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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
भाग 126 (मध्यांतर)
भाग 127 भाग 128 भाग 129 भाग 130 भाग 131 भाग 132
भाग 133 भाग 134 भाग 135 भाग 136 भाग 137 भाग 138
भाग 139 भाग 140 भाग141 भाग 142 भाग 143 भाग 144 भाग 145 भाग 146 भाग 147 भाग 148 भाग 149 भाग 150 भाग 151 भाग 152 भाग 153 भाग 154
 
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rohit95

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Yar 3 din se bol rha part 109 bhej do

Pta n yar 2-4 part ko yhi plateform pe daal do
Aise story pdhne ka mood hota tab milti na fir mood khrb ho jata
Ab intjaar kro 10 din m tum bhejoge

Ab itte daal rkhe to 2-4 page ko na daalke complicated kr rkha bhai tumne
 

Nazriya

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लेटेस्ट अपडेट को प्राइवेट में भेजते हो ये समझ सकता हूं, लेकिन बाद में उसको भी पोस्ट कर दो नहीं तो जो बाद में स्टोरी पढेंगे उनको बहुत दिक्कत होगी ।
 

Lovely Anand

Love is life
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भाग 152

धीरे-धीरे सभी अपने-अपने शयन कक्ष की तरफ बढ़ चले।

शयन व्यवस्था आज बदली हुई थी.. सोनू सुगना के बच्चों के साथ उसके कमरे में सो रहा था. लाली और सुगना दोनों आज एक ही बिस्तर पर पड़े गप्पे मार रहे थे कुछ देर तक कजरी और पदमा भी उनके साथ थी परंतु थोड़ी ही देर बाद उन्हें नींद आने लगी और वह अपनी अपनी जगह पर सोने चली गई इस वक्त कल तीन लोग जाग रहे थे लाली और सुगना और उन दोनों का प्यारा सोनू….

सोनू को सुगना का इंतजार था और लाली को सुगना का…

कुछ होने वाला था…

अब आगे…

सुगना ने आगे की कमान संभाली उसने लाली को आज अपने कमरे में सोने के लिए आमंत्रित कर लिया यद्यपि पहले लाली और सुगना ने लाली के कमरे में सोने की बात की थी परंतु सुगना ने लाली को अपने सयन कक्ष में सोने के लिए मना लिया।

सुगना की वासना में डूबा सोनू लाली के कक्ष में बच्चों के साथ सोने चला गया। आज पूरा परिवार एकत्रित था ऐसी अवस्था में सोनू और सुगना का मिलन कठिन था। घर में जितने कमरे थे शायद सोने वाले उससे ज्यादा थे। पर सुगना ने स्वयं मन बना लिया था उसने स्वयं चुदने के लिए बिसात बिछा ली थी। आखिर वह घर की मालकिन थी और इस परिवार में सरयू सिंह के बाद सबसे ज्यादा सम्मानित। उसकी बात काटने का साहस किसी में नहीं था ऐसा नहीं की डर की वजह से अपितु सभी उसका सम्मान करते थे।

रात के 11:00 बज चुके थे सभी अपने-अपने कक्ष में आराम कर रहे थे तभी लाली अपने कक्ष से सुगना के कक्ष में जाने के लिए निकली वह एक खूबसूरत नाइटी पहनी हुई थी। तभी कजरी ने उसे सुगना के कमरे जाते हुए देख लिया सुगना अपने बिस्तर पर अकेली थी कजरी को कुछ अटपटा सा लगा उसने आखिरकार लाली से पूछ ही लिया अरे

“ इतना राति के कहां जात बाड़े”

लाली अचानक आए प्रश्न से घबरा गई परंतु तभी अंदर से सुगना ने आवाज दी

“ अरे कुछ ना कई दिन हो गैल हमनी के बतियवला रऊआ सूत् रही हम लोग रात भर बतियाएब जा”

“ बच्चा सब कहां बा?” कजरी ने सुगना के बच्चों के बारे में पूछा

“सब अपना मामा साथ सुतल बा “

कजरी अब तक समझ चुकी थी कि सुगना और लाली ने आज सचमुच रतजगा करने का प्लान बना लिया था उसने और सवाल ना किया और अपनी आंखों में नींद लिए अपने कमरे की तरफ चली गई।

पूरा घर एक बार फिर रात के सन्नाटे में था लाली और सुगना बिस्तर पर आ चुके थे उधर सोनू सुगना के बारे में सोचता हुआ अपनी नींद से युद्ध कर रहा था।

पूरी तरह थके होने के बावजूद उसे जो मिलने वाला था उसकी आस में उसकी आंखें जाग रही थी।

सुगना बिस्तर पर थी और उसने अब भी साड़ी ब्लाउज पहना हुआ था लाली ने उसे इस अवस्था में देखते ही पूछा “अरे कपड़ा ना बदल लेले हा”

सुगना में अपनी नशीली आंखों से लाली की तरफ देखा और अपने ब्लाउज का हुक स्वयं अपनी उंगलियों से खोलते हुए बोली

“मैडम कपड़े की क्या जरूरत है?

लाली समझ चुकी थी सुगना आज मूड में थी हिन्दी में बोलकर सुगना ने लाली को अपने चुलबुले पान से मोहित कर लिया था। कुछ ही देर में दोनों सहेलियां पूरी तरह नग्न लिहाफ के अंदर एक दूसरे की बाहों में थी।

नंगी सुगना को अपनी बाहों में भरने का जो सुख सोनू उठता था उसकी बीवी भी उसे कमतर न थी लाली को सुगना को बाहों में भरना बेहद पसंद था।

लाली ने सुगना को अपने आलिंगन में भर लिया और अपनी दाहिनी जांघ सुगना की जांघों के बीच के जोड़ पर धीरे-धीरे रगड़ने लगी। अपनी हथेलियां से वह सुगना की पीठ सहलाए जा रही थी और अपनी चूचियों से उसकी चूचियों को महसूस कर रही थी।

ऐसा नहीं था की लाली और सुगना आज पहली बार एक दूसरे से अंतरंग हो रही थी पर आज कुछ अनोखा था।

लाली की वासना सुगना से जागृत थी सुगना की सोनू से और सोनू उसका तो कहना है क्या सुगना ने जो उसे आश्वासन दिया था वह उसे सोच कर ही मगन था और सुगना के इशारे का इंतजार कर रहा था।

लाली और सुगना का आलिंगन धीरे-धीरे और कामुक होता गया…लाली की उंगलियों ने सुगना के बुर के होठों को फैलाते हुए..कामुक स्वर में पूछा..

“ए सुगना तोर मन ना करेला का?

सुगना जो लाली के स्पर्श का आनंद ले रही थी अचानक सचेत हुए बोली..

“काहे के…?”

लाली ने कुछ कहा नहीं परंतु सुगना की चिपचिपी बुर में अपनी दो उंगलियां आगे पीछे करके इशारे से अपनी बात कही…

सुगना ने हाथ बढ़ाकर लाली को रोकने की कोशिश की.. और अपनी कामुक आवाज में का कहा

आह…तनी धीरे से…

लाली रुकी नहीं और उसकी बुर की दरार में अपनी उंगल को बड़ी अदा से घूमाते हुए बोली..

बोल ना मन ना करेला का?

अब मन करबो करी तो का करी?

अब तू भी दोसर ब्याह कर ले…रतनवा वापस ना आई ई पक्का बा।

लाली ने अपनी बात स्पष्ट कर दी।

सुगना को अब तक आभास नहीं था कि घरवाले उसके और मनोहर के बारे में ख्याली पुलाव पका रहे हैं और अब कजरी ने लाली को भी अपनी तरफ कर लिया था।

सुगना अनजान थी उसने लाली की बात को हल्के में लिया और बोला

अच्छा बड़ा ब्याह करावे के सोच ले बाडू केकरा से कर ली…सुगना ने लाली की चूचियों को मसलते हुए आगे कहा

चल तोरा से ही कर लेत बानी….. सुगना ने लाली को अपने आलिंगन में कसकर दबा लिया।

सुगना जब कामुक होती थी तो उसके आगोश में चाहे मर्द हो या स्त्री दोनों में उत्तेजना भर जाती थी आज लाली भी सुगना की कामुकता में खो गई थी दोनों सहेलियां एक दूसरे में गुत्थमगुत्था हो गई और उनकी उंगलियां एक दूसरे का स्खलन करने का प्रयास करने लगी।

लाली के दिमाग में अब भी कजरी की बातें घूम रहीं थीं..वह अपनी भावनाओं पर काबू नहीं कर पाई और एक बार फिर बोल उठी

ए सुगना साच बोल ना दोसर बियाह करबे?

काहे पूछत बाड़े? सुगना लाली के प्रश्नों को अब गंभीरता से ले रही थी।

सुगना ने जिस प्रकार अपनी आंखों को बड़ी कर या प्रश्न पूछा था लाली खुद एक बार के लिए सकपका गई उसे एक पल के लिए लगा शायद उसे इस प्रश्न पर अभी इस वक्त इतना जोर नहीं देना चाहिए था।

छोड़ जाए दे…लाली ने बात बदलते हुए कहा।

पर अब सुगना की उत्तेजना मैं व्यवधान आ चुका था उसने लाली को उकसाते हुए कहा

“बताओ ना कहे पूछता बा?”

लाली भी कम चतुर ना थी उसने बड़ी संगीदगी से कहा..

“सोनू के हमारा हमारा झोली में डालकर ते ता हमार जिंदगी सवार दिहले…. ते जिंदगी भर अकेले रहबे का…? भतार के सुख तोरा जीवन में कब आई हम ईहे चिंता करेनी”

सुगना ने एक बार फिर लाली को अपने आलिंगन में भरा और उसके होठों को चुमते हुए बोली…

“जब तक हमर लाली और सोनू हमरा के अपन परिवार मनीहे हमारा केहू के जरूरत नइखे”

सोनू का नाम सुनते ही लाली के दिमाग में एक बार फिर उसका शक घूमने लगा सुगना के सुहाग के इत्र की खुशबू उसने सोनू के लंड से वह पहले ही सूंघ चुकी थी जिसका माकूल उत्तर उसे अब तक नहीं मिला था। सोनू और सुगना दोनों भाई बहन बड़ी चतुराई से उसे दिन लाली के प्रश्नों का अधूरा उत्तर देकर बच निकले थे।

अच्छा सुगना एक बात पूछी…लाली ने सुगना की सहमति लेने की कोशिश की।

ते ता मजा लेवल छोड़कर सवाल जवाब करे लगले…पूछ का पूछे के बा? सुगना ने अपनी आंखें बड़ी करते हुए लाली के चेहरे पर अपनी प्रश्नवाचक निगाहें केंद्रित कर दीं..

ते सोनू के सच में माफ कर देले बाड़े…

काहे खातिर? सुगना को लाली का यह प्रश्न पूरी तरह बेमानी लगा ..

“ऊ जवन दिवाली के रात तोहरा संग कईले रहे” लाली ने हिम्मत जुटाकर अपनी बात कह दी।

सुगना के दिमाग में उसे दीपावली की काली रात की यादें ताजा हो गई जब सोनू ने पहली बार उसे जबरदस्ती चोदा था परंतु अब उस काली रात का दाग सुगना के जीवन में सुरों का राग बिखेर गया था। सोनू और सुगना को करीब लाने में उसे रात की अहम भूमिका थी जो नहीं होना था वह घटित हुआ था और उसने धीरे-धीरे पहले सुगना और सोनू को दूर किया और फिर इतना करीब ला दिया की ना तो सोनू सुगना के बिन रह सकता था और ना ही सुगना सोनू के बिन।

“का सोचे लगले?” लाली ने सुगना की तंद्रा भंग की…

सुगना सोनू के बारे में सोचकर पूरी तरह गर्म हो चुकी थी उसने लाली को फिर अपने आगोश में भर लिया और अपने घुटनों को लाली की बुर से रगड़ने लगी..

बोल ना..लाली ने अपनी उंगलियों को उसकी बुर को अंदर से कुरेदते हुए पूछा..

जाए दे अब माफ करे के अलावा चारा भी का बा.. ओकर मन तू ही बढ़वले रहलू हमारा सब मालूम बा…

सुगना ने अपनी उत्तेजना पर काबू करते हुए कहा पर प्रत्युत्तर में अपनी हथेली से लाली की लिसलिसी बुर को घेर लिया…

दोनों सहेलियां एक दूसरे को स्खलित करने में लग गयी। दोनों सहेलियां सोनू को अपने-अपने परिपेक्ष में देख रही थी। एक दूसरे के काम अंगों से खेलते हुए दोनों सहेलियां एक दूसरे को पहले स्खलित करने का प्रयास करने लगीं।

हमेशा की तरह लाली हार गई उसकी जांघें उसकी बुर को सिकोड़ सिकोड़ कर मदन रस उत्सर्जित करने लगीं। सुगना अपनी उत्तेजना और कामुकता से स्त्री और पुरुष दोनों को पूरे उत्साह और उमंग के साथ स्खलित करने की क्षमता रखती थी।

लाली के मुंह से आ…आह….आई…..हम्ममम की कराह आने लगी सुगना ने तुरत अपने होंठ उसके होंठों से सटा दिए और उसकी आवाज को बाहर आने से रोक लिया।

सुगना लाली के स्खलन को और भी आनंददायक बनाने के लिए अपनी उंगलियां लाली की बुर में थिरकाए जा रही थी ..

स्खलन चेतना शून्य कर देता है …लाली झड़ रही थी उसने न जाने कब अपनी उंगलियां सुगना की बुर से हटा दी और सुगना के मदमस्त कूल्हों को अपने हाथों से महसूस करते हुए उसे अपनी तरफ खींचने लगी।

वासना का तूफान थम चुका था लाली धीरे-धीरे नरम पड़ती गई और कुछ ही पलों में वह पीठ के बल लेटे लेटे अपनी सांसों को नियंत्रित करने का प्रयास करने लगी..

सुगना लाली की चूचियों को धीरे-धीरे सहलाई जा रही थी…

लाली की सांसों को सहज होते हुए देख सुगना ने लाली के कान में कहा

तनी आराम कर हम पेशाब करके आवत बानी…

सुगना उठी उसने लाली की नाइटी पहन ली। अपना साड़ी ब्लाउज वह पहले ही खोलकर एक तरफ रख चुकी थी और तुरंत साड़ी पहनना कठिन था। सुगना ने ऐसा जानबूझकर किया था ताकि वह लाली को अचानक कमरे से बाहर आने से रोक सके उसकी नाइटी उसने स्वयं पहन ली थी।

सुगना धीरे से कमरे से बाहर निकली पर दरवाजे तक पहुंचते पहुंचते उसे अचानक ही खांसी आई यह अप्रत्याशित था और हो भी क्यों ना सुगना पूरी तरह स्वस्थ थी अचानक खांसी का आना अनायास ही नहीं था सुगना ने सोनू के कान में जो कहा था शायद यह उसका संकेत ही था इधर सुगना गलियारे से होते हुए बाथरूम की तरफ बड़ी परंतु बाथरूम ना जाकर रसोई घर में चली गई बाहर खिड़की से आ रही रोशनी में उसने अपने सधे हुए हाथों से किचन के स्लैब पर रखे इक्का-दुक्का बर्तनों को व्यवस्थित किया इससे पहले कि वह अपना कार्य पूर्ण कर पाती सोनू रसोई में आ चुका था और अगले पल उसे अपने आलिंगन में भर चुका था।

सोनू ने सुगना को पीछे से आलिंगन में भर रखा था उसके हाथ सुगना की चूचियों को अपनी हथेलियां में थामे हुए थे और सोनू अपने गाल सुगना के गालों से उसके कानों से और अपनी टुड्डी सुगना के गर्दन पर रगड़ रहा था।

सुगना की वासना भी चरम पर थी और सोनू का लंड तो न जाने कितनी बार सुगना के इंतजार में खड़ा हो रहा था और फिर सुगना के सिग्नल के इंतजार में नरम गरम हो रहा था।

“सोनू अब जल्दी से कर ले आज घर में सब केहू बा कभी भी कोई आ सके ला” सुगना ने बेहद धीमी आवाज में फुसफुसाते हुए कहा..

“का कर ली?”

सोनू ने सुगना को छेड़ते हुए वह गंदी बात बोलने के लिए उकसाया जिससे सुगना हमेशा बचना चाहती थी। आखिर वह किस्म से अपने छोटे भाई को उसे चोदने के लिए बोलती

समय कम था उसे सोनू का मन रखना था उसने अपनी गर्दन घुमाई उसके कानों पर अपने होंठ लगाएं और इसी दौरान अपनी हथेलियां को नीचे ले जाकर सोनू के तने हुए लंड को अपनी हथेलियां से थाम लिया और उसके कान में बेहद उत्तेजक अंदाज में बोला।

“बदमाश अपना दीदी के रस में डूब के अपना गर्दन पर फेर से दाग लगा ले…”

.सुगना मुस्कुराने लगी।

सुगना को मुस्कुराते हुए देखना किसी भी मर्द की उत्तेजना को चरम पर पहुंचने के लिए काफी था। सोनू का लंड भी थिरक उठा.. सुगना ईसी दौरान पलट कर सीधी हो गई थी और सोनू की हथेलियां उसके नितंबों को सहलाने लगी।

वासना चरम पर थी। एक ही झटके में सोनू ने सुगना को उठाकर किचन के स्लैब पर बैठा दिया नाइटी न जाने कब सुगना के नितंबों के ठीक नीचे आ चुकी थी और सुगना की जांघें खुल चुकी थी सोनू ने अपने लंड से अपनी सुगना दीदी की उस सुनहरी गुफा को जांचने की कोशिश की जिसे सुगना ने सोनू को दहेज स्वरूप दे दिया था।

सोनू ने अपने लंड से सुगना की बुर के होठों को चूमने की कोशिश की और उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा होठों पर आई लार सोनू के पारखी लंड ने तुरंत महसूस कर ली और सोनू का दिल बाग बाग हो गया सच में सुगना दीदी भी उसका उतना ही इंतजार कर रही थी जितना वह स्वयं।

इधर सोनू के लंड ने सुगना की बुर को चुम्मा उधार सोनू एक बार फिर सुगना के अधरों को चूमते हुए बोला।

“तु हूं इंतजार एक करत रहलु हा का?”

सोनू मैं अपने होठों पर मुस्कुराहट लाते हुए बोला उसे सच में यह यकीन नहीं था कि सुगना इतनी उत्तेजित होगी।

सुगना शर्मा गई…पर सोनू को काहे..

सोनू अपने लंड से सुगना के की बुर का जायजा लेते हुए बोला..

ई ता लार टपकावत बिया….

सोनू अपना लंड सुगना की बुर पर रगड़कर सुगना की उत्तेजना को और भी ज्यादा बढ़ा रहा था।

सुगना को इंतजार था कि कब सोनू का लंड उसकी बुर को चीरता हुआ है उसकी नाभि को चूम ले परंतु सोनू की यह छेड़छाड़ उसे बेचैन कर रही थी।

एक तो समय कम था दूसरा सोनू की यह हरकत उसे पसंद तो आ रही थी पर वह समय बर्बाद नहीं करना चाहती थी। वह अपने दोनों हाथ स्लैब पर रख अपनी जांघों को उठाए अपने कूल्हे को स्लैब के किनारे रख सोनू का लंड लेने को तैयार थी परंतु सोनू की छेड़छाड़ को रोकने के लिए उसने अपना एक हाथ ऊपर उठाया और सोनू के गालों पर मीठी चपत लगाते हुए बोली

“ सोनू अब जल्दी से कर ले “

“का कर ली” सोनू रुकने वाला नहीं था। उसने एक बार के लिए लंड के सुपाड़े को सुगना की बुर में थोड़ा सा घुसा दिया पर तुरंत ही निकालकर उसे फिर से सुगना के भगनासे पर रगड़ने लगा।

“बदमाश जल्दी से अपना दीदी के बुर……के……चो………

सुगना अपना वाक्य पूरा कर पाती इससे पहले सोनू का लंड गर्म रॉड की तरह सुगना की बुर में धंसता चला गया सोनू के होठों में सुगना के होठों को अपने आगोश में ले लिया और अगले ही पल सोनू की कमर आगे पीछे होने लगी ।

दोनों भाई बहन अपने अंदर तूफान संजोए हुए थे कुछ कहने सुनने को बाकी ना था सोनू के कूल्हे और कमर तेजी से आगे पीछे हो रही थी सुगना असीम आनंद में डूबी हुई अपने अंदर भराव महसूस कर रही थी.. सुगना एक तो पहले ही गर्म थी और अब सोनू के मजबूत लंड को अपने अंदर समाहित कर तृप्त हो चुकी थी। सुगना अमरबेल की भांति सोनू से लिपट चुकी थी और अपनी बुर को सिकोड़ कर उसके लंड को पूरी तरह अपनी और खींचे हुए थी। यह आत्मीय संभोग ज्यादा देर न चल सका उत्तेजना दोनों में चरम पर थी।

सुगना स्खलन को तैयार थी उधर सोनू भी पिछले कुछ समय से सुगना का इंतजार करते हुए अपना लावा इकट्ठा कर चुका था यह पहला अवसर था की सोनू सुगना के इंतजार में इतना गर्म हो चुका था कि वह कुछ ही पलों में झड़ने को तैयार था। सुगना और सोनू दोनों की सांस तेज चल रही थी और उतनी ही तेजी से सोनू का लंड सुगना की बुर में में और गहरे और गहरे तक उतर जाना चाह रहा था ।

सोनू के अंडकोष किचन की स्लैब से टकरा रहे थे पर लंड सुगना की बुर की नमी और गरम गुफा में डुबकियां लगा रहा था।

वासना के आवेग की तीव्रता और उससे भी ज्यादा तीव्र थी सोनू के लंड से निकलती वीर्य की धार। सुगना की गर्भाशय पर सोनू के लंड ने जितनी कोमल चोट पहुंचाई थी अब अपने वीर्य की धार से उसे पुचकार रहा था और सुगना की बुर भी प्रेम रस उत्सर्जित कर जैसे सोनू के लैंड को तसल्ली दे रही हो।

सोनू और सुगना एक हो चुके थे सुगना अपने हाथ किचन स्लैब से उठाकर सोनू की गर्दन पर लपेट चुकी थी वासना का आवेग थमते ही सुगना ने स्वयं को व्यवस्थित करने की कोशिश की पर अपने हाथ पीछे वक्त करते वक्त अचानक उसका हाथ किचन स्लैब पर दूर रखें एक गिलास से टकरा गया और वह नीचे गिर पड़ा। रात्रि के सन्नाटे में बर्तन गिरने की आवाज उन सभी तक पहुंची जो अर्ध जागृत थे


कजरी की आवाज आई

“का भईल”

सुगना और सोनू दोनों झटपट अलग हुए दोनों में से किसी ने उत्तर नहीं दिया तभी कजरे की आवाज दोबारा आई

के बा रसोई में ?

जब तक सुगना स्वयं को व्यवस्थित कर जवाब देती तब तक कजरी गलियारे में आ चुकी थी सोनू किचन से गलियारे में निकल रहा था उसने कहा

“कोनो बात नईखे रसोई में पानी पिए गइल रहनि हा दीदी टकरा के गिलास नीचे गिर गईल हा

सोनू ने बात बना ली थी । परंतु सोनू की आवाज अंदर लाली के कमरे में लिहाफ ओढ़ के पड़ी नंगी लाली ने सुन ली। सुगना तो बाथरूम गई थी वह रसोई घर कैसे पहुंच गई लाली कुछ सोच पाने की स्थिति में नहीं थी इतने में सुगना ने कमरे में प्रवेश किया।वह अभी भी अपनी सांसों पर काबू पाने का प्रयास कर रही थी

“का भईल काहे आतना देर हो गईल हा?”

अरे सोनूआ प्यासल रहल हा उ हो रसोई में पानी पिए आ गइल हा…

सुगना ने जो बात कही थी वह सच थी सोनू प्यासा था पर पानी के लिए नहीं अपित सुगना की जांघों के बीच उस सुनहरी गुफा से रिस रहे अमृत रस का…

सुगना ने सूरज का मन रख लिया था और अपना वादा पूरा कर दिया था। सुगना ने जो हिम्मत दिखाई थी उसका यकीन सोनू को नहीं था कैसे घर की सबसे चहेती सुगना ने भरे पूरे परिवार जनों के बीच आज सोनू के साथ अपने ही घर में संभोग कर उसे आश्चर्यचकित कर दिया था।

धीरे-धीरे सुगना और सोनू के मिलन अब स्वाभाविक रूप से होने लगे परंतु सोनू और सुगना के बीच जब भी कभी सेक्स होता उसमें हर बार नयापन होता सुगना अपनी वासना की परतें एक-एक करके खोलती और सोनू उसमें और उलझ जाता। सोनू ने भी सुगना के साथ हर उसे जगह और अवस्था में संभोग किया जिसकी परिकल्पना उसने अपनी युवा अवस्था में की थी शायद उसके सपने लाली भी पूरे नहीं कर पाती परंतु सुगना ने तो जैसे सोनू के लिए बनी थी। उसने अपना जीवन सोनू के कुर्बान कर दिया था।

सोनू के गर्दन का दाग उनके मिलन का एकमात्र गवाह था जो बार-बार सोनू और सुगना को याद दिलाता की कुछ गलत हो रहा था पर वासना में डूबे सुगना और सोनू उसे नजरअंदाज कर इस दलदल में और गहरे तक उतरते जा रहे थे।

समय बीतता गया सुगना और सोनू के मिलन की यादें उनके दिलों दिमाग में एक अमिट छाप बनती गई यह यादें महत्वपूर्ण थी आने वाले समय में सुगना के पास इन यादों का ही सहारा था और शायद सोनू के पास भी।

कुछ वर्षों बाद ही सोनू और सुगना की खुशियों पर ग्रहण लग गया परिवार में कुछ ऐसा हुआ जिसे सब कुछ तहस-नहस कर दिया वासना का अतिरेक सुगना के परिवार को अचानक वासना विहीन कर गया यह अवांछित घटना थी

सरयू सिंह की मृत्यु।

सरजू सिंह की मृत्यु कैसे हुई यह प्रश्न उतना ही कठिन था जितना कि कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा पर कुछ प्रश्नों के उत्तर भविष्य के गर्भ में दफन होते हैं नियति इस कामुक किताब के पन्ने पलट रही थी और इस जटिल प्रश्न का उत्तर ढूंढ रही थी।

शेष अगले भाग में

 
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Soory for the delay I donot reply for update request sent privately..If you really reading story have courage to come on sroty page and mark your presence with your comments.


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