भाग १११
जैसे ही बच्चों की नींद लगी सुगना बिस्तर से उठी और एक बार फिर नित्य क्रिया के लिए गुसल खाने की तरफ गई परंतु वापस आने के बाद वह अपनी जगह पर जाने की बजाय सोनू की तरफ जाकर बिस्तर पर बैठने लगी। अपने प्रश्नों में उलझी हुई सुगना इस बार शॉल लेना भूल गई थी। भरी भरी चूचियां थिरक रही थीं और बरबस ही सोनू का ध्यान खींच रही थी।
सोनू ने तुरंत ही अपने पैर सिकोड़े और उठकर सिरहाने से पीठ टिकाकर बैठ गया। सुगना के चेहरे पर आई अधीरता सोनू देख चुका था उसे यह अंदाज हो गया की सुगना दीदी उससे ढेरों प्रश्न करने वाली थी। उसने अपनी हृदय गति पर नियंत्रण किया और बोला..
अब आगे….
"का बात बा दीदी?"
सुगना अपने मन में रह-रहकर घुमड़ रहे उस प्रश्न को न रोक पाई जिसने उसे पिछले कुछ घंटों से परेशान किया हुआ था..
"सोनू बताऊ ना ई काहे कईले हा" सुगना का प्रश्न वही व्यक्ति समझ सकता है जो इस प्रश्न का इंतजार कर रहा हो सोनू बखूबी जानता था कि सुगना क्या पूछ रही है।
सोनू को पता था यह प्रश्न अवश्य आएगा उसने अपना उत्तर सोच लिया था..वैसे भी अब सोनू के पास अस्पताल के कमरे की तरह अब पलके बंद करने का विकल्प न था। सुगना यद्यपि उसकी तरफ देख न रही थी उसकी पलके झुकी हुई थी परंतु प्रश्न स्पष्ट और सटीक था सोनू ने हिम्मत जुटाई और कहा..
"हमरा एक गलती से तोहरा इतना कष्ट भईल हमरा दंड मिले के चाही.."
सुगना सतर्क हो गई। सोनू के मन में क्या चल रहा था यह बात वह अवश्य जानना चाहती थी पर यह कभी नहीं चाहती थी कि सोनू खुलकर उससे नजदीकियां बढ़ाने के लिए अनुरोध करें। छी कितना घृणित संवाद होगा जब कोई छोटा भाई अपनी ही बहन से उसकी अंतरंगता की दरकार करे। सुगना ने बात को घुमाते हुए कहा
"सब तोहरा शादी के तैयारी करता और तू ई कर लेला"
सोनू चुप रहा और सुगना इंतजार करती रही कुछ पलों की शांति के पश्चात सुगना ने अपना चेहरा उठाया और सोनू के चेहरे को पढ़ने की कोशिश करते हुए कहा
"बोल ना चुप काहे बाड़े?"
सोनू से अब और बर्दाश्त न हुआ उसने अपने हाथ आगे बढ़ाएं और सुगना की हथेली को अपनी हथेलियों में लेकर सहलाने लगा और इस बार अपनी नजरें झुकाते हुए बोला
"दीदी हम शादी ना करब.".
सुगना सोनू के मुख से यह शब्द सुनकर अवाक रह गई। सोनू की इस बात ने उसके शक को यकीन में बदल दिया था… परंतु सोनू जो कह रहा था वह मानने योग्य बात न थी…प्रश्न उठना स्वाभाविक था सो उठा..
"तो का सारा जिंदगी अकेले बिताईबा .."
"हम अकेले कहां बानी …सूरज, मधु, राजू, रीमा, रघु, इतना सारा बच्चा लोग बा लाली दीदी बाड़ी तू बाडू …पूरा परिवार बा " सोनू ने अपनी उंगलियों पर मासूमियत से बच्चे गिनते हुए बड़ी बारीकी से सुगना का उत्तर दे दिया परंतु वह घर में एक बच्चे को भूल गया था जो रतन पुत्री मालती थी।
लाली के साथ अपना नाम सुनकर सुगना सिहर उठी… सुगना ने सोनू की हथेलियों के बीच से अपना हाथ खींचने की कोशिश की और बोला
"अइसन ना होला शादी सब केहू करेला वरना समाज में का मुंह दिखाइबा सब केहू सवाल पूछी का बताइबा"
" काहे सवाल पूछी? सरयू चाचा से के सवाल पूछा ता.?".
सुगना के एक प्रश्न के उत्तर में सोनू ने दो-दो प्रश्न छोड़ दिए थे। उसके प्रश्न पूछने की अंदाज उसके अब उग्र होने का संकेत दे रहा था..
वैसे भी सरयू सिंह का नाम लेकर सोनू ने सुगना को निरुत्तर कर दिया उसने अपने हाथ का तनाव हटा दिया और उसकी हथेली एक बार फिर सोनू की हथेलियों के बीच स्वाभाविक रूप से सोनू की गर्म हथेलियों का स्पर्श सुख ले रही थी…
"सोनू अकेले जिंदगी काटल बहुत मुश्किल होई पति पत्नी के साथ परिवार बसेला और वंश आगे बढ़ेला.."
सुगना यह बात कह तो गई थी परंतु जिस वंश की बात वह कर रही थी उसकी जड़ आज सोनू स्वयं कटवा आया था और वही इस वार्तालाप की मूल वजह थी।
मुख से निकली हुई बात वापस आना संभव न था। सोनू ने बात पकड़ ली और अपनी हथेलियों का दबाव सुगना की हथेली पर बढ़ाते हुए बोला
" अब ईहे बच्चा लोग और तू लोग हमार परिवार बा हमरा और कुछ ना चाही.."
सोनू ने अपनी दाहिनी हथेली सुगना की हथेली के ऊपर से हटाया और बच्चों को प्यार से सहलाने लगा परंतु उसने अपनी बाई हथेली से सुगना का हाथ पकड़े रखा..
सुगना भीतर ही भीतर पिघल रही थी। सोनू जो बात कह रहा था वह उसके ह्रदय में गहरे तक उतर रही थी… परंतु क्या सोनू जीवन भर वासना रस से भी मुक्त रहेगा…? सुगना के मन में बार-बार वही सवाल उठ रहे थे पर उसे पूछने की सुगना हिम्मत ना जुटा पा रही थी।
भाई बहन के संबंधों में वासना का कोई स्थान नहीं होता है… न बातों में… न विचारों में और नहीं कृत्यों में…परंतु सुगना और सोनू के बीच परिस्थितियां तेजी से बदल रही थी.
"ए सोनू तू फिर से सोच विचार करले इकरा बिना भी शादी हो सकेला … बच्चा के अलावा भी जीवन में शादी के जरूरत होला" सुगना ने अपनी बड़ी बहन होने की मर्यादा तोड़ कर सोनू से कहा।
सुगना लोक लाज में फंसी …..सोनू के विवाहित होने की वकालत कर रही थी पर परंतु जिसने अपना लक्ष्य निर्धारित कर रखा हो उसे डिगा पाना असंभव था।
सोनू ने वापस दृढ़ता से सुगना की हथेली को पूरे उत्साह से दबाते हुए कहा..
"दीदी हम निर्णय कर लेले बानी हम विवाह ना करब…"
सोनू हमेशा से दृढ़ इच्छाशक्ति का धनी था। वह अब धीरे-धीरे वह सुगना के प्रति आसक्त होता गया था और उसे पाना उसकी जिंदगी का मकसद बन चुका था। अविवाहित होने की प्रेरणा व सरयू सिंह से ले चुका था जो भरे पूरे सम्मान के साथ समाज में एक प्रतिष्ठित जीवन जी रहे थे।
शायद सोनू को उनकी कामवासना से भरी हुई जिंदगी के बारे में पता न था अन्यथा वह दोहरे उत्साह से उस जीवन शैली को सहर्ष अपना लिया होता।
नियति ने सोनू के मनोभाव पढ़ लिए थे और उसकी अच्छाइयों का फल देने की जुगत लगाने लगी।
आखिरकार सुगना और सोनू की बातचीत में ठहराव आया और सुगना ने बातचीत बंद करते हुए कहा
"सोनू जो सूत रह कल सवेरे जाएके भी बा"
"हां दीदी" इतना कहकर सोनू ने अपनी हथेलियों का दबाव सुगना की हथेली पर से हटा लिया और जिस तरह 15 अगस्त के दिन लोग कबूतर हथेली पर रखकर कबूतर उड़ाते हैं उसी प्रकार उसने सुगना को आजाद हो जाने दिया। सुगना अपना हाथ सूरज की हथेली पर से हटा रही थी उन चंद पलों में उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वह किसी बेहद करीबी से अलग हो रही हो। सुगना उठी और बिस्तर के दूसरे किनारे पर आकर एक बार फिर लेट गई.. सुगना को उठकर बिस्तर के दूसरी तरफ जाते समय सुगना की ब्रा की कैद से आजाद भरी भरी चुचियों ने हिचकोले खाकर सोनू का ध्यान अपनी ओर खींच लिया .. और सोनू चंद पलों में ही उन खूबसूरत और मुलायम चूचियों के उस अद्भुत स्पर्शसुख में खो गया जो उसने सुगना के साथ अपने प्रथम संभोग के अंतिम क्षणों में अनुभव किया था…
…दिनभर की थकावट ने सुगना और सोनू को शीघ्र ही निद्रा देवी के आगोश में जाने को मजबूर कर दिया. सुगना ने अब सब कुछ भगवान भरोसे छोड़ दिया…नियति ने सुगना को ऐसी परिस्थिति में डाल दिया था जिससे निकलना या उसमें फसना अब सुगना के बस में न था..
रात गहरा चुकी थी। नियति नाइट लैंप पर बैठी खूबसूरत सुगना के चेहरे को निहार रही थी..और उसके आने वाले जीवन के ताने बाने बुन रही थी।
उधर बनारस में ….सुबह-सुबह चिड़ियों की चहचहाहट से अपनी नींद खोलने वाले सरयू सिंह ऑटो वालों की चिल्लपों से जाग चुके थे। बनारस शहर तेजी से विकास कर रहा था। दो-तीन वर्षों में ही नई बसी सुगना की कॉलोनी तेजी से विकास कर चुकी थी और उसके घर के सामने से गुजरने वाले वाहनों की संख्या में इजाफा हो गया था।
सरयू सिंह नित्य कर्म से निवृत्त होकर इधर उधर घूम रहे थे सभी कमरों के दरवाजे बंद थे परंतु कुछ देर बाद सोनी का दरवाजा खुला जो उठ कर बाथरूम की तरफ जा रही थी सरयू सिंह वापस सुगना के कमरे में घुस गए और जैसे ही सोनी ने बाथरूम के अंदर प्रवेश किया वह एक बार फिर बाथरूम के दरवाजे के पास आ गए और चहल कदमी करने लगे। जैसे ही सोनी ने मूत्र विसर्जन शुरू किया सीटी की मधुर आवाज सरयू सिंह के कानों तक पहुंची और उनकी प्रतीक्षा खत्म हुई सरयू सिंह अपनी चहल कदमी रोककर उस मधुर स्वर में खो गए और उस स्रोत की खूबसूरती की मन ही मन कल्पना करने लगे।
तभी लाली भी कमरे से बाहर आ गई। और बेहद आदर से सरयू सिंह से बोली
"लागाता हमनी के उठे में देर हो गईल बा आप बैठी हम चाय बनाकर ले आवत बानी"
जब तक सोनी घर में रही… सरयू सिंह उसके अंग प्रत्यंग ओं को देखने का एक भी मौका नहीं छोड़ रहे थे। पर सोनी उनसे सुरक्षित दूरी बनाए हुए थी। सुगना का घर इतना बड़ा न था कि वह सरयू सिंह की निगाहों के सामने न पड़ती…सोनी बरबस ही सरयू सिंह की वीणा के तार छेड़ जाती विचारों के कंपन लंड को तरंगों से भर देते और उनका लंड उस तरुणी की योनि मर्दन की कल्पना कर उत्साहित हो तन जाता।
आखिरकार सोनी के कॉलेज जाने का वक्त हुआ और सोनी बलखाती हुई सरयू सिंह के सामने से निकल गई… सुगना को आने में अभी वक्त था एक बार सरयू सिंह के मन में आया कि वह दोबारा सोनी का पीछा करें परंतु…उन्होंने वह विचार त्याग दिया और बेसब्री से सुगना और सोनू का इंतजार करने लगे…
सोनू और सुगना एक बार फिर वापस बनारस लौट रहे थे कार की पिछली सीट पर दोनों दो किनारों पर बैठे थे पर सोच एक दूसरे के बारे में ही रहे थे।
महिला डॉक्टर ने जो नसीहत सुगना को दी थी वही नसीहत सोनू भी पढ़ चुका था। अगले 1 हफ्ते तक संभोग वर्जित था परंतु जननांगों को सक्रिय रखने के लिए अगले 8 दिन यथासंभव अधिकाधिक संभोग की वकालत की गई थी। जितना सुगना सोनू के बारे में सोच रही थी उसका छोटा भाई उससे कम न था वह भी सुगना के खूबसूरत जननांगों को यूं ही निष्क्रीय नहीं हो जाने देना चाह रहा था… परंतु सुगना बड़ी थी और ज्यादा जिम्मेदार थी। सोनू को पूरा यकीन था कि जिस सुगना दीदी ने पूरे परिवार को इस मुकाम तक लाया था वह उसकी धुरी की खशियो को यूं ही बर्बाद नहीं होने देंगी।
निश्चित ही एसडीएम बनने के बाद सोनू इस परिवार के लिए बेहद अहम था। दोनों भाई बहन एक दूसरे के जननांगों को जीवंत रखने के लिए तरह-तरह के उपाय लगा रहे थे। अपना-अपना होता है सुगना का ख्याल रखने वाला इस दुनिया में अब कोई न था। परंतु सुगना के लिए अभी भी रास्ते खुले हुए थे लाली उसके लिए वरदान थी रास्ते भर वह लाली के बारे में ही सोचती रही।
सुगना ने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि वह बनारस पहुंचते ही सोनू को जौनपुर भेज देगी और 7 दिनों बाद सोनू को जबरदस्ती अपने घर बुला लेगी और उसे तथा लाली को भरपूर एकांत देगी… और यही नहीं उन दोनों के बीच लगातार संभोग होता रहे यह सुनिश्चित करेगी चाहे और उसके लिए उसे कुछ भी करना पड़े.. यदि सोनू को लाली से संभोग हेतु उसे स्वयं भी उत्तेजित करना पड़ा तो भी वह पीछे नहीं हटेगी..
परंतु वह अभी सोनू को कैसे रोकेगी? यदि सोनू ने जौनपुर जाने में देर की तब? सोनू और लाली तो स्वत ही करीब आ जाते है .. यह तो दीपावली की वह काली रात थी जिसके पश्चात कई दिनों तक सोनू और लाली की अंतरंग मुलाकात न हुई थी पर अब सबकुछ सामान्य हो चला था।
सोनू अब भी मीठे सपनों में खोया हुआ था बीती रात उसने सुगना के चेहरे पर वह डर पढ़ लिया था जो डॉक्टर की नसीहत न मानने पर उत्पन्न होता उसे इतना तो विश्वास था की सुगना किसी न किसी प्रकार उसके वीर्य स्खलन का प्रबंध अवश्य करेगी परंतु क्या वह स्वयं अपने लिए डॉक्टर द्वारा दी गई नसीहत को मानेगी इस बात में संशय अवश्य था।
अचानक लगी ब्रेक ने सोनू को उसके ख्यालों से बाहर निकाल दिया सुगना भी जाग उठी सामने एक मोटरसाइकिल वाले ने दूसरे को टक्कर मार दी थी और दोनों निकल कर एक दूसरे को गालियां बक रहे थे सोनू ने जैसे ही शीशे का दरवाजा नीचे किया बाहर से आवाज सुनाई पड़ी…
"अरे बहन चोद…यहां क्या अपनी बहन चुदवाने आया है"
सोनू ने झटपट अपने खिड़की के शीशे को बंद करने की कोशिश की परंतु देर हो चुकी थी वह ध्वनि सुगना के कानों तक भी पहुंच चुकी बहन चोद शब्द सुगना के कानों में गूंज रहा था और सोनू के भी। समाज में घृणित नजरों से देखा जाने वाला यह शब्द सुगना और सोनू को हिला गया और सोनू के मन में उठ रही वासना कुछ पलों के लिए काफूर हो गई।
उस शब्द से सुगना भी आहत हो गई थी। जितना ही सुगना उस शब्द को भूलना चाहती उतना ही वह सुगना के सामने आता सुगना की आंखों के सामने उसके प्रथम मिलन के दृश्य घूमने लगे उसने जो प्रतिकार किया था वह भी उसे याद था और वह भी जब अंततः उसने अपनी वासना के अधीन होकरअपने पैरों से सोनू को अपनी जांघों के बीच अपनी तरफ खींचा था।नियति गवाह थी सोनू को बहन चोद बनाने में सुगना की भी अहम भूमिका थी।
जब तक सुगना अपने विचारों से बाहर आतीं सोनू की कार सुगना के दरवाजे पर खड़ी हो चुकी थी। दरवाजा खुलते ही सूरज तेजी से उतर कर घर के अंदर भागा और थोड़ी ही देर में सुगना के घर की खोई हुई चहल-पहल वापस आ गई ।
घर की रानी सुगना के घर में घुसते ही सब उसके इर्द-गिर्द इकट्ठा हो गए। सुगना अपने परिवार की रानी मक्खी थी और सब उसके इर्द-गिर्द झुंड बनाकर खड़े हो गए । सब उसका हाल-चाल पूछ रहे थे। और उसे इस हाल में लाने वाला गाड़ी से सामान निकाल निकाल कर सुगना के कमरे तक पहुंचा रहा था।
अंदर सरयू सिंह को देखकर सुगना घबरा गई। उसके मन में एक डर सा आ गया.. उसने अपने डर को काबू में कर सरयू सिंह के चरण छुए और सरयू सिंह ने उसे खुश रहने का आशीर्वाद देते हुए अपनी सीने से सटा लिया। आज पहली बार सुगना सरयू सिंह के आलिंगन में खुद को असहज महसूस कर रही थी.. शायद यह उसके मन में आ रही आत्मग्लानि की वजह से था।
"बेटा डॉक्टर के रिपोर्ट में सब ठीक निकलल बा नू? अब पेट दर्द कैसन बा?"
सरयू सिंह सचमुच सुगना से बेहद प्यार करते थे…पहले भी और अब भी दोनों ही रूप में सुगना उन्हें जान से ज्यादा प्यारी थी…..
सुगना ने कहा अब ठीक बा दवा खाई ले बानी रिपोर्ट भी नॉर्मल बा…
सुगना के आने के पश्चात सरयू सिंह अपना सामान लेकर दूसरे कमरे में आ गए और सुगना अपना कमरा ठीक करने लगी।
अलमारी में अपने कपड़ों को सहेज कर रखते हुए अचानक उसे वही रहीम और फातिमा की किताब दिखाई दी जिसे दो टुकड़ों में उसने स्वयं फाड़ कर फेका था और जिसे कुछ दिनों बाद सोनू ने वापस जोड़ दिया था। न जाने सुगना के मन में क्या आया उसने वह किताब निकाल ली.. और अनमने मन से आलमारी के अंदर ही सब की नजरों से छुपती उसके पन्ने पलटने लगी। दीपावली की उस काली रात के पहले सुगना वह किताब कई बार बढ़ चुकी थी और रहींम तथा फातिमा को ना जाने कितनी बार कोस चुकी थी…परंतु किताब को पढ़कर न जाने उसके शरीर में ना जाने क्या हो जाता. सुगना का तन बदन और दिमाग एक लय में काम न करते…. और सुगना की बुर उसे प्रतिरोध के बावजूद चिपचिपी हो जाती।
आज भी सुगना एक बार फिर रहीम और फातिमा की कहानी में खो गई… कैसे फातिमा ने रहीम को वासना के गर्त में खींच लाया था…. आज लखनऊ से वापस आते समय भी उसमें अपने दिमाग में कई बार किताब का जिक्र लाया था…
"दीदी हमार तोलिया तोहरा बैग में बा का? " सोनू की आवाज से सुनना सतर्क हुई और आनन-फानन में उस किताब को वही कपड़ों के भीतर छुपा दिया।किताब की कामुक भाषा में सुगना को बेचैन कर दिया। सुगना की वासना हिलोरे मार रही थी और सांसे गति पकड़ रही थी यदि वह किताब के पन्ने कुछ देर और पलट तो निश्चित ही जांघों के बीच छुपी इश्क की रानी का दर्द उसके होठों पर छलक आता…
सुगना ने झुक कर अपना बैग खोला और उसकी निगाहें सोनू का तोलिया ढूंढने लगी उधर सोनू की निगाहें सामने झुकी हुई सुगना के ब्लाउज में दूधिया कलशों को ढूंढने में लग गई…और जब सुगना ने तोलिया ढूंढ लिया उसकी नजरें ऊपर उठी और सोनू की चोरी पकड़ी गई सुगना ने अपनी साड़ी का पल्लू ठीक किया और तोलिया देते हुए सोनू को बोली…
"तोहरा जौनपुर कब जाएके बा?"
आज पहली बार सुगना खुद सोनू से जाने के लिए पूछ रही थी। इसका कारण कुछ और नहीं सिर्फ सोनू को लाली से एक सप्ताह के लिए दूर रखना था सुगना जानती थी सोनू और लाली निश्चित ही करीब आएंगे और हो सकता है सोनू आवेश में आकर लाली के साथ संबंध बना बैठे…जो डॉक्टर के हिसाब से सर्वथा वर्जित था।
"कल सुबह जाएब" सोनू ने स्वाभाविक और अनुकूल उत्तर देकर सुगना को संतुष्ट कर दिया। सुगना खुश हो गई 1 दिन के लिए सोनू को लाली से अलग रखने की जुगत तो वह लगा ही सकती थी।
सरयू सिंह सुगना के साथ बात करने को बेताब थे परंतु उन्हें मौका नहीं मिला रहा था। वैसे भी सोनी और विकास का मुद्दा गंभीर था उसे वह उस बात को हल्के में जाया नहीं करना चाहते थे। समय काटने के लिए वह अपने पुत्र सूरज को लेकर बाहर घूमने चले गए । उन्हें बखूबी पता था कि सूरज उनका ही पुत्र है जिसे सुगना के गर्भ में पहुंचाने के लिए उन्होंने दो-तीन वर्ष तक सुगना का खेत खूब जोता था….
जैसे ही सुगना स्नानघर में नहाने घुसी सोनू ने घर का मुख्य दरवाजा बंद किया और कुछ देर इंतजार करने के बाद खाना बना रही लाली के पास पहुंच गया कुछ देर तो वह लाली से इधर उधर बातें करता रहा और थोड़ी ही देर बाद उसने लाली को अपने आलिंगन में भर लिया लाली को पीछे से अपनी बाहों में भरे सोनू की हथेलियां लाली की सूचियों की गोलाई नापने लगी लंड तन कर उसके नितंबों में धंसने लगा लाली को भी संभोग किए कई दिन बीत चुके थे सोनू का यह स्पर्श उसे अच्छा लग रहा था। लाली की वासना जागृत हो गई उसने एन केन प्रकारेण अपने हाथों को साफ किया और सीधे होकर सोनू को अपनी बाहों में भर लिया. सोनू और लाली के बीच चुम्मा चाटी प्रारंभ हो गई और सोनू लाली की नाइटी को ऊपर खींचने लगा …. तभी बाथरूम से निकलकर सुगना बाहर आ गई ….. और अपने कमरे में जाने लगी तभी उसकी नजर रसोई में पड़ गई जहां सोनू लाली की नाइटी को उसके नितंबों तक ऊपर कर चुका था…
लाली और सोनू को रोकना जरूरी था सुगना ने रसोई के दरवाजे पर पहुंचकर लाली को आवाज दी…
"लाली ..बाबूजी आईल बाड़े पहले खाना पीना खिला दे फिर सोनू से बतिया लीहे…"
लाली और सोनू के बीच जो हो रहा था वह सुगना अपनी खुली आंखों से देख चुकी थी… उसने सरयू सिंह का नाम लेकर उनके मिलन में खलल डाल दिया था…. पर सुगना मजबूर थी।
सोनू मुस्कुरा रहा था…. उसकी सोच कामयाब हो रही थी…. जैसा कि उसे उम्मीद थी की सुगना दीदी अगले एक सप्ताह तक उसे लाली के करीब नहीं आने देंगी शायद अपने इसी विश्वास को सुदृढ़ करने के लिए वह सुगना के बाथरूम से बाहर निकलने के ठीक पहले लाली के नजदीक आया था वह भी रसोई घर में ताकि सुगना का ध्यान बरबस ही उसकी तरफ आ जाए…
सोनू रसोई घर से बाहर आ गया और भीनी भीनी महक बिखेरती सुगना अपने कमरे में प्रवेश कर गई। लाली एक बार फिर मन मसोसकर आधा गूंथा हुआ आटा गुथने लगी…
तभी दरवाजे पर ठक ठक की आवाज हुई सोनू ने आगे बढ़कर दरवाजा खोला…. बाहर दो बड़ी बड़ी कार खड़ी थीं …हाथों में सजी-धजी फलों और मिठाई की टोकरी लिए तीन चार व्यक्ति बाहर खड़े थे और उनके पीछे लाल रंग का चमकदार बैग लिए हांथ जोड़े दो संभ्रांत पुरुष..
उनकी वेशभूषा और फलों तथा मिठाइयों की की गई पैकिंग को देखकर यह अंदाज लगाया जा सकता था कि उनका सोनू के घर आने का क्या प्रयोजन था…
सोनू ने उन्हें अंदर आने के लिए निमंत्रित किया और अंदर आकर हाल में रखी कुर्सियों को व्यवस्थित कर उन्हें बैठाने लगा…
लग रहा था जैसे सुगना और सोनू के परिवार में कोई नया सदस्य आने वाला था…
शेष अगले भाग में…