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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
भाग 126 (मध्यांतर)
भाग 127 भाग 128 भाग 129 भाग 130 भाग 131 भाग 132
भाग 133 भाग 134 भाग 135 भाग 136 भाग 137 भाग 138
भाग 139 भाग 140 भाग141 भाग 142 भाग 143
 
Last edited:

ChaityBabu

New Member
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उधर दक्षिण अफ्रीका मैं सोनी और विकास न जाने किस धुन में थे सोनी ने उन दोनों नीग्रो का वीर्य दोहन कर अपनी कामुकता में एक नई ऊंचाई प्राप्त की थी और उसकी दिशा तेजी से वासना में लिप्त युवती की तरह बढ़ रही थी। कुछ समय के लिए सोनी और विकास को उनके हाल पर छोड़ देते हैं और लिए वापस लिए चलते हैं जौनपुर में जहां सुगना अपने बच्चों और अपनी मां पदमा के साथ रह रही थी।

शनिवार का दिन था सोनू आज अपनी पत्नी लाली और उसके बच्चों के साथ जौनपुर से बनारस आने वाला था। सुगना और उसके बच्चे भी अपने मांमा से मिलने के लिए बेहद लालायित थे।

सुगना और सोनू के मिलन में काफी समय बीत चुका था सोनू का चेहरा चमक रहा था और गर्दन का दाग पूरी तरह गायब था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सोनू का चरित्र बेदाग था।

पर यह सच नहीं था। सोनू का दिल तो अक्सर सुगना में ही खोया रहता था कमोबेश यही हाल सुगना का भी था। पर अपनी मर्यादाओं का जितना निर्वहन सुगना करती थी शायद सोनू में यह धीरज नहीं था वह मौका पाते ही सुगना को अपनी बाहों में भर लेने की कोशिश करता पर सुगना समय देखकर ही उसके करीब आती वरना वह उचित और सुरक्षित दूरी बनाए रखती थी।

जौनपुर में लाली और सोनू अपना अपना सामान पैक कर रहे थे तभी लाली ने कहा..

“ए सोनू जैसे हमार भाग्य खुल गईल का वैसे सुगना के भी दोसर शादी ना हो सकेला”

एक पल के लिए सोनू को लगा जैसे लाली की सलाह उचित थी परंतु सुगना को खोने के एहसास मात्र से सोनू की रूह कांप उठी वह तपाक से बोला

“अरे सुगना दीदी तो अभी सुहागन बिया जीजा घर छोड़कर भागल बाड़े पर जिंदा बाड़े ऐसे में दोसर शादी?

लाली निरुतर थी।

कुछ घंटे के सफर के बाद सोनू अपनी पत्नी लाली और उसके बच्चों के साथ बनारस आ चुका था।


यह एक संयोग ही था कि उसी समय सलेमपुर से सरयू सिंह और कजरी भी बनारस सुगना के घर आ पहुंचे थे।

सुगना ने सरयू सिंह और कजरी के चरण छुए और उन दोनों का आशीर्वाद प्राप्त किया। दोनों ने निर्विकार भाव से सुगना को खुश रहने का आशीर्वाद दिया उन्हें इस बात का इल्म न था कि उनका आशीर्वाद किस प्रकार फलीभूत होगा पर नियती ने सुगना के जीवन में खुशियां बिखरने का मन बना लिया था।

आज सुगना का पूरा परिवार उसके साथ था। सिर्फ उसकी दोनों बहनें उसे दूर थी पर अपनी अपनी जगह आनंद में थी। और उसका भगोड़ा पति रतन भी उसकी छोटी बहन मोनी के बुर में मगन मस्त था।

बातों ही बातों में पता चला की सरयू सिंह कजरी को उसके कंधे में उठे दर्द का इलाज करने के लिए बनारस आए थे। परंतु डॉक्टर ने उन्हें कुछ चेकअप कराने के लिए सोमवार तक रुकने का निर्देश दिया था।और आखिरकार दोनों सुगना के घर आ पहुंचे थे।

पूरा परिवार एक साथ बैठे पुराने दिनों को याद कर रहा था। सरयू सिंह को अब अपने पुराने दिनों से कोई सरोकार न था। कजरी और पदमा अब उनके लिए बेमानी हो चली थी। वैसे भी जिसने सुगना को भोग लिया हो उसे कोई और स्त्री पसंद आए यह कठिन था। परंतु जब से सरयू सिंह को यह बात ज्ञात हुई थी कि सुगना उनकी अपनी ही पुत्री है तब से उनके विचार सुगना के प्रति पूरी तरह बदल चुके थे।

सोनू बार-बार सुगना की तरफ देख रहा था जैसे उसकी आंखों में अपने प्रति आकर्षक और प्यार देखना चाह रहा हो। मन ही मन वह अपने विधाता से सुगना के साथ एकांत मांग रहा था परंतु यहां ठीक उसके उलट पूरा परिवार सुगना के घर में इकट्ठा हो चुका था।

इस भरे पूरे परिवार के बीच सुगना के साथ एकांत खोजना लगभग नामुमकिन सा प्रतीत हो रहा था तभी कजरी ने कहा…

“ए सुगना कॉल सलेमपुर चल जाइबे का?”

काहे का बात बा? सुगना ने आश्चर्य से पूछा

“मुखिया के बेटी के गहना हमरा बक्सा में रखल बा…काल ओकरा के देवल जरूरी बा.. हम त काल ना जा सकब यही से कहत बानी”

सुगना के बोलने से पहले सोनू बोल उठा

“चाची तू चिंता मत कर हम सुगना दीदी के लेकर चल जाएब और काम करके वापस आ जाएब”

“हां ईहे ठीक रही गाड़ी से जयीहें लोग तो टाइम भी कम लागी। “

सरयू सिंह ने अपना विचार रख रख कर इस बात पर मोहर लगा दी।

तभी लाली बोल उठी..

“हमरो के लेले चला हम भी अपना मां बाबूजी से भेंट कर लेब”

अचानक सोनू को सारा खेल खराब होता हुआ दिखने लगा परंतु लाली ने जो बात कही थी उसे आसानी से कटपना कठिन था तभी सुगना ने कहा

“ते बाद में चल जईहे बच्चा सबके भी देख के परी मां अकेले का का करी”

बात सच थी कजरी की बाहों में दर्द था और सुगना की मां पदमा इन सभी बच्चों को संभालने और सबका ख्याल रखने में अकेले अक्षम थी। सुगना की बात सुनकर लाली चुप हो गई उसकी बात टालने का साहस उसमें कतई नहीं था।

सोनू तो जैसे कल्पना लोक में विचरण करने लगा सुगना के साथ एकांत वह भी सलेमपुर में और सुगना के अपने घर में।

सुगना का वह कमरा …वह सुगना की सुहाग का पलंग वह दीपावली की रात जब उसने पहली बार सुगना के साथ उसके प्रतिरोध के बावजूद काम आनंद लिया था।

उसे अद्भुत और अलौकिक अनुभूति को याद कर सोनू का लंड तुरंत ही खड़ा हो गया। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था। वह अपने विचारों में खोया हुआ था तभी सुगना ने बोला..

“ए सोनू तोर जाए के मन नईखे का ? कोनो बात ना हम बस से चल जाएब”

सोनू ने सुगना की आंखों में शरारत देख ली…

“ठीक बा काल 10 बजे चलेके..”

सोनू अपनी अपनी खुशी को छुपाने में नाकामयाब था शायद इसीलिए वह सुगना से नजरे नहीं मिल रहा था उसने वहां से उठ जाना ही उचित समझा और बच्चों को लेकर बाहर आइसक्रीम खिलाने चला गया।


सुगना खुश थी उसने मन ही मन सोनू के गर्दन पर दाग लगाने की ठान ली थी…
Short N Sweet Update
 

sunoanuj

Well-Known Member
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Bahut hee shandaar update Lovely Ji …. 👏🏻👏🏻👏🏻
 

Shubham babu

Member
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उधर दक्षिण अफ्रीका मैं सोनी और विकास न जाने किस धुन में थे सोनी ने उन दोनों नीग्रो का वीर्य दोहन कर अपनी कामुकता में एक नई ऊंचाई प्राप्त की थी और उसकी दिशा तेजी से वासना में लिप्त युवती की तरह बढ़ रही थी। कुछ समय के लिए सोनी और विकास को उनके हाल पर छोड़ देते हैं और लिए वापस लिए चलते हैं जौनपुर में जहां सुगना अपने बच्चों और अपनी मां पदमा के साथ रह रही थी।

शनिवार का दिन था सोनू आज अपनी पत्नी लाली और उसके बच्चों के साथ जौनपुर से बनारस आने वाला था। सुगना और उसके बच्चे भी अपने मांमा से मिलने के लिए बेहद लालायित थे।

सुगना और सोनू के मिलन में काफी समय बीत चुका था सोनू का चेहरा चमक रहा था और गर्दन का दाग पूरी तरह गायब था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सोनू का चरित्र बेदाग था।

पर यह सच नहीं था। सोनू का दिल तो अक्सर सुगना में ही खोया रहता था कमोबेश यही हाल सुगना का भी था। पर अपनी मर्यादाओं का जितना निर्वहन सुगना करती थी शायद सोनू में यह धीरज नहीं था वह मौका पाते ही सुगना को अपनी बाहों में भर लेने की कोशिश करता पर सुगना समय देखकर ही उसके करीब आती वरना वह उचित और सुरक्षित दूरी बनाए रखती थी।

जौनपुर में लाली और सोनू अपना अपना सामान पैक कर रहे थे तभी लाली ने कहा..

“ए सोनू जैसे हमार भाग्य खुल गईल का वैसे सुगना के भी दोसर शादी ना हो सकेला”

एक पल के लिए सोनू को लगा जैसे लाली की सलाह उचित थी परंतु सुगना को खोने के एहसास मात्र से सोनू की रूह कांप उठी वह तपाक से बोला

“अरे सुगना दीदी तो अभी सुहागन बिया जीजा घर छोड़कर भागल बाड़े पर जिंदा बाड़े ऐसे में दोसर शादी?

लाली निरुतर थी।

कुछ घंटे के सफर के बाद सोनू अपनी पत्नी लाली और उसके बच्चों के साथ बनारस आ चुका था।


यह एक संयोग ही था कि उसी समय सलेमपुर से सरयू सिंह और कजरी भी बनारस सुगना के घर आ पहुंचे थे।

सुगना ने सरयू सिंह और कजरी के चरण छुए और उन दोनों का आशीर्वाद प्राप्त किया। दोनों ने निर्विकार भाव से सुगना को खुश रहने का आशीर्वाद दिया उन्हें इस बात का इल्म न था कि उनका आशीर्वाद किस प्रकार फलीभूत होगा पर नियती ने सुगना के जीवन में खुशियां बिखरने का मन बना लिया था।

आज सुगना का पूरा परिवार उसके साथ था। सिर्फ उसकी दोनों बहनें उसे दूर थी पर अपनी अपनी जगह आनंद में थी। और उसका भगोड़ा पति रतन भी उसकी छोटी बहन मोनी के बुर में मगन मस्त था।

बातों ही बातों में पता चला की सरयू सिंह कजरी को उसके कंधे में उठे दर्द का इलाज करने के लिए बनारस आए थे। परंतु डॉक्टर ने उन्हें कुछ चेकअप कराने के लिए सोमवार तक रुकने का निर्देश दिया था।और आखिरकार दोनों सुगना के घर आ पहुंचे थे।

पूरा परिवार एक साथ बैठे पुराने दिनों को याद कर रहा था। सरयू सिंह को अब अपने पुराने दिनों से कोई सरोकार न था। कजरी और पदमा अब उनके लिए बेमानी हो चली थी। वैसे भी जिसने सुगना को भोग लिया हो उसे कोई और स्त्री पसंद आए यह कठिन था। परंतु जब से सरयू सिंह को यह बात ज्ञात हुई थी कि सुगना उनकी अपनी ही पुत्री है तब से उनके विचार सुगना के प्रति पूरी तरह बदल चुके थे।

सोनू बार-बार सुगना की तरफ देख रहा था जैसे उसकी आंखों में अपने प्रति आकर्षक और प्यार देखना चाह रहा हो। मन ही मन वह अपने विधाता से सुगना के साथ एकांत मांग रहा था परंतु यहां ठीक उसके उलट पूरा परिवार सुगना के घर में इकट्ठा हो चुका था।

इस भरे पूरे परिवार के बीच सुगना के साथ एकांत खोजना लगभग नामुमकिन सा प्रतीत हो रहा था तभी कजरी ने कहा…

“ए सुगना कॉल सलेमपुर चल जाइबे का?”

काहे का बात बा? सुगना ने आश्चर्य से पूछा

“मुखिया के बेटी के गहना हमरा बक्सा में रखल बा…काल ओकरा के देवल जरूरी बा.. हम त काल ना जा सकब यही से कहत बानी”

सुगना के बोलने से पहले सोनू बोल उठा

“चाची तू चिंता मत कर हम सुगना दीदी के लेकर चल जाएब और काम करके वापस आ जाएब”

“हां ईहे ठीक रही गाड़ी से जयीहें लोग तो टाइम भी कम लागी। “

सरयू सिंह ने अपना विचार रख रख कर इस बात पर मोहर लगा दी।

तभी लाली बोल उठी..

“हमरो के लेले चला हम भी अपना मां बाबूजी से भेंट कर लेब”

अचानक सोनू को सारा खेल खराब होता हुआ दिखने लगा परंतु लाली ने जो बात कही थी उसे आसानी से कटपना कठिन था तभी सुगना ने कहा

“ते बाद में चल जईहे बच्चा सबके भी देख के परी मां अकेले का का करी”

बात सच थी कजरी की बाहों में दर्द था और सुगना की मां पदमा इन सभी बच्चों को संभालने और सबका ख्याल रखने में अकेले अक्षम थी। सुगना की बात सुनकर लाली चुप हो गई उसकी बात टालने का साहस उसमें कतई नहीं था।

सोनू तो जैसे कल्पना लोक में विचरण करने लगा सुगना के साथ एकांत वह भी सलेमपुर में और सुगना के अपने घर में।

सुगना का वह कमरा …वह सुगना की सुहाग का पलंग वह दीपावली की रात जब उसने पहली बार सुगना के साथ उसके प्रतिरोध के बावजूद काम आनंद लिया था।

उसे अद्भुत और अलौकिक अनुभूति को याद कर सोनू का लंड तुरंत ही खड़ा हो गया। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था। वह अपने विचारों में खोया हुआ था तभी सुगना ने बोला..

“ए सोनू तोर जाए के मन नईखे का ? कोनो बात ना हम बस से चल जाएब”

सोनू ने सुगना की आंखों में शरारत देख ली…

“ठीक बा काल 10 बजे चलेके..”

सोनू अपनी अपनी खुशी को छुपाने में नाकामयाब था शायद इसीलिए वह सुगना से नजरे नहीं मिल रहा था उसने वहां से उठ जाना ही उचित समझा और बच्चों को लेकर बाहर आइसक्रीम खिलाने चला गया।


सुगना खुश थी उसने मन ही मन सोनू के गर्दन पर दाग लगाने की ठान ली थी…
Bahot acha update 👌👌👌
 

namedhari

New Member
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Update dene ke liye dhanyvad,Chhota Magar shandar update aage ke update mein majedar hone wala hai Sonu aur sugna akele Rahane Wale Hain to Kya Sonu ko sugna ki gand milegi agale update ka intezar rahega.
 

Sanju@

Well-Known Member
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भाग 128

सोनू को निरुत्तर कर सुगना मुस्कुराने लगी। सोनू ने यह आश्वासन दे कर कि वह सुगना के साथ संभोग नहीं करेगा उसका मन हल्का कर दिया था।


चल ठीक बा …बस आधा घंटा सुगना ने आगे बढ़कर कमरे की ट्यूबलाइट बंद कर दी कमरे में जल रहा नाइट लैंप अपनी रोशनी बिखेरने लगा..


तभी सोनू ने एक और धमाका किया…


“दीदी बत्ती जला के…” सोनू ने अपने चेहरे पर बला की मासूमियत लाते हुए सुगना के समक्ष अपने दोनों हाथ जोड़ लिए…



अब सुगना निरुत्तर थी…उसका कलेजा धक धक करने लगा ..कमरे की दूधिया रोशनी में सोनू के सामने ....प्यार....हे भगवान..


अब आगे..

सुगना को संशय में देखकर सोनू और अधीर हो गया। वह सुखना के समक्ष घुटनों पर आ गया और हाथ जोड़कर बोला…

“दीदी बस आज एक बार… हम तोहार सुंदर शरीर एक बार देखल चाहत बानी… “

सुगना ने सोनू की अधीरता देख कर एक बार फिर उसे समझाने की कोशिश की..

“ई कुल काम लाज के ह…अइसे भी हमार तोहार रिश्ता अलगे बा…हमारा लाज लगता”

सुगना की आवाज में नरमी सोनू ने पहचान ली थी उसे महसूस हो रहा था कि सुगना पिघल रही है और शायद उसका अनुरोध स्वीकार कर लेगी।

वह घुटनों के बल एक दो स्टेप आगे बढ़ा और अपना चेहरा सुगना के पेट से सटकर उसे अपनी बाहों में भरने की कोशिश की और बोला…

“दीदी एह सुंदर शरीर के कल्पना हम कई महीना से करत रहनी हा..इतना दिन साथ में रहला के बाद भी इकरा के देखे खातिर हमार लालसा दिन पर दिन बढ़ल जाता। बनारस पहुंचला के बाद ई कभी संभव न होइ आज एक आखरी बार हमार इच्छा पूरा कर दा..”

आखिरकार सुगना ने सोनू के सर पर प्यार से हाथ फेर कर इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया उसके पास और कोई चारा भी न था। सोनू अब सुगना के परिवार का मुखिया बन चुका था और वह स्वयं उसे बेहद प्यार करती थी… उसकी इस उचित या अनुचित मांग को सुगना ने आखिरकार स्वीकार कर लिया।

सुगना की मौन स्वीकृति प्रकार सोनू बेहद प्रसन्न हो गया वह अपना चेहरा सुगना के सपाट पेट पर प्यार से रगड़ने लगा और उसकी हथेलियां सुगना की पीठ और कूल्हों के ऊपरी भाग को सहलाने लगी।

“ठीक बा सिर्फ आज बाद में कभी ई बात के जिद मत करीहे”

इतना कहकर सुगना ने अपने दोनों हाथों से अपनी नाईटी उतारने की कोशिश की परंतु सोनू ने रोक लिया..

“दीदी हम…” सोनू ने सुगना की नाभि को चूमते हुए कहा

सुगना के हाथ रुक गए सुगना आज सोनू का यह रूप देखकर थोड़ा आश्चर्यचकित भी थी और उत्सुक भी आखिर सोनू क्या चाहता था? क्या सोनू इतना बेशर्म हो चला था कि वह उसे अपने हाथों से उसे नग्न करना चाहता था।

क्या सोनू की नजरों में अब वह सम्मानित न रही थी…सुगना मन ही मन आहत हो गई उसने एक बार फिर सोनू से कहा..

“अब ते शायद हमार इज्जत ना करेले यही से ई अनुचित काम कईल चाहत बाड़े “

सोनू को सुगना की यह बात आहत कर गई। सुगना ने सोनू के लिए जो अब तक जो किया था वह उसका एहसान और उसका प्यार कभी नहीं भूल सकता था। आज सोनू जो कुछ भी था वह सुगना की वजह से ही था और पिछले एक हफ्ते में उसने सुगना के संसर्ग का जो अद्वितीय और अनमोल सुख प्राप्त किया था वह निराला था। सोनू सुगना के हर रूप का कायल था उसके लिए सुगना पूज्य थी.. आदरणीय थी प्यारी थी और अब वह सोनू का सर्वस्व थी। सुगना सोनू के हर उस रूप में जुड़ी हुई थी जिसमें स्त्री और पुरुष जुड़ सकते थे।

पिछले कुछ दिनों में सोनू सुगना से अंतरंग अवश्य हुआ था और संभोग के दौरान कई बार वासना के आवेग में उसने सुगना के प्रति आदर और सम्मान की सीमा को लांघा था पर अधिकांश समय उसने अपनी मर्यादा नहीं भूली थी।

सुगना की बात सुनकर सोनू ने सुगना के पैरों में अपना सर रख दिया और साष्टांग की मुद्रा में आ गया।

“दीदी ऐसा कभी ना हो सकेला हम तोहर बहुत आदर करें नी… बस एक बार ई खूबसूरत और अनूठा शरीर के देखे और प्यार करें के हमर मन बा..”

सोनू के समर्पण में सुगना के मन में उठे अविश्वास को खत्म कर दिया…

सुगना झुकी और उसने सोनू को वापस उठाने की कोशिश की और सुगना के स्नेह भरे आमंत्रण से एक बार फिर सोनू घुटने के बल बैठ चुका था…

“ठीक बा ले आपन साध बुता ले..” सुगना ने सोनू को खुला निमंत्रण दे दिया…सुगना का कलेजा धक-धक कर रहा था और सोनू की उंगलियां नाइटी को धीरे धीरे अपनी गिरफ्त में लेकर उसे धीरे-धीरे ऊपर उठाने लगीं।

नाईटी के टखनों के ऊपर आते-आते सुगना को अपनी नग्नता का एहसास होने लगा उसका छोटा भाई आंख गड़ाए उसकी खूबसूरत जांघों को देख रहा था।

सुगना वैसे भी संवेदनशील थी उसके शरीर पर पड़ने वाली निगाहों को बखूबी भांप लेती थी और आज तो सोनू साक्षात उसकी नग्न जांघों का दर्शन दूधिया रोशनी में कर रहा था।

जांघों के जोड़ पर पहुंचते पहुंचते सुगना का सब्र जबाव देने लगा उसने सोनू के सर पर उंगलियां फिराकर उसे इशारे से रोकने की कोशिश की परंतु सोनू अधीर हो चुका था उसने सुगना की नाइटी सुगना की जांघों के ऊपर कर दी।

सुगना अपनी सफेद पैंटी का शुक्रिया अदा कर रही थी जो अभी भी उसकी आबरू को घेरे हुए थी।

जिस प्रकार आक्रांताओं के आक्रमण के पश्चात पूरा राज्य छिन जाने के बाद भी राज्य की रानी किले के भीतर कुछ समय के लिए अपने आप को सुरक्षित महसूस करती है इस प्रकार सुगना की बुर पेंटी रूपी किले में खुद को सुरक्षित महसूस कर रही थी।

सोनू सुगना की नग्न जांघों और सुगना के वस्ति प्रदेश को लगातार देखे जा रहा था पेटी के ठीक ऊपर सुगना का सपाट पेट और खूबसूरत नाभि सोनू को उन्हें चूमने के लिए आमंत्रित कर रही थी।

कुछ देर तक सुगना के खूबसूरत अधोभाग को जी भर कर निहारने के बाद सोनू ने अपने होंठ सुगना के गोरे और सपाट पेट से सटा दिए वह सुगना को बेतशाशा चूमने लगा…

सुगना के बदन की खुशबू सोनू को मदहोश किए जा रही थी…

“ दीदी तू त भगवान के देन हऊ , केहू अतना सुंदर कैसे हो सकेला…” सोनू एक बार फिर सुगना को चूमे जा रहा था..

प्रशंसा सभी को प्रिय होती है और स्त्रियों को उनके तन-बदन की प्रशंसा सबसे ज्यादा पसंद होती है। सुगना भी सोनू की प्रशंसा से अभिभूत हो गई उसने सोनू के सर पर एक बार फिर प्यार से चपत लगाई और बोली..

“अब हो गइल …नू ?”

सोनू ने कोई उत्तर ना दिया अपितु सुगना की नाइटी को और ऊंचा कर उसकी चूचियों के ठीक नीचे तक ला दिया..

सुगना समझ चुकी थी कि सोनू का मन अभी नहीं भरा था उसने सोनू से कहा

“अच्छा रुक, हमरा के बिस्तर पर बैठ जाए दे।”

सुगना बिस्तर के किनारे पर आ गई और सोनू सुगना की जांघों के बीच छुपी बुर को देखने के लिए आतुर हो उठा….

अचानक ही सोनू की सुगना की खूबसूरत चुचियों का ध्यान आया जिन्हें पैंटी में कैद सुगना की अनमोल बुर को देखकर सोनू भूल चुका था।


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सोनू ने सुगना की नाइटी को और ऊपर कर सुगना के शरीर से लगभग बाहर कर दिया और उसे दूर करने की कोशिश की परंतु सुगना ने अपनी नाईटी से ही अपने चेहरे को ढक लिया वह इस अवस्था में सोनू से नजरे नहीं मिलना चाह रही थी।

सोनू ने इस पर कोई आपत्ति दर्ज नहीं की और वह सुगना की खूबसूरत चुचियों को ब्रा की कैद से आजाद करने में लग गया।

सुगना की फ्रंट हुक वाली ब्रा का आखरी हुक आखिर कर फस गया और सोनू की लाख कोशिशें के बाद भी वह नहीं निकल रहा था जितना ही सोनू प्रयास कर रहा था बहुत उतना ही उलझ जा रहा था अंततः सोनू ने मजबूर होकर सुगना की ब्रा पर बल प्रयोग किया और हुक चट्ट की आवाज से टूट कर अलग हो गया। सुगना सोनू की अधीरता देख मुस्कुरा रही थी उसने फुसफुसाते हुए कहा

“अरे अतना बेचैन काहे बाड़े आराम से कर”

सोनू शर्मिंदा था पर अपने लक्ष्य सुगना की चूचियों को जी भर देखते हुए वह उन्हें अपनी हथेलियों से सहलाने लगा वह बार-बार अंगूठे से सुगना के खूबसूरत निप्पल को छूता और फिर तुरंत ही अपने अंगूठे को वहां से हटा लेता उसके मन में अब भी कहीं ना कहीं यह डर था कि कभी भी सुगना का प्रतिरोध आड़े आ सकता है और उसकी कामुक कल्पनाओं को फिर विराम लग सकता है।

सुगना की चुचियों में जादुई आकर्षण था। सुगना की नंगी चूचियां ट्यूब लाइट की रोशनी में और भी चमक रही थी। संगमरमर सी चमक और अफगानी सिल्क सी कोमलता लिए सुगना की चूचियां सोनू को आमंत्रित कर रही थी। सोनू से और रहा न गया उसने अपने होठों को गोल किया और सुगना की एक चूची को अपने मुंह में भर लिया।

सुगना इस अप्रत्याशित हमले के लिए तैयार न थी। परंतु अब वह सोनू की वासना के गिरफ्त में आ चुकी थी। एक पल के लिए उसे लगा कि वह सोनू के सर को अपने बदन से दूर धकेल दे परंतु उसने ऐसा ना किया। सोनू कभी उन चूचियों को निहारता कभी सहलाता और कभी अपने होठों से सुगना के मादक निप्पल को चूमता चाटता…

सोनू दुग्ध कलशो के बीच उलझ कर रह गया था…शायद वह कुछ मिनटों के लिए भूल गया था की सुगना की जांघों के बीच जन्नत की घाटी उसका इंतजार कर रही थी..

उधर अपनी चुचियों का मर्दन और सोनू के प्यार से सुगना के मन में भी वासना हिलोरे मारने लगीं। कुछ समय के लिए सुगना आनंद में सराबोर और होकर सोनू के साथ प्रेम का आनंद लेने लगी…अपनी जांघों के बीच रिसती हुई बुर की लार को महसूस कर उसे अपनी नग्नता का एहसास हुआ और उसने सोनू के सर को हल्का धकेलते हुए कहा..

“सोनू अब छोड़ आधा घंटा खातिर कहले रहे अब छोड़…अब हो गइल नू सब त देखिए ले ले”

सोनू ने अपना सर उठाया और दीवार की तरफ घड़ी में देखा अभी कुल 10 मिनट भी नहीं बीते थे। उसने सुगना की तरफ देखते हुए कहा.. जो अभी भी अपना चेहरा अपनी नाईटी से छुपाए हुए थी।

“दीदी जल्दी बाजी मत कर अभी 10 मिनट भी नईखे बीतल बस आज भर हमर मन रख ल “

सुगना ने भी एक बार दीवाल की तरफ देखा और फिर धीमे से बोली

“ठीक बा लेकिन अब इकरा के छोड़ दे…”

सुगना ने अपनी दोनों हथेलियां से अपनी चूचियों को ढकने का प्रयास किया।

सोनू को शरारत सूझ रही थी.. उसने सुगना की दोनों कोमल हथेलियां को अपने हाथों से पकड़ा और एक बार फिर उसकी चूचियों को नग्न कर दिया और बेहद उत्तेजक स्वरूप में बोला


“दीदी बोल ना केकरा के छोड़ दी….”

सोनू ने सुगना की हथेलियां पकड़ रखी थी सोनू के इस प्रश्न का आशय सुगना अच्छी तरह समझ चुकी थी कि सोनू क्या सुनना चाह रहा है परंतु उसने अपनी उंगलियों से एक बार फिर चूचियों की तरफ इशारा किया और अपनी हंसी पर नियंत्रण रखते हुए बोला कि


“ते जानत नईखे एकरा के कहत बानी.”

सोनू समझ सब कुछ रहा था तुरंत वह सुगना से और खुलने चाहता था

“दीदी एक बार बोल ना तोरा मुंह से हर बात अच्छा लगेला और ई कुल सुने खातिर तो हमार कान तरसे ला”


आखिर कर सुगना ने सोनू को निराश ना किया और अपनी शर्म को ताक पर रखते हुए अपने कामुक अंदाज में बोली..

“सोनू बाबू हमार चूंची के छोड़ दे…”

सुगना के मुंह से चूंची शब्द सुनकर सोनू के खड़े हुए लंड में एक करंट सी दौड़ गई उसने सुगना के आदेश की अवहेलना करते हुए एक बार फिर अपने होठों से सुगना के दोनों निप्पल को कस कर चूस लिया…

सुगना सीत्कार भर उठी…उससे और उत्तेजना सहन न हुई उसने बेहद कामुक अंदाज में बोला

“सोनू बाबू तनी धीरे से ……दुखाता”

सुगना के मुंह से यह बातें सुनकर जैसे सरयू सिंह की उत्तेजना चरम पर पहुंच जाती थी वही हाल सोनू का था। उसने सुगना की चूचियों पर से अपने होठों का दबाव हटाया और उन्हें चूमते हुए आजाद हो जाने दिया।

उधर सुगना की बुर सुगना के आदेश के बिना अपने होठों पर प्रेम रस लिए प्रेम युद्ध के लिए तैयार हो चुकी थी।

सोनू ने सुगना की चूचियां तो छोड़ दी परंतु धीरे-धीरे सुगना को चूमते हुए नाभि की तरफ पहुंचने लगा। सुगना बेचैन हो रही थी परंतु उसने अपने बदन से खेलने के लिए जो अनुमति सोनू को दी थी सोनू ने उसका अतिक्रमण नहीं किया था। सुगना सोनू की उत्तेजक गतिविधियों को स्वीकार करती रही और अपनी उत्तेजना पर नियंत्रण पाने का विफल प्रयास करती रही।

उधर सुगना की बुर उसकी पैंटी के निचले भाग को पूरी तरह गीला कर चुकी थी …सुगना के वस्ति प्रदेश पर उसकी बुर से रिस रहे प्रेम रस की मादक सुगंध छाई हुईं थी जो सोनू को उस रहस्यमई गुफा की तरफआकर्षित कर रही थी।

आखिर कार सोनू के होंठ सुगना की पैंटी तक पहुंच चुके थे…

सोनू ने अपना चेहरा ऊपर उठाया और एक बार फिर सुगना के खूबसूरत वस्ति प्रदेश का मुआयना किया। खूबसूरत जांघों के बीच सुगना का त्रिकोणीय वस्ति प्रदेश और उसके नीचे गीली पैंटी के पीछे सुगना के बुर के होठों के उभार सोनू को मदहोश कर रहे थे। सोनू सुगना की बुर देखने के लिए लालायित हो उठा।

सोनू ने अपनी उंगलियों को सुगना की पैंटी के दोनों तरफ फसाया और उसे धीरे-धीरे नीचे खींचने लगा। सुगना कसमसा कर रह गई।एक तो वह सोनू के सामने इस प्रकार नग्न होना कतई नहीं चाहती थी दूसरी ओर उसकी बुर प्रेम रस से भरी हुई उसकी उत्तेजना को स्पष्ट रूप प्रदर्शित कर रही थी। सुगना स्वाभाविक रूप से अपनी उत्तेजना को सोनू से छुपाना चाह रही थी।

सुगना ने हिम्मत जुटाकर एक बार फिर कहा..

“सोनू नीचे हाथ मत लगइहे …”

सोनू ने तुरंत ही सुगना की बात मान ली और अपनी उंगलियों को सुगना की पेंटिं से अलग कर दिया परंतु अगले ही पल अपने दांतों से सुगना की पेंटिं को नीचे खींचने लगा कभी कमर के एक तरफ से कभी दूसरे तरफ से..

सोनू के होठों से निकल रही गर्म सांसे जब सुगना के नंगे पेट पर पड़ती ह सुग़ना तड़प उठती।

धीरे धीरे सुगना की पैंटी लगभग लगभग बुर के मुहाने तक पहुंच चुकी थी परंतु जब तक सुगना अपनी कमर ऊपर ना उठाती पेटी का बाहर आना संभव न था।

सोनू के लाख जतन करने के बाद भी पेटी उससे नीचे नहीं आ रही थी सोनू का सब्र जवाब दे रहा था उसने सुगना की बुर को पेंटी के ऊपर से ही अपने होठों के बीच भरने की कोशिश की परंतु सुगना के आदेश अनुसार अपने हाथ न लगाएं।


सुगना सोनू की मंशा भली भांति जानती थी। इससे पहले भी वह एक बार सोनू के जादूई होठों का स्पर्श अपनी बुर पर महसूस कर चुकी थी।

अपनी उत्तेजना से विवश और अपने भाई सोनू को परेशान देखकर सुगना का मन पिघल गया और आखिर कार सुगना ने अपनी कमर को ऊंचा कर दिया। सोनू बेहद प्रसन्न हो गया उसने कुछ ही क्षणों में सुगना की सफेद पैंटी को उसकी खूबसूरत से जांघों से होते हुए पैरों से बाहर निकाल दिया और अब उसकी सम्मानित बहन सुगना पूरी तरह नग्न उसके समक्ष थी..

सोनू अपनी पलके झपकाए बिना, एक टक सुगना को निहार रहा था। कितना मादक बदन था सुगना का। जैसे विधाता ने अपनी सबसे खूबसूरत अप्सरा को इस धरती पर भेज दिया हो। सुगना के बदन के सारे उभार और कटाव सांचे में ढले हुए थे। सोनू की निगाहें उसके संगमरमरी बदन पर चूचियों से लेकर उसकी जांघों तक फिसल रहीं थी और उसकी खूबसूरती निहार रही थी। उधर सुगना सोनू की नजरों को अपने बदन पर महसूस कर रही थी और अपनी नग्नता का अनुभव कर रही थी।

दोनों जांघों के जोड़ पर सुगना की खूबसूरत बर बेहद आकर्षक थी.. उस पर छलक रहा प्रेम रस उसे और भी खूबसूरत बना रहा था..

नग्नता स्वयं उत्तेजना को जाग्रत करती है।

सुगना ने अपनी बुर को सोनू की नजरों से छुपाने के लिए अपनी दोनों जांघों को एक दूसरे पर चढाने की कोशिश की परंतु सोनू ने तुरंत ही सुगना की दोनों पिंडलियों को अपनी हथेलियां से पकड़कर उन्हें वापस अलग कर दिया और बेहद प्यार से बोला..

“दीदी मन भर देख लेबे दे भगवान तोहरा के बहुत सुंदर बनावले बाड़े..”

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सुगना की बुर पर छलक रहा प्रेम रस ठीक वैसा ही प्रतीत हो रहा था जैसे किसी ताजे फल को चीरा लगा देने पर उससे फल का रस छलक आता है। जब सुगना ने अपनी जांघें सटाने का प्रयास किया था तब भी उसकी बुर से प्रेम रस की बूंदें छलक कर उसके गुदा द्वार की तरफ अपना रास्ता तय करने लगीं र थी..। सुगना ने अपना हाथ बढ़ाकर अपनी बुर से छलके प्रेम रस को पोंछना चाहा परत सोनू ने सुगना का हाथ बीच में ही रोक दिया।

सोनू सुगना का आशय समझ चुका था अगले ही पल सोनू की लंबी जीभ में सुगना की बुर से छलके प्रेम रस को और आगे जाने से रोक लिया और वापस उसे सुगना की बुर के होठों पर उसे लपेटते अपनी जीभ से सुगना के दाने को सहला दिया. सुगना उत्तेजना से तड़प उठी उसने अपने दोनों जांघों को फिर सटाने की कोशिश की परंतु उसकी दोनों कोमल जांघें सोनू के गर्दन पर जाकर सट गईं। सोनू को सुगना की यह प्रतिक्रिया स्वाभाविक लगी उत्तेजना चरम पर थी सोनू बेहद सावधानी से सुगना की बुर को चूम रहा था और अपनी जीभ से उसके होठों को सहला रहा था…


धीरे-धीरे सोनू की जीभ और उसके होंठ अपना कमाल दिखाने लगे सोनू लगातार अपनी खूबसूरत बहन सुगना की जांघों को सहलाए जा रहा था और बीच-बीच में उसके पेट और चूचियों को सहलाकर सुगना कर को और उत्तेजित कर रहा था।

सुगना उत्तेजना के चरम पर पहुंच चुकी थी वह बुदबुदाने लगी

“सोनू अब बस हो गएल …..आह….छोड़ दे….. आह….बस बस……. तनी धीरे से…….आई…. सुगना अपनी उत्तेजना को नियंत्रित करना चाहती थी परंतु शायद यह उसके बस में ना था। सोनू की कुशलता सुगना को स्खलन के लिए बाध्य कर रही थी। सुगना की मादक कराह सोनू के कानों तक पहुंचती और सोनू पूरी तन्मयता से सुगना को स्खलित करने के लिए जुट जाता।

और पूरी कार्य कुशलता से सुगना की बुर और उसके दाने को चूमने लगता अंततः सुगना उत्तेजना में अपनी सुध बुध खो बैठी । एक तरफ वह अपने पैर की एड़ी से सोनू की पीठ पर धीरे-धीरे प्रहार कर रही थी और उसे ऐसा करने से रोक रही थी जबकि दूसरी तरफ उसकी बुर उत्तेजना से फुल कर उछल-उछल कर सोनू के होठों से संपर्क बनाए हुए थी और स्खलन के लिए पूरी तरह तैयार थी..



सुगना ने अपनी कमर ऊपर उठाई और अमृत कलश से ढेर सारा प्रेम रस उड़ेल दिया सोनू सुगना की बुर के कंपन महसूस कर रहा था और अंदर से फूट पड़ी रसधारा को अपने होठों नाक और ठुड्ढी तक महसूस कर रहा था। उसने सुगना के कंपन रुक जाने तक अपने होठों को सटाए रखा और उसकी जांघों को सहलाता रहा… तथा उसके एड़ियों के प्रहार को अपनी पीठ पर बर्दाश्त करता रहा…सुगना की उत्तेजना के इस वेग को उसका छोटा भाई सोनू बखूबी संभाल ले गया था। धीरे-धीरे सुगना की उत्तेजना का तूफान थम गया और सोनू ने कुछ पल के लिए स्वयं को सुगना से दूर कर लिया … सुगना ने तुरंत ही करवट ले ली और वह पेट के बल लेट कर कुछ पलों के लिए बेसुध सी हो गई।


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स्खलन का सुख अद्भुत होता है और आज जिस कामुकता के साथ सुगना स्खलित हुई थी यह अनूठा था..अलौकिक था। पेट के बल लेटने के पश्चात सुगना को अपनी नग्नता का एहसास भी कुछ पलों के लिए गायब सा हो गया था। वह अपनी सांसों को नियंत्रित करने का प्रयास कर रही थी।

उधर सोनू अपनी सुगना को तृप्त करने के बाद उसके नग्न कूल्हों और जांघों के पिछले भाग को निहार रहा था..कुछ समय के पश्चात सुगना ने सोनू की उंगलियों को अपनी जांघों पर महसूस किया जो धीरे-धीरे सुगना के पैर दबा रहा था।

सुगना ने अपना चेहरा एक बार और दीवार की तरफ किया घड़ी में अभी 5 मिनट बाकी थे सुगना ने कोई प्रतिरोध न किया और सोनू को अपनी जांघों से खेलने दिया। परंतु सोनू आज सारी मर्यादाएं लांघने पर आमादा था। कुछ ही देर वह सुगना के कूल्हों तक पहुंच गया उसके कूल्हों को सहलाते सहलाते न जाने कब उसने सुगना के दोनों कूल्हों को अपने हाथों से अलग कर फैला दिया और सुगना की खूबसूरत और बेहद ही आकर्षक छोटी सी गुदांज गांड़ उसकी निगाहों के सामने आ गई।

यह वह अद्भुत गुफा थी जिसे भोगने के लिए सरयू सिंह वर्षों प्रयास करते रहे थे और जिसे भोगने की सजा उन्हें ऐसी मिली थी कि सुगना उनसे हमेशा के लिए दूर हो गई थी।


सोनू उसे खूबसूरत छेद को देखकर मंत्रमुग्ध हो गया। सुगना निश्चित ही तौर पर रहस्यमई थी उसका एक-एक अंग एक-एक महाकाव्य की तरह था जिसे सोनू एक-एक कर पढ़ने का प्रयास कर रहा था । परंतु अभी वह इस विधा में एक अबोध बालक की तरह था…।

सुगना को जैसे ही एहसास हुआ कि सोनू उसकी गुदाज गांड़ को देख रहा है उसने अपने कूल्हे सिकोड़ लिए और झटके से उठ खड़ी हुई और थोड़ी तल्खी से बोली…

“अब बस अपन मर्यादा में रहा ज्यादा बेशर्म मत बन..”

सोनू सावधान हो गया परंतु उसने जो देखा था वह उसके दिलों दिमाग पर छप गया था…

सुगना अद्भुत थी अनोखी थी…और उसका हर अंग अनूठा था अलौकिक था। आधे घंटे का निर्धारित समय बीत चुका था..

सोनू और सुगना एक दूसरे के समक्ष पूरी तरह नग्न खड़े थे सोनू की निगाहें झुकी हुई थी वह सुगना के अगले निर्देश का इंतजार कर रहा था…


शेष अगले भाग में…
बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है सूरज का सुगना के प्रति प्रेम का सुंदर वर्णन किया है
 

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भाग 129

सुगना को जैसे ही एहसास हुआ कि सोनू उसकी गुदाज गांड़ को देख रहा है उसने अपने कूल्हे सिकोड़ लिए और झटके से उठ खड़ी हुई और थोड़ी तल्खी से बोली…


“अब बस अपन मर्यादा में रहा ज्यादा बेशर्म मत बन..”

सोनू सावधान हो गया परंतु उसने जो देखा था वह उसके दिलों दिमाग पर छप गया था…

सुगना अद्भुत थी अनोखी थी…और उसका हर अंग अनूठा था अलौकिक था। आधे घंटे का निर्धारित समय बीत चुका था..


सोनू और सुगना एक दूसरे के समक्ष पूरी तरह नग्न खड़े थे सोनू की निगाहें झुकी हुई थी वह सुगना के अगले निर्देश का इंतजार कर रहा था…

अब आगे…


इंतजार …इंतजार …. हर तरफ इंतजार…उधर बनारस में सोनी और लाली, सुगना और सोनू का इंतजार करते-करते थक चुके थे। रात के 11:00 रहे थे और अब उनका सब्र जवाब दे रहा था।

सोनी अपने कॉलेज का कार्य निपटाकर सोने की तैयारी में थी और लाली भी सोनू का इंतजार करते-करते अब थक कर सोने का मन बना चुकी थी। उसने अपनी सहेली और सोनू के लिए खाना बना कर रखा था परंतु ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे अब उनके आने की संभावना कम ही थी।

रात गहरा रही थी और उधर लखनऊ में सुगना अपने छोटे भाई सोनू की मनोकामना पूरी कर रही थी..जो अनोखी थी और निराली थी..

छोटा सोनू अब शैतान हो चुका था परंतु सुगना तब भी उसे बहुत प्यार करती थी और अब भी।

अगली सुबह पूरे परिवार के लिए निराली थी…

सोनू और सुगना के बीच बीती रात जो हुआ था वह अनूठा था…सोनू और सुगना ने आज मर्यादाओं की एक और सीमा लांघी थी जिसका असर सोनू के दाग पर स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था और अब वह बरबस सब का ध्यान खींच रहा था..

सुबह जब सुगना गुसल खाने से बाहर आई सोनू दर्पण में अपने इस दाग को निहार रहा था।

सुगना को अपनी ओर देखते हुए जानकर सोनू ने कहा ..

“दीदी तु साच कहत बाडू…देख ना दाग कितना बढ़ गईल बा । “

सुगना ने भी महसूस किया दाग कल की तुलना में और बढ़ा हुआ था।


“देख सोनू तू जवन रात में हमारा साथ कईला ऊ वासना के अतिरेक रहे अपना मन पर लगाम लगवा और हमारा से कुछ दिन दूर ही रहा… हमारा लगता कि हमारा से दूर रहला पर तहर ई दाग धीरे-धीरे खत्म हो जाए।”

सुगना यह बात महसूस कर चुकी थी कि सोनू की गर्दन का दाग और सरयू सिंह के माथे के दाग में निश्चित ही कुछ समानता थी। जब-जब सरयू सिंह सुगना के साथ लगातार वासना के भंवर में गोते लगाते और उचित अनुचित कृत्य करते उनके माथे का दाग बढ़ता जाता।

यद्यपि सुगना की सोच का कोई पुष्ट आधार नहीं था परंतु दोनों दागों के जन्म उनके बढ़ने और कम होने में समानता अवश्य थी…


लगभग यही स्थिति सोनू की भी थी बीती रात उसने जो किया था नियति ने उसकी कामुकता और कृत्य का असर उसके गर्दन पर छोड़ दिया था नियति अपनी बहन के साथ किए गए कामुक क्रियाकलापों के प्रति सोनू को लगातार आगाह करना चाहती थी।

सोनू को इस बात का कतई यकीन नहीं हो रहा था कि इस दाग का संबंध किसी भी प्रकार से सुगना के साथ किए जा रहे संभोग से था। वैज्ञानिक युग का पढ़ा लिखा सोनू इस बात पे यकीन नहीं कर पा रहा था…

परंतु सोनू को इस बात का इलाज ढूंढना जरूरी था। इतने सम्मानित पद पर उसका कई लोगों से रोज मिलना जुलना होता था निश्चित ही यह दाग आम लोगों की नजर में आता और सोनू को बेवजह लोगों से ज्ञान लेना पड़ता या अपनी सफाई देनी पड़ती।


दाग हमेशा दाग होता है वह आपके व्यक्तित्व में एक कालिख की तरह होता है जिसे कोई भी व्यक्ति स्वीकार नहीं कर सकता सोनू के लिए दाग अब तनाव का कारण बन रहा था।

सुगना ने सोनू को अपने दाग पर क्रीम लगाकर रखने की सलाह दी और उसे इस बात को लाली से और सभी से छुपाने के लिए कहा विशेष कर यह बात कि इस दाग का असर कही न कहीं सुगना के साथ कामुक संबंधों से है।

“ ते लाली से नसबंदी और पिछला सप्ताह हमनी के बीच भइल ई कुल के बारे में कभी बात मत करिहे “

सोनू ने मुस्कुराते हुए सुगना की तरफ देखा और उसे छेड़ता हुए बोला..

“हम त बतायब हमरा सुगना दीदी कामदेवी हई….”

सुगना प्यार से सोनू की तरफ उसे मारने के लिए आगे बढ़ी पर सोनू ने उसे अपने आलिंगन में भर लिया।

सोनू खुद भी यह बात सुगना से कहना चाह रहा था। भाई बहन इस राज को राज रखने में अपनी सहमति दे चुके थे यही उचित था परंतु इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपाते यह बात शायद सोनू और सुगना भूल चुके थे।

कुछ ही देर बाद सोनू सुगना और दोनों बच्चे बनारस के लिए निकल चुके थे छोटा सूरज भी अपने मामा के गर्दन पर लगे दाग को देखकर बोला

“ मामा ये चोट कैसे लग गया है…”

सोनू किस मुंह से बोलता कि यह उसकी मां को कसकर चोदने के करने के कारण हुआ है..सोनू मन ही मन मुस्कुराने लगा था। सुगना स्वयं सूरज के प्रश्न पर अपनी मुस्कुराहट नहीं रोक पा रही थी।

सोनू ने सूरज के प्रश्न का उत्तर न दिया अपितु आइसक्रीम के लिए पूछ कर उसका ध्यान भटका दिया।

सोनू और सुगना सपरिवार हंसते खेलते बनारस की सीमा में प्रवेश कर चुके थे और कुछ ही देर बाद उनकी गाड़ी सुगना के घर पर खड़ी थी। लाली की खुशी का ठिकाना न था वह भाग कर बाहर आई और अपनी सहेली सुगना के गले लग गई। आज भी वह सुगना से बेहद लगाव रखती थी। सोनू ने आगे बढ़कर गाड़ी से सारा सामान निकाला और घर के अंदर पहुंचा दिया। सोनू ने एक बार फिर लाली के चरण छूने की कोशिश की परंतु लाली ने सोनू को रोक लिया और स्वयं उसके आलिंगन में आ गई यह आलिंगन भाई-बहन के आलिंगन के समान भी था और अलग भी।

आलिंगन से अलग होते हुए लाली सोनू के सुंदर मुखड़े को निहार रही थी तभी उसका ध्यान सोनू के गर्दन के दाग पर चला गया

“अरे तोहरा गर्दन पर ही दाग कैसे हो गइल बा ?”

जिसका डर था वही हुआ। सोनू के उत्तर देने से पहले ही सुगना बोल पड़ी

“अरे कुछ कीड़ा काट देले बा दु चार दिन में ठीक हो जाए”

लाली अपने पंजों के ऊपर खड़ी होकर सोनू के गर्दन के दाग को और ध्यान से देखने लगी…

“ सुगना… ऐसा ही दाग सरयू चाचा के माथा पर भी रहत रहे.. हम तो दो-तीन साल तक उनका माथा पर ई दाग देखत रहनी कभी दाग बढ़ जाए कभी कम हो जाए ..कोनो बीमारी ता ना ह ई ?”

“हट पागल देखिए दो-चार दिन में ठीक हो जाए। चल कुछ खाना-वाना बनावले बाड़े की खाली बकबक ही करत रहबे “

सुगना ने इस बातचीत को यही अंत करने का सोचा परंतु सोनू लाली की बातों को बड़े ध्यान से सुन रहा था।

यदि इस दाग का संबंध सुगना के साथ संभोग से है तो यह दाग सरयू चाचा के माथे पर कैसे?। सोनू भली भांति जान चुका था कि सरयू सिंह सुगना के पिता हैं पर सामाजिक रिश्ते में सुगना उनकी बहु थी।


ऐसा कैसे हो सकता है …सोनू का दिमाग कई दिशाओं में दौड़ने लगा। जब-जब सोनू के विचार अपना रास्ता इधर-उधर भटकते सरयू सिंह का तेजस्वी चेहरा और मर्यादित व्यक्तित्व सोनू के विचारों को भटकने से रोक लेता। सोनू को कुछ समझ नहीं आ रहा था। सरयू सिंह और सुगना के बीच इस प्रकार के संबंध सोनू की कल्पना से परे था।

उधर लाली बेहद प्रसन्न थी आज वह और उसकी बुर सोनू के स्वागत के लिए पूरी तरह से तैयार थी। शाम होते होते सोनी भी अपने कॉलेज से आ चुकी थी। सोनू अपने गर्दन का दाग सोनी से छुपा कर उसके प्रश्नों से बचना चाहता था.. परंतु नियति ने यह दाग ऐसी जगह पर छोड़ा था जिसे छुपाना बेहद कठिन था। कुछ ही देर बाद सोनी ने सोनू के दाग पर एक और प्रश्न कर जड़ दिया..

“अरे ई सोनू भैया के गर्दन पर का हो गैल बा”

सोनू को असहज देखकर इस बार सुगना की जगह लाली ने वही उत्तर देकर सोनी को शांत करने की कोशिश की जो सुगना ने उसे दिया था। परंतु सोनी ने नर्सिंग की पढ़ाई की हुई थी वह अपने आप को डॉक्टर से कम ना समझती थी। उसने सोनू के गर्दन के दाग का मुआयना किया परंतु उसका कारण और निदान दोनों ही उसके बस में ना था।

यह दाग जितना अनूठा था उसका कारण भी और इलाज भी उतना ही अनूठा था।

लाली भी सोनू के इस दाग को लेकर चिंतित हो गई थी पर चाह कर भी सरयू सिंह और सोनू के दागों को आपस में लिंक करने में नाकामयाब रही थी।

शाम को पूरा परिवार हंसते खेलते पिछले हफ्ते की घटनाक्रमों को आपस में साझा कर रहा था। सिर्फ सोनू और सुगना सावधान थे। जब-जब जौनपुर की बात आती सुगना सोनू के घर की तारीफ करने में जुट जाती। लाली और सोनी भी सोनू के जौनपुर वाले घर में जाने को लालायित हो उठीं। परंतु सोनू अभी पूर्णतया तृप्त था। सुगना की करिश्माई बुर ने उसके अंदर का सारा लावा खींच लिया था। लाली को देने के लिए न तो उसके पास न

उत्तेजना थी और न हीं अंडकोषों में दम और सोनी के प्रति उसके मन में कोई भी ऐसे वैसे विचार न थे।

सोनू खुद थका हुआ महसूस कर रहा था। और हो भी क्यों ना पिछले सप्ताह सुगना का खेत जोतने में की गई जी तोड़ मेहनत और फिर आज का सफर.. सोनू को थका देने के लिए काफी थे।

उधर सोनू से संभोग के लिए लाली पूरी तरह उत्साहित थी और सोनू अपने दाग को लेकर चिंतित.. सोनू के मन में मिलन का उत्साह न था यह बात लाली नोटिस कर रही थी और आखिरकार उसने सुगना से पूछा ..

“सोनुआ काहे उदास उदास लागत बा देह के गर्मी कहां गायब हो गैल बा। आज त हमारा पीछे-पीछे घूमते नईखे। का भइल बा ?”

सुगना क्या कहती …जिसने सुगना को एक हफ्ते तक लगातार भोगा हो उसे सुगना को छोड़कर किसी और के साथ संभोग करने में शायद ही दिलचस्पी हो..

सोनू तृप्त हो चुका था उसके दिलों दिमाग में सिर्फ और सिर्फ सुगना घूम रही थी..

सोनू के मन में लाली से मिलन को लेकर उत्साह की कमी को सुगना ने भी बखूबी नोटिस किया …जहां एक और लाली चहक रही थी वहीं सोनू बेहद शांत और खोया खोया था।

मौका पाकर सुगना ने सोनू से कहा..

“लाली कितना दिन से तोर इंतजार करत बाड़ी ओकर सब साध बुता दीहे..”

“ आज ना …दीदी आज हमार मन मन नईखे “

“लाली के शक हो जाई ..अपना दीदी खातिर लाली के मन रख ले… मन ना होखे तब भी… एक बार कल रात के खेला याद कर लीहे मन करे लागी..”

सुगना हाजिर जवाब भी थी और शरारती भी. कल रात की बात सोनू को याद दिला कर उसने सोनू का मूड बना दिया.. सोनू के दिलों दिमाग में बीती रात के कामुक दृश्य घूमने लगे.. सोनू का युवराज भी आलस छोड़ उठ खड़ा हुआ।

रात गहराने लगी और सब अपनी अपनी जगह पर चले सोने चले गए। सोनू को लाली धीरे-धीरे अपने कमरे की तरफ ले गई।

घर में सभी सदस्यों के सोने के पश्चात लाली.. सोनू के करीब आती गई और सोनू …बीती रात सुगना के साथ बिताए गए पलों को याद करता रहा और उसका लन्ड एक बार फिर अपनी पुरानी पिच पर धमाल मचाने पर आमादा था..।

लाली ने जी भर कर सोनू पर अपना प्यार लुटाया और सोनू ने भी सुगना को याद करते हुए लाली को तृप्त कर दिया..

वासना का तूफान शांत होते ही लाली ने सोनू से फिर उस दाग को देख रही थी।

लाली कभी दाग को सरयू सिंह के माथे के दाग से तुलना करती कभी उसे सुगना के उत्तर से..

यह दाग अनोखा था और कीड़े काटने के दाग से बिल्कुल अलग था…

सुबह की सुनहरी धूप खिड़कियों की दरारों से रास्ता तलाशती सुगना के कमरे में प्रवेश कर चुकी थी। सूरज की चंचल किरणें सुगना के गालों को चूमने का प्रयास कर रहीं थी.. और इस कहानी की नायिका बिंदास सो रही थी पिछले हफ्ते उसने सोनू की मर्दानगी को जीवंत रखने के लिए लिए जो किया था उसमें वह स्वयं भी तन मन से शामिल हो गई थी।

सुगना के लिए पिछला सप्ताह एक हनीमून की तरह था सोनू और सुगना ने जी भरकर इस सप्ताह का सदुपयोग किया था…

सूरज की किरणों को अपनी पलकों पर महसूस कर सुगना की नींद खुल गई। वह अलसाते हुए बिस्तर से उठी और कुछ ही देर बाद सुगना का घर एक बार फिर जीवंत हो गया..

बच्चों का कोलाहल और सुबह तैयार होने की भाग दौड़ …सोनी भी कॉलेज जाने के लिए तैयार हो रही थी उसे आज तक सोनू और लाली के संबंधों के बारे में भनक न थी।


स्नान करने के पश्चात सुगना की खूबसूरती दोगुनी हो जाती थी । उसका तन-बदन खिले हुए फूलों की तरह दमक उठता था। सुगना के चेहरे पर तृप्ति का भाव था जैसा संभोग सुख प्राप्त कर रही नव सुहागिनों के चेहरे पर होता है।

लाली ने सुगना को इतना खुश और तृप्त कई दिनों बाद देखा था…वह खुद को नहीं रोक पाई और सुगना से बोली..

“लगता सोनूवा तोर खूब सेवा कइले बा देह और चेहरा चमक गईल बा..”

हाजिर जवाब सुगना बोली..

“अरे हमर भाई ह हमार सेवा ना करी त केकर करी?

सुगना ने उत्तर देकर लाली कोनिरुत्तर कर दिया.. सुगना भलीभांति समझ चुकी थी की लाली उससे कामुक मजाक करना चाह रही है पर उसने उसकी चलने ना दी.

“दीदी हम कालेज जा तानी” सोनी चहकते हुए कॉलेज के लिए निकलने लगी। जींस में अपने गदराए हुए कूल्हों को समेटे सोनी पीछे से बेहद मादक लग रही थी। सुगना और सोनी दोनों की निगाहें उसके मटकते हुए कूल्हों पर थीं।

लाली से रहा नहीं गया वह सुगना की तरफ देखते हुए बोली

“सोनी पूरा गदरा गईल बिया …पहले सब केहू आपन सामान छुपावत रहे ई त मटका मटका के चलत बीया”

सुगना भी सोनी में आए शारीरिक परिवर्तन को महसूस कर रही थी पिछले कुछ महीनो में उसकी चुचियों का उभार और कूल्हों का आकार जिस प्रकार बड़ा था उसने सुगना को सोचने पर विवश कर दिया था …कहीं ना कहीं उसे विकास और सोनी के संबंधों पर शक होने लगा था. यह तो शुक्र है कि विकास के परिवार वालों ने स्वयं आगे बढ़कर सोनी का हाथ मांग लिया था और दोनों का इंगेजमेंट पिछले दिनों हो गया था।

लाली की बात सुनकर सुगना मुस्कुराने लगी और लाली से मजाक करते हुए बोली..

“विकास जी सोनिया के संभाल लीहे नू जईसन एकर जवानी छलकता बुझाता सोनी ही भारी पड़ी”

सुगना का मूड देखकर लाली भी जोश में आ गई और सुगना से मजाक करते हुए बोली..

“बुझाता विदेश जाए से पहले विकास जी सोनी के खेत जोत देले बाड़े.. तबे देहिया फूल गइल बा…”

सुगना को शायद यह कॉमेंट उतना पसंद नहीं आया…सोनी आधुनिक विचारों की लड़की थी हो सकता है लाली की बात सच भी हो परंतु सुगना शायद इस बात से इत्तेफाक नहीं रखती थी।

“चल सोनी के छोड़ , कॉल रात अपन साध बुता ले ले नू” सुगना ने लाली का ध्यान भटकाया और अपने अंगूठे और तर्जनी से उसके दोनों निकालो को ब्लाउज के ऊपर से पकड़ना चाहा..

सुगना की पकड़ और निशाना सटीक था लाली चिहुंक उठी…”अरे छोड़ …..दुखाता” शायद सुगना ने उसके निप्पल को थोड़ा जोर से दबा दिया था।

सोनू के आने की आहट से दोनों सहेलियां सतर्क हो गई।

सोनू करीब आ चुका था और अपनी दोनों आंखों से अपनी दोनों अप्सराओं को देख रहा था । सुगना और लाली दोनों एक से बढ़कर एक थीं ।

यद्यपि सुगना लाली पर भारी थी परंतु वह धतूरे का फूल थी जो प्रतिबंधित था, जिसमें नशा तो था परंतु कांटे भी थे और लाली वह तो खूबसूरत गुलाब की भांति थी जिसमें सोनू के प्रति अगाध प्रेम था । वह सोनी ही थी जिसने सोनू में कामवासना जगाई थी, उसे पाला पोसा था और उसे किशोरावस्था में वह सारे सुख दिए थे जो सुगना ने न तो उसके लिए सोचे थे और न हीं सुगना के लिए वह देना संभव था।

सुगना का ध्यान एक बार फिर सोनू के दाग पर गया दाग कल की तुलना में कुछ कम था…

सुगना ने इसका जिक्र ना किया और सोनू से पूछा..

“जौनपुर कब जाए के बा?”

“दोपहर के बाद जाएब” सोनू ने उत्तर दिया। कुछ ही देर में स्कूल के लिए तैयार हो चुके सुगना और लाली के बच्चे सोनू को घेर कर बातें करने लगे और अपने-अपने ऑटो रिक्शा का इंतजार करने लगे।

जिसके पास इतना बड़ा परिवार हो उससे किसी और की क्या जरूरत होगी सोनू ने अपनी नसबंदी करा कर कोई गलत निर्णय नहीं लिया था शायद यही निर्णय उसे सुगना के और करीब ले आया था और वह अपनी कल्पना को हकीकत बना पाया था

वरना सुगना उसके लिए आकाश के इंद्रधनुष की भांति थी जिसे वह देख सकता था महसूस कर सकता था परंतु उसे छु पाना कतई संभव न था।

बच्चों के जाने के पश्चात सोनू ने एक बार इस दाग को लेकर डॉक्टर से सलाह लेने की सोची। सुगना द्वारा बताया गया दाग का रहस्य उसके समझ से परे था। सुगना एक स्त्री थी और सोनू पुरुष । स्त्री पुरुष का संभोग विधि का विधान है इसमें इस दाग का क्या स्थान?

यद्यपि सुगना और सोनू ने एक ही गर्भ से जन्म लिया था फिर भी यह दाग क्यों?

कुछ ही देर बात सोनू अपने ओहदे और गरिमा के साथ डॉक्टर के समक्ष उपस्थित था।

डॉक्टर ने उसके दाग का मुआयना किया.. उसे छूकर देखा, और कई तरीके से उसे पहचानने की कोशिश की परंतु किसी निष्कर्ष तक न पहुंच सका। वह बार-बार यही प्रश्न पूछता रहा कि यह दाग कब से है और सोनू बार-बार उसे यही बता रहा था कि पिछले एक हफ्ते से यह दाग धीरे-धीरे कर बढ़ रहा है।

डॉक्टर के माथे की शिकन देखकर सोनू समझ गया कि यह दाग अनोखा है और शायद डॉक्टर ने भी इस प्रकार के दाग को अपने जीवन में पहली बार देखा है।

सोनू को सुगना की बात पर यकीन होने लगा…

डॉक्टर ने आखिरकार सोनू से कहा

“यह दाग अनूठा है मैंने पहले कभी ऐसा दाग नहीं देखा है मैं इसके लिए कोई विशेष दवा तो नहीं बता सकता पर यह क्रीम लगाते रहिएगा हो सकता है यह काम कर जाए…”

मरता क्या ना करता सोनू ने वह क्रीम ले ली और अनमने मन से बाहर आ गया..

वह दाग के कारण को समझना चाहता था यदि सच में यह सुगना के साथ संभोग के कारण जन्मा था तो यह चिंतनीय था। क्या वह सुगना के साथ आगे अपनी कामेच्छा पूरी नहीं कर पाएगा…

क्या उसके सपने बिखर जाएंगे?

सुगना के साथ बिताए गए कामुक पल उसके जेहन में चलचित्र की भांति घूमने लगे…

ऐसा लग रहा था जैसे उसकी खुशियों पर यह दाग ग्रहण की भांति छा गया था…

अचानक सोनू को लाली की बात याद आई जिसने उसके दाग की तुलना सरयू सिंह के माथे के दाग से की थी।

सोनू अपनी गाड़ी में बैठा वापस घर की तरफ जा रहा था सुगना उसके दिमाग में अब भी घूम रही थी इस दाग का सुगना से संबंध सोनू को स्वीकार्य न था।


सोनू का तेजस्वी चेहरा निस्तेज हो रहा था।

सोनू घर पहुंच चुका था..अंदर आते ही सोनू के चेहरे की उदासी सुगना ने पढ़ ली।

“काहे परेशान बाड़े कोई दिक्कत बा का?”

सुगना सोनू की नस-नस पहचानती थी वह कब दुखी होता और कब खुश होता सुगना उसके चेहरे के भाव पढ़ कर समझ जाती दोनों के बीच यह बंधन अनूठा था।

सोनू ने डॉक्टर के साथ हुई अपनी मुलाकात का जिक्र सुगना से किया और इसी बीच लाली भी पीछे खड़ी सोनू की बातें सुन रही थी। उसने बिना मांगे अपनी राय चिपका दी

“अरे सोनू सरयू चाचा से एक बार मिल के पूछीहे उनकर दाग भी ठीक अईसन ही रहे। अब त उनकर दाग बिल्कुल ठीक बा.. उ जरूर बता दीहें”

डूबते को तिनके का सहारा …सोनू को उम्मीद की एक किरण दिखाई पड़ी। परंतु सुगना की रूह कांप उठी।

सरयू सिंह और सोनू को दाग के बारे में बात करते सोच कर ही उसे लगा वह गश खाकर गिर पड़ेगी..

सोनू ने सुगना को सहारा दिया और उसे अपने पास बैठा लिया..

दीदी का भइल….?

यह प्रश्न जितना सरल था उसका उत्तर उतना ही दुरूह…

नियति सुगना की तरह ही निरुत्तर थी ..

आशंकित थी…

कुछ अनिष्ट होने की आशंका प्रबल हो रही थी…सुगना का दिल धक-धक कर रहा था…


शेष अगले भाग में


आपके आपके कमेंट की प्रतीक्षा में
बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है जिस दाग को सोनू और सुगना बचाना चाहते थे उस दाग के बारे में लाली और सोनी ने पूछ लिया लाली ने तो सरयू के माथे वाले दाग की बात भी कर दी लगता है नियति बहुत कुछ चाहती हैं
 

Sanju@

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भाग 130
“अरे सोनू सरयू चाचा से एक बार मिल के पूछीहे उनकर दाग भी ठीक अईसन ही रहे। अब त उनकर दाग बिल्कुल ठीक बा.. उ जरूर बता दीहें”

डूबते को तिनके का सहारा …सोनू को उम्मीद की एक किरण दिखाई पड़ी। परंतु सुगना की रूह कांप उठी।

सरयू सिंह और सोनू को दाग के बारे में बात करते सोच कर ही उसे लगा वह गश खाकर गिर पड़ेगी..

सोनू ने सुगना को सहारा दिया और उसे अपने पास बैठा लिया..

दीदी का भइल….?

यह प्रश्न जितना सरल था उसका उत्तर उतना ही दुरूह…

नियति सुगना की तरह ही निरुत्तर थी ..

आशंकित थी…

कुछ अनिष्ट होने की आशंका प्रबल थी…


अब आगे…

सोनू सुगना की हथेलियां को अपनी हथेलियां के बीच लेकर तेजी से रगड़ रहा था और उसे चैतन्य करने की कोशिश कर रहा था लाली झट से पानी का गिलास ले आई और सुगना को पानी पिलाने का प्रयास करने लगी अब तक सुगना स्वयं को नियंत्रित करते हुए अपनी चेतना में वापस आ चुकी थी और अपनी सधी हुई जबान में बोली


“अचानक ना जाने का भइल हा एकदम चक्कर जैसन लगल हा”

सोनू और लाली ने सुगना को इस स्थिति में आज पहली बार देखा था अपने स्वास्थ्य और पूरे परिवार का ख्याल रखने वाली सुगना को शायद ही कभी कोई बीमारी हुई हो।

अच्छा ही हुआ बातचीत का टॉपिक बदल चुका था और शायद सुगना भी यही चाहती थी परंतु सोनू के मस्तिष्क पर इस दाग की उत्पत्ति का खरोच लगा चुका था रह रहकर उसका ध्यान कभी दाग की तरफ जाता कभी सरयू सिंह की तरफ..

बहरहाल इस समय सुगना सबका ध्यान अपनी तरफ खींच चुकी थी।

सोनू ने उसकी हथेलियां को एक बार फिर प्यार से सहलाते हुए कहा


“दीदी चल डॉक्टर से चेकअप करा दी”

सुगना ने सहज होते हुए कहा

“अरे कल ही तो डॉक्टर से देखा के आइल बाड़े सब तो ठीक ही रहे अतना छोट छोट बात पर परेशान होईबे तो कैसे चली हम बिल्कुल ठीक बानी ..”

सोनू सुगना की बात से पूरी तरह संतुष्ट न था पर वह चुप ही रहा

“तोरा जौनपुर जाए के रहे नू?”

सुगना के प्रश्न से सोनू को अपनी जिम्मेदारियों का एहसास हुआ उसने घड़ी देखी..

समय तेजी से बीत रहा था दोपहर के एक बज चुके थे सोनू ने सुगना की हथेलियों को आजाद करते हुए

“अरे 1 बज गैल हमरा तुरंत जौनपुर निकल के बा..”

सोनू अपना सामान पैक करने लगा लाली झटपट सोनू के लिए खाना निकालने चली गई सुगना अभी भी अपनी जगह पर बैठे बैठे अपने आपको सहज करने का प्रयास कर रही थी।

कुछ ही देर बाद सोनू घर के हाल में बैठा खाना खा रहा था और उसकी दोनों बहने उसकी पसंद का खाना उसे खिला रही थी सुगना भी अब उठकर लाली का साथ दे रही थी।

जब जब सुगना और लाली सोनू को खाने का सामान देने के लिए नीचे झुकतीं उनकी चूचियां बरबस ही सोनू का ध्यान खींच लेतीं । सुगना की दूधिया चमकती चूचियों को ब्लाउज के पीछे से झांकते देख सोनू मंत्र मुग्ध हो जाता। लाली की भरी-भरी मादक चूचियां भी कम न थी।

रसमलाई और राजभोग की तुलना कठिन थी…जो सुलभ था शायद उसकी कीमत कम थी और जो दुर्लभ था उसकी चाह प्रबल थी।

अपनी दोनों बहनों के बीच घिरा सोनू स्वादिष्ट भोजन का आनंद ले रहा था। और उसकी आंखें उनके गदराए बदन को देखकर तृप्त हो रहीं थी । उसका युवराज पैंट में जकड़े होने के बावजूद सर उठाने की कोशिश कर रहा था।

सोनू ने भोजन किया और अब विदा लेने का वक्त था…

ड्राइवर गाड़ी में सामान रखकर सोनू का इंतजार कर रहा था।

लाली ने सोनू से कहा

“फेर कब आईब?” लाली की आवाज में भारीपन था और आंखों में पानी। वह सोनू से बिछड़ना नहीं चाहती थी।

सुगना ने यह भांप लिया अचानक उसे कुछ याद आया और वह बोली..

“अरे सोनू रुकल रही हे तोरा खाती एगो चीज बनवले बानी”

सुगना भागते हुए किचन की तरफ गई इसी बीच सोनू ने लाली को अपने आलिंगन में भर लिया और उसकी आंसुओं से भरी आंखों को चूमने लगा धीरे-धीरे कब उसके होंठ लाली के होठों से सट गए और दोनों चुंबन में खो गए। सोनू लाली से बेहद प्यार करता था।

सोनू और लाली एक दूसरे के आलिंगन और चुंबन में खोए हुए थे सुगना पीछे आ चुकी थी उसने उन्हें डिस्टर्ब ना किया परंतु सुगना आसपास हो और सोनू को उसका एहसास ना हो यह संभव न था वह लाली से अलग हुआ..

सोनू और लाली दोनों बखूबी जानते थे कि सुगना उनके संबंधों के बारे में पूरी तरह जानती है। और अब तो सोनू अपनी बहन सुगना को लाली से विवाह करने का वचन भी दे चुका था।

छुपाने लायक कुछ भी न था लाली भी सहज थी। लाली और सोनू के बीच का रिश्ता सुगना भी समझने लगी थी और शायद इसीलिए उसने सोनू को लाली से विवाह करने के लिए मना लिया था।

सोनू सुगना की तरफ मुखातिब हुआ और उसके हाथ में पकड़े डब्बे में अपने मनपसंद लड्डू देखकर बेहद खुश हो गया।उसका जी किया कि वह सुगना को चूम ले.. सचमुच सुगना सोनू का बहुत ख्याल रखती थी..

सोनू हमेशा की तरह एक बार फिर लाली के पैर छूने के लिए नीचे झुका और लाली ने उसे बीच में ही रोक लिया तभी सुगना बोल पड़ी..

“अब लाली के पैर मत छुअल कर …ठीक ना लागेला ”

सोनू को शरारत सूझी अपनी बहनों से बिछड़ते हुए वह दुखी तो था पर खुद को सहज दिखाते हुए उसने सुगना को छेड़ा

“काहे दीदी…?”

सुगना चुप रही।

लाली के समक्ष वह अब भी सोनू से मर्यादित दूरी बनाए रखना चाहती थी।

सुगना तुरंत ही समझ गई की सोनू उसे छेड़ रहा है …उसने उत्तर ना दिया अपितु अपनी गर्दन झुका दी । सुगना पहले भी यह बात कई बार सोनू को समझा चुकी थी उसके और लाली के बीच का रिश्ता अब भाई बहन का रिश्ता नहीं रहा था। और अब वह पति-पत्नी के रूप में परिवर्तित होने वाला था। ऐसे में लाली के पैर छूना सुगना को गवारा न था।

तभी अचानक सोनू ने लाली से कहा..

“दीदी हमार घर के चाबी लगाता तोहरा बिस्तर में पर छूट गइल बा..लेते आव ना..”

जैसे ही लाली अपने कमरे में सोनू की चाबी ढूंढने गई सोनू ने सुगना को अपने आलिंगन में भर लिया और इससे पहले सुगना कुछ कहती उसके फूल जैसे ओंठो को अपने होठों के बीच लेकर चुभलाने लगा..

उसके हाथ सुगना के कूल्हों को जकड़ कर उसे अपने लंड से सटा चुके थे…

कुछ ही पलों के मिलन में सोनू के शरीर में उत्तेजना भर दी.. सुगना उसकी पकड़ से आजाद तो नहीं होना चाहती थी परंतु लाली निकट ही थी.. उसने सोनू के सीने पर अपनी हथेलियां से इशारा किया और उससे दूर हो गई।

तभी कमरे से लाली की आवाज आई

“सोनू बिस्तर पर तो चाभी नइखे कहीं और रख ले बाड़े का?”

सोनू ने अपनी जेब से चाबी निकाल कर सुगना को दिखाते हुए मुस्कुराने लगा उसने झटपट चाबी को पास पड़े सोफे पर फेंक दिया और बोला..


“लाली दीदी आजा चाबी मिल गैल बा सोफा पर रहल हा”

सुगना सोनू के शरारती चेहरे को देख रही थी जिसने उसे आलिंगन में लेने के लिए यह खेल रचा और बखूबी अपनी इच्छा पूरी कर ली। इस प्रेम भरे आलिंगन ने सुगना को भी तरोताजा कर दिया था। सुगना के जीवन में खुशियों की लहर महसूस होने लगी थी।

अब सुगना से विदा लेने ने की बारी थी।

सोनू ने पूरे आदर सम्मान से विधिवत झुक कर सुगना के पैर छुए सुगना ने उसे ना रोका वह उसकी बड़ी बहन की तरह उसके उसके सर पर हाथ रख उसे आशीर्वाद देती रही।

जिस स्त्री ने सोनू की मर्दानगी को बचाए रखने के लिए अपनी हद पार कर उसका साथ दिया था वह सोनू की नजरों में पहले भी पूजनीय थी और अब भी।

सोनू उठ खड़ा हुआ और अपनी बहन सुगना के आलिंगन में आ गया यह आलिंगन पहले की तुलना में अलग था सुगना की चूचियां सोनू से सुरक्षित दूरी बनाए हुए थी और सुगना सोनू का माथा चूमकर उसे आशीर्वाद दे रही थी.

सुगना ने कहा..

“अपन ध्यान रखीहे और जल्दी आईहे हमनी के इंतजार करब जा..”

सोनू मुस्कुरा कर रहा गया। अपनी दोनों बहनों से बिदा लेते समय उसकी आंखें नम थी। गाड़ी में बैठने के बाद सोनू की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह सुगना और लाली की तरफ देखें। न जाने क्यों इस बार उसे सुगना से बिछड़ने में बेहद तकलीफ हो रही थी।

विधि का विधान है मिलना और बिछड़ना परंतु जब प्रेम अपने चरम पर पहुंच जाता है अलग होना बेहद कठिन हो जाता है..

सोनू की गाड़ी आगे बढ़ चुकी थी.. सोनू पलट कर पीछे नहीं देखना चाह रहा था उसे पता था वह खुद भी भावुक होगा और अपनी बहनों को भी भावुक करता रहेगा। दिल पर पत्थर रख वह आगे बढ़ता गया परंतु गली के मोड पर आते-आते उसका भी सब्र जवाब दे गया उसने खिड़की से सर बाहर निकाला और एक झलक अपने घर की तरफ देखा दोनों बहने अब भी टकटकी लगाकर सोनू की तरफ देख रही थी न जाने उन में सोनू के प्रति इतना प्यार क्यों था….

सुगना और लाली दोनों निराली थी और उनका भाई सोनू उनकी आंखों का तारा था…

उधर सलेमपुर में सरयू सिंह अपने दोस्त हरिया और उसकी पत्नी (लाली के माता पिता) का ख्याल रख रहे थे कजरी भी एक आदर्श पड़ोसी की तरह उनके सुख-दुख में शामिल थी..


हरिया और उसकी पत्नी को हमेशा एक ही चिंता सताती कि उनकी पुत्री लाली भरी जवानी में ही विधवा हो गई थी। उन्हें इस बात का इल्म कतई न था की सोनू लाली का पूरी तरह ध्यान रख रहा था और अब सुगना के कहने पर उसे पत्नी रूप में स्वीकार करने के लिए पूरी तरह तैयार था।

हरिया की पत्नी अपनी पुत्री के लिए हमेशा ईश्वर से मन्नतें मांगती उसके संभावित वर के लिए अपनी नज़रें इधर-उधर दौड़ती परंतु एक विधवा के लिए वर तलाशना इतना आसान न था और यदि कोई मिलता भी तो वह निश्चित ही अधेड़ उम्र का होता।

सोनू को अपने दामाद के रूप में देखने की वह कल्पना भी नहीं कर सकते थे एक तो सोनू उम्र में लाली से कुछ छोटा था दूसरे वह अब एक प्रतिष्ठित पद पर था जिसके लिए लड़कियों की लाइन लगी हुई थी। सोनू के गांव सीतापुर में उसकी मां पदमा के समक्ष कई रिश्ते आते और वह उन्हें सरयू सिंह से संपर्क करने के लिए भेज देती। सोनू का पूरा परिवार भी अब सरयू सिंह को अपने परिवार का मुखिया और बुजुर्ग मान चुका था।

सरयू सिंह के पास सोनू के रूप में एक अनमोल खजाना था जिसके बलबूते पूरे गांव और तहसील में उनका दबदबा चलता था और हो भी क्यों ना?

सरयू सिंह का व्यक्तित्व वैसे भी सब पर भारी था ऊपर से जब से वह मनोरमा के संपर्क में आए थे उनका उत्साह दोगुना हो गया था। यह तो विधि का विधान था कि उन्हें अपनी पुत्री सुगना के बारे में अकस्मात ही मालूम चल गया था और वह अपने पाप के बोझ तले दब गए थे अन्यथा उनके उत्साह और दबंगई की कोई सीमा ही ना रहती।


समय सभी घावों को भर देता है। सुगना को अपनी पुत्री रूप में स्वीकार कर अब वह अपने पाप से खुद को मुक्त कर चुके थे। परंतु शायद यह इतना आसान न था। उनकी उत्तेजना को दिशा देने वाली सुगना की छोटी बहन सोनी उनके सुख चैन छीने हुए थी परंतु उनके जीवन में रस भरे हुए थी।

वैसे भी अपनी उत्तेजना के बिना उनका जीवन नीरस था। उनकी उत्तेजना का वेग झेलने के लिए कजरी अब कमजोर पड़ती थी। वह तो सरयू सिंह के मजबूत हाथ थे जो अब भी उनकी उदंड उत्तेजना को समेटे उनके अदभुत लंड को मसल कर उसमें से मखमली द्रव्य निचोड़ लेते थे और उसकी सारी अकड़ खत्म कर देते थे।

उधर सरयू सिंह की उत्तेजना का केंद्र बिंदु सोनी अपनी सहेलियों के साथ कॉलेज की कैंटीन में कुल्फी खा रही थी जिस प्रकार से वह कुल्फी चूस रही थी उसकी सहेली ने उसे छेड़ा..

“अरे सोनी तेरा तो कुल्फी चूसने का अंदाज ही बदल गया है लगता है विकास ने अच्छी ट्रेनिंग दे दी है”

सोनी ने अपनी दोस्त की तरफ देखा वह मन ही मन मुस्कुराने लगी उसे अचानक विकास की याद आ गई जो बार-बार उसे अपना लंड चूसने के लिए आग्रह करता रहता था।

सोनी के लिए यह इतना आसान न था। पर पिछले कुछ वर्षों से सुगना के पुत्र सूरज के अंगूठे को सहलाने के बाद उसकी छोटी सी नूनी को बढ़ाना और उसके बाद उसे अपने होंठ से चूम कर नूनी के आकर को कम करना सोनी के लिए एक अनोखा कृत्य था। सोनी को धीरे-धीरे यह खेल पसंद आने लगा था और सुगना के लाख मना करने के बाद भी वह मौका देखकर अपनी उत्सुकता ना रोक पाती।

सोनी ने मुस्कुराते हुए अपनी सहेली से कहा…

“यह तो एक दिन तुझे भी करना ही है मेरे से ही ट्रेनिंग ले ले… “

दोनों सहेलियां हंसने लगी। सोनी की विडंबना यह थी कि वह विकास के प्रेम में पड़कर इंगेज हो चुकी थी और कुछ महीनो बाद उसकी शादी थी।


विकास से उसके प्यार में कोई कमी न थी परंतु विकास की कामुकता और सोनी की कामेच्छा में कोई मेल न था। विकास अति कामुक था परंतु कुदरत ने उसे न हीं सोनू जैसे हथियार से नहीं नवाजा था न हीं उस जैसे बलिष्ठ शरीर से।

जब से सोनी ने सरयू सिंह का लंड देखा था तब से वह उससे विकास के लंड की तुलना करने लगी थी…

गाजर और मूली की तुलना कठिन थी।

लंड का ध्यान कर सोनी की जांघों के बीच कुछ कुलबुलाहट होने लगी। सोनी अपनी सहेली से विकास के बारे में और बातें करने लगे लगी। विकास एक धनाढ़य परिवार का काबिल लड़का था। सभी सोनी को खुश किस्मत मानते थे जो वह ऐसे घर में ब्याही जा रही थी। विकास भी सोनी से बहुत प्यार करता था यह बात सभी जानते थे।


न जाने ऐसा क्यों होता कि जब भी वह विकास के बारे में सोच सोच कर कामुक होती सरयू सिंह का बड़ा सा लंड बार-बार उसका ध्यान अपनी ओर खींचता।

सोनी अपने विचारों में उत्तेजना को विभिन्न तरीकों से जागृत करती कभी उस अदृश्य लंड को अपने भीतर महसूस करती और इन्हीं में उलझी हुई अपनी उत्तेजना को अपनी उंगलियों से शांत करती।

मानव मन चंचल होता है कामुक पलो में उसकी गति अनियंत्रित होती है वह रिश्ते नाते उचित अनुचित को छोड़ कही भी और किसी रूप में जा सकता है और सोच सकता है उसका मुख्य उद्देश्य अपने स्वामी को एक सुखद स्खलन देना होता है…


उधर सोनू ने जौनपुर पहुंचकर अपना शासकीय कार्यभार संभाल लिया । सांझ ढले जब वह अपने घर पहुंचा घर के नौकर चाकर ने उसका स्वागत किया परंतु घर के अंदर प्रवेश करते ही उसे उसका सूनापन सोनू को खलने लगा। चहकती सुगना और उसके बच्चों की कमी सोनू को महसूस हो रही थी।

वह रुवांसा हो गया। सुगना की कमरे का दरवाजा खोलने की उसकी हिम्मत ना हुई वह वापस अपने ड्राइंग रूम में आ गया और तब तक उसका मातहत चाय का कप और बिस्किट लेकर सोनू के समक्ष था।

“साहब सुगना दीदी नहीं आएंगी क्या?”

इस प्रश्न ने सोनू को और दुखी कर दिया तभी उसे नेपाली मातहत में फिर बोला

“दीदी बहुत अच्छी हैं और उनके बच्चे भी उनके रहने से ये बंगला जगमग रहता था..”

सोनू ने अपनी भावनाओं पर कंट्रोल किया और बोला ..

“हां दोनों बच्चे सब का मन लगाए रखते थे..”

इसके पश्चात सोनू ने अपने मातहत को कुछ और दिशा निर्देश दिए और अपने कमरे में चला गया। यह वही कमरा था जिसमें लाली की पसंद का पलंग लगाया था।

सुगना के जौनपुर प्रवास के दौरान सोनू इसी कमरे में रहता था। परंतु सुगना के साथ सारी रासलीला उसकी पसंद के पलंग पर ही करता था।

सोनू के बंगले के दोनों प्रमुख कमरे उसकी दोनों बहनों के हो चुके थे बंगले ही क्या सोनू खुद भी अब पूरी तरह अपनी बहनों का हो चुका था और उनके लिए तन मन धन से समर्पित था।

नित्य क्रिया से निवृत होकर सोनू अपने क्लब के जिम में चला गया जहां जाकर जी भरकर मेहनत की और शरीर को पूरी तरह थका डाला उसे पता था घर का एकाकीपन उसे काटने को दौड़ेगा और यह थकावट थी उसे एक सुखद नींद दे सकती थी।


रात्रि की बेला सभी को एकांत और दिनभर की थकान मिटाने का एक अवसर देती है परंतु चंचल मन का भटकाव सबसे ज्यादा इसी समय होता है बिस्तर पर लेटते ही कहानी के सभी पात्र अपनी अपनी मनोदशा से जूझ रहे थे.

लाली अपने विवाह के पश्चात अपने पूर्व पति राजेश के संग बिताए गए दिनों को याद कर रही थी। वो सुहाग के लाल जोड़े में राजेश के घर आना सुहागिनों की तरह घर की विभिन्न पूजा में भाग लेना और रात्रि होते होते राजेश की बाहों में संसार का अनोखा सुख लेना। लाल जोड़ा और सुहागिनों की तरह सज धज कर रहना लाली को बेहद पसंद था परंतु अफसोस राजेश के जाने के पश्चात वह रंग-बिरंगे कपड़े तो जरूर पहनती थी परंतु अपने पति के लिए सजने का जो सुख लाली महसूस करती थी अब वह उसकी जिंदगी से महरूम हो चुका था। पुनर्विवाह न तो उसकी कल्पना में था और उसके हिसाब से शायद संभव भी नहीं था।

उसके जीवन में एकमात्र खुशियां थी वह थी सोनू से उसके जायज या नाजायज संबंध। नाजायज इसलिए क्योंकि सोनू उसका मुंह बोला भाई था और जायज इसलिए कि यह संबंध उसके पति की इच्छा से बना था और उन्हें इससे कोई आपत्ति न थी अपितु इस संबंध को बनाने में उनका ही योगदान था।


हम सबकी प्यारी सुगना भी बिस्तर पर लेटे-लेटे सोनू के बारे में ही सोच रही थी। पिछले हफ्ते सोनू के साथ बिताया सप्ताह उसके जीवन का शायद दूसरा खूबसूरत समय था। अब भी उसे सरयू सिंह के साथ बिताई गई अपनी सुहागरात याद थी सरयू सिंह ने जिस आत्मीयता और प्यार से उसकी कमसिन बुर को धीरे-धीरे जवान किया था और उसकी वासना को पुष्पित और पल्लवित किया था वह उनकी ऋणी थी।

सुगना की जीवन में रंग और बुर में तरंग भरने वाले सरयू सिंह उसके लिए पूज्य थे…वह पूज्य इसलिए भी थे कि वह उसे इस दुनिया में लाने वाले पिता भी थे परंतु सुगना को इसका इल्म न था। अन्यथा सरयू सिंह का वह कामुक रूप सुगना कभी स्वीकार न कर पाती।

यह सोचते सोचते ही उसकी जांघों के बीच एक बार फिर हलचल होने लगी तभी उसके दिमाग में विद्यानंद के शब्द गूंजने लगे..

अपने पुत्र सूरज की मुक्ति का मार्ग जो विद्यानंद ने सुझाया था.. उसे अमल में लाना बेहद कठिन था.

अपनी ही पुत्री को अपने ही पुत्र से संभोग करने के लिए प्रेरित करना या स्वयं अपने ही पुत्र से संभोग करना यह ऐसा दुष्कर और अपवित्र कार्य था जो सुगना जैसी स्त्री के लिए कतई संभव न था पर सूरज उसका एकमात्र पुत्र था जो सरयू सिंह की निशानी थी , जिसे आने वाले समय में सुगना के परिवार का प्रतिनिधित्व करना था। सुगना किसी भी हाल में सूरज को शापित नहीं छोड़ सकती थी।

विद्यानंद ने यह बात सुगना को किसी से भी साझा करने के लिए मना किया था। यद्यपि सूरज और मधु अभी छोटे थे परंतु सुगना अपनी कल्पना में आने वाले समय के बारे में सोचना शुरू कर चुकी थी वह कभी एक दिशा में सोचती कभी दूसरी दिशा में और हर बार मुंह की खाती आखिर कार यह कैसे संभव होगा।

अचानक उसके विचारों में किशोर सोनू की छवि उभर आई अपनी किशोरावस्था में सोनू एक आदर्श भाई की तरह सुगना के साथ-साथ रहता और सुगना भी एक बड़ी बहन के रूप में उसका पूरा ख्याल परंतु नियति ने जाने उनके भाग्य में क्या लिखा था कैसे उन दोनों के बीच का उज्ज्वल और बेदाग संबंध वासना की गिरफ्त में आकर धीरे धीरे बदल चुका था और अब दोनों के कमांग एक दूसरे में समा जाने के लिए तड़प रहे थे…

अपने और सोनू के संबंधों से सुगना को कुछ आंतरिक बल मिला और वह मन में ही मन ईश्वर से यही प्रार्थना करने लगी कि उसकी मंशा पूरी हो और उसका शापित पुत्र उसे अनजाने शॉप से मुक्ति पा सके।

अगली सुबह सोनू ने अपने गर्दन के दाग का मुआयना किया…निश्चित ही दाग कम हो रहा था सुगना का कहा सच हो रहा था अगले दस ग्यारह दिनों में दाग लगभग गायब सा हो गया। सोनू बेहद खुश था अपने दाग से मुक्त होकर वह आत्मविश्वास से लबरेज था…परंतु इन दिनों सुगना और लाली की कमी उसे खल रही थी। दो-तीन दिनों में शनिवार आने वाला था सप्ताहांत में सोनू बनारस जाने की तैयारी करने लगा.. जिसकी सूचना उसने पास के पीसीओ में टेलीफोन करके अपनी बहनों तक पहुंचा दी..


लाली…सोनू का बेसब्री से इंतजार करने लगी…पर सुगना सतर्क थी..उसे सोनू का इंतजार भी था पर एक डर भी था कही सोनू ने फिर…नहीं..नहीं अब बस.. जो हुआ सो हुआ। वह मन ही मन निर्णय लेने की कोशिश कर रही थी पर जांघों के बीच छुपी प्रतीक्षारत बुर सुगना के निर्णय को कमजोर करने की कोशिश कर रही थी।

नियति मुस्कुरा रही थी और विधाता द्वारा लिखी गई आगे की पटकथा को पढ़ने का प्रयास कर रही थी…

शेष अगले भाग में..
बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है लाली के सरयू चाचा से दाग के बारे में पूछने की बात कहने से सुगना को चक्कर आ गया क्योंकि उसे लगने लगा कि अब सरयू और उसके संबंधों पर से पर्दा उठने वाला है लेकिन नियति ने बचा दिया ।लगता है नियति एक बार फिर से उस दाग को बढ़ाने वाली है
 
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