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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
Smart-Select-20210324-171448-Chrome
भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

arushi_dayal

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शर्मो हया के परदे कब से डह गए हैं
प्यार की रवांगी में दो जिस्म बह गए हैं
इशारो से ही एक दूसरे से हो रही है बाते
बिस्तर पे रोज़ जम कर रंगीन होंगी राते
सुगना पे छा गई है रात की खुमारी
सोनू से रोज़ चुदने को हो रही तयारी
बेचानी बढ़ रही है और अरमान पल रहे हैं
एक दूसरे में समाने को दो जिस्म जल रहे हैं
सुगना के जिस्म के वो हर इक अंग से खेले
पूरी रात बिस्तर पे सुगना को जी भर के पेले

20221117-234541
 

arushi_dayal

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सरयू सिंह का देख के घातक सा हथियार
सोनी मचल रही है खोलने को सलवार
चुत चिपचपा रही बदन जल रहा है
सरयू जी से चुदने का सपना पल रहा है
बकरे की अम्मा कब तक खैर मनआएगी
जल्दी ही सोनी अब सरयू के नीचे आएगी

20221115-102003
 

Raj0410

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एक अनुरोध

प्रिय पाठकों आप सब इस कहानी से पिछले एक डेढ़ वर्षो से जुड़े हुए हैं और कहानी के अपडेट्स पढ़ रहे हैं।

मुझे ज्ञात हुआ है कि आप में से ही कुछ पाठक मेरी इस कहानी और मेरी पिछली कहानी "छाया....."के अपडेट्स को इस फोरम से कॉपी कर अन्य फोरम पर अपने नाम से पोस्ट कर रहे हैं मैं ऐसे पाठकों की निंदा करता हूं जो दूसरे की मेहनत को चोरी कर अपने नाम से प्रकाशित करते हैं न जाने इस झूठी दुनिया में वह क्या कमाना चाहते हैं?

यदि आप कहानी लिखना ही चाहते हैं तो अपने बलबूते पर लिखिए किसी अन्य लेखक की कहानी को चोरी कर दूसरी वेबसाइट पर डालना नैतिकता के खिलाफ है वह भी कहानी के लेखक की अनुमति के बिना।

धन्य है वह लोग जो अपना आत्मसम्मान बेचकर किसी की लिखी कहानी को कॉपी कर अपने नाम से पोस्ट करते है।

मैं इस फोरम के आयोजकों से यह बात कहना चाहूंगा कि जिस तरह बैंक में कॉपी पेस्ट का ऑप्शन नहीं होता है उसी प्रकार कहानी के एपिसोड्स को कॉपी और पेस्ट करने से रोका जाना चाहिए ...

मैं अपने पाठकों से यह अनुरोध करता हूं कि यदि यह कहानी किसी और फोरम पर दिखाई पड़ती है तो कृपया मुझे अवश्य सूचित करें।

अगला अपडेट जल्द ही आएगा।
सर पुराने अपडेट को पढ़ कर अच्छा लगा। सरयू सिंह और मनोरमा का संभोग क्रिया बहुत कामुक थी । पर सुगना अगर सोनू से अपनी मर्ज़ी से चुदती तो ज्यादा कामुक होता । ये तो सरासर बलात्कार था । पर सारे अपडेट बहुत अच्छे हैं ।
 

Raj0410

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भाग १०४

सुगना की आंखों के सामने एक बार फिर वह दृश्य घूम गया जब सोनू ने अपने मजबूत हाथों से उसकी कलाइयों को सर के ऊपर ले जाकर दबा रखा था…


न जाने सुगना के मन में क्या आया वह उठी और सरयू सिंह से लिपट गई…आंखों से अश्रु धारा फूट पड़ी सरयू सिंह पूरी तरह सुगना के दुख में डूब गए। उन्हे उसके दुख का कारण तो न पता था परंतु सुगना के सर पर हाथ फेरते हुए उन्होंने सुगना से बारंबार कारण जानने की कोशिश की और आखिर सुगना ने अपने लब खोले..

अब आगे…

"बाबूजी लागा ता हमनी से कोई पाप भईल बा तब ही अतना गड़बड़ होता" सुगना सुबक रही थी.. कल रात जो हुआ था वह उसे सोच कर आहत थी….

उन्होंने सुगना के सर पर हाथ फेरते हुए कहा "जो कुछ होला ओहमें भगवान के इच्छा रहेला तू चिंता मत कर दुख के दिन जल्दी खत्म हो जाई…" पाप सुनकर सरयू सिंह के मन में उनके सुगना के साथ किए पाप की याद एक करेंट की भांति दौड़ गई

"मोनी के कुछ पता चलल"

"थाना में रिपोर्ट लिखा देले बानी… जल्दी पता चल जाए"

सुगना अपने परिवार पर आए इस संकट की वजह कल पूजा में हुई किसी अनजान गलती को मान रही थी वरना उसकी इतनी इज्जत करने वाला सोनू उसके साथ ऐसी हरकत करेगा यह असंभव था…और ऊपर से मोनी का इस तरह घर से गायब होना…

सुगना के दर्द अलग थे और सरयू सिंह के अलग…सरयू सिंह अब भी सुगना के हाथ में बंदे कपड़े को लेकर परेशान थे उन्होंने दोबारा पूछा " ई हाथ में चोट कैसे लग गएल"

एक बार के लिए सुगना की मन में आया कि वह सोनू की करतूत को सरयू सिंह से साझा कर दे परंतु उसे सरयू सिंह के गुस्से का अंदाजा था मामला दूर तक जा सकता था और उसके परिवार का भविष्य खतरे में पड़ सकता था सच जानने के बाद इतना तो निश्चित था की सोनू अब और इस परिवार का हिस्सा नहीं रह सकता था।

सुगना ने बात छुपा ली .. उसने अपनी कलाइयों में अचानक आए मोच को बता कर उस कपड़े की उपयोगिता साबित कर दी…

अब तक कजरी पास आ चुकी थी और आते ही मोनी के बारे में वह भी पूछताछ करने लगी सरयू सिंह ने अपने किए गए प्रयासों और थाने में तहरीर की बात बता कर सब को तसल्ली देने की कोशिश की परंतु मोनी का गायब होना किसी को पच न रहा था…. हर आदमी यही सोच रहा था कि आखिर रात में ऐसा क्या हो गया कि मोनी अचानक ही घर छोड़ कर गायब हो गई…

सुगना का चेहरा बदरंग हो चुका था।


तनाव वैसे भी सुंदरता हर लेता है …

कल रात के बाद एक तो सुगना की आंखों से नींद गायब थी ऊपर से मोनी के गायब होने का तनाव उसे बेचैन किए हुए था। सोनू द्वारा उसके मुंह पर लगातार हथेलियों से बनाया गया दबाव चेहरे पर हल्की सूजन पैदा कर गया था जो सुगना के लगातार रोने और दुख का प्रतीक बन गया था। आंसुओं का सारा श्रेय मोनी ले गई थी…अन्यथा सुगना को अपने चेहरे की दुर्दशा का कारण निश्चित ही बताना पड़ता…

सुगना की दाहिनी कलाई पर भी सोनू की मजबूत उंगलियों के निशान पड़ गए थे सुगना एक तो वैसे भी कोमल थी जिस प्रकार फूल की पंखुड़ियों पर जोर से दबाव देने से उस पर दाग पड़ जाता है उसी प्रकार सोनू की मजबूत उंगलियों ने सुगना की कलाई पर अपने दाग छोड़ दिए थे।


यदि वह उंगलियों के निशान किसी की निगाहों में आते तो तो सुगना को कोई और उत्तर ढूंढने में निश्चित ही असुविधा होती…अंततः उसने कलाइयों पर कपड़ा बांधकर उसे मोच का रूप दे दिया था।

सुगना अपने अंतर्द्वंद से झूल रही थी सोनू द्वारा की गई करतूत को वह किसी को भी नहीं बताना चाह रही थी और भीतर ही भीतर घुट रही थी …

लाली चाय का गिलास लेकर सुगना के पास आई …और बोली

,"सुगना ले तनी चाय पी ले …सुबह से तो कुछ खाईले पीयले नाइखे जॉन होला ओमें विधाता के इच्छा रहेला…"

लाली की बात सुनकर सुगना के दिमाग में एक बार फिर उसका सोनू के साथ किया गया पाप घूम गया आखिर विधाता ने उसे इस पाप में क्यों शरीक किया ? इतना तो सुगना भी जान रही थी कि उस पाप (मिलन) के उत्तरार्ध में उसने भी सोनू का साथ दिया था और वह इस बात के लिए ही खुद को गुनाहगार मान रही थी…

सुगना अभी भी अपनी गर्दन झुकाए और मुंह लटकाए खड़ी थी। सरयू सिंह ने एक बार फिर सुगना की ठुड्ढी पकड़ कर उसका चेहरा ऊपर उठाया और बोला

"सुगना बेटा चाय पी ला मोनी के हम जरूर खोज के ले आईब"

सुगना ने भी अब परिस्थितियों से लड़ने का मन बना लिया और मन ही मन फैसला कर लिया ।

उसने उसने लाली के हाथ से चाय का गिलास लिया और निगाहों ही निगाहों में लाली से अपने अब तक के व्यवहार बेरुखी भरे व्यवहार करने के लिए क्षमा मांग ली

दरअसल आज दिन भर से लाली ने कई बार सुगना से बात करने का प्रयास किया परंतु सुगना ने उससे कोई बात नहीं की ऐसा नहीं था की सुगना लाली से नाराज थी उसे तो इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि सोनू को उसके कमरे में भेजने वाली स्वयं लाली थी..

उधर सोनी बेचैन थी वह अब भी इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पा रही थी की अंदर कमरे में टॉर्च मारने वाला कौन था। मोनी का इस तरह से गायब हो जाना उसे और भी परेशान कर रहा था था। सुबह सुबह उसे एक और झटका लगा था वह अपनी सुंदर लाल पेंटी लेने जब सरयू सिंह की कोठरी में गई थी (जहा वो जमकर चुदी थी) पर वह पेंटी गायब थी।


विकास उसके लिए वह अमेरिका से लेकर आया था और कल ही संभोग के दौरान उसे अपने दांतों से पकड़ कर खींच कर उसके तन से जुदा किया था …अपने कमरे में विकास के खांसने का इंतजार करते करते उसकी बुर पहले ही पनिया कर पेंटी को अपने मदन रस से भीगो चुकी थी. पेंटी किसने ली होगी?

मोनी को गायब हुए 12 घंटे से ऊपर का वक्त बीत चुका था.. घर पर आए हुए अतिथि एक एक करके सरयू सिंह के घर से विदा हो रहे थे। कल जितना उत्साह था आज उतनी ही उदासी। रात ने दो दिनों के बीच इतना अंतर कर दिया था जिसे पाटने में न जाने कितना समय लगता।


शाम होते होते परिवार वालों के कष्ट भी कुछ कम होते गये। वैसे भी आज सरयू सिंह के परिवार को जो कष्ट मिला था वह पूर्णता यह मानसिक था। और इस परिवार में घर छोड़कर जाना कोई नई बात न थी हां यह अलग बात थी कि इस बार परिवार की किसी महिला ने घर छोड़ा था।

मानसिक कष्ट की सबसे बड़ी विशेषता है यदि आप उसके बारे में न सोचिए तो शायद आपको एहसाह भी नहीं होगा कि आपको कोई कष्ट है…

सबको सोनू का इंतजार था। यद्यपि सोनू ने सरयू सिंह से कल आने की बात की थी परंतु सभी आशावान थे कि सोनू आज रात ही वापस आ जाएगा ।

सभी यह बात जानते थे कि सोनू अपने परिवार के साथ रहना बेहद पसंद करता है और सुगना के बच्चों के बिना तो जैसे उसका मन ही नहीं लगता है। परंतु आज सुगना को सोनू का इंतजार न था। वह किस मुंह से उसके सामने आएगी? और सोनू का व्यवहार उसके प्रति क्या होगा? यह सोच सोच कर उसका मन बेचैन हो रहा था सुगना खुद को इस गुनाह का उतना ही जिम्मेदार मान रही थी जितना सोनू को…

सोनू का इंतजार करते-करते रात के 9:00 बज गए पर सोनू न आया। घर के लोगों ने सादा खाना खाया और एक बार फिर सभी अपने अपने बिस्तर पर अपने अपने तनाव से लड़ते अपने दर्द भूलने के लिए नींद का इंतजार करने लगे..

आज रात सरयू सिंह अपनी कोठरी में थे और रात्रि में रोज पिए जाने वाले दूध का इंतजार कर रहे थे तभी अंदर से कजरी की आवाज आई

"सोनी बेटा तनी अपना चाचा जी के दूध दे आवा…"


सोनी के मन में सरयू सिंह के प्रति कुछ अलग ही भाव पैदा हो रहे थे। कभी-कभी उसे लगता कि शायद सरयू चाचा ने अपने कमरे में आने के लिए टॉर्च चलाई होगी। जब वह बात सोचती उसके रोंगटे खड़े हो जाते वह सरयू सिंह के सामने जाने में कतरा रही थी। परंतु कजरी के दोबारा बोलने पर वह दूध का गिलास लिए सरयू सिंह के कमरे में आने लगी।

सोनी को अपनी तरफ आते देख कर सरयू सिंह की निगाहों ने सोनी की मादक काया की सुनहरी किताब को पढ़ना शुरू कर दिया उनके दिमाग में उसे लाल पेंटी मैं कैद सोनी की मादक कमर दिखाई पड़ने लगी। सोनी की पुष्ट जांघों और पतली कमर उस पेंटी के लिए सर्वथा उपयुक्त थी।


सोनी ने अपने दिल की धड़कनों पर काबू किया और करीब आकर अपने कांपते हुए हाथों को संतुलित कर सरयू सिंह को दूध का गिलास दिया और बिना कुछ बोले वापस जाने लगी… जाते समय उसके भरे भरे नितंब एक बार फिर सरयू सिंह की निगाहों के सामने थे उभरे हुए नितम्ब चीख चीख कर यह बता रहे थे की सोनी का दुर्ग भेदन हो चुका है… उन्हें अब यह पूरा विश्वास हो चला था कि निश्चित ही यह पेंटी सोनी की थी और निश्चित ही सोनी व्यभिचार में लिप्त थी.।

सरयू सिंह ने मन ही मन ठान लिया कि वह विकास और सोनी के बीच रिश्ते की सच्चाई को जल्द ही उजागर करेंगे वह भी रंगे हाथ पकड़ने के बाद।

सरयू सिंह दूध पीने लगे और मन ही मन सोनी के व्यभिचार को याद करने लगे उनकी वासना ने सोनी के वस्त्र हरण में कोई कमी न की और धीरे-धीरे सोनी उनके विचारों में नग्न होती गई… दूध का गिलास किनारे रख सरयू सिंह ने अपनी कोठरी को बंद कर और अपने कुर्ते में रखी उस लाल पेंटी को निकाल लिया।

वासना सरयू सिंह को घेर चुकी थी…आंखें वासना से लाल हो चुकी थी जिस तरह एक सांड बछिया को देखकर गरम हो जाता है सरयू सिंह भी उत्तेजित हो चुके थे… सरयू सिंह ने वह पेंटी उठाई कुछ देर उसे देखा और न जाने कब उनके हाथों ने उसे उनकी घ्राणेंद्रियों तक पहुंचा दिया। मदन रस की भीनी खुशबू सरयू सिंह के नथुनो से टकराई और सरयू सिंह मदहोश हो गए।

नीचे लंगोट का बंधन तोड़ उनका लंड एक बार फिर फंफनाकार खड़ा हो गया। यह खुशबू निश्चित ही कुछ अलग थी। युवा योनि की खुशबू सरयू सिंह बखूबी पहचानते थे। जैसे-जैसे सोनी की मदमस्त बुर की खुशबू उनने नथुनो से होती हुई दिमाग तक पहुंची योनि की खूबसूरत आकृति सरयू सिंह की निगाहों के सामने आती गई.. उस रस से डूबी हुई छोटी सी नदी में तैरने को सरयू सिंह का लंड आतुर हो उठा उद्दंड बालक की तरह वह उछलने लगा..

उनकी हथेलियों ने फिर एक बार फिर उनके तने हुए लंड को शांत करने की कोशिश की पर वह हठी बालक की तरह तना रहा।

कुछ ही देर में सरयू सिंह की हथेलियों ने उस उद्दंड बालक की गर्दन पर अपनी पकड़ बनाई और उसे आगे पीछे करने लगे… दिमाग में सोनी की काया घूम रही थी और उनके ख्याल उच्छृंखल हो रहे थे पाप पुण्य उचित अनुचित का भेद खत्म हो रहा था …

जैसे-जैसे हाथों की गति बढ़ती गई विचारों की गति उससे होड़ लगाने लगी जितना ही वह विचारों में सोनी के साथ नग्न और घृणित होते उनका लंड उतना ही तेज उछलता। सरयू सिंह के मन में सोनी के प्रति यह वासना एक अलग किस्म की थी जिसमें प्यार कतई न था।


वह सोनी को पूर्णतया व्यभिचारी मान चुके थे और उसे अपने घृणित विचारों में दंड देना चाह रहे थे और अपने मजबूत लंड से उसे कसकर चोदना चाह रहे थे.. आखिर जिस युवती ने विवाह बंधन में बंधे बिना किसी पर पुरुष से अपनी वासना शांत करने के लिए संभोग किया हो उनकी नजरों में वह सिर्फ और सिर्फ व्यभिचारी थी..…वासना का यह रूप विकृत हो रहा था..

नियति सरयू सिंह का यह रूप देख स्वयं विस्मित थी..

सरयू सिंह का लंड अब स्खलन को तैयार था। सरयू सिंह ने अपनी वासना को और बहकाया उनके लंड ने वीर्य धारा छोड़ दी…… सरयू सिंह निराले थे और उनके मन में जग रही या नहीं वासना भी निराली थी।

सरयू सिंह ने अपनी उत्तेजना में अपना वीर्य स्खलन कर अब जो रायता फैलाया था उसे साफ करने की बारी थी उन्होंने अपने सोनी की पैंटी से वीर्य को साफ करने की सोची पर फिर यह विचार त्याग दिया…सोनी की पैंटी की खुशबू आगे भी उनकी वासना को तृप्त करने की खुराक बन सकती थी और एक सबूत भी थी।

आइए सरयू सिंह को उनके हाल पर छोड़ देते हैं और आपको लिए चलते हैं मोनी के पास जो ट्रेन के जनरल डिब्बे में गुमसुम बैठे बाहर की तरफ देख रही थी… रात के अंधेरे में उसे बाहर कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था …वह जिस दिशा में जा रही थी वहां भी अभी तो सिर्फ और सिर्फ अंधेरा था परंतु मोनी को अपने ईश्वर पर विश्वास था वह जानती थी हर रात के बाद एक सुबह होती है… पिछली रात मोनी के लिए अनुकूल न थी…

सूर्योदय की रोशनी जैसे ही ने जैसे ही सरयू सिंह के आंगन को रोशन किया मोनी अपने कमरे से बाहर आ गई…

मोनी ने अपना सामान यथावत छोड़ दिया परंतु अपने झोले से वह पर्चा अवश्य निकाल लिया जो उसने बनारस महोत्सव के दौरान विद्यानंद के पंडाल से लेकर आई थी। मोनी ने दृढ़ निश्चय कर लिया था कि अब वह इस कलयुगी जीवन से दूर विद्यानंद के आश्रम में चली जाएगी और वहां जीवन को एक नए सिरे से शुरू करेगी सांसारिक रिश्तो में उसका विश्वास पहले ही कमजोर था और बीती रात उसकी आंखों ने जो देखा था वह भुला पाना कठिन था… ऐसे भाई बहनों के बीच रहने से अच्छा था कि वह विद्यानंद के आश्रम में महिलाओं और युवतियों के बीच रहती जहां विचारों और तन मन की पवित्रता कायम रहती …ट्रेन द्रुतगति से मोनी के लक्ष्य की तरफ बढ़ रही थी और मोनी की आंखें मुदने लगीं थी।

और अब आइए हम सबके प्रिय सोनू और विकास का हालचाल ले लेते हैं जो अपनी अपनी महबूबाओं को जी भर कर चोदने के बाद सुबह-सुबह सलेमपुर से लगभग भाग निकले थे… विकास परेशान था वह सोनी से बिना मिले वापस नहीं जाना चाहता था परंतु परंतु सोनू जिद पर अड़ा था ..

"यार बता तो क्या हुआ तू इतनी जल्दी बाजी में क्यों है?" विकास ने सोनू की बेचैनी देखकर पूछा

"यार मुझे सुबह सुबह ही बनारस पहुंचना है कुछ जरूरी काम है "

"क्या काम है?"

"मैं तुझे बता नहीं सकता यह मान ले कि यह शासकीय काम है"

"पर एक बार सुगना दीदी से मिल तो ले? वह क्या सोचेंगी "

सोनू को जैसे सांप सूंघ गया… वह सुगना से रूबरू कतई नहीं होना चाहता था जो गुनाह उसने किया था उसे बखूबी याद था और वह कुछ दिनों के लिए सुगना से दूर होना चाहता था… रात भर में उसने मन ही मन सोच लिया था कि सुगना दीदी की प्रतिक्रिया जानने के बाद ही वह उनके सामने आएगा और प्रतिक्रिया जानने का सबसे मुख्य स्रोत लाली थी जो न सिर्फ उन दोनों की हमराज थी अपितु वह भी इस खेल में शामिल थी…

जैसे-जैसे सोनू अपने गांव से दूर हो रहा था वैसे वैसे उसकी बेचैनी बढ़ रही थी। आज एक गुनाह करने के बाद वह अपने ही परिवार से दूर हो रहा था पर मन बैचेन था।


क्या सुगना दीदी उसे माफ करेगी? या वह यह बात घर में बता कर उसे इस परिवार से हमेशा के लिए अलग कर देगी? नहीं नहीं सुगना दीदी ऐसा नहीं कर सकती। वह तो उससे बहुत प्यार करती हैं।

सोनू अपने विचारों में कभी सुगना के एक पक्ष को देखता कभी दूसरे पक्ष को। जब उसे सुगना की स्खलित होती बुर् के कंपन याद आते सोनू और उसका लंड बेचैन हो जाता… अद्भुत स्खलन था वह। इतने दिनों से वह लाली को चोद रहा था और हर बार स्खलन का आनंद ले रहा परंतु बीती रात उसके लंड ने जो स्खलन का आनन्द महसूस किया था अद्भुत था।

जैसे उसका तन बदन सब कुछ निचूड़ कर सुगना की बुर की गहराइयों में समा जाना चाहता था। दिल दिमाग तन बदन सब पर सुगना का ही रंग था… सुगना की मांसल जांघों के स्पर्श को याद कर सोनू का लंड एक बार फिर खड़ा हो गया और सोनू ने मोटरसाइकल चला रहे विकास की कमर को पकड़ कर खुद को थोड़ा दूर किया वरना सोनू के खड़े लंड का अहसास निश्चित ही विकास को हो जाता।


दोनों दोस्त बनारस शहर पहुंच चुके थे। सोनू ने जौनपुर की ट्रेन पकड़ी और विकास अपने घर के लिए निकल पड़ा.

जिस व्यक्ति ने गुनाह किया हो उसका मन कभी शांत हो ही नहीं सकता और वह भी जब उसने यह कार्य पहली बार किया हो। सोनू सुगना से दूर जरूर हो गया था परंतु वह अपनी आत्मग्लानि और डर में अभी डूबा था। एक पल के लिए उसके दिमाग में आया कि कहीं सुगना दीदी ने पुलिस में रिपोर्ट तो नहीं लिखा दी?


यद्यपि ऐसा संभव न था। सोनू ने सुगना के चेहरे पर स्खलित होते समय जो आनंद देखा था वह बेहद मनमोहक था…. उसे स्खलन के दौरान अब भी सुगना द्वारा उसकी उंगलियों को चुभलाया जाना और अपने पैरो से उसे अपनी तरफ खींचना याद था। दीदी ऐसा नहीं करेगी…पर क्या सुगना दीदी उसे माफ कर देगी? …सुगना का प्रतिरोध उसे याद था..सोनू घबरा गया।

जब एक बार मन में डर आ गया तो आ गया ।

सोनू ने नई नई नौकरी ज्वाइन की थी वह भी एसडीएम जैसे प्रतिष्ठित पद की। यदि दीदी ने उसके खिलाफ पुलिस में तहरीर दे दी होगी तब तो वह हमेशा के लिए बर्बाद हो जाएगा।

सोनू घबरा गया और अपने एक पुलिसिया दोस्त से आज सलेमपुर थाने में लिखाई गई रिपोर्टों के बारे में जानने की कोशिश की.. सोनू के दोस्त ने सलेमपुर थाने में फोन कर पता किया परंतु वह ज्यादा जानकारी इकट्ठा न कर सका शायद उधर से अपूर्ण उत्तर ही प्राप्त हुआ था। उसने सोनू को बताया..

"कोई सरयू सिंह के परिवार से रिपोर्ट लिखाई गई है.. किसी लड़की के बारे में…"

सोनू सन्न रहा गया। उसकी आवाज उसकी हलक में बंद हो गई कुछ देर के लिए दोनों तरफ शांति रही.. सोनू के दोस्त ने पूछा

"क्या तू उनको जानता है?"

सोनू सकपका गया। उसके प्रश्न से सोनू ने ऐसा महसूस किया जैसे वह उससे इंटेरोगेशन कर रहा हो…सोनू ने खुद को संतुलित करते हुए कहा…

"क्या नाम है लड़की का?"

"यार मैंने यह तो नहीं पूछा दोबारा पूछ कर बताता हूं.."

जाने दे कल देखते है…

सोनू का यह दोस्त जौनपुर में आने के बाद ही बना था वह अभी सोनू और उसके परिवार के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानता था उसने निर्विकार भाव से जो जानकारी सोनू ने मांगी थी उसे उपलब्ध करा दी थी परंतु उसकी जानकारी ने सोनू के मन में उथल-पुथल मचा दी थी..

सोनू अपने बिस्तर पर पड़ा अपने दोस्त द्वारा कही गई बातें को सोच रहा था उसे इस बात का इल्म भी न था कि मोनी घर छोड़कर जा चुकी है। तो क्या यह रिपोर्ट सरयू सिंह ने उसके बारे में लिखाई थी।


हे भगवान अब क्या होगा…सोनू सोनू के मन में तरह तरह के विचार आने लगे। कभी उससे लगता जैसे उसे नौकरी से निकाल दिया गया हो और उसे जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया गया हो। उसकी रूह कांप उठती वह जेल की सलाखों के पीछे से खड़ा सुगना को देखता जो अपने चेहरे पर नफरत का भाव लिए उसे घृणित निगाहों से देखती।

परंतु कभी-कभी उसे अपने सर को प्यार से सहलाती सुगना दिखाई पड़ती.. जो उससे बेहद प्यार करती थी। अंततः सोनू ने सुगना के सामने अपने गुनाह को कबूल करने का मन बना लिया और अगली सुबह तड़के वह जौनपुर से सलेमपुर के लिए निकल पड़ा…उसने तय कर लिया था कि वह सुगना दीदी के पैरों पर गिर पड़ेगा और यदि दीदी ने माफ न किया तो वह पुलिस के सामने सहर्ष गुनाह स्वीकार कर लेगा... आखिर जब सुगना ही नहीं तो जीवन का क्या? क्या सम्मान क्या अभिमान....

#################

सलेमपुर में आज की सुबह पिछली सुबह से कम तनाव भरी थी…सबको सोनू का इंतजार था सब अपनी अपनी दिनचर्या में लगे हुए थे….सुगना भी स्नान कर बाहर आ चुकी थी और अपनी कोठरी में अपने वस्त्र बदल रही थी हाथों पर सोनू की उंगलियों के निशान कुछ मद्धिम पड़े थे परंतु अब भी वह बरबस ही ध्यान खींचने वाले थे सुगना ने एक बार फिर अपनी कलाइयों पर कपड़ा लपेट लिया…


सुगना ने गर्दन झुका अपने सपाट पेट के नीचे अपनी छोटी सी करिश्माई बुर को देखना चाहा पर भरी-भरी चूचियां निगाहों के रास्ते का रोड़ा बन रही थी सुगना ने अपने दोनों हाथों से अपनी चुचियों को फैलाया और फिर अपनी छोटी सी बुर को देखा जो हल्का सा मुंह बाये सुगना को निहारा रही थी .. बुर के होंठ मुस्कुरा रहे थे जैसे उस सुखद मिलन के सुगना को धन्यवाद दे रहे हों…और सुगना एक बार फिर सोनू के बारे में सोचने लगी…

सुगना ने अपनी साड़ी पहनी बाल बनाएं गले में लटक रहा सोनू का दिया मंगलसूत्र चमक रहा था। सुगना के मन में आया कि वह इस मंगलसूत्र को निकाल दे जो उसके और सोनू के बीच हुए पाप का गवाह था परंतु सुगना अपने गले को सूना नहीं रखना चाहती थी..और वैसे भी उसका यह कृत्य सबका ध्यान खींचता।

सुगना ने अपने गोरे गोरे गालों पर जैसे ही क्रीम लगाई और अपनी आंखें खोली और सोनू को अपने पैरों पर गिरा हुआ पाया…

सोनू अपने घुटनों और पंजों के बल जमीन पर बैठा हुआ था और उसने सुगना के दाहिने पैर की पिंडली पकड़ रखी थी एक हाथ साड़ी के पीछे से और दूसरा सामने से। सर झुकाए और अपनी आवाज में दर्द लिए सोनू ने कहा

"दीदी हमरा के माफ कर द…"


सुगना का कलेजा धक-धक करने लगा..सोनू से बात करने का यह उचित समय कतई ना था…कोठरी का दरवाजा खुला हुआ था और कमरे में कोई भी आ सकता था। जिस तरह सोनू अपने गुनाह की क्षमा मांग रहा था उसे इस अवस्था में देखकर कोई भी इसका कारण जानना चाहता..

वही हुआ जिसका डर था..कजरी अंदर आ गई…सोनू अभी भी सुगना के पैरों पर लिपटा हुआ था…

सुगना ने बात संभालते हुए कहा..

"देखीं …काल बिना बतावले भाग गइले और आज माफी मांगत बाड़े…"

सोनू सुगना की बात सुनकर खुश हो गया जिस सफाई से सुगना ने यह बात कही थी सोनू जान चुका था कि सुगना ने यह बात किसी को नहीं बताई है..

परंतु पुलिस में लिखाई गई वह रिपोर्ट? सोनू के मन में प्रश्न उठा और उत्तर कजरी ने दे दिया..

"सोनू बाबू… मोनी पता नहीं कल से कहां चल गईल बीया?"

सोनू अभी एक झटके से उबरा ही था कि तभी उसे दूसरा झटका लग गया। मोनी उसकी अपनी बहन थी.. युवा मोनी का इस तरह गायब हो जाना सोनू की भी प्रतिष्ठा पर दाग लगने जैसा था……

सोनू ने विस्तार से कजरी से कल की घटनाओं की जानकारी ली…वह बात बात में सुगना से भी मोनी के बारे में पूछता परंतु परंतु सुगना अपना मुंह न खोल रही थी..वह सोनू से बातें करने में हिचकिचा रही थी और उससे आंखें तक न मिला रही थी..

कजरी के हटते ही एक बार फिर सोनू ने सुगना के पैर छूते हुए कहा

" दीदी माफ कर द.."

सुगना उठ गई और जाते-जाते बोली

"जा पहले मोनी के ढूंढ कर ले आव फिर माफी मांगीह"

सोनू को तो जैसे मुंह मांगी मुराद मिल गई हो सुगना के व्यवहार से उसने अंदाज लगा लिया की उसका और सुगना का रिश्ता पूरी तरह टूटा नहीं है..

वह सुगना का वो प्यार पा सकेगा या नहीं यह अलग बात थी.. परंतु उसे खोना सोनू को कतई गवारा न था.. सुगना अब उसकी (और उसके छोटू की) की जान थी.. अरमान थी और अब उसके बिना रहना सोनू के लिए नामुमकिन था…

अचानक घर के बाहर चीखने चिल्लाने की आवाज आने लगी……कुछ लोग एक व्यक्ति को पीट रहे थे वह दर्द से कराह रहा था मैंने कुछ नहीं किया…सोनू भी बाहर निकल कर आया…

शेष अगले भाग में...
क्या सुगना सोनू को माफ कर देगी और उसके बच्चे को जन्म देगी
 

GC Kumar

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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
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Nice update maza aa gaya
 

Jeet3

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भाग 122
जब एक बार मन में विचार आ गया सरयू सिंह ने इसकी संभावनाओं पर आगे सोचने का मन बना लिया उन्हें क्या पता था कि उनकी पुत्री सुगना का ख्याल रखने वाला सोनू अपनी बहन सुगना को तृप्त करने के बाद उसे अपनी मजबूत बाहों में लेकर चैन की नींद सो रहा था…


नियति संतुष्ट थी। सोनू और सुगना शायद एक दूसरे के लिए ही बने थे विधाता ने उनका मिलन भी एक विशेष प्रयोजन के लिए ही कराया था…

जैसे ही नियति ने विधाता के लिखे को आगे पढ़ने की कोशिश की उसका माथा चकरा गया हे प्रभु सुगना को और क्या क्या दिन देखने थे?

अब आगे…

बीती रात पदमा की तीनों पुत्रियों के लिए अनूठी थी। एक तरफ जहां सुगना अपने छोटे भाई के आगोश में चरम सुख प्राप्त कर रही थी। वहीं सोनी के लिए भी कल का दिन अनूठा था।

जब उसकी मां पदमा सरयू सिंह को खाना खिला रही थी तो सोनी अपनी कोठरी के झरोखे से पिछवाड़े खिले चमेली के फूलों को देख रही थी। जिस प्रकार चेमेली के वो फूल स्वतः ही प्रकृति को गोद में खिलकर अपनी छटा बिखेर रहे थे वैसे ही सोनी का परिवार परिवार अब पुष्पित और पल्लवित हो रहा था। सोनी को वो फूल अपने परिवार जैसे प्रतीत हो रहे थे। जो अपनी बड़ी बहन सुगना के मार्गदर्शन में अब फल फूल कर अपने परिवार का नाम रोशन कर रहे थे। सोनी विधाता के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर कर रही थी।

उसी समय खाना खाने के पश्चात सरयू सिंह पेशाब करने की पदमा के घर के पिछवाड़े में गए। सरयू सिंह बेफिक्र होकर अपने लंड को हाथों में पकड़े मूत्र त्याग कर रहे थे। संयोग से जिस दीवाल का सहारा ले के वह मूत्र त्याग कर गए थे सोनी उसी दीवार के झरोखे से बाहर देख रही थी। बाहर पेशाब के पत्तों पर गिरने की आवाज से सोनी सतर्क हो गई उसने अपना सर झरोखे से सटा कर बाहर झांकने की कोशिश की और सोनी सोनी ने जो देखा उससे उसकीसांस हलक में अटक गई।

वो अपनी आंखों देखे पर विश्वास नहीं कर पा रही थी। सरयू सिंह अपना मजबूत लंड अपने हाथों में लिए मूत्रत्याग कर रहे थे। सोनी अपनी आंखे उस अनोखे लंड से हटाना चाह रही थी पर प्रकृति का वह अजूबा उसे एकटक देखने पर बाध्य कर रहा था।

लंड पूरी तरह उत्थित अवस्था में न था परंतु सरयू सिंह में उस वक्त भी उत्तेजना का कुछ न कुछ अंश अवश्य था। अपनी पूर्व प्रेमिका पदमा और नई नवेली सोनी के संसर्ग में आकर लंड का तने रहना स्वाभाविक था।

सरयू सिंह ने अपनी उंगलियों से लंड के सुपाड़े की चमड़ी हटाई और उस लाल लट्टू को सोनी की निगाहों के सामने परोस दिया। शायद उन्होंने यह कार्य अनजाने में किया था ताकि वह मूत्र की धार को नियंत्रित कर पाएं। कुछ देर बाद उन्होंने मूत्र को आखरी बूंद को निकालने के प्रयास में उन्होंने अपने लंड को झटका और सोनी की सांस अटक गई…

बाप रे बाप…लंड ऐसा भी होता है….सोनी मन ही मन अचंभित हो रही थी।

ठीक उसी समय पदमा सरयू सिंह को खाना खिलाने के बाद जूठे बर्तन लिए अंदर आई और सोनी के कमरे में झांकते हुए बोली

" अरे सोनीया झरोखा पर खड़ा होकर का देखत बाड़े हेने आव हमर मदद कर"

पदमा की आवाज झरोखे से होते हुए सरयू सिंह के कानों तक पहुंची जो अभी अपने लंड को झटक कर उसे लंगोट में बांधने को तैयारी में थे…

सरयू सिंह ने झरोखे की तरफ देखा और उनकी आंखें सोनी से चार हो गई…

सोनी उछलकर वापस पदमा के पास आ गई…सोने की तेज चलती सांसो को देखकर पदमा ने पूछा

"का भईल ? का देखत रहले हा…?"

सोनी के पास कोई उत्तर न था आवाज हलक में दफन हो चुकी थी..पर सरयू सिंह के मजबूत और दमदार लंड की झलक सोनी देख चुकी थी।

"कुछो ना" सोनी ने सोनी ने अपनी गर्दन झुकाए हुए अपनी मां के हाथों से झूठे बर्तन लिए और उसे हैंडपंप पर जाकर रखने लगी पदमा सोनी का यह व्यवहार खुद भी न समझ पा रही थी उसे अंदाजा न था की कि सोनी सरयू सिंह के उस दिव्यास्त्र के दर्शन कर लिए थे जिसने इस परिवार के जीवन में खुशियां लाई थीं।

सोनी सरयू सिंह के वापस चले जाने के बाद भी बेचैन रही। अद्भुत काले मुसल को याद कर उसे अपनी आंखों पर यकीन ना होता और वह लाल फुला हुआ सुपाड़ा पूर्ण उत्थित अवस्था में कैसा दिखाई देता होगा??

रात अपनी खटिया पर विकास को याद करते हुए और अपनी जांघों के बीच तकिया फसाए सोनी अपनी कमर आगे पीछे कर रही थी…कभी-कभी वह सरयू सिंह के बारे में सोचती …. और उनकी कामुक निगाहों को अपने बदन पर दौड़ता महसूस कर सिहर जाती। क्या सच में पिता के उम्र के व्यक्तियों में भी युवा लड़कियों को देखकर उत्तेजना जागृत होती होगी?

आज जब उसने सरयू सिंह के उस दिव्य लंड के कुछ भाग को देख लिया था उसे यह तो अनुमान अवश्य हो चला था कि पुरुषों के लिंग में कुछ विविधता अवश्य होती है। सोनी ने नर्सिंग की पढ़ाई में मानव शरीर के बारे में कई जानकारियां एकत्रित की थी परंतु किताबी ज्ञान में इस विषय पर ज्यादा प्रकाश नहीं डाला गया था। और तात्कालिक समय में सोनी के पास न तो ब्लू फिल्मों का सहारा था और नहीं गंदे कामुक साहित्य का जिसमें वह पुरुषों को विधाता द्वारा दिए उस दिव्य अस्त्र दिव्य का आकलन और तुलना कर पाती।

सोनी खोई खोई सी कभी अपनी हथेली अपने घागरे में डाल अपनी बुर को थपथपाती कभी अपनी तर्जनी और मध्यमा से भगनासे को सहला कर उसे शांत करने का प्रयास करती। पर न जाने सोनी का वह भग्नासा कितना ढीठ था उसे वह जितना सहलाती वह उतना ही उसका ध्यान और अपनी तरफ खींचता।

नीचे उसकी बुर की पतली दरार लार टपकाने लगी। सोनी को अपनी मध्यमा से उसे पोछना पड़ता। न जाने कब मध्यमा बुर की दोनों फांकों के बीच घुसकर उस गहरी गुफा में विलुप्त हो गई और सोनी का अंगूठा भगनासे का मसलने लगा।

उत्तेजना कई बार सोच को विकृत कर देती है। हस्तमैथुन के दौरान अप्रत्याशित और असंभव दृश्यों की कल्पना कर युवक और युवती या अपना स्खलन पूर्ण करना चाहते हैं। सोनी के वाहियात खयालों में सरयू सिंह का मोटा काला लंड उसे अपनी बुर के अंदर घुसता महसूस हुआ…. बाप रे बाप …

सोनी मन ही मन यह बात सोच रही थी अच्छा ही हुआ कि सरयू चाचा कुंवारे ही थी अन्यथा जिस स्त्री को उनके साथ संभोग करना पड़ता उसकी तो जान ही निकल जाती।

इधर सोनी उस अद्भुत लंड के बारे में सोच रही थी और उसकी बुर अपने अंदर एक अप्रत्याशित हलचल महसूस कर रही थी कुछ ही देर में सोनी ने अपने साजन और गंधर्व पति विकास को याद किया और अपनी बुर को बेतहाशा अपने अंगूठे और उंगलियों से रगड़ने लगी कुछ ही देर में सोनी ने अपना स्खलन पूर्ण कर लिया। सोनी के लिए यह स्खलन नया था और अद्भुत था।

उधर हरिद्वार में सुगना की तीसरी बहन मोनी विद्यानंद के आश्रम में अपनी गुरु माधवी के सानिध्य में धीरे धीरे कामवासना की दुनिया में प्रवेश कर रही थी। अपनी किशोरावस्था में शायद मोनी ने अपने खूबसूरत अंगों के औचित्य के बारे में न तो ज्यादा सोचा था और न हीं उन अंगों की उपयोगिता के बारे में।

परंतु उस दिन हरी हरी घास पर पूर्ण नग्न होकर कंचे बटोरते समय उसने हरी हरी घास के कोपलों कि अपनी बुर पर रगड़ से से जो उत्तेजना महसूस की थी वह निराली थी। मोनी को जब जब मौका मिलता वह उसी घास के मैदान पर बैठकर अपनी कमर हिलाते हुए उस सुखद एहसास का अनुभव कराती और माधवी उसे खोजती हुई मोनी के समीप आ जाती। माधवी यह बात भली-भांति जान चुकी थी कि मोनी की उत्तेजना जागृत हो चुकी है…

माधवी ने पिछले तीन-चार दिनों में मोनी और अन्य शिष्याओं को को जो जो खेल खिलाए थे उन सभी में मोनी की संवेदनशीलता अव्वल स्थान पर थी…परंतु अभी मोनी की मंजिल दूर थी उसे अन्य कई परीक्षाओं से गुजरना था आखिर विद्यानंद की मुख्य सेविकाओं में शामिल होना इतना आसान न था। माधवी की मदद से मोनी नैसर्गिक तरीके से प्रकृति के बीच रह अपनी सोई वासना को जागृत कर रही थी।

मोनी ने जो पिछले तीन-चार दिनों में सीखा था वह फिर कभी पर आइए अभी आपको लिए चलते हैं जौनपुर जहां बीती रात प्रेम युद्ध में थक कर चूर हुए सोनू और सुगना गहरी नींद में खोए हुए थे।

जौनपुर की सुबह आज बेहद खुशनुमा थी। सोनू जाग चुका था पर…सुगना अब भी गहरी नींद में सोई हुई थी। सोनू की मजबूत बाई भुजा पर अपना सर रखे सुगना बेसुध सोई हुई थी। दवा की खुमारी और सोनू के अद्भुत प्यार ने सुगना के तन मन को शांत कर एक सुखद नींद प्रदान की थी।

प्रातः काल जगने वाली सुगना आज बेसुध होकर सो रही थी। ऐसी नींद न जाने सुगना को कितने दिनों बाद आई थी।

यदि सोनू पर मूत्र त्याग का दबाव न बना होता तो न जाने वह कब तक अपनी बहन सुगना को यूं ही सुलाये रखता और उसके खूबसूरत और तृप्त चेहरे को निहारता रहता।

सोनू ने अपने हाथ सुगना के सर के नीचे से धीरे-धीरे निकाला सुगना ने अपने चेहरे को हिलाया और इस अवांछित विघ्न को नजर अंदाज करने की कोशिश की। सुगना ने अपने सर को थोड़ा हिलाया परंतु पलकों को ना खोला। सोनू ने सुगना का सर तकिए पर रख बिस्तर से उठकर नीचे आ गया।

अपनी नग्नता का एहसास कर उसने पास पड़ी धोती अपनी कमर पर लपेट ली तथा नीचे गिरी बनियाइन को अपने शरीर पर धारण कर लिया।

सोनू मूत्र त्याग के लिए बाथरूम में प्रवेश कर गया। जैसे ही सोनू ने मूत्र त्याग प्रारंभ किया उसका ध्यान अपने लंड पर केंद्रित हो गया।

कितना खुशनसीब था वो अपनी ही बड़ी बहन की उस प्रतिबंधित पर पावन गुफा में डुबकी लगाकर आया था। सोनू और उसका लंड दोनों खुद को खुशकिस्मत मान रहे थे। अपनी बड़ी बहन को सुख और संतुष्ट देने का यह एहसास अनूठा था …. निराला था।

सोनू ने हांथ मुंह धोया और हुए रसोई घर की तरफ बढ़ चला। अपने और अपनी बहन सुगना के लिए चाय बनाई और ट्रेन में चाय लिए वह सुगना के समीप पहुंच गया। सुगना करवट लेकर लेटी हुई थी और उसकी पीठ सोनू की तरफ थी। उसने धीरे-धीरे सुगना की रजाई हटाई परंतु जैसे ही उसकी नजर सुगना की नग्न जांघों पर पड़ी सोनू के हाथ रुक गए। सुगना के नितंबों और जांघो का वह खूबसूरत पिछला भाग देखकर सोनू उसकी खुबसूरती में खो सा गया। कितने सुंदर…. और गोल नितंब थे……एकदम चिकनी सपाट जांघें.. सोनू एकटक उसे देखता रहा…. नजरों ने धीरे-धीरे उन नितंबों के बीच छुपी उस पवित्र गुफा को ढूंढ लिया जो जांघों के बीच से झांक रही थी। गेहूंए रंग की बुर की फांकों पर सोनू के वीर्य की धवल सफेदी लगी हुई थी।

सुगना के जांघों के अंदरूनी भाग पर लगा सोनू का वीर्य कल हुए प्रेमी युद्ध की दास्तान सुना रहा था। निश्चित ही सोनू के लंड निकालने के पश्चात बुर के अंदर भरा हुआ ढेर सारा वीर्य न सुगना का गर्भ स्वीकार करने के पक्ष में था और न ही सुगना। यह मिलन सिर्फ और सिर्फ वासना की तृप्ति के लिए था।

सोनू के होठ खुले हुए थे और आंखें उस खूबसूरत दृश्य पर अटकी हुई थी। वह बेहद ध्यान से सुगना के नितंबों और जांघों के बीच खोता जा रहा था। एक पल के लिए उसके मन में आया कि वह उस सुंदर बुर को चूम ले। पर वह घबरा गया उसकी सुगना दीदी इस बात पर क्या प्रतिक्रिया देगी वह यह सोच ना पाया। अपनी दीदी को रूष्ट करने का उसका न तो कोई इरादा था और नहीं ऐसा करने का कोई कारण।

सोनू ने रजाई को वापस नीचे किया और अपनी दीदी के गालों को चूमते हुए बोला…

"दीदी उठ जा 8:00 बज गएल "

सुगना ने अपना चेहरा घुमा कर आवाज की दिशा में किया और अपनी पलके खोली….अपने प्यारे छोटे भाई सोनू को देखकर उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई…

कमरे में रोशनी देख कर सुगना बोल उठी…

"अरे आतना देर कैसे हो गइल?"

सोनू ने खिड़कियों पर से पर्दे हटा दिए.. सूरज की कोमल किरणों ने सुगना के गालों को छूने की कोशिश की और सुगना का चेहरा दगमगा उठा।

बगल में रखी चाय देखरक सुगना के दिल में सोनू के लिए प्यार और आदर जाग उठा।


उस जमाने में पुरुषों द्वारा स्त्रियों के लिए चाय बनाने का रिवाज न था। अपने भाई को कुछ नया और उसकी सज्जनता सुगना कायल हो गई..

सुगना बाथरूम जाने के लिए बिस्तर से उठने लगी। जैसे ही उसने अपनी रजाई को हटाया उसे अपनी नग्नता का एहसास हुआ और बीती रात के दृश्य उसकी आंखों के सामने नाच गए। सोनू से बीती रातअंतरंग होने के बावजूद सुगना की शर्म कायम थी। उसने पास खड़े सोनू को कहा

" ए सोनू होने मुड़ हेने मत देखिहे" सोनू सुगना के मनोदशा समझ रहा था उसने एक आदर्श बच्चे की तरह अपनी बड़ी बहन की बात मान ली और नजरें पालने की तरफ कर दोनों बच्चों को निहारने लगा…

सुगना उठी उसने अपनी नाइटी ठीक ही परंतु अपनी नग्नता का एहसास उसे अब भी हो रहा था बिना ब्रा और पैंटी के वह असहज महसूस कर रही थी।वह सोनू की नजरें से बचते हुए गुसल खाने में प्रवेश कर गई। बीती रात उसकी ब्रा और पेंटी जो पानी में भीग गई थी अब शावर के डंडे पर पड़े पड़े सूख चुकी थी।

सुगना ने अपनी जांघों और बुर की फांकों पर लगे सोनू के वीर्य की सफेदी को देखा और अकेले होने के बावजूद खुद से ही शर्माने लगी…

सुगना ने स्नान करने की सोची तभी सोनू को आवाज आई

" दीदी चाय ठंडा होता जल्दी आव "

सुगना ने स्नान का विचार त्याग दिया मुंह हांथ धोए और नाइटी के अंदर ब्रा एवं पैंटी पहन बाहर आ गई।

दोनों भाई बहन चाय पीने लगे ऐसा लग ही नहीं रहा था जैसे कल रात उनके जीवन में आए भूचाल का उन दोनों पर कोई असर हुआ था। बस आंखों की शर्म का दायरा बढ़ गया था।

सुनना जो पहले बेझिझक सोनू के चेहरे को देखा करती थी अब शर्म वश अपनी निगाहें झुकाए हुए थी..और सोनू जो अपनी बड़ी बहन के तेजस्वी चेहरे को ज्यादा देर देखने की हिम्मत न जुटा पाता था आज सुगना के शर्म से झुके चेहरे को लगातार देख रहा था और उसके मन में चल रहे भाव को पढ़ने का प्रयास कर रहा था।

भाई-बहन के बीच यह असमंजस ज्यादा देर तक ना चला दोनों छोटे भाई बहन मधु और सूरज की नींद खुल गई थी और छोटी मधु अपने बड़े भाई सूरज के चेहरे पर अपने कोमल हाथों से न जाने क्यों मार रही थी..

सूरज की प्रतिक्रिया से सोनू और सुगना दोनों का ध्यान पालने की तरफ गया और दोनों ने एक साथ उठकर एक दूसरे के बच्चों को अपनी गोद में उठा लिया..

सूरज अपने मामा की गोद में आ चुका था और सुगना मधु को अपनी गोद में लेकर पुचकार रही थी…

थोड़ी ही देर में घर में गहमागहमी बढ़ गई। सोनू के मातहत ड्यूटी पर आ चुके थे कोई घर की सफाई कर रहा था कोई घर के आगे बाग बगीचे ठीक कर रहा था सुगना भी अपनी नाइटी को त्याग कर खूबसूरत साड़ी पहन चुकी थी और पूरे घर की मालकिन की तरह सोनू के मातहतों को दिशा निर्देश देकर इस घर को और भी सुंदर बनाने मैं अपना योगदान दे रही थी।

सोनू घर में हो रही इस हलचल से ज्यादा खुश न था उसे तो सिर्फ और सिर्फ सुगना के साथ एकांत का इंतजार था.. परंतु मातहतों को अकस्मात बिना किसी कारण कार्यमुक्त करना एक अस्वाभाविक क्रिया होती।

सोनू सुगना को प्रसन्न करने के लिए जो कुछ कर सकता था कर रहा था सूरज और मधु के साथ बाग बगीचे में खेलना…और बीच-बीच में अपनी नजरें उठाकर अपनी खूबसूरत बड़ी बहन के सुंदर चेहरे को ताड़ना सुगना बखूबी यह बात महसूस कर रही थी कि सोनू उसे बीच-बीच में देख रहा है प्यार किसे नहीं अच्छा लगता सुगना इससे अछूती न थी सोनू की नजरों को अपने चेहरे पर महसूस कर उसका स्त्रीत्व जाग उठता…और चेहरे पर शर्म की लालिमा दौड़ जाती नियती सुगना और सोनू दोनों के मनोभाव पढ़ने की कोशिश करती और यह बात जानकर हर्षित हो जाती की मिलन की आग दोनों में बराबर से लगी हुई है और दोनों को ही एकांत का इंतजार है पर सुखद शांति और अद्भुत एकांत देने वाली निशा अभी कुछ पहर दूर थी.

उधर सलेमपुर में लाली को गए दो-तीन दिन हो चुके थे अपनी मां और पिता की सेवा करते करते लाली भी अब बोर हो रही थी जीवन भर अपने माता-पिता के साथ समय बिताने वाली लाली अब दो-तीन दिनों में ही सुगना और सोनू को याद करने लगी थी। एक उसकी अंतरंग सहेली थी और दूसरा अब उसका सर्वस्व। यह नियति की विडंबना ही थी कि लाली के दोनों चहेते अब स्वयं एक हो गए थे…

लाली को तो यह आभास भी न था कि सुगना सोनू के संग जौनपुर गई हुई है और वहां जो हो रहा था वह उसकी कल्पना से परे था।

शाम को सोनू और सुगना बच्चों समेत जौनपुर की प्रतिष्ठित मंदिर में गए और पास लगे मेले में अपने ग्रामीण जीवन की यादें ताजा की। ग्रामीण परिवेश की कई वस्तुओं और खानपान की सामग्री देख सोनू और सुगना खुद को रोक ना पाए और बच्चों की तरह उस मेले का आनंद उठाने लगे यह तो शुक्र था कि सोनू को पहचानने वाले अभी जौनपुर शहर में ज्यादा ना थे अन्यथा जौनपुर शहर का एसडीएम गांव वालों के लिए एक सेलिब्रिटी जैसा ही था।

परंतु बिना पहचान के भी सोनू और सुगना अपने खूबसूरत शरीर अद्भुत कांति मय चेहरे से सबका ध्यान खींच रहे थे अद्भुत जोड़ी थी सुगना और सोनू की…

हम दो हमारे दो का आदर्श परिवार लिए वह जीवन के लुत्फ उठा रहे थे…. उन्हें देखकर यह सोच पाना कठिन था की उन दोनों में पति पत्नी के अलावा भी कोई रिश्ता हो सकता है….

बिंदास तरीके से चलते हुए सोनू और सुगना अपने अपने हाथों में बुढ़िया का बाल लिए उसके मीठे स्वाद का आनंद ले रहे थे तभी पीछे से आ रहे एक ठेले वाले ने गलती कर दी । ठेले का कोना सुगना की कमर से जा टकराया और सुगना गिरते-गिरते बची।

सोनू को उस ठेले वाले पर बेहद गुस्सा आया परंतु उसने अपने गुस्से पर काबू किया माजरा समझ में आते ही सोनू यह जान गया कि गलती ठेले वाले की न थी या और जो गलती हुई थी वह स्वाभाविक थी दरअसल मेले की सड़क पर एक बड़ा गड्ढा था उस गड्ढे में चक्के को गिरने से बचाने के लिए अचानक ही ठेले वाले ने ठेले की दिशा बदल दी अन्यथा उसका ठेला पलट जाता। शायद उसका अनुमान कुछ गड़बड़ रहा और ठेला सुगना की कमर से छु गया।

ठेले वाला बुजुर्ग व्यक्ति था.. वह अपने दोनों हाथ जोड़े अपनी गलती स्वीकार कर रहा था और सोनू और सुगना से क्षमा मांग रहा था..

सोनू ने अपनी बहन के कमर पर हाथ लगाकर उस चोट को सहलाने की कोशिश की परंतु सुगना ने सोनू के हाथ पकड़ लिए बीच बाजार में कमर के उस हिस्से पर हाथ लगाना अनुचित था। सोनू प्यार में यह बात भूल गया था कि वह एक युवा स्त्री के नितंबों पर हाथ रख रहा है। सुनना समय दशा और दिशा का हमेशा ख्याल रखती थी उसने बड़ी सावधानी से सोनू के हाथ को खुद से अलग कर दिया था और विषम परिस्थिति से उन दोनों को बचा लिया था।

सोनू और सुगना एक बार फिर सड़क पर आगे बढ़ने लगे परंतु हंसी खुशी का माहौल अचानक बदल गया था सोनू मन ही मन घबरा रहा था कहीं दीदी की चोट ज्यादा होगी तब ?

हे भगवान क्या आज की रात यूं ही व्यर्थ जाएगी? काश कि सोनू उस पल को पीछे ले जाकर उसे घटने से रोक पाता। सुगना की चाल निश्चित ही कुछ धीमी पड़ी थी वह धीरे-धीरे अपने कदम आगे बढ़ा रही थी और सोनू का दिल बैठता जा रहा था

"दीदी दुखाता का?"

" ना ना थोड़ा सा लागल बा…. कुछ देर में ठीक हो जाई" ऐसा कहकर सुगना ने सोनू को सांत्वना दी। धीरे-धीरे दोनों भाई बहन वापस सोनू के बंगले पर आ गए और जिस रात्रि इंतजार सोनू कर रहा था वह कुछ ही पल दूर थी। दोनों बच्चे अब ऊंघने लगे थे और सोनू बच्चों का पालना ठीक कर रहा था…. और सुगना बच्चों को दूध पिलाने की तैयारी कर रही थी..

आंखों में प्यास और मन में आस लिए सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना का इंतजार कर रहा था….

शेष अगले भाग में….

बहुत सुंदर
 

Sanju@

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एक अनुरोध

प्रिय पाठकों आप सब इस कहानी से पिछले एक डेढ़ वर्षो से जुड़े हुए हैं और कहानी के अपडेट्स पढ़ रहे हैं।

मुझे ज्ञात हुआ है कि आप में से ही कुछ पाठक मेरी इस कहानी और मेरी पिछली कहानी "छाया....."के अपडेट्स को इस फोरम से कॉपी कर अन्य फोरम पर अपने नाम से पोस्ट कर रहे हैं मैं ऐसे पाठकों की निंदा करता हूं जो दूसरे की मेहनत को चोरी कर अपने नाम से प्रकाशित करते हैं न जाने इस झूठी दुनिया में वह क्या कमाना चाहते हैं?

यदि आप कहानी लिखना ही चाहते हैं तो अपने बलबूते पर लिखिए किसी अन्य लेखक की कहानी को चोरी कर दूसरी वेबसाइट पर डालना नैतिकता के खिलाफ है वह भी कहानी के लेखक की अनुमति के बिना।

धन्य है वह लोग जो अपना आत्मसम्मान बेचकर किसी की लिखी कहानी को कॉपी कर अपने नाम से पोस्ट करते है।

मैं इस फोरम के आयोजकों से यह बात कहना चाहूंगा कि जिस तरह बैंक में कॉपी पेस्ट का ऑप्शन नहीं होता है उसी प्रकार कहानी के एपिसोड्स को कॉपी और पेस्ट करने से रोका जाना चाहिए ...

मैं अपने पाठकों से यह अनुरोध करता हूं कि यदि यह कहानी किसी और फोरम पर दिखाई पड़ती है तो कृपया मुझे अवश्य सूचित करें।

अगला अपडेट जल्द ही आएगा।
किसी लेखक की बिना अनुमति के उसकी कहानी को दूसरे फोरम पर अपने नाम से कॉपी पेस्ट करना गलत है
 
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