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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

whether this story to be continued?

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
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Funworld

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सुगना अपने मीठे ख्वाब से बाहर आ गई और अपने पति को अपना पैर दबाते देख एक तरफ वो शर्मा गयी दूसरी तरफ अपने उस सुखद सपने को याद कर रही थी जिसने उसकी बुर को पनिया दिया था।

सुगना की साड़ी अभी घुटनों के ठीक ऊपर थी रतन नींद में सो रही सुगना उस साड़ी को ऊपर करना तो चाहता था परंतु हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था परंतु अब सुगना जाग चुकी थी रतन के हाथ सुगना के घुटनों की तरफ बढ़ रहे थे...

नियति रतन की आंखों में प्रेम और वासना दोनों का मिलाजुला अंश देख रही थी…

अब आगे...…..

जब तक की रतन के हाथ सुगना के घुटनों के ऊपर पड़ी साड़ी तक पहुंचते सुगना ने रतन के हाथ पकड़ लीये और अपने दूसरे हाथ से साड़ी को नीचे करते हुए होली "जाए दी अब रहे दी ...अब ठीक लागता"

सुगना ने रतन को बड़ी सादगी और सम्मान से रोक लिया था। परंतु रतन सुगना के इस तरह रोके जाने से एक बार फिर दुखी हो गया।

रतन हमेशा यही बात सोचता की सुगना ने राजेश से संभोग कर न सिर्फ सूरज को जन्म दिया था अपितु वह एक बार पुनः गर्भवती हो गई थी। क्या सुगना राजेश से के बार बार अंतरंग हो चुकी थी? क्या उन दोनों के बीच अंतरंगता की वजह संतान उत्पत्ति के अलावा और भी कुछ थी ? क्या सुगना ने राजेश के साथ संबंध अपनी काम पिपासा को शांत करने के लिए बनाया था? क्या मासूम सी दिखने वाली सुगना एक काम पिपासु युवती थी जो जिसने वासना शांत करने के लिए राजेश से निरंतर संबंध बना कर रखे थे?

कभी-कभी रतन के मन में यह सोच कर घृणा का भाव भी उत्पन्न होता परंतु सुगना का मृदुल व्यवहार और मासूम चेहरा उसे व्यभिचारी साबित होने से रोक लेता रतन सुगना के साथ बिताए गए पिछले कुछ महीनों के अनुभव से यह बात कह सकता था कि सुगना जैसी युवती बिना प्रेम के इस तरह के संबंध नहीं बनाएगी और यह प्रेम न तो सुगना की आंखों में दिखाई देता न राजेश की आंखों में। यह अलग बात थी की राजेश की आखों में वासना अवश्य दिखाई देती।

ढेर सारे प्रश्न लिए रतन बेचैन रहता परंतु सुगना और राजेश के संबंध को जितना वह समझ पाया था वह उसके प्रश्नों के उत्तर के लिए काफी न था। वह सुगना और राजेश पर नजर भी रखता था परंतु हर बार उसे असफलता ही हाथ लगती। उसने राजेश की आंखों में सुगना के प्रति जो कसक और ललक महसूस की थी वह ठीक वैसी ही थी जैसी किसी कामुक मर्द की आंखों में दिखाई पड़ती है। रतन बार-बार यही बात सोचता कि जब राजेश सुगना के साथ कई बार अंतरंग हो चुका है तो फिर यह लालसा क्यों?

रतन के प्रश्नों का उत्तर किसी के पास नहीं था सुगना से पूछ पाने की उसकी हिम्मत न थी और सुगना जिससे पिछले तीन-चार वर्षो से कामकला के खेल खेल रही थी वह रतन की उम्मीदों से परे था ।

उधर मिंकी सूरज के अंगूठे के रहस्य को जान चुकी थी उस दिन सुगना ने आंखें बंद कर उससे जो कार्य कराया था उसका अंदाजा उसे लग चुका था अपनी समझ की तस्दीक करने के लिए उसने एक नहीं कई बार सूरज का अंगूठा सहलाया और उसकी नुंनी पर अपने होठों का स्पर्श दे उसे वापस अपने आकार में लाने में कामयाब रही थी। यह अनोखा खेल मिंकी को पसंद आ गया था।


सूरज की मासूम नुंनी से उसे नाम मात्र की भी घृणा न थी। जब उसका मन करता सूरज के अंगूठे पर से आवरण हटाती और उसके अंगूठे को सहला कर बेहद प्यार से उस करामाती अंग को बड़ा करती उससे प्यार से खेलती तथा सुगना के आने की आहट सुन अपने होठों के बीच लेकर उसे तुरंत ही छोटा कर देती। सूरज इस दौरान हंसता खिलखिला रहता।

नियति उसका यह खेल देखती और उनके भविष्य की कल्पना करती। काश नियति समय की चाल बदल पाती तो वह 15 वर्षों के बाद के एक तरुणी को एक युवा के लण्ड से इस प्रकार खेलते देख स्वयं उत्तेजित हो जाती।

मिंकी का यह खेल बेहद पावन और स्वाभाविक था उसे न तो इन काम अंगों का ज्ञान था नहीं उस पर लगाई गई समाज की बंदिशें। यदि वह समाज के बीच न होती तो यही कार्य करते करते दिन महीने साल बीतते जाते और एक दिन सूरज की नूनी लण्ड का आकार ले लेती और मिंकी के मादक हो चुके होंठ उसे निश्चित ही अपने स्पर्श , घर्षण और आगोश से स्खलित कर देते।

परंतु समय अपनी चाल से चल रहा था और नियति नित्य नई परिस्थितियां देखकर अपनी कहानी संजो रही थी। सुगना का गर्भ भी अब प्रसव के लिए तैयार हो रहा था।


इसी दौरान सुगना की बहन सोनी ने अपनी 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण कर बनारस के नर्सिंग स्कूल में दाखिला ले लिया था। वह सुगना के साथ रहती और घरेलू कार्यों में उसका हाथ भी बताती। सुगना के फूले हुए पेट को देखकर सोनी के मन में कई सारे प्रश्न आते वह सुगना से उसके अनुभव के बारे में पूछती परंतु गर्भधारण करने की मूल क्रिया के बारे में चाह कर भी न पूछ पाती जो इन दिनों लगातार उसकी उत्सुकता बढ़ा रहा रही थी।

सोनी ने अपनी बहन मोनी को भी अपने कामुक अनुभव सुनाने और उसे अपने खेल में शामिल करने के लिए कई प्रयास किए परंतु मोनी इन सब बातों से दूर घरेलू कार्यों और पूजा पाठ में मन लगाती। उसके पास बात करने के लिए विषय दूसरे थे और सोनी के दूसरे। सोने की इस जिज्ञासा का उत्तर देने वाला और कोई नहीं सिर्फ सुगना थी। परंतु सुगना और सोनी के बीच उम्र का अंतर और सुगना का कद आड़े आ जाता।

सोनी समय से पहले युवा हो चुकी थी और चुचियों ने स्वयं उसके हाथों का मर्दन कुछ जरूरत से ज्यादा झेला था और अपना आकार बरबस ही बढ़ा चुकी थीं। विकास के संपर्क में आने के बाद तो सोनी और भी उत्तेजित हो चली थी गुसल खाने में लगने वाला समय धीरे-धीरे बढ़ रहा था और सोनी को एकांत पसंद आने लगा था।

सुगना की अधीरता धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी जैसे-जैसे प्रसव का समय नजदीक आ रहा था उसके मन में गर्भ के लिंग को लेकर प्रश्न उठते और वह अपने इष्ट देव के सामने नतमस्तक होती जाती वह घंटों पूजा पाठ किया करती और अपनी हर दुआ में सिर्फ और सिर्फ पुत्री की कामना करती। मन में उठने वाली दुआएं अब बुदबुदाहट का रूप ले चुकी थी।

सुगना अपने इष्ट देव के सामने नतमस्तक होकर दुआ मांग रही थी

"हे भगवान हमरा के लइकिये दीह ना त हम मर जाइब"

पीछे खड़ी सोनी सुगना की इस विलक्षण मांग से थोड़ी आश्चर्यचकित थी सुगना के उठते ही उसने पूछ लिया..

"ए दीदी ते लड़की काहे मांगेले सब केहू लाइका मांगेला"

सुगना अपनी मनो स्थिति और विद्यानंद की बातों को सोनी जैसी तरुणी से साझा नहीं करना चाहती थी उसने कहा

"हमरा लाइका ता बड़ले बा हमरा एगो लईकी चाही"

सोनी की नजरों में सुगना पहले भी समझदार थी और आज इस सटीक उत्तर ने उसे उसकी नजरों में और बड़ा तथा सम्मानित बना दिया। सोनी ने किताबों में जो लिंगानुपात के बारे में पढ़ा था आज एक समझदार महिला उसका अनुकरण कर रही थी सोनी ने सुगना को गले से लगा लिया परंतु सगुना का पेट आड़े आ गया।

"चल छोड़ जाए दे कुछ चाही का बड़ा आगे पीछे घूमता रे"

सोनी ने अपनी चूचियों की तरफ इशारा करते हुए कहा "गंजी चाहीं फाट गईल बा"

(सोनी और उस क्षेत्र की किशोरियों ब्रा को गंजी कहा करती थी)

सुगना भी आज हंसी ठिठोली के मूड में थी

" बनारस शहर में लइकन के चक्कर में मत पड़ जईहे देखा तानी तोर जोवन ढेर फुलल बा" सुगना में सोने की चुचियों की तरफ इशारा करते हुए कहा।

सोनी शर्मा गई सुगना ने उसके गालों को अपनी हथेलियों से सहलाते हुए अपनी कमर मे लटके बटुए से निकालकर ₹ 50 का नोट पकड़ाया और बोला

" ले अब जो तोरा कॉलेज के देर होत होइ"

सोनी मस्त हो गई और फटाफट अपना बैग लेकर अपने नर्सिंग कॉलेज की तरफ निकल पड़ी।

हवा आग और फूस को मिलाने का कार्य करती है ऐसे ही जवानी और कामुकता इस्त्री पुरुषों को करीब खींच लाते विकास और सोनी एक बार फिर रूबरू हो गए।

नियति ने जो रास रंग सोनी और विकास के खाते में लिखे थे। वह अंजाम चढ़ने लगे विकास और सोनी की मुलाकाते होने लगी। दिल के रिश्ते जिस्मानी रिश्ते में तो न बदल पाए परंतु उन दोनों ने एक दूसरे के कामांगों के स्पर्श सुख और एक दूसरे का हस्तमैथुन कर रंगरलिया मनाने लगे।


विकास तो सोनी को बिस्तर पर पटक कर चोदना चाहता था परंतु सोनी पूर्ण नग्न होकर अभी विकास के सामने अपनी जांघें खोलने को तैयार न थी विवाह अभी भी उसके लिए अपना कौमार्य खोने की अनिवार्य शर्त थी पर विकास अभी सोनी चोदने के लिए तैयार तो था परंतु विवाह बंधन में बंधने के लिए नहीं।

विकास और सोनू दोनों ही अपने फाइनल एग्जाम की तैयारी में लगे थे। लाली का पेट फूलने के बाद सोनू की कामवासना को भी ग्रहण लग गया था। उसकी सुगना दीदी लाली के ठीक बगल में रहती थी और दोनों सहेलियां अक्सर साथ-साथ ही रहती सोनू जब कभी लाली से मिलने जाता तो सुगना वहां पहले ही उपस्थित रहती या फिर लाली खुद सुगना के घर में रहती दोनों ही स्थितियों में सोनू की कामवासना ठंडी पड़ जाती। मदमस्त युवती जब गर्भवती होती है तो कामकला के पारखी उस दशा में भी आनंद खोज लेते हैं परंतु सोनू तो नया नया युवा था वह मदमस्त काया वाली अपनी लाली दीदी पर आसक्त हुआ था लाली का बदला रूप उसे उतना नहीं भा रहा था।

इस समय विकास का पलड़ा भारी था सोनू की बहन सोनी के साथ बिताए पलों को वह विस्तार से सोनू को सुनाता और दोनों अपनी अपनी उत्तेजना को जागृत कर अपने हाथों से अपने लण्ड का मान मर्दन करते और खुद को स्खलित कर अपनी अगली पढ़ाई के लिए स्वयं को तैयार कर लेते।

सोनी ने घर का सारा कार्यभार संभाल लिया था सुगना अब ज्यादा समय आराम ही करती थी।


रविवार का दिन था सुगना ने बिस्तर पर से ही आवाज दी

" ए सोनी तनी सूरज बाबू के तेल लगा दिहे ढेर दिन हो गईल बा"

सोनी को हमेशा से सूरज के साथ खेलना पसंद था उसने खुशी-खुशी कहा

"ठीक बा दीदी"

सोनी सूरज को तेल लगाने लगी थोड़ी ही देर में सूरज सोनी की कोमल हाथों की मालिश से मस्त हो गया और चेहरे पर मुस्कान लिए अपनी मौसी के साथ खेलने लगा अचानक सोनी ने एक बार फिर वही प्रतिबंधित कार्य किया जिसे सुगना ने मना किया था।

जाने बंदिशों में ऐसा कौन सा आकर्षण होता है जो मानव मन को स्वभावतः उसी दिशा में खींच लाता है क्या बंदिशें आकर्षण को जन्म देती हैं ?

सोनी भी अपने आकर्षण और कौतूहल को न रोक पायी। और एक बार फिर उसने सूरज के अंगूठे को सहला दिया और अंततः सोनी को अपने होठों का प्रयोग करना पड़ा। परंतु इस बार जब वह अपने होंठ रगड़ रही थी उसी समय रतन कमरे में आ गया सोनी झेप गई और सूरज को बिस्तर पर सुला उसके अधोभाग को पास पड़े तौलिए से ढक दिया …

"जीजा जी कुछ चाही का?" सोनी में अपनी चोरी पकडे जाने को नजरअंदाज कर रतन से पूछा...

रतन अब भी उस विलक्षण दृश्य के बारे में सोच रहा था सोनी के गोल किए गए होठों को यह कार्य करते देख वह कर अपने मन ही मन सोनी का चरित्र चित्रण करने लगा।

क्या सोनी ने वह कार्य वासना के अधीन होकर किया था? रतन ने पहले भी कई बार कई महिलाओं को छोटे बच्चों के उस भाग पर तेल की बूंदे डाल फूंक कर उसके आवरण को हटाते देखा था परंतु आज जो सोनी ने किया था यह कार्य सर्वथा अलग था अपने होठों के बीच उस भाग को रगड़ने की क्रिया को किसी भी प्रकार से तर्कसंगत नहीं माना जा सकता था.. सोनी के होंठ और चेहरे के हाव भाव रतन की सोच से मेल खा रहे थे।

रतन के मुंह से कोई उत्तर न सुन एक बार सोनी ने फिर कहा

" रउआ खातिर चाय बना दी?"

सोनी चौकी पर से उठने लगी। अपने घागरे को व्यवस्थित करते समय उसकी युवा टांगे रतन की निगाहों में आ गयीं। अचानक ही अपनी साली के इस युवा रूप को देखकर रतन के मन में एक पल के लिए वासना का झोंका आया जिस पर विराम एक बार फिर सोनी की आवाज ने ही लगाया

" ली रउआ सूरज बाबू के पकड़ी और दीदी के पास चली हम चाय लेकर आ आव तानी"


रतन ने अपनी क्षणिक कुत्सित सोच पर स्वयं को धिक्कारा और सूरज बाबू को लेकर सुगना के कमरे की तरफ बढ़ चला। सोनी कब बच्ची से बड़ी हो गई रतन यही सोच रहा था।

कुछ दृश्य मानव पटल पर ऐसे स्मृतियां छोड़ देते जो चाह कर भी विचारों से नहीं हटते। सोनी के गोल किए हुए सुंदर होठ अभी रतन के जहन में रह रह कर घूम रहे थे। रतन का ध्यान अब सोनी के अन्य अंगों पर भी जा रहा था। अचानक कि सोनी उसे मासूम किशोरी की जगह काम पिपासु युवती दिखाई पड़ने लगी। रतन ने सोनी को कभी इस रूप में नहीं देखता था पर जब एक बार विचार मैले हुए फिर रतन के पुरुष मन ने सोनी के युवा शरीर की नाप जोख करनी शुरू कर दी। रतन के अंतर्मन में चल रहे इस विचार को उसकी अतृप्त कामेच्छा ने और बढ़ावा दिया।

सुगना ने रतन का ध्यान भंग किया और बोली..

"लागा ता अब दिन आ गईल बा। टेंपो वाला के बोल कर राखब कभी भी हॉस्पिटल जाए के पड़ सकता बा"

पिछले कुछ दिनों में सुगना रतन से खुल कर बातें करने लगी थी।

"तू चिंता मत कर सब तैयारी बा"


तभी सोनी चाय लेकर आ गई उसने सुगना को चाय दी और फिर रतन को जैसे ही सोनी रतन को चाय देने के लिए झुकी उसकी फूली हुई चुचियों के बीच की गहरी घाटी रतन को दिखाई पड़ गई न जाने आज रतन को क्या हो गया था सोनी उसके विचारों में पूरी तरह बदल गई थी।

वैसे भी बनारस आने से पहले रतन और सोनी की मुलाकात ज्यादा नहीं थी। जब रतन को सुगना से ही कोई सरोकार न था तो उसके परिवार वालों और उसकी छोटी बहनों से क्यों होता परंतु पिछले कुछ दिनों में जब से सोनी आई थी तब से रतन ने भी उसे सहर्ष अपनी साली के रूप में स्वीकार कर लिया था।

"जीजा जी हमरा का नेग मिली सेवा कईला के"

सोनी ने रतन को सहज करने की कोशिश की जोअपने ख्यालों में खोया हुआ था

"सब कुछ बढ़िया से हो जायी त जो चाहे मांग लीह"

"बाद में पलटब अब नानू"

"अच्छा बताव तहरा का चाहीं"

"चली जाए दीं, टाइम आवे पर मांग लेब भूलाइब मत"

चाय खत्म होने के बाद सोनी चाय के कप लेकर वापस जाने लगी रतन की निगाहें उस के हिलते हुए नितंबों पर चिपकी हुई थी बिस्तर पर बैठी सुगना ने यह ताड़ लिया और बोली

"का देखा तानी"

रतन क्या बोलता वह जो देख रहा था वह सारे युवाओं को पसंद आने सोनी के गदराए नितंब थे जो घागरे के अंदर से चीख चीख कर अपनी उपस्थिति का एहसास करा रहे थे।

"कुछो ना"

रतन ने बात काटी और अपने वस्त्र बदलने लगा। सुगना को एक पल के लिए महसूस हुआ की युवा स्त्रियों के प्रति रतन का आकर्षण क्या स्वाभाविक है? या रतन एक चरित्रहीन व्यक्ति है? सुगना रतन के व्यक्तित्व का आकलन पिछले कई दिनों से कर रही थी और धीरे-धीरे उसे अपने अंतर्मन में जगह दे रही थी उसका घाघरा तो अभी व्यस्त था उस में जगह देने की न तो अभी जगह थी और नहीं यह विचार सुगना की सोच में था? जब अंतर्मन एक हो तो एकाकार होने का आनंद सुगना बखूबी जानती थी।

सुगना ने रतन की परीक्षा के दिन और बढ़ा दिए।

उधर रतन अब सोनी पर निगाह रखने लगा। कई बार वह अपने मन को समझाता कि उसका इस तरह सोनी पर निगाह रखना सोनी के चरित्र को समझने के लिए था परंतु इसमें उसकी कामेच्छा भी इसमें एक अहम भूमिका निभा रही थी।

रतन ने मन ही मन सोनी की युवा काया की तस्वीर को अपने मस्तिष्क के कैनवस पर खींचना शुरू कर दिया था। सोनी को बिना वस्त्रों के देखने की ललक बढ़ती जा रही थी। वह ताका झांकी करने लगा। सोनी इन सब बातों से अनजान सामान्य रूप से रह रही थी। उसे एक पुरुष से जो चाहिए था वह विकास उसे भली-भांति दे रहा था और जिसकी उसे असीम इच्छा थी उसके लिए विवाह एक अनिवार्य शर्त थी। उसे क्या पता था कि जीजा रतन के विचार बदल चुके थे।

स्त्रियों विशेषकर पत्नियों में यह एक विशेष गुण होता है कि यदि वह अपने पुरुष मित्र या पति को किसी अन्य युवती की तरफ आकर्षित होते हुए देखते हैं तो वह तुरंत ही उसे ताड़ लेती हैं। सुगना ने भी कुछ ही दिनों में रतन के मन में आए इस पाप को पहचान लिया। उसे रतन का यह रूप कतई पसंद न आया। अपनी सालियों से हंसी ठिठोली तो ठीक है परंतु रतन की निगाहें सोनी की चूचियों और नितंबों पर ज्यादा देर टिकने लगी थी।

रतन के मन में सोनी के प्रति जो भावना आई थी वह सिर्फ और सिर्फ वासना के कारण जन्मी थी उसके खयालो और हस्तमैथुन के अंतरंग पलों में कभी-कभी पेट फूली हुई सुगना की जगह सोनी अपनी जगह बनाने लगी थी। रतन सुगना से बेहद प्यार करता था परंतु वासना का क्या ? वह तो भटकती है और उचित पात्र देखकर उसे अपने रास रंग में शामिल कर लेती है रतन की वासना ने भी रतन के मन को व्यभिचारी बना दिया था।

अपनी वासना को अपनी सोच पर हावी होने देना मानव मन की सबसे बड़ी कमजोरी है जिन पुरुषों ने इस पर विजय प्राप्त की है वह तारीफ के काबिल है और उन के दम पर ही समाज चल रहा है यदि पुरुषों को यह वरदान प्राप्त हो जाए कि वह किसी भी सुंदर स्त्री को अपने बिस्तर पर अवतरित कर भोग सकते हैं तो अधिकतर पुरुष दर्जन भर से ज्यादा स्त्रियों को अपने बिस्तर पर ला चुके होते और इस चुनाव में रिश्ते शायद कम ही आड़े आते।

किसी नितांत अपरिचित सुंदरी से संभोग करना शायद उतना उत्तेजक ना होता हो जितना अपने जानने पहचानने वाली चुलबुली और हसीन स्त्री से।

दो-चार दिन और बीत गए और एक दिन सुगना का पेटीकोट पानी से भीग गया कजरी घर पर ही थी वह तुरंत ही समझ गई की प्रसव बेला करीब है रतन अपने होटल के लिए निकल रहा था कजरी ने कहा

"जो टेंपो ले आओ सुगना के अस्पताल लाई जाए के परी। ए सोनी जल्दी-जल्दी सामान रख लागा ता आज ही नया बाबू आई.."

चेहरे पर दर्द लिए सुगना एक बार फिर बोली

"मां बाबू ना बबुनी"

सुगना इस दर्द भरी अवस्था में भी अपनी पुत्री की चाह को सरेआम व्यक्त करने से ना रोक पायी ।

दोनों सास बहू उन बातों पर चिंता कर रही थी जो उनके हाथ में कतई ना था। थोड़ी ही देर में हरिया की पत्नी (लाली की सास) भागते हुए आई और बोली

"लाली के हमनी के अस्पताल ले जा तानी जा ओकरा पेट में दर्द होखता"


कजरी और हरिया की पत्नी ने एक दूसरे से अस्पताल ले जाने वाली सामग्रियों की जानकारी साझा की और कुछ ही देर में दो अलग-अलग ऑटो में बैठ कर सुगना और लाली अस्पताल में प्रसव पीड़ा झेलने के लिए चल पड़ी। बनारस महोत्सव में जो बीच उनके गर्भ में बोया गया था उसका फल आने का वक्त हो चुका था।…

क्या नियति ने सुगना के गर्भ में पुत्री का है सृजन किया था? या सुगना जो सूरज की मां और बहन दोनों थी वही उसकी मुक्ती दायिनी थी…




यह प्रश्न मैं एक बार फिर पाठकों के लिए छोड़े जा रहा हूं।

शेष अगले भाग में
सूरज की मुक्ति का समय तो बहुत दूर है,

पर कहानी की नायिका सुगना है तो सुगना ही मुक्तिदायिनी हो तो ज्यादा मजेदार होगा।

बाकि आपकी कहानी बहुत बेहतरीन है, ऐसे ही अपने हिसाब से लिखते रहे।
 

sunoanuj

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Bahut hee jabardast update tha … ab niyati bechare Ratan par kab meharabani karti hai yeh dekhna bhi dilchasp hoga .. Ratan or sugna ka Milan hoga kya ?

Dekhte hain aage kya hota updates main

Bahut hee umda likh rahe ho mitr 👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
 

Curiousbull

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सुगना अपने मीठे ख्वाब से बाहर आ गई और अपने पति को अपना पैर दबाते देख एक तरफ वो शर्मा गयी दूसरी तरफ अपने उस सुखद सपने को याद कर रही थी जिसने उसकी बुर को पनिया दिया था।

सुगना की साड़ी अभी घुटनों के ठीक ऊपर थी रतन नींद में सो रही सुगना उस साड़ी को ऊपर करना तो चाहता था परंतु हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था परंतु अब सुगना जाग चुकी थी रतन के हाथ सुगना के घुटनों की तरफ बढ़ रहे थे...

नियति रतन की आंखों में प्रेम और वासना दोनों का मिलाजुला अंश देख रही थी…

अब आगे...…..

जब तक की रतन के हाथ सुगना के घुटनों के ऊपर पड़ी साड़ी तक पहुंचते सुगना ने रतन के हाथ पकड़ लीये और अपने दूसरे हाथ से साड़ी को नीचे करते हुए होली "जाए दी अब रहे दी ...अब ठीक लागता"

सुगना ने रतन को बड़ी सादगी और सम्मान से रोक लिया था। परंतु रतन सुगना के इस तरह रोके जाने से एक बार फिर दुखी हो गया।

रतन हमेशा यही बात सोचता की सुगना ने राजेश से संभोग कर न सिर्फ सूरज को जन्म दिया था अपितु वह एक बार पुनः गर्भवती हो गई थी। क्या सुगना राजेश से के बार बार अंतरंग हो चुकी थी? क्या उन दोनों के बीच अंतरंगता की वजह संतान उत्पत्ति के अलावा और भी कुछ थी ? क्या सुगना ने राजेश के साथ संबंध अपनी काम पिपासा को शांत करने के लिए बनाया था? क्या मासूम सी दिखने वाली सुगना एक काम पिपासु युवती थी जो जिसने वासना शांत करने के लिए राजेश से निरंतर संबंध बना कर रखे थे?

कभी-कभी रतन के मन में यह सोच कर घृणा का भाव भी उत्पन्न होता परंतु सुगना का मृदुल व्यवहार और मासूम चेहरा उसे व्यभिचारी साबित होने से रोक लेता रतन सुगना के साथ बिताए गए पिछले कुछ महीनों के अनुभव से यह बात कह सकता था कि सुगना जैसी युवती बिना प्रेम के इस तरह के संबंध नहीं बनाएगी और यह प्रेम न तो सुगना की आंखों में दिखाई देता न राजेश की आंखों में। यह अलग बात थी की राजेश की आखों में वासना अवश्य दिखाई देती।

ढेर सारे प्रश्न लिए रतन बेचैन रहता परंतु सुगना और राजेश के संबंध को जितना वह समझ पाया था वह उसके प्रश्नों के उत्तर के लिए काफी न था। वह सुगना और राजेश पर नजर भी रखता था परंतु हर बार उसे असफलता ही हाथ लगती। उसने राजेश की आंखों में सुगना के प्रति जो कसक और ललक महसूस की थी वह ठीक वैसी ही थी जैसी किसी कामुक मर्द की आंखों में दिखाई पड़ती है। रतन बार-बार यही बात सोचता कि जब राजेश सुगना के साथ कई बार अंतरंग हो चुका है तो फिर यह लालसा क्यों?

रतन के प्रश्नों का उत्तर किसी के पास नहीं था सुगना से पूछ पाने की उसकी हिम्मत न थी और सुगना जिससे पिछले तीन-चार वर्षो से कामकला के खेल खेल रही थी वह रतन की उम्मीदों से परे था ।

उधर मिंकी सूरज के अंगूठे के रहस्य को जान चुकी थी उस दिन सुगना ने आंखें बंद कर उससे जो कार्य कराया था उसका अंदाजा उसे लग चुका था अपनी समझ की तस्दीक करने के लिए उसने एक नहीं कई बार सूरज का अंगूठा सहलाया और उसकी नुंनी पर अपने होठों का स्पर्श दे उसे वापस अपने आकार में लाने में कामयाब रही थी। यह अनोखा खेल मिंकी को पसंद आ गया था।


सूरज की मासूम नुंनी से उसे नाम मात्र की भी घृणा न थी। जब उसका मन करता सूरज के अंगूठे पर से आवरण हटाती और उसके अंगूठे को सहला कर बेहद प्यार से उस करामाती अंग को बड़ा करती उससे प्यार से खेलती तथा सुगना के आने की आहट सुन अपने होठों के बीच लेकर उसे तुरंत ही छोटा कर देती। सूरज इस दौरान हंसता खिलखिला रहता।

नियति उसका यह खेल देखती और उनके भविष्य की कल्पना करती। काश नियति समय की चाल बदल पाती तो वह 15 वर्षों के बाद के एक तरुणी को एक युवा के लण्ड से इस प्रकार खेलते देख स्वयं उत्तेजित हो जाती।

मिंकी का यह खेल बेहद पावन और स्वाभाविक था उसे न तो इन काम अंगों का ज्ञान था नहीं उस पर लगाई गई समाज की बंदिशें। यदि वह समाज के बीच न होती तो यही कार्य करते करते दिन महीने साल बीतते जाते और एक दिन सूरज की नूनी लण्ड का आकार ले लेती और मिंकी के मादक हो चुके होंठ उसे निश्चित ही अपने स्पर्श , घर्षण और आगोश से स्खलित कर देते।

परंतु समय अपनी चाल से चल रहा था और नियति नित्य नई परिस्थितियां देखकर अपनी कहानी संजो रही थी। सुगना का गर्भ भी अब प्रसव के लिए तैयार हो रहा था।


इसी दौरान सुगना की बहन सोनी ने अपनी 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण कर बनारस के नर्सिंग स्कूल में दाखिला ले लिया था। वह सुगना के साथ रहती और घरेलू कार्यों में उसका हाथ भी बताती। सुगना के फूले हुए पेट को देखकर सोनी के मन में कई सारे प्रश्न आते वह सुगना से उसके अनुभव के बारे में पूछती परंतु गर्भधारण करने की मूल क्रिया के बारे में चाह कर भी न पूछ पाती जो इन दिनों लगातार उसकी उत्सुकता बढ़ा रहा रही थी।

सोनी ने अपनी बहन मोनी को भी अपने कामुक अनुभव सुनाने और उसे अपने खेल में शामिल करने के लिए कई प्रयास किए परंतु मोनी इन सब बातों से दूर घरेलू कार्यों और पूजा पाठ में मन लगाती। उसके पास बात करने के लिए विषय दूसरे थे और सोनी के दूसरे। सोने की इस जिज्ञासा का उत्तर देने वाला और कोई नहीं सिर्फ सुगना थी। परंतु सुगना और सोनी के बीच उम्र का अंतर और सुगना का कद आड़े आ जाता।

सोनी समय से पहले युवा हो चुकी थी और चुचियों ने स्वयं उसके हाथों का मर्दन कुछ जरूरत से ज्यादा झेला था और अपना आकार बरबस ही बढ़ा चुकी थीं। विकास के संपर्क में आने के बाद तो सोनी और भी उत्तेजित हो चली थी गुसल खाने में लगने वाला समय धीरे-धीरे बढ़ रहा था और सोनी को एकांत पसंद आने लगा था।

सुगना की अधीरता धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी जैसे-जैसे प्रसव का समय नजदीक आ रहा था उसके मन में गर्भ के लिंग को लेकर प्रश्न उठते और वह अपने इष्ट देव के सामने नतमस्तक होती जाती वह घंटों पूजा पाठ किया करती और अपनी हर दुआ में सिर्फ और सिर्फ पुत्री की कामना करती। मन में उठने वाली दुआएं अब बुदबुदाहट का रूप ले चुकी थी।

सुगना अपने इष्ट देव के सामने नतमस्तक होकर दुआ मांग रही थी

"हे भगवान हमरा के लइकिये दीह ना त हम मर जाइब"

पीछे खड़ी सोनी सुगना की इस विलक्षण मांग से थोड़ी आश्चर्यचकित थी सुगना के उठते ही उसने पूछ लिया..

"ए दीदी ते लड़की काहे मांगेले सब केहू लाइका मांगेला"

सुगना अपनी मनो स्थिति और विद्यानंद की बातों को सोनी जैसी तरुणी से साझा नहीं करना चाहती थी उसने कहा

"हमरा लाइका ता बड़ले बा हमरा एगो लईकी चाही"

सोनी की नजरों में सुगना पहले भी समझदार थी और आज इस सटीक उत्तर ने उसे उसकी नजरों में और बड़ा तथा सम्मानित बना दिया। सोनी ने किताबों में जो लिंगानुपात के बारे में पढ़ा था आज एक समझदार महिला उसका अनुकरण कर रही थी सोनी ने सुगना को गले से लगा लिया परंतु सगुना का पेट आड़े आ गया।

"चल छोड़ जाए दे कुछ चाही का बड़ा आगे पीछे घूमता रे"

सोनी ने अपनी चूचियों की तरफ इशारा करते हुए कहा "गंजी चाहीं फाट गईल बा"

(सोनी और उस क्षेत्र की किशोरियों ब्रा को गंजी कहा करती थी)

सुगना भी आज हंसी ठिठोली के मूड में थी

" बनारस शहर में लइकन के चक्कर में मत पड़ जईहे देखा तानी तोर जोवन ढेर फुलल बा" सुगना में सोने की चुचियों की तरफ इशारा करते हुए कहा।

सोनी शर्मा गई सुगना ने उसके गालों को अपनी हथेलियों से सहलाते हुए अपनी कमर मे लटके बटुए से निकालकर ₹ 50 का नोट पकड़ाया और बोला

" ले अब जो तोरा कॉलेज के देर होत होइ"

सोनी मस्त हो गई और फटाफट अपना बैग लेकर अपने नर्सिंग कॉलेज की तरफ निकल पड़ी।

हवा आग और फूस को मिलाने का कार्य करती है ऐसे ही जवानी और कामुकता इस्त्री पुरुषों को करीब खींच लाते विकास और सोनी एक बार फिर रूबरू हो गए।

नियति ने जो रास रंग सोनी और विकास के खाते में लिखे थे। वह अंजाम चढ़ने लगे विकास और सोनी की मुलाकाते होने लगी। दिल के रिश्ते जिस्मानी रिश्ते में तो न बदल पाए परंतु उन दोनों ने एक दूसरे के कामांगों के स्पर्श सुख और एक दूसरे का हस्तमैथुन कर रंगरलिया मनाने लगे।


विकास तो सोनी को बिस्तर पर पटक कर चोदना चाहता था परंतु सोनी पूर्ण नग्न होकर अभी विकास के सामने अपनी जांघें खोलने को तैयार न थी विवाह अभी भी उसके लिए अपना कौमार्य खोने की अनिवार्य शर्त थी पर विकास अभी सोनी चोदने के लिए तैयार तो था परंतु विवाह बंधन में बंधने के लिए नहीं।

विकास और सोनू दोनों ही अपने फाइनल एग्जाम की तैयारी में लगे थे। लाली का पेट फूलने के बाद सोनू की कामवासना को भी ग्रहण लग गया था। उसकी सुगना दीदी लाली के ठीक बगल में रहती थी और दोनों सहेलियां अक्सर साथ-साथ ही रहती सोनू जब कभी लाली से मिलने जाता तो सुगना वहां पहले ही उपस्थित रहती या फिर लाली खुद सुगना के घर में रहती दोनों ही स्थितियों में सोनू की कामवासना ठंडी पड़ जाती। मदमस्त युवती जब गर्भवती होती है तो कामकला के पारखी उस दशा में भी आनंद खोज लेते हैं परंतु सोनू तो नया नया युवा था वह मदमस्त काया वाली अपनी लाली दीदी पर आसक्त हुआ था लाली का बदला रूप उसे उतना नहीं भा रहा था।

इस समय विकास का पलड़ा भारी था सोनू की बहन सोनी के साथ बिताए पलों को वह विस्तार से सोनू को सुनाता और दोनों अपनी अपनी उत्तेजना को जागृत कर अपने हाथों से अपने लण्ड का मान मर्दन करते और खुद को स्खलित कर अपनी अगली पढ़ाई के लिए स्वयं को तैयार कर लेते।

सोनी ने घर का सारा कार्यभार संभाल लिया था सुगना अब ज्यादा समय आराम ही करती थी।


रविवार का दिन था सुगना ने बिस्तर पर से ही आवाज दी

" ए सोनी तनी सूरज बाबू के तेल लगा दिहे ढेर दिन हो गईल बा"

सोनी को हमेशा से सूरज के साथ खेलना पसंद था उसने खुशी-खुशी कहा

"ठीक बा दीदी"

सोनी सूरज को तेल लगाने लगी थोड़ी ही देर में सूरज सोनी की कोमल हाथों की मालिश से मस्त हो गया और चेहरे पर मुस्कान लिए अपनी मौसी के साथ खेलने लगा अचानक सोनी ने एक बार फिर वही प्रतिबंधित कार्य किया जिसे सुगना ने मना किया था।

जाने बंदिशों में ऐसा कौन सा आकर्षण होता है जो मानव मन को स्वभावतः उसी दिशा में खींच लाता है क्या बंदिशें आकर्षण को जन्म देती हैं ?

सोनी भी अपने आकर्षण और कौतूहल को न रोक पायी। और एक बार फिर उसने सूरज के अंगूठे को सहला दिया और अंततः सोनी को अपने होठों का प्रयोग करना पड़ा। परंतु इस बार जब वह अपने होंठ रगड़ रही थी उसी समय रतन कमरे में आ गया सोनी झेप गई और सूरज को बिस्तर पर सुला उसके अधोभाग को पास पड़े तौलिए से ढक दिया …

"जीजा जी कुछ चाही का?" सोनी में अपनी चोरी पकडे जाने को नजरअंदाज कर रतन से पूछा...

रतन अब भी उस विलक्षण दृश्य के बारे में सोच रहा था सोनी के गोल किए गए होठों को यह कार्य करते देख वह कर अपने मन ही मन सोनी का चरित्र चित्रण करने लगा।

क्या सोनी ने वह कार्य वासना के अधीन होकर किया था? रतन ने पहले भी कई बार कई महिलाओं को छोटे बच्चों के उस भाग पर तेल की बूंदे डाल फूंक कर उसके आवरण को हटाते देखा था परंतु आज जो सोनी ने किया था यह कार्य सर्वथा अलग था अपने होठों के बीच उस भाग को रगड़ने की क्रिया को किसी भी प्रकार से तर्कसंगत नहीं माना जा सकता था.. सोनी के होंठ और चेहरे के हाव भाव रतन की सोच से मेल खा रहे थे।

रतन के मुंह से कोई उत्तर न सुन एक बार सोनी ने फिर कहा

" रउआ खातिर चाय बना दी?"

सोनी चौकी पर से उठने लगी। अपने घागरे को व्यवस्थित करते समय उसकी युवा टांगे रतन की निगाहों में आ गयीं। अचानक ही अपनी साली के इस युवा रूप को देखकर रतन के मन में एक पल के लिए वासना का झोंका आया जिस पर विराम एक बार फिर सोनी की आवाज ने ही लगाया

" ली रउआ सूरज बाबू के पकड़ी और दीदी के पास चली हम चाय लेकर आ आव तानी"


रतन ने अपनी क्षणिक कुत्सित सोच पर स्वयं को धिक्कारा और सूरज बाबू को लेकर सुगना के कमरे की तरफ बढ़ चला। सोनी कब बच्ची से बड़ी हो गई रतन यही सोच रहा था।

कुछ दृश्य मानव पटल पर ऐसे स्मृतियां छोड़ देते जो चाह कर भी विचारों से नहीं हटते। सोनी के गोल किए हुए सुंदर होठ अभी रतन के जहन में रह रह कर घूम रहे थे। रतन का ध्यान अब सोनी के अन्य अंगों पर भी जा रहा था। अचानक कि सोनी उसे मासूम किशोरी की जगह काम पिपासु युवती दिखाई पड़ने लगी। रतन ने सोनी को कभी इस रूप में नहीं देखता था पर जब एक बार विचार मैले हुए फिर रतन के पुरुष मन ने सोनी के युवा शरीर की नाप जोख करनी शुरू कर दी। रतन के अंतर्मन में चल रहे इस विचार को उसकी अतृप्त कामेच्छा ने और बढ़ावा दिया।

सुगना ने रतन का ध्यान भंग किया और बोली..

"लागा ता अब दिन आ गईल बा। टेंपो वाला के बोल कर राखब कभी भी हॉस्पिटल जाए के पड़ सकता बा"

पिछले कुछ दिनों में सुगना रतन से खुल कर बातें करने लगी थी।

"तू चिंता मत कर सब तैयारी बा"


तभी सोनी चाय लेकर आ गई उसने सुगना को चाय दी और फिर रतन को जैसे ही सोनी रतन को चाय देने के लिए झुकी उसकी फूली हुई चुचियों के बीच की गहरी घाटी रतन को दिखाई पड़ गई न जाने आज रतन को क्या हो गया था सोनी उसके विचारों में पूरी तरह बदल गई थी।

वैसे भी बनारस आने से पहले रतन और सोनी की मुलाकात ज्यादा नहीं थी। जब रतन को सुगना से ही कोई सरोकार न था तो उसके परिवार वालों और उसकी छोटी बहनों से क्यों होता परंतु पिछले कुछ दिनों में जब से सोनी आई थी तब से रतन ने भी उसे सहर्ष अपनी साली के रूप में स्वीकार कर लिया था।

"जीजा जी हमरा का नेग मिली सेवा कईला के"

सोनी ने रतन को सहज करने की कोशिश की जोअपने ख्यालों में खोया हुआ था

"सब कुछ बढ़िया से हो जायी त जो चाहे मांग लीह"

"बाद में पलटब अब नानू"

"अच्छा बताव तहरा का चाहीं"

"चली जाए दीं, टाइम आवे पर मांग लेब भूलाइब मत"

चाय खत्म होने के बाद सोनी चाय के कप लेकर वापस जाने लगी रतन की निगाहें उस के हिलते हुए नितंबों पर चिपकी हुई थी बिस्तर पर बैठी सुगना ने यह ताड़ लिया और बोली

"का देखा तानी"

रतन क्या बोलता वह जो देख रहा था वह सारे युवाओं को पसंद आने सोनी के गदराए नितंब थे जो घागरे के अंदर से चीख चीख कर अपनी उपस्थिति का एहसास करा रहे थे।

"कुछो ना"

रतन ने बात काटी और अपने वस्त्र बदलने लगा। सुगना को एक पल के लिए महसूस हुआ की युवा स्त्रियों के प्रति रतन का आकर्षण क्या स्वाभाविक है? या रतन एक चरित्रहीन व्यक्ति है? सुगना रतन के व्यक्तित्व का आकलन पिछले कई दिनों से कर रही थी और धीरे-धीरे उसे अपने अंतर्मन में जगह दे रही थी उसका घाघरा तो अभी व्यस्त था उस में जगह देने की न तो अभी जगह थी और नहीं यह विचार सुगना की सोच में था? जब अंतर्मन एक हो तो एकाकार होने का आनंद सुगना बखूबी जानती थी।

सुगना ने रतन की परीक्षा के दिन और बढ़ा दिए।

उधर रतन अब सोनी पर निगाह रखने लगा। कई बार वह अपने मन को समझाता कि उसका इस तरह सोनी पर निगाह रखना सोनी के चरित्र को समझने के लिए था परंतु इसमें उसकी कामेच्छा भी इसमें एक अहम भूमिका निभा रही थी।

रतन ने मन ही मन सोनी की युवा काया की तस्वीर को अपने मस्तिष्क के कैनवस पर खींचना शुरू कर दिया था। सोनी को बिना वस्त्रों के देखने की ललक बढ़ती जा रही थी। वह ताका झांकी करने लगा। सोनी इन सब बातों से अनजान सामान्य रूप से रह रही थी। उसे एक पुरुष से जो चाहिए था वह विकास उसे भली-भांति दे रहा था और जिसकी उसे असीम इच्छा थी उसके लिए विवाह एक अनिवार्य शर्त थी। उसे क्या पता था कि जीजा रतन के विचार बदल चुके थे।

स्त्रियों विशेषकर पत्नियों में यह एक विशेष गुण होता है कि यदि वह अपने पुरुष मित्र या पति को किसी अन्य युवती की तरफ आकर्षित होते हुए देखते हैं तो वह तुरंत ही उसे ताड़ लेती हैं। सुगना ने भी कुछ ही दिनों में रतन के मन में आए इस पाप को पहचान लिया। उसे रतन का यह रूप कतई पसंद न आया। अपनी सालियों से हंसी ठिठोली तो ठीक है परंतु रतन की निगाहें सोनी की चूचियों और नितंबों पर ज्यादा देर टिकने लगी थी।

रतन के मन में सोनी के प्रति जो भावना आई थी वह सिर्फ और सिर्फ वासना के कारण जन्मी थी उसके खयालो और हस्तमैथुन के अंतरंग पलों में कभी-कभी पेट फूली हुई सुगना की जगह सोनी अपनी जगह बनाने लगी थी। रतन सुगना से बेहद प्यार करता था परंतु वासना का क्या ? वह तो भटकती है और उचित पात्र देखकर उसे अपने रास रंग में शामिल कर लेती है रतन की वासना ने भी रतन के मन को व्यभिचारी बना दिया था।

अपनी वासना को अपनी सोच पर हावी होने देना मानव मन की सबसे बड़ी कमजोरी है जिन पुरुषों ने इस पर विजय प्राप्त की है वह तारीफ के काबिल है और उन के दम पर ही समाज चल रहा है यदि पुरुषों को यह वरदान प्राप्त हो जाए कि वह किसी भी सुंदर स्त्री को अपने बिस्तर पर अवतरित कर भोग सकते हैं तो अधिकतर पुरुष दर्जन भर से ज्यादा स्त्रियों को अपने बिस्तर पर ला चुके होते और इस चुनाव में रिश्ते शायद कम ही आड़े आते।

किसी नितांत अपरिचित सुंदरी से संभोग करना शायद उतना उत्तेजक ना होता हो जितना अपने जानने पहचानने वाली चुलबुली और हसीन स्त्री से।

दो-चार दिन और बीत गए और एक दिन सुगना का पेटीकोट पानी से भीग गया कजरी घर पर ही थी वह तुरंत ही समझ गई की प्रसव बेला करीब है रतन अपने होटल के लिए निकल रहा था कजरी ने कहा

"जो टेंपो ले आओ सुगना के अस्पताल लाई जाए के परी। ए सोनी जल्दी-जल्दी सामान रख लागा ता आज ही नया बाबू आई.."

चेहरे पर दर्द लिए सुगना एक बार फिर बोली

"मां बाबू ना बबुनी"

सुगना इस दर्द भरी अवस्था में भी अपनी पुत्री की चाह को सरेआम व्यक्त करने से ना रोक पायी ।

दोनों सास बहू उन बातों पर चिंता कर रही थी जो उनके हाथ में कतई ना था। थोड़ी ही देर में हरिया की पत्नी (लाली की सास) भागते हुए आई और बोली

"लाली के हमनी के अस्पताल ले जा तानी जा ओकरा पेट में दर्द होखता"


कजरी और हरिया की पत्नी ने एक दूसरे से अस्पताल ले जाने वाली सामग्रियों की जानकारी साझा की और कुछ ही देर में दो अलग-अलग ऑटो में बैठ कर सुगना और लाली अस्पताल में प्रसव पीड़ा झेलने के लिए चल पड़ी। बनारस महोत्सव में जो बीच उनके गर्भ में बोया गया था उसका फल आने का वक्त हो चुका था।…

क्या नियति ने सुगना के गर्भ में पुत्री का है सृजन किया था? या सुगना जो सूरज की मां और बहन दोनों थी वही उसकी मुक्ती दायिनी थी…




यह प्रश्न मैं एक बार फिर पाठकों के लिए छोड़े जा रहा हूं।

शेष अगले भाग में
Bahut sundar
 

raniaayush

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सुंदर और कामुक स्त्री यदि हंसमुख और हाजिर जवाब है उसकी खूबसूरती दुगनी हो जाती है । प्रेमचंद की तरह आप भी कुछ ज्ञान की पंक्तियां डाल देते हैं।
 

raniaayush

Member
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●हवा आग और फूस को मिलाने का कार्य करती है ऐसे ही जवानी और कामुकता इस्त्री पुरुषों को करीब खींच लाते हैं।
वासना का क्या ? वह तो भटकती है और उचित पात्र देखकर उसे अपने रास रंग में शामिल कर लेती है रतन की वासना ने भी रतन के मन को व्यभिचारी बना दिया था।
स्त्रियों विशेषकर पत्नियों में यह एक विशेष गुण होता है कि यदि वह अपने पुरुष मित्र या पति को किसी अन्य युवती की तरफ आकर्षित होते हुए देखते हैं तो वह तुरंत ही उसे ताड़ लेती हैं।
जाने बंदिशों में ऐसा कौन सा आकर्षण होता है जो मानव मन को स्वभावतः उसी दिशा में खींच लाता है क्या बंदिशें आकर्षण को जन्म देती हैं ?

बहुत सुंदर शब्द शब्द दिया है आपने ।
 

nanha balak

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आपने स्वयं ही अपने प्रश्न का उत्तर दे दिया है महोदय-- ".... की सुगना जो सूरज की माँ और बहन दोनों थी उसकी मुक्त्दायिनी थी"
अद्भुत लेखन के लिए आपको साधुवाद।
 

Rekha rani

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Bahaut sunder update, har naye riste ko tarasa ja rha hai, niyti ke naye naye khel ka soch kr hi romanch paida ho rha hai, aur kahani aur majedar banne wali hai, iska abhi se anuman ho rha hai, ab kya kya tadka lagne wala hai kahani me dekhna baki hai kya ratan soni ke sath samband bna payega, kya sonu ko malum chalega ki apne dost ke sath jiske kisse sunkr wo muth mar rha hai wo uski bahan soni hai, sugna ko agar beta hua to wo agla sambhog kisse kregi beti ke liye
 

pprsprs0

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सुगना अपने मीठे ख्वाब से बाहर आ गई और अपने पति को अपना पैर दबाते देख एक तरफ वो शर्मा गयी दूसरी तरफ अपने उस सुखद सपने को याद कर रही थी जिसने उसकी बुर को पनिया दिया था।

सुगना की साड़ी अभी घुटनों के ठीक ऊपर थी रतन नींद में सो रही सुगना उस साड़ी को ऊपर करना तो चाहता था परंतु हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था परंतु अब सुगना जाग चुकी थी रतन के हाथ सुगना के घुटनों की तरफ बढ़ रहे थे...

नियति रतन की आंखों में प्रेम और वासना दोनों का मिलाजुला अंश देख रही थी…

अब आगे...…..

जब तक की रतन के हाथ सुगना के घुटनों के ऊपर पड़ी साड़ी तक पहुंचते सुगना ने रतन के हाथ पकड़ लीये और अपने दूसरे हाथ से साड़ी को नीचे करते हुए होली "जाए दी अब रहे दी ...अब ठीक लागता"

सुगना ने रतन को बड़ी सादगी और सम्मान से रोक लिया था। परंतु रतन सुगना के इस तरह रोके जाने से एक बार फिर दुखी हो गया।

रतन हमेशा यही बात सोचता की सुगना ने राजेश से संभोग कर न सिर्फ सूरज को जन्म दिया था अपितु वह एक बार पुनः गर्भवती हो गई थी। क्या सुगना राजेश से के बार बार अंतरंग हो चुकी थी? क्या उन दोनों के बीच अंतरंगता की वजह संतान उत्पत्ति के अलावा और भी कुछ थी ? क्या सुगना ने राजेश के साथ संबंध अपनी काम पिपासा को शांत करने के लिए बनाया था? क्या मासूम सी दिखने वाली सुगना एक काम पिपासु युवती थी जो जिसने वासना शांत करने के लिए राजेश से निरंतर संबंध बना कर रखे थे?

कभी-कभी रतन के मन में यह सोच कर घृणा का भाव भी उत्पन्न होता परंतु सुगना का मृदुल व्यवहार और मासूम चेहरा उसे व्यभिचारी साबित होने से रोक लेता रतन सुगना के साथ बिताए गए पिछले कुछ महीनों के अनुभव से यह बात कह सकता था कि सुगना जैसी युवती बिना प्रेम के इस तरह के संबंध नहीं बनाएगी और यह प्रेम न तो सुगना की आंखों में दिखाई देता न राजेश की आंखों में। यह अलग बात थी की राजेश की आखों में वासना अवश्य दिखाई देती।

ढेर सारे प्रश्न लिए रतन बेचैन रहता परंतु सुगना और राजेश के संबंध को जितना वह समझ पाया था वह उसके प्रश्नों के उत्तर के लिए काफी न था। वह सुगना और राजेश पर नजर भी रखता था परंतु हर बार उसे असफलता ही हाथ लगती। उसने राजेश की आंखों में सुगना के प्रति जो कसक और ललक महसूस की थी वह ठीक वैसी ही थी जैसी किसी कामुक मर्द की आंखों में दिखाई पड़ती है। रतन बार-बार यही बात सोचता कि जब राजेश सुगना के साथ कई बार अंतरंग हो चुका है तो फिर यह लालसा क्यों?

रतन के प्रश्नों का उत्तर किसी के पास नहीं था सुगना से पूछ पाने की उसकी हिम्मत न थी और सुगना जिससे पिछले तीन-चार वर्षो से कामकला के खेल खेल रही थी वह रतन की उम्मीदों से परे था ।

उधर मिंकी सूरज के अंगूठे के रहस्य को जान चुकी थी उस दिन सुगना ने आंखें बंद कर उससे जो कार्य कराया था उसका अंदाजा उसे लग चुका था अपनी समझ की तस्दीक करने के लिए उसने एक नहीं कई बार सूरज का अंगूठा सहलाया और उसकी नुंनी पर अपने होठों का स्पर्श दे उसे वापस अपने आकार में लाने में कामयाब रही थी। यह अनोखा खेल मिंकी को पसंद आ गया था।


सूरज की मासूम नुंनी से उसे नाम मात्र की भी घृणा न थी। जब उसका मन करता सूरज के अंगूठे पर से आवरण हटाती और उसके अंगूठे को सहला कर बेहद प्यार से उस करामाती अंग को बड़ा करती उससे प्यार से खेलती तथा सुगना के आने की आहट सुन अपने होठों के बीच लेकर उसे तुरंत ही छोटा कर देती। सूरज इस दौरान हंसता खिलखिला रहता।

नियति उसका यह खेल देखती और उनके भविष्य की कल्पना करती। काश नियति समय की चाल बदल पाती तो वह 15 वर्षों के बाद के एक तरुणी को एक युवा के लण्ड से इस प्रकार खेलते देख स्वयं उत्तेजित हो जाती।

मिंकी का यह खेल बेहद पावन और स्वाभाविक था उसे न तो इन काम अंगों का ज्ञान था नहीं उस पर लगाई गई समाज की बंदिशें। यदि वह समाज के बीच न होती तो यही कार्य करते करते दिन महीने साल बीतते जाते और एक दिन सूरज की नूनी लण्ड का आकार ले लेती और मिंकी के मादक हो चुके होंठ उसे निश्चित ही अपने स्पर्श , घर्षण और आगोश से स्खलित कर देते।

परंतु समय अपनी चाल से चल रहा था और नियति नित्य नई परिस्थितियां देखकर अपनी कहानी संजो रही थी। सुगना का गर्भ भी अब प्रसव के लिए तैयार हो रहा था।


इसी दौरान सुगना की बहन सोनी ने अपनी 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण कर बनारस के नर्सिंग स्कूल में दाखिला ले लिया था। वह सुगना के साथ रहती और घरेलू कार्यों में उसका हाथ भी बताती। सुगना के फूले हुए पेट को देखकर सोनी के मन में कई सारे प्रश्न आते वह सुगना से उसके अनुभव के बारे में पूछती परंतु गर्भधारण करने की मूल क्रिया के बारे में चाह कर भी न पूछ पाती जो इन दिनों लगातार उसकी उत्सुकता बढ़ा रहा रही थी।

सोनी ने अपनी बहन मोनी को भी अपने कामुक अनुभव सुनाने और उसे अपने खेल में शामिल करने के लिए कई प्रयास किए परंतु मोनी इन सब बातों से दूर घरेलू कार्यों और पूजा पाठ में मन लगाती। उसके पास बात करने के लिए विषय दूसरे थे और सोनी के दूसरे। सोने की इस जिज्ञासा का उत्तर देने वाला और कोई नहीं सिर्फ सुगना थी। परंतु सुगना और सोनी के बीच उम्र का अंतर और सुगना का कद आड़े आ जाता।

सोनी समय से पहले युवा हो चुकी थी और चुचियों ने स्वयं उसके हाथों का मर्दन कुछ जरूरत से ज्यादा झेला था और अपना आकार बरबस ही बढ़ा चुकी थीं। विकास के संपर्क में आने के बाद तो सोनी और भी उत्तेजित हो चली थी गुसल खाने में लगने वाला समय धीरे-धीरे बढ़ रहा था और सोनी को एकांत पसंद आने लगा था।

सुगना की अधीरता धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी जैसे-जैसे प्रसव का समय नजदीक आ रहा था उसके मन में गर्भ के लिंग को लेकर प्रश्न उठते और वह अपने इष्ट देव के सामने नतमस्तक होती जाती वह घंटों पूजा पाठ किया करती और अपनी हर दुआ में सिर्फ और सिर्फ पुत्री की कामना करती। मन में उठने वाली दुआएं अब बुदबुदाहट का रूप ले चुकी थी।

सुगना अपने इष्ट देव के सामने नतमस्तक होकर दुआ मांग रही थी

"हे भगवान हमरा के लइकिये दीह ना त हम मर जाइब"

पीछे खड़ी सोनी सुगना की इस विलक्षण मांग से थोड़ी आश्चर्यचकित थी सुगना के उठते ही उसने पूछ लिया..

"ए दीदी ते लड़की काहे मांगेले सब केहू लाइका मांगेला"

सुगना अपनी मनो स्थिति और विद्यानंद की बातों को सोनी जैसी तरुणी से साझा नहीं करना चाहती थी उसने कहा

"हमरा लाइका ता बड़ले बा हमरा एगो लईकी चाही"

सोनी की नजरों में सुगना पहले भी समझदार थी और आज इस सटीक उत्तर ने उसे उसकी नजरों में और बड़ा तथा सम्मानित बना दिया। सोनी ने किताबों में जो लिंगानुपात के बारे में पढ़ा था आज एक समझदार महिला उसका अनुकरण कर रही थी सोनी ने सुगना को गले से लगा लिया परंतु सगुना का पेट आड़े आ गया।

"चल छोड़ जाए दे कुछ चाही का बड़ा आगे पीछे घूमता रे"

सोनी ने अपनी चूचियों की तरफ इशारा करते हुए कहा "गंजी चाहीं फाट गईल बा"

(सोनी और उस क्षेत्र की किशोरियों ब्रा को गंजी कहा करती थी)

सुगना भी आज हंसी ठिठोली के मूड में थी

" बनारस शहर में लइकन के चक्कर में मत पड़ जईहे देखा तानी तोर जोवन ढेर फुलल बा" सुगना में सोने की चुचियों की तरफ इशारा करते हुए कहा।

सोनी शर्मा गई सुगना ने उसके गालों को अपनी हथेलियों से सहलाते हुए अपनी कमर मे लटके बटुए से निकालकर ₹ 50 का नोट पकड़ाया और बोला

" ले अब जो तोरा कॉलेज के देर होत होइ"

सोनी मस्त हो गई और फटाफट अपना बैग लेकर अपने नर्सिंग कॉलेज की तरफ निकल पड़ी।

हवा आग और फूस को मिलाने का कार्य करती है ऐसे ही जवानी और कामुकता इस्त्री पुरुषों को करीब खींच लाते विकास और सोनी एक बार फिर रूबरू हो गए।

नियति ने जो रास रंग सोनी और विकास के खाते में लिखे थे। वह अंजाम चढ़ने लगे विकास और सोनी की मुलाकाते होने लगी। दिल के रिश्ते जिस्मानी रिश्ते में तो न बदल पाए परंतु उन दोनों ने एक दूसरे के कामांगों के स्पर्श सुख और एक दूसरे का हस्तमैथुन कर रंगरलिया मनाने लगे।


विकास तो सोनी को बिस्तर पर पटक कर चोदना चाहता था परंतु सोनी पूर्ण नग्न होकर अभी विकास के सामने अपनी जांघें खोलने को तैयार न थी विवाह अभी भी उसके लिए अपना कौमार्य खोने की अनिवार्य शर्त थी पर विकास अभी सोनी चोदने के लिए तैयार तो था परंतु विवाह बंधन में बंधने के लिए नहीं।

विकास और सोनू दोनों ही अपने फाइनल एग्जाम की तैयारी में लगे थे। लाली का पेट फूलने के बाद सोनू की कामवासना को भी ग्रहण लग गया था। उसकी सुगना दीदी लाली के ठीक बगल में रहती थी और दोनों सहेलियां अक्सर साथ-साथ ही रहती सोनू जब कभी लाली से मिलने जाता तो सुगना वहां पहले ही उपस्थित रहती या फिर लाली खुद सुगना के घर में रहती दोनों ही स्थितियों में सोनू की कामवासना ठंडी पड़ जाती। मदमस्त युवती जब गर्भवती होती है तो कामकला के पारखी उस दशा में भी आनंद खोज लेते हैं परंतु सोनू तो नया नया युवा था वह मदमस्त काया वाली अपनी लाली दीदी पर आसक्त हुआ था लाली का बदला रूप उसे उतना नहीं भा रहा था।

इस समय विकास का पलड़ा भारी था सोनू की बहन सोनी के साथ बिताए पलों को वह विस्तार से सोनू को सुनाता और दोनों अपनी अपनी उत्तेजना को जागृत कर अपने हाथों से अपने लण्ड का मान मर्दन करते और खुद को स्खलित कर अपनी अगली पढ़ाई के लिए स्वयं को तैयार कर लेते।

सोनी ने घर का सारा कार्यभार संभाल लिया था सुगना अब ज्यादा समय आराम ही करती थी।


रविवार का दिन था सुगना ने बिस्तर पर से ही आवाज दी

" ए सोनी तनी सूरज बाबू के तेल लगा दिहे ढेर दिन हो गईल बा"

सोनी को हमेशा से सूरज के साथ खेलना पसंद था उसने खुशी-खुशी कहा

"ठीक बा दीदी"

सोनी सूरज को तेल लगाने लगी थोड़ी ही देर में सूरज सोनी की कोमल हाथों की मालिश से मस्त हो गया और चेहरे पर मुस्कान लिए अपनी मौसी के साथ खेलने लगा अचानक सोनी ने एक बार फिर वही प्रतिबंधित कार्य किया जिसे सुगना ने मना किया था।

जाने बंदिशों में ऐसा कौन सा आकर्षण होता है जो मानव मन को स्वभावतः उसी दिशा में खींच लाता है क्या बंदिशें आकर्षण को जन्म देती हैं ?

सोनी भी अपने आकर्षण और कौतूहल को न रोक पायी। और एक बार फिर उसने सूरज के अंगूठे को सहला दिया और अंततः सोनी को अपने होठों का प्रयोग करना पड़ा। परंतु इस बार जब वह अपने होंठ रगड़ रही थी उसी समय रतन कमरे में आ गया सोनी झेप गई और सूरज को बिस्तर पर सुला उसके अधोभाग को पास पड़े तौलिए से ढक दिया …

"जीजा जी कुछ चाही का?" सोनी में अपनी चोरी पकडे जाने को नजरअंदाज कर रतन से पूछा...

रतन अब भी उस विलक्षण दृश्य के बारे में सोच रहा था सोनी के गोल किए गए होठों को यह कार्य करते देख वह कर अपने मन ही मन सोनी का चरित्र चित्रण करने लगा।

क्या सोनी ने वह कार्य वासना के अधीन होकर किया था? रतन ने पहले भी कई बार कई महिलाओं को छोटे बच्चों के उस भाग पर तेल की बूंदे डाल फूंक कर उसके आवरण को हटाते देखा था परंतु आज जो सोनी ने किया था यह कार्य सर्वथा अलग था अपने होठों के बीच उस भाग को रगड़ने की क्रिया को किसी भी प्रकार से तर्कसंगत नहीं माना जा सकता था.. सोनी के होंठ और चेहरे के हाव भाव रतन की सोच से मेल खा रहे थे।

रतन के मुंह से कोई उत्तर न सुन एक बार सोनी ने फिर कहा

" रउआ खातिर चाय बना दी?"

सोनी चौकी पर से उठने लगी। अपने घागरे को व्यवस्थित करते समय उसकी युवा टांगे रतन की निगाहों में आ गयीं। अचानक ही अपनी साली के इस युवा रूप को देखकर रतन के मन में एक पल के लिए वासना का झोंका आया जिस पर विराम एक बार फिर सोनी की आवाज ने ही लगाया

" ली रउआ सूरज बाबू के पकड़ी और दीदी के पास चली हम चाय लेकर आ आव तानी"


रतन ने अपनी क्षणिक कुत्सित सोच पर स्वयं को धिक्कारा और सूरज बाबू को लेकर सुगना के कमरे की तरफ बढ़ चला। सोनी कब बच्ची से बड़ी हो गई रतन यही सोच रहा था।

कुछ दृश्य मानव पटल पर ऐसे स्मृतियां छोड़ देते जो चाह कर भी विचारों से नहीं हटते। सोनी के गोल किए हुए सुंदर होठ अभी रतन के जहन में रह रह कर घूम रहे थे। रतन का ध्यान अब सोनी के अन्य अंगों पर भी जा रहा था। अचानक कि सोनी उसे मासूम किशोरी की जगह काम पिपासु युवती दिखाई पड़ने लगी। रतन ने सोनी को कभी इस रूप में नहीं देखता था पर जब एक बार विचार मैले हुए फिर रतन के पुरुष मन ने सोनी के युवा शरीर की नाप जोख करनी शुरू कर दी। रतन के अंतर्मन में चल रहे इस विचार को उसकी अतृप्त कामेच्छा ने और बढ़ावा दिया।

सुगना ने रतन का ध्यान भंग किया और बोली..

"लागा ता अब दिन आ गईल बा। टेंपो वाला के बोल कर राखब कभी भी हॉस्पिटल जाए के पड़ सकता बा"

पिछले कुछ दिनों में सुगना रतन से खुल कर बातें करने लगी थी।

"तू चिंता मत कर सब तैयारी बा"


तभी सोनी चाय लेकर आ गई उसने सुगना को चाय दी और फिर रतन को जैसे ही सोनी रतन को चाय देने के लिए झुकी उसकी फूली हुई चुचियों के बीच की गहरी घाटी रतन को दिखाई पड़ गई न जाने आज रतन को क्या हो गया था सोनी उसके विचारों में पूरी तरह बदल गई थी।

वैसे भी बनारस आने से पहले रतन और सोनी की मुलाकात ज्यादा नहीं थी। जब रतन को सुगना से ही कोई सरोकार न था तो उसके परिवार वालों और उसकी छोटी बहनों से क्यों होता परंतु पिछले कुछ दिनों में जब से सोनी आई थी तब से रतन ने भी उसे सहर्ष अपनी साली के रूप में स्वीकार कर लिया था।

"जीजा जी हमरा का नेग मिली सेवा कईला के"

सोनी ने रतन को सहज करने की कोशिश की जोअपने ख्यालों में खोया हुआ था

"सब कुछ बढ़िया से हो जायी त जो चाहे मांग लीह"

"बाद में पलटब अब नानू"

"अच्छा बताव तहरा का चाहीं"

"चली जाए दीं, टाइम आवे पर मांग लेब भूलाइब मत"

चाय खत्म होने के बाद सोनी चाय के कप लेकर वापस जाने लगी रतन की निगाहें उस के हिलते हुए नितंबों पर चिपकी हुई थी बिस्तर पर बैठी सुगना ने यह ताड़ लिया और बोली

"का देखा तानी"

रतन क्या बोलता वह जो देख रहा था वह सारे युवाओं को पसंद आने सोनी के गदराए नितंब थे जो घागरे के अंदर से चीख चीख कर अपनी उपस्थिति का एहसास करा रहे थे।

"कुछो ना"

रतन ने बात काटी और अपने वस्त्र बदलने लगा। सुगना को एक पल के लिए महसूस हुआ की युवा स्त्रियों के प्रति रतन का आकर्षण क्या स्वाभाविक है? या रतन एक चरित्रहीन व्यक्ति है? सुगना रतन के व्यक्तित्व का आकलन पिछले कई दिनों से कर रही थी और धीरे-धीरे उसे अपने अंतर्मन में जगह दे रही थी उसका घाघरा तो अभी व्यस्त था उस में जगह देने की न तो अभी जगह थी और नहीं यह विचार सुगना की सोच में था? जब अंतर्मन एक हो तो एकाकार होने का आनंद सुगना बखूबी जानती थी।

सुगना ने रतन की परीक्षा के दिन और बढ़ा दिए।

उधर रतन अब सोनी पर निगाह रखने लगा। कई बार वह अपने मन को समझाता कि उसका इस तरह सोनी पर निगाह रखना सोनी के चरित्र को समझने के लिए था परंतु इसमें उसकी कामेच्छा भी इसमें एक अहम भूमिका निभा रही थी।

रतन ने मन ही मन सोनी की युवा काया की तस्वीर को अपने मस्तिष्क के कैनवस पर खींचना शुरू कर दिया था। सोनी को बिना वस्त्रों के देखने की ललक बढ़ती जा रही थी। वह ताका झांकी करने लगा। सोनी इन सब बातों से अनजान सामान्य रूप से रह रही थी। उसे एक पुरुष से जो चाहिए था वह विकास उसे भली-भांति दे रहा था और जिसकी उसे असीम इच्छा थी उसके लिए विवाह एक अनिवार्य शर्त थी। उसे क्या पता था कि जीजा रतन के विचार बदल चुके थे।

स्त्रियों विशेषकर पत्नियों में यह एक विशेष गुण होता है कि यदि वह अपने पुरुष मित्र या पति को किसी अन्य युवती की तरफ आकर्षित होते हुए देखते हैं तो वह तुरंत ही उसे ताड़ लेती हैं। सुगना ने भी कुछ ही दिनों में रतन के मन में आए इस पाप को पहचान लिया। उसे रतन का यह रूप कतई पसंद न आया। अपनी सालियों से हंसी ठिठोली तो ठीक है परंतु रतन की निगाहें सोनी की चूचियों और नितंबों पर ज्यादा देर टिकने लगी थी।

रतन के मन में सोनी के प्रति जो भावना आई थी वह सिर्फ और सिर्फ वासना के कारण जन्मी थी उसके खयालो और हस्तमैथुन के अंतरंग पलों में कभी-कभी पेट फूली हुई सुगना की जगह सोनी अपनी जगह बनाने लगी थी। रतन सुगना से बेहद प्यार करता था परंतु वासना का क्या ? वह तो भटकती है और उचित पात्र देखकर उसे अपने रास रंग में शामिल कर लेती है रतन की वासना ने भी रतन के मन को व्यभिचारी बना दिया था।

अपनी वासना को अपनी सोच पर हावी होने देना मानव मन की सबसे बड़ी कमजोरी है जिन पुरुषों ने इस पर विजय प्राप्त की है वह तारीफ के काबिल है और उन के दम पर ही समाज चल रहा है यदि पुरुषों को यह वरदान प्राप्त हो जाए कि वह किसी भी सुंदर स्त्री को अपने बिस्तर पर अवतरित कर भोग सकते हैं तो अधिकतर पुरुष दर्जन भर से ज्यादा स्त्रियों को अपने बिस्तर पर ला चुके होते और इस चुनाव में रिश्ते शायद कम ही आड़े आते।

किसी नितांत अपरिचित सुंदरी से संभोग करना शायद उतना उत्तेजक ना होता हो जितना अपने जानने पहचानने वाली चुलबुली और हसीन स्त्री से।

दो-चार दिन और बीत गए और एक दिन सुगना का पेटीकोट पानी से भीग गया कजरी घर पर ही थी वह तुरंत ही समझ गई की प्रसव बेला करीब है रतन अपने होटल के लिए निकल रहा था कजरी ने कहा

"जो टेंपो ले आओ सुगना के अस्पताल लाई जाए के परी। ए सोनी जल्दी-जल्दी सामान रख लागा ता आज ही नया बाबू आई.."

चेहरे पर दर्द लिए सुगना एक बार फिर बोली

"मां बाबू ना बबुनी"

सुगना इस दर्द भरी अवस्था में भी अपनी पुत्री की चाह को सरेआम व्यक्त करने से ना रोक पायी ।

दोनों सास बहू उन बातों पर चिंता कर रही थी जो उनके हाथ में कतई ना था। थोड़ी ही देर में हरिया की पत्नी (लाली की सास) भागते हुए आई और बोली

"लाली के हमनी के अस्पताल ले जा तानी जा ओकरा पेट में दर्द होखता"


कजरी और हरिया की पत्नी ने एक दूसरे से अस्पताल ले जाने वाली सामग्रियों की जानकारी साझा की और कुछ ही देर में दो अलग-अलग ऑटो में बैठ कर सुगना और लाली अस्पताल में प्रसव पीड़ा झेलने के लिए चल पड़ी। बनारस महोत्सव में जो बीच उनके गर्भ में बोया गया था उसका फल आने का वक्त हो चुका था।…

क्या नियति ने सुगना के गर्भ में पुत्री का है सृजन किया था? या सुगना जो सूरज की मां और बहन दोनों थी वही उसकी मुक्ती दायिनी थी…




यह प्रश्न मैं एक बार फिर पाठकों के लिए छोड़े जा रहा हूं।

शेष अगले भाग में
Mast hai bhai build up ho raha hai ab naye mod par
 

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सुगना अपने मीठे ख्वाब से बाहर आ गई और अपने पति को अपना पैर दबाते देख एक तरफ वो शर्मा गयी दूसरी तरफ अपने उस सुखद सपने को याद कर रही थी जिसने उसकी बुर को पनिया दिया था।

सुगना की साड़ी अभी घुटनों के ठीक ऊपर थी रतन नींद में सो रही सुगना उस साड़ी को ऊपर करना तो चाहता था परंतु हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था परंतु अब सुगना जाग चुकी थी रतन के हाथ सुगना के घुटनों की तरफ बढ़ रहे थे...

नियति रतन की आंखों में प्रेम और वासना दोनों का मिलाजुला अंश देख रही थी…

अब आगे...…..

जब तक की रतन के हाथ सुगना के घुटनों के ऊपर पड़ी साड़ी तक पहुंचते सुगना ने रतन के हाथ पकड़ लीये और अपने दूसरे हाथ से साड़ी को नीचे करते हुए होली "जाए दी अब रहे दी ...अब ठीक लागता"

सुगना ने रतन को बड़ी सादगी और सम्मान से रोक लिया था। परंतु रतन सुगना के इस तरह रोके जाने से एक बार फिर दुखी हो गया।

रतन हमेशा यही बात सोचता की सुगना ने राजेश से संभोग कर न सिर्फ सूरज को जन्म दिया था अपितु वह एक बार पुनः गर्भवती हो गई थी। क्या सुगना राजेश से के बार बार अंतरंग हो चुकी थी? क्या उन दोनों के बीच अंतरंगता की वजह संतान उत्पत्ति के अलावा और भी कुछ थी ? क्या सुगना ने राजेश के साथ संबंध अपनी काम पिपासा को शांत करने के लिए बनाया था? क्या मासूम सी दिखने वाली सुगना एक काम पिपासु युवती थी जो जिसने वासना शांत करने के लिए राजेश से निरंतर संबंध बना कर रखे थे?

कभी-कभी रतन के मन में यह सोच कर घृणा का भाव भी उत्पन्न होता परंतु सुगना का मृदुल व्यवहार और मासूम चेहरा उसे व्यभिचारी साबित होने से रोक लेता रतन सुगना के साथ बिताए गए पिछले कुछ महीनों के अनुभव से यह बात कह सकता था कि सुगना जैसी युवती बिना प्रेम के इस तरह के संबंध नहीं बनाएगी और यह प्रेम न तो सुगना की आंखों में दिखाई देता न राजेश की आंखों में। यह अलग बात थी की राजेश की आखों में वासना अवश्य दिखाई देती।

ढेर सारे प्रश्न लिए रतन बेचैन रहता परंतु सुगना और राजेश के संबंध को जितना वह समझ पाया था वह उसके प्रश्नों के उत्तर के लिए काफी न था। वह सुगना और राजेश पर नजर भी रखता था परंतु हर बार उसे असफलता ही हाथ लगती। उसने राजेश की आंखों में सुगना के प्रति जो कसक और ललक महसूस की थी वह ठीक वैसी ही थी जैसी किसी कामुक मर्द की आंखों में दिखाई पड़ती है। रतन बार-बार यही बात सोचता कि जब राजेश सुगना के साथ कई बार अंतरंग हो चुका है तो फिर यह लालसा क्यों?

रतन के प्रश्नों का उत्तर किसी के पास नहीं था सुगना से पूछ पाने की उसकी हिम्मत न थी और सुगना जिससे पिछले तीन-चार वर्षो से कामकला के खेल खेल रही थी वह रतन की उम्मीदों से परे था ।

उधर मिंकी सूरज के अंगूठे के रहस्य को जान चुकी थी उस दिन सुगना ने आंखें बंद कर उससे जो कार्य कराया था उसका अंदाजा उसे लग चुका था अपनी समझ की तस्दीक करने के लिए उसने एक नहीं कई बार सूरज का अंगूठा सहलाया और उसकी नुंनी पर अपने होठों का स्पर्श दे उसे वापस अपने आकार में लाने में कामयाब रही थी। यह अनोखा खेल मिंकी को पसंद आ गया था।


सूरज की मासूम नुंनी से उसे नाम मात्र की भी घृणा न थी। जब उसका मन करता सूरज के अंगूठे पर से आवरण हटाती और उसके अंगूठे को सहला कर बेहद प्यार से उस करामाती अंग को बड़ा करती उससे प्यार से खेलती तथा सुगना के आने की आहट सुन अपने होठों के बीच लेकर उसे तुरंत ही छोटा कर देती। सूरज इस दौरान हंसता खिलखिला रहता।

नियति उसका यह खेल देखती और उनके भविष्य की कल्पना करती। काश नियति समय की चाल बदल पाती तो वह 15 वर्षों के बाद के एक तरुणी को एक युवा के लण्ड से इस प्रकार खेलते देख स्वयं उत्तेजित हो जाती।

मिंकी का यह खेल बेहद पावन और स्वाभाविक था उसे न तो इन काम अंगों का ज्ञान था नहीं उस पर लगाई गई समाज की बंदिशें। यदि वह समाज के बीच न होती तो यही कार्य करते करते दिन महीने साल बीतते जाते और एक दिन सूरज की नूनी लण्ड का आकार ले लेती और मिंकी के मादक हो चुके होंठ उसे निश्चित ही अपने स्पर्श , घर्षण और आगोश से स्खलित कर देते।

परंतु समय अपनी चाल से चल रहा था और नियति नित्य नई परिस्थितियां देखकर अपनी कहानी संजो रही थी। सुगना का गर्भ भी अब प्रसव के लिए तैयार हो रहा था।


इसी दौरान सुगना की बहन सोनी ने अपनी 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण कर बनारस के नर्सिंग स्कूल में दाखिला ले लिया था। वह सुगना के साथ रहती और घरेलू कार्यों में उसका हाथ भी बताती। सुगना के फूले हुए पेट को देखकर सोनी के मन में कई सारे प्रश्न आते वह सुगना से उसके अनुभव के बारे में पूछती परंतु गर्भधारण करने की मूल क्रिया के बारे में चाह कर भी न पूछ पाती जो इन दिनों लगातार उसकी उत्सुकता बढ़ा रहा रही थी।

सोनी ने अपनी बहन मोनी को भी अपने कामुक अनुभव सुनाने और उसे अपने खेल में शामिल करने के लिए कई प्रयास किए परंतु मोनी इन सब बातों से दूर घरेलू कार्यों और पूजा पाठ में मन लगाती। उसके पास बात करने के लिए विषय दूसरे थे और सोनी के दूसरे। सोने की इस जिज्ञासा का उत्तर देने वाला और कोई नहीं सिर्फ सुगना थी। परंतु सुगना और सोनी के बीच उम्र का अंतर और सुगना का कद आड़े आ जाता।

सोनी समय से पहले युवा हो चुकी थी और चुचियों ने स्वयं उसके हाथों का मर्दन कुछ जरूरत से ज्यादा झेला था और अपना आकार बरबस ही बढ़ा चुकी थीं। विकास के संपर्क में आने के बाद तो सोनी और भी उत्तेजित हो चली थी गुसल खाने में लगने वाला समय धीरे-धीरे बढ़ रहा था और सोनी को एकांत पसंद आने लगा था।

सुगना की अधीरता धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी जैसे-जैसे प्रसव का समय नजदीक आ रहा था उसके मन में गर्भ के लिंग को लेकर प्रश्न उठते और वह अपने इष्ट देव के सामने नतमस्तक होती जाती वह घंटों पूजा पाठ किया करती और अपनी हर दुआ में सिर्फ और सिर्फ पुत्री की कामना करती। मन में उठने वाली दुआएं अब बुदबुदाहट का रूप ले चुकी थी।

सुगना अपने इष्ट देव के सामने नतमस्तक होकर दुआ मांग रही थी

"हे भगवान हमरा के लइकिये दीह ना त हम मर जाइब"

पीछे खड़ी सोनी सुगना की इस विलक्षण मांग से थोड़ी आश्चर्यचकित थी सुगना के उठते ही उसने पूछ लिया..

"ए दीदी ते लड़की काहे मांगेले सब केहू लाइका मांगेला"

सुगना अपनी मनो स्थिति और विद्यानंद की बातों को सोनी जैसी तरुणी से साझा नहीं करना चाहती थी उसने कहा

"हमरा लाइका ता बड़ले बा हमरा एगो लईकी चाही"

सोनी की नजरों में सुगना पहले भी समझदार थी और आज इस सटीक उत्तर ने उसे उसकी नजरों में और बड़ा तथा सम्मानित बना दिया। सोनी ने किताबों में जो लिंगानुपात के बारे में पढ़ा था आज एक समझदार महिला उसका अनुकरण कर रही थी सोनी ने सुगना को गले से लगा लिया परंतु सगुना का पेट आड़े आ गया।

"चल छोड़ जाए दे कुछ चाही का बड़ा आगे पीछे घूमता रे"

सोनी ने अपनी चूचियों की तरफ इशारा करते हुए कहा "गंजी चाहीं फाट गईल बा"

(सोनी और उस क्षेत्र की किशोरियों ब्रा को गंजी कहा करती थी)

सुगना भी आज हंसी ठिठोली के मूड में थी

" बनारस शहर में लइकन के चक्कर में मत पड़ जईहे देखा तानी तोर जोवन ढेर फुलल बा" सुगना में सोने की चुचियों की तरफ इशारा करते हुए कहा।

सोनी शर्मा गई सुगना ने उसके गालों को अपनी हथेलियों से सहलाते हुए अपनी कमर मे लटके बटुए से निकालकर ₹ 50 का नोट पकड़ाया और बोला

" ले अब जो तोरा कॉलेज के देर होत होइ"

सोनी मस्त हो गई और फटाफट अपना बैग लेकर अपने नर्सिंग कॉलेज की तरफ निकल पड़ी।

हवा आग और फूस को मिलाने का कार्य करती है ऐसे ही जवानी और कामुकता इस्त्री पुरुषों को करीब खींच लाते विकास और सोनी एक बार फिर रूबरू हो गए।

नियति ने जो रास रंग सोनी और विकास के खाते में लिखे थे। वह अंजाम चढ़ने लगे विकास और सोनी की मुलाकाते होने लगी। दिल के रिश्ते जिस्मानी रिश्ते में तो न बदल पाए परंतु उन दोनों ने एक दूसरे के कामांगों के स्पर्श सुख और एक दूसरे का हस्तमैथुन कर रंगरलिया मनाने लगे।


विकास तो सोनी को बिस्तर पर पटक कर चोदना चाहता था परंतु सोनी पूर्ण नग्न होकर अभी विकास के सामने अपनी जांघें खोलने को तैयार न थी विवाह अभी भी उसके लिए अपना कौमार्य खोने की अनिवार्य शर्त थी पर विकास अभी सोनी चोदने के लिए तैयार तो था परंतु विवाह बंधन में बंधने के लिए नहीं।

विकास और सोनू दोनों ही अपने फाइनल एग्जाम की तैयारी में लगे थे। लाली का पेट फूलने के बाद सोनू की कामवासना को भी ग्रहण लग गया था। उसकी सुगना दीदी लाली के ठीक बगल में रहती थी और दोनों सहेलियां अक्सर साथ-साथ ही रहती सोनू जब कभी लाली से मिलने जाता तो सुगना वहां पहले ही उपस्थित रहती या फिर लाली खुद सुगना के घर में रहती दोनों ही स्थितियों में सोनू की कामवासना ठंडी पड़ जाती। मदमस्त युवती जब गर्भवती होती है तो कामकला के पारखी उस दशा में भी आनंद खोज लेते हैं परंतु सोनू तो नया नया युवा था वह मदमस्त काया वाली अपनी लाली दीदी पर आसक्त हुआ था लाली का बदला रूप उसे उतना नहीं भा रहा था।

इस समय विकास का पलड़ा भारी था सोनू की बहन सोनी के साथ बिताए पलों को वह विस्तार से सोनू को सुनाता और दोनों अपनी अपनी उत्तेजना को जागृत कर अपने हाथों से अपने लण्ड का मान मर्दन करते और खुद को स्खलित कर अपनी अगली पढ़ाई के लिए स्वयं को तैयार कर लेते।

सोनी ने घर का सारा कार्यभार संभाल लिया था सुगना अब ज्यादा समय आराम ही करती थी।


रविवार का दिन था सुगना ने बिस्तर पर से ही आवाज दी

" ए सोनी तनी सूरज बाबू के तेल लगा दिहे ढेर दिन हो गईल बा"

सोनी को हमेशा से सूरज के साथ खेलना पसंद था उसने खुशी-खुशी कहा

"ठीक बा दीदी"

सोनी सूरज को तेल लगाने लगी थोड़ी ही देर में सूरज सोनी की कोमल हाथों की मालिश से मस्त हो गया और चेहरे पर मुस्कान लिए अपनी मौसी के साथ खेलने लगा अचानक सोनी ने एक बार फिर वही प्रतिबंधित कार्य किया जिसे सुगना ने मना किया था।

जाने बंदिशों में ऐसा कौन सा आकर्षण होता है जो मानव मन को स्वभावतः उसी दिशा में खींच लाता है क्या बंदिशें आकर्षण को जन्म देती हैं ?

सोनी भी अपने आकर्षण और कौतूहल को न रोक पायी। और एक बार फिर उसने सूरज के अंगूठे को सहला दिया और अंततः सोनी को अपने होठों का प्रयोग करना पड़ा। परंतु इस बार जब वह अपने होंठ रगड़ रही थी उसी समय रतन कमरे में आ गया सोनी झेप गई और सूरज को बिस्तर पर सुला उसके अधोभाग को पास पड़े तौलिए से ढक दिया …

"जीजा जी कुछ चाही का?" सोनी में अपनी चोरी पकडे जाने को नजरअंदाज कर रतन से पूछा...

रतन अब भी उस विलक्षण दृश्य के बारे में सोच रहा था सोनी के गोल किए गए होठों को यह कार्य करते देख वह कर अपने मन ही मन सोनी का चरित्र चित्रण करने लगा।

क्या सोनी ने वह कार्य वासना के अधीन होकर किया था? रतन ने पहले भी कई बार कई महिलाओं को छोटे बच्चों के उस भाग पर तेल की बूंदे डाल फूंक कर उसके आवरण को हटाते देखा था परंतु आज जो सोनी ने किया था यह कार्य सर्वथा अलग था अपने होठों के बीच उस भाग को रगड़ने की क्रिया को किसी भी प्रकार से तर्कसंगत नहीं माना जा सकता था.. सोनी के होंठ और चेहरे के हाव भाव रतन की सोच से मेल खा रहे थे।

रतन के मुंह से कोई उत्तर न सुन एक बार सोनी ने फिर कहा

" रउआ खातिर चाय बना दी?"

सोनी चौकी पर से उठने लगी। अपने घागरे को व्यवस्थित करते समय उसकी युवा टांगे रतन की निगाहों में आ गयीं। अचानक ही अपनी साली के इस युवा रूप को देखकर रतन के मन में एक पल के लिए वासना का झोंका आया जिस पर विराम एक बार फिर सोनी की आवाज ने ही लगाया

" ली रउआ सूरज बाबू के पकड़ी और दीदी के पास चली हम चाय लेकर आ आव तानी"


रतन ने अपनी क्षणिक कुत्सित सोच पर स्वयं को धिक्कारा और सूरज बाबू को लेकर सुगना के कमरे की तरफ बढ़ चला। सोनी कब बच्ची से बड़ी हो गई रतन यही सोच रहा था।

कुछ दृश्य मानव पटल पर ऐसे स्मृतियां छोड़ देते जो चाह कर भी विचारों से नहीं हटते। सोनी के गोल किए हुए सुंदर होठ अभी रतन के जहन में रह रह कर घूम रहे थे। रतन का ध्यान अब सोनी के अन्य अंगों पर भी जा रहा था। अचानक कि सोनी उसे मासूम किशोरी की जगह काम पिपासु युवती दिखाई पड़ने लगी। रतन ने सोनी को कभी इस रूप में नहीं देखता था पर जब एक बार विचार मैले हुए फिर रतन के पुरुष मन ने सोनी के युवा शरीर की नाप जोख करनी शुरू कर दी। रतन के अंतर्मन में चल रहे इस विचार को उसकी अतृप्त कामेच्छा ने और बढ़ावा दिया।

सुगना ने रतन का ध्यान भंग किया और बोली..

"लागा ता अब दिन आ गईल बा। टेंपो वाला के बोल कर राखब कभी भी हॉस्पिटल जाए के पड़ सकता बा"

पिछले कुछ दिनों में सुगना रतन से खुल कर बातें करने लगी थी।

"तू चिंता मत कर सब तैयारी बा"


तभी सोनी चाय लेकर आ गई उसने सुगना को चाय दी और फिर रतन को जैसे ही सोनी रतन को चाय देने के लिए झुकी उसकी फूली हुई चुचियों के बीच की गहरी घाटी रतन को दिखाई पड़ गई न जाने आज रतन को क्या हो गया था सोनी उसके विचारों में पूरी तरह बदल गई थी।

वैसे भी बनारस आने से पहले रतन और सोनी की मुलाकात ज्यादा नहीं थी। जब रतन को सुगना से ही कोई सरोकार न था तो उसके परिवार वालों और उसकी छोटी बहनों से क्यों होता परंतु पिछले कुछ दिनों में जब से सोनी आई थी तब से रतन ने भी उसे सहर्ष अपनी साली के रूप में स्वीकार कर लिया था।

"जीजा जी हमरा का नेग मिली सेवा कईला के"

सोनी ने रतन को सहज करने की कोशिश की जोअपने ख्यालों में खोया हुआ था

"सब कुछ बढ़िया से हो जायी त जो चाहे मांग लीह"

"बाद में पलटब अब नानू"

"अच्छा बताव तहरा का चाहीं"

"चली जाए दीं, टाइम आवे पर मांग लेब भूलाइब मत"

चाय खत्म होने के बाद सोनी चाय के कप लेकर वापस जाने लगी रतन की निगाहें उस के हिलते हुए नितंबों पर चिपकी हुई थी बिस्तर पर बैठी सुगना ने यह ताड़ लिया और बोली

"का देखा तानी"

रतन क्या बोलता वह जो देख रहा था वह सारे युवाओं को पसंद आने सोनी के गदराए नितंब थे जो घागरे के अंदर से चीख चीख कर अपनी उपस्थिति का एहसास करा रहे थे।

"कुछो ना"

रतन ने बात काटी और अपने वस्त्र बदलने लगा। सुगना को एक पल के लिए महसूस हुआ की युवा स्त्रियों के प्रति रतन का आकर्षण क्या स्वाभाविक है? या रतन एक चरित्रहीन व्यक्ति है? सुगना रतन के व्यक्तित्व का आकलन पिछले कई दिनों से कर रही थी और धीरे-धीरे उसे अपने अंतर्मन में जगह दे रही थी उसका घाघरा तो अभी व्यस्त था उस में जगह देने की न तो अभी जगह थी और नहीं यह विचार सुगना की सोच में था? जब अंतर्मन एक हो तो एकाकार होने का आनंद सुगना बखूबी जानती थी।

सुगना ने रतन की परीक्षा के दिन और बढ़ा दिए।

उधर रतन अब सोनी पर निगाह रखने लगा। कई बार वह अपने मन को समझाता कि उसका इस तरह सोनी पर निगाह रखना सोनी के चरित्र को समझने के लिए था परंतु इसमें उसकी कामेच्छा भी इसमें एक अहम भूमिका निभा रही थी।

रतन ने मन ही मन सोनी की युवा काया की तस्वीर को अपने मस्तिष्क के कैनवस पर खींचना शुरू कर दिया था। सोनी को बिना वस्त्रों के देखने की ललक बढ़ती जा रही थी। वह ताका झांकी करने लगा। सोनी इन सब बातों से अनजान सामान्य रूप से रह रही थी। उसे एक पुरुष से जो चाहिए था वह विकास उसे भली-भांति दे रहा था और जिसकी उसे असीम इच्छा थी उसके लिए विवाह एक अनिवार्य शर्त थी। उसे क्या पता था कि जीजा रतन के विचार बदल चुके थे।

स्त्रियों विशेषकर पत्नियों में यह एक विशेष गुण होता है कि यदि वह अपने पुरुष मित्र या पति को किसी अन्य युवती की तरफ आकर्षित होते हुए देखते हैं तो वह तुरंत ही उसे ताड़ लेती हैं। सुगना ने भी कुछ ही दिनों में रतन के मन में आए इस पाप को पहचान लिया। उसे रतन का यह रूप कतई पसंद न आया। अपनी सालियों से हंसी ठिठोली तो ठीक है परंतु रतन की निगाहें सोनी की चूचियों और नितंबों पर ज्यादा देर टिकने लगी थी।

रतन के मन में सोनी के प्रति जो भावना आई थी वह सिर्फ और सिर्फ वासना के कारण जन्मी थी उसके खयालो और हस्तमैथुन के अंतरंग पलों में कभी-कभी पेट फूली हुई सुगना की जगह सोनी अपनी जगह बनाने लगी थी। रतन सुगना से बेहद प्यार करता था परंतु वासना का क्या ? वह तो भटकती है और उचित पात्र देखकर उसे अपने रास रंग में शामिल कर लेती है रतन की वासना ने भी रतन के मन को व्यभिचारी बना दिया था।

अपनी वासना को अपनी सोच पर हावी होने देना मानव मन की सबसे बड़ी कमजोरी है जिन पुरुषों ने इस पर विजय प्राप्त की है वह तारीफ के काबिल है और उन के दम पर ही समाज चल रहा है यदि पुरुषों को यह वरदान प्राप्त हो जाए कि वह किसी भी सुंदर स्त्री को अपने बिस्तर पर अवतरित कर भोग सकते हैं तो अधिकतर पुरुष दर्जन भर से ज्यादा स्त्रियों को अपने बिस्तर पर ला चुके होते और इस चुनाव में रिश्ते शायद कम ही आड़े आते।

किसी नितांत अपरिचित सुंदरी से संभोग करना शायद उतना उत्तेजक ना होता हो जितना अपने जानने पहचानने वाली चुलबुली और हसीन स्त्री से।

दो-चार दिन और बीत गए और एक दिन सुगना का पेटीकोट पानी से भीग गया कजरी घर पर ही थी वह तुरंत ही समझ गई की प्रसव बेला करीब है रतन अपने होटल के लिए निकल रहा था कजरी ने कहा

"जो टेंपो ले आओ सुगना के अस्पताल लाई जाए के परी। ए सोनी जल्दी-जल्दी सामान रख लागा ता आज ही नया बाबू आई.."

चेहरे पर दर्द लिए सुगना एक बार फिर बोली

"मां बाबू ना बबुनी"

सुगना इस दर्द भरी अवस्था में भी अपनी पुत्री की चाह को सरेआम व्यक्त करने से ना रोक पायी ।

दोनों सास बहू उन बातों पर चिंता कर रही थी जो उनके हाथ में कतई ना था। थोड़ी ही देर में हरिया की पत्नी (लाली की सास) भागते हुए आई और बोली

"लाली के हमनी के अस्पताल ले जा तानी जा ओकरा पेट में दर्द होखता"


कजरी और हरिया की पत्नी ने एक दूसरे से अस्पताल ले जाने वाली सामग्रियों की जानकारी साझा की और कुछ ही देर में दो अलग-अलग ऑटो में बैठ कर सुगना और लाली अस्पताल में प्रसव पीड़ा झेलने के लिए चल पड़ी। बनारस महोत्सव में जो बीच उनके गर्भ में बोया गया था उसका फल आने का वक्त हो चुका था।…

क्या नियति ने सुगना के गर्भ में पुत्री का है सृजन किया था? या सुगना जो सूरज की मां और बहन दोनों थी वही उसकी मुक्ती दायिनी थी…




यह प्रश्न मैं एक बार फिर पाठकों के लिए छोड़े जा रहा हूं।

शेष अगले भाग में
सुगना जो सूरज की मां और बहन दोनों थी वही उसकी मुक्ती दायिनी थी…

Waaah
 
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