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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
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दरवाजे पर खड़ी सुगना की बछिया इन दो चार महीनों में और बड़ी हो गई थी। सरयू सिंह जब उसकी बछिया को नहलाते तो सुगना आज भी सिहर उठती थी विशेषकर जब सरयुसिंह उसके पेट और चूचियों पर हाथ लगाते।

बछिया रंभा रही थी सरयू सिंह अपने खेतों पर काम करने गए हुए थे। सुगना अपनी बछिया की आवाज सुनकर बाहर आ गई। वह उसके पास जाकर उसे सहला रही थी पर बछिया बार-बार आवाज किए जा रही थी। कजरी आंगन में बर्तन धो रही थी। सुगना ने कहा

"मां बछिया काहे बोल तिया"

कजरी ने कहा

छोड़ द असहिं बोलत होइ"

सुगना ने कजरी को फिर बुला लिया. कजरी आखिरकार बाहर आ गई

कजरी ने बछिया की योनि से बहती हुई लार देख ली। उसे बछिया के रंभाने का कारण पता चल चुका था। सुगना की निगाह अब तक उस पर नहीं पड़ी थी। उसने कजरी से फिर पूछा

" माँ बछिया काहे बोल तिया" कजरी ने उसका हाथ पकड़ा और खींच कर बछिया के पीछे ले आयी। उसने कुछ कहा नहीं पर बछिया की योनि की तरफ इशारा कर दिया। उसकी योनि से बहती हुई लार अब सुगना ने देख ली थी। कहने समझने को कुछ ना रहा। सास और बहू दोनों ने बछिया का मर्म समझ लिया। कुछ ही देर में सरयू सिंह आते हुए दिखाई दिए। सुगना को आभास हो चुका था कि आगे क्या होने वाला है। वह अपने बाबू जी से नजरें मिलाने में असमर्थ थी। वह आंगन में चली गई।

आज उसकी बछिया चुदने वाली थी। सुगना की जांघों के बीच स्वता ही गीलापन आ चुका था। आज उसकी सहेली भी चुदने जा रही थी। सुगना कान लगाकर कजरी और सरयू सिंह के बीच हो रही बात सुन रही थी। अंततः भूवरा अपना सांड लेकर शाम को दरवाजे पर आ चुका था। सरयू सिंह की गाय भी उस सांड को देख रही थी। पर आज उसे वह सुख नहीं मिलना था।

आज का दिन बछिया का था। बछिया चुपचाप शांत खड़ी थी। सांड ने बछिया की योनि से बहता हुआ द्रव्य देख लिया वह उसे सुंघने लगा। कुछ ही देर में वह बछिया पर चढ़ गया।

सुगना वह दृश्य देख रही थी उसकी जांघें गीली हो चली थी आज उसकी सबसे प्रिय सहेली भी चुद रही थी। वह रूवासी हो चली थी। उसका इंतजार अब कठिन हो रहा था। उसने मन ही मन कजरी से बात करने की ठान ली। आखिर यह उसका हक भी था और उसके युवा शरीर की जरूरत भी.

वह यह बात अपनी सास कजरी से कैसे कहेगी यह प्रश्न उसके लिए अभी यक्ष प्रश्न जैसा था। क्या कोई बहू अपनी सास से अपनी चुदने की इच्छा को इस तरह खुलकर व्यक्त कर पाएगी और तो और सुगना के मन में उसके बाबूजी बसे हुए थे वह किस मुंह से अपने बाबू जी से संभोग करने के लिए कहेगी। सुगना अपनी सोच में डूबी हुई थी उधर नियति सुगना की मासूमियत पर मुस्कुरा रही थी। नियति ने सुगना के लिए जो सोच रखा था वह समय के साथ होना तयः था सुगना की अधीरता कुछ ही दिनों में शांत होने वाली थी वह भी पूरी धूमधाम से।

रात में सास और बहू के बीच में उस बछिया को लेकर ढेर सारी बातें हुई पर सुगना अपनी बात कहने की हिम्मत न जुटा पाई

2 दिनों बाद हरिया की लड़की लाली गांव आई वह गर्भवती हो चुकी थी। वह अपने मायके आई हुई थी। वह अपना फूला हुआ पेट लेकर सुगना के पास आती और अपनी गर्भावस्था के अनुभव सुनाती। सुगना अपने मन में दुख भरे हुए उसके अनुभव सुनती जो उसे बिल्कुल बेमानी लगते। उस सुंदरी की कोमल बुर पर आज तक किसी पुरुष का हाथ तक नहीं लगा था वह गर्भावस्था के अनुभव सुनकर क्या करती। फिर भी उसे यह बात सोच कर ही खुशी मिलती की लाली के जीवन में उसका एक और करीबी आ जाएगा जो समय के साथ बड़ा होगा और उसके बुढ़ापे की लाठी बनेगा। सुगना के मन में भी मां बनने की इच्छा प्रबल हो उठी।

इतना तो तय था की वह बिना चुदे हुए मां नहीं बन सकती थी। जब उसका पति उसे हाथ लगाने को तैयार ही नहीं था तो यह कैसे संभव होगा? क्या बाबू जी उसके साथ …... करेंगे? उसने खुद से ही प्रश्न किया और उसके उत्तर में शर्म से पानी पानी हो गई. पर जितना वह इस बारे में सोचती उतना ही उसे उसे सुकून मिलता.

उसने अंततः अपने मन की बात कजरी से बता दी. उसने कजरी से यह तो नहीं कहा कि वह अपने बाबू जी से चुदना चाहती है पर इतना जरूर कहीं कि उसकी मां बनने की इच्छा अवश्य है। सुगना ने मां बनने की इच्छा जाहिर कर बिना कहे संभोग की इच्छा जाहिर कर दी थी यह उसका हक भी था और उसके शरीर की मांग भी जिसको कजरी और सरयू सिंह कई महीनों से नजरअंदाज किए हुए थे।

कजरी रुवासी हो गई। अपनी बहू की वेदना उससे सहन ना हुई। उसे कुछ नहीं सूझ रहा था। सरयू सिंह और सुगना के बीच जो कामुकता पनप रही थी उसका आभास कजरी को बिल्कुल भी नहीं था। कजरी के जहन में भी कभी सरयू सिंह का ख्याल नहीं आ सकता था।

कजरी ने उस दिन के बाद से इस बारे में सोचना शुरू कर दिया। कजरी ने सुन रखा था की कई गांव में जब पति बच्चा पैदा करने में अक्षम हो तो स्त्रियां अपने जेठ या देवर से संभोग कर बच्चे को जन्म देती हैं। और यह यह एक गलत कार्य नहीं माना जाता पर यह सुगना का दुर्भाग्य ही था कि दूर दूर तक देखने पर ऐसा कोई देवर या जेठ नहीं दिखाई पड़ रहा था जिससे सुगना संभोग कर गर्भवती हो सके।

कजरी ने मन ही मन रतन से मिन्नतें करने करने को सोची। उसने प्रण कर लिया कि इस बार जब रतन घर आएगा तो वह उससे सुगना से संभोग करने के लिए अनुरोध करेगी और उसे गर्भवती कराने का प्रयास करेगी। सुगना को आए 6 महीना भी चुका था।

इस बार रतन दशहरा के अवसर पर आया. वह सभी के लिए उपहार भी लाया था। सुगना के लिए कजरी के मन में उम्मीद जाग उठी थी पर सुगना का मन रतन से खट्टा हो चुका था जिस पुरुष ने उससे सुहाग की सेज पर संभोग करने से इंकार कर दिया था वह उस से दोबारा मिलना नहीं चाहती थी। हालांकि यह बात उसने कजरी को नहीं बताई पर उसके व्यवहार से यह स्पष्ट था। उधर कजरी ने रतन से बात की लाख मिन्नतें करने के बाद भी वह रतन को तैयार न कर सकी। कुछ दिन रह कर रतन वापस चला गया

इसी दौरान एक बार कजरी की मुलाकात पदमा से हो गयी। वह दोनों किसी विशेष पूजा के लिए एक मंदिर में गए हुए थे दोनों एक दूसरे को पहचानती थी वह आपस में हिल मिलकर बातें करने लगी सुगना की बात करते-करते कजरी ने सुगना की इच्छा को पदमा से खुलकर बता दिया। दोनों इस गंभीर विषय पर बात करने लगीं। बातों ही बातों में सरयू सिंह का नाम पदमा की जुबान पर आ गया उसने कहा एक बार अपने देवर जी से बात करके देखिए।

कजरी सन्न रह गई उसने कहा

"सुगना उनका के बाबूजी बोले ले"

पद्मा ने कहा

" हां ठीक बा बाबू जी बोले ले पर बाबूजी हवे ना नु"

पद्मा ने अपना सुझाव सोच समझ कर ही दिया था। वैसे भी वह एक हष्ट पुष्ट मर्द थे यदि वह तैयार हो जाते हैं तो सुगना को एक स्वस्थ पुत्र की प्राप्ति होगी वैसे भी यह कुछ मुलाकातों की बात थी। पदमा को कजरी और सरयु सिंह के बीच हुए चल रहे संबंधों की भनक थी।

कजरी सोच में पड़ गई वह पदमा से कुछ बोल नहीं पा रही थी पर मन ही मन उसके दिमाग में यह बातें घूमने लगी क्या यह संभव है क्या सरयू सिंह सुगना के साथ संभोग कर पाएंगे वह उसे अपनी पुत्री समान मानते हैं। पर जब बात निकल ही गई थी तो कजरी ने मन ही मन इस बात की संभावना को तलाशने की जिम्मेदारी ले ली।

उसे सुगना और उसके बाबू जी दोनों को तैयार करना था। वह अब उसी नियति की प्रतिनिधि बन चुकी थी जिसे सुगना और सरयू सिंह को करीब लाना था। सुगना का इंतजार खत्म होने वाला था कजरी मन ही मन मुस्कुरा रही थी और आने वाली घटनाक्रम का ताना-बाना बुन रही थी।

रतन को गए 1 हफ्ते भी चुके थे कुछ ही दिनों बाद दिवाली आ रही थी कजरी की बहू सुगना की यह पहली दीपावली थी दीपावली का त्यौहार सभी के लिए खुशियां लेकर आता है। कजरे ने भी अपनी बहू सुगना को खुश करने की ठान ली। सुगना की मां पदमा ने जो उपाय सुझाया था अब वह उससे संतुष्ट हो गई थी और उस दिशा में सोचने भी लगी थी। उसे इस बात की जानकारी नहीं थी कि सरयू सिंह और सुगना पहले ही काफी नजदीक आ चुके है। इन दोनों का मिलन नियत ने पहले ही सुनियोजित कर रखा था कजरी को सिर्फ उस मिलन का भागीदार बनना था।

कजरी ने एक बात और महसूस की थी कि पिछले कुछ महीनों में सरयू सिंह की कामुकता और उत्तेजना में एक नयापन था उसे लगता जैसे शरीर सिंह कोई दवाई खा रहे हो जिससे वह इतने उत्तेजित रहते थे और उसकी बुर चोदते समय कुछ ज्यादा ही उत्साह में रहते थे।

आखिर एक दिन कजरी ने हिम्मत जुटा ली। कजरी ने जी भरकर अपने कुंवर जी का लंड चूसा और उनके लंड पर बैठ कर धीरे धीरे उन्हें चोद रही थी। सरयू सिंह सुगना के मालपुए में डूबे हुए थे। तभी कजरी ने कहा

"हमनी के जवान जइसन सुख भोगतानी जा लेकिन सुगना बहू के बारे में कुछ सोच ले बानी"

सरयू सिंह को एक पल के लिए सुगना की चूचियां और उसकी कोमल बुर नजर आ गई

"काहे का भइल"

"ओकर बछियो माँ बने जा तिया और सहेली लाली भी, बेटी सुगना के करम फुटल बा. रतनवा अबकी हाली भी ओकरा संगे ना सुतल हा। बेचारी काल रोवत रहे. बेचारी मां बन जाइत तो कम से कम ओकर जीवन कट जाइत।"

"उ त ठीक बा बाकी लेकिन ई होइ कइसे?"

सरयू सिंह खुद अपना नाम नही सुझा सकते थे। वो विचार मुद्रा में आ गए पर लंड अपनी जगह न सिर्फ तना रहा अपितु उछल रहा था।

कजरी ने कहा..

"हम भी ढेर सोचनी पर केहू विश्वाशी आदमी दिखाई नइखे देत"

सरयू सिंह गंभीर थे वह कजरी के मुह से अपना नाम सुनना चाहते थे पर कजरी उनकी मनोदशा से अनभिज्ञ उनका नाम लेने में डर रही थी।

कजरी ने चाल चली. ..

"एक बात कहीं खिसियाईब मत "

" बोल……"

"हरिया से बतियायीं ना आपके दोस्त भी ह उ केहू के ना बताई और सुगना के काम भी हो जायीं"

सरयू सिंह गुस्सा हो गए

"उ साला हमार सुगना के हांथ लगाई"

"त आपे हाँथ लगा दी। घर के बात घरे में रह जायीं"

सरयू सिंह प्रसन्न हो गए। खुशी में क्रोध का प्रदर्शन कठिन था फिर भी वो नाराज होते हुए बोले…

"का कह तारू, बहु बेटी नियन होले हमारा से ई कइसे होई"

सरयू सिंह की बात में प्रतिरोध तो था पर मनाही नही थी।

कजरी ने पद्मा की बात दोहरा दी।

" उ त हमार पतोह ह नु, उ ना आपके पतोह ह ना बेटी"

दोनो एक दूसरे से बात करते रहे। जब दोनों पक्षों में आम सहमति हो तो तर्क वितर्क ज्यादा देर तक नहीं चलता कुछ ही देर में कजरी ने शरीर सिंह को मना लिया सरयू सिंह ने कहा

"तू सुगना से पूछ ले रहलु हा।"

कजरी ने कहा

"पहिले रउआ से तब पूछ ली तब ता ओकरा से बतियायीं"

सरयू सिंह को पूरी उम्मीद थी सुगना कजरी का यह प्रस्ताव सहर्ष स्वीकार कर लेगी। अब तक जितनी भी पहल हुई थी वह सुगना ने स्वयं की थी। वह तो उसकी प्रेम धारा में बहते बहते इस स्थिति तक आ पहुचे थे।

कजरी की कमर की रफ्तार बढ़ती गई। सरयू सिंह कजरी के बदन में सुगना खोजते रहे। उन्होंने आंखें बंद कर ली और अपनी प्यारी बहू सुगना को याद करते लगे। उनकी कमर हिलने लगी ।

कजरी आनंद में डूब रही थी।उसे दोहरा आनंद प्राप्त हो रहा था। उसने सुगना की समस्या दूर कर दी थी और सरयू सिंह का फुला हुआ लंड उसकी बुर की मसाज कर रहा था। वह सरयू सिंह को चूमती हुई स्खलित होने लगी।

सरयू सिंह उसके नितंबों को सहलाते हुए अपनी सुनना को याद कर रहे थे और उसके बुर में अपना वीर्य भरने को तैयार थे। सब्र का बांध टूट गया। कजरी की बुर एक बार फिर सरयू सिंह के वीर्य से सिंचित हो रही थी। कजरी सरयू सिंह को चूम रही थी। उन्होंने उसकी जिंदगी तो सवार ही दी थी और अब वह उसकी बहू की जिंदगी संवारने वाले थे। वह उनके प्रति कृतज्ञ थी।

सरयू सिंह की रजामंदी मिलने के बाद अगले दिन दोपहर में कजरी ने सुगना से बात की।

"सुगना बेटी एक आदमी तैयार भईल बा लेकिन तुम मना मत करिह, हमरा और केहू विश्वासी आदमी ना मिलल हा. दो-चार दिन अपना मान मर्यादा के ताक पर रखकर एक बार गर्भवती हो जा, औरो कोई उपाय नइखे"

सुगना ने कहा

"मां रउवा जउन सोचले होखब उ ठीके होइ लेकिन उ के ह?"

सुगना ने अपने इष्ट देव को याद कर कजरी के मुख से अपने बाबूजी का नाम सुनने के लिए प्रार्थना करने लगी। वह उनके अलावा किसी और को अपना शरीर नहीं छूने देना चाहती थी। वह अपनी आंखें बंद किए मन ही मन प्रार्थना रात हो गई।

कजरी अपने मन में हिम्मत जुटा रही थी पर यह बोल पाने की उसकी हिम्मत नहीं थी। परंतु जो नियति ने लिखा था वह होना तय था। कजरी ने अपनी लड़खड़ाती जीभ को नियंत्रण में किया और बोली

" सुगना बेटा , हमार कुंवर जी"

वह इससे आगे सुगना से बात करने की हिम्मत न जुटा पाई और उठकर आगन में आ गयी। जाते जाते उसने सुगना से कहा "सुगना बेटा सब आगे पीछे सोच लिहा हमरा पास और कोनो उपाय नइखे। लेकिन तू जइसन चहबू उहे होइ"

सुगना ने उन कुछ पलों में खुद को अपने बाबूजी के साथ नग्न अवस्था में देख लिया। वह आनंद से अभिभूत हो रही थी। उसकी दिली इच्छा पूरी होने वाली थी। वह भी उसकी सास कजरी की रजामंदी से। वह अपने इष्ट देव को तहे दिल से धन्यवाद कर रही थी। उधर सुगना की कोमल बुर मुस्कुरा रही थी उसके होठों पर प्रेम रस छलक रहा था।

कुछ देर बाद सुगना रसोई में आई कजरी ने उसे प्रश्नवाचक निगाहों से देखा। सुगना ने कहां

" मां बाबुजी मनिहें?"

सुगना की रजामंदी ने कजरी को खुश कर दिया। उसने कहा

" अपना सुगना बाबू के खतिर हम उनका के मना लेब"

कजरी ने समस्या का अद्भुत निदान निकाल लिया था। वह खुशी खुशी खाना बनाने लगी। उसने सुगना से कहा

"जा हमरा कुंवर जी के खाना खिला द और अब उनका के बाबुजी मत बोलीह" कजरी मुस्कुरा रही थी।

सुगना ने भी सिर झुकाए हुए खाना थाली में निकाला और अपने बाबुजी माफ कीजिएगा कुँवर जी के पास खाना लेकर चली गई।

शेष अगले भाग में
अगला भाग कब
 

Singh ji

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सुगना के बेटे का नाम सूरज रखा गया. यह नाम कजरी ने ही सुझाया था यह उसका हक भी था आखिर सुगना और सरयू सिंह का मिलन कजरी की बदौलत ही हो पाया था।

सुगना और कजरी बच्चे का ख्याल रखतीं। सरयू सिंह बेहद खुश दिखाई पढ़ते। उनके सारे सपने पूरे हो रहे थे। खासकर जब वह अपनी प्यारी सुगना के चेहरे पर खुशी देखते हैं वह बाग बाग हो जाते।

पर आज सुगना दुखी थी वह और कजरी आपस में बातें कर रही थीं। उनकी चिंता सूरज के दूध न पीने की वजह से थी। कजरी ने कहा

"सुगना, आपन चूची में शहद लगा के पियाव"

"मां, लगवले रहनी पर लेकिन उ चूची पकड़ते नईखे"

"सरयू सिंह आंगनमें आ चुके थे। सुगना ने घुंघट ले लिया पर उसकी चुची अभी भी साफ दिखाई पड़ रही थी। कजरी ने हाथ बढ़ाकर आंचल से सुगना की चूचियां ढक दीं।

कुछ ही देर में सरयू सिंह को सारा माजरा समझ में आ गया। उन्होंने सूरज को गाय का दूध पिलाने की बात की पर कजरी ने मना कर दिया।

अगली सुबह सुगना ने अपनी कोठरी का खिड़की खोली सूर्य की किरणें बाहर दालान में पढ़ रही थीं। अचानक उसकी निगाह अपनी गाय पर पड़ी जिसमें अभी दो महीना पहले ही एक बछड़े को जन्म दिया था।

कजरी ने बाल्टी सरयू सिंह ने के हाथ में दी सरयू सिंह गाय का दूध निकालने चल पड़े। उन्होंने अपनी दोनों जांघों के बीच बाल्टी फसाई और गाय की चुचियों से दूध दुहने लगे। सूर्य की किरणों से उनका बलिष्ठ शरीर चमक रहा था। उनकी मांसल जांघों के बीच बाल्टी फसी हुई थी। उनकी मजबूत हथेलियों के बीच गाय की कोमल चुचियां थी जिसे वह मुठ्ठियाँ भींचकर खींच रहे थे।

सर्र्रर्रर्रर …… सुर्रर्रर…. की आवाज आने लगी. सुगना यह दृश्य देखकर सिहर उठी. वह स्वयं को उस गाय की जगह सोच कर थरथरा उठी. उसकी आंखों में वासना तैरने लगी उसकी चूचियां तन गयीं। उत्तेजना में उसकी खिड़की पर रख दिया गिर पड़ा जिसकी आवाज से सरयू सिंह ने उधर देखा सुगना की निगाह सरयू सिंह से टकरा गई

सुगना शर्म के मारे पानी पानी हो गई सरयू सिंह को सारा माजरा समझते देर न लगी उनका लंड उछल कर खड़ा हो गया। सुगना बेटी का इस तरह चूँची निचोड़ते हुए देखना सच में उन्हें भी उत्तेजित कर गया था। उन्होंने बाल्टी को हटाया और अपने खड़े हो चुके लंड को ऊपर की तरफ किया और एक बार फिर चुचियों से दूध दुहने लगे।

सुगना से और बर्दाश्त नहीं वह उत्तेजना से कांप रही थी। उसने कोठरी की खिड़की बंद कर दी और चौकी पर बैठकर पास बड़ी कटोरी में अपनी चुचीं से दूध निकालने का प्रयास करने लगी।
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उसकी कोमल हथेलियां अपनी ही चूचियों पर जोर लगा कर चार छः चम्मच दूध निकाल पायीं। उसने सूरज को वह दूध पिलाने की कोशिश की सूरज ने गटागट दूध पी लिया।

सुगना की खुशी का ठिकाना न रहा उसने झट से दूसरी चूची निकाली और उसका भी दूध निकालने लगी। तभी सरयू सिंह बाल्टी में दूध लिए कमरे में आ गए। सुगना को इस तरह अपनी ही चूची से दूध निकालते हुए देखकर वह बोले

"सुगना बेटा ल ई गाय के ताजा दूध पिला पिया द"

"बाबूजी इहो ताजा बा उ इहे मन से पियता"

सरयू सिंह मुस्कुराते हुए कमरे से वापस आ गए। उन्होंने मन ही मन सुगना की मदद करने की ठान ली

सुगना ने दूसरी चूची से निकाला दूध भी सूरज को पिला दिया और थपकी देकर उसे सुला दिया वह खुशी से चहकती हुई कजरी के पास आयी। सरयू सिंह अपनी बहू का चहकना देख कर मन ही मन प्रसन्न हो रहे थे। उनका लंड अभी भी धोती में तना हुआ था उन्होंने उसे सहला कर शांत कर दिया।

सुगना के चेहरे पर खुशी स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी। उसने आज सुबह के दृश्य के लिए नियति और अपने बाबू जी के प्रति कृतज्ञता जाहिर की जिन्होंने सुगना को यह अद्भुत उपाय सुझाया था अब सूरज भी खुश था और वह भी।

दोपहर में कजरी हरिया के यहां सुगना के लिए सोंठ के लड्डू बनाने चली गई। सरयू सिंह बाहर दालान में बैठे थे आंगन में आ रही हैंडपंप की आवाज से उन्होंने अंदाजा लगा लिया सुगना नहा रही थी। जैसे ही सुगना नहा कर अपने कमरे की तरफ गई सरयू सिंह पीछे पीछे अंदर आ गए। सुगना अपना शरीर पोछ कर अपना पेटीकोट पहन ही रही थी। तभी सरयू सिंह ने पेटीकोट को जांघो तक पहुचने से पहले ही ही पकड़ लिया।

वह अपने हाथ में कटोरी लेकर आए थे सुगना ने पीछे मुड़कर देखा तो सरयू सिंह ने उसे कटोरी पकड़ा दी और कहा

" चला सूरज बाबू के दूध पिया द"

सुगना ने कटोरी लेने के लिए जैसे ही हाथ बढ़ाया उसका पेटीकोट वापस जमीन पर आ गया। सुगना पूरी तरह नंगी खड़ी थी। तभी छोटा बालक रोने लगा। सुगना ने झुककर बालक की पीठ थपथपाई इस दौरान उसकी गोरी गांड और चूत सरयू सिंह के निगाहों के ठीक सामने आ गयी।

उनसे अब और बर्दाश्त न हुआ जब तक सुगना बच्चे की पीठ थपथपाती तब तक सरयू सिंह वस्त्र विहीन हो चुके थे। बच्चे की आंख लगते ही उन्होंने सुगना को पीछे से पकड़ लिया। सुगना ने मुस्कुराते हुए वह आमंत्रण सहर्ष स्वीकार कर लिया और खड़ी हो गई। उसकी दोनों कोमल चूचियां सरयू सिंह के हाथों में थीं।

वह कुछ देर तो अपनी सुगना बेटी की चूचियाँ सहलाते रहे फिर अपना दबाव बढ़ाते गए। दूध की धार फूट पड़ी।
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सुगना ने उसे कटोरी में रोकने की कोशिश की पर खड़े होने की वजह से यह संभव नहीं हो रहा था। दूध नीचे गिर रहा था।

सुगना स्वयं आगे आकर सुबह अपनी गाय की अवस्था(आज की डॉगी स्टाइल) में आ गई। वह खुद आज उत्तेजना का शिकार थी। आज सुबह जो उसने देखा था वह उसके मन मस्तिष्क पर छा गया था। अब सुगना की दोनों चूचियां नीचे लटक रही थीं। सरयू सिंह ने कटोरी नीचे रख दी और सुगना की दोनों चूचियां सहलाने लगे बीच-बीच में वह अपने एक हाथ सुगना के कोमल नितंबों को तथा उसके बीच की दरार को भी सहला देते। अपनी गांड पर सरयू सिंह की उंगलियों का स्पर्श पाकर उनकी प्यारी सुगना चिहुँक उठती।

सुगना का चेहरा वासना से लाल हो रहा था। उन्होंने अपनी हथेलियों का दबाव जैसे ही बढ़ाया दूध की धार कटोरी में गिरने लगी। वह माहिर खिलाड़ी थे पर आज जिसका दूध वह दूर रहे थे वह उनकी जान थी उनकी अपनी बहू सुगना। दूध निकालने के लिए चुची को दबाना जरूरी था पर इतना नहीं जिससे उनकी सुकुमारी को कष्ट हो।

अपने सधे हाथों से उन्होंने सुगना की आंखों में बिना आंसू लाए आधी कटोरी भर दी। उन्होंने सुगना की आंख के आंसू तो रोक लिए पर चूत पर ख़ुशी के आंशु उभार दिए । अचानक उनके हाथों का दबाव बढ़ गया। सुगना कराह उठी

"बाबूजी तनी धीरे से……. दुखाता"

सुगना की कराह मादक थी उनसे और बर्दाश्त ना हुआ। वह उठ कर सुगना के पीछे आ गए। उन्होंने एक हाथ से अपने शरीर का बैलेंस बनाया और दूसरे हाथ से सुगना की दूसरी चूँची दुहने लगे।

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उनका लंड सुगना के नितंबों से लगातार छू रहा था। सुगना भी पूरी तरह उत्तेजित थी। कटोरी के दूध से भरते भरते सुगना की चूत से लार टपकने लगी। वह चुत से चाशनी की भांति लटकी हुई थी और चौकी को छूने की कोशिश कर रही थी। सुगना ने वह देख लिया था।
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उसने अपने एक हाथ से उसे पोंछने की कोशिश की। वह अपने बाबू जी को अपनी उत्तेजना का नंगा प्रदर्शन नही करना चाहती थी।

सरयू सिंह ने उसकी कोमल कलाइयां बीच में ही रोक ली। वह शर्मा कर वापस उसी अवस्था में आ गई। उसने कटोरी का दूध हटाकर दूर रख दिया। सरयू सिंह उसकी चुचियों को अभी भी सहला रहे थे। शायद जितना कष्ट उन्होंने उसे दिया था उसे सहला कर उसकी भरपाई कर रहे थे।

उधर उनका लंड अपनी सुगना बेटी की चूत के मुंह पर अपना दस्तक दे रहा था। वह सिर्फ उसके मुंह से लार लेता और सुगना के भगनासे पर छोड़ देता।

सुगना अपनी कमर पीछे कर उसे अंदर लेने का प्रयास कर रही थी। पर उसके बाबूजी अपनी कमर पीछे कर लेते।

सुगना के कड़े हो चुके निप्पल पर उंगलियां पहुंचते ही एक बार फिर सरयू सिंह ने उसे दबा दिया। सुगना के मुंह से कराह निकल गई ….

"बाबूजी तनी……….. जब तक वाह अपनी बात कह पाती उसके बाबूजी का मूसल उसकी मखमली और लिसलिसी चूत में घुस कर उसकी नाभि को चूमने का प्रयास कर रहा था। सुगना आनंद में डूब चुकी थी। सरयू सिंह ने अपना लंड बाहर निकाला और फिर एक बार जड़ तक अपनी बहू की कोमल चूत में ठास दिया।

सुगना आगे की तरफ गिरने लगी सरयू सिंह ने उसके कोमल कंधे पकड़ लिए और अपने लंड को तेजी से अंदर बाहर करने लगे। जब लंड सुगना की चुत में अंदर जाता वह गप्पप्प की आवाज होती और जब वह बाहर आता फक्क…..की ध्वनि सुनाई पड़ती।

यह मधुर ध्वनि सुगना और सरयू सिंह दोनों सुन रहे थे पर शायद उन्हें नहीं पता था घर में तीसरा प्राणी भी था जो अब अपनी आंखें खोलें टुकुर-टुकुर यह दृश्य देख रहा था। सरयू सिंह की निगाह बालक पर पढ़ते ही वह घबरा गए कहीं ऐसा ना हो कि बालक रोने लगे। उन्होंने मन ही मन भगवान से प्रार्थना की और उनकी प्यारी बहु की चुदाई की रफ्तार बढ़ा दी।

वह किसी भी हाल में स्खलित होना चाहते थे। सुगना आंखे बाद किये बेसुध होकर चुदाई का आंनद ले रही थी। सूरज अभी भी टुकुर-टुकुर देख रहा था। वह रो नहीं रहा था इस अद्भुत चुदाई से सुगना थरथर कांपने लगी उससे अब और बर्दाश्त नहीं हो रहा था। वह पलट कर सीधा होना चाह रही थी उसकी कोमल कोहनियां और घुटने उस खुरदुरी चौकी से लाल हो गये थे।

सरयू सिंह ने उसकी मदद की और उस खुरदरी चौकी पर अपनी कोमल बहू को पीठ के बललिटा दिया। सुगना की मांसल जांघों को पकड़ कर उन्होंने प्यारी सुगना फिर से चोदना शुरू कर दिया सुगना आनंद में डूबी हुई थी। उसकी आंखें बंद थी सरयू सिंह ने जैसी ही उसकी चुचियों को मीसा एक बार फिर दूध की धार उनके चेहरे पर पड़ गई जिसको उन्होंने अपनी जीभ से चाट लिया। उसका स्वाद उन्हें पसंद ना आया पर था तो वह उनकी प्यारी बहु सुगना का। उन्होंने सुगना की एक सूची को जैसे ही मुंह में लिया सुगना की चूत कांपने लगी।
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सरयू सिंह ने भी देर नहीं की और अपनी कमर को तेजी से आगे पीछे कर अपनी प्यारी सुगना को चोदते रहे। थोड़ी ही देर में जितना दूध उन्होंने सुगना की चूची के पिया था उसे सूद समेत उसकी चुत में भर दिया।

सुगना तृप्त हो चुकी थी। उसने अपने बाबूजी को चुम्मा दिया और कुछ देर के लिए शांत हो गई। सूरज की आंखें थक चुकी थी उसने अपना क्रंदन प्रारंभ कर दिया ।

सुगना उठ कर खड़ी हो गई उसकी चूत से बह रहा वीर्य जांघो का सहारा लेकर नीचे गिर रहा था। सरयू सिंह ने पेटीकोट उठाया और उसे पोंछने लगे। उनकी निगाह नितंबों के बीच सुगना की गदरायी गाड़ कर चली गई। वह कुंवारी गांड उन्हें कई दिनों से आकर्षित कर रही थी।

सुगना ने कटोरी भर दूध देखकर अपने प्यारे बाबू जी का शुक्रिया अदा किया और सूरज को दूध पिलाने बैठ गयी। उसने कपड़े पहनने कि जल्दी बाजी न की। सूरज उसकी चुचियों से खेलते हुए चम्मच से दूध पीने लगा।
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थोड़ी ही देर में मां बेटा प्रसन्न हो गए। सरयू सिंह बाहर दालान में खाने का इंतजार कर रहे थे। सुगना तैयार होकर अपने बाबूजी के लिए खाना लेकर आ गई। सरयू सिंह अपनी उंगलियों से रोटियां तोड़ने लगे और सुगना उन मजबूत उंगलियों को देख कर मन ही मन मुस्कुरा रही थी और अपनी कोमल हथेलियों से अपने बाबूजी के लिए पंखा झल रही थी। बहू का यह प्यार सरयू सिंह को अचानक नहीं मिला था उन्होंने सुगना का मन और तन बड़ी मुश्किल से जीता था। वह अपनी यादों में खोते चले गए…..
शेष अगले भाग में
MAST UPDATED HAI BOSS , MIND BLOWING👍👍👍👍👍
 

Napster

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आखिर सरयू सिंह और सुगना के मिलन का रास्ता साफ हो गया।
मिलन की बेला नजदीक आ गई
बहुत ही बेहतरीन और धमाकेदार अपडेट है भाई मज़ा आ गया
अगले धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजियेगा
 

Lovely Anand

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Kya mazara hai. Can some one explain..

Meanwhile Update will come tomorrow evening.

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MaalPaani

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