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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Napster

Well-Known Member
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भाग 105

कजरी के हटते ही एक बार फिर सोनू ने सुगना के पैर छूते हुए कहा दीदी माफ कर द..


सुगना उठ गई और जाते-जाते बोली

"जा पहले मोनी के ढूंढ कर ले आव फिर माफी मांगीह"

सोनू को तो जैसे मुंह मांगी मुराद मिल गई हो सुगना के व्यवहार से उसने अंदाज लगा लिया की उसका और सुगना का रिश्ता पूरी तरह टूटा नहीं है..

वह सुगना का वो प्यार पा सकेगा या नहीं यह अलग बात थी.. परंतु उसे खोना सोनू को कतई गवारा न था.. सुगना अब उसकी जान थी.. अरमान थी और अब उसके बिना रहना सोनू के लिए नामुमकिन था…


अचानक घर के बाहर चीखने चिल्लाने की आवाज आने लगी……कुछ लोग एक व्यक्ति को पीट रहे थे वह दर्द से कराह रहा था मैंने कुछ नहीं किया…सोनू भी बाहर निकल कर आया…

अब आगे..

"बेटीचोद कहां ले गइले मोनी के?" सरयू सिंह की धाकड़ आवाज सुनाई दी…

तभी किसी ने उसकी पीठ पर दो लात और मारे और बेहद गुस्से से कहा..

" साला दिन भर लइकिन के पीछे भागत रहेला ना.. जाने पंडित जी एकरा के अपना संगे काहे राखेले?"

मार खा रहा व्यक्ति कोई और नहीं पंडित जी का वही हरामी हेल्पर था जो मोनी के पीछे पीछे बाग में आया था और जिसने मोनी की कुंवारी बुर के प्रथम दर्शन किए थे..

नियति उसके किए का दंड इतना शीघ्र देगी यह उसे भी अंदाजा न था..

दरअसल मोनी की कुंवारी बुर देखने के बाद उस व्यक्ति पर जैसे जुनून सवार हो गया था वह दिन भर मोनी के आगे पीछे इधर-उधर मंडराता रहा और उससे नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करता रहा परंतु वैरागी मोनी को उससे कोई सरोकार न था … अपनी कोमल और कमसीन बुर को जिस मोनी ने खुद भी ज्यादा न छुआ था वह उसे कैसे उसके हवाले करती। परंतु मोनी की बुर की एक झलक ने उस हेल्पर का सुख चैन छीन लिया था।

रात भर वह सरयू सिंह के दालान में पड़ा पड़ा मोनी को ही याद करता रहा…कभी सोता कभी जागता।

रात में मोनी जब बाहर आई थी तब तो वह उसे न देख पाया परंतु सुबह सुबह जब मोनी सरयू सिंह के घर से बाहर निकल रही थी वह उसके पीछे हो लिया। मोनी आगे-आगे चल रही थी और उस पर नजर रख रहा पंडित जी का शिष्य उसके पीछे पीछे।


मोनी घबरा रही थी और अपनी चाल को नियंत्रित करती तेजी से आगे चल रही थी… कुछ देर बाद रेलवे स्टेशन पर पहुंच कर पंडित के शिष्य ने मोनी को ट्रेन के प्लेटफार्म पर जाते देखा वहां और भी लोग थे…वहा जाने में वह घबरा रहा था…कदम ठिठक गए। पंडित का शिष्य घबरा गया तभी गांव के किसी व्यक्ति ने उससे पूछ लिया…

" अरे ऊ केकर लइकी ह ते ओकरा पीछे-पीछे काहे जात बाड़े?" वह निरुत्तर हो गया। संयोग से उसी समय प्लेटफार्म पर ट्रेन आई और मोनी उस ट्रेन में सवार हो गई।

पंडित के शिष्य के सारे अरमान धरे के धरे रह गए उसने यह बात अपने ही सीने में दफन रखने की सोची और चुपचाप वहां से रफा-दफा हो लिया परंतु अब जब मोनी के गायब होने की बात सार्वजनिक हो चुकी थी उसका बचना नामुमकिन था।


खबर कानो कान सरयू सिंह और हरिया तक पहुंच गई फिर क्या था सरयू सिंह के हाथ इतने भी कमजोर न थे। अपने इलाके में उनका दबदबा था और कुछ ही घंटों के पश्चात पंडित का हरामी शिष्य उनकी देहरी पर खड़ा लात खा रहा था।

सोनू ने बाहर आकर बीच बचाव किया और उससे सच जानने की कोशिश की। शिष्य ने अक्षरसः सारी बातें बता दी। बस वह एक बात छुपा ले गया जो उसे छुपाना भी चाहिए था वह थी मोनी की कुंवारी बुर देखने की बात।

कुछ ही देर में लोगों ने अंदाजा लगा लिया की मोनी जिस ट्रेन में चढ़ी थी वह उत्तराखंड की तरफ जाती थी। देहरादून उसका अंतिम पड़ाव था। मोनी कहां गई होगी यह प्रश्न अभी भी सबके दिमाग में घूम रहा था।

परंतु सोनू का दिमाग तेजी से चल रहा था मनोविज्ञान सोनू भली-भांति समझता था उसने मोनी में वैराग्य के कुछ लक्षण देखे थे। वह मन ही मन सभी संभावित गंतव्य स्थलों की सूची बनाने लगा और अपने निर्णय पर पहुंचकर उसने सरयू सिंह से कहा

" चाचा इकरा के मत मारल जाओ ई साला सही में ओकरा पीछे पीछे घूमत होई लेकिन इकरा गांणी में इतना दम नईखे की मोनी अगवा कइले होखी "

सोनू की बात में दम था. । वैसे भी वह व्यक्ति अपने किए की पर्याप्त सजा पा चुका था धूलधूसरित उस व्यक्ति के कपड़े फट चुके थे होठों से खून बह रहा था वैरागी मोनी की बुर देखने की यह सजा शायद कुछ ज्यादा ही थी…

धीरे-धीरे सोनू ने आगे की रणनीति बना ली.. सोनू लाली से मिलने से कतरा रहा था उसे लाली के प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं समझ आ रहा था यदि लाली दीदी ने उस रात के बारे में पूछा तो वह क्या जवाब देगा? झूठ बोलना उचित न था और सच वह तो और भी अनुचित था ।

उसकी खुद की प्रतिष्ठा न सही परंतु सुगना से मिलन को वह लाली के समक्ष नहीं लाना चाह रहा था। सुगना ने प्रतिरोध किया था और सुगना के व्यवहार से यह स्पष्ट था की सुगना को वह मिलन स्वाभाविक रूप से स्वीकार्य न था। जो उसको सुगना दीदी को स्वीकार न था उसे न तो बताना कतई उचित न था।

अगली सुबह सोनू को वापस जौनपुर जाना था शाम को खाने पर उसने लाली, सुगना और सोनी को जाते समय बनारस छोड़ने की बात कही और सभी सहर्ष तैयार हो गए। आखिर छोटे-छोटे बच्चों की पढ़ाई लिखाई भी जरूरी थी। सुगना सोनू के साथ जाने में स्वयं को असहज महसूस कर रही थी परंतु कोई चारा भी न था..


सुबह अगली सुबह बोलेरो में सोनू और बनारस में रहने वाले सभी सदस्य सवार होने लगे। समान ऊपर बांधा गया और छोटे बच्चे पीछे चढ़कर अपनी अपनी जगह तलाश करने लगे। पीछे वाली सीट पर सोनू की तीनो बहने बैठी एक तरफ लाली बीच में सोनी और ड्राइवर के ठीक पीछे वाली सीट पर सुगना।

सोनी बच्चों को उछलने कूदने से रोक रही थी परंतु बच्चों को क्या? मोनी मौसी के गायब होने से उन्हें कोई विशेष फर्क न था वह सब अपनी मस्ती में चूर थे। परंतु सुगना परेशान थी मोनी को लेकर भी और अपने और सोनू के संबंधों में आए बदलाव को लेकर भी ।

वह खिड़की से बाहर गेहूं की बालियों को देखते हुए कभी उनकी सुंदरता में खोती और अपने गम को भूलने का प्रयास करती …उधर सोनू बार-बार पलट कर बात तो सोनी से करता परंतु उसकी निगाहें सुगना के गोरे गालों पर टिकी रहती.


काश! सुगना दीदी कुछ बोलती और हमेशा की तरह हंसती खिलखिलाती रहती। सोनू सुगना का मुस्कुराता और खिला-खिला चेहरा देखने के लिए तरस गया था। वह कभी अपनी गलती पर पछताता कभी अपने ईश्वर से सुगना को खुश करने के लिए प्रार्थना करता।

जब वह सुगना के स्खलित होते हुए चेहरे को याद करता उसे लगता जैसे उसने कोई पाप ना किया हो …और सुगना को पूर्ण तृप्ति देखकर उसने अपना फर्ज निभाया हो..परंतु जब उसे सुगना का प्रतिरोध याद आता वह आत्मग्लानि से भर जाता..

रास्ते में गाड़ी रोककर सोनू ने सुगना की पसंद की फेंटा लाई पर सबने उसका आनन्द लिया पर सुगना ने नहीं…जब सुगना ने नहीं लिया तो सोनू ने भी नहीं…

लाली सोनू और सुगना के बीच आए बदलाव को महसूस कर रही थी पर मजबूर थी।

सोनू और सुगना को छोड़कर बाकी सब धीरे-धीरे सामान्य हो गए थे… और कुछ घंटों के सफर के पश्चात सभी बनारस पहुंच गए सोनू ने सब का सामान उतारा परंतु अपने सामान को गाड़ी में ही रहने दिया…

सोनू ने बनारस में इस वक्त रह कर वक्त बर्बाद करना उचित न समझा मोनी को ढूंढना उसके पहली प्राथमिकता थी। तुरंत ही उसने अपने जौनपुर जाने की बात कह कर सबको आश्चर्यचकित कर दिया.. उस पर हक जमाने वाली सुगना तो जैसे निर्विकार और निरापद हो गई थी.।

लाली ने एक बार सोनू से कहा

"अरे खाना पीना खा ल तब जईहा" परंतु सोनू को जिसका इंतजार था उसने मुंह ना खोला सुगना अब भी अपने कोमल अंगूठे से मजबूत फर्श कुरेद रही थी… परंतु उसने मुंह ना खोला। सुगना की खनखनाती और मधुर आवाज सुनने के लिए सोनू के कान तरस गए थे।

सोनू ने हाथ जोड़कर सबसे विदा ली… परंतु सोनू की यह विदाई सोनी को कतई समझ में नहीं आ रही थी ।

सोनू एक तरफा हाथ हिलाते हुए घर से बाहर निकल गाड़ी में बैठ गया अंदर तीन बहनों में से सिर्फ सोनी के हाथ ही हवा लहरा रहे थे…सुगना अब भी नजरें झुकाए बेचैन खड़ी थी उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह सोनू को किस प्रकार विदा करें? दिमाग के द्वंद्व ने सुगना की स्वाभाविकता छीन थी… अपने छोटे भाई सोनू से बेहद प्यार करने वाली सुगना उसे विदा होते समय देख भी न रही थी। नियति ने जिस भवसागर में सुगना और सोनू को धकेल दिया था उससे उन दोनों का ही उस भवर से निकलना जरूरी था..

सोनू के बाहर निकलते ही सोनी ने सुगना से पूछा

" दीदी … सोनू भैया से कोनो बात पर खिसियाइल बाड़े का ? " सुगना ने कोई उत्तर नहीं किया अपितु अपना सामान लेकर अपने कमरे में रखने लगी। सोनी को यह नागवार गुजरा वह सुनना के सामने आकर खड़ी हो गई और उसके कंधे को पकड़ते हुए बोली

" दीदी साफ बताओ काहे खिसीआईल बाड़े ? अइसन त ते सोनू भैया के साथ कभी ना करेले? सुगना ने सोनी की तरफ देखा और कहा अभी हमार दिमाग ठीक नईखे मोनी के मिल जाए दे फिर बात करब"


सोनी उत्तर से संतुष्ट न हुई परंतु उसे यह अहसास अवश्य था कि मोनी के गायब होने से सुगना और उसकी मां पद्मा सबसे ज्यादा दुखी थी। यह स्वाभाविक भी था। जहां सुगना अपने परिवार के मुखिया की भूमिका अदा करती थी वही मोनी अपनी मां पदमा का एकमात्र सहारा थी दिन भर साथ रहना …साथ में घर का काम करना और एक दूसरे से बातें करते हुए वक्त बिताना। मोनी के जाने से पदमा अकेली हो गई थी।

लाली और सुगना के बीच भी एक अजब सा तनाव था। सुगना को तो यह अंदाजा भी न था कि सोनू को उकसाने में लाली का योगदान था और लाली को यह आभास न था कि अंदर वास्तव में क्या हुआ था।


इतना तो तय था कि सुगना और सोनू का मिलन यदि हुआ था तो वह सुखद वातावरण में नहीं हुआ था। अन्यथा सुगना के चेहरे पर इतना तनाव कभी नहीं आता।

परंतु क्या सोनू ने अपनी ही बड़ी बहन सुगना से जबरदस्ती की होगी? छी छी सोनू जैसा प्रेमी ऐसा कतई नहीं कर सकता? फिर आखिर क्या हुआ था? यह जानने की लाली की तीव्र इच्छा थी परंतु उसके प्रश्नों का उत्तर न तो सोनू ने दिया था और नहीं सुगना से प्रश्न पूछ पाने की उसकी हिम्मत हो रही थी।

खैर जो होना था वह हो चुका था…. सोनू तेजी से जौनपुर की तरह बढ़ रहा था अपने कार्यक्षेत्र पर पहुंचकर उसका पहला उद्देश्य मोनी को ढूंढने के लिए अपने प्रशासन तंत्र की मदद लेना था.

सोनू ने जौनपुर पहुंचकर अपने विभाग के आला अधिकारियों से मदद मांगी और देखते ही देखते पुलिस विभाग की कई टीमें तैनात कर दी गई। सोनू स्वयं अपने पुलिसिया साथियों के साथ इस सर्च अभियान की कमान संभाल रहा था…

सोनू इस बात से भलीभांति अवगत था कि मोनी का झुकाव वैराग्य की तरफ है यह बात उसने पिछले बनारस महोत्सव में कई बार महसूस की थी विद्यानंद के उद्बोधन के पश्चात जब महिला और पुरुषों की भीड़ संगीत की धुन पर थिरकने लगती तो मोनी जैसे खुश हो जाती। बाकी कलयुगी लोग अपनी आंखें खोल कर इधर-उधर देखते परंतु मोनी वह तो जैसे भाव विभोर हो जाती..और लीन हो जाती।

सोनू दिन भर कभी इससे मिलता कभी उससे मिलता कभी अपनी टीम के सदस्यों से बात करता…सोनू ने मोनी को ढूंढने के लिए एड़ी चोटी चोटी का जोर लगा दिया।

एक-एक करके दिन बीतने लगे और लाली और सुगना के बीच की दूरियां कम ना हुईं। दोनों सहेलियां जो घंटों बैठ कर बात करती थी और उनकी बातें खत्म होने का नाम न लेती थी .. अब अपने अपने कमरों में पड़े अपनी अपनी यादों और एक दूसरे के साथ बिताए वक्त को याद करते एक दम शांत हो गई थीं। सुगना और लाली का चहकता हुआ घर न जाने कब एकदम शांत हो गया था।

जब घर की ग्रहणी दुखी होती है पूरे परिवार में दुख छा जाता है सारे बच्चे और यहां तक कि सोनी भी सुगना के इस बदले हुए स्वरूप से परेशान थी और सुगना के लिए चिंतित भी। सब बार-बार सुगना के पास जाते उसे मनाने और उसे दुख का कारण पूछते परंतु सुगना क्या कहती जो दर्द उसके मन में था… न तो वह उसे किसी के सामने बयां कर सकती थी और नहीं उस दुख से निजात पा सकती थी।

घर के सभी सदस्य अपने अपने इष्ट देव से सुगना के खुश होने के लिए प्रार्थना कर रहे थे…

दुआओं में असर होता है धीरे धीरे ऊपर वाले विधाता को सोनू और सुगना पर तरस आ गया और सोनू के ऑफिस में एक फोन आया…

जैसे-जैसे फोन के रिसीवर से शब्द निकल निकल कर सोनू के कानों से टकराते गए सोनू के चेहरे पर कभी आश्चर्य कभी विस्मय और अंततः मुस्कुराहट हावी होती गई …

"मैं सदैव आपका आभारी रहूंगा……जी…. जी……ठीक है मैं कल ही वहां पहुंचता हूं" सोनू ने आभार जताते हुए फोन का रिसीवर रखा और अपने दोनों हाथ जोड़कर अपनी छत को देखते हुए अपने इष्ट देव के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर की।


सोनू के मन में आया कि वह इस खुशखबरी को तुरंत ही लाली और सुगना से साझा कर दे परंतु उसने कुछ सोचकर यह विचार त्याग दिया वैसे भी रात हो चुकी थी और इस समय लाली और सुगना तक संदेश पहुंचा पाना कठिन था।

सोनू अपने कमरे में आया और सुबह अपने सफर पर निकलने के लिए अपना सामान बांधा… मन में उत्साह और सुगना की यादें लिए सोनू..अपने बिस्तर पर आया…सुगना को याद करना सोनू के लिए सबसे सुकून का काम था… सुगना के खिलखिलाते और मुस्कुराते चेहरे को याद कर न सिर्फ सोनू की वासना जवान होती अपितु उसका रोम रोम खिल उठता। परंतु पिछले कुछ दिनों से सोनू सुगना के दुखी चेहरे को देखकर परेशान था। आज इस खुशखबरी को सुनकर उसका मन प्रसन्न हो गया था और वह एक बार सुगना को फिर मुस्कुराते और खिलखिलाते हुए देखना चाहता था.

उसे याद करते ही सोनू के जैसे सारे दुख गायब हो जाते न जाने सुगना में ऐसा क्या छुपा था ….कुछ ही देर में उसके दिमाग के सामने सुगना का चेहरा घूमने लगा… क्या यह खबर सुन कर सुनना दीदी उसे माफ कर देगी? क्या सुगना को वह उसी प्रकार खिलखिलाते चहकते देख पाएगा…और क्या वह अद्भुत सुख उसे कभी दोबारा प्राप्त होगा…?

जैसे ही सोनू को उस मिलन की याद आई उसकी आंखों के सामने दृश्य घूमने लगे आज का एकांत उसे उस मिलन की बारीकियां याद दिलाने लगा… कैसे उसके मजबूत लंड के सुपाडे ने सुगना की चिपचिपी गीली बुर में डुबकी लगाई थी?... सुगना दीदी की बुर गीली क्यों थी? क्यों उन्होंने उस रात पेंटी नहीं पहनी थी? क्या वह सच में इस सुख की प्रतीक्षा कर रही थी? पर यदि ऐसा था तो उन्होंने प्रतिरोध क्यों किया?

सोनू सुगना की बुर के कसाव को याद करने लगा.. कितना जीवंत था सुगना दीदी का बुर का कसाव… ऐसे लग रहा था जैसे किसी ने अपनी अनगिनत कोमल उंगलियों से उसके लंड को को अपने आलिंगन में भर लिया हो…और उगलियो के दबाव से स्वाभाविक तौर पर उसे अपने अंदर और अंदर और गहरे तक खींचे जा रहा हो..

गर्भाशय के मुख पर पहुंचकर उसके सुपाडे ने जब प्रतिरोध को महसूस किया तब उसने अपने लंड को सुगना की बुर में पूरी तरह अंदर पाया…. क्या ऊपर वाले ने सुगना की बुर और सोनू के लंड को एक दूसरे के लिए ही बनाया था..

सोनू को अच्छी तरह याद आ रहा था जब इसके बाद उसने अपने लंड को और अंदर डालने की कोशिश की और सुगना की फूली हुई बुर उसके दबाव से पूरी तरह चिपक गई….

जिस तरह आलिंगन का कसाव बढ़ाने पर दूरियां और कम हो जाती है उसी प्रकार सोनू के दबाव बढ़ाने से लंड और अन्दर गया और उसने गर्भाशय का मुख खोल दिया …


और सुगना के वह उद्गार…

"सोनू… तनी धीरे से दुखाता"

सुगना के इस उद्बोधन में सिर्फ और सिर्फ एक प्यार भरी कामुकता थी और स्खलन के लिए तैयार उसकी बहन की मिलन की पूर्णता की मांग……

अब तक सोनू का लंड उसके मनोभाव पढ़कर हरकत में आ चुका था और सोनू की हथेलियों को बरबस अपनी ओर आकर्षित कर रहा था…

जैसे ही हथेलियों ने लंड को अपने आगोश में लिया सोनू की भावनाएं और कामुक होती गई।

सोनू उस रात हुए अनुभवों को याद कर रहा था और उन्हें अपने मन में उसे एक बार फिर महसूस करने की कोशिश कर रहा था। कैसे वह अपनी सुगना दीदी की बुर से जैसे ही लंड निकालने की कोशिश करता… अंदर उत्पन्न हुआ निर्वात सोनू के लंड को तुरंत ही अपनी तरफ खींचने लगता.. और सोनू का लंड एक बार फिर और गहराई तक उतर जाता…

सुगना की कोमल जांघों का स्पर्श उसकी जांघों से हो रहा था। ऐसी मखमली त्वचा शायद उसने जीवन में कभी अनुभव न की थी। मिलन के अन्तिम पलों में सुगना की पिंडलियां उसके नितंबों पर लगातार दबाव बनाए हुए उसे अपनी तरफ खींच रही थी..

वह स्खलित होती हुई बुर के कंपन ….वो अंतिम पलों में दीदी के प्रतिरोध का बिल्कुल खत्म होना और सुगना दीदी द्वारा उसकी उंगली को चुभलाए जाना….

सोनू की गतिमान हथेलियां लंड के मान मर्दन में लगी हुई थीं..

सोनू सुगना की चूचियों के स्पर्श को याद कर रहा था.. तभी वीर्य की एक मोटी धार हवा में उड़ती हुई वापस उसके चेहरे पर आ गिरी। सोनू का लंड हवा में वीर्य वर्षा कर रहा था जिसकी पहली धार स्वयं सोनू के होठों पर ही आकर गिरी..

आज जीवन में पहली बार उसने अपने ही वीर्य का स्वाद अपने होठों से चखा था…

…सोनू स्खलित हो रहा था…आज कई दिनों बाद सोनू के चेहरे पर खुशियां थी वह अति शीघ्र अपनी बहन सुगना से मिलना चाहता था।

अगले दिन सोनू अपने गंतव्य के लिए निकल चुका दिनभर की यात्रा करने के पश्चात वह सुबह सुबह विद्यानंद के आश्रम में हाजिर था। उसे उसे यह स्पष्ट जानकारी हो चुकी थी की मोनी विद्यानंद के आश्रम में ही आई थी। पुलिस और प्रशासन के सहयोग से सोनू को यह जानकारी फोन द्वारा प्राप्त हो चुकी थी। परंतु सोनू मोनी से मिलकर इस बात की तसल्ली करना चाहता था और उसके घर छोड़ने का कारण भी जानना चाहता था।

सोनू आश्रम के पंडाल में आ चुका था।श्वेत वस्त्रों में मोनी को आंखें बंद किए अपने दोनों हाथ हवा में हिलाते हुए एक विशेष धुन पर हौले हौले नृत्य करते हुए देखकर सोनू आश्चर्यचकित था । मोनी के चेहरे पर निश्चित ही एक नया नूर था। पिछले कुछ दिनों में ही मोनी को जैसे यह आश्रम रास आ गया था…सोनू कुछ देर तक नृत्य के खत्म होने का इंतजार करता रहा और जैसे ही अल्पविराम हुआ उसने आवाज लगाई

"मोनी"

मोनी ने सोनू की तरफ देखा परंतु वह उसकी तरफ आई नहीं। शायद मोनी के मन में सोनू के प्रति घृणा उत्पन्न हो चुकी थी और हो भी क्यों न जो व्यक्ति अपनी ही बहन के साथ ऐसा दुष्कर्म कर सकता है और जो अपनी छोटी बहन को अपने दोस्त की वासना शांत करने के लिए भेज सकता है ऐसा घृणित व्यक्ति भाई कहलाने योग्य कतई नहीं हो सकता।

सोनू ने आगे बढ़कर मोनी से मुलाकात करने की कोशिश की परंतु विद्यानंद के अंग रक्षकों ने उसे महिला पंडाल की तरफ जाने से रोक लिया। विशेष अनुरोध करने पर आश्रम के ही एक अन्य व्यक्ति ने मोनी तक एक बार फिर उसकी मिलने की मंशा पहुंचाई पर मोनी ने उससे मिलने से मना कर दिया…

सोनू यह बात कतई नहीं समझ पा रहा था कि मोनी ने उसके साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया ? हो सकता है मोनी सांसारिक दुनिया को छोड़ चुकी थी और वह अपने परिवार के सदस्यों से मिलना न चाहती हो?

खैर मोनी को कुशल देखकर सोनू को तसल्ली हो गई कि वह आश्रम में सुरक्षित और सकुशल है उसके लिए इतना ही पर्याप्त था। वह अपने मन में ढेरों प्रश्न लिए वापस बनारस की तरफ चल पड़ा…

सोनू के मन में खुशियां और दुख अपना अपना आधिपत्य जमाने के लिए होड़ लगा रहे थे। मोनी के मिलने की उसके मन में जितनी खुशी थी उतना ही मोनी को अपने परिवार से हमेशा के लिए खो देने का दुख भी।


मोनी के व्यवहार से सोनू स्तब्ध भी था वैरागी मनुष्य के चेहरे पर सामान्यता घृणा के भाव नहीं होते परंतु मोनी ने जिस तरह सोनू को देख कर अपना चेहरा घूम आया था उसने सोनू को चिंतित कर दिया था। सोनू ने अपने दिमाग को झटका और इस विचार को दरकिनार कर दिया…उसके पास और कोई चारा भी न था।

सोनू सुखद पहलू की तरफ ध्यान दे रहा था. मोनी के मिलने की बात सुगना को बता कर उसके चेहरे पर मुस्कान और खुशी देखने के विचार मात्र से उसका मन गदगद हो रहा था। सोनू अपनी बहन सुगना की माफी की प्रतीक्षा और उसके खुशहाल चेहरे को देखने की कामना की अपनी ट्रेन के जल्दी बनारस पहुंचने का इंतजार करने लगा…

हर रोज की तरह बनारस की सुबह बाहरी दुनिया के लिए खुशनुमा थी परंतु सुगना और उसके परिवार के लिए वैसी ही उदास…सोनी सोनी अपने नर्सिंग कॉलेज जा चुकी थी बच्चे स्कूल और लाली घर का जरूरी सामान लेने बाहर गई हुई थी…सुगना ने स्नान ध्यान किया और अपने इष्ट देव से हमेशा की तरह मोनी के मिलने की कामना की और रसोई से जा कर दो रोटी और सब्जी लेकर नाश्ता करने बैठ गई…न जाने आज उसे सब्जी की गंध क्यों अजीब सी लग रही थी उसने कुछ ही निवाले अपनी हलक से नीचे उतारे होंगे और उसका मन मचलने लगा वह बेचैन सी होने लगी.. उसने प्लेट जमीन पर रखी और बाथरूम की तरफ भागी ।

सुगना उल्टियां करने लगी। तभी अपने मन में ढेरों अरमान लिए सोनू दरवाजे पर आकर खड़ा हो गया। दरवाजा खुला था अपने ही घर में आने के लिए उसे किसी से अनुमति लेने की आवश्यकता न थी। बाथरूम से सुगना की उल्टियां करने की अजब सी आवाज आ रही थी….

सुगना को कष्ट हो और सोनू बेचैन ना हो यह हो नहीं सकता..

"दीदी का भईल"

सुगना की तरफ से कोई उत्तर न सुनकर सोनू बाथरूम के दरवाजे के पास पहुंच गया.. बाथरूम का दरवाजा खुला हुआ था और सुगना बेसिन में मुंह लटकाए अपने चेहरे को पानी से धो कर खुद को उल्टी की भावना से बचा रही थी… और खुद को तरोताजा करने का प्रयास कर रही थी।

शायद इसी उहापोह में उसने सोनू के आने पर अपनी प्रतिक्रिया भी नही दे पाई..

सोनू पास पहुंचकर उसकी मदद करना चाह रहा था परंतु सुगना बदहवास थी उसने हाथ हिलाकर सोनू को रुकने का इशारा किया और बड़ी मुश्किल से खुद पर काबू कर बाहर आई।

"दीदी मोनी मिल गईल" सोनू ने चहकते हुए बताया और उसके पैरो पर गिर पड़ा।

सुगना के चेहरे पर थोड़ा मुस्कान आई जिसे झुक चुका सोनू देख भी ना पाया…सुगना पीछे हटी वह एक बार फिर बाथरूम में घुस गई शायद अपनी उल्टीओ पर उसने जो क्षणिक नियंत्रण पाया था वह छूट चुका था..

सोनू ने सुगना को पीछे हटते देख सोनू डर गया क्या सुगना दीदी ने उसे अब भी माफ नहीं किया है?

शेष अगले भाग में..





बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
मोनी गायब हो गई तो सभी तरफ खोजबीन करने पर पंडित के चेले का पता चला की वो मोनी के आगे पिछे घूम रहा था फिर क्या सरयुसिंग ने उसे उठवाया और दे दणादण लेकीन मोनी का पता उसे भी नहीं मालूम तो वो क्या कहता हा उसे मोनी की कमसीन कुवारी बुर देखने का दंड जरुर मिला
सोनू सुगना के साथ घटीत किये पल को याद करके बहुत ही उत्तेजित हो कर विर्य वर्षाव कर बैठा
सोनू ने अपने पद और अधिकार का उपयोग करके आखिर में मोनी को खोज ही निकाला वो भी स्वामी विद्यानंद के आश्रम में और मिलने गया लेकीन मोनी ने सोनू को तिरस्कार की नजरोंसे देखकर दुत्कार दिया उससे बात भी नहीं की
और ये क्या सुगना उलटीयों पे उलटीया कर रही है तो क्या जबरदस्ती ही सही लेकीन सोनू और सुगना के मिलन का फल तयार हो रहा है सुगना के गर्भ में
देखते हैं आगे
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

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कजरी के हटते ही एक बार फिर सोनू ने सुगना के पैर छूते हुए कहा दीदी माफ कर द..


सुगना उठ गई और जाते-जाते बोली

"जा पहले मोनी के ढूंढ कर ले आव फिर माफी मांगीह"

सोनू को तो जैसे मुंह मांगी मुराद मिल गई हो सुगना के व्यवहार से उसने अंदाज लगा लिया की उसका और सुगना का रिश्ता पूरी तरह टूटा नहीं है..

वह सुगना का वो प्यार पा सकेगा या नहीं यह अलग बात थी.. परंतु उसे खोना सोनू को कतई गवारा न था.. सुगना अब उसकी जान थी.. अरमान थी और अब उसके बिना रहना सोनू के लिए नामुमकिन था…


अचानक घर के बाहर चीखने चिल्लाने की आवाज आने लगी……कुछ लोग एक व्यक्ति को पीट रहे थे वह दर्द से कराह रहा था मैंने कुछ नहीं किया…सोनू भी बाहर निकल कर आया…

अब आगे..

"बेटीचोद कहां ले गइले मोनी के?" सरयू सिंह की धाकड़ आवाज सुनाई दी…

तभी किसी ने उसकी पीठ पर दो लात और मारे और बेहद गुस्से से कहा..

" साला दिन भर लइकिन के पीछे भागत रहेला ना.. जाने पंडित जी एकरा के अपना संगे काहे राखेले?"

मार खा रहा व्यक्ति कोई और नहीं पंडित जी का वही हरामी हेल्पर था जो मोनी के पीछे पीछे बाग में आया था और जिसने मोनी की कुंवारी बुर के प्रथम दर्शन किए थे..

नियति उसके किए का दंड इतना शीघ्र देगी यह उसे भी अंदाजा न था..

दरअसल मोनी की कुंवारी बुर देखने के बाद उस व्यक्ति पर जैसे जुनून सवार हो गया था वह दिन भर मोनी के आगे पीछे इधर-उधर मंडराता रहा और उससे नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करता रहा परंतु वैरागी मोनी को उससे कोई सरोकार न था … अपनी कोमल और कमसीन बुर को जिस मोनी ने खुद भी ज्यादा न छुआ था वह उसे कैसे उसके हवाले करती। परंतु मोनी की बुर की एक झलक ने उस हेल्पर का सुख चैन छीन लिया था।

रात भर वह सरयू सिंह के दालान में पड़ा पड़ा मोनी को ही याद करता रहा…कभी सोता कभी जागता।

रात में मोनी जब बाहर आई थी तब तो वह उसे न देख पाया परंतु सुबह सुबह जब मोनी सरयू सिंह के घर से बाहर निकल रही थी वह उसके पीछे हो लिया। मोनी आगे-आगे चल रही थी और उस पर नजर रख रहा पंडित जी का शिष्य उसके पीछे पीछे।


मोनी घबरा रही थी और अपनी चाल को नियंत्रित करती तेजी से आगे चल रही थी… कुछ देर बाद रेलवे स्टेशन पर पहुंच कर पंडित के शिष्य ने मोनी को ट्रेन के प्लेटफार्म पर जाते देखा वहां और भी लोग थे…वहा जाने में वह घबरा रहा था…कदम ठिठक गए। पंडित का शिष्य घबरा गया तभी गांव के किसी व्यक्ति ने उससे पूछ लिया…

" अरे ऊ केकर लइकी ह ते ओकरा पीछे-पीछे काहे जात बाड़े?" वह निरुत्तर हो गया। संयोग से उसी समय प्लेटफार्म पर ट्रेन आई और मोनी उस ट्रेन में सवार हो गई।

पंडित के शिष्य के सारे अरमान धरे के धरे रह गए उसने यह बात अपने ही सीने में दफन रखने की सोची और चुपचाप वहां से रफा-दफा हो लिया परंतु अब जब मोनी के गायब होने की बात सार्वजनिक हो चुकी थी उसका बचना नामुमकिन था।


खबर कानो कान सरयू सिंह और हरिया तक पहुंच गई फिर क्या था सरयू सिंह के हाथ इतने भी कमजोर न थे। अपने इलाके में उनका दबदबा था और कुछ ही घंटों के पश्चात पंडित का हरामी शिष्य उनकी देहरी पर खड़ा लात खा रहा था।

सोनू ने बाहर आकर बीच बचाव किया और उससे सच जानने की कोशिश की। शिष्य ने अक्षरसः सारी बातें बता दी। बस वह एक बात छुपा ले गया जो उसे छुपाना भी चाहिए था वह थी मोनी की कुंवारी बुर देखने की बात।

कुछ ही देर में लोगों ने अंदाजा लगा लिया की मोनी जिस ट्रेन में चढ़ी थी वह उत्तराखंड की तरफ जाती थी। देहरादून उसका अंतिम पड़ाव था। मोनी कहां गई होगी यह प्रश्न अभी भी सबके दिमाग में घूम रहा था।

परंतु सोनू का दिमाग तेजी से चल रहा था मनोविज्ञान सोनू भली-भांति समझता था उसने मोनी में वैराग्य के कुछ लक्षण देखे थे। वह मन ही मन सभी संभावित गंतव्य स्थलों की सूची बनाने लगा और अपने निर्णय पर पहुंचकर उसने सरयू सिंह से कहा

" चाचा इकरा के मत मारल जाओ ई साला सही में ओकरा पीछे पीछे घूमत होई लेकिन इकरा गांणी में इतना दम नईखे की मोनी अगवा कइले होखी "

सोनू की बात में दम था. । वैसे भी वह व्यक्ति अपने किए की पर्याप्त सजा पा चुका था धूलधूसरित उस व्यक्ति के कपड़े फट चुके थे होठों से खून बह रहा था वैरागी मोनी की बुर देखने की यह सजा शायद कुछ ज्यादा ही थी…

धीरे-धीरे सोनू ने आगे की रणनीति बना ली.. सोनू लाली से मिलने से कतरा रहा था उसे लाली के प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं समझ आ रहा था यदि लाली दीदी ने उस रात के बारे में पूछा तो वह क्या जवाब देगा? झूठ बोलना उचित न था और सच वह तो और भी अनुचित था ।

उसकी खुद की प्रतिष्ठा न सही परंतु सुगना से मिलन को वह लाली के समक्ष नहीं लाना चाह रहा था। सुगना ने प्रतिरोध किया था और सुगना के व्यवहार से यह स्पष्ट था की सुगना को वह मिलन स्वाभाविक रूप से स्वीकार्य न था। जो उसको सुगना दीदी को स्वीकार न था उसे न तो बताना कतई उचित न था।

अगली सुबह सोनू को वापस जौनपुर जाना था शाम को खाने पर उसने लाली, सुगना और सोनी को जाते समय बनारस छोड़ने की बात कही और सभी सहर्ष तैयार हो गए। आखिर छोटे-छोटे बच्चों की पढ़ाई लिखाई भी जरूरी थी। सुगना सोनू के साथ जाने में स्वयं को असहज महसूस कर रही थी परंतु कोई चारा भी न था..


सुबह अगली सुबह बोलेरो में सोनू और बनारस में रहने वाले सभी सदस्य सवार होने लगे। समान ऊपर बांधा गया और छोटे बच्चे पीछे चढ़कर अपनी अपनी जगह तलाश करने लगे। पीछे वाली सीट पर सोनू की तीनो बहने बैठी एक तरफ लाली बीच में सोनी और ड्राइवर के ठीक पीछे वाली सीट पर सुगना।

सोनी बच्चों को उछलने कूदने से रोक रही थी परंतु बच्चों को क्या? मोनी मौसी के गायब होने से उन्हें कोई विशेष फर्क न था वह सब अपनी मस्ती में चूर थे। परंतु सुगना परेशान थी मोनी को लेकर भी और अपने और सोनू के संबंधों में आए बदलाव को लेकर भी ।

वह खिड़की से बाहर गेहूं की बालियों को देखते हुए कभी उनकी सुंदरता में खोती और अपने गम को भूलने का प्रयास करती …उधर सोनू बार-बार पलट कर बात तो सोनी से करता परंतु उसकी निगाहें सुगना के गोरे गालों पर टिकी रहती.


काश! सुगना दीदी कुछ बोलती और हमेशा की तरह हंसती खिलखिलाती रहती। सोनू सुगना का मुस्कुराता और खिला-खिला चेहरा देखने के लिए तरस गया था। वह कभी अपनी गलती पर पछताता कभी अपने ईश्वर से सुगना को खुश करने के लिए प्रार्थना करता।

जब वह सुगना के स्खलित होते हुए चेहरे को याद करता उसे लगता जैसे उसने कोई पाप ना किया हो …और सुगना को पूर्ण तृप्ति देखकर उसने अपना फर्ज निभाया हो..परंतु जब उसे सुगना का प्रतिरोध याद आता वह आत्मग्लानि से भर जाता..

रास्ते में गाड़ी रोककर सोनू ने सुगना की पसंद की फेंटा लाई पर सबने उसका आनन्द लिया पर सुगना ने नहीं…जब सुगना ने नहीं लिया तो सोनू ने भी नहीं…

लाली सोनू और सुगना के बीच आए बदलाव को महसूस कर रही थी पर मजबूर थी।

सोनू और सुगना को छोड़कर बाकी सब धीरे-धीरे सामान्य हो गए थे… और कुछ घंटों के सफर के पश्चात सभी बनारस पहुंच गए सोनू ने सब का सामान उतारा परंतु अपने सामान को गाड़ी में ही रहने दिया…

सोनू ने बनारस में इस वक्त रह कर वक्त बर्बाद करना उचित न समझा मोनी को ढूंढना उसके पहली प्राथमिकता थी। तुरंत ही उसने अपने जौनपुर जाने की बात कह कर सबको आश्चर्यचकित कर दिया.. उस पर हक जमाने वाली सुगना तो जैसे निर्विकार और निरापद हो गई थी.।

लाली ने एक बार सोनू से कहा

"अरे खाना पीना खा ल तब जईहा" परंतु सोनू को जिसका इंतजार था उसने मुंह ना खोला सुगना अब भी अपने कोमल अंगूठे से मजबूत फर्श कुरेद रही थी… परंतु उसने मुंह ना खोला। सुगना की खनखनाती और मधुर आवाज सुनने के लिए सोनू के कान तरस गए थे।

सोनू ने हाथ जोड़कर सबसे विदा ली… परंतु सोनू की यह विदाई सोनी को कतई समझ में नहीं आ रही थी ।

सोनू एक तरफा हाथ हिलाते हुए घर से बाहर निकल गाड़ी में बैठ गया अंदर तीन बहनों में से सिर्फ सोनी के हाथ ही हवा लहरा रहे थे…सुगना अब भी नजरें झुकाए बेचैन खड़ी थी उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह सोनू को किस प्रकार विदा करें? दिमाग के द्वंद्व ने सुगना की स्वाभाविकता छीन थी… अपने छोटे भाई सोनू से बेहद प्यार करने वाली सुगना उसे विदा होते समय देख भी न रही थी। नियति ने जिस भवसागर में सुगना और सोनू को धकेल दिया था उससे उन दोनों का ही उस भवर से निकलना जरूरी था..

सोनू के बाहर निकलते ही सोनी ने सुगना से पूछा

" दीदी … सोनू भैया से कोनो बात पर खिसियाइल बाड़े का ? " सुगना ने कोई उत्तर नहीं किया अपितु अपना सामान लेकर अपने कमरे में रखने लगी। सोनी को यह नागवार गुजरा वह सुनना के सामने आकर खड़ी हो गई और उसके कंधे को पकड़ते हुए बोली

" दीदी साफ बताओ काहे खिसीआईल बाड़े ? अइसन त ते सोनू भैया के साथ कभी ना करेले? सुगना ने सोनी की तरफ देखा और कहा अभी हमार दिमाग ठीक नईखे मोनी के मिल जाए दे फिर बात करब"


सोनी उत्तर से संतुष्ट न हुई परंतु उसे यह अहसास अवश्य था कि मोनी के गायब होने से सुगना और उसकी मां पद्मा सबसे ज्यादा दुखी थी। यह स्वाभाविक भी था। जहां सुगना अपने परिवार के मुखिया की भूमिका अदा करती थी वही मोनी अपनी मां पदमा का एकमात्र सहारा थी दिन भर साथ रहना …साथ में घर का काम करना और एक दूसरे से बातें करते हुए वक्त बिताना। मोनी के जाने से पदमा अकेली हो गई थी।

लाली और सुगना के बीच भी एक अजब सा तनाव था। सुगना को तो यह अंदाजा भी न था कि सोनू को उकसाने में लाली का योगदान था और लाली को यह आभास न था कि अंदर वास्तव में क्या हुआ था।


इतना तो तय था कि सुगना और सोनू का मिलन यदि हुआ था तो वह सुखद वातावरण में नहीं हुआ था। अन्यथा सुगना के चेहरे पर इतना तनाव कभी नहीं आता।

परंतु क्या सोनू ने अपनी ही बड़ी बहन सुगना से जबरदस्ती की होगी? छी छी सोनू जैसा प्रेमी ऐसा कतई नहीं कर सकता? फिर आखिर क्या हुआ था? यह जानने की लाली की तीव्र इच्छा थी परंतु उसके प्रश्नों का उत्तर न तो सोनू ने दिया था और नहीं सुगना से प्रश्न पूछ पाने की उसकी हिम्मत हो रही थी।

खैर जो होना था वह हो चुका था…. सोनू तेजी से जौनपुर की तरह बढ़ रहा था अपने कार्यक्षेत्र पर पहुंचकर उसका पहला उद्देश्य मोनी को ढूंढने के लिए अपने प्रशासन तंत्र की मदद लेना था.

सोनू ने जौनपुर पहुंचकर अपने विभाग के आला अधिकारियों से मदद मांगी और देखते ही देखते पुलिस विभाग की कई टीमें तैनात कर दी गई। सोनू स्वयं अपने पुलिसिया साथियों के साथ इस सर्च अभियान की कमान संभाल रहा था…

सोनू इस बात से भलीभांति अवगत था कि मोनी का झुकाव वैराग्य की तरफ है यह बात उसने पिछले बनारस महोत्सव में कई बार महसूस की थी विद्यानंद के उद्बोधन के पश्चात जब महिला और पुरुषों की भीड़ संगीत की धुन पर थिरकने लगती तो मोनी जैसे खुश हो जाती। बाकी कलयुगी लोग अपनी आंखें खोल कर इधर-उधर देखते परंतु मोनी वह तो जैसे भाव विभोर हो जाती..और लीन हो जाती।

सोनू दिन भर कभी इससे मिलता कभी उससे मिलता कभी अपनी टीम के सदस्यों से बात करता…सोनू ने मोनी को ढूंढने के लिए एड़ी चोटी चोटी का जोर लगा दिया।

एक-एक करके दिन बीतने लगे और लाली और सुगना के बीच की दूरियां कम ना हुईं। दोनों सहेलियां जो घंटों बैठ कर बात करती थी और उनकी बातें खत्म होने का नाम न लेती थी .. अब अपने अपने कमरों में पड़े अपनी अपनी यादों और एक दूसरे के साथ बिताए वक्त को याद करते एक दम शांत हो गई थीं। सुगना और लाली का चहकता हुआ घर न जाने कब एकदम शांत हो गया था।

जब घर की ग्रहणी दुखी होती है पूरे परिवार में दुख छा जाता है सारे बच्चे और यहां तक कि सोनी भी सुगना के इस बदले हुए स्वरूप से परेशान थी और सुगना के लिए चिंतित भी। सब बार-बार सुगना के पास जाते उसे मनाने और उसे दुख का कारण पूछते परंतु सुगना क्या कहती जो दर्द उसके मन में था… न तो वह उसे किसी के सामने बयां कर सकती थी और नहीं उस दुख से निजात पा सकती थी।

घर के सभी सदस्य अपने अपने इष्ट देव से सुगना के खुश होने के लिए प्रार्थना कर रहे थे…

दुआओं में असर होता है धीरे धीरे ऊपर वाले विधाता को सोनू और सुगना पर तरस आ गया और सोनू के ऑफिस में एक फोन आया…

जैसे-जैसे फोन के रिसीवर से शब्द निकल निकल कर सोनू के कानों से टकराते गए सोनू के चेहरे पर कभी आश्चर्य कभी विस्मय और अंततः मुस्कुराहट हावी होती गई …

"मैं सदैव आपका आभारी रहूंगा……जी…. जी……ठीक है मैं कल ही वहां पहुंचता हूं" सोनू ने आभार जताते हुए फोन का रिसीवर रखा और अपने दोनों हाथ जोड़कर अपनी छत को देखते हुए अपने इष्ट देव के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर की।


सोनू के मन में आया कि वह इस खुशखबरी को तुरंत ही लाली और सुगना से साझा कर दे परंतु उसने कुछ सोचकर यह विचार त्याग दिया वैसे भी रात हो चुकी थी और इस समय लाली और सुगना तक संदेश पहुंचा पाना कठिन था।

सोनू अपने कमरे में आया और सुबह अपने सफर पर निकलने के लिए अपना सामान बांधा… मन में उत्साह और सुगना की यादें लिए सोनू..अपने बिस्तर पर आया…सुगना को याद करना सोनू के लिए सबसे सुकून का काम था… सुगना के खिलखिलाते और मुस्कुराते चेहरे को याद कर न सिर्फ सोनू की वासना जवान होती अपितु उसका रोम रोम खिल उठता। परंतु पिछले कुछ दिनों से सोनू सुगना के दुखी चेहरे को देखकर परेशान था। आज इस खुशखबरी को सुनकर उसका मन प्रसन्न हो गया था और वह एक बार सुगना को फिर मुस्कुराते और खिलखिलाते हुए देखना चाहता था.

उसे याद करते ही सोनू के जैसे सारे दुख गायब हो जाते न जाने सुगना में ऐसा क्या छुपा था ….कुछ ही देर में उसके दिमाग के सामने सुगना का चेहरा घूमने लगा… क्या यह खबर सुन कर सुनना दीदी उसे माफ कर देगी? क्या सुगना को वह उसी प्रकार खिलखिलाते चहकते देख पाएगा…और क्या वह अद्भुत सुख उसे कभी दोबारा प्राप्त होगा…?

जैसे ही सोनू को उस मिलन की याद आई उसकी आंखों के सामने दृश्य घूमने लगे आज का एकांत उसे उस मिलन की बारीकियां याद दिलाने लगा… कैसे उसके मजबूत लंड के सुपाडे ने सुगना की चिपचिपी गीली बुर में डुबकी लगाई थी?... सुगना दीदी की बुर गीली क्यों थी? क्यों उन्होंने उस रात पेंटी नहीं पहनी थी? क्या वह सच में इस सुख की प्रतीक्षा कर रही थी? पर यदि ऐसा था तो उन्होंने प्रतिरोध क्यों किया?

सोनू सुगना की बुर के कसाव को याद करने लगा.. कितना जीवंत था सुगना दीदी का बुर का कसाव… ऐसे लग रहा था जैसे किसी ने अपनी अनगिनत कोमल उंगलियों से उसके लंड को को अपने आलिंगन में भर लिया हो…और उगलियो के दबाव से स्वाभाविक तौर पर उसे अपने अंदर और अंदर और गहरे तक खींचे जा रहा हो..

गर्भाशय के मुख पर पहुंचकर उसके सुपाडे ने जब प्रतिरोध को महसूस किया तब उसने अपने लंड को सुगना की बुर में पूरी तरह अंदर पाया…. क्या ऊपर वाले ने सुगना की बुर और सोनू के लंड को एक दूसरे के लिए ही बनाया था..

सोनू को अच्छी तरह याद आ रहा था जब इसके बाद उसने अपने लंड को और अंदर डालने की कोशिश की और सुगना की फूली हुई बुर उसके दबाव से पूरी तरह चिपक गई….

जिस तरह आलिंगन का कसाव बढ़ाने पर दूरियां और कम हो जाती है उसी प्रकार सोनू के दबाव बढ़ाने से लंड और अन्दर गया और उसने गर्भाशय का मुख खोल दिया …


और सुगना के वह उद्गार…

"सोनू… तनी धीरे से दुखाता"

सुगना के इस उद्बोधन में सिर्फ और सिर्फ एक प्यार भरी कामुकता थी और स्खलन के लिए तैयार उसकी बहन की मिलन की पूर्णता की मांग……

अब तक सोनू का लंड उसके मनोभाव पढ़कर हरकत में आ चुका था और सोनू की हथेलियों को बरबस अपनी ओर आकर्षित कर रहा था…

जैसे ही हथेलियों ने लंड को अपने आगोश में लिया सोनू की भावनाएं और कामुक होती गई।

सोनू उस रात हुए अनुभवों को याद कर रहा था और उन्हें अपने मन में उसे एक बार फिर महसूस करने की कोशिश कर रहा था। कैसे वह अपनी सुगना दीदी की बुर से जैसे ही लंड निकालने की कोशिश करता… अंदर उत्पन्न हुआ निर्वात सोनू के लंड को तुरंत ही अपनी तरफ खींचने लगता.. और सोनू का लंड एक बार फिर और गहराई तक उतर जाता…

सुगना की कोमल जांघों का स्पर्श उसकी जांघों से हो रहा था। ऐसी मखमली त्वचा शायद उसने जीवन में कभी अनुभव न की थी। मिलन के अन्तिम पलों में सुगना की पिंडलियां उसके नितंबों पर लगातार दबाव बनाए हुए उसे अपनी तरफ खींच रही थी..

वह स्खलित होती हुई बुर के कंपन ….वो अंतिम पलों में दीदी के प्रतिरोध का बिल्कुल खत्म होना और सुगना दीदी द्वारा उसकी उंगली को चुभलाए जाना….

सोनू की गतिमान हथेलियां लंड के मान मर्दन में लगी हुई थीं..

सोनू सुगना की चूचियों के स्पर्श को याद कर रहा था.. तभी वीर्य की एक मोटी धार हवा में उड़ती हुई वापस उसके चेहरे पर आ गिरी। सोनू का लंड हवा में वीर्य वर्षा कर रहा था जिसकी पहली धार स्वयं सोनू के होठों पर ही आकर गिरी..

आज जीवन में पहली बार उसने अपने ही वीर्य का स्वाद अपने होठों से चखा था…

…सोनू स्खलित हो रहा था…आज कई दिनों बाद सोनू के चेहरे पर खुशियां थी वह अति शीघ्र अपनी बहन सुगना से मिलना चाहता था।

अगले दिन सोनू अपने गंतव्य के लिए निकल चुका दिनभर की यात्रा करने के पश्चात वह सुबह सुबह विद्यानंद के आश्रम में हाजिर था। उसे उसे यह स्पष्ट जानकारी हो चुकी थी की मोनी विद्यानंद के आश्रम में ही आई थी। पुलिस और प्रशासन के सहयोग से सोनू को यह जानकारी फोन द्वारा प्राप्त हो चुकी थी। परंतु सोनू मोनी से मिलकर इस बात की तसल्ली करना चाहता था और उसके घर छोड़ने का कारण भी जानना चाहता था।

सोनू आश्रम के पंडाल में आ चुका था।श्वेत वस्त्रों में मोनी को आंखें बंद किए अपने दोनों हाथ हवा में हिलाते हुए एक विशेष धुन पर हौले हौले नृत्य करते हुए देखकर सोनू आश्चर्यचकित था । मोनी के चेहरे पर निश्चित ही एक नया नूर था। पिछले कुछ दिनों में ही मोनी को जैसे यह आश्रम रास आ गया था…सोनू कुछ देर तक नृत्य के खत्म होने का इंतजार करता रहा और जैसे ही अल्पविराम हुआ उसने आवाज लगाई

"मोनी"

मोनी ने सोनू की तरफ देखा परंतु वह उसकी तरफ आई नहीं। शायद मोनी के मन में सोनू के प्रति घृणा उत्पन्न हो चुकी थी और हो भी क्यों न जो व्यक्ति अपनी ही बहन के साथ ऐसा दुष्कर्म कर सकता है और जो अपनी छोटी बहन को अपने दोस्त की वासना शांत करने के लिए भेज सकता है ऐसा घृणित व्यक्ति भाई कहलाने योग्य कतई नहीं हो सकता।

सोनू ने आगे बढ़कर मोनी से मुलाकात करने की कोशिश की परंतु विद्यानंद के अंग रक्षकों ने उसे महिला पंडाल की तरफ जाने से रोक लिया। विशेष अनुरोध करने पर आश्रम के ही एक अन्य व्यक्ति ने मोनी तक एक बार फिर उसकी मिलने की मंशा पहुंचाई पर मोनी ने उससे मिलने से मना कर दिया…

सोनू यह बात कतई नहीं समझ पा रहा था कि मोनी ने उसके साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया ? हो सकता है मोनी सांसारिक दुनिया को छोड़ चुकी थी और वह अपने परिवार के सदस्यों से मिलना न चाहती हो?

खैर मोनी को कुशल देखकर सोनू को तसल्ली हो गई कि वह आश्रम में सुरक्षित और सकुशल है उसके लिए इतना ही पर्याप्त था। वह अपने मन में ढेरों प्रश्न लिए वापस बनारस की तरफ चल पड़ा…

सोनू के मन में खुशियां और दुख अपना अपना आधिपत्य जमाने के लिए होड़ लगा रहे थे। मोनी के मिलने की उसके मन में जितनी खुशी थी उतना ही मोनी को अपने परिवार से हमेशा के लिए खो देने का दुख भी।


मोनी के व्यवहार से सोनू स्तब्ध भी था वैरागी मनुष्य के चेहरे पर सामान्यता घृणा के भाव नहीं होते परंतु मोनी ने जिस तरह सोनू को देख कर अपना चेहरा घूम आया था उसने सोनू को चिंतित कर दिया था। सोनू ने अपने दिमाग को झटका और इस विचार को दरकिनार कर दिया…उसके पास और कोई चारा भी न था।

सोनू सुखद पहलू की तरफ ध्यान दे रहा था. मोनी के मिलने की बात सुगना को बता कर उसके चेहरे पर मुस्कान और खुशी देखने के विचार मात्र से उसका मन गदगद हो रहा था। सोनू अपनी बहन सुगना की माफी की प्रतीक्षा और उसके खुशहाल चेहरे को देखने की कामना की अपनी ट्रेन के जल्दी बनारस पहुंचने का इंतजार करने लगा…

हर रोज की तरह बनारस की सुबह बाहरी दुनिया के लिए खुशनुमा थी परंतु सुगना और उसके परिवार के लिए वैसी ही उदास…सोनी सोनी अपने नर्सिंग कॉलेज जा चुकी थी बच्चे स्कूल और लाली घर का जरूरी सामान लेने बाहर गई हुई थी…सुगना ने स्नान ध्यान किया और अपने इष्ट देव से हमेशा की तरह मोनी के मिलने की कामना की और रसोई से जा कर दो रोटी और सब्जी लेकर नाश्ता करने बैठ गई…न जाने आज उसे सब्जी की गंध क्यों अजीब सी लग रही थी उसने कुछ ही निवाले अपनी हलक से नीचे उतारे होंगे और उसका मन मचलने लगा वह बेचैन सी होने लगी.. उसने प्लेट जमीन पर रखी और बाथरूम की तरफ भागी ।

सुगना उल्टियां करने लगी। तभी अपने मन में ढेरों अरमान लिए सोनू दरवाजे पर आकर खड़ा हो गया। दरवाजा खुला था अपने ही घर में आने के लिए उसे किसी से अनुमति लेने की आवश्यकता न थी। बाथरूम से सुगना की उल्टियां करने की अजब सी आवाज आ रही थी….

सुगना को कष्ट हो और सोनू बेचैन ना हो यह हो नहीं सकता..

"दीदी का भईल"

सुगना की तरफ से कोई उत्तर न सुनकर सोनू बाथरूम के दरवाजे के पास पहुंच गया.. बाथरूम का दरवाजा खुला हुआ था और सुगना बेसिन में मुंह लटकाए अपने चेहरे को पानी से धो कर खुद को उल्टी की भावना से बचा रही थी… और खुद को तरोताजा करने का प्रयास कर रही थी।

शायद इसी उहापोह में उसने सोनू के आने पर अपनी प्रतिक्रिया भी नही दे पाई..

सोनू पास पहुंचकर उसकी मदद करना चाह रहा था परंतु सुगना बदहवास थी उसने हाथ हिलाकर सोनू को रुकने का इशारा किया और बड़ी मुश्किल से खुद पर काबू कर बाहर आई।

"दीदी मोनी मिल गईल" सोनू ने चहकते हुए बताया और उसके पैरो पर गिर पड़ा।

सुगना के चेहरे पर थोड़ा मुस्कान आई जिसे झुक चुका सोनू देख भी ना पाया…सुगना पीछे हटी वह एक बार फिर बाथरूम में घुस गई शायद अपनी उल्टीओ पर उसने जो क्षणिक नियंत्रण पाया था वह छूट चुका था..

सोनू ने सुगना को पीछे हटते देख सोनू डर गया क्या सुगना दीदी ने उसे अब भी माफ नहीं किया है?

शेष अगले भाग में..





बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
मोनी गायब हो गई तो सभी तरफ खोजबीन करने पर पंडित के चेले का पता चला की वो मोनी के आगे पिछे घूम रहा था फिर क्या सरयुसिंग ने उसे उठवाया और दे दणादण लेकीन मोनी का पता उसे भी नहीं मालूम तो वो क्या कहता हा उसे मोनी की कमसीन कुवारी बुर देखने का दंड जरुर मिला
सोनू सुगना के साथ घटीत किये पल को याद करके बहुत ही उत्तेजित हो कर विर्य वर्षाव कर बैठा
सोनू ने अपने पद और अधिकार का उपयोग करके आखिर में मोनी को खोज ही निकाला वो भी स्वामी विद्यानंद के आश्रम में और मिलने गया लेकीन मोनी ने सोनू को तिरस्कार की नजरोंसे देखकर दुत्कार दिया उससे बात भी नहीं की
और ये क्या सुगना उलटीयों पे उलटीया कर रही है तो क्या जबरदस्ती ही सही लेकीन सोनू और सुगना के मिलन का फल तयार हो रहा है सुगना के गर्भ में
देखते हैं आगे
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

Lovely Anand

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लवली जी फोरम पर सिर्फ आपकी कहानी को पढ़ने और उस पर पाठको के कमेंट्स देखने के लिए आते है।क्या रक्षा बंदन पर कोई धमाका होगा
आपने यह बात बिल्कुल सही कहीं । जिस तरह आप कहानी पढ़ने और पाठकों के कमेंट पढ़ने यहां आते हैं उसी तरह बाकी पाठक भी यही अपेक्षा करते हैं परंतु हम सब अपनी राय खुलकर व्यक्त करने में हिचकी जाते हैं जबकि कहानी पढ़कर उस का आनंद लेना चाहते हैं। आपका लिखा बाकी लोग पढ़ते हैं और बाकी कालिका आप पढ़ते हैं परंतु कुछ पाठकों को न जाने चार अक्षर लिखने में क्या तकलीफ होती है अच्छा बुरा पसंद नापसंद खुलकर बताने से कहानी और भी परिमार्जित होती है जुड़े रहें और अपना साथ बनाए रखें
Mst update lekin sab ulat palt ho gya or bichara Sonu ko badnam kr diya jo sabhi ko najro me gir gya
Ab dekhte h aage kya hota h
Sonu Badnaam hoga ya use sugna milegi yah to dekhna hoga
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
मोनी गायब हो गई तो सभी तरफ खोजबीन करने पर पंडित के चेले का पता चला की वो मोनी के आगे पिछे घूम रहा था फिर क्या सरयुसिंग ने उसे उठवाया और दे दणादण लेकीन मोनी का पता उसे भी नहीं मालूम तो वो क्या कहता हा उसे मोनी की कमसीन कुवारी बुर देखने का दंड जरुर मिला
सोनू सुगना के साथ घटीत किये पल को याद करके बहुत ही उत्तेजित हो कर विर्य वर्षाव कर बैठा
सोनू ने अपने पद और अधिकार का उपयोग करके आखिर में मोनी को खोज ही निकाला वो भी स्वामी विद्यानंद के आश्रम में और मिलने गया लेकीन मोनी ने सोनू को तिरस्कार की नजरोंसे देखकर दुत्कार दिया उससे बात भी नहीं की
और ये क्या सुगना उलटीयों पे उलटीया कर रही है तो क्या जबरदस्ती ही सही लेकीन सोनू और सुगना के मिलन का फल तयार हो रहा है सुगना के गर्भ में
देखते हैं आगे
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बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
मोनी गायब हो गई तो सभी तरफ खोजबीन करने पर पंडित के चेले का पता चला की वो मोनी के आगे पिछे घूम रहा था फिर क्या सरयुसिंग ने उसे उठवाया और दे दणादण लेकीन मोनी का पता उसे भी नहीं मालूम तो वो क्या कहता हा उसे मोनी की कमसीन कुवारी बुर देखने का दंड जरुर मिला
सोनू सुगना के साथ घटीत किये पल को याद करके बहुत ही उत्तेजित हो कर विर्य वर्षाव कर बैठा
सोनू ने अपने पद और अधिकार का उपयोग करके आखिर में मोनी को खोज ही निकाला वो भी स्वामी विद्यानंद के आश्रम में और मिलने गया लेकीन मोनी ने सोनू को तिरस्कार की नजरोंसे देखकर दुत्कार दिया उससे बात भी नहीं की
और ये क्या सुगना उलटीयों पे उलटीया कर रही है तो क्या जबरदस्ती ही सही लेकीन सोनू और सुगना के मिलन का फल तयार हो रहा है सुगना के गर्भ में
देखते हैं आगे
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
आपका कहानी पर सारांश देने का यह तरीका अनूठा है जुड़े रहे और यूं ही अपना सहयोग देते रहे
please give 101
Sent

Sir please
Sent
 

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भाग 106

सोनू पास पहुंचकर उसकी मदद करना चाह रहा था परंतु सुगना बदहवास थी उसने हाथ हिलाकर सोनू को रुकने का इशारा किया और बड़ी मुश्किल से खुद पर काबू कर बाहर आई।


"दीदी मोनी मिल गईल" सोनू ने चहकते हुए बताया और उसके पैरो पर गिर पड़ा।

सुगना के चेहरे पर थोड़ा मुस्कान आई जिसे झुक चुका सोनू देख भी ना पाया…सुगना पीछे हटी वह एक बार फिर बाथरूम में घुस गई शायद अपनी उल्टीओ पर उसने जो क्षणिक नियंत्रण पाया था वह छूट चुका था..


सोनू ने सुगना को पीछे हटते देख सोनू डर गया क्या सुगना दीदी ने उसे अब भी माफ नहीं किया है?

अब आगे…..

सुगना एक बार फिर उल्टी करने की कोशिश कर रही थी सोनू एक बार फिर सुगना के पीछे आकर खड़ा हो गया और उसकी नंगी पीठ पर थपकीया दें कर उसे शांत करने की कोशिश कर रहा था…. सुगना बार-बार पीछे मुड़कर सोनू की तरफ देखती उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह सोनू को मना करें या नहीं इतना तो सुगना भी समझ रही थी कि सोनू का यह प्यार पूर्णतया वासनाविहीन था।

कुछ देर की जद्दोजहद के बाद आखिरकार सुगना सामान्य हुई और अपने गीले चेहरे को पोछती हुई बाहर हाल में आ गई…

अब तक लाली भी बाजार से वापस आ चुकी थी। सोनू को देखकर वह खुश हो गई। उसने सोनू से पूछा

"मोनी मिलली सोनू" मोनी के बारे में जानने की अधीरता उसके चेहरे पर देखी जा सकती थी।


" हां दीदी विद्यानंद महाराज के आश्रम में भर्ती हो गईल बाड़ी …हम उनका से बात करें के कोशिश कइनी पर बुझाता ऊ घर के आदमी से मिले नईखी चाहत । बाकी देखे सुने में ठीक रहली और अपना टोली में मस्त रहली हा"

सोनू की बातें सुनना भी ध्यान लगाकर सुन रही थी सुगना ने कई दिनो बाद सोनू से प्रश्न किया …

"तोहरा से बात ना कईलास हा का"

"ना दीदी हम संदेशा भी भेजनी पर ऊ ना अइली हा"


सुगना एक तरफ तो मोनी के मिल जाने से खुश थी वहीं दूसरी तरफ मोनी को हमेशा के लिए खोने का दर्द वह महसूस कर पा रही थी। परंतु मोनी ने वैराग्य क्यों धारण किया? यह उसकी समझ से परे था।

न जाने इस परिवार को हुआ क्या था। एक के बाद एक लोग घर छोड़कर बैरागी बनते जा रहे थे। पहले सुगना का पति रतन और उसकी बहन मोनी ….उसके ससुर तो न जाने कब से वैराग्य धारण कर न जाने कहां घूम रहे थे। सुगना को एहसास भी न था कि विद्यानंद उसके अपने ससुर थे..

खैर जो होना था सो हुआ। सुगना ने अपनी खाने की प्लेट उठाई और वापस उसे रसोई में रखने चली गई। लाली ने सुगना से कहा

"सोनू के लिए भी नाश्ता निकाल दे"

लाली फिर सोनू की तरफ मुखातिब हुई और बेहद प्यार से बोली …

"जा सोनू बाबू मुंह हाथ धो ल " आज लाली के मुख से अपने लिए बाबू शब्द सुनकर सोनू को पुराने दिनों की याद आ गई जब लाली उसे इसी तरह प्यार करती थी…अचानक सोनू के लंड में तनाव आ गया यह प्यार ही तो उससे और उत्तेजित कर देता था।

शब्दों को कहने का भाव रिश्तो की आत्मीयता और परस्पर संबंधों को उजागर करता है बाबू ..सोना ..मोना ..यह सारे शब्द अलग-अलग स्थितियों में अलग-अलग भाव उत्पन्न करते हैं.. और आप अपनी अपनी भावना के अनुसार उसने वात्सल्य या वासना खोज लेते हैं

सोनू सुगना सोनू के लिए नाश्ता निकालने लगी परंतु जैसे ही सब्जी की गंध उसके नथुनों में पड़ी एक बार वह फिर उबकाई लेने लगी…सुगना भाग कर बाथरूम में आई…. इस बार सुगना के पीछे सोनू की बजाय लाली खड़ी थी

"अरे ई तोहरा अचानक का भइल पेट में कोनो दिक्कत बा का? " लाली ने पूछा

" ना ना असही आज मन ठीक नईखे लागत " सुगना ने बड़ी मुश्किल से ये कहकर बात छुपाने की कोशिश की…और अपने पंजों से लाली को इशारा कर और बात करने से रोकने की कोशिश की…इस स्थिति में किसी भी प्रश्न का जवाब दे पाना सुगना के लिए भारी पड़ रहा था वह अपनी उल्टी समस्या से कुछ ज्यादा ही परेशान थी।

बेवजह उबकाइयां आने का कारण कुछ और ही था। इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपते और सुगना और सोनू ने जो किया था उस अद्भुत मिलन ने सुगना के गर्भ में अपना अंश छोड़ दिया था सुगना के गर्भ में उस अपवित्र मिलन का पाप जन्म ले चुका था..

सुगना के शरीर में आ रहे बदलाव से सुगना बखूबी वाकिफ थी। आज सुबह-सुबह की उल्टी ने उसके मन में पल रहे संदेह को लगभग यकीन में बदल दिया। जब से उसकी माहवारी के दिन बढ़ गए थे तब से ही वह चिंतित थी और आज बेवजह की उबकाइयों ने उसके यकीन को पुख्ता कर दिया था।


हे भगवान तूने यह क्या किया? सुगना अपने हाथ जोड़े अपने इष्ट से अनुनय विनय करती और अपने किए के लिए क्षमा मांगती परंतु परंतु उसके गर्भ में पल रहा वह पाप अपना आकार बड़ा रहा था।

सुगना मन ही मन सोच रही थी निश्चित ही आज नहीं तो कल यह बात बाहर आएगी। वह क्या मुंह दिखाएगी? घर में सोनी और लाली उसके बारे में क्या सोचेंगे ? और तो और इस बच्चे के पिता के लिए वह किसका नाम बताएंगी? और जब यह बात घर से निकल कर बाहर जाएगी सलेमपुर सीतापुर और स्वयं बनारस में उसके जानने वाले…इतना ही सुगना सोचती उतना ही परेशान होते एक पल के लिए उसके मन में आया कि वह जल समाधि ले ले परंतु उसकी आंखों के सामने उसके जान से प्यारे सूरज और मधु का चेहरा घूम गया अपने बच्चों को बेवजह अनाथ करना सुगना के व्यक्तित्व से मेल नहीं खाता था उसने तरह तरह के विचार मन में लाए पर निष्कर्ष पर पहुंचने में असफल रही।

दोपहर बड़ी कशमकश में बीती और शाम होते होते एक बार फिर उल्टियो का दौर चल पड़ा। अब तक परिवार की छोटी डॉक्टरनी नर्स सोनी आ चुकी थी।

अपनी बहन सुगना को उबकाई लेते हुए देख वह भी परेशान हो गई। उसने सोनू को उठाया और बोला

"भैया जा कर हई दवाई ले ले आवा दीदी के उल्टी खातिर"


सोनू तो सुगना के लिए आसमान से तारे तोड़ कर ला सकता था दवाई क्या चीज थी। वह भागते हुए मेडिकल स्टोर की तरफ गया और जाकर दवाइयां ले आया। लाली और सुगना अगल-बगल बैठी थीं लाली सुगना की हथेलियों को पकड़कर सहला रही थी और उसे उबकाई की प्रवृति को भूलने के लिए प्रेरित कर रही थी।

सोनी कमरे में आई और सोनू उसके पीछे पीछे गिलास में पानी लिए खड़ा था…" दीदी ई दवा खा लाउल्टी ना आई… आज दिन में का खाइले रहलू की तहार पेट खराब हो गईल बा"

सुगना क्या बोलती …उसे जो हो रहा था वह वह उसके ऊपरी होठों के द्वारा नहीं अपितु निचले होठों द्वारा खाया गया था…और वह था सामने खड़े अपने छोटे भाई सोनू का मजबूत लंड. सुगना ने दवा न खाई बेवजह दवा खाने का कोई मतलब भी ना था।


सुगना दो बच्चों की मां पहले से थी उसे शरीर में आ रहे बदलाव के बारे में बखूबी जानकारी थी। सुगना ने बात बदलते हुए कहां

"ना दवाई की जरूरत नईखे …. असही ठीक हो जाई। सवेरे बांसी मटर खा ले ले रहनी ओहि से उल्टी उल्टी लागत बा"

सुगना ने एक संतोषजनक उत्तर खोज कर सोनी और सोनू को शांत कर दिया। वह दोनों लाख पढ़े होने के बावजूद स्त्री शरीर में आ रहे बदलावों से अनभिज्ञ थे। और सोनू वह तो न जाने कितनी बार लाली को चोद चुका था कभी उसकी बुर में वीर्य भरता कभी शरीर पर मलता और न जाने क्या-क्या करता उसे इस बात का एहसास न था कि एक बार गर्भ में छोड़ा गया वीर्य भी गर्भ धारण करा सकता था।

सोनू के अनाड़ीपन को लाली ने अपना कवच दे रखा था जब जब सोनू उसके अंदर अपना वीर्य स्खलन करता लाली तुरंत ही गर्भ निरोधक दवा खा लेती। और अपने खेत को तरोताजा बनाए रखती।

शाम हो चुकी थी..अब तक अब तक घर के सारे बच्चे सोनू के साथ बाहर जाने के लिए तैयार हो गए थे। मामा मामा.. कहते हुए वह सोनू से तरह-तरह की चीजें खिलाने की मांग करते। कुछ ही देर में सोनू अपने भांजे भांजियों के साथ नुक्कड़ पर चाट पकौड़ी खाने चल पड़ा सोनी भी सोनू के साथ गई छोटी मधु और सुगना पुत्र सूरज दोनों को अपनी गोद की दरकार थी।


सोनी के हिस्से का सारा प्यार सूरज ले गया था और बचा खुचा मधु… लाली के घर के बच्चों में से सामान्यतः उसकी बेटी रीमा ही सोनी के साथ सहजता से खेलती परंतु आज रघु उसकी गोद में था।


धीरे धीरे चलते हुए सोनी और सोनू सड़क पर आ गए बच्चे भी लाइन लगाकर चल रहे थे।

उस दौरान सड़कों पर आवागमन इतना ज्यादा न था पर फिर भी सोनू और सोनी सतर्क थे। सोनी के कहा "लाइन में रह लोग.. इने उने मत जा लोग"

अचानक सोनी का ध्यान भंग हुआ। उसकी गोद में बैठा रघु अपने हाथों से सोनी की चूचियां छू रहा था.. वह कभी उसकी कमीज के ऊपर से अपना हाथ डालकर उसकी नंगी चूचियां छूने का प्रयास करता और सोनी बार-बार उसके हाथों को हटाकर दूर कर देती। परंतु न जाने उस बालक को कौन सी प्रेरणा मिल रही थी (शायद अपने स्वर्गीय पिता राजेश से) वह बार-बार अपने हाथ सोनी की चूचियों में डाल देता और एक बार तो हद ही हो गई जब उसने अपनी मासूम उंगलियों से सोनी के निप्पलो को पकड़ लिया…। सोनी ने उसके गाल पर एक मीठी चपत लगाई और बोला

"बदमाशी करबा त नीचे उतार देब"

रघु ने कुछ देर के लिए तो हाथ हटा लिए पर उसे जो आनंद आ रहा था यह वही जानता था। थोड़ी ही देर में नुक्कड़ आ गया और बच्चे धमाचौकड़ी मनाते हुए अपनी सुगना मां / मौसी के गर्भवती होने का जश्न मनाने लगे और उस अनचाहे बच्चे का पिता अनजाने में ही उन्हें खिला पिला रहा था पार्टी दे रहा था। नियति मुस्कुरा रही थी।

उधर घर में सुगना एक बार फिर बाथरूम में थी। बाहर आते ही लाली ने सुगना के कंधे पकड़कर पूछा..

" ए सुगना हमरा डर लागता… कुछ बात बा का? हम तोहार सहेली हई हमरा से मत छुपाओ बता का भईल बा.."

सुगना से अब और बर्दाश्त ना हुआ… पिछले कई दिनों से उसने लाली से कोई बात ना की थी परंतु उसे पता था लाली और वह एक दूसरे से ज्यादा दिनों तक दूर नहीं रह सकती थीं। लाली के बिना उसका जीवन अधूरा था और अब वह जिस मुसीबत में पड़ चुकी थी उससे निकालने में सिर्फ और सिर्फ लाली ही उसकी मदद कर सकती थी।

सुगना अपनी भावनाओं पर और काबू न रख पाई और लाली के गले लग कर फफक फफक कर रो पड़ी। लाली उसकी पीठ पर हाथ फेर रही थी …

सुगना ने अपने पेट में आए गर्भ के बारे में लाली को बता दिया। सुगना को पूरा विश्वास था कि यह उसके शरीर में आया बदलाव उसी कारण से है। फिर भी तस्दीक के लिए लाली पास के मेडिकल स्टोर पर गई और प्रेगनेंसी किट खरीद कर ले आई।

कुछ ही देर में यह स्पष्ट हो गया कि सुगना गर्भवती थी ।

लाली ने न तो उस गर्भस्थ शिशु के पिता का नाम पूछा न हीं सुगना से कोई और प्रश्न किया । लाली जानती थी कि सुगना किसी और से संबंध कभी बना ही नहीं सकती थी। यदि उस बच्चे का कोई पिता होगा तो वह निश्चित ही सोनू ही था। उस दीपावली की रात सुगना और सोनू के बीच जो हुआ था यह निश्चित ही उसका ही परिणाम था…. स्थिति पलट चुकी थी।

सुगना लाली से और बातें करना चाहती थी । उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि लाली ने बच्चे के पिता के बारे में जानने की कोई कोशिश न की थी? सुगना उत्तर अपने होंठो पर लिए लाली के प्रश्न का इंतजार कर रही थी पर लाली को जिस प्रश्न का उत्तर पता था उसे पूछ कर वह सुगना को और शर्मिंदा नहीं करना चाहती थी।

दोनों सहेलियां परेशान थीं। एक दूसरे का हाथ थामें दोनों अपना दिमाग दौड़ा रही थी। लाली इस बच्चे के पिता के लिए कोई उचित नाम तलाश रही थी। परन्तु सुगना जैसी मर्यादित और सभ्य युवती का अनायास ही किसी मर्द से चुद जाना संभव न था।


आखिरकार सुगना ने मन ही मन प्रण किया और बोला

"हम अब अपना भीतर ई पाप के ना राखब हम इकरा के गिरा देब"

उस दौरान एबॉर्शन एक सामान्य प्रक्रिया न थी। एबॉर्शन के लिए कई सारे नियम कानून हुआ करते थे। सुगना ने जो फैसला लिया जो लाली को भी सर्वथा उचित लगा। बस लाली को एक बात का ही दुख था कि यह गर्भ सोनू और सुगना के मिलन से जन्मा था और उसमें सोनू का अंश था ।

परंतु जब सुगना ने फैसला ले लिया तो लाली उसके साथ हो गई। परंतु यह एबॉर्शन होगा कैसे? इसके लिए पिता और माता दोनों की सहमति आवश्यक है? हॉस्पिटल में जाने पर निश्चित ही इस गर्भ के पिता का नाम पूछा जाएगा और उनकी उपस्थिति पूछी जाएगी। हे भगवान! लाली ने सुगना से इस बारे में बात की। सुगना भी परेशान हो गई और आखिरकार लाली ने सुगना को सलाह दी..

" सुगना सोनू के साथ 1 सप्ताह खातिर बाहर चल जा ओहिजे इ कुल काम करा कर वापस आ जइहा। सोनू समझदार बा ऊ सब काम ठीक से करा ली एहीजा बनारस में ढेर दिक्कत होई। घर में सोनी भी बिया इकरा मालूम चली तो ठीक ना होई अभी कुवार लइकी बिया ओकरा पर गलत प्रभाव पड़ी। "

लाली को अभी सोनी की करतूतों का पता न था।

नियति मुस्कुरा रही थी….. लाली बकरी को कसाई के साथ भेजने की बात कर रही थी। जिस सुगना का उसके अपने ही भाई ने चोद चोद कर पेट फुला दिया था वह उस उसे उसके ही साथ अकेले जाने के लिए कह रही थी।

पर न जाने क्यों सुगना को यह बात रास आ गई । वैसे इसके अलावा और कोई चारा भी ना था। सोनू घर का अकेला मर्द था। पर यह प्रश्न अब भी कठिन था सोनू को यह बात कौन बताएगा? और सोनू को इस बात के लिए राजी कौन करेगा?

लाली सुगना की परेशानी समझ गई। उसने सुगना के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा

" तू परेशान मत होख… हम सोनू के सब समझा देब… अतना दिन राखी बंधले बाड़े मुसीबत में ऊ ना रक्षा करी त के करी" रक्षाबंधन का नाम सुनकर सुगना खो सी गई… सोनू और उसके बीच प्यार भरे दिन उसकी नजरों के सामने घूमने लगे कैसे वह मासूमियत आज वासना ने लील ली थी। सुगना को खोया हुआ देखकरपर लाली उसे आलिंगन में लेने के लिए आगे बढ़ी।

लाली और सुगना एक बार फिर गले लग गईं…चारों चूचियां एक बार फिर एक दूसरे को सपाट करने की कोशिश करने लगीं। लाली और सुगना में आत्मीयता एक बार फिर प्रगाढ़ हो गई थी। सुगना और लाली के बीच जो दूरियां बन गईं थी वह अचानक खत्म हो रही थीं।

दुख कई बार लोगो के मिलन का कारण बनता है आज लाली के गले लगकर सुगना खुश थी।

बाहर बच्चों की शोरगुल की आवाज आ रही थी। उनकी पलटन वापस आ चुकी थी। सुगना ने अपनी आंखों पर छलक आए आंसुओं को पोछा और शीशे के सामने खड़े हो अपने बाल सवारने लगी। सोनी और सोनू कमरे में आ गए। सोनू ने पूछा

"दीदी अब ठीक लागत बानू?" सुगना के दिमाग में फिर उस रात सोनू द्वारा कही गई यही बात घूमने लगी… कैसे सोनू उसे चोदते समय यह बात बड़े प्यार से पूछ रहा था…दीदी ठीक लागत बा नू"... उस चूदाई का परिणाम ही था कि आज सुगना परेशान थी…

सुगना ने बात को विराम देते हुए कहा

"हां अब ठीक बा चिंता मत कर लोग.."

सोनी ने सुगना के लटके हुए पैरों को पकड़ कर बिस्तर पर रखा और सिरहाने तकिया लगा कर बोली..

"दीदी आज तू आराम कर हम खाना बना दे तानी"

सोनू एक टक सुगना को देखे जा रहा था सुनना के चेहरे पर आया यह दर्द अलग था सोनू स्वयं को असहाय महसूस कर रहा था और मन ही मन सुगना के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना कर रहा था।

धीरे-धीरे कमरे से सभी एक-एक करके जाने लगे और सुबह अपनी पलकें मूंदे आने वाले दिनों के बारे में सोचने लगी वह कैसे सोनू के साथ अबॉर्शन कराने जाएगी?

आइए सुगना को उसके विचारों के साथ छोड़ देते हैं अपने ही भाई के साथ कुकृत्य कर गर्भधारण करना उसी के साथ गर्भ को गिराने के लिए जाना सच में एक दुरूह कार्य था।


उधर विद्यानंद के आश्रम में रतन मोनी को देखकर आश्चर्यचकित था। रतन मोनी को पहले से जानता था परंतु उसकी मोनी से ज्यादा बातचीत नहीं होती थी। विवाह के पश्चात वैसे भी रतन का गांव पर आना जाना दो-चार दिनों के लिए ही होता था। उस दौरान मोनी शायद ही कभी उससे मिलती।

परंतु पिछली बार सुगना को दिल से अपनाने के बाद जब वह पूजा में शरीक हुआ था उस दौरान मोनी और उसकी कई मुलाकाते हुई थी। मोनी स्वभाववश रिश्तेदारों से दूर ही रहती थी। उसने रतन से मुलाकात तो कई बार की परंतु कुछ देर की ही बातचीत में वह हट कर दूसरे कामों में लग जाया करती थी।

ऐसा नहीं था कि रतन मोनी से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करता उस दौरान तो वह सुगना का दिल जीतने में लगा हुआ था।

रतन को वैसे भी आश्रम बनाने का तोहफा दीपावली की रात मिल चुका था। रतन की निगरानी में बने उस विशेष आश्रम में भव्य उद्घाटन समारोह आयोजित किया गया था जिसमें विद्यानंद स्वयं उपस्थित थे आश्रम में आने वाले लोग भारत देश के कई क्षेत्रों के अलावा देश विदेश से भी आए थे। आगंतुकों में अधिकतर विद्यानंद के अनुयाई ही थे बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश निषेध था।

विद्यानंद के आश्रम में संपन्नता की कोई कमी न थी और उनके अधिकतर अनुयाई धनाढ्य परिवारों से संबंध रखते थे और विदेश से आए लोगों का कहना ही क्या न जाने ऊपर वाले ने उनके हिस्से में कितनी संपत्ति आवंटित की थी जिससे वह जीवन का इतना लुत्फ ले पाते थे और कुछ तो सब कुछ छोड़ छाड़ कर विद्यानंद के आश्रम में शामिल हो गए थे कार्यक्रम आश्रम जैसा ही भव्य था और उस आश्रम के यजमान रतन और माधवी को बनाया गया था माधवी वहीं विदेशी कन्या थी जो विद्यानंद के इशारे पर रतन के साथ मिलकर इस आश्रम कि नियम और कानून बनाने में रतन की मदद कर रही थी।


रतन और मधावी ने दीपावली की रात उस अनूठे आश्रम के विशेष भवन में जाकर रतन के द्वारा बनाए गए विशेष कूपे का निरीक्षण किया। माधवी और रतन ने एक दूसरे के शरीर को जी भर कर महसूस किया रतन वैसे भी एक दमदार हथियार का स्वामी था और विदेशी बाला माधवी उतनी ही सुकुमार चूत की स्वामिनी थी…माधुरी की गोरी चूत में रतन का काला लंड घुसने को बेताब था परंतु उस कूपे में यह व्यवस्था न थी। नियति ने रतन और माधवी के लिए जो सोच रखा उसे घटित तो होना था पर वह दीपावली की रात ने उनका साथ न दिया।.

उधर बनारस में रात्रि के भोजन के पश्चात सब अपने-अपने स्थान पर सोने चले गए.. सुगना की आंखों में आज नींद फिर गायब थी वह अपने गर्भ में आए उस पाप के प्रतीक को मिटा देना चाहती थी परंतु कैसे? यह प्रश्न उसके लिए अभी भी यक्ष प्रश्न बना हुआ था ।

लाली ने जो सुझाव दिया वह वैसे तो देखने में आसान लग रहा था परंतु अपने ही भाई के साथ जाकर उसके ही द्वारा दिए गए गर्भ को गर्भपात कराना …..एक कठिन और अनूठा कार्य था।

सुगना की सहेली लाली सोनू के कमरे में एक बार फिर सोनू को खुश करने के लिए सज धज कर तैयार थी। सोनू भी आज सहज प्रतीत हो रहा था मोनी के मिल जाने के बाद सुगना के व्यवहार को देखकर उसे कुछ तसल्ली हुई थी परंतु लाली जो धमाका करने जा रही थी सोनू उससे कतई अनभिज्ञ था…

जैसे ही लाली करीब आए सोनू ने पीछे से आकर उसकी चूचियां अपनी हथेलियों में भर ली और बोला..

"दीदी इतना दिन से कहां भागल भागल फिरत बाडु "

"अब हमरा से का चाहीँ कूल प्यार त सुगना में भर देला" लाली ने बिना नजरे मिलाए सटीक प्रहार किया..

सोनू को कुछ समझ में न आया अब तक उसका खड़ा लंड लाली के नितंबों में धसने लगा था वह चुप ही रहा । लाली की पीठ और सोनू के सीने के बीच दूरियां कम हो रही थी परंतु लाली सोनू को छोड़ने वाली न थी। अपनी सहेली सुगना को उसकी समस्या से निजात दिलाना उसकी पहली प्राथमिकता थी लाली ने कहा…

शेष अगले भाग में …
 

Chutphar

Mahesh Kumar
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बहुत बढिया सर, सगुना का गर्भवती होना और अब सोनु के साथ जाकर उस गर्भ को गिराने के लिये मान जाना...,

लगता है नियती सोनु और सगुना का फिर से मिलन करवाने की योजना बना रही है..!
 
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Kammy sidhu

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बहुत बढिया सर, सगुना का गर्भवती होना और अब सोनु के साथ जाकर उस गर्भ को गिराने के लिये मान जाना...,

लगता है नियती सोनु और सगुना का फिर से मिलन करवाने की योजना बना रही है..!
Too much romantic update bro but 102 number wala update nahi mil raha ,plz send me update
 

Kammy sidhu

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इस पोस्ट के पहले जितने भी पाठकों ने
अपडेट की मांग की थी मैंने उन्हें वांछित अपडेट भेज दिया है यदि कोई पाठक छूट गया हो तो कृपया मुझे माफ करिएगा और एक बार फिर याद दिलाने का कष्ट करिएगा आप सब के सहयोग से या कहानी यूं ही आगे बढ़ती रहें यही आशा है...

कुछ पाठक कमेंट तो कर रहे हैं पर उनके कमेंट से यह ज्ञात नहीं हो रहा कि उन्हें कौन सा अपडेट चाहिए। कृपया जो अपडेट आपको प्राप्त नहीं हुआ है उसे अपने कमेंट में जरूर लिखें ताकि मैं आपको वह अपडेट भेज सकूं।

जिन पाठकों को पुराने अपडेट अभी भी प्राप्त नहीं हुआ है वह अपनी मांग खुलकर अपडेट नंबर के साथ रख सकते हैं पर इतना ध्यान रखिएगा एक बार में में एक ही अपडेट भेज पाऊंगा...


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Aap writer bhut kamaal ke hain but Bro 102 wala update nahi mil raha , plz send me, aap ka bhut bhut dhanyawad hovega
 
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