रतन , बबिता और सुगना,.... और कानून,
एक बात मेरे मन में बहुत दिनों से उमड़ घुमड़ रही थी, सुगना और रतन के विवाह की कानूनी स्थिति के बारे में, जैसे मुझे याद है, गलत भी हो सकता है, स्मृति भ्रंश भी,
सुगना ने मुखिया के चुनाव में वोट डाला, वो अठारह वर्ष की होगयी थी, और पति के घर आयी, पहली रात में ही उसे पति का तिरस्कार मिला, और गुस्से की आग में धधकते हुए उसने अपने पति से कहा, अगर बहन बना कर रखना था तो लाये क्यों,
रतन और उसके चाचा सरयू सिंह के बीच समझैता था इस बात का की रतन हर छह महीने पर घर आये जिससे एक पर्दा बना रहे , रतन ने बंबई में बबिता से शादी रचा रखी थी, उसके बच्चे भी थे,
अब बात कानून की,
१ अगर बबिता रतन की शादी, रतन की सुगना से शादी के पहले हुयी तो हिन्दू विवाह अधिनयम की धारा ११ के अनुसार वह विवाह ' शून्य' है या अवैध है और उन दोनों के बीच पति पत्नी का संबंध नहीं है,
२. अगर बबिता की शादी बाद में हुयी तो वह विवाह शून्य है और उसका असर अगली पीढ़ी पर भी पड़ सकता है और ऐसी स्थिति में यह सुगना के लिए तलाक का एक विधि सम्मत कारण हो सकता है,
इसके अतिरिक्त भारतीय दंड संहिता की धारा ४९४ के अनुसार रतन को सात वर्ष की कैद तथा जुरमाना भी हो सकता है।
हिन्दू विवाह अधिनियम १९५५
11. शून्य विवाह-इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात् अनुष्ठापित कोई भी विवाह, यदि वह धारा 5 के खण्ड (I), (IV) और (V) में विनिर्दिष्ट शर्तों में से किसी एक का भी उल्लंघन करता हो तो, अकृत और शून्य होगा और विवाह के किसी पक्षकार द्वारा [दूसरे पक्षकार के विरुद्ध] उपस्थापित अर्जी पर अकृतता की डिक्री द्वारा ऐसा घोषित किया जा सकेगा ।
5. हिन्दू विवाह के लिए शर्तें-दो हिंदूओं के बीच विवाह अनुष्ठापित किया जा सकेगा यदि निम्नलिखित शर्तें पूरी हो जाएं, अर्थात्: -
(I) विवाह के समय दोनों पक्षकारों में से, न तो वर की कोई जीवित पत्नी हो और न वधू का कोई जीवित पति हो;
[(II) विवाह के समय दोनों पक्षकारों में से कोई पक्षकार-
(क) चित्त-विकृति के परिणामस्वरूप विधिमान्य सम्मति देने में असमर्थ न हो; या
(ख) विधिमान्य सम्मति देने में समर्थ होने पर भी इस प्रकार के या इस हद तक मानसिक विकार से पीड़ित न रहा हो कि वह विवाह और सन्तानोत्पत्ति के लिए, अयोग्य हो; या
(ग) उसे उन्मत्तता । । । का बार-बार दौरा न पड़ता हो;]
(III) विवाह के समय वर ने [इक्कीस वर्ष] की आयु और वधू ने [अठारह वर्ष] की आयु पूरी कर ली हो;
जब तक कि दोनों पक्षकारों में से हर एक को शासित करने वाली रूढ़ि या प्रथा से उन दोनों के बीच विवाह अनुज्ञात न हो, वे प्रतिषिद्ध नातेदारी डिग्रियों के भीतर न हों;
(V) जब तक कि दोनों पक्षकारों में से हर एक को शासित करने वाली रूढ़ियां प्रथा से उन दोनों के बीच विवाह अनुज्ञात न हो, वे एक दूसरे के सपिण्ड न हों;
एक और सवाल मेरे मन में बार बार खटकता है, सुगना सुगना की आयु गौने के समय १८ वर्ष की थी या विवाह के समय ,
क्योंकि अगर विवाह १८ वर्ष के पूर्व हुआ तो वो भी धारा पांच का उल्लघन है और धारा ११ के अनुसार शून्य है , तो इस हालत में भी सुगना और रतन का विवाह विधिक दृष्टि से शून्य माना जाएगा
अतः यदि रतन का विवाह बबिता के साथ पहले हुआ या सुगना का विवाह १८ वर्ष से पूर्व हुआ तो विधिक दृष्टि से यह विवाह शून्य माना जाएगा और बबिता से संबंध कभी भी सुगना को तलाक का अधिकार देता है.
मैं नैतिकता के चक्कर में नहीं हूँ सिर्फ विधि सम्मत एक स्त्री को दिए गए अधिकार के बारे में चर्चा कर रही हूँ, अन्यथा कहानी , कहानी होती है।
और एक बार और,
पता नहीं क्यों,... अग्नि परीक्षा हमेशा स्त्री की ही क्यों होती है।