भाग 129
सुगना को जैसे ही एहसास हुआ कि सोनू उसकी गुदाज गांड़ को देख रहा है उसने अपने कूल्हे सिकोड़ लिए और झटके से उठ खड़ी हुई और थोड़ी तल्खी से बोली…
“अब बस अपन मर्यादा में रहा ज्यादा बेशर्म मत बन..”
सोनू सावधान हो गया परंतु उसने जो देखा था वह उसके दिलों दिमाग पर छप गया था…
सुगना अद्भुत थी अनोखी थी…और उसका हर अंग अनूठा था अलौकिक था। आधे घंटे का निर्धारित समय बीत चुका था..
सोनू और सुगना एक दूसरे के समक्ष पूरी तरह नग्न खड़े थे सोनू की निगाहें झुकी हुई थी वह सुगना के अगले निर्देश का इंतजार कर रहा था…
अब आगे…
इंतजार …इंतजार …. हर तरफ इंतजार…उधर बनारस में सोनी और लाली, सुगना और सोनू का इंतजार करते-करते थक चुके थे। रात के 11:00 रहे थे और अब उनका सब्र जवाब दे रहा था।
सोनी अपने कॉलेज का कार्य निपटाकर सोने की तैयारी में थी और लाली भी सोनू का इंतजार करते-करते अब थक कर सोने का मन बना चुकी थी। उसने अपनी सहेली और सोनू के लिए खाना बना कर रखा था परंतु ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे अब उनके आने की संभावना कम ही थी।
रात गहरा रही थी और उधर लखनऊ में सुगना अपने छोटे भाई सोनू की मनोकामना पूरी कर रही थी..जो अनोखी थी और निराली थी..
छोटा सोनू अब शैतान हो चुका था परंतु सुगना तब भी उसे बहुत प्यार करती थी और अब भी।
अगली सुबह पूरे परिवार के लिए निराली थी…
सोनू और सुगना के बीच बीती रात जो हुआ था वह अनूठा था…सोनू और सुगना ने आज मर्यादाओं की एक और सीमा लांघी थी जिसका असर सोनू के दाग पर स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था और अब वह बरबस सब का ध्यान खींच रहा था..
सुबह जब सुगना गुसल खाने से बाहर आई सोनू दर्पण में अपने इस दाग को निहार रहा था।
सुगना को अपनी ओर देखते हुए जानकर सोनू ने कहा ..
“दीदी तु साच कहत बाडू…देख ना दाग कितना बढ़ गईल बा । “
सुगना ने भी महसूस किया दाग कल की तुलना में और बढ़ा हुआ था।
“देख सोनू तू जवन रात में हमारा साथ कईला ऊ वासना के अतिरेक रहे अपना मन पर लगाम लगवा और हमारा से कुछ दिन दूर ही रहा… हमारा लगता कि हमारा से दूर रहला पर तहर ई दाग धीरे-धीरे खत्म हो जाए।”
सुगना यह बात महसूस कर चुकी थी कि सोनू की गर्दन का दाग और सरयू सिंह के माथे के दाग में निश्चित ही कुछ समानता थी। जब-जब सरयू सिंह सुगना के साथ लगातार वासना के भंवर में गोते लगाते और उचित अनुचित कृत्य करते उनके माथे का दाग बढ़ता जाता।
यद्यपि सुगना की सोच का कोई पुष्ट आधार नहीं था परंतु दोनों दागों के जन्म उनके बढ़ने और कम होने में समानता अवश्य थी…
लगभग यही स्थिति सोनू की भी थी बीती रात उसने जो किया था नियति ने उसकी कामुकता और कृत्य का असर उसके गर्दन पर छोड़ दिया था नियति अपनी बहन के साथ किए गए कामुक क्रियाकलापों के प्रति सोनू को लगातार आगाह करना चाहती थी।
सोनू को इस बात का कतई यकीन नहीं हो रहा था कि इस दाग का संबंध किसी भी प्रकार से सुगना के साथ किए जा रहे संभोग से था। वैज्ञानिक युग का पढ़ा लिखा सोनू इस बात पे यकीन नहीं कर पा रहा था…
परंतु सोनू को इस बात का इलाज ढूंढना जरूरी था। इतने सम्मानित पद पर उसका कई लोगों से रोज मिलना जुलना होता था निश्चित ही यह दाग आम लोगों की नजर में आता और सोनू को बेवजह लोगों से ज्ञान लेना पड़ता या अपनी सफाई देनी पड़ती।
दाग हमेशा दाग होता है वह आपके व्यक्तित्व में एक कालिख की तरह होता है जिसे कोई भी व्यक्ति स्वीकार नहीं कर सकता सोनू के लिए दाग अब तनाव का कारण बन रहा था।
सुगना ने सोनू को अपने दाग पर क्रीम लगाकर रखने की सलाह दी और उसे इस बात को लाली से और सभी से छुपाने के लिए कहा विशेष कर यह बात कि इस दाग का असर कही न कहीं सुगना के साथ कामुक संबंधों से है।
“ ते लाली से नसबंदी और पिछला सप्ताह हमनी के बीच भइल ई कुल के बारे में कभी बात मत करिहे “
सोनू ने मुस्कुराते हुए सुगना की तरफ देखा और उसे छेड़ता हुए बोला..
“हम त बतायब हमरा सुगना दीदी कामदेवी हई….”
सुगना प्यार से सोनू की तरफ उसे मारने के लिए आगे बढ़ी पर सोनू ने उसे अपने आलिंगन में भर लिया।
सोनू खुद भी यह बात सुगना से कहना चाह रहा था। भाई बहन इस राज को राज रखने में अपनी सहमति दे चुके थे यही उचित था परंतु इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपाते यह बात शायद सोनू और सुगना भूल चुके थे।
कुछ ही देर बाद सोनू सुगना और दोनों बच्चे बनारस के लिए निकल चुके थे छोटा सूरज भी अपने मामा के गर्दन पर लगे दाग को देखकर बोला
“ मामा ये चोट कैसे लग गया है…”
सोनू किस मुंह से बोलता कि यह उसकी मां को कसकर चोदने के करने के कारण हुआ है..सोनू मन ही मन मुस्कुराने लगा था। सुगना स्वयं सूरज के प्रश्न पर अपनी मुस्कुराहट नहीं रोक पा रही थी।
सोनू ने सूरज के प्रश्न का उत्तर न दिया अपितु आइसक्रीम के लिए पूछ कर उसका ध्यान भटका दिया।
सोनू और सुगना सपरिवार हंसते खेलते बनारस की सीमा में प्रवेश कर चुके थे और कुछ ही देर बाद उनकी गाड़ी सुगना के घर पर खड़ी थी। लाली की खुशी का ठिकाना न था वह भाग कर बाहर आई और अपनी सहेली सुगना के गले लग गई। आज भी वह सुगना से बेहद लगाव रखती थी। सोनू ने आगे बढ़कर गाड़ी से सारा सामान निकाला और घर के अंदर पहुंचा दिया। सोनू ने एक बार फिर लाली के चरण छूने की कोशिश की परंतु लाली ने सोनू को रोक लिया और स्वयं उसके आलिंगन में आ गई यह आलिंगन भाई-बहन के आलिंगन के समान भी था और अलग भी।
आलिंगन से अलग होते हुए लाली सोनू के सुंदर मुखड़े को निहार रही थी तभी उसका ध्यान सोनू के गर्दन के दाग पर चला गया
“अरे तोहरा गर्दन पर ही दाग कैसे हो गइल बा ?”
जिसका डर था वही हुआ। सोनू के उत्तर देने से पहले ही सुगना बोल पड़ी
“अरे कुछ कीड़ा काट देले बा दु चार दिन में ठीक हो जाए”
लाली अपने पंजों के ऊपर खड़ी होकर सोनू के गर्दन के दाग को और ध्यान से देखने लगी…
“ सुगना… ऐसा ही दाग सरयू चाचा के माथा पर भी रहत रहे.. हम तो दो-तीन साल तक उनका माथा पर ई दाग देखत रहनी कभी दाग बढ़ जाए कभी कम हो जाए ..कोनो बीमारी ता ना ह ई ?”
“हट पागल देखिए दो-चार दिन में ठीक हो जाए। चल कुछ खाना-वाना बनावले बाड़े की खाली बकबक ही करत रहबे “
सुगना ने इस बातचीत को यही अंत करने का सोचा परंतु सोनू लाली की बातों को बड़े ध्यान से सुन रहा था।
यदि इस दाग का संबंध सुगना के साथ संभोग से है तो यह दाग सरयू चाचा के माथे पर कैसे?। सोनू भली भांति जान चुका था कि सरयू सिंह सुगना के पिता हैं पर सामाजिक रिश्ते में सुगना उनकी बहु थी।
ऐसा कैसे हो सकता है …सोनू का दिमाग कई दिशाओं में दौड़ने लगा। जब-जब सोनू के विचार अपना रास्ता इधर-उधर भटकते सरयू सिंह का तेजस्वी चेहरा और मर्यादित व्यक्तित्व सोनू के विचारों को भटकने से रोक लेता। सोनू को कुछ समझ नहीं आ रहा था। सरयू सिंह और सुगना के बीच इस प्रकार के संबंध सोनू की कल्पना से परे था।
उधर लाली बेहद प्रसन्न थी आज वह और उसकी बुर सोनू के स्वागत के लिए पूरी तरह से तैयार थी। शाम होते होते सोनी भी अपने कॉलेज से आ चुकी थी। सोनू अपने गर्दन का दाग सोनी से छुपा कर उसके प्रश्नों से बचना चाहता था.. परंतु नियति ने यह दाग ऐसी जगह पर छोड़ा था जिसे छुपाना बेहद कठिन था। कुछ ही देर बाद सोनी ने सोनू के दाग पर एक और प्रश्न कर जड़ दिया..
“अरे ई सोनू भैया के गर्दन पर का हो गैल बा”
सोनू को असहज देखकर इस बार सुगना की जगह लाली ने वही उत्तर देकर सोनी को शांत करने की कोशिश की जो सुगना ने उसे दिया था। परंतु सोनी ने नर्सिंग की पढ़ाई की हुई थी वह अपने आप को डॉक्टर से कम ना समझती थी। उसने सोनू के गर्दन के दाग का मुआयना किया परंतु उसका कारण और निदान दोनों ही उसके बस में ना था।
यह दाग जितना अनूठा था उसका कारण भी और इलाज भी उतना ही अनूठा था।
लाली भी सोनू के इस दाग को लेकर चिंतित हो गई थी पर चाह कर भी सरयू सिंह और सोनू के दागों को आपस में लिंक करने में नाकामयाब रही थी।
शाम को पूरा परिवार हंसते खेलते पिछले हफ्ते की घटनाक्रमों को आपस में साझा कर रहा था। सिर्फ सोनू और सुगना सावधान थे। जब-जब जौनपुर की बात आती सुगना सोनू के घर की तारीफ करने में जुट जाती। लाली और सोनी भी सोनू के जौनपुर वाले घर में जाने को लालायित हो उठीं। परंतु सोनू अभी पूर्णतया तृप्त था। सुगना की करिश्माई बुर ने उसके अंदर का सारा लावा खींच लिया था। लाली को देने के लिए न तो उसके पास न
उत्तेजना थी और न हीं अंडकोषों में दम और सोनी के प्रति उसके मन में कोई भी ऐसे वैसे विचार न थे।
सोनू खुद थका हुआ महसूस कर रहा था। और हो भी क्यों ना पिछले सप्ताह सुगना का खेत जोतने में की गई जी तोड़ मेहनत और फिर आज का सफर.. सोनू को थका देने के लिए काफी थे।
उधर सोनू से संभोग के लिए लाली पूरी तरह उत्साहित थी और सोनू अपने दाग को लेकर चिंतित.. सोनू के मन में मिलन का उत्साह न था यह बात लाली नोटिस कर रही थी और आखिरकार उसने सुगना से पूछा ..
“सोनुआ काहे उदास उदास लागत बा देह के गर्मी कहां गायब हो गैल बा। आज त हमारा पीछे-पीछे घूमते नईखे। का भइल बा ?”
सुगना क्या कहती …जिसने सुगना को एक हफ्ते तक लगातार भोगा हो उसे सुगना को छोड़कर किसी और के साथ संभोग करने में शायद ही दिलचस्पी हो..
सोनू तृप्त हो चुका था उसके दिलों दिमाग में सिर्फ और सिर्फ सुगना घूम रही थी..
सोनू के मन में लाली से मिलन को लेकर उत्साह की कमी को सुगना ने भी बखूबी नोटिस किया …जहां एक और लाली चहक रही थी वहीं सोनू बेहद शांत और खोया खोया था।
मौका पाकर सुगना ने सोनू से कहा..
“लाली कितना दिन से तोर इंतजार करत बाड़ी ओकर सब साध बुता दीहे..”
“ आज ना …दीदी आज हमार मन मन नईखे “
“लाली के शक हो जाई ..अपना दीदी खातिर लाली के मन रख ले… मन ना होखे तब भी… एक बार कल रात के खेला याद कर लीहे मन करे लागी..”
सुगना हाजिर जवाब भी थी और शरारती भी. कल रात की बात सोनू को याद दिला कर उसने सोनू का मूड बना दिया.. सोनू के दिलों दिमाग में बीती रात के कामुक दृश्य घूमने लगे.. सोनू का युवराज भी आलस छोड़ उठ खड़ा हुआ।
रात गहराने लगी और सब अपनी अपनी जगह पर चले सोने चले गए। सोनू को लाली धीरे-धीरे अपने कमरे की तरफ ले गई।
घर में सभी सदस्यों के सोने के पश्चात लाली.. सोनू के करीब आती गई और सोनू …बीती रात सुगना के साथ बिताए गए पलों को याद करता रहा और उसका लन्ड एक बार फिर अपनी पुरानी पिच पर धमाल मचाने पर आमादा था..।
लाली ने जी भर कर सोनू पर अपना प्यार लुटाया और सोनू ने भी सुगना को याद करते हुए लाली को तृप्त कर दिया..
वासना का तूफान शांत होते ही लाली ने सोनू से फिर उस दाग को देख रही थी।
लाली कभी दाग को सरयू सिंह के माथे के दाग से तुलना करती कभी उसे सुगना के उत्तर से..
यह दाग अनोखा था और कीड़े काटने के दाग से बिल्कुल अलग था…
सुबह की सुनहरी धूप खिड़कियों की दरारों से रास्ता तलाशती सुगना के कमरे में प्रवेश कर चुकी थी। सूरज की चंचल किरणें सुगना के गालों को चूमने का प्रयास कर रहीं थी.. और इस कहानी की नायिका बिंदास सो रही थी पिछले हफ्ते उसने सोनू की मर्दानगी को जीवंत रखने के लिए लिए जो किया था उसमें वह स्वयं भी तन मन से शामिल हो गई थी।
सुगना के लिए पिछला सप्ताह एक हनीमून की तरह था सोनू और सुगना ने जी भरकर इस सप्ताह का सदुपयोग किया था…
सूरज की किरणों को अपनी पलकों पर महसूस कर सुगना की नींद खुल गई। वह अलसाते हुए बिस्तर से उठी और कुछ ही देर बाद सुगना का घर एक बार फिर जीवंत हो गया..
बच्चों का कोलाहल और सुबह तैयार होने की भाग दौड़ …सोनी भी कॉलेज जाने के लिए तैयार हो रही थी उसे आज तक सोनू और लाली के संबंधों के बारे में भनक न थी।
स्नान करने के पश्चात सुगना की खूबसूरती दोगुनी हो जाती थी । उसका तन-बदन खिले हुए फूलों की तरह दमक उठता था। सुगना के चेहरे पर तृप्ति का भाव था जैसा संभोग सुख प्राप्त कर रही नव सुहागिनों के चेहरे पर होता है।
लाली ने सुगना को इतना खुश और तृप्त कई दिनों बाद देखा था…वह खुद को नहीं रोक पाई और सुगना से बोली..
“लगता सोनूवा तोर खूब सेवा कइले बा देह और चेहरा चमक गईल बा..”
हाजिर जवाब सुगना बोली..
“अरे हमर भाई ह हमार सेवा ना करी त केकर करी?
सुगना ने उत्तर देकर लाली कोनिरुत्तर कर दिया.. सुगना भलीभांति समझ चुकी थी की लाली उससे कामुक मजाक करना चाह रही है पर उसने उसकी चलने ना दी.
“दीदी हम कालेज जा तानी” सोनी चहकते हुए कॉलेज के लिए निकलने लगी। जींस में अपने गदराए हुए कूल्हों को समेटे सोनी पीछे से बेहद मादक लग रही थी। सुगना और सोनी दोनों की निगाहें उसके मटकते हुए कूल्हों पर थीं।
लाली से रहा नहीं गया वह सुगना की तरफ देखते हुए बोली
“सोनी पूरा गदरा गईल बिया …पहले सब केहू आपन सामान छुपावत रहे ई त मटका मटका के चलत बीया”
सुगना भी सोनी में आए शारीरिक परिवर्तन को महसूस कर रही थी पिछले कुछ महीनो में उसकी चुचियों का उभार और कूल्हों का आकार जिस प्रकार बड़ा था उसने सुगना को सोचने पर विवश कर दिया था …कहीं ना कहीं उसे विकास और सोनी के संबंधों पर शक होने लगा था. यह तो शुक्र है कि विकास के परिवार वालों ने स्वयं आगे बढ़कर सोनी का हाथ मांग लिया था और दोनों का इंगेजमेंट पिछले दिनों हो गया था।
लाली की बात सुनकर सुगना मुस्कुराने लगी और लाली से मजाक करते हुए बोली..
“विकास जी सोनिया के संभाल लीहे नू जईसन एकर जवानी छलकता बुझाता सोनी ही भारी पड़ी”
सुगना का मूड देखकर लाली भी जोश में आ गई और सुगना से मजाक करते हुए बोली..
“बुझाता विदेश जाए से पहले विकास जी सोनी के खेत जोत देले बाड़े.. तबे देहिया फूल गइल बा…”
सुगना को शायद यह कॉमेंट उतना पसंद नहीं आया…सोनी आधुनिक विचारों की लड़की थी हो सकता है लाली की बात सच भी हो परंतु सुगना शायद इस बात से इत्तेफाक नहीं रखती थी।
“चल सोनी के छोड़ , कॉल रात अपन साध बुता ले ले नू” सुगना ने लाली का ध्यान भटकाया और अपने अंगूठे और तर्जनी से उसके दोनों निकालो को ब्लाउज के ऊपर से पकड़ना चाहा..
सुगना की पकड़ और निशाना सटीक था लाली चिहुंक उठी…”अरे छोड़ …..दुखाता” शायद सुगना ने उसके निप्पल को थोड़ा जोर से दबा दिया था।
सोनू के आने की आहट से दोनों सहेलियां सतर्क हो गई।
सोनू करीब आ चुका था और अपनी दोनों आंखों से अपनी दोनों अप्सराओं को देख रहा था । सुगना और लाली दोनों एक से बढ़कर एक थीं ।
यद्यपि सुगना लाली पर भारी थी परंतु वह धतूरे का फूल थी जो प्रतिबंधित था, जिसमें नशा तो था परंतु कांटे भी थे और लाली वह तो खूबसूरत गुलाब की भांति थी जिसमें सोनू के प्रति अगाध प्रेम था । वह सोनी ही थी जिसने सोनू में कामवासना जगाई थी, उसे पाला पोसा था और उसे किशोरावस्था में वह सारे सुख दिए थे जो सुगना ने न तो उसके लिए सोचे थे और न हीं सुगना के लिए वह देना संभव था।
सुगना का ध्यान एक बार फिर सोनू के दाग पर गया दाग कल की तुलना में कुछ कम था…
सुगना ने इसका जिक्र ना किया और सोनू से पूछा..
“जौनपुर कब जाए के बा?”
“दोपहर के बाद जाएब” सोनू ने उत्तर दिया। कुछ ही देर में स्कूल के लिए तैयार हो चुके सुगना और लाली के बच्चे सोनू को घेर कर बातें करने लगे और अपने-अपने ऑटो रिक्शा का इंतजार करने लगे।
जिसके पास इतना बड़ा परिवार हो उससे किसी और की क्या जरूरत होगी सोनू ने अपनी नसबंदी करा कर कोई गलत निर्णय नहीं लिया था शायद यही निर्णय उसे सुगना के और करीब ले आया था और वह अपनी कल्पना को हकीकत बना पाया था
वरना सुगना उसके लिए आकाश के इंद्रधनुष की भांति थी जिसे वह देख सकता था महसूस कर सकता था परंतु उसे छु पाना कतई संभव न था।
बच्चों के जाने के पश्चात सोनू ने एक बार इस दाग को लेकर डॉक्टर से सलाह लेने की सोची। सुगना द्वारा बताया गया दाग का रहस्य उसके समझ से परे था। सुगना एक स्त्री थी और सोनू पुरुष । स्त्री पुरुष का संभोग विधि का विधान है इसमें इस दाग का क्या स्थान?
यद्यपि सुगना और सोनू ने एक ही गर्भ से जन्म लिया था फिर भी यह दाग क्यों?
कुछ ही देर बात सोनू अपने ओहदे और गरिमा के साथ डॉक्टर के समक्ष उपस्थित था।
डॉक्टर ने उसके दाग का मुआयना किया.. उसे छूकर देखा, और कई तरीके से उसे पहचानने की कोशिश की परंतु किसी निष्कर्ष तक न पहुंच सका। वह बार-बार यही प्रश्न पूछता रहा कि यह दाग कब से है और सोनू बार-बार उसे यही बता रहा था कि पिछले एक हफ्ते से यह दाग धीरे-धीरे कर बढ़ रहा है।
डॉक्टर के माथे की शिकन देखकर सोनू समझ गया कि यह दाग अनोखा है और शायद डॉक्टर ने भी इस प्रकार के दाग को अपने जीवन में पहली बार देखा है।
सोनू को सुगना की बात पर यकीन होने लगा…
डॉक्टर ने आखिरकार सोनू से कहा
“यह दाग अनूठा है मैंने पहले कभी ऐसा दाग नहीं देखा है मैं इसके लिए कोई विशेष दवा तो नहीं बता सकता पर यह क्रीम लगाते रहिएगा हो सकता है यह काम कर जाए…”
मरता क्या ना करता सोनू ने वह क्रीम ले ली और अनमने मन से बाहर आ गया..
वह दाग के कारण को समझना चाहता था यदि सच में यह सुगना के साथ संभोग के कारण जन्मा था तो यह चिंतनीय था। क्या वह सुगना के साथ आगे अपनी कामेच्छा पूरी नहीं कर पाएगा…
क्या उसके सपने बिखर जाएंगे?
सुगना के साथ बिताए गए कामुक पल उसके जेहन में चलचित्र की भांति घूमने लगे…
ऐसा लग रहा था जैसे उसकी खुशियों पर यह दाग ग्रहण की भांति छा गया था…
अचानक सोनू को लाली की बात याद आई जिसने उसके दाग की तुलना सरयू सिंह के माथे के दाग से की थी।
सोनू अपनी गाड़ी में बैठा वापस घर की तरफ जा रहा था सुगना उसके दिमाग में अब भी घूम रही थी इस दाग का सुगना से संबंध सोनू को स्वीकार्य न था।
सोनू का तेजस्वी चेहरा निस्तेज हो रहा था।
सोनू घर पहुंच चुका था..अंदर आते ही सोनू के चेहरे की उदासी सुगना ने पढ़ ली।
“काहे परेशान बाड़े कोई दिक्कत बा का?”
सुगना सोनू की नस-नस पहचानती थी वह कब दुखी होता और कब खुश होता सुगना उसके चेहरे के भाव पढ़ कर समझ जाती दोनों के बीच यह बंधन अनूठा था।
सोनू ने डॉक्टर के साथ हुई अपनी मुलाकात का जिक्र सुगना से किया और इसी बीच लाली भी पीछे खड़ी सोनू की बातें सुन रही थी। उसने बिना मांगे अपनी राय चिपका दी
“अरे सोनू सरयू चाचा से एक बार मिल के पूछीहे उनकर दाग भी ठीक अईसन ही रहे। अब त उनकर दाग बिल्कुल ठीक बा.. उ जरूर बता दीहें”
डूबते को तिनके का सहारा …सोनू को उम्मीद की एक किरण दिखाई पड़ी। परंतु सुगना की रूह कांप उठी।
सरयू सिंह और सोनू को दाग के बारे में बात करते सोच कर ही उसे लगा वह गश खाकर गिर पड़ेगी..
सोनू ने सुगना को सहारा दिया और उसे अपने पास बैठा लिया..
दीदी का भइल….?
यह प्रश्न जितना सरल था उसका उत्तर उतना ही दुरूह…
नियति सुगना की तरह ही निरुत्तर थी ..
आशंकित थी…
कुछ अनिष्ट होने की आशंका प्रबल हो रही थी…सुगना का दिल धक-धक कर रहा था…
शेष अगले भाग में
आपके आपके कमेंट की प्रतीक्षा में