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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Lovely Anand

Love is life
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भाग 117

उधर कोई और रास्ता न देख सुगना ने फैसला कर लिया कि वह लाज शर्म छोड़कर…सोनू से खुलकर बात करेगी और डॉक्टर द्वारा दी गई नसीहत को स्पष्ट रूप से सोनू को बता देगी.


सुगना अपनी बात सोनू तक स्पष्ट रूप से पहुंचाने के लिए अपने शब्दों को सजोने लगी …निश्चित ही अपने छोटे भाई को डॉक्टर द्वारा दी गई उस नसीहत को समझाना कठिन था

अब आगे..

लाली और सोनू के जाने के बाद सुगना खुद को असहाय महसूस कर रही थी। नियति ने उसे न जाने किस परीक्षा में डाल दिया था उसका अचूक अस्त्र लाली रणक्षेत्र से बाहर हो चुकी थी।


सोनू के पुरुषत्व को जीवित रखने के लिए सुगना नए-नए उपाय सोच रही थी। सोनू द्वारा स्वयं हस्तमैथुन कर अपने पुरुषत्व को जगाए रखना ही एकमात्र विकल्प नजर आ रहा था।

मुसीबत में इंसान तार्किक हुए बिना कई संभावनाएं तलाश लेता है परंतु हकीकत की कसौटी पर वह संभावनाएं औंधे मुंह गिर पड़ती हैं। अपने ही भाई को अब से कुछ दिनों पहले हस्तमैथुन के लिए पहले रोकना और अब उसे समझा कर उसी बात के राजी करना सुगना को विचित्र लग रहा था।

यद्यपि हस्तमैथुन वीर्य स्खलन करने में सक्षम तो था परंतु डॉक्टर ने दूसरे विकल्प के रूप में बताया था पहला विकल्प अब भी स्पष्ट था संभोग और संभोग हस्तमैथुन का विकल्प तब के लिए था जब सुगना संभोग के लायक कुदरती रूप से न रहती। शायद उस डॉक्टर ने वह क्रीम इसीलिए दी थी।

कई बार कुछ कार्य बेहद आसान होते हैं और अचानक ही एक कड़ी के टूट जाने से वह दुरूह हो जाते है। लाली और सोनू का मिलन सबसे सटीक उपाय था पर अब वह हाथ से निकल चुका था। अचानक सुगना को रहीम और फातिमा की कहानी याद आई और उसकी आंखों में चमक आ गई सुगना ने फटाफट कपड़े बदले और अपने दोनों बच्चों को पड़ोस में कुछ देर के लिए छोड़ कर बाजार की तरफ निकल गई। वैसे भी अब सूरज समझदार हो चुका था और अपनी बहन मधु का ख्याल रख लेता था।


जब जब सुगना सूरज और मधु को साथ देखती उसे भविष्य के दृश्य दिखाई देने लगते विद्यानंद द्वारा कही गई बातें उसके जेहन में गूंजने लगती सूरज कैसे अपनी छोटी बहन के साथ संभोग करेगा ?

सुगना न जाने क्यों यह बात भूल रही थी कि वह स्वयं उसी दहलीज पर खड़ी थी सोनू भी तो उसका अपना भाई था।

सुगना का रिक्शा एक राजसी वैद्य की कुटिया के पास रुका। अंदर वैद्य की जगह उनकी पत्नी उनका कार्यभार सम्हालती थी। कजरी से पूर्व परिचित होने के कारण वह सुगना के भी करीब हो चुकी थीं। सुगना अंदर प्रवेश कर गई। कुछ देर तक वार्तालाप करने की पश्चात वापसी में सुगना के चेहरे पर संतोष स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था शायद अंदर उसे जो शिक्षा और ज्ञान मिला था उससे सुगना संतुष्ट थी।

शाम के 4:00 बज चुके थे सुगना सोनू का इंतजार कर रही थी पर परंतु सोनू के आने में विलंब हो रहा था। सुगना सोनू से बात करने का मसौदा तैयार कर चुकी थी और न जाने कितनी बार उन शब्दों को अपने मन में दोहरा चुकी थी।


हर इंतजार का अंत होता है और सुगना का इंतजार भी खत्म हुआ सोनू की गाड़ी की आवाज बाहर सुनाई दी और सुगना झट से खिड़की पर आ गई। सोनू गाड़ी से उतर कर अंदर आ रहा था चेहरे पर थकावट स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही। बात सच थी आज का दिन सोनू का भागते दौड़ते बीत गया था। योजनाएं सिर्फ सुगना की चकनाचूर न हुई थी सोनू भी आशंकाओं से घिरा हुआ था। सलेमपुर में हुई घटना ने सब कुछ तितर-बितर कर दिया था।

सोनू अपना चेहरा अपने अंगौछे से पोछता हुआ अंदर आया।

"कईसन बाड़े लोग हरिया चाचा और चाची? ज्यादा चोट तो नाइखे लागल ?" सुगना ने स्वाभाविक प्रश्न किया। हरिया चाचा उसके पड़ोसी थे और सरयू सिंह के परम मित्र भी सुगना के सलेमपुर प्रवास के दिनों में उन दोनों ने सुगना का बखूबी ख्याल रखा था। कमरे के अंदर सरयू सिंह के उस दिव्य रूप और रिश्ते को छोड़ दिया जाए तो सरयू सिंह और हरिया दोनों पिता तुल्य ही थे।

"ठीक बाड़े लोग तीन-चार दिन में घाव सूख जाई ज्यादा चोट नईखे लागल चाची के ही पैर में प्लास्टर लागल बा उहे दिक्कत के बात बा? लाली दीदी त बुझाता ओहीजे रहीहैं " सोनू ने स्पष्ट तौर पर सुगना के मन में चल रही सारी संभावनाओं पर विराम लगा दिया।

सोनू स्वयं सुगना के मन की बात जानना चाहता था क्या सुगना उसके साथ जौनपुर जाएगी?

अपनी अधीरता सोनू रोक ना पाया शायद इसीलिए उसने सारी बातें स्पष्ट रूप से सुगना को बता दीं…वह बिना प्रश्न पूछे ही अपना उत्तर चाह रहा था।

सुगना सोच में डूब गई…

सुगना को मौन देख सोनू ने कहा..

" हमरा के जल्दी से चाय पिला द हमरा वापिस जौनपुर जाए के बा"

सुगना ने सोनू की बात का कोई उत्तर न दिया परंतु रसोईघर में जाते-जाते उसने सोनू और दिशा निर्देश दे दिया जाकर पहले मुंह हाथ धो ला। दिन भर के थाकल बाड़.. अ पहले चाय पी ल फिर बतियावाल जाए"


सुगना पूरी तरह तैयार थी। वैद्य जी की पत्नी से मिलने के बाद सुगना के पास कई विकल्प थे। जिसके तरकस में कई तीर आ चुके हों उसमें आत्मविश्वास आना स्वाभाविक।

सुगना रसोई घर में और सोनू गुसल खाने में अपने अपने कार्यों में लग गए पर दिमाग एक ही दिशा में कार्य कर रहा था।

आखिरकार सुगना चाय लेकर सोनू के समक्ष उपस्थित थी। सुगना आपने चेहरे पर उभर रहे भाव को यथासंभव नियंत्रित करने का प्रयास कर रही थी और अपनी नजरें झुकाए हुए थी। उसने सोनू के हाथ में चाय की प्याली दी और बोला

"आज ही जाएल जरूरी बा का?"

हां दीदी बहुत छुट्टी हो गईल बा अब और छुट्टी ना मिली…वैसे भी साल बीते में 1 सप्ताह ही बा।


सुगना ने फिर कहा

"1 सप्ताह बाद फिर लखनऊ भी जाए के बा चेकअप करावे मालूम बानू"

"हां याद बा… नया साल में चलल जाई"

"सोनू एक बात कही?" सुगना लाख प्रयास करने के बाद भी अपनी प्रश्न में छुपी हुई संजीदगी रोक ना पाए और सोनू सतर्क हो गया..

"हां बोल ना दीदी"

"डॉक्टर कहत रहे….." सुगना की सारी तैयारी एक पल में स्वाहा हो गई और उसकी जुबान लड़खड़ा गई

सोनू ने आतुरता से सुगना के मुंह में जबान डालते हुए बोला

"का कहत रहे दीदी?"


सुगना ने फिर हिम्मत जुटाई और बोली

" ते जवन नसबंदी करोले ल बाड़े ओकरे बारे में कहत रहे…"

"का कहत रहे?" सोनू ने सुगना को उत्साहित किया

"सुगना शर्म से गड़ी जा रही थी.. अपने कोमल पैरों से मजबूत फर्श को कुरेदनी की कोशिश की और अपनी हांथ की उंगलियों को एक दूसरे में उलझा लिया शारीरिक क्रियाएं दिमाग में चल रही उलझन का संकेत देती हैं सुगना परेशान हो गई थी। उसने बेहद धीमे स्वर में कहा ..

"डॉक्टर कहते रहे की… नसबंदी के सात दिन बाद एक हफ्ता तक ज्यादा से ज्यादा वीर्य स्खलन करना चाहिए… जिससे ऊ अंग आगे भी काम करता रहे चाहे इसके लिए हस्तमैथुन ही क्यों ना करना पड़े "

सुगना ने डॉक्टर की नसीहत को तोड़मरोड़ कर सोनू को सुना दिया था…हिंदी भाषा का अधिकाधिक प्रयोग कर सुगना ने सोनू को डॉक्टर द्वारा दी गई नसीहत सुनाने की कोशिश की थी…. परंतु परंतु संभोग की बात वह छुपा ले गई थी आखिर जो संभव न था उसके जिक्र का कोई औचित्य भी न था।

अपनी बहन के मुख से हिंदी के वाक्य सुनकर सोनू भी आश्चर्यचकित था और मन ही मन मुस्कुरा रहा था उसने सुगना के शर्माते हुए चेहरे को पढ़ने की कोशिश की परंतु सुगना नजरे ना मिला रही थी.

"का दीदी अभी तीन-चार दिन पहले तक तो उल्टा कहत रहलू और अब उल्टा बोला तारु "

"जरूरी बार एही से बोला तानी"

"दीदी हमरा से ई सब ना होई वैसे भी हमार ई सब से मन हट गईल बा अब हमार जीवन के लक्ष्य बदल गईल बा"

सुगना को एक पल के लिए भ्रम हुआ जैसे सोनू सच कह रहा है परंतु सुगना यह बात भली-भांति जानती थी कि सोनू लाली को चोदने के लिए आतुर था बड़ी मुश्किल से उसने उसे लाली से 1 हफ्ते तक दूर रखा था अचानक वासना से विरक्ति निश्चित ही यकीन योग्य बात न थी।

सुगना कुछ और कहना चाहती थी तभी सूरज कमरे में आ गया और सोनू के पास में आते हुए बोला

"मामा लाली मौसी जौनपुर नईखे जात त हमनी के ले चला… हमरो स्कूल के छुट्टी हो गईल बा"

सोनू ने सूरज के गाल पर पप्पी ली और अपने मन में उठ रही खुशी की तरंगों को नियंत्रित करते हुए बोला.. "हमरा से का बोलत बाड़ा अपना मां से बोला हम तो चाहते बानी"

सूरज सोनू के पास से उठकर सुगना के पास में आ गया और उसके गालों और होठों को चूमते हुए बोला "मां चल ना " सोनू सुगना के चेहरे पर बदल रहे भाव को पढ़ रहा था। और उसने एक बार फिर सुगना से बेहद प्यार से कहा ..

" चल ना दीदी अब तो घर में केहू नईखे …दू चार दिन रह के नया घर देख लिहे ओहिजे से लखनऊ भी चल जाएके "

सुगना ने न जाने क्या सोचा पर उसने अपनी हामी भर दी और उठ कर अपने कमरे में आ गई। थोड़ी ही देर में सुगना अपने दोनों छोटे बच्चों के साथ जौनपुर जाने के लिए तैयार थी। सुगना का पहला तीर खाली गया था पर उसके तरकश में अब भी तीर बाकी थे।

सोनू की सरकारी गाड़ी सड़क पर तेजी से दौड़ रही थी ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सोनू की अधीरता उसका ड्राइवर भी समझ रहा था सुगना खिड़की का शीशा खोलें बाहर देख रही थी। चेहरा एकदम शांत पर मन में हिलोरे उठ रही थी जो सुगना ने सोचा था उसे अंजाम में लाने की सोच कर उसका तन बदन सिहर रहा था।

आखिरकार सुगना सोनू के नए बंगले पर खड़ी थी सोनू के मातहत फटाफट सुगना और सोनू का सामान गाड़ी से निकालकर अंदर लाने लगे और सोनू पहली बार अपनी बड़ी बहन सुगना तो अपने नए आशियाने में अंदर ला रहा था खूबसूरत सजा हुआ घर वह भी अपना….. सुगना घर की खूबसूरती देखकर प्रसन्न हो गई थी उसने हॉल में कुछ कदम बढ़ाए उसका ध्यान बगल के कमरे पर गया..

"अरे ई पलंगवा काहे खरीदले"


सोनू के घर में स्वयं द्वारा पसंद किए गए पलंग को देखकर सुगना आश्चर्यचकित थी। उस दिन बनारस में एक ही पलंग खरीदने की बात हुई थी और वह था लाली की पसंद का। सुगना ने पीछे मुड़कर सोनू को देखा और प्रश्न किया

"लाली ई पलंग देखित त का सोचित?"


सोनू पीछे खड़ा मुस्कुरा रहा था। वह सुगना के पास आया और उसका हांथ पकड़ कर दूसरे कमरे में ले गया…जहां लाली की पसंद का पलंग लगा था। सुगना सोनू की समझदारी पर खुश हो गई।

दोनों ही कमरे सोनू ने बेहद खूबसूरती के साथ सजाए थे और जितना भी वह अपनी बहनों को समझ पाया था उसने दीवारों पर रंगरोगन और बिस्तर की चादर का रंग भी उनके पसंद के अनुसार ही रखा था… सुगना अभिभूत थी। सोनू के प्रति उसके दिल में प्यार और इज्जत बढ़ गई।

सोनू के अर्दली और मातहतों ने सुगना का सामान सुगना के पलंग पर लाकर रख दिया और थोड़ी ही देर में सुगना अपने कमरे में सहज होने लगी। सूरज और मधु नए पलंग पर खेलने लगे।

रसोई घर की हालत देखकर सुगना ने सोनू से कहा…

"खाली रसोई घर के हालत खराब बा बाकी तो घर तू चमका ले ले बाड़ा"

"दीदी ई त हम तोहरा और लाली दीदी के खातिर छोड़ देले रहनी.. अब काल आराम से सरिया लिहा"

" तब आज खाना कैसे बनी"

"आज खाना बाहर से आई… ड्राइवर चल गईल बा ले आवे"

सुगना ने सोनू से पूछा

"और सूरज मधु खातिर दूध?"

" मंगा देले बानी.. और तोहरा खातिर भी तू भी त पसंद करेलू "

सुगना मुस्कुरा रही थी उसे इस बात की खुशी थी कि उसका छोटा भाई उसकी हर पसंद नापसंद से अब भी बखूबी वाकिफ था।

धीरे-धीरे सभी घर में सहज हो गए खाना आ चुका था सूरज और मधु तो पहले से ही चॉकलेट और न जाने क्या-क्या अनाप-शनाप खाकर मस्त हो गए थे। सुगना ने सूरज और मधु को गिलास से दूध पिलाया। मधु भी अब काफी समय से सुगना की चूचियां पीना छोड़ चुकी थी शायद अब न तो उसे इसकी आवश्यकता थी और नहीं सुगना की चूचियां और दूध उत्सर्जन कर रही थीं। अब जो उनका उपयोग था उसका इंतजार कोई और कर रहा था।

अब तक सोनू स्नान ध्यान कर तैयार हो चुका था सफेद धोती और नई नई सैंडो बनियान पहने सोनू का गठीला बदन देखने लायक था बदन से चिपकी हुई बनियान उसे और खूबसूरत आकार दे रही थी पुष्ट और चौड़ा मांसल सीना और उस पर उभरी मांसल नसें ट्यूबलाइट के दूधिया प्रकाश में चमक रही थीं…

सूरज के अनुरोध पर सोनू सुगना के बिस्तर पर आकर दोनों के साथ खेलना लगा। सूरज और मधु धीरे-धीरे अंगड़ाई लेते हुए बिस्तर पर लेटे सोनू से कहानियां सुनने लगे।

जब तक दोनो नींद में जाते सुगना सोनू के लिए खाना लेकर आ चुकी थी।

सोनू ने जिद कर सुगना के लिए भी प्लेट मंगवा ली सुगना कहती रही कि मैं स्नान करने के बाद आराम से खा लूंगी परंतु सोनू न माना। आखिरकार सोनू और सुगना साथ साथ भोजन करने लगे बार-बार सुगना की निगाहें सोनू के गठीले बदन पर जाती और सुगना सोनू के मर्दाना शरीर को देखकर मोहित हो जाती काश यदि सोनू उसका भाई ना होता तो निश्चित ही वह उसके सपनों का राजकुमार होता परंतु मन का सोचा कहां होता है हकीकत और कल्पना का अंतर है सुगना भली भांति जानती थी ।

सुगना ने मन बना लिया था कि वह सोनू के पुरुषत्व को निश्चित ही यूं ही खत्म नहीं होने देगी आखिर देर सबेर यदि सोनू विवाह के लिए राजी होता है तो अपनी अर्धांगिनी को वंश तो नहीं परंतु स्त्री सुख अवश्य दे पाएगा।

सोनू का कलेजा भी सीने में कुछ ज्यादा ही तेज धड़क रहा था जैसे-जैसे रात्रि की बेला नजदीक आ रही थी सोनू अधीर हो रहा था क्या होने वाला था? सुगना दीदी आखिर क्या करने वाली थी उसे इस बात का तो यकीन था कि आज की रात व्यर्थ न जाएगी पर कोई सुगना के व्यवहार में इसकी झलक दिखाई नहीं पड़ रही थी।

सुगना खाने की झूठी प्लेट लेकर वापस रसोई घर की तरफ से आ रही थी और उसके मादक नितंब सोनू की नजरों के साथ थिरक रहे थे।

सोनू अपने मन में सुगना के साथ बिताए कामुक पलों को याद करने लगा सुगना का नंगा बदन उसकी आंखों में घूमने लगा वासना चरम पर थी जैसे-जैसे सुगना का नशा दिमाग पर चढ़ता गया लंड उत्तेजना से भरता चला गया उधर सुगना के हाथ कांप रहे थे गर्म दूध गिलास में निकाल कर उसने अपने ब्लाउज में हाथ डालकर एक लाल पुड़िया निकाली… .और पुड़िया में रखा एक चुटकी सफेद पाउडर दूध की गिलास में मिला दिया….

उसने हाथ जोड़कर अपने इष्ट देव को याद किया और वैद्य जी की पत्नी को धन्यवाद दिया तथा अपनी पलकें बंद कर ली…शायद सुगना किए जाने वाले कृत्य की अग्रिम माफी मांग रही थी..

हाथ में गिलास का दूध लिए सुगना सोनू के बिस्तर पर आ चुकी थी…

"ले सोनू दूध पी ले "

"तू भी दूध पी ल" सोनू अपनी तरफ से सुगना का पूरा ख्याल रखना चाहता था।

सुगना ने बड़ी बहन के अधिकार को प्रयोग करते हुए सोनू से कहा

"अब चुपचाप दूध पी ला तोहरा कहना पर बिना नहाए ले खा लेनी अब दूध ना पियब…हम नहा के पी लेब "


सोनू ने दूध का गिलास पकड़ लिया। सुगना सूरज और मधु के ऊपर रजाई डालने लगी। वह बार-बार कनखियों से सोनू को देख रही थी मन में आशंका उठ रही थी कि कहीं सोनू को दूध का स्वाद अलग ना लगे और हुआ भी वही जैसे ही सोनू ने दूध का पहला घूंट लिया उसकी स्वाद इंद्रियों ने स्वाद में बदलाव महसूस किया परंतु इस बदलाव का कारण सोनू की कल्पना शक्ति से परे था। सोनू यह बात सोच भी नहीं सकता था कि उसकी बहन सुगना ने उस दूध में कुछ तत्व मिलाए थे।

सोनू ने फिर भी सुगना से कहा

"ओहिजा गांव में बढ़िया दूध मिलत रहे आज के दूध तो बिल्कुल अलग लागत बा.."

सुगना हड़बड़ा गई दूध का स्वाद निश्चित ही कुछ बदल गया होगा परंतु सुगना ने सोनू की बात को ज्यादा अहमियत न देते हुए कहा…

"हां अलग-अलग जगह के दूध में अंतर होला वैसे देखे में तो ठीक लागत रहे"

सोनू धीरे-धीरे दूध के घूंट पीता रहा और जब सुगना संतुष्ट हो गई की सोनू पूरा दूध खत्म कर लेगा वह नहाने के लिए गुसलखाने में प्रवेश कर गई।

सुगना का कलेजा धक-धक कर रहा था बाथरूम में नग्न शरीर पर गर्म पानी डालते हुए सुगना सोच रही थी क्या वह जो करने जा रही थी वह उचित था..

आइए सुगना को स्थिर चित्त होने के लिए कुछ समय देते हैं और आपको लिए चलते हैं सलेमपुर के उसी घर में जहां पर इस कहानी की शुरुआत हुई थी। सुगना के आगमन से अब तक घर में कई बदलाव आ चुके थे पर मूल ढांचा अब भी वहीं था परंतु समृद्धि का असर घर पर दिखाई दे रहा था सरयू सिंह की कोठरी भी अब बिजली के प्रकाश से जगमगाने लगी थी।

बनारस से वापस आने के बाद उनकी उम्मीदें टूट चुकी थी पर सोनी को याद करना अब भी बदस्तूर जारी था। हस्तमैथुन के समय सोनी अब भी याद आती थी परंतु ग्लानि भाव के साथ। आखिरकार सरयू सिंह ने अपनी वासना को नया रूप दिया और बाजार से जाकर टीवी खरीद लाए टीवी में कई नायिकाएं नायिकाएं और उनके प्रणय दृश्य सरयू सिंह को लुभाने लगे और धीरे-धीरे स्वयं को उन नायिकाओं के साथ कल्पना कर सरयू सिंह की रातें एक बार फिर रंगीन होने लगी।

हकीकत और टीवी का अंतर स्पष्ट था जब जब उनके मन में सोनी का गदराया बदन घूमता उत्तेजना नया रूप ले लेती परंतु वह भी यह बात जान चुके थे कि सोनी अब हाथ से निकल चुकी है।


मन में दबी हुई आस लिए सरयू सिंह धीरे-धीरे अपना समय व्यतीत कर रहे थे परंतु उन्होंने सोनी के लिए जो मन्नतें मांगी थी नियति ने उनकी इच्छा का मान रखने की सोच ली थी।

तभी कजरी उनकी कोठरी में आई और सरयू सिंह ने अपनी धोती से अपने खड़े लंड को ढक लिया..

टीवी पर चल रहे दृश्यों को कजरी ने सरयू सिंह की मनो स्थिति समझ ली और कहा…

"जाने ई कुल से राऊर ध्यान कब हटी"

सरयू सिंह ने कजरी को छेड़ते हुए कहा

" अब तू ता पूछा हूं ना आवेलू "

"अब हमरा से ई कुल ना होई आपके भी इस सब छोड़ देवें के चाही अतना उम्र में के ई कुल करेला?"

"काहे ना करेला ? काहे जब ले जान बा आदमी सांस लेला की ना.?." सरयू सिंह ने उल्टा प्रश्न पूछ कर अपनी बात रखने की कोशिश की.

"तब अपना पतोहिया सुगना के काहे छोड़ देनी…जैसे तीन चार साल खेत जोतले रहनी… आगे भी…जोतत रहतीं ओकरो जीवन त अभियो उदासे बा"

सरयू सिंह निरुत्तर हो गए। अपनी पुत्री सुगना के साथ जो पाप उन्होंने किया था वह उसे भली-भांति समझते थे। पर अब वह और उस बारे में नहीं सोचना चाहते थे और ना ही बात करना। सुगना उनकी दुखती रग थी जिसके बारे में कामुक बातें करने पर सरयू सिंह शांत पड़ जाते थे।

सरयू सिंह को को चुप देखकर कजरी ने उन्हें और परेशान करना उचित न समझा। यह बात कजरी भी जानती थी कि अब सुगना और सरयू सिंह के बीच कोई भी कामुक रिश्ता नहीं बचा है पर इसकी वजह क्या थी यह ज्ञान उसे न था।

कजरी आई थी कुछ और बात कहने और सरयू सिंह की दशा दिशा देखकर बातें कुछ और होने लगी थी कजरी ने मूल बात पर आते हुए कहा

"गुड़ के लड्डू बनावले बानी …छोटकी डॉक्टरनी सीतापुर आईल बिया जाके दे आईं बहुत पसंद करेले"

"के ?" सरयू सिंह छोटी डॉक्टरनी को समझ ना पाए

"अरे सब के दुलरवी सोनी"

सरयू सिंह के जेहन में सोनी का चेहरा घूम गया उन्होंने सहर्ष सीतापुर जाने की सहमति दे दी मन में उमंगे हिलोरे मार रही थी सोनी के करीब जाने की बात सुनकर मन एक बार फिर ख्वाब बुनने लगा था परंतु हकीकत सरयू सिंह भी जानते थे पर उम्मीदों का क्या?

उधर जौनपुर में सुगना अपना स्नान पूरा कर चुकी थी और सुगना द्वारा दिया गया दूध पीकर सोनू बिस्तर पर लेटे लेटे सो गया था शायद यह निद्रा कुछ अलग थी सुगना द्वारा दूध में मिलाया गया वह विशेष रसायन अपना असर दिखा चुका था सुगना सोनू के मासूम चेहरे को देख रही थी और कसा हुआ सोनू का बदन बिस्तर पर निढाल पड़ा हुआ था..

सुगना अपनी धड़कनों पर काबू पाते हुए आगे बढ़ रही थी.. पैर कंपकपा रहे थे यह ठंड की वजह से था या सुगना के मन में चल रहे भंवर से कहना कठिन था..

परीक्षा की घड़ी आ चुकी थी…

शेष अगले भाग में….
 
Last edited by a moderator:

sunoanuj

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Bhaut khatarnak jagah par viram liya Mitr … bahut he adbhut niyati ki chaal naa samajhdar koi … bahut barhiya likh rahe ho mitr 👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
 

Kammy sidhu

Member
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भाग 117

उधर कोई और रास्ता न देख सुगना ने फैसला कर लिया कि वह लाज शर्म छोड़कर…सोनू से खुलकर बात करेगी और डॉक्टर द्वारा दी गई नसीहत को स्पष्ट रूप से सोनू को बता देगी.


सुगना अपनी बात सोनू तक स्पष्ट रूप से पहुंचाने के लिए अपने शब्दों को सजोने लगी …निश्चित ही अपने छोटे भाई को डॉक्टर द्वारा दी गई उस नसीहत को समझाना कठिन था

अब आगे..

लाली और सोनू के जाने के बाद सुगना खुद को असहाय महसूस कर रही थी। नियति ने उसे न जाने किस परीक्षा में डाल दिया था उसका अचूक अस्त्र लाली रणक्षेत्र से बाहर हो चुकी थी।

सोनू के पुरुषत्व को जीवित रखने के लिए सुगना नए-नए उपाय सोच रही थी। सोनू द्वारा स्वयं हस्तमैथुन कर अपने पुरुषत्व को जगाए रखना ही एकमात्र विकल्प नजर आ रहा था।

मुसीबत में इंसान तार्किक हुए बिना कई संभावनाएं तलाश लेता है परंतु हकीकत की कसौटी पर वह संभावनाएं औंधे मुंह गिर पड़ती हैं। अपने ही भाई को अब से कुछ दिनों पहले हस्तमैथुन के लिए पहले रोकना और अब उसे समझा कर उसी बात के राजी करना सुगना को विचित्र लग रहा था।

यद्यपि हस्तमैथुन वीर्य स्खलन करने में सक्षम तो था परंतु डॉक्टर ने दूसरे विकल्प के रूप में बताया था पहला विकल्प अब भी स्पष्ट था संभोग और संभोग हस्तमैथुन का विकल्प तब के लिए था जब सुगना संभोग के लायक कुदरती रूप से न रहती। शायद उस डॉक्टर ने वह क्रीम इसीलिए दी थी।

कई बार कुछ कार्य बेहद आसान होते हैं और अचानक ही एक कड़ी के टूट जाने से वह दुरूह हो जाते है। लाली और सोनू का मिलन सबसे सटीक उपाय था पर अब वह हाथ से निकल चुका था। अचानक सुगना को रहीम और फातिमा की कहानी याद आई और उसकी आंखों में चमक आ गई सुगना ने फटाफट कपड़े बदले और अपने दोनों बच्चों को पड़ोस में कुछ देर के लिए छोड़ कर बाजार की तरफ निकल गई। वैसे भी अब सूरज समझदार हो चुका था और अपनी बहन मधु का ख्याल रख लेता था।

जब जब सुगना सूरज और मधु को साथ देखती उसे भविष्य के दृश्य दिखाई देने लगते विद्यानंद द्वारा कही गई बातें उसके जेहन में गूंजने लगती सूरज कैसे अपनी छोटी बहन के साथ संभोग करेगा ?

सुगना न जाने क्यों यह बात भूल रही थी कि वह स्वयं उसी दहलीज पर खड़ी थी सोनू भी तो उसका अपना भाई था।

सुगना का रिक्शा एक राजसी वैद्य की कुटिया के पास रुका। अंदर वैद्य की जगह उनकी पत्नी उनका कार्यभार सम्हालती थी। कजरी से पूर्व परिचित होने के कारण वह सुगना के भी करीब हो चुकी थीं। सुगना अंदर प्रवेश कर गई। कुछ देर तक वार्तालाप करने की पश्चात वापसी में सुगना के चेहरे पर संतोष स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था शायद अंदर उसे जो शिक्षा और ज्ञान मिला था उससे सुगना संतुष्ट थी।

शाम के 4:00 बज चुके थे सुगना सोनू का इंतजार कर रही थी पर परंतु सोनू के आने में विलंब हो रहा था। सुगना सोनू से बात करने का मसौदा तैयार कर चुकी थी और न जाने कितनी बार उन शब्दों को अपने मन में दोहरा चुकी थी।

हर इंतजार का अंत होता है और सुगना का इंतजार भी खत्म हुआ सोनू की गाड़ी की आवाज बाहर सुनाई दी और सुगना झट से खिड़की पर आ गई। सोनू गाड़ी से उतर कर अंदर आ रहा था चेहरे पर थकावट स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही। बात सच थी आज का दिन सोनू का भागते दौड़ते बीत गया था। योजनाएं सिर्फ सुगना की चकनाचूर न हुई थी सोनू भी आशंकाओं से घिरा हुआ था। सलेमपुर में हुई घटना ने सब कुछ तितर-बितर कर दिया था।

सोनू अपना चेहरा अपने अंगौछे से पोछता हुआ अंदर आया।

"कईसन बाड़े लोग हरिया चाचा और चाची? ज्यादा चोट तो नाइखे लागल ?" सुगना ने स्वाभाविक प्रश्न किया। हरिया चाचा उसके पड़ोसी थे और सरयू सिंह के परम मित्र भी सुगना के सलेमपुर प्रवास के दिनों में उन दोनों ने सुगना का बखूबी ख्याल रखा था। कमरे के अंदर सरयू सिंह के उस दिव्य रूप और रिश्ते को छोड़ दिया जाए तो सरयू सिंह और हरिया दोनों पिता तुल्य ही थे।

"ठीक बाड़े लोग तीन-चार दिन में घाव सूख जाई ज्यादा चोट नईखे लागल चाची के ही पैर में प्लास्टर लागल बा उहे दिक्कत के बात बा? लाली दीदी त बुझाता ओहीजे रहीहैं " सोनू ने स्पष्ट तौर पर सुगना के मन में चल रही सारी संभावनाओं पर विराम लगा दिया।

सोनू स्वयं सुगना के मन की बात जानना चाहता था क्या सुगना उसके साथ जौनपुर जाएगी?

अपनी अधीरता सोनू रोक ना पाया शायद इसीलिए उसने सारी बातें स्पष्ट रूप से सुगना को बता दीं…वह बिना प्रश्न पूछे ही अपना उत्तर चाह रहा था।

सुगना सोच में डूब गई…

सुगना को मौन देख सोनू ने कहा..

" हमरा के जल्दी से चाय पिला द हमरा वापिस जौनपुर जाए के बा"

सुगना ने सोनू की बात का कोई उत्तर न दिया परंतु रसोईघर में जाते-जाते उसने सोनू और दिशा निर्देश दे दिया जाकर पहले मुंह हाथ धो ला। दिन भर के थाकल बाड़.. अ पहले चाय पी ल फिर बतियावाल जाए"

सुगना पूरी तरह तैयार थी। वैद्य जी की पत्नी से मिलने के बाद सुगना के पास कई विकल्प थे। जिसके तरकस में कई तीर आ चुके हों उसमें आत्मविश्वास आना स्वाभाविक।

सुगना रसोई घर में और सोनू गुसल खाने में अपने अपने कार्यों में लग गए पर दिमाग एक ही दिशा में कार्य कर रहा था।

आखिरकार सुगना चाय लेकर सोनू के समक्ष उपस्थित थी। सुगना आपने चेहरे पर उभर रहे भाव को यथासंभव नियंत्रित करने का प्रयास कर रही थी और अपनी नजरें झुकाए हुए थी। उसने सोनू के हाथ में चाय की प्याली दी और बोला

"आज ही जाएल जरूरी बा का?"

हां दीदी बहुत छुट्टी हो गईल बा अब और छुट्टी ना मिली…वैसे भी साल बीते में 1 सप्ताह ही बा।

सुगना ने फिर कहा

"1 सप्ताह बाद फिर लखनऊ भी जाए के बा चेकअप करावे मालूम बानू"

"हां याद बा… नया साल में चलल जाई"

"सोनू एक बात कही?" सुगना लाख प्रयास करने के बाद भी अपनी प्रश्न में छुपी हुई संजीदगी रोक ना पाए और सोनू सतर्क हो गया..

"हां बोल ना दीदी"

"डॉक्टर कहत रहे….." सुगना की सारी तैयारी एक पल में स्वाहा हो गई और उसकी जुबान लड़खड़ा गई

सोनू ने आतुरता से सुगना के मुंह में जबान डालते हुए बोला

"का कहत रहे दीदी?"

सुगना ने फिर हिम्मत जुटाई और बोली

" ते जवन नसबंदी करोले ल बाड़े ओकरे बारे में कहत रहे…"

"का कहत रहे?" सोनू ने सुगना को उत्साहित किया

"सुगना शर्म से गड़ी जा रही थी.. अपने कोमल पैरों से मजबूत फर्श को कुरेदनी की कोशिश की और अपनी हांथ की उंगलियों को एक दूसरे में उलझा लिया शारीरिक क्रियाएं दिमाग में चल रही उलझन का संकेत देती हैं सुगना परेशान हो गई थी। उसने बेहद धीमे स्वर में कहा ..

"डॉक्टर कहते रहे की… नसबंदी के सात दिन बाद एक हफ्ता तक ज्यादा से ज्यादा वीर्य स्खलन करना चाहिए… जिससे ऊ अंग आगे भी काम करता रहे चाहे इसके लिए हस्तमैथुन ही क्यों ना करना पड़े "

सुगना ने डॉक्टर की नसीहत को तोड़मरोड़ कर सोनू को सुना दिया था…हिंदी भाषा का अधिकाधिक प्रयोग कर सुगना ने सोनू को डॉक्टर द्वारा दी गई नसीहत सुनाने की कोशिश की थी…. परंतु परंतु संभोग की बात वह छुपा ले गई थी आखिर जो संभव न था उसके जिक्र का कोई औचित्य भी न था।

अपनी बहन के मुख से हिंदी के वाक्य सुनकर सोनू भी आश्चर्यचकित था और मन ही मन मुस्कुरा रहा था उसने सुगना के शर्माते हुए चेहरे को पढ़ने की कोशिश की परंतु सुगना नजरे ना मिला रही थी.

"का दीदी अभी तीन-चार दिन पहले तक तो उल्टा कहत रहलू और अब उल्टा बोला तारु "

"जरूरी बार एही से बोला तानी"

"दीदी हमरा से ई सब ना होई वैसे भी हमार ई सब से मन हट गईल बा अब हमार जीवन के लक्ष्य बदल गईल बा"

सुगना को एक पल के लिए भ्रम हुआ जैसे सोनू सच कह रहा है परंतु सुगना यह बात भली-भांति जानती थी कि सोनू लाली को चोदने के लिए आतुर था बड़ी मुश्किल से उसने उसे लाली से 1 हफ्ते तक दूर रखा था अचानक वासना से विरक्ति निश्चित ही यकीन योग्य बात न थी।

सुगना कुछ और कहना चाहती थी तभी सूरज कमरे में आ गया और सोनू की गोद में आते हुए बोला

"मामा लाली मौसी जौनपुर नईखे जात त हमनी के ले चला… हमरो स्कूल के छुट्टी हो गईल बा"

सोनू ने सूरज के गाल पर पप्पी ली और अपने मन में उठ रही खुशी की तरंगों को नियंत्रित करते हुए बोला.. "हमरा से का बोलत बाड़ा अपना मां से बोला हम तो चाहते बानी"

सूरज सोनू की गोद से उतरकर सुगना की गोद में आ गया और उसके गालों और होठों को चूमते हुए बोला "मां चल ना " सोनू सुगना के चेहरे पर बदल रहे भाव को पढ़ रहा था। और उसने एक बार फिर सुगना से बेहद प्यार से कहा ..

" चल ना दीदी अब तो घर में केहू नईखे …दू चार दिन रह के नया घर देख लिहे ओहिजे से लखनऊ भी चल जाएके "

सुगना ने न जाने क्या सोचा पर उसने अपनी हामी भर दी और उठ कर अपने कमरे में आ गई। थोड़ी ही देर में सुगना अपने दोनों छोटे बच्चों के साथ जौनपुर जाने के लिए तैयार थी। सुगना का पहला तीर खाली गया था पर उसके तरकश में अब भी तीर बाकी थे।

सोनू की सरकारी गाड़ी सड़क पर तेजी से दौड़ रही थी ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सोनू की अधीरता उसका ड्राइवर भी समझ रहा था सुगना खिड़की का शीशा खोलें बाहर देख रही थी। चेहरा एकदम शांत पर मन में हिलोरे उठ रही थी जो सुगना ने सोचा था उसे अंजाम में लाने की सोच कर उसका तन बदन सिहर रहा था।

आखिरकार सुगना सोनू के नए बंगले पर खड़ी थी सोनू के मातहत फटाफट सुगना और सोनू का सामान गाड़ी से निकालकर अंदर लाने लगे और सोनू पहली बार अपनी बड़ी बहन सुगना तो अपने नए आशियाने में अंदर ला रहा था खूबसूरत सजा हुआ घर वह भी अपना….. सुगना घर की खूबसूरती देखकर प्रसन्न हो गई थी उसने हॉल में कुछ कदम बढ़ाए उसका ध्यान बगल के कमरे पर गया..

"अरे ई पलंगवा काहे खरीदले"

सोनू के घर में स्वयं द्वारा पसंद किए गए पलंग को देखकर सुगना आश्चर्यचकित थी। उस दिन बनारस में एक ही पलंग खरीदने की बात हुई थी और वह था लाली की पसंद का। सुगना ने पीछे मुड़कर सोनू को देखा और प्रश्न किया

"लाली ई पलंग देखित त का सोचित?"

सोनू पीछे खड़ा मुस्कुरा रहा था। वह सुगना के पास आया और उसका हांथ पकड़ कर दूसरे कमरे में ले गया…जहां लाली की पसंद का पलंग लगा था। सुगना सोनू की समझदारी पर खुश हो गई।

दोनों ही कमरे सोनू ने बेहद खूबसूरती के साथ सजाए थे और जितना भी वह अपनी बहनों को समझ पाया था उसने दीवारों पर रंगरोगन और बिस्तर की चादर का रंग भी उनके पसंद के अनुसार ही रखा था… सुगना अभिभूत थी। सोनू के प्रति उसके दिल में प्यार और इज्जत बढ़ गई।

सोनू के अर्दली और मातहतों ने सुगना का सामान सुगना के पलंग पर लाकर रख दिया और थोड़ी ही देर में सुगना अपने कमरे में सहज होने लगी। सूरज और मधु नए पलंग पर खेलने लगे।

रसोई घर की हालत देखकर सुगना ने सोनू से कहा…

"खाली रसोई घर के हालत खराब बा बाकी तो घर तू चमका ले ले बाड़ा"

"दीदी ई त हम तोहरा और लाली दीदी के खातिर छोड़ देले रहनी.. अब काल आराम से सरिया लिहा"

" तब आज खाना कैसे बनी"

"आज खाना बाहर से आई… ड्राइवर चल गईल बा ले आवे"

सुगना ने सोनू से पूछा

"और बच्चा लोग खातिर दूध?"

" मंगा देले बानी.. और तोहरा खातिर भी तू भी त पसंद करेलू "

सुगना मुस्कुरा रही थी उसे इस बात की खुशी थी कि उसका छोटा भाई उसकी हर पसंद नापसंद से अब भी बखूबी वाकिफ था।

धीरे-धीरे सभी घर में सहज हो गए खाना आ चुका था बच्चे तो पहले से ही चॉकलेट और न जाने क्या-क्या अनाप-शनाप खाकर मस्त हो गए थे। सुगना ने अपनेअपने बच्चों को गिलास से दूध पिलाया। मधु भी अब सुगना की चूचियां पीना छोड़ चुकी थी शायद अब न तो उसे इसकी आवश्यकता थी और नहीं सुगना की चूचियां और दूध उत्सर्जन कर रही थीं। अब जो उनका उपयोग था उसका इंतजार कोई और कर रहा था।

अब तक सोनू स्नान ध्यान कर तैयार हो चुका था सफेद धोती और नई नई सैंडो बनियान पहने सोनू का गठीला बदन देखने लायक था बदन से चिपकी हुई बनियान उसे और खूबसूरत आकार दे रही थी पुष्ट और चौड़ा मांसल सीना और उस पर उभरी मांसल नसें ट्यूबलाइट के दूधिया प्रकाश में चमक रही थीं…

सूरज के अनुरोध पर सोनू सुगना के बिस्तर पर आकर दोनों बच्चों के साथ खेलना लगा। बच्चे धीरे-धीरे अंगड़ाई लेते हुए बिस्तर पर लेटे सोनू से कहानियां सुनने लगे।

जब तक बच्चे नींद में जाते सुगना सोनू के लिए खाना लेकर आ चुकी थी।

सोनू ने जिद कर सुगना के लिए भी प्लेट मंगवा ली सुगना कहती रही कि मैं स्नान करने के बाद आराम से खा लूंगी परंतु सोनू न माना। आखिरकार सोनू और सुगना साथ साथ भोजन करने लगे बार-बार सुगना की निगाहें सोनू के गठीले बदन पर जाती और सुगना सोनू के मर्दाना शरीर को देखकर मोहित हो जाती काश यदि सोनू उसका भाई ना होता तो निश्चित ही वह उसके सपनों का राजकुमार होता परंतु मन का सोचा कहां होता है हकीकत और कल्पना का अंतर है सुगना भली भांति जानती थी ।

सुगना ने मन बना लिया था कि वह सोनू के पुरुषत्व को निश्चित ही यूं ही खत्म नहीं होने देगी आखिर देर सबेर यदि सोनू विवाह के लिए राजी होता है तो अपनी अर्धांगिनी को वंश तो नहीं परंतु स्त्री सुख अवश्य दे पाएगा।

सोनू का कलेजा भी सीने में कुछ ज्यादा ही तेज धड़क रहा था जैसे-जैसे रात्रि की बेला नजदीक आ रही थी सोनू अधीर हो रहा था क्या होने वाला था? सुगना दीदी आखिर क्या करने वाली थी उसे इस बात का तो यकीन था कि आज की रात व्यर्थ न जाएगी पर कोई सुगना के व्यवहार में इसकी झलक दिखाई नहीं पड़ रही थी।

सुगना खाने की झूठी प्लेट लेकर वापस रसोई घर की तरफ से आ रही थी और उसके मादक नितंब सोनू की नजरों के साथ थिरक रहे थे।

सोनू अपने मन में सुगना के साथ बिताए कामुक पलों को याद करने लगा सुगना का नंगा बदन उसकी आंखों में घूमने लगा वासना चरम पर थी जैसे-जैसे सुगना का नशा दिमाग पर चढ़ता गया लंड उत्तेजना से भरता चला गया उधर सुगना के हाथ कांप रहे थे गर्म दूध गिलास में निकाल कर उसने अपने ब्लाउज में हाथ डालकर एक लाल पुड़िया निकाली… .और पुड़िया में रखा एक चुटकी सफेद पाउडर दूध की गिलास में मिला दिया….

उसने हाथ जोड़कर अपने इष्ट देव को याद किया और वैद्य जी की पत्नी को धन्यवाद दिया तथा अपनी पलकें बंद कर ली…शायद सुगना किए जाने वाले कृत्य की अग्रिम माफी मांग रही थी..

हाथ में गिलास का दूध लिए सुगना सोनू के बिस्तर पर आ चुकी थी…

"ले सोनू दूध पी ले "

"तू भी दूध पी ल" सोनू अपनी तरफ से सुगना का पूरा ख्याल रखना चाहता था।

सुगना ने बड़ी बहन के अधिकार को प्रयोग करते हुए सोनू से कहा

"अब चुपचाप दूध पी ला तोहरा कहना पर बिना नहाए ले खा लेनी अब दूध ना पियब…हम नहा के पी लेब "

सोनू ने दूध का गिलास पकड़ लिया। सुगना सूरज और मधु के ऊपर रजाई डालने लगी। वह बार-बार कनखियों से सोनू को देख रही थी मन में आशंका उठ रही थी कि कहीं सोनू को दूध का स्वाद अलग ना लगे और हुआ भी वही जैसे ही सोनू ने दूध का पहला घूंट लिया उसकी स्वाद इंद्रियों ने स्वाद में बदलाव महसूस किया परंतु इस बदलाव का कारण सोनू की कल्पना शक्ति से परे था। सोनू यह बात सोच भी नहीं सकता था कि उसकी बहन सुगना ने उस दूध में कुछ तत्व मिलाए थे।

सोनू ने फिर भी सुगना से कहा

"ओहिजा गांव में बढ़िया दूध मिलत रहे आज के दूध तो बिल्कुल अलग लागत बा.."

सुगना हड़बड़ा गई दूध का स्वाद निश्चित ही कुछ बदल गया होगा परंतु सुगना ने सोनू की बात को ज्यादा अहमियत न देते हुए कहा…

"हां अलग-अलग जगह के दूध में अंतर होला वैसे देखे में तो ठीक लागत रहे"

सोनू धीरे-धीरे दूध के घूंट पीता रहा और जब सुगना संतुष्ट हो गई की सोनू पूरा दूध खत्म कर लेगा वह नहाने के लिए गुसलखाने में प्रवेश कर गई।

सुगना का कलेजा धक-धक कर रहा था बाथरूम में नग्न शरीर पर गर्म पानी डालते हुए सुगना सोच रही थी क्या वह जो करने जा रही थी वह उचित था..

आइए सुगना को स्थिर चित्त होने के लिए कुछ समय देते हैं और आपको लिए चलते हैं सलेमपुर के उसी घर में जहां पर इस कहानी की शुरुआत हुई थी। सुगना के आगमन से अब तक घर में कई बदलाव आ चुके थे पर मूल ढांचा अब भी वहीं था परंतु समृद्धि का असर घर पर दिखाई दे रहा था सरयू सिंह की कोठरी भी अब बिजली के प्रकाश से जगमगाने लगी थी।

बनारस से वापस आने के बाद उनकी उम्मीदें टूट चुकी थी पर सोनी को याद करना अब भी बदस्तूर जारी था। हस्तमैथुन के समय सोनी अब भी याद आती थी परंतु ग्लानि भाव के साथ। आखिरकार सरयू सिंह ने अपनी वासना को नया रूप दिया और बाजार से जाकर टीवी खरीद लाए टीवी में कई नायिकाएं नायिकाएं और उनके प्रणय दृश्य सरयू सिंह को लुभाने लगे और धीरे-धीरे स्वयं को उन नायिकाओं के साथ कल्पना कर सरयू सिंह की रातें एक बार फिर रंगीन होने लगी।

हकीकत और टीवी का अंतर स्पष्ट था जब जब उनके मन में सोनी का गदराया बदन घूमता उत्तेजना नया रूप ले लेती परंतु वह भी यह बात जान चुके थे कि सोनी अब हाथ से निकल चुकी है।

मन में दबी हुई आस लिए सरयू सिंह धीरे-धीरे अपना समय व्यतीत कर रहे थे परंतु उन्होंने सोनी के लिए जो मन्नतें मांगी थी नियति ने उनकी इच्छा का मान रखने की सोच ली थी।

तभी कजरी उनकी कोठरी में आई और सरयू सिंह ने अपनी धोती से अपने खड़े लंड को ढक लिया..

टीवी पर चल रहे दृश्यों को कजरी ने सरयू सिंह की मनो स्थिति समझ ली और कहा…

"जाने ई कुल से राऊर ध्यान कब हटी"

सरयू सिंह ने कजरी को छेड़ते हुए कहा

" अब तू ता पूछा हूं ना आवेलू "

"अब हमरा से ई कुल ना होई आपके भी इस सब छोड़ देवें के चाही अतना उम्र में के ई कुल करेला?"

"काहे ना करेला ? काहे जब ले जान बा आदमी सांस लेला की ना.?." सरयू सिंह ने उल्टा प्रश्न पूछ कर अपनी बात रखने की कोशिश की.

"तब अपना पतोहिया सुगना के काहे छोड़ देनी…जैसे तीन चार साल खेत जोतले रहनी… आगे भी…जोतत रहतीं ओकरो जीवन त अभियो उदासे बा"

सरयू सिंह निरुत्तर हो गए। अपनी पुत्री सुगना के साथ जो पाप उन्होंने किया था वह उसे भली-भांति समझते थे। पर अब वह और उस बारे में नहीं सोचना चाहते थे और ना ही बात करना। सुगना उनकी दुखती रग थी जिसके बारे में कामुक बातें करने पर सरयू सिंह शांत पड़ जाते थे।

सरयू सिंह को को चुप देखकर कजरी ने उन्हें और परेशान करना उचित न समझा। यह बात कजरी भी जानती थी कि अब सुगना और सरयू सिंह के बीच कोई भी कामुक रिश्ता नहीं बचा है पर इसकी वजह क्या थी यह ज्ञान उसे न था।

कजरी आई थी कुछ और बात कहने और सरयू सिंह की दशा दिशा देखकर बातें कुछ और होने लगी थी कजरी ने मूल बात पर आते हुए कहा

"गुड़ के लड्डू बनावले बानी …छोटकी डॉक्टरनी सीतापुर आईल बिया जाके दे आईं बहुत पसंद करेले"

"के ?" सरयू सिंह छोटी डॉक्टरनी को समझ ना पाए

"अरे सब के दुलरवी सोनी"

सरयू सिंह के जेहन में सोनी का चेहरा घूम गया उन्होंने सहर्ष सीतापुर जाने की सहमति दे दी मन में उमंगे हिलोरे मार रही थी सोनी के करीब जाने की बात सुनकर मन एक बार फिर ख्वाब बुनने लगा था परंतु हकीकत सरयू सिंह भी जानते थे पर उम्मीदों का क्या?

उधर जौनपुर में सुगना अपना स्नान पूरा कर चुकी थी और सुगना द्वारा दिया गया दूध पीकर सोनू बिस्तर पर लेटे लेटे सो गया था शायद यह निद्रा कुछ अलग थी सुगना द्वारा दूध में मिलाया गया वह विशेष रसायन अपना असर दिखा चुका था सुगना सोनू के मासूम चेहरे को देख रही थी और कसा हुआ सोनू का बदन बिस्तर पर निढाल पड़ा हुआ था..

सुगना अपनी धड़कनों पर काबू पाते हुए आगे बढ़ रही थी.. पैर कंपकपा रहे थे यह ठंड की वजह से था या सुगना के मन में चल रहे भंवर से कहना कठिन था..

परीक्षा की घड़ी आ चुकी थी…

शेष अगले भाग में….







Wah bhai maja aa gya , abb sagun Sonu ko handjob karegi lagta hain , too much romantic update bro and continue story
 
Last edited:

Rekha rani

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Gjb update, sugna jaunpur aa gyi hai sonu ke sath, ab dekhna hai niyti jitti hai ya sugna, shayad sugna ne nind ki dwa milayi hai dud me jisase sonu so jaye aur sugna hath se uska pani nikal de,
Udhr saryu ke man me ab bhi soni hai aur unhe mouka bhi mil gya uske pass jane ka dekhte hai waha kya khela hota hai niyti ka
 

Parallel lund

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इंस्टॉलमेंट में कहानी लिखने का क्या मतलब लवली जी!????!!!! आज लिखे हो फिर गायब हो जाते हो ऐसे कहानी का सारा आनंद किरकिरा हो जाता!!! अतः आपसे निवेदन है रेगुलर अपडेट दीजिए
 

Lovely Anand

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Bhaut khatarnak jagah par viram liya Mitr … bahut he adbhut niyati ki chaal naa samajhdar koi … bahut barhiya likh rahe ho mitr 👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
धन्यवाद
Wah bhai maja aa gya , abb sagun Sonu ko handjob karegi lagta hain , too much romantic update bro and continue story
सुगना क्या देगी यह तो आने वाले अपडेट में ही पता चलेगा पर उत्साह और अपेक्षाएं कायम रखें
Gjb update, sugna jaunpur aa gyi hai sonu ke sath, ab dekhna hai niyti jitti hai ya sugna, shayad sugna ne nind ki dwa milayi hai dud me jisase sonu so jaye aur sugna hath se uska pani nikal de,
Udhr saryu ke man me ab bhi soni hai aur unhe mouka bhi mil gya uske pass jane ka dekhte hai waha kya khela hota hai niyti ka
Pathak swayam bhi kahani ki dasha Disha Tay karte Hain lagta hai sabhi hastmaithun ka hi intezar kar rahe hain per sugna ke man mein kya hai yah to vahi jaane
very nice update
धन्यवाद
Lagta hai Murchit ya ardhmurchit awastha me sugna sonu ka skhlan karwayegi
देखिए हो सकता है आपकी अपेक्षाएं पूरी हो जाएं
इंस्टॉलमेंट में कहानी लिखने का क्या मतलब लवली जी!????!!!! आज लिखे हो फिर गायब हो जाते हो ऐसे कहानी का सारा आनंद किरकिरा हो जाता!!! अतः आपसे निवेदन है रेगुलर अपडेट दीजिए
काश मेरे जीवन का उद्देश्य यही होता तो मैं ऐसी वासना जनने कहानियां लिख लिख कर अपना जीवन काट देता पर परंतु ऐसा नहीं है मेरे लिए यह नितांत फुर्सत का कार्य है अतः संतोष करने की सलाह दूंगा संतोषम परम सुखम जुड़े रहिए और जो है उसका आनंद लेते रहे
 
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