी कि सभी सूरज की तबीयत के बारे में फिक्र मंद होंगे।

सुगना ने लाली से विदा ली और सूरज को अपनी गोद में लिए घर से बाहर निकल पड़ी। राजेश से नजरें मिलाने की उसकी हिम्मत ना थी कल रात जो हुआ शायद वह नहीं होना चाहिए था।

राजेश गाड़ी की तरफ जा रही सुगना के हिलते हुए नितंबों को देख रहा था उसका लण्ड एक बार फिर हिचकोले खाने लगा। सुगना की कामुक काया पर राजेश की निगाहें अटक गई थी। कल रात के कामुक दृश्य उसकी आँखों के सामने नाच गए।

सरयू सिंह सुगना को लेकर पीछे बैठ चुके थे। सरयू सिंह हो यह ध्यान ही नहीं रहा की सुगना उनकी पत्नी नहीं उनकी बहू है उन्होंने ड्राइवर से कहा..

"पहले होटल ले चलिए कागज पत्तर सहेज के तब पंडाल में चलेंगे।"

सुगना होटल के नाम से सचेत हो गई वह चाह कर भी कुछ बोल ना पायी। ड्राइवर की उपस्थिति में कुछ भी बोलना उसने गवारा न समझा। वह चाहती तो थी कि वह पहले पांडाल में जाए ताकि वह अपने और सूरज की सलामती की खबर परिवार वालों को दे सके परंतु ऐसा हुआ नहीं। वह अपनी उधेड़बुन में खोई हुई थी पर कुछ ही देर में गाड़ी पांच सितारा होटल के पोर्च में आ गयी ।

होटल की खूबसूरती देखकर सुगना सहम गई उसने आज से पहले इतनी खूबसूरत जगह नहीं देखी थी..।

वह तो सुगना की चमकती कुंदन काया थी जो उस होटल में रहने वाले लोगों से कई गुना सुंदर थी परंतु उसके कपड़े पांच सितारा होटल के स्तर के न थे वह यह बात बखूबी जानती थी।


उसने आखिरकार सरयू सिह के कान में कहा

"ई होटल में काहें"


सरयु सिंह ने उसकी तरफ मुस्कुरा कर देखा और एक विजेता की भांति उसे लेकर मनोरमा के कमरे की तरफ चल पड़े..

रिसेप्शनिस्ट ने सरयू सिंह की तरफ देखा और प्रश्नवाचक निगाहों से सुनना के बारे में जानना चाहा। "अरे हमारी बहू है थोड़ी देर बाद हम लोग सामान लेकर निकल जाएंगे"

रिसेप्शनिस्ट ने कोई ऐतराज न किया. दोनों की उम्र के अंतर और रिश्ते ने रिसेप्शनिस्ट के मन में आए ख्याल को दबा दिया। सरयू सिह सुगना को लेकर कमरे में आ गए छोटा सूरज भी होटल की चकाचौंध को मासूम निगाहों से निहार रहा था कमरे में पहुंचते ही सरयू सिंह ने दरवाजा बंद किया और सूरज को बिस्तर पर छोड़कर उसे रतन द्वारा भेजे खिलौने पकड़ा दिए जो उनके झोले में ही थे।

नए खिलौने देखकर सुगना ने पूछा

"ई कब खरीदनी हा?"

सरयू सिंह ने सुगना को अभी यह बताना उचित न समझा कि यह रतन द्वारा भेजे गए थे। उन्होंने उसकी बात टाल दी और उसे अपने आलिंगन में कस लिया। सुगना के कोमल होंठों को अपने होंठों के बीच चूसते हुए एक बार सरयू सिंह के मन में फिर राजेश का ख्याल आया उन्होंने सुगना को खुद से अलग किया और उसकी साड़ी खींचकर उसे नग्न करने का प्रयास करने लगे। सुगना को अंदाज़ हो गया कि आज बाबूजी अपने अरमान अवश्य पूरे करेंगे वह मन ही मन इसके लिए तैयार हो गयी।

उसने मन ही मन फैसला कर लिया कि वह अपने बाबू जी को अपनी अदाओं से प्रथम स्खलन अपनी बुर में ही करने के लिए रिझा लेगी और इसके बाद स्वेक्छा से अपनी गुदांज गाड़ को उन्हें अर्पित कर देगी।

वैसे भी कल का दिन लगभग व्रत जैसा ही निकल गया था सूरज की बीमार पड़ने से सुगना अपना रात्रि भोजन न कर सकी थी थी और उसे सिर्फ लाली के घर में दूध पीकर ही गुजारा करना पड़ा था नियति ने उसके दूसरे छेद के उदघाटन की तैयारी करा दी थी।

परंतु सुगना प्रसन्न थी।बनारस महोत्सव में गर्भवती होने का उसकी इच्छा पूरी होने वाली थी। उसने ऊपर वाले का शुक्रिया अदा किया और स्वयं ही अपनी ब्लाउज के बटन खोलने लगी। जब तक कि सुगना की चुचियाँ खुली हवा में सांस लेती सरयू सिंह का धोती कुर्ता और लंगोट जमीन चाट चुका था। सरयू सिंह का फनफनाता हुआ लण्ड देखकर सुनना खुश हो गई।

सुगना ने अपने शरीर पर पड़े अंतिम वस्त्र अपने पेटीकोट के नाड़े का धागा खोल दिया। एक प्रतिमा की भांति सुगना की कोमल जाँघे अनावृत होती गयीं।

पांच सितारा होटल के भव्य कमरे में पीली रोशनी में

कोमलांगी सुगना की कोमल कमनीय काया कुंदन की भांति कांतिमान थी।

सरयू सिंह अपनी किस्मत पर नाज कर रहे थे अपनी बहू और प्रेमिका की खूबसूरती का अवलोकन करते हुए उनकी निगाह सुगना के खूबसूरत बदन पर दौड़ रही थी। सुगना उनकी दृष्टि को अपने बदन पर महसूस कर रही थी उसकी धड़कनें तेज हो रही थी। जांघों के बीच निगाह पड़ते ही अचानक सरयू सिंह चेहरे के भाव बदल उठे।


सुगना ने उनके चेहरे पर आए बदलाव को महसूस किया इस बदलाव का कारण जानने के लिए अपनी जांघों के बीच देखा उसके होश फाख्ता हो गए जांघों के बीच बालों के झुरमुट और जांघों पर लगा राजेश का वीर्य सूख चुका था…...और सरयू सिंह को मुह चिढा रहा था…


शेष अगले भाग में...
बहुत ही शानदार मजेदार और कामुक
 
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सुगाना चोदाइल बिया की ना ई त बादे में।मालूम चली। तब ले अपडेट के राह देखत रहे के बा। बाकि सरयूसिह का करीहें ई आले मिली...
Abhi ehme सकता ba का कि sugna chodail biya rajesh से
इतना अत्याचार mat करा rajesh pe
 

Rockstar_Rocky

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अप्रतिम update!!! :toohappy:

ऐसी update को पढ़ने के बाद मैं meme post करने से खुद को रोक नहीं सकता आनंद भाई|

इस अंतिम update में तो आपने


ऐसा लगता है आपने मेरी और राजेश, दोनों की इच्छा पूरी कर दी! :pray: मेरी इच्छा पूरी करने के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद 🙏 :hug:

और ये जो अपने suspense बनाकर update का अंत किया उससे एक बात तो तय है, अगर update जल्दी नहीं आई तो



आपके बाकी पाठकों की तरह मेरी भी आपसे बस एक ही माँग है:


अगले update की प्रतीक्षा में आपका active reader 🙏



P.S. मेरे memes कैसे लगे अवश्य बताइयेगा|
 
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pprsprs0

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अप्रतिम update!!! :toohappy:

ऐसी update को पढ़ने के बाद मैं meme post करने से खुद को रोक नहीं सकता आनंद भाई|

इस अंतिम update में तो आपने


ऐसा लगता है आपने मेरी और राजेश, दोनों की इच्छा पूरी कर दी! :pray: मेरी इच्छा पूरी करने के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद 🙏 :hug:

और ये जो अपने suspense बनाकर update का अंत किया उससे एक बात तो तय है, अगर update जल्दी नहीं आई तो



आपके बाकी पाठकों की तरह मेरी भी आपसे बस एक ही माँग है:


अगले update की प्रतीक्षा में आपका active reader 🙏



P.S. मेरे memes कैसे लगे अवश्य बताइयेगा|
🤣🤣
 

Lovely Anand

Love is life
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Kal se ye update bar bar padh chuki hu aur saryu Singh pr kya gujar rhi hogi soch soch kr man me ajib ajib khayal aa rhe hai, jisko usne taumra apna mana aur payar kiya uski yani pr kisi aur ka virya dekh kr kya bit rhi hogi, puri kahani ek taraf abhi tak ki aur is update ka last paragraph ek taraf kamal kiya aapne apni lekhni se
यदि आपने अपडेट को दो तीन बार पढ़ा है तो निश्चित ही मेरी मेहनत सफल हुई मैं भी अपडेट देने से पहले उसे कई बार पढ़ता हूं और हर बार भाषा और भाव पर ध्यान देता हूं जुड़े रहिए और आनंद लेते रहिए
 
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