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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
Smart-Select-20210324-171448-Chrome
भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Lovely Anand

Love is life
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Lovely update again Sir.
Thanks
Sonu met moni.. Well indeed a sincere step to reach her , but in vein. Let's see what Suguna think of Sonu.
Congrats for 400 pages
Thanks
Story ke 400 page hone ki bahut bahut shubhkamnaen…. Agle update ki pratiksha hai mitr 💐💐♥️♥️
Thanks
90,91,100,101 bhej de
Sent
borat-borat-very-nice
Super update
Thanks
bhot bhot achhi update
Thanks
मुझे लगा कहानी बहुत आगे बढ़ गयी होगी लेकिन ठीक ही चल रही है। अपडेट 102 शायद सार्वजनिक नहीं है।
आपका इंतजार था 102 भेज दिया है
 

prkin

Well-Known Member
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भाग 89



इधर सरयू सिंह अपनी रासलीला में व्यस्त थे उधर सुगना और सोनू इस आश्चर्य में डूबे हुए थे कि सरयू सिह किस महिला की एंबेसडर कार में बैठकर न जाने कहां चले गए थे।

सुगना और सोनू तक इसकी खबर गेस्ट हाउस के एक व्यक्ति ने बखूबी पहुंचा दी थी जो नुक्कड पर सरयू सिंह को मनोरमा की गाड़ी में बैठ के देख चुका था वह व्यक्ति मनोरमा को तो नहीं जानता था परंतु सरयू सिंह को बखूबी पहचानने लगा था। गेस्ट हाउस में कुछ देर की ही मुलाकात में वह उनसे प्रभावित हो गया था. शुक्र है कि उसने सरयू सिंह की मार कुटाई नहीं देखी थी अन्यथा शायद वह यह बात भी सुगना और सोनू को बता देता और उन दोनों को व्यग्र कर देता…

सरयू सिंह को आने में देर हो रही थी थी…गेस्ट हाउस के अटेंडेंट ने सोनू और सुगना को खाने का अल्टीमेटम दे दिया उसने बेहद बेरुखी से कहा..

" हम और इंतजार नहीं कर सकते हमें भी अपने घर जाना है हमने आप लोगों का खाना निकाल कर रख दिया है कहिए तो कमरे में दे जाएं…"

सोनू उस पर नाराज हो रहा था परंतु सुगना ने रोक लिया आखिर उस अटेंडेंट की बात जायज थी कोई व्यक्ति कितना इंतजार कर सकता है उसका भी अपना परिवार है…

सोनू और सुगना ने आपस में बातें कर यह अंदाज कर लिया कि सरयू सिंह निश्चित ही किसी के मेहमान बन गए थे।

सोनू और सुगना ने खाना खाया… दोनों छोटे बच्चे भी खाना खाकर सो गए। सुगना बिस्तर पर लेटी हुई थी सोनू गेस्ट हाउस के सोफे पर बैठ कर सुनना से बातें कर रहा था… तभी बिजली गुल हो गई शायद यह वही समय था जब पूरे लखनऊ शहर की बिजली एक साथ ही गई थी ..

सुगना ने सोनू से कहा..

"हमरा झोला में से टॉर्च निकाल ले.."

सोनू ने सुगना के बैग में हाथ डाला और उसकी उंगलियां सुगना के कपड़ों के बीच घूमने लगी। उनको वह एहसास बेहद आनंददायक लगा। कितने कोमल होते हैं महिलाओं के वस्त्र …सोनू की उंगलियां उन कोमल वस्त्रों के बीच टॉर्च को खोजने में लग गईं..


कुछ देर वह अपनी उंगलियां यूं ही फिराता रहा तभी सुगना ने कहा

"सबसे नीचे होई सोनू….."

आखिर सोनू ने टॉर्च बाहर निकाल कर बाहर जला ली।

टॉर्च की रोशनी को छत पर केंद्रित कर सोनू ने कमरे में हल्की रोशनी कर दी…और सुगना से बोला

"आज बारिश कुछ ज्यादा ही बा… एहीं से लगा ता लाइट गोल हो गइल बा"

सुगना ने उसकी हां में हां मिला या और बोला

"ए घरी बनारस में भी खूब लाइट कटत बा"

कुछ देर इधर-उधर की बातें करने के बाद सोनू ने कहा

"लाली दीदी कईसन बिया?"

न जाने सुगना को क्या सूझा उसने अपनी नाराजगी दिखाते हुए सोनू से कहा

"ते लाली के दीदी मत बोलल कर"

"काहे का भईल" सोनू ने अनजान बनते हुए पूछा। उसे सच में समझ में नहीं आया कि सुगना ऐसा क्यों कह रही थी..

"तेहि समझ ऊ तोर बहिन ह का?"

"हा हम त लाली के दीदी सुरुए से बोलेनी.."

" पहिले ते बहिन मानत होखबे.. पर अब...ना नू मानेले"

सोनू सुगना की बात समझ चुका था परंतु अनजान बन रहा था। सुगना चुप हो गई परंतु उसने जिस मुद्दे को छेड़ दिया था वह बेहद संवेदनशील था सोनू ने सुगना को उकसाया..

"हम त अभी ओ लाली के लाली दीदी ही मानेनी.."

"दीदी बोलकर ऊ कुल काम कईल ठीक बा का? न जाने नियति ने सुगना को कितना वाकपटु कर दिया था


सोनू ने अपनी नजरें नीचे झुका लीं। सुगना उससे इस विषय पर जितनी बेबाकी से बात कर रही थी, उतनी सोनू की हिम्मत न थी कि वह खुलकर सुगना की बातों का जवाब दे पाता.. सोनू शर्मा रहा था और सुगना उसे छेड़ रही थी।

बातचीत में यदि एक पक्ष शर्म और संकोच के कारण चुप होता है तो दूसरा निश्चित ही उसे और उकसाने पर आ जाता है… सोनू की चुप्पी ने सुगना को और साहस दे दिया वह मुस्कुराते हुए बोली…

"तु जौन प्यार अपना लाली दीदी से करेला ना … ढेर दिन ना चली…. घर में बाल बच्चा और सोनी भी बिया कभी भी धरा जईब…"

सोनू की सांसे ऊपर नीचे होने लगी उसकी बड़ी बहन सोनू से खुलकर अपनी सहेली की चूदाई के बारे में बातें कर रहे थे। सुगना की बातों ने सोनू के मन में डर और उत्तेजना दोनों के भाव पैदा कर दिए।

सुगना की बातों से सोनू उत्तेजित होने लगा था पर मन ही मन इसे इस बातचीत के बीच में छूट जाने का डर भी सता रहा था। उसका एक अश्लील जवाब सुगना से उसकी बातचीत पर विराम लगा सकता था। वह संभल संभल के सुगना की बातों का जवाब देना चाह रहा था और इस बातचीत के दौर को और दूर तक ले जाना चाह रहा था।

"तू हमरा के काहे बोला तारू लाली के कहे ना बोलेलू "

"हम जानत बानी ऊहो बेचैन रहने ले….जाए दे तोर बियाह हो जाई त सब ठीक हो जाई"

"पहिले तोरा जैसन केहू मिली तब नू"

सोनू ने आज वही बात फिर कही थी जो आज से कुछ दिन पहले सभी की उपस्थिति में की थी परंतु आज इस एकांत में उसकी बात ने सुगना के दिलों दिमाग पर असर कुछ ज्यादा ही असर किया ।

सुगना सोच रही थी..क्या सोनू उसके जैसी दिखने वाली लड़की को प्यार करना चाहता था? प्यार या सिर्फ चूदाई…उसके दिमाग में सोनू का वह चेहरा घूम गया जब वह आंखे बंद किए लाली को चोद रहा था। सुगना ने सोनू से नजरे मिलने के बाद …सोनू के कमर की गति और उसके लाली को पकड़ने की अंदाज़ में बदलाव को सुगना ने बखूबी महसूस किया था। हे भगवान क्या सोनू के मन मन वह स्वयं बसी हुई थी… सुगना को सोनू की निगाहों में एक अजीब किस्म की ललक दिखाई दी।

सुगना शर्म से पानी पानी हो गई उसके उसके गाल सुर्ख लाल हो गए.. उसके दिमाग में सोनू और लाली की चूदाई घूमने लगी..

पांसा उल्टा पड़ गया था सोनू ने सुगना को निरुत्तर कर दिया था वह कुछ बोल पाने में असहज महसूस कर रही थी उसे कोई उत्तर न सोच रहा था सोनू ने फिर कहा..

"सांचो दीदी हम जानत बानी… तहरा जैसन बहुत भाग से मिली… पर हम बियाह तबे करब ना त …"

सुगना ने अपनी आवाज में झूठी नाराजगी लाते हुए कहा..

"ना त का …असही अकेले रहबे?"

"लाली दीदी बाड़ी नू .."

सोनू जान चुका था कि इस बातचीत का अंत आ चुका है उसने इसे सुनहरे मोड़ पर छोड़कर हट जाना ही उचित समझा और

"बोला दीदी तू सूत रहा हम जा तानी दूसरा कमरा में"

सुगना खोई खोई सी थी सोनू को कमरे से बाहर जाते हुए देख कर उसने कहा..

" एहजे सूरज के बगल में सूत के आराम करले का जाने लाइट कब आई.. अकेले हमरो डर लागी"

सोनू को जैसे मुंहमांगी मुराद मिल गई हो ..सुगना का साथ उसे सबसे प्यारा था। पिछले कई महीनों से.. सुगना उसे अपने ख्वाबों की परी दिखाई पड़ने लगी थी जिसे वह मन ही मन बेहद प्यार करने लगा था। सोनू सुगना से अपने प्यार का इजहार करना चाहता था परंतु अपनी मर्यादित और गंभीर बड़ी बहन से अपने प्यार का इजहार कर पाना .……शायद असंभव था।

सोनू आ कर सुगना के बिस्तर पर लेट गया। डबल बेड के बिस्तर पर सबसे पहले सुगना फिर मधु फिर सूरज और आखिरी में सोनू लेटा हुआ था ..


टॉर्च बंद हो चुकी थी कमरे में अंधेरा कायम था….. अंधेरे के बावजूद नियति अपनी दिव्य आंखों से सुगना, सोनू और उनके बीच लेटे उन दोनों छोटे बच्चों को देख रही थी.. भगवान की बनाई दो कलाकृतिया जो शायद एक दूसरी के लिए ही बनी थी … पर एक दूसरे से दूर अपनी आंखें छत पर टिकाए न जाने क्या सोच रही थीं…

सुगना दिन भर की थकी हुई थी उसे नींद आने लगी…उसके मन में सरयू सिंह को चिंता अवश्य थी पर उसे पता था अब भी सरयू सिंह स्वयं सबको मुसीबत से निकालने का माद्दा रखते थे उनका स्वय मुसीबत में पड़ना कठिन था..

थकी हुई सुगना नींद के सागर में हिचकोले खाने लगी। और न जाने कब ख्वाबों के पंख लगा कर स्वप्न लोक पहुंच गई…

बादलों के बीच सुगना एक अदृश्य बिस्तर पर लेटी आराम कर रही थी। चेहरे पर गजब की शांति और तेज था। शरीर पर सुनहरी लाल रेशमी चादर थी।

अचानक सुगना ने महसूस किया को वह चादर धीरे-धीरे उसके पैरों से ऊपर उठती जा रही हैऔर उसके पैर नग्न होते जा रहे है। उसने अपनी पलके खोली और सामने एक दिव्य पुरुष को देखकर मंत्रमुग्ध हो गई। वह दिव्य पुरुष लगातार उसके पैरों को देखें जा रहा था। जैसे जैसे वह चादर ऊपर की तरफ उठ रही थी उसके गोरे पैर उस पुरुष की आंखों में रच बस रहे थे सुगना बखूबी यह महसूस कर रही थी कि वह दिव्य पुरुष, सुगना की सुंदर काया को देखना चाहता है। सुगना नग्न कतई नहीं होना चाहती थी उसने अपने हाथ बढ़ाकर चादर को पकड़ने की कोशिश की परंतु उसके हाथ कुछ भी न लगा चादर और ऊपर उठती जा रही थी सुगना की जांघे नग्न हो चुकी थी…

इससे पहले की चादर और उठकर सुखना की सबसे खूबसूरत अंग को उस दिव्य पुरुष की आंखों के सामने ले आती सुगना जाग गई एक पल के लिए उसने अपनी आंखें खोली और देखकर दंग रह गई कि सामने सोनू खड़ा था और टॉर्च से रोशनी कर सुगना के नंगे पैरों को देख रहा था। दरअसल सुगना करवट लेकर लेटी हुई थी और उसका दाहिना पैर कुछ ऊपर की तरफ था.

इस अवस्था में उसकी दाहिनी जांघ का कुछ हिस्सा भी दिखाई पड़ रहा था।

कमरे में अंधेरा था परंतु टॉर्च की रोशनी में सुगना की गोरी जांघ पूरी तरह चमक रही थी और सोनू अपने होठ खोले लालसा भरी निगाह से सुगना को देख रहा था।


सुगना ने कोई हरकत ना कि वह चुपचाप उसी अवस्था में लेटी रही उसने सोनू को यह एहसास न होने दिया कि वह जाग चुकी है।

सोनू लगातार अपना ध्यान सुगना की जांघों पर लगाया हुआ था उसके हाथ बार-बार सुगना की नाइटी की तरफ बढ़ते पर वह उसे छूने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था…। उधर सुगना देखना चाहती थी कि सोनू किस हद तक जा सकता है। उस अनोखे स्वप्न से और सोनू की परीक्षा लेते लेते सुगना स्वयं भी उत्तेजित होने लगी थी…

जांघों के बीच सुगना की छोटी सी मुनिया सुगना की उंगलियों का इंतजार कर रही थी उसे कई महीनों से कोई साथी ना मिला था और उसने सुगना की उंगलियों से दोस्ती कर ली थी.. सामने सोनू खड़ा था .. अपनी जाग चुकी बुर को थपकियां देकर सुला पाना सुगना के बस में ना था।


आखिरकार उसने करवट ली और सोनू की आंखों के सामने चल रहे उस कामुक दृश्य को खत्म कर दिया सोनू भी मायूस होकर धीरे बिस्तर की तरफ बढ़ चला..

सुगना सोनू के व्यवहार से आश्चर्यचकित अवश्य थी …परंतु दुखी न थी उसके नग्न पैरों को देखने की कोशिश एक युवक की सामान्य जिज्ञासा मानी जा सकती थी परंतु उसने अपनी बहन की नाइटी को ऊपर न कर …सुगना के मन में भाई-बहन के पवित्र रिश्ते की पवित्रता को कुछ हद तक कायम रखा था।

नियति बार-बार सुगना और सोनू को एक साथ देखती और उसे उन दोनों के मिलन के दृश्य उसकी आंखों में घूमने लगते हैं परंतु एक मर्यादित और सुसंस्कृत बड़ी बहन कैसे स्वेच्छा से छोटे भाई से संबंध बना ले यह बात न नियति को समझ में आ रही थी और न सुगना को….

परंतु विधाता ने जो सोनू और सुगना के भाग्य में लिखा था उसे होना था कब कैसे और कहां यह प्रश्न जरूर था पर जिसने उन दोनों का मिलन लिखा था निश्चित ही उसने उसकी पटकथा भी लिखी होगी….

इधर सोनू अपनी बड़ी बहन के खूबसूरत कोमल पैरों और खुली जांघों का दर्शन लाभ ले रहा था उधर सरयू सिंह के सामने मनोरमा पूरी तरह नग्न अपनी पूरी मादकता के साथ उपस्थित थी।


सरयू सिंह का लंड लंगोट की कैद से बाहर आ चुका था और अपने पूरे उन्माद में खड़ा सरयू सिंह की नाभि को चूमने का प्रयास कर रहा था। यह बात वह भी जानता था कि वह सरयू सिंह की नाभि को चूम ना सकेगा परंतु उछल उछल कर वह अपना प्रयास अवश्य कर रहा था।

लंड में आ रही उछाल मर्द और औरत दोनों को उतना सुख देती है.. जिन युवा पुरुषों ने उछलते लंड का अनुभव किया है उन्हें इसका अंदाजा बखूबी होगा और जिन महिलाओं या युवतियों में उछलते हुए लंड को अपने हाथों में पकड़ा है वह उस अनुभव को बखूबी समझती होंगी।


मनोरमा की आंखें उस अद्भुत लंड पर टिकी हुई थी जो मोमबत्ती की रोशनी में और भी खूबसूरत दिखाई पड़ रहा था। मनोरमा के लिए वह लंड दिव्य अद्भुत और अकल्पनीय था… वह उसे को अपने हाथों में लेने के लिए मचल उठी ।

उधर सरयू सिंह सोफे पर बैठे अपने दोनों पैर फैला चुके थे। मनोरमा उनके पैरों के बीच पूरी तरह नग्न खड़ी थी और अपनी नजरे झुकाए सरयू सिंह के लंड को लालच भरी निगाहों से देख रही थी।

सरयू सिंह ने अपनी हथेलियां मनोरमा की जांघों की तरफ की और उसकी जांघों को पीछे से पकड़ कर मनोरमा को और आगे खींच लिया…सरयू सिंग के दिमाग में एक बार भी यह बात ना आई कि सामने खड़ी मनोरमा उनकी सीनियर और भाग्य विधाता रह चुकी थी और आज भी उसका कद उनसे कई गुना था परंतु आज सरयू सिंह के पास मनोरमा द्वारा पिलाई गई शराब का सहारा था और सामने एक कामातुर महिला …..

सरयू सिंह की हिम्मत बढ़ चुकी थी।

सरयू सिंह के खींचने से मनोरमा का वक्ष स्थल सरयू सिंह के चेहरे से आ सटा। सरयू सिंह ने अपना चेहरा मनोरमा कि दोनों भरी-भरी चुचियों के बीच लाया और थोड़ा सा आगे पीछे कर अपने गाल मनोरमा की दोनों चुचियों से सटाने लगे।


वह उनके खूबसूरत और कोमल एहसास में खोते चले गए । नीचे उनके हाथ बदस्तूर मनोरमा की जांघों की कोमलता को महसूस कर रहे थे। जैसे किसी बच्चे को एक साथ कई खिलौने मिल गए हैं सरयू सिंह मनोरमा के हर अंग से खेल रहे थे।

जैसे-जैसे सरयू सिंह की हथेलियां और ऊपर की तरफ बढ़ रही थी मनोरमा कसमसा रही थी उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह सरयू सिंह की इस कामक्रीड़ा को आगे बढ़ाएं या उसे रोकने का प्रयास करें। जिस दिव्य सोमरस ने सरयू सिंह के मन में हिम्मत भरी थी उसी दिव्य रस ने मनोरमा को वक्त की धारा के साथ बह जाने की शक्ति दे दी।

सरयू सिंह की हथेली मनोरमा के नितंबों पर आ गई और वह उन खूबसूरत नितंबों को सहला कर उनकी गोलाई का अंदाजा करने लगे…खूबसूरती की तुलना करने के लिए उनके पास एकमात्र सुगना थी परंतु जैसे ही उन्हें सुगना का ध्यान हुआ दिमाग उनका दिमाग सक्रिय हुआ और अचानक उन्हें अपनी अवस्था का एहसास हुआ और उन्हें अपने किए पाप का ध्यान आने लगे। इससे इतर सुगना को ध्यान करते ही उनका लंड उत्तेजना से फटने को तैयार हो गया ।

सरयू सिंह की उंगलियों ने दोनों नितंबों के बीच अपनी जगह बनानी शुरू की और धीरे-धीरे वो मनोरमा की खूबसूरत और गुदाज गाड़ को छूने लगी। इस छोटे छिद्र के शौकीन सरयू सिंह शुरू से थे…परंतु वह उनके सामने न था उंगलियों ने थोड़ा और नीचे का रास्ता तय किया और वह मनोरमा कि उस खूबसूरत और रसभरी नदी में प्रवेश कर गए उंगलियों पर प्रेम रस छलक छलक कर लगने लगा ऐसा लग रहा था जैसे सरयू सिंह ने चासनी में अपना हाथ डाल दिया उधर उनके होंठ मनोरमा की सूचियों से हट कर निप्पल तक जा पहुंचे और उन्होंने मनोरमा का निप्पल होंठो में लिया…

मनोरमा कसमसा उठी…अब तक उसने अपने हाथ इस प्रेमयुद्ध से दूर ही रखे थे परंतु उस अद्भुत अहसास से वह खुद को रोक ना पाए और उसके हाथ सरयू सिंह के सर पर आ गए। उसने सरयू सिंह के बाल पकड़े परंतु वह उन्हें अपनी तरफ खींचे या दूर करें यह फैसला वह न कर पाई उत्तेजना चरम पर थी… आखिरकार मनोरमा ने सरयू सिंह को अपनी चुचियों की तरफ खींच लिया।

सरयू सिंह गदगद हो गए.. मनोरमा का निमंत्रण पाकर वह मन ही मन उसे चोदने की तैयारी करने लगे..

नियति सरयू सिंह की अधीरता देख रही थी…परंतु सरयू सिंह को कच्चा खाना कतई पसंद न था वह पहले खाने को धीमी आंच में भूनते और जब वह पूरी तरह पक जाता तभी उसका रसास्वादन किया करते थे।

इस उम्र में भी उनका उत्साह देखने लायक था। सरयू सिंह ने अपना बड़ा सा मुंह फाड़ा और मनोरमा की भरी-भरी चुचियों को मुंह में लेने की कोशिश करने लगे..परंतु मनोरमा मनोरमा थी और सुगना ….

सरयू सिंह जिस तरह सुगना की चुचियों को अपने मुंह में भर लिया करते थे मनोरमा की चुचियों को भर पाना इतना आसान न था… आखिरकार सरयू सिंह हांफने लगे … परंतु इस रस्साकशी में उन्होंने मनोरमा की चूचियों में दूध उतार दिया।


मनोरमा अपनी चुचियों में दूध उतर आया महसूस कर रही थी..सरयू सिंह ने अब तक उसकी एक ही चूची को पूरे मन से पिया था और दूसरी पर मुंह मारने ही वाले थे तभी सोफे पर सो रही पिंकी जाग उठी।

सरयू सिंह मनोरमा की चूची छोड़कर उससे अलग हुए और अपने हाथ मनोरमा के नितंबों के बीच से निकालकर छोटी पिंकी को थपथपा कर सुलाने लगे।

उन्होंने इस बात का बखूबी ख्याल रखा कि मनोरमा की गीली बुर से निकला हुआ रस उनकी उंगलियों तक ही सीमित रहें और पिंकी के कोमल शरीर से दूर ही रहे।


परंतु पिंकी मानने वाली न थी वह रोती रही अंततः मनोरमा ने उसे अपनी गोद में लिया और अपनी दूसरी चूची को को पिंकी के मुंह में दे दिया… सरयू सिंह ने जो दूध मनोरमा की चूचियों में उतारा था उसका लाभ उनकी पुत्री पिंकी बखूबी ले रही थी…..

सरयू सिंह के लंड में तनाव कम होना शुरू हो गया था.. उस हरामखोर को चूत के सिवा और कुछ जैसे दिखाई ही न पड़ता था… इतना बेवफा कोई कैसे हो सकता है। क्या सुगना क्या मनोरमा क्या कजरी और क्या सुगना की मां पदमा लंड के उत्साह में कोई कमी न थी.. ऊपर से सोमरस आज सरयू सिंह की तरह उनका लंड भी उत्साह से लबरेज था..

मनोरमा अपना सारा ध्यान अपनी पुत्री पिंकी पर लगाए हुई थी… जो अब दूध पीते पीते एक बार फिर अपनी पलकें झपकाने लगी थी। सरयू सिंह अभी भी मनोरमा की पीठ को सहला रहे थे.. परंतु मनोरमा अपने हाथ से उन्हें रुकने का इशारा कर रही थी।


सरयू सिंह बेहद अधीरता से अपने लंड को सहला रहे थे और अपने इष्ट से पिंकी के शीघ्र सोने की दुआ मांग रहे थे। शराब का असर धीरे धीरे अपने शबाब पर आ चुका था…

वह बार-बार टेबल पर पड़ी उस वाइन की बोतल को देख रहे थे जिसमें अब भी कुछ शराब बाकी थी। सरयू सिंह जिन्होंने आज तक शराब को हाथ भी ना लगाया था आज उसके सेवन और असर से इतने प्रभावित थे कि उनका मन बार-बार कह रहा था कि वह बची हुई शराब को भी अपने हलक में उतार ले जाएं।

परंतु ऐसा कहकर वह शर्मिंदगी मोल लेना नहीं चाह रहे थे जिस मनोरमा से उन्होंने अभी इस शराब की बुराइयां बताई थी यदि वह स्वयं से उन्हें शराब की बोतल पकड़ पीते हुए देखती तो उनके बारे में क्या सोचती.? सरयू सिंह एक संवेदनशील व्यक्ति थे…वह अपने मन में चल रहे द्वंद से जूझ रहे थे उनकी उस शराब को पीने की इच्छा अवश्य थी पर हिम्मत में कमी थी…


पिंकी सो चुकी थी और मनोरमा की चूची छोड़ चुकी थी..मनोरमा ने मुस्कुराते हुए कहा आप मोमबत्ती लेकर आइए पिंकी को पालने पर सुलाना हैं

मनोरमां पिंकी को गोद में लिए खड़ी हो गई और सरयू सिंह टेबल पर पड़ी मोमबत्ती लेकर। मनोरमा सरयू सिंह के आगे चलने का इंतजार कर रही थी परंतु सरयू सिंह मनोरमा के पीछे ही खड़े थे अंततः मनोरमा को ही आगे आगे चलना पड़ा…. शायद सरयू सिंह अपनी मनोरमा मैडम को लेडीस फर्स्ट कहकर आगे जाने के लिए प्रेरित कर रहे थे परंतु असल बात पाठक भी जानते हैं और सरयू सिंह भी..


सरयू सिंह ने न जाने मन में क्या सोचा और वह शराब की बोतल को भी अपने दूसरे हाथ में ले लिया। आगे-आगे मनोरमा बलखाती हुई चल रही थी और पीछे पीछे अपना खड़ा लंड लिए हुए सरयू सिंह।

शेष अगले भाग में

अति उत्तम।
सरयू और मनोरमा का वर्णन मनोरम है.
और सुगना तो अपनी वैसे भी लाड़ली है ही.

धन्यवाद लवली जी.
बहुत परिश्रम से इस अध्याय तक पहुँचा हूँ.
 

Mastmalang

Member
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भाग 105

कजरी के हटते ही एक बार फिर सोनू ने सुगना के पैर छूते हुए कहा दीदी माफ कर द..


सुगना उठ गई और जाते-जाते बोली

"जा पहले मोनी के ढूंढ कर ले आव फिर माफी मांगीह"

सोनू को तो जैसे मुंह मांगी मुराद मिल गई हो सुगना के व्यवहार से उसने अंदाज लगा लिया की उसका और सुगना का रिश्ता पूरी तरह टूटा नहीं है..

वह सुगना का वो प्यार पा सकेगा या नहीं यह अलग बात थी.. परंतु उसे खोना सोनू को कतई गवारा न था.. सुगना अब उसकी जान थी.. अरमान थी और अब उसके बिना रहना सोनू के लिए नामुमकिन था…


अचानक घर के बाहर चीखने चिल्लाने की आवाज आने लगी……कुछ लोग एक व्यक्ति को पीट रहे थे वह दर्द से कराह रहा था मैंने कुछ नहीं किया…सोनू भी बाहर निकल कर आया…

अब आगे..

"बेटीचोद कहां ले गइले मोनी के?" सरयू सिंह की धाकड़ आवाज सुनाई दी…

तभी किसी ने उसकी पीठ पर दो लात और मारे और बेहद गुस्से से कहा..

" साला दिन भर लइकिन के पीछे भागत रहेला ना.. जाने पंडित जी एकरा के अपना संगे काहे राखेले?"

मार खा रहा व्यक्ति कोई और नहीं पंडित जी का वही हरामी हेल्पर था जो मोनी के पीछे पीछे बाग में आया था और जिसने मोनी की कुंवारी बुर के प्रथम दर्शन किए थे..

नियति उसके किए का दंड इतना शीघ्र देगी यह उसे भी अंदाजा न था..

दरअसल मोनी की कुंवारी बुर देखने के बाद उस व्यक्ति पर जैसे जुनून सवार हो गया था वह दिन भर मोनी के आगे पीछे इधर-उधर मंडराता रहा और उससे नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करता रहा परंतु वैरागी मोनी को उससे कोई सरोकार न था … अपनी कोमल और कमसीन बुर को जिस मोनी ने खुद भी ज्यादा न छुआ था वह उसे कैसे उसके हवाले करती। परंतु मोनी की बुर की एक झलक ने उस हेल्पर का सुख चैन छीन लिया था।

रात भर वह सरयू सिंह के दालान में पड़ा पड़ा मोनी को ही याद करता रहा…कभी सोता कभी जागता।

रात में मोनी जब बाहर आई थी तब तो वह उसे न देख पाया परंतु सुबह सुबह जब मोनी सरयू सिंह के घर से बाहर निकल रही थी वह उसके पीछे हो लिया। मोनी आगे-आगे चल रही थी और उस पर नजर रख रहा पंडित जी का शिष्य उसके पीछे पीछे।


मोनी घबरा रही थी और अपनी चाल को नियंत्रित करती तेजी से आगे चल रही थी… कुछ देर बाद रेलवे स्टेशन पर पहुंच कर पंडित के शिष्य ने मोनी को ट्रेन के प्लेटफार्म पर जाते देखा वहां और भी लोग थे…वहा जाने में वह घबरा रहा था…कदम ठिठक गए। पंडित का शिष्य घबरा गया तभी गांव के किसी व्यक्ति ने उससे पूछ लिया…

" अरे ऊ केकर लइकी ह ते ओकरा पीछे-पीछे काहे जात बाड़े?" वह निरुत्तर हो गया। संयोग से उसी समय प्लेटफार्म पर ट्रेन आई और मोनी उस ट्रेन में सवार हो गई।

पंडित के शिष्य के सारे अरमान धरे के धरे रह गए उसने यह बात अपने ही सीने में दफन रखने की सोची और चुपचाप वहां से रफा-दफा हो लिया परंतु अब जब मोनी के गायब होने की बात सार्वजनिक हो चुकी थी उसका बचना नामुमकिन था।


खबर कानो कान सरयू सिंह और हरिया तक पहुंच गई फिर क्या था सरयू सिंह के हाथ इतने भी कमजोर न थे। अपने इलाके में उनका दबदबा था और कुछ ही घंटों के पश्चात पंडित का हरामी शिष्य उनकी देहरी पर खड़ा लात खा रहा था।

सोनू ने बाहर आकर बीच बचाव किया और उससे सच जानने की कोशिश की। शिष्य ने अक्षरसः सारी बातें बता दी। बस वह एक बात छुपा ले गया जो उसे छुपाना भी चाहिए था वह थी मोनी की कुंवारी बुर देखने की बात।

कुछ ही देर में लोगों ने अंदाजा लगा लिया की मोनी जिस ट्रेन में चढ़ी थी वह उत्तराखंड की तरफ जाती थी। देहरादून उसका अंतिम पड़ाव था। मोनी कहां गई होगी यह प्रश्न अभी भी सबके दिमाग में घूम रहा था।

परंतु सोनू का दिमाग तेजी से चल रहा था मनोविज्ञान सोनू भली-भांति समझता था उसने मोनी में वैराग्य के कुछ लक्षण देखे थे। वह मन ही मन सभी संभावित गंतव्य स्थलों की सूची बनाने लगा और अपने निर्णय पर पहुंचकर उसने सरयू सिंह से कहा

" चाचा इकरा के मत मारल जाओ ई साला सही में ओकरा पीछे पीछे घूमत होई लेकिन इकरा गांणी में इतना दम नईखे की मोनी अगवा कइले होखी "

सोनू की बात में दम था. । वैसे भी वह व्यक्ति अपने किए की पर्याप्त सजा पा चुका था धूलधूसरित उस व्यक्ति के कपड़े फट चुके थे होठों से खून बह रहा था वैरागी मोनी की बुर देखने की यह सजा शायद कुछ ज्यादा ही थी…

धीरे-धीरे सोनू ने आगे की रणनीति बना ली.. सोनू लाली से मिलने से कतरा रहा था उसे लाली के प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं समझ आ रहा था यदि लाली दीदी ने उस रात के बारे में पूछा तो वह क्या जवाब देगा? झूठ बोलना उचित न था और सच वह तो और भी अनुचित था ।

उसकी खुद की प्रतिष्ठा न सही परंतु सुगना से मिलन को वह लाली के समक्ष नहीं लाना चाह रहा था। सुगना ने प्रतिरोध किया था और सुगना के व्यवहार से यह स्पष्ट था की सुगना को वह मिलन स्वाभाविक रूप से स्वीकार्य न था। जो उसको सुगना दीदी को स्वीकार न था उसे न तो बताना कतई उचित न था।

अगली सुबह सोनू को वापस जौनपुर जाना था शाम को खाने पर उसने लाली, सुगना और सोनी को जाते समय बनारस छोड़ने की बात कही और सभी सहर्ष तैयार हो गए। आखिर छोटे-छोटे बच्चों की पढ़ाई लिखाई भी जरूरी थी। सुगना सोनू के साथ जाने में स्वयं को असहज महसूस कर रही थी परंतु कोई चारा भी न था..


सुबह अगली सुबह बोलेरो में सोनू और बनारस में रहने वाले सभी सदस्य सवार होने लगे। समान ऊपर बांधा गया और छोटे बच्चे पीछे चढ़कर अपनी अपनी जगह तलाश करने लगे। पीछे वाली सीट पर सोनू की तीनो बहने बैठी एक तरफ लाली बीच में सोनी और ड्राइवर के ठीक पीछे वाली सीट पर सुगना।

सोनी बच्चों को उछलने कूदने से रोक रही थी परंतु बच्चों को क्या? मोनी मौसी के गायब होने से उन्हें कोई विशेष फर्क न था वह सब अपनी मस्ती में चूर थे। परंतु सुगना परेशान थी मोनी को लेकर भी और अपने और सोनू के संबंधों में आए बदलाव को लेकर भी ।

वह खिड़की से बाहर गेहूं की बालियों को देखते हुए कभी उनकी सुंदरता में खोती और अपने गम को भूलने का प्रयास करती …उधर सोनू बार-बार पलट कर बात तो सोनी से करता परंतु उसकी निगाहें सुगना के गोरे गालों पर टिकी रहती.


काश! सुगना दीदी कुछ बोलती और हमेशा की तरह हंसती खिलखिलाती रहती। सोनू सुगना का मुस्कुराता और खिला-खिला चेहरा देखने के लिए तरस गया था। वह कभी अपनी गलती पर पछताता कभी अपने ईश्वर से सुगना को खुश करने के लिए प्रार्थना करता।

जब वह सुगना के स्खलित होते हुए चेहरे को याद करता उसे लगता जैसे उसने कोई पाप ना किया हो …और सुगना को पूर्ण तृप्ति देखकर उसने अपना फर्ज निभाया हो..परंतु जब उसे सुगना का प्रतिरोध याद आता वह आत्मग्लानि से भर जाता..

रास्ते में गाड़ी रोककर सोनू ने सुगना की पसंद की फेंटा लाई पर सबने उसका आनन्द लिया पर सुगना ने नहीं…जब सुगना ने नहीं लिया तो सोनू ने भी नहीं…

लाली सोनू और सुगना के बीच आए बदलाव को महसूस कर रही थी पर मजबूर थी।

सोनू और सुगना को छोड़कर बाकी सब धीरे-धीरे सामान्य हो गए थे… और कुछ घंटों के सफर के पश्चात सभी बनारस पहुंच गए सोनू ने सब का सामान उतारा परंतु अपने सामान को गाड़ी में ही रहने दिया…

सोनू ने बनारस में इस वक्त रह कर वक्त बर्बाद करना उचित न समझा मोनी को ढूंढना उसके पहली प्राथमिकता थी। तुरंत ही उसने अपने जौनपुर जाने की बात कह कर सबको आश्चर्यचकित कर दिया.. उस पर हक जमाने वाली सुगना तो जैसे निर्विकार और निरापद हो गई थी.।

लाली ने एक बार सोनू से कहा

"अरे खाना पीना खा ल तब जईहा" परंतु सोनू को जिसका इंतजार था उसने मुंह ना खोला सुगना अब भी अपने कोमल अंगूठे से मजबूत फर्श कुरेद रही थी… परंतु उसने मुंह ना खोला। सुगना की खनखनाती और मधुर आवाज सुनने के लिए सोनू के कान तरस गए थे।

सोनू ने हाथ जोड़कर सबसे विदा ली… परंतु सोनू की यह विदाई सोनी को कतई समझ में नहीं आ रही थी ।

सोनू एक तरफा हाथ हिलाते हुए घर से बाहर निकल गाड़ी में बैठ गया अंदर तीन बहनों में से सिर्फ सोनी के हाथ ही हवा लहरा रहे थे…सुगना अब भी नजरें झुकाए बेचैन खड़ी थी उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह सोनू को किस प्रकार विदा करें? दिमाग के द्वंद्व ने सुगना की स्वाभाविकता छीन थी… अपने छोटे भाई सोनू से बेहद प्यार करने वाली सुगना उसे विदा होते समय देख भी न रही थी। नियति ने जिस भवसागर में सुगना और सोनू को धकेल दिया था उससे उन दोनों का ही उस भवर से निकलना जरूरी था..

सोनू के बाहर निकलते ही सोनी ने सुगना से पूछा

" दीदी … सोनू भैया से कोनो बात पर खिसियाइल बाड़े का ? " सुगना ने कोई उत्तर नहीं किया अपितु अपना सामान लेकर अपने कमरे में रखने लगी। सोनी को यह नागवार गुजरा वह सुनना के सामने आकर खड़ी हो गई और उसके कंधे को पकड़ते हुए बोली

" दीदी साफ बताओ काहे खिसीआईल बाड़े ? अइसन त ते सोनू भैया के साथ कभी ना करेले? सुगना ने सोनी की तरफ देखा और कहा अभी हमार दिमाग ठीक नईखे मोनी के मिल जाए दे फिर बात करब"


सोनी उत्तर से संतुष्ट न हुई परंतु उसे यह अहसास अवश्य था कि मोनी के गायब होने से सुगना और उसकी मां पद्मा सबसे ज्यादा दुखी थी। यह स्वाभाविक भी था। जहां सुगना अपने परिवार के मुखिया की भूमिका अदा करती थी वही मोनी अपनी मां पदमा का एकमात्र सहारा थी दिन भर साथ रहना …साथ में घर का काम करना और एक दूसरे से बातें करते हुए वक्त बिताना। मोनी के जाने से पदमा अकेली हो गई थी।

लाली और सुगना के बीच भी एक अजब सा तनाव था। सुगना को तो यह अंदाजा भी न था कि सोनू को उकसाने में लाली का योगदान था और लाली को यह आभास न था कि अंदर वास्तव में क्या हुआ था।


इतना तो तय था कि सुगना और सोनू का मिलन यदि हुआ था तो वह सुखद वातावरण में नहीं हुआ था। अन्यथा सुगना के चेहरे पर इतना तनाव कभी नहीं आता।

परंतु क्या सोनू ने अपनी ही बड़ी बहन सुगना से जबरदस्ती की होगी? छी छी सोनू जैसा प्रेमी ऐसा कतई नहीं कर सकता? फिर आखिर क्या हुआ था? यह जानने की लाली की तीव्र इच्छा थी परंतु उसके प्रश्नों का उत्तर न तो सोनू ने दिया था और नहीं सुगना से प्रश्न पूछ पाने की उसकी हिम्मत हो रही थी।

खैर जो होना था वह हो चुका था…. सोनू तेजी से जौनपुर की तरह बढ़ रहा था अपने कार्यक्षेत्र पर पहुंचकर उसका पहला उद्देश्य मोनी को ढूंढने के लिए अपने प्रशासन तंत्र की मदद लेना था.

सोनू ने जौनपुर पहुंचकर अपने विभाग के आला अधिकारियों से मदद मांगी और देखते ही देखते पुलिस विभाग की कई टीमें तैनात कर दी गई। सोनू स्वयं अपने पुलिसिया साथियों के साथ इस सर्च अभियान की कमान संभाल रहा था…

सोनू इस बात से भलीभांति अवगत था कि मोनी का झुकाव वैराग्य की तरफ है यह बात उसने पिछले बनारस महोत्सव में कई बार महसूस की थी विद्यानंद के उद्बोधन के पश्चात जब महिला और पुरुषों की भीड़ संगीत की धुन पर थिरकने लगती तो मोनी जैसे खुश हो जाती। बाकी कलयुगी लोग अपनी आंखें खोल कर इधर-उधर देखते परंतु मोनी वह तो जैसे भाव विभोर हो जाती..और लीन हो जाती।

सोनू दिन भर कभी इससे मिलता कभी उससे मिलता कभी अपनी टीम के सदस्यों से बात करता…सोनू ने मोनी को ढूंढने के लिए एड़ी चोटी चोटी का जोर लगा दिया।

एक-एक करके दिन बीतने लगे और लाली और सुगना के बीच की दूरियां कम ना हुईं। दोनों सहेलियां जो घंटों बैठ कर बात करती थी और उनकी बातें खत्म होने का नाम न लेती थी .. अब अपने अपने कमरों में पड़े अपनी अपनी यादों और एक दूसरे के साथ बिताए वक्त को याद करते एक दम शांत हो गई थीं। सुगना और लाली का चहकता हुआ घर न जाने कब एकदम शांत हो गया था।

जब घर की ग्रहणी दुखी होती है पूरे परिवार में दुख छा जाता है सारे बच्चे और यहां तक कि सोनी भी सुगना के इस बदले हुए स्वरूप से परेशान थी और सुगना के लिए चिंतित भी। सब बार-बार सुगना के पास जाते उसे मनाने और उसे दुख का कारण पूछते परंतु सुगना क्या कहती जो दर्द उसके मन में था… न तो वह उसे किसी के सामने बयां कर सकती थी और नहीं उस दुख से निजात पा सकती थी।

घर के सभी सदस्य अपने अपने इष्ट देव से सुगना के खुश होने के लिए प्रार्थना कर रहे थे…

दुआओं में असर होता है धीरे धीरे ऊपर वाले विधाता को सोनू और सुगना पर तरस आ गया और सोनू के ऑफिस में एक फोन आया…

जैसे-जैसे फोन के रिसीवर से शब्द निकल निकल कर सोनू के कानों से टकराते गए सोनू के चेहरे पर कभी आश्चर्य कभी विस्मय और अंततः मुस्कुराहट हावी होती गई …

"मैं सदैव आपका आभारी रहूंगा……जी…. जी……ठीक है मैं कल ही वहां पहुंचता हूं" सोनू ने आभार जताते हुए फोन का रिसीवर रखा और अपने दोनों हाथ जोड़कर अपनी छत को देखते हुए अपने इष्ट देव के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर की।


सोनू के मन में आया कि वह इस खुशखबरी को तुरंत ही लाली और सुगना से साझा कर दे परंतु उसने कुछ सोचकर यह विचार त्याग दिया वैसे भी रात हो चुकी थी और इस समय लाली और सुगना तक संदेश पहुंचा पाना कठिन था।

सोनू अपने कमरे में आया और सुबह अपने सफर पर निकलने के लिए अपना सामान बांधा… मन में उत्साह और सुगना की यादें लिए सोनू..अपने बिस्तर पर आया…सुगना को याद करना सोनू के लिए सबसे सुकून का काम था… सुगना के खिलखिलाते और मुस्कुराते चेहरे को याद कर न सिर्फ सोनू की वासना जवान होती अपितु उसका रोम रोम खिल उठता। परंतु पिछले कुछ दिनों से सोनू सुगना के दुखी चेहरे को देखकर परेशान था। आज इस खुशखबरी को सुनकर उसका मन प्रसन्न हो गया था और वह एक बार सुगना को फिर मुस्कुराते और खिलखिलाते हुए देखना चाहता था.

उसे याद करते ही सोनू के जैसे सारे दुख गायब हो जाते न जाने सुगना में ऐसा क्या छुपा था ….कुछ ही देर में उसके दिमाग के सामने सुगना का चेहरा घूमने लगा… क्या यह खबर सुन कर सुनना दीदी उसे माफ कर देगी? क्या सुगना को वह उसी प्रकार खिलखिलाते चहकते देख पाएगा…और क्या वह अद्भुत सुख उसे कभी दोबारा प्राप्त होगा…?

जैसे ही सोनू को उस मिलन की याद आई उसकी आंखों के सामने दृश्य घूमने लगे आज का एकांत उसे उस मिलन की बारीकियां याद दिलाने लगा… कैसे उसके मजबूत लंड के सुपाडे ने सुगना की चिपचिपी गीली बुर में डुबकी लगाई थी?... सुगना दीदी की बुर गीली क्यों थी? क्यों उन्होंने उस रात पेंटी नहीं पहनी थी? क्या वह सच में इस सुख की प्रतीक्षा कर रही थी? पर यदि ऐसा था तो उन्होंने प्रतिरोध क्यों किया?

सोनू सुगना की बुर के कसाव को याद करने लगा.. कितना जीवंत था सुगना दीदी का बुर का कसाव… ऐसे लग रहा था जैसे किसी ने अपनी अनगिनत कोमल उंगलियों से उसके लंड को को अपने आलिंगन में भर लिया हो…और उगलियो के दबाव से स्वाभाविक तौर पर उसे अपने अंदर और अंदर और गहरे तक खींचे जा रहा हो..

गर्भाशय के मुख पर पहुंचकर उसके सुपाडे ने जब प्रतिरोध को महसूस किया तब उसने अपने लंड को सुगना की बुर में पूरी तरह अंदर पाया…. क्या ऊपर वाले ने सुगना की बुर और सोनू के लंड को एक दूसरे के लिए ही बनाया था..

सोनू को अच्छी तरह याद आ रहा था जब इसके बाद उसने अपने लंड को और अंदर डालने की कोशिश की और सुगना की फूली हुई बुर उसके दबाव से पूरी तरह चिपक गई….

जिस तरह आलिंगन का कसाव बढ़ाने पर दूरियां और कम हो जाती है उसी प्रकार सोनू के दबाव बढ़ाने से लंड और अन्दर गया और उसने गर्भाशय का मुख खोल दिया …


और सुगना के वह उद्गार…

"सोनू… तनी धीरे से दुखाता"

सुगना के इस उद्बोधन में सिर्फ और सिर्फ एक प्यार भरी कामुकता थी और स्खलन के लिए तैयार उसकी बहन की मिलन की पूर्णता की मांग……

अब तक सोनू का लंड उसके मनोभाव पढ़कर हरकत में आ चुका था और सोनू की हथेलियों को बरबस अपनी ओर आकर्षित कर रहा था…

जैसे ही हथेलियों ने लंड को अपने आगोश में लिया सोनू की भावनाएं और कामुक होती गई।

सोनू उस रात हुए अनुभवों को याद कर रहा था और उन्हें अपने मन में उसे एक बार फिर महसूस करने की कोशिश कर रहा था। कैसे वह अपनी सुगना दीदी की बुर से जैसे ही लंड निकालने की कोशिश करता… अंदर उत्पन्न हुआ निर्वात सोनू के लंड को तुरंत ही अपनी तरफ खींचने लगता.. और सोनू का लंड एक बार फिर और गहराई तक उतर जाता…

सुगना की कोमल जांघों का स्पर्श उसकी जांघों से हो रहा था। ऐसी मखमली त्वचा शायद उसने जीवन में कभी अनुभव न की थी। मिलन के अन्तिम पलों में सुगना की पिंडलियां उसके नितंबों पर लगातार दबाव बनाए हुए उसे अपनी तरफ खींच रही थी..

वह स्खलित होती हुई बुर के कंपन ….वो अंतिम पलों में दीदी के प्रतिरोध का बिल्कुल खत्म होना और सुगना दीदी द्वारा उसकी उंगली को चुभलाए जाना….

सोनू की गतिमान हथेलियां लंड के मान मर्दन में लगी हुई थीं..

सोनू सुगना की चूचियों के स्पर्श को याद कर रहा था.. तभी वीर्य की एक मोटी धार हवा में उड़ती हुई वापस उसके चेहरे पर आ गिरी। सोनू का लंड हवा में वीर्य वर्षा कर रहा था जिसकी पहली धार स्वयं सोनू के होठों पर ही आकर गिरी..

आज जीवन में पहली बार उसने अपने ही वीर्य का स्वाद अपने होठों से चखा था…

…सोनू स्खलित हो रहा था…आज कई दिनों बाद सोनू के चेहरे पर खुशियां थी वह अति शीघ्र अपनी बहन सुगना से मिलना चाहता था।

अगले दिन सोनू अपने गंतव्य के लिए निकल चुका दिनभर की यात्रा करने के पश्चात वह सुबह सुबह विद्यानंद के आश्रम में हाजिर था। उसे उसे यह स्पष्ट जानकारी हो चुकी थी की मोनी विद्यानंद के आश्रम में ही आई थी। पुलिस और प्रशासन के सहयोग से सोनू को यह जानकारी फोन द्वारा प्राप्त हो चुकी थी। परंतु सोनू मोनी से मिलकर इस बात की तसल्ली करना चाहता था और उसके घर छोड़ने का कारण भी जानना चाहता था।

सोनू आश्रम के पंडाल में आ चुका था।श्वेत वस्त्रों में मोनी को आंखें बंद किए अपने दोनों हाथ हवा में हिलाते हुए एक विशेष धुन पर हौले हौले नृत्य करते हुए देखकर सोनू आश्चर्यचकित था । मोनी के चेहरे पर निश्चित ही एक नया नूर था। पिछले कुछ दिनों में ही मोनी को जैसे यह आश्रम रास आ गया था…सोनू कुछ देर तक नृत्य के खत्म होने का इंतजार करता रहा और जैसे ही अल्पविराम हुआ उसने आवाज लगाई

"मोनी"

मोनी ने सोनू की तरफ देखा परंतु वह उसकी तरफ आई नहीं। शायद मोनी के मन में सोनू के प्रति घृणा उत्पन्न हो चुकी थी और हो भी क्यों न जो व्यक्ति अपनी ही बहन के साथ ऐसा दुष्कर्म कर सकता है और जो अपनी छोटी बहन को अपने दोस्त की वासना शांत करने के लिए भेज सकता है ऐसा घृणित व्यक्ति भाई कहलाने योग्य कतई नहीं हो सकता।

सोनू ने आगे बढ़कर मोनी से मुलाकात करने की कोशिश की परंतु विद्यानंद के अंग रक्षकों ने उसे महिला पंडाल की तरफ जाने से रोक लिया। विशेष अनुरोध करने पर आश्रम के ही एक अन्य व्यक्ति ने मोनी तक एक बार फिर उसकी मिलने की मंशा पहुंचाई पर मोनी ने उससे मिलने से मना कर दिया…

सोनू यह बात कतई नहीं समझ पा रहा था कि मोनी ने उसके साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया ? हो सकता है मोनी सांसारिक दुनिया को छोड़ चुकी थी और वह अपने परिवार के सदस्यों से मिलना न चाहती हो?

खैर मोनी को कुशल देखकर सोनू को तसल्ली हो गई कि वह आश्रम में सुरक्षित और सकुशल है उसके लिए इतना ही पर्याप्त था। वह अपने मन में ढेरों प्रश्न लिए वापस बनारस की तरफ चल पड़ा…

सोनू के मन में खुशियां और दुख अपना अपना आधिपत्य जमाने के लिए होड़ लगा रहे थे। मोनी के मिलने की उसके मन में जितनी खुशी थी उतना ही मोनी को अपने परिवार से हमेशा के लिए खो देने का दुख भी।


मोनी के व्यवहार से सोनू स्तब्ध भी था वैरागी मनुष्य के चेहरे पर सामान्यता घृणा के भाव नहीं होते परंतु मोनी ने जिस तरह सोनू को देख कर अपना चेहरा घूम आया था उसने सोनू को चिंतित कर दिया था। सोनू ने अपने दिमाग को झटका और इस विचार को दरकिनार कर दिया…उसके पास और कोई चारा भी न था।

सोनू सुखद पहलू की तरफ ध्यान दे रहा था. मोनी के मिलने की बात सुगना को बता कर उसके चेहरे पर मुस्कान और खुशी देखने के विचार मात्र से उसका मन गदगद हो रहा था। सोनू अपनी बहन सुगना की माफी की प्रतीक्षा और उसके खुशहाल चेहरे को देखने की कामना की अपनी ट्रेन के जल्दी बनारस पहुंचने का इंतजार करने लगा…

हर रोज की तरह बनारस की सुबह बाहरी दुनिया के लिए खुशनुमा थी परंतु सुगना और उसके परिवार के लिए वैसी ही उदास…सोनी सोनी अपने नर्सिंग कॉलेज जा चुकी थी बच्चे स्कूल और लाली घर का जरूरी सामान लेने बाहर गई हुई थी…सुगना ने स्नान ध्यान किया और अपने इष्ट देव से हमेशा की तरह मोनी के मिलने की कामना की और रसोई से जा कर दो रोटी और सब्जी लेकर नाश्ता करने बैठ गई…न जाने आज उसे सब्जी की गंध क्यों अजीब सी लग रही थी उसने कुछ ही निवाले अपनी हलक से नीचे उतारे होंगे और उसका मन मचलने लगा वह बेचैन सी होने लगी.. उसने प्लेट जमीन पर रखी और बाथरूम की तरफ भागी ।

सुगना उल्टियां करने लगी। तभी अपने मन में ढेरों अरमान लिए सोनू दरवाजे पर आकर खड़ा हो गया। दरवाजा खुला था अपने ही घर में आने के लिए उसे किसी से अनुमति लेने की आवश्यकता न थी। बाथरूम से सुगना की उल्टियां करने की अजब सी आवाज आ रही थी….

सुगना को कष्ट हो और सोनू बेचैन ना हो यह हो नहीं सकता..

"दीदी का भईल"

सुगना की तरफ से कोई उत्तर न सुनकर सोनू बाथरूम के दरवाजे के पास पहुंच गया.. बाथरूम का दरवाजा खुला हुआ था और सुगना बेसिन में मुंह लटकाए अपने चेहरे को पानी से धो कर खुद को उल्टी की भावना से बचा रही थी… और खुद को तरोताजा करने का प्रयास कर रही थी।

शायद इसी उहापोह में उसने सोनू के आने पर अपनी प्रतिक्रिया भी नही दे पाई..

सोनू पास पहुंचकर उसकी मदद करना चाह रहा था परंतु सुगना बदहवास थी उसने हाथ हिलाकर सोनू को रुकने का इशारा किया और बड़ी मुश्किल से खुद पर काबू कर बाहर आई।

"दीदी मोनी मिल गईल" सोनू ने चहकते हुए बताया और उसके पैरो पर गिर पड़ा।

सुगना के चेहरे पर थोड़ा मुस्कान आई जिसे झुक चुका सोनू देख भी ना पाया…सुगना पीछे हटी वह एक बार फिर बाथरूम में घुस गई शायद अपनी उल्टीओ पर उसने जो क्षणिक नियंत्रण पाया था वह छूट चुका था..

सोनू ने सुगना को पीछे हटते देख सोनू डर गया क्या सुगना दीदी ने उसे अब भी माफ नहीं किया है?

शेष अगले भाग में..





Sundar
Lagta hai us raat ka ansh Sugna ke pet me aa gaya hai
 

Tarahb

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Kya story hai majaa hi aa gya,. Itne dino se wait karaya sugna or Sonu ke milan ka or Milan hua to ese ki atma trupt ho gyi, sach btauu apko to ajkl meri khud behen mere sath ek hi room me rehti h bs bed do hai, bathroom ek hai , room ek hai kitchen b chota h ,. Meri vasna bhi story padhkar jaag rahi hai , meri behen ko lekr mere ander alag si feeling aa rahi hein. Meri behn kbhi bathroom me do do gili panty sukha jati jo nahate wkt mere bilkul muhh ke samne rehti hein, or bra bhi wahi rkhti hai. Ye dekhkar me khud ko control nhi kr pata hu, ek din wo bed pe karwat lekr so rhi thi rat ke 1 bje the kyaa gaand dikha kar so rhi thi , mene phle to photo liye fir soti hui ki gaand dekh kr lete lete bistr par ragad ragad ke maal nikaal diya , jese hi maal nikla meri behen karwat badal Li to me shant pad gya or sone ka natak kar rah tha, mujhe esa feel ho Raha tha jese wo bhi jaag rhi thi, ap btao me kya kru wo shadi shuda bhi h ek bacha bhi h, pti se 7 saal se rista khrab h talak lena chati h, lekin meri wasna din be din bdhti ja rhi h. Kl b me unke boobs dekh rah tha jb wo jhuki hui thi. Or mujhe uska gora pet or gaand behad pasand h..ab ye btao me usko chodne ka plan kese bnauu,
 

Tarahb

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Advise de dijiye...kya kru , abhi me bathroom gya to fir se panty sunghne ka Mann Kiya behen ki lekin sungh nhi paya, ek laal dress pehni hui hai or usme uski gaand bilkul saaf alag alag dikh rahi hai..meri wasna bdhti ja rahi hai ..btao me kya kru .kya krna chahiye mujhe..jb se Sonu or sugna ki chudayi wala bhag pdha hu tb se ye haal ho rah h...me baar baar behen ki gaand or dudu dekhne ki kosis kr raah hu..kya kru me
 

Lovely Anand

Love is life
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अति उत्तम।
सरयू और मनोरमा का वर्णन मनोरम है.
और सुगना तो अपनी वैसे भी लाड़ली है ही.

धन्यवाद लवली जी.
बहुत परिश्रम से इस अध्याय तक पहुँचा हूँ.
मेहनत करते रहिए 90और 91भेज दिया है
Sundar
Lagta hai us raat ka ansh Sugna ke pet me aa gaya hai
Wah
Send update 103 and 104 lovelybhai
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कुछ दिनों के इंतज़ार के। बाद एक बढ़िया अप्डेट
बहुत बहुत धन्यवाद
Thanks
 
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