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दोस्तों, सभी को एक बार पुनः से मेरा नमस्कार,
बहोत अच्छा लग रहा है एक बार दोबारा आपके सामने नयी कहानी पेश करने का मौका मिल रहा है, आशा करती हु कि इस कहानी को आप मेरी पिछली कहानी से भी ज्यादा पसंद करेंगे और प्यार करेंगे। तो कहानी शुरू करते है -----
तन पर कपड़ो के नाम पर सिर्फ एक फटी उधड़ी हुई कच्छी,जो एक टांग मैं घुटनो के पास लटक रही थी और एक फटी हुई ब्रा, जो मानो पतली सी डोर के सहारे कंधे से लटक कह रही हो इतना भी क्यों रहने दिया इसे भी चिर दिया होता चुंकि इसके अब इस तन पर होने ना होने से कुछ भी फरक नहीं पड़ना था,
इस वक्त अपनी बेरेहेम मार से लाल पड़ी हुई, जिनके उभार पर नीले रंग कि नसे साफ दिखती हुई दोनों चूचियाँ लिए,जो इस वक्त पूर्ण रूप से नंगी निचे जमीन कि तरफ लटकी हुई मानो जमीन अपने गुरुतवाकर्शन बल से अपनी तरफ खिंच रही हो, को लिए दोनों हाथ पीछे कि तरफ से एक मोटी सी रस्सी से बंधे हुए दोनों टांगे चिपकाये हुए आगे अपने नंगे लाल और सुन्न पड़े हुए चुत्तड़ लिए टेबल के सहारे आगे कि तरफ झुकी हुई "मैं", जिसके मुँह मैं फटी उधड़ी हुई ब्रा और कच्छी के टुकड़े ठुसे हुए, आँखों मैं आंसू लिए पसीने से भीगी खड़ी ही थी कि,
तभी मेरे उन कसे हुए लाल मोटे चुत्तडो पर शट शट शट शट शट कर ना जाने ही कितनी बार लगातार बेल्ट कि मार पडती है जिसका एहसास होते ही मैं और मेरी रूह अंतरंग तक काँप उठती है और दोनों टांगे झटके से कांपने लगती है और दर्द से जोरदार चीख निकालने कि नाकाम कोशिश के साथ ही आँखों से आंसू छलक पड़ते है और इसी दर्द के मारे मानो जैसे मेरी टांगो मैं जान ही ना रही हो, जिस कारण टांगे मुड़ने लगती है और मैं निचे कि तरफ होने लगती हु, अभी कुछ इंच निचे हुई ही होती हु कि उस बेल्ट कि बेरेहेम मार का एक दौर और चल पड़ता है जिसकी दर्द और कराह से दोनों टांगे तुरंत ही वापस कड़क सीधी हो जाती है, मानो जैसे ये मार मुझे याद दिलाने के लिए थी कि इस वक्त मुझे बिना टांगे मोड बिलकुल सीधी टांगे लिए एक पालतू कुतिया के जैसे खड़े रहना है....
और जैसे ही बेल्ट का आखरी वार मेरे चुत्तडो पर होता है और उस दर्द के कम्पन से एक झटके मे मैं बिस्तर पर एक चीख के साथ नींद के आगोश से बाहर आती हु, अहहहहहहहहहह.......
बहोत अच्छा लग रहा है एक बार दोबारा आपके सामने नयी कहानी पेश करने का मौका मिल रहा है, आशा करती हु कि इस कहानी को आप मेरी पिछली कहानी से भी ज्यादा पसंद करेंगे और प्यार करेंगे। तो कहानी शुरू करते है -----
तन पर कपड़ो के नाम पर सिर्फ एक फटी उधड़ी हुई कच्छी,जो एक टांग मैं घुटनो के पास लटक रही थी और एक फटी हुई ब्रा, जो मानो पतली सी डोर के सहारे कंधे से लटक कह रही हो इतना भी क्यों रहने दिया इसे भी चिर दिया होता चुंकि इसके अब इस तन पर होने ना होने से कुछ भी फरक नहीं पड़ना था,
इस वक्त अपनी बेरेहेम मार से लाल पड़ी हुई, जिनके उभार पर नीले रंग कि नसे साफ दिखती हुई दोनों चूचियाँ लिए,जो इस वक्त पूर्ण रूप से नंगी निचे जमीन कि तरफ लटकी हुई मानो जमीन अपने गुरुतवाकर्शन बल से अपनी तरफ खिंच रही हो, को लिए दोनों हाथ पीछे कि तरफ से एक मोटी सी रस्सी से बंधे हुए दोनों टांगे चिपकाये हुए आगे अपने नंगे लाल और सुन्न पड़े हुए चुत्तड़ लिए टेबल के सहारे आगे कि तरफ झुकी हुई "मैं", जिसके मुँह मैं फटी उधड़ी हुई ब्रा और कच्छी के टुकड़े ठुसे हुए, आँखों मैं आंसू लिए पसीने से भीगी खड़ी ही थी कि,
तभी मेरे उन कसे हुए लाल मोटे चुत्तडो पर शट शट शट शट शट कर ना जाने ही कितनी बार लगातार बेल्ट कि मार पडती है जिसका एहसास होते ही मैं और मेरी रूह अंतरंग तक काँप उठती है और दोनों टांगे झटके से कांपने लगती है और दर्द से जोरदार चीख निकालने कि नाकाम कोशिश के साथ ही आँखों से आंसू छलक पड़ते है और इसी दर्द के मारे मानो जैसे मेरी टांगो मैं जान ही ना रही हो, जिस कारण टांगे मुड़ने लगती है और मैं निचे कि तरफ होने लगती हु, अभी कुछ इंच निचे हुई ही होती हु कि उस बेल्ट कि बेरेहेम मार का एक दौर और चल पड़ता है जिसकी दर्द और कराह से दोनों टांगे तुरंत ही वापस कड़क सीधी हो जाती है, मानो जैसे ये मार मुझे याद दिलाने के लिए थी कि इस वक्त मुझे बिना टांगे मोड बिलकुल सीधी टांगे लिए एक पालतू कुतिया के जैसे खड़े रहना है....
और जैसे ही बेल्ट का आखरी वार मेरे चुत्तडो पर होता है और उस दर्द के कम्पन से एक झटके मे मैं बिस्तर पर एक चीख के साथ नींद के आगोश से बाहर आती हु, अहहहहहहहहहह.......
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