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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
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sunoanuj

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TheBigBlackBull

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वह सरयू सिंह के लंड के बारे में सोच कर अपनी बुर की प्यास तो वो मिटा लेती पर मन ही मन खुद को कोसती. वो आखिर उसकी पिता के उम्र के थे.
Iss adkili sughana ki chuth me uski Kalai se motaa apna babuji ke Lund kab gusega .... Iski prathiksha rahabaaaa
 
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Lovely Anand

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भाग -72

सुगना ने अंततः एक दिन और चुदने से मना कर दिया। रतनपुरी तरह हताश और निराश हो गया वह इस बात से बेहद क्षुब्ध था कि वह सुगना को चरम सुख ना दे पाया था यद्यपि उसमें रतन की कोई गलती न थी वह तो निष्ठुर नियति के हाथों का एक छोटा सा खिलौना था।

उसका दिलो-दिमाग उसे लगातार कोसता ना उसका काम धाम में मन लगता और नहीं बच्चों में। परिस्थितियों से क्षुब्ध हुआ मनुष्य किसी भी दिशा में जा सकता दिमाग के सोचने समझने की शक्ति निराशा में और कम हो जाती है। एक दिन आखिरकार वही हुआ जिसका डर था...


अब आगे.....

आइए अनिष्ट की आशंका को दरकिनार करते हुए सुखद पहलुओं को याद करते हैं जिस समय सुगना और रतन अपने प्रथम मिलन की रात में जी भर कर चोदा चोदी कर रहे थे उसी समय विधवा लाली एक बार फिर सुहागन हो रही थी। सोनू लाली को उसके ही घर में एकांत में स्टोर रूम में खींच लाया था। गांव का यह स्थान धान गेहूं मसूर आदि को रखने में काम आता है जो मिट्टी के बड़े-बड़े आदम कद बर्तनों में रखे जाते हैं। उस परिवेश में इसे कोठीला के नाम से जाना जाता है।

लाली बार-बार कहती

"कहां ले जा तारा... ?" परंतु उसके कदम स्वतःही सोनू के साथ साथ बढ़ रहे थे

सोनू कुछ बोल नहीं रहा था परंतु अपनी उंगलियां अपने होठों पर सटाये लाली को चुप रहने का इशारा कर रहा था। कुछ ही देर में लाली सोनू के आलिंगन में आ गयी। और दोनों विलक्षण प्रेमी एक बार फिर एकाकार होने का प्रयास करने लगे। लाली ने कहा..

"आज पूजा रहे तहरा जीजा और दीदी के तू हमरा के काहे धईले बाड़ा"

"तू हमार दीदी ना हउ का? चला तहरो पूजाई कर दी"

लाली सिहर उठी। एक पल के लिए उसके दिमाग मे सुगना द्वारा बताए गए पिछले योनि पूजन के दृश्य घूम गए। हालांकि योनि पूजन की व्यवस्था उसके घर में न थी परंतु उसे उस पूजा में होने वाली घटनाक्रमों का विधिवत एहसास था… उसने सोनू को छेड़ते हुए पूछा "तो शायद भी ले आईल वाड़ा का"

"उ का होइ"

सोनू ने कोई तैयारी न की थी? दरअसल वह शहद की उपयोगिता से अनभिज्ञ था परंतु उसमें इसका एहसास लाली को ना होने दिया और मुस्कुराते हुए बोला

"हमार लाली दीदी के रस शहदो से मीठ बा" लाली इससे पहले कुछ कहती सोनू नीचे झुकता गया और लाली की साड़ी ऊपर होती गयी।

पलक झपकते ही सोनू लाली की जांघों के बीच अपने होठों से उसके बुर के होठों को छूने का प्रयास कर रहा था। लाली अपने नितंबों को पीछे कर सोनु को रोकना चाह रही थी दरअसल वह बुर चुसवाने के लिए तैयार न थी उसने उसे धोया न था और अपने प्यारे भाई को असहज न करना चाहती थी।

सोनू ने लाली की साया (पेटीकोट) और साड़ी को छोड़ उसकी चूँची सहलानी चाही। उसके हांथ जब तक चूँची तक पहुंचते सोनू लाली के साया में आ चुका था। लाली हंसने लगी..

जैसे ही लाली सीधी हुयी उसकी बुर सोनू के होठों की जद में आ गयी। अजब सी मादक खुशबु सोनू ने नथुनों में भर गयी। सोनू ने अपना मुह खोला और गप्प से अपनी लाली दीदी की बूर् अपने मुह में भर लिया।।।

लाली की हंसी एक मादक कराह में बदल गयी..

"बाबू तनी धीरे से….आह…. " लाली उत्तेजना में अपने ही होंठो को काटते हुए फुसफुसाइ…

अब तक लाली और सोनु दोनों ही एक दूसरे की इच्छा और अनिच्छा को भलीभांति पहचानने लगे थे। " एक दूसरे की समझ संभोग से पहले होने वाले छेड़छाड़ को रोमांचक बना देते है। सोनू ने लाली की गहरी सुराही का रस होंठो से खींचकर पीने की कोशिश की…और लाली ने सोनु के बाल पकड़ लिए …

"बाबू बस…." लाली गरमा चुकी थी अब उसे सिर्फ उस दिब्य यंत्र की तलाश थी जो अपना मुह लाल किये सोनु की लुंगी में सर उठा रहा था।

कुछ ही देर में सोनू अपना लण्ड अपनी प्यारी और परिपक्व लाली दीदी की चूत में डाल कर गर्भाशय चुमने का प्रयास कर रहा था। कई दिनों बाद हुए इस मिलन में आवेश और उत्तेजना ज्यादा दी कुछ देर के मिलन में ही लाली और सोनू दोनों झड़ गए। सोनु मायूस होकर बोला..

"साला जल्दिये हो गइल.."

" हमरो……… बड़ा पावर बा लइका में" लाली ने सोनु को उत्साहित करते हुए चुम लिया..

"एक बार अउरी" सोनु ने लाली की चुचियों को सहलाते हुए अनुरोध भरे स्वर में कहा….

लाली भी तैयार थी…उसने सोनु के बीर्य से भीगे लण्ड को हांथो में लेकर कहा…

"ले आवा ए में ताकत भर दीं…."

कुछ देर हथेली में रगड़ने के बाद लाली घुटने के बल आ गयी और लाली के कोमल होंठो ने मोर्चा सम्हाल लिया….

सोनु सातवे आसमान पर था….रात भर दोनों एक दूसरे को तृप्त करते रहे उधर सुगना रतन से चुदवाती रही पर उसे तृप्ति का एह्सास न हुया….

नियति ने सुगना और रतन के मिलन में एक तरफा सुख रतन को दिया था और सुगना को अधूरा और तड़पता छोड़ दिया था परंतु सोनू और लाली दोनों ही तृप्त थे। आज अपने मायके में भरे पूरे घर में लाली सोनू से चुद रही थी। दोनों ने जी भरकर एक दूसरे की प्यास बुझाई और तृप्ति का अहसास लिए अलग हो गए। लाली अपने बच्चों के पास चली गई और सोनु लाली के पिता हरिया के बगल में जाकर बिछी चारपाई पर सो गया…

सुगना के योनि पूजन और लाली और सोनू के मिलन ने दोनों प्रेमी युगलों के बीच कई सारे दीवारें गिरा दीं। एक और जहां लाली अपने और सोनू के साथ चल रहे संबंधों को सुगना के सामने खुलकर स्वीकार करने लगी। वही सुगना ने भी सोनू और लाली के इस अवैध संबंध को मान्यता दे दी। दोनों सहेलियों के बीच ढेर सारे पर्दे हट रहे थे।

इसी दौरान सोनू के कॉलेज की पढ़ाई पूरी हो गयी और अब भविष्य निर्माण के लिए प्रयासरत था। मनोरमा मैडम के स डी एम पद के रुतबे का जादू देख चुका था और मन ही मन उस पद को प्राप्त करने की लालसा लिए वह पीसीएस की तैयारियों में जुट गया।

लाली और सुगना की सहमति से वह हॉस्टल छोड़कर सुगना के घर में आकर रहने लगा। रतन सोनू के आने से ज्यादा खुश न था। सोनी पहले से ही घर में रह रही थी। घर में ज्यादा लोगों की उपस्थिति रतन को नागवार गुजर रही थी उसे सुगना के पास जाने का मौका कम मिलता हांलांकि यह सुगना के लिए अच्छा ही था। वह स्वयं अब और चुदने को तैयार न थी उसे पता था वह रतन के लाख प्रयासों के बावजूद स्खलित न होगी।

निराशा उत्तेजना की दुश्मन है….सुगना पर यह भलीभांति लागू हो रहा था।

सोनू लाली के घर में रहना चाहता था परंतु सरेआम इस तरह रहना संभव न था। एक दिन छोटा सूरज अपने घर से निकलकर लाली के घर जा रहा था और बाहर सड़क पर जा रही मोटरसाइकिल से टकराते टकराते बचा…

वह गिर पड़ा….टायरों के चीखने की आवाज के साथ मोटरसाइकल रुकी। सुगना भागते हुए उसके करीब गयी और अपने सीने से सूरज को लगा लिया। ऐसा लग रहा था जैसे सुगना के कलेजे का टुकड़ा गिर पड़ा था। सूरज सच में सुगना की आंखों का तारा था… तभी सोनू ने कहा…

"दीदी सब बच्चा लोग एक साथ खेले ला दोनों घर के बीच हाल में एगो दरवाजा बना दियाव सब बच्चा लोग के आवे जावे में आसानी होइ "

सुगना के उत्तर देने से पहले लाली ने चहकते हुए कहा.. जो बाहर शोरशराबा सुन कर बाहर आ चुकी थी

"सोनू एकदम ठीक बोलता… का सुगना ते का कह तारे?"

सुगना को खुद भी यह बात पसंद आई और आखिरकार एक दिन लाली और सुगना के घरों के बीच की दीवार को तोड़कर एक दरवाजा लगा दिया जो सामान्यतयः खुला रहता। रतन को यह थोड़ा अटपटा लगा परंतु उसे तो इस बात का एहसास तक ना था की सोनू और लाली के बीच एक अद्भुत और नायाब रिश्ता बन चुका है और यह दरवाजा इस रिश्ते में कितना अहम था ये पाठक भलीभाँति समझ सकते हैं।

सोनू दिन भर पढ़ाई करता और बीच-बीच में लाली के बच्चे और अपने भतीजे भतीजीयों के साथ खेल कूद कर उनका मनोरंजन करता और जैसे ही रतन और सुगना अपने कमरे में जाते वह अपनी लाली दीदी की तनहाई दूर करने चला जाता।..

वैसे भी लाली का अब कोई ना था सोनू ही उसका सहारा था। और सोनू की बहन सुगना उसकी प्रिय सहेली थी. लाली और सुगना के बच्चे भी बेहद प्रसन्न थे। वो बेझिझक एक घर से दूसरे घर आ जाते और सब मिलजुल कर खेलते। इधर रतन और सुगना अपनी चुदाई करते उधर लाली और सोनू। सब अपने आप में मगन थे सिर्फ सुगना तड़प रही थी नियति से यह देखा ना गया और एक दिन… वही हुआ जिसका डर था….

सुबह तड़के सुगना ने रतन को जगाते हुए कहा

"ए जी उठिए होटल नइखे जाए के बा का?"

सुनना की जो हांथ रतन को छूने की कोशिश कर रहे थे वह लंबे होते गए पर रतन बिस्तर पर न था। सुगना संतुष्ट हो गई की रतन उठ चुका है पर कुछ देर कोई हलचल न होने पर वह बिस्तर से उठी और बाथरूम की तरफ देखा बाथरूम का दरवाजा खुला हुआ था रतन वहां न था।

सुगना हॉल में आए और बाहर दरवाजे की तरफ देखा जो खुला हुआ था। रतन ऐसे तो कभी बाहर न जाता था परंतु आज दरवाजा खुला देखकर सुगना ने मन ही मन सोचा शायद वह किसी कार्य से बाहर गया हो। परंतु ऐसा न था। जैसे ही सुगना एक बार फिर अपने कमरे में आयी बिस्तर पर पड़ा कागज सारी कहानी कह गया।

सुगना हतप्रभ सी अवाक खड़ी थी। उसे कुछ समझ में न आया। वह भागती हुई लाली के कमरे की तरफ दौड़ी दोनों घरों के बीच अब कोई दीवार ना थी सुगना ने लाली का दरवाजा खटखटा दिया लाली आनन-फानन में झटपट अपनी नाइटी डालती हुयी बाहर आ गई पर सुगना को अपनी नंगी जांघों की एक झलक दिखा गयी…

"का भईल सुगना ?" सुगना ने कोई उत्तर न दिया अपितु अपने हाथ में दिया हुआ खत लाली को पकड़ा दिया। लाली खत की तरफ देखने लगी और सुगना लाली के बिस्तर की तरफ जिस पर सोनू नंग धड़ंग पड़ा हुआ था। यह तो शुक्र था सोनु पेट के बल लेता था वरना उसके जिस औजार की तारीफ लाली खुलकर करती थी उसके दर्शन उसकी अपनी बहन सुगना कर लेती।

निश्चित ही आज रात सोनू और लाली ने एक बार फिर जमकर चुदाई की थी। बिस्तर की सलवटे और लाली का नींद में डूबा मादक शरीर इस बात की गवाह था। सुगना सोनू को नग्न अवस्था में देखकर सुगना तुरंत ही हटकर दूर हो गई और लाली उसके पीछे पीछे।

सुगना ने कहा

"सोनू के जगा के स्टेशन भेज… का जाने ओहिजे गइल होखसु "

कुछ ही देर में सोनू रतन को ढूढने के लिए बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन के चक्कर काटने लगा परंतु जिसे जाना था वह जा चुका था।

रतन ने अपने खत में घर छोड़ने की बात स्पष्ट कर दी थी पर वह कहां जा रहा था यह उसने यह जिक्र न किया था जो स्वाभाविक था परंतु उसे न ढूंढने की नसीहत अवश्य दे थी फिर भी सुगना अपने पत्नी धर्म का निर्वहन करते हुए उसे ढूंढने का प्रयास कर रही थी।

रतन अचानक ही सुगना और अपने भरे पूरे परिवार से दूर हो गया था। नियति मुस्कुरा रही थी….क्या पता वह आने वाले समय में अपनी भूमिका के लिए तैयार हो रहा हो?

रतन के जाने की खबर सलेमपुर तक पर पहुंची और एक बार फिर सरयू सिंह अपनी भाभी कजरी को लेकर बनारस में उपस्थित थे..सुगना सरयू सिंह को देख कर रो पड़ी। वह तुरंत ही उनके आलिंगन में आ गयी।

दुख में आलिंगन की प्रगाढ़ता बढ़ जाती है।

सुगना सरयू सिंह से पूरी तरह लिपटी हुई थी रतन के जाने का उसे दुख तो अवश्य था परंतु शायद उतना नहीं जितना एक आम पत्नी को अपने पति के जाने पर होता। सुगना और रतन दोनों में कुछ हद तक प्यार अवश्य हुआ था परंतु इसमें वह कसक ना थी जो सरयू सिंह और सुगना के बीच थी।

सरयू सिह एक पल के लिए यह भूल गए कि वह जिस सुगना को अपने आलिंगन में लिए हुए हैं वह अब उनकी प्रेयसी नहीं उनकी पुत्री थी। कोमल शरीर के स्पर्श से जैसे ही लंड में हरकत हुई उनका दिमाग सक्रिय हो गया और उन्होंने सुगना को स्वयं से अलग करते हुए उसके माथे को चूम कर बोला

"जायदे उ साला कोनो काम के ना रहे तोहरा कोनो दिक्कत ना होखि" इस वाक्य में न कोई छुपा संदेश था न शरारत।

सरयू सिंह को अपने संचित धन पर अब भी भरोसा था वह सुगना वह उनके बच्चों के आने वाले जीवन के लिए पर्याप्त था। परंतु क्या युवा सुगना सारा जीवन यूं ही अकेले गुजार पाएगी। अभी वह एक 25 वर्षीय तरुणी थी जिसमें 2 बच्चों को जन्म अवश्य दिया था परंतु आज भी वह युवा किशोरी की तरह कमनीय काया 5 और चेहरे पर बाल सुलभ मासूमियत लिए हुए थी । सच वह प्यार की प्रतिमूर्ति थी..

जाने निष्ठुऱ नियति ने सुगना के भाग्य में क्या लिखा था? सुगना ने अपने सभी रिश्ते बखूबी निभाए थे और उसे प्रत्युत्तर में अपने परिवार से भरपूर प्यार और सम्मान मिला था. सरयू सिंह आज भी उसके हर दिल अजीज थे। यदि सरयू सिह उसे स्वयं से दूर ना करते तो वह आज भी उनकी गोद में खेलते हुए उनके मोटे और मजबूत पर कोमल लण्ड को अपनी मखमली बूर् में भर उस पर उछलते कूदते स्वयं भी स्खलित होती और डालने बाबूजी के अंडकोषों में संचित स्वेत वीर्य से अपनी बुरकी कामाग्नि को बुझाती। आह….पर सरयू सिह बदल चुके थे यह जानने के बाद कि सुगना उनकी ही पुत्री है उनकी काम वासना में ठहराव आ गया था…

रतन की मां कजरी पूरी तरह टूट चुकी थी उसके बुढ़ापे की लाठी उसका बेटा रतन अपने ही बाप की तरह घर छोड़कर भाग गया था। सरयू सिंह कजरी का भरपूर साथ देते परंतु रतन के जाने की कसक कजरी को कमजोर और दुखी कर गई।

कुछ दिनों तक बनारस में रहकर सरयू सिंह और कजरी एक बार फिर से सलेमपुर के लिए निकल गए। सुगना मन ही मन सोच थी और ऊपर वाले से प्रार्थना करती कि काश यह समय तीन चार वर्ष पीछे हो जाता और वह अपने बाबूजी को उसी रूप में देखती और महसूस करती जैसा वह सूरज के जन्म से पहले उनके साथ रहती थी।

गुजरा हुआ समय वापस नहीं आता परंतु उसकी सुखद समय की यादें आदमी को तरोताजा कर देती हैं। यही हाल सुगना का था वह यादें उसे गुदगुदाती और उसके होठों पर मुस्कान आ जाती। होठों पर ही क्या नीचे जांघों के बीच सिकुड़ी वह सुंदर और प्यारी बुर मुस्कुराने लगती और होठों पर पानी लिए अपने अद्भुत प्रेमी के होठों और अपने मूसल का इंतजार करती।

दिन बीतते गए। सुगना ने अपने बच्चों पर ऐसा जादू किया हुआ था कि उन्हें रतन के जाने का कोई विशेष एहसास ना हुआ। जब जब बच्चे उन्हें पूछते सुगना बड़े प्रेम से उन्हें फुसला लेती और कहती

" मुंबई शहर गईल बाड़े पैसा कमाये" बच्चे शांत और संतुष्ट हो जाते।

देखते ही देखते सुगना और लाली की स्थिति एक जैसी हो गयी। एक का पति स्वर्ग सिधार चुका था और दूसरा इसी धरती पर न जाने कहां गुम हो गया था। सुगना अभी भी सिंदूर लगाती पर उसका सुहाग जाने कहाँ विलुप्त था। वही लाली विधवा थी पर सोनू साए की तरह उस से चिपका रहता और लाली की रातें गुलजार रखता। सोनू को भी अपनी बहन सुगना से लाली को लेकर अब भी शर्म कायम था। यह बात उसे बेहद उत्तेजित करती की कैसे वह अपनी बहन की सहेली को उसकी जानकारी में चोदता था। .

सोनू की लगन और तैयारी में सुगना और लाली दोनों ही अपना सहयोग देती एक तरफ जहां सुगना सोनू की पसंद के खान-पान का ध्यान रखती वहीं दूसरी तरफ लाली सोनू की शारीरिक जरूरतों को पूरा कर उसका ध्यान बाहर न भटकने देती। परिवार में पूरी तरह खुशियां थी घर में सिर्फ सुगना ही ऐसी थी जिसकी खुशियों पर ग्रहण लगा हुआ सब कुछ होते हुए भी सुगना अधूरी थी …

रतन को गए 5 महीने से ऊपर का वक्त बीत चुका था संयोग से आज माघ महीने की पूर्णमासी थी.

चंद्रमा पूरा था पर सुगना की खुशियां अधूरी थी। इसी पूर्णिमा के दिन उसने रतन की लाठी से अपनी योनि पूजा का विधि विधान पूर्ण किया था। कुछ नियम ऐसे होते हैं जो समाज द्वारा बना तो दिए जाते हैं पर उन्हें पूरा कैसे किया जाएगा इस बारे में सब अपने अनुसार रास्ता निकाल लेते हैं सूरज के जन्म के बाद सुगना ने रतन की लाठी के साथ कुल देवता की पूजा तो संपन्न कर ली परंतु लाठी के साथ संभोग कर कैसे स्खलित होगी यह यक्ष प्रश्न कठिन था।

जिस रतन को वह गैर समझती थी उसकी लाठी को उसके लंड का प्रतीक मानकर स्खलितहोना यह आसंभव ही नहीं नामुमकिन था. सुगना बिस्तर पर लेटी हुयी अपनी सुखद यादों में खो गयी…

आखिरकार उस दिन सुगना का साथ कजरी ने दिया था। सुगना जब तक पूजा कर वापस अपने कमरे में आती कजरी के निर्देश पर सरयू सिंह सुगना के कमरे में आकर पहले ही छुप गए। उन्होंने ऐसा कजरी के निर्देश पर कर तो दिया था परंतु भरे पूरे मर्दाना शरीर के मालिक सरयू सिंह को छोटी सी जगह पर ज्यादा देर तक छुपना आसहज महसूस हो रहा था। सुगना के कमरे में उसे छोड़ने आयीं अन्य महिलाएं भी अठखेलियां कर रही थी।

एक महिला ने कहा..

"आतना फूल जैसन बहुरिया बीया रतनवा पागल ह आज घर रहे के चाही बतावा बेचारी के आज के दिन लाठी मिली.."

कजरी ने फिर भी अपने पुत्र का ही साथ दिया था और बात को समझते हुए बोली…

"नोकरी में छुट्टी मिलल अतना आसान ना होला..

"जायद….. अब सुगना के छोड़ द लोग दिनभर काम करत करत थाक गइल बिया आराम करे द लोग"

सरयू सिंह की जान में जान आई और जैसे ही महिलाएं कमरे से बाहर गई सुगना ने साँकल लगा दी। इससे पहले कि वह मुड़ती नंग धड़ंग सरयू सिंह उसके सामने अपना तना हुआ लण्ड लिए उपस्थित थे…..

सुगना आश्चर्य से उन्हें देख रही थी…

शेष अगले भाग में…
 

Curiousbull

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भाग -71

" मैं उन्हें नहीं भूली उन्होंने ही मुझे खुद से दूर किया और अंतरंग होने के लिए मना किया"

" एक बात भली-भांति जान ले तुझे काम सुख तेरे किसी अपने से ही मिलेगा"

"क्या...क्या…"

सुगना प्रश्न पूछती रही परंतु कोई उत्तर ना मिला सुगना चौक कर बिस्तर से उठ गई..

किसी अपने से? यह वाक्यांश उसके दिलो-दिमाग पर छप से गए..

छी… ये कैसे हो सकता है। अचानक सोनी भागती हुई कमरे में आए और बोली दीदी

" तू सपना में बड़बड़ात रहलू हासब ठीक बानू?

"हा चल चाह पियबे"

अपना बिस्तर से उठी और सोनी के साथ रसोई घर में चली गई


नियति ने सुगना के भाग्य में क्या लिखा था। क्या जो सुगना अपने पुत्र सूरज के अभिशप्त होने और उसे उस अभिशाप से मुक्त करने के लिए अथक प्रयासों और मन्नतों के वावजूद पुत्री को जन्म न दे पाई थी वह क्या स्वयं अभिशप्त थी?

अब आगे

सलेमपुर मैं हुई पूजा के पश्चात सुगना और रतन करीब आ गए थे। उनका शारीरिक मिलन अक्सर होने लगा यद्यपि सुगना स्खलित ना होती परंतु वह स्खलित होने का भरपूर प्रयास करती उसे अब भी उम्मीद थी कि वह अपने पति रतन के साथ सुखद वैवाहिक जीवन व्यतीत कर पाएगी।


बनारस में सुगना के घर में अक्सर रंगरलिया मनतीं। उसकी बहन सोनी उन कामुक चुदाई की गवाह बनती। रतन धीरे धीरे सुगना से और खुलता गया और बिना सोनी की उपस्थिति की परवाह किए सुगना को दिन में भी चोद देता सोनी का ध्यान बरबस ही रतन और सुगना की कामक्रीड़ा पर चला जाता और वह तरुणी मचल जाती।

नियति ने उस में कामुकता पहले से भरी थी जो अब धीरे-धीरे परवान चढ़ रही थी। सुगना और रतन के मिलन और उनके बीच चल रही खुल्लम-खुल्ला चुदाई ने उसकी वासना को भडाका दिया और एक दिन ….

सोनी अपने नर्सिंग कॉलेज से बाहर निकल रही थी साथ में चल रही उसकी सहेली ने कहा

" सोनी देख गेट पर कौन खड़ा है हम लोग की तरफ ही देख रहा है "

सोनी ने अपनी निगाहें उठाकर देखा और अपनी सहेली से बोली..

"अरे वह मेरा दूर का रिश्तेदार है मुझे लेने आया है मैं चलती हूं"


सोनी की सहेली को यकीन ना हुआ आज से पहले उसने विकास को नहीं देखा था जब तक सहेली सोनी और विकास के संबंधों का आकलन कर पाती सोनी विकास की राजदूत पर बैठ चुकी थी.

सोनी समझदार थी वह राजदूत पर अपने दोनों पैर एक तरफ करके बैठी थी। सोनी की सहेली के मन में आ रहे प्रश्न शांत हो गए और मोटरसाइकिल गुररर गुर्रर्रर करती धुआं छोड़ते हुए आगे बढ़े गई.

मोटरसाइकिल पर बैठने की वजह से उसे हल्की ठंड लग रही थी और इस ठंड ने सोनी के मूत्राशय में मूत्र विसर्जन के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया। वैसे भी सोनी आज शरारत के मूड में थी। उसने विकास के कान में कहा

"मुझे सुसु करनी है "

"अरे यहां कहां करोगी? सड़क पर वाहन आ जा रहे हैं"


"अरे किसी पगडंडी पर ले लो थोड़ी दूर जाकर खेत में कर लेंगे" सोनी वैसे भी खेतों में मूत्र विसर्जन करने की आदी थी उसे खुली हवा में मूत्र विसर्जन करना बेहद पसंद था।

"ओह तो तुम्हारी मुनिया को हवा खाने का मन है"

सोनी ने उसकी पीठ पर एक मुक्का मारा और मुस्कुराते हुए बोली

" जब तुम्हें सुसु आती है तब तो कहीं खड़े होकर कर लेते हो और मुझे ताने मार रहे हो"

विकास ने उत्तर न दिया अपितु अपनी मोटरसाइकिल एक पगडंडी पर मोड़ ली। कुछ ही दूर पर सरसों के पीले खेत लहलहा रहे थे। हरी चादर पर टंके पीले फूल बेहद आकर्षक प्रतीत हो रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे धरती ने कोई बेहद सुंदर दुपट्टा ओढ़ रखा हो।


सोनी सरसो के खेत की तरफ बढ़ गई।। विकास सोनी के मादक शरीर को लहराते और सरसों के खेत की तरफ जाते देख रहा था। सोनी ने खेत के करीब जाकर पीछे पलट कर देखा विकास एक टक उसे देखे जा रहा था। सोनी ने अपने हाथों से इशारा कर उसे पीछे पलटने को कहा और विकास में अपनी दोनों आंखों पर अपनी हथेलियां रखकर खुद को पीछे घुमा लिया।

सोनी मुस्कुराते हुए अपने सलवार का नाडा खोल रही थी। मन ही मन वह चाह रही थी कि विकास पलट कर उसे देखें और वह एक बार फिर पलटी उसकी निगाहें विकास से टकरा गई जो एक बार फिर सोने की तरफ देख रहा था सोनी मुस्कुराते हुए मुड़ गयी और मन ही मन साहस जुटाकर अपने दोनों मदमस्त नितंबों को खुली हवा में लहराते हुए नीचे बैठ गई .

जाने सोनी की मनोदशा में क्या था? वह अपनी पीठ विकास की तरफ की हुई थी। जबकि उसे विकास की तरफ अपना चेहरा रखना चाहिए था ताकि वह विकास पर नजर रख सकें। परंतु शायद लड़कियों को योनि को छुपाना ज्यादा तर्कसंगत सकता है बनिस्बत अपने नितंबों के….

विकास भी शरारती था वह पलट चुका था और सोनी के नंगे नितंबों को नीचे आते देख रहा था। एक पल के लिए उसकी आंखों ने सोनी के गोरे नितंबों के बीच काला झुरमुट देख लिया सोनी की कुंवारी बुर की पतली लकीर उस कालिमां में खो गई थी।

जब तक की सोनी अपने नितंब नीचे कर पाती मूत्र की धार निकल पड़ी। मंद मंद बहती बयार ने उस मधुर संगीतमय ध्वनि ..शी….सू….सुर्र्रर्रर को विकास के कानों तक पहुंचाया जो पूरे ध्यान से सोनी को देख रहा था।

सोनी ने अपनी कमीज के पिछले भाग को जमीन से छूने से बचाने के लिए उसे अपने पेट की तरफ मोड़ लिया था और अनजाने में ही अपने नितंबों को विकास की नजरों के सामने परोस दिया था।

विकास ललच रहा था वह उन नितंबों को अपने हथेलियों से छूने के लिए लालायित था।

सोनी मूत्र विसर्जन कर चुकी थी। नीचे बड़ी हुई घास उसकी बुर के होठों से छू रही थी और उसके शरीर में एक अजब सी सनसनी पैदा कर रही थी। सोनी कभी अपने नितंबों को उठाती और अपनी बुर को उन घासों से ऊंचा कर लेती परंतु कुछ सी देर में वह वापस अपनी बुर को घांसों से छुआते हुए उस अद्भुत उत्तेजना का आनंद लेती। बड़ी हुई घांस कभी उसकी बुर को कभी उसकी कसी हुई गांड को छूती।

यह संवेदना एक अलग किस्म की थी सोनी उसके आनंद में खो गई।विकास भी अपनी पलकों को बिना झुकाए यह मधुर दृश्य देख रहा था हल्की हल्की बह रही हवा सोनी के बुर में ठंडक का एहसास करा रही थी जो मूत्र विसर्जन में भीग चुके थे।


कभी-कभी कुछ घटनाएं अप्रत्याशित होती हैं। आकाश में छाए तितर बितर हल्के बादल अचानक कब सघन हो गए विकास और सोनी को यह एहसास तब हुआ जब आसमान पर चमकदार धारियां खींच गई जिन की रोशनी धरती पर भी दिखाई पड़ी। दिन के उजाले में भी यह चमक स्पष्ट थी। कुछ ही देर बाद बादलों के कड़कने की आवाज ने सोनी को डरा दिया वह झटपट उठ खड़ी हुई और विकास की तरफ पलटी। सोनी यह भूल गई कि उसकी सलवार अभी भी नीचे थी। जब तक वह संभल पाती जांघों के बीच का वह मनमोहक त्रिकोण विकास की निगाहों में आ गया।

सोनी ने विकास की नजरों को ध्यान से देखा जो उसकी जांघों के बीच थी।

सोनी ने झटपट अपनी सलवार ऊपर की और भागते हुए विकास के पास आ गयी।

"जल्दी भागो यहां से लगता है बारिश होगी"

"हां हां बैठो"

जब तक सोनी मोटरसाइकिल के पीछे बैठती बारिश प्रारंभ हो गयी। छोटी-छोटी बूंदे कब बड़ी हो गई पता भी न चला इतनी जबरदस्त बारिश की कुछ ही मिनटों में दोनों युवा प्रेमी पूरी तरह भीग कर लथपथ हो गए।

विकास और सोनी बारिश से बचने के लिए कोई आसरा ढूंढने लगे। कुछ ही दूर पर उन्हें एक ट्यूबवेल का कमरा दिखाई पड़ा जिसके आगे छप्पर लगा हुआ था विकास ने अपनी मोटरसाइकिल रोड के किनारे खड़ी की और दोनों भागते हुए उस छप्पर के नीचे आ गए।

"बाप रे कितनी जबरदस्त बारिश है तुम तो पूरी भीग गई" विकास ने सोनी के युवा बदन पर नजरें फिराते हुए कहा ।


बारिश की वजह से कपड़ा भी सोनी के बदन से चिपक गया था और सोनी के शरीर के उभार और कटाव स्पष्ट दिखाई पढ़ने लगे थे। सोनी ने जब यह महसूस किया उसने अपने कपड़ों को अपने शरीर से अलग करने की कोशिश की। परंतु गीले होने की वजह से कपड़े पुनः सोनी के शरीर से चिपक गए। सोनी ने अपने हाथों से अपनी समीज का निचला भाग निचोडने की कोशिश की और बरबस ही अपनी सलवार के पीछे का भाग विकास को दिखा दिया विकास सोनी के पास गया और बोला..

"यहां दूर-दूर तक कोई नहीं है और इस मूसलाधार बारिश में किसी के आने की संभावना भी नहीं है तुम अपने कपड़े खोल कर सुखा लो" यह देखो रस्सी ही बंधी है


नियति ने सोनी का ध्यान छप्पर के नीचे बंधी हुई रस्सी पर केंद्रित किया। ऐसे तो सोनी अपने कपड़े उतारने के लिए कभी तैयार ना होती परंतु छप्पर के नीचे दबी रस्सी को देखकर उसे यह भाग्य का खेल नजर आया और वह अपने कपड़े सुखाने की सोचने लगी। परंतु क्या वह विकास के सामने नग्न होगी"

यह संभव न था उसमें विकास से कहा कि

"मैं अपने कपड़े कैसे उतारूं? यहां पर तो तुम भी हो"

" मैं अपनी आंखें बंद कर लेता हूं"

" तो क्या 1 घंटे तक अपनी आंखें बंद किए रहोगे? " सोनी ने हंसते हुए पूछा.


अचानक विकास में अपने गले में बाधा गमछा निकाला और उसे रस्सी पर टांगता हुआ बोलो

"लो तुम उस तरफ खड़ी हो जाना और मैं इस तरह अब तो ठीक है"


सफेद गमछा जो पानी में भीग चुका था परंतु फिर भी आग और फूंस के बीच एक आवरण देने के प्रयोग में लाया जा रहा था। नियति मुस्कुरा रही थी और सोनी अपने कपड़े उतार रही थी।

कुछ ही देर में काली पेंटी में सोनी की कुंदन काया चमकने लगी। परंतु उसके दर्शन झोपड़ी की छत से चिपकी हुई छिपकली ने किए कि जो स्वयं इस अप्रत्याशित मौसम के बदलाव से दुखी थी। यह कहना मुश्किल है की कौन ज्यादा डरा हुआ कौन था सोनी या वह छिपकली परंतु किसी अप्रत्याशित घटना का डर दोनों के चेहरे ही देखा जा सकता था।

स्वयं को विकास के गमछे के पीछे छुपाए हुए सोनी ने अपने कपड़े रस्सी पर टांग दिए । उसने कपड़ों को भली भांति में डाल दिया ताकि हवा के झोंके से वह जल्दी ही सूख जाएं।


परंतु हवा का झोंका जहां कपड़ों को सुखा रहा था वही सोनी के शरीर में सिहरन पैदा कर रहा था। उसने अपने दोनों हाथ से अपनी चुचियों से सटा लिए थे और स्वयं को कुछ गर्मी देने का प्रयास कर रही थी।

पानी में भीगी कटीली सोनी की सुंदर और कमनीय काया को विकास की नजरों से एक झीने पर्दे की दूरी पर थी । सोनी के शरीर का कटाव और उभार के एहसास ही उसके लंड को खड़ा करने के लिए काफी था।


पर्दे के पीछे उसकी प्रेमिका लगभग नग्न अवस्था में अपनी चूचियां समेटे खड़ी हुई थी। एक पल के लिए विकास के मन में आया कि वह यह गमछा हटा दे परंतु वह सोनी को दिया वादा न तोड़ना चाहता था। परंतु आज नियति उन दोनों को मिला देना चाहती थी। हवा का एक और झोंका आया और गमछा लहरा गया। दो प्रेमी एक अर्धनग्न और एक लगभग पूर्ण लगन एक दूसरे के सामने खड़े थे। रही सही कसर बिजली के कड़कने ने पूरी कर दी और सोनी विकास के आलिंगन में आ गयी।

जब तक बिजली कड़कती रही विकास की हथेलियां सोनी की पीठ पर अपना कसाव बढ़ाती रहीं। और जब तक बादलों की गड़गड़ाहट कम होती सोनी के अंतर्मन में उत्तेजना और डर दोनों में द्वंद हुआ और विजय उत्तेजना की हुयी।

विकास ने होठों ने सोनी के कंपकपाते होठों को छू लिया। होठों पर चुंबन की प्रगाढ़ता बढ़ती गई सोनी की मुह में गुलाबी गहराइयों के बीच विकास की जीभ जगह बनाने लगी।


चुंबन भी एक अजीब कला है जब प्रेमी और प्रेमिका पूरे मन से चुंबन करते हैं तो चुंबन की गहराई बढ़ती जाती यही हाल सोनी और विकास का था उन दोनों में प्यार की कमी न थी। इस प्यार में भी वासना ने अपनी जगह तलाश ली थी । यह स्वाभाविक भी था। विकास के हाथ लगातार सोनी की निचली गोलाइयों को सहला रहे थे और उंगलियां सोनी की बुर की तलाश में लगातार अंदर की तरफ बढ़ रही थीं।

विकास को अपने गीले पैंट के अंदर तने हुए लंड का एहसास हुआ और उसमें अपने हाथ से उसे आजाद कर दियाम सोनी के हाथों को अपने लंड पर ला कर उसने अपनी उंगलियां सोनी की पैंटी में फंसा धीरे धीरे सोनी की पैन्टी को नीचे करता गया।

चुम्बन में खोई हुई सोनी अपने नग्न होने का एहसास तो कर रही थी पर न तो वह प्रतिकार कर पा रही थी और न हीं विकास के हाथों को रोकने की कोशिश।

विकास धीरे-धीरे सोनी को ऊपर की तरफ खींच रहा था और अपनी कमर को नीचे की तरफ। उसका तना हुआ लंड सोनी के हाथों में था परंतु उसका सुपाड़ा सोनी की नाभि के नीचे उसके पेडु पर दस्तक दे रहा था। अचानक उसने सोनी को ऊपर खींचा और लण्ड ने सोनी के भग्नासे को छू लिया।

पनियायी बुर ने लण्ड के सुपारे को खींचने की कोशिश की पर सोनी के कौमार्य और बिना चुदी बुर के कसाव ने अपना प्रतिरोध कायम रखा। बुर को अपने लंड से छूते ही एक पल के लिए विकास को लगा जैसे उसने जन्नत छू ली। यदि थोड़ा समय वह उसी अवस्था में रहता तो झटका देकर उसका लंड पहली बार बुर में प्रवेश कर गया होता परंतु ऐसा ना हुआ।।


कुवारी सोनी ने अपनी उत्तेजना पर काबू पाया और विकास को दूर ढकेलते हुए बोली।

"यह सब शादी के बाद" एक पल के लिए सोनी अपने सामान्य रूप में आ गई उसकी उत्तेजना पानी के बुलबुले की तरह फूट कर विलुप्त हो गयी।

उसने अपने हाथों से अपनी चड्डी ऊपर की और स्वयं को विकास से दूर कर वापस गमछे को दोनों के बीच कर लिया। विकास के उतरे हुए चेहरे को देख उसने विकास को आश्वस्त करते हुए कहा

"बस कुछ दिन की बात है हम लोग शादी कर लेंगे और फिर यह खजाना तुम्हारा….. जी भर कर कर लेना"

विकास का मूड खराब हो चुका परंतु वह सामान्य होने की कोशिश कर रहा था उसने सोनी को छेड़ते हुए कहा

"क्या कर लेना?"

"वही जो हमेशा चाहते हो"

" क्या साफ-साफ बताओ ना?"

सोनी अपने होंठ उसके कान के पास ले गई। उस ने मुस्कुराते हुए कहा

"चो……...द लेना" वह कह कर शर्मा के पीछे मुड़ गयी। विकास ने एक पल की भी देर ना की। उसने अपने हाथ आगे किये और अपने हांथ आगे कर सोनी की चुचियों को पकड़ लिया और अपने तने हुए लंड को उसके नितंबों से सटा दिया और मुस्कुराते हुए बोला


"मेरी जान अभी कर लूं शादी ?"

"हट पागल "


कुछ देर दोनों प्रेमी प्रकृति की बारिश और कामुक्त बदनों से स्पर्श सुख की उत्तेजना का आनंद लेते रहे परंतु न उनकी हसरत पूरी हुई और न पाठकों की।

नियति के लिए अभी भी सुगना ही महत्वपूर्ण थी जो रतन की कामुकता का शिकार होकर डॉगी स्टाइल में गचागच चुद रही थी। तीनों बच्चे सूरज मधु और मालती बाहर हाल में खेल रहे थे वह बार-बार आकर दरवाजे पर दस्तक देते और सुगना धीमे से पुकारती

"रुक जा बाबू आवतानी" उसकी आवाज में एक अलग किस्म की लहर थी जो निश्चित ही रतन की बेतरतीब चुदाई कारण उत्पन्न हो रही थी। रतन पूरी ताकत से चोदते हुए स्खलित हो रहा था और सुगना हमेशा की भांति एक बार फिर तड़प रही थी और लाख कोशिशों के बावजूद एक बार फिर फेल हो गयी थी। उसकी फूल जैसी बुर बार बार मर्दन की शिकार होती पर उससे अमृत रूपी स्खलन का रस न मिल पाता।

दिन बीतते गए और सुगना काम सुख से दूर होती गयी। जिस कोमलांगी ने सरयू सिंह के साथ कामकला के सारे सुख भोगे थे वह धीरे-धीरे अपनी कामुकता में ठहराव आते हुए महसूस करने लगी।

अब उसका न तो चुदवाने का मन होता और नहीं कामुक अठखेलियाँ करने का। विरक्ति बढ़ रही थी और वह रतन के करीब रहते हुए भी दूर दूर रहने लगी। रतन ने यह बात महसूस की परंतु वह क्या करता है वह नियति के खिलाफ न जा सकता था उसके लाख प्रयास भी सुनना को चरम सुख से दूर रखते।


सुगना ने अंततः एक दिन और चुदने से मना कर दिया। रतनपुरी तरह हताश और निराश हो गया वह इस बात से बेहद क्षुब्ध था कि वह सुगना को चरम सुख ना दे पाया था यद्यपि उसमें रतन की कोई गलती न थी वह तो निष्ठुर नियति के हाथों का एक छोटा सा खिलौना था।

उसका दिलो-दिमाग उसे लगातार कोसता ना उसका काम धाम में मन लगता और नहीं बच्चों में। परिस्थितियों से क्षुब्ध हुआ मनुष्य किसी भी दिशा में जा सकता दिमाग के सोचने समझने की शक्ति निराशा में और कम हो जाती है। एक दिन आखिरकार वही हुआ जिसका डर था….

शेष अग

Bahut accha likha hai. Soni aur vikas ka to film scene chal raha tha jo niyati rupi lekhak ne bich me rok diya. Bhale hi pathako ka khyal Kiya par dil jarur toda (ha ha).

Sugna ke bhavishya ko lekar niyati nishthur hoti ja rahi hai.
 

Lovely Anand

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वाह बहुत खूब। कहानी नये मोड पे जा रही है। अगले अपडेट का इंतजार है

Iss adkili sughana ki chuth me uski Kalai se motaa apna babuji ke Lund kab gusega .... Iski prathiksha rahabaaaa
आप दोनों ही पाठकों का इस कहानी के पटल पर स्वागत है पाठकों की प्रतिक्रियाएं चाहे वह अच्छी हो या बुरी इस कहानी में उत्प्रेरक का कार्य करते हैं जितनी संजीदगी से और कहानी को पढ़कर आप सब अपनी प्रतिक्रियाएं देते हैं लेखक आपके मन की भावनाओं को पढ़कर उसे कहानी में पिरोता है यूं ही जुड़े रहे और आनंद लेते रहे तथा अपनी प्रतिक्रिया और सुझाव देकर जुड़ाव का संकेत देते रहे अन्य पाठकों की प्रतिक्रियाओं का भी हमेशा से इंतजार रहेगा उतना ही जितना आप कहानी की प्रतीक्षा करते है धन्यवाद
 

Lovely Anand

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Bahut accha likha hai. Soni aur vikas ka to film scene chal raha tha jo niyati rupi lekhak ne bich me rok diya. Bhale hi pathako ka khyal Kiya par dil jarur toda (ha ha).

Sugna ke bhavishya ko lekar niyati nishthur hoti ja rahi hai.

Lag raha tha ratan Soni par koshish karega par wah to bhagoda nikla.

Agle update jaldi dijiyega lovely

सुगना आने वाले दिनों के लिए तैयार हो रही है उसके जीवन में अभी कई कठिनाइयां आनी बाकी है सूरज का भविष्य और उसे श्राप से मुक्ति दिला कर सामान्य पुरुष बनाना है हो एक बेहद दुरूह कार्य है। देखिए क्या होता है।
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