• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

whether this story to be continued?

  • yes

    Votes: 43 97.7%
  • no

    Votes: 1 2.3%

  • Total voters
    44

Lovely Anand

Love is life
1,324
6,479
159
आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
Smart-Select-20210324-171448-Chrome
भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Shubham babu

Member
197
104
58
Good evening
 
432
800
108
Good morning ...How are you dear friends ?
How many are still there waiting for second part...
बहुत ही बेसब्री से
 

Umakant007

चरित्रं विचित्रं..
3,946
5,037
144
Good morning ...How are you dear friends ?
How many are still there waiting for second part...
Welcome back Lovely Anand bro .... Waiting for new update... Very Eagerly
 

Umakant007

चरित्रं विचित्रं..
3,946
5,037
144
अध्याय 2

भाग 127 पार्ट 2




क्या सुगना गुनहगार थी…एक बार के लिए उसके मन में आया कि वह सरयू सिंह की चिता के साथ ही अपने प्राण त्याग दे पर सूरज का चेहरा ध्यान आते ही…उसे अपने जीवन की उपयोगिता का ध्यान आ गया…पुत्र मोह ने उसे जीवन जीने का कारण दिया पर सुगना ने मन ही मन यह निर्णय कर लिया कि वह अब और वासना के आगोश में नहीं रहेगी और सोनू से अपने कामुक संबंधों का खात्मा कर लेगी..

कुछ होने वाला था….


अब आगे...
धन्यवाद :love3:
 
Last edited:

Sanjuhsr

Active Member
500
1,106
124
अध्याय 2

भाग 127 पार्ट 1

समय बीतते देर नहीं लगती आज सलेमपुर में माहौल गमगीन था सलेमपुर के हीरो सरयू सिंह आज श्मशान घाट में कफन ओढ़े मुखाग्नि का इंतजार कर रहे थे सलेमपुर की सारी जनता अपने सम्मानित सरयू सिंह को विदा करने श्मशान घाट पर उमड़ी हुई थी। शायद यह पहला अवसर था जब श्मशान घाट पर इतनी भीड़ देखी जा रही थी पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं भी पहली बार श्मशान घाट पर उपस्थित हुई थी सुगना कजरी और पदमा का रो रो कर बुरा हाल था।


चिता सजाई जा रही थी सभी अपनी अपनी बुद्धि और प्रेम के हिसाब से सरयू सिंह को अंतिम सम्मान देने का प्रयास कर रहे थे कोई चिता के चरण छूता कोई फूल डालता… धीरे-धीरे मुखाग्नि का समय करीब आ रहा था।

संग्राम सिर्फ उर्फ सोनू अब भी दुविधा में था। वह एक तरफ पत्थर की शिला पर बैठा आंखे बंद किए धरती में न जाने क्या देख रहा था…

गांव के सरपंच ने आखिरकार जन समाज के समक्ष यह बात रखी की सरयू सिंह को मुखाग्नि कौन देगा?

"सरयू सिंह कि कोई संतान तो है नहीं पर सोनू भैया इनके पुत्र जैसे ही हैं मुखाग्नि इन्हीं को देना चाहिए" गांव के एक युवा पंच ने अपनी बात रखी।

सोनू दूर बैठा यह बात सुन रहा था उसका कलेजा दहल उठा सोनू भली-भांति जानता था की सुगना सरयू सिंह की पुत्री है यह अलग बात थी की उसका जन्म सरयू सिंह के नाजायज संबंधों की वजह से हुआ था परंतु सुगना के शरीर में सरयू सिंह का ही खून था सोनू से रहा न गया सोनू ने पूरी दृढ़ता से कहा..

"सुगना दीदी ने जीवन भर एक पुत्री की भांति सरयू चाचा की सेवा की है मुखाग्नि सुगना दीदी देंगी.."

सोनू का कद और उसकी प्रतिष्ठा अब इतनी बढ़ चुकी थी कि उसकी बात काट पाने का सामर्थ गांव के किसी व्यक्ति में न था। सभी एक बारगी महिलाओं के झुंड की तरफ देखने लगे… बात कानो कान सुगना तक पहुंच गई..

सुगना पहले ही दुखी थी…यह बात सुनकर उसकी भावनाओं का सैलाब फुट पड़ा और एक बार वह फिर फफक फफक कर रोने लगी… अब तक सोनू उसके करीब आ चुका था उसने सुगना को अपने गले से लगाया और उसे समझाने के लिए उसे भीड़ से हटाकर कुछ दूर ले आया..

"सोनू ई का कहत बाड़े…? हम मुंह मे आग कैसे देब?

"काहे जब केहू के बेटा ना रहे ता बेटी ना दीही?"

सोनू ने स्वयं प्रश्न पूछ कर सुगना को निरुत्तर कर दिया।

"दीदी याद बा हम तहरा के बतावले रहनी की तू हमर बहिन ना हाउ "

सुगना को जौनपुर की वह रात याद आ गई जब सोनू ने संभोग से पहले सुखना के कानों में यह बात बोली थी और मिलन को आतुर सुगना को धर्म संकट से बाहर निकाल लिया था।

सुगना का कलेजा धक धक करने लगा…

रक्त का प्रवाह तेजी से शरीर में बढ़ने लगा परंतु दिमाग में झनझनाहट कायम थी सुगना सोनू की तरफ आश्चर्य से देख रही थी..

"दीदी सरयू का चाचा हि ताहार बाबूजी हवे। तू उनकरे बेटी हाउ एकरा से ज्यादा हमरा से कुछ मत पूछीह…"

सुगना के कान में जैसे पारा पड़ गया हो वह हक्की बक्की रह गई आंखें सोनू के चेहरे और भाव भंगिमा को पढ़ने की कोशिश कर रही थी परंतु कान जैसे और कुछ सुनने को तैयार ना थे।

"ते झूठ बोलत बाड़े ऐसा कभी ना हो सके ला?"

सोनू भी यह बात जानता था कि सुगना दीदी के लिए इस बात पर विश्वास करना कठिन होगा इसलिए उसने बिना देर किए सुगना के हाथों को अपने हाथों में ले लिया और बोला

" दीदी हम तोहार कसम खाकर कहत बानी .. तू सरयू चाचा की बेटी हाउ .. घर पहुंच गए हम तोहरा के डॉक्टर के रिपोर्ट भी दिखा देहब अभी हमारी बात मान ल।"

सुगना को यह अटूट विश्वास था कि सोनू उसकी झूठी कसम कतई नहीं कह सकता था जो बात सोनू ने कही थी उस पर विश्वास करने के अलावा सुगना के पास कोई और चारा ना था। जैसे ही सुगना के दिमाग में सरयू सिंह के साथ बिताए कामुक पलों के स्मृतिचिन्ह घूमें सुगना बदहवास हो गई…अपने ही पिता के साथ….वासना का वो खेल….. हे भगवान सुगना चेतना शून्य होने लगी… और खुद को संभालने की नाकामयाब कोशिश करते नीचे की तरफ गिरने लगी सोनू ने उसे सहारा दिया परंतु सुगना धीरे-धीरे जमीन पर बैठ गई…

कुछ दूर सोनू और सोनू को बातें करते वे देख रही महिलाएं भागकर सुगना की तरफ आई और उसे संभालने की कोशिश करने लगी सुगना के मुंह पर पानी के छींटे मारे गए और सुगना ने एक बार फिर अपनी चेतना प्राप्त की कलेजा मुंह को आ रहा था और आंखों से अश्रु धार फूट रही थी..

उसे सरयू सिंह का प्यार भरपूर मिला था एक ससुर के रूप में भी, एक प्रेमी के रूप में भी और बाद में एक पिता के रूप में भी…

सुगना को अंदर ही अंदर ही अंदर यह बात खाए जा रही थी कि आज सरयू सिंह की अकाल मृत्यु के पीछे कहीं ना कहीं कारण वह स्वयं थी…

उधर सरयू सिंह के घर के अंदर कोठरी में सोनी सुबक रही थी एकमात्र वही थी जो इस समय सरयू सिंह के घर में थी…

बीती रात के दृश्य उसकी आंखों के समक्ष घूम रहे थे कैसे दरवाजे की आहट से वह सहम गई थी…

अंदर आ रही कदमों की आहट से उसका कलेजा दहला जा रहा था तभी सुगना की आवाज ने उसे संबल दिया..

बाउजी "तनी धीरे से………"

तू जा सरयू सिंह को मजबूत आवाज ने सोनी के रोंगटे खड़े कर दिए…


सोनी पलंग पर घोड़ी बनी हुई थी पलंग पर लगी मच्छरदानी की रॉड से एक पर्दा लटका दिया गया था सोनी के घाघरे में ढके नितंब पर्दे के बाहर थे और सोनी का पूरा शरीर पर्दे के अंदर..

सरयू सिंह उत्तेजना से पागल थे उन्होंने सोनी की घागरे में कैद नितंबों को अनावृत किया और अपनी मजबूत और खुरदरी उंगलियों से उन चिकने नितंबों की कोमलता को अंदाज ने की कोशिश की उंगलियां स्वता ही सोनी की दरारों में घूम लक्ष्य की तलाश में भटकने लगी सरयू सिंह से रहा न गया सुगना के तय किए गए नियमों के खिलाफ सरयू सिंह ने अपनी कमर में कसी छोटी टॉर्च निकाली और सोनी के नितंबों को उजाले में देखने को कोशिश की..

दो खूबसूरत चांदो और उनके बीच की गहरी घाटी में सरयू सिंह के लंड में एक अद्भुत तनाव पैदा किया और सरयू सिंह से झुककर सोनी के नितंबों को चूम लिया..

खिड़की पर खड़ी सुगना ने अंदर कमरे में हुए रोशनी देखकर अपना ध्यान खिड़की की तरफ लगाया और सरयू सिंह को सोनी के नितंब चूमते हुए देख लिया..

सरयू सिंह बहक रहे थे सुगना ने छद्म खासी की आवाज निकाल कर सरयू सिंह को उनका कर्तव्य याद दिलाया और टॉर्च की रोशनी बंद हो गई।

और कुछ ही देर बाद कमरे में ढोलक की हल्की थाप गूंजने लगी सोनी आज अपने उन ख्वाबों को साकार होते महसूस कर रही थी वही ख्वाब जिसकी उसने न जाने कितनी बार कल्पना की थी…


लगातार दो बार चरम प्राप्त करने के पश्चात वह पूरी तरह तृप्त थी परंतु जिस निमित्त हेतु यह संभोग हो रहा था अभी उसकी पूर्णाहुति में समय था सरयू सिंह का स्खलन अब तक ना हुआ था।

इसके बाद जो हुआ सोनी स्वयं को उसके लिए गुनाहगार मान रही थी…उसे वह समय याद आ रहा था.. जब सरयू सिंह उसकी बुर में लंड डाले उसे गचागच चोद रहे थे और वह उन्हें और उकसाए जा रही थी..


अचानक ही सरयू सिंह वह उसपर लेट गए थे उसने उनकी पीठ सहलाकर उन्हें वापस मैदान में उतारने की कोशिश की परंतु कोई प्रतिक्रिया न देखकर वह घबरा गई. अपने सीने पर सरयू सिंह की धड़कनों की धीमी पड़ती गति और सरयू सिंह के चेहरे से झर झर बहता पसीना सोनी को व्याकुल कर रहा था।

काफी मशक्कत के बाद सोनी ने खुद को सरयू सिंह की के आगोश से बाहर निकाला और अपने हृदय गति पर काबू पाकर अपने अपने नंगे बदन पर आनन-फानन में वस्त्र डालें और भागकर सुगना को ढूंढती हुई आंगन में आ गई सुगना ने बदहवाश सोनी को देखते ही पूछा "क्या हुआ?" सोनी के मुंह से आवाज न निकल रही थी अंदर दोनों बहने सरयू सिंह को देख रही थी जो पलंग पर नंग धड़ंग मृत पड़े हुए थे।

बड़ी मुश्किल से सरयू सिंह को वस्त्रों से ढका गया और कुछ ही पलों में घर में कोहराम मच गया।

सुगना अब अपनी भावनाओं पर नियंत्रण पा चुकी थी और धीरे-धीरे चेतना प्राप्त कर अपने पिता सरयू सिंह को मुखाग्नि देने के लिए आगे बढ़ रही थी..

सरयू सिंह की आत्मा अपनी पुत्री को अपनी मृत शरीर को मुखाग्नि देने हेतु आगे बढ़ते देख आह्लादित हो रही थी आखिरकार सुगना और सरयु सिंह के बीच जो हुआ था वह अनजाने में हुआ था…

सरयू सिंह की चिता धू धू कर जल रही थी…उनकी आत्मा को इस बात का मलाल अवश्य था कि वह सोनी को विभिन्न अवस्थाओं में कसकर चोदने के बावजूद स्खलन को प्राप्त न हो पाए थे और अतृप्ति का अहसास लिए उसे देह छोड़नी पड़ी थी।

सुगना चिता को जलते देख रही थी और विगत तीन चार वर्षों में अपने घर में आए रिश्तों के बदलाव और उसके कारणों को याद कर रही थी..

क्या सुगना गुनहगार थी…एक बार के लिए उसके मन में आया कि वह सरयू सिंह की चिता के साथ ही अपने प्राण त्याग दे पर सूरज का चेहरा ध्यान आते ही…उसे अपने जीवन की उपयोगिता का ध्यान आ गया…पुत्र मोह ने उसे जीवन जीने का कारण दिया पर सुगना ने मन ही मन यह निर्णय कर लिया कि वह अब और वासना के आगोश में नहीं रहेगी और सोनू से अपने कामुक संबंधों का खात्मा कर लेगी..

कुछ होने वाला था….

शेष अगले एपिसोड में

जितने पाठक बचे है वह अपने कमेंट और अपेक्षाएं देकर अपनी उपस्थिति का प्रमाण अवश्य दे ताकि अगला एपिसोड उन्हें DM par bheja ja sake..
Adbhut update, vyakhya hi nhi ki Ja sakti
 

Vpkt

Member
127
326
63
1127 part 2 please update
 
Top