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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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144
आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

pprsprs0

Well-Known Member
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भाग 73

"आतना फूल जैसन बहुरिया बीया रतनवा पागल ह आज घर रहे के चाही बतावा बेचारी के आज के दिन लाठी मिली.."

कजरी ने फिर भी अपने पुत्र का ही साथ दिया था और बात को समझते हुए बोली…

"नोकरी में छुट्टी मिलल अतना आसान ना होला..

"जायद….. अब सुगना के छोड़ द लोग दिनभर काम करत करत थाक गइल बिया आराम करे द लोग"

सरयू सिंह की जान में जान आई और जैसे ही महिलाएं कमरे से बाहर गई सुगना ने साँकल लगा दी। इससे पहले कि वह मुड़ती नंग धड़ंग सरयू सिंह उसके सामने अपना तना हुआ लण्ड लिए उपस्थित थे…..

सुगना आश्चर्य से उन्हें देख रही थी…



अब आगे…

सुखद और मीठी यादें एक मीठे नशे की तरह होती है बिस्तर पर लेटे सुगना अपनी मीठी नींद में खो गई..


नियति आज सुगना पर प्रसन्न थी। आज का दिन सुगना और उसके परिवार के लिए विशेष था…

दरवाजे पर खट खट की आवाज से सुगना अपनी अर्ध निद्रा और सुखद स्वप्न से बाहर आ गई।

सुगना के घर के आगे गहमागहमी थी कई सारे लोग हाथों में कैमरा लिए बाहर इंतजार कर रहे थे..। खटखट की आवाज लाली के कानों तक भी पहुंची। सुगना और लाली इस अप्रत्याशित भीड़ भाड़ और उनके आने के कारण से अनभिज्ञ थीं उनके मन में डर पैदा हो रहा था फिर भी सुगना हिम्मत करके गई और खिड़की से बोली

"आप लोगों को क्या चाहिए क्यों यहां भीड़भाड़ लगाए हुए हैं?"

"आप संग्राम जी की पत्नी हैं"

"पागल हैं क्या आप? ..हम उसकी बहन हैं…"

"उसकी बहन" शब्द पर जोर देकर सुगना ने अपने बड़े होने और अधिकार दोनों का प्रदर्शन किया।

पत्रकार की कोई गलती न थी एक तरफ सोनू पूर्ण युवा मर्द बन चुका था वह अपनी उम्र से कुछ ज्यादा परिपक्व लगता वहीं दूसरी तरफ 25 वर्षीय सुगना अभी भी एक तरुणी की भांति दिखाई पड़ रही थी कोई भी सुगना को देखकर यह नहीं कह सकता था कि वह उम्र में सोनू से बड़ी होगी। खैर पत्रकार ने अपनी गलती स्वीकार कर ली और बोला


"अरे बहन जी मुझे माफ करिए पर मिठाई खिलाइए संग्राम जी (सोनू) ने पूरे प्रदेश का नाम रोशन किया है. वो एसडीएम बन गए हैं."

सुगना खुशी से उछलने लगी उसने पास खड़ी लाली से कहा

"लाली …..लगा ता सोनू पास हो गईल"

सुगना सिर्फ पास ओर फेल की भाषा जानती थी उसे यह नहीं पता था कि सोनू ने पूरे पीसीएस परीक्षा में टॉप किया था।

सुगना और लाली की खुशी देखने लायक थी. दोनों सहेलियां एक बार फिर गले लग गईं और सुगना और लाली की चूचीयों ने एक दूसरे को चिपटा करने की कोशिश की। हार लाली की ही हुई। सुगना की सूचियां अब भी लाली की तुलना में ज्यादा कसी हुई थीं।

नियति ने सोनू की दोनों बहनों को आज बेहद प्रसन्न कर दिया था. खुशी के कारण दोनों के सांसें अवरुद्ध हो रही थीं।

सोनू के प्रति दोनों के प्यार में तुलना कर पाना कठिन था। जहां सुगना का सोनू के प्रति प्यार एक बड़ी बहन और छोटे भाई के बीच का प्यार था वही लाली और सोनू बचपन के इस रिश्ते को जाने कब बदल कर एक हो चुके थे। परंतु आज सुगना भी उतनी ही खुश थी जितनी लाली दोनों की भावनाएं छलक रही थीं।


अचानक ही मिली इस खुशी से दोनों भाव विभोर हो उठी आंखों में आंसू छलक आए। जिस सोनू उर्फ संग्राम सिंह को दोनों बहनों ने पाल पोस कर बड़ा किया था आज वह पीसीएस की प्रतिष्ठित परीक्षा में न सिर्फ पास हुआ था बल्कि अव्वल आया था। बाहर खड़ी पत्रकारों की भीड़ संग्राम सिंह का इंतजार कर रही थी कुछ ही देर में सोनू अपनी राजदूत से घर के सामने आ गया। पत्रकारों द्वारा लाए गए फूल माला से गिरा हुआ सोनू घर के अंदर प्रवेश कर रहा था।

सुगना ने आज से पहले अपने जीवन में इतनी खुशी न देखी थी। इतना सम्मान उसकी कल्पना से परे था। सोनू ने उस के चरण छुए और सुगना उसके गले लग गयी।

आज खुशी के इस मौके पर सुगना को याद भी ना रहा की सोनू एक पूर्ण और युवा मर्द है जो उसकी सहेली लाली के साथ एक अनोखे रिश्ते में पति-पत्नी सा जीवन जी रहा है।


आलिंगन में आत्मीयता बढ़ते ही सोनू ने सुगना के शरीर की कोमलता को महसूस किया और उसके अवचेतन मन ने एक बार फिर उसके लिंग में तनाव भरने की कोशिश की। सुगना सोनू की बहन थी और सोनू अपने अंतर्मन में छुपी वासना के आधीन न था। परंतु हर बार यह महसूस करता सुगना के आलिंगन में आते ही उसके मन में कुछ पलों के लिए ही सही पर वासना अपना फन उठाने लगती।

उसने सुगना को स्वयं से अलग किया और पत्रकार भाई बहन की फोटो खींचने लगे। अपनी बारी आते ही लाली भी सोनू के आलिंगन में आ गई। पत्रकार ने लाली के बारे में जानना चाहा? सोनू थोड़ा असहज हुआ तो सुगना ने स्थिति को संभाल लिया और बोला..

"ई लाली है हमारी सहेली और सोनू की मुंहबोली बहन"

हम लोग सब एक ही परिवार जैसे हैं…

सुगना ने स्थिति संभाल ली थी सोनू की दोनों बहनों ने सोनू के दोनों तरफ खड़े होकर ढेर सारी फोटो खिंचवाई और पत्रकारों को मिठाई खिलाकर विदा किया।

सोनू उर्फ संग्राम सिंह ने आज अपने परिवार के लिए बेहद ही सम्मानजनक और महत्वपूर्ण कार्य किया था उसकी सालों की मेहनत सफल हुई थी…. लाली और सुगना का परिवार जिसमें दोनों सहेलियों के अलावा सिर्फ बच्चे ही थे जमकर हर्षोल्लास मना रहे थे। सोनू ने ढाबे से जाकर अच्छा और स्वादिष्ट खाना घर ले आया था बच्चों के लिए चॉकलेट और ढेर सारी मिठाइयां भी थी सोनू की इस सफलता की खबर आस-पास के गांव और सलेमपुर में भी पहुंची और दो दिन बाद सोनू की मां पदमा उसकी बहन मोनी तथा कजरी और सरयू सिंह भी बनारस आ गए।

सरयू सिंह को देखकर सुगना बेहद भावुक हो गई इस खुशी के मौके पर वह अपने बाबू जी से लिपट गई जैसे-जैसे वह उनके आलिंगन में आती है अपनी सुध बुध खोती गई। हमेशा की तरह सरयू सिंह ने उसे अलग किया। सरयू सिंह सोनू को अपनी तरफ आते देख चुके थे। सोनू भी उनके पैर छूने के लिए आगे आया और आज उन्होंने सोनू को पूरी आत्मीयता और अपनत्व से अपने गले लगा लिया ऐसा लग रहा था दो पूर्ण मर्द एक-दूसरे के गले लग रहे हों। एक क्षितिज में विलीन होने जा रहा था और दूसरा खुले आसमान में चमकने को तैयार था। सरयू सिंह ने फक्र से कहा…

"सोनू अपन परिवार के नाम रोशन कर दी दिहले…"

कजरी ने भी सोनू को ढेरों आशीर्वाद दिए और बेहद खुशी से बोली

"अब हमनी के घर में भी मनोरमा मैडम जैसन गाड़ी आई.. जाएद हमार बेटा रतन त हमरा प्यारी सुगना के साध ना बुतावले तू अपना सुगना दीदी के सब सपना पूरा करीह…"

सोनू और सुगना स्वता ही एक दूसरे के करीब आ गए।

उनकी मां पदमा ने अपने दोनों बच्चों को जी भर कर निहारा और दोनों एक साथ अपनी मां के पैरों में झुक गए और कुछ ही देर में पदमा अपने दोनों बच्चों को अपने सीने से लगाए भाव विभोर हो ऊपर वाले को इस सुखद पल के लिए धन्यवाद दे रही थी और कृतज्ञ हो रही थी। लाली भी कजरी के आलिंगन में आकर अपनी मां को याद कर रही थी।

युवा सोनी जब जब सुगना को सरयू सिंह के आलिंगन में देखती उसे बेहद अजीब लगता।सुगना और सरयू सिंह की आत्मीयता सोने की समझ के परे थी कोई बहू अपने चचिया ससुर से क्यों कर गले लगेगी यह बात उसकी बुद्धि से परे थी।


एक विलक्षण संयोग ही था की सुगना और उसका परिवार सरयू सिंह के परिवार में पूरी तरह घुल मिल गया था। सच ही तो था सरयू सिंह ने जिस तरह कजरी और पदमा से अंतरंग संबंध बनाए थे उसी तरह सांसारिक रिश्ते भी निभाए थे।

पदमा के परिवार को भी अब वह पूरी तरह अपना चुके थे पदमा की पुत्री उनकी प्रेयसी थी और अब धीरे-धीरे वह सोनू को भी अपना चुके थे। जो अब उम्र में छोटे होने के बावजूद अपनी बहन सुगना का ख्याल रख रहा था….।

सरयू सिंह यह बात भली-भांति जानते थे कि रतन के जाने के बाद नई पीढ़ी में सिर्फ और सिर्फ सोनू ही एकमात्र मर्द था जो अपने परिवार का ख्याल रखता तथा गाहे-बगाहे परिवार की जरूरतों को पूरा करता था। एक मुखिया के रूप में उसकी भूमिका बेहद अहम थी।

छोटा सूरज भी अब धीरे-धीरे बड़ा हो रहा था वह सोनी को मौसी मौसी बुलाता एवं अपनी बड़ी बहन रतन की पुत्री मालती (पूर्व नाम मिंकी) को मालू मालू कर कर बुलाता उसे मालती बोलने में कठिनाई होती। लाली और सोनू के संभोग से उत्पन्न हुई पुत्री मधु जो वर्तमान में सुगना की पुत्री के रूप में पल रही थी वह अभी भी बेहद छोटी थी..पर चलना सीख चुकी थी…

सोनी बीच-बीच में मौका और एकांत देख कर सूरज के जादुई अंगूठे को सहलाती और हर बार उसे अपने होठों का प्रयोग कर सूरज की नुन्नी को शांत करना पड़ता।

सूरज के अंगूठे सहलाने से उसकी नून्नी पर पड़ने वाले असर को समझना सोनी जैसी पढ़ी-लिखी नर्स के लिए बेहद दुरूह कार्य था। वह बार-बार विज्ञान पर भरोसा करती और अपने आंखों देखी को झूठलाना चाहती परंतु हर बार उसे अपनी शर्म को दरकिनार कर अपने होठों का प्रयोग करना पड़ता जो सूरज की नुन्नी को शांत कर देता और उसकी बुद्धिमत्ता एक बार फिर प्रश्न के दायरे में आ जाती।

परंतु सोनी हार मानने वालों में से न थी उसे अब भी विश्वास था की हो सकता है यह सूरज के बचपन की वजह से हो? बचपन में सारे अंग ही संवेदनशील होते है शायद इसी कारण सूरज की नुन्नी तन जाती हो।

सूरज के अंगूठे के चमत्कार से अभी घर में दो शख्स भलीभांति वाकिफ थे एक सोनी जो पूरी तरह युवा थी और दूसरी सूरज की मुंहबोली बहन मालती। मालती की जिज्ञासा भी उसे कभी-कभी यह कृत्य करने पर मजबूर कर देती और न चाहते कोई भी उसे अपने होठों से सूरज की नुन्नी को छूना पड़ता।

सूरज अपनी प्रतिभाओं से अनजान धीरे-धीरे बड़ा हो रहा था। जब जब सोनी और मालती उसे छेड़ती वह मुस्कुराता और उन दोनों के बालों को पकड़कर उसे नीचे खींचता ताकि वह उसे शीघ्र ही उसे इस तकलीफ से निजात दिला सकें।

कुछ ही दिनों में सोनू को अपनी ट्रेनिंग के लिए लखनऊ जाना था। इतने दिनों तक रहने के बाद सोनू सुगना और लाली से अलग होने वाला था। एक काबिल भाई के खुद से दूर होने से सुगना भी दुखी थी वह जाने से पहले सोनू का बहुत ख्याल रखना चाहती वह उसके बालों में तेल लगाती उसका सर दबाती। सोनू का सर कभी-कभी सुगना की चुचियों से छू जाता और एक अजीब सी सिहरन सोनू के शरीर में दौड़ जाती।


यद्यपि सुगना यह जानबूझकर नहीं करती परंतु अति उत्साह और अपने कोमल हाथों से ताकत लगाने की कोशिश करने में कई बार वह समुचित दूरी का ध्यान न रख पाती तथा कभी सोनू के कंधे, कभी सर से अनजाने में ही अपनी चुचियों को सटा देती। इस मादक स्पर्श से ज्यादा सिहरन किसको होती यह कहना कठिन था परंतु सुगना भी अपनी चुचियों के ज्यादा सटने से सतर्क हो जाती स्वयं को पीछे खींच लेती।

आखिरकार वह दिन आ गया जब सोनू को लखनऊ के लिए निकलना था शाम 7 बजे की ट्रेन थी। सोनू अपने कमरे में तैयार हो रहा था तभी लाली उसके अंडर गारमेंट्स लेकर उसके कमरे में और बोली

"ई हमरा बाथरूम में छूटल रहल हा"

सूरज ने हाथ बढ़ाकर अपने अंडर गारमेंट्स लेने की जगह लाली की कोमल हथेलियां पकड़ ली और उसे अपनी तरफ खींच लिया।

नाइटी में लिपटी हुई लाली सोनू के आगोश में आ गई..

सोनू ने अपने अंडरवियर को लाली को दिखाते हुए बोला

"अब ई बेचारा अकेले रही का?"

लाली को कोई उत्तर न सोच रहा था वह थोड़ा दुखी हुई थी और शायद इसी वजह से कोई उत्तर खोज पाने में असमर्थ थी..

सोनू के प्रश्न का उत्तर उससे ही हाथों ने दिया जो अब लाली की नाइटी को ऊपर की तरफ खींच रहे थे कुछ ही देर में लाली की पेंटी सोनी की उंगलियों में फंसी नीचे की तरफ आ रही थी।

इसी दौरान सुगना सोनू के स्त्री किए कपड़े लिए उसके कमरे जा रही थी तभी उसने सोनू के कमरे की तरफ खिड़की से देखा जो हॉल में खुलती थी। कमरे के अंदर के दृश्य को देखकर सुगना के कदम रुक गए और मुंह खुला रह गया।

उसका युवा भाई सोनू उसकी सहेली लाली की पैंटी को नीचे उतार रहा था। सुगना, लाली और सोनू दोनों के संबंधों से पूरी तरह अवगत थी परंतु आज जो दृश्य वह अपनी खुली आंखों से देख रही थी वह बेहद उत्तेजक था वह न जाने किस मोहपाश में बुत बनी.. अपनी खुली आंखों से अपने काबिल भाई की करतूत देखती रही..

सुगना की आंखों से अनजान सोनू लाली की पेंटी को लिए नीचे बैठता गया और लाली ने अपने पैर एक-एक करके ऊपर नीचे किए और कुछ ही देर में उसकी काली पैंटी सोनू की हाथों में थी उसने उसे अपने नथुनों से लगाया और उसकी मादक खुशबू को सूंघते हुए बोला..

"दीदी देखा अब जोड़ा लाल गइल.."

लाली ने उसके सर को सहलाते हुए बोला…

"तु बहुत बदमाश बाड़… कितना मन लागे ला तहार इ सब में"

लाली यह सब कह तो सोनू के बारे में रही थी परंतु यह बात उस पर स्वयं लागू होती थी वह सोनू से चुदने के लिए हमेशा तैयार रहती थी और शायद आज भी वह नाइटी में इसीलिए सोनू के पास आई थी। (बीती रात बुर् के बालों की वजह से मजा खराब हो गया था दरअसल सोनू जब उसकी चूत चाटने गया तो सोनू के होठों के बीच लाली के बुर बाल आ आ गया था जिससे लाली दुखी हो गई थी और सोनू के प्रयास करने के बावजूद वह अपराध बोध से मुक्त न हो पा रही थी।

परन्तु लाली आज पूरी तरह तैयार थी। उसकी फूली हुई चूत होठों पर प्रेम रस लिए चमक रही थी। सोनू लाली की नंगी जांघों के बीच चिकनी और पनियायी चूत को देखकर मदहोश हो गया…

इससे पहले की लाली कुछ बोलती सोनू ने लाली की बुर से अपने होंठ सटा दिए..

इधर लाली उत्तेजना में से भर रही थी उधर सुगना के पैर थरथर कांप रहे थे। वह अपने छोटे भाई को अपनी सहेली की बुर चूसते हुए अपनी आंखों से देख रही थी। उसका छोटा भाई जो कभी उसकी गोद में खेला था आज उसकी ही सहेली के भरे पूरे नितंबों को अपनी हथेलियों में दबोचे हुए उसकी बुर से मुंह सटाए अपनी जीभ बाहर निकाल कर उसकी बुर पर रगड़ रहा था। सुगना की अंतरात्मा कह रही थी कि अपनी आंखें हटा ले परंतु सुगना जड़ हो चुकी थी उसकी नजरें उस नजारे से हटने को तैयार न थी।

अचानक लाली को ध्यान आया कि उसने दरवाजा बंद न किया था। उसने फुसफुसाते हुए कहा..

"दरवाजा बंद कर लेवे द तहार सुगना दीदी आ जाई"

सोनू को अवरोध गवारा न था। उसने लाली की बात को अनसुना कर दिया परंतु लाली इस तरह खुले में सोनू के साथ वासना का खुला खेल नहीं खेलना चाहती थी सुगना किसी भी समय सोनू के कमरे में आ सकती थी। उसने सोनू को अलग किया। सोनू का लंड पूरी तरह खड़ा हो चुका था वह बिल्कुल देर करने के पक्ष में न था। फिर भी सुगना से अपनी शर्म के कारण वह उठकर दरवाजा बंद करने गया। तभी लाली की निगाह खिड़की की तरफ चली गई।

लाली सन्न रह गई सुगना की बड़ी-बड़ी कजरारी आंखें फैलाए लाली को देख रही थीं। लाली को यकीन ही नहीं हुआ कि सुगना उसे खिड़की से देख रही थी हे भगवान अब वह क्या करें…

जब तक लाली कुछ निर्णय ले पाती सोनू वापस आ चुका था और लाली की नाइटी ऊपर का सफर तय कर रही थी। लाली का मदमस्त गोरा बदन नाइटी के आवरण से बाहर आ रहा था लाली के हाथ यंत्रवत ऊपर की तरफ हो थे। लाली मन ही मन सोच रही थी क्या सुगना अब भी वहां खड़ी होगी … हे भगवान… क्या सुगना यह सब अपनी आंखों से देखेंगी… ना ना सुगना ऐसी नहीं है …वह सोनू को यह सब करते हुए नहीं देखेगी…. .आखिर वो उसका छोटा भाई है…

नाइटी उसके चेहरे से होते हुए बाहर आ गई उसकी आंखों पर एक बार फिर रोशनी की फुहार पड़ी पर लाली ने अपनी आंखें बंद कर लीं …वह मन ही मन निर्णय ले चुकी थी…

शेष अगले भाग में…
Shandar update sirji
 

Sanju@

Well-Known Member
4,778
19,315
158
भाग 73

"आतना फूल जैसन बहुरिया बीया रतनवा पागल ह आज घर रहे के चाही बतावा बेचारी के आज के दिन लाठी मिली.."

कजरी ने फिर भी अपने पुत्र का ही साथ दिया था और बात को समझते हुए बोली…

"नोकरी में छुट्टी मिलल अतना आसान ना होला..

"जायद….. अब सुगना के छोड़ द लोग दिनभर काम करत करत थाक गइल बिया आराम करे द लोग"

सरयू सिंह की जान में जान आई और जैसे ही महिलाएं कमरे से बाहर गई सुगना ने साँकल लगा दी। इससे पहले कि वह मुड़ती नंग धड़ंग सरयू सिंह उसके सामने अपना तना हुआ लण्ड लिए उपस्थित थे…..

सुगना आश्चर्य से उन्हें देख रही थी…



अब आगे…

सुखद और मीठी यादें एक मीठे नशे की तरह होती है बिस्तर पर लेटे सुगना अपनी मीठी नींद में खो गई..


नियति आज सुगना पर प्रसन्न थी। आज का दिन सुगना और उसके परिवार के लिए विशेष था…

दरवाजे पर खट खट की आवाज से सुगना अपनी अर्ध निद्रा और सुखद स्वप्न से बाहर आ गई।

सुगना के घर के आगे गहमागहमी थी कई सारे लोग हाथों में कैमरा लिए बाहर इंतजार कर रहे थे..। खटखट की आवाज लाली के कानों तक भी पहुंची। सुगना और लाली इस अप्रत्याशित भीड़ भाड़ और उनके आने के कारण से अनभिज्ञ थीं उनके मन में डर पैदा हो रहा था फिर भी सुगना हिम्मत करके गई और खिड़की से बोली

"आप लोगों को क्या चाहिए क्यों यहां भीड़भाड़ लगाए हुए हैं?"

"आप संग्राम जी की पत्नी हैं"

"पागल हैं क्या आप? ..हम उसकी बहन हैं…"

"उसकी बहन" शब्द पर जोर देकर सुगना ने अपने बड़े होने और अधिकार दोनों का प्रदर्शन किया।

पत्रकार की कोई गलती न थी एक तरफ सोनू पूर्ण युवा मर्द बन चुका था वह अपनी उम्र से कुछ ज्यादा परिपक्व लगता वहीं दूसरी तरफ 25 वर्षीय सुगना अभी भी एक तरुणी की भांति दिखाई पड़ रही थी कोई भी सुगना को देखकर यह नहीं कह सकता था कि वह उम्र में सोनू से बड़ी होगी। खैर पत्रकार ने अपनी गलती स्वीकार कर ली और बोला


"अरे बहन जी मुझे माफ करिए पर मिठाई खिलाइए संग्राम जी (सोनू) ने पूरे प्रदेश का नाम रोशन किया है. वो एसडीएम बन गए हैं."

सुगना खुशी से उछलने लगी उसने पास खड़ी लाली से कहा

"लाली …..लगा ता सोनू पास हो गईल"

सुगना सिर्फ पास ओर फेल की भाषा जानती थी उसे यह नहीं पता था कि सोनू ने पूरे पीसीएस परीक्षा में टॉप किया था।

सुगना और लाली की खुशी देखने लायक थी. दोनों सहेलियां एक बार फिर गले लग गईं और सुगना और लाली की चूचीयों ने एक दूसरे को चिपटा करने की कोशिश की। हार लाली की ही हुई। सुगना की सूचियां अब भी लाली की तुलना में ज्यादा कसी हुई थीं।

नियति ने सोनू की दोनों बहनों को आज बेहद प्रसन्न कर दिया था. खुशी के कारण दोनों के सांसें अवरुद्ध हो रही थीं।

सोनू के प्रति दोनों के प्यार में तुलना कर पाना कठिन था। जहां सुगना का सोनू के प्रति प्यार एक बड़ी बहन और छोटे भाई के बीच का प्यार था वही लाली और सोनू बचपन के इस रिश्ते को जाने कब बदल कर एक हो चुके थे। परंतु आज सुगना भी उतनी ही खुश थी जितनी लाली दोनों की भावनाएं छलक रही थीं।


अचानक ही मिली इस खुशी से दोनों भाव विभोर हो उठी आंखों में आंसू छलक आए। जिस सोनू उर्फ संग्राम सिंह को दोनों बहनों ने पाल पोस कर बड़ा किया था आज वह पीसीएस की प्रतिष्ठित परीक्षा में न सिर्फ पास हुआ था बल्कि अव्वल आया था। बाहर खड़ी पत्रकारों की भीड़ संग्राम सिंह का इंतजार कर रही थी कुछ ही देर में सोनू अपनी राजदूत से घर के सामने आ गया। पत्रकारों द्वारा लाए गए फूल माला से गिरा हुआ सोनू घर के अंदर प्रवेश कर रहा था।

सुगना ने आज से पहले अपने जीवन में इतनी खुशी न देखी थी। इतना सम्मान उसकी कल्पना से परे था। सोनू ने उस के चरण छुए और सुगना उसके गले लग गयी।

आज खुशी के इस मौके पर सुगना को याद भी ना रहा की सोनू एक पूर्ण और युवा मर्द है जो उसकी सहेली लाली के साथ एक अनोखे रिश्ते में पति-पत्नी सा जीवन जी रहा है।


आलिंगन में आत्मीयता बढ़ते ही सोनू ने सुगना के शरीर की कोमलता को महसूस किया और उसके अवचेतन मन ने एक बार फिर उसके लिंग में तनाव भरने की कोशिश की। सुगना सोनू की बहन थी और सोनू अपने अंतर्मन में छुपी वासना के आधीन न था। परंतु हर बार यह महसूस करता सुगना के आलिंगन में आते ही उसके मन में कुछ पलों के लिए ही सही पर वासना अपना फन उठाने लगती।

उसने सुगना को स्वयं से अलग किया और पत्रकार भाई बहन की फोटो खींचने लगे। अपनी बारी आते ही लाली भी सोनू के आलिंगन में आ गई। पत्रकार ने लाली के बारे में जानना चाहा? सोनू थोड़ा असहज हुआ तो सुगना ने स्थिति को संभाल लिया और बोला..

"ई लाली है हमारी सहेली और सोनू की मुंहबोली बहन"

हम लोग सब एक ही परिवार जैसे हैं…

सुगना ने स्थिति संभाल ली थी सोनू की दोनों बहनों ने सोनू के दोनों तरफ खड़े होकर ढेर सारी फोटो खिंचवाई और पत्रकारों को मिठाई खिलाकर विदा किया।

सोनू उर्फ संग्राम सिंह ने आज अपने परिवार के लिए बेहद ही सम्मानजनक और महत्वपूर्ण कार्य किया था उसकी सालों की मेहनत सफल हुई थी…. लाली और सुगना का परिवार जिसमें दोनों सहेलियों के अलावा सिर्फ बच्चे ही थे जमकर हर्षोल्लास मना रहे थे। सोनू ने ढाबे से जाकर अच्छा और स्वादिष्ट खाना घर ले आया था बच्चों के लिए चॉकलेट और ढेर सारी मिठाइयां भी थी सोनू की इस सफलता की खबर आस-पास के गांव और सलेमपुर में भी पहुंची और दो दिन बाद सोनू की मां पदमा उसकी बहन मोनी तथा कजरी और सरयू सिंह भी बनारस आ गए।

सरयू सिंह को देखकर सुगना बेहद भावुक हो गई इस खुशी के मौके पर वह अपने बाबू जी से लिपट गई जैसे-जैसे वह उनके आलिंगन में आती है अपनी सुध बुध खोती गई। हमेशा की तरह सरयू सिंह ने उसे अलग किया। सरयू सिंह सोनू को अपनी तरफ आते देख चुके थे। सोनू भी उनके पैर छूने के लिए आगे आया और आज उन्होंने सोनू को पूरी आत्मीयता और अपनत्व से अपने गले लगा लिया ऐसा लग रहा था दो पूर्ण मर्द एक-दूसरे के गले लग रहे हों। एक क्षितिज में विलीन होने जा रहा था और दूसरा खुले आसमान में चमकने को तैयार था। सरयू सिंह ने फक्र से कहा…

"सोनू अपन परिवार के नाम रोशन कर दी दिहले…"

कजरी ने भी सोनू को ढेरों आशीर्वाद दिए और बेहद खुशी से बोली

"अब हमनी के घर में भी मनोरमा मैडम जैसन गाड़ी आई.. जाएद हमार बेटा रतन त हमरा प्यारी सुगना के साध ना बुतावले तू अपना सुगना दीदी के सब सपना पूरा करीह…"

सोनू और सुगना स्वता ही एक दूसरे के करीब आ गए।

उनकी मां पदमा ने अपने दोनों बच्चों को जी भर कर निहारा और दोनों एक साथ अपनी मां के पैरों में झुक गए और कुछ ही देर में पदमा अपने दोनों बच्चों को अपने सीने से लगाए भाव विभोर हो ऊपर वाले को इस सुखद पल के लिए धन्यवाद दे रही थी और कृतज्ञ हो रही थी। लाली भी कजरी के आलिंगन में आकर अपनी मां को याद कर रही थी।

युवा सोनी जब जब सुगना को सरयू सिंह के आलिंगन में देखती उसे बेहद अजीब लगता।सुगना और सरयू सिंह की आत्मीयता सोने की समझ के परे थी कोई बहू अपने चचिया ससुर से क्यों कर गले लगेगी यह बात उसकी बुद्धि से परे थी।


एक विलक्षण संयोग ही था की सुगना और उसका परिवार सरयू सिंह के परिवार में पूरी तरह घुल मिल गया था। सच ही तो था सरयू सिंह ने जिस तरह कजरी और पदमा से अंतरंग संबंध बनाए थे उसी तरह सांसारिक रिश्ते भी निभाए थे।

पदमा के परिवार को भी अब वह पूरी तरह अपना चुके थे पदमा की पुत्री उनकी प्रेयसी थी और अब धीरे-धीरे वह सोनू को भी अपना चुके थे। जो अब उम्र में छोटे होने के बावजूद अपनी बहन सुगना का ख्याल रख रहा था….।

सरयू सिंह यह बात भली-भांति जानते थे कि रतन के जाने के बाद नई पीढ़ी में सिर्फ और सिर्फ सोनू ही एकमात्र मर्द था जो अपने परिवार का ख्याल रखता तथा गाहे-बगाहे परिवार की जरूरतों को पूरा करता था। एक मुखिया के रूप में उसकी भूमिका बेहद अहम थी।

छोटा सूरज भी अब धीरे-धीरे बड़ा हो रहा था वह सोनी को मौसी मौसी बुलाता एवं अपनी बड़ी बहन रतन की पुत्री मालती (पूर्व नाम मिंकी) को मालू मालू कर कर बुलाता उसे मालती बोलने में कठिनाई होती। लाली और सोनू के संभोग से उत्पन्न हुई पुत्री मधु जो वर्तमान में सुगना की पुत्री के रूप में पल रही थी वह अभी भी बेहद छोटी थी..पर चलना सीख चुकी थी…

सोनी बीच-बीच में मौका और एकांत देख कर सूरज के जादुई अंगूठे को सहलाती और हर बार उसे अपने होठों का प्रयोग कर सूरज की नुन्नी को शांत करना पड़ता।

सूरज के अंगूठे सहलाने से उसकी नून्नी पर पड़ने वाले असर को समझना सोनी जैसी पढ़ी-लिखी नर्स के लिए बेहद दुरूह कार्य था। वह बार-बार विज्ञान पर भरोसा करती और अपने आंखों देखी को झूठलाना चाहती परंतु हर बार उसे अपनी शर्म को दरकिनार कर अपने होठों का प्रयोग करना पड़ता जो सूरज की नुन्नी को शांत कर देता और उसकी बुद्धिमत्ता एक बार फिर प्रश्न के दायरे में आ जाती।

परंतु सोनी हार मानने वालों में से न थी उसे अब भी विश्वास था की हो सकता है यह सूरज के बचपन की वजह से हो? बचपन में सारे अंग ही संवेदनशील होते है शायद इसी कारण सूरज की नुन्नी तन जाती हो।

सूरज के अंगूठे के चमत्कार से अभी घर में दो शख्स भलीभांति वाकिफ थे एक सोनी जो पूरी तरह युवा थी और दूसरी सूरज की मुंहबोली बहन मालती। मालती की जिज्ञासा भी उसे कभी-कभी यह कृत्य करने पर मजबूर कर देती और न चाहते कोई भी उसे अपने होठों से सूरज की नुन्नी को छूना पड़ता।

सूरज अपनी प्रतिभाओं से अनजान धीरे-धीरे बड़ा हो रहा था। जब जब सोनी और मालती उसे छेड़ती वह मुस्कुराता और उन दोनों के बालों को पकड़कर उसे नीचे खींचता ताकि वह उसे शीघ्र ही उसे इस तकलीफ से निजात दिला सकें।

कुछ ही दिनों में सोनू को अपनी ट्रेनिंग के लिए लखनऊ जाना था। इतने दिनों तक रहने के बाद सोनू सुगना और लाली से अलग होने वाला था। एक काबिल भाई के खुद से दूर होने से सुगना भी दुखी थी वह जाने से पहले सोनू का बहुत ख्याल रखना चाहती वह उसके बालों में तेल लगाती उसका सर दबाती। सोनू का सर कभी-कभी सुगना की चुचियों से छू जाता और एक अजीब सी सिहरन सोनू के शरीर में दौड़ जाती।


यद्यपि सुगना यह जानबूझकर नहीं करती परंतु अति उत्साह और अपने कोमल हाथों से ताकत लगाने की कोशिश करने में कई बार वह समुचित दूरी का ध्यान न रख पाती तथा कभी सोनू के कंधे, कभी सर से अनजाने में ही अपनी चुचियों को सटा देती। इस मादक स्पर्श से ज्यादा सिहरन किसको होती यह कहना कठिन था परंतु सुगना भी अपनी चुचियों के ज्यादा सटने से सतर्क हो जाती स्वयं को पीछे खींच लेती।

आखिरकार वह दिन आ गया जब सोनू को लखनऊ के लिए निकलना था शाम 7 बजे की ट्रेन थी। सोनू अपने कमरे में तैयार हो रहा था तभी लाली उसके अंडर गारमेंट्स लेकर उसके कमरे में और बोली

"ई हमरा बाथरूम में छूटल रहल हा"

सूरज ने हाथ बढ़ाकर अपने अंडर गारमेंट्स लेने की जगह लाली की कोमल हथेलियां पकड़ ली और उसे अपनी तरफ खींच लिया।

नाइटी में लिपटी हुई लाली सोनू के आगोश में आ गई..

सोनू ने अपने अंडरवियर को लाली को दिखाते हुए बोला

"अब ई बेचारा अकेले रही का?"

लाली को कोई उत्तर न सोच रहा था वह थोड़ा दुखी हुई थी और शायद इसी वजह से कोई उत्तर खोज पाने में असमर्थ थी..

सोनू के प्रश्न का उत्तर उससे ही हाथों ने दिया जो अब लाली की नाइटी को ऊपर की तरफ खींच रहे थे कुछ ही देर में लाली की पेंटी सोनी की उंगलियों में फंसी नीचे की तरफ आ रही थी।

इसी दौरान सुगना सोनू के स्त्री किए कपड़े लिए उसके कमरे जा रही थी तभी उसने सोनू के कमरे की तरफ खिड़की से देखा जो हॉल में खुलती थी। कमरे के अंदर के दृश्य को देखकर सुगना के कदम रुक गए और मुंह खुला रह गया।

उसका युवा भाई सोनू उसकी सहेली लाली की पैंटी को नीचे उतार रहा था। सुगना, लाली और सोनू दोनों के संबंधों से पूरी तरह अवगत थी परंतु आज जो दृश्य वह अपनी खुली आंखों से देख रही थी वह बेहद उत्तेजक था वह न जाने किस मोहपाश में बुत बनी.. अपनी खुली आंखों से अपने काबिल भाई की करतूत देखती रही..

सुगना की आंखों से अनजान सोनू लाली की पेंटी को लिए नीचे बैठता गया और लाली ने अपने पैर एक-एक करके ऊपर नीचे किए और कुछ ही देर में उसकी काली पैंटी सोनू की हाथों में थी उसने उसे अपने नथुनों से लगाया और उसकी मादक खुशबू को सूंघते हुए बोला..

"दीदी देखा अब जोड़ा लाल गइल.."

लाली ने उसके सर को सहलाते हुए बोला…

"तु बहुत बदमाश बाड़… कितना मन लागे ला तहार इ सब में"

लाली यह सब कह तो सोनू के बारे में रही थी परंतु यह बात उस पर स्वयं लागू होती थी वह सोनू से चुदने के लिए हमेशा तैयार रहती थी और शायद आज भी वह नाइटी में इसीलिए सोनू के पास आई थी। (बीती रात बुर् के बालों की वजह से मजा खराब हो गया था दरअसल सोनू जब उसकी चूत चाटने गया तो सोनू के होठों के बीच लाली के बुर बाल आ आ गया था जिससे लाली दुखी हो गई थी और सोनू के प्रयास करने के बावजूद वह अपराध बोध से मुक्त न हो पा रही थी।

परन्तु लाली आज पूरी तरह तैयार थी। उसकी फूली हुई चूत होठों पर प्रेम रस लिए चमक रही थी। सोनू लाली की नंगी जांघों के बीच चिकनी और पनियायी चूत को देखकर मदहोश हो गया…

इससे पहले की लाली कुछ बोलती सोनू ने लाली की बुर से अपने होंठ सटा दिए..

इधर लाली उत्तेजना में से भर रही थी उधर सुगना के पैर थरथर कांप रहे थे। वह अपने छोटे भाई को अपनी सहेली की बुर चूसते हुए अपनी आंखों से देख रही थी। उसका छोटा भाई जो कभी उसकी गोद में खेला था आज उसकी ही सहेली के भरे पूरे नितंबों को अपनी हथेलियों में दबोचे हुए उसकी बुर से मुंह सटाए अपनी जीभ बाहर निकाल कर उसकी बुर पर रगड़ रहा था। सुगना की अंतरात्मा कह रही थी कि अपनी आंखें हटा ले परंतु सुगना जड़ हो चुकी थी उसकी नजरें उस नजारे से हटने को तैयार न थी।

अचानक लाली को ध्यान आया कि उसने दरवाजा बंद न किया था। उसने फुसफुसाते हुए कहा..

"दरवाजा बंद कर लेवे द तहार सुगना दीदी आ जाई"

सोनू को अवरोध गवारा न था। उसने लाली की बात को अनसुना कर दिया परंतु लाली इस तरह खुले में सोनू के साथ वासना का खुला खेल नहीं खेलना चाहती थी सुगना किसी भी समय सोनू के कमरे में आ सकती थी। उसने सोनू को अलग किया। सोनू का लंड पूरी तरह खड़ा हो चुका था वह बिल्कुल देर करने के पक्ष में न था। फिर भी सुगना से अपनी शर्म के कारण वह उठकर दरवाजा बंद करने गया। तभी लाली की निगाह खिड़की की तरफ चली गई।

लाली सन्न रह गई सुगना की बड़ी-बड़ी कजरारी आंखें फैलाए लाली को देख रही थीं। लाली को यकीन ही नहीं हुआ कि सुगना उसे खिड़की से देख रही थी हे भगवान अब वह क्या करें…

जब तक लाली कुछ निर्णय ले पाती सोनू वापस आ चुका था और लाली की नाइटी ऊपर का सफर तय कर रही थी। लाली का मदमस्त गोरा बदन नाइटी के आवरण से बाहर आ रहा था लाली के हाथ यंत्रवत ऊपर की तरफ हो थे। लाली मन ही मन सोच रही थी क्या सुगना अब भी वहां खड़ी होगी … हे भगवान… क्या सुगना यह सब अपनी आंखों से देखेंगी… ना ना सुगना ऐसी नहीं है …वह सोनू को यह सब करते हुए नहीं देखेगी…. .आखिर वो उसका छोटा भाई है…

नाइटी उसके चेहरे से होते हुए बाहर आ गई उसकी आंखों पर एक बार फिर रोशनी की फुहार पड़ी पर लाली ने अपनी आंखें बंद कर लीं …वह मन ही मन निर्णय ले चुकी थी…

शेष अगले भाग में…
बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर लाजवाब अपडेट है भाई मजा आ गया
आखिर कर सोनू sdm बन गया है सुगना ने सोनू और लाली को देख ही लिया है देखते हैं आगे क्या होता है
 
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भाग 73

"आतना फूल जैसन बहुरिया बीया रतनवा पागल ह आज घर रहे के चाही बतावा बेचारी के आज के दिन लाठी मिली.."

कजरी ने फिर भी अपने पुत्र का ही साथ दिया था और बात को समझते हुए बोली…

"नोकरी में छुट्टी मिलल अतना आसान ना होला..

"जायद….. अब सुगना के छोड़ द लोग दिनभर काम करत करत थाक गइल बिया आराम करे द लोग"

सरयू सिंह की जान में जान आई और जैसे ही महिलाएं कमरे से बाहर गई सुगना ने साँकल लगा दी। इससे पहले कि वह मुड़ती नंग धड़ंग सरयू सिंह उसके सामने अपना तना हुआ लण्ड लिए उपस्थित थे…..

सुगना आश्चर्य से उन्हें देख रही थी…



अब आगे…

सुखद और मीठी यादें एक मीठे नशे की तरह होती है बिस्तर पर लेटे सुगना अपनी मीठी नींद में खो गई..


नियति आज सुगना पर प्रसन्न थी। आज का दिन सुगना और उसके परिवार के लिए विशेष था…

दरवाजे पर खट खट की आवाज से सुगना अपनी अर्ध निद्रा और सुखद स्वप्न से बाहर आ गई।

सुगना के घर के आगे गहमागहमी थी कई सारे लोग हाथों में कैमरा लिए बाहर इंतजार कर रहे थे..। खटखट की आवाज लाली के कानों तक भी पहुंची। सुगना और लाली इस अप्रत्याशित भीड़ भाड़ और उनके आने के कारण से अनभिज्ञ थीं उनके मन में डर पैदा हो रहा था फिर भी सुगना हिम्मत करके गई और खिड़की से बोली

"आप लोगों को क्या चाहिए क्यों यहां भीड़भाड़ लगाए हुए हैं?"

"आप संग्राम जी की पत्नी हैं"

"पागल हैं क्या आप? ..हम उसकी बहन हैं…"

"उसकी बहन" शब्द पर जोर देकर सुगना ने अपने बड़े होने और अधिकार दोनों का प्रदर्शन किया।

पत्रकार की कोई गलती न थी एक तरफ सोनू पूर्ण युवा मर्द बन चुका था वह अपनी उम्र से कुछ ज्यादा परिपक्व लगता वहीं दूसरी तरफ 25 वर्षीय सुगना अभी भी एक तरुणी की भांति दिखाई पड़ रही थी कोई भी सुगना को देखकर यह नहीं कह सकता था कि वह उम्र में सोनू से बड़ी होगी। खैर पत्रकार ने अपनी गलती स्वीकार कर ली और बोला


"अरे बहन जी मुझे माफ करिए पर मिठाई खिलाइए संग्राम जी (सोनू) ने पूरे प्रदेश का नाम रोशन किया है. वो एसडीएम बन गए हैं."

सुगना खुशी से उछलने लगी उसने पास खड़ी लाली से कहा

"लाली …..लगा ता सोनू पास हो गईल"

सुगना सिर्फ पास ओर फेल की भाषा जानती थी उसे यह नहीं पता था कि सोनू ने पूरे पीसीएस परीक्षा में टॉप किया था।

सुगना और लाली की खुशी देखने लायक थी. दोनों सहेलियां एक बार फिर गले लग गईं और सुगना और लाली की चूचीयों ने एक दूसरे को चिपटा करने की कोशिश की। हार लाली की ही हुई। सुगना की सूचियां अब भी लाली की तुलना में ज्यादा कसी हुई थीं।

नियति ने सोनू की दोनों बहनों को आज बेहद प्रसन्न कर दिया था. खुशी के कारण दोनों के सांसें अवरुद्ध हो रही थीं।

सोनू के प्रति दोनों के प्यार में तुलना कर पाना कठिन था। जहां सुगना का सोनू के प्रति प्यार एक बड़ी बहन और छोटे भाई के बीच का प्यार था वही लाली और सोनू बचपन के इस रिश्ते को जाने कब बदल कर एक हो चुके थे। परंतु आज सुगना भी उतनी ही खुश थी जितनी लाली दोनों की भावनाएं छलक रही थीं।


अचानक ही मिली इस खुशी से दोनों भाव विभोर हो उठी आंखों में आंसू छलक आए। जिस सोनू उर्फ संग्राम सिंह को दोनों बहनों ने पाल पोस कर बड़ा किया था आज वह पीसीएस की प्रतिष्ठित परीक्षा में न सिर्फ पास हुआ था बल्कि अव्वल आया था। बाहर खड़ी पत्रकारों की भीड़ संग्राम सिंह का इंतजार कर रही थी कुछ ही देर में सोनू अपनी राजदूत से घर के सामने आ गया। पत्रकारों द्वारा लाए गए फूल माला से गिरा हुआ सोनू घर के अंदर प्रवेश कर रहा था।

सुगना ने आज से पहले अपने जीवन में इतनी खुशी न देखी थी। इतना सम्मान उसकी कल्पना से परे था। सोनू ने उस के चरण छुए और सुगना उसके गले लग गयी।

आज खुशी के इस मौके पर सुगना को याद भी ना रहा की सोनू एक पूर्ण और युवा मर्द है जो उसकी सहेली लाली के साथ एक अनोखे रिश्ते में पति-पत्नी सा जीवन जी रहा है।


आलिंगन में आत्मीयता बढ़ते ही सोनू ने सुगना के शरीर की कोमलता को महसूस किया और उसके अवचेतन मन ने एक बार फिर उसके लिंग में तनाव भरने की कोशिश की। सुगना सोनू की बहन थी और सोनू अपने अंतर्मन में छुपी वासना के आधीन न था। परंतु हर बार यह महसूस करता सुगना के आलिंगन में आते ही उसके मन में कुछ पलों के लिए ही सही पर वासना अपना फन उठाने लगती।

उसने सुगना को स्वयं से अलग किया और पत्रकार भाई बहन की फोटो खींचने लगे। अपनी बारी आते ही लाली भी सोनू के आलिंगन में आ गई। पत्रकार ने लाली के बारे में जानना चाहा? सोनू थोड़ा असहज हुआ तो सुगना ने स्थिति को संभाल लिया और बोला..

"ई लाली है हमारी सहेली और सोनू की मुंहबोली बहन"

हम लोग सब एक ही परिवार जैसे हैं…

सुगना ने स्थिति संभाल ली थी सोनू की दोनों बहनों ने सोनू के दोनों तरफ खड़े होकर ढेर सारी फोटो खिंचवाई और पत्रकारों को मिठाई खिलाकर विदा किया।

सोनू उर्फ संग्राम सिंह ने आज अपने परिवार के लिए बेहद ही सम्मानजनक और महत्वपूर्ण कार्य किया था उसकी सालों की मेहनत सफल हुई थी…. लाली और सुगना का परिवार जिसमें दोनों सहेलियों के अलावा सिर्फ बच्चे ही थे जमकर हर्षोल्लास मना रहे थे। सोनू ने ढाबे से जाकर अच्छा और स्वादिष्ट खाना घर ले आया था बच्चों के लिए चॉकलेट और ढेर सारी मिठाइयां भी थी सोनू की इस सफलता की खबर आस-पास के गांव और सलेमपुर में भी पहुंची और दो दिन बाद सोनू की मां पदमा उसकी बहन मोनी तथा कजरी और सरयू सिंह भी बनारस आ गए।

सरयू सिंह को देखकर सुगना बेहद भावुक हो गई इस खुशी के मौके पर वह अपने बाबू जी से लिपट गई जैसे-जैसे वह उनके आलिंगन में आती है अपनी सुध बुध खोती गई। हमेशा की तरह सरयू सिंह ने उसे अलग किया। सरयू सिंह सोनू को अपनी तरफ आते देख चुके थे। सोनू भी उनके पैर छूने के लिए आगे आया और आज उन्होंने सोनू को पूरी आत्मीयता और अपनत्व से अपने गले लगा लिया ऐसा लग रहा था दो पूर्ण मर्द एक-दूसरे के गले लग रहे हों। एक क्षितिज में विलीन होने जा रहा था और दूसरा खुले आसमान में चमकने को तैयार था। सरयू सिंह ने फक्र से कहा…

"सोनू अपन परिवार के नाम रोशन कर दी दिहले…"

कजरी ने भी सोनू को ढेरों आशीर्वाद दिए और बेहद खुशी से बोली

"अब हमनी के घर में भी मनोरमा मैडम जैसन गाड़ी आई.. जाएद हमार बेटा रतन त हमरा प्यारी सुगना के साध ना बुतावले तू अपना सुगना दीदी के सब सपना पूरा करीह…"

सोनू और सुगना स्वता ही एक दूसरे के करीब आ गए।

उनकी मां पदमा ने अपने दोनों बच्चों को जी भर कर निहारा और दोनों एक साथ अपनी मां के पैरों में झुक गए और कुछ ही देर में पदमा अपने दोनों बच्चों को अपने सीने से लगाए भाव विभोर हो ऊपर वाले को इस सुखद पल के लिए धन्यवाद दे रही थी और कृतज्ञ हो रही थी। लाली भी कजरी के आलिंगन में आकर अपनी मां को याद कर रही थी।

युवा सोनी जब जब सुगना को सरयू सिंह के आलिंगन में देखती उसे बेहद अजीब लगता।सुगना और सरयू सिंह की आत्मीयता सोने की समझ के परे थी कोई बहू अपने चचिया ससुर से क्यों कर गले लगेगी यह बात उसकी बुद्धि से परे थी।


एक विलक्षण संयोग ही था की सुगना और उसका परिवार सरयू सिंह के परिवार में पूरी तरह घुल मिल गया था। सच ही तो था सरयू सिंह ने जिस तरह कजरी और पदमा से अंतरंग संबंध बनाए थे उसी तरह सांसारिक रिश्ते भी निभाए थे।

पदमा के परिवार को भी अब वह पूरी तरह अपना चुके थे पदमा की पुत्री उनकी प्रेयसी थी और अब धीरे-धीरे वह सोनू को भी अपना चुके थे। जो अब उम्र में छोटे होने के बावजूद अपनी बहन सुगना का ख्याल रख रहा था….।

सरयू सिंह यह बात भली-भांति जानते थे कि रतन के जाने के बाद नई पीढ़ी में सिर्फ और सिर्फ सोनू ही एकमात्र मर्द था जो अपने परिवार का ख्याल रखता तथा गाहे-बगाहे परिवार की जरूरतों को पूरा करता था। एक मुखिया के रूप में उसकी भूमिका बेहद अहम थी।

छोटा सूरज भी अब धीरे-धीरे बड़ा हो रहा था वह सोनी को मौसी मौसी बुलाता एवं अपनी बड़ी बहन रतन की पुत्री मालती (पूर्व नाम मिंकी) को मालू मालू कर कर बुलाता उसे मालती बोलने में कठिनाई होती। लाली और सोनू के संभोग से उत्पन्न हुई पुत्री मधु जो वर्तमान में सुगना की पुत्री के रूप में पल रही थी वह अभी भी बेहद छोटी थी..पर चलना सीख चुकी थी…

सोनी बीच-बीच में मौका और एकांत देख कर सूरज के जादुई अंगूठे को सहलाती और हर बार उसे अपने होठों का प्रयोग कर सूरज की नुन्नी को शांत करना पड़ता।

सूरज के अंगूठे सहलाने से उसकी नून्नी पर पड़ने वाले असर को समझना सोनी जैसी पढ़ी-लिखी नर्स के लिए बेहद दुरूह कार्य था। वह बार-बार विज्ञान पर भरोसा करती और अपने आंखों देखी को झूठलाना चाहती परंतु हर बार उसे अपनी शर्म को दरकिनार कर अपने होठों का प्रयोग करना पड़ता जो सूरज की नुन्नी को शांत कर देता और उसकी बुद्धिमत्ता एक बार फिर प्रश्न के दायरे में आ जाती।

परंतु सोनी हार मानने वालों में से न थी उसे अब भी विश्वास था की हो सकता है यह सूरज के बचपन की वजह से हो? बचपन में सारे अंग ही संवेदनशील होते है शायद इसी कारण सूरज की नुन्नी तन जाती हो।

सूरज के अंगूठे के चमत्कार से अभी घर में दो शख्स भलीभांति वाकिफ थे एक सोनी जो पूरी तरह युवा थी और दूसरी सूरज की मुंहबोली बहन मालती। मालती की जिज्ञासा भी उसे कभी-कभी यह कृत्य करने पर मजबूर कर देती और न चाहते कोई भी उसे अपने होठों से सूरज की नुन्नी को छूना पड़ता।

सूरज अपनी प्रतिभाओं से अनजान धीरे-धीरे बड़ा हो रहा था। जब जब सोनी और मालती उसे छेड़ती वह मुस्कुराता और उन दोनों के बालों को पकड़कर उसे नीचे खींचता ताकि वह उसे शीघ्र ही उसे इस तकलीफ से निजात दिला सकें।

कुछ ही दिनों में सोनू को अपनी ट्रेनिंग के लिए लखनऊ जाना था। इतने दिनों तक रहने के बाद सोनू सुगना और लाली से अलग होने वाला था। एक काबिल भाई के खुद से दूर होने से सुगना भी दुखी थी वह जाने से पहले सोनू का बहुत ख्याल रखना चाहती वह उसके बालों में तेल लगाती उसका सर दबाती। सोनू का सर कभी-कभी सुगना की चुचियों से छू जाता और एक अजीब सी सिहरन सोनू के शरीर में दौड़ जाती।


यद्यपि सुगना यह जानबूझकर नहीं करती परंतु अति उत्साह और अपने कोमल हाथों से ताकत लगाने की कोशिश करने में कई बार वह समुचित दूरी का ध्यान न रख पाती तथा कभी सोनू के कंधे, कभी सर से अनजाने में ही अपनी चुचियों को सटा देती। इस मादक स्पर्श से ज्यादा सिहरन किसको होती यह कहना कठिन था परंतु सुगना भी अपनी चुचियों के ज्यादा सटने से सतर्क हो जाती स्वयं को पीछे खींच लेती।

आखिरकार वह दिन आ गया जब सोनू को लखनऊ के लिए निकलना था शाम 7 बजे की ट्रेन थी। सोनू अपने कमरे में तैयार हो रहा था तभी लाली उसके अंडर गारमेंट्स लेकर उसके कमरे में और बोली

"ई हमरा बाथरूम में छूटल रहल हा"

सूरज ने हाथ बढ़ाकर अपने अंडर गारमेंट्स लेने की जगह लाली की कोमल हथेलियां पकड़ ली और उसे अपनी तरफ खींच लिया।

नाइटी में लिपटी हुई लाली सोनू के आगोश में आ गई..

सोनू ने अपने अंडरवियर को लाली को दिखाते हुए बोला

"अब ई बेचारा अकेले रही का?"

लाली को कोई उत्तर न सोच रहा था वह थोड़ा दुखी हुई थी और शायद इसी वजह से कोई उत्तर खोज पाने में असमर्थ थी..

सोनू के प्रश्न का उत्तर उससे ही हाथों ने दिया जो अब लाली की नाइटी को ऊपर की तरफ खींच रहे थे कुछ ही देर में लाली की पेंटी सोनी की उंगलियों में फंसी नीचे की तरफ आ रही थी।

इसी दौरान सुगना सोनू के स्त्री किए कपड़े लिए उसके कमरे जा रही थी तभी उसने सोनू के कमरे की तरफ खिड़की से देखा जो हॉल में खुलती थी। कमरे के अंदर के दृश्य को देखकर सुगना के कदम रुक गए और मुंह खुला रह गया।

उसका युवा भाई सोनू उसकी सहेली लाली की पैंटी को नीचे उतार रहा था। सुगना, लाली और सोनू दोनों के संबंधों से पूरी तरह अवगत थी परंतु आज जो दृश्य वह अपनी खुली आंखों से देख रही थी वह बेहद उत्तेजक था वह न जाने किस मोहपाश में बुत बनी.. अपनी खुली आंखों से अपने काबिल भाई की करतूत देखती रही..

सुगना की आंखों से अनजान सोनू लाली की पेंटी को लिए नीचे बैठता गया और लाली ने अपने पैर एक-एक करके ऊपर नीचे किए और कुछ ही देर में उसकी काली पैंटी सोनू की हाथों में थी उसने उसे अपने नथुनों से लगाया और उसकी मादक खुशबू को सूंघते हुए बोला..

"दीदी देखा अब जोड़ा लाल गइल.."

लाली ने उसके सर को सहलाते हुए बोला…

"तु बहुत बदमाश बाड़… कितना मन लागे ला तहार इ सब में"

लाली यह सब कह तो सोनू के बारे में रही थी परंतु यह बात उस पर स्वयं लागू होती थी वह सोनू से चुदने के लिए हमेशा तैयार रहती थी और शायद आज भी वह नाइटी में इसीलिए सोनू के पास आई थी। (बीती रात बुर् के बालों की वजह से मजा खराब हो गया था दरअसल सोनू जब उसकी चूत चाटने गया तो सोनू के होठों के बीच लाली के बुर बाल आ आ गया था जिससे लाली दुखी हो गई थी और सोनू के प्रयास करने के बावजूद वह अपराध बोध से मुक्त न हो पा रही थी।

परन्तु लाली आज पूरी तरह तैयार थी। उसकी फूली हुई चूत होठों पर प्रेम रस लिए चमक रही थी। सोनू लाली की नंगी जांघों के बीच चिकनी और पनियायी चूत को देखकर मदहोश हो गया…

इससे पहले की लाली कुछ बोलती सोनू ने लाली की बुर से अपने होंठ सटा दिए..

इधर लाली उत्तेजना में से भर रही थी उधर सुगना के पैर थरथर कांप रहे थे। वह अपने छोटे भाई को अपनी सहेली की बुर चूसते हुए अपनी आंखों से देख रही थी। उसका छोटा भाई जो कभी उसकी गोद में खेला था आज उसकी ही सहेली के भरे पूरे नितंबों को अपनी हथेलियों में दबोचे हुए उसकी बुर से मुंह सटाए अपनी जीभ बाहर निकाल कर उसकी बुर पर रगड़ रहा था। सुगना की अंतरात्मा कह रही थी कि अपनी आंखें हटा ले परंतु सुगना जड़ हो चुकी थी उसकी नजरें उस नजारे से हटने को तैयार न थी।

अचानक लाली को ध्यान आया कि उसने दरवाजा बंद न किया था। उसने फुसफुसाते हुए कहा..

"दरवाजा बंद कर लेवे द तहार सुगना दीदी आ जाई"

सोनू को अवरोध गवारा न था। उसने लाली की बात को अनसुना कर दिया परंतु लाली इस तरह खुले में सोनू के साथ वासना का खुला खेल नहीं खेलना चाहती थी सुगना किसी भी समय सोनू के कमरे में आ सकती थी। उसने सोनू को अलग किया। सोनू का लंड पूरी तरह खड़ा हो चुका था वह बिल्कुल देर करने के पक्ष में न था। फिर भी सुगना से अपनी शर्म के कारण वह उठकर दरवाजा बंद करने गया। तभी लाली की निगाह खिड़की की तरफ चली गई।

लाली सन्न रह गई सुगना की बड़ी-बड़ी कजरारी आंखें फैलाए लाली को देख रही थीं। लाली को यकीन ही नहीं हुआ कि सुगना उसे खिड़की से देख रही थी हे भगवान अब वह क्या करें…

जब तक लाली कुछ निर्णय ले पाती सोनू वापस आ चुका था और लाली की नाइटी ऊपर का सफर तय कर रही थी। लाली का मदमस्त गोरा बदन नाइटी के आवरण से बाहर आ रहा था लाली के हाथ यंत्रवत ऊपर की तरफ हो थे। लाली मन ही मन सोच रही थी क्या सुगना अब भी वहां खड़ी होगी … हे भगवान… क्या सुगना यह सब अपनी आंखों से देखेंगी… ना ना सुगना ऐसी नहीं है …वह सोनू को यह सब करते हुए नहीं देखेगी…. .आखिर वो उसका छोटा भाई है…

नाइटी उसके चेहरे से होते हुए बाहर आ गई उसकी आंखों पर एक बार फिर रोशनी की फुहार पड़ी पर लाली ने अपनी आंखें बंद कर लीं …वह मन ही मन निर्णय ले चुकी थी…

शेष अगले भाग में…
Mzedar update ab Sonu ubhar ke samne aaya h or jimmedari bhi uthane ka prayas krega jo ek age hone ke bad samjhdari a jati h bhi.....
 

Lovely Anand

Love is life
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अद्भुत कहानी
Dhanyvad Dharmendra ji e aapki comment dhire dhire chhote hote ja rahe hai. ऐसा लगता है जैसे कहानी से आपकी अपेक्षाएं और इसे लेकर आपके सुझाव समाप्त हो गए हैं या फिर कुछ और बात है जुड़े रहे।
आपके शब्दों का अन्दाज निराला है , और कहानी में किसी भी नए मोड का पूर्वानुमान पाठको के लिए शायद संभव ही नही है। सरयू सुगना मिलन का भी पूर्वानुमान ही लगाया था मैने, परन्तु नही हुआ तो अच्छा हुआ। क्यों कि सोनू जैसे जवान मर्द के होते बूढे का क्या काम ?
सुगना की कडाही की चासनी के लिए उचित जीभ तलाशिए।
तभी कहानी से न्याय होगा।
सोनी को भी खेल में उतारिए अब.....
अगले अपडेट का इन्तजार है।।
आप इस कहानी के पाठक शुरुआत से रहें और आपने यह महसूस किया होगा की कहानी की मूल रूपरेखा में बिना छेड़छाड़ की आप सब के सुझावों को यथासंभव समावेशित करना मेरी प्राथमिकता रही है यूं ही जुड़े रहे और अपने सुझाव तथा समीक्षा देते रहे
What a update Sir, Enjoyed thoroughly, Great writing skills, Fabulous expressions of each siblings. Kudos to you
बहुत-बहुत धन्यवाद जी यदि आप पात्रों की भावनाओं से स्वयं को जोड़ पाते हैं तो सच मुझे अपने लेखन पर थोड़ा और विश्वास जगेगा जुड़े रहें।
Shandar update sirji
धन्यवाद
Bahut hi behtareen update
धन्यवाद
मजेदार एवम उत्तेजक अपडेट
आपको भी धन्यवाद
बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर लाजवाब अपडेट है भाई मजा आ गया
आखिर कर सोनू sdm बन गया है सुगना ने सोनू और लाली को देख ही लिया है देखते हैं आगे क्या होता है
सोनू लग रहा है इस कहानी में अहम भूमिका निभाएगा देखते हैं नियति उसे क्या जिम्मेदारी देती है
इंतजार रहेगा अगले अपडेट का....
जरूर
Mzedar update ab Sonu ubhar ke samne aaya h or jimmedari bhi uthane ka prayas krega jo ek age hone ke bad samjhdari a jati h bhi.....
लगता है आपने भी सोनू को जिम्मेदारी देने का निर्णय कर लिया है जुड़े रहे और यूं ही अपने सुझाव देते रहे




मेरे शान्त पाठकों से हर बार की तरह फिर अनुरोध है कि वह खुलकर सामने आए और अपने विचार प्रस्तुत करें मुझे सिर्फ और सिर्फ आप सब की प्रतिक्रिया है पढ़ने में दिलचस्पी है और वही कहानी को आगे बढ़ाने का मूल मंत्र जुड़े रहे और इस मनोरंजक कहानी को आगे बढ़ाने में अपना सहयोग करें....
 
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Dhanyvad Dharmendra ji e aapki comment dhire dhire chhote hote ja rahe hai. ऐसा लगता है जैसे कहानी से आपकी अपेक्षाएं और इसे लेकर आपके सुझाव समाप्त हो गए हैं या फिर कुछ और बात है जुड़े रहे।

आप इस कहानी के पाठक शुरुआत से रहें और आपने यह महसूस किया होगा की कहानी की मूल रूपरेखा में बिना छेड़छाड़ की आप सब के सुझावों को यथासंभव समावेशित करना मेरी प्राथमिकता रही है यूं ही जुड़े रहे और अपने सुझाव तथा समीक्षा देते रहे

बहुत-बहुत धन्यवाद जी यदि आप पात्रों की भावनाओं से स्वयं को जोड़ पाते हैं तो सच मुझे अपने लेखन पर थोड़ा और विश्वास जगेगा जुड़े रहें।

धन्यवाद

धन्यवाद

आपको भी धन्यवाद

सोनू लग रहा है इस कहानी में अहम भूमिका निभाएगा देखते हैं नियति उसे क्या जिम्मेदारी देती है

जरूर

लगता है आपने भी सोनू को जिम्मेदारी देने का निर्णय कर लिया है जुड़े रहे और यूं ही अपने सुझाव देते रहे




मेरे शान्त पाठकों से हर बार की तरह फिर अनुरोध है कि वह खुलकर सामने आए और अपने विचार प्रस्तुत करें मुझे सिर्फ और सिर्फ आप सब की प्रतिक्रिया है पढ़ने में दिलचस्पी है और वही कहानी को आगे बढ़ाने का मूल मंत्र जुड़े रहे और इस मनोरंजक कहानी को आगे बढ़ाने में अपना सहयोग करें....
Hero jawan na ho to mza bhi nhi aata h or jab heroin jawan hai to uski ummed bhi jyada hogi lene ki....
 

snidgha12

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अद्भुत लेखन नहीं वरन अद्भुत चित्रण... अद्भुत कृति... अद्भुत, अद्भुत... सभी अद्भुत... अद्वितीय... मनोहारी...:love3::love3::love3::love3::love3:

Lovely Anand जी आप नवयुग के मस्तराम हैं...
 

Lutgaya

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अद्भुत लेखन नहीं वरन अद्भुत चित्रण... अद्भुत कृति... अद्भुत, अद्भुत... सभी अद्भुत... अद्वितीय... मनोहारी...:love3::love3::love3::love3::love3:

Lovely Anand जी आप नवयुग के मस्तराम हैं...
सहमत हूं मैं भी आपसे
 
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