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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
1,320
6,474
144
आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
Smart-Select-20210324-171448-Chrome
भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Lovely Anand

Love is life
1,320
6,474
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Shandar update Lovely Bhai, Sonu aur Sugna ka milan ab kara hi do aap, ya fir Sonu aur Manorma ka pehle karwaoge aap

Waiting for the next update
Next is Sonu and Sugna but how and when letus see..
Love triangle OH it's quadrilateral
It has many angle
"Nehle pe dehla.. .
Suguna did with Manorama 's interrogation.
Waiting next..
Thanks
interrogative update......
Thanks
तारो के देश ले जाते हो लेखक जी आप लिखते लिखते ।। वाह क्या update है
धन्यवाद
ये मनोरमा की जिज्ञासा जरूर कोइ कांड करेगी
Ha ha ha
 

Sanjdel66

Member
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भाग 93

सुगना और सोनू मनोरमा मैडम के घर जाने के लिए तैयार होने लगे दोनों ..

नियति सक्रिय थी कहानी की और कहानी की पटकथा को अपनी कल्पनाओं से आकार दे रही थी..

दोनों बच्चे एंबेसडर कार में बैठकर चहक उठे सूरज आगे ड्राइवर के बगल में बैठ कर उससे ढेरों प्रश्न पूछ रहा था जैसे कार चलाना एक ही पल में सीख लेगा..

मनोरमा की एंबेसडर कार सरयू सिंह की दोनों प्रेमिकाओं को एक दूसरे से मिलाने के लिए लखनऊ की सड़कों पर सरपट दौड़ रही थी और सोनू अपनी मैडम के घर जाने को तैयार बड़े अदब से अपने कपड़े ठीक कर रहा था..

अब आगे

मनोरमा की एंबेसडर कार उसके खूबसूरत बंगले के पोर्च में आकर खड़ी हो गई। सागौन की खूबसूरत लकड़ी से बना विशालकाय दरवाजा खुल गया।

मनोरमा शायद सुगना का इंतजार ही कर रही थी। उसने दरवाजा स्वयं खोला था… घर में इतने सारे नौकर चाकर होने के बावजूद मनोरमा का स्वयं उठकर दरवाजा खोलना यह साबित करता था कि वह सुगना से मिलने को कितना अधीर थी।

ड्राइवर ने उतरकर सुगना की तरफ का कार का दरवाजा खोला और सुगना अपनी साड़ी ठीक करते हुए उतर कर मनोरमा के बंगले के दरवाजे के सामने आ आ गई।

सरयू सिंह के प्यार से सिंचित दो खूबसूरत महिलाएं एक दूसरे के गले लग गई। हर बार की तरह सुगना की कोमल चुचियों ने मनोरमा की चुचियों को अपनी कोमलता और अपने अद्भुत होने का एहसास दिला दिया।

सोनू अपनी पुत्री मधु को लेकर उतर रहा था। वह आश्चर्यचकित था कि ड्राइवर ने उस जैसे नए-नए एसडीएम को छोड़कर सुगना का दरवाजा क्यों खोला था। इसमें जलन की भावना कतई न थी वह इस बात से बेहद प्रभावित था कि सुगना दीदी का आकर्षण सिर्फ उस पर ही नहीं अपितु उनके संपर्क में आए सभी व्यक्तियों पर वैसे ही चढ़ जाता था…..

क्या स्त्री क्या पुरुष .. क्या राजा… क्या रंक ….जिस तरह एक सुंदर बच्चा सबको प्यारा लगता है सुगना भी सबका मन मोहने में सक्षम थी…जितनी सुंदर तन उतना सुंदर मन….. चाहे वह गांव की बूढ़ी औरतें हो या छोटे बच्चे…वह सब की प्यारी थी…..और उन मर्दों का क्या जिनके जांघों के जोड़ पर अब भी हरकत होती थी.. उन्हें तो सुगना शिलाजीत को गोली लगती थी…जिसे देखकर और कल्पना कर वह अपनी पत्नी या महबूबा की अगन बुझाया करते थे।

शायद ड्राइवर भी इस पहली मुलाकात में ही सुगना के तेज और व्यक्तित्व से प्रभावित हो गया था जो वासनाजन्य कतई न था…और शायद इसीलिए उसने उतरकर कार का दरवाजा सुगना के लिए खोला था…

सुगना के बाद मनोरमा ने सोनू का भी अभिवादन किया और सोनू ने अपने दोनों हाथ जोड़कर मनोरमा को प्रणाम किया परंतु सुगना तपाक से बोल पड़ी

"अरे सोनू मैडम जी के पैर छू ये तुम्हारी गुरु हैं…"

सोनू ने झुककर मनोरमा के पैर छुए परंतु मनोरमा ने सोनू को बीच में ही रोक लिया।

जात पात धर्म सबको छोड़ आज सुगना ने सोनू को मनोरमा के चरणों में ला दिया था शायद यह मनोरमा के आत्मीय व्यवहार और उसके कद की देन थी।

आदर और सम्मान आत्मीयता से और बढ़ता है शायद मनोरमा के इस अपनेपन से सुगना प्रभावित हो गई थी।

यद्यपि मनोरमा सुगना से भी उम्र में 8 से 10वर्ष ज्यादा बड़ी थी परंतु सुगना ने मनोरमा के पैर नहीं छूए उन दोनों का रिश्ता सहेलियों का बन चुका था और वह अब भी कायम था।

सूरज को अपनी गोद में उठाकर मनोरमा ने उसे पप्पी दी। सूरज निश्चित ही अनोखा बालक था…उसने पप्पी उधार न रखी और मनोरमा के खूबसूरत होंठों को चूम लिया….मनोरमा को यह अटपटा लगा पर तीन चार वर्ष के बच्चे के बारे में कुछ गलत सोचना अनुचित था मनोरमा ने मुस्कुराते हुए कहा…

"नॉटी बॉय"

सुगना ने सूरज को आंखे दिखाई और सूरज ने एक बार फिर मनोरमा के गालों पर पप्पी देकर पुरानी गलती भुलाने की कोशिश की…

दरअसल सुगना के अत्यधिक लाड प्यार से सूरज कई बार सुगना के होठों पर पप्पी दे दिया करता था और सुगना कभी मना न करती थी पर एक दिन जब उसने लाली के सामने सुगना के होंठो पर पप्पी दी लाली बोल पड़ी..

लगता ई अपना मामा (सोनू) पर जाई..

सुगना और लाली दोनों हसने लगे..उसके बाद सुगना ने सूरज की यह आदत छुड़ाने की कोशिश करने लगी पर कभी कभी सूरज ऐसा कर दिया करता था…उसकी इस आदत की एक और कद्रदान थी वह थी सोनी…. एक तरफ .सुगना सूरज की आदत छुड़ाने को कोशिश करती उधर सोनी को यह बालसुलभ लगाता…उसे उसे सूरज के कोमल होंठ चूसना बेहद आनंददायक लगता और यही हाल सूरज का भी था…

सूरज वैसे भी अनोखा था..और हो भी क्यों न सरयू सिंह जैसे मर्द और सुगना जैसे सुंदरी का पुत्र अनोखा होना था सो था….

सूरज मनोरमा की गोद से उतरकर खेलने लगा..

मनोरमा का ड्राइंग रूम आज भरा भरा लग रहा था….

पिछले एक-दो दिनों में ही मनोरमा का खालीपन अचानक दूर हो गया था…. जैसे उसे कोई नया परिवार मिल गया था… मनोरमा उन सब से तरह-तरह की बातें कर रही थी…. ऐसा लग ही नहीं रहा था जैसे वह एक प्रतिष्ठित प्रशाशनिक अधिकारी थी।

घर ने नौकरों ने मनोरमा को इतना सहज और प्रसन्न शायद ही कभी देखा हो..

सहजता चेहरे पर निखार लाती है…अकड़ तनाव

गप्पे लड़ाई जा रही थीं। बातों के कई टॉपिक सोनू नया-नया एसडीएम बना था मनोरमा कभी उसे प्रशासन के गुण सिखाती कभी सुगना की तारीफ के पुल बांध देती। सुगना और सोनू दोनों मनोरमा के मृदुल व्यवहार के कायल हुए जा रहे थे।

कुछ देर बातें करने के बाद सूरज ने बाहर बगीचा देखने की जिद की और सोनू उसे लेकर मनोरमा का खूबसूरत बगीचा दिखाने लगा।

अंदर से मनोरमा की नौकरानी मधु को लिए ड्राइंग रूम में लेकर आ गई और मनोरमा को देखते हुए बोली मैडम बेबी आपके पास आना चाह रही है।

सुगना ने कौतूहल भरी निगाहों से मनोरमा की तरफ देखा और पूछा..

"कितनी सुंदर है ..किसकी बेटी है यह.."

मनोरमा ने पिंकी को अपनी गोद में ले लिया और अपने आंचल में ढककर झट से अपनी चूचियां पकड़ा दी … सुगना को उसके प्रश्नों का उत्तर मिल चुका था..

सुगना ने अपने दोनों हाथ जोड़े और अपने भगवान को याद करते हुए बोली

"चलिए भगवान ने प्रार्थना सुन ली और आपकी गोद में इस फूल सी बच्ची को दे दिया "

सुगना ने भी अपने हाथ जोड़कर कभी न कभी मनोरमा के लिए दुआ मांगी थी यह अलग बात थी कि उसे इसकी उम्मीद कम ही थी शायद इसीलिए उसने यह जानने की कोशिश न थी कि मनोरमा की गोद भरी या नहीं।

सुगना को क्या पता था कि जिस रसिया ने उसके जीवन में रंग भरे थे उसी रसिया ने मनोरमां की कोख में भी रस भरा था।

जब बच्चे का जिक्र आया तो सुगना ने बड़े अदब से पूछा

"साहब कहां है"

सुगना को इस बात का पता न था कि मनोरमा सेक्रेटरी साहब को छोड़कर अब अकेले रहती है। उसने स्वाभाविक तौर पर यह पूछ लिया परंतु मनोरमा ने कहा "अब वह यहां नहीं रहते"

मनोरमा ने इस बारे में और बातें न की और नौकरानी द्वारा लाए गए नाश्ते को सुगना को देते हुए बोली

"अरे यह ठंडा हो जाएगा पहले इसे खत्म करिए फिर खाना खाते हैं"

सुगना और मनोरमा ने इधर उधर की ढेर सारी बातें की सब मिलजुल कर खाना खाने लगे..

सुगना की पुत्री मधु ( जो दरअसल लाली और सोनू की पुत्री है) और मनोरमा की पुत्री पिंकी दोनों को एक ही पालना में लिटा दिया गया…शायद यह पालना जरूरत से ज्यादा बड़ा था। दोनों एक दूसरे को देखती और एक दूसरे के गालो को छूकर जैसे एक दूसरे को प्यार करती मनोरमा और सुगना उन्हें खेलते देख मुस्कुरा रही थीं। एक और शख्स था जो उन दोनों को एक साथ देख कर बेहद उत्साहित था और वह था छोटा सूरज।

वह अपनी प्लेट से दाल अपनी उंगलियों में लेता और जाकर मधु और पिंकी के कोमल होंठों पर चटा देता .. दोनों अपनी छोटी-छोटी जीभ निकालकर उस दाल के स्वाद का आनंद लेती और खुश हो जाती मनोरमा और सुगना सूरज के इस प्यार को देख रही थी मनोरमा से रहा न गया उसने कहा..

" सूरज अपनी बहन मधु का कितना ख्याल रखता है…?"

सुगना भी यह बात जानती थी परंतु उसने मुस्कुराते हुए कहा

"अरे थोड़ा बड़े होने दीजिए झगड़ा होना पक्का है"

"और इस शैतान पिंकी को तो देखिए सूरज की उंगलियों से कैसे दाल चाट रही है ऐसे खिलाओ तो नखरे दिखाती है" मनोरमा ने फिर कहा..

"लगता है पिंकी का भी बच्चों में मन लग रहा है शायद इसीलिए वह खुश है"

सुगना ने स्वाभाविक उत्तर दिया।

खाना परोस रही युवती के रूप में नियति सारे घटनाक्रम बारीकी से देख रही थी…उसने सूरज के भविष्य में झांकने की कोशिश की…पर कुछ निष्कर्ष निकाल पाने में कामयाब न हो पाई…

खाना लगभग खत्म हो चुका था। और अब बारी थी मनोरमा के खूबसूरत घर को देखने की. सुगना वह घर देखना चाहती थी पर बोल पाने की हिम्मत न जुटा पा रहे थी..

सुगना जब भी मौका मिलता मनोरमा के घर की भव्यता को अपनी आंखें बड़ी-बड़ी कर निहार लेती सुगना ने भव्यता की दुनिया में अब तक कदम न रखा था वह ग्रामीण परिवेश से निकलकर शहर में आज जरूर गई थी परंतु आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी न थी।

सुंदर वस्तुएं किसे अच्छी नहीं लगती मनोरमा के घर की हर चीज खूबसूरत थी…

मनोरमा ने सुगना की मनोस्थिति ताड़ ली और बोली चलिए आपको अपना घर दिखाती हूं..

सुगना खुशी-खुशी मनोरमा के साथ चल पड़ी और एक बार फिर बच्चों को संभालने का जिम्मा सोनू पर आ गया।

सुगना को मनोरमा ने पूरा घर दिखाया…जितना सुगना ने पूछा उतना बताया ….और आखरी में सुगना मनोरमा के उस बेडरूम में आ गई जिस पर बीती रात सरयू सिंह और मनोरमा ने जन्नत का आनंद लिया था..

मनोरमा का बिस्तर बेहद खूबसूरत था…पलंग के सिरहाने पर मलमल के कपड़े से तरह-तरह की डिजाइन बनाई गई थी बेड की खूबसूरती देखने लायक थी सुगना से रहा न गया उसने मनोरमा से पूछ लिया यह तो लगता है बिल्कुल नया है…

हां इसी घर में आने के बाद लिया है….

नियति मुस्कुरा रही थी। मनोरमा जैसे सेक्रेटरी साहब को पूरी तरह भूल जाना चाहती थी। नए घर में आते समय वह जानबूझकर उस पुराने पलंग को वहीं छोड़ आई थी जिस पर सेक्रेटरी साहब ने उसकी सुंदर काया का सिर्फ और सिर्फ शोषण किया था।

सुगना ने घर देखने के दौरान यह नोटिस कर लिया था कि पूरे घर में सेक्रेटरी साहब की एक भी फोटो न थी सुगना समझदार महिला थी और उसने शायद यह अंदाजा लगा लिया कि सेक्रेटरी साहब मनोरमा के साथ शायद नहीं रहते…..

मनोरमा और सुगना बिस्तर पर बैठ कर बातें कर रही थी अचानक मनोरमा ने अपने मन की बात सुनना से पूछ ली..

"एक बात बताइए सरयू जी ने विवाह क्यों नहीं किया ?क्या आपको पता है…?"

सुगना को ऐसे प्रश्न की उम्मीद मनोरमा से कतई न थी वह असहज हो गई फिर भी उसने स्वयं को संतुलित किया और बोली..

"मुझे कैसे पता होगा जब उनकी शादी करने की उम्र थी तब तो शायद में पैदा भी नहीं हुई थी.."

बात सच थी मनोरमा के प्रश्न का उत्तर सुगना ने बखूबी दे दिया था…

"परंतु मुझे लगता है सरयू सिंह जी के जीवन में कोई ना कोई महिला अवश्य है" मनोरमा ने गम्भीरता से कहा..

सुगना घबरा गई उसके और सरयू सिंह के बीच के संबंध यदि जगजाहिर होते तो वह कहीं मुंह दिखाने के लायक न रहती। अचानक उसके दिमाग में कजरी का ध्यान आया उसने मनोरमा के प्रश्न को बिल्कुल खारिज न किया अपितु मुस्कुराते हुए बोली

"लगता तो नहीं …..पर होगा भी तो वह बाबूजी ही जाने.."

सुगना ने बाबूजी शब्द पर जोर देकर खुद को मनोरमा के शक से दूर करने को कोशिश की.

"लेकिन आपको ऐसा क्यों लगता है ?" अब की बार सुगना ने प्रश्न किया। मनोरमा तो जैसे ठान कर बैठी थी उस ने मुस्कुराते हुए कहा

" बनारस महोत्सव का वो कमरा याद है…"

"हा"

"मैंने उस कमरे से सरयू सिंह के साथ एक महिला को निकलते हुए देखा था.."

मनोरमा ने इंट्रोगेट करने की शायद पढ़ाई कर रखी थी। उसने एक छोटा झूठ बोलकर सुगना का मन टटोलने की कोशिश की… सुगना स्वयं आश्चर्यचकित थी उसकी सास कजरी कभी उस कमरे में गई न थी .. तो वह औरत कौन थी जो सरयू सिंह के साथ उस कमरे में थी…

सुगना ने बहुत दिमाग दौड़ाया पर वह किसी निष्कर्ष पर न पहुंच पाई। सरयू सिंह ने कजरी और उसके अलावा भी किसी से संबंध बनाए थे यह सुगना के लिए सातवें आश्चर्य से कम न था।

"आपको कोई गलतफहमी हुई होगी बाबूजी एसे कतई नहीं है…" यदि सुगना को सरयू सिंह की कामकला और वासनाजन्य व्यवहार का ज्ञान न होता तो शायद वह मनोरमा को उसके प्रश्न पर पूर्णविराम लगा देती।

मनोरमा ने सुगना की आवाज में आई बेरुखी को पहचान लिया और उसके चेहरे पर बदल चुके भाव को भी पढ़ लिया। शायद सुगना इस प्रश्न उत्तर के दौर से शीघ्र बाहर आना चाह रही थी।

अचानक सुगना का ध्यान मनोरमा के सिरहाने मलमल के कपड़े से बने डिजाइन पर चला गया वह अपनी उंगलियां फिराकर उसकी कोमलता का एहसास करने लगी अचानक उसका हाथ मलमल पर लगे दाग पड़ गया …

"वह बोल उठी अरे इतने सुंदर कढ़ाई पर यह क्या गिर गया है "

मनोरमा ने भी ध्यान दिया कई जगह मलमल के कपड़े पर छोटे-छोटे धब्बे पड़ गए थे ऐसा लग रहा था जैसे दूध या दही की बूंदे उस पर गिर पड़ी थीं।

अचानक मनोरमा को ध्यान आया वह बूंदे और कुछ न थी अपितु वह कल रात हुई घनघोर चूदाई की निशानी थीं…जो कल रात उसने नए और कुवारे बिस्तर पर हुई थी।

उसके सामने वह दृश्य घूम गया जब सरयू सिंह अपने लंड को हांथ में पकड़े अपने स्टैन गन की तरह उसके नग्न शरीर पर वीर्य वर्षा कर रहे थे… निश्चित ही यह वही था…

मनोरमा ने सुगना का ध्यान वहां से खींचने की कोशिश की और बोली..

अभी फर्नीचर वाले को फोन कर उसको ठीक करवाती हूं..

पर सुगना कच्ची खिलाड़ी न थी…सरयू सिंह के साथ तीन चार वर्षो के कामुक जीवन में उसने कामकला और उसके विविध रूप देख लिए थे…उसने अंदाज लगा लिया कि वह निश्चित ही पुरुष वीर्य था…और वह भी ज्यादा पुराना नहीं..…

उसने मनोरमा की तरफ देखते हुए मुस्कुरा कर बोला..

"लगता है साहब… अब भी यहाँ आते रहते हैं…"

इतना कहकर सुगना अपना हाथ धोने चली गई…

यदि उसे पता होता कि वह किसी और का नही अपितु सरयू सिंह का वीर्य था तो शायद सुगना का व्यवहार कुछ और होता।

सुगना का यह मज़ाक मनोरमा न समझ पाई …..

शायद उसे सुगना से इस हद तक जाकर बात करने की उम्मीद न थी…

सुगना ने सोच लिया शायद मनोरमा मैडम भी लाली की विचारधारा की है…हो सकता है कोई सोनू उन्हें भी मिल गया हो…तभी सेक्रेटरी साहब से अलग होने के बाद भी उनके बिस्तर पर प्यार के सबूत कायम थे।

उधर सरयू सिंह सुगना और सोनू के आने की राह देख रहे थे उनका मन गेस्ट हाउस में कतई नहीं लग रहा था बार-बार दिमाग में यही ख्याल आ रहे थे कि सुगना और मनोरमा आपस में क्या बातें कर रही होंगी दिल की धड़कन पड़ी हुई थी..

कहते हैं ज्यादा याद करने से उस व्यक्ति को हिचकियां आने लगती हैं जिसे आप याद कर रहे हैं। शायद यह संयोग था या मनोरमा के चटपटे खाने का असर परंतु सुगना को हिचकियां आना शुरू हो गई।

मनोरमा के कमरे से आ रही सुगना की हिचकीयों की आवाज सोनू ने भी सुनी और वह डाइनिंग टेबल पर पड़ी गिलास में पानी डालकर मनोरमा के कमरे के दरवाजे सामने आकर बोला..

" दीदी पानी पी ल"

"अरे सुगना… सोनू तो तुम्हारा बहुत ख्याल रखता है देखो पानी लेकर आया है" मनोरमा ने मुस्कुराते हुए कहा..

मनोरमा ने सोनू को अंदर बुला लिया और सोनू ने अपने हाथ में लिया हुआ ग्लास सुगना को पकड़ा दिया सुगना ने जैसे ही पानी का घूंट अपने मुंह में लिया एक बार फिर हिचकी आ गई और उसके मुंह से सारा पानी नीचे गिर पड़ा जो उसकी चुचियों पर आ गया।

ब्लाउज के अंदर कैद चूचियां भीगने लगीं। सुगना ने अपने हाथ से पानी हटाने की कोशिश की और इस कोशिश में उसकी चूचियों के बीच की दूधिया घाटी सोनू की निगाहों में आ गई। सोनू की आंखें जैसे चुचियों पर अटक सी गई पानी की बूंदे सुगना की गोरी गोरी चुचियों पर मोतियों की तरह चमक रहीं थी।

एक पल के लिए सोनू के मन में आया कि वह सुगना की चुचियों पर गिरा पानी अपने हाथों से पोंछ दे और उन खूबसूरत और कोमल सूचियां के स्पर्श का अद्भुत आनंद ले ले परंतु मनोरमा मैडम आसपास ही थी सोनू ने अपने हाथ रोक लिए….

सुगना ने तुरंत ही सोनू की नजरों को ताड़ लिया और झट से अपने आंचल से सूचियों को ढकते हुए बोली "लागा ता बाबूजी याद करत बाड़े अब हमनी के चले के चाही…"

सोनू की नजरों ने जो देखा था उसने उसके लंड पर असर कर दिया जो अब उसकी पेंट में तन रहा था….

बिछड़ने का वक्त आ चुका था…

मनोरमा ने बिछड़ते वक़्त एक बार फिर सूरज को अपनी गोद में लिया और गाल में पप्पी दी परंतु इस बार मनोरमा सतर्क थी सूरज के होठों को आगे बढ़ते देख उसने झट से अपने गाल आगे कर दिये.. नटखट सूरज मनोरमा के गालों पर पप्पी लेकर नीचे उतर गया…

इतनी बाते करने के बावजूद मनोरमा उस महिला का नाम जानने में नाकाम रही जिसके हिस्से का अंश वह पिंकी के रूप में अपनी झोली ने ले आई थी..

रास्ते भर सुगना और सोनू मनोरमा की तारीफों के पुल बांधते रहे परंतु मनोरमा के बिस्तर पर वीर्य के निशान देख सुगना का मन कुछ खट्टा हो गया था…

मनोरमा की बंजर हो चुकी कोख को किसने सींचा होगा सुगना के लिए प्रश्न बन चुका था…कही कल बाबूजी मनोरमा के साथ ही तो नहीं थे? एक पल के लिए सुगना के दिमाग में आया परंतु कहां मनोरमा और सरयू सिंह में दूरी जमीन आसमान की थी और शायद यह सुगना की कल्पना से परे था कि सरयू सिंह अपनी भाग्य विधाता को चोद सकते हैं…

मनोरमा के बारे में यदि कोई शख्स बता सकता था तो वह थे उसके बाबूजी शरीर से इसके अलावा सुगना की जिज्ञासा शांत करने वाला और कोई ना था…वह एंबेसडर कार के गेस्ट हाउस पहुंचने की राह देखने लगी..

उधर सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना की चुचियों को अपने दिमाग में अनावृत कर रहा था…और और अपनी कल्पनाओं में उन खूबसूरत चुचियों पर अपने गाल रगड़ रहा था…

सुगना और सरयू सिंह दोनों एक दूसरे का इंतजार कर रहे थे पर अपने अपने प्रश्नों और जिज्ञ
 
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Reactions: Napster and Sanju@

Kalpana singh

New Member
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230
33
Nice update
Pr yaha na to manorama madam ki jigaysa sant hui aur sugna ki v jigyasa jag gai

Fayde me rha to sonu ....:pleaseno:
भाग 93

सुगना और सोनू मनोरमा मैडम के घर जाने के लिए तैयार होने लगे दोनों ..

नियति सक्रिय थी कहानी की और कहानी की पटकथा को अपनी कल्पनाओं से आकार दे रही थी..

दोनों बच्चे एंबेसडर कार में बैठकर चहक उठे सूरज आगे ड्राइवर के बगल में बैठ कर उससे ढेरों प्रश्न पूछ रहा था जैसे कार चलाना एक ही पल में सीख लेगा..


मनोरमा की एंबेसडर कार सरयू सिंह की दोनों प्रेमिकाओं को एक दूसरे से मिलाने के लिए लखनऊ की सड़कों पर सरपट दौड़ रही थी और सोनू अपनी मैडम के घर जाने को तैयार बड़े अदब से अपने कपड़े ठीक कर रहा था..

अब आगे

मनोरमा की एंबेसडर कार उसके खूबसूरत बंगले के पोर्च में आकर खड़ी हो गई। सागौन की खूबसूरत लकड़ी से बना विशालकाय दरवाजा खुल गया।

मनोरमा शायद सुगना का इंतजार ही कर रही थी। उसने दरवाजा स्वयं खोला था… घर में इतने सारे नौकर चाकर होने के बावजूद मनोरमा का स्वयं उठकर दरवाजा खोलना यह साबित करता था कि वह सुगना से मिलने को कितना अधीर थी।

ड्राइवर ने उतरकर सुगना की तरफ का कार का दरवाजा खोला और सुगना अपनी साड़ी ठीक करते हुए उतर कर मनोरमा के बंगले के दरवाजे के सामने आ आ गई।


सरयू सिंह के प्यार से सिंचित दो खूबसूरत महिलाएं एक दूसरे के गले लग गई। हर बार की तरह सुगना की कोमल चुचियों ने मनोरमा की चुचियों को अपनी कोमलता और अपने अद्भुत होने का एहसास दिला दिया।

सोनू अपनी पुत्री मधु को लेकर उतर रहा था। वह आश्चर्यचकित था कि ड्राइवर ने उस जैसे नए-नए एसडीएम को छोड़कर सुगना का दरवाजा क्यों खोला था। इसमें जलन की भावना कतई न थी वह इस बात से बेहद प्रभावित था कि सुगना दीदी का आकर्षण सिर्फ उस पर ही नहीं अपितु उनके संपर्क में आए सभी व्यक्तियों पर वैसे ही चढ़ जाता था…..

क्या स्त्री क्या पुरुष .. क्या राजा… क्या रंक ….जिस तरह एक सुंदर बच्चा सबको प्यारा लगता है सुगना भी सबका मन मोहने में सक्षम थी…जितनी सुंदर तन उतना सुंदर मन….. चाहे वह गांव की बूढ़ी औरतें हो या छोटे बच्चे…वह सब की प्यारी थी…..और उन मर्दों का क्या जिनके जांघों के जोड़ पर अब भी हरकत होती थी.. उन्हें तो सुगना शिलाजीत को गोली लगती थी…जिसे देखकर और कल्पना कर वह अपनी पत्नी या महबूबा की अगन बुझाया करते थे।

शायद ड्राइवर भी इस पहली मुलाकात में ही सुगना के तेज और व्यक्तित्व से प्रभावित हो गया था जो वासनाजन्य कतई न था…और शायद इसीलिए उसने उतरकर कार का दरवाजा सुगना के लिए खोला था…

सुगना के बाद मनोरमा ने सोनू का भी अभिवादन किया और सोनू ने अपने दोनों हाथ जोड़कर मनोरमा को प्रणाम किया परंतु सुगना तपाक से बोल पड़ी

"अरे सोनू मैडम जी के पैर छू ये तुम्हारी गुरु हैं…"

सोनू ने झुककर मनोरमा के पैर छुए परंतु मनोरमा ने सोनू को बीच में ही रोक लिया।

जात पात धर्म सबको छोड़ आज सुगना ने सोनू को मनोरमा के चरणों में ला दिया था शायद यह मनोरमा के आत्मीय व्यवहार और उसके कद की देन थी।

आदर और सम्मान आत्मीयता से और बढ़ता है शायद मनोरमा के इस अपनेपन से सुगना प्रभावित हो गई थी।

यद्यपि मनोरमा सुगना से भी उम्र में 8 से 10वर्ष ज्यादा बड़ी थी परंतु सुगना ने मनोरमा के पैर नहीं छूए उन दोनों का रिश्ता सहेलियों का बन चुका था और वह अब भी कायम था।

सूरज को अपनी गोद में उठाकर मनोरमा ने उसे पप्पी दी। सूरज निश्चित ही अनोखा बालक था…उसने पप्पी उधार न रखी और मनोरमा के खूबसूरत होंठों को चूम लिया….मनोरमा को यह अटपटा लगा पर तीन चार वर्ष के बच्चे के बारे में कुछ गलत सोचना अनुचित था मनोरमा ने मुस्कुराते हुए कहा…

"नॉटी बॉय"

सुगना ने सूरज को आंखे दिखाई और सूरज ने एक बार फिर मनोरमा के गालों पर पप्पी देकर पुरानी गलती भुलाने की कोशिश की…

दरअसल सुगना के अत्यधिक लाड प्यार से सूरज कई बार सुगना के होठों पर पप्पी दे दिया करता था और सुगना कभी मना न करती थी पर एक दिन जब उसने लाली के सामने सुगना के होंठो पर पप्पी दी लाली बोल पड़ी..

लगता ई अपना मामा (सोनू) पर जाई..

सुगना और लाली दोनों हसने लगे..उसके बाद सुगना ने सूरज की यह आदत छुड़ाने की कोशिश करने लगी पर कभी कभी सूरज ऐसा कर दिया करता था…उसकी इस आदत की एक और कद्रदान थी वह थी सोनी…. एक तरफ .सुगना सूरज की आदत छुड़ाने को कोशिश करती उधर सोनी को यह बालसुलभ लगाता…उसे उसे सूरज के कोमल होंठ चूसना बेहद आनंददायक लगता और यही हाल सूरज का भी था…

सूरज वैसे भी अनोखा था..और हो भी क्यों न सरयू सिंह जैसे मर्द और सुगना जैसे सुंदरी का पुत्र अनोखा होना था सो था….

सूरज मनोरमा की गोद से उतरकर खेलने लगा..

मनोरमा का ड्राइंग रूम आज भरा भरा लग रहा था….


पिछले एक-दो दिनों में ही मनोरमा का खालीपन अचानक दूर हो गया था…. जैसे उसे कोई नया परिवार मिल गया था… मनोरमा उन सब से तरह-तरह की बातें कर रही थी…. ऐसा लग ही नहीं रहा था जैसे वह एक प्रतिष्ठित प्रशाशनिक अधिकारी थी।

घर ने नौकरों ने मनोरमा को इतना सहज और प्रसन्न शायद ही कभी देखा हो..

सहजता चेहरे पर निखार लाती है…अकड़ तनाव

गप्पे लड़ाई जा रही थीं। बातों के कई टॉपिक सोनू नया-नया एसडीएम बना था मनोरमा कभी उसे प्रशासन के गुण सिखाती कभी सुगना की तारीफ के पुल बांध देती। सुगना और सोनू दोनों मनोरमा के मृदुल व्यवहार के कायल हुए जा रहे थे।

कुछ देर बातें करने के बाद सूरज ने बाहर बगीचा देखने की जिद की और सोनू उसे लेकर मनोरमा का खूबसूरत बगीचा दिखाने लगा।

अंदर से मनोरमा की नौकरानी मधु को लिए ड्राइंग रूम में लेकर आ गई और मनोरमा को देखते हुए बोली मैडम बेबी आपके पास आना चाह रही है।

सुगना ने कौतूहल भरी निगाहों से मनोरमा की तरफ देखा और पूछा..

"कितनी सुंदर है ..किसकी बेटी है यह.."

मनोरमा ने पिंकी को अपनी गोद में ले लिया और अपने आंचल में ढककर झट से अपनी चूचियां पकड़ा दी … सुगना को उसके प्रश्नों का उत्तर मिल चुका था..

सुगना ने अपने दोनों हाथ जोड़े और अपने भगवान को याद करते हुए बोली


"चलिए भगवान ने प्रार्थना सुन ली और आपकी गोद में इस फूल सी बच्ची को दे दिया "

सुगना ने भी अपने हाथ जोड़कर कभी न कभी मनोरमा के लिए दुआ मांगी थी यह अलग बात थी कि उसे इसकी उम्मीद कम ही थी शायद इसीलिए उसने यह जानने की कोशिश न थी कि मनोरमा की गोद भरी या नहीं।

सुगना को क्या पता था कि जिस रसिया ने उसके जीवन में रंग भरे थे उसी रसिया ने मनोरमां की कोख में भी रस भरा था।

जब बच्चे का जिक्र आया तो सुगना ने बड़े अदब से पूछा

"साहब कहां है"

सुगना को इस बात का पता न था कि मनोरमा सेक्रेटरी साहब को छोड़कर अब अकेले रहती है। उसने स्वाभाविक तौर पर यह पूछ लिया परंतु मनोरमा ने कहा "अब वह यहां नहीं रहते"


मनोरमा ने इस बारे में और बातें न की और नौकरानी द्वारा लाए गए नाश्ते को सुगना को देते हुए बोली

"अरे यह ठंडा हो जाएगा पहले इसे खत्म करिए फिर खाना खाते हैं"

सुगना और मनोरमा ने इधर उधर की ढेर सारी बातें की सब मिलजुल कर खाना खाने लगे..

सुगना की पुत्री मधु ( जो दरअसल लाली और सोनू की पुत्री है) और मनोरमा की पुत्री पिंकी दोनों को एक ही पालना में लिटा दिया गया…शायद यह पालना जरूरत से ज्यादा बड़ा था। दोनों एक दूसरे को देखती और एक दूसरे के गालो को छूकर जैसे एक दूसरे को प्यार करती मनोरमा और सुगना उन्हें खेलते देख मुस्कुरा रही थीं। एक और शख्स था जो उन दोनों को एक साथ देख कर बेहद उत्साहित था और वह था छोटा सूरज।

वह अपनी प्लेट से दाल अपनी उंगलियों में लेता और जाकर मधु और पिंकी के कोमल होंठों पर चटा देता .. दोनों अपनी छोटी-छोटी जीभ निकालकर उस दाल के स्वाद का आनंद लेती और खुश हो जाती मनोरमा और सुगना सूरज के इस प्यार को देख रही थी मनोरमा से रहा न गया उसने कहा..

" सूरज अपनी बहन मधु का कितना ख्याल रखता है…?"

सुगना भी यह बात जानती थी परंतु उसने मुस्कुराते हुए कहा

"अरे थोड़ा बड़े होने दीजिए झगड़ा होना पक्का है"

"और इस शैतान पिंकी को तो देखिए सूरज की उंगलियों से कैसे दाल चाट रही है ऐसे खिलाओ तो नखरे दिखाती है" मनोरमा ने फिर कहा..

"लगता है पिंकी का भी बच्चों में मन लग रहा है शायद इसीलिए वह खुश है"

सुगना ने स्वाभाविक उत्तर दिया।

खाना परोस रही युवती के रूप में नियति सारे घटनाक्रम बारीकी से देख रही थी…उसने सूरज के भविष्य में झांकने की कोशिश की…पर कुछ निष्कर्ष निकाल पाने में कामयाब न हो पाई…


खाना लगभग खत्म हो चुका था। और अब बारी थी मनोरमा के खूबसूरत घर को देखने की. सुगना वह घर देखना चाहती थी पर बोल पाने की हिम्मत न जुटा पा रहे थी..

सुगना जब भी मौका मिलता मनोरमा के घर की भव्यता को अपनी आंखें बड़ी-बड़ी कर निहार लेती सुगना ने भव्यता की दुनिया में अब तक कदम न रखा था वह ग्रामीण परिवेश से निकलकर शहर में आज जरूर गई थी परंतु आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी न थी।

सुंदर वस्तुएं किसे अच्छी नहीं लगती मनोरमा के घर की हर चीज खूबसूरत थी…

मनोरमा ने सुगना की मनोस्थिति ताड़ ली और बोली चलिए आपको अपना घर दिखाती हूं..

सुगना खुशी-खुशी मनोरमा के साथ चल पड़ी और एक बार फिर बच्चों को संभालने का जिम्मा सोनू पर आ गया।

सुगना को मनोरमा ने पूरा घर दिखाया…जितना सुगना ने पूछा उतना बताया ….और आखरी में सुगना मनोरमा के उस बेडरूम में आ गई जिस पर बीती रात सरयू सिंह और मनोरमा ने जन्नत का आनंद लिया था..

मनोरमा का बिस्तर बेहद खूबसूरत था…पलंग के सिरहाने पर मलमल के कपड़े से तरह-तरह की डिजाइन बनाई गई थी बेड की खूबसूरती देखने लायक थी सुगना से रहा न गया उसने मनोरमा से पूछ लिया यह तो लगता है बिल्कुल नया है…

हां इसी घर में आने के बाद लिया है….

नियति मुस्कुरा रही थी। मनोरमा जैसे सेक्रेटरी साहब को पूरी तरह भूल जाना चाहती थी। नए घर में आते समय वह जानबूझकर उस पुराने पलंग को वहीं छोड़ आई थी जिस पर सेक्रेटरी साहब ने उसकी सुंदर काया का सिर्फ और सिर्फ शोषण किया था।

सुगना ने घर देखने के दौरान यह नोटिस कर लिया था कि पूरे घर में सेक्रेटरी साहब की एक भी फोटो न थी सुगना समझदार महिला थी और उसने शायद यह अंदाजा लगा लिया कि सेक्रेटरी साहब मनोरमा के साथ शायद नहीं रहते…..

मनोरमा और सुगना बिस्तर पर बैठ कर बातें कर रही थी अचानक मनोरमा ने अपने मन की बात सुनना से पूछ ली..

"एक बात बताइए सरयू जी ने विवाह क्यों नहीं किया ?क्या आपको पता है…?"

सुगना को ऐसे प्रश्न की उम्मीद मनोरमा से कतई न थी वह असहज हो गई फिर भी उसने स्वयं को संतुलित किया और बोली..

"मुझे कैसे पता होगा जब उनकी शादी करने की उम्र थी तब तो शायद में पैदा भी नहीं हुई थी.."

बात सच थी मनोरमा के प्रश्न का उत्तर सुगना ने बखूबी दे दिया था…

"परंतु मुझे लगता है सरयू सिंह जी के जीवन में कोई ना कोई महिला अवश्य है" मनोरमा ने गम्भीरता से कहा..

सुगना घबरा गई उसके और सरयू सिंह के बीच के संबंध यदि जगजाहिर होते तो वह कहीं मुंह दिखाने के लायक न रहती। अचानक उसके दिमाग में कजरी का ध्यान आया उसने मनोरमा के प्रश्न को बिल्कुल खारिज न किया अपितु मुस्कुराते हुए बोली

"लगता तो नहीं …..पर होगा भी तो वह बाबूजी ही जाने.."

सुगना ने बाबूजी शब्द पर जोर देकर खुद को मनोरमा के शक से दूर करने को कोशिश की.

"लेकिन आपको ऐसा क्यों लगता है ?" अब की बार सुगना ने प्रश्न किया। मनोरमा तो जैसे ठान कर बैठी थी उस ने मुस्कुराते हुए कहा

" बनारस महोत्सव का वो कमरा याद है…"

"हा"

"मैंने उस कमरे से सरयू सिंह के साथ एक महिला को निकलते हुए देखा था.."

मनोरमा ने इंट्रोगेट करने की शायद पढ़ाई कर रखी थी। उसने एक छोटा झूठ बोलकर सुगना का मन टटोलने की कोशिश की… सुगना स्वयं आश्चर्यचकित थी उसकी सास कजरी कभी उस कमरे में गई न थी .. तो वह औरत कौन थी जो सरयू सिंह के साथ उस कमरे में थी…

सुगना ने बहुत दिमाग दौड़ाया पर वह किसी निष्कर्ष पर न पहुंच पाई। सरयू सिंह ने कजरी और उसके अलावा भी किसी से संबंध बनाए थे यह सुगना के लिए सातवें आश्चर्य से कम न था।

"आपको कोई गलतफहमी हुई होगी बाबूजी एसे कतई नहीं है…" यदि सुगना को सरयू सिंह की कामकला और वासनाजन्य व्यवहार का ज्ञान न होता तो शायद वह मनोरमा को उसके प्रश्न पर पूर्णविराम लगा देती।

मनोरमा ने सुगना की आवाज में आई बेरुखी को पहचान लिया और उसके चेहरे पर बदल चुके भाव को भी पढ़ लिया। शायद सुगना इस प्रश्न उत्तर के दौर से शीघ्र बाहर आना चाह रही थी।

अचानक सुगना का ध्यान मनोरमा के सिरहाने मलमल के कपड़े से बने डिजाइन पर चला गया वह अपनी उंगलियां फिराकर उसकी कोमलता का एहसास करने लगी अचानक उसका हाथ मलमल पर लगे दाग पड़ गया …

"वह बोल उठी अरे इतने सुंदर कढ़ाई पर यह क्या गिर गया है "

मनोरमा ने भी ध्यान दिया कई जगह मलमल के कपड़े पर छोटे-छोटे धब्बे पड़ गए थे ऐसा लग रहा था जैसे दूध या दही की बूंदे उस पर गिर पड़ी थीं।


अचानक मनोरमा को ध्यान आया वह बूंदे और कुछ न थी अपितु वह कल रात हुई घनघोर चूदाई की निशानी थीं…जो कल रात उसने नए और कुवारे बिस्तर पर हुई थी।

उसके सामने वह दृश्य घूम गया जब सरयू सिंह अपने लंड को हांथ में पकड़े अपने स्टैन गन की तरह उसके नग्न शरीर पर वीर्य वर्षा कर रहे थे… निश्चित ही यह वही था…


मनोरमा ने सुगना का ध्यान वहां से खींचने की कोशिश की और बोली..

अभी फर्नीचर वाले को फोन कर उसको ठीक करवाती हूं..

पर सुगना कच्ची खिलाड़ी न थी…सरयू सिंह के साथ तीन चार वर्षो के कामुक जीवन में उसने कामकला और उसके विविध रूप देख लिए थे…उसने अंदाज लगा लिया कि वह निश्चित ही पुरुष वीर्य था…और वह भी ज्यादा पुराना नहीं..…

उसने मनोरमा की तरफ देखते हुए मुस्कुरा कर बोला..

"लगता है साहब… अब भी यहाँ आते रहते हैं…"

इतना कहकर सुगना अपना हाथ धोने चली गई…

यदि उसे पता होता कि वह किसी और का नही अपितु सरयू सिंह का वीर्य था तो शायद सुगना का व्यवहार कुछ और होता।

सुगना का यह मज़ाक मनोरमा न समझ पाई …..

शायद उसे सुगना से इस हद तक जाकर बात करने की उम्मीद न थी…

सुगना ने सोच लिया शायद मनोरमा मैडम भी लाली की विचारधारा की है…हो सकता है कोई सोनू उन्हें भी मिल गया हो…तभी सेक्रेटरी साहब से अलग होने के बाद भी उनके बिस्तर पर प्यार के सबूत कायम थे।

उधर सरयू सिंह सुगना और सोनू के आने की राह देख रहे थे उनका मन गेस्ट हाउस में कतई नहीं लग रहा था बार-बार दिमाग में यही ख्याल आ रहे थे कि सुगना और मनोरमा आपस में क्या बातें कर रही होंगी दिल की धड़कन पड़ी हुई थी..

कहते हैं ज्यादा याद करने से उस व्यक्ति को हिचकियां आने लगती हैं जिसे आप याद कर रहे हैं। शायद यह संयोग था या मनोरमा के चटपटे खाने का असर परंतु सुगना को हिचकियां आना शुरू हो गई।

मनोरमा के कमरे से आ रही सुगना की हिचकीयों की आवाज सोनू ने भी सुनी और वह डाइनिंग टेबल पर पड़ी गिलास में पानी डालकर मनोरमा के कमरे के दरवाजे सामने आकर बोला..

" दीदी पानी पी ल"

"अरे सुगना… सोनू तो तुम्हारा बहुत ख्याल रखता है देखो पानी लेकर आया है" मनोरमा ने मुस्कुराते हुए कहा..

मनोरमा ने सोनू को अंदर बुला लिया और सोनू ने अपने हाथ में लिया हुआ ग्लास सुगना को पकड़ा दिया सुगना ने जैसे ही पानी का घूंट अपने मुंह में लिया एक बार फिर हिचकी आ गई और उसके मुंह से सारा पानी नीचे गिर पड़ा जो उसकी चुचियों पर आ गया।


ब्लाउज के अंदर कैद चूचियां भीगने लगीं। सुगना ने अपने हाथ से पानी हटाने की कोशिश की और इस कोशिश में उसकी चूचियों के बीच की दूधिया घाटी सोनू की निगाहों में आ गई। सोनू की आंखें जैसे चुचियों पर अटक सी गई पानी की बूंदे सुगना की गोरी गोरी चुचियों पर मोतियों की तरह चमक रहीं थी।

एक पल के लिए सोनू के मन में आया कि वह सुगना की चुचियों पर गिरा पानी अपने हाथों से पोंछ दे और उन खूबसूरत और कोमल सूचियां के स्पर्श का अद्भुत आनंद ले ले परंतु मनोरमा मैडम आसपास ही थी सोनू ने अपने हाथ रोक लिए….


सुगना ने तुरंत ही सोनू की नजरों को ताड़ लिया और झट से अपने आंचल से सूचियों को ढकते हुए बोली "लागा ता बाबूजी याद करत बाड़े अब हमनी के चले के चाही…"

सोनू की नजरों ने जो देखा था उसने उसके लंड पर असर कर दिया जो अब उसकी पेंट में तन रहा था….

बिछड़ने का वक्त आ चुका था…

मनोरमा ने बिछड़ते वक़्त एक बार फिर सूरज को अपनी गोद में लिया और गाल में पप्पी दी परंतु इस बार मनोरमा सतर्क थी सूरज के होठों को आगे बढ़ते देख उसने झट से अपने गाल आगे कर दिये.. नटखट सूरज मनोरमा के गालों पर पप्पी लेकर नीचे उतर गया…

इतनी बाते करने के बावजूद मनोरमा उस महिला का नाम जानने में नाकाम रही जिसके हिस्से का अंश वह पिंकी के रूप में अपनी झोली ने ले आई थी..

रास्ते भर सुगना और सोनू मनोरमा की तारीफों के पुल बांधते रहे परंतु मनोरमा के बिस्तर पर वीर्य के निशान देख सुगना का मन कुछ खट्टा हो गया था…

मनोरमा की बंजर हो चुकी कोख को किसने सींचा होगा सुगना के लिए प्रश्न बन चुका था…कही कल बाबूजी मनोरमा के साथ ही तो नहीं थे? एक पल के लिए सुगना के दिमाग में आया परंतु कहां मनोरमा और सरयू सिंह में दूरी जमीन आसमान की थी और शायद यह सुगना की कल्पना से परे था कि सरयू सिंह अपनी भाग्य विधाता को चोद सकते हैं…

मनोरमा के बारे में यदि कोई शख्स बता सकता था तो वह थे उसके बाबूजी शरीर से इसके अलावा सुगना की जिज्ञासा शांत करने वाला और कोई ना था…वह एंबेसडर कार के गेस्ट हाउस पहुंचने की राह देखने लगी..

उधर सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना की चुचियों को अपने दिमाग में अनावृत कर रहा था…और और अपनी कल्पनाओं में उन खूबसूरत चुचियों पर अपने गाल रगड़ रहा था…

सुगना और सरयू सिंह दोनों एक दूसरे का इंतजार कर रहे थे पर अपने अपने प्रश्नों और जिज्ञासाओं के साथ…

शेष अगले भाग में…
 
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raniaayush

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आपके शाब्दिक चित्रण में मनुष्य के मनोभावों का बहुत ही सटीक चित्रण होता है। किस परिस्थिति में मनुष्य क्या और कैसे सोचता है इस मनोविज्ञान पर आपकी पकड़ बहुत गहरी है। जैसे सुगना का घर की भव्यता को निहारना पर, घर देखने को स्वयम से न कह पाना; मनोरमा के प्रश्नों का स्त्री सुलभ चालाकी से जवाब देना तथा जिस घटना से वह स्वयम जुड़ी थी, उस प्रश्न पर झुंझुला जाना।
व्यक्तित्व विकास का एक महत्वपूर्ण पाठ अपने दिया-
सहजता चेहरे पर निखार लाती है…अकड़ तनाव।
साक्षात्कार में भी सहज होकर जाने को कहा जाता है।
 
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