• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

WhatsApp Banner

whether this story to be continued?

  • yes

    Votes: 52 98.1%
  • no

    Votes: 1 1.9%

  • Total voters
    53
  • Poll closed .

Lovely Anand

Love is life
1,387
6,613
159
आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
भाग 126 (मध्यांतर)
भाग 127 भाग 128 भाग 129 भाग 130 भाग 131
 
Last edited:

Lovely Anand

Love is life
1,387
6,613
159
Personally updates de rhe ho kya sbko?? Mujhe bhi dena asa h toh
Welcome dear...
Update sent
 
Last edited:
  • Like
Reactions: Ajju Landwalia

vedinician

New Member
24
54
13
Lovely ji kahani ko waapas se start karne ke liye dhanyawaad . Sabhi new updates ko aaj padhne ke baad ek hi baat bolna hai ki aapki lekhni lajawab hai . Aise hi aage is kahani ko likhte rahiye...And please send update no.132 to me also.
 

Leomani

New Member
12
16
18
भाग 131

लाली…सोनू का बेसब्री से इंतजार करने लगी…पर सुगना सतर्क थी..उसे सोनू का इंतजार भी था पर एक डर भी था कही सोनू ने फिर…नहीं..नहीं अब बस.. जो हुआ सो हुआ। वह मन ही मन निर्णय लेने की कोशिश कर रही थी पर जांघों के बीच छुपी प्रतीक्षारत बुर सुगना के निर्णय को कमजोर करने की कोशिश कर रही थी।

नियति मुस्कुरा रही थी और विधाता द्वारा लिखी गई आगे की पटकथा को पढ़ने का प्रयास कर रही थी…


अब आगे..

सुबह-सुबह अपनी पारिवारिक जिम्मेदारीयो को निभाने के पश्चात सुगना अपने भगवान के समक्ष अपने परिवार के कुशल क्षेम की प्रार्थना कर रही थी। सोनू के नसबंदी कर लेने के पश्चात यह सुनिश्चित हो चुका था कि सोनू अब विवाह नहीं कर सकता । पूरे परिवार में यह बात सिर्फ सुगना को पता थी और उसने इसीलिए सोनू और लाली के विवाह का निर्णय ले लिया था।

सुगाना यह चाहती थी की लाली और सोनू पति-पत्नी के रूप में साथ में रहने लगे जिससे सोनू की वासना तृप्ति होती रहे और सोनू जिसका ध्यान भटकते भटकते स्वयं उसकी तरफ आ चुका था वह उससे दूर ही रहे। परंतु सुगना को शायद यह अंदाजा न था कि सोनू और सुगना एक दूसरे के लिए ही बने थे उन्हें अलग कर पाना इतना आसान न था।

दोपहर में सुगना और लाली भोजन के पश्चात एक ही बिस्तर पर लेटे हुए थे । सुगना ने लाली की ओर करवट ली और बोली..

“सोनूआ शनिचर के आवता…सोचा तनी सोनी के सीतापुर भेज दी… सोमवार के भी छुट्टी बा 2 दिन मां के साथ रहली अच्छा लागी।

लाली मंद मंद मुस्कुराने लगी। वह जानती थी कि सोनी की उपस्थिति में सोनू से संभोग करना एक आसान कार्य न था। पिछली बार बड़े दिनों बाद जब सोनू और लाली का मिलन हुआ था तब सोनी घर में थी और लाली और सोनू दोनों के बीच कामुक गतिविधियों के दौरान दोनों अहसज महसूस कर रहे थे।

एक तरफ जहां सुगना की उपस्थिति लाली और सोनू दोनों में जोश भर देती थी। वहीं दूसरी तरफ सोनी से लाली और सोनू दोनों अपने अनूठे रिश्ता का पर्दा रखते थे।


सोनी को यह इल्म भी ना था की उसके सोनू भैया जो उसके लिए एक आदर्श थे अपनी मुंह बोली बहन लाली के साथ बिस्तर पर धमा चौकड़ी करते थे।

लाली ने मुस्कुराते हुए कहा..

“ठीक कहा त बाड़े , दो-चार दिन घुम आईबे तो ओकरो अच्छा लागी”

सुगना में उसे चिकौटी काटते हुए कहा

“और ताहरा?”

लाली सुगना से सटकर गले लग गई।

सोनी के अनुपस्थित होने पर जब भी सोनू घर में होता, सुगना घर के सभी बच्चों को संभाल लेती । वह उनके साथ खेलती उन्हें कहानियां सुनाती बातें करती इसी दौरान लाली और सोनू अपनी कामवासना को शांत कर लेते। दिन हो या रात सुगना के रहने से लाली और सोनू को पूरा एकांत मिलता दोनों इसके लिए सुगना के शुक्रगुजार भी थे और कृतज्ञ भी।

सुगना ने हिम्मत जुटा कर लाली से सोनू और उसके विवाह के बारे में बात करने की सोची और उसकी बाहों पर अपनी हथेली रखते हुए बोली

“ए लाली जौनपुर अबकी ते सोनू के साथ जौनपुर चल जो सोनू तोर पसंद के पलंग सजाबले बा. मन भर सुख लीहे.. ओकर घर बहुत सुंदर बा”

“जाए के तो हमरो मन करता पर बच्चन के के स्कूल चलता।

“ते जो हम संभाल लेब” सुगना ने रास्ता सुझाया।

“पगला गई बाड़े का । सोनू के साथ अकेले जाएब तो लोग का सोची ? हम ओकर बहिन हई बीबी ना..” लाली मुस्कुराने लगी।

समझदार सुगना ने न जाने ऐसी बात कैसे बोल दी थी। लाली का प्रश्न उचित था सोनू के साथ बिना बच्चों के जाना मुमकिन ना था।

पर अब जब सुगना के मुख से बात निकल ही गई थी उसने इसे अवसर में तब्दील कर दिया और बेहद संजीदगी से बोली..

“अच्छा ई बताओ लाली तोरा सोनूवा के साथ हमेशा रहे के मन करेला की ना?”

“काहे पूछत बाडू तू ना जाने लू का? अगला जन्म में भगवान हमारा हिस्सा में सोनुआ के देते त हमार भाग जाग जाएत..”

“और भगवान एही जन्म में दे देस तब?”

सुगना ने पूरी संजीदगी से उसकी आंखों में आंखें डालते हुए कहा।

सुगना ने लाली की दुखती रंग छेड़ दी थी जो लाली कभी अपनी कल्पनाओं में इस बात को सोचती थी आज सुगना ने अपने मुंह से वह बात कह कर अकस्मात लाली को उसकी संभावनाओं पर सोचने के लिए विवश कर दिया था। फिर भी वह सतर्क थी उसने मुंह बिचकाते हुए कहा

“ काहे ए अभागन से मजाक करत बाड़े। जतना प्यार हमरा सोनू से मिलेला हम ओतना से खुश बानी हमरा के ढेर लालची मत बनाव “

सुगना भली-भांति समझती थी की लाली सोनू को अपने पति रूप में स्वीकार करना चाहती तो अवश्य होगी पर सांसारिक और वैचारिक बंधनों से यह एक बेहद कठिन कार्य था।

आखिरकार सुगना ने अपने चिर परिचित दृढ़ अंदाज में लाली से कहा..

“लाली यदि सोनू तोहरा से खुद विवाह करें के इच्छा व्यक्त करी तो मना मत करिह बाकी सब हम देख लेब” लाली सुगना की बात सुनकर आश्चर्यचकित थी.

“ए सुगना अइसन मजाक मत कर”

“हम सच कहत बानी बस तू ओकर प्रस्ताव स्वीकार कर लीह “

“और घर परिवार के लोग “

“उ सब हमारा पर छोड़ दा?

“लाली पर सोनू हमरा से छोट ह और ईद दु दु गो बच्चा लोग ?” इ शादी बेमेल लागी।

लाली का प्रश्न सही था। निश्चित ही यह शादी बच्चों की वजह से कुछ अटपटी और बेमेल लग रही थी। परंतु लाली और सोनू जब अगल-बगल खड़े होते तो उम्र का अंतर बहुत ज्यादा नहीं प्रतीत होता था। सोनू अपनी उम्र से ज्यादा मेहनत कर अपना शरीर एक मर्द की तरह बना चुका था और इसके इतर लाली अब भी अपनी कमानीयता बरकरार रखने में कायम रही थी। उम्र में कुछ वर्ष बड़े होने के बावजूद उसने अपने शरीर को मेंटेन करते हुए इस उम्र के पहले को यथासंभव कम कर दिया था।

इसके बावजूद लाली को सुगना की बातें एक दिवास्वप्न की तरह लग रही थी। पर जिस संगीदगी से सुगना ने यह बात कही थी उसे सिरे से नकार देना संभव न था।

लाली के तो मन में अब लड्डू फूटने लगे थे। परंतु क्या यह इतना आसान होगा? क्या उसके और उसके परिवार के लोग इस बात को स्वीकार करेंगे ? क्या वह सचमुच सोनू से विवाह करेंगी? हे भगवान क्या उसकी कल्पना एक मूर्त रूप लेने जा रही थी? वह सुगना के प्रति कृतज्ञता और आभार प्रकट करते हुए उसकी दोनों हथेलियां को अपने हाथों में ले ली और बेहद प्यार से सहलाते हुए बोली

“सुगना हमरा के माफ कर दीहे हम तोहरा साथ बहुत नाइंसाफी कइले बानी”

सुगना ने प्रश्नवाचक निगाहों से लाली की तरफ देखा जैसे उसके इस वाक्य का मतलब समझाना चाह रही हो लाली की आंखों में आंसू थे उसने अपनी पलके झुकाए हुएकहा..


“सुगना ऊ दिवाली के रात सोनुआ तोहरा साथ जवन काईले रहे ओ में हमारे गलती रहे। हम ही ओकरा के उकसावले रहनी की की तु ओकरा से मिलन खाती तैयार बाडू।”

सुगना आश्चर्यचकित होकर लाली को देख रही थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था की लाली के इस कन्फेशन से वह खुश हो या दुखी । एक तरफ उसके कन्फेशन सोनू को कुछ हद तक दोष मुक्त कर रहे थे और दूसरी तरफ उसका अंतरमन लाली का धन्यवाद दे रहा था जो उसने सोनू से उसका मिलन जाने अनजाने आसान कर दिया था। और उसके जीवन में एक बार फिर प्रेम और वासना की तरंगे छोड़ दी थी

सुगना ने खुद को संयमित किया वह उस बारे में और बात करना नहीं चाह रही थी उसने लाली की बात को ज्यादा तवज्जो न देते हुए कहा…

“तोरा कारण का का परेशानी भइल जानते बाड़े ..पर शायद कौनों पाप रहे कट गईल अब भूल जो ऊ सब”

बच्चों के ऑटो की आवाज सुनकर दोनों सहेलियों का वार्तालाप बंद हुआ लाली खुशी बच्चों को लेने बाहर गई और सुगना एक लंबी आह भरते हुए आगे की रणनीति बनाने लगी।

सुगना ने मन ही मन अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी उसे भी पता था यह कार्य बेहद कठिन था सोनू जैसे सजीले मर्द जो एक अच्छे प्रशासनिक पद पर भी था और तो और इसके लिए कई नामी गिरामी लोगों की लड़कियों के रिश्ते आ रहे थे ऐसे में सोनू लाली जैसी दो बच्चों वाली विधवा से विवाह के लिए सभी परिवार वालों को राजी करना बेहद कठिन था।

परंतु सुगना यह बात भली भांति जानती थी कि जब से सोनू ने अपनी नसबंदी करा ली थी उसका विवाह किसी सामान्य लड़की से करना उचित न था। यह उस लड़की के साथ भी अन्याय होता और उसके परिवार के साथ भी। यह धोखा था जिसे सुगना कतई नहीं चाहती थी।

सुगना की विडंबना यह थी कि वह सोनू की नसबंदी की बात किसी से साझा नहीं कर सकती थी यह राज सिर्फ उन दोनों के बीच था।

आखिरकार सोनू शनिवार को बनारस आने वाला था लाली और सुगना दोनों तैयार हो रहीं थी। एक सोनू के स्वागत के लिए और दूसरी सोनू के आने वाले जीवन में खुशियां बिखरने के लिए।

कुछ ही देर बाद सोनी और सुगना अपने दोनों बच्चों के साथ सीतापुर के लिए निकल पड़े। लाली को यह कुछ अजीब सा लगा

“अरे काल चल जईहे आज सोनू से मुलाकात कर ले..”

“ना ओकरा आवे में देर होई…अगला सप्ताह भेंट होखी” ऑटो में बैठ चुके बच्चे उछल कूद मचा रहे थे। सोनी और सुगना सीतापुर के लिए निकल चुके थे। वैसे भी सोनू का आना जाना एक सामान्य बात थी।

सुगना को पता था की सोनू निश्चित ही किसी न किसी बहाने उसे अपने मोहपाश में बांधेगा और उसकी निगोडी बुर में कामेच्छा जागृत करेगा और मौका देखकर संसर्ग के लिए किसी न किसी प्रकार उसे मना लेगा। ठीक वैसे ही जैसे वह बचपन में सुगना का उसका मन ना होते हुए भी अपने खेल में घसीट लेता था।

वैसे भी अभी सुगना की प्राथमिकताएं दूसरी थी अपने और लाली के घर वालों को मनाना उसके लिए एक कठिन कार्य था।

सोनू बनारस आया पर सुगना को घर में ना देखकर उसका उत्साह ठंडा पड़ गया। परंतु लाली खुश थी। आज उसके मिलन में कोई भी व्यवधान न था। सुगना से तो उसे वैसे भी कोई दिक्कत न थी परंतु सोनी……से पार पाना कठिन था। उसकी उपस्थिति में फूक फूक कर कदम रखना पड़ता था।

लाली का ध्यान सोनू की गर्दन की तरफ गया। गर्दन का दाग पूरी तरह गायब था। लाली खुश हो गई। पर सोनू की आंखों से चमक गायब थी। जिससे मिलने के लिए वह दिल में तड़प लिए बनारस आया था वह न जाने क्यों उसे छोड़कर चली गई थी।

शाम होते होते वस्तु स्थिति को स्वीकार करने के अलावा सोनू के पास और कोई चारा नहीं था। लाली जी जान से रात की तैयारी कर रही थी सोनू अब अपनी खुशी लाली में ही तलाश रहा था। लाली ने जिस तरीके से सुगना के समक्ष अपनी गलती मानी थी तब से उसकी मन हल्का हो गया था और वह अपनी सहेली सुगना के प्रति दिल से कृतज्ञ थी जिसने उसके वीरान जिंदगी में सोनू जैसा हीरा डालने का वचन दिया था।

लाली ने मन ही मन सोच लिया कि वह सोनू को संभोग के समय सुगना का नाम लेकर और नहीं उकसाएगी…

परंतु रात में जब सोनू और लाली एक दूसरे की प्रेम अग्न बुझा रहे थे बरबस ही सुगना का ध्यान उन दोनों के मनो मस्तिष्क में घूम रहा था। लाली द्वारा सुगना का जिक्र न किए जाने के बावजूद सोनू तो सुगना में ही खोया हुआ था। सोनू के आवेग और वेग में कमी नहीं थी। अपनी सुगना के लिए जितनी वासना सोनू ने अपने तन बदन में समेट रखी थी वह सारी लाली पर उड़ेल कर वह निढाल हो गया।

उधर सुगना अपने परिवार के बीच पहुंच चुकी थी..

सुगना जिस मिशन पर गई थी वह एक दो मुलाकातों में पूरा नहीं होने वाला था परंतु जब सुगना मन बना चुकी थी.. तो उसके लिए कोई भी कार्य दुष्कर न था।

अगले दो तीन महीने यूं ही बीत गए। हर शनिवार सोनू सुगना से मिलने बनारस आता पर कभी सुगना अपने गांव चली जाती कभी अपनी मां या कजरी और सरयू सिंह को बनारस बुला लेती इन दोनों ही परिस्थितियों में सोनू और सुगना का मिलन असंभव था । और सपना के प्यार में कोई कमी न थी। वह सब की उपस्थिति में सोनू से पूर्व की भांति प्यार करती उससे सटती कभी उसके गोद में सर रख देती पर उसे कामुक होने का कोई मौका नहीं देती। कभी-कभी सोनू एकांत में सुगना को बाहर घूमाने की जिद करता परंतु सुगना सोनू को उसे घुमाने का मूल उद्देश्य जानती थी और बड़ी सफाई से बिना उसे आहत किए बच निकलती..

जिस तरह मछली को पानी में पकड़ना मुश्किल होता है वह हांथ तो आती है पर पकड़ में नहीं आती सुगना भी अपने परिवार के बीच सुनहरी मछली जैसी ही थी..

सोनू उसका स्पर्श सुख तो बीच बीच में ले पा रहा था पर उछलती मचलती सुगना उसकी पकड़ से दूर थी..

ऐसा नहीं था कि सुगना ने इस दौरान सोनू को नजरअंदाज कर दिया था बस दूरी बना ली थी यद्यपि बीच-बीच में वह उसमें वासना की तरंगे भरने का काम जरुर कर देती थी।

आखिरकार सुगना अपने घर वालों और लाली के घर वालों को इस अनोखे विवाह के लिए राजी करने में कामयाब हो गई। सर्वसम्मति से यह विवाह आर्य समाज विधि से साधारण रूप से किसी पवित्र मंदिर में किया जाना निश्चित हुआ।

पूरे घर में खुशियों का माहौल था। इस अनूठे रिश्ते से सोनी सबसे ज्यादा आश्चर्यचकित थी। सोनू और लाली कब मुंह बोले भाई बहन से एक दूसरे के प्रेमी बन गए थे सोनी ने शायद इसकी कल्पना भी ना की थी। परंतु सोनू के निर्णय पर प्रश्न चिन्ह करने का ना तो सोनी के पास कोई अधिकार था और नहीं कोई जरूरत जब मियां बीबी राजी तो वह बीच में कई काजी की भूमिका अदा नहीं करना चाहती थी।

शुरुवात में सोनू की मां पद्मा का मन थोड़ा दुखी जरूर था परंतु लाली ने पदमा की सेवा कर उसका भी मन जीत लिया था। पूरे परिवार ने आखिरकार मिलकर यह हत्या किया कि यह विवाह सोनी के विवाह के बात करना उचित होगा अन्यथा सोनी के ससुराल वाले इस विवाह पर प्रश्न चिन्ह लगा सकते थे।

सुगना के लिए सोनू की तड़प बढ़ती जा रही थी और अब कमोबेश यही हाल सुगना का भी था इन दो-तीन महीनो में सुगना ने लाली और सोनू को हमेशा के लिए एक करने के लिए भरपूर प्रयास किया था और सफल भी रही थी। उसका कोमल तन बदन सोनू के मजबूत आलिंगन में आने को तड़प रहा था। पर अपने मन पर मजबूत नियंत्रण रखने वाली सुगना अपनी भावनाओं को काबू में किए हुए थी।

आज शुक्रवार का दिन था। लाली अपने बच्चों के साथ अपने माता-पिता से मिलने सलेमपुर गई हुई थी। शायद उसके माता-पिता ने उसके लिए घर पर कोई छोटी पूजा रखी थी जिसमें उसका उपस्थित रहना जरूरी था। सुगना ने लाली को हिदायत दी थी की कैसे भी करके कल शाम तक बनारस आ जाना। पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार कल सोनू को बनारस आना था और सुगना कतई नहीं चाहती थी कि सोनू बिना लाली की उपस्थिति के बनारस में उसके साथ एक ही छत के नीचे रहे। सुगना अब तक अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखने में कामयाब रही थी और सोनू अपनी भावनाओं को काबू में रखने को मजबूर था।

सुगना अपने दोनों बच्चों को स्कूल भेजने के बाद पूरी तरह खाली थी। आज उसने पूरी तन्मयता से स्नान किया स्नान करते वक्त अपनी छोटी सी बुर के चारों तरफ उग आए काले बालों की झुरमुट को सोनू के पुराने रेजर से साफ किया। इस दौरान न जाने क्यों वह सोनू को याद करती रही ।


सुगना महसूस कर रही थी कि पिछले कुछ महीनो में उसने सोनू को हद से ज्यादा बेचैन कर दिया था पर उसकी नजरों में शायद यही उचित था। बिस्तर पर जब जब सुगना स्वयं उत्तेजना का शिकार होती अपनी जांघों के बीच तकिया फसाकर जौनपुर में सोनू के साथ बिताए पल को याद करती सोनू को याद करते-करते उसकी उंगलियां उसकी बुर को थपकियां देकर सुलाने की कोशिश करती।

कभी वह रहीम और फातिमा की किताब निकाल कर पढ़ती और इसी दौरान न जाने कब सुगना की बुर उसकी जांघों को ऐंठने पर मजबूर कर देती और सुगना तृप्ति का सुखद एहसास लिए नींद में खो जाती। रहीम एवं फातिमा की किताब अब उसके लिए एक अनमोल धरोहर हो चुकी थी जो उसके एकांत और सुख की साथी थी..

सुगना ने तसल्ली से स्नान किया खूबसूरत मैरून कलर की साटिन की नाईटी पहनी …. बालों की सफाई होने के पश्चात उसकी बुर संवेदनशील हो चुकी थी अतः उसने अंतर्वस्त्र पहनने को आवश्यकता नहीं समझी पर एहतियातन अपनी चूचियों को ब्रा सहारा दे दिया। वैसे भी आज कई दिनों वह घर में नितांत अकेली थी और आज दोपहर रहीम और फातिमा की किताब पढ़ते हुए अपने कामोत्तेजना शांत करने वाली थी।

स्नान के बाद ध्यान की बारी थी। अपने इष्ट देव को याद करते हुए सुगना पूजा पाठ में संलग्न हो गई। सुगना ने आरती दिखाई और अपने परिवार की खुशियों को कामना की..इसी बीच उसने लाली और सोनू का भी ध्यान किया और उनके विवाह के लिए मंगल कामना की। इधर सुगना ने अंतरमन ने सोनू को याद कर लिया…उधर

दरवाजे पर ठक ठक की आवाज हुई.. हाथ में आरती की थाल लिए अपने घर और बरामदे में आरती दिखाते हुए सुगना दरवाजे तक गई और दरवाजा खोल दिया..

सामने सोनू खड़ा था.. सुगना सुगना आश्चर्यचकित थी..पर बेहद खुश थी

“अरे सोनू बाबू आज कैसे? छुट्टी बा का?”

“ना दीदी बनारस में काम रहे…” सुंदर नाइटी में फूल सी खिली सुगना की मादक सुगंध में खोए हुए सोनू ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया..

उसने झुक कर सुगना के चरण छुए… उठते वक्त उसने सुगना के हाथ में पकड़ी आरती की थाल को पूरे आदर और सम्मान से अपनी दोनों हथेलियों से स्वीकार किया और उसे अपने माथे पर लगा लिया।


सुगना खुश भी थी और आश्चर्यचकित भी उसने सोनू के माथे पर तिलक लगाया और सर पर रखकर उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होने का आशीर्वाद दिया..नियति मुस्कुरा रही थी सुगना ने अनजाने में उसे स्वयं को समर्पित कर दिया था आखिर इस वक्त सोनू की एकमात्र मनोकामना सुगना स्वयं थी। सुगना वापस पूजा का थाल रखना अपने छोटे से मंदिर में चली गई..

इधर सोनू अपना सामान लाली के कमरे में रख चुका था कमरे की स्थिति यह बता रही थी की लाली अपने पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार सलेमपुर जा चुकी थी..

अब तक सोनू को पिछले कुछ महीने से खुद से दूर रख पाने में सफल सुगना आज अचानक ही नियत के खेल में फंस चुकी थी। सोनू की खुशी सातवें आसमान पर थी और अपने इष्ट देव के समक्ष सर झुकाए सुगना का दिल धड़क रहा था…सुगना को स्वयं यह समझ नहीं आ रहा था कि वह ईश्वर से मांगे तो क्या मांगे जो जीवन में उसे सबसे प्यारा था वह उसके समक्ष था.

सोनू मंदिर के दरवाजे पर खड़ा सुगना के बाहर आने का इंतजार कर रहा था..

जैसे ही सुगना अपने पूजा कक्ष से बाहर आई सोनू ने उसे सोनू ने उसे एक झटके में ही अपनी गोद में उठा लिया..सुगना ने अपनी खुशी को नियंत्रित करते हुए पर अपनी मादक मुस्कान बिखरते हुए सोनू से कहा..

“अरे रुक भगवान जी के सामने…”

सोनू ने सुगना को अपनी गोद में लिए हुए अपने घर के मंदिर के सामने लगे परदे को खींचने का अवसर दिया। सुगना ने अपने इष्ट देव को एक बार फिर प्रणाम किया जब तक सुगना अपने ईस्ट से अपने मन की बात कह पाती तब तक सोनू सुगना को अपने गोद में लिए हुए सुगना के कक्ष की तरफ बढ़ चला।

उसकी उंगलियां सुगना के नंगे पेट से सट रही थी वह बीच-बीच में सुगना के पेट को अपनी उंगलियों से गुदगुदा देता। सुगना का अंतर्मन फूल की तरह खिल गया था वह खिलखिला रही थी।

नियति को हंसती खिलखिलाती सुगना एक कामातुर तरुणी की तरह प्रतीत हो रही थी…

नियति सतर्क थी..और सोनू और सुगना के मिलन की प्रत्यक्षदर्शी होने के लिए आतुर थी…

शेष अगले भाग में.



पहले की ही भांति अगला एपिसोड उन्हीं पाठकों को भेजा जाएगा जिन्होंने कहानी से कमेंट के माध्यम से अपना जुड़ाव दिखाया है..
प्रतीक्षारत
Bahut mast update bhai....
 

Leomani

New Member
12
16
18
Anand bhai update dedo
131 bahut zabrdast tha waiting
 

Rekha rani

Well-Known Member
2,535
10,748
159
आज आपके कमेंट में दिए लिंक पर क्लिक किया जो पेज खुला उसमें आपकी कहानी की शुरुवाती लाइंस मेरे छाया वाली स्टोरी से हु बहु मिलते हैं क्या संयोग है...
आप और आपके कमेंट सराहनीय है।
जुड़े रहिए...
धनव्याद, और जब मैने वो कहानी शुरू की थी तब मैसेज में बात की थी उसको लेकर , और उस समय आपकी सहमति हुई थी उस पार्ट को use करने को लेकर , शायद काफी समय गुजर जाने के कारण भूल लग गई
 

Lovely Anand

Love is life
1,387
6,613
159
धनव्याद, और जब मैने वो कहानी शुरू की थी तब मैसेज में बात की थी उसको लेकर , और उस समय आपकी सहमति हुई थी उस पार्ट को use करने को लेकर , शायद काफी समय गुजर जाने के कारण भूल लग गई
आपने सच कहा मुझे याद आ गया..माफ कीजिएगा..
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
3,784
14,693
159
भाग 131

लाली…सोनू का बेसब्री से इंतजार करने लगी…पर सुगना सतर्क थी..उसे सोनू का इंतजार भी था पर एक डर भी था कही सोनू ने फिर…नहीं..नहीं अब बस.. जो हुआ सो हुआ। वह मन ही मन निर्णय लेने की कोशिश कर रही थी पर जांघों के बीच छुपी प्रतीक्षारत बुर सुगना के निर्णय को कमजोर करने की कोशिश कर रही थी।

नियति मुस्कुरा रही थी और विधाता द्वारा लिखी गई आगे की पटकथा को पढ़ने का प्रयास कर रही थी…


अब आगे..

सुबह-सुबह अपनी पारिवारिक जिम्मेदारीयो को निभाने के पश्चात सुगना अपने भगवान के समक्ष अपने परिवार के कुशल क्षेम की प्रार्थना कर रही थी। सोनू के नसबंदी कर लेने के पश्चात यह सुनिश्चित हो चुका था कि सोनू अब विवाह नहीं कर सकता । पूरे परिवार में यह बात सिर्फ सुगना को पता थी और उसने इसीलिए सोनू और लाली के विवाह का निर्णय ले लिया था।

सुगाना यह चाहती थी की लाली और सोनू पति-पत्नी के रूप में साथ में रहने लगे जिससे सोनू की वासना तृप्ति होती रहे और सोनू जिसका ध्यान भटकते भटकते स्वयं उसकी तरफ आ चुका था वह उससे दूर ही रहे। परंतु सुगना को शायद यह अंदाजा न था कि सोनू और सुगना एक दूसरे के लिए ही बने थे उन्हें अलग कर पाना इतना आसान न था।

दोपहर में सुगना और लाली भोजन के पश्चात एक ही बिस्तर पर लेटे हुए थे । सुगना ने लाली की ओर करवट ली और बोली..

“सोनूआ शनिचर के आवता…सोचा तनी सोनी के सीतापुर भेज दी… सोमवार के भी छुट्टी बा 2 दिन मां के साथ रहली अच्छा लागी।

लाली मंद मंद मुस्कुराने लगी। वह जानती थी कि सोनी की उपस्थिति में सोनू से संभोग करना एक आसान कार्य न था। पिछली बार बड़े दिनों बाद जब सोनू और लाली का मिलन हुआ था तब सोनी घर में थी और लाली और सोनू दोनों के बीच कामुक गतिविधियों के दौरान दोनों अहसज महसूस कर रहे थे।

एक तरफ जहां सुगना की उपस्थिति लाली और सोनू दोनों में जोश भर देती थी। वहीं दूसरी तरफ सोनी से लाली और सोनू दोनों अपने अनूठे रिश्ता का पर्दा रखते थे।


सोनी को यह इल्म भी ना था की उसके सोनू भैया जो उसके लिए एक आदर्श थे अपनी मुंह बोली बहन लाली के साथ बिस्तर पर धमा चौकड़ी करते थे।

लाली ने मुस्कुराते हुए कहा..

“ठीक कहा त बाड़े , दो-चार दिन घुम आईबे तो ओकरो अच्छा लागी”

सुगना में उसे चिकौटी काटते हुए कहा

“और ताहरा?”

लाली सुगना से सटकर गले लग गई।

सोनी के अनुपस्थित होने पर जब भी सोनू घर में होता, सुगना घर के सभी बच्चों को संभाल लेती । वह उनके साथ खेलती उन्हें कहानियां सुनाती बातें करती इसी दौरान लाली और सोनू अपनी कामवासना को शांत कर लेते। दिन हो या रात सुगना के रहने से लाली और सोनू को पूरा एकांत मिलता दोनों इसके लिए सुगना के शुक्रगुजार भी थे और कृतज्ञ भी।

सुगना ने हिम्मत जुटा कर लाली से सोनू और उसके विवाह के बारे में बात करने की सोची और उसकी बाहों पर अपनी हथेली रखते हुए बोली

“ए लाली जौनपुर अबकी ते सोनू के साथ जौनपुर चल जो सोनू तोर पसंद के पलंग सजाबले बा. मन भर सुख लीहे.. ओकर घर बहुत सुंदर बा”

“जाए के तो हमरो मन करता पर बच्चन के के स्कूल चलता।

“ते जो हम संभाल लेब” सुगना ने रास्ता सुझाया।

“पगला गई बाड़े का । सोनू के साथ अकेले जाएब तो लोग का सोची ? हम ओकर बहिन हई बीबी ना..” लाली मुस्कुराने लगी।

समझदार सुगना ने न जाने ऐसी बात कैसे बोल दी थी। लाली का प्रश्न उचित था सोनू के साथ बिना बच्चों के जाना मुमकिन ना था।

पर अब जब सुगना के मुख से बात निकल ही गई थी उसने इसे अवसर में तब्दील कर दिया और बेहद संजीदगी से बोली..

“अच्छा ई बताओ लाली तोरा सोनूवा के साथ हमेशा रहे के मन करेला की ना?”

“काहे पूछत बाडू तू ना जाने लू का? अगला जन्म में भगवान हमारा हिस्सा में सोनुआ के देते त हमार भाग जाग जाएत..”

“और भगवान एही जन्म में दे देस तब?”

सुगना ने पूरी संजीदगी से उसकी आंखों में आंखें डालते हुए कहा।

सुगना ने लाली की दुखती रंग छेड़ दी थी जो लाली कभी अपनी कल्पनाओं में इस बात को सोचती थी आज सुगना ने अपने मुंह से वह बात कह कर अकस्मात लाली को उसकी संभावनाओं पर सोचने के लिए विवश कर दिया था। फिर भी वह सतर्क थी उसने मुंह बिचकाते हुए कहा

“ काहे ए अभागन से मजाक करत बाड़े। जतना प्यार हमरा सोनू से मिलेला हम ओतना से खुश बानी हमरा के ढेर लालची मत बनाव “

सुगना भली-भांति समझती थी की लाली सोनू को अपने पति रूप में स्वीकार करना चाहती तो अवश्य होगी पर सांसारिक और वैचारिक बंधनों से यह एक बेहद कठिन कार्य था।

आखिरकार सुगना ने अपने चिर परिचित दृढ़ अंदाज में लाली से कहा..

“लाली यदि सोनू तोहरा से खुद विवाह करें के इच्छा व्यक्त करी तो मना मत करिह बाकी सब हम देख लेब” लाली सुगना की बात सुनकर आश्चर्यचकित थी.

“ए सुगना अइसन मजाक मत कर”

“हम सच कहत बानी बस तू ओकर प्रस्ताव स्वीकार कर लीह “

“और घर परिवार के लोग “

“उ सब हमारा पर छोड़ दा?

“लाली पर सोनू हमरा से छोट ह और ईद दु दु गो बच्चा लोग ?” इ शादी बेमेल लागी।

लाली का प्रश्न सही था। निश्चित ही यह शादी बच्चों की वजह से कुछ अटपटी और बेमेल लग रही थी। परंतु लाली और सोनू जब अगल-बगल खड़े होते तो उम्र का अंतर बहुत ज्यादा नहीं प्रतीत होता था। सोनू अपनी उम्र से ज्यादा मेहनत कर अपना शरीर एक मर्द की तरह बना चुका था और इसके इतर लाली अब भी अपनी कमानीयता बरकरार रखने में कायम रही थी। उम्र में कुछ वर्ष बड़े होने के बावजूद उसने अपने शरीर को मेंटेन करते हुए इस उम्र के पहले को यथासंभव कम कर दिया था।

इसके बावजूद लाली को सुगना की बातें एक दिवास्वप्न की तरह लग रही थी। पर जिस संगीदगी से सुगना ने यह बात कही थी उसे सिरे से नकार देना संभव न था।

लाली के तो मन में अब लड्डू फूटने लगे थे। परंतु क्या यह इतना आसान होगा? क्या उसके और उसके परिवार के लोग इस बात को स्वीकार करेंगे ? क्या वह सचमुच सोनू से विवाह करेंगी? हे भगवान क्या उसकी कल्पना एक मूर्त रूप लेने जा रही थी? वह सुगना के प्रति कृतज्ञता और आभार प्रकट करते हुए उसकी दोनों हथेलियां को अपने हाथों में ले ली और बेहद प्यार से सहलाते हुए बोली

“सुगना हमरा के माफ कर दीहे हम तोहरा साथ बहुत नाइंसाफी कइले बानी”

सुगना ने प्रश्नवाचक निगाहों से लाली की तरफ देखा जैसे उसके इस वाक्य का मतलब समझाना चाह रही हो लाली की आंखों में आंसू थे उसने अपनी पलके झुकाए हुएकहा..


“सुगना ऊ दिवाली के रात सोनुआ तोहरा साथ जवन काईले रहे ओ में हमारे गलती रहे। हम ही ओकरा के उकसावले रहनी की की तु ओकरा से मिलन खाती तैयार बाडू।”

सुगना आश्चर्यचकित होकर लाली को देख रही थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था की लाली के इस कन्फेशन से वह खुश हो या दुखी । एक तरफ उसके कन्फेशन सोनू को कुछ हद तक दोष मुक्त कर रहे थे और दूसरी तरफ उसका अंतरमन लाली का धन्यवाद दे रहा था जो उसने सोनू से उसका मिलन जाने अनजाने आसान कर दिया था। और उसके जीवन में एक बार फिर प्रेम और वासना की तरंगे छोड़ दी थी

सुगना ने खुद को संयमित किया वह उस बारे में और बात करना नहीं चाह रही थी उसने लाली की बात को ज्यादा तवज्जो न देते हुए कहा…

“तोरा कारण का का परेशानी भइल जानते बाड़े ..पर शायद कौनों पाप रहे कट गईल अब भूल जो ऊ सब”

बच्चों के ऑटो की आवाज सुनकर दोनों सहेलियों का वार्तालाप बंद हुआ लाली खुशी बच्चों को लेने बाहर गई और सुगना एक लंबी आह भरते हुए आगे की रणनीति बनाने लगी।

सुगना ने मन ही मन अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी उसे भी पता था यह कार्य बेहद कठिन था सोनू जैसे सजीले मर्द जो एक अच्छे प्रशासनिक पद पर भी था और तो और इसके लिए कई नामी गिरामी लोगों की लड़कियों के रिश्ते आ रहे थे ऐसे में सोनू लाली जैसी दो बच्चों वाली विधवा से विवाह के लिए सभी परिवार वालों को राजी करना बेहद कठिन था।

परंतु सुगना यह बात भली भांति जानती थी कि जब से सोनू ने अपनी नसबंदी करा ली थी उसका विवाह किसी सामान्य लड़की से करना उचित न था। यह उस लड़की के साथ भी अन्याय होता और उसके परिवार के साथ भी। यह धोखा था जिसे सुगना कतई नहीं चाहती थी।

सुगना की विडंबना यह थी कि वह सोनू की नसबंदी की बात किसी से साझा नहीं कर सकती थी यह राज सिर्फ उन दोनों के बीच था।

आखिरकार सोनू शनिवार को बनारस आने वाला था लाली और सुगना दोनों तैयार हो रहीं थी। एक सोनू के स्वागत के लिए और दूसरी सोनू के आने वाले जीवन में खुशियां बिखरने के लिए।

कुछ ही देर बाद सोनी और सुगना अपने दोनों बच्चों के साथ सीतापुर के लिए निकल पड़े। लाली को यह कुछ अजीब सा लगा

“अरे काल चल जईहे आज सोनू से मुलाकात कर ले..”

“ना ओकरा आवे में देर होई…अगला सप्ताह भेंट होखी” ऑटो में बैठ चुके बच्चे उछल कूद मचा रहे थे। सोनी और सुगना सीतापुर के लिए निकल चुके थे। वैसे भी सोनू का आना जाना एक सामान्य बात थी।

सुगना को पता था की सोनू निश्चित ही किसी न किसी बहाने उसे अपने मोहपाश में बांधेगा और उसकी निगोडी बुर में कामेच्छा जागृत करेगा और मौका देखकर संसर्ग के लिए किसी न किसी प्रकार उसे मना लेगा। ठीक वैसे ही जैसे वह बचपन में सुगना का उसका मन ना होते हुए भी अपने खेल में घसीट लेता था।

वैसे भी अभी सुगना की प्राथमिकताएं दूसरी थी अपने और लाली के घर वालों को मनाना उसके लिए एक कठिन कार्य था।

सोनू बनारस आया पर सुगना को घर में ना देखकर उसका उत्साह ठंडा पड़ गया। परंतु लाली खुश थी। आज उसके मिलन में कोई भी व्यवधान न था। सुगना से तो उसे वैसे भी कोई दिक्कत न थी परंतु सोनी……से पार पाना कठिन था। उसकी उपस्थिति में फूक फूक कर कदम रखना पड़ता था।

लाली का ध्यान सोनू की गर्दन की तरफ गया। गर्दन का दाग पूरी तरह गायब था। लाली खुश हो गई। पर सोनू की आंखों से चमक गायब थी। जिससे मिलने के लिए वह दिल में तड़प लिए बनारस आया था वह न जाने क्यों उसे छोड़कर चली गई थी।

शाम होते होते वस्तु स्थिति को स्वीकार करने के अलावा सोनू के पास और कोई चारा नहीं था। लाली जी जान से रात की तैयारी कर रही थी सोनू अब अपनी खुशी लाली में ही तलाश रहा था। लाली ने जिस तरीके से सुगना के समक्ष अपनी गलती मानी थी तब से उसकी मन हल्का हो गया था और वह अपनी सहेली सुगना के प्रति दिल से कृतज्ञ थी जिसने उसके वीरान जिंदगी में सोनू जैसा हीरा डालने का वचन दिया था।

लाली ने मन ही मन सोच लिया कि वह सोनू को संभोग के समय सुगना का नाम लेकर और नहीं उकसाएगी…

परंतु रात में जब सोनू और लाली एक दूसरे की प्रेम अग्न बुझा रहे थे बरबस ही सुगना का ध्यान उन दोनों के मनो मस्तिष्क में घूम रहा था। लाली द्वारा सुगना का जिक्र न किए जाने के बावजूद सोनू तो सुगना में ही खोया हुआ था। सोनू के आवेग और वेग में कमी नहीं थी। अपनी सुगना के लिए जितनी वासना सोनू ने अपने तन बदन में समेट रखी थी वह सारी लाली पर उड़ेल कर वह निढाल हो गया।

उधर सुगना अपने परिवार के बीच पहुंच चुकी थी..

सुगना जिस मिशन पर गई थी वह एक दो मुलाकातों में पूरा नहीं होने वाला था परंतु जब सुगना मन बना चुकी थी.. तो उसके लिए कोई भी कार्य दुष्कर न था।

अगले दो तीन महीने यूं ही बीत गए। हर शनिवार सोनू सुगना से मिलने बनारस आता पर कभी सुगना अपने गांव चली जाती कभी अपनी मां या कजरी और सरयू सिंह को बनारस बुला लेती इन दोनों ही परिस्थितियों में सोनू और सुगना का मिलन असंभव था । और सपना के प्यार में कोई कमी न थी। वह सब की उपस्थिति में सोनू से पूर्व की भांति प्यार करती उससे सटती कभी उसके गोद में सर रख देती पर उसे कामुक होने का कोई मौका नहीं देती। कभी-कभी सोनू एकांत में सुगना को बाहर घूमाने की जिद करता परंतु सुगना सोनू को उसे घुमाने का मूल उद्देश्य जानती थी और बड़ी सफाई से बिना उसे आहत किए बच निकलती..

जिस तरह मछली को पानी में पकड़ना मुश्किल होता है वह हांथ तो आती है पर पकड़ में नहीं आती सुगना भी अपने परिवार के बीच सुनहरी मछली जैसी ही थी..

सोनू उसका स्पर्श सुख तो बीच बीच में ले पा रहा था पर उछलती मचलती सुगना उसकी पकड़ से दूर थी..

ऐसा नहीं था कि सुगना ने इस दौरान सोनू को नजरअंदाज कर दिया था बस दूरी बना ली थी यद्यपि बीच-बीच में वह उसमें वासना की तरंगे भरने का काम जरुर कर देती थी।

आखिरकार सुगना अपने घर वालों और लाली के घर वालों को इस अनोखे विवाह के लिए राजी करने में कामयाब हो गई। सर्वसम्मति से यह विवाह आर्य समाज विधि से साधारण रूप से किसी पवित्र मंदिर में किया जाना निश्चित हुआ।

पूरे घर में खुशियों का माहौल था। इस अनूठे रिश्ते से सोनी सबसे ज्यादा आश्चर्यचकित थी। सोनू और लाली कब मुंह बोले भाई बहन से एक दूसरे के प्रेमी बन गए थे सोनी ने शायद इसकी कल्पना भी ना की थी। परंतु सोनू के निर्णय पर प्रश्न चिन्ह करने का ना तो सोनी के पास कोई अधिकार था और नहीं कोई जरूरत जब मियां बीबी राजी तो वह बीच में कई काजी की भूमिका अदा नहीं करना चाहती थी।

शुरुवात में सोनू की मां पद्मा का मन थोड़ा दुखी जरूर था परंतु लाली ने पदमा की सेवा कर उसका भी मन जीत लिया था। पूरे परिवार ने आखिरकार मिलकर यह हत्या किया कि यह विवाह सोनी के विवाह के बात करना उचित होगा अन्यथा सोनी के ससुराल वाले इस विवाह पर प्रश्न चिन्ह लगा सकते थे।

सुगना के लिए सोनू की तड़प बढ़ती जा रही थी और अब कमोबेश यही हाल सुगना का भी था इन दो-तीन महीनो में सुगना ने लाली और सोनू को हमेशा के लिए एक करने के लिए भरपूर प्रयास किया था और सफल भी रही थी। उसका कोमल तन बदन सोनू के मजबूत आलिंगन में आने को तड़प रहा था। पर अपने मन पर मजबूत नियंत्रण रखने वाली सुगना अपनी भावनाओं को काबू में किए हुए थी।

आज शुक्रवार का दिन था। लाली अपने बच्चों के साथ अपने माता-पिता से मिलने सलेमपुर गई हुई थी। शायद उसके माता-पिता ने उसके लिए घर पर कोई छोटी पूजा रखी थी जिसमें उसका उपस्थित रहना जरूरी था। सुगना ने लाली को हिदायत दी थी की कैसे भी करके कल शाम तक बनारस आ जाना। पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार कल सोनू को बनारस आना था और सुगना कतई नहीं चाहती थी कि सोनू बिना लाली की उपस्थिति के बनारस में उसके साथ एक ही छत के नीचे रहे। सुगना अब तक अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखने में कामयाब रही थी और सोनू अपनी भावनाओं को काबू में रखने को मजबूर था।

सुगना अपने दोनों बच्चों को स्कूल भेजने के बाद पूरी तरह खाली थी। आज उसने पूरी तन्मयता से स्नान किया स्नान करते वक्त अपनी छोटी सी बुर के चारों तरफ उग आए काले बालों की झुरमुट को सोनू के पुराने रेजर से साफ किया। इस दौरान न जाने क्यों वह सोनू को याद करती रही ।


सुगना महसूस कर रही थी कि पिछले कुछ महीनो में उसने सोनू को हद से ज्यादा बेचैन कर दिया था पर उसकी नजरों में शायद यही उचित था। बिस्तर पर जब जब सुगना स्वयं उत्तेजना का शिकार होती अपनी जांघों के बीच तकिया फसाकर जौनपुर में सोनू के साथ बिताए पल को याद करती सोनू को याद करते-करते उसकी उंगलियां उसकी बुर को थपकियां देकर सुलाने की कोशिश करती।

कभी वह रहीम और फातिमा की किताब निकाल कर पढ़ती और इसी दौरान न जाने कब सुगना की बुर उसकी जांघों को ऐंठने पर मजबूर कर देती और सुगना तृप्ति का सुखद एहसास लिए नींद में खो जाती। रहीम एवं फातिमा की किताब अब उसके लिए एक अनमोल धरोहर हो चुकी थी जो उसके एकांत और सुख की साथी थी..

सुगना ने तसल्ली से स्नान किया खूबसूरत मैरून कलर की साटिन की नाईटी पहनी …. बालों की सफाई होने के पश्चात उसकी बुर संवेदनशील हो चुकी थी अतः उसने अंतर्वस्त्र पहनने को आवश्यकता नहीं समझी पर एहतियातन अपनी चूचियों को ब्रा सहारा दे दिया। वैसे भी आज कई दिनों वह घर में नितांत अकेली थी और आज दोपहर रहीम और फातिमा की किताब पढ़ते हुए अपने कामोत्तेजना शांत करने वाली थी।

स्नान के बाद ध्यान की बारी थी। अपने इष्ट देव को याद करते हुए सुगना पूजा पाठ में संलग्न हो गई। सुगना ने आरती दिखाई और अपने परिवार की खुशियों को कामना की..इसी बीच उसने लाली और सोनू का भी ध्यान किया और उनके विवाह के लिए मंगल कामना की। इधर सुगना ने अंतरमन ने सोनू को याद कर लिया…उधर

दरवाजे पर ठक ठक की आवाज हुई.. हाथ में आरती की थाल लिए अपने घर और बरामदे में आरती दिखाते हुए सुगना दरवाजे तक गई और दरवाजा खोल दिया..

सामने सोनू खड़ा था.. सुगना सुगना आश्चर्यचकित थी..पर बेहद खुश थी

“अरे सोनू बाबू आज कैसे? छुट्टी बा का?”

“ना दीदी बनारस में काम रहे…” सुंदर नाइटी में फूल सी खिली सुगना की मादक सुगंध में खोए हुए सोनू ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया..

उसने झुक कर सुगना के चरण छुए… उठते वक्त उसने सुगना के हाथ में पकड़ी आरती की थाल को पूरे आदर और सम्मान से अपनी दोनों हथेलियों से स्वीकार किया और उसे अपने माथे पर लगा लिया।


सुगना खुश भी थी और आश्चर्यचकित भी उसने सोनू के माथे पर तिलक लगाया और सर पर रखकर उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होने का आशीर्वाद दिया..नियति मुस्कुरा रही थी सुगना ने अनजाने में उसे स्वयं को समर्पित कर दिया था आखिर इस वक्त सोनू की एकमात्र मनोकामना सुगना स्वयं थी। सुगना वापस पूजा का थाल रखना अपने छोटे से मंदिर में चली गई..

इधर सोनू अपना सामान लाली के कमरे में रख चुका था कमरे की स्थिति यह बता रही थी की लाली अपने पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार सलेमपुर जा चुकी थी..

अब तक सोनू को पिछले कुछ महीने से खुद से दूर रख पाने में सफल सुगना आज अचानक ही नियत के खेल में फंस चुकी थी। सोनू की खुशी सातवें आसमान पर थी और अपने इष्ट देव के समक्ष सर झुकाए सुगना का दिल धड़क रहा था…सुगना को स्वयं यह समझ नहीं आ रहा था कि वह ईश्वर से मांगे तो क्या मांगे जो जीवन में उसे सबसे प्यारा था वह उसके समक्ष था.

सोनू मंदिर के दरवाजे पर खड़ा सुगना के बाहर आने का इंतजार कर रहा था..

जैसे ही सुगना अपने पूजा कक्ष से बाहर आई सोनू ने उसे सोनू ने उसे एक झटके में ही अपनी गोद में उठा लिया..सुगना ने अपनी खुशी को नियंत्रित करते हुए पर अपनी मादक मुस्कान बिखरते हुए सोनू से कहा..

“अरे रुक भगवान जी के सामने…”

सोनू ने सुगना को अपनी गोद में लिए हुए अपने घर के मंदिर के सामने लगे परदे को खींचने का अवसर दिया। सुगना ने अपने इष्ट देव को एक बार फिर प्रणाम किया जब तक सुगना अपने ईस्ट से अपने मन की बात कह पाती तब तक सोनू सुगना को अपने गोद में लिए हुए सुगना के कक्ष की तरफ बढ़ चला।

उसकी उंगलियां सुगना के नंगे पेट से सट रही थी वह बीच-बीच में सुगना के पेट को अपनी उंगलियों से गुदगुदा देता। सुगना का अंतर्मन फूल की तरह खिल गया था वह खिलखिला रही थी।

नियति को हंसती खिलखिलाती सुगना एक कामातुर तरुणी की तरह प्रतीत हो रही थी…

नियति सतर्क थी..और सोनू और सुगना के मिलन की प्रत्यक्षदर्शी होने के लिए आतुर थी…

शेष अगले भाग में.



पहले की ही भांति अगला एपिसोड उन्हीं पाठकों को भेजा जाएगा जिन्होंने कहानी से कमेंट के माध्यम से अपना जुड़ाव दिखाया है..
प्रतीक्षारत

Bahut hi umda update he Lovely Anand Bhai,

Sugna chahe kitna bhi sonu se door bhage........

Kismat use wapis sonu ki god me la hi deti he.........

Keep rocking Bro
 
  • Like
Reactions: sunoanuj

vedinician

New Member
24
54
13
Bahut shandaar update raha 132 . Ab aage ka update ka intezar hai
 

Napster

Well-Known Member
5,921
15,903
188
भाग १२४

अब तक आपने पढ़ा..

और सुगना का घाघरा आखिरकार बाहर आ गया अपनी मल्लिका को अर्द्ध नग्न देखकर सोनू बाग बाग हो गया ….


सोनू सुगना के किले के गर्भ गृह के बिल्कुल करीब पहुंच चुका था और उसने अपना सर सुगना के पैरों की तरफ झुका कर जांघों के बीच झांकने की कोशिश की..

सुगना की रानी होंठो पर प्रेमरस लिए सोनू का इंतजार कर रही थी…..


यद्यपि अभी भी सुगना की चूचियां चोली में कैद थी परंतु सोनू को पता था सुगना की रानी उसका इंतजार कर रही है और सुगना के सारे प्रहरी एक एक कर उसका साथ छोड़ रहे थे…

अब आगे..

सोनू सरककर सुगना के पैरों के पास आ गया और सुगना की पिंडलियों पर मसाज करने लगा जहां सोनू बैठा था वहां से सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना की बुर को कभी-कभी देख पा रहा था। जब जब सुगना अपनी जांघें सिकोड़ती उसकी बुर सोनू की नजरों से विलुप्त हो जाती पर जब-जब सुगना अपने पैरों को शिथिल करती सुगना की बुर् के होंठ दिखाई पड़ने लगते…और सुगना के अंदर छलक रहा प्रेम रस होंठो तक आ जाता..

सोनू की उत्तेजना चरम पर पहुंच चुकी थी उसने सुगना की पिंडलियों और एड़ी पर थोड़ा बहुत तेल लगाया पर शीघ्र ही वह उठकर बिस्तर पर आ गया.। अपने दोनों पैर सुगना के पैरों के दोनों तरफ कर वह लगभग सुगना की पिंडलियों पर बैठ गया पर उसने अपना सारा वजन अपने घुटनों पर किया हुआ था परंतु उसकी नग्न जांघें और नितंब सुगना के पैरों से छू रहे थे..

सुगना सोच रही थी कि आखिर सोनू ने अपनी धोती कब उतारी।

सोनू में अपने हाथ में फिर तेल लिया और सुगना के घुटने के पिछले भाग पर तेल लगाते हुए अपनी हथेलियां ऊपर की ओर लाने लगा जैसे ही सोनू की हथेलियां सुगना के नितंबों पर पहुंची दोनों अंगूठे मिलकर सुगना के नितंबों की गहरी घाटी में गोते लगाने लगे। एक पल के लिए सोनू के मन में सुगना के उस अपवित्र द्वार को छूने की इच्छा हुई परंतु सोनू ने अपनी भावनाओं पर काबू पा लिया .. उसे डर था कहीं वह अपनी वासना का नग्न प्रदर्शन कर अपनी बड़ी बहन सुगना की नजरों में गिर ना जाए.

पर सुगना आनंद से सराबोर थी सोनू की हथेलियां और आगे बढ़ी तथा सुगना के कटाव दार कमर को सहलाते हुए वह सुगना की ब्लाउज तक पहुंच गई..उंगलियों ने ब्लाउज को ऊपर जाने का इशारा किया…परंतु सुगना की चूचियां उसे ऊपर जाने से रोक रही थी…

"दीदी थोड़ा सा कपड़ा ऊपर कर ना पीठ में भी लगा दीं"

वासना में घिरी सुगना अपने छोटे भाई सोनू का आग्रह न टाल सकी और उसने अपनी चोली की रस्सी की गांठ खोल दी..चूचियां फैल कर सुगना के सीने से बाहर आने लगीं… कसी हुई चोली अब गांठ खुलने के बाद एक आवरण मात्र के रूप में रह गई और सोनू के हाथ धीरे-धीरे सुगना की पीठ से होते हुए कंधे तक पहुंचने लगी और चोली उपेक्षित सी एक तरफ होती चली गई।

सोनू यही न रूका उसने सुगना के दोनों हाथ उसके सर के दोनों तरफ कर दिए और अपनी हथेलियों से सुगना के कंधे और बाजू की मसाज करने लगा जैसे-जैसे सोनू आगे की तरफ बढ़ रहा था उसका लंड सुगना के नितंबों से अपनी दूरी घटा रहा था….

सुगना अपनी सुध बुध खोकर सोनू की अद्भुत मालिश में खो गई थी…


सोनू मालिश करते हुए सुगना के हांथ के पंजों तक पहुंच गया और उधर उसका खड़ा लंड सुगना के नितंबों को छू गया…

सुगना को जैसे करेंट सा लगा….और कुछ ऐसी ही अनुभूति सोनू को भी हुई..

"ई का करत बाड़े…"

सुगना ने अपना सर घुमाया और कानखियों से सोनू को देखा… एक विशालकाय पूर्ण मर्द बन चुके अपने छोटे भाई सोनू को अपने ऊपर नग्न अवस्था में देखकर…सुगना सिहर उठी…

उसने जो प्रश्न पूछा था उसका उत्तर उसे मिल चुका था..सोनू के थिरकते लंड की एक झलक सुगना देख चुकी थी।

अंधेरे में नग्नता का एहसास शायद कम होता है सुगना अब तक अपनी पलकें बंद किए हुए सोनू की उत्तेजक मालिश का आनंद ले रही थी परंतु अब सुख सोनू को इस अवस्था में देखकर वह शर्म से अपना चेहरा तकिए में छुपा रही थी और सोनू किंकर्तव्यविमूढ़ होकर एक बार फिर सुगना की पीठ और उस चोट वाली जगह पर मालिश कर रहा था तभी सुगना ने अपना चेहरा नीचे नीचे किए ही पूछा

"ए सोनू कॉल ते जो कहत रहले ऊ सांच ह नू?

"हां दीदी… तोहरा विश्वास नईंखे …अब कौन कसम खाई …. हम तोहर झूठा कसम कभी ना खाएब…"

"एगो सवाल और पूछीं?

"हां पूछ"

"तब ई बताब जब हम तोहार बहिन ना हई त हमारा के दीदी काहे बोले लअ"

"हमरा ई बात अभिये मालूम चलल हा "

"त हम केकर बेटी हाई ?"

सोनू ने सुगना के कंधे को से लाते हुए कहा

"दीदी तू हमरा बाबूजी के बेटी ना हाऊ"

"त हम केकर बेटी हाई ? "

" तोहार बाबूजी के नाम हम ना बता सके नी"

"काहे ना बता सके ला..?"

"तू एगो सवाल पूछे वाला रहलू और अब.. इंटरव्यू लेवे लगलू" सोनू ने हल्की नाराजगी दिखाते हुए कहा..

सुगना भी मायूस हो गई.. पर अपनी आवाज में मासूमियत लाते हुए बोली.

"लेकिन हमरा जाने के बा कि हम केकर बेटी हई"


सुगना ने जो प्रश्न पूछा था उसने सोनू को दुविधा में डाल दिया इतना तो तय था की सुगना और सोनू एक पिता की संतान न थी परंतु उन दोनों में जितना प्रगाढ़ प्रेम था वह शायद सगे अन्य किसी सगे भाई बहन में भी ना होगा। सुगना सोनू के लिए सब कुछ थी और सुगना ने भी अपने छोटे भाई से जी भर कर प्यार किया था यह तो नियति ने लाली और उत्तेजक परिस्थितियां पैदा कर सोनू और सुगना को भाई बहन के रिश्ते पर दाग लगाने को मजबूर कर दिया था।

सुगना के चेहरे पर उदासी देखकर सोनू ने कहा

"ठीक बा हम बता देब पर अभी ना"

"कब बताइबा.?"

सोनू ने अपने प्यार से सुनना के प्रश्नों का उत्तर देने की कोशिश की और सुगना के गाल चूम लिए पर उसी दौरान एक बार फिर उसका लंड सुगना की नितंब के ठीक नीचे जांघों के बीच हंसकर सुगना की बुर से लार चुरा लाया..

" दीदी….." अपने लंड से अपनी बड़ी बहन सुगना की चिपचिपी बुर् के होठों को चूमने का आनंद अनोखा था। सोनू की आवाज में उत्तेजना स्पष्ट महसूस हो रही थी"

"ई सब जानला के बाद हमार तोहार रिश्ता का रही? सुगना अब भी संशय में थी।


" दीदी हमरा पर यकीन राख हमार तोहार रिश्ता अब अजर अमर बा हम तोहरा बिना ना जी सकेले ? " ऐसा कहते हुए सोनू ने सुगना के गालों और उसके लंड ने अपनी संगिनी के होंठो को एक बार फिर चूम लिया। सुगना भी सोनू के प्यार के इस नए रूप से मचल रही थी..आवाज में कशिश और छेड़छाड़ का पुट लिए सुगना ने अपना सर घुमाया और सोनू को कनखियो से देखते हुए बोली

" हम तोहार बहिन ना हई और फिर दीदी काहे बोलत बाड़े?"

सोनू सुगना की अदा पर मोहित हो गया…उसने सुनना के होंठ अपने- होंठो में भर लिए और कुछ देर उसे चुभलाता रहा उधर नीचे उसका लंड बुर के होंठो को फैलाकर डुबकी लगा रहा था..सुगना की अपेक्षित प्रतिक्रिया ना पाकर सोनू ने फिर कहा…

"तब तुम ही बता द हम तहरा के क्या बोली?"


सुगना को कुछ सूझ न रहा था परंतु इतना तय था की सोनू सुगना को हर रूप में पसंद था और बीती रात सुगना ने जो सोनू के प्यार का जो अद्भुत सुख लिया था सुगना वह अनुभव एक नहीं बार-बार बारंबार करना चाहती थी उसने अपने होठों पर कातिल मुस्कान लाते हुए कहा…

"तब ई याद रखीहे इ बात केहू के मत बताइहे?

"कौन बात?"

"कि हम तोहार अपन बहिन ना हई"

" ठीक बा पर दीदी तू हमेशा हमरा के असही प्यार करत रही ह "। और इतना कह कर सोनू ने एक बार फिर सुगना की गर्दन और कानों को चूम लिया उधर उसके लंड ने ने सुगना की बुर में प्रवेश कर मिलन का नगाड़ा बचा दिया। उसका सुपाड़ा सुगना की बुर को फैलाने की कोशिश करने लगा।


सुगना मचल उठी उसने सोनू की तरफ देखते हुए कहा " ठीक बा लेकिन सबके सामने तू आपन मर्यादा में रहीह और हम भी"

"लेकिन अकेले में" सोनू ने सुगना के गालो को एक बार और चूमते हुए पूछा..

"सुगना मुस्कुराने लगी …. उसने अपना चेहरा तकिए में छुपाने की कोशिश की परंतु सुगना की कशिश सोनू देख चुका था। उसने अपनी कमर पर थोड़ा जोर लगाया और उसका लंड सुनना की बुर में गहरे तक प्रवेश कर गया।

"अरे रुक तनी सीधा होखे दे बेचैन मत होख"

सुगना पलट कर सीधे होने की कोशिश करने लगी. सुगना ने अपने नितंबों को हिला कर करवट होने की कोशिश की और सोनू का लंड छटक कर बाहर आ गया। सोनू ने अपने शरीर का भार अपने हाथों और घुटनों पर ले लिया और सुगना को पलट कर सीधा हो जाने दिया…मोमबत्ती की रोशनी में दोनों चूचियां देख कर सोनू मचल उठा….

सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना को पूरी तरह नग्न बिस्तर पर मिलन के लिए तैयार होते देख रहा था सुगना ने अपने दोनों पर सोनू के घुटनों के दोनों तरफ कर लिए थे और उसकी जांघें सोनू की जांघों से सटने लगी थी…

जैसे ही सोनू ने चुचियों को छोड़ अपना ध्यान सुगना की फूली हुई बुर पर लगाया…. सुगना ने सोनू के मनोभाव ताड़ लिए। सोनू की गर्दन झुकी हुई थी और आंखें खजाने को ललचाई नजरों से देख रही थी। सुगना ने अपने हाथ से सोनू की ठुड्ढी को पकड़कर ऊंचा किया और..पूछा…

"सोनू बाबू का देखत बा ड़अ"

सोनू शर्मा गया जिस तरह ललचाई निगाहों से वह अपनी बड़ी बहन सुगना की बुर को देख रहा था उसे शब्दों में बयां कर पाना उसके लिए भी कठिन था।

सोनू ने झुक कर अपना सर सुगना के बगल में तकिए से सटा दिया और उसके गालों से अपने गाल रगड़ते हुए बोला..

" दीदी तू बतावालू हा ना …. सबके सामने तो तू हमार दीदी रहबू पर अकेले में?" सोनू ने इस बात का विशेष ध्यान रखा उसका लंड सुगना की बुर से छूता अवश्य रहे परंतु भीतर न जाए.

सुगना को शांत देखकर सोनू में हिम्मत आई और उसने अपना चेहरा सुगना के ठीक सामने कर लिया और एक बार फिर बोला

"बतावा ना दीदी"

सुगना ने आंखो में शर्म और होंठो पर मुस्कान लिए अपने पैर सोनू की जांघों पर रख दिए उसे अपनी तरफ खींच लिया…..

सोनू को उसके प्रश्न का उत्तर मिल चुका था…. सुगना ने सोनू को खुलकर शब्दों में चोदने का निमंत्रण तो न दिया… परंतु अपने पैर उसकी जांघों पर रख उसे अपनी ओर खींच कर इस बात का स्पष्ट संकेत दे दिया कि उन दोनों का यह नया रिश्ता सुगना को भी स्वीकार था।


सोनू का मखमली लंड सुगना की मखमली बुर में धंसता चला गया… दो बदन एकाकार हो रहे थे। जब लंड ने सुगना की गहराई में उतर कर बुर के कसाव से प्रेम युद्ध करना शुरू किया सुगना के चेहरे पर तनाव दिखाई पड़ने लगा। यही वह वक्त था जब सुगना को अपने छोटे भाई सोनू से प्यार की उम्मीद थी सोनू ने सुगना को निराश ना किया और को सुगना के होठों को अपने होंठो के बीच भर लिया… लिया और बेहद प्यार से होठों को चुम लाते हुए सुगना के मीठे दर्द पर मरहम लगाने लगा उधर लंड एक बेदर्दी की भांति तभी रुका जब उसने सुगना के गर्भ द्वार पर अपनी दस्तक दे दी।

सुगना चिहुंक उठी…

"सोनू..…बाबू…"

सोनू ने कुछ कहा नहीं पर वह सुगना के गालों आंखों और होठों को चूमता रहा…

सोनू ने धीरे-धीरे अपने लंड को आगे पीछे करना शुरू किया। ना जाने सुगना की बुर से आज इतना प्रेम रस क्यों छलक रहा था।


शायद सुगना के प्यार ने सोनू के लंड को अपने अंदर सहर्ष समाहित करने का मन बना लिया था ।

आज न सुगना के चेहरे पर पीड़ा थी और न सोनू को उसका अफसोस। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सोनू के लंड का सृजन सुगना की बुर के लिए ही हुआ था।


जब-जब लंड सुगना की गहराइयों में उतरता सुगना तृप्ति के एहसास से भर जाती उसकी जांघें फैल कर सोनू के लंड के लिए जगह बनाती और जब सोनू का लंड सुनना के गर्भ द्वार पर दस्तक देता सुगना अपके होंठ भींच लेती…और सोनू रूक जाता। पर जब लंड बाहर आता सुगना को लगता जैसे कोई उसके शरीर का कोई अंग बाहर निकाल रहा है और सुगना अपनी कमर उठा कर उसे उसे अपने अंदर समाहित करने का प्रयास करती।

तब तक सोनू की कमर उस लंड को वापस उसी जगह धकेल देती। सोनू लगातार सुगना होठों पर चुंबन दिए जा रहा था। सुगना के शरीर के सामने का भाग बेहद मखमली था…वह सांची के स्तूप की तरह भरी भरी उन्नत चूचियां सपाट पेट और हल्का उभार लिए वस्ति प्रदेश… सोनू सुगना की बुर में अपने लंड को आते जाते देखने लगा…

सुगना ने सोनू की तरफ देखा और उसे अपनी बुर की तरफ देखते हुए सुगना ने अपना सर ऊंचा किया…

जहां सोनू की निगाहे थी वही सुगना भी ताकने लगी…बेहद खूबसूरत दृश्य था…सोनू अपना लंड अपनी बहन की बुर से बाहर लाता सुगना के प्रेम रस से चमकता लंड देख दोनो भाई बहन मदहोश हो रहे थे…

तभी सोनू का ध्यान सुगना के चेहरे पर गया और नजरे फिर चार हो गई…

सोनू ने अपनी बहन को शर्मिंदा न किया। जिन चूचियों की कल्पना कर न जाने सोनू ने अपने कितने हस्तमैथुन को अंजाम दिया था आज उसने उन दुग्धकलशो से जी दूध पीने का मन बना लिया।


अपने लंड की गति को नियंत्रित करते हुए सोनू दोनों हथेलियों से सुगना की चुचियों को सहलाने लगा। कभी अपनी उंगलियों को निप्पल के ऊपर फिराता कभी उंगलियों में लेकर उसके निप्पल को मसल देता। सोनू खूबसूरत और तने हुए निप्पलों को मसलते समय यह भूल गया की यह निप्पल उसकी बड़ी बहन सुगना के है उसने एक बार फिर अनजाने निप्पलों पर अपना दबाव बढ़ा दिया…

सुगना की मादक कराह फिजा में गूंज गई…

" सोनू बाबू …..तनी धीरे से……." सुगना की यह कराह अब सोनू पहचानने लगा था दर्द और उत्तेजना के बीच का अंतर सोनू समझ रहा था। सुगना की कराह में निश्चित ही उत्तेजना थी। सोनू ने निप्प्लों से अपने हांथ हटा लिए पर परंतु होठों से पकड़ कर उन्हे चूसने लगा। सुगना उत्तेजना और शर्म के बीच झूल रही थी… उससे रहा न गया वह सोनू के बाल सहलाने लगी। उसे समझ ना आ रहा था कि वो सोनू के सर को अपनी चुचियों की तरफ और खींचे या उसे बाहर धकेले।

आखिर सुगना ने अपनी चुचियों को सोनू के हवाले कर दिया और अपनी जांघों के बीच हो रही हलचल महसूस करने लगी। अद्भुत एहसास था वह सोनू का लंड जब सुगना के गर्भ द्वार पर चोट करता सुगना सिहर उठती। और उसकी जांघें तन जाती और सुगना अपनी जांघें सटाने की नाकाम कोशिश करती..पर बुर में हो रहे संकुचन की उस अद्भुत अनुभूति से सोनू और उसका लंड मचल जाता। सोनू और अपनी बड़ी बहन की चुचियों को जोर से चूस लेता। जैसे-जैसे सोनू का लावा गर्म हो रहा था सुगना स्खलन के कगार पर पहुंच रही थी….

जैसे ही सुगना ने अपनी कमर हिला कर सोनू के धक्कों से तालमेल मिलाने की कोशिश की …सोनू समझ गया कि उसकी बड़ी बहन स्खलित होने वाली है। परंतु आज सोनू की मन में कुछ और ही था.


उसने सुगना की पीठ और कमर की मालिश के दौरान जो कल्पना की थी उसे साकार करने के लिए सोनू का मन मचल उठा। सोनू ने सुगना की चूचियों को छोड़ दिया और अपने अचानक अपने लंड को को सुगना की बुर से बाहर निकाल लिया।

अकस्मात अपने स्खलन की राह में आए इस व्यवधान से सुगना ने अपनी आंखें खोली और सोनू के चेहरे को देखते हुए आंखों ही आंखों में पूछा

" क्या हुआ सोनू " सोनू ने अपने बहन के प्रश्न का उत्तर उसकी दोनों जांघों को आपस में सटा कर दिया और उन दोनों जांघों को बिस्तर पर एक तरफ करने लगा। सुगना करवट हो गई वह अब भी न समझ पा रही थी कि सोनू आखिर क्या कर रहा है? और क्या चाह रहा है ?

जब तक सुगना समझ पाती सोनू ने हिम्मत जुटाई और सुगना की कमर के नीचे हाथ कर सुगना को पलटने का इशारा कर दिया…ताकतवर सोनू के इशारे ने सुगना को लगभग पलटा ही दिया था। सुगना आश्चर्यचकित थी सोनू एक तरह से उसे घोड़ी बनने का निर्देश दे रहा था।

सुगना की बुर स्खलन के इंतजार में फूल चूकी थी.. उसे सोनू के लंड का इंतजार था अपनी उत्तेजना और वासना में घिरी हुई सुगना सोनू के निर्देश को टाल न पाई और अपनी लाज शर्म को त्याग अपने घुटनों के बल आते हुए डॉगी स्टाइल में आ गई…परंतु अपनी अवस्था देखकर सुगना शर्म से गड़ी जा रही थी.. अपने छोटे भाई के सामने उसे इस स्थिति में आने में बेहद लज्जा महसूस हो रही थी और आखिरकार सुगना ने अपने दोनों हाथ बढ़ाएं और बिस्तर के किनारे जल रही दोनों मोमबत्तियां को फूंक कर बुझा दिया…

कमरे में अंधेरा हो गया पर इतना भी नहीं कि सोनू को अपनी बहन की कामुक काया न दिखाई पड़े….कमरे के बाहर जल रही गार्डन लाइट की रोशनी कमरे में अब भी आ रही थी… सुगना डॉगी स्टाइल में आ चुकी थी। चूचियां लटककर बिस्तर को छू रही थी और सुगना अपने शरीर का अग्रभाग अपनी कोहनी और पंजों पर नियंत्रित किए हुए थे आंखें शर्म से बंद किए हुए सुगना अपना चेहरा तकिए में छुपाए हुए थी… परंतु उसका खजाना खुली हवा में अपने होंठ फैलाएं उसके भाई सोनू के लंड का इंतजार कर रहा था ।

सोनू ने सुगना के नितंबों पर हाथ फेरा और सुगना की सिहरन बढ़ती चली…उसे गुस्सा भी आ रहा था सोनू जो कर रहा था उसे सोनू से इसकी अपेक्षा न थी। पर उत्तेजना बढ़ रही थी।


सोनू ने कमर के ऊपरी भाग के कटाव को अपने दोनों हाथों से पकड़ सुगना की कोमलता और कमर के कसाव का अंदाजा लिया और धीरे-धीरे उसका लंड अपनी प्रेमिका के होठों को चूमने लगा। सोनू और सुगना दोनों के यौनांग मिलन का इंतजार कर रहे थे। सोनू ने जैसे ही अपनी कमर को आगे कर सुगना की जांघों से अपनी जांघों को सटाने की कोशिश की लंड सुगना के मखमली बुर को चीरता हुआ अंदर धंसता चला गया।

जिस अवस्था में सुगना थी सोनू का उसके गर्भाशय तक पहुंच चुका था पर अब भी लंड का कुछ भाग अब भी बाहर था। शायद इस मादक अवस्था में अपनी बड़ी बहन सुगना को देखकर वह और तन गया था। सोनू ने जैसे ही अपने लंड को आगे पीछे किया सुगना मदहोश होने लगी। मारे शर्म के वह अपना चेहरा अंधेरा होने के बावजूद ना उठा रही थी परंतु सोनू की उंगलियों और हथेली को अपनी कमर पर बखूबी महसूस कर रही थी। सोनू के लंड के धक्कों से वह आगे की तरफ झुक जाती पर अपने हाथों से वह अपना संतुलन बनाए रखती।

सोनू ने अपनी मजबूत हथेलियों से उसकी कमर को अपनी तरफ कस कर खींच लिया ऐसा लग रहा था जैसे सोनू आज अपने पूरे शबाब पर था। सुगना की आंखों के सामने वही दृश्य घूम रहे थे जब उसने सोनू को इसी अवस्था में लाली को चोदते हुए देखा था। और यह संयोग ही था कि सोनू भी उसी दृश्य को याद कर रहा था उस दिन उसने जो सपने देखा था आज वह हकीकत में उसकी नंगी आंखों के सामने उपस्थित था।

सोनू के धक्के जब उसके गर्भाशय पर तेजी से बढ़ने लगे सुगना सिहर उठी और एक बार फिर उसके मुंह से वही कामुक कराह निकल पड़ी…


" बाबू… आह….. तनी धीरे से …दुखाता…"

सोनू ने अपनेलंड की रफ्तार कम ना की अपितु अपनी हथेलियों का दबाव सुगना की कमर पर कम कर दिया लंड के मजबूत धक्कों से सुगना का पूरा बदन हिलने लगा और सुगना स्वयं अपने शरीर को नियंत्रित कर सोनू के आवेग और जोश का आनंद लेने लगी।


सुगना का रोम-रोम प्रफुल्लित था और शरीर की नसें तन रही थीं। सुगना कभी सोनू के लंड से तालमेल बनाने के लिए नितंबों को पीछे ले जाती कभी सोनू के लंड के धक्के उसे आगे की तरफ धकेल देते। सोनू अपनी बहन सुगना की कमर को होले होले सहला रहा था परंतु उसका निर्दई लंड सुगना को बेरहमी से चोद रहा था।

हथेलियों ने सुगना की चूचियों की सुध लेने की न सोची..वह स्वयं बेचारी झूल झूल कर बिस्तर से रगड़ खा रही थी और सोनू की हथेलियों के स्पर्श का इंतजार कर रही थी परंतु सोनू सुगना के नितंबों और कमर के मादक कटाव में खोया हुआ था।


आखिरकार सुगना ने स्वयं अपनी हथेली से अपनी चुचियों को पकड़ा और उसे मसलने लगी जब सोनू को एहसास हुआ.. उसने अपना एक हाथ सुगना की चुचियों पर किया और बेहद प्यार से सुगना को चोदते हुए उसकी चूची मीसने लगा। प्यार में लंड की रफ्तार कम हो गई

सुगना स्खलन के कगार पर पहुंच चुकी थी। उसे चुचियों से ज्यादा अपनी जांघों के बीच मजा आ रहा था उसने सोनू के हाथ को वापस पीछे धकेल दिया और अपनी कमर पर रख दिया और अपनी कमर को पीछे कर स्वयं सोनू के लंड पर धक्के लगाने लगी..


सोनू जान चुका था कि सुगना दीदी अब झड़ने वाली है उसने एक बार फिर सुगना की कमर को तेजी से पकड़ लिया और पूरी रफ्तार से उसे चोदने लगा…

सोनू… तनी…. हा …. अ आ बाबू …. आह….. तनी ….. धी….. हां बस…..आ……..सुगना कराह रही थी उसके निर्देश अस्पष्ट थे पर बदन की मांग सोनू पहचानता था और वह उसमें कोई कमी ना कर रहा था। सोनू एक पूर्ण मर्द की तरह सुकुमारी सुगना को कस कर चोद रहा था…

आखिरकार सोनू के इस अनोखे प्यार ने सुगना को चरम पर पहुंचा दिया बुर् के बहुप्रतीक्षित कंपन सोनू के लंड पर महसूस होने लगे… सुगना स्खलित हो रही थी और सोनू बुर के कंपन का आनंद ले रहा था। जैसे जैसे सुगना के कंपन बढ़ते गए सोनू ने अपने लंड की रफ्तार और तेज कर दी।

उसे अपने वीर्य का बांध टूटता हुआ महसूस हुआ जैसे ही वीर्य की पहली धार में सुगना के गर्भ पर दस्तक दी सोनू ने अपना लंड बाहर खींच लिया …और सुगना को बिस्तर पर लगभग गिरा दिया… सुगना आश्चर्यचकित थी सोनू जो कर रहा था वह अविश्वसनीय था…

सुगना अपनी पीठ के बल आकर अपनी आंखें खोली सोनू के चेहरे को देख रही थी जो आंखें बंद किए अपने लंड को हाथों में लिए तेजी से हिला रहा था …और बार बार दीदी सुगना…दी….दी…दी…..बुदबुदा रहा था… जब तक सुगना कुछ समझ पाती वीर्य की मोटी धार उसके चेहरे पर आ गिरी उसने अपनी दोनों हथेलियां आगे कर वीर्य की धार को रोकने की असफल कोशिश की अगली धार ने उसकी गर्दन चुचियों को भिगो दिया.. जैसे-जैसे सोनू के वीर्य की धार कमजोर पड़ती गई सुगना की चूचियां उसका पेट और वस्ति प्रदेश सोनू के वीर्य से भीगता चला गया।

सुगना जान चुकी थी सोनू के प्यार को हाथों से रोक पाना असंभव था उसने सब कुछ नियति के हाथों छोड़ दिया.. सुगना आंखें बंद किए इस अपने शरीर पर गिर रहे गर्म और चिपचिपे रस को महसूस कर रही थी।

अचानक सोनू ने अपने लंड को सुगना की बुर के भग्नासे पर पटकना शुरू कर दिया ऐसा लग रहा था जैसे वह वीर्य की आखिरी बूंद को भी अपनी बहन की सुनहरी देहरी पर छोड़ देना चाहता था सुगना सिहर रही थी पर उसने सोनू को न रोका…

भग्नासा संवेदनशील हो चुका था और सोनू की इस हरकत से सिहर रहा था। जब सोनू तृप्त हो गया उसने लंड को छोड़ दिया और से सुगना के बगल धड़ाम से बिस्तर पर गिर सा गया।

उसकी सांसे बेहद तेज चल रही थी सोनू को अपने बहन के प्यार की आवश्यकता थी …एक वही थी जो उसके सुख दुख की साथी थी…सुगना ने उसे निराश किया वह करवट हुई और सोनू की जांघों पर अपना दाहिना पैर रख दिया और हथेलियां सोनू के सीने को सहलाने लगी।


सोनू अपनी सांसों को नियंत्रित करते हुए बोला दीदी

"हमरा के माफ कर दीहा" सोनू अपने जिस कृत्य के लिए सुगना से माफी मांग रहा था वह पाठक भली-भांति जानते है..

पर सुगना जो स्वयं सोनू के प्यार से अभिभूत और तृप्त थी उसने सोनू के गालों को चूम लिया और बोली

"काहे खातिर" सुगना ने मुस्कुराते हुए सोनू को देखा.. सोनू और सुगना एक बार फिर दोनों बाहों में बाहें डाले एक दूसरे को सहला रहे थे। सोनू की हथेलियां सुगना की चूचियों और पेट पर गिरे वीर्य से उसकी मालिश कर रहीं थी। सोनू की यह हरकत सुगना को और शर्मशार कर रही थी पर आज सुगना ने सोनू को न रोका .. उसने अपने पैरों से बिस्तर पर पड़े लिहाफ को ऊपर खींचा और अपने और सोनू के बदन को ढक लिया …

भाई बहन दोनों एक दूसरे की आगोश में स्वप्नलोक में विचरण करने लगे..


तृप्ति का एहसास एक सुखद नींद प्रदान करता है आज सुगना और सोनू दोनों बेफिक्र होकर एक दूसरे की बाहों में एक सुखद नींद में खो गए।

नियति यह प्यार देख स्वयं अभिभूत थी…शायद विधाता ने सुगना और सोनू के जीवन में रंग भरने की ठान ली थी…पर भाई बहन क्या यूं ही जीवन बिता पाएंगे? …लाली और समाज अपनी भूमिका निभाने को तैयार हो रहा था…..नियति सुगना के जीवन के किताब के पन्ने पलटने में लग गई…

शेष अगले भाग में…
पुनः एक अद्भुत अविस्मरणीय मनमोहक और बडा ही खतरनाक अपडेट है भाई मजा आ गया
सुगना और सोनू के बीच के चुदाई का वर्णन बडा ही उन्मादक और जबरदस्त हैं
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
 
  • Like
Reactions: sunoanuj
Top