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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
भाग 126 (मध्यांतर)
भाग 127 भाग 128 भाग 129 भाग 130 भाग 131 भाग 132
भाग 133 भाग 134 भाग 135 भाग 136 भाग 137 भाग 138
भाग 139 भाग 140 भाग141 भाग 142 भाग 143 भाग 144 भाग 145 भाग 146 भाग 147 भाग 148
 
Last edited:

Gagan_deeep

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एक बहुत ही, हसीन इतवार था। पिछले कुछ अपडेड पढ़े सुबह उठते ही फिर से स्टोरी देखी तो अपडेट की सूचना मिली। लेखक महोदय कृपया अगले अपडेट की एक प्रति मुझे भी ईमेल करने का कष्ट करें।।
 

yenjvoy

Member
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भाग 151

वह मन ही मन ईश्वर को इतनी सुंदर काया देने के लिए धन्यवाद कर रही थी । आखिरकार उसने अपनी आंखों पर सफेद रुमाल को लपेटकर जैसे ही मोनी ने गांठ बंधी उसकी आंखों के सामने के दृश्य ओझल होते गए। उसे इतना तो एहसास हो रहा था कि कमरे में अब भी रोशनी थी परंतु आंखों से कुछ दिखाई पड़ना संभव नहीं था।
वह चुपचाप बिस्तर पर बैठ गई अपनी जांघें एक दूसरे से सटाए वह अपने परीक्षक का इंतजार कर रही थी।
अबआगे

उधर बनारस में
सरयू सिंह अब सुगना के घर में पूरी तरह सेट हो चुके थे कजरी पदमा और सुगना तीनों मिलजुल कर रहते। यह एक संयोग ही था की सरयू सिंह तीनों ही स्त्रियों से संभोग सुख प्राप्त कर चुके थे।

जहां पद्मा ने सरयू सिंह की युवा अवस्था में उनसे संभोग किया था वही कजरी उनकी भाभी होने के बावजूद पूरे समय तक उन्हें पत्नी का सुख देती रही थी और सुगना….आह … वो तो सरयू सिंह के जीवन में एक सुगन्ध की तरहआई और सरयू सिंह के जीवन को जीवंत कर दिया।
सुगना के साथ बिताया वक्त और कामुक पल ने सरयू सिंह की वासना को एक नए आयाम तक पहुंचाया और उन्होंने सुगना को जैसे अपनी वासना विरासत में दे दी थी। नियति एक पिता से उसकी वासना अपनी पुत्री में स्थानांतरित होते हुए देख रही थी।

परंतु यह सरयू सिंह का दुर्भाग्य ही था कि उन्हें सुगना और अपने बीच के रिश्ते का सच मालूम चल गया अन्यथा वह आज भी जी भर कर सुगना को भोग रहे होते और शायद सुगना भी इसे सहर्ष स्वीकार कर रही होती। सुगना और सोनू के करीब आने में सरयू सिंह की अहम भूमिका थी न तो वह सुगना के आगोश से बाहर जाते और न हीं उस रिक्त स्थान की पूर्ति के लिए सोनू सुगना के और करीब आजाता।
बनारस आने के बाद सरयू सिंह की उत्तेजना शिथिल पड़ रही थी। एकांत का समय कम ही मिल पाता। दिन भर बच्चे उन्हें घेरे रहते और सूरज तो उन्हें बेहद प्यार था वह उसे पढ़ते लिखाते और तरह-तरह के ज्ञान देते। एक गुसलखाना ही ऐसी जगह थी जहां वह अपनी काम पिपासा को गाहे बगाहे शांत करते और इसमें इनका साथ देती सोनी…
यद्यपि सरयू सिंह को यह बखूबी अहसास था कि सोनी से संभोग वह सिर्फ अपनी कल्पनाओं में ही कर सकते थे ऐसा कोई भी कारण या निमित्त न था जिससे उन्हें सोनी को भोगने का अवसर प्राप्त होता। उन्हें कभी-कभी अपनी किस्मत पर भरोसा होता कि जैसे ईश्वर ने सुगना को उनके करीब ला दिया था कभी ना कभी हो सकता है सोनी स्वयं ही उनके करीब आ जाए.. पर विचार मुंगेरीलाल के हसीन सपनों से कम न थे।
सपने उम्मीद की पराकाष्ठा होते हैं जिस उम्मीद की रूपरेखा ना हो वह सपनों में तब्दील हो जाती है।
बहरहाल सरयू सिंह की कामवासना को जिंदा रखने में अब सिर्फ सोनी का ही योगदान था उनकी तीनों परियां अब उनकी वासना का साथ छोड़ चुकी थी परंतु उनका ख्याल रखने में कोई कमी नहीं थी। वह घर के हीरो थे और एक धरोहर की भांति उनकी सेवा होती थी। वो सभी का स्नेह पाते पर उनका लंड स्त्री स्पर्श और कसी हुई बुर के लिए तरसता रहता।
शाम सोनू और लाली जौनपुर से बनारस आने वाले थे..
शाम की चाय का वक्त था सुगना चाय बनाकर लाई और पूरा परिवार चाय पीने लगा तभी सरयू सिंह ने कहा.
“सोचा तनी कल सलेमपुर चल जाई”
कजरी ने उत्सुकता बस पूछा
“काहे का बात ?”
“अरे खेत के मालगुजारी खाती कुछ कागज देबे के बा”
“ आप कहा बस से जाईब सोनू आज आवता सुगना के लेकर चल जाए हमरो कुछ सामान लेके आवेके बा” कजरी ने सरयू सिंह से कहा अब कजरी की वाणी में एक अधिकार महसूस होता जो उम्र के साथ पत्नी की आवाज में महसूस होता है।
सुगना के मन में लड्डू फूटने लगे सोनू का साथ उसके लिए बेहद रोमांचक और कामुक होता था और अब सुगना सोनू के साथ एकांत का इंतजार करती थी। उसने झटपट कजरी की हां में हां मिलाई और बोली
“बाबूजी हम कल सोनू के साथ चल जाएब आप सूरज के ध्यान राख लेब”
तभी पदमा भी बोल उठी
“ओहिजा से तनी सीतापुर भी चल जईहे हमार बक्सा से साल ले ले आईहै”
सुगना को एक पल के लिए लगा जैसे सारा समय आने जाने में ही बीत जाएगा वह थोड़ा सकुचाई परंतु अपनी मां की बात काटने का साहस न जुटा पाई..
सुगना को क्या पता था कि उसकी मां ने उसे जो काम बताया था वह सुगना की मां की लालसा पूरी करने वाला था।
“ठीक बा कॉल तनी जल्दी निकल जाएब..” सुगना मन ही मन बेहद प्रसन्न थी।
पदमा और कजरी शाम के खाने की बातें करने लगी और कुछ ही देर बाद में उनकी तैयारी में लग गई। सुगना ने हमेशा की भांति सोनू के आगमन की खुशी में स्नान किया अपनी मुनिया को धो पोंछ कर चमका दिया खुद को सजाया संवारा। उसे पता था सोनू कुछ पलों के साथ में भी कामुक हो सकता था इसलिए वह हमेशा खुद को सोनू के लिए तैयार रखती थी।
जितना प्यार सोनू अपने दहेज से करता था सुगना को इसका बखूबी अहसास था। सोनू के होंठ सुगना के निचले होठों से मिलन के लिए हमेशा आतुर रहते थे और सुगना अपने सोनू को कतई निराश नहीं करना चाहती थी।

वह अब जानबूझकर सोनू की उपस्थिति में अपनी पैंटी का परित्याग कर देती थी। सोनू और सुगना का साहस बढ़ता जा रहा था उन्हें यह आभास नहीं था कि उनके बीच के कामुक संबंध कभी पकड़े भी जा सकते हैं। सुगना सज धज कर एक ताजा खिले फूल की तरह इधर-उधर मर्डर रही थी उसने संध्या आरती की और घर में चारों तरफ आरती की थाल घूमाने लगी..
सुगना सोनू और लाली का इंतजार कर रहे थी वह बार-बार दरवाजे की तरफ जाती और सोनू की गाड़ी की आहट सुनने के लिए उसके कान तरस रहे थे…
नियती ने सुगना को निराश ना किया कुछ ही देर में गाड़ी की आवाज सुनाई पड़ी और सुगना हाथों में आरती का थाल लिए भागती हुई दरवाजा खोलने गई।

सुगना ने एक हांथ से दरवाजा खुला और सामने मनोहर को देखकर थोड़ा उदास हो गई उसे सोनू का इंतजार था मनोहर का आना अप्रत्याशित था.. वह एक कदम पीछे हटी और तुरंत ही अपने हाथों में पकड़ी आरती की थाल मनोहर के आगे कर दी।
बेहद सलीके से पारंपरिक साड़ी में तैयार हुई, और हाथों में आरती का थाल लिए सुगना.. एक आदर्श स्त्री की भांति मनोहर के सामने खड़ी थी। खूबसूरत बदन, कामुक काया, चमकती त्वचा और बेहद सुंदर मासूम चेहरे के साथ सुगना एक आदर्श युवती की भांति दिखाई पड़ रही थी। मनोहर सुगना को एक टक देखा ही रह गया..
उसके हाथ आरती लेने के लिए आगे बढ़े पर नज़रें सुगना के चेहरे से नहीं हट रही थी। सुगना ने अपनी पलके झुका ली और आरती की थाल के ऊपर घूमते मनोहर के मजबूत हाथों को देखने लगी।
स्थिति आशाए होते हुए देखकर सुगना सतर्क हुई और बेहद संजीदगी से बोली…
“अंदर आइए ……मां मनोहर जी आए हैं” आखरी वाक्यांश कहते हुए सुगना की आज आवाज स्वाभाविक रूप से थोड़ा ऊंची हो गई थी।
मनोहर अंदर आ गया उसने पूछा
“अरे लाली और सोनू अभी तक पहुंचे नहीं क्या ?”
सुगना ने मनोहर को बैठने का इशारा किया और बोली “आते ही होंगे हम लोग भी इंतजार ही कर रहे हैं”
मनोहर स्वयं अपनी आतुरता पर अब खुद को कोस रहा था आखिर इतनी भी क्या जल्दी थी सुगना के घर आ धमकने की परंतु मन ही मन वह सुगना को देखना चाहता था उससे बात करना चाहता था शायद इसीलिए वह अपनी अधीरता पर काबू न कर सका और झटपट सुगना के घर आ धमका था।
सुगना ने रसोई में जाकर अपनी मां पदमा और कजरी को मनोहर के आने की सूचना दी और गिलास में पानी लेकर मनोहर के पास आ गई। जैसे ही सुगना पानी देने के लिए आगे झुकी मनोहर की आंखों ने वह दृश्य देख लिया जिसके बारे में न जाने उसने कितनी बार कल्पना की थी सुगना के दुग्ध कलश जो ब्लाउज के भीतर कैद होने के बावजूद अपने आकार और कोमलता का प्रदर्शन कर रहे थे वह मनोहर की आंखों के सामने नृत्य करने लगे।

मनोहर की आंखें बरबस सुगना की चूचियों पर टिक गई आज पहली बार सुगना में मनोहर की कामुक निगाहों को अपने बदन पर महसूस किया और तुरंत ही अपनी साड़ी का आंचल ठीक किया और दुग्ध कलश पर एक झीना ही सही परंतु मजबूत आवरण डाल लिया
सुगना अपनी आंखें मनोहर से नहीं मिला सकी। मनोहर अब तक उसकी निगाहों में छिछोरा नहीं था वह एक काबिल , संजीदा और सम्मानित व्यक्ति था परंतु आज सुगना ने मनोहर में एक कामुक पुरुष को देखा था। वह तुरंत ही सचेत हो गई। जैसे ही मनोहर ने पानी का गिलास पकड़ा वह खड़ी हो गई और वापस रसोई घर की तरफ चली गई।
कुछ ही देर में उसकी मां पदमा मनोहर के पास आ चुकी थी। सुगना ने बखूबी अपनी मां पदमा को मनोहर से बातें करने के लिए लगा दिया था और किचन में अपनी सास कजरी के साथ रसोई के कार्य में लग गई।
थोड़ी ही देर बाद सोनू और लाली भी पहुंच गए और एक बार फिर सुगना का घर गुलजार हो गया। जब जब सोनू सुगना के आसपास रहता सुगना के पूरे बदन में आनंद की तरंगे दौड़ रही होती। वह सचेत रहती उसे यह बखूबी अहसास रहता है कि सोनू कभी भी उसे अपने आलिंगन में ले सकता है …उसकी चूचियां मीस सकता है उसके होंठ चूम सकता है और अपना बना हुआ लंड उसके नितंबों से सटा सकता है ।
सोनू क्या करेगा यह अप्रत्याशित रहता परंतु कुछ ना कुछ करेगा जरूर सुगना यह बात भली भांति जानती थी।
उधर बच्चों की मौज हो गई थी। सब एक दूसरे से मिलकर शोर शराब करने लगे। सरयू सिंह भी अपना हाट बाजार घूम कर वापस आ चुके थे।

शहर में भी गांव सा माहौल हो गया था घर की भीड़भाड़ बरबस ही गांव की याद दिला देती है।
बातचीत का क्रम आगे बढ़ा और तभी कुछ अप्रत्याशित हुआ सरयू सिंह अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाए और मनोहर से बोल बैठे.
“बेटा मनोहर आगे कब तक अकेले रहने का इरादा है…जो हुआ उसे भूल जाना ही उचित होगा यह जीवन है इसे तो जीना ही है एक साथी रहेगा तो यह जीवन आसानी से सुखद रूप से बीतेगा..”
सोनू भी यह वार्तालाप सुन रहा था वह सरयू सिंह का इशारा बखूबी समझ चुका था उसने भी सरयू सिंह की हां में हां मिलाई और बोला ।
“हां यह बात सच है आपको दूसरा विवाह कर लेना चाहिए…आखिर एक से दो भले”
मनोहर मन ही मन प्रसन्न हो रहा था यद्यपि सरयू सिंह और सोनू की बातों में कहीं भी सुगना का जिक्र न था परंतु मनोहर के दिमाग में सिर्फ और सिर्फ सुगना घूम रही थी वह हर बात को सुगना से ही जोड़कर देख रहा था उसका अंतर्मन इस कल्पना मात्र से खुश हो रहा था।
“हां चाचा जी कभी-कभी सोचता हूं देखता हूं कब कोई उचित जीवनसाथी मिलता है”
अचानक सुगना गरम पकोड़े लेकर उनके बीच हाजिर थी।
क्या अनूठा संयोग था सुगना एक-एक करके पकौड़े अपने पूर्व प्रेमी सरयू सिंह वर्तमान प्रेमी सोनू और अपने मन में सुगना का भविष्य बनने की लालसा लिए मनोहर.. की प्लेट में डाल रही थी।
मुस्कुराती हुई अपनी अल्हड़ जवानी को समेटने की नाकाम कोशिश करती हुई सुगना मनोहर और सोनू दोनों के लंड में जान डालने में कामयाब रही थी सरयू सिंह का तो जैसे स्विच ही ऑफ हो गया था।
सुगना की उपस्थिति में आगे बात करना कठिन था। सरयू सिंह ने बात बदल दी और नरसिम्हा राव के बारे में वार्तालाप करने लगे। बात आई गई हो गई।
सरयू सिंह और मनोहर थोड़ा टहलने के उद्देश्य से गली में चल कमी कर रहे थे
सुगना और लाली दोनों लाली के कमरे में हंसी ठिठोली कर रही थी। सोनू बच्चो के साथ खेल रहा था। तभी सोनू ने लाली को अपने कमरे से निकाल कर बाथरूम की तरफ जाते देखा।
इधर लाली ने बाथरूम का दरवाजा बंद किया और उधर सोनू पलक झपकते ही सुगना के पास था। लाली और सुगना दोनों अपनी साड़ी अपनी जांघों तक उठा रहे थे लाली का उद्देश्य सर्वविदित था और सुगना सोनू का इशारा समझ चुकी थी और कुछ ही पलों में सोनू के अधरों को उसके दहेज पर घूमते महसूस कर रही थी।
सोनू के पास ज्यादा वक्त ना था लाली के कदमों के आहट के साथ ही वह सतर्क हो गया.. सोनू को पता था उसके पास वक्त कम था पर वो उसका सदुपयोग करने में सफल रहा था।
जब तक लाली कमरे के दरवाजे तक पहुंचती सोनूअपने लंड में उत्तेजना लिए कमरे से बाहर निकल रहा था। होंठो पर सुगना की बुर से चुराया मदन रस चमक रहा था। सुगना और सोनू दोनों के चेहरे पर मुस्कुराहट थी और धड़कनें तेज थी और गर्दन के दाग पर भी इसका कुछ असर आ गया था. ऐसा प्रतीत होता था जैसे गर्दन का दाग काम आनंद के अनुरूप और समानुपातिक था।
लाली को एक बार फिर शंका हुई परंतु नतीजा सिफर था… सुगना ने लाली के चेहरे के भाव पढ़ने की कोशिश की और बोला
“का सोचे लगले ?”
लाली के पास कोई उतरना था उसके मन में जो वहम था उसे होठों पर लाना कठिन था पाप था।
लाली और सुगना इधर-उधर की बातें कर रहे थे तभी लाली ने अचानक ही एक नया सुर छेड़ दिया…
ए सुगना अब तेरा मन नहीं करता है क्या?
सोनू से विवाह के पश्चात लाली और सुगना कभी भी अंतरंग नहीं हुईं थीं। और शायद इसकी आवश्यकता भी नहीं थी। फिर भी सुगना ने लाली का इशारा समझ लिया और मुस्कुराते हुए बोली..
काहे का?
लाली ने उसकी चूचियों को मीसते हुए बोला..
“मेरे साथ रजाई में…”

सुगना ने लाली को अपने आलिंगन में कसते हुए कहा
“जब सोनू छोड़ी तब नू….”
दोनों सहेलियां एक दूसरे के आलिंगन में आ गई और लाली ने सुगना के कान में कहा
“आज तू हमारा भीरी सुतिहा”
सुगना ने इशारों ही इशारों में अपनी मौन स्वीकृति दे दी..
तभी सुगना का पुत्र सूरज …कमरे में प्रवेश कर रहा था सुगना लाली से तुरंत ही दूर हो गई…और अपने पुत्र को गोद में लेकर प्यार करने लगी।
कुछ ही देर बाद रात्रि के खाने की तैयारी होने लगी…मनोहर और सुगना की नजरे कई चार हुई और हर बार सुगना ने मनोहर की आंखों में कुछ अलग देखा उसने अपनी नज़रें झुका ली परंतु मनोहर का यह व्यवहार उसे असहज कर रहा था।
घर के तीनों बुजुर्ग जिस प्रकार मनोहर से घुल मिलकर बात कर रहे थे उससे मनोहर को काफी अपनापन महसूस हो रहा था और ऐसा लग रहा था जैसे वह इस परिवार का ही एक हिस्सा हो..
सुगना को लेकर मनोहर के मन में भावनाएं हिलोरे लेने लगी थी। उधर घर के तीनों बुजुर्ग मनोहर को लेकर अब संजीदा हो चुके थे वह अपने ईश्वर से इस जोड़ी को एक करने की मन ही मन गुहार लगा रहे थे…
यह बात अभी सबके मन में ही थी इस पर ना तो अभी लाली से चर्चा हुई थी और ना ही सोनू से। और सुगना तो इस पूरे घटनाक्रम से ही अनभिज्ञ थी।
खाना खाने के पश्चात मनोहर वापस जा चुका था। लाली और कजरी मिलकर किचन में बर्तन साफ कर रही थी तभी कजरी ने अपने मन की बात कह दी..
“ए लाली मनोहर दोसर बियाह ना करिहें का?”
“काहे का बात बा?”
लाली को यह प्रश्न बिल्कुल भी आउट ऑफ सब्जेक्ट लगा।
“कुछ ना …असही पूछता रहनी हां अतना सुंदर और सुशील लइका बाड़े पूरा जीवन अकेले कैसे कटिहें?”
“लेकिन चाची तू ई बात काहे पूछत बाड़ू?”
कजरी लाली के पास गई और उसके कान में धीरे से कहा..
“सोचत बानी की सुगना के भी दोसर बियाह कर दीहल जाओ.. रतन के आवे के अब कोनो उम्मीद नईखे”
लाली के दिमाग में घंटियां बजने लगी उसके लिए यह वार्तालाप कल्पना से परे था इससे पहले की लाली कुछ बोल पाती सुगना रसोई घर में आ धमकी और उसने कजरी को लाली के कान में कुछ बोलते देख लिया और अपनी सास कजरी से बोली..
“अरे कान में क्या बोलत बाड़ू? साफ-साफ बोल”
कजरी ने तुरंत बाद पलट दी और बोली
“कल तोरा सलेमपुर जाए के बा नू इहे बतावत रहनि हा”
अब चौंकने की बारी लाली की थी..
कजरी ने बिना प्रश्न पूछे दोबारा अपनी बात दोहराई
“कल सुगना के सोनू के साथ सलेमपुर जाए के बा कुछ कागज के काम बाटे “
लाली को पिछली बार सुगना और सोनू के एक साथ जाने और लौटने का वक्त याद आ गया जब उसने सुगना के इत्र की खुशबू सोनू के लंड से महसूस की थी.. औरतों और उसके गर्दन का दाग उसे दिन चरम पर था।
लाली तपाक से बोल उठी
“कल हम भी जाएब मां बाबूजी से मिले बहुत दिन हो गइल बा”
लाली ने जिस दृढ़ता से यह बात कही थी उसकी बात काट पाना मुश्किल था। सुगना ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए कहा
“ठीक बा तू भी चल चलीहा”
सुगना एक पल के लिए तो उदास हो गई परंतु उसे अपनी मां पदमा की बात याद आ गई उसे सीतापुर भी जाना था सुगना मन ही मन मुस्करा उठी इस बार सोनू के साथ अपने इस घर में जिसमें वह जवान हुई थी उसे घर से उसकी किशोरावस्था और बचपन की कई यादें जुड़ी थी सुगना मन ही मन अपनी किशोरावस्था के दिन याद करने लगी।
सुगना को आज लाली के साथ सोना था.. लाली ने स्वयं सुगना के साथ आज अंतरंग होने की इच्छा व्यक्त की थी दोनों सहेलियां पहले भी एक दूसरे की बाहों में अपनी कामुकता शांत करती आईं थी पर सोनू से विवाह होने के बाद यह पहला अवसर था।
सुगना बच्चों और सोनू को दूध देने के लिए उनके कमरे में गई और उसने सोनू के कान में कुछ ऐसा कहा जिससे सोनू के चेहरे पर चमक आ गई उसने सुगना का हाथ चूम लिया। सोनू रात का इंतजार करने लगा।
धीरे-धीरे सभी अपने-अपने शयन कक्ष की तरफ बढ़ चले।
शयन व्यवस्था आज बदली हुई थी.. सोनू सुगना के बच्चों के साथ उसके कमरे में सो रहा था. लाली और सुगना दोनों आज एक ही बिस्तर पर पड़े गप्पे मार रहे थे कुछ देर तक कजरी और पदमा भी उनके साथ थी परंतु थोड़ी ही देर बाद उन्हें नींद आने लगी और वह अपनी अपनी जगह पर सोने चली गई इस वक्त कल तीन लोग जाग रहे थे लाली और सुगना और उन दोनों का प्यारा सोनू….
सोनू को सुगना का इंतजार था और लाली को सुगना का…
कुछ होने वाला था...
Very interesting development. Returning to the story after a couple of weeks and the Manohar puzzle in sugna's life is getting bigger. Lali maybe the one ally sugna can trust with her innermost secret. Let's see
 

Deepak@123

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लावली जी अब तक कहानि में बहोत ही मज्जा आता है आगे भी आयेगा आयेगा अपडेट कि प्रतीक्षा है
 

sunoanuj

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लवली जी सब ठीक है ! कन्हा है आप कुछ खबर दीजिए !
 

sunoanuj

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भाग -1

ट्यूबवेल के खंडहरनुमा कमरे में एक खुरदरी चटाई पर बाइस वर्षीय सुंदर सुगना अपनी जांघें फैलाएं चुदवाने के लिए आतुर थी।

वह अभी-अभी ट्यूबवेल के पानी से नहा कर आई थी। पानी की बूंदे उसके गोरे शरीर पर अभी भी चमक रही थीं सरयू सिंह अपनी धोती खोल रहे थे उनका मदमस्त लंड अपनी प्यारी बहू को चोदने के लिए उछल रहा था। कुछ देर पहले ही वह सुगना को ट्यूबवेल के पानी से नहाते हुए देख रहे थे और तब से ही अपने लंड की मसाज कर रहे थे। लंड का सुपाड़ा उत्तेजना के कारण रिस रहे वीर्य से भीग गया था।

सरयू सिंह अपनी लार को अपनी हथेलियों में लेकर अपने लंड पर मल रहे थे उनका काला और मजबूत लंड चमकने लगा था। सुगना की निगाह जब उस लंड पर पड़ती उसके शरीर में एक सिहरन पैदा होती और उसके रोएं खड़े हो जाते। सुगना की चूत सुगना के डर को नजरअंदाज करते हुए पनिया गयी थी। दोनों होठों के बीच से गुलाबी रंग का जादुई छेद उभरकर दिखाई पड़ रहा था. सुगना ने अपनी आंखें बंद किए हुए दोनों हाथों को ऊपर उठा दिया सरयू सिंह के लिए यह खुला आमंत्रण था।

कुछ ही देर में वह फनफनता हुआ लंड सुगना की गोरी चूत में अपनी जगह तलाशने लगा। सुगना सिहर उठी। उसकी सांसे तेज हो गयीं उसने अपनी दोनों जांघों को अपने हाथों से पूरी ताकत से अलग कर रखा था।

लंड का सुपाड़ा अंदर जाते ही सुगना कराहते हुए बोली

"बाबूजी तनी धीरे से ….दुखाता"

सरयू सिंह यह सुनकर बेचैन हो उठे। वह सुगना को बेतहाशा चूमने लगे जैसे जैसे वह चूमते गए उनका लंड भी सुगना की चूत की गहराइयों में उतरता गया। जब तक वह सुगना के गर्भाशय के मुख को चूमता सुगना हाफने लगी थी।

उसकी कोमल चूत उसके बाबूजी के लंड के लिए हमेशा छोटी पड़ती। सरयू सिंह अब अपने मुसल को आगे पीछे करना शुरू कर दिए। सुगना की चूत इस मुसल के आने जाने से फुलने पिचकने लगी। जब मुसल अंदर जाता सुगना की सांस बाहर आती और जैसे ही सरयू सिंह अपना लंड बाहर निकालते सुगना सांस ले लेती। सरयू सिंह ने सुगना की दोनों जाघें अब अपनी बड़ी-बड़ी हथेलियों से पकड़ लीं और उसे उसके कंधे से सट्टा दिया। पास पड़ा हुआ पुराना तकिया सुगना के कोमल चूतड़ों के नीचे रखा और अपने काले और मजबूत लंड से सुगना की गोरी और कोमल चूत को चोदना शुरू कर दिया। सुगना आनंद से अभिभूत हो चली थी। वाह आंखें बंद किए इस अद्भुत चुदाई का आनंद ले रही थी। जब उसकी नजरें सरयू सिंह से मिलती दोनों ही शर्म से पानी पानी हो जाते पर सरयू सिंह का लंड उछलने लगता।

उसकी गोरी चूचियां हर धक्के के साथ उछलतीं तथा सरयू सिंह को चूसने के लिए आमंत्रित करतीं। सरयू सिंह ने जैसे ही सुगना की चुचियों को अपने मुंह में भरा सुगना ने "बाबूजी………"की मादक और धीमी आवाज निकाली और पानी छोड़ना शुरू कर दिया। सरयू सिंह का लंड भी सुगना की उत्तेजक आवाज को और बढ़ाने के लिए उछलने लगा और अपना वीर्य उगलना शुरू कर दिया।

वीर्य स्खलन प्रारंभ होते ही सरयू सिंह ने अपना लंड बाहर खींचने की कोशिश की पर सुगना ने अपने दोनों पैरों को उनकी कमर पर लपेट लिया और अपनी तरफ खींचें रखी। सरयू सिंह सुगना की गोरी कोमल जांघों की मजबूत पकड़ की वजह से अपने लिंग को बाहर ना निकाल पाए तभी सुगना ने कहा

"बाबूजी --- बाबूजी… आ…..ईई…..हां ऐसे ही….।" सुगना स्खलित हो चूकी थी पर वह आज उसके मन मे कुछ और ही था।

सरयू सिंह अपनी प्यारी बहू का यह कामुक आग्रह न ठुकरा पाए और अपना वीर्य निकालते निकालते भी लंड को तीन चार बार आगे पीछे किया और अपने वीर्य की अंतिम बूंद को भी गर्भाशय के मुख पर छोड़ दिया. वीर्य सुगना की चूत में भर चुका था। दोनो कुछ देर उसी अवस्था मे रहे।

सरयू सिंह सुगना को मन ही मन उसे घंटों चोदना चाहते थे पर सुगना जैसी सुकुमारी की गोरी चूत का कसाव उनके लंड से तुरंत वीर्य खींच लेता था।

लंड निकल जाने के बाद सुगना ने एक बार फिर अपने हांथों से दोनों जाँघें पकड़कर अपनी चूत को ऊपर उठा लिया। सरयू सिंह का वीर्य उसकी चूत से निकलकर बाहर बहने को तैयार था पर सुगना अपनी दोनों जाँघे उठाए हुए बैलेंस बनाए हुए थी। वह वीर्य की एक भी बूंद को भी बाहर नहीं जाने देना चाहती थी। उसकी दिये रूपी चूत में तेल रूपी वीर्य लभालभ भरा हुआ था। थोड़ा भी हिलने पर छलक आता जो सुगना को कतई गवारा नहीं था। वह मन ही मन गर्भवती होने का फैसला कर चुकी थी।

उस दिन सुगना ने जो किया था उस का जश्न मनाने वह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र आई हुई थी। लेबर रूम में तड़पते हुए वह उस दिन की चुदाई का अफसोस भी कर रही थी पर आने वाली खुशी को याद कर वह लेबर पेन को सह भी रही थी।

सरयू सिंह सलेमपुर गांव के पटवारी थे । वह बेहद ही शालीन स्वभाव के व्यक्ति थे। वह दोहरे व्यक्तित्व के धनी थे समाज और बाहरी दुनिया के लिए वह एक आदर्श पुरुष थे पर सुगना और कुछ महिलाओं के लिए कामदेव के अवतार।

उनके पास दो और गांवों का प्रभार था लखनपुर और सीतापुर ।

सरयू सिंह की बहू सुगना सीतापुर की रहने वाली थी उसकी मां एक फौजी की विधवा थी।

बाहर प्राथमिक समुदायिक केंद्र में कई सारे लोग इकट्ठा थे एक नर्स लेबर रूम से बाहर आई और पुराने कपड़े में लिपटे हुए एक नवजात शिशु को सरयू सिंह को सौंप दिया और कहा...

चाचा जी इसका चेहरा आप से हूबहू मिलता है...

सरयू सिंह ने उस बच्चे को बड़ी आत्मीयता से चूम लिया। उनके कलेजे में जो ठंडक पड़ रही थी उसका अंदाजा उन्हें ही था। कहते हैं होठों की मुस्कान और आंखों की चमक आदमी की खुशी को स्पष्ट कर देती हैं वह उन्हें चाह कर भी नहीं छुपा सकता। वही हाल सरयू सिंह का था। कहने को तो आज दादा बने थे पर हकीकत वह और सुगना ही जानती थी। तभी हरिया (उनका पड़ोसी) बोल पड़ा

"भैया, मैं कहता था ना सुगना बिटिया जरूर मां बनेगी आपका वंश आगे चलेगा"

सरयू सिंह खुशी से चहक रहे थे उन्होंने अपनी जेब से दो 50 के नोट निकालें एक उस नर्स को दिया तथा दूसरा हरिया के हाथ में दे कर बोले जा मिठाई ले आ और सबको मिठाई खिला।

सरयू सिंह ने नर्स से सुगना का हाल जानना चाहा उसने बताया बहुरानी ठीक है कुछ घंटों बाद आप उसे घर ले जा सकते हैं।

सरयू सिंह पास पड़ी बेंच पर बैठकर आंखें मूंदे हुए अपनी यादों में खो गए।

मकर संक्रांति का दिन था। सुगना खेतों से सब्जियां तोड़ रही थी उसने हरे रंग की साड़ी पहन रखी थी जब वह सब्जियां तोड़ने के लिए नीचे झुकती उसकी गोल- गोल चूचियां पीले रंग के ब्लाउज से बाहर झांकने लगती। सरयू सिंह कुछ ही दूर पर क्यारी बना रहे थे। हाथों में फावड़ा लिए वह खेतों में मेहनत कर रहे थे शायद इसी वजह से आज 50 वर्ष की उम्र में भी वह अद्भुत कद काठी के मालिक थे।

(मैं सरयू सिंह)

उस दिन सुगना सब्जियां तोड़ने अकेले ही आई थी। घूंघट से उसका चेहरा ढका हुआ पर उसकी चूचियों की झलक पाकर मेरा लंड तन कर खड़ा हो गया। खिली हुई धूप में सुगना का गोरा बदन चमक रहा था मेरा मन सुगना को चोदने के लिए मचल गया।

चोद तो उसे मैं पहले भी कई बार चुका था पर आज खुले आसमान के नीचे… मजा आ जाएगा मेरा मन प्रफुल्लित हो उठा। कुछ देर तक मुझे उसकी चूचियां दिखाई देती रही पर थोड़ी ही देर बाद उसकी मदहोश कर देने वाली गांड भी साड़ी के पीछे से झलकने लगी। मेरा मन अब क्यारी बनाने में मन नहीं लग रहा था मुझे तो सुगना की क्यारी जोतने का मन कर रहा था। मैं फावड़ा रखकर अपने मुसल जैसे ल** को सहलाने लगा सुगना की निगाह मुझ पर पढ़ चुकी थी वह शरमा गई। और उठकर पास चल रहे ट्यूबवेल पर नहाने चली गई।

ट्यूबवेल ठीक बगल में ही था। ट्यूबवेल की धार में नहाना मुझे भी आनंदित करता था और सुगना को भी। सुगना ही क्या उस तीन इंच मोटे पाइप से निकलती हुई पानी की मोटी धार जब शरीर पर पड़ती वह हर स्त्री पुरुष को आनंद से भर देती। सुगना उस मोटी धार के नीचे नहा रही थी। सुगना को आज पहली बार मैं खुले में पानी की मोटी धार के नीचे नहाते हुए देख रहा था।

पानी की धार उसकी चुचियों पर पड़ रही थी वह अपनी चुचियों को उस मोटी धार के नीचे लाती और फिर हटा देती। पानी की धार का प्रहार उसकी कोमल चुचियां ज्यादा देर तक सहन नहीं कर पातीं। वह अपने छोटे छोटे हाथों से पानी की धार को नियंत्रण में लाने का प्रयास करती। हाथों से टकराकर पानी उसके चेहरे को भिगो देता वाह पानी से खेल रही थी और मैं उसे देख कर उत्तेजित हो रहा था।

अचानक मैंने देखा पानी की वह मोटी धार उसकी दोनों जांघों के बीच गिरने लगी सुगना खड़ी हो गई थी वह अपने चेहरे को पानी से धो रही थी पर मोटी धार उसकी मखमली चूत को भिगो रही थी। कभी वह अपने कूल्हों को पीछे ले जाती कभी आगे ऐसा लग रहा था जैसे वह पानी की धार को अपनी चूत पर नियंत्रित करने का प्रयास कर रही थी।

उस दिन ट्यूबवेल के कमरे में, मैं और सुगना बहुत जल्दी स्खलित हो गए थे। सुगना के मेरे वीर्य के एक अंश को एक बालक बना दिया था।

मैं उसके साथ एकांत में मिलना चाहता था हमें कई सारी बातें करनी थीं।

"ल भैया मिठाई आ गइल"

हरिया की बातें सुनकर सरयू सिंह अपनी मीठी यादों से वापस बाहर आ गए…



शेष आगे।
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कहानी की नायिका - सुगना
Nyc start 👍
 
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