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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
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Lovely Anand

Love is life
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Bhai sahab update kb tk milega
Bhai abhi score 19/20 hai
I am still with my words.atl east upto few episodes
 

snidgha12

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Napster

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भाग 81

सोनू का ऑटो बाहर आकर रुक चुका था। दरवाजा सटा हुआ था सोनू ने अंदर आकर अपनी बहनों को सरप्राइस देने की सोची और वह दरवाजा धीरे से खोल कर अंदर आ गया। अंदर कमरे में सुगना के चूड़ियों की खनकने की आवाज आ रही थी। सोनू भली भांति जानता था कि घर में सिर्फ और सिर्फ उसकी सुगना दीदी ही भरपूर चूड़ियां पहनती हैं । लाली ने विधवा होने के बाद चूड़ी पहनना लगभग छोड़ कर दिया था और सोनी वह तो आधुनिक युवती थी हाथों में 1या 2 कंगन डालकर वह मस्त रखती थी।

चूड़ियों के खड़कने से सोनू ने अंदाज कर लिया कि सुगना दीदी उसी कमरे में है..अचानक उसका ध्यान उस खुली हुई खिड़की पर गया…. और सोनू ने अपनी आंखे उस दरार पर टिका दीं….

सोनू की आंखें फटी रह गईं…

शेष अगले भाग में…

सोनू ने आज वही दृश्य देखा जिसकी कल्पना वह कई दिनों से कर रहा था सुगना की भीगी हुई नाइटी धीरे-धीरे ऊपर उठ रही थी सुगना ने अपनी पीठ उसी खिड़की की तरफ की हुई थी जिससे सोनू अंदर झांक रहा था। सुगना स्वाभाविक रूप से अपने कपड़े बदल रही थी उसे क्या पता था खिड़की पर उसका छोटा भाई नजरों में कामुक प्यास लिए उसे निहार रहा था। जैसे-जैसे नाइटी ऊपर उठती गई.. सुगना की मांसल और गदराई जांघें सोनू की निगाह में आती गईं।


वह पैरों की गोरी पिंडलियां ,.…… जांघों और पिंडलियों के बीच वह बेहद लचीला और दो-तीन धारियों वाला घुटने के पीछे का भाग……सोनू की दृष्टि उस पर अटक गई.. सोनू मंत्रमुग्ध होकर ललचाई निगाहों से एक टक देखे जा रहा था.. कुछ ही पलों में नाइटी सुगना के नितंबों को अनावृत्त कर चुकी थी।

उसी दौरान सुगना की नाइटी उसके मंगलसूत्र में फस गई। सुगना उसे छुड़ाने का प्रयास करने लगी और कुछ देर तक सोनू की नजरों के सामने अपने भरे पूरे मादक नितंबों को अनजाने में ही परोस दिया। सोनू कामुक निगाहों से उसे देख रहा था उसकी पुतलियां फैल चुकी थी वह इस खूबसूरत दृश्य को अपने जहन में बसा लेना चाहता था। वह बिना पलक झपकाए मादक नितंबों के नीचे जांघों के बीच बने त्रिकोण पर अपना ध्यान केंद्रित किए हुए था। सुगना की बुर के होंठों ने और जांघों के बीच जोड़ ने एक अनोखी दिल की आकृति बना दी थी।

सुगना का दिल जितना खूबसूरत और विशाल था उतना ही खूबसूरत यह छोटा दिल भी था। इस अनोखे दिल के शीर्ष पर खड़ी सुगना की बुर न जाने कितना प्रेम रस छुपाए अपने प्रेमी का इंतजार कर रही थी… ।

कुछ ही देर में सुगना ने मंगलसूत्र को नाइटी से अलग कर लिया और उसकी नाइटी धीरे-धीरे ऊपर उठती गई जब तक कि वह नाइटी उसकी पीठ को अनावृत करते हुए गले तक पहुंचती…

हाल से मामा मामा की आवाज आने लगी। बच्चों ने सोनू को देख लिया था और वह मामा मामा चिल्लाने लगे थे।


सुगना बच्चों की चहल-पहल से अचानक पलटी और और अनजाने में ही अपनी भरी-भरी मदमस्त चुचियों को सोनू की निगाहों के सामने परोस दिया परंतु सोनू का दुर्भाग्य वह सिर्फ एक झलक उन चूचियों को देख पाया और उसे न चाहते हुए भी अपने भांजो की तरफ मुड़ना पड़ा जो अब उसके करीब आ चुके थे।

सुगना ने खिड़की की तरफ देखा और सोनू को खिड़की के पास खड़े घूमते हुए देखा। सुगना हतप्रभ रह गई।


क्या सोनू अंदर झांक रहा था? हे भगवान क्या सच में उसने अंदर झांका होगा? नहीं नहीं वह ऐसा नहीं कर सकता…आने के पश्चात तो वह अपने भांजों में खोया होगा… परंतु सुगना के मन में एक अनजाना डर समा गया था. वह खिड़की की तरफ गई और पर्दे को पूरी तरह बंद कर वापस कपड़े बदलने लगी उसने फटाफट अपने वस्त्र पहने.. उसका कलेजा धक-धक कर रहा था..

सुगना कमरे से बाहर आने की हिम्मत जुटा रही थी परंतु शर्म उसके पैरों में बेड़ियां बनकर उसका रास्ता रोक रही थी।

सोनू वैसे तो बच्चों के साथ खेल रहा था परंतु उसका ध्यान बार-बार उस कमरे की तरफ जा रहा था। आज पहली बार उसका मन बच्चो के साथ न लग रहा था।

इस अनोखी वासना ने सोनू को बदल दिया था।

सोनी हाल में आ चुकी थी। उसने सोनू के चरण छुए और एक बार फिर अपनी कृतज्ञता जताने के लिए वह सोनू के गले लग गई। .. सोनी की मुलायम चुचियों ने सोनू के सीने पर दस्तक दी परंतु उसका दिलो दिमाग कहीं और खोया हुआ था…सोनू ने लाली के भी चरण छुए और अपने बैग से निकाल कर ढेर सारी मिठाइयां और खिलौने बच्चों में बांटने लगा…. पर ध्यान अब भी बार-बार सुगना के दरवाजे की तरफ जा रहा था.


आखिरकार सुगना कमरे से बाहर आई। सोनू ने सुगना के चरण छुए… सुगना ने उसे खुश रहो का कर आशीर्वाद दिया…सुगना के घागरे के पीछे से आ रही साबुन और सुगना की मादक खुशबू को सोनू कुछ देर यूं ही सूंघता रहा ..सुगना ने उसके बालों पर हाथ फेरते हुए कहा

" अब उठ भी जो .."

सोनू उठ गया परंतु आज सुगना ने सोनू को गले न लगाया शायद आज भाई बहन के पावन प्यार पर ग्रहण लग चुका था। सुगना अपराध बोध से ग्रस्त थी।


बच्चे तो चॉकलेट और मिठाइयों में ही मस्त हो गए सुगना और लाली ने अपने-अपने गिफ्ट पैकेट प्राप्त किए । सोनी के हाथ में भी गिफ्ट पैकेट था परंतु यह पैकेट लाली और सुगना के पैकेट से अलग था कभी-कभी पैकिंग का आकर्षण गिफ्ट की अहमियत को बढ़ा या घटा देता है सोनी निश्चित ही अपने गिफ्ट की तुलना और सुगना को मिले गिफ्ट से कर रही थी नियति मुस्कुरा रही थी शायद उसने सोनी के साथ अन्याय कर दिया था।

आखिर सोनू की उस बहन ने भी अनजाने में अपने भाई के लिए लखनऊ के गेस्टहाउस में जो कुछ परोसा था वह निश्चित ही बेहद उत्तेजक था परंतु परंतु सोनू का दिलो-दिमाग अभी सुगना पर अटका था।

सोनू और सुगना का साथ आज का न था। दोनों को युवा हुए कई वर्ष बीत चुके थे और सोनू सुगना की सहेली लाली से जैसे-जैसे अंतरंग होता गया सुगना के प्रति उसका आकर्षण एक अलग रूप लेता गया।

यह बात निश्चित थी कि सोनू ने सुगना से अंतरंग होने की न कभी कोशिश कि नहीं कभी कभी उसके ख्यालों में वह आई पर एक झोंके की तरह। सोनू के विचारों का भटकाव स्वभाविक था दरअसल सुगना एक मदमस्त युवती थी जो स्वाभाविक रूप में उन सभी मदों के आकर्षण का केंद्र थी जिनकी जांघों के बीच हरकत होती थी। सोनू यह बात जानता था कि वह उसकी बड़ी बहन है और यही बात उसके ख्यालों पर लगाम लगा देती..

सुगना का व्यक्तित्व सोनू के छिछोरापन पर तुरंत लगाम लगा देता और वह एक बार फिर अपनी निगाहों में सुगना की बजाय लाली के कामुक अंगो की कल्पना करने लगता…

लाली और सुगना लाली और सुगना दोनों अपने-अपने गिफ्ट पैकेट लेकर अपने-अपने कमरों में आ गईं। दोनों में लखनऊ से मंगाए गए कपड़े देखने चाहत थी। सुगना उस खूबसूरत सूट को देखकर खुश हो गई आज पहली बार सोनू ने उसके लिए कपड़े पसंद किए थे वह भी इतने खूबसूरत ।

सुगना उसे अपने हाथों में लेकर उसकी कोमलता का एहसास करने लगे तभी उसका ध्यान सलवार के नीचे पड़ी खूबसूरत जालीदार ब्रा और पेंटी पर पड़ा और वह चौंक गई… …ब्रा और पेंटी को देखकर सुगना को यकीन ही नहीं हुआ कि सोनू ऐसा कार्य कर सकता है।

ठीक उसी समय सोनी के कमरे में आने की आहट हुई सुगना ने फटाफट उस ब्रा और पेंटी को तकिए के नीचे छुपा दिया और सूट को अपने हाथों में ले पीछे पलटी और सोनी को दिखाते हुए बोली


"देख कईसन बा सोनुआ ले आइल बा…"

सोनी ने व सूट अपने हाथों में ले लिया और उसकी कोमलता और डिजाइन को देखकर खुश हो गई

" कितना सुंदर बा सोनू भैया हमरा खातिर ना ले ले आइले हा"


सुगना ने एक पल भी सोचे बिना कहा

" तोहरा ठीक लागत बा ले ले हम फिर मंगा लेब"

सुगना का यहीं बड़प्पन उसे बाकी लोगों से अलग करता था…. सोनी ने सुगना के हाथों में सूट को देते हुए कहा "ना…ई सूट दीदी तोरा पर बहुत अच्छा लागी आज इहे पहन ले"

सुगना को भी वह सूट बेहद पसंद आया था परंतु उसकी शर्म उसे रोक रही थी । सोनी के आग्रह पर उसने सूट पहने का फैसला कर लिया। परंतु वह ब्रा और पेंटी उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि सोनू ने ऐसा क्यों किया होगा? उसने तकिया हटाया और एक बार फिर उस खूबसूरत ब्रा और पेंटी को देखने लगी… यह संयोग कहें या सोनू की किस्मत ब्रा और पेंटी की कढ़ाई सूट से थोड़ा-थोड़ा मैच करती थी। सुगना को एक पल के लिए लगा जैसे यह जालीदार ब्रा और पेंटी इसी सूट का हिस्सा थी। सुगना सहज हो गई परंतु फिर भी अपने भाई द्वारा लाई गई ब्रा और पेंटी को पहनने की हिम्मत न जुटा पाईं…उसे यह कार्य बेहद शर्मनाक लगा.

सुगना ने एक बार फिर अपने वस्त्र उतारे और सोनू द्वारा लाए गए सलवार सूट को धारण करने लगी । चिकनकारी किया हुआ वह शिफान के सूट बेहद खूबसूरत था जैसे जैसे वह सूट सुगना के मादक और कमनीय काया पर चढ़ता गया वह अपनी खूबसूरती को और बढ़ाता गया।

वस्त्रों की खूबसूरती उसे धारण करने वाले पर निर्भर करती है। सुगना के कोमल बदन को छूकर सोनू द्वारा लाया गया सूट भी धन्य हो गया।

सुंदर वस्त्र सुंदर स्त्री पर दोगुना असर दिखाते हैं यही हाल सोनू द्वारा लाए गए सूट का था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे इस सूट का सृजन ही सुगना के लिए हुआ हो। सूट का बाजू लगभग पारदर्शी था जो सुगना की बाहों को आवरण देने में कामयाब था बाजू पर की गई चिकनकारी सुगना की मांसल भुजाओं को और खूबसूरत बना रही थी।


सीने पर सूट की फिटिंग देखने लायक थी ऐसा लग रहा था जैसे दर्जी ने सुगना की चूचियों की कल्पना कर उनके लिए जगह पहले से छोड़ रखी थी और सुगना की कसी हुई चूचियां सूट में बने जगह पर जाकर पूरी तरह सेट हो गई। सुगना की पतली कमर पर सटा हुआ सूट बेहद खूबसूरत लग रहा था सूट का पिछला हिस्सा सुगना के नितंबों को ढक रहा था और अगला उस प्रेम त्रिकोण को जिसकी तलाश उसका भाई सोनू अब अधीर हो रहा था।

सुगना ने स्वयं को आईने में देखा एक पल के लिए उसे लगा जैसे उसकी मदमस्त काया पर किसी ने खूबसूरत पेंटिंग कर दी हो..

सुगना स्वयं अपनी चुचियों को देखकर प्रसन्न हो गई उसे यकीन ही नहीं हो रहा था। सलवार सूट मैं उनका कसाव और आकार और भी उत्तेजक हो गया था।

सुगना ने अपने बाल सवारे । मांग के एक कोने में हमेशा की तरह सिंदूर का टीका किया। अपने मंगलसूत्र को गले पर सजाया और हाल में आने लगी। अचानक सुगना को सोनू का ध्यान आया और सुगना ने दुपट्टे से अपनी खूबसूरत चूचियों को ढक लिया और हाल में आ गई।

सुगना सचमुच बेहद खूबसूरत लग रही थी जैसे ही सोनू ने सुगना को देखा उसकी आंखें सुगना पर टिक गई और वह उसे सर से पैर तक निहारने लगा। सुगना की आंखें स्वतः ही शर्म से झुक गई.. .


सोनू खुद को रोक न पाया और बोला

"अरे दीदी सूट तोरा पर कितना अच्छा लागत बा" लाली ने भी सोनू की बात पर हां में हां मिलाई

"लागा ता सूट तोहरे खातिर बनल रहल हा" …लाली ने सुगना से कहा

" देख हम कहत ना रहनी की सोनू अब बड़ हो गईल बा दे त ओकरा के लइका समझेले"

सुगना मुस्कुरा दी और उस मुस्कुराहट ने उस सुंदरी के खूबसूरत चेहरे पर चार चांद लगा दिए…

अब तक सोनी ने हाल में सारी तैयारियां पूरी कर ली थी चादर को मोड़ कर बैठने का इंतजाम कर दिया गया था सारे बच्चे लाइन से बैठे हुए थे..

आइए मैं पाठकों को एक बार फिर इन बच्चों की याद दिला देता हूं जो इस कहानी के उत्तरार्ध में अपनी महती भूमिका निभाएंगे..

सुगना के घर में


  1. सुगना और सरयू सिंह के मिलन से जन्मा : सूरज…उम्र ..4 वर्ष लगभग..
  2. लाली और सोनू के मिलन से पैदा हुई : मधु उम्र लगभग 1 वर्ष कुछ माह ( सुगना इसे अपनी पुत्री और सूरज को उस अनजाने श्राप से मुक्ति दिलाने वाली उसकी छोटी बहन समझती है)
  3. रतन और बबीता की पुत्री मिंकी जो अब मालती नाम से सुगना के साथ रह रही है उम्र लगभग 6 वर्ष..
लाली के घर में

  1. राजेश और लाली का पुत्र : राजू, उम्र लगभग 6 वर्ष
  2. राजेश और लाली की पुत्री: रीमा, उम्र लगभग 4 वर्ष
  3. राजेश के वीर्य,सरयू सिंह की मेहनत और सुगना के गर्भ से जन्मा: राजा…..उम्र 1 वर्ष कुछ माह…
सारे लड़के चादर पर बैठे हुए थे। सोनू बीच में बैठा था और उसकी गोद में छोटा राजा था सोनू के एक तरफ राजू और दूसरी तरफ सूरज बैठा था।

लाली भी मधु को गोद में लेकर करीब ही बैठी थी। मालती और रीमा ने अपने तीनों भाइयों को राखी बांधी…अब बारी मधु की थी..

लाली मधु से सूरज के हाथ पर राखी बंधवाने लगी सुगना तड़प उठी…. भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को वह भलीभांति समझती थी…उसका दिल कह रहा था कि वह मधु को सूरज की कलाई पर राखी बांधने से रोक ले….. आखिर मधु को कालांतर में उससे संभोग कर उसे श्राप मुक्त करना था…

सुगना ने कहा अरे छोड़ दे "मधु अभी छोट बीया ओकरा का बुझाई"

परंतु लाली ना मानी उसने बेहद आत्मीयता से कहा "अरे ई सोनू के सबसे छोटे और प्यारी बहन हा ई ना बांधी त के बांधी"

और आखिरकार सूरज की कलाई पर छोटी मधु ने राखी बांध दी सुगना मन मसोसकर रह गई।

अब स्वयं उसकी बारी थी…

सुगना अपने हाथों में पूजा की थाली लिए सोनू की तरफ बढ़ रही थी। नजरों में ढेर सारा प्यार और अपने काबिल भाई की मंगल कामना सहित… उसने सोनू की आरती की माथे पर टीका लगाया और सोनू की कलाई पर राखी बांधने लगी.. इसी दौरान सुगना का दुपट्टा न जाने कब झूल गया और सूट में छुपी हुई चूचियां झुकने की वजह से अपने आकार का प्रदर्शन करने लगीं।


उन गोरी चूचियों के बीच गहरी घाटी पर सोनू की नजरें चली गईं। बेहद मादक दृश्य था अपनी बड़ी बहन की भरी-भरी चूचियों के बीच उस गहरी घाटी में सोनू की निगाहें न जाने क्या खोज रही थी। वह एक टक उसे घूरे जा रहा था। इस नयन सुख का असर सोनू की जांघों के बीच भी हुआ और उसका छोटा शेर भी इस कार्यक्रम में शरीक होने के लिए उठ खड़ा हुआ।

कुछ ही देर में सुगना ने सोनू की निगाहों को ताड़ लिया। उसे बेहद शर्म आई … और उसने अपना दुपट्टा ऊपर खींच लिया। उसने सोनू के गाल पर चपत लगाते हुए बोला…

"कहां भुलाईल बाड़े आपन मुंह खोल" और अपने हाथों में लड्डू लेकर उसने सोनू के मुंह में एक लड्ड भर दिया..

सोनू को अपने पकड़े जाने का है अहसास हो चुका था परंतु वह कुछ ना बोला और बड़ी मुश्किल से उस लड्डू को अपने मसूड़े से तोड़ने का प्रयास करने लगा.. लड्डू का आकार कुछ ज्यादा ही बड़ा था और सुगना ने आनन-फानन में उसे पूरा लड्डू खिला दिया था।

सोनी ने भी सोनू की कलाई पर राखी बांधी। इसी दौरान लाली ने मधु को सुगना की गोद में दे दिया और उठकर रसोई घर की तरफ चली गई । लाली आज सोनी की उपस्थिति में असमंजस में थी। जब से लाली ने सोनू को अपनी जांघों के बीच स्थान दिया था तब से उसने उसकी कलाई पर राखी बांधना बंद कर दिया था।


परंतु सोनी ने लाली को न छोड़ा और अंततः सोनू की कलाई पर लाली से भी राखी बंधवा ही दी बंधन की पवित्रता नष्ट हो रही थी…. सोनू की निगाहों में भी और सुगना की निगाहों में भी…नियति मजबूर थी जिस खेल में विधाता ने उसे धकेल दिया था उसे चुपचाप यह खेल देखना था।

सोनू अपने तीनों बहनों के आकर्षण का केंद्र था आज उसकी जमकर आव भगत हो रही थी जब-जब सोनू सोनी को देखता वह उसके भविष्य को लेकर खुश हो जाता। विकास से बातचीत करने के पश्चात सोनु आश्वस्त हो गया था कि विकास सोनी को धोखा नहीं देगा और सोनू ने सोनी को दिल से माफ कर दिया था….


शाम होते होते भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का असर कम होने लगा और सोनू लाली के साथ एकांत खोजने में लग गया…

जैसे ही सोनी बच्चों को लेकर बाहर घुमाने गई…

लाली और सोनू एक बार फिर उसी कमरे में आ गए.. इस बार खिड़की पर से पर्दा हटाने का कार्य स्वयं सोनू ने अपने हाथों से किया और लाली के शरीर से वही सूट हटाने लगा जिसे वह जिसे वह आज सुबह ही लाया था.

सोनू के मन में एक बार फिर सुगना घूमने लगी

.. क्या सुगना दीदी आज भी आएंगी? सोनू की निगाहें बार-बार खिड़की की तरफ जाती और बैरंग लौट आती समय कम था सोनी कभी भी वापस आ सकती थी।

"ए सोनू रात में करिहे काहे जल्दी आई बाड़?" लाली को क्या पता था कि सोनू के मन में हवस भरी हुई थी पिछले कुछ महीनों में उसमें इन उत्तेजक पलों को सिर्फ ख्वाबों में जीया था और जब यह पल उसके सामने हकीकत में उपलब्ध थे वह उसे तुरंत भाग लेना चाहता था…

"रात में फेर से"


सोनू ने बिना समय गवाएं लाली को घोड़ी बना दिया और उसकी जालीदार पेंटी को एक तरफ खिसका कर अपना लंड उसकी फूली बूर में उतार दिया…

लाली की बुर अभी पनियाइ न थी.. जहा पहले उसकी बुर को सोनू के चुंबनओं का स्पर्श प्राप्त होता था और सोनू की जीभ उसकी बुर की दरारों को फैला कर अंदर से प्रेम रस खींचती थी.. वही आज सोनू अधीर होकर लाली को आनन-फानन में चोदने के लिए तैयार था लाली ने सोनू को निराश ना किया और अपनी बुर को यथासंभव फैलाने की कोशिश की परंतु नाकामयाब रही..

सोनू के लंड ने अपना रास्ता जबरदस्ती तय किया और लाली "आह….." की आवाज के साथ कराह उठी…

लाली की यह कराह कुछ ज्यादा ही तेज थी शायद यह उसके द्वारा अनुभव किए जा रहे दर्द के अनुपात में थी..

"सोनू…. तनी धीरे से ..दुखाता" लाली ने फुसफुसा कर कहा..

"बस बस हो गइल"

लाली की आह की आवाज सुनकर सुगना सचेत हो गई। एक पल के लिए उसे लगा जैसे लाली किसी मुसीबत में थी परंतु जैसे ही वह कमरे की तरफ बढ़ी.. उसे सोनू की आवाज सुनाई दे गई। सुगना के मन में उस दिन के दृश्य घूम गए….

एक बार के लिए उसके मन में आया कि वह एक बार फिर खिड़की से झांक कर देखें परंतु वह हिम्मत न जुटा पाई और कुछ देर उसी अवस्था में खड़े रहकर वापस अपने कमरे में आ गई.. उसने कमरे का दरवाजा बंद न किया…और अपने कान उस कमरे की तरफ लगा लिए जिसमें सोनू और लाली की प्रेम कीड़ा चल रही थी..

सुगना के दिमाग में उसे कमरे के अंदर झांकने से रोक लिया था परंतु दिल …. ने सुगना के कामों पर नियंत्रण कर लिया था जो अब सोनू और लाली की आवाज सुनने का प्रयास कर रहे थे..

सोनू की निगाहें बार-बार खिड़की की तरफ जा रही थी लाली भी धीरे धीरे गर्म हो चली थी लंड के आवागमन ने उसके बुर् के प्रतिरोध को खत्म कर दिया था और लाली अब पूरे आनंद में थी…

वासनाजन्य उत्तेजना कभी-कभी वाचाल कर देती है..लाली ने सोनू से कहा

"जल्दी कर कही तहार सुगना दीदी मत आ जास" लाली ने यह बात कुछ ज्यादा तेजी कही जो सुगना के कानो तक भी पहुंची…

सुगना का नाम सुनकर सोनू और उत्साह में आ गया वो तो न जाने कब से खिड़की पर उसका इंतजार कर रहा था। और सोनू ने लाली की कमर पर अपने हाथों का कसाव बढ़ा दिया और लंड को और गहराई तक उतार दिया..

उधर सुगना लाली की शरारत और खुले आमंत्रण को बखूबी समझ रही थी पर वो अपनी लज्जा और आज रक्षाबंधन की पवित्रता को नजरअंदाज न कर पाई और वह अपने कमरे में खड़ी रही…

"सुगना दीदी….. ऊ काहे आइहें…?" सोनू ने अपने मुंह से सुगना का नाम लिया और उधर सोनू के लंड ने लाली के गर्भाशय को चूमने की कोशिश की शायद यह सुगना के नाम का असर था…


सोनू यही न रूका उसने अपनी चूदाई की रफ्तार बढ़ा दी…और कमरे में थप थप …थपा… थप की आवाज गूंजने लगी लाली की जांघें सोनू की जांघों से टकरा रही थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सोनू सुगना को बुलाने का पूरा प्रयास कर रहा था… पर सुगना अपनी धड़कनों को काबू में करने का प्रयास कर रही थी.. पर मन में कशमकश कायम थी…दिमाग के दिशा निर्देशों को धता बताकर चूचियां तनी हुई थीं और बुर संवेदना से भरी लार टपका रही थी…

शेष अगले भाग में…
पुनः एक बहूत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
सोनु ने सुगना के लिये लाये हुए सलवार सूट में सुगना कैसी दिख रही है यह सुंदर वर्णन
चलो रक्षाबंधन तो निपट गया उस पश्चात सोनु और लाली का चुदाई का खेल चालू और सुगना की बुर से रस प्रवाह शुरु
आगे आगे देखो होता है क्या
 

Lutgaya

Well-Known Member
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भाग 81

सोनू का ऑटो बाहर आकर रुक चुका था। दरवाजा सटा हुआ था सोनू ने अंदर आकर अपनी बहनों को सरप्राइस देने की सोची और वह दरवाजा धीरे से खोल कर अंदर आ गया। अंदर कमरे में सुगना के चूड़ियों की खनकने की आवाज आ रही थी। सोनू भली भांति जानता था कि घर में सिर्फ और सिर्फ उसकी सुगना दीदी ही भरपूर चूड़ियां पहनती हैं । लाली ने विधवा होने के बाद चूड़ी पहनना लगभग छोड़ कर दिया था और सोनी वह तो आधुनिक युवती थी हाथों में 1या 2 कंगन डालकर वह मस्त रखती थी।

चूड़ियों के खड़कने से सोनू ने अंदाज कर लिया कि सुगना दीदी उसी कमरे में है..अचानक उसका ध्यान उस खुली हुई खिड़की पर गया…. और सोनू ने अपनी आंखे उस दरार पर टिका दीं….

सोनू की आंखें फटी रह गईं…

शेष अगले भाग में…

सोनू ने आज वही दृश्य देखा जिसकी कल्पना वह कई दिनों से कर रहा था सुगना की भीगी हुई नाइटी धीरे-धीरे ऊपर उठ रही थी सुगना ने अपनी पीठ उसी खिड़की की तरफ की हुई थी जिससे सोनू अंदर झांक रहा था। सुगना स्वाभाविक रूप से अपने कपड़े बदल रही थी उसे क्या पता था खिड़की पर उसका छोटा भाई नजरों में कामुक प्यास लिए उसे निहार रहा था। जैसे-जैसे नाइटी ऊपर उठती गई.. सुगना की मांसल और गदराई जांघें सोनू की निगाह में आती गईं।


वह पैरों की गोरी पिंडलियां ,.…… जांघों और पिंडलियों के बीच वह बेहद लचीला और दो-तीन धारियों वाला घुटने के पीछे का भाग……सोनू की दृष्टि उस पर अटक गई.. सोनू मंत्रमुग्ध होकर ललचाई निगाहों से एक टक देखे जा रहा था.. कुछ ही पलों में नाइटी सुगना के नितंबों को अनावृत्त कर चुकी थी।

उसी दौरान सुगना की नाइटी उसके मंगलसूत्र में फस गई। सुगना उसे छुड़ाने का प्रयास करने लगी और कुछ देर तक सोनू की नजरों के सामने अपने भरे पूरे मादक नितंबों को अनजाने में ही परोस दिया। सोनू कामुक निगाहों से उसे देख रहा था उसकी पुतलियां फैल चुकी थी वह इस खूबसूरत दृश्य को अपने जहन में बसा लेना चाहता था। वह बिना पलक झपकाए मादक नितंबों के नीचे जांघों के बीच बने त्रिकोण पर अपना ध्यान केंद्रित किए हुए था। सुगना की बुर के होंठों ने और जांघों के बीच जोड़ ने एक अनोखी दिल की आकृति बना दी थी।

सुगना का दिल जितना खूबसूरत और विशाल था उतना ही खूबसूरत यह छोटा दिल भी था। इस अनोखे दिल के शीर्ष पर खड़ी सुगना की बुर न जाने कितना प्रेम रस छुपाए अपने प्रेमी का इंतजार कर रही थी… ।

कुछ ही देर में सुगना ने मंगलसूत्र को नाइटी से अलग कर लिया और उसकी नाइटी धीरे-धीरे ऊपर उठती गई जब तक कि वह नाइटी उसकी पीठ को अनावृत करते हुए गले तक पहुंचती…

हाल से मामा मामा की आवाज आने लगी। बच्चों ने सोनू को देख लिया था और वह मामा मामा चिल्लाने लगे थे।


सुगना बच्चों की चहल-पहल से अचानक पलटी और और अनजाने में ही अपनी भरी-भरी मदमस्त चुचियों को सोनू की निगाहों के सामने परोस दिया परंतु सोनू का दुर्भाग्य वह सिर्फ एक झलक उन चूचियों को देख पाया और उसे न चाहते हुए भी अपने भांजो की तरफ मुड़ना पड़ा जो अब उसके करीब आ चुके थे।

सुगना ने खिड़की की तरफ देखा और सोनू को खिड़की के पास खड़े घूमते हुए देखा। सुगना हतप्रभ रह गई।


क्या सोनू अंदर झांक रहा था? हे भगवान क्या सच में उसने अंदर झांका होगा? नहीं नहीं वह ऐसा नहीं कर सकता…आने के पश्चात तो वह अपने भांजों में खोया होगा… परंतु सुगना के मन में एक अनजाना डर समा गया था. वह खिड़की की तरफ गई और पर्दे को पूरी तरह बंद कर वापस कपड़े बदलने लगी उसने फटाफट अपने वस्त्र पहने.. उसका कलेजा धक-धक कर रहा था..

सुगना कमरे से बाहर आने की हिम्मत जुटा रही थी परंतु शर्म उसके पैरों में बेड़ियां बनकर उसका रास्ता रोक रही थी।

सोनू वैसे तो बच्चों के साथ खेल रहा था परंतु उसका ध्यान बार-बार उस कमरे की तरफ जा रहा था। आज पहली बार उसका मन बच्चो के साथ न लग रहा था।

इस अनोखी वासना ने सोनू को बदल दिया था।

सोनी हाल में आ चुकी थी। उसने सोनू के चरण छुए और एक बार फिर अपनी कृतज्ञता जताने के लिए वह सोनू के गले लग गई। .. सोनी की मुलायम चुचियों ने सोनू के सीने पर दस्तक दी परंतु उसका दिलो दिमाग कहीं और खोया हुआ था…सोनू ने लाली के भी चरण छुए और अपने बैग से निकाल कर ढेर सारी मिठाइयां और खिलौने बच्चों में बांटने लगा…. पर ध्यान अब भी बार-बार सुगना के दरवाजे की तरफ जा रहा था.


आखिरकार सुगना कमरे से बाहर आई। सोनू ने सुगना के चरण छुए… सुगना ने उसे खुश रहो का कर आशीर्वाद दिया…सुगना के घागरे के पीछे से आ रही साबुन और सुगना की मादक खुशबू को सोनू कुछ देर यूं ही सूंघता रहा ..सुगना ने उसके बालों पर हाथ फेरते हुए कहा

" अब उठ भी जो .."

सोनू उठ गया परंतु आज सुगना ने सोनू को गले न लगाया शायद आज भाई बहन के पावन प्यार पर ग्रहण लग चुका था। सुगना अपराध बोध से ग्रस्त थी।


बच्चे तो चॉकलेट और मिठाइयों में ही मस्त हो गए सुगना और लाली ने अपने-अपने गिफ्ट पैकेट प्राप्त किए । सोनी के हाथ में भी गिफ्ट पैकेट था परंतु यह पैकेट लाली और सुगना के पैकेट से अलग था कभी-कभी पैकिंग का आकर्षण गिफ्ट की अहमियत को बढ़ा या घटा देता है सोनी निश्चित ही अपने गिफ्ट की तुलना और सुगना को मिले गिफ्ट से कर रही थी नियति मुस्कुरा रही थी शायद उसने सोनी के साथ अन्याय कर दिया था।

आखिर सोनू की उस बहन ने भी अनजाने में अपने भाई के लिए लखनऊ के गेस्टहाउस में जो कुछ परोसा था वह निश्चित ही बेहद उत्तेजक था परंतु परंतु सोनू का दिलो-दिमाग अभी सुगना पर अटका था।

सोनू और सुगना का साथ आज का न था। दोनों को युवा हुए कई वर्ष बीत चुके थे और सोनू सुगना की सहेली लाली से जैसे-जैसे अंतरंग होता गया सुगना के प्रति उसका आकर्षण एक अलग रूप लेता गया।

यह बात निश्चित थी कि सोनू ने सुगना से अंतरंग होने की न कभी कोशिश कि नहीं कभी कभी उसके ख्यालों में वह आई पर एक झोंके की तरह। सोनू के विचारों का भटकाव स्वभाविक था दरअसल सुगना एक मदमस्त युवती थी जो स्वाभाविक रूप में उन सभी मदों के आकर्षण का केंद्र थी जिनकी जांघों के बीच हरकत होती थी। सोनू यह बात जानता था कि वह उसकी बड़ी बहन है और यही बात उसके ख्यालों पर लगाम लगा देती..

सुगना का व्यक्तित्व सोनू के छिछोरापन पर तुरंत लगाम लगा देता और वह एक बार फिर अपनी निगाहों में सुगना की बजाय लाली के कामुक अंगो की कल्पना करने लगता…

लाली और सुगना लाली और सुगना दोनों अपने-अपने गिफ्ट पैकेट लेकर अपने-अपने कमरों में आ गईं। दोनों में लखनऊ से मंगाए गए कपड़े देखने चाहत थी। सुगना उस खूबसूरत सूट को देखकर खुश हो गई आज पहली बार सोनू ने उसके लिए कपड़े पसंद किए थे वह भी इतने खूबसूरत ।

सुगना उसे अपने हाथों में लेकर उसकी कोमलता का एहसास करने लगे तभी उसका ध्यान सलवार के नीचे पड़ी खूबसूरत जालीदार ब्रा और पेंटी पर पड़ा और वह चौंक गई… …ब्रा और पेंटी को देखकर सुगना को यकीन ही नहीं हुआ कि सोनू ऐसा कार्य कर सकता है।

ठीक उसी समय सोनी के कमरे में आने की आहट हुई सुगना ने फटाफट उस ब्रा और पेंटी को तकिए के नीचे छुपा दिया और सूट को अपने हाथों में ले पीछे पलटी और सोनी को दिखाते हुए बोली


"देख कईसन बा सोनुआ ले आइल बा…"

सोनी ने व सूट अपने हाथों में ले लिया और उसकी कोमलता और डिजाइन को देखकर खुश हो गई

" कितना सुंदर बा सोनू भैया हमरा खातिर ना ले ले आइले हा"


सुगना ने एक पल भी सोचे बिना कहा

" तोहरा ठीक लागत बा ले ले हम फिर मंगा लेब"

सुगना का यहीं बड़प्पन उसे बाकी लोगों से अलग करता था…. सोनी ने सुगना के हाथों में सूट को देते हुए कहा "ना…ई सूट दीदी तोरा पर बहुत अच्छा लागी आज इहे पहन ले"

सुगना को भी वह सूट बेहद पसंद आया था परंतु उसकी शर्म उसे रोक रही थी । सोनी के आग्रह पर उसने सूट पहने का फैसला कर लिया। परंतु वह ब्रा और पेंटी उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि सोनू ने ऐसा क्यों किया होगा? उसने तकिया हटाया और एक बार फिर उस खूबसूरत ब्रा और पेंटी को देखने लगी… यह संयोग कहें या सोनू की किस्मत ब्रा और पेंटी की कढ़ाई सूट से थोड़ा-थोड़ा मैच करती थी। सुगना को एक पल के लिए लगा जैसे यह जालीदार ब्रा और पेंटी इसी सूट का हिस्सा थी। सुगना सहज हो गई परंतु फिर भी अपने भाई द्वारा लाई गई ब्रा और पेंटी को पहनने की हिम्मत न जुटा पाईं…उसे यह कार्य बेहद शर्मनाक लगा.

सुगना ने एक बार फिर अपने वस्त्र उतारे और सोनू द्वारा लाए गए सलवार सूट को धारण करने लगी । चिकनकारी किया हुआ वह शिफान के सूट बेहद खूबसूरत था जैसे जैसे वह सूट सुगना के मादक और कमनीय काया पर चढ़ता गया वह अपनी खूबसूरती को और बढ़ाता गया।

वस्त्रों की खूबसूरती उसे धारण करने वाले पर निर्भर करती है। सुगना के कोमल बदन को छूकर सोनू द्वारा लाया गया सूट भी धन्य हो गया।

सुंदर वस्त्र सुंदर स्त्री पर दोगुना असर दिखाते हैं यही हाल सोनू द्वारा लाए गए सूट का था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे इस सूट का सृजन ही सुगना के लिए हुआ हो। सूट का बाजू लगभग पारदर्शी था जो सुगना की बाहों को आवरण देने में कामयाब था बाजू पर की गई चिकनकारी सुगना की मांसल भुजाओं को और खूबसूरत बना रही थी।


सीने पर सूट की फिटिंग देखने लायक थी ऐसा लग रहा था जैसे दर्जी ने सुगना की चूचियों की कल्पना कर उनके लिए जगह पहले से छोड़ रखी थी और सुगना की कसी हुई चूचियां सूट में बने जगह पर जाकर पूरी तरह सेट हो गई। सुगना की पतली कमर पर सटा हुआ सूट बेहद खूबसूरत लग रहा था सूट का पिछला हिस्सा सुगना के नितंबों को ढक रहा था और अगला उस प्रेम त्रिकोण को जिसकी तलाश उसका भाई सोनू अब अधीर हो रहा था।

सुगना ने स्वयं को आईने में देखा एक पल के लिए उसे लगा जैसे उसकी मदमस्त काया पर किसी ने खूबसूरत पेंटिंग कर दी हो..

सुगना स्वयं अपनी चुचियों को देखकर प्रसन्न हो गई उसे यकीन ही नहीं हो रहा था। सलवार सूट मैं उनका कसाव और आकार और भी उत्तेजक हो गया था।

सुगना ने अपने बाल सवारे । मांग के एक कोने में हमेशा की तरह सिंदूर का टीका किया। अपने मंगलसूत्र को गले पर सजाया और हाल में आने लगी। अचानक सुगना को सोनू का ध्यान आया और सुगना ने दुपट्टे से अपनी खूबसूरत चूचियों को ढक लिया और हाल में आ गई।

सुगना सचमुच बेहद खूबसूरत लग रही थी जैसे ही सोनू ने सुगना को देखा उसकी आंखें सुगना पर टिक गई और वह उसे सर से पैर तक निहारने लगा। सुगना की आंखें स्वतः ही शर्म से झुक गई.. .


सोनू खुद को रोक न पाया और बोला

"अरे दीदी सूट तोरा पर कितना अच्छा लागत बा" लाली ने भी सोनू की बात पर हां में हां मिलाई

"लागा ता सूट तोहरे खातिर बनल रहल हा" …लाली ने सुगना से कहा

" देख हम कहत ना रहनी की सोनू अब बड़ हो गईल बा दे त ओकरा के लइका समझेले"

सुगना मुस्कुरा दी और उस मुस्कुराहट ने उस सुंदरी के खूबसूरत चेहरे पर चार चांद लगा दिए…

अब तक सोनी ने हाल में सारी तैयारियां पूरी कर ली थी चादर को मोड़ कर बैठने का इंतजाम कर दिया गया था सारे बच्चे लाइन से बैठे हुए थे..

आइए मैं पाठकों को एक बार फिर इन बच्चों की याद दिला देता हूं जो इस कहानी के उत्तरार्ध में अपनी महती भूमिका निभाएंगे..

सुगना के घर में


  1. सुगना और सरयू सिंह के मिलन से जन्मा : सूरज…उम्र ..4 वर्ष लगभग..
  2. लाली और सोनू के मिलन से पैदा हुई : मधु उम्र लगभग 1 वर्ष कुछ माह ( सुगना इसे अपनी पुत्री और सूरज को उस अनजाने श्राप से मुक्ति दिलाने वाली उसकी छोटी बहन समझती है)
  3. रतन और बबीता की पुत्री मिंकी जो अब मालती नाम से सुगना के साथ रह रही है उम्र लगभग 6 वर्ष..
लाली के घर में

  1. राजेश और लाली का पुत्र : राजू, उम्र लगभग 6 वर्ष
  2. राजेश और लाली की पुत्री: रीमा, उम्र लगभग 4 वर्ष
  3. राजेश के वीर्य,सरयू सिंह की मेहनत और सुगना के गर्भ से जन्मा: राजा…..उम्र 1 वर्ष कुछ माह…
सारे लड़के चादर पर बैठे हुए थे। सोनू बीच में बैठा था और उसकी गोद में छोटा राजा था सोनू के एक तरफ राजू और दूसरी तरफ सूरज बैठा था।

लाली भी मधु को गोद में लेकर करीब ही बैठी थी। मालती और रीमा ने अपने तीनों भाइयों को राखी बांधी…अब बारी मधु की थी..

लाली मधु से सूरज के हाथ पर राखी बंधवाने लगी सुगना तड़प उठी…. भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को वह भलीभांति समझती थी…उसका दिल कह रहा था कि वह मधु को सूरज की कलाई पर राखी बांधने से रोक ले….. आखिर मधु को कालांतर में उससे संभोग कर उसे श्राप मुक्त करना था…

सुगना ने कहा अरे छोड़ दे "मधु अभी छोट बीया ओकरा का बुझाई"

परंतु लाली ना मानी उसने बेहद आत्मीयता से कहा "अरे ई सोनू के सबसे छोटे और प्यारी बहन हा ई ना बांधी त के बांधी"

और आखिरकार सूरज की कलाई पर छोटी मधु ने राखी बांध दी सुगना मन मसोसकर रह गई।

अब स्वयं उसकी बारी थी…

सुगना अपने हाथों में पूजा की थाली लिए सोनू की तरफ बढ़ रही थी। नजरों में ढेर सारा प्यार और अपने काबिल भाई की मंगल कामना सहित… उसने सोनू की आरती की माथे पर टीका लगाया और सोनू की कलाई पर राखी बांधने लगी.. इसी दौरान सुगना का दुपट्टा न जाने कब झूल गया और सूट में छुपी हुई चूचियां झुकने की वजह से अपने आकार का प्रदर्शन करने लगीं।


उन गोरी चूचियों के बीच गहरी घाटी पर सोनू की नजरें चली गईं। बेहद मादक दृश्य था अपनी बड़ी बहन की भरी-भरी चूचियों के बीच उस गहरी घाटी में सोनू की निगाहें न जाने क्या खोज रही थी। वह एक टक उसे घूरे जा रहा था। इस नयन सुख का असर सोनू की जांघों के बीच भी हुआ और उसका छोटा शेर भी इस कार्यक्रम में शरीक होने के लिए उठ खड़ा हुआ।

कुछ ही देर में सुगना ने सोनू की निगाहों को ताड़ लिया। उसे बेहद शर्म आई … और उसने अपना दुपट्टा ऊपर खींच लिया। उसने सोनू के गाल पर चपत लगाते हुए बोला…

"कहां भुलाईल बाड़े आपन मुंह खोल" और अपने हाथों में लड्डू लेकर उसने सोनू के मुंह में एक लड्ड भर दिया..

सोनू को अपने पकड़े जाने का है अहसास हो चुका था परंतु वह कुछ ना बोला और बड़ी मुश्किल से उस लड्डू को अपने मसूड़े से तोड़ने का प्रयास करने लगा.. लड्डू का आकार कुछ ज्यादा ही बड़ा था और सुगना ने आनन-फानन में उसे पूरा लड्डू खिला दिया था।

सोनी ने भी सोनू की कलाई पर राखी बांधी। इसी दौरान लाली ने मधु को सुगना की गोद में दे दिया और उठकर रसोई घर की तरफ चली गई । लाली आज सोनी की उपस्थिति में असमंजस में थी। जब से लाली ने सोनू को अपनी जांघों के बीच स्थान दिया था तब से उसने उसकी कलाई पर राखी बांधना बंद कर दिया था।


परंतु सोनी ने लाली को न छोड़ा और अंततः सोनू की कलाई पर लाली से भी राखी बंधवा ही दी बंधन की पवित्रता नष्ट हो रही थी…. सोनू की निगाहों में भी और सुगना की निगाहों में भी…नियति मजबूर थी जिस खेल में विधाता ने उसे धकेल दिया था उसे चुपचाप यह खेल देखना था।

सोनू अपने तीनों बहनों के आकर्षण का केंद्र था आज उसकी जमकर आव भगत हो रही थी जब-जब सोनू सोनी को देखता वह उसके भविष्य को लेकर खुश हो जाता। विकास से बातचीत करने के पश्चात सोनु आश्वस्त हो गया था कि विकास सोनी को धोखा नहीं देगा और सोनू ने सोनी को दिल से माफ कर दिया था….


शाम होते होते भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का असर कम होने लगा और सोनू लाली के साथ एकांत खोजने में लग गया…

जैसे ही सोनी बच्चों को लेकर बाहर घुमाने गई…

लाली और सोनू एक बार फिर उसी कमरे में आ गए.. इस बार खिड़की पर से पर्दा हटाने का कार्य स्वयं सोनू ने अपने हाथों से किया और लाली के शरीर से वही सूट हटाने लगा जिसे वह जिसे वह आज सुबह ही लाया था.

सोनू के मन में एक बार फिर सुगना घूमने लगी

.. क्या सुगना दीदी आज भी आएंगी? सोनू की निगाहें बार-बार खिड़की की तरफ जाती और बैरंग लौट आती समय कम था सोनी कभी भी वापस आ सकती थी।

"ए सोनू रात में करिहे काहे जल्दी आई बाड़?" लाली को क्या पता था कि सोनू के मन में हवस भरी हुई थी पिछले कुछ महीनों में उसमें इन उत्तेजक पलों को सिर्फ ख्वाबों में जीया था और जब यह पल उसके सामने हकीकत में उपलब्ध थे वह उसे तुरंत भाग लेना चाहता था…

"रात में फेर से"


सोनू ने बिना समय गवाएं लाली को घोड़ी बना दिया और उसकी जालीदार पेंटी को एक तरफ खिसका कर अपना लंड उसकी फूली बूर में उतार दिया…

लाली की बुर अभी पनियाइ न थी.. जहा पहले उसकी बुर को सोनू के चुंबनओं का स्पर्श प्राप्त होता था और सोनू की जीभ उसकी बुर की दरारों को फैला कर अंदर से प्रेम रस खींचती थी.. वही आज सोनू अधीर होकर लाली को आनन-फानन में चोदने के लिए तैयार था लाली ने सोनू को निराश ना किया और अपनी बुर को यथासंभव फैलाने की कोशिश की परंतु नाकामयाब रही..

सोनू के लंड ने अपना रास्ता जबरदस्ती तय किया और लाली "आह….." की आवाज के साथ कराह उठी…

लाली की यह कराह कुछ ज्यादा ही तेज थी शायद यह उसके द्वारा अनुभव किए जा रहे दर्द के अनुपात में थी..

"सोनू…. तनी धीरे से ..दुखाता" लाली ने फुसफुसा कर कहा..

"बस बस हो गइल"

लाली की आह की आवाज सुनकर सुगना सचेत हो गई। एक पल के लिए उसे लगा जैसे लाली किसी मुसीबत में थी परंतु जैसे ही वह कमरे की तरफ बढ़ी.. उसे सोनू की आवाज सुनाई दे गई। सुगना के मन में उस दिन के दृश्य घूम गए….

एक बार के लिए उसके मन में आया कि वह एक बार फिर खिड़की से झांक कर देखें परंतु वह हिम्मत न जुटा पाई और कुछ देर उसी अवस्था में खड़े रहकर वापस अपने कमरे में आ गई.. उसने कमरे का दरवाजा बंद न किया…और अपने कान उस कमरे की तरफ लगा लिए जिसमें सोनू और लाली की प्रेम कीड़ा चल रही थी..

सुगना के दिमाग में उसे कमरे के अंदर झांकने से रोक लिया था परंतु दिल …. ने सुगना के कामों पर नियंत्रण कर लिया था जो अब सोनू और लाली की आवाज सुनने का प्रयास कर रहे थे..

सोनू की निगाहें बार-बार खिड़की की तरफ जा रही थी लाली भी धीरे धीरे गर्म हो चली थी लंड के आवागमन ने उसके बुर् के प्रतिरोध को खत्म कर दिया था और लाली अब पूरे आनंद में थी…

वासनाजन्य उत्तेजना कभी-कभी वाचाल कर देती है..लाली ने सोनू से कहा

"जल्दी कर कही तहार सुगना दीदी मत आ जास" लाली ने यह बात कुछ ज्यादा तेजी कही जो सुगना के कानो तक भी पहुंची…

सुगना का नाम सुनकर सोनू और उत्साह में आ गया वो तो न जाने कब से खिड़की पर उसका इंतजार कर रहा था। और सोनू ने लाली की कमर पर अपने हाथों का कसाव बढ़ा दिया और लंड को और गहराई तक उतार दिया..

उधर सुगना लाली की शरारत और खुले आमंत्रण को बखूबी समझ रही थी पर वो अपनी लज्जा और आज रक्षाबंधन की पवित्रता को नजरअंदाज न कर पाई और वह अपने कमरे में खड़ी रही…

"सुगना दीदी….. ऊ काहे आइहें…?" सोनू ने अपने मुंह से सुगना का नाम लिया और उधर सोनू के लंड ने लाली के गर्भाशय को चूमने की कोशिश की शायद यह सुगना के नाम का असर था…


सोनू यही न रूका उसने अपनी चूदाई की रफ्तार बढ़ा दी…और कमरे में थप थप …थपा… थप की आवाज गूंजने लगी लाली की जांघें सोनू की जांघों से टकरा रही थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सोनू सुगना को बुलाने का पूरा प्रयास कर रहा था… पर सुगना अपनी धड़कनों को काबू में करने का प्रयास कर रही थी.. पर मन में कशमकश कायम थी…दिमाग के दिशा निर्देशों को धता बताकर चूचियां तनी हुई थीं और बुर संवेदना से भरी लार टपका रही थी…

शेष अगले भाग में…
शानदार अपडेट
इस बार तीन अपड़ेट एक साथ पढकर कुछ अलग ही मजा आया
सरयू को मनोरमा से कब मिलवा रहे हो साहब?
क्या लाली सुगना सोनू का थ्रीसम पढने भी को मिलेगा?
 

Raja jani

आवारा बादल
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नए पाठकों का इस कहानी के पटल पर दिल से स्वागत है मैंने यह देखा है कि कुछ पाठक आज इस फोरम पर आकर अपनी पहली प्रतिक्रिया इस कहानी पर दिए है।

मुझे इस बात का हर्ष है कि मेरे साथ पाठकों में हिम्मत जुटाकर इस फोरम और इस कहानी पर आकर अपने विचार रखें।
जैसा कि मैंने वादा किया था अगला अपडेट प्रस्तुत है.
..
हिम्मत जैसी कोई बात नही बंधू अच्छा लिखते हो पर मुहे व्यक्तिगत तौर पर सगे रिश्तों मे यौन संबंध की कहानियाँ ही पसंद हैं तो जब वह पार्ट आ गया तो हम भी आ गये बांकी आपकी लेखन शैली तो उत्कृष्ट है इसमें कोई शक नही।
 
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