भाग 89
इधर सरयू सिंह अपनी रासलीला में व्यस्त थे उधर सुगना और सोनू इस आश्चर्य में डूबे हुए थे कि सरयू सिह किस महिला की एंबेसडर कार में बैठकर न जाने कहां चले गए थे।
सुगना और सोनू तक इसकी खबर गेस्ट हाउस के एक व्यक्ति ने बखूबी पहुंचा दी थी जो नुक्कड पर सरयू सिंह को मनोरमा की गाड़ी में बैठ के देख चुका था वह व्यक्ति मनोरमा को तो नहीं जानता था परंतु सरयू सिंह को बखूबी पहचानने लगा था। गेस्ट हाउस में कुछ देर की ही मुलाकात में वह उनसे प्रभावित हो गया था. शुक्र है कि उसने सरयू सिंह की मार कुटाई नहीं देखी थी अन्यथा शायद वह यह बात भी सुगना और सोनू को बता देता और उन दोनों को व्यग्र कर देता…
सरयू सिंह को आने में देर हो रही थी थी…गेस्ट हाउस के अटेंडेंट ने सोनू और सुगना को खाने का अल्टीमेटम दे दिया उसने बेहद बेरुखी से कहा..
" हम और इंतजार नहीं कर सकते हमें भी अपने घर जाना है हमने आप लोगों का खाना निकाल कर रख दिया है कहिए तो कमरे में दे जाएं…"
सोनू उस पर नाराज हो रहा था परंतु सुगना ने रोक लिया आखिर उस अटेंडेंट की बात जायज थी कोई व्यक्ति कितना इंतजार कर सकता है उसका भी अपना परिवार है…
सोनू और सुगना ने आपस में बातें कर यह अंदाज कर लिया कि सरयू सिंह निश्चित ही किसी के मेहमान बन गए थे।
सोनू और सुगना ने खाना खाया… दोनों छोटे बच्चे भी खाना खाकर सो गए। सुगना बिस्तर पर लेटी हुई थी सोनू गेस्ट हाउस के सोफे पर बैठ कर सुनना से बातें कर रहा था… तभी बिजली गुल हो गई शायद यह वही समय था जब पूरे लखनऊ शहर की बिजली एक साथ ही गई थी ..
सुगना ने सोनू से कहा..
"हमरा झोला में से टॉर्च निकाल ले.."
सोनू ने सुगना के बैग में हाथ डाला और उसकी उंगलियां सुगना के कपड़ों के बीच घूमने लगी। उनको वह एहसास बेहद आनंददायक लगा। कितने कोमल होते हैं महिलाओं के वस्त्र …सोनू की उंगलियां उन कोमल वस्त्रों के बीच टॉर्च को खोजने में लग गईं..
कुछ देर वह अपनी उंगलियां यूं ही फिराता रहा तभी सुगना ने कहा
"सबसे नीचे होई सोनू….."
आखिर सोनू ने टॉर्च बाहर निकाल कर बाहर जला ली।
टॉर्च की रोशनी को छत पर केंद्रित कर सोनू ने कमरे में हल्की रोशनी कर दी…और सुगना से बोला
"आज बारिश कुछ ज्यादा ही बा… एहीं से लगा ता लाइट गोल हो गइल बा"
सुगना ने उसकी हां में हां मिला या और बोला
"ए घरी बनारस में भी खूब लाइट कटत बा"
कुछ देर इधर-उधर की बातें करने के बाद सोनू ने कहा
"लाली दीदी कईसन बिया?"
न जाने सुगना को क्या सूझा उसने अपनी नाराजगी दिखाते हुए सोनू से कहा
"ते लाली के दीदी मत बोलल कर"
"काहे का भईल" सोनू ने अनजान बनते हुए पूछा। उसे सच में समझ में नहीं आया कि सुगना ऐसा क्यों कह रही थी..
"तेहि समझ ऊ तोर बहिन ह का?"
"हा हम त लाली के दीदी सुरुए से बोलेनी.."
" पहिले ते बहिन मानत होखबे.. पर अब...ना नू मानेले"
सोनू सुगना की बात समझ चुका था परंतु अनजान बन रहा था। सुगना चुप हो गई परंतु उसने जिस मुद्दे को छेड़ दिया था वह बेहद संवेदनशील था सोनू ने सुगना को उकसाया..
"हम त अभी ओ लाली के लाली दीदी ही मानेनी.."
"दीदी बोलकर ऊ कुल काम कईल ठीक बा का? न जाने नियति ने सुगना को कितना वाकपटु कर दिया था
सोनू ने अपनी नजरें नीचे झुका लीं। सुगना उससे इस विषय पर जितनी बेबाकी से बात कर रही थी, उतनी सोनू की हिम्मत न थी कि वह खुलकर सुगना की बातों का जवाब दे पाता.. सोनू शर्मा रहा था और सुगना उसे छेड़ रही थी।
बातचीत में यदि एक पक्ष शर्म और संकोच के कारण चुप होता है तो दूसरा निश्चित ही उसे और उकसाने पर आ जाता है… सोनू की चुप्पी ने सुगना को और साहस दे दिया वह मुस्कुराते हुए बोली…
"तु जौन प्यार अपना लाली दीदी से करेला ना … ढेर दिन ना चली…. घर में बाल बच्चा और सोनी भी बिया कभी भी धरा जईब…"
सोनू की सांसे ऊपर नीचे होने लगी उसकी बड़ी बहन सोनू से खुलकर अपनी सहेली की चूदाई के बारे में बातें कर रहे थे। सुगना की बातों ने सोनू के मन में डर और उत्तेजना दोनों के भाव पैदा कर दिए।
सुगना की बातों से सोनू उत्तेजित होने लगा था पर मन ही मन इसे इस बातचीत के बीच में छूट जाने का डर भी सता रहा था। उसका एक अश्लील जवाब सुगना से उसकी बातचीत पर विराम लगा सकता था। वह संभल संभल के सुगना की बातों का जवाब देना चाह रहा था और इस बातचीत के दौर को और दूर तक ले जाना चाह रहा था।
"तू हमरा के काहे बोला तारू लाली के कहे ना बोलेलू "
"हम जानत बानी ऊहो बेचैन रहने ले….जाए दे तोर बियाह हो जाई त सब ठीक हो जाई"
"पहिले तोरा जैसन केहू मिली तब नू"
सोनू ने आज वही बात फिर कही थी जो आज से कुछ दिन पहले सभी की उपस्थिति में की थी परंतु आज इस एकांत में उसकी बात ने सुगना के दिलों दिमाग पर असर कुछ ज्यादा ही असर किया ।
सुगना सोच रही थी..क्या सोनू उसके जैसी दिखने वाली लड़की को प्यार करना चाहता था? प्यार या सिर्फ चूदाई…उसके दिमाग में सोनू का वह चेहरा घूम गया जब वह आंखे बंद किए लाली को चोद रहा था। सुगना ने सोनू से नजरे मिलने के बाद …सोनू के कमर की गति और उसके लाली को पकड़ने की अंदाज़ में बदलाव को सुगना ने बखूबी महसूस किया था। हे भगवान क्या सोनू के मन मन वह स्वयं बसी हुई थी… सुगना को सोनू की निगाहों में एक अजीब किस्म की ललक दिखाई दी।
सुगना शर्म से पानी पानी हो गई उसके उसके गाल सुर्ख लाल हो गए.. उसके दिमाग में सोनू और लाली की चूदाई घूमने लगी..
पांसा उल्टा पड़ गया था सोनू ने सुगना को निरुत्तर कर दिया था वह कुछ बोल पाने में असहज महसूस कर रही थी उसे कोई उत्तर न सोच रहा था सोनू ने फिर कहा..
"सांचो दीदी हम जानत बानी… तहरा जैसन बहुत भाग से मिली… पर हम बियाह तबे करब ना त …"
सुगना ने अपनी आवाज में झूठी नाराजगी लाते हुए कहा..
"ना त का …असही अकेले रहबे?"
"लाली दीदी बाड़ी नू .."
सोनू जान चुका था कि इस बातचीत का अंत आ चुका है उसने इसे सुनहरे मोड़ पर छोड़कर हट जाना ही उचित समझा और
"बोला दीदी तू सूत रहा हम जा तानी दूसरा कमरा में"
सुगना खोई खोई सी थी सोनू को कमरे से बाहर जाते हुए देख कर उसने कहा..
" एहजे सूरज के बगल में सूत के आराम करले का जाने लाइट कब आई.. अकेले हमरो डर लागी"
सोनू को जैसे मुंहमांगी मुराद मिल गई हो ..सुगना का साथ उसे सबसे प्यारा था। पिछले कई महीनों से.. सुगना उसे अपने ख्वाबों की परी दिखाई पड़ने लगी थी जिसे वह मन ही मन बेहद प्यार करने लगा था। सोनू सुगना से अपने प्यार का इजहार करना चाहता था परंतु अपनी मर्यादित और गंभीर बड़ी बहन से अपने प्यार का इजहार कर पाना .……शायद असंभव था।
सोनू आ कर सुगना के बिस्तर पर लेट गया। डबल बेड के बिस्तर पर सबसे पहले सुगना फिर मधु फिर सूरज और आखिरी में सोनू लेटा हुआ था ..
टॉर्च बंद हो चुकी थी कमरे में अंधेरा कायम था….. अंधेरे के बावजूद नियति अपनी दिव्य आंखों से सुगना, सोनू और उनके बीच लेटे उन दोनों छोटे बच्चों को देख रही थी.. भगवान की बनाई दो कलाकृतिया जो शायद एक दूसरी के लिए ही बनी थी … पर एक दूसरे से दूर अपनी आंखें छत पर टिकाए न जाने क्या सोच रही थीं…
सुगना दिन भर की थकी हुई थी उसे नींद आने लगी…उसके मन में सरयू सिंह को चिंता अवश्य थी पर उसे पता था अब भी सरयू सिंह स्वयं सबको मुसीबत से निकालने का माद्दा रखते थे उनका स्वय मुसीबत में पड़ना कठिन था..
थकी हुई सुगना नींद के सागर में हिचकोले खाने लगी। और न जाने कब ख्वाबों के पंख लगा कर स्वप्न लोक पहुंच गई…
बादलों के बीच सुगना एक अदृश्य बिस्तर पर लेटी आराम कर रही थी। चेहरे पर गजब की शांति और तेज था। शरीर पर सुनहरी लाल रेशमी चादर थी।
अचानक सुगना ने महसूस किया को वह चादर धीरे-धीरे उसके पैरों से ऊपर उठती जा रही हैऔर उसके पैर नग्न होते जा रहे है। उसने अपनी पलके खोली और सामने एक दिव्य पुरुष को देखकर मंत्रमुग्ध हो गई। वह दिव्य पुरुष लगातार उसके पैरों को देखें जा रहा था। जैसे जैसे वह चादर ऊपर की तरफ उठ रही थी उसके गोरे पैर उस पुरुष की आंखों में रच बस रहे थे सुगना बखूबी यह महसूस कर रही थी कि वह दिव्य पुरुष, सुगना की सुंदर काया को देखना चाहता है। सुगना नग्न कतई नहीं होना चाहती थी उसने अपने हाथ बढ़ाकर चादर को पकड़ने की कोशिश की परंतु उसके हाथ कुछ भी न लगा चादर और ऊपर उठती जा रही थी सुगना की जांघे नग्न हो चुकी थी…
इससे पहले की चादर और उठकर सुखना की सबसे खूबसूरत अंग को उस दिव्य पुरुष की आंखों के सामने ले आती सुगना जाग गई एक पल के लिए उसने अपनी आंखें खोली और देखकर दंग रह गई कि सामने सोनू खड़ा था और टॉर्च से रोशनी कर सुगना के नंगे पैरों को देख रहा था। दरअसल सुगना करवट लेकर लेटी हुई थी और उसका दाहिना पैर कुछ ऊपर की तरफ था.
इस अवस्था में उसकी दाहिनी जांघ का कुछ हिस्सा भी दिखाई पड़ रहा था।
कमरे में अंधेरा था परंतु टॉर्च की रोशनी में सुगना की गोरी जांघ पूरी तरह चमक रही थी और सोनू अपने होठ खोले लालसा भरी निगाह से सुगना को देख रहा था।
सुगना ने कोई हरकत ना कि वह चुपचाप उसी अवस्था में लेटी रही उसने सोनू को यह एहसास न होने दिया कि वह जाग चुकी है।
सोनू लगातार अपना ध्यान सुगना की जांघों पर लगाया हुआ था उसके हाथ बार-बार सुगना की नाइटी की तरफ बढ़ते पर वह उसे छूने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था…। उधर सुगना देखना चाहती थी कि सोनू किस हद तक जा सकता है। उस अनोखे स्वप्न से और सोनू की परीक्षा लेते लेते सुगना स्वयं भी उत्तेजित होने लगी थी…
जांघों के बीच सुगना की छोटी सी मुनिया सुगना की उंगलियों का इंतजार कर रही थी उसे कई महीनों से कोई साथी ना मिला था और उसने सुगना की उंगलियों से दोस्ती कर ली थी.. सामने सोनू खड़ा था .. अपनी जाग चुकी बुर को थपकियां देकर सुला पाना सुगना के बस में ना था।
आखिरकार उसने करवट ली और सोनू की आंखों के सामने चल रहे उस कामुक दृश्य को खत्म कर दिया सोनू भी मायूस होकर धीरे बिस्तर की तरफ बढ़ चला..
सुगना सोनू के व्यवहार से आश्चर्यचकित अवश्य थी …परंतु दुखी न थी उसके नग्न पैरों को देखने की कोशिश एक युवक की सामान्य जिज्ञासा मानी जा सकती थी परंतु उसने अपनी बहन की नाइटी को ऊपर न कर …सुगना के मन में भाई-बहन के पवित्र रिश्ते की पवित्रता को कुछ हद तक कायम रखा था।
नियति बार-बार सुगना और सोनू को एक साथ देखती और उसे उन दोनों के मिलन के दृश्य उसकी आंखों में घूमने लगते हैं परंतु एक मर्यादित और सुसंस्कृत बड़ी बहन कैसे स्वेच्छा से छोटे भाई से संबंध बना ले यह बात न नियति को समझ में आ रही थी और न सुगना को….
परंतु विधाता ने जो सोनू और सुगना के भाग्य में लिखा था उसे होना था कब कैसे और कहां यह प्रश्न जरूर था पर जिसने उन दोनों का मिलन लिखा था निश्चित ही उसने उसकी पटकथा भी लिखी होगी….
इधर सोनू अपनी बड़ी बहन के खूबसूरत कोमल पैरों और खुली जांघों का दर्शन लाभ ले रहा था उधर सरयू सिंह के सामने मनोरमा पूरी तरह नग्न अपनी पूरी मादकता के साथ उपस्थित थी।
सरयू सिंह का लंड लंगोट की कैद से बाहर आ चुका था और अपने पूरे उन्माद में खड़ा सरयू सिंह की नाभि को चूमने का प्रयास कर रहा था। यह बात वह भी जानता था कि वह सरयू सिंह की नाभि को चूम ना सकेगा परंतु उछल उछल कर वह अपना प्रयास अवश्य कर रहा था।
लंड में आ रही उछाल मर्द और औरत दोनों को उतना सुख देती है.. जिन युवा पुरुषों ने उछलते लंड का अनुभव किया है उन्हें इसका अंदाजा बखूबी होगा और जिन महिलाओं या युवतियों में उछलते हुए लंड को अपने हाथों में पकड़ा है वह उस अनुभव को बखूबी समझती होंगी।
मनोरमा की आंखें उस अद्भुत लंड पर टिकी हुई थी जो मोमबत्ती की रोशनी में और भी खूबसूरत दिखाई पड़ रहा था। मनोरमा के लिए वह लंड दिव्य अद्भुत और अकल्पनीय था… वह उसे को अपने हाथों में लेने के लिए मचल उठी ।
उधर सरयू सिंह सोफे पर बैठे अपने दोनों पैर फैला चुके थे। मनोरमा उनके पैरों के बीच पूरी तरह नग्न खड़ी थी और अपनी नजरे झुकाए सरयू सिंह के लंड को लालच भरी निगाहों से देख रही थी।
सरयू सिंह ने अपनी हथेलियां मनोरमा की जांघों की तरफ की और उसकी जांघों को पीछे से पकड़ कर मनोरमा को और आगे खींच लिया…सरयू सिंग के दिमाग में एक बार भी यह बात ना आई कि सामने खड़ी मनोरमा उनकी सीनियर और भाग्य विधाता रह चुकी थी और आज भी उसका कद उनसे कई गुना था परंतु आज सरयू सिंह के पास मनोरमा द्वारा पिलाई गई शराब का सहारा था और सामने एक कामातुर महिला …..
सरयू सिंह की हिम्मत बढ़ चुकी थी।
सरयू सिंह के खींचने से मनोरमा का वक्ष स्थल सरयू सिंह के चेहरे से आ सटा। सरयू सिंह ने अपना चेहरा मनोरमा कि दोनों भरी-भरी चुचियों के बीच लाया और थोड़ा सा आगे पीछे कर अपने गाल मनोरमा की दोनों चुचियों से सटाने लगे।
वह उनके खूबसूरत और कोमल एहसास में खोते चले गए । नीचे उनके हाथ बदस्तूर मनोरमा की जांघों की कोमलता को महसूस कर रहे थे। जैसे किसी बच्चे को एक साथ कई खिलौने मिल गए हैं सरयू सिंह मनोरमा के हर अंग से खेल रहे थे।
जैसे-जैसे सरयू सिंह की हथेलियां और ऊपर की तरफ बढ़ रही थी मनोरमा कसमसा रही थी उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह सरयू सिंह की इस कामक्रीड़ा को आगे बढ़ाएं या उसे रोकने का प्रयास करें। जिस दिव्य सोमरस ने सरयू सिंह के मन में हिम्मत भरी थी उसी दिव्य रस ने मनोरमा को वक्त की धारा के साथ बह जाने की शक्ति दे दी।
सरयू सिंह की हथेली मनोरमा के नितंबों पर आ गई और वह उन खूबसूरत नितंबों को सहला कर उनकी गोलाई का अंदाजा करने लगे…खूबसूरती की तुलना करने के लिए उनके पास एकमात्र सुगना थी परंतु जैसे ही उन्हें सुगना का ध्यान हुआ दिमाग उनका दिमाग सक्रिय हुआ और अचानक उन्हें अपनी अवस्था का एहसास हुआ और उन्हें अपने किए पाप का ध्यान आने लगे। इससे इतर सुगना को ध्यान करते ही उनका लंड उत्तेजना से फटने को तैयार हो गया ।
सरयू सिंह की उंगलियों ने दोनों नितंबों के बीच अपनी जगह बनानी शुरू की और धीरे-धीरे वो मनोरमा की खूबसूरत और गुदाज गाड़ को छूने लगी। इस छोटे छिद्र के शौकीन सरयू सिंह शुरू से थे…परंतु वह उनके सामने न था उंगलियों ने थोड़ा और नीचे का रास्ता तय किया और वह मनोरमा कि उस खूबसूरत और रसभरी नदी में प्रवेश कर गए उंगलियों पर प्रेम रस छलक छलक कर लगने लगा ऐसा लग रहा था जैसे सरयू सिंह ने चासनी में अपना हाथ डाल दिया उधर उनके होंठ मनोरमा की सूचियों से हट कर निप्पल तक जा पहुंचे और उन्होंने मनोरमा का निप्पल होंठो में लिया…
मनोरमा कसमसा उठी…अब तक उसने अपने हाथ इस प्रेमयुद्ध से दूर ही रखे थे परंतु उस अद्भुत अहसास से वह खुद को रोक ना पाए और उसके हाथ सरयू सिंह के सर पर आ गए। उसने सरयू सिंह के बाल पकड़े परंतु वह उन्हें अपनी तरफ खींचे या दूर करें यह फैसला वह न कर पाई उत्तेजना चरम पर थी… आखिरकार मनोरमा ने सरयू सिंह को अपनी चुचियों की तरफ खींच लिया।
सरयू सिंह गदगद हो गए.. मनोरमा का निमंत्रण पाकर वह मन ही मन उसे चोदने की तैयारी करने लगे..
नियति सरयू सिंह की अधीरता देख रही थी…परंतु सरयू सिंह को कच्चा खाना कतई पसंद न था वह पहले खाने को धीमी आंच में भूनते और जब वह पूरी तरह पक जाता तभी उसका रसास्वादन किया करते थे।
इस उम्र में भी उनका उत्साह देखने लायक था। सरयू सिंह ने अपना बड़ा सा मुंह फाड़ा और मनोरमा की भरी-भरी चुचियों को मुंह में लेने की कोशिश करने लगे..परंतु मनोरमा मनोरमा थी और सुगना ….
सरयू सिंह जिस तरह सुगना की चुचियों को अपने मुंह में भर लिया करते थे मनोरमा की चुचियों को भर पाना इतना आसान न था… आखिरकार सरयू सिंह हांफने लगे … परंतु इस रस्साकशी में उन्होंने मनोरमा की चूचियों में दूध उतार दिया।
मनोरमा अपनी चुचियों में दूध उतर आया महसूस कर रही थी..सरयू सिंह ने अब तक उसकी एक ही चूची को पूरे मन से पिया था और दूसरी पर मुंह मारने ही वाले थे तभी सोफे पर सो रही पिंकी जाग उठी।
सरयू सिंह मनोरमा की चूची छोड़कर उससे अलग हुए और अपने हाथ मनोरमा के नितंबों के बीच से निकालकर छोटी पिंकी को थपथपा कर सुलाने लगे।
उन्होंने इस बात का बखूबी ख्याल रखा कि मनोरमा की गीली बुर से निकला हुआ रस उनकी उंगलियों तक ही सीमित रहें और पिंकी के कोमल शरीर से दूर ही रहे।
परंतु पिंकी मानने वाली न थी वह रोती रही अंततः मनोरमा ने उसे अपनी गोद में लिया और अपनी दूसरी चूची को को पिंकी के मुंह में दे दिया… सरयू सिंह ने जो दूध मनोरमा की चूचियों में उतारा था उसका लाभ उनकी पुत्री पिंकी बखूबी ले रही थी…..
सरयू सिंह के लंड में तनाव कम होना शुरू हो गया था.. उस हरामखोर को चूत के सिवा और कुछ जैसे दिखाई ही न पड़ता था… इतना बेवफा कोई कैसे हो सकता है। क्या सुगना क्या मनोरमा क्या कजरी और क्या सुगना की मां पदमा लंड के उत्साह में कोई कमी न थी.. ऊपर से सोमरस आज सरयू सिंह की तरह उनका लंड भी उत्साह से लबरेज था..
मनोरमा अपना सारा ध्यान अपनी पुत्री पिंकी पर लगाए हुई थी… जो अब दूध पीते पीते एक बार फिर अपनी पलकें झपकाने लगी थी। सरयू सिंह अभी भी मनोरमा की पीठ को सहला रहे थे.. परंतु मनोरमा अपने हाथ से उन्हें रुकने का इशारा कर रही थी।
सरयू सिंह बेहद अधीरता से अपने लंड को सहला रहे थे और अपने इष्ट से पिंकी के शीघ्र सोने की दुआ मांग रहे थे। शराब का असर धीरे धीरे अपने शबाब पर आ चुका था…
वह बार-बार टेबल पर पड़ी उस वाइन की बोतल को देख रहे थे जिसमें अब भी कुछ शराब बाकी थी। सरयू सिंह जिन्होंने आज तक शराब को हाथ भी ना लगाया था आज उसके सेवन और असर से इतने प्रभावित थे कि उनका मन बार-बार कह रहा था कि वह बची हुई शराब को भी अपने हलक में उतार ले जाएं।
परंतु ऐसा कहकर वह शर्मिंदगी मोल लेना नहीं चाह रहे थे जिस मनोरमा से उन्होंने अभी इस शराब की बुराइयां बताई थी यदि वह स्वयं से उन्हें शराब की बोतल पकड़ पीते हुए देखती तो उनके बारे में क्या सोचती.? सरयू सिंह एक संवेदनशील व्यक्ति थे…वह अपने मन में चल रहे द्वंद से जूझ रहे थे उनकी उस शराब को पीने की इच्छा अवश्य थी पर हिम्मत में कमी थी…
पिंकी सो चुकी थी और मनोरमा की चूची छोड़ चुकी थी..मनोरमा ने मुस्कुराते हुए कहा आप मोमबत्ती लेकर आइए पिंकी को पालने पर सुलाना हैं
मनोरमां पिंकी को गोद में लिए खड़ी हो गई और सरयू सिंह टेबल पर पड़ी मोमबत्ती लेकर। मनोरमा सरयू सिंह के आगे चलने का इंतजार कर रही थी परंतु सरयू सिंह मनोरमा के पीछे ही खड़े थे अंततः मनोरमा को ही आगे आगे चलना पड़ा…. शायद सरयू सिंह अपनी मनोरमा मैडम को लेडीस फर्स्ट कहकर आगे जाने के लिए प्रेरित कर रहे थे परंतु असल बात पाठक भी जानते हैं और सरयू सिंह भी..
सरयू सिंह ने न जाने मन में क्या सोचा और वह शराब की बोतल को भी अपने दूसरे हाथ में ले लिया। आगे-आगे मनोरमा बलखाती हुई चल रही थी और पीछे पीछे अपना खड़ा लंड लिए हुए सरयू सिंह।
शेष अगले भाग में