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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

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भाग 93

सुगना और सोनू मनोरमा मैडम के घर जाने के लिए तैयार होने लगे दोनों ..

नियति सक्रिय थी कहानी की और कहानी की पटकथा को अपनी कल्पनाओं से आकार दे रही थी..

दोनों बच्चे एंबेसडर कार में बैठकर चहक उठे सूरज आगे ड्राइवर के बगल में बैठ कर उससे ढेरों प्रश्न पूछ रहा था जैसे कार चलाना एक ही पल में सीख लेगा..


मनोरमा की एंबेसडर कार सरयू सिंह की दोनों प्रेमिकाओं को एक दूसरे से मिलाने के लिए लखनऊ की सड़कों पर सरपट दौड़ रही थी और सोनू अपनी मैडम के घर जाने को तैयार बड़े अदब से अपने कपड़े ठीक कर रहा था..

अब आगे

मनोरमा की एंबेसडर कार उसके खूबसूरत बंगले के पोर्च में आकर खड़ी हो गई। सागौन की खूबसूरत लकड़ी से बना विशालकाय दरवाजा खुल गया।

मनोरमा शायद सुगना का इंतजार ही कर रही थी। उसने दरवाजा स्वयं खोला था… घर में इतने सारे नौकर चाकर होने के बावजूद मनोरमा का स्वयं उठकर दरवाजा खोलना यह साबित करता था कि वह सुगना से मिलने को कितना अधीर थी।

ड्राइवर ने उतरकर सुगना की तरफ का कार का दरवाजा खोला और सुगना अपनी साड़ी ठीक करते हुए उतर कर मनोरमा के बंगले के दरवाजे के सामने आ आ गई।


सरयू सिंह के प्यार से सिंचित दो खूबसूरत महिलाएं एक दूसरे के गले लग गई। हर बार की तरह सुगना की कोमल चुचियों ने मनोरमा की चुचियों को अपनी कोमलता और अपने अद्भुत होने का एहसास दिला दिया।

सोनू अपनी पुत्री मधु को लेकर उतर रहा था। वह आश्चर्यचकित था कि ड्राइवर ने उस जैसे नए-नए एसडीएम को छोड़कर सुगना का दरवाजा क्यों खोला था। इसमें जलन की भावना कतई न थी वह इस बात से बेहद प्रभावित था कि सुगना दीदी का आकर्षण सिर्फ उस पर ही नहीं अपितु उनके संपर्क में आए सभी व्यक्तियों पर वैसे ही चढ़ जाता था…..

क्या स्त्री क्या पुरुष .. क्या राजा… क्या रंक ….जिस तरह एक सुंदर बच्चा सबको प्यारा लगता है सुगना भी सबका मन मोहने में सक्षम थी…जितनी सुंदर तन उतना सुंदर मन….. चाहे वह गांव की बूढ़ी औरतें हो या छोटे बच्चे…वह सब की प्यारी थी…..और उन मर्दों का क्या जिनके जांघों के जोड़ पर अब भी हरकत होती थी.. उन्हें तो सुगना शिलाजीत को गोली लगती थी…जिसे देखकर और कल्पना कर वह अपनी पत्नी या महबूबा की अगन बुझाया करते थे।

शायद ड्राइवर भी इस पहली मुलाकात में ही सुगना के तेज और व्यक्तित्व से प्रभावित हो गया था जो वासनाजन्य कतई न था…और शायद इसीलिए उसने उतरकर कार का दरवाजा सुगना के लिए खोला था…

सुगना के बाद मनोरमा ने सोनू का भी अभिवादन किया और सोनू ने अपने दोनों हाथ जोड़कर मनोरमा को प्रणाम किया परंतु सुगना तपाक से बोल पड़ी

"अरे सोनू मैडम जी के पैर छू ये तुम्हारी गुरु हैं…"

सोनू ने झुककर मनोरमा के पैर छुए परंतु मनोरमा ने सोनू को बीच में ही रोक लिया।

जात पात धर्म सबको छोड़ आज सुगना ने सोनू को मनोरमा के चरणों में ला दिया था शायद यह मनोरमा के आत्मीय व्यवहार और उसके कद की देन थी।

आदर और सम्मान आत्मीयता से और बढ़ता है शायद मनोरमा के इस अपनेपन से सुगना प्रभावित हो गई थी।

यद्यपि मनोरमा सुगना से भी उम्र में 8 से 10वर्ष ज्यादा बड़ी थी परंतु सुगना ने मनोरमा के पैर नहीं छूए उन दोनों का रिश्ता सहेलियों का बन चुका था और वह अब भी कायम था।

सूरज को अपनी गोद में उठाकर मनोरमा ने उसे पप्पी दी। सूरज निश्चित ही अनोखा बालक था…उसने पप्पी उधार न रखी और मनोरमा के खूबसूरत होंठों को चूम लिया….मनोरमा को यह अटपटा लगा पर तीन चार वर्ष के बच्चे के बारे में कुछ गलत सोचना अनुचित था मनोरमा ने मुस्कुराते हुए कहा…

"नॉटी बॉय"

सुगना ने सूरज को आंखे दिखाई और सूरज ने एक बार फिर मनोरमा के गालों पर पप्पी देकर पुरानी गलती भुलाने की कोशिश की…

दरअसल सुगना के अत्यधिक लाड प्यार से सूरज कई बार सुगना के होठों पर पप्पी दे दिया करता था और सुगना कभी मना न करती थी पर एक दिन जब उसने लाली के सामने सुगना के होंठो पर पप्पी दी लाली बोल पड़ी..

लगता ई अपना मामा (सोनू) पर जाई..

सुगना और लाली दोनों हसने लगे..उसके बाद सुगना ने सूरज की यह आदत छुड़ाने की कोशिश करने लगी पर कभी कभी सूरज ऐसा कर दिया करता था…उसकी इस आदत की एक और कद्रदान थी वह थी सोनी…. एक तरफ .सुगना सूरज की आदत छुड़ाने को कोशिश करती उधर सोनी को यह बालसुलभ लगाता…उसे उसे सूरज के कोमल होंठ चूसना बेहद आनंददायक लगता और यही हाल सूरज का भी था…

सूरज वैसे भी अनोखा था..और हो भी क्यों न सरयू सिंह जैसे मर्द और सुगना जैसे सुंदरी का पुत्र अनोखा होना था सो था….

सूरज मनोरमा की गोद से उतरकर खेलने लगा..

मनोरमा का ड्राइंग रूम आज भरा भरा लग रहा था….


पिछले एक-दो दिनों में ही मनोरमा का खालीपन अचानक दूर हो गया था…. जैसे उसे कोई नया परिवार मिल गया था… मनोरमा उन सब से तरह-तरह की बातें कर रही थी…. ऐसा लग ही नहीं रहा था जैसे वह एक प्रतिष्ठित प्रशाशनिक अधिकारी थी।

घर ने नौकरों ने मनोरमा को इतना सहज और प्रसन्न शायद ही कभी देखा हो..

सहजता चेहरे पर निखार लाती है…अकड़ तनाव

गप्पे लड़ाई जा रही थीं। बातों के कई टॉपिक सोनू नया-नया एसडीएम बना था मनोरमा कभी उसे प्रशासन के गुण सिखाती कभी सुगना की तारीफ के पुल बांध देती। सुगना और सोनू दोनों मनोरमा के मृदुल व्यवहार के कायल हुए जा रहे थे।

कुछ देर बातें करने के बाद सूरज ने बाहर बगीचा देखने की जिद की और सोनू उसे लेकर मनोरमा का खूबसूरत बगीचा दिखाने लगा।

अंदर से मनोरमा की नौकरानी मधु को लिए ड्राइंग रूम में लेकर आ गई और मनोरमा को देखते हुए बोली मैडम बेबी आपके पास आना चाह रही है।

सुगना ने कौतूहल भरी निगाहों से मनोरमा की तरफ देखा और पूछा..

"कितनी सुंदर है ..किसकी बेटी है यह.."

मनोरमा ने पिंकी को अपनी गोद में ले लिया और अपने आंचल में ढककर झट से अपनी चूचियां पकड़ा दी … सुगना को उसके प्रश्नों का उत्तर मिल चुका था..

सुगना ने अपने दोनों हाथ जोड़े और अपने भगवान को याद करते हुए बोली


"चलिए भगवान ने प्रार्थना सुन ली और आपकी गोद में इस फूल सी बच्ची को दे दिया "

सुगना ने भी अपने हाथ जोड़कर कभी न कभी मनोरमा के लिए दुआ मांगी थी यह अलग बात थी कि उसे इसकी उम्मीद कम ही थी शायद इसीलिए उसने यह जानने की कोशिश न थी कि मनोरमा की गोद भरी या नहीं।

सुगना को क्या पता था कि जिस रसिया ने उसके जीवन में रंग भरे थे उसी रसिया ने मनोरमां की कोख में भी रस भरा था।

जब बच्चे का जिक्र आया तो सुगना ने बड़े अदब से पूछा

"साहब कहां है"

सुगना को इस बात का पता न था कि मनोरमा सेक्रेटरी साहब को छोड़कर अब अकेले रहती है। उसने स्वाभाविक तौर पर यह पूछ लिया परंतु मनोरमा ने कहा "अब वह यहां नहीं रहते"


मनोरमा ने इस बारे में और बातें न की और नौकरानी द्वारा लाए गए नाश्ते को सुगना को देते हुए बोली

"अरे यह ठंडा हो जाएगा पहले इसे खत्म करिए फिर खाना खाते हैं"

सुगना और मनोरमा ने इधर उधर की ढेर सारी बातें की सब मिलजुल कर खाना खाने लगे..

सुगना की पुत्री मधु ( जो दरअसल लाली और सोनू की पुत्री है) और मनोरमा की पुत्री पिंकी दोनों को एक ही पालना में लिटा दिया गया…शायद यह पालना जरूरत से ज्यादा बड़ा था। दोनों एक दूसरे को देखती और एक दूसरे के गालो को छूकर जैसे एक दूसरे को प्यार करती मनोरमा और सुगना उन्हें खेलते देख मुस्कुरा रही थीं। एक और शख्स था जो उन दोनों को एक साथ देख कर बेहद उत्साहित था और वह था छोटा सूरज।

वह अपनी प्लेट से दाल अपनी उंगलियों में लेता और जाकर मधु और पिंकी के कोमल होंठों पर चटा देता .. दोनों अपनी छोटी-छोटी जीभ निकालकर उस दाल के स्वाद का आनंद लेती और खुश हो जाती मनोरमा और सुगना सूरज के इस प्यार को देख रही थी मनोरमा से रहा न गया उसने कहा..

" सूरज अपनी बहन मधु का कितना ख्याल रखता है…?"

सुगना भी यह बात जानती थी परंतु उसने मुस्कुराते हुए कहा

"अरे थोड़ा बड़े होने दीजिए झगड़ा होना पक्का है"

"और इस शैतान पिंकी को तो देखिए सूरज की उंगलियों से कैसे दाल चाट रही है ऐसे खिलाओ तो नखरे दिखाती है" मनोरमा ने फिर कहा..

"लगता है पिंकी का भी बच्चों में मन लग रहा है शायद इसीलिए वह खुश है"

सुगना ने स्वाभाविक उत्तर दिया।

खाना परोस रही युवती के रूप में नियति सारे घटनाक्रम बारीकी से देख रही थी…उसने सूरज के भविष्य में झांकने की कोशिश की…पर कुछ निष्कर्ष निकाल पाने में कामयाब न हो पाई…


खाना लगभग खत्म हो चुका था। और अब बारी थी मनोरमा के खूबसूरत घर को देखने की. सुगना वह घर देखना चाहती थी पर बोल पाने की हिम्मत न जुटा पा रहे थी..

सुगना जब भी मौका मिलता मनोरमा के घर की भव्यता को अपनी आंखें बड़ी-बड़ी कर निहार लेती सुगना ने भव्यता की दुनिया में अब तक कदम न रखा था वह ग्रामीण परिवेश से निकलकर शहर में आज जरूर गई थी परंतु आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी न थी।

सुंदर वस्तुएं किसे अच्छी नहीं लगती मनोरमा के घर की हर चीज खूबसूरत थी…

मनोरमा ने सुगना की मनोस्थिति ताड़ ली और बोली चलिए आपको अपना घर दिखाती हूं..

सुगना खुशी-खुशी मनोरमा के साथ चल पड़ी और एक बार फिर बच्चों को संभालने का जिम्मा सोनू पर आ गया।

सुगना को मनोरमा ने पूरा घर दिखाया…जितना सुगना ने पूछा उतना बताया ….और आखरी में सुगना मनोरमा के उस बेडरूम में आ गई जिस पर बीती रात सरयू सिंह और मनोरमा ने जन्नत का आनंद लिया था..

मनोरमा का बिस्तर बेहद खूबसूरत था…पलंग के सिरहाने पर मलमल के कपड़े से तरह-तरह की डिजाइन बनाई गई थी बेड की खूबसूरती देखने लायक थी सुगना से रहा न गया उसने मनोरमा से पूछ लिया यह तो लगता है बिल्कुल नया है…

हां इसी घर में आने के बाद लिया है….

नियति मुस्कुरा रही थी। मनोरमा जैसे सेक्रेटरी साहब को पूरी तरह भूल जाना चाहती थी। नए घर में आते समय वह जानबूझकर उस पुराने पलंग को वहीं छोड़ आई थी जिस पर सेक्रेटरी साहब ने उसकी सुंदर काया का सिर्फ और सिर्फ शोषण किया था।

सुगना ने घर देखने के दौरान यह नोटिस कर लिया था कि पूरे घर में सेक्रेटरी साहब की एक भी फोटो न थी सुगना समझदार महिला थी और उसने शायद यह अंदाजा लगा लिया कि सेक्रेटरी साहब मनोरमा के साथ शायद नहीं रहते…..

मनोरमा और सुगना बिस्तर पर बैठ कर बातें कर रही थी अचानक मनोरमा ने अपने मन की बात सुनना से पूछ ली..

"एक बात बताइए सरयू जी ने विवाह क्यों नहीं किया ?क्या आपको पता है…?"

सुगना को ऐसे प्रश्न की उम्मीद मनोरमा से कतई न थी वह असहज हो गई फिर भी उसने स्वयं को संतुलित किया और बोली..

"मुझे कैसे पता होगा जब उनकी शादी करने की उम्र थी तब तो शायद में पैदा भी नहीं हुई थी.."

बात सच थी मनोरमा के प्रश्न का उत्तर सुगना ने बखूबी दे दिया था…

"परंतु मुझे लगता है सरयू सिंह जी के जीवन में कोई ना कोई महिला अवश्य है" मनोरमा ने गम्भीरता से कहा..

सुगना घबरा गई उसके और सरयू सिंह के बीच के संबंध यदि जगजाहिर होते तो वह कहीं मुंह दिखाने के लायक न रहती। अचानक उसके दिमाग में कजरी का ध्यान आया उसने मनोरमा के प्रश्न को बिल्कुल खारिज न किया अपितु मुस्कुराते हुए बोली

"लगता तो नहीं …..पर होगा भी तो वह बाबूजी ही जाने.."

सुगना ने बाबूजी शब्द पर जोर देकर खुद को मनोरमा के शक से दूर करने को कोशिश की.

"लेकिन आपको ऐसा क्यों लगता है ?" अब की बार सुगना ने प्रश्न किया। मनोरमा तो जैसे ठान कर बैठी थी उस ने मुस्कुराते हुए कहा

" बनारस महोत्सव का वो कमरा याद है…"

"हा"

"मैंने उस कमरे से सरयू सिंह के साथ एक महिला को निकलते हुए देखा था.."

मनोरमा ने इंट्रोगेट करने की शायद पढ़ाई कर रखी थी। उसने एक छोटा झूठ बोलकर सुगना का मन टटोलने की कोशिश की… सुगना स्वयं आश्चर्यचकित थी उसकी सास कजरी कभी उस कमरे में गई न थी .. तो वह औरत कौन थी जो सरयू सिंह के साथ उस कमरे में थी…

सुगना ने बहुत दिमाग दौड़ाया पर वह किसी निष्कर्ष पर न पहुंच पाई। सरयू सिंह ने कजरी और उसके अलावा भी किसी से संबंध बनाए थे यह सुगना के लिए सातवें आश्चर्य से कम न था।

"आपको कोई गलतफहमी हुई होगी बाबूजी एसे कतई नहीं है…" यदि सुगना को सरयू सिंह की कामकला और वासनाजन्य व्यवहार का ज्ञान न होता तो शायद वह मनोरमा को उसके प्रश्न पर पूर्णविराम लगा देती।

मनोरमा ने सुगना की आवाज में आई बेरुखी को पहचान लिया और उसके चेहरे पर बदल चुके भाव को भी पढ़ लिया। शायद सुगना इस प्रश्न उत्तर के दौर से शीघ्र बाहर आना चाह रही थी।

अचानक सुगना का ध्यान मनोरमा के सिरहाने मलमल के कपड़े से बने डिजाइन पर चला गया वह अपनी उंगलियां फिराकर उसकी कोमलता का एहसास करने लगी अचानक उसका हाथ मलमल पर लगे दाग पड़ गया …

"वह बोल उठी अरे इतने सुंदर कढ़ाई पर यह क्या गिर गया है "

मनोरमा ने भी ध्यान दिया कई जगह मलमल के कपड़े पर छोटे-छोटे धब्बे पड़ गए थे ऐसा लग रहा था जैसे दूध या दही की बूंदे उस पर गिर पड़ी थीं।


अचानक मनोरमा को ध्यान आया वह बूंदे और कुछ न थी अपितु वह कल रात हुई घनघोर चूदाई की निशानी थीं…जो कल रात उसने नए और कुवारे बिस्तर पर हुई थी।

उसके सामने वह दृश्य घूम गया जब सरयू सिंह अपने लंड को हांथ में पकड़े अपने स्टैन गन की तरह उसके नग्न शरीर पर वीर्य वर्षा कर रहे थे… निश्चित ही यह वही था…


मनोरमा ने सुगना का ध्यान वहां से खींचने की कोशिश की और बोली..

अभी फर्नीचर वाले को फोन कर उसको ठीक करवाती हूं..

पर सुगना कच्ची खिलाड़ी न थी…सरयू सिंह के साथ तीन चार वर्षो के कामुक जीवन में उसने कामकला और उसके विविध रूप देख लिए थे…उसने अंदाज लगा लिया कि वह निश्चित ही पुरुष वीर्य था…और वह भी ज्यादा पुराना नहीं..…

उसने मनोरमा की तरफ देखते हुए मुस्कुरा कर बोला..

"लगता है साहब… अब भी यहाँ आते रहते हैं…"

इतना कहकर सुगना अपना हाथ धोने चली गई…

यदि उसे पता होता कि वह किसी और का नही अपितु सरयू सिंह का वीर्य था तो शायद सुगना का व्यवहार कुछ और होता।

सुगना का यह मज़ाक मनोरमा न समझ पाई …..

शायद उसे सुगना से इस हद तक जाकर बात करने की उम्मीद न थी…

सुगना ने सोच लिया शायद मनोरमा मैडम भी लाली की विचारधारा की है…हो सकता है कोई सोनू उन्हें भी मिल गया हो…तभी सेक्रेटरी साहब से अलग होने के बाद भी उनके बिस्तर पर प्यार के सबूत कायम थे।

उधर सरयू सिंह सुगना और सोनू के आने की राह देख रहे थे उनका मन गेस्ट हाउस में कतई नहीं लग रहा था बार-बार दिमाग में यही ख्याल आ रहे थे कि सुगना और मनोरमा आपस में क्या बातें कर रही होंगी दिल की धड़कन पड़ी हुई थी..

कहते हैं ज्यादा याद करने से उस व्यक्ति को हिचकियां आने लगती हैं जिसे आप याद कर रहे हैं। शायद यह संयोग था या मनोरमा के चटपटे खाने का असर परंतु सुगना को हिचकियां आना शुरू हो गई।

मनोरमा के कमरे से आ रही सुगना की हिचकीयों की आवाज सोनू ने भी सुनी और वह डाइनिंग टेबल पर पड़ी गिलास में पानी डालकर मनोरमा के कमरे के दरवाजे सामने आकर बोला..

" दीदी पानी पी ल"

"अरे सुगना… सोनू तो तुम्हारा बहुत ख्याल रखता है देखो पानी लेकर आया है" मनोरमा ने मुस्कुराते हुए कहा..

मनोरमा ने सोनू को अंदर बुला लिया और सोनू ने अपने हाथ में लिया हुआ ग्लास सुगना को पकड़ा दिया सुगना ने जैसे ही पानी का घूंट अपने मुंह में लिया एक बार फिर हिचकी आ गई और उसके मुंह से सारा पानी नीचे गिर पड़ा जो उसकी चुचियों पर आ गया।


ब्लाउज के अंदर कैद चूचियां भीगने लगीं। सुगना ने अपने हाथ से पानी हटाने की कोशिश की और इस कोशिश में उसकी चूचियों के बीच की दूधिया घाटी सोनू की निगाहों में आ गई। सोनू की आंखें जैसे चुचियों पर अटक सी गई पानी की बूंदे सुगना की गोरी गोरी चुचियों पर मोतियों की तरह चमक रहीं थी।

एक पल के लिए सोनू के मन में आया कि वह सुगना की चुचियों पर गिरा पानी अपने हाथों से पोंछ दे और उन खूबसूरत और कोमल सूचियां के स्पर्श का अद्भुत आनंद ले ले परंतु मनोरमा मैडम आसपास ही थी सोनू ने अपने हाथ रोक लिए….


सुगना ने तुरंत ही सोनू की नजरों को ताड़ लिया और झट से अपने आंचल से सूचियों को ढकते हुए बोली "लागा ता बाबूजी याद करत बाड़े अब हमनी के चले के चाही…"

सोनू की नजरों ने जो देखा था उसने उसके लंड पर असर कर दिया जो अब उसकी पेंट में तन रहा था….

बिछड़ने का वक्त आ चुका था…

मनोरमा ने बिछड़ते वक़्त एक बार फिर सूरज को अपनी गोद में लिया और गाल में पप्पी दी परंतु इस बार मनोरमा सतर्क थी सूरज के होठों को आगे बढ़ते देख उसने झट से अपने गाल आगे कर दिये.. नटखट सूरज मनोरमा के गालों पर पप्पी लेकर नीचे उतर गया…

इतनी बाते करने के बावजूद मनोरमा उस महिला का नाम जानने में नाकाम रही जिसके हिस्से का अंश वह पिंकी के रूप में अपनी झोली ने ले आई थी..

रास्ते भर सुगना और सोनू मनोरमा की तारीफों के पुल बांधते रहे परंतु मनोरमा के बिस्तर पर वीर्य के निशान देख सुगना का मन कुछ खट्टा हो गया था…

मनोरमा की बंजर हो चुकी कोख को किसने सींचा होगा सुगना के लिए प्रश्न बन चुका था…कही कल बाबूजी मनोरमा के साथ ही तो नहीं थे? एक पल के लिए सुगना के दिमाग में आया परंतु कहां मनोरमा और सरयू सिंह में दूरी जमीन आसमान की थी और शायद यह सुगना की कल्पना से परे था कि सरयू सिंह अपनी भाग्य विधाता को चोद सकते हैं…

मनोरमा के बारे में यदि कोई शख्स बता सकता था तो वह थे उसके बाबूजी शरीर से इसके अलावा सुगना की जिज्ञासा शांत करने वाला और कोई ना था…वह एंबेसडर कार के गेस्ट हाउस पहुंचने की राह देखने लगी..

उधर सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना की चुचियों को अपने दिमाग में अनावृत कर रहा था…और और अपनी कल्पनाओं में उन खूबसूरत चुचियों पर अपने गाल रगड़ रहा था…

सुगना और सरयू सिंह दोनों एक दूसरे का इंतजार कर रहे थे पर अपने अपने प्रश्नों और जिज्ञासाओं के साथ…

शेष अगले भाग में…
एक और अतिउत्तम सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
सुगना और मनोरमा मॅडम में एक दुसरों बारे में जानने की जिज्ञासा ,सुरज की बालसुलभ क्रिया मनोरमा मॅडम के बेड पर दिखें विर्य के दाग,पानी गिरने से सुगना के सोनू को चुची दर्शन और सुगना ने अपने आप को संभालना ,सोनू का चुची दर्शन के बाद खो जाना अद्भुत अद्वितीय हैं जितके लिए शब्द कम पडते हैं
 

Lovely Anand

Love is life
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Is update me purntaya sugna he chhayi rahi....

Saryu sing ki halat patli ho gai... Is liye fatafat lakhnow se banaras bhage par banaras ja ke kya sugna unhe chodegi kya ?

Sonu or sugna ko aapki Rail cabin me baithi niyati aache se dekh rahi hai...ab niyati ne bhi aapna khela khelna suru kar diya hai....

Ab itezar hai sonu or sugna ke milan ka...jo ki aala grand hoga us me koi shak nahi hai

Dhanyavad lovely bhai ek or bahetarin update ke liye
Thanks for your valuable comment
Nice Update 91, Proves A Famous Old Saying "Men are from Mars and Women are from Venus" Thinking Planes of Men and Women are always Different but Nicely Intersect on the Line of Amorousness.
Truely said..thanks for sharing your opinion
एक और अतिउत्तम सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
सुगना और मनोरमा मॅडम में एक दुसरों बारे में जानने की जिज्ञासा ,सुरज की बालसुलभ क्रिया मनोरमा मॅडम के बेड पर दिखें विर्य के दाग,पानी गिरने से सुगना के सोनू को चुची दर्शन और सुगना ने अपने आप को संभालना ,सोनू का चुची दर्शन के बाद खो जाना अद्भुत अद्वितीय हैं जितके लिए शब्द कम पडते हैं
थैंक्स भाई यूं ही साथ बनाए रखें
Waiting for new updates pls post it
Sure...
अति सुन्दर अपडेट. धन्यवाद.
Thanks..


ऐसा लग रहा है कि मेरे जागृत हुए पाठक या तो कहानी समय अभाव के कारण पढ़ नहीं पा रहे हैं या मैं अपडेट कुछ ज्यादा जल्दी जल्दी दे रहा हूं।
फिर भी पढ़ने के पश्चात एक बार फिर प्रतिक्रिया देने में शर्म आ रहे हैं मेरा अनुरोध है ऐसा ना करें आपके कमेंट ही इस कहानी को आगे बढ़ाएंगे इतना ध्यान रखें..
आप सबके कामा फुलस्टॉप की प्रतीक्षा में
...
 
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Guddu sharma

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Thanks for your valuable comment

Truely said..thanks for sharing your opinion

थैंक्स भाई यूं ही साथ बनाए रखें

Sure...

Thanks..


ऐसा लग रहा है कि मेरे जागृत हुए पाठक या तो कहानी समय अभाव के कारण पढ़ नहीं पा रहे हैं या मैं अपडेट कुछ ज्यादा जल्दी जल्दी दे रहा हूं।
फिर भी पढ़ने के पश्चात एक बार फिर प्रतिक्रिया देने में शर्म आ रहे हैं मेरा अनुरोध है ऐसा ना करें आपके कमेंट ही इस कहानी को आगे बढ़ाएंगे इतना ध्यान रखें..
आप सबके कामा फुलस्टॉप की प्रतीक्षा में
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सहजता चे ह रे पर निखार लाती है अति सुंदर भाई जी
 

ChaityBabu

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भाग 92
सरयू सिंह अपने मन में सुखद कल्पनाएं लिए कल्पना लोक में विचरण करने लगे. कई दृश्य धुंधले धुंधले उनके मानस पटल पर घूमने लगे कजरी… पदमा सुगना… और अब मनोरमा….. मानस पटल पर अंकित इन चार देवियों में अब भी सुगना नंबर एक पर ही थी…

सरयू सिंह को यदि यह पता न होता की सुगना उनकी पुत्री है तो वह सुगना को जीवन भर अपनी अर्धांगिनी बनाकर रखते…और सारे जहां की खुशियां उसकी झोली में अब भी डाल रहे होते….

रात बीत रही थी सूरज गोमती नदी के आंचल से निकलकर लखनऊ शहर को रोशन करने के लिए बेताब था।

अब आगे..

आज लखनऊ की सुबह बेहद सुहानी थी… गंगाधर स्टेडियम में सोनू और उसके साथियों के शपथ ग्रहण समारोह के लिए दिव्य व्यवस्था की गई थी… सफेद वस्त्रों से बने पांडाल पर गेंदे के फूल से की गई सजावट देखने लायक थी…बड़े-बड़े कई सारे तोरण द्वार बनाए गए थे। उन पर की गई सजावट सबका मन मोहने वाली थी। सुगना अपने दोनों छोटे बच्चों के साथ सज धज कर तैयार होकर और सोनू और सरयू सिंह के साथ गंगाधर स्टेडियम में प्रवेश कर रही थी।

सुगना इतनी भव्यता की आदी न थी वह आंखें फाड़ फाड़ कर गंगाधर स्टेडियम में की गई सजावट का आनंद ले रही थी.. सुगना यह बात भूल रही थी कि वह स्वयं नियति और नियंता की अनूठी कृति है।


जो स्वयं सबका मन मोहने वाली थी वह गंगाधर स्टेडियम की सजावट में खोई हुई थी वह जिस रास्ते से गुजर रही थी आसपास के लोग उसे एकटक देख रहे थे।

जाने सुगना के शरीर में ऐसा कौन सा आकर्षण था कि हर राह चलता व्यक्ति उसे एकटक देखता रह जाता सांचे में ढली मदमस्त काया साड़ी के आवरण में भी उतनी ही कामुक थी जितनी साड़ी के भीतर।

शिफॉन की साड़ी ने उसकी काया को और उभार दिया था भरी-भरी चूचियां पतली गोरी कमर और भरे पूरे नितंब हर युवा और अधेड़.. सुगना के शरीर पर एक बार अपनी निगाह जरूर फेर लेता। और जिसने उसके कोमल और मासूम चेहरे को देख लिया वह तो जैसे उसका मुरीद हो जाता। एक बार क्या बार-बार जब तक सुगना उसकी निगाहों की के दायरे में रहती वह उस खूबसूरती का आनंद लेता।

सुगना धीरे-धीरे दर्शक दीर्घा में आ गई…

सोनू ने सुगना और सरयू सिंह के बैठने का प्रबंध किया और सुगना का पुत्र सूरज सरयू सिंह की गोद में आकर उनसे खेलने लगा सूरज और सरयू सिंह का प्यार निराला था। सरयू सिंह की उम्र ने सूरज को उन्हें बाबा बोलने पर मजबूर कर दिया था ….

मधु सुगना की गोद में बैठी चारों तरफ एक नए नजारे को देख रही थी उस मासूम को क्या पता था कि आज उसके पिता सोनू एक प्रतिष्ठित पद की शपथ लेने जा रहे थे..

सूट बूट में सोनू एक दूल्हे की तरह लग रहा था था . सुगना ने अधिकतर युवकों को सूट-बूट विवाह समारोह के दौरान ही पहनते देखा था।

सुगना की निगाहें बार-बार सोनू पर टिक जाती और वह अपनी हथेलियों को मोड़ कर अपने कान के पास लाती और मन ही मन सोनू की सारी बलाइयां उतार लेती मन ही मन वह अपने अपने इष्ट देव से सोनू को हर खुशियां और उसकी हर इच्छा पूरी करने के लिए वरदान मांगती.. परंतु शायद सुगना यह नहीं जानती थी कि इस समय सोनू के दिमाग में सिर्फ और सिर्फ एक इच्छा थी और वह सिर्फ सुगना ही पूरा कर सकती थी। और वह इच्छा पाठको की इच्छा से मेल खाती थी।

सुगना की प्रार्थना भगवान ने भी सुनी और नियति ने भी जिस मिलन की प्रतीक्षा सोनू न जाने कब से कर रहा था सुगना ने अनजाने में ही अपने इष्ट देव से सोनू की खुशियों के रूप में वही मांग लिया था..

मंच पर गहमागहमी बढ़ गई…. सभी मानिंद लोक मंच पर आसीन हो चुके थे मुख्य अतिथि का इंतजार अब भी हो रहा था।


अचानक पुलिस वालों के सुरक्षा घेरे में एक महिला आती हुई दिखाई पड़ी। दर्शक दीर्घा में कुछ लोग खड़े हो गए… फिर क्या था… एक के पीछे एक धीरे धीरे सब एक दूसरे का मुंह ताकते ……..परंतु उन्हें खड़ा होते देख स्वयं भी खड़े हो जाते … कुछ ही देर में पंडाल में बैठे सभी लोग खड़े हो गए सुगना और सरयू सिंह भी उनसे अछूते न थे धीरे-धीरे महिला मंच के करीब आ गई।

सुगना की निगाह उस महिला पर पड़ते सुगना बोल उठी…

"अरे यह तो मनोरमा मैडम है…अब तक सरयू सिंह ने भी मनोरमा को देख लिया था जिस मनोरमा को बीती रात उन्होंने जी भर कर चोदा था आज वह चमकती दमकती अपने पूरे शौर्य और ऐश्वर्य में अपने काफिले के साथ इस मंच पर आ चुकी थी।

उद्घोषणा शुरू हो चुकी थी…और सभी अपने अपने मन में चल रहे विचारों को भूलकर उद्घोषणा सुनने में लग गए…

आज मनोरमा के चेहरे पर एक अजब सी चमक थी सरयू सिंह और मनोरमा की निगाहें मिली। मनोरमा ने न चाहते हुए भी सरयू सिंह के चेहरे से अपनी निगाहें हटा ली और सामने बैठी अपनी जनता को सरसरी निगाह से देखने लगी।.

मंच पर बैठने के पश्चात उसने अपनी निगाहों से सुगना को ढूंढने की कोशिश की ….सरयू सिंह के बगल में बैठी सुगना को देखकर मनोरमा ने मुस्कुरा कर सुगना का अभिवादन किया। परंतु सुगना ने अपना हाथ उठाकर मनोरमा का ध्यान अपनी ओर खींचने की कोशिश की। सुगना के मासूमियत भरे अभिवादन से मनोरमा खुद को ना रोक पाई और उसने भी हाथ उठाकर सुगना के अभिवादन का जवाब दे दिया।


दर्शक दीर्घा में बैठे सभी लोग उस शख्स की तरफ देखने लगे जिसके लिए मनोरमा ने अपने हाथ हिलाए थे… सुगना को देखकर सब आश्चर्यचकित थे मनोरमा और सुगना के बीच के संबंध को समझ पाना उनके बस में न था…सरयू सिंह मन ही मन घबरा रहे थे की कहीं सुगना और मनोरमा अपनी बातें एक दूसरे से साझा न कर लें…

डर चेहरे से तेज खींच लेता है…. सरयू सिंह अचानक खुद को निस्तेज महसूस कर रहे थे.. वह वह अपना ध्यान मनोरमा से हटाकर सूरज के साथ खेलने लगे..

उधर मंच पर बैठी मनोरमा सरयू सिंह और सुगना को देख रही थी नियति ने दो अनुपम कलाकृतियों को पूरी तन्मयता से गढ़ा था उम्र का अंतर दरकिनार कर दें तो शायद सरयू सिंह और सुगना खजुराहो की दो मूर्तियों की भांति दिखाई पड़ रहे थे एक बार के लिए मनोरमा ने अपने प्रश्न के उत्तर में सुगना को खड़ा कर लिया परंतु उसका कोमल और तार्किक मन इस बात को मानने को तैयार न था कि सरयू सिंह अपनी पुत्री की उम्र की पुत्रवधू सुगना के साथ ऐसा संबंध रख सकते है…

मंच पर मनोरमा मैडम का उनके कद के अनुरूप भव्य स्वागत किया गया । सरयू सिंह मनोरमा की पद और प्रतिष्ठा के हमेशा से कायल थे और आज उसे सम्मानित होता देख कर स्वयं गदगद हो रहे थे। मनोरमा के सम्मान से उन्होंने खुद को जोड़ लिया था आखिर बीती रात मनोरमा और सरयू सिंह एक ऐसे रिश्ते में आ चुके थे जो शायद आगे भी जारी रह सकता था।

स्वागत भाषण के पश्चात अब बारी थी इस प्रोग्राम के सबसे काबिल और होनहार युवा एसडीएम को बुलाने..की…

सभी प्रतिभागीयों के परिवार के लोग उस व्यक्ति के नाम का इंतजार कर रहे थे जो इस ट्रेनिंग की बाद हुई परीक्षा में अव्वल आया था और जिसे इस कार्यक्रम में सबसे पहले सम्मानित किया जाना था..

प्रतिभागियों के परिवार को शायद इसका अंदाजा न रहा हो परंतु सभी प्रतिभागी यह जानते थे कि उनका कौन इस ट्रेनिंग प्रोग्राम की शान था और वही निर्विवाद रूप से इस ट्रेनिंग प्रोग्राम का सबसे होनहार व्यक्ति था।

उद्घोषक ने मंच पर आकर कहा …

अब वह वक्त आ गया है कि इस ट्रेनिंग प्रोग्राम के सबसे होनहार और लायक प्रतिभागी का नाम आप सबके सामने लाया जाए आप सब को यह जानकर हर्ष होगा कि यह वही काबिल प्रतिभागी हैं जिन्होंने पिछली बार पीसीएस परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया था…

उद्घोषक के कहने से पहले ही भीड़ से संग्राम सिंह …संग्राम सिंह…. की आवाज गूंजने लगी…

अपने सोनू का नाम भीड़ के मुख से सुनकर सुगना आह्लादित हो उठी उसने पीछे मुड़कर देखा। पीछे खड़ी भीड़ गर्व से संग्राम सिंह का नाम ले रही थी।

उद्घोषक ने भीड़ की आवाज थमने का इंतजार किया और बोला आप लोगों ने सही पहचाना वह संग्राम सिंह ही हैं मैं मंच पर उनका स्वागत करता हूं और साथ ही स्वागत करता हूं उनकी बहन सुगना जी का जिनके मार्गदर्शन और सहयोग से संग्राम सिंह जी ने यह मुकाम हासिल किया है। सुगना बगले झांक रही थी…उसे इस आमंत्रण की कतई उम्मीद न थी।

उद्घोषक ने एक बार फिर कहा मैं संग्राम सिंह जी से अनुरोध करता हूं कि अपनी बहन सुगना जी को लेकर मंच पर आएं और मनोरमा जी के द्वारा अपना पुरस्कार प्राप्त करें..

सोनू न जाने किधर से निकलकर सुगना के ठीक सामने आ गया सुगना मंच पर जाने में हिचक रही थी परंतु नाम पुकारा जा चुका था सरयू सिंह ने मधु को सुगना की गोद से लेने की कोशिश की परंतु वह ना मानी और सुगना अपनी गोद में छोटी मधु को लेकर सोनू के साथ मंच की तरफ बढ़ चली…


मंच पर पहुंचकर सुगना को एक अलग ही एहसास हो रहा था सारी निगाहें उसकी तरफ थी। मनोरमा मैडम के पास पहुंचकर मनोरमा ने सोनू और सुगना दोनों से हाथ मिलाया। सुगना की हथेली को छूकर मनोरमा को एहसास हुआ जैसे उसने किसी बेहद मुलायम चीज को छू लिया हो मनोरमा एक बार फिर वही बात सोचने लगी कि ग्रामीण परिवेश में रहने के बावजूद सुगना इतनी सुंदर और इतनी कोमल कैसे थी ।

दो सुंदर महिलाएं और सोनू कैमरे की चकाचौंध में स्वयं को व्यवस्थित कर रहे थे फोटोग्राफी पूरी होने के पश्चात उद्घोषक ने सुगना को माइक देते हुए कहा

"अपने भाई के बारे में कुछ कहना चाहेंगी?"

सुगना का गला रूंध आया अपने भाई की सफलता पर सुगना भाव विभोर थी उसके मुंह से शब्द ना निकले परंतु आंखों से बह रहे खुशी के हाथों ने सुगना की भावनाओं को जनमानस के सामने ला दिया..

सुगना ने अपने कांपते हाथों से माइक पकड़ लिया और अपने बाएं हाथ से अपने खुशी के आंसू पूछते हुए बोली..

"मेरा सोनू निराला है आज उसने हम सब का मान बढ़ाया है मैं भगवान से यही प्रार्थना करूंगी कि उसकी सारी इच्छाएं पूरी हो और वह हमेशा खुश रहे…"

तालियों की गड़गड़ाहट ने एक बार फिर सुगना को भावविभोर कर दिया उसने आगे और कुछ न कहा तथा माइक सोनू को पकड़ा दिया..


आखिरकार माइक सोनू उर्फ संग्राम सिंह के हाथों में आ गया। उसने सब को संबोधित करते हुए कहा मेरी

"मेरी सुगना दीदी मेरा अभिमान है मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा है और मैंने यह निश्चय किया है कि जिसने मेरे जीवन को सजा सवार कर मुझे इस लायक बनाया है मैं जीवन भर उनकी सेवा करता रहूंगा मैं इस सफलता में अपनी मां पदमा और अपने सरयू चाचा का भी शुक्रगुजार हूं…"


पंडाल में बैठे लोग एक बार फिर तालियां बजाने लगे। सूरज भी अपनी छोटी-छोटी हथेलियों से अपने मामा सूरज के लिए ताली बजा रहा था।

सुगना और सोनू के इस भावुक क्षण में वासना न जाने कहां गायब हो गई थी समाज में सोनू और सुगना एक आदर्श भाई-बहन के रूप में प्रतिस्थापित हो चुके थे।

सोनू के पश्चात और भी प्रतिभागियों का सम्मान किया गया। सम्मान समारोह के पश्चात सुगना गंगाधर स्टेडियम से बाहर आ गई…वह मनोरमा मैडम से और कुछ बातें करना चाहती थी परंतु मंच पर उसके और मनोरमा मैडम के बीच की दूरी इतनी ज्यादा थी की उसको पाट पाना असंभव था।


सोनू आज बेहद प्रसन्न था. वह अपनी बड़ी बहन सुगना को हर खुशी से नवाजना चाहता था। ट्रेनिंग के पैसे उसके खाते में आ चुके थे और वह अपनी सुगना दीदी की पसंद की हर चीज उसके कदमों में हाजिर करना चाहता था।

बाहर धूप हो चुकी थी सुबह का सुहानापन अब गर्मी का रूप ले चुका था बच्चे असहज महसूस कर रहे थे सोनू ने सुगना से कहा

" रिक्शा कर लीहल जाओ"

"सूरज खुश हो गया और चहकते हुए बोला

"हां मामा"

सोनू ने रास्ते में चलते हुए दो रिक्शे रोक लिए अब बारी रिक्शा में बैठने की थी।


नियति दूर खड़ी नए बनते समीकरणों को देख रही थी सूरज और सरयू सिंह एक रिक्शे में बैठे और दूसरे में सोनू और सुगना। सोनू की गोद में उसकी पुत्री खेल रही थी …. बाहर भीड़ से निकल रहे लोग रिक्शे में बैठे सोनू और सुगना को देखकर अपने मन में सोच रहे थे कि यदि सोनू और सुगना पति-पत्नी होते तो शायद यह दुनिया की सबसे आदर्श जोड़ी होती। गोद में मधु सोनू और सुगना को पति-पत्नी के रूप में सोचने को मजबूर कर रही थी।

राह चलते व्यक्ति के लिए रिक्शे में बैठे स्त्री पुरुष और गोद में छोटे बच्चे को देखकर यह अनुमान लगाना संभव नहीं है कि वह भाई बहन है…

रिक्शा जैसे ही सिग्नल पर खड़ा हुआ पास के रिक्शे में बैठी एक युवा महिला ने सुगना की गोद में खेल रही मधु को देखकर कहा..

" कितनी सुंदर बच्ची है"

साथ बैठी अधेड़ महिला ने कहा

"जब बच्चे के मां बाप इतने सुंदर है तो बच्चा सुंदर होगा ही" औरत ने अपने अनुभव से रिश्ता सोच लिया।

उस औरत की आवाज सुनकर सुगना ने तपाक से जवाब दिया…

"ये मेरा भाई है पति नहीं"

शायद सुगना सोनू के बारे में ही सोच रही थी जिसकी जांघें सुगना से रगड़ खा रही थी। सुगना सचेत थी और सोनू से सुरक्षित दूरी बनाए हुए थी।

स्त्री पुरुष के बीच रिश्तों का सही अनुमान लगाना आपके अनुभव और विचार पर निर्भर करता है जिन लोगों ने मंच पर सुगना और सोनू को आदर्श भाई बहन के रूप में देखा था अब वह रिक्शे पर बैठे सोनू और सुगना को देखकर उन्हें पति पत्नी ही समझने लगे..थे..

वैसे भी रिश्ते भावनाओं के अधीन होते हैं …सामाजिक रिश्ते चाहे जितने भी प्रगाढ़ क्यों न हो यदि उनके बीच वासना ने अपना स्थान बना लिया वह रिश्तो को दीमक की तरह खा जाती है।


सोनू और सुगना जो आज से कुछ समय पहले तक एक आदर्श भाई बहन थे न जाने कब उनके रिश्तो के बीच दीमक लग चुकी थी। यदि सोनू अपने जीवन के पन्ने पलट कर देखें तो इसमें बनारस महोत्सव का ही योगदान माना जाएगा… जिसमें उसने पहली बार सुगना को सिर्फ और सिर्फ एक नाइटी में देखा था शायद उसके अंतर्वस्त्र भी उस समय उसके शरीर पर न थे…उसी महोत्सव के दौरान जब उसने सुगना को लाली समझकर पीछे से पकड़कर उठा लिया था और अपने तने हुए लंड को सुगना के नितंबों में लगभग धसा दिया था।

उसके बाद से वासना एक दीमक की तरह सोनू के दिमाग में अपना घर बना चुकी थी।भाई बहन के रिश्तो को तार-तार करने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका लाली ने अदा की थी जो मुंह बोली बहन होने के बावजूद अपने पति के सहयोग से सोनू से बेहद करीब आ गई थी और अब उसके साथ हर तरह के वासना जन्य कृत्य कर रही थी।

सोनू के कोमल मन पर धीरे धीरे भाई-बहन के बीच संबंधों का मोल कम होता गया था और वासना अपना आकार बढ़ाती जा रही थी.और अब वर्तमान में सोनू सुगना को अपनी बड़ी बहन के रूप में कम अपनी अप्सरा के रूप में ज्यादा देखता था.. और उसे प्रसन्न और खुश करने के लिए जी तोड़ कोशिश करता था…


सोनू और सुगना दोनों शायद एक दूसरे के बारे में ही सोच रहे थे वक्त कब निकल गया पता ही न चला। धीरे-धीरे रिक्शा गेस्ट हाउस में पर पहुंच चुका था…

सोनू रिक्शे से उतरा और सुगना को अपने हाथों का सहारा देकर उतारने की कोशिश की… सुगना की कोमल हथेलियां अपनी हथेलियों में लेते ही सोनू को एक अजब सा एहसास हुआ उसका लंड अपनी जगह पर सतर्क हो गया। रास्ते में दिमाग में चल रही बातें ने उसके लंड पर लार की बूंदे ला दी थी..


वासना सचमुच अपना आकार बढ़ा रही थी।

कमरे में पहुंचकर सुगना और सोनू अभी अपनी पीठ सीधी ही कर रहे थे कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई ..

"कम ईन" सोनू ने आवाज दी।


बाहर खड़े व्यक्ति ने दरवाजा खोला और अंदर आकर बोला

" सर मनोरमा मैडम की गाड़ी आई है उनका ड्राइवर आपको बुला रहा है…"

सोनू घबरा गया…वह उठकर बाहर आया और गेस्ट हाउस के बाहर मनोरमा मैडम की गाड़ी देखकर उसके ड्राइवर के पास गया और बोला

"क्या बात है?"

"मनोरमा मैडम ने यह पर्ची सुगना जी के लिए दी है"

सोनू ने कांपते हाथों से वह पर्ची ली उसके मन में न जाने क्या-क्या चल रहा था । सुगना और मनोरमा की एक दो चार बार ही मुलाकात हुई थी यह बात सोनू भली भांति जानता था परंतु मनोरमा मैडम सुगना दीदी के लिए कोई संदेश भेजें यह उसकी कल्पना से परे था।


वह भागते हुए सुगना के कमरे में आ गया और सुगना से बोला

" दीदी मनोरमा मैडम ने देख तोहरा खातिर का भेजले बाड़ी "

सोनू के हांथ में खत देखकर सुगना ने बेहद उत्सुकता से कहा

"तब पढ़त काहे नइखे"

सोनू ने पढ़ना शुरू किया..

"सुगना जी मैं मंच पर आपसे ज्यादा बातें नहीं कर पाई और आपको समय न दे पाई पर मेरी विनती है कि आप अपने बच्चों सरयू सिंह जी और सोनू के साथ मेरे घर पर आए और दोपहर का भोजन करें इसी दौरान कुछ बातें भी हो जाएंगी… मैं आपका इंतजार कर रही हूं"

मनोरमा का निमंत्रण पाकर सुगना खुश हो गई वह सचमुच मनोरमा से बातें करना चाहती थी सोनू ने जब यह खबर सरयू सिंह को दी उनके होश फाख्ता हो गए एक अनजान डर से उनकी घिग्गी बंध गई उन्होंने कहा

"सोनू बेटा हमरा पेट दुखाता तू लोग जा हम ना जाईब"

सुगना ने भी सरयू सिंह से चलने का अनुरोध किया और बोली

"मनोरमा मैडम राऊर कतना साथ देले बाड़ी आपके जाए के चाहीं"

सरयू सिंह क्या जवाब देते हैं वह मनोरमा का आमंत्रण और और खातिरदारी और अंतरंगता तीनों का आनंद बीती रात ले चुके थे और अब सुगना के साथ जाकर वह वहां कोई असहज स्थिति नहीं पैदा करना चाहते थे।

उनकी दिली इच्छा तो यह थी कि सुगना और मनोरमा कभी ना मिले परंतु नियति को नियंत्रित कर पाना उनके बस में ना था। जब वह स्थिति को नियंत्रित करने में नाकाम रहे उन्होंने पलायन करना ही उचित समझा और सब कुछ ऊपर वाले के हवाले छोड़ कर चादर तान कर सो गए।

सुगना और सोनू मनोरमा मैडम के घर जाने के लिए तैयार होने लगे दोनों ..

नियति सक्रिय थी कहानी की और कहानी की पटकथा को अपनी कल्पनाओं से आकार दे रही थी..

दोनों बच्चे एंबेसडर कार में बैठकर चहक उठे सूरज आगे ड्राइवर के बगल में बैठ कर उससे ढेरों प्रश्न पूछ रहा था जैसे कार चलाना एक ही पल में सीख लेगा..

मनोरमा की एंबेसडर कार सरयू सिंह की दोनों प्रेमिकाओं को एक दूसरे से मिलाने के लिए लखनऊ की सड़कों पर सरपट दौड़ रही थी और सोनू अपनी मैडम के घर जाने को तैयार बड़े अदब से अपने कपड़े ठीक कर रहा था..

कुछ होने वाला था…

शेष अगले भाग में…



पाठकों की संख्या मन मुताबिक होने के कारण मैं यह अपडेट कहानी के पटल पर डाल रहा हूं।

पर अपडेट 90और 91 ऑन रिक्वेस्ट ही उपल्ब्ध है..

जिन पाठकों की इस अपडेट पर प्रतिक्रिया आ जाएगी उन्हें अगला अपडेट एक बार फिर भेज दिया जाएगा आप सबका साथ ही इस कहानी को आगे बढ़ाएगा जुड़े रहिए और कहानी का आनंद लेते रहे धन
भाग 92
सरयू सिंह अपने मन में सुखद कल्पनाएं लिए कल्पना लोक में विचरण करने लगे. कई दृश्य धुंधले धुंधले उनके मानस पटल पर घूमने लगे कजरी… पदमा सुगना… और अब मनोरमा….. मानस पटल पर अंकित इन चार देवियों में अब भी सुगना नंबर एक पर ही थी…

सरयू सिंह को यदि यह पता न होता की सुगना उनकी पुत्री है तो वह सुगना को जीवन भर अपनी अर्धांगिनी बनाकर रखते…और सारे जहां की खुशियां उसकी झोली में अब भी डाल रहे होते….

रात बीत रही थी सूरज गोमती नदी के आंचल से निकलकर लखनऊ शहर को रोशन करने के लिए बेताब था।

अब आगे..

आज लखनऊ की सुबह बेहद सुहानी थी… गंगाधर स्टेडियम में सोनू और उसके साथियों के शपथ ग्रहण समारोह के लिए दिव्य व्यवस्था की गई थी… सफेद वस्त्रों से बने पांडाल पर गेंदे के फूल से की गई सजावट देखने लायक थी…बड़े-बड़े कई सारे तोरण द्वार बनाए गए थे। उन पर की गई सजावट सबका मन मोहने वाली थी। सुगना अपने दोनों छोटे बच्चों के साथ सज धज कर तैयार होकर और सोनू और सरयू सिंह के साथ गंगाधर स्टेडियम में प्रवेश कर रही थी।

सुगना इतनी भव्यता की आदी न थी वह आंखें फाड़ फाड़ कर गंगाधर स्टेडियम में की गई सजावट का आनंद ले रही थी.. सुगना यह बात भूल रही थी कि वह स्वयं नियति और नियंता की अनूठी कृति है।


जो स्वयं सबका मन मोहने वाली थी वह गंगाधर स्टेडियम की सजावट में खोई हुई थी वह जिस रास्ते से गुजर रही थी आसपास के लोग उसे एकटक देख रहे थे।

जाने सुगना के शरीर में ऐसा कौन सा आकर्षण था कि हर राह चलता व्यक्ति उसे एकटक देखता रह जाता सांचे में ढली मदमस्त काया साड़ी के आवरण में भी उतनी ही कामुक थी जितनी साड़ी के भीतर।

शिफॉन की साड़ी ने उसकी काया को और उभार दिया था भरी-भरी चूचियां पतली गोरी कमर और भरे पूरे नितंब हर युवा और अधेड़.. सुगना के शरीर पर एक बार अपनी निगाह जरूर फेर लेता। और जिसने उसके कोमल और मासूम चेहरे को देख लिया वह तो जैसे उसका मुरीद हो जाता। एक बार क्या बार-बार जब तक सुगना उसकी निगाहों की के दायरे में रहती वह उस खूबसूरती का आनंद लेता।

सुगना धीरे-धीरे दर्शक दीर्घा में आ गई…

सोनू ने सुगना और सरयू सिंह के बैठने का प्रबंध किया और सुगना का पुत्र सूरज सरयू सिंह की गोद में आकर उनसे खेलने लगा सूरज और सरयू सिंह का प्यार निराला था। सरयू सिंह की उम्र ने सूरज को उन्हें बाबा बोलने पर मजबूर कर दिया था ….

मधु सुगना की गोद में बैठी चारों तरफ एक नए नजारे को देख रही थी उस मासूम को क्या पता था कि आज उसके पिता सोनू एक प्रतिष्ठित पद की शपथ लेने जा रहे थे..

सूट बूट में सोनू एक दूल्हे की तरह लग रहा था था . सुगना ने अधिकतर युवकों को सूट-बूट विवाह समारोह के दौरान ही पहनते देखा था।

सुगना की निगाहें बार-बार सोनू पर टिक जाती और वह अपनी हथेलियों को मोड़ कर अपने कान के पास लाती और मन ही मन सोनू की सारी बलाइयां उतार लेती मन ही मन वह अपने अपने इष्ट देव से सोनू को हर खुशियां और उसकी हर इच्छा पूरी करने के लिए वरदान मांगती.. परंतु शायद सुगना यह नहीं जानती थी कि इस समय सोनू के दिमाग में सिर्फ और सिर्फ एक इच्छा थी और वह सिर्फ सुगना ही पूरा कर सकती थी। और वह इच्छा पाठको की इच्छा से मेल खाती थी।

सुगना की प्रार्थना भगवान ने भी सुनी और नियति ने भी जिस मिलन की प्रतीक्षा सोनू न जाने कब से कर रहा था सुगना ने अनजाने में ही अपने इष्ट देव से सोनू की खुशियों के रूप में वही मांग लिया था..

मंच पर गहमागहमी बढ़ गई…. सभी मानिंद लोक मंच पर आसीन हो चुके थे मुख्य अतिथि का इंतजार अब भी हो रहा था।


अचानक पुलिस वालों के सुरक्षा घेरे में एक महिला आती हुई दिखाई पड़ी। दर्शक दीर्घा में कुछ लोग खड़े हो गए… फिर क्या था… एक के पीछे एक धीरे धीरे सब एक दूसरे का मुंह ताकते ……..परंतु उन्हें खड़ा होते देख स्वयं भी खड़े हो जाते … कुछ ही देर में पंडाल में बैठे सभी लोग खड़े हो गए सुगना और सरयू सिंह भी उनसे अछूते न थे धीरे-धीरे महिला मंच के करीब आ गई।

सुगना की निगाह उस महिला पर पड़ते सुगना बोल उठी…

"अरे यह तो मनोरमा मैडम है…अब तक सरयू सिंह ने भी मनोरमा को देख लिया था जिस मनोरमा को बीती रात उन्होंने जी भर कर चोदा था आज वह चमकती दमकती अपने पूरे शौर्य और ऐश्वर्य में अपने काफिले के साथ इस मंच पर आ चुकी थी।

उद्घोषणा शुरू हो चुकी थी…और सभी अपने अपने मन में चल रहे विचारों को भूलकर उद्घोषणा सुनने में लग गए…

आज मनोरमा के चेहरे पर एक अजब सी चमक थी सरयू सिंह और मनोरमा की निगाहें मिली। मनोरमा ने न चाहते हुए भी सरयू सिंह के चेहरे से अपनी निगाहें हटा ली और सामने बैठी अपनी जनता को सरसरी निगाह से देखने लगी।.

मंच पर बैठने के पश्चात उसने अपनी निगाहों से सुगना को ढूंढने की कोशिश की ….सरयू सिंह के बगल में बैठी सुगना को देखकर मनोरमा ने मुस्कुरा कर सुगना का अभिवादन किया। परंतु सुगना ने अपना हाथ उठाकर मनोरमा का ध्यान अपनी ओर खींचने की कोशिश की। सुगना के मासूमियत भरे अभिवादन से मनोरमा खुद को ना रोक पाई और उसने भी हाथ उठाकर सुगना के अभिवादन का जवाब दे दिया।


दर्शक दीर्घा में बैठे सभी लोग उस शख्स की तरफ देखने लगे जिसके लिए मनोरमा ने अपने हाथ हिलाए थे… सुगना को देखकर सब आश्चर्यचकित थे मनोरमा और सुगना के बीच के संबंध को समझ पाना उनके बस में न था…सरयू सिंह मन ही मन घबरा रहे थे की कहीं सुगना और मनोरमा अपनी बातें एक दूसरे से साझा न कर लें…

डर चेहरे से तेज खींच लेता है…. सरयू सिंह अचानक खुद को निस्तेज महसूस कर रहे थे.. वह वह अपना ध्यान मनोरमा से हटाकर सूरज के साथ खेलने लगे..

उधर मंच पर बैठी मनोरमा सरयू सिंह और सुगना को देख रही थी नियति ने दो अनुपम कलाकृतियों को पूरी तन्मयता से गढ़ा था उम्र का अंतर दरकिनार कर दें तो शायद सरयू सिंह और सुगना खजुराहो की दो मूर्तियों की भांति दिखाई पड़ रहे थे एक बार के लिए मनोरमा ने अपने प्रश्न के उत्तर में सुगना को खड़ा कर लिया परंतु उसका कोमल और तार्किक मन इस बात को मानने को तैयार न था कि सरयू सिंह अपनी पुत्री की उम्र की पुत्रवधू सुगना के साथ ऐसा संबंध रख सकते है…

मंच पर मनोरमा मैडम का उनके कद के अनुरूप भव्य स्वागत किया गया । सरयू सिंह मनोरमा की पद और प्रतिष्ठा के हमेशा से कायल थे और आज उसे सम्मानित होता देख कर स्वयं गदगद हो रहे थे। मनोरमा के सम्मान से उन्होंने खुद को जोड़ लिया था आखिर बीती रात मनोरमा और सरयू सिंह एक ऐसे रिश्ते में आ चुके थे जो शायद आगे भी जारी रह सकता था।

स्वागत भाषण के पश्चात अब बारी थी इस प्रोग्राम के सबसे काबिल और होनहार युवा एसडीएम को बुलाने..की…

सभी प्रतिभागीयों के परिवार के लोग उस व्यक्ति के नाम का इंतजार कर रहे थे जो इस ट्रेनिंग की बाद हुई परीक्षा में अव्वल आया था और जिसे इस कार्यक्रम में सबसे पहले सम्मानित किया जाना था..

प्रतिभागियों के परिवार को शायद इसका अंदाजा न रहा हो परंतु सभी प्रतिभागी यह जानते थे कि उनका कौन इस ट्रेनिंग प्रोग्राम की शान था और वही निर्विवाद रूप से इस ट्रेनिंग प्रोग्राम का सबसे होनहार व्यक्ति था।

उद्घोषक ने मंच पर आकर कहा …

अब वह वक्त आ गया है कि इस ट्रेनिंग प्रोग्राम के सबसे होनहार और लायक प्रतिभागी का नाम आप सबके सामने लाया जाए आप सब को यह जानकर हर्ष होगा कि यह वही काबिल प्रतिभागी हैं जिन्होंने पिछली बार पीसीएस परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया था…

उद्घोषक के कहने से पहले ही भीड़ से संग्राम सिंह …संग्राम सिंह…. की आवाज गूंजने लगी…

अपने सोनू का नाम भीड़ के मुख से सुनकर सुगना आह्लादित हो उठी उसने पीछे मुड़कर देखा। पीछे खड़ी भीड़ गर्व से संग्राम सिंह का नाम ले रही थी।

उद्घोषक ने भीड़ की आवाज थमने का इंतजार किया और बोला आप लोगों ने सही पहचाना वह संग्राम सिंह ही हैं मैं मंच पर उनका स्वागत करता हूं और साथ ही स्वागत करता हूं उनकी बहन सुगना जी का जिनके मार्गदर्शन और सहयोग से संग्राम सिंह जी ने यह मुकाम हासिल किया है। सुगना बगले झांक रही थी…उसे इस आमंत्रण की कतई उम्मीद न थी।

उद्घोषक ने एक बार फिर कहा मैं संग्राम सिंह जी से अनुरोध करता हूं कि अपनी बहन सुगना जी को लेकर मंच पर आएं और मनोरमा जी के द्वारा अपना पुरस्कार प्राप्त करें..

सोनू न जाने किधर से निकलकर सुगना के ठीक सामने आ गया सुगना मंच पर जाने में हिचक रही थी परंतु नाम पुकारा जा चुका था सरयू सिंह ने मधु को सुगना की गोद से लेने की कोशिश की परंतु वह ना मानी और सुगना अपनी गोद में छोटी मधु को लेकर सोनू के साथ मंच की तरफ बढ़ चली…


मंच पर पहुंचकर सुगना को एक अलग ही एहसास हो रहा था सारी निगाहें उसकी तरफ थी। मनोरमा मैडम के पास पहुंचकर मनोरमा ने सोनू और सुगना दोनों से हाथ मिलाया। सुगना की हथेली को छूकर मनोरमा को एहसास हुआ जैसे उसने किसी बेहद मुलायम चीज को छू लिया हो मनोरमा एक बार फिर वही बात सोचने लगी कि ग्रामीण परिवेश में रहने के बावजूद सुगना इतनी सुंदर और इतनी कोमल कैसे थी ।

दो सुंदर महिलाएं और सोनू कैमरे की चकाचौंध में स्वयं को व्यवस्थित कर रहे थे फोटोग्राफी पूरी होने के पश्चात उद्घोषक ने सुगना को माइक देते हुए कहा

"अपने भाई के बारे में कुछ कहना चाहेंगी?"

सुगना का गला रूंध आया अपने भाई की सफलता पर सुगना भाव विभोर थी उसके मुंह से शब्द ना निकले परंतु आंखों से बह रहे खुशी के हाथों ने सुगना की भावनाओं को जनमानस के सामने ला दिया..

सुगना ने अपने कांपते हाथों से माइक पकड़ लिया और अपने बाएं हाथ से अपने खुशी के आंसू पूछते हुए बोली..

"मेरा सोनू निराला है आज उसने हम सब का मान बढ़ाया है मैं भगवान से यही प्रार्थना करूंगी कि उसकी सारी इच्छाएं पूरी हो और वह हमेशा खुश रहे…"

तालियों की गड़गड़ाहट ने एक बार फिर सुगना को भावविभोर कर दिया उसने आगे और कुछ न कहा तथा माइक सोनू को पकड़ा दिया..


आखिरकार माइक सोनू उर्फ संग्राम सिंह के हाथों में आ गया। उसने सब को संबोधित करते हुए कहा मेरी

"मेरी सुगना दीदी मेरा अभिमान है मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा है और मैंने यह निश्चय किया है कि जिसने मेरे जीवन को सजा सवार कर मुझे इस लायक बनाया है मैं जीवन भर उनकी सेवा करता रहूंगा मैं इस सफलता में अपनी मां पदमा और अपने सरयू चाचा का भी शुक्रगुजार हूं…"


पंडाल में बैठे लोग एक बार फिर तालियां बजाने लगे। सूरज भी अपनी छोटी-छोटी हथेलियों से अपने मामा सूरज के लिए ताली बजा रहा था।

सुगना और सोनू के इस भावुक क्षण में वासना न जाने कहां गायब हो गई थी समाज में सोनू और सुगना एक आदर्श भाई-बहन के रूप में प्रतिस्थापित हो चुके थे।

सोनू के पश्चात और भी प्रतिभागियों का सम्मान किया गया। सम्मान समारोह के पश्चात सुगना गंगाधर स्टेडियम से बाहर आ गई…वह मनोरमा मैडम से और कुछ बातें करना चाहती थी परंतु मंच पर उसके और मनोरमा मैडम के बीच की दूरी इतनी ज्यादा थी की उसको पाट पाना असंभव था।


सोनू आज बेहद प्रसन्न था. वह अपनी बड़ी बहन सुगना को हर खुशी से नवाजना चाहता था। ट्रेनिंग के पैसे उसके खाते में आ चुके थे और वह अपनी सुगना दीदी की पसंद की हर चीज उसके कदमों में हाजिर करना चाहता था।

बाहर धूप हो चुकी थी सुबह का सुहानापन अब गर्मी का रूप ले चुका था बच्चे असहज महसूस कर रहे थे सोनू ने सुगना से कहा

" रिक्शा कर लीहल जाओ"

"सूरज खुश हो गया और चहकते हुए बोला

"हां मामा"

सोनू ने रास्ते में चलते हुए दो रिक्शे रोक लिए अब बारी रिक्शा में बैठने की थी।


नियति दूर खड़ी नए बनते समीकरणों को देख रही थी सूरज और सरयू सिंह एक रिक्शे में बैठे और दूसरे में सोनू और सुगना। सोनू की गोद में उसकी पुत्री खेल रही थी …. बाहर भीड़ से निकल रहे लोग रिक्शे में बैठे सोनू और सुगना को देखकर अपने मन में सोच रहे थे कि यदि सोनू और सुगना पति-पत्नी होते तो शायद यह दुनिया की सबसे आदर्श जोड़ी होती। गोद में मधु सोनू और सुगना को पति-पत्नी के रूप में सोचने को मजबूर कर रही थी।

राह चलते व्यक्ति के लिए रिक्शे में बैठे स्त्री पुरुष और गोद में छोटे बच्चे को देखकर यह अनुमान लगाना संभव नहीं है कि वह भाई बहन है…

रिक्शा जैसे ही सिग्नल पर खड़ा हुआ पास के रिक्शे में बैठी एक युवा महिला ने सुगना की गोद में खेल रही मधु को देखकर कहा..

" कितनी सुंदर बच्ची है"

साथ बैठी अधेड़ महिला ने कहा

"जब बच्चे के मां बाप इतने सुंदर है तो बच्चा सुंदर होगा ही" औरत ने अपने अनुभव से रिश्ता सोच लिया।

उस औरत की आवाज सुनकर सुगना ने तपाक से जवाब दिया…

"ये मेरा भाई है पति नहीं"

शायद सुगना सोनू के बारे में ही सोच रही थी जिसकी जांघें सुगना से रगड़ खा रही थी। सुगना सचेत थी और सोनू से सुरक्षित दूरी बनाए हुए थी।

स्त्री पुरुष के बीच रिश्तों का सही अनुमान लगाना आपके अनुभव और विचार पर निर्भर करता है जिन लोगों ने मंच पर सुगना और सोनू को आदर्श भाई बहन के रूप में देखा था अब वह रिक्शे पर बैठे सोनू और सुगना को देखकर उन्हें पति पत्नी ही समझने लगे..थे..

वैसे भी रिश्ते भावनाओं के अधीन होते हैं …सामाजिक रिश्ते चाहे जितने भी प्रगाढ़ क्यों न हो यदि उनके बीच वासना ने अपना स्थान बना लिया वह रिश्तो को दीमक की तरह खा जाती है।


सोनू और सुगना जो आज से कुछ समय पहले तक एक आदर्श भाई बहन थे न जाने कब उनके रिश्तो के बीच दीमक लग चुकी थी। यदि सोनू अपने जीवन के पन्ने पलट कर देखें तो इसमें बनारस महोत्सव का ही योगदान माना जाएगा… जिसमें उसने पहली बार सुगना को सिर्फ और सिर्फ एक नाइटी में देखा था शायद उसके अंतर्वस्त्र भी उस समय उसके शरीर पर न थे…उसी महोत्सव के दौरान जब उसने सुगना को लाली समझकर पीछे से पकड़कर उठा लिया था और अपने तने हुए लंड को सुगना के नितंबों में लगभग धसा दिया था।

उसके बाद से वासना एक दीमक की तरह सोनू के दिमाग में अपना घर बना चुकी थी।भाई बहन के रिश्तो को तार-तार करने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका लाली ने अदा की थी जो मुंह बोली बहन होने के बावजूद अपने पति के सहयोग से सोनू से बेहद करीब आ गई थी और अब उसके साथ हर तरह के वासना जन्य कृत्य कर रही थी।

सोनू के कोमल मन पर धीरे धीरे भाई-बहन के बीच संबंधों का मोल कम होता गया था और वासना अपना आकार बढ़ाती जा रही थी.और अब वर्तमान में सोनू सुगना को अपनी बड़ी बहन के रूप में कम अपनी अप्सरा के रूप में ज्यादा देखता था.. और उसे प्रसन्न और खुश करने के लिए जी तोड़ कोशिश करता था…


सोनू और सुगना दोनों शायद एक दूसरे के बारे में ही सोच रहे थे वक्त कब निकल गया पता ही न चला। धीरे-धीरे रिक्शा गेस्ट हाउस में पर पहुंच चुका था…

सोनू रिक्शे से उतरा और सुगना को अपने हाथों का सहारा देकर उतारने की कोशिश की… सुगना की कोमल हथेलियां अपनी हथेलियों में लेते ही सोनू को एक अजब सा एहसास हुआ उसका लंड अपनी जगह पर सतर्क हो गया। रास्ते में दिमाग में चल रही बातें ने उसके लंड पर लार की बूंदे ला दी थी..


वासना सचमुच अपना आकार बढ़ा रही थी।

कमरे में पहुंचकर सुगना और सोनू अभी अपनी पीठ सीधी ही कर रहे थे कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई ..

"कम ईन" सोनू ने आवाज दी।


बाहर खड़े व्यक्ति ने दरवाजा खोला और अंदर आकर बोला

" सर मनोरमा मैडम की गाड़ी आई है उनका ड्राइवर आपको बुला रहा है…"

सोनू घबरा गया…वह उठकर बाहर आया और गेस्ट हाउस के बाहर मनोरमा मैडम की गाड़ी देखकर उसके ड्राइवर के पास गया और बोला

"क्या बात है?"

"मनोरमा मैडम ने यह पर्ची सुगना जी के लिए दी है"

सोनू ने कांपते हाथों से वह पर्ची ली उसके मन में न जाने क्या-क्या चल रहा था । सुगना और मनोरमा की एक दो चार बार ही मुलाकात हुई थी यह बात सोनू भली भांति जानता था परंतु मनोरमा मैडम सुगना दीदी के लिए कोई संदेश भेजें यह उसकी कल्पना से परे था।


वह भागते हुए सुगना के कमरे में आ गया और सुगना से बोला

" दीदी मनोरमा मैडम ने देख तोहरा खातिर का भेजले बाड़ी "

सोनू के हांथ में खत देखकर सुगना ने बेहद उत्सुकता से कहा

"तब पढ़त काहे नइखे"

सोनू ने पढ़ना शुरू किया..

"सुगना जी मैं मंच पर आपसे ज्यादा बातें नहीं कर पाई और आपको समय न दे पाई पर मेरी विनती है कि आप अपने बच्चों सरयू सिंह जी और सोनू के साथ मेरे घर पर आए और दोपहर का भोजन करें इसी दौरान कुछ बातें भी हो जाएंगी… मैं आपका इंतजार कर रही हूं"

मनोरमा का निमंत्रण पाकर सुगना खुश हो गई वह सचमुच मनोरमा से बातें करना चाहती थी सोनू ने जब यह खबर सरयू सिंह को दी उनके होश फाख्ता हो गए एक अनजान डर से उनकी घिग्गी बंध गई उन्होंने कहा

"सोनू बेटा हमरा पेट दुखाता तू लोग जा हम ना जाईब"

सुगना ने भी सरयू सिंह से चलने का अनुरोध किया और बोली

"मनोरमा मैडम राऊर कतना साथ देले बाड़ी आपके जाए के चाहीं"

सरयू सिंह क्या जवाब देते हैं वह मनोरमा का आमंत्रण और और खातिरदारी और अंतरंगता तीनों का आनंद बीती रात ले चुके थे और अब सुगना के साथ जाकर वह वहां कोई असहज स्थिति नहीं पैदा करना चाहते थे।

उनकी दिली इच्छा तो यह थी कि सुगना और मनोरमा कभी ना मिले परंतु नियति को नियंत्रित कर पाना उनके बस में ना था। जब वह स्थिति को नियंत्रित करने में नाकाम रहे उन्होंने पलायन करना ही उचित समझा और सब कुछ ऊपर वाले के हवाले छोड़ कर चादर तान कर सो गए।

सुगना और सोनू मनोरमा मैडम के घर जाने के लिए तैयार होने लगे दोनों ..

नियति सक्रिय थी कहानी की और कहानी की पटकथा को अपनी कल्पनाओं से आकार दे रही थी..

दोनों बच्चे एंबेसडर कार में बैठकर चहक उठे सूरज आगे ड्राइवर के बगल में बैठ कर उससे ढेरों प्रश्न पूछ रहा था जैसे कार चलाना एक ही पल में सीख लेगा..

मनोरमा की एंबेसडर कार सरयू सिंह की दोनों प्रेमिकाओं को एक दूसरे से मिलाने के लिए लखनऊ की सड़कों पर सरपट दौड़ रही थी और सोनू अपनी मैडम के घर जाने को तैयार बड़े अदब से अपने कपड़े ठीक कर रहा था..

कुछ होने वाला था…

शेष अगले भाग में…



पाठकों की संख्या मन मुताबिक होने के कारण मैं यह अपडेट कहानी के पटल पर डाल रहा हूं।

पर अपडेट 90और 91 ऑन रिक्वेस्ट ही उपल्ब्ध है..

जिन पाठकों की इस अपडेट पर प्रतिक्रिया आ जाएगी उन्हें अगला अपडेट एक बार फिर भेज दिया जाएगा आप सबका साथ ही इस कहानी को आगे बढ़ाएगा जुड़े रहिए और कहानी का आनंद लेते रहे धन्यवाद
सरयू सिंह की हालत......, दो पाटन के बीच में साबुत बचा ना कोय
 

Lutgaya

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भाग 94
रास्ते भर सुगना और सोनू मनोरमा की तारीफों के पुल बांधते रहे परंतु मनोरमा के बिस्तर पर वीर्य के निशान देख सुगना का मन कुछ खट्टा हो गया था…


मनोरमा की बंजर हो चुकी कोख को किसने सींचा सींचा होगा सुगना के लिए प्रश्न बन चुका था…

मनोरमा के बारे में यदि कोई शख्स बता सकता था तो वह थे उसके बाबूजी शरीर से इसके अलावा सुगना की जिज्ञासा शांत करने वाला और कोई ना था…वह एंबेसडर कार के गेस्ट हाउस पहुंचने की राह देखने लगी..

उधर सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना की चुचियों को अपने दिमाग में अनावृत कर रहा था…


सुगना और सरयू सिंह दोनों एक दूसरे का इंतजार कर रहे थे पर अपने अपने प्रश्नों और जिज्ञासाओं के साथ…

अब आगे….

अंततः सुगना सोनू और दोनों छोटे बच्चे गेस्ट हाउस आ गए …लाबी में टहलते हुए सरयू सिंह सूरज को दिखाई पड़ गए और वह अपने छोटे-छोटे कदमों से भागता हुआ सरयू सिंह के पास जाकर बोला


"बाबा मैं आ गया"

अब तक सुगना भी सरयू सिंह के करीब आ चुकी थी उसने कहा बा

"बाबूजी लगता राउर तबीयत ठीक हो गईल "

"हां अब ठीक लगाता का कहत रहली मनोरमा मैडम"

"कुछो ना…लेकिन आपके खोजत रहली"


अब तक सोनू भी आ चुका था

" सरयू चाचा कितना सुंदर घर बा मनोरमा मैडम के घर एकदम महल जैसे"

जिस महल की सोनू दिल खोलकर तारीफ कर रहा था उस महल की मालकिन को सरयू सिंह बीती रात एक नहीं दो दो बार कसकर चोद कर आए थे.


सरयू सिंह का स्वाभिमान बीती रात से बुलंदियों पर था.. परंतु मन के अंदर आ चुका डर कायम था..

सुगना से और प्रश्न पूछना उचित न था सोनू बगल में ही खड़ा था। सभी लोग कमरे में आ गए सरयू सिंह भी खाना खा चुके थे। शाम को वापस बनारस जाने की ट्रेन पकड़नी थी। समय कम था सरयू सिंह और सुगना दोनों एकांत खोज रहे थे… उन दोनों को अपनी अपनी जिज्ञासा शांत करनी थी…उधर सोनू सुगना के साथ ढेरो बाते करना चाहता था..

सुगना अपने पूर्व और वर्तमान प्रेमी के बीच झूल रही थी…अंत में विजय एसडीएम साहब की हुई और वह सुगना को बाजार ले जाने में कामयाब हो गए.. आखिर उन्हें सुगना उसके बच्चों और बनारस में बैठी अपनी दोनों बहनों के लिए कुछ ना कुछ उपहार खरीदने थे। आज का दिन बेहद महत्वपूर्ण था और सोनू की खुशियों पर पूरे परिवार का हक था.

व्यस्तता और वासना दोनों एक दूसरे की दुश्मन है…सोनू ने आज का पूरा दिन लगभग सुगना के साथ ही बिताया था परंतु उसकी वासना व्यस्तता की भेंट चढ़ गई थी… बाजार से लौटते लौटते शाम के 6:00 बज चुके थे और 2 घंटे बाद ही मैं वापस स्टेशन के लिए निकलना था।

सोनू की हालत आजकल के आशिक हो जैसी हो गई थी जो अपनी गर्लफ्रेंड को दिन भर घुमाते शापिंग कराते दिन भर उसके खूबसूरत जिस्म और सानिध्य का लाभ उठाकर अपने लंड में तनाव भरते हैं लंड के सुपाड़े से लार टपकाते परंतु शाम ढलते ढलते विदा होने का वक्त हो जाता ….

सोनू मायूस हो रहा था दिन भर की खुशियां शाम आते आते धूमिल पड़ रही थी सुगना जाने वाली थी और सोनू का मन उदास था परंतु पूर्व निर्धारित कार्यक्रम में कोई बदलाव कर पाना संभावना न था।

सोनू को भी अपना सामान समेटकर बनारस आना था परंतु कुछ कागजी कार्रवाई पूर्ण न होने की वजह से वह चाहकर भी सुगना के साथ बनारस नहीं जा पा रहा था।

सूरज एक बार फिर उत्साहित था। ट्रेन में बैठ ना उसे बेहद अच्छा लगता था उसने सोनू से कहा

"मामा जल्दी चलो गाड़ी छूट जाएगी…"

सोनू को पल के लिए लगा जैसे सब सुगना को उससे दूर कर रहे हैं...

सोनू ने बाजार से सुगना के लिए एक बेहद खूबसूरत लहंगा चोली खरीदा था.. जो रेशम के महीन कपड़े से बना था और जिस पर हाथ की कढ़ाई की गई थी…

नकली सितारों की चमक दमक से दूर वह लहंगा चोली बेहद खूबसूरत था जिसे सामान्य तौर पर भी बिना किसी विशेष प्रयोजन के भी पहना जा सकता था..


न जाने सोनू के मन में क्या आया उसने सुगना से कहा..

"दीदी जाए से पहले कपड़वा नाप ले छोट बढ़ हुई तब बदल देब.."

समय कम था परंतु सोनू की बातें तर्कसंगत थी …

कमरे में सोनू दोनों बच्चों के साथ खेलने लगा और सुगना बाथरूम में जाकर अपने कपड़े बदलने लगी…

हल्के गुलाबी रंग के लहंगा चोली में सुगना बेहद खूबसूरत लग रही थी सुंदर और सुडौल काया पर वस्त्र और भी खिल उठते हैं।


चोली तो जैसे सुगना की काया के लिए ही बनी थी.. चूचियों के लिए दी गई जगह शायद कुछ कम पड़ रही थी परंतु सुगना की कोमल चुचियों ने स्वयं को उन में समायोजित कर लिया था परंतु कपड़ों का तनाव चूचियों के आकार का अंदाजा बखूबी दे रहा था.. चोली की लंबाई सुगना की कमर तक आ रही थी…सोनू चाहता तो यही था कि चोली की लंबाई ब्लाउज के बराबर ही रहे….परंतु सुगना जो अब दो बच्चों की मां थी वह अपने सपाट पेट और नाभि का खुला प्रदर्शन कतई नहीं करना चाहती थी।

उसने यही चोली पसंद की थी जो उसकी कमर तक आ रही थी। परंतु सुगना को क्या पता था जिस मदमस्त कमर को वह चोली के भीतर छुपाना चाहती वह छिपने लायक न थी । चोली में सुगना की खूबसूरती को और उभार दिया था..

सोनू सुगना को देखकर फूला नहीं समा रहा था। उसकी अप्सरा उसकी आंखों के सामने उसके द्वारा दिए गए वस्त्र पहने अपने बाल संवारे रही थी.. काश सुगना उसकी बहन ना होती तो शायद इतनी आवभगत करने का इनाम सोनू अवश्य ले लिया होता।

सरयू सिंह वापस आ चुके थे और सुगना को लहंगा चोली में देखकर दंग रह गए..

सुगना अपनी युवा अवस्था में हमेशा लहंगा और चोली ही पहनती भी और सरयू सिंह के हमेशा से उसके इस पहनावे के कायल थे…सपाट पेट और उस पर छोटी सी नाभि.. सरयू सिंह को बेहद भाती।

जब पहली बार जब सरयू सिंह और सुगना ने मिलकर दीपावली मनाई थी उस दिन भी सुगना ने लहंगा और चोली ही पहना था।

सुगना के उस दिव्य स्वरूप को याद कर सरयू सिंह को कुछ हुआ हो या ना हुआ हो परंतु लंगोट में कैद सुगना का चहेता लंड हरकत में आ रहा था।


वह तो भला हो सरयू सिंह के कसे हुए लंगोट का अन्यथा वह अब तक उछल कर अपने आकार में आ रहा होता। सरयू सिंह ने सुगना से कहा

" चला देर होता वैसे भी स्टेशन में आज ढेर भीड़ भाड़ होखी"..

"बाबूजी रुक जा जाई कपड़ा बदल के चलत बानी"

"अरे कपड़ा ठीक त बा… यही पहन के चला फिर बदले में देर होखी "

सरयू सिंह देरी कतई नहीं करना चाहते थे…उन्होंने हनुमान जी की तरह दोनों बच्चों को गोद में लिया और गेस्ट हाउस से बाहर आने लगे।


कुछ ही देर बाद एक बार फिर सोनू अपनी बहन सुगना के साथ रिक्शे में बैठकर स्टेशन की तरफ जाने लगा..

लहंगा चोली में सुगना और पजामे कुर्ते में सोनू.. जो भी देखता एक पल के लिए अपने नजरें उन पर टिका लेता नियति के रचे दो खूबसूरत पात्र धीरे-धीरे बिछड़ने के लिए रेलवे स्टेशन की तरफ जा रहे थे ..

सोनू के उदास चेहरे को देखकर सुगना दुखी हो रही थी अंततः उससे रहा न गया उसने सोनू के हाथ को अपनी कोमल हथेलियों के बीच में ले लिया और सहलाते हुए बोली

"ते दुखी काहे बाडे… हम कोई हमेशा तोहरा साथ थोड़ी रहब। दू दिन खाती आईल रहनी अब जा तानी……वैसे दू दिन बाद तहरा भी त बनारस आवे के बा"

सुगना की बातें सुनकर सोनू और भी दुखी हो गया परंतु सुगना की कोमल हथेलीयों के बीच में उसकी हथेली के स्पर्श में न जाने किस भाव का अनुभव किया और सोनू के शरीर में एक सनसनी फैल गई…

युवा मर्दों का सबसे संवेदनशील अंग उनका लंड ही होता है और सुगना के स्पर्श ने सबसे ज्यादा यदि किसी अंग पर असर किया तो वह था सोनू का लंड …अचानक ही सोनू की भावनाएं बदल गईं…. साथ रिक्शे पर बैठी उसकी बहन सुगना एक बार फिर अपने मदमस्त और अतृप्त यौवन लिए उसकी निगाहों के सामने अठखेलियां करने लगी… सोनू ने सुगना के कामुक अंगो को और करीब से निहारना चाहा परंतु सिवाय चुचियों के उसे कुछ न दिखाई पड़ा। परंतु सोनू का लाया लहंगा कमाल का था…. रेशम के महीन धागे से बना वह लहंगा पारदर्शी तो न था परंतु बेहद पतला और मुलायम था…उसने सुगना की कोमल जांघों से सट कर उन पर एक आवरण देने की कोशिश जरूर की थी परंतु सुगना की पुष्ट जांघों के आकार को छुपा पाने में कतई नाकाम था।

सुगना बार बार अपने दोनों पैर फैला कर लहंगे को दोनों जांघों के बीच सटने से रोकती और अपनी जांघों के आकार को सोनू की नजरों से बचाने की कोशिश करती..

भीनी भीनी हवा चल रही थी और मौसम बेहद सुहावना था कभी-कभी सुगना को एहसास होता जैसे उसने कुछ पहना ही ना हो…रेशम का कपड़ा सुगना की रेशमी त्वचा के साथ तालमेल बिठा चुका था और सुगना को एक अद्भुत एहसास दे रहा था ..


सोनू को सुगना का और कोई अंग दिखाई दे या ना दे परंतु सुगना के कोमल और हल्की लालिमा लिए हुए गाल स्पष्ट दिखाई दे रहे थे और होठों का तो कहना ही क्या ऐसा लग रहा था जैसे होठों में चाशनी भरी हुई थी…

काश काश लाली दीदी के होठ भी सुगना दीदी जैसे होते..

सोनू को अपने बचपन के दिन याद आने लगे जब वह सुगना के गालों को बेझिझक चुम लिया करता था परंतु आज शायद यह संभव न था रिश्ता वही था सुगना भी वही थी परंतु सोनू बदल चुका था ऐसा क्या हो गया था जो अब वह सुगना को चूमने मैं असहज महसूस कर रहा था…

जवानी रिश्तो की परिभाषा बदल देती है…युवा स्त्री और पुरुष कभी भी एक दूसरे को चूम नहीं सकते चाहे वह किसी भी पावन रिश्ते से बंधे क्यों ना हो…

हां माथे का चुंबन अपनी जगह है….

रेलवे स्टेशन आने वाला था परंतु उससे पहले रेलवे क्रासिंग आ चुकी थी। सारे वाहनों पर विराम लगा हुआ था… रिक्शेवाले अपने मैले कुचैले तौलिए से अपना चेहरा पोंछ रहे थे…सरयू सिंह ने पीछे मुड़कर सुगना और सोनू को देखा वह मन ही मन अपने फैसले पर प्रसन्न हो रहे थे कि उन्होंने स्टेशन जल्दी आने का फैसला लेकर सही कार्य किया था.. अचानक सोनू का ध्यान बगल की दीवार पर लगे किसी एडल्ट फिल्म के पोस्टर पर चला गया…

फिल्म का नाम था "लहंगा में धूम धाम"

पोस्टर में दिख रही हीरोइन ने भी संयोग से लहंगा और चोली ही पहना हुआ था परंतु उसकी चोली तंग थी और चूचियां उभर कर बाहर आ रही थीं … शायद निर्देशक ने उन वस्त्रों का चयन ही इसलिए किया था ताकि वह चुचियों को और उभार सके..


इसी प्रकार लहंगा लहंगा ना होकर एक स्कर्ट के रूप में था और हीरोइन के नंगे पैर पिंडलियों चमक रहे थे सोनू लालसा भरी निगाहों से उस पोस्टर को देखे जा रहा था

सोनू को वासना भरी निगाहों से पोस्टर की तरफ देखते हुए देख कर सुगना स्वयं शर्मसार हो रही थी उसने सोनू का ध्यान खींचने के लिए बोला..

"अब अपन ब्याह के मन बना ले ई सब ताक झांक ठीक नईखे"

"अब सब तहारे हांथ में बा.."

"तोरा इतना फोटो में कोई पसंद काहे नईखे परत?"

सोनू क्या जवाब देता वह सुगना के प्यार में पागल हो चुका था…प्यार तो वह सुनना से पहले भी करता था परंतु अब वह जिस रूप में सुगना को चाहने लगा था …उसे और कोई लड़की पसंद नहीं आ सकती थी.. इतना प्यार करने वाली सुगना जैसी खुबसूरत युवती मिलना असंभव ही नही नामुमकिन था…

सोनू ने खुद को संभाला और मुस्कुराने लगा.. परंतु उस में कुछ न कहा सुगना ने फिर पूछा

" बोलत काहे नहींखे .."

"तू दुनिया में अकेले ही आईल बाड़ू का? तोहरा जैसन केहू काहे नईखे मिलत.."

सुगना निरुत्तर हो गई और शर्मसार भी ऐसा नहीं है कि सोनू ने यह बात पहली बार कही थी परंतु फिर भी अपनी होने वाली पत्नी की तुलना अपनी बड़ी बहन से करना …..शायद सोनू ने बातचीत की मर्यादा का दायरा बढ़ा दिया था दिया था।

सुगना यह बातें पहले भी सुन चुकी थी उसे उसे अब यह सामान्य लगने लगा था.. ठीक उसी प्रकार से जैसे सूरज का उसके होठों को कभी-कभी चूम लेना… ना जाने क्यों सोनू के इस कथन में उसे अपनी तारीफ नजर आती और वह मन ही मन मुस्कुरा उठती उसे यह कतई पता न था कि उसकी मुस्कुराहट सोनू को और उकसा रही थी।

मुस्कुराती हुई सुगना और भी ज्यादा खूबसूरत लगती थी।

मुस्कुराहट वैसे भी सौंदर्य को निखार देती है और लज्जा वश आई मुस्कुराहट का कहना ही क्या..

सोनू उस हीरोइन को छोड़ सुगना के शर्म से लाल हुए गाल देखने लगा …

रेलवे केबिन में बैठी नियति सोनू और सुगना दोनों को एक साथ देख कर अपने मन में आने वाले घटनाक्रम बुन रही थी। नियति ने ऐसी खूबसूरत जोड़ी को मिलाने का फैसला कर लिया परंतु क्या यह इतना आसान था?


सुगना जैसी मर्यादित बहन को अपने ही छोटे भाई से संभोग के उसके नीचे ला पाना नियति के लिए भी दुष्कर था परंतु सोनू अधीर था और वह सुगना के प्रति पूरी तरह समर्पित था…

रेलवे क्रॉसिंग पर अचानक कंपन प्रारंभ हो गए और कुछ ही देर में ट्रेन की तीव्र आवाज सुनाई थी धड़ धड़आती हुई मालगाड़ी रेलवे क्रॉसिंग से पास होने लगी..

अचानक शांत पड़े वाहनों में हलचल शुरू हो गई मोटर कार के स्टार्ट होने की आवाज गूंजने लगी वातावरण में काले धुएं का अंश बढ़ने लगा सुगना और सोनू दोनों चैतन्य होकर क्रासिंग के खुलने का इंतजार करने लगे और धीरे धीरे सोनू और सुगना का रिक्शा गंतव्य की तरफ पर चला परंतु जैसे-जैसे स्टेशन करीब आ रहा था सोनू मायूस हो रहा था उसकी बड़ी बहन सुगना एक बार फिर उससे दूर हो रही थी।


थोड़ी देर में रिक्शा स्टेशन पर आ चुका था और एक बार फिर सोनू अपनी बहन सुगना के साथ लखनऊ सिटी के प्लेटफार्म पर भीड़ का हिस्सा बन चुका था..

लखनऊ सिटी लखनऊ के मुख्य स्टेशन के बाहर का एक छोटा स्टेशन था जो गेस्ट हाउस के करीब ही था सरयू सिंह ने अपने अनुभव का प्रयोग करते हुए यह फैसला लिया था कि वह ट्रेन लखनऊ मेन स्टेशन की बजाय लखनऊ सिटी से पकड़ेंगे शायद उनके मन में यह बात थी कि आउटर स्टेशन होने के कारण वहां पर ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं होगी और सीट आसानी से मिल जाएगी।

सोनू और सुगना सरयू सिंह पर पूरा विश्वास करते थे और उनके अनुभव पर कभी भी प्रश्नचिन्ह नहीं लगाते थे।

परंतु आज सरयू सिंह का अनुमान गलत प्रतीत हो रहा था इस आउटर स्टेशन पर भी भीड़भाड़ कम न थी शायद जो अनुभव सरयू सिंह को प्राप्त था वैसा अनुभव और भी लोग अब हासिल कर चुके थे । परंतु अब कोई चारा न था थोड़ी ही देर में ट्रेन आने वाली थी।


सरयू सिंह सूरज की खातिरदारी करने में कोई कमी ना रख रहे थे वह कभी उसके लिए खिलौने खरीदते कभी रंग-बिरंगे रैपर में पैक छोटे-छोटे बिस्किट..

स्टेशन पर आज कुछ ज्यादा ही भीड़ भाड़ थी जैसे ही ट्रेन आई ट्रेन के अंदर सवार होने की जंग जारी हो गई इस बार सुगना के दो-दो कदरदान उपस्थित थे सरयू सिंह आगे बढ़े और सुगना उनके पीछे…ट्रेन में इतनी भीड़ भाड़ थी कि एक बार ऊपर चढ़ जाने के बाद नीचे उतरना संभव न था।

सरयू सिंह ने कहां

" सुगना तू मधु के गोद में लेला… सोनू ट्रेन में ना चढ़ी …. अंदर गइला के बाद उतरे में बहुत दिक्कत होखी सुगना को मधु को अपनी गोद में लेना पड़ा था।

ट्रेन के आते ही धक्कम धक्का शुरू हो गई। ट्रेन के दरवाजे पर ढेर सारे लोग खड़े हो गए महिला पुरुष बच्चे सब जल्दी से जल्दी ट्रेन में चढ़ जाना चाहते थे। शुरुआत में तो लोगों ने ट्रेन के अंदर बैठे यात्रियों को उतरने दिया परंतु जैसे ही उतरने वालों का रेला धीमा पड़ा अंदर जाने के लिए जैसे होड़ लग गई।

पिछली बार की ही भांति सरयू सिंह सबसे पहले ट्रेन में चढ़े और ऊपर पहुंच कर उन्होंने सुगना को ऊपर आने के लिए अपना हाथ दिया.. मधु के गोद में होने के कारण सुगना अकेले चढ़ने में नाकाम थी.


जिस प्रकार पिछली बार एक अनजान युवक ने उसकी कमर पर हाथ रखकर उसे चढ़ने में सहायता की थी आज वही स्थिति दोबारा आ चुकी थी सोनू ने कोई मौका ना गवायां उसने सुगना की गोरी और मादक कमर के मांसल भाग को अपने हाथों में पकड़ लिया और उसे धक्का देते हुए उसे ट्रेन में चढ़ने की मदद की।

इन कुछ पलों के स्पर्श ने सोनू के शरीर को गनगना दिया। सोनू के हाथ ठीक उसी जगह लगे थे जिस जगह को आज की आधुनिक भाषा में लव हैंडल कहा जाता है सोनू स्त्रियों के उस खूबसूरत भाग से बखूबी परिचित था लाली को घोड़ी बनाकर चोदते समय वह लाली के कमर के उसी भाग को अपनी हथेलियों से पकड़े रहता था और लाली की फूली हुई चूत को अपने लंड के निशाने पर हमेशा बनाए रखता था । सोनू के दिमाग में एक वही दृश्य घूम गए।

अंदर अभी भी कुछ यात्री शेष थे जिन्हें इसी स्टेशन पर उतरना था अंदर गहमागहमी बढ़ रही थी ..

"अरे हम लोगों को पहले उतरने दीजिए तब चढ़िएगा.."

ट्रेन के अंदर से एक स्भ्रांत बुजुर्ग अंदर की आवाज आ रही थी.. परंतु उनकी आवाज लोग सुनकर भी अनसुना कर रहे थे.. ट्रेन के अंदर से एक बार फिर लोगों के बाहर आने का दबाव बढ़ा और एक पल के लिए लगा जैसे दरवाजे पर खड़ी सुगना बाहर गिर पड़ेगी..

सोनू के रहते ऐसा संभव न था सोनू ने अपने दोनों मजबूत हाथों से दरवाजे के दोनों तरफ लगे स्टील के सपोर्ट को पकड़ा और स्वयं को ट्रेन के अंदर धकेलने लगा सुगना सोनू के ठीक आगे थी अपने भाई द्वारा पीछे से दिए जा रहे दबाव के कारण वह अब ट्रेन में लगभग सवार हो चुकी थी सोनू अभी भी लटका हुआ था..

ट्रेन ने सीटी दी और धीरे-धीरे गति पकड़ने लगी..

सुगना ने कहां

"सोनू उतर जा गाड़ी खुल गईल"

"दीदी तू बिल्कुल दरवाजा पर बाडू.. झटका लागी तो दिक्कत होगी मधु भी गोद में बीया .. चला हम आगे लखनऊ स्टेशन पर उतर जाएब…

सुगना संतुष्ट हो गई.. और अपने भाई सोनू की अपनत्व की कायल हो गई वह उसे सचमुच बेहद प्यार करता था और उसका ख्याल रखता था..

सोनू भी अब ट्रेन के अंदर आ चुका था पर दरवाजे के पास बेहद भीड़भाड़ थी लखनऊ सिटी पर उतरने वाले यात्री अंदर कूपे में जाने को तैयार न थे और जो चढ़े थे वह मजबूरन दरवाजे के गलियारे में खड़े थे..

सबसे आगे दो दो झोले टांगे और सूरज को अपनी गोद में लिए सरयू सिंह उनके ठीक पीछे मधु को अपनी गोद में लिए हुए सुगना और सबसे पीछे अपनी दोनों मजबूत भुजाओं से ट्रेन के सपोर्ट को पकड़ा हुआ और अपनी कमर से सुगना को सहारा देता हुआ सोनू..

जैसे ही माहौल सहज हुआ सोनू ने महसूस किया कि उसकी कमर सुगना से पूरी तरह सटी हुई है। अब तक तो सोनू का ध्यान सुगना के मादक बदन से हटा हुआ था परंतु धीरे-धीरे उसे उसके बदन की कोमलता महसूस होने लगी सुगना के मादक नितंब उसकी कमर से दब कर चपटे हो रहे थे।


सोनू ने पतले लहंगे के पीछे छुपे सुगना के मादक नितंबों को अपनी जांघों और पेडू प्रदेश पर महसूस करना शुरू कर दिया जैसे-जैसे सोनू का ध्यान केंद्रित होता गया उसके लंड में तनाव आने लगा.. सोनू के लंड का सुपाड़ा सुगना की कमर से सट रहा था शायद यह लंबाई में अंतर होने की वजह से था।

सोनू पूरी तरह सुगना से सटा हुआ था.. उसके मजबूत खूंटे जैसे लंड में तनाव आए और सुगना को पता ना चले यह संभव न था। सोनू के लंड में आ रहे तनाव को देखकर सुगना आश्चर्यचकित थी.. और अब वह स्वयं को असहज महसूस कर रही थी…. उसके दिमाग में सोनू के लंड की तस्वीर घूमने लगी…


शेष अगले भाग में…
भाग 93-94 एक साथ पढ़े ।
नियति ना जाने क्या खेल खेल रही है।
क्या सरयू के जाने के बाद सोनू भी मनोरमा को मथ पाएगा?
क्या सुगना सोनू के प्रणय निवेदन को स्वीकार करेगी??
सूरज का श्राप तो शायद पिंकी के लिए वरदान साबित हो।
अपडेट का इंतजार रहेगा।
 

Lovely Anand

Love is life
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सहजता चे ह रे पर निखार लाती है अति सुंदर भाई जी
थैंक्स

लाजबाब प्रस्तुति
सेक्स नही होने के बाबजूद रोमांच बना रहा 🙏
आपकी उपस्थिति अब अनिवार्य हो रही है..
Agle update ki pratiksha...
लीजिए प्रस्तुत है

भाग 93-94 एक साथ पढ़े ।
नियति ना जाने क्या खेल खेल रही है।
क्या सरयू के जाने के बाद सोनू भी मनोरमा को मथ पाएगा?
क्या सुगना सोनू के प्रणय निवेदन को स्वीकार करेगी??
सूरज का श्राप तो शायद पिंकी के लिए वरदान साबित हो।
अपडेट का इंतजार रहेगा।
धन्यवाद...
आपके प्रश्नों के उत्तर समय समय पर मिलते रहेंगे
 
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