भाग 122
जब एक बार मन में विचार आ गया सरयू सिंह ने इसकी संभावनाओं पर आगे सोचने का मन बना लिया उन्हें क्या पता था कि उनकी पुत्री सुगना का ख्याल रखने वाला सोनू अपनी बहन सुगना को तृप्त करने के बाद उसे अपनी मजबूत बाहों में लेकर चैन की नींद सो रहा था…
नियति संतुष्ट थी। सोनू और सुगना शायद एक दूसरे के लिए ही बने थे विधाता ने उनका मिलन भी एक विशेष प्रयोजन के लिए ही कराया था…
जैसे ही नियति ने विधाता के लिखे को आगे पढ़ने की कोशिश की उसका माथा चकरा गया हे प्रभु सुगना को और क्या क्या दिन देखने थे?
अब आगे…
बीती रात पदमा की तीनों पुत्रियों के लिए अनूठी थी। एक तरफ जहां सुगना अपने छोटे भाई के आगोश में चरम सुख प्राप्त कर रही थी। वहीं सोनी के लिए भी कल का दिन अनूठा था।
जब उसकी मां पदमा सरयू सिंह को खाना खिला रही थी तो सोनी अपनी कोठरी के झरोखे से पिछवाड़े खिले चमेली के फूलों को देख रही थी। जिस प्रकार चेमेली के वो फूल स्वतः ही प्रकृति को गोद में खिलकर अपनी छटा बिखेर रहे थे वैसे ही सोनी का परिवार परिवार अब पुष्पित और पल्लवित हो रहा था। सोनी को वो फूल अपने परिवार जैसे प्रतीत हो रहे थे। जो अपनी बड़ी बहन सुगना के मार्गदर्शन में अब फल फूल कर अपने परिवार का नाम रोशन कर रहे थे। सोनी विधाता के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर कर रही थी।
उसी समय खाना खाने के पश्चात सरयू सिंह पेशाब करने की पदमा के घर के पिछवाड़े में गए। सरयू सिंह बेफिक्र होकर अपने लंड को हाथों में पकड़े मूत्र त्याग कर रहे थे। संयोग से जिस दीवाल का सहारा ले के वह मूत्र त्याग कर गए थे सोनी उसी दीवार के झरोखे से बाहर देख रही थी। बाहर पेशाब के पत्तों पर गिरने की आवाज से सोनी सतर्क हो गई उसने अपना सर झरोखे से सटा कर बाहर झांकने की कोशिश की और सोनी सोनी ने जो देखा उससे उसकीसांस हलक में अटक गई।
वो अपनी आंखों देखे पर विश्वास नहीं कर पा रही थी। सरयू सिंह अपना मजबूत लंड अपने हाथों में लिए मूत्रत्याग कर रहे थे। सोनी अपनी आंखे उस अनोखे लंड से हटाना चाह रही थी पर प्रकृति का वह अजूबा उसे एकटक देखने पर बाध्य कर रहा था।
लंड पूरी तरह उत्थित अवस्था में न था परंतु सरयू सिंह में उस वक्त भी उत्तेजना का कुछ न कुछ अंश अवश्य था। अपनी पूर्व प्रेमिका पदमा और नई नवेली सोनी के संसर्ग में आकर लंड का तने रहना स्वाभाविक था।
सरयू सिंह ने अपनी उंगलियों से लंड के सुपाड़े की चमड़ी हटाई और उस लाल लट्टू को सोनी की निगाहों के सामने परोस दिया। शायद उन्होंने यह कार्य अनजाने में किया था ताकि वह मूत्र की धार को नियंत्रित कर पाएं। कुछ देर बाद उन्होंने मूत्र को आखरी बूंद को निकालने के प्रयास में उन्होंने अपने लंड को झटका और सोनी की सांस अटक गई…
बाप रे बाप…लंड ऐसा भी होता है….सोनी मन ही मन अचंभित हो रही थी।
ठीक उसी समय पदमा सरयू सिंह को खाना खिलाने के बाद जूठे बर्तन लिए अंदर आई और सोनी के कमरे में झांकते हुए बोली
" अरे सोनीया झरोखा पर खड़ा होकर का देखत बाड़े हेने आव हमर मदद कर"
पदमा की आवाज झरोखे से होते हुए सरयू सिंह के कानों तक पहुंची जो अभी अपने लंड को झटक कर उसे लंगोट में बांधने को तैयारी में थे…
सरयू सिंह ने झरोखे की तरफ देखा और उनकी आंखें सोनी से चार हो गई…
सोनी उछलकर वापस पदमा के पास आ गई…सोने की तेज चलती सांसो को देखकर पदमा ने पूछा
"का भईल ? का देखत रहले हा…?"
सोनी के पास कोई उत्तर न था आवाज हलक में दफन हो चुकी थी..पर सरयू सिंह के मजबूत और दमदार लंड की झलक सोनी देख चुकी थी।
"कुछो ना" सोनी ने सोनी ने अपनी गर्दन झुकाए हुए अपनी मां के हाथों से झूठे बर्तन लिए और उसे हैंडपंप पर जाकर रखने लगी पदमा सोनी का यह व्यवहार खुद भी न समझ पा रही थी उसे अंदाजा न था की कि सोनी सरयू सिंह के उस दिव्यास्त्र के दर्शन कर लिए थे जिसने इस परिवार के जीवन में खुशियां लाई थीं।
सोनी सरयू सिंह के वापस चले जाने के बाद भी बेचैन रही। अद्भुत काले मुसल को याद कर उसे अपनी आंखों पर यकीन ना होता और वह लाल फुला हुआ सुपाड़ा पूर्ण उत्थित अवस्था में कैसा दिखाई देता होगा??
रात अपनी खटिया पर विकास को याद करते हुए और अपनी जांघों के बीच तकिया फसाए सोनी अपनी कमर आगे पीछे कर रही थी…कभी-कभी वह सरयू सिंह के बारे में सोचती …. और उनकी कामुक निगाहों को अपने बदन पर दौड़ता महसूस कर सिहर जाती। क्या सच में पिता के उम्र के व्यक्तियों में भी युवा लड़कियों को देखकर उत्तेजना जागृत होती होगी?
आज जब उसने सरयू सिंह के उस दिव्य लंड के कुछ भाग को देख लिया था उसे यह तो अनुमान अवश्य हो चला था कि पुरुषों के लिंग में कुछ विविधता अवश्य होती है। सोनी ने नर्सिंग की पढ़ाई में मानव शरीर के बारे में कई जानकारियां एकत्रित की थी परंतु किताबी ज्ञान में इस विषय पर ज्यादा प्रकाश नहीं डाला गया था। और तात्कालिक समय में सोनी के पास न तो ब्लू फिल्मों का सहारा था और नहीं गंदे कामुक साहित्य का जिसमें वह पुरुषों को विधाता द्वारा दिए उस दिव्य अस्त्र दिव्य का आकलन और तुलना कर पाती।
सोनी खोई खोई सी कभी अपनी हथेली अपने घागरे में डाल अपनी बुर को थपथपाती कभी अपनी तर्जनी और मध्यमा से भगनासे को सहला कर उसे शांत करने का प्रयास करती। पर न जाने सोनी का वह भग्नासा कितना ढीठ था उसे वह जितना सहलाती वह उतना ही उसका ध्यान और अपनी तरफ खींचता।
नीचे उसकी बुर की पतली दरार लार टपकाने लगी। सोनी को अपनी मध्यमा से उसे पोछना पड़ता। न जाने कब मध्यमा बुर की दोनों फांकों के बीच घुसकर उस गहरी गुफा में विलुप्त हो गई और सोनी का अंगूठा भगनासे का मसलने लगा।
उत्तेजना कई बार सोच को विकृत कर देती है। हस्तमैथुन के दौरान अप्रत्याशित और असंभव दृश्यों की कल्पना कर युवक और युवती या अपना स्खलन पूर्ण करना चाहते हैं। सोनी के वाहियात खयालों में सरयू सिंह का मोटा काला लंड उसे अपनी बुर के अंदर घुसता महसूस हुआ…. बाप रे बाप …
सोनी मन ही मन यह बात सोच रही थी अच्छा ही हुआ कि सरयू चाचा कुंवारे ही थी अन्यथा जिस स्त्री को उनके साथ संभोग करना पड़ता उसकी तो जान ही निकल जाती।
इधर सोनी उस अद्भुत लंड के बारे में सोच रही थी और उसकी बुर अपने अंदर एक अप्रत्याशित हलचल महसूस कर रही थी कुछ ही देर में सोनी ने अपने साजन और गंधर्व पति विकास को याद किया और अपनी बुर को बेतहाशा अपने अंगूठे और उंगलियों से रगड़ने लगी कुछ ही देर में सोनी ने अपना स्खलन पूर्ण कर लिया। सोनी के लिए यह स्खलन नया था और अद्भुत था।
उधर हरिद्वार में सुगना की तीसरी बहन मोनी विद्यानंद के आश्रम में अपनी गुरु माधवी के सानिध्य में धीरे धीरे कामवासना की दुनिया में प्रवेश कर रही थी। अपनी किशोरावस्था में शायद मोनी ने अपने खूबसूरत अंगों के औचित्य के बारे में न तो ज्यादा सोचा था और न हीं उन अंगों की उपयोगिता के बारे में।
परंतु उस दिन हरी हरी घास पर पूर्ण नग्न होकर कंचे बटोरते समय उसने हरी हरी घास के कोपलों कि अपनी बुर पर रगड़ से से जो उत्तेजना महसूस की थी वह निराली थी। मोनी को जब जब मौका मिलता वह उसी घास के मैदान पर बैठकर अपनी कमर हिलाते हुए उस सुखद एहसास का अनुभव कराती और माधवी उसे खोजती हुई मोनी के समीप आ जाती। माधवी यह बात भली-भांति जान चुकी थी कि मोनी की उत्तेजना जागृत हो चुकी है…
माधवी ने पिछले तीन-चार दिनों में मोनी और अन्य शिष्याओं को को जो जो खेल खिलाए थे उन सभी में मोनी की संवेदनशीलता अव्वल स्थान पर थी…परंतु अभी मोनी की मंजिल दूर थी उसे अन्य कई परीक्षाओं से गुजरना था आखिर विद्यानंद की मुख्य सेविकाओं में शामिल होना इतना आसान न था। माधवी की मदद से मोनी नैसर्गिक तरीके से प्रकृति के बीच रह अपनी सोई वासना को जागृत कर रही थी।
मोनी ने जो पिछले तीन-चार दिनों में सीखा था वह फिर कभी पर आइए अभी आपको लिए चलते हैं जौनपुर जहां बीती रात प्रेम युद्ध में थक कर चूर हुए सोनू और सुगना गहरी नींद में खोए हुए थे।
जौनपुर की सुबह आज बेहद खुशनुमा थी। सोनू जाग चुका था पर…सुगना अब भी गहरी नींद में सोई हुई थी। सोनू की मजबूत बाई भुजा पर अपना सर रखे सुगना बेसुध सोई हुई थी। दवा की खुमारी और सोनू के अद्भुत प्यार ने सुगना के तन मन को शांत कर एक सुखद नींद प्रदान की थी।
प्रातः काल जगने वाली सुगना आज बेसुध होकर सो रही थी। ऐसी नींद न जाने सुगना को कितने दिनों बाद आई थी।
यदि सोनू पर मूत्र त्याग का दबाव न बना होता तो न जाने वह कब तक अपनी बहन सुगना को यूं ही सुलाये रखता और उसके खूबसूरत और तृप्त चेहरे को निहारता रहता।
सोनू ने अपने हाथ सुगना के सर के नीचे से धीरे-धीरे निकाला सुगना ने अपने चेहरे को हिलाया और इस अवांछित विघ्न को नजर अंदाज करने की कोशिश की। सुगना ने अपने सर को थोड़ा हिलाया परंतु पलकों को ना खोला। सोनू ने सुगना का सर तकिए पर रख बिस्तर से उठकर नीचे आ गया।
अपनी नग्नता का एहसास कर उसने पास पड़ी धोती अपनी कमर पर लपेट ली तथा नीचे गिरी बनियाइन को अपने शरीर पर धारण कर लिया।
सोनू मूत्र त्याग के लिए बाथरूम में प्रवेश कर गया। जैसे ही सोनू ने मूत्र त्याग प्रारंभ किया उसका ध्यान अपने लंड पर केंद्रित हो गया।
कितना खुशनसीब था वो अपनी ही बड़ी बहन की उस प्रतिबंधित पर पावन गुफा में डुबकी लगाकर आया था। सोनू और उसका लंड दोनों खुद को खुशकिस्मत मान रहे थे। अपनी बड़ी बहन को सुख और संतुष्ट देने का यह एहसास अनूठा था …. निराला था।
सोनू ने हांथ मुंह धोया और हुए रसोई घर की तरफ बढ़ चला। अपने और अपनी बहन सुगना के लिए चाय बनाई और ट्रेन में चाय लिए वह सुगना के समीप पहुंच गया। सुगना करवट लेकर लेटी हुई थी और उसकी पीठ सोनू की तरफ थी। उसने धीरे-धीरे सुगना की रजाई हटाई परंतु जैसे ही उसकी नजर सुगना की नग्न जांघों पर पड़ी सोनू के हाथ रुक गए। सुगना के नितंबों और जांघो का वह खूबसूरत पिछला भाग देखकर सोनू उसकी खुबसूरती में खो सा गया। कितने सुंदर…. और गोल नितंब थे……एकदम चिकनी सपाट जांघें.. सोनू एकटक उसे देखता रहा…. नजरों ने धीरे-धीरे उन नितंबों के बीच छुपी उस पवित्र गुफा को ढूंढ लिया जो जांघों के बीच से झांक रही थी। गेहूंए रंग की बुर की फांकों पर सोनू के वीर्य की धवल सफेदी लगी हुई थी।
सुगना के जांघों के अंदरूनी भाग पर लगा सोनू का वीर्य कल हुए प्रेमी युद्ध की दास्तान सुना रहा था। निश्चित ही सोनू के लंड निकालने के पश्चात बुर के अंदर भरा हुआ ढेर सारा वीर्य न सुगना का गर्भ स्वीकार करने के पक्ष में था और न ही सुगना। यह मिलन सिर्फ और सिर्फ वासना की तृप्ति के लिए था।
सोनू के होठ खुले हुए थे और आंखें उस खूबसूरत दृश्य पर अटकी हुई थी। वह बेहद ध्यान से सुगना के नितंबों और जांघों के बीच खोता जा रहा था। एक पल के लिए उसके मन में आया कि वह उस सुंदर बुर को चूम ले। पर वह घबरा गया उसकी सुगना दीदी इस बात पर क्या प्रतिक्रिया देगी वह यह सोच ना पाया। अपनी दीदी को रूष्ट करने का उसका न तो कोई इरादा था और नहीं ऐसा करने का कोई कारण।
सोनू ने रजाई को वापस नीचे किया और अपनी दीदी के गालों को चूमते हुए बोला…
"दीदी उठ जा 8:00 बज गएल "
सुगना ने अपना चेहरा घुमा कर आवाज की दिशा में किया और अपनी पलके खोली….अपने प्यारे छोटे भाई सोनू को देखकर उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई…
कमरे में रोशनी देख कर सुगना बोल उठी…
"अरे आतना देर कैसे हो गइल?"
सोनू ने खिड़कियों पर से पर्दे हटा दिए.. सूरज की कोमल किरणों ने सुगना के गालों को छूने की कोशिश की और सुगना का चेहरा दगमगा उठा।
बगल में रखी चाय देखरक सुगना के दिल में सोनू के लिए प्यार और आदर जाग उठा।
उस जमाने में पुरुषों द्वारा स्त्रियों के लिए चाय बनाने का रिवाज न था। अपने भाई को कुछ नया और उसकी सज्जनता सुगना कायल हो गई..
सुगना बाथरूम जाने के लिए बिस्तर से उठने लगी। जैसे ही उसने अपनी रजाई को हटाया उसे अपनी नग्नता का एहसास हुआ और बीती रात के दृश्य उसकी आंखों के सामने नाच गए। सोनू से बीती रातअंतरंग होने के बावजूद सुगना की शर्म कायम थी। उसने पास खड़े सोनू को कहा
" ए सोनू होने मुड़ हेने मत देखिहे" सोनू सुगना के मनोदशा समझ रहा था उसने एक आदर्श बच्चे की तरह अपनी बड़ी बहन की बात मान ली और नजरें पालने की तरफ कर दोनों बच्चों को निहारने लगा…
सुगना उठी उसने अपनी नाइटी ठीक ही परंतु अपनी नग्नता का एहसास उसे अब भी हो रहा था बिना ब्रा और पैंटी के वह असहज महसूस कर रही थी।वह सोनू की नजरें से बचते हुए गुसल खाने में प्रवेश कर गई। बीती रात उसकी ब्रा और पेंटी जो पानी में भीग गई थी अब शावर के डंडे पर पड़े पड़े सूख चुकी थी।
सुगना ने अपनी जांघों और बुर की फांकों पर लगे सोनू के वीर्य की सफेदी को देखा और अकेले होने के बावजूद खुद से ही शर्माने लगी…
सुगना ने स्नान करने की सोची तभी सोनू को आवाज आई
" दीदी चाय ठंडा होता जल्दी आव "
सुगना ने स्नान का विचार त्याग दिया मुंह हांथ धोए और नाइटी के अंदर ब्रा एवं पैंटी पहन बाहर आ गई।
दोनों भाई बहन चाय पीने लगे ऐसा लग ही नहीं रहा था जैसे कल रात उनके जीवन में आए भूचाल का उन दोनों पर कोई असर हुआ था। बस आंखों की शर्म का दायरा बढ़ गया था।
सुनना जो पहले बेझिझक सोनू के चेहरे को देखा करती थी अब शर्म वश अपनी निगाहें झुकाए हुए थी..और सोनू जो अपनी बड़ी बहन के तेजस्वी चेहरे को ज्यादा देर देखने की हिम्मत न जुटा पाता था आज सुगना के शर्म से झुके चेहरे को लगातार देख रहा था और उसके मन में चल रहे भाव को पढ़ने का प्रयास कर रहा था।
भाई-बहन के बीच यह असमंजस ज्यादा देर तक ना चला दोनों छोटे भाई बहन मधु और सूरज की नींद खुल गई थी और छोटी मधु अपने बड़े भाई सूरज के चेहरे पर अपने कोमल हाथों से न जाने क्यों मार रही थी..
सूरज की प्रतिक्रिया से सोनू और सुगना दोनों का ध्यान पालने की तरफ गया और दोनों ने एक साथ उठकर एक दूसरे के बच्चों को अपनी गोद में उठा लिया..
सूरज अपने मामा की गोद में आ चुका था और सुगना मधु को अपनी गोद में लेकर पुचकार रही थी…
थोड़ी ही देर में घर में गहमागहमी बढ़ गई। सोनू के मातहत ड्यूटी पर आ चुके थे कोई घर की सफाई कर रहा था कोई घर के आगे बाग बगीचे ठीक कर रहा था सुगना भी अपनी नाइटी को त्याग कर खूबसूरत साड़ी पहन चुकी थी और पूरे घर की मालकिन की तरह सोनू के मातहतों को दिशा निर्देश देकर इस घर को और भी सुंदर बनाने मैं अपना योगदान दे रही थी।
सोनू घर में हो रही इस हलचल से ज्यादा खुश न था उसे तो सिर्फ और सिर्फ सुगना के साथ एकांत का इंतजार था.. परंतु मातहतों को अकस्मात बिना किसी कारण कार्यमुक्त करना एक अस्वाभाविक क्रिया होती।
सोनू सुगना को प्रसन्न करने के लिए जो कुछ कर सकता था कर रहा था सूरज और मधु के साथ बाग बगीचे में खेलना…और बीच-बीच में अपनी नजरें उठाकर अपनी खूबसूरत बड़ी बहन के सुंदर चेहरे को ताड़ना सुगना बखूबी यह बात महसूस कर रही थी कि सोनू उसे बीच-बीच में देख रहा है प्यार किसे नहीं अच्छा लगता सुगना इससे अछूती न थी सोनू की नजरों को अपने चेहरे पर महसूस कर उसका स्त्रीत्व जाग उठता…और चेहरे पर शर्म की लालिमा दौड़ जाती नियती सुगना और सोनू दोनों के मनोभाव पढ़ने की कोशिश करती और यह बात जानकर हर्षित हो जाती की मिलन की आग दोनों में बराबर से लगी हुई है और दोनों को ही एकांत का इंतजार है पर सुखद शांति और अद्भुत एकांत देने वाली निशा अभी कुछ पहर दूर थी.
उधर सलेमपुर में लाली को गए दो-तीन दिन हो चुके थे अपनी मां और पिता की सेवा करते करते लाली भी अब बोर हो रही थी जीवन भर अपने माता-पिता के साथ समय बिताने वाली लाली अब दो-तीन दिनों में ही सुगना और सोनू को याद करने लगी थी। एक उसकी अंतरंग सहेली थी और दूसरा अब उसका सर्वस्व। यह नियति की विडंबना ही थी कि लाली के दोनों चहेते अब स्वयं एक हो गए थे…
लाली को तो यह आभास भी न था कि सुगना सोनू के संग जौनपुर गई हुई है और वहां जो हो रहा था वह उसकी कल्पना से परे था।
शाम को सोनू और सुगना बच्चों समेत जौनपुर की प्रतिष्ठित मंदिर में गए और पास लगे मेले में अपने ग्रामीण जीवन की यादें ताजा की। ग्रामीण परिवेश की कई वस्तुओं और खानपान की सामग्री देख सोनू और सुगना खुद को रोक ना पाए और बच्चों की तरह उस मेले का आनंद उठाने लगे यह तो शुक्र था कि सोनू को पहचानने वाले अभी जौनपुर शहर में ज्यादा ना थे अन्यथा जौनपुर शहर का एसडीएम गांव वालों के लिए एक सेलिब्रिटी जैसा ही था।
परंतु बिना पहचान के भी सोनू और सुगना अपने खूबसूरत शरीर अद्भुत कांति मय चेहरे से सबका ध्यान खींच रहे थे अद्भुत जोड़ी थी सुगना और सोनू की…
हम दो हमारे दो का आदर्श परिवार लिए वह जीवन के लुत्फ उठा रहे थे…. उन्हें देखकर यह सोच पाना कठिन था की उन दोनों में पति पत्नी के अलावा भी कोई रिश्ता हो सकता है….
बिंदास तरीके से चलते हुए सोनू और सुगना अपने अपने हाथों में बुढ़िया का बाल लिए उसके मीठे स्वाद का आनंद ले रहे थे तभी पीछे से आ रहे एक ठेले वाले ने गलती कर दी । ठेले का कोना सुगना की कमर से जा टकराया और सुगना गिरते-गिरते बची।
सोनू को उस ठेले वाले पर बेहद गुस्सा आया परंतु उसने अपने गुस्से पर काबू किया माजरा समझ में आते ही सोनू यह जान गया कि गलती ठेले वाले की न थी या और जो गलती हुई थी वह स्वाभाविक थी दरअसल मेले की सड़क पर एक बड़ा गड्ढा था उस गड्ढे में चक्के को गिरने से बचाने के लिए अचानक ही ठेले वाले ने ठेले की दिशा बदल दी अन्यथा उसका ठेला पलट जाता। शायद उसका अनुमान कुछ गड़बड़ रहा और ठेला सुगना की कमर से छु गया।
ठेले वाला बुजुर्ग व्यक्ति था.. वह अपने दोनों हाथ जोड़े अपनी गलती स्वीकार कर रहा था और सोनू और सुगना से क्षमा मांग रहा था..
सोनू ने अपनी बहन के कमर पर हाथ लगाकर उस चोट को सहलाने की कोशिश की परंतु सुगना ने सोनू के हाथ पकड़ लिए बीच बाजार में कमर के उस हिस्से पर हाथ लगाना अनुचित था। सोनू प्यार में यह बात भूल गया था कि वह एक युवा स्त्री के नितंबों पर हाथ रख रहा है। सुनना समय दशा और दिशा का हमेशा ख्याल रखती थी उसने बड़ी सावधानी से सोनू के हाथ को खुद से अलग कर दिया था और विषम परिस्थिति से उन दोनों को बचा लिया था।
सोनू और सुगना एक बार फिर सड़क पर आगे बढ़ने लगे परंतु हंसी खुशी का माहौल अचानक बदल गया था सोनू मन ही मन घबरा रहा था कहीं दीदी की चोट ज्यादा होगी तब ?
हे भगवान क्या आज की रात यूं ही व्यर्थ जाएगी? काश कि सोनू उस पल को पीछे ले जाकर उसे घटने से रोक पाता। सुगना की चाल निश्चित ही कुछ धीमी पड़ी थी वह धीरे-धीरे अपने कदम आगे बढ़ा रही थी और सोनू का दिल बैठता जा रहा था
"दीदी दुखाता का?"
" ना ना थोड़ा सा लागल बा…. कुछ देर में ठीक हो जाई" ऐसा कहकर सुगना ने सोनू को सांत्वना दी। धीरे-धीरे दोनों भाई बहन वापस सोनू के बंगले पर आ गए और जिस रात्रि इंतजार सोनू कर रहा था वह कुछ ही पल दूर थी। दोनों बच्चे अब ऊंघने लगे थे और सोनू बच्चों का पालना ठीक कर रहा था…. और सुगना बच्चों को दूध पिलाने की तैयारी कर रही थी..
आंखों में प्यास और मन में आस लिए सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना का इंतजार कर रहा था….
शेष अगले भाग में….