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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

yenjvoy

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भाग 114

अगली सुबह सुगना और सोनू को जौनपुर जाना था…

सुगना, सोनू और जौनपुर का वह घर जिसे सुगना को स्वयं अपने हाथों से सजाना था…. नियति अपनी व्यूह रचना में लग गई…

अजब विडंबना थी। सोनू अपने इष्ट से सुगना को मांग रहा था और लाली सोनू को और सबकी प्यारी सुगना को और कुछ नहीं चाहिए था सिर्फ वह सोनू के पुरुषत्व को जीवंत रखना चाहती थी। यह बात वह भूल चुकी थी की डॉक्टर ने उसके स्वयं के जननांगों की उपयोगिता बनाए रखने के लिए उसे भी भरपूर संभोग करने की नसीहत दी थी परंतु सुगना का ध्यान उस ओर न जा रहा था परंतु कोई तो था जो सुगना के स्त्रीत्व की रक्षा करने के लिए उतना ही उतावला था जितना सुगना स्वयं…


अब आगे..

सुगना के बिस्तर पर लेटा हुआ सोनू आने वाले दिनों के बारे में सोच रहा था। सुगना ने सोनू को नसीहत दे रखी थी कि दरवाजा बंद मत करना शायद इसलिए कि वह आवश्यकता पड़ने पर कोई सामान उस कमरे से ले सके और शायद इसलिए भी की कहीं सोनू उत्तेजित होकर हस्तमैथुन न कर बैठे….

कल सुगना ने जौनपुर साथ जाने की बात कह कर उसका मुंह बंद कर दिया था। उस वक्त तो वह सिर्फ सुगना को छेड़ रहा था परंतु अब वह स्वयं यह नहीं चाह रहा था कि सुगना उसके साथ जौनपुर जाए । कारण स्पष्ट था सोनू तो वो 7 दिन सुगना के साथ बिताना चाहता था जिन दिनों में उसे न सिर्फ अपने पुरुषत्व को बचाना था अपितु सुगना की उस सकरी और सुनहरी गली को भी जीवंत और खुशहाल बनाना था जिसे एबॉर्शन के दौरान डाक्टर ने अपने औजार डॉक्टर ने घायल कर दिया था।

थके होने के बावजूद नींद उसकी आंखों से दूर थी। जौनपुर का घर अभी सुगना के रहने लायक न था वह उसे ले जाकर और परेशान कतई नहीं करना चाहता था। सोनू ने निश्चय कर लिया कि वह सुगना को जौनपुर लेकर अभी कतई नहीं जाएगा। पर उन 7 दिनों का क्या..

सुगना की बात उसके दिमाग में गूंजने लगी जो उसने रेडिएंट होटल के उस कमरे में कही थी जब वह बाथरूम के अंदर छुपा हुआ था..

"सोनू के भी बता दीहे…अभी ते भी तीन चार दिन ओकरा से दूर ही रहिए… अगला हफ्ता ते सोनू संगे जौनपुर चल जाइहे ओहिजे मन भर अपन साध बुता लिए और ओकरो। लेकिन भगवान के खातिर ई हफ्ता छोड़ दे"

सोनू परेशान हो रहा था। सोनू यह बात जान चुका था की लाली का इंतजार अब चरम पर है। लाली सचमुच बेकरार हो चुकी थी जिस युवती ने किशोर सोनू की वासना को पाल पोसकर आज उफान तक पहुंचाया था उसे उस वासना का सुख लेने का हक भी था और इंतजार भी। लाली उन 7 दिनों के इंतजार में अपनी आज की रात नहीं गवाना चाह रही थी परंतु आज भी सुगना ने उसे और सोनू को अलग कर दिया था।


लाली की मनोस्थिति को ध्यान में रख आखिरकार सोनू ने अपने मन में निश्चय कर लिया फिलहाल तो वह सुगना दीदी को जौनपुर नहीं ले जाएगा…और लाली को आहत नहीं करेगा..

उधर सुनना लाली की जांघों के बीच चिपचिपापान देखकर दुखी हो गई । यह दुख उसे लाली के प्रति सहानुभूति के कारण हो रहा था। सच में वह बेचारी कई दिनों से सोनू की राह देख रही थी परंतु उसके कारण वह सोनू से संभोग सुख नहीं प्राप्त कर पा रही थी।

जांघों के बीच छुपी वह छुपी बुर की तड़प सुगना बखूबी समझती थी। जिस प्रकार भूख लगने पर मुंह और जीभ में एक अजब सी तड़प उत्पन्न होती है वही हाल सुगना और लाली की बुर का था। सुगना तो सरयू सिंह से अलग होने के बाद संयम सीख चुकी थी और अपने पति रतन द्वारा कई बार चोदे जाने के बावजूद स्खलन सुख को प्राप्त करने में असफल रही थी। उसकी वासना पर ग्रहण लगा हुआ था और धीरे धीरे उसने संयम सीख लिया था परंतु पिछले कुछ माह से सुगना को मनोस्थिति बदल रही थी…लाली और सोनू का मिलन साक्षात देखने के बाद …..सुगना और सोनू के बीच कुछ बदल चुका था…भाई बहन के श्वेत निर्मल प्यार पर वासना की लालिमा आ गई थी…जो धीरे धीरे अपना रंग और गहरा रही थी।

परंतु लाली उसे तो यह सुख लगातार मिल रहा था और वह भी सोनू जैसे युवा मर्द का। उसके लिए सोनू से यह विछोह कष्टकारी हो चला था।

न जाने सुगना को क्या सूझा उसने नीचे खिसक कर लाली की तनी हुई चूचियों को अपने होठों से पकड़ने की कोशिश की। सुगना नाइटी के ऊपर से भी लाली के तने हुए निप्पलों को पकड़ने में कामयाब रही। अपने होंठो का दबाव देकर उसने लाली को खिलखिलाने पर मजबूर कर दिया। लाली का गुस्सा एक पल में ही काफूर हो गया और उसने अपनी सहेली के सर पर हाथ लेकर उसे अपनी चुचियों में और जोर से सटा लिया।


"ए सुगना मत कर… एक तो पहले ही से बेचैन बानी और तें आग लगावत बाड़े"

सुगना ने लाली के निप्पलों को एक पल के लिए छोड़ा और अपनी ठुड्डी लाली की चूचियों से रगड़ते हुए अपने चेहरे को ऊपर उठाया और लाली का चेहरा देखते हुए बोली

"अब जब आग लागीए गईल बा तब पानी डाल ही के परी" यह कहते हुए सुगना ने अपनी हथेली से लाली की बुर को घेर लिया।

लाली ने अपने दांतो से अपने निचले होंठ को पकड़ने की कोशिश की और कराहती हुई बोली

"ई आग पानी डलला से ना निकलला से बुताई"

सच ही था लाली की आग बिना स्खलित हुए नहीं बुझनी थी।

लाली की बुर ज्यादा कोमल थी या सुगना की उंगलियां यह कहना कठिन है परंतु लाली की बुर से रिस रहा प्रेम रस उन दोनों की दूरी को और भी कम कर गया। सुगना का मुलायम कोमल हाथ लाली की बुर पर फिसलने लगा।

लाली और सुगना आज तक कई बार एक दूसरे के करीब आई थी परंतु आज सुगना अपने अपराध भाव से ग्रस्त होकर लाली के जितने करीब आ रही थी यह अलग था। किसी औरत के इतना करीब सुगना पहले सिर्फ अपनी सास कजरी के पास आई थी वह भी एक तरफा। उसे कजरी के स्त्री शरीर से कोई सरोकार न था परंतु जो खजाना वह अपने भीतर छुपाई हुई थी उसने कजरी को स्वयं उसके पास आने पर मजबूर कर दिया था। और आखिरकार सुगना की वासना को पुष्पित पल्लवित और प्रज्वलित करने में जितना योगदान सरयू सिंह ने दिया था उतना ही कजरी ने।

सुगना की हथेलियों का दबाव लाली की बुर और होठों का दबाव निप्पल पर बढ़ रहा था। कुछ ही पलों में लाली की बुर द्वारा छोड़ा गया रस उसकी जांघों के बीच फैल रहा था। सुगना की उंगलियां लाली की बुर के अगल-बगल चहल कदमी करने लगी।


कभी सुगना अपनी उंगलियों से लाली की बुर् के होठों को फैलाती कभी उस खूबसूरत दाने अपनी तर्जनी और अंगूठे के बीच लेकर को मसल देती जो अब फूल कर कुप्पा हो और चला था।

न जाने उस छोटे से मटर के दाने में इतना इतनी संवेदना कहां से भर जाती। उसके स्पर्श मात्र से लाली चिहूंक उठती। लाली कभी अपनी बुर की फांकों को सिकोड़ती कभी उन्हें फैलाती परंतु सुगना उसे फैलाने पर उतारू थी। वह अपनी उंगलियां लाली की बुर के भीतर ले जाने की कोशिश करने लगी।

सुगना की हथेली पूरी तरह लाली के प्रेम रस से भीग चुकी थी। ऊपर सुगना के होठ लाली की चूचियों को घेरने की कोशिश कर रहे थे। सुगना की आतुरता लाली को उत्तेजित कर रही थी। लाली ने स्वयं अपनी फ्रंट ओपन नाइटी के बटन खोल दिए और अपनी चूचियां सुगना के चेहरे पर रगड़ने लगी। सुगना लाली की आतुरता समझ रही थी और उसकी उत्तेजना को अंजाम तक पहुंचाने की पुरजोर कोशिश कर रही थी तभी लाली में कहा

" ते सोनूवा के काहे रोकले हा ?"


सुगना को कोई उत्तर न सोच रहा था वह इस प्रश्न का सही उत्तर देकर सोनू की नसबंदी की बात को उजागर नहीं करना चाह रही थी। जब सुगना निरुत्तर हुई उसने लाली के निप्पलों को अपने मुंह में भर कर अपनी जीभ से सहलाने लगी। और लाली एक बार फिर कराह उठी ..

"बताऊ ना सुगना?" लाली अपनी उत्तेजना के चरम पर भी अपने प्रश्न का उत्तर जानना चाह रही थी जो उसे आज दिन भर से खाए जा रहा था।

पर अब तक सुगना उत्तर खोज चुकी थी..

"अगला हफ्ता जइबे नू जौनपुर..? बच्चा लोग के हमरा पास छोड़ दीहे और सोनूआ के दिन भर अपना संगे सुताईले रहीहे। अपनो साध बुता लिहे और ओकरो.."

सुगना की बात में अभी भी लाली के प्रश्न का उत्तर न था परंतु जो सुगना ने कहा था वह लाली की कल्पना को नया आयाम दे गया था सोनू के घर में बिना किसी अवरोध के…… दिन रात सोनू के संग रंगरेलियां मनाने की कल्पना मात्र से वह प्रसन्न हो गई थी और सुगना की उंगलियों के बीच खेल रही उसकी बूर अपना रस स्खलित करने को तैयार थी।


जैसे ही सुगना ने उसकी बुर के भगनासे को सहलाया लाली ने अपनी जांघें सी कोड ली और सुगना की उंगलियों को पूरी मजबूती से अपने भीतर दबाने लगी बुर के कंपन सुगना की उंगलियां महसूस कर पा रही थी लाली हाफ रही थी और स्खलित हो रही थी।

पूर्ण तृप्त होने के पश्चात उसके जांघों की पकड़ ढीली हुई और सुगना के होठों ने लाली की चूची को अंतिम बार चुमा और सुगना सरक पर ऊपर आ गई…

कुछ पलों बाद लाली को एहसास हुआ कि अब से कुछ देर पहले वह जिस सुख को अपनी सहेली की उंगलियों से प्राप्त कर रही थी उसकी दरकार शायद उसकी सहेली सुगना को भी हो। लाली ने सुगना की चूचियों पर हाथ फेरने की कोशिश की परंतु सुगना ने रोक दिया। वह उसके हाथों को हटाकर अपनी पीठ पर ले आई और उसे आलिंगन में लेते हुए सोने की चेष्टा करने लगी सुगना ने बड़ी शालीनता और सादगी से अपनी उत्तेजना को लाली की निगाहों में आने से बचा लिया परंतु नियति सुगना की मनोदशा समझ रही थी और अपने ताने बाने बुनने में लगी हुई थी….

आज का दिन सोनी और विकास के लिए बेहद खास था जिस प्रेम संबंध को वह दोनों पिछले एक-दो वर्षों से निभा रहे थे आज उसे सामाजिक मान्यता मिल चुकी थी सुगना भी बेहद प्रसन्न थी। दीपावली की उस काली रात के बाद सुगना का अपने इष्ट पर से विश्वास डगमगा गया था सोनू द्वारा की गई हरकत उसे आहत कर गई थी। उस पर से मोनी का गायब होना… निश्चित ही किसी अनिष्ट का संकेत दे रहा था परंतु धीरे-धीरे स्थिति सामान्य हो रही थी और विकास तथा सोनी के रिश्ते में बंध जाने के बाद सुगना प्रसन्न थी। खुशी के सुगना कब चेहरे पर वापस वही रंगत ला दी थी जिसे देखने के लिए पूरा परिवार और विशेषकर सोनू अधीर था।

लाली को तृप्त करने के बाद सुगना को ध्यान आया कही सोनू हस्तमैथुन न कर रहा हो। आज वैसे भी वह दो दो बार लाली से संभोग करने से चूक गया था। सुगना उठी और अपने कमरे में दबे पांव आई। उसके आदेशानुसार कमरे का दरवाजा खुला हुआ था और सोनू गहरी नींद में सो रहा था। सुगना खुश हो गई और वापस लाली के पास आकर निश्चिंत हो कर सो गई।




सुबह-सुबह सुगना चाय लेकर सोनू को जगाने गई .. सोनू नींद में था उसके दोनों पैर खुले हुए थे और लूंगी हटकर उसकी नग्न पुष्ट जांघों को उजागर कर रही थी.। सुगना उसकी लूंगी के पीछे छुपे उसके हथियार को देखने लगी …जो अंडरवियर में कैद होने के बावजूद अपने अस्तित्व का एहसास बखूबी करा रहा था। सुगना सोनू की नसबंदी की बात सोचने लगी। आखिर सोनू ने यह क्या कर दिया था? क्या सचमुच वह विवाह नहीं करेगा…

शायद इसे संयोग कहें या सुगना के बदन की मादक खुशबू सोनू ने एक गहरी सांस लिए और सोनू की पलकें खुली और अपनी बड़ी बहन सुगना के फूल से खिले चेहरे को देखकर सोनू का दिन बन गया वह झटपट उठकर बिस्तर पर बैठ गया और बोला..

"अरे दीदी बड़ा जल्दी उठ गईलू"

सुगना ने चाय बिस्तर पर रखी और बोली..

"देख …7:00 बज गईल बा जल्दी कहां बा अभी जौनपुर जाए के तैयारी भी तो करे के बा"

सुगना ने आगे बढ़कर खिड़की पर से पर्दा हटा दिया अचानक कमरे में रोशनी हो गई सोनू ने अपनी पलकें मीचीं और और सुगना के दमकते चेहरे को देखने लगा जो सूरज की रोशनी पढ़ने से और भी चमक रहा था…सुगना की काली काली लटें के गोरे-गोरे गालों को चूमने का प्रयास करतीं। उन पर पड़ रही रोशनी उन लटों को और खूबसूरत बना रही थी..

चाय की चुस्कियां लेते हुए सोनू ने कहा..

"दीदी हम सोचत बानी कि सामान बनारस से ही खरीदल जाऊ ओहिजा बढ़िया पलंग वलंग का जाने मिली कि ना..?"


सुगना ने सोनू की बात को संजीदगी से लिया निश्चित ही बनारस में उत्तम कोटि का सामान मिल सकता था। सुगना ने उसकी सुगना ने उसकी बात का समर्थन करते हुए कहा

" ठीक कहत बाड़े लाली के उठे दे ऊ दू तीन गो दुकान देख ले बिया ओकरे के लेकर चलेके अच्छा रही"

"हां दीदी इहे ठीक रही। जब सामान पहुंच जाई हम कमरा में लगवा देब तब तू तीन चार दिन बाद आ जाईह….तब बाकी छोट मोट और रसोई के सामान ठीक कर दीह"


तीन चार दिनों की बात सुनकर सुगना सहम गई। तीन चार दिनों बाद तो सोनू को अनवरत संभोग करना था उस समय वहां सुगना का क्या काम था… सुगना ने तपाक से कहा

"कोई बात ना वो समय लाली जौनपुर चल जाए हम फिर कभी आ जाएब_

"ना दीदी तू भी चलतू तो अच्छा रहित हम चाहत बानी की घर में गृह प्रवेश तोहरा से ही होइत "

सोनू सुगना को लेकर भावुक था। वह अपनी बड़ी बहन को अपने नए घर में सर्वप्रथम आमंत्रित करना चाहता था। वह लाली का अनादर कतई नहीं करना चाहता था पर सुगना सुगना थी उसकी आदर्श …उसकी मार्गदर्शक… हमेशा उसका ख्याल रखने वाली और अब उसका सब कुछ..

सुगना ने सुगना ने सोनू के चेहरे पर आज वही मासूमियत देखी जो दीपावली की उस रात से पहले उसे दिखाई पड़ती थी। वह उसके पास आई और बोली ₹तोहार घर हमेशा तोहरा खातिर शुभ रही.. हम हमेशा तोहारा साथ बानी…अब जो जल्दी तैयार हो जो "

जब तक लाली उठती सोनू और सुगना आगे की रणनीति बना चुके थे..


लाली के जौनपुर जाने का खतरा अब न था सो सुगना भी संतुष्ट हो चुकी थी वैसे भी अभी उसके जौनपुर जाने का कोई औचित्य न था वहां पर किसी की यदि जरूरत थी तो वह थी लाली वह भी ४ दिनों बाद।

बाजार खुलते ही सोनू सुगना और लाली फर्नीचर शोरूम में पहुंच चुके थे एसडीएम बनने के बाद पैसों की तंगी लगभग खत्म हो चुकी थी ..

बड़े से फर्नीचर शोरूम में तरह-तरह के डबल बेड लगे हुए थे लाली तो पहले भी कई बार ऐसे शोरूम में आ चुकी थी यद्यपि उस समय उसकी हैसियत न थी कि वह ऐसे पलंग खरीद पाती पाती परंतु उसका स्वर्गीय पति राजेश इन मामलों में अपनी हैसियत से एक दो कदम आगे की सोचता था वह लाली को कई बार ऐसे फर्नीचर शोरूम मे ला चुका था वह उसकी पसंद की चीजें तो नहीं पर छुटपुट चीजें खरीद कर उसको मना लेता और घर पहुंच कर उसकी खुशियों का भरपूर फायदा उठाता और मन भर चूदाई करता।

सोनू ने सुगना और लाली को पलंग पसंद करने की खुली छूट दे दी। सुगना पलंग की खूबसूरती देख देख कर मोहित हुई जा रही थी अचानक उसे अपना पलंग और अपना फर्नीचर बेहद कमतर प्रतीत होने लगा फिर भी उसने अपने मन के भाव को अपने चेहरे पर ना आने दिया और अपने प्यारे सोनू के लिए पलंग पसंद करने लगी…

सुगना और लाली की पसंद अलग अलग थी और यह स्वाभाविक भी था। दोनों ही पलंग बेहद खूबसूरत थे। भरे भरे डनलप के गद्दे साथ में खूबसूरत सिरहाना बिस्तर की खूबसूरती मन मोहने वाली थी और उन सभी युवतियों के मन को गुदगुदाने वाली थी जिनकी जांघों के बीच पल रही खूबसूरत रानी या तो जवान हो चुकी थी या किशोरावस्था के मादक दौर से गुजर रही थी और यहां तो सुगना और लाली जवानी की पराकाष्ठा पर थी।

डबल बेड के साथ खूबसूरत श्रृंगारदान भी था यद्यपि सोनू के लिए श्रृंगारदान का कोई महत्व न था परंतु वह डबल बेड के साथ ही उपलब्ध था।

सुगना एक पल के लिए एक पल के लिए सोनू और उसकी होने वाली पत्नी के बारे में सोचने लगी क्या भगवान ने सोनू के लिए भी किसी की रचना की होगी.. क्या उसका भाई जीवन भर सच में अविवाहित रहेगा ? क्या लाली और सोनू इसी तरह जीवन में गुपचुप मिलते रहेंगे सुगना अपनी सोच में डूब गए तभी


साथ आए सूरज ने कहा सूरज ने कहा

"मामा ई वाला मां के पसंद बा और ऊ वाला लाली मौसी के बतावा कौन लेबा"

सोनू ने अपनी दोनों बहनों के चेहरे के भाव पढ़ने की कोशिश की जैसे वह उन दोनों में से कोई एक चुनना चाह रहा हो। सुगना सुगना थी वह कभी भी सोनू को धर्म संकट में नहीं डालना चाहती थी अचानक उसने कहा

"ई वाला छोड़ दे लाली वाला ज्यादा ठीक लागा ता। ओकरे के लेले…_" आखिर जिसे उस बिस्तर पर चुदना था पसंद उसकी ही होनी चाहिए।

पर सोनू सुगना को बखूबी जानता था। सुगना हमेशा से अपनों के लिए अपनी पसंद का त्याग करती आई थी।

सोनू ने उस बात को वहीं विराम दिया और दोनों बहनों को आगे ले जाकर एक खूबसूरत सोफासेट दिखाकर उनकी राय मांगी और दोनों एक सुर में बोल उठी

"अरे इतना सुंदर बा इकरे के लेले" और इस प्रकार लगभग सभी मुख्य सामान पर सभी की आम राय हो गई। सोनू ने दुकान के मालिक से मिलकर जरूरी दिशा निर्देश दिए और जौनपुर में सामान की डिलीवरी सुनिश्चित कर अपने परिवार के साथ बाहर आ गया..

लाली और सुगना के लिए कुछ और जरूरी साजो सामग्री खरीदने के पश्चात सोनू अपनी दोनों बहनों के साथ घर आ गया और अब उसकी विदाई का वक्त करीब था। सोनू जौनपुर के लिए निकलने वाला था अब जो परिस्थितियां बनी थी उसके अनुसार लाली को तीन चार दिनों बाद ही जौनपुर जाना था। खैर जैसे लाली ने इतने दिनों तक इंतजार किया था 3 दिन और इंतजार कर सकती थी।

विदा होने से पहले सोनू को सुगना ने अपने कमरे में बुलाया और अपना चेहरा झुकाए हुए बोली..

"सोनू एक बात ध्यान राखिहे…अभी तीन-चार दिन तक ऊ कुल गलत काम मत करिहे…"

सोनू सुगना के मुंह से यह बात सुनने के लिए पिछले कुछ दिनों से तरस रहा था उसे बार-बार यही लगता कि आखिर डॉक्टर की नसीहत को सुगना दीदी ने उसे क्यों नहीं बताया।

फिर भी सोनू ने अनजान बनते हुए कहा

"कौन काम?"

सुगना शर्म से पानी पानी हो रही थी अपने ही भाई से हस्तमैथुन की बात करना उसे शर्मसार कर रहा था परंतु वह बार-बार इस बात को लेकर परेशान हो रही थी कि यदि उसने डॉक्टर का संदेश सोनू को ना पहुंचाया तो वह कहीं हस्तमैथुन कर को खुद को खतरे में ना डाल ले। अब तक तो वह लाली को उससे दूर किए हुए थी..पर एकांत वासना ग्रस्त इंसान को हस्तमैथुन की तरफ प्रेरित करता है सुगना यह बात बखूबी जानती थी।

सोनू अब भी सुगना के उत्तर का इंतजार कर रहा था "बताओ ना दीदी कौन काम?" सोनू ने अनजान बनते हुए सुगना से दोबारा पूछा

"ऊ जौन तू अस्पताल में करौले बाड़ ओकरा बाद सप्ताह भर तक ओकरा के हाथ नैईखे लगावे के…ऊ कुल काम बिल्कुल मत करिहा जवन कॉलेज वाला लाइका सब करेला….. बाकी जब लाली आई अपन ही सब बता दी …"

सुगना ने अपनी बात अपनी मर्यादा में रहकर कर तो दी और सोनू उसे बखूबी समझ भी गया था परंतु सोनू के चेहरे पर मुस्कुराहट देखकर सुगना घबरा गई उसे लगा जैसे सोनू उससे इस बारे में और भी सवाल जवाब करेगा जिसका उत्तर देने के लिए सुगना कतई तैयार न थी। वह कमरे से निकलकर बाहर आने लगी तभी सोनू ने उसकी कलाई पकड़ ली और बोला…

" दीदी हम तोहार सब बात जिंदगी भर मानब लेकिन हमरा के माफ कर दीहा …तू सचमुच हमार बहुत ख्याल रखे लू…"

सुगना की आंखों में खुशी की चमक थी उसने अपनी बात सोनू तक बखूबी पहुंचा दी थी… और सोनू ने उसे स्वीकार भी कर लिया था आधी लड़ाई सुगना जीत चुकी थी।

अपने परिवार के सभी सदस्यों को यथोचित दुलार प्यार करने के बाद सोनू अलग हुआ और जाते-जाते लाली को अपने आलिंगन में भरकर उसकी आग को एक बार फिर भड़का गया और कान में बोला दीदी हम तोहार इंतजार करब…लाली प्रसन्न हो गई।

सोनू के दोनों हाथों में लड्डू थे…. और पेट में जबरदस्त भूख पर जिस लड्डू को वह पहले खाना चाहता था वह अभी भी उससे दूर था और दूसरा मुंह में जाने को बेताब…

नियति अपनी चाल चल रही थी…वह सोनू की वह सोनू की इच्छा पूरी करने को आमादा थी…

जौनपुर में होने वाले प्रेमयुद्ध का अखाड़ा ट्रक पर लोड हो चुका था और धीरे धीरे सोनू के नए बंगले की तरफ कूच कर रहा था….


शेष अगले भाग में..
Wow! What an episode! Loving this slow burn 3way . Amazing writing lovely ji
 

Lovely Anand

Love is life
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Wonderful update Lovely Anand ji. Really exciting.
Thanks
लिखावट ऐसी की मन मचल जाता है
अच्छा है किसी को तो फायदा होता है
Hot and erotic update Anand ji waiting for next
Thanks
Wow! What an episode! Loving this slow burn 3way . Amazing writing lovely ji
Thanks
कहानी में क्या मोड आता है, पहले कोन जीत हासिल करता है, सोनु का प्यार या लाली की ..................
आप क्या चाहती हैं?
Writer g aap gret ho .aap es story ko web series bana do jo live dekhne ko mile aesa erotic story hum aaj tk ni padha hu .kiya situation aap creat karte ho .eas story m aap sony or moni ka sex game dalo busawal kela ke sath or moni ka forced sex karwao taki uaski chike nikal jaye
Thanks but हिंसक कार्यों से बचें। दर्द उतना ही जितना आनन्द के लिए आवश्यक हो.....
 

GC Kumar

New Member
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Lovely update bhai
आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
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Maza
 
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