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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Sanju@

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भाग 108

कान पकड़कर सुगना से मिन्नते करता सोनू नियति को बेहद मासूम लग रहा था। सुगना को ऐसा लगा जैसे शायद सोनू और उसका यह मिलन एक संयोग था और उन दोनो के लिए एक सबक था। परंतु सोनू के मन में कुछ और ही चल रहा था नियति सोनू के दिमाग से खेल रही थी।

सुगना ने सोनू के सर पर हाथ रखते हुए कहा

"अब जा सुत रहा देर हो गइल बा काल सुबह अस्पताल जाए के भी बा"


सुगना और सोनू एक बार बिस्तर पर पड़े छत को निहार रहे थे…नियति सोनू और सुगना के मिलन की पटकथा लिख रही थी…


अब आगे…

अब से कुछ देर पहले माफी के लिए मिन्नतें कर रहे सोनू के सर पर हाथ फेर सुगना ने अपनी नाराजगी कम होने का संकेत दे दिया था। यह बात सुगना बखूबी जान रही थी कि उस पर आई इस आफत का कसूरवार सोनू था.. परंतु इसमें कुछ हद तक वह स्वयं भी शामिल थी।

डबल बेड के बिस्तर पर एक किनारे सुगना और दूसरे किनारे सोनू सो रहा था दोनों छोटे बच्चे सूरज और मधु बीच में सोए थे और गहरी नींद में जा चुके थे। सिरहाने पर अपना सर ऊंचा किए सुगना करवट लेकर लेटी हुई थी। सुगना का हाथ छोटी मधु के सीने पर था। सुगना का मासूम और प्यारा चेहरा नाइट लैंप की रोशनी में चमक रहा था।


सोनू उसे एकटक देखे जा रहा था। सुगना की आंखें बंद अवश्य थीं परंतु उसके मन में कल होने वाली संभावित घटनाओं को लेकर कई विचार आ रहे थे अचानक सुगना ने अपनी आंखें खोल दी और सोनू को अपनी तरफ देखते हुए पकड़ लिया।

"का देखत बाड़े? हमरा काल के सोच के डर लागत बा…"

सोनू अंदर ही अंदर बेहद दुखी हो गया। निश्चित ही सुगना कल एक अप्रत्याशित और अवांछित पीड़ा से गुजरने वाली थी। अपनी नौकरी लगने के बाद सोनू सुगना के सारे अरमान पूरे करना चाहता था उसे ढेरों खुशियां देना चाहता था…और सुगना की रजामंदी से उसे प्यार कर उसकी शारीरिक जरूरतें पूरी करना चाहता था और उसके कोमल बदन अपनी बाहों में भर अपनी सारी हसरतें पूरी करना चाहता था। परंतु वासना के आवेग में और लाली के उकसावे पर की गई उसकी एक गलती ने आज यह स्थिति पैदा कर दी थी।


सोनू कुछ ना बोला…अपनी बहन सुगना को होने वाले संभावित कष्ट के बारे में सोचकर वह रुवांसा हो गया। उसकी आंखें नम हो गई और उसने करवट लेकर अपनी नम आंखें सुगना से छुपाने का प्रयास किया परंतु सफल न हो पाया…

सुगना सोनू के अंतर्मन को पढ़ पा रही थी।सुगना के जीवन में वैसे भी संवेदनाओं का बेहद महत्व था। सोनू के दर्द को सुगना समझ पा रही थी अंदर ही अंदर पिघलती जा रही थी उसका सोनू के प्रति गुस्सा धीरे-धीरे खत्म हो रहा था।

अगली सुबह सुगना और सोनू अपने दोनों छोटे बच्चों के साथ डॉक्टर के केबिन के बाहर थे…

प्रतीक्षा हाल में बैठे सोनू और सुगना को देखकर हर कोई उन्हें एक नजर अवश्य देख रहा था आस पास बैठी महिलाएं आपस में खुसुर फुसुर कर रही थी.. ऐसी खूबसूरत जोड़ी…जैसे मां बाप वैसे ही ख़ूबसूरत बच्चे। जैसे सोनू और सुगना दोनों का सृजन ही एक दूसरे के लिए हुआ हो।

प्रतिभा सिंह…. नर्स ने पुकार लगाई। सोनू अपने ख्यालों में खोया हुआ था उसे यह बात खुद भी ध्यान न रही कि उसने अपॉइंटमेंट प्रतिभा सिंह के नाम से ली थी। सुगना को तो जैसे एहसास भी न था कि सोनू ने इस अबार्शन के लिए उसका नाम ही बदल दिया है।

प्रतिभा सिंह कौन है नर्स ने फिर आवाज़ लगाई। सोनू सतर्क हो गया वह उठा और सुगना को भी उठने का इशारा किया सुगना विस्मय भरी निगाहों से सोनू की तरफ देख रही थी परंतु सोनू ने अपने हाथ से इशारा कर उठाकर सुगना को धीरज रखने का संकेत दिया और अपने पीछे पीछे आने के लिए कहा कुछ ही देर में दोनों नर्स के पास थे।

सुगना का रजिस्ट्रेशन कार्ड बनाया जाने लगा नाम प्रतिभा सिंह…पति का नाम…

नर्स ने सोनू से पूछा अपना नाम बताइए..


संग्राम सिंह…

अपना परिचय पत्र लाए हैं..

सोनू ने एसडीएम जौनपुर का आईडी कार्ड नर्स के समक्ष रख दिया शासकीय आई कार्ड की उस दौरान बेहद अहमियत होती थी नर्स ने एक बार कार्ड को देखा फिर एक बार सोनू के मर्दाना चेहरे को। वह खड़ी तो न हुई पर उसने अपनी जगह पर ही हिलडुल कर सोनू को इज्जत देने की कोशिश अवश्य की और आवाज में अदब लाते हुए कहा

"सर आप मैडम को लेकर वहां बैठिए मैं तुरंत ही बुलाती हूं"

नर्स ने रजिस्ट्रेशन कार्ड सुगना के हाथ में थमा दिया सुगना बार-बार रजिस्ट्रेशन कार्ड पर लिखा हुआ अपना नया नाम पढ़ रही थी और पति की जगह संग्राम सिंह उर्फ सोनू का नाम देखकर न जाने उसके अंतर्मन में क्या क्या विचार आ रहे थे…

कुछ ही देर में सोनू और सुगना डॉक्टर के केबिन में थे डॉक्टर एक अधेड़ उम्र की महिला थी…


सुगना और सोनू को दोनों बच्चों के साथ देख कर वह यह यकीन ही नहीं कर पा रही थी कि सुगना दो बच्चों की मां है। उससे रहा न गया उसने सुगना से पूछा

"क्या यह दोनों आपके ही बच्चे हैं ?"

"ज …जी…" सुगना आज खुद को असहज महसूस कर रही थी। हमेशा आत्मविश्वास से लबरेज रहने वाली सुगना का व्यवहार उसके व्यक्तित्व से मेल नहीं खा रहा था।

विषम परिस्थितियां कई बार मनुष्य को तोड़ देती हैं.. सुगना अपने पाप के बोझ तले असामान्य थी और … घबराई हुई सी थी।

" लगता है आप दोनों की शादी काफी पहले हो गई थी"

सुगना को चुप देखकर डाक्टर ने खुद ही अपने प्रश्न का उत्तर देकर सुगना को सहज करने की कोशिश की..

डॉक्टर को सोनू और सुगना के यहां आने का प्रयोजन पता था… उसने देर न की। सुगना का ब्लड प्रेशर लेने और कुछ जरूरी सवालात करने के पश्चात उसने सुगना को केबिन के दूसरी तरफ बैठने के लिए कहा और फिर सोनू को अपने पास बुला कर उस से मुखातिब हुई…

डॉक्टर ने सोनू को अबॉर्शन पर होने वाले खर्च और प्रक्रिया के बारे में जानकारी दी…डॉक्टर ने उसे इस प्रक्रिया के दर्द रहित होने का आश्वासन दिलाया।

सोनू ने खुश होते हुए कहा..

"डॉक्टर साहब आप पैसे की चिंता मत कीजिएगा बस सुगना दी….जी" को कोई कष्ट नहीं होना चाहिए।

स्वाभाविक रूप से सोनू के मुख से सुगना के नाम के साथ दीदी शब्द ही निकला जिसका आधा भाग तो उसके हलक से बाहर आया परंतु आधा सोनू ने निगल लिया और दी की जगह जी कर अपनी इज्जत बचा ली।

सुगना …? डाक्टर चौंकी

"वो …सुगना इनका निक नेम है…" सोनू ने मुस्कुराते हुए डाक्टर से कहा..पर अपने दांतों से अपनी जीभ को दबाकर जैसे उसे दंड देने की कोशिश की..

शायद सोनू खुशी में कुछ ज्यादा ही जोशीला हो गया था उसकी बातें सुगना ने सुन लीं। अपने प्रति सोनू के प्यार को जानकर सुगना प्रसन्न हो गई…डाक्टर ने आगे कहा

"हां एक बात और आप दोनों का परिवार पूरा हो चुका है मैं आपको यही सलाह दूंगी कि नसबंदी करा लीजिए"।

"किसकी.?" .सोनू ने आश्चर्य से पूछा..

"या तो अपनी या अपनी पत्नी की" डाक्टर ने मुस्कुराते हुए कहा…यदि फिर कभी आप दोनों से गलती हुई तो अगली बार एबॉर्शन कराना और भी भारी पड़ेगा…

"एक और मुसीबत" सोनू बुदबुदा रहा था..पर डाक्टर ने सोनू के मन की बात बढ़ ली।

अरे यह बिल्कुल छोटा सा ऑपरेशन है खासकर पुरुषों के लिए तो यह और भी आसान है महिलाओं के ऑपरेशन में तो थोड़ी सर्जरी करनी पड़ती है परंतु पुरुषों का ऑपरेशन तो कुछ ही देर में हो जाता है..

"ठीक है डॉक्टर मैं बाद में बताता हूं"

डॉक्टर ने नर्स को बुलाकर सोनू और सुगना को प्राइवेट रूम में ले जाने के लिए कहा और कुछ जरूरी हिदायतें दी। सुगना और सोनू अपने दोनों छोटे बच्चों के साथ हॉस्पिटल के प्राइवेट कक्ष में आ चुके थे।

हॉस्पिटल का वह कमरा होटल के कमरे के जैसे सुसज्जित था। दीवार पर रंगीन टीवी और ऐसो आराम की सारी चीजें उस कमरे में उपलब्ध थी। सोनू के एसडीएम बनने का असर स्पष्ट तौर पर दिखाई पड़ रहा था। हॉस्पिटल में लाइन लगाकर इलाज पाने वाली सुगना आज एक रानी की भांति हॉस्पिटल के आलीशान प्राइवेट कक्ष में बैठी थी। परंतु बाहरी आडंबर और तड़क भड़क उसके मन में चल रही हलचल को रोक पाने में नाकाम थे। सोनू उसके बगल में बैठ गया और फिर उसकी हथेली को अपने हाथ से सहला कर उसे तसल्ली देने की कोशिश कर रहा था..

सोनू ने आखरी बार सुगना से पूछा…

"इकरा के गिरावल जरूरी बा?"

सुगना सुबकने लगी…वह मजबूर थी…

"समाज में का मुंह देखाईब…लोग इकर बाप के नाम पूछी तब?" सुगना के चेहरे पर डर और परेशानी के भाव थे…

सोनू के पास कोई उत्तर न था वह चुप ही रहा तभी सुगना ने दूसरा प्रश्न किया

" ऊ डॉक्टर नसबंदी के बारे में का कहत रहली हा…ई का होला?

सोनू अपनी बहन सुगना से क्या बात करता .. उसे पता था कि सुगना का जीवन वीरान है जिस युवती को उसका पति छोड़ कर चला गया हो और जिसके जीवन में वासना का स्थान रिक्त हो उसे नसबंदी की क्या जरूरत थी…फिर भी उसने कहा…

"ऊ बच्चा ना हो एकरा खातिर छोटा सा आपरेशन होला…"

सुगना ने पूरा दिमाग लगाकर इस समझने की कोशिश की परंतु आधा ही समझ पाई। इससे पहले की वह अगला प्रश्न पूछती 2 - 3 नर्स कमरे में आई उन्होंने सुगना को हॉस्पिटल के वस्त्र पहनाए और उसे लेकर जाने लगी सोनू को एक पल के लिए ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कोई उसके कलेजे के टुकड़े को उससे दूर कर रहा हो..

सोनू सुगना को होने वाले संभावित कष्ट को सोचकर भाव विह्वल हो रहा था। छोटा सूरज भी अपनी मां को जाते देख दुखी था..

सुगना …सोनू के पीछे कुछ दूर खड़े सूरज के पास अपनी बाहें फैलाए हुए आ रही थी.. वह सूरज को शायद अपनी गोद में उठाना चाहती थी परंतु न जाने क्यों सोनू को कौन सा भ्रम हुआ सोनू की भुजाएं सुगना को अपने आलिंगन में लेने के लिए तड़प उठी..

परंतु मन का सोचा हमेशा सच हो या आवश्यक नहीं..

सुगना सोनू को छोड़ अपने पुत्र सूरज के पास पहुंचकर उसे गोद में उठा चुकी थी और उसके माथे तथा गाल को चुनने लगी..

परंतु सूरज विलक्षण बालक था उसने एक बार फिर सुगना के होठ चूम लिए…

पास खड़ी नर्सों को यह कुछ अटपटा अवश्य लगा परंतु सूरज की उम्र ऐसी न थी जिससे इस चुंबन का दूसरा अर्थ निकाला जा सकता था परंतु सोनू को यह नागवार गुजर रहा था। सोनू ने सूरज की यह हरकत कई बार देखी थी विशेषकर जब हुआ सोनी और सुगना के चुंबन लिया करता था। सोनू ने भी कई बार अपने तरीके से उसे समझाने की कोशिश की परंतु नतीजा सिफर ही रहा।

बहरहाल सुगना धीमे धीमे चलते हुए ऑपरेशन थिएटर की तरफ चल पड़ी और पीछे पीछे अपनी पुत्री मधु को अपनी गोद में लिए हुए सोनू .. छोटा सूरज अपने मामा सोनू की उंगली पकड़ा हुआ अपनी मां को ऑपरेशन थिएटर की तरफ जाते हुए देख रहा था उसे तो यह ईल्म भी न था कि उसने जिस का हाथ थामा हुआ था वही उसकी मां की इस दशा का कारण था..

आइए सुगना को उसके हाल पर छोड़ देते हैं और आपको लिए चलते हैं आप सबके प्रिय सरयू सिंह को जो युवा सोनी और विकास के बीच नजदीकियों को उजागर करने के लिए उतावले हो रहे थे कहते हैं जब आप अपने उद्देश्य के पीछे जी जान से लग जाए तो आप से उसकी दूरी लगातार कम होने लगती है।


सरयू सिंह ने दिनभर मेहनत की और विकास तथा सोनी के दिन भर के क्रियाकलापों के बारे में जानने की भरसक कोशिश की। उनकी मेहनत जाया न गई उन्हें कुछ पुख्ता सुराग मिल चुके थे और अगले दिन वह सोनी के नर्सिंग कॉलेज आ गए.. जिस तरह वह सोनी और विकास को रंगे हाथ पकड़ना चाह रहे थे शायद वह इतनी आसानी से संभव न था परंतु नियति उनके साथ थी…

नर्सिंग कॉलेज के बाहर बनी छोटी गुमटी में चाय की चुस्कियां ले रहे सरयू का ध्यान नर्सिंग कॉलेज के बाहर आने जाने वाली लड़कियों पर था …तभी पास बैठे एक और बुजुर्ग ने सरयू सिंह से पूछा..

"आपके बेटी भी एहिजा पढ़ेले का?"

सरयू सिंह का मिजाज गरम हो गया। उनका दिलो-दिमाग सोनी की गदराई जवानीको भोगने वाले विकास को रंगे हाथों पकड़ने को था परंतु उस व्यक्ति ने उम्र के स्वाभाविक अंतर को देखते हुए जो रिश्ता सोनी और सरयू सिंह में स्थापित कर दिया था वह सरयू सिंह को कतई मान्य न था। उन्होंने उस व्यक्ति की बातों पर कोई प्रतिक्रिया न दी और यथाशीघ्र अपनी चाय का गिलास खाली कर गुमटी वाले को पैसे देने लगे वैसे भी सोनी को रंगे हाथ पकड़ने के लिए वह पिछले कुछ घंटों से कभी एक गुमटी कभी दूसरी गुमटी पर घूम रहे थे.. और उनकी निगाहें उन गदराए नितंबों को ढूंढ रही थी जिन्होंने उनका सुख चैन छीन रखा था।

सरयू सिंह गुमटी से बाहर निकलने ही वाले थे तभी उन्हें विकास कॉलेज के गेट की तरफ आता दिखाई दिया सरयू सिंह ने खुद को एक बार फिर गुमटी के छज्जे की आड़ में कर लिया…ताकि वह विकास की नजरों में ना सके..

सरयू सिंह को वापस गुमटी में आते देख उस बुजुर्ग ने फिर कहा..

"आजकल के लफंगा लड़का लोग के देखा तानी अभी ई रईसजादा आईल बा अभी गेट से एगो लड़की आई और दोनों जाकर बसंती सिनेमा हाल में बैठ के सिनेमा देखिहे सो…"

गुमटी वाला भी चुप ना रहा उसने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा "अरे ओ सिनेमा हॉल में सब चुम्मा चाटी करे जाला सिनेमा के देखेला…"

सरयू सिंह बड़े ध्यान से उन दोनों की बातें सुन रहे थे.. उनकी बात सच ही थी जैसे ही मोटरसाइकिल नर्सिंग कॉलेज के गेट पर पहुंची… कुछ ही पलों बाद सोनी आकर मोटरसाइकिल पर बैठ गई और वह दोनों फटफटीया में बैठ बसंती हाल की तरफ बढ़ चले..

सरयू सिंह की मेहनत रंग लाई…कल की तफ्तीश और आज उनका इंतजार खात्मे पर था…


उधर सोनी और विकास बाहों में बाहें डाले बसंती टॉकीज की बालकनी में प्रवेश कर रहे थे। बाबी पिक्चर को लगे कई दिन बीत चुके थे और उसे देखने वाले इक्का-दुक्का ग्राहक ही बचे थे वह भी नीचे फर्स्ट क्लास और सेकंड क्लास में थे । बालकनी में कुछ लोग ही थे वह भी जोड़े में… अपनी अपनी बाबी के साथ..

सरयू सिंह को यह समझते देर न लगी की सोनी और विकास निश्चित ही बालकनी में होंगे.. आखिरकार सरयू सिंह ने भी बालकनी की टिकट खरीदी अपने चेहरे को गमछे से ढकने की कोशिश करते हुए धीरे-धीरे बालकनी जाने वाली सीढ़ियां चढ़ने लगे…

ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सरयू सिंह की मेहनत सफल होने वाली थी…परंतु इस वक्त उन्हें अकेला छोड़ देते हैं और आपको लिए चलते वापस लखनऊ के हॉस्पिटल में जहां सुगना ऑपरेशन थिएटर से बाहर आ रही थी..

कष्ट और दुख खूबसूरत चेहरे की रौनक खींच लेते हैं सुगना का तेजस्वी चेहरा मुरझाया हुआ और बाल बिखरे हुए थे। वह अर्ध निंद्रा में थी…कभी-कभी अपनी आंखें खोलती और फिर बंद कर लेती …. शायद वह सूरज को ढूंढ रही थी। वार्ड ब्वाय उसके स्ट्रेचर को घसीटते हुए हुए उसके कमरे कमरे की तरफ आ रहे थे।

सोनू को वार्ड बॉय की तेजी और लापरवाही कतई पसंद ना आ रही थी। पर उनका क्या? उनका यह रोज का कार्य था…. उसी में हंसना उसी में खेलना उसी में मजाक और न जाने क्या-क्या…


सोनू एक बार फिर मधु को गोद में लिए और सूरज को अपनी उंगली पकड़ाए सुगना के पीछे तेजी से चल रहा था…मासूम सूरज की चाल और दौड़ जैसी हो चली थी। मां के बाहर आने से वह भी खुश था….

"मामा मां ठीक हो गईल" सूरज ने मासूम सा प्रश्न किया

और सोनू की आंखें एक बार फिर द्रवित हो गई।

सुगना की हालत देख कर सोनू एक बार फिर अपराध बोध से ग्रस्त हो गया निश्चित सुगना को मिले इस कष्ट का कारण वह स्वयं था। जैसे-जैसे वक्त बीता गया सुगना सामान्य होती गई और शाम होते होते सुगना ने अपना खोया हुआ तेज प्राप्त कर लिया बिस्तर के सिरहाने पर उठकर बैठते हुए उसने चाय पी और अपने गमों का उसी तरह परित्याग कर दिया जिस तरह वह अपने अनचाहे गर्भ को त्याग कर आई थी।

अगली सुबह सुगना पूरी तरह सामान्य हो चुकी थी अंदर उसकी योनि और गर्भाशय में गर्भपात का असर अवश्य था परंतु बाकी पूरा शरीर और दिलों दिमाग खुश था। वह खुद को सामान्य महसूस कर रही थी। बच्चों के साथ खेलना और कमरे में चहलकदमी करते हुए देख कर सोनू भी आज बेहद खुश था। आज सुगना को अस्पताल से छुट्टी मिलने वाली थी।

वह डॉक्टर से मिलकर उन्हें धन्यवाद देने गया और एक बार डॉक्टर में फिर उसे उस नसबंदी की बात की याद दिला दी जिसे पर नजर अंदाज कर रहा था।

सोनू किस मुंह से सुगना से कहता कि दीदी तुम नसबंदी करा लो और मेरे साथ खुलकर जीवन के आनंद लो। अब तक सोनू का सामान्य ज्ञान बढ़ चुका था उसे पता था कि पुरुष या महिला में से यदि कोई एक भी नसबंदी करा लेता है तो अनचाहे गर्भ की समस्या से हमेशा के लिए निदान मिल जाता है परंतु सुगना को नसबंदी के लिए कहना सर्वथा अनुचित था।


सोनू बेचैन हो गया उसका दिमाग एक ही दिशा में सोचने लगा सुगना उसके दिलो-दिमाग पर छा चुकी थी उसे और कुछ नहीं रहा था " या तो सुगना या कुछ नहीं" यह शब्द बार-बार उसके दिमाग में घूमने लगे और कुछ ही देर में सोनू अकेला ऑपरेशन थिएटर के सामने खड़ा था…

सुगना सोनू का इंतजार कर रही थी दोपहर का भोजन कमरे में आ चुका था सुगना को भूख भी लग रही थी वह कमरे से निकलकर कभी लॉबी में इधर देखती कभी उधर परंतु सोनू न जाने कहां चला गया था तभी उसे कुछ वार्ड बॉय एक स्ट्रेचर को खींचकर लाबी में आते हुए दिखाई पड़े धीरे-धीरे स्टेशन और सोना के बीच की दूरी कम हो रही थी और कुछ ही देर में हुआ स्ट्रेचर सुगना के बिल्कुल करीब आ गया स्ट्रेचर पर सोनू को लेटे हुए देखकर सुगना की सांसें फूलने लगीं

"अरे इसको क्या हुआ??" सुगना ने वार्ड बॉय से पूछा

अचानक आए कष्ट और दुख के समय आप अपने स्वाभाविक रूप में आ जाते हैं और यह भूल जाते हैं कि उस वक्त आप किस स्थिति और किस रोल में हैंl सुगना यहां सोनू की पत्नी के किरदार में थी परंतु सोनू को इस अवस्था में देखकर वह भूल गई और उसने जिस प्रकार सोनू को संबोधित किया था वह एक संभ्रांत पत्नी अपने पति को कतई नहीं कर सकती थी… और वह भी तब जब उसका पति एसडीम जैसे सम्मानित पद पर हो। वार्ड बॉय को थोड़ा अजीब सा लगा परंतु उसने कहा…

"साहब ने नसबंदी कराई है"

सुगना किंकर्तव्य विमुढ अवाक खड़ी हो गई…दिमाग घूमने लगा।

कुछ ही देर में उसी कमरे में एक और बेड लगाकर सोनू को उस पर लिटा दिया गया…

सुगना खाना पीना भूल कर…कभी सोनू कभी बाल सहलाती कभी उसकी चादर ठीक करती वह बेसब्री से शुरू के पलकें खोलने का इंतजार कर थी..

सुगना के दिमाग में ड्रम बज रहें थे.."नसबंदी?… पर क्यों?

वार्ड बॉय ने जो कहा था उसे सोच सोच कर सुगना परेशान हो रही थी उसके लिए यह यकीन करना कठिन हो रहा था कि एक युवा मर्द जिसका विवाह अगले कुछ महीनों में होने वाला था वह नसबंदी का ऑपरेशन करा कर हॉस्पिटल में लेटा हुआ था…

अभी तो उसे सोनू के लिए लड़की पसंद करना था और धूमधाम से उसका विवाह करना था। सुगना ने न जाने सोनू के लिए क्या-क्या सपने संजोए थे…क्या होगा यदि यह बात उसकी मां पदमा को पता चलेगी ? हे भगवान यह क्या हुआ? सोनू ने ऐसा क्यों किया?

सुगना के दिमाग में ढेरों प्रश्न जन्म लेने लगे कुछ के उत्तर उसके दिल ने देने की कोशिश की .. परंतु उन उत्तरों पर वह सोचना कतई नहीं चाहती थी। उसने दिल में उठ रहे विचारों को दफन करने की कोशिश परंतु शायद यह संभव न था। रह रह कर वह विचार अपना आकार बढ़ा रहे थे।


सुगना बदहवास होने लगी.. ऐसा लगा जैसे वह गश खाकर गिर पड़ेगी…

शेष अगले भाग में
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है
कहानी में एक जबरदस्त मोड़ आ गया है सोनू सुगना को दिल से चाहने लग गया है वह अपनी जिंदगी में किसी और को नही आने देगा इसलिए उसने नसबंदी करा ली है वही दूसरी और सरयू सिंह सोनी के कॉलेज जाकर उसे रंगे हाथ पकड़ने के लिए उनका पीछा करता है और उनके बारे में सबूत जुटा रहा है देखते हैं आगे नियति में क्या लिखा है क्या सुगना सोनू को मिल पाएगी क्या सोनी को सरयू चोद पाएगा देखते हैं अगले अपडेट में क्या होता है
 
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Lovely Anand

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बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है
कहानी में एक जबरदस्त मोड़ आ गया है सोनू सुगना को दिल से चाहने लग गया है वह अपनी जिंदगी में किसी और को नही आने देगा इसलिए उसने नसबंदी करा ली है वही दूसरी और सरयू सिंह सोनी के कॉलेज जाकर उसे रंगे हाथ पकड़ने के लिए उनका पीछा करता है और उनके बारे में सबूत जुटा रहा है देखते हैं आगे नियति में क्या लिखा है क्या सुगना सोनू को मिल पाएगी क्या सोनी को सरयू चोद पाएगा देखते हैं अगले अपडेट में क्या होता है
धन्यवाद
लाजबाब अपडेट भाई
थैंक्स
 

Ghevade123

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सोनु ने अपने पद का ऊपयोग करके सगुना का गर्भ पात कराया यह बहोत बढिया काम हो गया लेकिन जो सोनु ने नसबंदि करायी यह गलत कर दिया सोनु ने ऐसा सपने में सोनु ने नहि करना चाहिए था ईस बात से मुझे बहोत दुख हुवा है | अब सरयु जी कि जो इच्छा सोनी के प्रेती थी जल्द से जल्द पुरि हो जा ये |
 

AS25

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भाग 100
सुगना अपने मन की अवस्था कतई बताना नहीं चाहती थी। सोनू उसके ख्वाबों खयालों में आकर पिछले कई दिनों से उसे स्खलित करता आ रहा था …

"अच्छा सोनुआ तोर भाई ना होेखित तब?"

"काश कि तोर बात सच होखित"

सुगना में बात समाप्त करने के लिए यह बात कह तो दी परंतु उसके लिए यह शब्द सोनू के कानों तक पहुंच चुके थे और उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा…


सुगना की बात में छुपा हुआ सार सोनू अपने मन मुताबिक समझ चुका था…उसे यह आभास हो रहा था की सुगना के मन में भी उसको लेकर कामूक भावनाएं और ख्याल हैं परंतु वह झूठी मर्यादा के अधीन होकर इस प्रकार के संबंधों से बच रहीं है…नजरअंदाज कर रही है…. सोनू अपने मन में आगे की रणनीति बनाने लगा सुगना को पाना अब उसका लक्ष्य बन चुका था…

अब आगे...

सरयू सिंह के घर पर आज मेला लगा हुआ था बनारस से पूरी पलटन सरयू सिंह के घर आ चुकी थी..

आखिरकार वह दीपावली आ गई जिसका इंतजार सबको था।

सलेमपुर और उसके आसपास के गांव के लोग सरयू सिंह द्वारा आयोजित भंडारे का इंतजार कर रहे थे..

सरयू सिंह पंडित का इंतजार कर रहे थे और पदमा अपनी बेटी मोनी का जो फूल तोड़ने गई थी पर अब तक वापस न लौटी थी..

कजरी सुगना का इंतजार कर रही थी जो अपने कमरे में तैयार हो रही थी…

"अरे सुगना जल्दी चल पंडित जी आवत होइहें तैयारी पूरा करे के बा…."

सुगना इंतजार कर रही थी लाली का जिसे आकर सुगना के पैरों में आलता लगाना था…

सोनी इंतजार कर रही थी विकास का जो अब तक बनारस से सलेमपुर नहीं पहुंचा था…

और सोनू को इंतजार था अपनी ख्वाबों खयालों की मल्लिका बन चुकी सुगना का…जो अपनी कोठरी में तैयार हो रही थी..

आखिरकार सुगना का इंतजार खत्म हुआ लाली उसके कमरे में गई और सुगना को तैयार होने में मदद की और कुछ ही समय पश्चात सजी-धजी सुगना अपनी कोठरी से बाहर आ गई…

सुगना ने एक बेहद ही खूबसूरत गुलाबी रंग की साड़ी पहनी हुई थी जिसमें उसका मदमस्त बदन और सुडौल काया दिखाई पड़ रही थी…

सजी-धजी सुगना को सामने देख सोनू उसे देखता ही रह गया..

सुगना धीरे-धीरे सोनू के पास आ गई और उसने उसके गाल पर लगे तिनके को हटाते हुए कहा

"एसडीएम साहब चलअ पूजा में बैठे के तैयारी कर…" सुगना ने जिस अल्हड़पन से सोनू के गाल छुए थे वह सोनू को अंदर तक गुदगुदा गया उसे अपनी बड़ी बहन सुगना एक अल्हड़ और मदमस्त युवती प्रतीत होने लगी।


धीरे धीरे सबका इंतजार खत्म हुआ…

पंडित आ चुका था और सरयू सिंह एक बार फिर उत्साहित थे पूजा की तैयारियां होने लगी… सोनू के लिए आज विशेष पूजन का कार्यक्रम रखा गया था सुगना के आने के बाद सोनू हंसी खुशी पंडित के सामने बैठ गया और पूजा की विधियों में भाग लेने लगा।


सुगना कभी उसके दाएं बैठती कभी बाएं और अपने भाई की मदद करती। जब जब दूर खड़ी नियति सुगना और सोनू को एक साथ देखती वो अपना तना बाना बुनने लगती…

सरयू सिंह अपनी सुगना और सोनू को साथ देखकर प्रसन्न थे। सोनू जिस तरह से अपनी बहन का ख्याल रखता था सरयू सिंह को यह बात बेहद पसंद आती थी। सोनू की सफलता ने निश्चित ही सबका दिल जीत लिया था विशेषकर सरयू सिंह का। भाई और बहन का यह प्यार देख सरयू सिंह हमेशा प्रसन्न रहते । उनके मन में हमेशा यही भावना आती कि कालांतर में उनके जाने के पश्चात भी सुगना का खैर ख्याल रखने वाला कोई तो था जो उससे बेहद प्यार करता था। परंतु सरयू सिंह को क्या पता था कि भाई बहन का प्यार अब एक नया रूप ले चुका था।

पंडित जी ने मंत्रोच्चार शुरू कर दिए… कृत्रिम ध्वनि यंत्रों से आवाजें चारों तरफ गूंजने लगी। गांव वालों का भी इंतजार खत्म हुआ वह अपने घर से निकल निकल कर सरयू सिंह के दरवाजे पर इकट्ठा होने लगे।


सोनी का इंतजार भी खत्म हुआ। विकास अपनी फटफटिया पर बैठ अपनी महबूबा और पत्नी सोनी के लिए बनारस से आ चुका था.. सोनी घर के आंगन से दरवाजे की ओट लेकर बार-बार विकास को देख रही थी परंतु विकास अभी पुरुष समाज में सबसे मिल रहा था विदेश जाने का असर उसके शरीर और चेहरे पर दिखाई पड़ रहा था सजा धजा विकास एक अलग ही शख्सियत का मालिक बन चुका था सरयू सिंह… विकास और सोनू की तुलना करने से बाझ न आते।

दोनों अपनी अपनी जगह सफलता की सीढ़ियां चढ़ रहे थे एक तरफ सोनू जिसने अपनी लगन और मेहनत से यह मुकाम हासिल किया था दूसरी तरफ विकास जिसे उसके माता-पिता ने पढ़ने विदेश भेज दिया था जहां से उसकी सफलता की राह भी आसान हो गई थी।

मौका देख कर सोनी आगन से बाहर आई और धीरे धीरे दालान के पीछे बने बगीचे की तरफ चली गई विकास ने सोनी को जाते देख लिया और उसके पीछे चल पड़ा।


विकास और सोनी नीम के पेड़ की ओट में एक दूसरे के आलिंगन में आ गए थे कई महीनों बाद यह मिलन बेहद सुकून देने वाला था …परंतु कुछ ही पलों में वह वासना के गिरफ्त में आ गया । विकास ने सोनी के गदराए नितंबों को अपने हथेलियों से सहलाते उसने उन्हें उत्तेजक तरीके से दबा दिया सोनी उसका इशारा बखूबी समझ चुकी थी उसने विकास के कानों में धीरे से कहा "अभी ना रात में…_

"अच्छा बस एक बार छुआ द"

विकास सोनी की बुर पर हाथ फेरना चाहता था परंतु सोनी शर्मा रही थी। विकास के आलिंगन में आकर वह पूरी तरह उत्तेजित हो चुकी थी और बुर के होठों पर काम रस छलक आया था।


ऐसी अवस्था में वह विकास की उंगलियों के अपनी बुर तक आने से रोकना चाह रही थी परंतु विकास की इस इच्छा को रोक पाना उसके बस में ना था ।

विकास ने उसके होंठों को चूमते हुए अपनी हथेलियां उसकी बुर तक पहुंचा दी और अपनी मध्यमा से बुर के होठों की लंबाई नापते हुए उन्हें सोनी के काम रस से भिगो लिया …उसने मध्यमा उंगली से बुर की गहराई नापने की कोशिश की परंतु सोनी ने उसका हाथ खींच कर बाहर निकाल दिया… और बोला

" अभी पूजा पाठ के टाइम बा पूजा में मन लगाइए ई कुल रात में…"

सोनी ने बड़ी अदा से विकास से दूरी बनाई और बलखाती हुई एक बार फिर पूजा स्थल की तरफ बढ़ गई। विकास की कामुक नजरें सोनी की बलखाती मादक कमर पर टिकी हुई थी। उसे रात्रि का इंतजार था वह अपने मन में रात्रि में सुखद मिलन की कामना लिए पूजा स्थल की तरफ चल पड़ा..

उधर मोनी घर के पीछे बनी बाड़ी में फूल लेने गई थी उसने कुछ फूल तोड़े परंतु तभी उसे बहुत जोर की सूसू लग गई घर में भीड़-भाड़ थी उसे पता था गुसलखाना खाली न होगा उसने हिम्मत जुटाई और बाग के एक कोने में बैठ कर मूत्र विसर्जन करने लगी। उसी समय पंडित जी का एक सहयोगी पूजा में प्रयुक्त होने वाली कोई विशेष घास लेने उसी बाग में आ पहुंचा।

मोनी ने उसे देख लिया उठ कर खड़ा हो जाना चाहती थी पर मूत्र की धार को रोक पाना उसके वश में न था उसने अपने लहंगे से अपने नितंबों और पैरों को पूरी तरह ढक लिया और मूत्र की धार को संतुलित करते हुए मूत्र विसर्जन करने लगी…वह अपने हाथों से आसपास पड़ी घास को छू रही थी…अल्हड़ मोनी खुद को संयमित किए हुए यह जताना चाह रही थी कि जैसे उसने उस व्यक्ति को देखा ही ना हो।

पंडित जी का शिष्य दर्जे का हरामी था…अनजान बनते हुए मोनी के पास आ गया…और बोला..

" एहीजा बैठ के आराम करत बाडू जा सब केहू फूल के राह दिखाता "

मोनी सकपका गई वह कुछ कह पाने की स्थिति में न थी.. मोनी की पेंटी घुटनों पर फंसी हुई थी और कोरे और गुलाबी नितंब अनावृत थे…यद्यपि यद्यपि मोनी के लहंगे ने उसके अंगों को ढक रखा था परंतु मोनी को अपनी नग्नता का एहसास बखूबी हो रहा था।

मोनी ने उसे झिड़का

"जो अपन काम कर हम का करतानी तोरा उसे का मतलब?"

वह लड़का वहां से कुछ दूर हट तो गया परंतु वहां से गया नहीं उसने अंदाज लिया था की मोनी क्या कर रही है..

अचानक मोनी द्वारा अपनी उंगलियों से उखाड़ ली जा रही घास में से एक पतला परंतु लंबा कीड़ा निकलकर मोनी के लहंगे की तरफ आया गांव में उसे किसी अन्य नाम से जाना जाता होगा परंतु वह सांप न था।

मोनी हड़बड़ा गई और अचानक उठने की कोशिश में वह लड़खड़ा गिर पड़ी…और मोनी के नितंबों की जगह कमर ने धरती का सहारा लिया और मोनी के पैर हवा में हो गए…घुटनों पर फंसी लाल चड्डी गोरे गोरे जांघों के संग दिखाई पड़ने लगी..

वह लड़का वह लड़का मोनी के पास आया और इससे पहले कि वह सहारा देकर मोनी को उठाता उसने मोनी के खजाने को देख लिया बेहद खूबसूरत और हल्की रोएंदार बुर के गुलाबी होंठ को देखकर वह मदहोश हो गया…गुलाबी होठों पर मूत्र की बूंदे चमक रही थी…


वासना घृणा को खत्म कर देती है अति कामुक व्यक्ति वासना के अधीन होकर ऐसे ऐसे कृत्य करते हैं जो शायद बिना वासना के कतई संभव नहीं हो सकते।

उस व्यक्ति की जीभ लपलपाने लगी यदि मोनी उसे मौका देती तो वह मोनी के बुर के होठों पर सीप के मोतियों की तरह चमक रही मूत्र की बूंदों को अपनी जिह्वा से चाट चाट कर साफ़ कर देता…

उस युवक के होंठो पर लार और लंड पर धार आ गई..

उसने मोनी को उठाया…. मोनी उठ खड़ी हुई और अपने हाथों से अपनी लाल चड्डी को सरकाकर अपने खजाने को ढक लिया…

और बोली …

"पूजा-पाठ छोड़कर एही कुल में मन लगाव …..भगवान तोहरा के दंड दीहे…" मोनी यह कह कर जाने लगी।

लड़का भी ढीठ था उस ने मुस्कुराते हुए कहा

"भगवान त हमरा के फल दे देले …हमरा जवन चाहिं ओकर दर्शन हो गइल…"

मोनी ने उसे पलट कर घूर कर देखा और अपनी हथेलियां दिखाकर उसे चांटा मारने का इशारा किया…और अपने नितंब लहराते हुए वापस चली गई।

उसने तोड़े हुए फूल धोए वापस आकर पूजा में सुगना का हाथ बटाने लगी..

धीरे धीरे पंडित जी के मंत्र गति पकड़ते गए और सुगना सोनू के बगल में बैठ अपने हाथ जोड़े अपने इष्ट से उसकी खुशियां मांगती रही और उधर सोनू अपने भगवान से सुगना को मांग रहा था…

पूजा में बैठे परिवार के बाकी सदस्य कजरी पदमा सोनू की खुशियों के लिए कामना कर रहे थे दूर बैठे सरयू सिंह सुगना के चेहरे को देखते और उसके चेहरे पर उत्साह देखकर खुश हो जाते सोनू की सफलता ने सुगना के जीवन में भी खुशियां ला दी थी…

पूजा पाठ खत्म हुआ और सोनू ने सबसे पहले अपनी मां के चरण छुए फिर सरयू सिंह के फिर कजरी के परंतु आज वह सुगना के चरण छूने में हिचकिचा रहा था…न जाने उसके मन में क्या चल रहा था परंतु सोनू सुगना के चरण छुए बिना वहां से हट जाए यह संभव न था पद्मा ने सोनू से कहा

"अरे जवन तोहरा के ए लायक बनावले बिया ओकर पैर ना छुवाला…"


सोनू के मन में चल रहा द्वंद्व एक ही पल मैं निष्कर्ष पर आ गया उसने सुगना के पैर छुए और गोरे गोरे पैरों पर आलता लगे देख एक बार उसका शरीर फिर सिहर गया..

इस समय वासना मुक्त सुगना ने सोनू के माथे पर हाथ फेरा और बोला

"भगवान तोहरा के हमेशा खुश राखस और तोहार सब इच्छा पूरा करस और आगे बड़का कलेक्टर बनावस " सुगना की आंखों में खुशी के आंसू थे भावनाएं उफान पर थी और एक बड़ी बहन अपने छोटे भाई के लिए उसकी खुशियों की कामना कर रही थी। सुगना की मनोस्थिति देखकर नियति का मन भी द्रवित हो रहा था परंतु विधाता ने जो सुगना के भाग्य में लिखा था वह होना था।

सोनू घूम घूम कर सभी बड़े बुजुर्गों के चरण छूने लगा और सब से आशीर्वाद प्राप्त करता गया सब जैसे उसे खुश होने का ही आशीर्वाद दे रहे थे और सोनू की सारी खुशियां सुगना अपने घागरे में लिए घूम रही थी…

यदि ऊपर वाले की निगाहों में दुआओं का कोई भी मोल होता तो विधाता को सोनू की खुशियां पूरी करने के लिए मजबूर हो जाना पड़ता…

परंतु सोनू जो मांग रहा था वह पाप था। अपनी ही बड़ी बहन से संबंध बनाने की सोनू की मांग अनुचित थी परंतु दुआओं का जोर विधाता को मजबूर कर रहा था..

बाहर अचानक हलचल तेज हो गई और गांव वालों की भीड़ पंक्तिबध होकर भोज का आनंद लेने के लिए जमीन पर बैठ गई…

सोनू ने आज दुआ बटोरने में कोई कमी ना रखी थी वह एक बार फिर गांव वालों को अपने हाथों से भोजन परोसने लगा एक एसडीएम द्वारा अपने गांव वालों को अपने हाथों से भोजन कराते देख सब लोग सोनू की सहृदयता के कायल हो गए और उन्होंने उसे जी भर कर आशीर्वाद दिया।


दुआओं में बहुत ताकत होती है यदि आप अपने व्यवहार और कर्मों से किसी की दुआ में स्थान पाते हैं तो समझिए की विधाता ने आपको निश्चित ही खास बनाया है…

सोनू की खुशियों को पूरा करने के लिए विधाता भी मजबूर थे और नियति भी सोनू और सुगना का मिलन अब नियति की प्राथमिकता बन चुकी थी।

परंतु सुगना कभी सोच भी नहीं सकती थी कि सोनू पूजा जैसे पवित्र कार्य के पश्चात भी भगवान से वरदान के रूप में उससे अंतरंगता मांगेगा । वह यह बात अवश्य जानती थी की सोनू के मन में उसे लेकर कामुकता भरी हुई है और हो सकता है उसने अपनी वासना जन्य सोच को लेकर अपने ख्वाबों खयालों में उसके कामुक बदन को याद किया हो जैसे वह स्वयं किया करती थी परंतु अपनी ही बड़ी बहन से संभोग ….. छी छी सोनू इतना गिरा हुआ नहीं हो सकता परंतु जब जब उसे वह ट्रेन की घटना याद आती है घबरा जाती।

खैर जिसे सोनू के लिए दुआ मांगनी थी उसने दुआ मांगी जिसे आशीर्वाद देना था उसने आशीर्वाद दिया और अब सोनू अपने परिवार के साथ बैठकर भोजन का आनंद ले रहा था आंगन में सरयू सिंह, उनका साथी हरिया, सोनू और विकास एक साथ बैठे थे…छोटा सूरज भी अपने पिता सरयू सिंह की गोद में बैठा हुआ था …बाकी सारे बच्चे पहले ही खाना खा चुके थे .

सुगना खाना परोस रही थी और सोनू बार-बार सुगना को देख मदहोश हो रहा था वह साड़ी के पीछे छुपी छुपी सुगना की गोरी जांघें ब्लाउज के अंदर की भरी भरी चूचियां चिकना पेट और गदराई हुई कमर…

सोनू की भूख और प्यास मिट गई थी उसे सिर्फ और सिर्फ सुगना चाहिए थी पर कैसे,? उसने मन ही मन यह सोच लिया कि वह यहां से जाने के बाद बनारस में उससे और भी नजदीकियां बढ़ आएगा और खुलकर अपने प्यार का इजहार कर देगा…उसे यकीन था कि जब उसकी सुगना दीदी यह सुनेगी कि वह उसकी सगी बहन नहीं है तो निश्चित ही उसका भी प्रतिरोध धीमा पड़ेगा और मिलन के रास्ते आसान हो जाएंगे जाएंगे…

सोनू का एकमात्र सहारा उसकी लाली दीदी भी सज धज कर खाना परोस रही थी …सोनू को पता था चाहे वह अपनी वासना को किसी भी मुकाम पर ले जाए उसका अंत लाली की जांघों के बीच ही होना था।

घर की सभी महिलाएं और पुरुष अपने अपने निर्धारित स्थानों पर आराम करने चले गए करने और विकास और सोनू अगल-बगल लेटे हुए अपने अपने मन में आज रात की रणनीति बनाने लगे…


सोनू लाली से प्रेम युद्ध की तैयारियां करने लगा…और विकास अपनी पत्नी को बाहों में लेकर उसे चोदने की तैयारी करने लगा…

उधर लाली का सुगना को छेड़ना जारी था…जब-जब सुगना और लाली एकांत में होती लाली बरबस ही वही बात छोड़ देती। सोनू की मर्दानगी की तुलना सभी पुरषो से की जाती और सोनू निश्चित ही भारी पड़ता…सुगना चाह कर भी सरयू सिंह को इस तुलना में शामिल न कर पाती….और बातचीत का अंत हर बार एक ही शब्द पर जाकर खत्म होता काश …सोनू सुगना का भाई ना होता…


सोनू यह बात सुगना के मुख से भी सुन चुका था कि "काश वह उसका भाई ना होता…" और यही बात उसकी उम्मीदों को बल दिए हुए थी…

दिन का दौर खत्म हुआ सुनहरी शाम आ चुकी थी आ चुकी थी शाम को रोशन करने के लिए दीपावली की पूजा के लिए तैयारियां फिर शुरू हो गई..

एक बार फिर सुगना और लाली तैयार होने लगीं सोनू द्वारा अपनी दोनों बड़ी बहनों के लिए लाया गया लहंगा चोली एक से बढ़कर एक था सुगना और लाली दोनों अतिसुंदर वस्त्रों के आवरण में आकर और भी खूबसूरत हो गई ..

सोनू अब तक अपने दोनों बहनों के लिए कई वस्त्र खरीद चुका था उसे अब पूरी तरह स्त्रियों के वस्त्रों की समझ आ चुकी थी चूचियों के साइज के बारे में भी उसका ज्ञान बढ़ चुका था और चूचियों के बीच गहरी घाटी कितनी दिखाई पड़े और कितनी छुपाई जाए इसका भी ज्ञान सोनू को प्राप्त हो चुका था।

आज आज सुगना और लाली ने जो ब्लाउज पहना था वह शायद सोनू ने विशेष रूप से ही बनवाया था गोरी चूचियों के बीच की घाटी खुलकर दिखाई पड़ रही यदि उन पर से दुपट्टे का आवरण हट जाता तो वह निश्चित ही पुरुषों का ध्यान खींचती।

सुगना ने नाराज होते हुए कहा

"लाली ते पगला गईल बाड़े …सोनुआ से ई सब कपड़ा मांगावेले…. हम ना पहनब …. सीधा-साधा पाके ते ओकरा के बिगाड़ देले बाड़े अइसन चूची दिखावे वाला कपड़ा हम ना पहनब…

निराली थी सुगना…. आज भी वह अपने ही भाई का पक्ष ले रही थी…. लाली ने कुछ सोचा और कहा

"देख बड़ा साध से ले आईल बा…ना पहिनबे त उदास हो जाई"


लाली मन ही मुस्कुरा रही थी और सुगना शर्मा रही थी आखरी समय पर पूर्व निर्धारित वस्त्र की जगह अन्य वस्त्र पहनने का निर्णय करना कठिन था …आखिरकार सुगना और लाली ने सोनू के द्वारा लाए हुए लहंगा और चोली को अपने शरीर पर धारण किया और एक दूसरे को देख कर अपनी खूबसूरती का अंदाजा लगा लिया उस दौरान आदम कद आईने सुगना के घर में बनारस में तो उपलब्ध थे पर सलेमपुर में नहीं…

सुगना अपनी सुंदरता को लेकर आज भी सचेत थी अपने वस्त्रों को दुरुस्त कर उसने लाली से पूछा

" देख ठीक लागत बानू?"

"हमरा से का पुछत बाड़े जाकर सोनुआ से पूछ ले .. अपना दीदी खातिर ले आईल बा और तनी झलका भी दीहे….(अपनी चूचियां झलकाते हुए) हमरा राती में ढेर मेहनत ना करें के परी "

सुगना लाली को मारने दौड़ी पर अब तक सोनी कमरे में आ चुकी थी थी। दोनों सहेलियों की हंसी ठिठोली पर विराम लग गया…

तीन सजी-धजी युवतियां एक से बढ़कर एक…. नियति मंत्रमुग्ध होकर उनकी खूबसूरती का आनंद ले रही थी।

स्त्रियों की उम्र उनकी कामुकता को एक नया रूप देती है जहां सोनी एक नई नवेली जवान हुई थी थी वहीं सुगना और लाली यौवन की पराकाष्ठा पर थीं । लाली और सुगना ने वासना और भोग के कई रुप देखे थे और परिपक्वता उनके चेहरे पर स्पष्ट झलकती थी परंतु सोनी ने अभी इस क्षेत्र में कदम ही रखा था पर प्रतिभा उसमें भी कूट-कूट कर भरी थी बस निखारने में वक्त का इंतजार था..

कुछ ही देर में दीपावली पूजा का कार्यक्रम संपन्न हुआ और सरयू सिंह का आगन और घर कई सारे दीयों से जगमगा गया… परिवार के छोटे बड़े सभी दिया जलाने में व्यस्त थे और युवा सदस्य अपने मन में उम्मीदों का दिया जलाए एक दूसरे के पीछे घूम रहे थे…

सरयू सिंह सुगना को देखकर कभी अपने पुराने दिनों में खो जाते उनका दिमाग उन्हें कचोटने लगता। यही दीपावली के दिन उन्होंने पहली बार अपनी पुत्री के साथ संभोग करने का पाप किया था। मन में मलाल लिए वह ईश्वर से अनजाने में किए गए इस कृत्य के लिए क्षमा मांगते। परंतु उनका लंड रह-रहकर हरकत में आ जाता.. उसे न तो पाप से मतलब था न पुण्य से..सुगना नाम से जैसे उनके शरीर में रक्त संचार बढ़ जाता।

पटाखे सुख और समृद्धि का प्रतीक होते हैं सोनू ने भी अपनी नई क्षमता और ओहदे के अनुसार बनारस से ढेर सारे पटाखे खरीदे थे। उनमें से कुछ पटाखे तो ऐसे थे जो शायद सुगना, लाली और सोनी ने कभी नहीं देखे थे सोनू ने सभी बच्चों को उनकी काबिलियत के अनुसार पटाखे दे दिए और बच्चे अपने-अपने पटाखों के साथ मशगूल हो गए सोनी और विकास बच्चों के साथ पटाखे छोड़ने में उनकी मदद कर रहे थे और विकास रह-रहकर सोनी से नजदीकियां बढ़ाने की होने की कोशिश कर रहा था…

सरयू सिंह अब सोनी पर ध्यान लगाए हुए थे उसका बाहरी लड़के विकास से मेल मिलाप उन्हें रास नहीं आ रहा था सोनू का दोस्त होने के कारण वह विकास को कुछ बोल भी नहीं पा रहे थे परंतु मन में एक घुटन सी हो रही थी..

इधर सुगना अनार जलाने जा रही थी वह बार-बार प्रयास करती परंतु डर कर भाग आती पटाखों से डरना स्वाभाविक था अनार कई बार जलाते समय फूट जाता है यह बात सुगना भली-भांति जानती थी…

जमीन पर रखे अनार को चलाते समय सुगना पूरी तरह झुक जाती और लहंगे के पीछे छुपे उसके नितंब और कामुक रूप में अपने सोनू की निगाहों के सामने आ जाते जो पीछे खड़ा अपनी बड़ी बहन सुगना को अनार जलाते हुए देख रहा था..

अपनी बड़ी बहन के नितंबों के बीच न जाने क्या खोजती हुई सोनू की आंखें लाली ने पढ़ ली वह सोनू के पास गई और थोड़ा ऊंची आवाज में ही बोली

"अरे तनी सुगना के मदद कर द"

लाली की आवाज सबने सुनी और सोनू को बरबस सुगना की मदद के लिए जाना पड़ा वह सुगना के पास गया और उसी तरह झुक कर सुगना के हाथ पकड़ कर उससे अनार जलवाने लगा सोनू और सुगना की जोड़ी देखने लायक थी अपने शौर्य और ऐश्वर्य से भरा हुआ युवा सोनू और अपनी अद्भुत और अविश्वसनीय सुंदरता लिए हुए सुगना…. नियति एक बार फिर सुगना और सोनू को साथ देख रही थी।

अनार के जलते ही सुगना ने एक बार फिर भागने की कोशिश की और उठ का खड़े हो चुके सोनू से लिपट गई सोनू ने उसका चेहरा. अपने हाथों से पकड़ा और उससे जलते हुए अनार की तरफ कर दिखाते हुए बोला

"दीदी देख त कितना सुंदर लगता"

सुगना जलते हुए अनार की तरफ देखने लगी रोशनी में उसका चेहरा और दगमगाने लगा। युवा सुगना का बचपन उसके चेहरे पर स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था। पटाखे जलाते समय स्वाभाविक रूप से उम्र कुछ कम हो जाती है। सोनू को सुगना एक अबोध किशोरी की तरह दिखाई पड़ने लगी और उसका प्यार एक बार फिर उमड़ आया।

मोनी अब भी अपनी मां पदमा और कजरी के साथ खानपान की तैयारी कर रही थी उसे न तो पटाखों का शौक था और न ही उसका मन ऐसे त्योहारों से हर्षित होता…पर आज बाड़ी में जो उसके साथ हुआ उसने गलती से ही सही परंतु वह पहली बार उसके लहंगे में छुपा खजाना किसी पुरुष की निगाहों में आया था…मोनी को रह-रहकर व दृश्य याद आ रहे थे…

भोजन के उपरांत अब बारी सोने की थी…सोनू पुरुषों की सोने की व्यवस्था देख रहा था और लाली महिलाओं की। लाली और सरयू सिंह का घर इस विशेष आयोजन के लिए लगभग एक हो चुका था….

नियति ने भी सोनू की मिली सब की दुआओं और आशीर्वाद की लाज रखने की ठान ली….पर सुगना अपने ही भाई से संभोग के लिए कैसे राजी होगी यह यक्ष प्रश्न कायम था…

शेष अगले भाग में….

प्रिय पाठको मैंने इस 100 वें एपिसोड को आप सबके लिए बेहद खास बनाने की कोशिश की थी परंतु चाह कर भी मैं उसे इस अपडेट में पूरा नहीं कर पाया दरअसल बिना कथानक और परिस्थितियों के सोनू और सुगना का मिलन करा पाना मेरे बस में नहीं है। और वह अब तक लिखी गई कहानी और सुगना के व्यक्तित्व के साथ अन्याय होगा….

जो 100 वे एपिसोड में होना था वह 101 वे एपिसोड में होगा…और यह उन्ही पाठकों के लिए DM के रूप में उपलब्ध होगा जिन्होंने अपनी प्रतिक्रिया देकर अपना जुड़ाव दिखाया है…


आप सब को इंतजार कराने के लिए खेद है।
बेहद शानदार शतकीय अपडेट है। कृपया 101 एवम 102 वां एपिसोड भेजने का कष्ट करें।
 

Jenifar

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भाग 108

कान पकड़कर सुगना से मिन्नते करता सोनू नियति को बेहद मासूम लग रहा था। सुगना को ऐसा लगा जैसे शायद सोनू और उसका यह मिलन एक संयोग था और उन दोनो के लिए एक सबक था। परंतु सोनू के मन में कुछ और ही चल रहा था नियति सोनू के दिमाग से खेल रही थी।

सुगना ने सोनू के सर पर हाथ रखते हुए कहा

"अब जा सुत रहा देर हो गइल बा काल सुबह अस्पताल जाए के भी बा"


सुगना और सोनू एक बार बिस्तर पर पड़े छत को निहार रहे थे…नियति सोनू और सुगना के मिलन की पटकथा लिख रही थी…


अब आगे…

अब से कुछ देर पहले माफी के लिए मिन्नतें कर रहे सोनू के सर पर हाथ फेर सुगना ने अपनी नाराजगी कम होने का संकेत दे दिया था। यह बात सुगना बखूबी जान रही थी कि उस पर आई इस आफत का कसूरवार सोनू था.. परंतु इसमें कुछ हद तक वह स्वयं भी शामिल थी।

डबल बेड के बिस्तर पर एक किनारे सुगना और दूसरे किनारे सोनू सो रहा था दोनों छोटे बच्चे सूरज और मधु बीच में सोए थे और गहरी नींद में जा चुके थे। सिरहाने पर अपना सर ऊंचा किए सुगना करवट लेकर लेटी हुई थी। सुगना का हाथ छोटी मधु के सीने पर था। सुगना का मासूम और प्यारा चेहरा नाइट लैंप की रोशनी में चमक रहा था।


सोनू उसे एकटक देखे जा रहा था। सुगना की आंखें बंद अवश्य थीं परंतु उसके मन में कल होने वाली संभावित घटनाओं को लेकर कई विचार आ रहे थे अचानक सुगना ने अपनी आंखें खोल दी और सोनू को अपनी तरफ देखते हुए पकड़ लिया।

"का देखत बाड़े? हमरा काल के सोच के डर लागत बा…"

सोनू अंदर ही अंदर बेहद दुखी हो गया। निश्चित ही सुगना कल एक अप्रत्याशित और अवांछित पीड़ा से गुजरने वाली थी। अपनी नौकरी लगने के बाद सोनू सुगना के सारे अरमान पूरे करना चाहता था उसे ढेरों खुशियां देना चाहता था…और सुगना की रजामंदी से उसे प्यार कर उसकी शारीरिक जरूरतें पूरी करना चाहता था और उसके कोमल बदन अपनी बाहों में भर अपनी सारी हसरतें पूरी करना चाहता था। परंतु वासना के आवेग में और लाली के उकसावे पर की गई उसकी एक गलती ने आज यह स्थिति पैदा कर दी थी।


सोनू कुछ ना बोला…अपनी बहन सुगना को होने वाले संभावित कष्ट के बारे में सोचकर वह रुवांसा हो गया। उसकी आंखें नम हो गई और उसने करवट लेकर अपनी नम आंखें सुगना से छुपाने का प्रयास किया परंतु सफल न हो पाया…

सुगना सोनू के अंतर्मन को पढ़ पा रही थी।सुगना के जीवन में वैसे भी संवेदनाओं का बेहद महत्व था। सोनू के दर्द को सुगना समझ पा रही थी अंदर ही अंदर पिघलती जा रही थी उसका सोनू के प्रति गुस्सा धीरे-धीरे खत्म हो रहा था।

अगली सुबह सुगना और सोनू अपने दोनों छोटे बच्चों के साथ डॉक्टर के केबिन के बाहर थे…

प्रतीक्षा हाल में बैठे सोनू और सुगना को देखकर हर कोई उन्हें एक नजर अवश्य देख रहा था आस पास बैठी महिलाएं आपस में खुसुर फुसुर कर रही थी.. ऐसी खूबसूरत जोड़ी…जैसे मां बाप वैसे ही ख़ूबसूरत बच्चे। जैसे सोनू और सुगना दोनों का सृजन ही एक दूसरे के लिए हुआ हो।

प्रतिभा सिंह…. नर्स ने पुकार लगाई। सोनू अपने ख्यालों में खोया हुआ था उसे यह बात खुद भी ध्यान न रही कि उसने अपॉइंटमेंट प्रतिभा सिंह के नाम से ली थी। सुगना को तो जैसे एहसास भी न था कि सोनू ने इस अबार्शन के लिए उसका नाम ही बदल दिया है।

प्रतिभा सिंह कौन है नर्स ने फिर आवाज़ लगाई। सोनू सतर्क हो गया वह उठा और सुगना को भी उठने का इशारा किया सुगना विस्मय भरी निगाहों से सोनू की तरफ देख रही थी परंतु सोनू ने अपने हाथ से इशारा कर उठाकर सुगना को धीरज रखने का संकेत दिया और अपने पीछे पीछे आने के लिए कहा कुछ ही देर में दोनों नर्स के पास थे।

सुगना का रजिस्ट्रेशन कार्ड बनाया जाने लगा नाम प्रतिभा सिंह…पति का नाम…

नर्स ने सोनू से पूछा अपना नाम बताइए..


संग्राम सिंह…

अपना परिचय पत्र लाए हैं..

सोनू ने एसडीएम जौनपुर का आईडी कार्ड नर्स के समक्ष रख दिया शासकीय आई कार्ड की उस दौरान बेहद अहमियत होती थी नर्स ने एक बार कार्ड को देखा फिर एक बार सोनू के मर्दाना चेहरे को। वह खड़ी तो न हुई पर उसने अपनी जगह पर ही हिलडुल कर सोनू को इज्जत देने की कोशिश अवश्य की और आवाज में अदब लाते हुए कहा

"सर आप मैडम को लेकर वहां बैठिए मैं तुरंत ही बुलाती हूं"

नर्स ने रजिस्ट्रेशन कार्ड सुगना के हाथ में थमा दिया सुगना बार-बार रजिस्ट्रेशन कार्ड पर लिखा हुआ अपना नया नाम पढ़ रही थी और पति की जगह संग्राम सिंह उर्फ सोनू का नाम देखकर न जाने उसके अंतर्मन में क्या क्या विचार आ रहे थे…

कुछ ही देर में सोनू और सुगना डॉक्टर के केबिन में थे डॉक्टर एक अधेड़ उम्र की महिला थी…


सुगना और सोनू को दोनों बच्चों के साथ देख कर वह यह यकीन ही नहीं कर पा रही थी कि सुगना दो बच्चों की मां है। उससे रहा न गया उसने सुगना से पूछा

"क्या यह दोनों आपके ही बच्चे हैं ?"

"ज …जी…" सुगना आज खुद को असहज महसूस कर रही थी। हमेशा आत्मविश्वास से लबरेज रहने वाली सुगना का व्यवहार उसके व्यक्तित्व से मेल नहीं खा रहा था।

विषम परिस्थितियां कई बार मनुष्य को तोड़ देती हैं.. सुगना अपने पाप के बोझ तले असामान्य थी और … घबराई हुई सी थी।

" लगता है आप दोनों की शादी काफी पहले हो गई थी"

सुगना को चुप देखकर डाक्टर ने खुद ही अपने प्रश्न का उत्तर देकर सुगना को सहज करने की कोशिश की..

डॉक्टर को सोनू और सुगना के यहां आने का प्रयोजन पता था… उसने देर न की। सुगना का ब्लड प्रेशर लेने और कुछ जरूरी सवालात करने के पश्चात उसने सुगना को केबिन के दूसरी तरफ बैठने के लिए कहा और फिर सोनू को अपने पास बुला कर उस से मुखातिब हुई…

डॉक्टर ने सोनू को अबॉर्शन पर होने वाले खर्च और प्रक्रिया के बारे में जानकारी दी…डॉक्टर ने उसे इस प्रक्रिया के दर्द रहित होने का आश्वासन दिलाया।

सोनू ने खुश होते हुए कहा..

"डॉक्टर साहब आप पैसे की चिंता मत कीजिएगा बस सुगना दी….जी" को कोई कष्ट नहीं होना चाहिए।

स्वाभाविक रूप से सोनू के मुख से सुगना के नाम के साथ दीदी शब्द ही निकला जिसका आधा भाग तो उसके हलक से बाहर आया परंतु आधा सोनू ने निगल लिया और दी की जगह जी कर अपनी इज्जत बचा ली।

सुगना …? डाक्टर चौंकी

"वो …सुगना इनका निक नेम है…" सोनू ने मुस्कुराते हुए डाक्टर से कहा..पर अपने दांतों से अपनी जीभ को दबाकर जैसे उसे दंड देने की कोशिश की..

शायद सोनू खुशी में कुछ ज्यादा ही जोशीला हो गया था उसकी बातें सुगना ने सुन लीं। अपने प्रति सोनू के प्यार को जानकर सुगना प्रसन्न हो गई…डाक्टर ने आगे कहा

"हां एक बात और आप दोनों का परिवार पूरा हो चुका है मैं आपको यही सलाह दूंगी कि नसबंदी करा लीजिए"।

"किसकी.?" .सोनू ने आश्चर्य से पूछा..

"या तो अपनी या अपनी पत्नी की" डाक्टर ने मुस्कुराते हुए कहा…यदि फिर कभी आप दोनों से गलती हुई तो अगली बार एबॉर्शन कराना और भी भारी पड़ेगा…

"एक और मुसीबत" सोनू बुदबुदा रहा था..पर डाक्टर ने सोनू के मन की बात बढ़ ली।

अरे यह बिल्कुल छोटा सा ऑपरेशन है खासकर पुरुषों के लिए तो यह और भी आसान है महिलाओं के ऑपरेशन में तो थोड़ी सर्जरी करनी पड़ती है परंतु पुरुषों का ऑपरेशन तो कुछ ही देर में हो जाता है..

"ठीक है डॉक्टर मैं बाद में बताता हूं"

डॉक्टर ने नर्स को बुलाकर सोनू और सुगना को प्राइवेट रूम में ले जाने के लिए कहा और कुछ जरूरी हिदायतें दी। सुगना और सोनू अपने दोनों छोटे बच्चों के साथ हॉस्पिटल के प्राइवेट कक्ष में आ चुके थे।

हॉस्पिटल का वह कमरा होटल के कमरे के जैसे सुसज्जित था। दीवार पर रंगीन टीवी और ऐसो आराम की सारी चीजें उस कमरे में उपलब्ध थी। सोनू के एसडीएम बनने का असर स्पष्ट तौर पर दिखाई पड़ रहा था। हॉस्पिटल में लाइन लगाकर इलाज पाने वाली सुगना आज एक रानी की भांति हॉस्पिटल के आलीशान प्राइवेट कक्ष में बैठी थी। परंतु बाहरी आडंबर और तड़क भड़क उसके मन में चल रही हलचल को रोक पाने में नाकाम थे। सोनू उसके बगल में बैठ गया और फिर उसकी हथेली को अपने हाथ से सहला कर उसे तसल्ली देने की कोशिश कर रहा था..

सोनू ने आखरी बार सुगना से पूछा…

"इकरा के गिरावल जरूरी बा?"

सुगना सुबकने लगी…वह मजबूर थी…

"समाज में का मुंह देखाईब…लोग इकर बाप के नाम पूछी तब?" सुगना के चेहरे पर डर और परेशानी के भाव थे…

सोनू के पास कोई उत्तर न था वह चुप ही रहा तभी सुगना ने दूसरा प्रश्न किया

" ऊ डॉक्टर नसबंदी के बारे में का कहत रहली हा…ई का होला?

सोनू अपनी बहन सुगना से क्या बात करता .. उसे पता था कि सुगना का जीवन वीरान है जिस युवती को उसका पति छोड़ कर चला गया हो और जिसके जीवन में वासना का स्थान रिक्त हो उसे नसबंदी की क्या जरूरत थी…फिर भी उसने कहा…

"ऊ बच्चा ना हो एकरा खातिर छोटा सा आपरेशन होला…"

सुगना ने पूरा दिमाग लगाकर इस समझने की कोशिश की परंतु आधा ही समझ पाई। इससे पहले की वह अगला प्रश्न पूछती 2 - 3 नर्स कमरे में आई उन्होंने सुगना को हॉस्पिटल के वस्त्र पहनाए और उसे लेकर जाने लगी सोनू को एक पल के लिए ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कोई उसके कलेजे के टुकड़े को उससे दूर कर रहा हो..

सोनू सुगना को होने वाले संभावित कष्ट को सोचकर भाव विह्वल हो रहा था। छोटा सूरज भी अपनी मां को जाते देख दुखी था..

सुगना …सोनू के पीछे कुछ दूर खड़े सूरज के पास अपनी बाहें फैलाए हुए आ रही थी.. वह सूरज को शायद अपनी गोद में उठाना चाहती थी परंतु न जाने क्यों सोनू को कौन सा भ्रम हुआ सोनू की भुजाएं सुगना को अपने आलिंगन में लेने के लिए तड़प उठी..

परंतु मन का सोचा हमेशा सच हो या आवश्यक नहीं..

सुगना सोनू को छोड़ अपने पुत्र सूरज के पास पहुंचकर उसे गोद में उठा चुकी थी और उसके माथे तथा गाल को चुनने लगी..

परंतु सूरज विलक्षण बालक था उसने एक बार फिर सुगना के होठ चूम लिए…

पास खड़ी नर्सों को यह कुछ अटपटा अवश्य लगा परंतु सूरज की उम्र ऐसी न थी जिससे इस चुंबन का दूसरा अर्थ निकाला जा सकता था परंतु सोनू को यह नागवार गुजर रहा था। सोनू ने सूरज की यह हरकत कई बार देखी थी विशेषकर जब हुआ सोनी और सुगना के चुंबन लिया करता था। सोनू ने भी कई बार अपने तरीके से उसे समझाने की कोशिश की परंतु नतीजा सिफर ही रहा।

बहरहाल सुगना धीमे धीमे चलते हुए ऑपरेशन थिएटर की तरफ चल पड़ी और पीछे पीछे अपनी पुत्री मधु को अपनी गोद में लिए हुए सोनू .. छोटा सूरज अपने मामा सोनू की उंगली पकड़ा हुआ अपनी मां को ऑपरेशन थिएटर की तरफ जाते हुए देख रहा था उसे तो यह ईल्म भी न था कि उसने जिस का हाथ थामा हुआ था वही उसकी मां की इस दशा का कारण था..

आइए सुगना को उसके हाल पर छोड़ देते हैं और आपको लिए चलते हैं आप सबके प्रिय सरयू सिंह को जो युवा सोनी और विकास के बीच नजदीकियों को उजागर करने के लिए उतावले हो रहे थे कहते हैं जब आप अपने उद्देश्य के पीछे जी जान से लग जाए तो आप से उसकी दूरी लगातार कम होने लगती है।


सरयू सिंह ने दिनभर मेहनत की और विकास तथा सोनी के दिन भर के क्रियाकलापों के बारे में जानने की भरसक कोशिश की। उनकी मेहनत जाया न गई उन्हें कुछ पुख्ता सुराग मिल चुके थे और अगले दिन वह सोनी के नर्सिंग कॉलेज आ गए.. जिस तरह वह सोनी और विकास को रंगे हाथ पकड़ना चाह रहे थे शायद वह इतनी आसानी से संभव न था परंतु नियति उनके साथ थी…

नर्सिंग कॉलेज के बाहर बनी छोटी गुमटी में चाय की चुस्कियां ले रहे सरयू का ध्यान नर्सिंग कॉलेज के बाहर आने जाने वाली लड़कियों पर था …तभी पास बैठे एक और बुजुर्ग ने सरयू सिंह से पूछा..

"आपके बेटी भी एहिजा पढ़ेले का?"

सरयू सिंह का मिजाज गरम हो गया। उनका दिलो-दिमाग सोनी की गदराई जवानीको भोगने वाले विकास को रंगे हाथों पकड़ने को था परंतु उस व्यक्ति ने उम्र के स्वाभाविक अंतर को देखते हुए जो रिश्ता सोनी और सरयू सिंह में स्थापित कर दिया था वह सरयू सिंह को कतई मान्य न था। उन्होंने उस व्यक्ति की बातों पर कोई प्रतिक्रिया न दी और यथाशीघ्र अपनी चाय का गिलास खाली कर गुमटी वाले को पैसे देने लगे वैसे भी सोनी को रंगे हाथ पकड़ने के लिए वह पिछले कुछ घंटों से कभी एक गुमटी कभी दूसरी गुमटी पर घूम रहे थे.. और उनकी निगाहें उन गदराए नितंबों को ढूंढ रही थी जिन्होंने उनका सुख चैन छीन रखा था।

सरयू सिंह गुमटी से बाहर निकलने ही वाले थे तभी उन्हें विकास कॉलेज के गेट की तरफ आता दिखाई दिया सरयू सिंह ने खुद को एक बार फिर गुमटी के छज्जे की आड़ में कर लिया…ताकि वह विकास की नजरों में ना सके..

सरयू सिंह को वापस गुमटी में आते देख उस बुजुर्ग ने फिर कहा..

"आजकल के लफंगा लड़का लोग के देखा तानी अभी ई रईसजादा आईल बा अभी गेट से एगो लड़की आई और दोनों जाकर बसंती सिनेमा हाल में बैठ के सिनेमा देखिहे सो…"

गुमटी वाला भी चुप ना रहा उसने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा "अरे ओ सिनेमा हॉल में सब चुम्मा चाटी करे जाला सिनेमा के देखेला…"

सरयू सिंह बड़े ध्यान से उन दोनों की बातें सुन रहे थे.. उनकी बात सच ही थी जैसे ही मोटरसाइकिल नर्सिंग कॉलेज के गेट पर पहुंची… कुछ ही पलों बाद सोनी आकर मोटरसाइकिल पर बैठ गई और वह दोनों फटफटीया में बैठ बसंती हाल की तरफ बढ़ चले..

सरयू सिंह की मेहनत रंग लाई…कल की तफ्तीश और आज उनका इंतजार खात्मे पर था…


उधर सोनी और विकास बाहों में बाहें डाले बसंती टॉकीज की बालकनी में प्रवेश कर रहे थे। बाबी पिक्चर को लगे कई दिन बीत चुके थे और उसे देखने वाले इक्का-दुक्का ग्राहक ही बचे थे वह भी नीचे फर्स्ट क्लास और सेकंड क्लास में थे । बालकनी में कुछ लोग ही थे वह भी जोड़े में… अपनी अपनी बाबी के साथ..

सरयू सिंह को यह समझते देर न लगी की सोनी और विकास निश्चित ही बालकनी में होंगे.. आखिरकार सरयू सिंह ने भी बालकनी की टिकट खरीदी अपने चेहरे को गमछे से ढकने की कोशिश करते हुए धीरे-धीरे बालकनी जाने वाली सीढ़ियां चढ़ने लगे…

ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सरयू सिंह की मेहनत सफल होने वाली थी…परंतु इस वक्त उन्हें अकेला छोड़ देते हैं और आपको लिए चलते वापस लखनऊ के हॉस्पिटल में जहां सुगना ऑपरेशन थिएटर से बाहर आ रही थी..

कष्ट और दुख खूबसूरत चेहरे की रौनक खींच लेते हैं सुगना का तेजस्वी चेहरा मुरझाया हुआ और बाल बिखरे हुए थे। वह अर्ध निंद्रा में थी…कभी-कभी अपनी आंखें खोलती और फिर बंद कर लेती …. शायद वह सूरज को ढूंढ रही थी। वार्ड ब्वाय उसके स्ट्रेचर को घसीटते हुए हुए उसके कमरे कमरे की तरफ आ रहे थे।

सोनू को वार्ड बॉय की तेजी और लापरवाही कतई पसंद ना आ रही थी। पर उनका क्या? उनका यह रोज का कार्य था…. उसी में हंसना उसी में खेलना उसी में मजाक और न जाने क्या-क्या…


सोनू एक बार फिर मधु को गोद में लिए और सूरज को अपनी उंगली पकड़ाए सुगना के पीछे तेजी से चल रहा था…मासूम सूरज की चाल और दौड़ जैसी हो चली थी। मां के बाहर आने से वह भी खुश था….

"मामा मां ठीक हो गईल" सूरज ने मासूम सा प्रश्न किया

और सोनू की आंखें एक बार फिर द्रवित हो गई।

सुगना की हालत देख कर सोनू एक बार फिर अपराध बोध से ग्रस्त हो गया निश्चित सुगना को मिले इस कष्ट का कारण वह स्वयं था। जैसे-जैसे वक्त बीता गया सुगना सामान्य होती गई और शाम होते होते सुगना ने अपना खोया हुआ तेज प्राप्त कर लिया बिस्तर के सिरहाने पर उठकर बैठते हुए उसने चाय पी और अपने गमों का उसी तरह परित्याग कर दिया जिस तरह वह अपने अनचाहे गर्भ को त्याग कर आई थी।

अगली सुबह सुगना पूरी तरह सामान्य हो चुकी थी अंदर उसकी योनि और गर्भाशय में गर्भपात का असर अवश्य था परंतु बाकी पूरा शरीर और दिलों दिमाग खुश था। वह खुद को सामान्य महसूस कर रही थी। बच्चों के साथ खेलना और कमरे में चहलकदमी करते हुए देख कर सोनू भी आज बेहद खुश था। आज सुगना को अस्पताल से छुट्टी मिलने वाली थी।

वह डॉक्टर से मिलकर उन्हें धन्यवाद देने गया और एक बार डॉक्टर में फिर उसे उस नसबंदी की बात की याद दिला दी जिसे पर नजर अंदाज कर रहा था।

सोनू किस मुंह से सुगना से कहता कि दीदी तुम नसबंदी करा लो और मेरे साथ खुलकर जीवन के आनंद लो। अब तक सोनू का सामान्य ज्ञान बढ़ चुका था उसे पता था कि पुरुष या महिला में से यदि कोई एक भी नसबंदी करा लेता है तो अनचाहे गर्भ की समस्या से हमेशा के लिए निदान मिल जाता है परंतु सुगना को नसबंदी के लिए कहना सर्वथा अनुचित था।


सोनू बेचैन हो गया उसका दिमाग एक ही दिशा में सोचने लगा सुगना उसके दिलो-दिमाग पर छा चुकी थी उसे और कुछ नहीं रहा था " या तो सुगना या कुछ नहीं" यह शब्द बार-बार उसके दिमाग में घूमने लगे और कुछ ही देर में सोनू अकेला ऑपरेशन थिएटर के सामने खड़ा था…

सुगना सोनू का इंतजार कर रही थी दोपहर का भोजन कमरे में आ चुका था सुगना को भूख भी लग रही थी वह कमरे से निकलकर कभी लॉबी में इधर देखती कभी उधर परंतु सोनू न जाने कहां चला गया था तभी उसे कुछ वार्ड बॉय एक स्ट्रेचर को खींचकर लाबी में आते हुए दिखाई पड़े धीरे-धीरे स्टेशन और सोना के बीच की दूरी कम हो रही थी और कुछ ही देर में हुआ स्ट्रेचर सुगना के बिल्कुल करीब आ गया स्ट्रेचर पर सोनू को लेटे हुए देखकर सुगना की सांसें फूलने लगीं

"अरे इसको क्या हुआ??" सुगना ने वार्ड बॉय से पूछा

अचानक आए कष्ट और दुख के समय आप अपने स्वाभाविक रूप में आ जाते हैं और यह भूल जाते हैं कि उस वक्त आप किस स्थिति और किस रोल में हैंl सुगना यहां सोनू की पत्नी के किरदार में थी परंतु सोनू को इस अवस्था में देखकर वह भूल गई और उसने जिस प्रकार सोनू को संबोधित किया था वह एक संभ्रांत पत्नी अपने पति को कतई नहीं कर सकती थी… और वह भी तब जब उसका पति एसडीम जैसे सम्मानित पद पर हो। वार्ड बॉय को थोड़ा अजीब सा लगा परंतु उसने कहा…

"साहब ने नसबंदी कराई है"

सुगना किंकर्तव्य विमुढ अवाक खड़ी हो गई…दिमाग घूमने लगा।

कुछ ही देर में उसी कमरे में एक और बेड लगाकर सोनू को उस पर लिटा दिया गया…

सुगना खाना पीना भूल कर…कभी सोनू कभी बाल सहलाती कभी उसकी चादर ठीक करती वह बेसब्री से शुरू के पलकें खोलने का इंतजार कर थी..

सुगना के दिमाग में ड्रम बज रहें थे.."नसबंदी?… पर क्यों?

वार्ड बॉय ने जो कहा था उसे सोच सोच कर सुगना परेशान हो रही थी उसके लिए यह यकीन करना कठिन हो रहा था कि एक युवा मर्द जिसका विवाह अगले कुछ महीनों में होने वाला था वह नसबंदी का ऑपरेशन करा कर हॉस्पिटल में लेटा हुआ था…

अभी तो उसे सोनू के लिए लड़की पसंद करना था और धूमधाम से उसका विवाह करना था। सुगना ने न जाने सोनू के लिए क्या-क्या सपने संजोए थे…क्या होगा यदि यह बात उसकी मां पदमा को पता चलेगी ? हे भगवान यह क्या हुआ? सोनू ने ऐसा क्यों किया?

सुगना के दिमाग में ढेरों प्रश्न जन्म लेने लगे कुछ के उत्तर उसके दिल ने देने की कोशिश की .. परंतु उन उत्तरों पर वह सोचना कतई नहीं चाहती थी। उसने दिल में उठ रहे विचारों को दफन करने की कोशिश परंतु शायद यह संभव न था। रह रह कर वह विचार अपना आकार बढ़ा रहे थे।


सुगना बदहवास होने लगी.. ऐसा लगा जैसे वह गश खाकर गिर पड़ेगी…

शेष अगले भाग में
You never cease to amaze us.
 
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