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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

shameless26

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अब तक जिन लोगों ने 120 वे अपडेट की मांग की थी भैया भेजा जा चुका है। जूनियर प्राप्त नहीं हुआ है वह अपना डायरेक्ट मैसेज की सेटिंग देखें शायद उन्होंने यह प्रतिबंधित कर रखा है कुछ व्यक्तियों का नाम पहले में बता चुका नए पाठकों का हार्दिक स्वागत है आप सब से अनुरोध है की कहानी को पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें छोटी बड़ी क्या अच्छा क्या बुरा जो कुछ समझ आता है मुझे जरूर बताएं आपका यही साथ ही इस कहानी को आगे बढ़ाएं गाया पिछले बंद करेगा।

अब तक जिन लोगों ने 120 वे अपडेट की मांग की थी भैया भेजा जा चुका है। जूनियर प्राप्त नहीं हुआ है वह अपना डायरेक्ट मैसेज की सेटिंग देखें शायद उन्होंने यह प्रतिबंधित कर रखा है कुछ व्यक्तियों का नाम पहले में बता चुका नए पाठकों का हार्दिक स्वागत है आप सब से अनुरोध है की कहानी को पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें छोटी बड़ी क्या अच्छा क्या बुरा जो कुछ समझ आता है मुझे जरूर बताएं आपका यही साथ ही इस कहानी को आगे बढ़ाएं गाया पिछले बंद करेगा।
WHERE IS 120, PLEASE DO NOT DO THIS IT DOESN'T BEFIT AN ACCLAIMED WRITER. YOU SHOULDNT ENDEAVOUR TO DRAW FANS BY HOLDING THEM HOSTAGE, BETTER TO HAVE LESS BUT QUALITY ONES THAN HAVE A CROWD OF USELESS ONES. WELL THATS MY OPINION, OFFCOURSE YOU KNOW BETTER
 
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Mishra8055

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भाग 123

अब तक आपने पढ़ा …

हे भगवान क्या आज की रात यूं ही व्यर्थ जाएगी? काश कि सोनू उस पल को पीछे ले जाकर उसे घटने से रोक पाता। सुगना की चाल निश्चित ही कुछ धीमी पड़ी थी वह धीरे-धीरे अपने कदम आगे बढ़ा रही थी और सोनू का दिल बैठता जा रहा था

"दीदी दुखाता का?"

" ना ना थोड़ा सा लागल बा…. कुछ देर में ठीक हो जाई" ऐसा कहकर सुगना ने सोनू को सांत्वना दी। धीरे-धीरे दोनों भाई बहन वापस सोनू के बंगले पर आ गए और जिस रात्रि इंतजार सोनू कर रहा था वह कुछ ही पल दूर थी। दोनों बच्चे अब ऊंघने लगे थे और सोनू बच्चों का पालना ठीक कर रहा था…. और सुगना बच्चों को दूध पिलाने की तैयारी कर रही थी..


आंखों में प्यास और मन में आस लिए सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना का इंतजार कर रहा था….

अब आगे….

बच्चों के सोते ही सोनू के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। सुगना पिछली रात की भांति एक बार फिर सोनू के लिए दूध तैयार कर रही थी परंतु आज वैध जी की पत्नी द्वारा दी गई दवा का कोई औचित्य न था। दवा अपना कार्य कर चुकी थी।

सुगना ने दूध गर्म किया और दो गिलास में दूध लेकर सोनू के समीप आ गई। अभी तक सोनू स्नान करके बिस्तर पर आ चुका था सुगना के आते ही सतर्क मुद्रा में बैठ गया और बोला.. और बेहद प्यार से सुगना से बोला

"दीदी मेला में जवन चोट लागल रहे ऊ कईसन बा?"


सुगना में अपने हाथों से कमर के उस हिस्से को टटोलते हुए कहा

"ऐसे त नईखे बुझात पर छुआला पर थोड़ा-थोड़ा दुखाता एक-दो दिन में ठीक हो जाए"

"दीदी ऊपर तनी गर्म तेल लगा के मालिश कर ल आराम मिल जाए"

"इतना टिटिम्मा के करी…. दूध पी के सूत जो तुहूं थक गाइल होखवे जो अब सूत जो"

"सूत जो?" सुगना के उत्तर से सोनू के चेहरे पर निराशा आई…. तो क्या आज का रात व्यर्थ जाएगी? सोनू के मन में आशंका ने जन्म लिया और वह कुछ पल के लिए शांत हो गया….

सोनू अभी दूध पी रहा था कि सुगना ने अपना दूध खत्म कर लिया और हमेशा की तरह बाथरूम में नहाने चली गई।

बाथरूम में अंदर जाने के बाद सुगना के नथुनों ने एक जानी पहचानी सुगंध महसूस की यह सुगंध उसे बेहद पसंद थी। बेसिन के पास रखी उस इत्र की शीशी को सुगना बखूबी पहचानती थी। यह इत्र की शीशी उसे रतन लाकर देता था। अपनी इस पसंद का जिक्र उसने लाली के समक्ष भी किया था जो शायद सोनू के संज्ञान में भी आ चुका था।


दरअसल सोनू ने जब गांव में सुगना की उस विशेष पूजा ( जिसके पश्चात् सुगना और रतन को संभोग करना था) के दौरान अपनी बहन सुगना के चरण स्पर्श करते समय उसके घागरे से वह भीनी भीनी खुशबू महसूस की थी तब से वह भी उस खुशबू का दीवाना हो गया था और उस इत्र का नाम लाली की मदद से जान गया था। और आज उसने उस मेले से वह जानी पहचानी इत्र की बोतल खरीद ली थी।

सुगना ने अपने वस्त्र उतारने शुरू किए तभी उसका ध्यान शावर पर रखें अपने वस्त्रों पर गया जहां से उसके वस्त्र गायब थे सिर्फ एक बड़ा सा सफेद तोलिया टंगा हुआ था।

सुगना सोच में पड़ गई… एक पल के लिए उसे भ्रम हुआ कि शायद उसने अपने वस्त्र वहां रखे ही न थे परंतु कुछ ही देर में उसे सोनू की शरारत समझ में आ गई तो क्या सोनू उसे इसी टॉवल में लिपटे हुए बाहर आते देखना चाह रहा था?

सुगना मन ही मन मुस्कुरा रही थी सचमुच छोटा सोनू अब शैतान हो चुका था सुगना ने अपने वस्त्र उतारे और धीरे-धीरे उसी अवस्था में आ गई जिस अवस्था में उसने जन्म लिया था।

आईने में खुद को देखती हुई सुगना स्नान करने लगी जैसे-जैसे उसकी हथेलियों ने उसके बदन पर घूमना शुरू किया सुगना के शरीर में वासना जागृत होने लगी हथेलियों ने जब सुगना की जांघों के बीच साबुन के बुलबुले को पहुंचाया सुगना की उंगलियां बरबस ही बुर होठों को सहलाने लगी…

सुगना ने महसूस किया कि उसके तन मन पर सोनू के प्यार का रंग चढ़ चुका था। अचानक उसके जेहन में एक बार फिर वही प्रश्न उठा।

क्या कल जो सोनू ने कहा था उस पर यकीन किया जा सकता है? यद्यपि सोनू ने सुगना के सर पर हाथ रखकर जो कसम खाई थी उसने कल रात खुमारी में डूबी सुगना की सारी आशंकाओं पर विराम लगा दिया था परंतु आज सुगना जागृत और चैतन्य अवस्था में थी।

"दीदी हमनी के एक बाप के संतान ना हई जा" सोनू का यह वाक्य सुगना के जेहन में गूंजने लगा।


सुगना को सोनू के जन्म का समय और दिन बखूबी याद था उस दिन वह सुबह से ही अपनी मां पदमा के करुण क्रंदन सुन रही थी। आसपास की महिलाओं से घिरी हुई उसकी मां न जाने किस दर्द से तड़प रही थी। और कुछ ही देर बाद कुछ ही देर बाद घर में खुशियों का माहौल हो गया था वह दिन अबोध सुगना के लिए बेहद अहम था हर दुख के बाद सुख की घड़ी आती है सुगना ने उस दिन यह बात सीख ली थी।

सुगना को खुद पर ही शक हो गया तो क्या वह स्वयं अपनी मां पदमा की संतान नहीं है…. उसकी धर्मपरायण मां पदमा व्यभिचारी होगी ऐसा सोचना सुगना के लिए पाप था। पदमा सुगना के लिए आदर्श थी।

सुगना को लगने लगा जैसे उसने स्वयं किसी अन्य दंपत्ति के यहां जन्म लिया था और उन्होंने उसके पालन पोषण के लिए उसे पदमा को सौंप दिया गया था।

सुगना के दिल में पदमा के लिए इज्जत और भी बढ़ गई वह अपनी मां पदमा को देवी स्वरूप देखने लगी जिसने उसे सौतेला या पराया होने का रंच मात्र भी एहसास ना होने दिया था।

मनुष्य की सोच उसकी इच्छाओं के अधीन होती है सुगना अपनी वासना में सिक्के का एक पहलू देख रही थी जिसमें सोनू उसे अपना सगा भाई नहीं दिखाई पड़ रहा था। अब तक सोनू के संग बिताए गए 21 - 22 साल का प्यार कुछ महीनों में ही नया रूप ले चुका था और कल रात हुई पूर्णाहुति में सुगना और सोनू के रिश्ते में एक अलग अध्याय लिख दिया था.

बीती रात के उत्तेजक पलों ने सुगना की जांघों के बीच हलचल बढ़ा दी सुगना से रहा न गया उसने अपनी जांघों के बीच छलके प्रेम रस को साफ करने की कोशिश की परंतु जितना ही वह उसे साफ करती सोनू के प्रेम का अविरल दरिया छलक छलक कर बुर् के होठों से बाहर आता।


सुगना को लगने लगा जैसे वह स्खलित हो जाएगी। उसने अपनी बुर के अद्भुत कंपनो को अपने छोटे भाई के लिए बचा लिया।

उसने स्नान पूर्ण किया अपने छोटे भाई सोनू द्वारा लाया गया इत्र अपने हाथों में लेकर अपने बदन पर हाथ फेरने लगी। सोनू के प्यार की भीनी भीनी खुशबू से सुगना का तन बदन और अंतर्मन खिल उठा।

उधर सोनू बेसब्री से सुगना का इंतजार कर रहा था सुगना भी मिलन चाहती थी पर बीती रात की भांति स्वयं आगे बढ़कर यह कार्य नहीं कर सकती थी। उसे पता था कि उसका भाई सोनू उसके करीब आने का कोई मौका नहीं छोड़ेगा..

अपना स्नान पूरा कर सुगना ने बाथरूम का दरवाजा थोड़ा सा खोला और बोली ..

"ए सोनू ….."

सोनू को एक पल के लिए लगा जैसे उसकी सुगना दीदी उसे अंदर बुला रही है एक ही पल में ही सोनू उठ कर बाथरूम के पास आ गया..

"का दीदी"

"हमार कपड़ा कहां हटा देले बाड़े ? सुगना ने झूठी नाराजगी दिखाते हुए बोला और दरवाजे की दरार को बंद कर दिया।

सोनू मायूस हो गया…

"दे तानी दीदी "

" ओहिज़े बिस्तर पर रख द"

सोनू ने बाथरूम से उठाए हुए सुगना के कपड़े बिस्तर पर रख दिए।

"ते बाहर दूसरा कमरा में जो हम कपड़ा बदल लेब तब आईहे " सुगना ने एक बार फिर आवाज लगाई..


सुगना ने जो कहा उसने सोनू के अरमानों पर पानी फेर दिया। कहां तो उसके दिमाग में सफेद तौलिया लपेटे उसकी बहन की अर्धनग्न तस्वीर घूम रही थी पर सुगना का यह व्यवहार सोनू को रास न आ रहा था।

अपनी बहन सुगना की बात टाल पाना सोनू के लिए कठिन था। वह मायूसी से उठकर सुगना के कमरे से बाहर जाने लगा और कमरे का दरवाजा बंद कर दिया। सुगना बाथरूम के दरवाजे की दरार से सोनू के उदास चेहरे को देख रही थी और मन ही मन उसके भावों को पढ़ मुस्कुरा रही थी।

नियति बड़ी बहन को अपने छोटे भाई को छेड़ते देख रही थी। सुगना को यह छेड़छाड़ महंगी पड़ेगी इसका अंदाजा न था।

स्त्रियों की छेड़छाड़ पुरुषों की उत्तेजना को बढ़ा देती हैं और संभोग के दौरान पुरुषों का आवेग दोगुना हो जाता है। जिन स्त्रियों को पुरुषों के आवेग का आनंद आता है वो अक्सर छेड़छाड़ कर अपने पुरुष साथी में जोश भरती रहती है और उसकी वासना का भरपूर आनंद लेती हैं ।

सुगना बाहर आई। उसने सोनू को जितना निराश किया था उतना ही खुश करने की ठान ली। उसने अपनी अटैची में से निकाल कर सोनू द्वारा गिफ्ट किया हुआ एक सुंदर घाघरा और चोली पहन लिया जो सोनू को बेहद पसंद था। यह घाघरा और चोली बेहद ही खूबसूरत था परंतु उस में कहीं भी जड़ी बूटी का काम न था हाथ की कढ़ाई से रेशम के कपड़े पर की गई सजावट से लहंगा और चोली बेहद खूबसूरत बन गया था। वह कतई रात में पहन कर सोने योग्य न था परंतु उसे पहनकर सोया अवश्य जा सकता था। सुगना को भी पता था ये वस्त्र ज्यादा देर उसका साथ न देंगे। पर अपने भाई सोनू को खुश करना उसकी प्राथमिकता बन चुकी थी।


सुगना वह यह बात भली-भांति जानती थी कि लहंगा और चोली में उसकी मादकता कई गुना बढ़ जाती है कमर और पेट के कटाव खुलकर दिखाई पड़ते हैं और चूचियां और भी खूबसूरत हो जाती हैं।

ऐसी ही लहंगा चोली में सुगना ने न जाने कितने अनजान मर्दो के लंड में उत्तेजना भरी थी परंतु आज सुगना अपने छोटे भाई पर ही कहर ढाने का मन बना चुकी थी।

अपनी कटीली कमर पर घागरे का नाडा बांधते हुए उसने सोनू को आवाज दी…

"सोनू बाबू भीतर आ जा"

सुगना की आवाज की मिठास ने सोनू के अवसाद को कुछ हद तक खत्म कर दिया।

सोनू ने कमरे का दरवाजा खोला और हाथ में एक कटोरी लिए कमरे के अंदर आ गया अपनी बड़ी बहन सुगना को देखकर उसका मुंह खुला रह गया । कमरे में सुगना ने दो मोमबत्तियां जला दी थी…और कमरे में लगी कृत्रिम ट्यूब लाइट को बंद कर दिया था। मोमबत्ती की पीली रोशनी में सुगना का चेहरा कुंदन की भांति दमक रहा था। कमरे में इत्र की खुशबू बिखरी हुई थी और स्वयं सुगना की मादक सुगंध मन मोह लेने वाली थी। सुगना की कामुक काया रति की भांति उसे आमंत्रित कर रही थी।

"अरे तैयार काहे हो गईल बाड़ू…. कहा के तैयारी बा …"

"इतना रात में के कहा जाई "

"तब तब काहे इतना तैयार भईल बाड़ू"

सुखना क्या जवाब देती कि वह क्यों तैयार हुई है। सुगना के पास कोई उत्तर न था और जब उत्तर ना हो तो प्रश्न के उत्तर में प्रश्न पूछना ही एकमात्र विकल्प था जिसमे सुगना माहिर थी।


"हाथ में कटोरी काहे ले ले बाड़ा"

"तोहरे खातिर गर्म तेल ले आईल बानी अपना चोटवा पर लगा ला"

सोनू अब तक सुगना के करीब आ चुका था। सुगना ने सोनू द्वारा लाए गए गर्म तेल में अपनी उंगलियां डूबायीं और अचानक ही उसने अपना हाथ बाहर खींच लिया

"बाप रे कितना गर्म बा लगाता हाथ जल गईल"

सुगना अपने हाथों को बार-बार झटक कर अपनी पीड़ा को कम करने का प्रयास करने लगी। सोनू ने स्वयं भी कटोरी में रखे तेल पर अपनी उंगलियां डाली तेल गर्म तो जरूर था पर इतना भी नहीं उससे हाथ जल जाए परंतु सुगना कोमल थी। सोनू ने सुगना की त्वरित प्रतिक्रिया पर यकीन कर लिया और सुगना की हथेलियों को अपने हाथ में लेकर फूंक फूंक कर उसके दर्द को कम करने का प्रयास करने लगा। सुगना सोनू के चेहरे को देख रही थी और उसके मन में सोनू के लिए प्यार उमड़ रहा था।

अचानक ही सुगना खिलखिला कर हंसने लगी..

सोनू सुगना के चेहरे को भौचक होकर देख रहा था उससे समझ ही नहीं आ रहा था कि सुगना क्या कर रही है।


सुगना ने अपने उंगलियों में लगा तेल सोनू के मजबूत सीने को घेरी हुई सफेद बनियान पर पोछ दिया और बोली…

"अरे बाबू जलल नईखे…"

सोनू एक बार फिर सुगना के मजाक से थोड़ा दुखी हुआ था परंतु सुगना की खिलखिलाहट ने उसके सारे अवसाद मिटा दिए और उसकी उम्मीदों और कल्पनाओं को एक नई दिशा दे दी। सोनू भी थोड़ा वाचाल हुआ

"दीदी अब तू बदमाशी मत कर….. चल पेट के बल लेट जा हम तेल लगा देत बानी"

सोनू ने जो कहा था उसके आगे के घटनाक्रम को सुगना ने एक ही पल में अपने दिमाग में सोच लिया। किसी जवान मर्द द्वारा किसी युवती को कमर पर तेल लगाना आगे किस रूप में परिणित हो सकता था इसका अंदाज सुगना को बखूबी था। सूरज के जन्म के बाद सरयू सिंह ने जब-जब सुगना के शरीर की मालिश की थी अंत सुखद रहा था और चूचियों का अंतिम मसाज सरयू सिंह के वीर्य से ही हुआ था। सुगना की सांसे गति पकड़ने लगी। वह सोनू को मना भी नहीं करना चाहती थी परंतु अचानक..इस तरह…

इससे पहले कि सुगना कुछ कहती सोनू ने तकिया व्यवस्थित कर सुगना को कंधे से पकड़कर उसे बिस्तर पर लिटाने लगा…

"अच्छा रूक रूक लेटत बानी" सुगना ने मन में उमड़ रही भावनाओं पर काबू पाते हुए कहा…आखिरकार सुगना बिस्तर पर पेट के बल लेट चुकी थी।

अपने शरीर के अगले भाग को अपनी कोहनी से सहारा देते हुए सुगना ने अपनी चुचियों को सपाट होने से बचा लिया था। सुगना का पेट बिस्तर से सटा हुआ था और नितंब उभर कर सोनू को आकर्षित कर रहे थे।

घागरे के अंदर सुगना की मांसल और पुष्ट जांघें अपने आकार का प्रदर्शन कर रही थी। केले के तने जैसी खूबसूरत और चिकनी जांघें सुगना के लहंगे के पीछे छुपी हुई सोनू को ललचा रही थीं।

सुगना ने अपने पैरों को घुटने से मोड़ कर ऊपर किया हुआ था और उसके पैर नग्न होकर सोनू को उसकी चमकती दमकती गोरी त्वचा का एहसास करा रहे थे ।

पैरों में बंधी हुई पायल नीचे फिसल कर सुगना की पिंडलियों पर फंसी हुई थी और पैर के पंजों और एड़ी में लगा हुआ आलता सुगना के गोरे गोरे पैरों को और खूबसूरत बना रहा था।

सोनू एक टक अपनी बहन की खूबसूरती को देखे जा रहा था। घागरे के ऊपर और चोली के नीचे पीठ का वह भाग सबसे ज्यादा मादक था। पेट से कमर तक आते समय जो कमर का कटाव था वह अत्यंत मादक था सोनू उसे अपने दोनों हाथों से पकड़ने को मचल गया।


यही वह कटाव था जिसे वह अपने दोनों हाथों से पकड़ लाली को डॉगी स्टाइल चोदा करता था। लाली की जगह उसी अवस्था में अपनी बड़ी बहन सुगना की कल्पना कर सोनू का लंड उछलने लगा .. अचानक सुगना ने कहा

"कहां देखत बाड़े आपन आंख बंद कर …और जल्दी लगाव .. तोर तेल ठंडा हो जाए…" सोनू ने सचमुच अपनी आंखें बंद कर ली… अपने हाथों पर तेल लिया और सुगना की कमर के ठीक ऊपर अपनी बहन की गोरी और चिकनी कमर पर अपनी उंगलियां फिराने लगा…उसका ध्यान बार-बार सुगना की कमर पर बंधे उस नाडे की गांठ पर जा रहा था जिसने सुगना के घाघरे को सहारा दिया हुआ था.. घागरे की सुनहरी रस्सी के आखिरी छोर पर दो खूबसूरत कपड़े के फूल लगे हुए थे जो बरबस ही सोनू का ध्यान खींच रहे थे..

सोनू की मजबूत उंगलियों को अपनी कमर पर महसूस कर सुगना के शरीर में एक करंट सा दौड़ गया जिस स्थान पर सोनू ने सुगना को छुआ था वह घागरे से दो-तीन इंच ऊपर था । सोनू हल्के हल्के हाथों से सुगना की मालिश करने लगा परंतु उसकी उंगली का पिछला भाग बार-बार सुगना के घाघरे से टकरा जाता…

"हमरा कपड़ा में तेल मत लगाईहे ..देख के तेल लगाऊ" सुगना ने अपनी गर्दन घुमा कर सोनू को कनखियों से देखते हुए बोली..

सोनू को मौका मिल गया उसने अपनी बहन के आदेश मैं छुपी सारगर्भित बात "देख के तेल लगाव" समझ ली और अपनी आंखे एक बार फिर खोल लीं। उसने बिना कुछ कहे सुगना के घागरे की के नाडे के अंत में लगे फूल को पकड़ा और उसे होले से खींच दिया.. सुगना के घाघरे की गांठ खुल गई….

सुगना ने अपना चेहरा तकिए में गड़ा लिया और अपने हृदय की धड़कन को काबू में करने की कोशिश करने लगी। उधर सुगना से कोई प्रतिरोध ना पाकर सोनू बाग बाग हो गया उसने अपनी हथेलियों में थोड़ा और तेल लिया और सुगना की कमर पर लगाने लगा धीरे-धीरे सोनू की उंगलियों का दायरा बढ़ता गया।


अपना कसाव त्याग चुका घागरा धीरे-धीरे नीचे आ रहा था। शायद अब वह सुगना के नितंबों को आवरण देने में नाकामयाब हो रहा था और सुगना के भाई सोनू के इशारे पर वह सुगना की खूबसूरत को धीरे-धीरे और उजागर कर रहा था।

नितंबों के बीच की घाटी की झलक सोनू को दिखाई पढ़ गई। उसने एक पल के लिए अपनी उंगलियां उसी जगह रोक ली…. और नितंबों के बीच गहरी घाटी को अंदाजने लगा….

अचानक सोनू ने कुछ सोचा और कटोरी से अपनी अंजुली में तेल लिया और उसे अपने दोनों हाथ पर मल लिया।


अब तक तो सोनू की उंगलियां ही सुगना की कमर पर तेल लगा रही थी परंतु अब सोनू ने अपने दोनों हाथों से सुगना की कमर पर मालिश करनी शुरू कर दी कमर के एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक उसकी हथेलियां घूमने लगी सोनू अपने दबाव को नियंत्रित कर सुगना को भरपूर सुख देने की कोशिश कर रहा था और निश्चित ही सुगना सोनू के स्पर्श और प्यार भरी मालिश का आनंद उठा रहीं थी।

सोनू की हथेलियों ने अपना मार्ग बदला और अब एक हथेली सुगना की पीठ से कमर की तरफ आ रही थी दूसरी सुगना के नितम्बो की तरफ से कमर की ओर..

हर बार जब दोनों हथेलियां कमर से हटकर पीठ और नितंबों की तरफ जातीं और सुगना का घाघरा और नीचे खिसक जाता एवं नितंबों का कुछ और भाग उजागर हो जाता। सोनू को उसकी मेहनत का फल मिल रहा था।


सुगना के चांद रूपी नितंब घागरे के ग्रहण से धीरे-धीरे बाहर आ रहे थे।

सोनू की हथेलियों के दबाव से नितंब हल्के हल्के हिल रहे थे ऐसा लग रहा था जैसे किसी फूले हुए गुब्बारे पर सोनू अपने हाथ फेर रहा हो…

कुछ ही देर में घाघरा नितंबों के नीचे तक आ चुका था उसे और नीचे करना संभव न था। सुगना के नितंब पूर्णमासी की चांद की तरह दमक रहे थे। घाघरे का आगे का हिस्सा सुगना के पेट से दबा हुआ था । हल्के हल्के हाथों से सोनू ने अपनी बहन के दोनों नितंबों को तो अनावृत कर लिया था परंतु जांघों के जोड़ तक पहुंचते-पहुंचते घागरा वापस अपना प्रतिरोध दिखाने लगा था।

ऐसा लग रहा था जैसे वह सोनू की हथेलियों को एक आक्रांता की भांति देख रहा था और अब अपनी मालकिन की सबसे ख़ूबसूरत बुर को अनावृत होने से बचाना चाह रहा था।


उधर सुगना की सांसे तेज चल रही थी और चेहरा खून के प्रवाह और उत्तेजना दोनों के योगदान से पूरी तरह लाल हो चुका था। उसके कमर और नितंबों पर सोनू जिस प्रकार से मालिश कर रहा था वह उसे बेहद आरामदायक लग रहा था…सुगना सोच रही थी..कितनी समानता थी सरयू सिंह और सोनू में…

दोनों की मालिश का अंदाज एक जैसा ही था सुगना को यह मालिश बेहद पसंद आती थी। जब वह छोटी थी उसकी मां पदमा भी ऐसे ही मालिश किया करती थी.. एक हथेली पीठ से और दूसरी जांघों से मालिश करते हुए कमर की तरफ आतीं और नितंबों के ठीक ऊपर दोनो हथेलियां मिल जाती। नितंब थिरक उठते…

सुगना का मन मचल गया उसने अपनी नग्नता के एहसास को दरकिनार कर अपना पेट बिस्तर से थोड़ा सा ऊपर उठा लिया। सोनू और सुगना एक दूसरे की भावनाओं को बखूबी समझते थे जैसे ही सुगना ने अपना पेट उठाया सोनू ने घाघरा और नीचे खींच लिया एक ही झटके में सुगना का घागरा उसकी जांघों तक आ चुका था जब घागरे की मालकिन ने ही उसका साथ छोड़ दिया वह क्यों कर अपना प्रतिरोध दिखाता।

सोनू ने अपनी अवस्था बदली और अब उसकी हथेलियां सुगना की जांघों से होती हुई कमर की तरफ आने लगी और दूसरी पीठ से होती नितंबों की तरफ।

सुगना की दाहिनी हथेली तो जैसे स्वर्ग में घूम रही थी। सुगना की पुष्ट जांघों पर फिसलते हुए जब वह नितंबों से टकराती सोनू आनंद दोगुना हो जाता। उतर सुगना अपनी बुर सिकोड़ लेती। मन ही मन घबराती कहीं सोनू की उंगलियां इधर-उधर भटक गईं तो?


सोनू कभी दाहिने नितंब को मसलता हुआ ऊपर आता कभी बाए नितंब को। और कभी-कभी तो दोनों नितंबों को अपनी हथेलियों से छूता हुआ उस गहरी घाटी का मुआयना करता…

सुगना के खूबसूरत नितंबों की कल्पना सोनू ने न जाने कितनी मर्तबा की थी और आज वह अनावृत रूप में सोनू के समक्ष उपस्थित थे। सोनू उनके अद्भुत स्पर्श सुख में खोया हुआ था। वह नितंबों के बीच उस गहरी घाटी के और अंदर उतरना चाहता था। धीरे-धीरे उसकी उंगलियां सुगना के नितंबों के बीच उतरने लगी। सोनू के लिए यह संभव न था कि वह अपनी बड़ी-बड़ी हथेलियों से सुगना के नितंबों को पूरी तरह पकड़ पाता परंतु उसकी कोशिश में सोनू की उंगलियां सुगना की प्रतिबंधित छेद की तरफ पहुंचने लगी…

सुगना ने एहसास कर लिया की उसके भाई की उंगलियां कभी भी प्रतिबंधित क्षेत्र से छू सकती हैं सुगना ने बोला…

" सोनू बाबू अब हो गइल छोड़ द…"

कुछ निर्देश अस्पष्ट होते है.. सुगना की आवाज मालिश रोकने का निर्देश दे रही थी परंतु उसकी आवाज में जो कशिश थी और जो सुख था वह सोनू को अपनी बहन को और सुख देने के लिए प्रेरित कर रहा था।

"दीदी अब थोड़ा सा ही तेल बाचल बा ..दे पैरवा पर लगा देत बानी.."

सुगना ने सोनू को अपना मौन समर्थन दे दिया और अब बारी थी सुगना के घाघरे को पूरी तरह बाहर आने की। सोनू ने सुगना की घाघरे को पकड़कर बाहर आने का इशारा किया और सुगना ने अपने घुटने बारी-बारी से ऊपर उठा लिए…

और सुगना का घाघरा आखिरकार बाहर आ गया अपनी मल्लिका को अर्द्ध नग्न देखकर सोनू बाग बाग हो गया ….

सोनू सुगना के किले के गर्भ गृह के बिल्कुल करीब पहुंच चुका था और उसने अपना सर सुगना के पैरों की तरफ झुका कर जांघों के बीच झांकने की कोशिश की..

सुगना की रानी होंठो पर प्रेमरस लिए सोनू का इंतजार कर रही थी…..

यद्यपि अभी भी सुगना की चूचियां चोली में कैद थी परंतु सोनू को पता था वह सुगना की रानी उसका इंतजार कर रही है और सुगना के सारे प्रहरी एक एक कर उसका साथ छोड़ रहे थे…

शेष अगले भाग में…
आपकी लेखन क्षमता बहुत ही जबरदस्त है शब्दों का ऐसा प्रदर्शन होता है रोम-रोम रोमांचित हो जाता है जबरदस्त लवली भाई जबरदस्त अगला अपडेट कब तक मिलेगा
 

akashkumar1990

New Member
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Bahut hi behtarin updates … ab khani ka ek bhaut jabardast mod aa raha hai…
भाग 119


सोनू को मूत्र विसर्जन की इच्छा हुई और वह चाय का प्याला बिस्तर पर रख गुसल खाने की तरफ बढ़ गया। अंदर जैसे ही उसने छोटे सोनू को बाहर निकाला रात की बात सोनू को समझ में आ गई सुपाड़े के अंदर लिपटा हुआ सोनू का वीर्य से सना चिपचिपा सुपाड़ा यह बार-बार एहसास दिला रहा था की कल रात कुछ न कुछ हुआ है। सोनू को यह समझते देर न लगी कि उसका वीर्य स्खलन हुआ है…पर कैसे? सोनू ने अपने अंडरवियर को ध्यान से देखा…वीर्य स्खलन के अंश वहां मौजूद ना थे। सोनू ने एक बार फिर सुपाड़े पर लगे चिपचिपे वीर्य को अपनी उंगलियों पर लिया और अपने नाक के पास लाया…सोनू को यकीन हो गया कि उसका वीर्य स्खलन हुआ नहीं था अपितु कराया गया था….तो क्या सुगना दीदी….?

अब आगे…

सोनू ने अपने दिमाग पर जोर देने की कोशिश की परंतु दूध पीने के बाद का कोई भी दृश्य उसे याद न था उसे यह बात अवश्य ध्यान आ रही थी कि दूध का स्वाद कुछ अलग था।

अचानक उसे रहीम और फातिमा की किताब का वाकया ध्यान आ गया जिसमें फातिमा ने अपने छोटे भाई को दूध में मिलाकर कोई नशीला द्रव्य दिया था..और सोनू के होंठो पर मुस्कुराहट दौड़ गई। उसके जी में आया कि वह अपनी सुगना दीदी को जाकर चूम ले…पर भाई बहन के बीच नियति ने तय किया था वो घटित होना इतना आसान न था।

सोनू वापस बिस्तर पर आया और खुद को सामान्य दिखाते हुए सुगना के साथ चाय पीने लगा। सोनू को सामान्य देख सुगना भी सहज हो गई। कल रात हुई घटना सुगना और सोनू दोनों के लिए सुखद रही सुगना ने अपना कार्य पूरा कर लिया और सोनू अपनी बहन के और करीब आ गया।

आज शनिवार का दिन था सोनू की ऑफिस की छुट्टियां थी। रसोईघर का बिखरा हुआ सामान सोनू और सुगना का ध्यान खींच रहा था। कुछ ही देर बाद सुगना रसोई घर को सजाने में लग गई शायद यही एकमात्र कार्य सोनू ने अपनी बहनों के लिए छोड़ा था।

सुगना ने सोनू को निराश ना किया वह तन मन से रसोई घर को सजाने लगी। धीरे धीरे रसोईघर अपनी रंगत में आता गया…सुगना बीती रात के बारे में सोचते सोचते रसोई घर का सामान व्यवस्थित कर रही थी। उसके जेहन में वैद्य जी की पत्नी की बातें घूम रही थी …. उत्तेजना और स्खलन कुछ पलों का खेल नहीं स्त्री और पुरुष दिन भर में कई बार वासना के आगोश में आते हैं और पुरुषों में उसी दौरान वीर्य का निर्माण होता है। जितना अधिक वीर्य निर्माण उतना शीघ्र स्खलन।

सुगना ने पूरी तरह यह बात आत्मसात कर ली थी। उसने ठान लिया था कि वह सोनू के वीर्य निर्माण में अपनी भी भूमिका अदा करेगी। उसे पता था सोनू की विचारधारा उसके प्रति बदल चुकी थी.. और वर्तमान में सोनू की उत्तेजना का प्रमुख केंद्र व स्वयं थी.

सुगना रसोईघर को व्यवस्थित करने में लगी थी। शरीर पर पड़ी पतली नाइटी सुगना की मादकता को और बढ़ा रही थी अंदर पहने अंग वस्त्र चूचियों को तो कैद में कर चुके थे परंतु सुगना के गदराए नितंब छोटी पेंटी के बस में न थे। वह बार-बार सोनू का ध्यान खींच रहे थे …जो हॉल में बार-बार आकर अपनी बड़ी बहन के युवा और अतृप्त बदन को निहार रहा था…

जब सुगना उसे अपनी तरफ देखते पकड़ लेती सोनू की नजरें झुक जाती और वह बिना कुछ बोले वापस कमरे में जाकर सूरज और मधु के साथ खेलने लगता…सुगना जान चुकी थी कि सोनू की उत्तेजना से दोनों का ही फायदा था सुगना को मेहनत कम करनी पड़ती और वीर्य उत्पादन तथा स्खलन आसान हो जाता जो सोनू के पुरुषत्व को बचाए रखने के लिए आवश्यक था।

कुछ सामान अभी ऊपर के खाने में सजाए जाने थे सुगना का हाथ पहुंचना मुश्किल था दरअसल ऊंचाई ज्यादा होने की वजह से सुगना ही क्या सोनू का भी हाथ पहुंचना कठिन होता।

सुगना ने आवाज लगाई

" ए सोनू…."

सोनू सूरज और मधु के साथ खेलने में व्यस्त था।

अपनी बहन सुगना की आवाज सुनकर सोनू अगले ही पल रसोईघर में आ गया।

सोनू में सारी जुगत लगाई परंतु ऊपर के खाने में सामान रखने में नाकाम रहा.. आखिरकार सुगना ने कहा

"ले हमरा के पकड़ के उठाऊ हम रख देत बानी"

सुगना ने यह बात कह तो दी परंतु उसे आगे होने वाले घटनाक्रम का अंदाजा न था। सोनू ने सुगना को पीछे से आकर कमर से पकड़ लिया और उसे ऊपर उठाने लगा सुगना आगे की तरफ गिरने लगी उसने बड़ी मुश्किल से दीवाल का सहारा लिया और बोली

" उतार उतार ऐसे त हम गिर जाएब"


सोनू को अपनी गलती का एहसास हुआ वह सुगना के सामने की तरफ आया और उसने अपनी मजबूत बाहें पीछे की और सुगना के नितम्बो के ठीक नीचे उसकी जांघों को अपनी भुजाओं में कसते हुए सुगना को ऊपर उठा दिया।

मर्द सोनू की मजबूत भुजाओं में युवा सुगना को देखकर नियति स्वयं मचल उठी… सोनू का चेहरा सुगना की नाभि से छू रहा था और सुगना के मादक बदन की खुशबू सोनू के नथुनो में नशा भर रही थी थी इस खुशबू में निश्चित ही सुगना की अद्भुत योनि और उससे रिस रहे प्रेमरस की खुशबू भी शामिल थी। सोनू को न जाने कितने खजाने एक साथ मिल गए थे उसकी बांहों को सुगना के कोमल नितंबों का स्पर्श मिल रहा था और उंगलियां जांघों की कोमलता महसूस कर रही थी। सुगना के पंजे सोनू के लंड के बिल्कुल करीब थे सोनू घबरा रहा था कहीं उसकी उत्तेजना का अंदाज सुगना दीदी न कर लें और यह सुखद क्षण जल्द ही समाप्त हो जाए।

सुगना सोनू की मनोदशा से अनजान रसोई घर का जरूरी सामान ऊपरी खाने में सजाने लगी। कुछ ही पलों में आवश्यक सामान ऊपर व्यवस्थित कर दिया गया और जब कार्य खत्म हुआ तो सुगना को अपनी अवस्था का ध्यान आया सोनू की गर्म सांसे अपनी नाभि पर महसूस कर सुगना की वासना जाग उठी वह यह बात भूल गई कि उसे बाहों में उठाने वाला व्यक्ति सरयू सिंह नहीं अपितु उसका छोटा भाई सोनू है…सुगना कुछ देर तक उस आनंद में खो गई और सोनू की गर्म सांसो को अपने बदन पर फैलते हुए महसूस करने लगी उसके हाथ ऊपर रखे सामानों को यूं ही आगे पीछे कर व्यवस्थित कर रहे थे परंतु शरीर की सारी चेतना वासना पर केंद्रित हो गई थी..


सुगना ने अंदाज कर लिया कि उसका पैर सोनू की जांघों के ठीक बीच में है उसने जानबूझकर अपने पैर के पंजों से सोनू के लंड को छूने की कोशिश की और सोनू के लंड को पूरी तरह तना हुआ पाकर मन ही मन मुस्कुराने लगी…

अपने तने हुए लंड पर सुगना के पंजों का स्पर्श पाकर सोनू शर्मसार हो गया उसने झल्लाते हुए कहा

"अरे दीदी अब उतर हाथ दुख गईल"

"ठीक बा अब उतार दे काम हो गएल" और सोनू ने धीरे-धीरे अपनी भुजाओं का कसाव कम करना शुरू किया और सुगना ऊपर से नीचे धीरे-धीरे सोनू के बदन से सटती हुई नीचे आने लगी। सोनू की हथेलियों ने सुगना के नितंबों को बेहद करीब से महसूस किया और सोनू की वासना तड़प कर रह गई …लंड उस मखमली स्पर्श के लिए तड़प कर रह गया।

ऊपर सुगना की मदमस्त चूचियां सोनू के चेहरे के बेहद करीब से लगभग सटती हुई नीचे आ रही थी और फिर सुगना का खूबसूरत और कोमल चेहरा। एक पल के लिए सोनू के मन में आया कि वह सुगना को इसी अवस्था में पकड़ ले और उसके खूबसूरत होठों को कसकर चूम ले पर सुगना ….उसकी बड़ी बहन थी और को सोनू सोच रहा था वो अभी संभव न था।.


सुगना यह बात भली-भांति जान चुकी थी की कुछ मिनटो में जो स्पर्श सुख सोनू ने लिया था उसका असर सुगना ने अपने पैर के पंजों महसूस कर लिया था। उसने कोई प्रतिक्रिया न दी और बेहद प्यार से बोली…

"देख इतना सुंदर तोर रसोईघर बना देनी ठीक लागत बा नू….."

सोनू को अब मौका मिल गया उसने सुगना को अपने आलिंगन में भर लिया और बेहद प्यार से बोला

" जवन भी चीज में हमरा दीदी के हाथ लग जाला ऊ चीज सुंदर हो जाला"

"जाकी रही भावना जैसी " सुगना एक बार फिर कल सोनू के लंड के बारे में सोचने लगी जो उसके हाथों का स्पर्श पाते ही खिलकर खड़ा हो गया था।"

सोनू के आलिंगन में खुद को महसूस कर सुगना सहम गई बात आगे बढ़ती इससे पहले सुगना ने सोनू के सीने पर हल्का धक्का दिया और बोली

"चल हट तोर काम हो गईल अब ढेर मक्खन मत लगाव"

सोनू कमरे से बाहर जा चुका था। अचानक सुगना ने अपनी जांघों के बीच कुछ गीलापन महसूस किया जो स्वाभाविक था सोनू जैसे मर्द की बाहों में आने के बाद कोई भी तरुणी अपने कामांगो का ध्यान अवश्य करती और निश्चित ही उसके कामांग सोनू से मिलने को आतुर हो उठते।

सुगना की बुर धीरे-धीरे बेचैन हो रही थी आखिर डॉक्टर की नसीहत उसके लिए भी थी सुगना को भी अपनी बुर को जीवंत रखने के लिए जमकर संभोग करना था परंतु सुगना का भविष्य गर्त में था सुगना के जीवन में आए दोनों मर्द सरयू सिंह और रतन अब बीते दिनों की बात हो चुके थे और उसके सामने जो खड़ा था वह हर रूप में उसके योग्य होने के बावजूद रिश्तों के आड़े आ रहा था।

कमरे में सुगना के पलंग पर सूरज और मधु दोनों सोनू के साथ खेल रहे थे। आत्मीयता इतनी कि यदि उन्हें कोई इस तरह खेलते देखता तो निश्चित यही समझता कि सोनू उन दोनों खूबसूरत बच्चों का पिता है यह बात भी अर्धसत्य थी मधु सोनू और लाली के मिलन से जन्मी थी। अचानक सूरज ने कहा

"मामा लखनऊ वाली कलेक्टर मैडम के यहां कतना बढ़िया झूला रहे तू काहे ना खरीदला ? "

बालमन सहज पर सजग होता है। वह भी अपनी आवश्यकता की चीजों का निरीक्षण करता रहता है और मन ही मन उनकी इच्छा अपने दिल में करता रहता है। सूरज को भी शायद मनोरमा मैडम के घर में रखा हुआ पिंकी का वह झूला बेहद पसंद आया था जिसमें लेटी हुई पिंकी चैन की नींद ले रही थी। सूरज के मन में भी तब से वह झूला घर पर गया था और उसने अपनी बात अपने मामा सोनू से खुलकर कह थी।


जब एक बार बात निकल गई तो फिर सोनू को रोकना कठिन था। सोनू बाजार गया और कुछ ही देर बाद मनोरमा जैसा तो न सही परंतु शायद उससे भी खूबसूरत बच्चों का झूला घर में हाजिर था।

झूला छोटी मधु के लिए था पर आकार में बड़ा हो पाने के कारण सूरज भी उसमे आराम से आ सकता था उसकी उम्र ही क्या थी।

सोनू ने सूरज और मधु दोनों को ही पालने में डाल दिया और बेहद प्यार से ही आने लगा सूरज छोटी मधु को बड़े प्यार से खिला रहा था और उसके पेट पर गुदगुदी कर रहा था अब तक कमरे में सुगना आ चुकी थी अपने दोनों बच्चों को झूले में हंसता खेलता देख उसका हृदय गदगद हो गया था और बिस्तर पर बैठा सोंनू उसे और भी प्यारा लग रहा था पलंग अपने प्रेमी जोड़ों के लिए पलक पावडे बिछाए तैयार था।

उधर सीतापुर में दोपहर हो चुकी थी पदमा सरयू सिंह को भोजन करा रही थी…और बगल में बैठकर बातें कर रही थी सोनी बीच-बीच में आकर घटा बढ़ा सामान पहुंचा रही थी। जब जब सोनी करीब आती सरयू सिंह की पीठ में तनाव आ जाता और वह संभल कर बैठ जाते और उसके जाते ही फिर सहज हो जाते हैं युवा किशोरियों और तरुणियों को देखकर सरयू सिंह का यह व्यवहार अनूठा था। चुदने योग्य युवतियों को देख सरयू सिंह का गठीला बदन युवा अवस्था में लौट आता सीना चौड़ा हो जाता और बाहर झांकता हुआ पेट तुरंत ही रीड की हड्डी से जा चिपकता। यह कार्य उतने ही स्वाभाविक तरीके से होता जैसे पलकों का झपकना।

सरयू सिंह की हरकतों और उनके हावभाव से पदमा ने यह भाप लिया की सरयू सिंह निश्चित ही सोनी की उपस्थिति में कुछ असहज महसूस कर रहे हैं और इतना तो पदमा को भली-भांति पता था कि कोई पुरुष यदि स्त्री की उपस्थिति में थोड़ा भी असहज महसूस करें तो यह मान लेना चाहिए कि उन दोनों के बीच जो संबंध हैं वह उन्हें स्वीकार्य नहीं और उन संबंधों में कुछ बदलाव होने की आशंका है पदमा सरयू सिंह की नस नस से वाकिफ थी ऐसा न था की सरयू सिंह किसी युवती पर डोरे डालते थे और उससे अपनी वासना में खींचने की कोशिश करते परंतु वह यह बात भली-भांति जानती थी सरयू सिंह का व्यक्तित्व और उनका मर्दाना शरीर तरुणियों को स्वतः उनकी तरफ आकर्षित करता था।

शायद यही वजह थी कि सरयू सिंह की निगाहों से असहज महसूस करने वाली सोनी रह-रहकर उनके करीब आ रही थी।

खाना खत्म होने के बाद पद्मा ने सरयू सिंह से कहा

"बनारस जाके शादी के दिन बार के बारे में बतिया लेब सोनी कहत रहली की विकास के पढ़ाई दो-तीन महीना में खत्म हो जाए और वह बनारस वापस आ जईहैं"

सरयू सिंह को एक पल के लिए लगा जैसे उनका दिवास्वप्न तोड़ दिया गया था। जिस सोनी को अपनी ख्वाबों में सजाए और उसके खूबसूरत अंगों की परिकल्पना करते हुए सरयू सिंह भोजन कर रहे थे वह भोजन के खात्मे के साथ ही खत्म हो चुका था उन्होंने अपने हाथ धोते हुए कहा

"ठीक बा…"

सरयू सिंह ने थोड़ा विश्राम किया और फिर वापस सलेमपुर के लिए निकल पड़े आज सुबह छोटी डॉक्टरनी का जो रूप उन्होंने देखा था उसने सोनी के प्रति उनके विचारों में परिवर्तन लाया था शहरों में आधुनिक वेशभूषा में घूमने और रहने वाली सोनी आज सुबह गांव के पारंपरिक वेशभूषा में जिस तरह अपनी मां का हाथ बटा रही थी वह सराहनीय था। सोनी को लेकर सरयू सिंह के विचार बदल रहे थे परंतु अभी दिल्ली दूर थी सोनी को अपनी गोद में लेकर मनभर चोदने की इच्छा को हकीकत का जामा पहना पाना कठिन था।

बोली उधर जौनपुर में सुगना के अनुरोध पर सोनू दोनों बच्चों को लेकर मंदिर गया और सुगना ने अपने आराध्य से अपने परिवार की खुशियां मांगी परंतु सोनू ने जो मांगा वह पाठक भली-भांति समझ सकते हैं । इस समय सुगना सोनू के चेतन और अवचेतन मन दोनों पर राज कर रही थी उसे सुगना के अलावा न कुछ दिखाई दे रहा ना था और न कुछ सूझ रहा था। सुगना के बदन के बारे में सोचते सोचते सोनू के विचार एक तूफान की तरह अपने केंद्र में एकत्रित होते और उसका अंत सुगना की मखमली बुर पर खत्म होता..

धीरे-धीरे दिन भर का तनाव खत्म होने का वक्त आया सुगना ने अपने बच्चों और सोनू के लिए खाना बनाया.. सोनू की पसंद के पकवान बनाते समय सुगना सोनू के बचपन से लेकर युवा होने तक सारी बातें याद कर रही थी जबसे सोनू युवा हुआ था और लाली के करीब आया था सुगना के विचारों में सोनू का बालपन न जाने कब अपना रूप बदल चुका था लाली को चोदते हुए देखने के बाद सुगना ने पहली बार सोनू से नजरें मिलाने में शर्म महसूस की और फिर जैसे-जैसे वासना सोनू और सुनना को अपने आगोश में लेती गई दोनों के बीच भाई-बहन की मासूमियत तार-तार होती गई और सुगना ने अपनी जांघों के बीच सोनू के लिए उत्तेजना महसूस करना शुरू कर दिया….

सुगना ने बीती रात जो प्रयोग किया था आज भी उसे हूबहू दोहराने के लिए बिसात बिछा ली उस मासूम को क्या पता था कि वह जिस सोनू पर जिस हथियार का प्रयोग करने जा रही थी उसने उसकी रणनीति बना रखी थी।

सोनू और सुगना ने साथ में भोजन किया बच्चों ने भी दिनभर की खेलकूद के पश्चात मनपसंद भोजन कर नए-नए पालने में आकर झूला झूलने लगे सूरज ने भी जिद कर उसी झूले में अपने लिए जगह तलाश ली।


सोनू सूरज और मधु को पालने में एक दूसरे के साथ प्यार करते और खेलते देखकर मन ही मन सोच रहा था क्या बालपन का यह प्यार भविष्य में कोई और रूप ले सकता है सुगना और उसके बीच कुछ ऐसी ही घटनाएं बालपन में हुई होंगी और उसकी सुगना दीदी ने उसका ऐसे ही ख्याल रखा होगा परंतु आज…

वासना के आधीन सोनू उस रिश्ते की पवित्रता को नजरअंदाज कर सिर्फ और सिर्फ सुगना की चूचियों और बुर पर अपना ध्यान लगाए हुए था। मन के किसी कोने में सुगना की अतृप्त इच्छाओं की पूर्ति करना वह अपना दायित्व समझ रहा था। बीती रात उसकी बहन ने जो उसके पुरुषत्व को बचाने के लिए किया था आज उसका ऋण चुकाने का वक्त था ….

सोनू बाथरूम में मुत्रत्याग के लिए गया और मूत्र त्याग के दौरान शावर की लंबी रोड पर टंगी सुगना की ब्रा और पेंटी को देखकर मदहोश होने लगा। लंड से मूत्रधार बहती रही और लंड में लहू एकत्रित होता गया। उसने सुगना के अंतर्वस्त्र को चूमा पुचकारा और फिर वापस उसी जगह रख दिया। अंतर्वस्त्रों ने सोनू की कल्पना को आज फिर एक नया रूप दे दिया।

अचानक सोनू के दिमाग में कुछ विचार आए और उसने सुगना की ब्रा और पेंटी को शावर की रॉड के ठीक किनारे लटका दिया जिससे उसका अधिकतर भार एक तरफ झूल गया…. उस पर से उसने सुगना की नाइटी डाल दी जिससे ब्रा और पेंटी नीचे गिरने से तात्कालिक रूप से बच गई। पर यदि सुगना अपनी नाइटी को हटाकर ब्रा और पैंटी को पकड़ने की कोशिश करती तो निश्चित ही असावधानी के कारण ब्रा और पेंटिं नीचे गिरकर बाल्टी में गिरती या फर्श के पानी भीग जाती।

सोनू न जाने अपने मन में क्या-क्या सोच रहा था और उसी अनुसार अपने मन में योजनाएं बना रहा था। उधर सोनू के लंड ने अब तक अपना आकार ले लिया था अपनी बड़ी बहन की ब्रा और पेंटी को चूमने तथा पूचकारने का असर नीचे दिखाई पड़ रहा था सोनू ने अपने लंड को अपने हाथों में ले और उसे मसल मसल कर वीर्य त्याग करने लगा था। सोनू अपनी योजना पर आगे बढ़ रहा था।

कुछ ही देर में सोनू ने अपना वीर्य स्खलन पूरा किया और वापस आकर बिस्तर पर उसी तरह लेट गया। सफेद धोती में अपना लंड छुपाए और सफेद गंजी में सोनू का बदन एक बार फिर चमक रहा था।

उधर रसोई में सुगना ने दूध तैयार किया वैद्य जी की पत्नी द्वारा दी गई दवाई मिलाई और दूध लेकर सोनू की तरफ आने लगी।पर कल की तरह आज सुगना के हाथ में दो गिलास न थे। शायद दिन भर में दूध की खपत कुछ ज्यादा हो गई थी और रात्रि के लिए दूध एक ही गिलास बचा था।

बिस्तर पर लेटे सोनू की धड़कन तेज थी लंड स्खलित होकर आराम कर रहा था। आज सोनू ने जानबूझकर अपना अंडरवियर नहीं पहना था परंतु सतर्क होने के कारण धोती का आवरण भी उसे ढकने में कामयाब हो रहा था। सुगना को अपने करीब आते देख कर उसने स्वयं को व्यवस्थित किया और पालथी मारकर पलंग पर बैठ गया धोती को अपने जननांगों के पास समेट कर उसने अपने आराम कर रहे लंड को पूरी तरह ढक लिया।

"आज दिन भर ढेर काम हो गईल ने दूध पीकर सूत जो…." सुगना ने स्वयं को यथासंभव सामान्य दिखाते हुए कहा।

"अरे एक ही गिलास दूध ले आईल बाड़ू तू ना पियाबु"

"नाना हम पी ले ले बानी" सुगना ने झूठ बोलने की कोशिश की पर इस झूठ में सिर्फ और सिर्फ त्याग था।

"अइसन हो ना सकेला हमार कसम खा"

सोनू की झूठी कसम खा पाना सुगना के लिए संभव न था वह बात बदलते हुए बोली

"अरे पी ले हम ढेर खाना खा ले ले बानी"

परंतु सोनू ना माना उसने आगे झुक कर सुगना की कलाइयां पकड़ ली और उसे खींचकर अपने बगल में बैठा लिया

"पहले तू थोड़ा दूध पी ला तब हम पियेब " सोनू ने अधिकार जमाते हुए कहा।

सुगना को पता था सोनू अपनी जिद नहीं छोड़ेगा पर यदि उसने दूध पिया तो……. सुगना का हलक सूखने लगा

"का सोचे लगलू? थोड़ा सा पी ला…"

सुगना को कोई उत्तर न सूझ रहा था आखिरकार उसने हार मान ली और बोली

" बस दो घूंट और ना.."

सोनू ने गिलास अपने हाथ में लेकर अपने अंगूठे से गिलास पर निशान बनाया और बोला

"इतना पी जा ना ता हम दूध ना पिएब"

सुगना जानती थी यदि उसने दूध पीने में आनाकानी की और ज्यादा जिद की तो सोनू को शक हो सकता था । और यदि सोनू ने दूध न पिया तो आज उसका वीर्य स्खलन असंभव हो जाता। उसने सोनू की संतुष्टि के लिए मजबूरी बस दूध के कुछ घूंट अपने हलक के नीचे उतार लिए।


उसे पता था कि वह स्वयं अब उस दवा के प्रकोप में आ सकती है परम उसे विश्वास था कि वह दूध की कुछ मात्रा लेने के बावजूद भी वह अपनी चेतना बरकरार रख सकती है। सुगना ने दूध के कुछ घूंट पिए और गिलास सोनू को हाथ में देते हुए बोली

"अब पी जा बदमाशी मत कर हम जा तानी नहाए…"

सोनू दूध पीने के मूड में बिल्कुल भी नहीं था परंतु सुगना वहां से हिलने को तैयार ना थी। जब तक सोनू के गले की मांसपेशियों ने दूध हलक में उतरने का दृश्य सुगना की आंखों के समक्ष न लाया सुगना वहां से न हटी। परंतु जैसे ही सुगना ने बाथरूम की तरफ अपने कदम बढ़ाए सोनू ने दूध पीना रोक लिया और सुगना के बाथरूम में जाते ही वह दूध रसोई घर में जाकर बेसिन में गिरा आया।

भाई-बहन के इस मीठे प्यार ने दोनों के हलक में उस दिव्य दूध की चंद घूटें उतार दी थी…

दोनों भाई बहन कभी अपने सर को झटकते कभी अपनी आंखों को बड़ा कर दवा के असर को कम करने की कोशिश करते….


सुगना निर्वस्त्र होकर स्नान करने लगी उसके दिमाग में एक बार फिर सोनू का लंड घूमने लगा जिसे अब से कुछ देर बाद उसे हाथों में लेकर सहलाते हुए स्खलित करना था। जांघों के बीच हो रही बेचैनी को सुगना ने रोकने की कोशिश न कि आखिर बुर से बह रही लार ने कल रात सुगना की मदद ही की थी..
अपने उत्तेजक ख्यालों में खोई सुगना ने अपना स्नान पूरा किया तौलिए से अपने भीगे बदन को पोछा और अपने अंतर्वस्त्र पहनने के लिए शावर की रॉड पर टंगी अपनी नाइटी को हटाया….

जब तक सुगना अपने अंतर्वस्त्र पकड़ पाती वह नाइटी के हटते ही वह रॉड से नीचे गिर गए। सुगना ने उन्हें पकड़ने की कोशिश अवश्य की परंतु सोनू की चाल कामयाब हो गई थी। सुगना की ब्रा और पेंटी नीचे रखी बाल्टी में जा गिरे थे और भीग गए। वो अब पहनने लायक न थे। सुगना कुछ समय के लिए परेशान हो गई पर कोई उपाय न था। आखिर का उसने हिम्मत जुटाई और बिना अंतर्वस्त्र पहले ही नाइटी पहन कर बाहर आ गई…

वैसे भी उसके अनुसार उसका भाई सोनू अवचेतन अवस्था में होगा नाइटी के अंदर अंतर्वस्त्र है या नहीं इससे किसी को फर्क नहीं पड़ना था। परंतु सुगना शायद यह बात नहीं जानती थी कि उसका छोटा भाई सोनू उसका बेसब्री से इंतजार कर रहा और जब वह उसकी भरी-भरी चुचियों और जांघों के बीच से झांक रहे अमृत कलश को अपनी निगाहों से देखेगा वह कैसे खुद पर काबू रख पाएगा…

सुगना को अपनी तरफ आते देख सोनू ने सुगना की चूचीयों को बंद पलकों के बीच से झांक कर देखा और चुचियों की थिरकन से उसने अपनी योजना की सफलता का आकलन कर लिया।


सुगना एक बार फिर सोनू के बगल में बैठ चुकी थी। और अपने दाहिने हाथ से सोनू की धोती को अलग कर रही थी नियति मुस्कुरा रही थी…सुगना जागृत सोनू का लंड अपने हाथों से पकड़ने जा रही थी..

दवा की खुमारी ने सोनू और सुगना दोनों को सहज कर दिया था।

पाप घटित होने जा रहा था….

शेष अगले भाग में….
Sir ji 120 no update mujhe bhi bhej de please
 
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Chutphar

Mahesh Kumar
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गजब... सगुना का कमर पे चोट लगना और सो‌नु का कमर पर तेल लगाना, दोनो के इस नये रिश्ते को आगे बढाने के लिये एकदम नेचुरल लग रहा है
 

Raj0410

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सर पता तो चले डॉक्टर ने सुगना को क्या सलाह दी है । 109 और उसके बाद के सारे अपडेट दे दो प्लीज ।
 
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