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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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144
आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
Smart-Select-20210324-171448-Chrome
भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Sanjdel66

Member
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भाग 110

डॉक्टर द्वारा दी गई नसीहत से सुगना हिल गई थी। डॉक्टर ने जो करने के लिए कहा था वह एक भाई-बहन के बीच होना लगभग असंभव था..


इससे पहले कि सुनना कुछ सोच पाती सोनू कमरे के अंदर आया और अपनी खुशी जाहिर करते हुए बोला

"दीदी चल सामान बैग में रख छुट्टी हो गईल.."


थोड़ी ही देर में सोनू और सुगना हॉस्पिटल से विदा हो रहे थे। एक हफ्ते बाद जो होना था नियति उसकी उधेड़बुन में लगी हुई थी। सुगना परेशान थी डॉक्टर ने जो उससे कहा था उसे अमल में लाना उसके लिए बेहद कठिन था… पर था उतना ही जरूरी । आखिरकार सोनू को हमेशा के लिए नपुंसक बनाना सुगना को कतई मंजूर ना था…

अब आगे…

अस्पताल से बाहर आकर सोनू और सुगना अपना सामान गाड़ी में रखने लगे तभी एक और लाल बत्ती लगी गाड़ी उनके बगल में आकर रुकी…जिसमें से एक सभ्य और सुसज्जित महिला निकल कर बाहर आई और सुगना को देखकर उसके करीब आ गई। यह महिला कोई और नहीं अपितु मनोरमा थी…

सोनू ने हाथ जोड़कर मनोरमा का अभिवादन किया। मनोरमा ने हाथ बढ़ाकर सुगना की गोद में बैठी छोटी मधु को प्यार किया और सुगना को दाहिनी हथेली पकड़ ली…सरयू सिंह की दोनों प्रेमिकाए में न जाने कब गहरी आत्मीयता हो गई थी। उन दोनो में सामान्य बातें होने लगीं । कुछ देर बाद आखिरकार मनोरमा ने इस हॉस्पिटल में आने का प्रयोजन पूछ लिया..

सोनू और सुगना बगले झांकने लगे तभी सुगना पुत्र सूरज मनोरमा का हाथ खींचने लगा वह उनकी गोद में आना चाहता था। मनोरमा ने सूरज को निराश ना किया। सूरज था ही इतना प्यारा मनोरमा ने उसे अपनी गोद में उठा लिया और सूरज में एक बार फिर मनोरमा के होंठ चूम लिए। मनोरमा ने सूरज के गालों पर मीठी चपत लगाई और बोली

"जाने यह बच्चा अपनी शैतानी कब छोड़ेगा"

कुछ प्रश्नों के उत्तर मुस्कुराहट से शांत हो जाते हैं सुगना और सोनू मुस्कुरा उठे। परंतु मनोरमा का पहला प्रश्न अब भी अनुत्तरित था।

मनोरमा ने फिर से पूछा..

"किसकी तबीयत खराब थी.."

सोनू ने आखिर कोई रास्ता ना देख कर अपनी जुबान खोली और बोला..

*मैडम… दीदी के पेट में दर्द हो रहा था उसकी सोनोग्राफी के लिए आए थे…"

झूठ बोलना सोनू की प्रवृत्ति न थी परंतु आज वह मजबूर था…

मनोरमा भी आश्चर्यचकित थी एकमात्र सोनोग्राफी के लिए कोई बनारस से लखनऊ क्यों आएगा परंतु सुगना और सोनू से ज्यादा प्रश्न करने की न तो मनोरमा को जरूरत थी और नहीं उसकी आदत। परंतु मनोरमा सोनू के जवाब से संतुष्ट न हुई थी।

बाहर सड़क पर मनोरमा की लाल बत्ती के पीछे कई सारी गाड़ियां खड़ी हो गई थी। वहां पर और रुकना संभव न था। शाम हो चुकी थी वैसे भी अगली सुबह सोनू और सूरज को वापस बनारस के लिए निकलना था मनोरमा ने रात का खाना साथ खाने के लिए जिद की परंतु सोनू और सुगना इस वक्त किसी से मिलना नहीं चाहते थे। उनके मन में यह डर समाया हुआ था कि यदि कहीं यह एबार्शन का राज खुल गया तो उनका और उनके परिवार का भविष्य मिट्टी में मिल जाएगा।

सोनू और सुगना अपनी गाड़ी में बैठ कर निकल रहे थे और मनोरमा अस्पताल की सीढ़ियां चढ़ते हुए अंदर जा रही थी। सोनू और सुगना दोनों ही मन ही मन घबराए हुए थे कि यदि कहीं मनोरमा ने डॉक्टर से उन दोनों के बारे में बात की और यदि उन्हें सच का पता चल गया तो क्या होगा…

चोर की दाढ़ी में तिनका सोनू और सुगना तरह-तरह की संभावनाओं पर विचार करते और अपने अनुसार अपनी परिस्थितियों के बारे में सोचते तथा अपने उत्तर बनाते। वो प्रश्न उनके समक्ष कब आएंगे और कब उन्हें इनका उत्तर देना पड़ेगा इसका पता सिर्फ और सिर्फ नियति को था जो अभी सुगना और सोनू के बीच ताना-बाना बुन रही थी।

कुछ ही देर में सोनू और सुगना वापस गेस्ट हाउस आ चुके थे। गेस्ट हाउस पहुंचकर पहले सोनू ने स्नान किया और कमरे में आकर आगे होने वाले घटनाक्रम के बारे में तरह-तरह के अनुमान लगाने लगा। सोनू के पश्चात सुगना गुसल खाने के अंदर प्रवेश कर गई…

सूरज और मधु गेस्ट हाउस के बिस्तर पर खिलौनों से खेल रहे थे। नियति कभी सूरज और मधु के भविष्य के बारे में सोचती कभी सोफे पर बैठे सुगना और उसके भाई सोनू के बारे में ……जो अब डॉक्टर द्वारा दिए गए पर्चों और रिपोर्ट्स को पढ़ रहा था।

वह कागजों के ढेर में एक विशेष बुकलेट को ढूंढ रहा था। उसे डॉक्टर की बात याद आ रही थी जिसने डिस्चार्ज पेपर देते समय कहा था…

"उम्मीद करती हूं कि आप दोनों का वैवाहिक जीवन आगे सुखमय होगा ….मैंने जरूरी दिशानिर्देश आपकी पत्नी प्रतिभा जी को समझा दिए हैं ….वही सब बातें इस बुकलेट में भी लिखी है कृपया निर्देशों का पालन बिना किसी गलती के करिएगा.."

सोनू ने वह बुकलेट निकाल ली…और कुछ ही देर में वह उन सभी दिशानिर्देशों के बारे में जान चुका था जिसे डॉक्टर ने सुगना को बताया था।


सोनू आने वाले समय के बारे में कल्पना कर रहा था…काश सुगना दीदी……सोनू की सोच ने सोनू की भावनाओं में वासना भर दी। उसे अपने नसबंदी कराए जाने का कोई अफसोस न था वह अपने इष्ट से अगले सात आठ दिनों बाद होने वाले घटनाक्रम को सुखद बनाने के लिए मिन्नतें कर रहा था क्या सुगना दीदी उसे माफ कर उसे अपना लेगी…

इधर सोनू ने अपने जहन में सुगना को नग्न देखना शुरू किया और उधर अंदर गुसल खाने में सुगना नग्न होती गई। सोनू डॉक्टर की हिदायत तोड़ रहा था स्खलन अभी कुछ दिनों तक प्रतिबंधित था… उसने अपना ध्यान भटकाने की कोशिश की परंतु लंड जैसे अपनी उपस्थिति साबित कर रहा था।

अंदर सुगना परेशान थी… उसकी ब्रा शावर के डंडे से सरक कर बाल्टी में जा गिरी थी और पूरी तरह भीग गई थी। आखिरकार सुगना ने बिना ब्रा पहने ही अपनी नाइटी पहनी और असहज महसूस करते हुए गुसलखाने से बाहर आ गई।


सोनू से नजरें बचाकर वह अपने बिस्तर तक पहुंची और झट से अपना शाल ओढ़ लिया और भरी-भरी चूचियों के तने हुए निप्पलों को सोनू की निगाहों में आने से रोक लिया।

सुगना… अब भी सोनू से वही प्रश्न पूछना चाहती थी कि आखिर उसने नसबंदी क्योंकि? परंतु यह प्रश्न उसके हलक में आता पर जुबा तक आते-आते उसकी हिम्मत टूट जाती। उसे पता था यदि सोनू ने अपने मन की बात कहीं खुलकर कह दी तो वह क्या करेगी ..

बड़ी जद्दोजहद और अपने मन में कई तर्क वितर्क कर इन कठिन परिस्थितियों में सुगना ने सोनू को माफ किया था परंतु सोनू ने जो यह निर्णय लिया था वह उसकी जिंदगी बदलने वाला था।

सुगना अपने मन के कोने में सोनू की भावनाओं को पढ़ने की कोशिश करती और जब जब उसे महसूस होता कि सोनू उसके करीब आना चाहता है तो वह घबरा जाती …..

वह उसकी अपनी सगी बहन थी। उसके विचारों में अपने ही भाई के साथ यह सब कृत्य सर्वथा अनुचित था। एक पाप सोनू कर चुका था जिसमें वह स्वयं आंशिक रूप से भागीदार थी.. वह कैसे उसे आगे पाप करने देती…

कुछ देर बाद दोनों आमने सामने बैठे खाने का इंतजार कर रहे थे और असल मुद्दे को छोड़ इधर-उधर की बातें कर रहे थे… सूरज और मधु भी खिलौने छोड़ कर अपने अपने माता पिता की गोद में आकर उनका प्यार पा रहे थे।

उधर बनारस में सरयू सिंह अपना झोला लिए सुगना के घर की तरफ बढ़ रहे थे । आज उन्होंने मन ही मन ठान लिया था कि वह सोनी और विकास के बीच के संबंधों के बारे में सुगना को सब सच बता देंगे…।

सरयू सिंह कतई नहीं चाहते थे की सोनी और विकास इस तरह खुलेआम रंगरलिया मनाएं …उन्हें सोनी के करीब आने का न तो कोई मौका मिल रहा था और न हीं वह उसे ब्लैकमेल करना चाह रहे थे। यदि गलती से सोनी ब्लैकमेल की बात परिवार में बता देती तो सरयू सिंह का आदर्श व्यक्तित्व एक पल में धूमिल हो जाता।

शाम के 7:00 बज चुके थे बनारस शहर कृत्रिम रोशनी से जगमग आ रहा था। सरयू सिंह की वासना रह रह कर अपना रूप दिखाती। अपनी पुत्री की उम्र की सोनी के प्रति उनके विचार पूरी तरह बदल चुके थे। सोनी के मादक नितंबों और उसके बदचलन चरित्र ने सरयू सिंह की वासना को जागृत कर दिया था अब उन्हें सोनी के चेहरे और उसके चुलबुले पन से कोई सरोकार न था वह सिर्फ और सिर्फ उसके भीतर छुपी उस कामुक स्त्री को देख रहे थे जिसने अविवाहित रहते हुए भी एक अनजान पुरुष के से नजदीकियां बढ़ाई थी अपने परिवार की मान मर्यादा को ताक पर रखकर अपनी वासना शांत कर रही थी को उनके विचारों में एक वासनाजन्य और अविवहिताओं के लिए घृणित कार्य किया था। अपने विचारों में सरयू सिंह तरह तरह से सोनी के नजदीक आने की सोचते पर उन्हें कोई राह न दिखाई पड़ रही थी पर मंजिल आ चुकी थी।


रिक्शा सुगना के घर के सामने खड़ा हो गया। सरयू सिंह रिक्शे से उतर कर सुगना के दरवाजे तक पहुंचे और दरवाजा खटखटा दिया। मन में घूम रही बातें उन्हें अधीर कर रही थी वह जो बात सुगना से कहने वाले थे उसका क्या असर होता यह तो देखने लायक बात थी परंतु उनके अनुसार यह आवश्यक था। सोनी पर लगाम लगाना जरूरी था।

दरवाजा खुद सोनी ने ही खोला..

"अरे चाचा जी आप.. इतना देर कैसे हो गया" सोनी ने झुक कर उनके पैर छुए और अनजाने में ही सलवार में छुपे अपने मादक नितंबों को सरयू सिंह के नजरों के सामने ला दिया।

सरयू सिंह ने यंत्रवत उसे खुश रहने का आशीर्वाद दिया पर परंतु वह यह बात भली-भांति जानते थे कि वह यहां सोनी की खुशियों पर ग्रहण लगाने ही आए थे।

आज सुगना के घर में कुछ ज्यादा ही शांति थी ..एक तो हंसते खिलखिलाते रहने वाली जिंदादिल सुगना घर में न थी ऊपर से उसके दोनों भी नदारत थे। लाली भी हाल में आई और सरयू सिंह के चरण छू कर उनका आशीर्वाद लिया।

एक बात तो माननी पड़ेगी सरयू सिंह ने कभी भी लाली के बारे में गलत न सोचा था। शायद वह उनके दोस्त हरिया की पुत्री थी और वह उसे अपनी पुत्री समान ही मानते थे।

"सुगना कहां बीया? " सरयू सिंह ने मुस्कुराते हुए पूछा

सोनी के उत्तर देने से पहले ही लाली बोल उठी…

"सुगना के पेट में बार-बार दर्द होते रहे सोनू डॉक्टर के देखावे लखनऊ ले गईल बाड़े काल आज आ जाइन्हें "

"अरे बनारस में डॉक्टर ने नैखन सो का? उतना दूर काहे जाए के परल" सरयू सिंह को विश्वास ना हो रहा था। आखिर ऐसी कौन सी सुविधाएं बनारस में न थी जिनके लिए सुगना और सोनू को लखनऊ जाना पड़ा..

लाली ने बातों में उलझना उचित न समझा उसने सरयू सिंह की बात का उत्तर न दिया अपितु सोनी से मुखातिब होते हुए बोली…

" जाकर मिठाई और पानी ले आवा… हम चाय बनावत बानी.. "

सोनी एक बार सरयू सिंह को पानी का गिलास थमा रही थी और सरयू सिंह की निगाहें कुर्ते के भीतर उसकी तनी हुई चुचियों पर केंद्रित थी। जैसे ही सोनी गिलास देने के लिए झुकी सरयू सिंह ने उन दूधिया घाटी की गहराई नापने की कोशिश की यद्यपि सोनी सतर्क थी परंतु उस वक्त अपने दुपट्टे से उन खूबसूरत उपहारों को छुपा पाने में नाकामयाब रही और और उसके दूधिया उभारों की एक झलक सरयू सिंह की निगाहों में आ गई

सरयू सिंह अपने मन में जो सोच कर आए थे वह न हो पाया। वह आज अकेले इस घर में क्या करेंगे… यह सोचकर वह परेशान हो रहे थे। उनके साथ बातें करने वाला और खेलने वाला कोई ना था। उनका प्यारा पुत्र सूरज भी आज घर में न था और नहीं उनकी अजीज सुगना जिसे देख कर आज भी उनका दिल खुश हो जाता।


सुगना जो अब पूरी तरह उनकी पुत्री की भूमिका निभा रही थी वह उन्हें बेहद प्यारी थी इस दुनिया में यदि कोई उनका था जिस पर वह खुद से ज्यादा विश्वास करते थे तो वह थी सुगना। उस पर वह अपना सर्वस्व निछावर करने को तैयार थे..

सरयू सिंह को अपने खयालों में घूमते देख..लाली ने कहा लाली ने कहा

"चाचा जी आप सुगना के कमरे में रह ली.. ई कमरा के खिड़की टूटल बा रात में ठंडा हवा आई…" लाली ने उस कमरे की तरफ इशारा किया जिसमें सरयू सिंह अक्सर रहा करते थे।

लाली ने सोनी से कहा..

" चाचा जी के बिस्तर लगा द"


सोनी सुगना के कमरे में बिस्तर बिछाने लगी जब से सुगना गई थी तब से उस बिस्तर पर सोने वाला कोई ना था। उस दिन निकलते निकलते सुगना के कई सारे वस्त्र बिस्तर पर छूट गए उनमें से कुछ अधोवस्त्र भी थे।

सोनी बिस्तर पर पड़े वस्त्रों को हटा रही थी तभी सरयू सिंह पीछे आकर खड़े हो गए सोनी को थोड़ा असहज लग रहा था। पीछे खड़े सरयू सिंह की निगाहों की चुभन वह पहले भी महसूस कर चुकी थी और अब भी उसे न जाने क्यों लग रहा था कि वह उसे ही देख रहे है। वह बार-बार अपने कुर्ते को ठीक करती और आगे झुक झुक कर बिस्तर की चादर को ठीक करने का प्रयास करती।

कभी एक दिशा से कभी दूसरी दिशा से चादर ठीक करती। जब उससे रहा न गया तो वह बिस्तर के दूसरे किनारे पर आ गई। उसने अपने नितंबों को तो उनकी निगाहों से बचा लिया पर इस बार अनजाने में ही अपनी चूचियों की घाटी को और गहराई तक परोस दिया।।


युवा महिलाओं में अपने कामुक अंगो को छुपाने की जद्दोजहद हमेशा उन्हें और आकर्षक बना देती है। जितना ही वह उसे छुपाने की कोशिश करती हैं उतना ही वह उभर उभर कर बाहर आते हैं

सोनी ने अपने दुपट्टे से उन्हें ढकने की कोशिश की परंतु विकास की मेहनत रंग ला चुकी थी। विकास का हथियार जरूर छोटा था पर हथेली नहीं। उसने सोनी की चूचियों को मसल मसल कर अमिया से आम बना दिया था।


सोनी की चूचियों में युवा स्त्री की चुचियों का आकार प्राप्त कर लिया था वह अब किशोरी ना होकर एक पूर्ण युवती बन चुकी थी।

सरयू सिंह की आंखों के सामने चल रहे दृश्य खत्म हो चले थे। सोनी कमरे से बाहर जा रही थी और दरवाजे पर खड़े सरयू सिंह न जाने किन खयालों में खोए हुए थे। सोनी जब बिल्कुल करीब आ गई तब वह जागे और एक तरफ होकर उन्होंने सोनी को कमरे से बाहर निकलने का मार्ग प्रशस्त किया।


सोनी सरयू सिंह के व्यवहार में आया परिवर्तन महसूस कर रही थी परंतु उन पर पर उंगली उठाना एक अलग ही समस्या को जन्म दे सकता था। हो सकता था कि सोनी का खुद का आकलन ही गलत होता।

युवतियों और किशोरियों को ऊपर वाले ने जो एक विशेष शक्ति प्रदान की है वह विलक्षण है जो पुरुष की निगाहों में छुपी वासना को तुरंत भांप लेती है। सोनी ने मन ही मन यह निर्णय ले लिया कि वह सरयू सिंह से दूर ही रहेगी।

धीरे-धीरे रात गहराने लगी और सब अपने अपने ख्वाबों को साथ लिए बिस्तर पर आ गए। लाली सुगना और सोनू के बारे में सोच रही थी। क्या सुगना और सोनू आपस में बात कर रहे होंगे? क्या सोनू ने जो किया था उसकी प्रयश्चित की आग में जल रहा होगा? या फिर सोनू दोबारा सुनना के नजदीक आने की कोशिश करेगा? लाली ने यह महसूस कर लिया था कि उस संभोग की स्वीकार्यता सुगना को न थी उसे शायद संभोग के अंतिम पलों में सुगना को मिले सुख की जानकारी न थी। उसकी सहेली ने कई वर्षों बाद संभोग सुख का अद्भुत आनंद लिया था और जी भर कर स्खलित हुई थी।

लाली अपनी सहेली सुगना के लिए चिंतित थी। हे भगवान! उसे कोई कष्ट ना हुआ हो… वह सुगना का चहकता और खिलखिलाता चेहरा देखने के लिए तरस गई थी। पिछले कई दिनों से बल्कि यूं कहें दीपावली की रात के बाद से उसने सुगना के चेहरे पर वह खिलखिलाती हुई हंसी और अल्हड़ता न देखी थी। सुगना में आया परिवर्तन लाली को रास् न आ रहा था। उसकी सहेली अपना मूल स्वरूप खो रही थी।

सरयू सिंह अपने बिस्तर पर पड़े कभी कजरी को याद करते कभी सुगना की मां पदमा के साथ बिताए गए उनका कामुक पलों को.. जिनकी परिणीति अब स्वयं सुगना के रूप में उनके अगल-बगल घूम रही थी परंतु उन्हें कभी चैन ना आता और जहां उनका सुखचैन छुपा था उनका दिमाग उन्हें वहां सोचने से रोक लेता। सुगना की जांघों के बीच उन्होंने अपने जीवन की अमूल्य खुशियां पाई थी और अब उन्होंने अपना सब कुछ खो दिया था…. सुगना से अपना रिश्ता जानने के बाद जैसे उसके बारे में सोचना भी प्रतिबंधित हो चला था…

परंतु सोनी के बारे में सोचने पर उनके मन में कोई आत्मग्लानि ना होती. और धीरे-धीरे उनका लंड एक बार फिर गर्म होने लगा। उधर लाली सरयू सिंह के लिए दूध गर्म कर रही थी और इधर सरयू सिंह अपनी हथेलियों से अपने लंड को स्खलन के लिए तैयार कर रहे थे…वह अपनी पीठ दरवाजे की तरफ किए हुए करवट लेकर लेटे थे। आज सोनी के कामुक बदन की झलकियां को याद कर कर उनका लंड तन चुका था.. और लंगोट से बाहर आ चुका था।

अचानक सोनी ने कमरे में प्रवेश किया

"चाचा जी दूध ले लीजिए…"

गांव की किशोरियों जब शहर आती हैं उनका पहनावा वेशभूषा और बोलने का ढंग सब कुछ बदल जाता है सोनी भी इससे अछूती न थी धीरे-धीरे उसकी भाषा में बदलाव आ रहा था वह अपनी मूल भाषा को छोड़ शुद्ध हिंदी की तरफ आकर्षित हो रही थी।


सरयू सिंह यह बदलाव महसूस कर रहे उन्होंने झट से अपने तने हुए लंड को अपनी धोती से ढका और करवट लेकर सोनी की तरफ हो गए.

सरयू सिंह का चेहरे पर अजब भाव थे उनका चेहरा कुत्सित वासना से रहा तमतमा रहा था । सरयू सिंह का यह रूप बिल्कुल अलग था सोनी ने उनकी आंखों में वासना के लाल डोरे तैरते हुए देख लिया था।

न जाने आज सोनी को क्या क्या उसका ध्यान सरयू सिंह के ऊपरी भाग को छोड़कर अधोभाग की तरफ चला गया और उसे सरयू सिंह की जांघों के बीच जो अद्भुत उभार दिखाई पड़ा वह निश्चित ही अविश्वसनीय था….

धोती के अंदर तना हुआ लंड वैसे तो दिखाई पड़ रहा था जैसे किसी का लेना को सफेद झीनी चादर ओढ़ा दी गई हो। सरयू सिंह जी अद्भुत और विलक्षण लंड अपने आकार और बल का प्रदर्शन स्पष्ट रूप से कर रहा था सोनी का शक सही था सरयू सिंह में कामवासना अभी जीवित थी।

सोनी ने कांपते हाथों से सरयू सिंह को गिलास पकड़ाया। सरयू सिंह ने पहली बार सोनी की उंगलियों को अपनी उंगली से छू लिया। एक अजब सा सोनी और सरयू सिंह दोनों ने महसूस किया। दूध का गिलास छलकते छलकते बचा। सोनी हड़बड़ा कर कमरे से बाहर आ गई उसकी सांसे तेज चल रही थी। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि अब तक अविवाहित रहने वाले सरयू सिंह अब भी वासना के जाल में घिरे हुए थे। सरयू सिंह का यह रूप सोनी के लिए कतई नया था।

सोनी के जाने के पश्चात सरयू सिंह ने सोनी के दूध से अपने होंठ हटा दिए और दूध का आनंद लेते हुए उसे धीरे-धीरे पीने लगे। नीचे उनका हाथ अब भी उनके काले मुसल को सहला रहा था और जब तक गिलास का दूध खत्म होता नीचे अंडकोष दही उत्सर्जन के लिए तैयार थे…..


उधर लखनऊ में खाना खाने के पश्चात बच्चे सुगना की मीठी लोरी सुनते हुए सोने की कोशिश रहे थे और सोनू थपकी देकर कर सुगना के बच्चों को सुलाने में मदद कर रहा था।

जैसे ही बच्चों की नींद लगी सुगना बिस्तर से उठी और एक बार फिर नित्य क्रिया के लिए गुसल खाने की तरफ गई परंतु वापस आने के बाद वह अपनी जगह पर जाने की बजाय सोनू की तरफ जाकर बिस्तर पर बैठने लगी। अपने प्रश्नों में उलझी हुई सुगना इस बार शॉल लेना भूल गई थी। भरी भरी चूचियां थिरक रही थीं और बरबस ही सोनू का ध्यान खींच रही थी।


सोनू ने तुरंत ही अपने पैर सिकोड़े और उठकर सिरहाने से पीठ टिकाकर बैठ गया। सुगना के चेहरे पर आई अधीरता सोनू देख चुका था उसे यह अंदाज हो गया की सुगना दीदी उससे ढेरों प्रश्न करने वाली थी। उसने अपनी हृदय गति पर नियंत्रण किया और बोला..

शेष अगले भाग में…
Beautiful update Sir as usual from you. Very Well-articulated.
 

Jeet3

New Member
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भाग 110

डॉक्टर द्वारा दी गई नसीहत से सुगना हिल गई थी। डॉक्टर ने जो करने के लिए कहा था वह एक भाई-बहन के बीच होना लगभग असंभव था..


इससे पहले कि सुनना कुछ सोच पाती सोनू कमरे के अंदर आया और अपनी खुशी जाहिर करते हुए बोला

"दीदी चल सामान बैग में रख छुट्टी हो गईल.."


थोड़ी ही देर में सोनू और सुगना हॉस्पिटल से विदा हो रहे थे। एक हफ्ते बाद जो होना था नियति उसकी उधेड़बुन में लगी हुई थी। सुगना परेशान थी डॉक्टर ने जो उससे कहा था उसे अमल में लाना उसके लिए बेहद कठिन था… पर था उतना ही जरूरी । आखिरकार सोनू को हमेशा के लिए नपुंसक बनाना सुगना को कतई मंजूर ना था…

अब आगे…

अस्पताल से बाहर आकर सोनू और सुगना अपना सामान गाड़ी में रखने लगे तभी एक और लाल बत्ती लगी गाड़ी उनके बगल में आकर रुकी…जिसमें से एक सभ्य और सुसज्जित महिला निकल कर बाहर आई और सुगना को देखकर उसके करीब आ गई। यह महिला कोई और नहीं अपितु मनोरमा थी…

सोनू ने हाथ जोड़कर मनोरमा का अभिवादन किया। मनोरमा ने हाथ बढ़ाकर सुगना की गोद में बैठी छोटी मधु को प्यार किया और सुगना को दाहिनी हथेली पकड़ ली…सरयू सिंह की दोनों प्रेमिकाए में न जाने कब गहरी आत्मीयता हो गई थी। उन दोनो में सामान्य बातें होने लगीं । कुछ देर बाद आखिरकार मनोरमा ने इस हॉस्पिटल में आने का प्रयोजन पूछ लिया..

सोनू और सुगना बगले झांकने लगे तभी सुगना पुत्र सूरज मनोरमा का हाथ खींचने लगा वह उनकी गोद में आना चाहता था। मनोरमा ने सूरज को निराश ना किया। सूरज था ही इतना प्यारा मनोरमा ने उसे अपनी गोद में उठा लिया और सूरज में एक बार फिर मनोरमा के होंठ चूम लिए। मनोरमा ने सूरज के गालों पर मीठी चपत लगाई और बोली

"जाने यह बच्चा अपनी शैतानी कब छोड़ेगा"

कुछ प्रश्नों के उत्तर मुस्कुराहट से शांत हो जाते हैं सुगना और सोनू मुस्कुरा उठे। परंतु मनोरमा का पहला प्रश्न अब भी अनुत्तरित था।

मनोरमा ने फिर से पूछा..

"किसकी तबीयत खराब थी.."

सोनू ने आखिर कोई रास्ता ना देख कर अपनी जुबान खोली और बोला..

*मैडम… दीदी के पेट में दर्द हो रहा था उसकी सोनोग्राफी के लिए आए थे…"

झूठ बोलना सोनू की प्रवृत्ति न थी परंतु आज वह मजबूर था…

मनोरमा भी आश्चर्यचकित थी एकमात्र सोनोग्राफी के लिए कोई बनारस से लखनऊ क्यों आएगा परंतु सुगना और सोनू से ज्यादा प्रश्न करने की न तो मनोरमा को जरूरत थी और नहीं उसकी आदत। परंतु मनोरमा सोनू के जवाब से संतुष्ट न हुई थी।

बाहर सड़क पर मनोरमा की लाल बत्ती के पीछे कई सारी गाड़ियां खड़ी हो गई थी। वहां पर और रुकना संभव न था। शाम हो चुकी थी वैसे भी अगली सुबह सोनू और सूरज को वापस बनारस के लिए निकलना था मनोरमा ने रात का खाना साथ खाने के लिए जिद की परंतु सोनू और सुगना इस वक्त किसी से मिलना नहीं चाहते थे। उनके मन में यह डर समाया हुआ था कि यदि कहीं यह एबार्शन का राज खुल गया तो उनका और उनके परिवार का भविष्य मिट्टी में मिल जाएगा।

सोनू और सुगना अपनी गाड़ी में बैठ कर निकल रहे थे और मनोरमा अस्पताल की सीढ़ियां चढ़ते हुए अंदर जा रही थी। सोनू और सुगना दोनों ही मन ही मन घबराए हुए थे कि यदि कहीं मनोरमा ने डॉक्टर से उन दोनों के बारे में बात की और यदि उन्हें सच का पता चल गया तो क्या होगा…

चोर की दाढ़ी में तिनका सोनू और सुगना तरह-तरह की संभावनाओं पर विचार करते और अपने अनुसार अपनी परिस्थितियों के बारे में सोचते तथा अपने उत्तर बनाते। वो प्रश्न उनके समक्ष कब आएंगे और कब उन्हें इनका उत्तर देना पड़ेगा इसका पता सिर्फ और सिर्फ नियति को था जो अभी सुगना और सोनू के बीच ताना-बाना बुन रही थी।

कुछ ही देर में सोनू और सुगना वापस गेस्ट हाउस आ चुके थे। गेस्ट हाउस पहुंचकर पहले सोनू ने स्नान किया और कमरे में आकर आगे होने वाले घटनाक्रम के बारे में तरह-तरह के अनुमान लगाने लगा। सोनू के पश्चात सुगना गुसल खाने के अंदर प्रवेश कर गई…

सूरज और मधु गेस्ट हाउस के बिस्तर पर खिलौनों से खेल रहे थे। नियति कभी सूरज और मधु के भविष्य के बारे में सोचती कभी सोफे पर बैठे सुगना और उसके भाई सोनू के बारे में ……जो अब डॉक्टर द्वारा दिए गए पर्चों और रिपोर्ट्स को पढ़ रहा था।

वह कागजों के ढेर में एक विशेष बुकलेट को ढूंढ रहा था। उसे डॉक्टर की बात याद आ रही थी जिसने डिस्चार्ज पेपर देते समय कहा था…

"उम्मीद करती हूं कि आप दोनों का वैवाहिक जीवन आगे सुखमय होगा ….मैंने जरूरी दिशानिर्देश आपकी पत्नी प्रतिभा जी को समझा दिए हैं ….वही सब बातें इस बुकलेट में भी लिखी है कृपया निर्देशों का पालन बिना किसी गलती के करिएगा.."

सोनू ने वह बुकलेट निकाल ली…और कुछ ही देर में वह उन सभी दिशानिर्देशों के बारे में जान चुका था जिसे डॉक्टर ने सुगना को बताया था।


सोनू आने वाले समय के बारे में कल्पना कर रहा था…काश सुगना दीदी……सोनू की सोच ने सोनू की भावनाओं में वासना भर दी। उसे अपने नसबंदी कराए जाने का कोई अफसोस न था वह अपने इष्ट से अगले सात आठ दिनों बाद होने वाले घटनाक्रम को सुखद बनाने के लिए मिन्नतें कर रहा था क्या सुगना दीदी उसे माफ कर उसे अपना लेगी…

इधर सोनू ने अपने जहन में सुगना को नग्न देखना शुरू किया और उधर अंदर गुसल खाने में सुगना नग्न होती गई। सोनू डॉक्टर की हिदायत तोड़ रहा था स्खलन अभी कुछ दिनों तक प्रतिबंधित था… उसने अपना ध्यान भटकाने की कोशिश की परंतु लंड जैसे अपनी उपस्थिति साबित कर रहा था।

अंदर सुगना परेशान थी… उसकी ब्रा शावर के डंडे से सरक कर बाल्टी में जा गिरी थी और पूरी तरह भीग गई थी। आखिरकार सुगना ने बिना ब्रा पहने ही अपनी नाइटी पहनी और असहज महसूस करते हुए गुसलखाने से बाहर आ गई।


सोनू से नजरें बचाकर वह अपने बिस्तर तक पहुंची और झट से अपना शाल ओढ़ लिया और भरी-भरी चूचियों के तने हुए निप्पलों को सोनू की निगाहों में आने से रोक लिया।

सुगना… अब भी सोनू से वही प्रश्न पूछना चाहती थी कि आखिर उसने नसबंदी क्योंकि? परंतु यह प्रश्न उसके हलक में आता पर जुबा तक आते-आते उसकी हिम्मत टूट जाती। उसे पता था यदि सोनू ने अपने मन की बात कहीं खुलकर कह दी तो वह क्या करेगी ..

बड़ी जद्दोजहद और अपने मन में कई तर्क वितर्क कर इन कठिन परिस्थितियों में सुगना ने सोनू को माफ किया था परंतु सोनू ने जो यह निर्णय लिया था वह उसकी जिंदगी बदलने वाला था।

सुगना अपने मन के कोने में सोनू की भावनाओं को पढ़ने की कोशिश करती और जब जब उसे महसूस होता कि सोनू उसके करीब आना चाहता है तो वह घबरा जाती …..

वह उसकी अपनी सगी बहन थी। उसके विचारों में अपने ही भाई के साथ यह सब कृत्य सर्वथा अनुचित था। एक पाप सोनू कर चुका था जिसमें वह स्वयं आंशिक रूप से भागीदार थी.. वह कैसे उसे आगे पाप करने देती…

कुछ देर बाद दोनों आमने सामने बैठे खाने का इंतजार कर रहे थे और असल मुद्दे को छोड़ इधर-उधर की बातें कर रहे थे… सूरज और मधु भी खिलौने छोड़ कर अपने अपने माता पिता की गोद में आकर उनका प्यार पा रहे थे।

उधर बनारस में सरयू सिंह अपना झोला लिए सुगना के घर की तरफ बढ़ रहे थे । आज उन्होंने मन ही मन ठान लिया था कि वह सोनी और विकास के बीच के संबंधों के बारे में सुगना को सब सच बता देंगे…।

सरयू सिंह कतई नहीं चाहते थे की सोनी और विकास इस तरह खुलेआम रंगरलिया मनाएं …उन्हें सोनी के करीब आने का न तो कोई मौका मिल रहा था और न हीं वह उसे ब्लैकमेल करना चाह रहे थे। यदि गलती से सोनी ब्लैकमेल की बात परिवार में बता देती तो सरयू सिंह का आदर्श व्यक्तित्व एक पल में धूमिल हो जाता।

शाम के 7:00 बज चुके थे बनारस शहर कृत्रिम रोशनी से जगमग आ रहा था। सरयू सिंह की वासना रह रह कर अपना रूप दिखाती। अपनी पुत्री की उम्र की सोनी के प्रति उनके विचार पूरी तरह बदल चुके थे। सोनी के मादक नितंबों और उसके बदचलन चरित्र ने सरयू सिंह की वासना को जागृत कर दिया था अब उन्हें सोनी के चेहरे और उसके चुलबुले पन से कोई सरोकार न था वह सिर्फ और सिर्फ उसके भीतर छुपी उस कामुक स्त्री को देख रहे थे जिसने अविवाहित रहते हुए भी एक अनजान पुरुष के से नजदीकियां बढ़ाई थी अपने परिवार की मान मर्यादा को ताक पर रखकर अपनी वासना शांत कर रही थी को उनके विचारों में एक वासनाजन्य और अविवहिताओं के लिए घृणित कार्य किया था। अपने विचारों में सरयू सिंह तरह तरह से सोनी के नजदीक आने की सोचते पर उन्हें कोई राह न दिखाई पड़ रही थी पर मंजिल आ चुकी थी।


रिक्शा सुगना के घर के सामने खड़ा हो गया। सरयू सिंह रिक्शे से उतर कर सुगना के दरवाजे तक पहुंचे और दरवाजा खटखटा दिया। मन में घूम रही बातें उन्हें अधीर कर रही थी वह जो बात सुगना से कहने वाले थे उसका क्या असर होता यह तो देखने लायक बात थी परंतु उनके अनुसार यह आवश्यक था। सोनी पर लगाम लगाना जरूरी था।

दरवाजा खुद सोनी ने ही खोला..

"अरे चाचा जी आप.. इतना देर कैसे हो गया" सोनी ने झुक कर उनके पैर छुए और अनजाने में ही सलवार में छुपे अपने मादक नितंबों को सरयू सिंह के नजरों के सामने ला दिया।

सरयू सिंह ने यंत्रवत उसे खुश रहने का आशीर्वाद दिया पर परंतु वह यह बात भली-भांति जानते थे कि वह यहां सोनी की खुशियों पर ग्रहण लगाने ही आए थे।

आज सुगना के घर में कुछ ज्यादा ही शांति थी ..एक तो हंसते खिलखिलाते रहने वाली जिंदादिल सुगना घर में न थी ऊपर से उसके दोनों भी नदारत थे। लाली भी हाल में आई और सरयू सिंह के चरण छू कर उनका आशीर्वाद लिया।

एक बात तो माननी पड़ेगी सरयू सिंह ने कभी भी लाली के बारे में गलत न सोचा था। शायद वह उनके दोस्त हरिया की पुत्री थी और वह उसे अपनी पुत्री समान ही मानते थे।

"सुगना कहां बीया? " सरयू सिंह ने मुस्कुराते हुए पूछा

सोनी के उत्तर देने से पहले ही लाली बोल उठी…

"सुगना के पेट में बार-बार दर्द होते रहे सोनू डॉक्टर के देखावे लखनऊ ले गईल बाड़े काल आज आ जाइन्हें "

"अरे बनारस में डॉक्टर ने नैखन सो का? उतना दूर काहे जाए के परल" सरयू सिंह को विश्वास ना हो रहा था। आखिर ऐसी कौन सी सुविधाएं बनारस में न थी जिनके लिए सुगना और सोनू को लखनऊ जाना पड़ा..

लाली ने बातों में उलझना उचित न समझा उसने सरयू सिंह की बात का उत्तर न दिया अपितु सोनी से मुखातिब होते हुए बोली…

" जाकर मिठाई और पानी ले आवा… हम चाय बनावत बानी.. "

सोनी एक बार सरयू सिंह को पानी का गिलास थमा रही थी और सरयू सिंह की निगाहें कुर्ते के भीतर उसकी तनी हुई चुचियों पर केंद्रित थी। जैसे ही सोनी गिलास देने के लिए झुकी सरयू सिंह ने उन दूधिया घाटी की गहराई नापने की कोशिश की यद्यपि सोनी सतर्क थी परंतु उस वक्त अपने दुपट्टे से उन खूबसूरत उपहारों को छुपा पाने में नाकामयाब रही और और उसके दूधिया उभारों की एक झलक सरयू सिंह की निगाहों में आ गई

सरयू सिंह अपने मन में जो सोच कर आए थे वह न हो पाया। वह आज अकेले इस घर में क्या करेंगे… यह सोचकर वह परेशान हो रहे थे। उनके साथ बातें करने वाला और खेलने वाला कोई ना था। उनका प्यारा पुत्र सूरज भी आज घर में न था और नहीं उनकी अजीज सुगना जिसे देख कर आज भी उनका दिल खुश हो जाता।


सुगना जो अब पूरी तरह उनकी पुत्री की भूमिका निभा रही थी वह उन्हें बेहद प्यारी थी इस दुनिया में यदि कोई उनका था जिस पर वह खुद से ज्यादा विश्वास करते थे तो वह थी सुगना। उस पर वह अपना सर्वस्व निछावर करने को तैयार थे..

सरयू सिंह को अपने खयालों में घूमते देख..लाली ने कहा लाली ने कहा

"चाचा जी आप सुगना के कमरे में रह ली.. ई कमरा के खिड़की टूटल बा रात में ठंडा हवा आई…" लाली ने उस कमरे की तरफ इशारा किया जिसमें सरयू सिंह अक्सर रहा करते थे।

लाली ने सोनी से कहा..

" चाचा जी के बिस्तर लगा द"


सोनी सुगना के कमरे में बिस्तर बिछाने लगी जब से सुगना गई थी तब से उस बिस्तर पर सोने वाला कोई ना था। उस दिन निकलते निकलते सुगना के कई सारे वस्त्र बिस्तर पर छूट गए उनमें से कुछ अधोवस्त्र भी थे।

सोनी बिस्तर पर पड़े वस्त्रों को हटा रही थी तभी सरयू सिंह पीछे आकर खड़े हो गए सोनी को थोड़ा असहज लग रहा था। पीछे खड़े सरयू सिंह की निगाहों की चुभन वह पहले भी महसूस कर चुकी थी और अब भी उसे न जाने क्यों लग रहा था कि वह उसे ही देख रहे है। वह बार-बार अपने कुर्ते को ठीक करती और आगे झुक झुक कर बिस्तर की चादर को ठीक करने का प्रयास करती।

कभी एक दिशा से कभी दूसरी दिशा से चादर ठीक करती। जब उससे रहा न गया तो वह बिस्तर के दूसरे किनारे पर आ गई। उसने अपने नितंबों को तो उनकी निगाहों से बचा लिया पर इस बार अनजाने में ही अपनी चूचियों की घाटी को और गहराई तक परोस दिया।।


युवा महिलाओं में अपने कामुक अंगो को छुपाने की जद्दोजहद हमेशा उन्हें और आकर्षक बना देती है। जितना ही वह उसे छुपाने की कोशिश करती हैं उतना ही वह उभर उभर कर बाहर आते हैं

सोनी ने अपने दुपट्टे से उन्हें ढकने की कोशिश की परंतु विकास की मेहनत रंग ला चुकी थी। विकास का हथियार जरूर छोटा था पर हथेली नहीं। उसने सोनी की चूचियों को मसल मसल कर अमिया से आम बना दिया था।


सोनी की चूचियों में युवा स्त्री की चुचियों का आकार प्राप्त कर लिया था वह अब किशोरी ना होकर एक पूर्ण युवती बन चुकी थी।

सरयू सिंह की आंखों के सामने चल रहे दृश्य खत्म हो चले थे। सोनी कमरे से बाहर जा रही थी और दरवाजे पर खड़े सरयू सिंह न जाने किन खयालों में खोए हुए थे। सोनी जब बिल्कुल करीब आ गई तब वह जागे और एक तरफ होकर उन्होंने सोनी को कमरे से बाहर निकलने का मार्ग प्रशस्त किया।


सोनी सरयू सिंह के व्यवहार में आया परिवर्तन महसूस कर रही थी परंतु उन पर पर उंगली उठाना एक अलग ही समस्या को जन्म दे सकता था। हो सकता था कि सोनी का खुद का आकलन ही गलत होता।

युवतियों और किशोरियों को ऊपर वाले ने जो एक विशेष शक्ति प्रदान की है वह विलक्षण है जो पुरुष की निगाहों में छुपी वासना को तुरंत भांप लेती है। सोनी ने मन ही मन यह निर्णय ले लिया कि वह सरयू सिंह से दूर ही रहेगी।

धीरे-धीरे रात गहराने लगी और सब अपने अपने ख्वाबों को साथ लिए बिस्तर पर आ गए। लाली सुगना और सोनू के बारे में सोच रही थी। क्या सुगना और सोनू आपस में बात कर रहे होंगे? क्या सोनू ने जो किया था उसकी प्रयश्चित की आग में जल रहा होगा? या फिर सोनू दोबारा सुनना के नजदीक आने की कोशिश करेगा? लाली ने यह महसूस कर लिया था कि उस संभोग की स्वीकार्यता सुगना को न थी उसे शायद संभोग के अंतिम पलों में सुगना को मिले सुख की जानकारी न थी। उसकी सहेली ने कई वर्षों बाद संभोग सुख का अद्भुत आनंद लिया था और जी भर कर स्खलित हुई थी।

लाली अपनी सहेली सुगना के लिए चिंतित थी। हे भगवान! उसे कोई कष्ट ना हुआ हो… वह सुगना का चहकता और खिलखिलाता चेहरा देखने के लिए तरस गई थी। पिछले कई दिनों से बल्कि यूं कहें दीपावली की रात के बाद से उसने सुगना के चेहरे पर वह खिलखिलाती हुई हंसी और अल्हड़ता न देखी थी। सुगना में आया परिवर्तन लाली को रास् न आ रहा था। उसकी सहेली अपना मूल स्वरूप खो रही थी।

सरयू सिंह अपने बिस्तर पर पड़े कभी कजरी को याद करते कभी सुगना की मां पदमा के साथ बिताए गए उनका कामुक पलों को.. जिनकी परिणीति अब स्वयं सुगना के रूप में उनके अगल-बगल घूम रही थी परंतु उन्हें कभी चैन ना आता और जहां उनका सुखचैन छुपा था उनका दिमाग उन्हें वहां सोचने से रोक लेता। सुगना की जांघों के बीच उन्होंने अपने जीवन की अमूल्य खुशियां पाई थी और अब उन्होंने अपना सब कुछ खो दिया था…. सुगना से अपना रिश्ता जानने के बाद जैसे उसके बारे में सोचना भी प्रतिबंधित हो चला था…

परंतु सोनी के बारे में सोचने पर उनके मन में कोई आत्मग्लानि ना होती. और धीरे-धीरे उनका लंड एक बार फिर गर्म होने लगा। उधर लाली सरयू सिंह के लिए दूध गर्म कर रही थी और इधर सरयू सिंह अपनी हथेलियों से अपने लंड को स्खलन के लिए तैयार कर रहे थे…वह अपनी पीठ दरवाजे की तरफ किए हुए करवट लेकर लेटे थे। आज सोनी के कामुक बदन की झलकियां को याद कर कर उनका लंड तन चुका था.. और लंगोट से बाहर आ चुका था।

अचानक सोनी ने कमरे में प्रवेश किया

"चाचा जी दूध ले लीजिए…"

गांव की किशोरियों जब शहर आती हैं उनका पहनावा वेशभूषा और बोलने का ढंग सब कुछ बदल जाता है सोनी भी इससे अछूती न थी धीरे-धीरे उसकी भाषा में बदलाव आ रहा था वह अपनी मूल भाषा को छोड़ शुद्ध हिंदी की तरफ आकर्षित हो रही थी।


सरयू सिंह यह बदलाव महसूस कर रहे उन्होंने झट से अपने तने हुए लंड को अपनी धोती से ढका और करवट लेकर सोनी की तरफ हो गए.

सरयू सिंह का चेहरे पर अजब भाव थे उनका चेहरा कुत्सित वासना से रहा तमतमा रहा था । सरयू सिंह का यह रूप बिल्कुल अलग था सोनी ने उनकी आंखों में वासना के लाल डोरे तैरते हुए देख लिया था।

न जाने आज सोनी को क्या क्या उसका ध्यान सरयू सिंह के ऊपरी भाग को छोड़कर अधोभाग की तरफ चला गया और उसे सरयू सिंह की जांघों के बीच जो अद्भुत उभार दिखाई पड़ा वह निश्चित ही अविश्वसनीय था….

धोती के अंदर तना हुआ लंड वैसे तो दिखाई पड़ रहा था जैसे किसी का लेना को सफेद झीनी चादर ओढ़ा दी गई हो। सरयू सिंह जी अद्भुत और विलक्षण लंड अपने आकार और बल का प्रदर्शन स्पष्ट रूप से कर रहा था सोनी का शक सही था सरयू सिंह में कामवासना अभी जीवित थी।

सोनी ने कांपते हाथों से सरयू सिंह को गिलास पकड़ाया। सरयू सिंह ने पहली बार सोनी की उंगलियों को अपनी उंगली से छू लिया। एक अजब सा सोनी और सरयू सिंह दोनों ने महसूस किया। दूध का गिलास छलकते छलकते बचा। सोनी हड़बड़ा कर कमरे से बाहर आ गई उसकी सांसे तेज चल रही थी। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि अब तक अविवाहित रहने वाले सरयू सिंह अब भी वासना के जाल में घिरे हुए थे। सरयू सिंह का यह रूप सोनी के लिए कतई नया था।

सोनी के जाने के पश्चात सरयू सिंह ने सोनी के दूध से अपने होंठ हटा दिए और दूध का आनंद लेते हुए उसे धीरे-धीरे पीने लगे। नीचे उनका हाथ अब भी उनके काले मुसल को सहला रहा था और जब तक गिलास का दूध खत्म होता नीचे अंडकोष दही उत्सर्जन के लिए तैयार थे…..


उधर लखनऊ में खाना खाने के पश्चात बच्चे सुगना की मीठी लोरी सुनते हुए सोने की कोशिश रहे थे और सोनू थपकी देकर कर सुगना के बच्चों को सुलाने में मदद कर रहा था।

जैसे ही बच्चों की नींद लगी सुगना बिस्तर से उठी और एक बार फिर नित्य क्रिया के लिए गुसल खाने की तरफ गई परंतु वापस आने के बाद वह अपनी जगह पर जाने की बजाय सोनू की तरफ जाकर बिस्तर पर बैठने लगी। अपने प्रश्नों में उलझी हुई सुगना इस बार शॉल लेना भूल गई थी। भरी भरी चूचियां थिरक रही थीं और बरबस ही सोनू का ध्यान खींच रही थी।


सोनू ने तुरंत ही अपने पैर सिकोड़े और उठकर सिरहाने से पीठ टिकाकर बैठ गया। सुगना के चेहरे पर आई अधीरता सोनू देख चुका था उसे यह अंदाज हो गया की सुगना दीदी उससे ढेरों प्रश्न करने वाली थी। उसने अपनी हृदय गति पर नियंत्रण किया और बोला..

शेष अगले भाग में…
बेहतरीन अपडेट
 

dijju

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सभी पुराने पाठकों को धन्यवाद और नए पाठकों का हार्दिक स्वागत मैंने सभी को उनके वांछित अपडेट भेज दिए हैं और 110 वां अपडेट आप सबके लिए पोस्ट कर दिया गया है जिसे आप इंडेक्स से जाकर उस पेज तक पहुंच सकते हैं।
अपडेट पर आप सब की प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा यदि आप कहानी पढ़ रहे हैं तो अच्छा और बुरा लिखने की हिम्मत जुटाईए और खुलकर अपने विचार रखते रहिए..
Jabardast likhe hai lovely bhai
 
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