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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

whether this story to be continued?

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Lovely Anand

Love is life
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Lovley bhai

Gramin parivesh me shuru hui ye kahani kaffi dilchasp hai

Ek se badhkar ek patro ka sarjan aapne aapki lekhni se kiya hai, or usme niyati ka jabarjast khel.... Wah bhai maja aa gaya

Yeh ek adbhut kruti hai mere liye dhanyavad is sundar katha ke liye
सराहना के लिए धन्यवाद परंतु कहानी से जुड़ने के लिए और भी धन्यवाद ... आप बनाए रखें साथ बनाए रखें और अपने विचार रखते रहे..
बहुत ही रोमांचक अपडेट
थैंक्स
Waiting .......
Welcome ..
इंतजार रहेगा अगले अपडेट का
मुझे भी.... इंतजार करने और लगातार साथ बनाए रखने के लिए धन्यवाद

SCORE 16/20

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Tiger 786

Well-Known Member
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भाग 87
नियति मुस्कुरा रही थी सरयू सिंह ने जिस नवयौवना के यौवन का जी भर कर आनंद लिया था वह पुत्री रूप में उसने बगल में खड़ी अपने अंतरमन से जूझ रही थी…


एक पल के लिए सुगना को ऐसा लगा जैसे उसके बाबूजी उसे अपने से दूर कर उसे सोनू के आगोश में देने जा रहे थे..

सुगना भी जानती थी ऐसा कतई न था परंतु अपनी सोच पर सुगना स्वयं मुस्कुरा उठी…

वासना जन्य सोच पर किसी का नियंत्रण नहीं होता कामुक मन ... कुछ भी कितना भी और कैसा भी, अच्छा बुरा , उचित अनुचित यहां तक कि घृणित संबंध भी सोच सकता है..

ट्रेन की सीटी ने सुगना को उसकी सोच से बाहर निकाला और वह सरयू सिंह के पीछे पीछे ट्रेन में चढ़ने के लिए चलने लगी..


शेष अगले भाग में..

सुगना को अपने पीछे आते देख सरयू सिंह ने उसके हाथ से उसका झोला ले लिया और तेजी से ट्रेन में चढ़ गए। सुगना अभी भी मधु को अपनी गोद में पकड़े ट्रेन के दरवाजे के पास खड़ी थी सरयू सिंह ने झोला जमीन पर रखा और अपने मजबूत हाथ बढ़ा दिये।


सुगना ने अपने हाथ निकाले। सुगना की गोरी गोरी भुजाओं को देखकर सरयू सिंह के दिमाग में सुगना की खूबसूरत काया घूम गई।सुगना के हाथों का स्पर्श पाते ही उनकी तंद्रा भंग हुई और उन्होंने सुगना कि कोमल कलाइयां पकड़ ली…

सुगना ने भी उस स्पर्श को महसूस किया और उसके रोएं उसकी त्वचा का साथ छोड़ कर खड़े हो गए..जैसे वो स्वयं सरयू सिंह से मिलने को उतावले हो रहे थे। सुगना सरयू सिंह का सहारा लिए ट्रेन में चढ़ने लगी मधु के गोद में होने की वजह से सुगना को चढने में दिक्कत हो रही थी तभी पीछे खड़े एक मनचले युवक ने सुगना को पीछे से धक्का देकर ट्रेन में चढ़ाने की कोशिश की आपदा में अवसर खोज कर सुगना की कमर पर हाथ फेर लिया।

सुगना को यह अटपटा लगा परंतु उसने उस व्यक्ति के धक्के में मिले सहयोग को ज्यादा वरीयता दी…उसने एक बार पीछे मुड़कर देखा और अपनी निगाहों से उसने युवक की निगाहों की पढ़ने की कोशिश की..

निश्चित ही उस युवक की आंखों में कामुकता थी। सुगना ने कोई प्रतिक्रिया देना उचित न समझा वह वहां कोई बवाल नहीं खड़ा करना चाहती थी। सुगना भली भांति यह बात जानती थी कि यह बात सरयू सिंह को पता चल जाती तो निश्चित ही उस युवक की खैर नहीं थी..

सरयू सिंह और सुगना ट्रेन में आ चुके थे और वह मनचला युवक भी…

वह युवक सुगना जैसी सुंदरी को देखकर हतप्रभ था उसने कई युवतियां और महिलाएं देखी थी परंतु सुगना उसके लिए कतई अलग थी। इतनी गोरी और चमकती त्वचा उसने शायद ही पहले कहीं नही देखी थी ऊपर से सुगना का मासूम और सुंदर चेहरा… सुगना के प्रतिकार न करने की वजह से उसका उत्साह बढ़ गया था जैसे ही सरयू सिंह कुछ देर के लिए ट्रेन के बाथरूम में गए उसने सुगना से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश की।

सुगना उस युवक के व्यवहार से असहज महसूस कर रही थी। परंतु वह युवक न जाने किस भ्रम में सुगना के करीब आने की कोशिश कर रहा था। कुछ देर की असमंजस को एक झन्नाटेदार थप्पड़ ने रोक दिया …. उस युवक ने अपने गाल को हाथ से सहलाते हुए गुस्से से मुड़ कर पीछे की तरफ देखा तभी दूसरे उसके गाल पर भी सरयू सिंह का तेज तमाचा पड़ा..

"बेटी चोद…. यही सब करने ट्रेन में आता है…"

सरयू सिंह क्रोध से भरे थे.. उन्होंने उस युवक को और मारने की कोशिश की परंतु सफल ना हुए लोगों ने बीच-बचाव कर उस युवक को सरयू सिंह से अलग कर दिया… नियति मुस्कुरा रही थी …सरयू सिंह जिन्होंने स्वयं अपनी बेटी को अनजाने में ही सही पर वर्षों तक चोदते रहे थे वह स्वयं उस अनजान व्यक्ति को बेटीचोद कह रहे थे।


वह युवक भी क्रोध से भरा था परंतु सरयू सिंह से भिड़ने की उसकी हिम्मत न थी वह वहां से चुपचाप कट लिया और सरयू सिंह सुगना के समीप बैठ गए…

आसपास बैठे लोग सरयू सिंह और सुगना को देख रहे थे…इस अनोखी जोड़ी के बीच तारतम्य को समझने का प्रयास कर रहे थे…

दिमाग शांत होते ही सरयू सिंह के मन में अचानक अपने ही कहे शब्द गूंजने लगे…. बेटीचोद… हे भगवान सरयू सिंह ने अपने ही शब्दों का मतलब निकाला और बेहद दुखी हो गए। उनका मन अचानक खिन्न हो गया।


उन्होने गाली तो उस युवक को दी थी परंतु नियति ने उन्हें खुद उस गाली का पात्र बना दिया था। सरयू सिंह के चेहरे पर तनाव देखकर सुगना खुद को रोक ना पाई और उसने बेहद संजीदगी से कहा ..

"जाएदी ऊ कुल लफुआ लोग कभी कभी भेंटा जाला…. रऊआ परेशान मत होखी.."

सुगना की मीठी आवाज ने सरयू सिंह के दुख को कुछ तो कम किया परंतु वह शब्द बेटी चोद उनके दिमाग में बार बार घूम रहा था… उन्होंने जो सुगना के साथ किया था स्वाभाविक तौर पर हुआ था परंतु था तो गलत…

सरयू सिंह को विशेषकर वह बात ज्यादा परेशान करती की क्यों उन्होंने सुगना जैसी मासूम को गर्भधारण से बचाने के लिए उसकी प्रिय मिठाई मोतीचूर के लड्डू में मिलाकर दवाई खिलाई थी और वह यह कार्य एक बार नहीं अपितु कई वर्षों तक करते रहे थे…

सुगना से उनके संभोग का रास्ता कजरी ने उसे गर्भवती करने के लिए ही प्रशस्त किया था पर सरयू सिंह सुगना जैसी मादक और कमसिन सुंदरी से अनवरत संभोग का मोह न त्याग पाए और उन्होंने सुगना को अपने मोहपाश में बांध लिया। सुगना से संभोग का जितना आनंद सरयू सिंह ने लिया था अब उसे याद कर वो दुखी हो रहे थे…

ट्रेन की धीमी होती रफ्तार और स्टेशन पर बढ़ते शोर ने सरयू सिंह और सुगना का ध्यान आकर्षित किया…

लखनऊ स्टेशन पर पपीता बेचने वाले उस समय भी उतने ही सक्रिय थे जैसे आजकल हैं। सरयू सिंह और सुगना ने अपना अपना सामान उठाया और वापस ट्रेन से उतरने की कोशिश करने लगे…


सरयू सिंह ने इस बार विशेष ध्यान दिया कि सुगना को उतरने में कोई तकलीफ ना हो और किसी अन्य अनजान आदमी के हाथ सुगना को ना छुए।

वह युवक दूर खड़ा सरयू सिंह और सुगना को देख रहा था। उसकी आंखों में अभी भी गुस्सा था पर वह मजबूर था। अपने प्रतिकार को अपने सीने में दबाए वह चुप चाप स्टेशन के बाहर निकल गया.

बाहर खड़ा सोनू सरयू सिंह और सुगना को देखकर खुश हो गया। कुछ ही देर में सरयू सिंह सुगना और दोनों छोटे बच्चे पूर्व निर्धारित गेस्ट हाउस में उपस्थित थे.. एक कमरे में सरयू सिंह और दूसरे में सुगना…

नियति और सुगना दोनों परेशान थे… सरयू सिंह और सुगना ने न जाने कितनी रातें साथ बिताई थी और अब जब वह दोनों शहर से दूर आज होटल नुमा गेस्ट हाउस में थे तब वह दोनों अलग-अलग कमरों में रहने को मजबूर थे… परंतु परंतु विधाता ने उनके लिए जो सोच रखा था वह होना ही था..

लखनऊ के आसमान पर हल्के हल्के बादल इकट्ठे हो रहे थे…मौसम खुशनुमा हो रहा था.. सुगना आज कई दिनों बाद घर के चूल्हे चौके से मुक्ति पाकर सरयू सिंह के साथ बाहर निकली थी…. और गेस्ट हाउस में बैठे अपने बच्चों के साथ खेल रही थी तभी सोनू नाश्ते के सामान और बच्चों के लिए अलग-अलग किस्म की मिठाइयां लेकर आ गया….सरयू सिंह सुगना और सोनू ने मिलकर नाश्ता किया… सरयू सिंह बीच-बीच में सुगना को देखते और उसे खुश देखकर स्वयं प्रफुल्लित हो उठते।


परंतु जब जब सोनू की निगाहें सुगना से मिलती सुगना की निगाहें न जाने क्यों झुक जाती। सुगना को अब सोनू से नजरें मिलाने में न जाने क्यों शर्म आ रही थी?

शायद उसने जो अपने सपनों में देखा था उसने उसका आत्मविश्वास छीन लिया था वह सोनू के सामने अब पहले जैसी सहज न थी।

परंतु सोनू वह तो धीरे-धीरे एक मर्द बन चुका था सुगना कि वह इज्जत जरूर करता था परंतु जब से उसने सुगना के कमरे से वह गंदी किताब का एक हिस्सा ले आया था उसे …सुगना का जीवन अधूरा लगता था ऐसा लगता था जैसे सुगना एक अतृप्त युवती थी....वह बार बार यही सोचता .... लाली की तरह ही काश वह उसकी अपनी सगी बहन ना होती…

सोनू सुगना की खूबसूरती में खोया हुआ था तभी उसका ध्यान भंग किया उसके भांजे सूरज ने ।

सूरज ने सोनू की मूछों को खींचते हुए बोला मामा..

चलअ घूमने चलअ…...

सुगना ने भी सूरज का साथ दिया और कहा "ले जो बाबू के घुमा ले आओ आवत खाने तनी दूध लेले अइहे "

सोनू सूरज को लेकर बाहर निकल गया कमरे में सरयू सिंह सुगना और छोटी मधु रह गए अपने भाई सूरज को मामा की गोद में जाते देख मधु भी रोने लगी और अंततः सरयू सिंह को उसे अपनी गोद में लेकर बाहर गलियारे में जाना पड़ा….

सुगना एकांत का फायदा उठाकर गुसल खाने में नहाने चली गई।सुगना ने अपने कपड़े गीले करना उचित न समझा वैसे भी वहां कपड़े धोने की व्यवस्था न थी उसने नग्न होकर स्नान करना उचित समझा।

अपने नंगे बदन पर
झरने से आ रही पानी की फुहारों के बीच एक सुखद स्नान का आनंद लेने लगी…
नग्नता और वासना में चोली दामन का साथ होता है.. नग्न सुगना स्वयं अपने सपाट पेट को देखकर खुश हो रही थी 2 बच्चों को जन्म देने के बावजूद उसके पेडू प्रदेश पर अतिरिक्त मांस जमा ना हुआ था। सुगना की बुर के ऊपर उगे झुरमुट अब भी घुंघराले थे और बेहद खूबसूरत लगते थे.. अपनी खूबसूरती का मुआयना करते करते सुगना सरयू सिंह और सोनू के बारे में सोचने लगी …

सुगना सरयू सिंह के लंड को याद करें और उसकी बुर गीली ना हो यह संभव न था ….. सुगना ने मन में मीठी-मीठी उत्तेजना लिए अपना स्नान पूरा किया और लाली द्वारा दी गई खूबसूरत नाइटी पहन कर बाहर आ गई उसी समय सरयू सिंह ने दरवाजा खोल दिया…

सुगना को सरयू सिंह से कोई शर्म हया न थी…सुगना ने उनकी तरफ देखा और मुस्कुराते हुए बोली…

"लाई दे दी मधु के हम नहा लेनी"

सरयू सिंह ने सुगना की मादक काया से अपनी नजरें हटा ली और मधु को देकर कमरे से बाहर निकलते हुए बोले "हम जा तानी तानी शहर घूमें सोनू के कह दिया हमार चिंता ना करी हम खाए के बेरा ले आ जाएब"

सरयू सिंह सुगना के साथ एकांत में नहीं रहना चाह रहे थे वह वैसे भी लोगों के बीच रहने वाले आदमी थे। वह अपने तेज कदमों से चलते हुए वह लखनऊ शहर के पास के बाजार में आ गए…

नुक्कड़ पर चाय की दुकान से उन्होंने चाय मंगाई और चुस्कियां लेकर चाय पीते हुए लखनऊ शहर की खूबसूरती का आनंद लेने लगे। इससे पहले कि सरयू सिंह चाय खत्म कर पाते… आसपास से कुछ युवक शोर करते हुए उनकी तरफ बढ़े । सरयू सिंह यह समझ ही नहीं पा रहे थे कि यह शोर क्यों हो रहा था… तभी एक व्यक्ति ने उन पर लाठी से हमला कर दिया… अचानक सरयू सिंह को वह युवक दिखाई दे गया…

"मार साला के एही बेटीचोद हमरा के मरले रहल हा?

सरयू सिंह को आभास हो गया कि वह उस युवक को मारकर फस चुके थे सात आठ आवारा बदमाश एक साथ सरयू सिंह पर आक्रमण कर चुके थे और सरयू सिंह उनका मुकाबला कर रहे थे …

इससे पहले कि वह सरयू सिंह को घायल कर पाते…एक सफेद एंबेसडर आकर वहां रुकी तथा सामने की सीट पर बैठे पुलिस वाले ने उतर कर अपनी रौबदार आवाज में कहा

"क्या बात है…?"

कुछ पल के लिए ऐसा लगा जैसे वहां कुछ हुआ ही न हो परंतु सरयू सिंह की हालत देखकर पुलिस वाले ने सारा माजरा समझ लिया उसने उन युवकों को भगाया …और वापस आने लगा…

सरयू सिंह ने एंबेसडर की तरफ देखा तो भौचक रह गए। कार में पीछे बैठी मनोरमा से उनकी निगाहें टकराई और मनोरमा ने अपनी कार का दरवाजा खोल दिया… वह नीचे उतर कर खड़ी हो गई और सरयू सिंह को अपने लड़खड़ाते कदमों से मनोरमा के पास जाना पड़ा…सरयू सिंह ने दोनों हाथ जोड़कर मनोरमा का अभिवादन किया और बोला

"मैडम आप?"

मनोरमा ने वहां नुक्कड़ पर सरयू सिंह से ज्यादा बातचीत करना उचित न समझा उसने सरयू सिंह को अंदर कार में बैठने का इशारा किया सरयू सिंह ने असमंजस भरी निगाहों से मनोरमा की तरफ देखा।


वह कार में पीछे मनोरमा के साथ बैठने से कतरा रहे थे परंतु कोई चारा न था आगे ड्राइवर और वह पुलिस वाला बैठा हुआ था सरयू सिंह मनोरमा का आग्रह न टाल पाए और वह कार में मनोरमा के साथ बैठ गए…

लखनऊ की चिकनी..सड़क पर एंबेसडर कार सरपट दौड़ने लगी.।

मैडम मुझे कुछ नहीं हुआ है मैं ठीक हूं मुझे गेस्ट हाउस छुड़वा दीजिए..

"सरयू जी आपको गहरी चोट लगी है यह देखिए आपके गर्दन पर चोट भी लगी है" मनोरमा ने…अपनी पद और प्रतिष्ठा का ख्याल दरकिनार कर अपनी रुमाल से उनकी गर्दन पर लगा रक्त पोछने लगी…


सरयू सिंह ने बारी बारी से अपने शरीर के सभी चोटिल अंगों की तरफ ध्यान घुमाया और महसूस किया कि निश्चित ही मार कुटाई से उनके शरीर को भी कई जगह चोटें पहुंची थी कुछ अंदरूनी और कुछ बाहरी..

इससे पहले वह कुछ कह पाते एंबेसडर एक छोटे क्लीनिक पर जाकर रुक गई..

सरयू सिंह को अंदर ले जाया गया और मनोरमा उनके पीछे-पीछे क्लीनिक में आ गई डॉक्टर उपलब्ध न थे परंतु कंपाउंडर ने मनोरमा को नमस्कार किया और कुछ ही देर में सरयू सिंह की मरहम पट्टी की जाने लगी …दर्द निवारक दवा का इंजेक्शन का लगा कर कंपाउंडर ने कहा..

इन्हें एक दो घंटा आराम करने दीजिएगा उम्मीद करता हूं की वह सामान्य हो जाएंगे…

कंपाउंडर ने सरयू सिंह के चूतड़ों पर वह इंजेक्शन लगाया था शायद अपने होशो हवास में सरयू सिंह ने अपने चूतड़ पर यह पहला इंजेक्शन लिया था…इसके पहले जब वह इसके पहले जब वह हॉस्पिटल में भर्ती हुए थे तब वह मूर्छित अवस्था में थे और डॉक्टरों ने उनके शरीर के साथ क्या-क्या किया था यह वह जान नहीं पाए थे…

सरयू सिंह और मनोरमा वापस गाड़ी में आ चुके थे। मनोरमा ने ड्राइवर को इशारा किया और एंबेसडर एक बार फिर सरपट दौड़ने लगी कुछ ही देर बाद मनोरमा की गाड़ी उसके खूबसूरत बंगले के सामने रुक गई।

"अरे यह कहां ले आईं आप मुझे?"सरयू सिंह उस खूबसूरत बंगले को देख कर कहा..

मनोरमा गाड़ी से उतर चुकी थी और सरयू सिंह को भी मजबूरन उतरना पड़ा।

थोड़ी ही देर में थोड़ी ही देर में सरयू सिंह मनोरमा के ड्राइंग रूम में बैठे चाय की चुस्कियां ले रहे थे और उनकी पुत्री पिंकी उनकी गोद में खेल रही थी…

उधर …सोनू सूरज को घुमा कर वापस आ चुका था…। सुगना ने अपनी नाइटी उतार कर वापस साड़ी पहन ली थी उसे सोनू के सामने इस तरह नाइटी में घूमना नागवार गुजर रहा था आखिर अपने छोटे भाई के सामने कौन सी बड़ी बहन नाइटी में घूमना पसंद करेगी…यद्यपि सोनू और सुगना के बीच उत्तेजना अपनी जगह बना चुकी थी परंतु सुगना ने अब भी अपनी वासना पर काबू कर रखा था…

परंतु सोनू बदल चुका था वह सुगना की खूबसूरती और उसके कामुक अंगो को देखने का कोई मौका न छोड़ता और अब भी उसकी निगाहें ब्लाउज के भीतर और कैद सुगना की गोरी गोरी चूचियों पर टिकी थी।

"सोनू दूध ले आइले हा?" सुगना ने सोनू से पूछा ..

सोनू ने गर्म दूध से भरी बोतल सुगना को पकड़ा दी…

परंतु सोनू की निगाहें अब भी सुगना की फूली हुई गोरी गोरी चूचीयों पर अटकी हुई थी… तक की सुगना उस बोतल को पकड़ती सोनू ने बोतल छोड़ दी और वह सुगना के हाथों से फिसल कर उसकी जांघों पर आ गिरी.. ढक्कन ढीला होने की वजह से दूध छलक कर बाहर आ गया ….सुगना के मुख से आह निकल गई…सोनू अपराध बोध से ग्रस्त बार-बार अपने हाथों से सुगना की जांघो पर गिरे गर्म दूध को हटाने की कोशिश कर रहा था। सोनू ने पास पड़े पानी के बोतल से पानी लेकर सुगना की जांघों को ठंडा करने की कोशिश की वह कुछ हद तक कामयाब भी हुआ .. अस्त व्यस्त हो चुकी सुगना की साड़ी गीली हो चुकी थी ।

उसके पास कोई चारा न था वह एक बार फिर बाथरूम में गई और उसी नाइटी को पहन कर वापस आ गई जिसे उसने शर्म वश उतार कर रख दिया था…सुगुना ने अपनी नग्न जांघों का मुआयना किया…..गर्म दूध ने सुगना की जांघ पर अपना निशान छोड़ दिया….था..

सुगना एक बार फिर कमरे में आ चुकी थी। सोनू ने सुगना को देखते ही पूछा

"दीदी जरल त नईखे?"

सुगना ने सोनू को तसल्ली देते हुए कहा

"ना ना ज्यादा गर्म ना रहे …ठीक बा... ज्यादा नाइखे जरल लेकिन हमार कपड़ा खराब हो गएल। हम ढेर कपड़ा ना ले आईल रहनी…अब इहे पहन कर रहे के रहे के परी…"

सुगना के होठों पर मुस्कुराहट देख सोनू ने चैन की सांस ली और उछलते हुए बोला

" दीदी हम अभी जा तानी दोसर साड़ी खरीद के ले आवा तानी" सोनू अपनी गलती का प्प्रायश्चित करना चाहता था वह सुगना के होठों पर सदैव मुस्कान देखना चाहता था जो दर्द अनजाने में ही उसने सुगना को दिया था वह नए वस्त्र लाकर उसकी भरपाई करना चाहता था।

सोनू जैसे ही दरवाजा खोलकर बाहर निकला बारिश की आवाज़ कमरे में आने लगी। बाहर मूसलाधार बारिश हो रही थी….

बारिश की आवाज सुनकर सुगना ने सोनू को रोक लिया और बोली

" अभी मत जो बहुत बारिश होता …अब रात हो गईल बा कपड़ा का होई हमरा कहीं जाएके नईखे।"

सोनू उल्टे कदम वापस कमरे में आ गया..

"सरयू चाचा लागा ता पानी में फस गईल बाड़े.."

घड़ी 8:00 बजा रही थी सोनू और सुगना सरयू सिंह का खाने पर इंतजार कर रहे थे। गेस्ट हाउस का अटेंडेंट बार-बार सुगना और सोनू को खाना खा लेने के लिए अनुरोध कर रहा था शायद बारिश की वजह से वह भी रसोई जल्दी बंद करना चाह रहा था।

परंतु सरयू सिंह…. वह तो मनोरमा के घर में अपनी पुत्री पिंकी के साथ खेल रहे थे…और दूर खड़ी मनोरमा अपने हाथों में दूध की बोतल लिए मिंकी का इंतजार कर रही थी….


बाहर बारिश के साथ-साथ अब आंधी और तेज हवाएं चलने लगी थी…बिजली गुल होने की आशंका होने लगी थी..

मनोरमा ने दूध का बोतल सरयू सिंह को पकड़ाया और बोली

" मैं मोमबत्ती लेकर आती हूं…" मनोरमा का अंदेशा बिल्कुल सही था। जब तक कि वह रसोई घर में प्रवेश करती बिजली गुल हो गई। दूधिया रोशनी में चमकने वाला मनोरमा का ड्राइंग रूम अचानक काले स्याह अंधेरे की गिरफ्त में आ गया।

मनोरमा रसोई घर में प्रवेश कर गई तभी सरयू सिंह को धड़ाम की आवाज सुनाई थी…

मैडम क्या हुआ…..

घायल सरयू सिंह एक पल में ही उठकर खड़े हो गए और रसोई घर की तरफ बढ़ चले। उन्हें अपना दर्द अब काम प्रतीत हो रहा था। दर्द निवारक दवा ने उनमें स्फूर्ति भर दी थी..

मैडम….


शेष अगले भाग में….
Awesome update
 

Lovely Anand

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