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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
Smart-Select-20210324-171448-Chrome
भाग 126 (मध्यांतर)
 
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Arti69

Zero is the best
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Pls send me 90 , 91 and 109
 

dijju

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आपको बहुत-बहुत धन्यवाद हमेशा की तरह आप कहानी का सारांश देकर अपना अहम योगदान देते रहते हैं.











सच में डॉक्टर ने जो सुगना से कहा है वह शब्द अब भी मुझे कहानी को एक अलग दिशा में ले जाने को प्रेरित कर रहे हैं देखते हैं कैसे आगे के एपिसोड लिखे जाते हैं आप की महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद





















सरयू सिंह की वासना एक नया रूप ले रही है उसे पुष्पित और पल्लवित होने में थोड़ा वक्त लगेगा और सरयू सिंह इस में सफल होंगे या नहीं यह देखने लायक बात होगी आपकी मधुर प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद जुड़े रहे.












































आप सभी पाठकों का धन्यवाद... इस कहानी से कुछ नए नए पाठक जुड़ रहे हैं जो उनका हार्दिक स्वागत है।
आप सबकी प्रतिक्रियाएं कहानी लिखने का प्रेरणा स्रोत हैं यदि आप सब कहानी पढ़ने के बाद उस पर अपनी राय या सुझाव व्यक्त नहीं करते हैं तो मेरे लिए कहानी लिखना एक नीरज कार्य हो जाता है...

अब तक जिन पाठकों ने पिछले एपिसोड पर अपनी प्रतिक्रिया दी थी या बिना प्रतिक्रिया दिए नए अपडेट की रिक्वेस्ट भेजी थी उन सभी को मैंने 109 वा अपडेट भेज दिया कुछ पाठकों ने अपनी सेटिंग में डायरेक्ट मैसेज डिसएबल किया हुआ है उन्हें अपडेट भेज पाना संभव नहीं हो रहा है कृपया अपनी सेटिंग में जाकर इसे इनेबल कर लें ताकि आपको डायरेक्ट मैसेज भेजा जा सके.
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Maine setting check kar liya, sab sahi hai, kindly send 109 episode
 

Lovely Anand

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भाग 108 इस कहानी में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन की ओर इशारा कर रहा है साथ ही सरयू सिंह फिर एक बार वासना के भंवर में घिरे हैं वो भी सुगना की बहन के साथ।
इस कहानी के इतने लंबे समय से पढ़ने के कारण अब मस्तिष्क में सुगना का एक आभासी प्रतिबिम्ब से बनने लगा है जो इस बात का परिचायक है कि लेखक कहानी और कथानक के साथ दिल लगाकर परिश्रम कर रहे हैं।
बस उतना ही जिससे आनंद आता रहे...
Please update story
Sent
Send 109 updte please

Waiting for 109
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Pls send me 90 , 91 and 109
Welcome to story
please send 109...

Maine setting check kar liya, sab sahi hai, kindly send 109 episode

Ab kiya hoga niyati apna khel khelegi ya sugna sonu ke sath hi rahegi .writer mahoday aapko to filmo ke liye story likhni chayie .gajab ka likhte ho aap maza aa gaya
Ye to aane vaala episode hi batayega..



अब तक की सभी रिक्वेस्ट के लिए अपडेट भेजे जा चुके है.. जिन्हें अपडेट नहीं मिला हो वह अपनी सेटिंग्स को चेक कर ले अभी भी कुछ पाठकों को डायरेक्ट मैसेज भेजना संभव नहीं हो पा रहा है शायद उनकी सेटिंग में कुछ गड़बड़ है
 
Last edited:

prkin

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भाग 96

सोनू के मन में सिर्फ एक ही चिंता थी कि अब जब वह सुगना के सामने आएगा तो वह उससे कैसा व्यवहार करें कि क्या उसने उसे ट्रेन में हुई घटना के लिए माफ कर दिया होगा?

सोनू के पास सिर्फ और सिर्फ प्रश्न थे उसे सुगना का सामना करना ही था। उसने अपने इष्ट से सब कुछ सामान्य और अनुकूल रहने की कामना की और अपना सामान बांध कर बनारस विस्तृत सुगना के घर आ गया..सामन पैक करते वक्त उसे रहीम और फातिमा की चूदाई गाथा की वह फटी किताब भी दिखाई पड़ गई और सोनू मुस्कुराने लगा.. उसने न जाने क्या सोच कर उस अधूरी किताब को भी रख लिया…

अगली सुबह सोनू अपना ढेर सारा सामान आटो में लाद कर सुगना के घर के सामने खड़ा था..


उसका कलेजा धक धक कर रहा था..

अब आगे…

दरवाजा सुगना ने ही खोला…सुगना के चेहरे पर स्वागत करने वाली मुस्कान थी एक पल के लिए वह यह बात भूल गई थी कि सामने खड़ा सोनू वही सोनू है जिसने अपने तने हुए लंड को उसके नितंबों से रगड़ते हुए एक कुत्सित स्खलन को अंजाम दिया था… सुगना ने उस घटना को नजरअंदाज कर अपनी डेहरी पर खड़े सोनू का स्वागत किया और बोला..

"अरे तोर ट्रेन तो जल्दी आ गईल आज"

अंदर आने के पश्चात सोनू ने सुगना के चरण छुए परंतु सुगना को अपने आलिंगन में लेने की हिम्मत न जुटा पाया… शायद सुगना भी सतर्क थी..


मन में जब पाप उत्पन्न हो जाता है तो प्रतिक्रिया स्वाभाविक रूप से बदल जाती है।

यही हाल सोनू का था…

सुगना का व्यवहार क्यों बदला यह कहना कठिन था शायद इसमें कुछ अंश उस ट्रेन में हुई घटना का था और उसके मन के किसी कोने में उपज रहे पाप का भी..

इसके उलट सोनी खुलकर अपने भाई सोनू के गले लग गई सोनू और सोनी का यह मिलन पूरी तरह वासना विहीन था यद्यपि सोनू ने सोनी को अपने दोस्त विकास के साथ अपने पूरे यौवन और कामुकता के साथ संभोग करते देखा था… परंतु न जाने क्यों उसने उस रिश्ते को स्वीकार कर लिया था।


सोनी उसे अपनी छोटी बहन ही दिखाई देती थी जिसके बारे में उसके मन में गलत ख्याल शायद ही कभी आते हों… वर्तमान में सोनू के दिलो-दिमाग सब पर सुगना छाई हुई थी…और एक तरह से राज कर रही थी।

जिस प्रकार पूर्णिमा का चांद आकाश में छाए छुटपुट सितारों की रोशनी धूमिल कर देता है उसी प्रकार सुगना इस समय सोनू की वासना पर एकाधिकार जमाए हुए थी …सोनू के लिए जैसे बाकी युवतियां गौड़ हो चुकी थीं।

थोड़ी ही देर में सोनू लाली और सुगना के बच्चों में घुलमिल कर बच्चों की तरह खेलने लगा। एक प्रतिष्ठित और युवा एसडीएम अपनी उम्र को आधा कर बच्चों के साथ वैसे ही खेल रहा था जैसे वह खुद एक बच्चा हो…. सुगना बार-बार उसके इस स्वरूप को देखती और मन ही मन उसे क्षमा कर देती….

आखिरकार सुगना ने सोनू से कहा

"ए सोनू जो जल्दी नहा ले हम खाना लगा दे तानी.."

पता नहीं सोनू के मन में कहां से हिम्मत आई उसने अकस्मात ही कहा

"ठीक बा हम जा तानी आंगन में नहाए तनी पानी चला दिहे "

सोनू ने जो कहा था वह सुगना को उस दिन की याद दिला गया जब वह लाली के कहने पर हैंडपंप चलाने गई थी और सोनू ने उसे लाली समझकर उसके सामने ही अपने तने हुए लंड पर साबुन लगा रहा था… सुगना के जेहन में वह दृश्य पूरी तरह घूम गया…वैसे भी वह पिछले दो-तीन दिनों से न जाने कितनी बार उसके उस तने हुए लंड के बारे में सोच चुकी थी…. उसने बचते हुए कहा..

"ते जो नहाए लाली पानी चला दी."

शायद सोनू ने बिना सोचे समझे वह बात कही थी परंतु सुगना अब फूंक-फूंक कर कदम रख रही थी..

अब तक के हुए घटनाक्रमों में लाली एक बात तो जान गई थी कि सुगना की कामुक काया सोनू को आकर्षक लगती थी। सुगना भी उसे और सोनू को लेकर कई मजाक किया करती थी परंतु जब कभी सोनू का नाम उसके साथ जोड़कर लाली मजाक करती तो वह एक हद के बाद उसे रोक देती देती…

बातों ही बातों में सुगना ने उसे उसे उसके और सोनू के बीच हुए संभोग को देखे जाने की घटना घटना बता दी थी ….लाली के लिए सुगना को समझ पाना कठिन हो रहा था वह कभी तो हंसते खिलखिलाते लाली से सोनू के बारे में ढेरों बातें करती जिसमें कभी कभी कामुक अंश भी होते परंतु कभी-कभी न जाने क्यों सोनू को लेकर छोटी सी बात पर नाराज हो जाती।


लाली ने कई बार ऐसा महसूस किया था कि संभोग के दौरान सुगना का नाम लेने पर सोनू और भी उत्तेजित हुआ करता था तथा सुगना के बारे में और बातें करना चाहता था।

यह लाली पर ही निर्भर करता था कि वह वासना और कामुकता से भरी हुई बातों में सुगना को कितना खींचे और कितना छोड़े…पर सोनू इस पर कोई आपत्ति नहीं जताता था।

लाली ने आज सोनू को खुश करने की ठान ली..

घर में दिनभर घर में चहल पहल रही … सोनू की तीनों बहनें सोनू का जी भर कर ख्याल रख रही थी…

शाम जब सुगना और लाली सब्जी भाजी लेने बाजार गईं सोनू घर में अकेला था…. वह सुगना के कमरे में किताब का दूसरा हिस्सा खोजने लगा रहीम और फातिमा की अधूरी कहानी को पूरा पढ़ने की उसकी तमन्ना जाग उठी थी।

सोनू ने सुगना के कमरे का कोना-कोना छान मारा और आखिरकार वह आधी किताब उसके हाथ आ गई..

सोनू ने उस किताब के पन्नों के बिछड़े हुए भाग को आपस में पूरी तन्मयता और मेहनत से जोड़ा और किताब को मन लगाकर पढ़ने लगा …जैसे-जैसे रहीम और फातिमा की कहानी आगे बढ़ती गई न जाने कब कहानी में रहीम सोनू बन गया और सुगना फातिमा ….कहानी को पढ़ते समय सोनू के जेहन में सिर्फ और सिर्फ सुगना की तस्वीर घूम रही थी..

सोनू का लंड तो जैसे सुगना का नाम लेते ही उछल कर खड़ा हो जाता था सोनू ने उसे थपकी या देकर शांत करने की कोशिश की …. जिस तरह अभी तक सोनू ने अपना धैर्य कायम किया हुआ था उसी प्रकार सोनू के लंड को भी अभी धैर्य रखना था…

आखिर सोनू ने हिम्मत जुटाई और उस किताब को सुगना के शृंगारदान के पास रख दिया…उसे पता था सुगना रात को सोने से पहले श्रृंगारदान खोलकर अपने चेहरे पर क्रीम लगती थी.. वह उस किताब को देखेगी जरूर ….. सोनू ने किताब के अपने वाले हिस्से पर कुछ कलाकारी भी की थी वह भी उस दौरान जब वह लखनऊ में अकेले था…. एक बार के लिए सोनू का मन हुआ कि वह उसके द्वारा की गई कलाकारी को मिटा दे परंतु शायद यह इतना आसान न था…

सोनू ने सब कुछ नियति के हवाले छोड़ दिया

आखिरकार आखिरकार रात हुई जिसका इंतजार सबसे ज्यादा लाली को था…

रात के 10:00 बज चुके थे सारे बच्चे अपने दिनभर की थकावट को दूर करने निद्रा देवी के आगोश में आ चुके थे। बच्चे घर की शान होते हैं और जब वह सो जाते हैं तो ऐसा लगता है जैसे घर में सन्नाटा पसर गया हो।।

परंतु युवा प्रेमियों को यह सन्नाटा बेहद सुहाना लगता है सोनू और लाली आज रंगरलिया मनाने के लिए पूरी तरह तैयार थे। परंतु लाली आज दूसरे ही मूड में थी..

वो सोनू के कमरे में बैठी उससे बातें कर रही थी ..

तभी सोनू ने लाली को अपने पास खींच लिया और उसके गालों को चुमते हुए उसकी चूंची सहलाने लगा सोनू का हाथ धीरे-धीरे लाली की नाइटी में प्रवेश करता गया तभी लाली ने कहा..

अरे सोनू थोड़ा सब्र कर ले सुगना के सूत जाए दे…

"अब बर्दाश्त नईखे होत… देखा तब से खड़ा बा सोनू ने अपनी लूंगी हटाकर अपने खड़े ल** को लाली की निगाहों के ठीक सामने ला दिया..

सोनू का लंड दिन पर दिन और युवा होता जा रहा था.. ऐसा लग रहा था लाली की बुर ने उसे मालिश कर और बलवान बना दिया था.

लाली ने सुगना की लूंगी खींचकर खूंटी पर टांग दी और उसके लंड को अपने हाथों में लेकर उसके आकार में और इजाफा करने लगी तभी रसोई से सुगना की आवाज आई…

"ए लाली सोनू के दूध ले जो"

लाली ने सोनू से 5 मिनट का समय मांगा और सोनू ने अपने नंगे बदन पर लिहाफ डाल लिया… लाली बलखाती हुई कमरे से चली गई…परंतु जाते जाते उसने कमरे की बत्तियां बुझा दी…कमरे में चल रही टीवी से पर्याप्त रोशनी आ रही थी और सोनू बिस्तर के सिरहाने अपनी पीठ टिकाए टीवी देख रहा था और मन ही मन आज लाली के साथ जी भर कर रंगरलिया मनाने की तैयारी कर रहा था।

सोनू अपने हाथों से अपने लंड को सहलाते हुए लाली का इंतजार कर रहा था…. परंतु यह क्या कमरे में दूध लिए सुगना आ चुकी थी… सोनू के होश फाख्ता हो गए पतली रजाई के नीचे सोनू पूरी तरह नग्न था.. यह तो ऊपर वाले का शुक्र था कि उसने अपनी बनियान न उतारी थी अन्यथा सुगना उसकी नग्न अवस्था को तुरंत ही पकड़ लेती… सुगना सोनू के बिल्कुल करीब आ चुकी थी सोनू ने अपने दोनों घुटनों को उठाकर अपने खड़े लंड को रजाई के नीचे छुपा लिया

सोनू ने अपना दाहिना हाथ अपने लंड पर से हटाया और हाथ बढ़ाकर सुगना के हाथों से दूध ले लिया..

सुगना से नजरें मिला पाने की सोनू की हिम्मत न थी.. परंतु वह सुगना की भरी भरी चूचियों को अवश्य देख रहा था। दोनों दुग्ध कलश उसकी आंखों के ठीक सामने थे परंतु उसकी अप्सरा उसे ग्लास में दूध पकड़ा रही थी.. सुगना जैसे ही जाने के लिए पलटी लाली आ चुकी थी..

लाली नेआते ही कहा…

"रसोई के सब काम हो गईल अब बैठ सोनू अपन पहला पोस्टिंग के बात बतावता"

सुगना भली-भांति यह बात जानती थी की सोनू और लाली अब से कुछ देर बाद घनघोर चूदाई करने वाले थे इसकी पूर्व तैयारियां लाली आज सुबह से ही कर रही थी.. वह दाल भात में मूसर चंद नहीं बनना चाहती थी परंतु लाली में उसे हाथ पकड़ कर बिस्तर पर बैठा दिया और सोनू से कहा..


अरे बीच में खिसक अपना दीदी के बैठे थे सोनू पलंग के ठीक बीच में बैठ गया और सुगना अनमने मन से बिस्तर पर बैठ गई… उसके दोनों पैर अब भी बिस्तर के नीचे लटक रहे थे। लाली सुगना के करीब आई और बोली..

"अरे पैरवा ऊपर कर ले आज बहुत ठंडा बा ए सोनू अपना दीदी के रजाई ओढ़ा दे"

सोनू खुद असहज महसूस कर रहा था उसे लाली का यह व्यवहार कतई समझ ना आ रहा था वह पूरी तरह लाली को चोदने के मूड में था.. परंतु लाली ऐसा क्यों कर रही थी यह उसकी समझ के परे था…

अंततः सुगना ने अपने दोनों पैर ऊपर कर लिए और सोनू ने अनमने ढंग से रजाई का कुछ हिस्सा सुगना के पैरों पर डाल दिया परंतु उससे सुरक्षित दूरी बनाते हुए अलग हो गया रजाई के अंदर सोनू पूरी तरह नग्न था और यही उसकी असहजता का मुख्य कारण भी था।

सोनू का लंड अपना तनाव खो रहा था। उसे अब लाली पर गुस्सा आ रहा परंतु सुगना साथ हो और सोनू उसे खुद से दूर करें यह संभव न था।


उसने बातें शुरू कर दी… लाली अब सोनू के दूसरे तरफ आकर बैठ चुकी थी और उसने भी रजाई में अपने पैर डाल लिए थे…सोनू अपनी दोनों बहनों के बीच बिस्तर के सिरहाने अपनी पीठ टिकाए अपने अनुभव को साझा कर रहा था…

सुगना और लाली दोनों पूरी उत्सुकता और तन्मयता से सोनू के अनुभवों को सुन रही थी और समझने का प्रयास कर रहीं थी। अचानक लाली की हथेलियों ने सोनू के लंड को अपने हाथों में पकड़ लिया सोनू को यह अटपटा भी लगा और आनंददायक भी ।

उसने कोई प्रतिक्रिया न दी और उसी तरह अपनी बहन सुगना से बातें करता रहा… लाली के साथ अब अपनी कार्यकुशलता दिखाने लगे सोनू के लंड का सुपाड़ा आगे पीछे हो रहा था.. सुपाड़े के ऊपर सूख चुकी लंड की लार एक बार फिर छलकने लगी।


कुछ ही पलों में लंड एक बार फिर पूरी तरह तन चुका था। सुगना लाली की हरकतों से अनजान अपने भाई के प्रशासनिक अनुभव को सुन रही थी कमरे में …वासना अपना रंग दिखाने लगी थी….

अचानक सुगना का ध्यान लाली की हरकतों पर चला गया सोनू की जांघों के बीच हिलती हुई रजाई ने उसके मन में शक पैदा कर दिया। निश्चित ही लाली सोनू के लंड को छू रही थी। सुगना असहज होने लगी सोनू अपनी उत्तेजना को काबू में रखते हुए सुगना से बातें किया जा रहा था परंतु लाली की उंगलियों और हथेलियों के जादू को अपने लंड पर बखूबी महसूस कर रहा था।

एक पल के लिए उसके मन में आया कि वह अपने ठीक बगल में बैठी सुगना जांघों पर हाथ रख दे परंतु…सोनू अभी इतनी हिम्मत न जुटा पाया सुगना ने अचानक बिस्तर से उठते हुए कहा

"तोहान लोग टीवी देख हम जा तानी सूते "

सुगना कमरे से निकल गई परंतु वह कमरे से ज्यादा दूर ना जा पाईं…उसे सोनू की आवाज सुनाई पड़ी..

"दीदी तू काहे हिलावत रहलु हा सुगना दीदी देख लिहित तब"

"अइसन कह तारा जैसे उ जानत नईखे" लाली ने हल्का गुस्सा दिखाते ही बोला..

"अरे सुगना दीदी जानत बीया ऊ ठीक बा लेकिन हाईसन हालत में देख लीहित तब" सोनू ने लिहाफ हटा दिया और अपने खूंटे से जैसे तने हुए लंड को हाथ में लेते हुए बोला"

अब तक सोनू के मुंह से अपना नाम सुनकर सुगना खिड़की पर आ चुकी थी उसमें अंदर झांका लिहाफ हटा हुआ था और सोनू अपना खूबसूरत लंड अपने हाथों में लिए लाली को दिखा रहा था..

"ज्यादा सयान मत बन…. हैंड पंप पर अपना बहिनी के आपन हथियार देखावले रहला तब …ना लाज लागत रहे"

लाली अपने बालों को बांधते हुए बोली… ऐसा लग रहा था जैसे लाली प्रेम युद्ध के लिए स्वयं को तैयार कर रही हो…

सोनू की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई तो क्या सुगना दीदी ने लाली से सब कुछ बता दिया था क्या ट्रेन की घटना भी…

सोनू ने झेपते हुए कहा..

"हम जानत रहनी की पानी चलावे तू अइबू एहि से सुगना दीदी रहती तब थोड़ी ना करतीं"


सुगना मन ही मन खुश हो गई… शायद उसका भाई सोनू इतना भी बदमाश ना था कि वह अपनी बड़ी बहन को अपना लंड खोल कर दिखा रहा हो…

"चल मान लेनी लेकिन सांच कह.. इ सुगना खातिर तनेला की ना?….लाली ने सोनू की दुखती रग को छेड़ दिया…

"लाली दीदी तू ई का बोला तारू"

"देख अभिये से उछलता …..नामे लेला प " लाली ने सोनू के उछलते हुए लंड को सहलाते हुए बोला….

सुगना के बारे में बातें कर सोनू बेहद उत्तेजित हो गया। वह बिस्तर से उठ खड़ा हुआ और उसमें एक ही झटके में लाली की नाइटी उतार के लाली को पूरी तरह नंगा कर सामने चल रही टीवी के प्रकाश में उसका दूधिया बदन चमकने लगा सुगना बाहर लॉबी में खड़े खिड़की से अंदर झांक रही थी.


सोनू ने लाली को पीछे से पकड़ कर दबोच लिया.. लाली की पीठ सोनू के नंगे सीने से सटी हुई थी सोनू के मजबूत हाथ लाली की नाभि और कमर पर लिपटे हुए थे. सोनू लाली को ऊपर उठा रहा था..और लाली खिलखिला कर हंस रही थी लाली के दोनों पर हवा में थे और सोनू का खूंटे जैसा तना हुआ लंड नितंबों के बीच जगह ढूंढ रहा था…

"आराम से सोनू चोट लग जायी"

परंतु सोनू सुनने के मूड में न था.. सुगना आज अपनी आंखों से वही दृश्य देख रही थी जो स्वयं उसके साथ बनारस महोत्सव में घटा था उस दिन भी सोनू ने ठीक इसी प्रकार उसे उठा लिया था और उसने भी अपने नितंबों के बीच सोनू के तने हुए लंड को महसूस किया था यद्यपि उस दिन सोनू ने अपने कपड़े पहने हुए थे फिर भी सोनू के मजबूत लंड का तनाव छपने लायक न था।

सुगना की आंखें एक बार फिर जड़ हो गई.. कदम फिर रुक गए और सांसे तेज होने लगी सोनू ने लाली को बिस्तर पर पीठ के बल लिटा कर उसकी जांघों के बीच आ गया परंतु आज सोनू किसी और मूड में था..

ई बतावा लाली दीदी सुगना दीदी तोहरा से सब बात करेले का?

"कौन बात?"

"इहे कुल"

"अरे साफ-साफ बोल ना कौन बात?"

"सोनू ने लाली की चूचियों को मसलते हुए कहा"

"इहे कुल..अब बुझाइल "

"हां ऊ हमार सहेली ह त करी ना"

"वो दिन का सुगना दीदी साच में देख ले ले रहे"

"हां देखले रहे और कह तो रहे"

"का कहत रहे?"

"कि हमार भाई अब मर्द बन गईल बा.".

"अवरू का कहत रहे"

"खाली बकबक करब की कामों होई…"

"बतावाना? दीदी का कहत रहे…

"काश सोनू हमर भाई न होखित"

सुगना लाली की बात सुनकर आश्चर्यचकित रह गई उसने ऐसा कुछ न कहा था…. जब भी यह वाक्यांश शब्दों के रूप में आए थे लाली के मुख से ही आए थे। उसे लाली पर गुस्सा आया..पर अभी वह कुछ कहने की स्थिति में न थी।

"तू पागल हउ सुगना दीदी अइसन कभी ना बोली…"

"अरे वाह हम तहर दीदी ना हई "

"सुगना दीदी और तहरा में बहुत अंतर बा ऊ ई कुल के चक्कर में ना रहेली"

"हाई देखतार नू…. एकर कोई जात धर्म रिश्ता नाता ना होला…"लाली ने सोनू को अपनी जांघों के बीच अपनी फूली हुई बुर को दिखाते हुए कहा।

"एकर साथी एके ह…".इतना कहकर लाली ने सोनू के लंड को अपनी हथेलियों में पकड़ लिया…लंड पर रिस आयी लार लाली की हथेलियों में लग गई..

लाली ने मुस्कुराते हुए कहा..

"देख बुझाता इहो आपन सुगना दीदी खातिर लार टपकावता…"

सोनू का लाल फूला हुआ सुपाड़ा लाली की हथेली में था…ऐसा लग रहा था जैसे लाली उसे खुद को छोड़ किसी और को चाहने का दंड दे रही हो पर लंड आज सुगना की चाहत लिए तैयार था…

सोनू उत्तेजना से कपने लगा…लाली ने उसे बेहद उत्तेजित कर दिया था..

और एक बार फिर लाली चुदने लगी….सुगना ने आज लाली का नया रूप देखा था…शायद उसे लाली से यह उम्मीद न थी…

सुगना से और बर्दाश्त न हुआ….वह अपने कमरे में आ गई…

सुगना ने खुद को संतुलित किया और गंदे गंदे ख्यालों को दरकिनार कर वह अपने श्रृंगारदान को खोल कर अपनी क्रीम लगाने लगी तभी उसका ध्यान उस जिंदगी किताब तक चला गया जिसको सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना के लिए छोड़ आया था किताब के दोनों हिस्सों को एक साथ देख कर सुगना चौक उठी आखिर यह किसने किया हे भगवान…

शेष अगले भाग में…

अति उत्तम अध्याय।
ठीक होने के बाद तीन अध्याय एक साथ निपटा दिए.
 

Kakaji147

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भाग -1

ट्यूबवेल के खंडहरनुमा कमरे में एक खुरदरी चटाई पर बाइस वर्षीय सुंदर सुगना अपनी जांघें फैलाएं चुदवाने के लिए आतुर थी।

वह अभी-अभी ट्यूबवेल के पानी से नहा कर आई थी। पानी की बूंदे उसके गोरे शरीर पर अभी भी चमक रही थीं सरयू सिंह अपनी धोती खोल रहे थे उनका मदमस्त लंड अपनी प्यारी बहू को चोदने के लिए उछल रहा था। कुछ देर पहले ही वह सुगना को ट्यूबवेल के पानी से नहाते हुए देख रहे थे और तब से ही अपने लंड की मसाज कर रहे थे। लंड का सुपाड़ा उत्तेजना के कारण रिस रहे वीर्य से भीग गया था।

सरयू सिंह अपनी लार को अपनी हथेलियों में लेकर अपने लंड पर मल रहे थे उनका काला और मजबूत लंड चमकने लगा था। सुगना की निगाह जब उस लंड पर पड़ती उसके शरीर में एक सिहरन पैदा होती और उसके रोएं खड़े हो जाते। सुगना की चूत सुगना के डर को नजरअंदाज करते हुए पनिया गयी थी। दोनों होठों के बीच से गुलाबी रंग का जादुई छेद उभरकर दिखाई पड़ रहा था. सुगना ने अपनी आंखें बंद किए हुए दोनों हाथों को ऊपर उठा दिया सरयू सिंह के लिए यह खुला आमंत्रण था।

कुछ ही देर में वह फनफनता हुआ लंड सुगना की गोरी चूत में अपनी जगह तलाशने लगा। सुगना सिहर उठी। उसकी सांसे तेज हो गयीं उसने अपनी दोनों जांघों को अपने हाथों से पूरी ताकत से अलग कर रखा था।

लंड का सुपाड़ा अंदर जाते ही सुगना कराहते हुए बोली

"बाबूजी तनी धीरे से ….दुखाता"

सरयू सिंह यह सुनकर बेचैन हो उठे। वह सुगना को बेतहाशा चूमने लगे जैसे जैसे वह चूमते गए उनका लंड भी सुगना की चूत की गहराइयों में उतरता गया। जब तक वह सुगना के गर्भाशय के मुख को चूमता सुगना हाफने लगी थी।

उसकी कोमल चूत उसके बाबूजी के लंड के लिए हमेशा छोटी पड़ती। सरयू सिंह अब अपने मुसल को आगे पीछे करना शुरू कर दिए। सुगना की चूत इस मुसल के आने जाने से फुलने पिचकने लगी। जब मुसल अंदर जाता सुगना की सांस बाहर आती और जैसे ही सरयू सिंह अपना लंड बाहर निकालते सुगना सांस ले लेती। सरयू सिंह ने सुगना की दोनों जाघें अब अपनी बड़ी-बड़ी हथेलियों से पकड़ लीं और उसे उसके कंधे से सट्टा दिया। पास पड़ा हुआ पुराना तकिया सुगना के कोमल चूतड़ों के नीचे रखा और अपने काले और मजबूत लंड से सुगना की गोरी और कोमल चूत को चोदना शुरू कर दिया। सुगना आनंद से अभिभूत हो चली थी। वाह आंखें बंद किए इस अद्भुत चुदाई का आनंद ले रही थी। जब उसकी नजरें सरयू सिंह से मिलती दोनों ही शर्म से पानी पानी हो जाते पर सरयू सिंह का लंड उछलने लगता।

उसकी गोरी चूचियां हर धक्के के साथ उछलतीं तथा सरयू सिंह को चूसने के लिए आमंत्रित करतीं। सरयू सिंह ने जैसे ही सुगना की चुचियों को अपने मुंह में भरा सुगना ने "बाबूजी………"की मादक और धीमी आवाज निकाली और पानी छोड़ना शुरू कर दिया। सरयू सिंह का लंड भी सुगना की उत्तेजक आवाज को और बढ़ाने के लिए उछलने लगा और अपना वीर्य उगलना शुरू कर दिया।

वीर्य स्खलन प्रारंभ होते ही सरयू सिंह ने अपना लंड बाहर खींचने की कोशिश की पर सुगना ने अपने दोनों पैरों को उनकी कमर पर लपेट लिया और अपनी तरफ खींचें रखी। सरयू सिंह सुगना की गोरी कोमल जांघों की मजबूत पकड़ की वजह से अपने लिंग को बाहर ना निकाल पाए तभी सुगना ने कहा

"बाबूजी --- बाबूजी… आ…..ईई…..हां ऐसे ही….।" सुगना स्खलित हो चूकी थी पर वह आज उसके मन मे कुछ और ही था।

सरयू सिंह अपनी प्यारी बहू का यह कामुक आग्रह न ठुकरा पाए और अपना वीर्य निकालते निकालते भी लंड को तीन चार बार आगे पीछे किया और अपने वीर्य की अंतिम बूंद को भी गर्भाशय के मुख पर छोड़ दिया. वीर्य सुगना की चूत में भर चुका था। दोनो कुछ देर उसी अवस्था मे रहे।

सरयू सिंह सुगना को मन ही मन उसे घंटों चोदना चाहते थे पर सुगना जैसी सुकुमारी की गोरी चूत का कसाव उनके लंड से तुरंत वीर्य खींच लेता था।

लंड निकल जाने के बाद सुगना ने एक बार फिर अपने हांथों से दोनों जाँघें पकड़कर अपनी चूत को ऊपर उठा लिया। सरयू सिंह का वीर्य उसकी चूत से निकलकर बाहर बहने को तैयार था पर सुगना अपनी दोनों जाँघे उठाए हुए बैलेंस बनाए हुए थी। वह वीर्य की एक भी बूंद को भी बाहर नहीं जाने देना चाहती थी। उसकी दिये रूपी चूत में तेल रूपी वीर्य लभालभ भरा हुआ था। थोड़ा भी हिलने पर छलक आता जो सुगना को कतई गवारा नहीं था। वह मन ही मन गर्भवती होने का फैसला कर चुकी थी।

उस दिन सुगना ने जो किया था उस का जश्न मनाने वह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र आई हुई थी। लेबर रूम में तड़पते हुए वह उस दिन की चुदाई का अफसोस भी कर रही थी पर आने वाली खुशी को याद कर वह लेबर पेन को सह भी रही थी।

सरयू सिंह सलेमपुर गांव के पटवारी थे । वह बेहद ही शालीन स्वभाव के व्यक्ति थे। वह दोहरे व्यक्तित्व के धनी थे समाज और बाहरी दुनिया के लिए वह एक आदर्श पुरुष थे पर सुगना और कुछ महिलाओं के लिए कामदेव के अवतार।

उनके पास दो और गांवों का प्रभार था लखनपुर और सीतापुर ।

सरयू सिंह की बहू सुगना सीतापुर की रहने वाली थी उसकी मां एक फौजी की विधवा थी।

बाहर प्राथमिक समुदायिक केंद्र में कई सारे लोग इकट्ठा थे एक नर्स लेबर रूम से बाहर आई और पुराने कपड़े में लिपटे हुए एक नवजात शिशु को सरयू सिंह को सौंप दिया और कहा...

चाचा जी इसका चेहरा आप से हूबहू मिलता है...

सरयू सिंह ने उस बच्चे को बड़ी आत्मीयता से चूम लिया। उनके कलेजे में जो ठंडक पड़ रही थी उसका अंदाजा उन्हें ही था। कहते हैं होठों की मुस्कान और आंखों की चमक आदमी की खुशी को स्पष्ट कर देती हैं वह उन्हें चाह कर भी नहीं छुपा सकता। वही हाल सरयू सिंह का था। कहने को तो आज दादा बने थे पर हकीकत वह और सुगना ही जानती थी। तभी हरिया (उनका पड़ोसी) बोल पड़ा

"भैया, मैं कहता था ना सुगना बिटिया जरूर मां बनेगी आपका वंश आगे चलेगा"

सरयू सिंह खुशी से चहक रहे थे उन्होंने अपनी जेब से दो 50 के नोट निकालें एक उस नर्स को दिया तथा दूसरा हरिया के हाथ में दे कर बोले जा मिठाई ले आ और सबको मिठाई खिला।

सरयू सिंह ने नर्स से सुगना का हाल जानना चाहा उसने बताया बहुरानी ठीक है कुछ घंटों बाद आप उसे घर ले जा सकते हैं।

सरयू सिंह पास पड़ी बेंच पर बैठकर आंखें मूंदे हुए अपनी यादों में खो गए।

मकर संक्रांति का दिन था। सुगना खेतों से सब्जियां तोड़ रही थी उसने हरे रंग की साड़ी पहन रखी थी जब वह सब्जियां तोड़ने के लिए नीचे झुकती उसकी गोल- गोल चूचियां पीले रंग के ब्लाउज से बाहर झांकने लगती। सरयू सिंह कुछ ही दूर पर क्यारी बना रहे थे। हाथों में फावड़ा लिए वह खेतों में मेहनत कर रहे थे शायद इसी वजह से आज 50 वर्ष की उम्र में भी वह अद्भुत कद काठी के मालिक थे।

(मैं सरयू सिंह)

उस दिन सुगना सब्जियां तोड़ने अकेले ही आई थी। घूंघट से उसका चेहरा ढका हुआ पर उसकी चूचियों की झलक पाकर मेरा लंड तन कर खड़ा हो गया। खिली हुई धूप में सुगना का गोरा बदन चमक रहा था मेरा मन सुगना को चोदने के लिए मचल गया।

चोद तो उसे मैं पहले भी कई बार चुका था पर आज खुले आसमान के नीचे… मजा आ जाएगा मेरा मन प्रफुल्लित हो उठा। कुछ देर तक मुझे उसकी चूचियां दिखाई देती रही पर थोड़ी ही देर बाद उसकी मदहोश कर देने वाली गांड भी साड़ी के पीछे से झलकने लगी। मेरा मन अब क्यारी बनाने में मन नहीं लग रहा था मुझे तो सुगना की क्यारी जोतने का मन कर रहा था। मैं फावड़ा रखकर अपने मुसल जैसे ल** को सहलाने लगा सुगना की निगाह मुझ पर पढ़ चुकी थी वह शरमा गई। और उठकर पास चल रहे ट्यूबवेल पर नहाने चली गई।

ट्यूबवेल ठीक बगल में ही था। ट्यूबवेल की धार में नहाना मुझे भी आनंदित करता था और सुगना को भी। सुगना ही क्या उस तीन इंच मोटे पाइप से निकलती हुई पानी की मोटी धार जब शरीर पर पड़ती वह हर स्त्री पुरुष को आनंद से भर देती। सुगना उस मोटी धार के नीचे नहा रही थी। सुगना को आज पहली बार मैं खुले में पानी की मोटी धार के नीचे नहाते हुए देख रहा था।

पानी की धार उसकी चुचियों पर पड़ रही थी वह अपनी चुचियों को उस मोटी धार के नीचे लाती और फिर हटा देती। पानी की धार का प्रहार उसकी कोमल चुचियां ज्यादा देर तक सहन नहीं कर पातीं। वह अपने छोटे छोटे हाथों से पानी की धार को नियंत्रण में लाने का प्रयास करती। हाथों से टकराकर पानी उसके चेहरे को भिगो देता वाह पानी से खेल रही थी और मैं उसे देख कर उत्तेजित हो रहा था।

अचानक मैंने देखा पानी की वह मोटी धार उसकी दोनों जांघों के बीच गिरने लगी सुगना खड़ी हो गई थी वह अपने चेहरे को पानी से धो रही थी पर मोटी धार उसकी मखमली चूत को भिगो रही थी। कभी वह अपने कूल्हों को पीछे ले जाती कभी आगे ऐसा लग रहा था जैसे वह पानी की धार को अपनी चूत पर नियंत्रित करने का प्रयास कर रही थी।

उस दिन ट्यूबवेल के कमरे में, मैं और सुगना बहुत जल्दी स्खलित हो गए थे। सुगना के मेरे वीर्य के एक अंश को एक बालक बना दिया था।

मैं उसके साथ एकांत में मिलना चाहता था हमें कई सारी बातें करनी थीं।

"ल भैया मिठाई आ गइल"

हरिया की बातें सुनकर सरयू सिंह अपनी मीठी यादों से वापस बाहर आ गए…



शेष आगे।
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कहानी की नायिका - सुगना
Niccce
 
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